Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास ) - Page 2 - SexBaba
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Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )


छतरपुर महरौली रोड पर कुतुबमीनार से आगे एक गांव था। वहां और उसके रास्ते में दिल्ली के कई रईस लोगों के फार्म थे जो कि प्रायः उन लोगों की तफरीहगाह के तौर पर इस्तेमाल होते थे।


चावला के फार्म का ग्यारह नंबर का नियोन साइन मुझे दो फर्लाग से ही चमकता दिखाई दे गया।

वह कई एकड़ में फैला एक विशाल फार्म था जिसके पृष्ठभाग में एक जमीन में कोई छ: फुट ऊपर उठे प्लेटफार्म पर
एक खूबसूरत बंगला यूं बना दिखाई दे रहा था जैसे प्लेट में कोई सजावट की चीज रखी हो । 2 फार्म का फाटक मैंने खुला पाया।

फार्म के एन बीच से गुजरते ड्राइव-वे पर कार चलाता मैं बंगले तक पहुंचा। वहां पार्किंग में एक नई-नकोर सफेद मारुति कार पहले से ही खड़ी थी जिससे लगता था कि मिसेज चावला वहां पहुंच चुकी थी । उसकी बगल में अपनी मखमल पर टाट के पेबन्द जैसी फिएट पार्क करते समय मैंने अपनी कलाई घड़ी में टाइम देखा।
ठीक आठ बजे थे।

मैं कार से बाहर निकला और बंगले की तरफ आकर्षित हुआ। बंगले के बाहर की कोई बत्ती नहीं जल रही थी । भीतर भी केवल एक कमरे में रोशनी का आभास मिल रहा था । उस कमरे की खिड़कियों-दरवाजों पर भारी पर्दे पड़े हुए थे इसलिए उसकी रोशनी बाहर नहीं आ पा रही थी, वह केवल . उनके शीशों को ही थोड़ा-बहुत रोशन कर रही थी। वहां किसी नौकर-चाकर या फार्महैंड की गैरमौजूदगी मुझे बहुत हैरान कर रही थी। कई सीढ़ियां चढ़कर मैं प्लेटनुमा प्लेटफार्म पर पहुंचा। बड़ी मुश्किल से मुझे वहां दीवार पर कॉलबैल का पुशबटन लगा दिखाई दिया। मैंने उसे दबाया।

भीतर कहीं घंटी बजी लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया सामने न आई । थोड़ी देर बाद मैंने फिर घंटी बजाई ।। जवाब फिर नदारद । अब मेरा धीरज छूटने लगा। पता नहीं भीतर कोई था भी या नहीं।


लेकिन बाहर खड़ी मारुति कार को मद्देनजर रखते हुए किसी को तो भीतर होना ही चाहिए था । मैंने तीसरी बार घंटी बजाने के लिए कॉलबैल की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि एकाएक बाहर एक तेज रोशनी जल उठी। जरूर उस रोशनी को ऑन करने का बटन इमारत के भीतर कहीं था । साथ ही शीशे का एक दरवाजा निशब्द खुला और उसकी चौखट पर एक खूबसूरत लेकिन फक, नौजवान लेकिन बदहवास चेहरा प्रकट हुआ। वह एक कीमती साड़ी में लिपटा एक नौजवान स्त्री का था जो इतनी डरी हुई थी कि उसकी आंखें उसकी कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही थीं । अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए उसे चौखट के सहारे की जरूरत दरकार थी लेकिन फिर भी वह घड़ियाल के पेंडुलम की तरह दाएं-बाएं झूल रही थी । उसकी हालत ऐसी थी कि उसी क्षण अगर वह बेहोश होकर गिर पड़ती तो मुझे हैरानी न होती।

"क..क..कौन..कौन हो तुम ?" - वह फटी-फटी-सी आवाज में बोली ।

"यहां क्या हो गया है ?" - मैं बोला।

सद | "अरे !" - वह मुझ पर एकाएक चिल्लाकर पड़ी - "तुम बताओ, तुम कौन हो और क्या चाहते हो ?"

"बंदे को राज कहते हैं और मिसेज चावला से मिलना चाहता हूं।"

"ओह !" - उसने चैन की एक लंबी सांस ली - "शुक्र है, तुम आ गए । जल्दी भीतर आओ ।”

मैंने भीतर कदम रखा। । उसने मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया और उसके आगे से पर्दा खींच दिया।

मैंने अपने-आपको एक विशाल और बड़े ऐश्वर्यशाली ढंग से सजे ड्राइंगरूम में पाया । "मैं मिसेज चावला हूं" - वह बोली - "कमला चावला । दोपहर में तुम्हें मैंने फोन किया था।"

तब मैंने गौर से उसकी सूरत देखी।

वह कोई सत्ताईस-अठाइस साल की, कम-से-कम साढ़े पांच फुट की, निहायत शानदार औरत थी और मेरी पसंद के तमाम कल पुर्जे ऊपर वाले ने बड़ी नफासत से उसमें फिट किए थे।

अपनी पसंद आपका यह खादिम पहले भी आप पर जाहिर कर चुका है। लंबा कद । छरहरा बदन । तनी हुई सुडौल भरपूर छातियां । पतली कमर । भारी नितंब । लंबे, सुडौल, गोरे-चिट्टे हाथ-पांव । खूबसूरत नयन-नक्श । रेशम-से मुलायम बाल, जिस्म पर गिलाफ की तरह चढ़ी हुई शानदार पोशाक ।।
वाह !
मेरी तो फौरन ही लार टपकने लगी। बड़ी कठिनाई से मैंने अपने-आपको संभाला और सवाल किया - "क्या बात है, आप इतनी बौखलाई हुई क्यों हैं?"

"म..मेरे पति" - वह बोली - "वो...वो..."

"कहां हैं वो ?"

"भीतर अपनी स्टडी में । वो...वो..."

"क्या हुआ है उन्हें ?"

"वो...वो वहां..भीतर मरे पड़े हैं।"

"मरे पड़े हैं !" - मैं चौंका - "कैसे मर गए ?"

"लगता है, उन्होंने अपने-आपको ग..गोली मार ली है।"

"आत्महत्या कर ली है उन्होंने ?"

"हां" - वह एक क्षण ठिठकी और फिर उसने एक शब्द और जोड़ा - "शायद ।" उस रहस्योद्घाटन के बाद मैंने पहले से ज्यादा गौर से उसकी सूरत का मुआयना किया। होश तो उसके शर्तिया फाख्ता थे लेकिन आखिर थी तो वह औरत ही और मेरी निगाह में कैसा भी अभिनय, सजीव अभिनय, करने की हर औरत में जन्मजात क्षमता होती थी।
ऊपर से एक शंका भी थी मेरे मन में ।।

अभी थोड़ी देर ही पहले तो मैं चावला को सही सलामत नारायणा छोडकर आया था । इतनी जल्दी वह वहां कैसे पच गया ? पहुंच गया तो यूं आनन-फानन लाश कैसे बन गया ? बन गया तो ऐसा इत्तफाकन हुआ या किसी | योजनाबद्ध तरीके से ? कहीं वह औरत किसी पूर्वनिर्धारित तरीके से मेरा कोई मुर्गा बनाने की फिराक में तो नहीं थी

"स्टडी का रास्ता दिखाये ।" - मैं बोला।

"आओ ।"

पीछे एक दरवाजा था जो एक गलियारे में खुलता था । उस गलियारे के दोनों ओर कई बंद दरवाजे थे। उसने दाई
ओर का पहला दरवाजा खोला।

हम दोनों ने भीतर कदम रखा । भीतर रोशनी थी। मैंने एक सरसरी निगाह कमरे में चारों तरफ दौड़ाई । वह कमरा ऑफिस और लाइब्रेरी के मिले-जुले रूप में बड़ी नफासत से सजा हुआ था। कमरे के सारे फर्श पर मोटा कालीन बिछा हुआ था और खिड़कियों पर भारी पर्दे पड़े हुए थे । एक ओर एक विशाल मेज लगी हुई थी जिसके । पीछे वैसी ही विशाल, नकली चमड़ा मढ़ी कुर्सी मौजूद थी जिस पर कि उस शख्स की लाश पड़ी थी जिसका मैं दिन में चार घंटे तक पीछा करता रहा था। उसकी बांहें कुर्सी के हत्थों पर फैली हुई थीं और पथराई हुई शून्य में कहीं। टिकी हुई थीं । उसकी दोनों आंखों के बीच में भवों के ऊपर माथे में गोली ने एक तीसरी आंख बना दी थी जो कि सामने से तो आंख जितना सुराख ही थी लेकिन पीछे से आधी खोपड़ी उड़ी पड़ी थी । कुर्सी की ऊंची पीठ पर खून के चकतों के बीच में उसका भेजा भी बिखरा पड़ा दिखाई दे रहा था।

"निशाना तो कमाल का है आपका ।" मैं धीरे से बोला ।

"मिस्टर !" - वह सख्ती से बोली - "मजाक मत करो।"
 
मैं खामोश रहा । मैं तनिक और आगे बढ़ा । एक साइड टेबल पर मुझे एक खुले मुंह वाली कट ग्लास की ऐश-रे पड़ी दिखाई दी । ऐश-ट्रे में सिगरेट के दो टुकड़े पड़े दूर से ही दिखाई दे रहे थे। दोनों पर मुझे लिपस्टिक के दाग भी दिखाई दिये थे। मैंने गौर से कमला की सूरत देखी। उसके होठों पर भी मुझे उसी रंग की लिपस्टिक लगी दिखाई दी । मैंने दोनों टुकड़े ऐश-ट्रे में से उठा लिए और उन्हें अपने कोट की बाहरी जेब में डाल लिया।

मेरे उस कृत्य से कमला के चेहरे पर कोई नया भाव न आया ।

नीचे कालीन पर कुर्सी के पहलू में हतप्राण के दायें हाथ के करीब मुझे एक रिवॉल्वर गिरी पड़ी दिखाई दी। मैंने जेब से अपना रुमाल निकालकर रिवॉल्वर पर डाला और फिर उसमें लपेटकर उसे उठाया।

वह एक अड़तीस कैलीबर की रिवॉल्वर थी जिसके भरे हुए चैंबर में से केवल एक गोली चलाई गई थी। उसकी नान में से जले बारूद की गंध अभी भी आ रही थी। मैंने उसका नंबर नोट किया और फिर उसे वापस यथास्थान डाल दिया।
मैं फिर कमला की तरफ घूमा ।

वह परे दरवाजे के पास एक कुर्सी पर बैठ गई थी और अपलक मेरी तरफ देख रही थी।

मैं उसके करीब पहुंचा । मैं उसके करीब कुर्सी घसीटकर बैठ गया। अपनी जेब से मैंने रेड एंड वाइट का पैकेट निका
और उसे एक सिगरेट पेश किया। उसने अनमने मन से एक सिगरेट ले लिया और उसे अपनी उंगलियों में नचाने तो
मैंने एक सिगरेट अपने होठों से लगाया और रेड एंड वाइट के ही सिगरेट लाइटर से पहले उसका और फिर अपना गिरे सुलगाया। उसके कश लगाने के अंदाज पर मैंने खास तौर से गौर किया जो कि आदी सिगरेट पीने वालों जैसा था ।

"क्या व्यावसायिक सेवा दरकार है आपको मेरी ?" - ढेर सारा धुंआ उगलते हुए मैंने सवाल किया ।

"मैं" - वह धीरे से बोली - "अपने पति की निगरानी करवाना चाहती थी।"

"किसलिए ?"

"इनसे तलाक हासिल करने की खातिर इनके खिलाफ कोई सबूत जुटाने के लिए।"

"आई सी ! लेकिन अब तो तलाक की जरूरत रही नहीं । ज्यादा आसान और तेज-रफ्तार तरीके से जो दुक्की पिट गई आपके पति की ।"

उसने आग्नेय नेत्रों से मेरी तरफ देखा और फिर सख्ती से बोली - "साथ ही अब मुझे तुम्हारी सेवाओं की भी जरूरत नहीं रही ।"

"वहम है आपका ।"

| "क्या मतलब ?"

"सच पूछिए तो मेरी सेवाओं की सही जरूरत तो अब से शुरू होती है।"

"क्या कहना चाहते हो ?" - वह तिक्त भाव से बोली । "

यह कि आपके हाथ में जो पत्ते हैं, वो बहुत हल्के हैं और शर्तिया पिटने वाले हैं।"

"हे भगवान ! तुम साफ-साफ हिन्दुस्तानी जुबान में बात नहीं कर सकते ?"

"मैं यह कहना चाहता हूं कि पुलिस आप पर शक कर सकती है।"

"पुलिस !" - वह हड़बड़ाई - "मुझ पर शक कर सकती है?"

"जी हां ।"

"किस बात का ?"

"कत्ल का ।"

"किसके कत्ल का ?"

"आपके पति के कत्ल का ।"

“पागल हुए हो ! इन्होंने तो आत्महत्या की है।"
 
"आपके कह देने भर से इसे आमहत्या का केस थोड़े ही जान लिया जायेगा ! मैडम, हालात की नजाकत को जरा तरीके से समझने की कोशिश कीजिए और महसूस कीजिये कि आप पर अपने पति के कत्ल का इल्जाम लग सकता है महसूस कीजिए कि इस इलजाम से बचने के लिए जो मदद आपको दरकार है, वह इस वक्त आपको एक ही शख्स मुहैया करा सकता है।"

"कौन ?"

“यूजर्स टूली ।" - मैं तनिक सिर नवाकर बोला ।

"मैं नहीं समझती कि अब” -उसने “अब” शब्द पर विशेष जोर दिया - "मुझे तुम्हारी किसी मदद की जरूरत है।”

। "मेरे चन्द सवालों का जवाब देने की इनायत फरमाइये फिर अभी आपकी समझ में देखियेगा कि, कैसा करामाती इजाफा होता है !"
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"क्या पूछना चाहते हो ?"

"इतने बड़े फार्म में कोई नौकर-चाकर क्यों नहीं है ?"

"फार्म आजकल उजड़ा पड़ा है। आजकल यहां कुछ नहीं उगता । कोई फूल-पत्ती तक नहीं । सब कुछ खुदा पड़ा है।
इसीलिए यहां कोई नौकर-चाकर नहीं है वैसे पांच-छ: खेतिहर यहां होते हैं।"

“कोई चौकीदार तो फिर भी होना चाहिए।"

"चौकीदार है लेकिन वह रात को नौ बजे आता है।"

"मेरी निगाह अपने-आप ही कुर्सी के पीछे एक शैल्फ पर रखे एक फूलदान की तरफ उठ गई जिसमें कि उस वक्त गुलाब के फूलों का एक गुलदस्ता लगा दिखाई दे रहा था। मैं उठकर गुलदस्ते के करीब पहुंचा।

फूल एकदम ताजा थे। तभी मेरी निगाह इत्तफाक से ही शैल्फ के नीचे बने दराजों की कतार में से एक, सबसे नीचे के, दराज पर पड़ी जो कि मुकम्मल तौर से बन्द नहीं था और शायद उसी वजह से मेरी तवज्जो उसकी तरफ गई थी। मैंने दराज खोला । भीतर एक फूल-पत्तियों की कढ़ाई वाला और चैनल फाइव से महका हुआ एक जनाना रूमाल पड़ा था। मैंने रूमाल उठाया । उसके एक कोने में धागे से के ओ कढ़ा हुआ था और उस पर एक-दो जगह कुछ धब्बे लगे हुए थे।

मैंने रूमाल को उठाकर धब्बों की जगह से सूंघा । चैनल फाइव की खुश्बू के बावजूद धब्बों से तेल की गन्ध मुझे साफ मिली। तब मुझे गारण्टी हो गई कि कमला चावला नामक उस ताजा-ताजा विधवा हुई औरत को मेरी बड़ी कीमती मदद की जरूरत पड़ने वाली थी। मैं वापिस कमला के करीब लौटा। "यह रिवॉल्वर किसकी है?"

"मेरे पति की ।"

"आप कब से यहां हैं ?"

“यही कोई आठ-दस मिनट से । तुम्हारे आने से थोड़ी ही देर पहले मैं यहां पहुंची थी।"

"तब यहां आसपास आपने किसी कार को या किसी शख्स को देखा था ?"

"नहीं ।"

"कोई कार आपको यहां पहुचते वक्त रास्ते में मिली हो ? बहुत पीछे नहीं, यहीं आसपास ?"

“नहीं मिली।"
 
"आपने फार्म में दाखिल होकर यहां बाहर पार्किंग में अपनी कार खड़ी की और यहां चली आई ?"

"हां ।"

"कॉलबैल बजाई थी आपने ?"

"नहीं ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि यहां भीतर रोशनी थी और जब मैंने बाहर का दरवाजा ट्राई किया था तो उसे खुला पाया था। बंद भी होता तो मेरे पास दरवाजे की चाबी थी, मैं उसे उससे खोल सकती थी।"

"यह पक्की बात है कि भीतर रोशनी थी ?"

"हां ।"

"भीतर दाखिल होने पर आपको यहां के माहौल में कुछ नया, कुछ अजीब, कुछ गैरमामूली लगा हो ?"

"नहीं । सिवाय इसके कि यहां मुकम्मल सन्नाटा था जो कि भीतर किसी के मौजूद होने की हालत में नहीं होना चाहिए।
था।"

"भीतर दाखिल होने पर आपने क्या किया ?"

"मैंने तलाश करना शुरू किया कि भीतर कौन आया हुआ था ! मुझे यहां स्टडी में रोशनी का आभास हुआ तौ मैं यहां आई । आते ही मुझे" - उसने एक बार मेज की तरफ देखकर निगाह झुका ली - यहां यह नजारा देखने को मिला ।"

"यहां आपने किसी चीज को छुआ ?"

"फोन को भी नहीं ?"

"नहीं।"

"आपने किसी को, मसलन पुलिस को फोन करने की कोशिश नहीं की ?"

"नहीं ।"

"क्यों ?"

“ मिस्टर राज, लाश देखकर मुझे जो शॉक लगा था, उसमें मुझे फोन का तो ख्याल ही नहीं आया था।"

"फिर बाकी वक्त आपने क्या किया ?"

"कौन से बाकी वक्त ?"

"बकौल आपके, आप आठ-दस मिनट से यहीं हैं । बंगले में दाखिल होकर स्टडी में पहुंचकर यहां का नजारा देखने तक तो आपको मुश्किल से दो या तीन मिनट लगे होंगे। बाकी का वक्त यहां क्या करती रहीं आप? इतना अरसा यहां खड़ी-खड़ी लाश ही को तो निहारती नहीं रहीं होगी आप !" वह खामोश रही । "आपने मुझसे मिलने के लिये शहर से बाहर यह उजाड़ बियाबान जगह क्यों चुनी ?" |

"क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि किसी को मालूम हो कि अपने पति की निगरानी करवाने के लिए मैं किसी प्राईवेट डिटेक्टिव से संपर्क स्थापित कर रही थी । आजकल यहां कोई होता नहीं इसलिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया था।"

"यानी कि आज यहां आपके पति का आगमन भी अनपेक्षित था ?"

"हां।"

"अगर वे जिन्दा होते तो आप अपने यहां आगमन का उन्हें क्या जवाब देतीं ?"
 
"मुझे उम्मीद नहीं थी कि यहां मेरे पति आये थे। मैंने बत्तियां जली देखी थीं तो यही समझा था कि चौकीदार वक्त से पहले आ गया था और वही भीतर था ।"

"चौकीदार के पास भी यहां की चाबी है ?"

"हां ।"

यानी कि वह बहुत भरोसे का आदमी है ?"

"हां ।"

"आपने मेरी कार के यहां पहुंचने की आवाज तो सुनी होगी ?"

"हां, सुनी थी।"

"कॉलबैल की आवाज भी सुनी होगी आपने ?"

"हां ।"

"फिर भी आप फौरन दरवाजे पर नहीं पहुंची !"

"क्योंकि मैं यह फैसला नहीं कर पा रही थी कि मैं दरवाजा खोलूं या नहीं ।”

"क्यों ? आपकी मेरी यहां आठ बजे की अपोइंटमेंट थी । आपको सूझना चाहिए था कि मैं आया हो सकता था । क्या आप उस शख्स को भी दरवाजा नहीं खोलना चाहती थीं जिसे कि आपने खुद यहां बुलाया था ?"

"मैं भन्नाई हुई थी इसलिए मेरी अक्ल मेरा साथ नहीं दे रही थी।"

"अब आपकी घबराहट और आपकी अक्ल का क्या हाल है?"

"मतलब ?"

"क्या अब आप बिना खाका खींचकर समझाये यह समझ सकती हैं कि आपकी कहानी में छलनी से भी ज्यादा छेद हैं ?"

उसने तुरन्त उत्तर न दिया। उसने बड़ी गंभीरता से सिगरेट का एक गहरा कश लगाया और फिर उसे ऐश-ट्रे में मसल दिया।

मैंने आगे बढ़कर वह टुकड़ा उठा लियो । उस पर लगी लिपस्टिक की रंगत ऐन दो टुकड़ों पर लगे रंग जैसी थी जो कि मेरे कोट की जेब में थे।

वह मेरी हर हरकत को बड़े गौर से नोट कर रही थी। “तुम क्या कहना चाहते हो ?" - वह बड़ी संजीदगी से बोली।

"आपको पुलिस की कार्यप्रणाली, उनके सोचने के तरीके का कोई तजुर्बा है ?"

"नहीं ।”

"मुझे है । मैं आपको बताता हूं कि मौजूदा हालत में पुलिस क्या सोचेगी ।"

"मैं सुन रही हूं।"

"पुलिस यह सोचेगी कि आप अपने पति की दुक्की पीटने पर आमादा थी।"

"क्यों ?"
 
"क्यों इस वक्त महत्वपूर्ण नहीं है। आपका पति दौलतमन्द आदमी था। शायद इस तरह आप उसकी दौलत हथियाना चाहती थीं । शायद आप इस तरह उससे अपनी कोई पोल, मसलन उसके साथ बेवफाई, छुपाना चाहती थीं । शायद आप उसकी बेवफाई की उसे यूं सजा देना चाहती थी । बहरहाल कोई बात थी जिसकी वजह से आपको अपने पति का कत्ल करना जरूरी लगने लगा था । लेकिन साथ ही आपको कोई ऐसा काठ का उल्लू भी दरकार था जो जरूरत पड़ने पर आपकी एलीबाई आपकी गवाही, बन सकता । काठ के उल्लू के इस रोल के लिए आपने मुझे चुना। आपने मेरे साथ यहां मुलाकात का आठ बजे का टाइम फिक्स किया और साथ ही किसी तरह अपने पति को भी यहां आने के लिए मना लिया । आपके पति को मैंने देखा है । वह लगभग आपसे दुगुनी उम्र का है और अगर आपको हूर कहा जाए, जो कि आप हैं, तो उसे लंगूर ही कहना होगा। ऐसे व्यक्ति को, खास तौर से जब कि वह आपका पति भी था, शीशे में उतार लेना आपके लिए क्या मुश्किल होगा ? वह ताजे गुलाब के दो फूलों का गुल्दस्ता भी जरूर अपनी शानदार बीवी के अच्छे मूड में इजाफा करने के लिए वही लाया होगा। आप उसे कार में अपने साथ बिठाकर यहां लाई..."

"मैं लाई ?" - वह हड़बड़ाई।

"जाहिर है । दर्जनों कारों का मालिक आपका पति बस या टैक्सी की सवारी तो करने से रहा । जब कोई और कार यहां नहीं दिखाई दे रही तो जाहिर है कि यहां तक वह आपके साथ ही आया था।"

"आगे बढ़ो ।"

"किसी वजह से वक्त का कोई ऐसा घोटाला हो जाता है कि आप मेरे आगमन के वक्त से थोड़ी ही देर पहले यहां पहुंच पाती हैं। आप इसे यहां स्टडी में लेकर आती हैं। आपकी राय या अपनी मर्जी से वह फूलों को गुलदस्ते में लगाता है और अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है। तभी आप उसे शूट कर देती हैं उसी क्षण आपको मेरी कार के यहां पहुंचने की आवाज आती है। आप घबरा जाती हैं । आप जल्दी से अपने बैग में से अपना रुमाल निकालती हैं और उसकी सहायता से रिवॉल्वर पर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछ देती हैं। फिर आप जल्दी से रुमाल को शेल्फ के निचले दराज में डाल देती हैं और..."

"वहां क्यों ? वापिस अपने बैग में क्यों नहीं ?"

"क्योंकि अभी-अभी अपने पति का कत्ल करके हटी होने की वजह से और ऊपर से एकाएक मेरे को यहां पहुंचते पाकर आप बौखला जाती हैं और बौखलाहट में इंसान से ऐसी नादानी, ऐसी लापरवाही हो सकती है।"

"नॉनसेंस !"

"यू थिंक सो ?"

"यस । लेकिन फिर भी तुम अपनी बात कहो ।”

| "आप रिवॉल्वर पर अपने पति की उंगलियों के निशान बनाती हैं और उसे उसके दायें हाथ के करीब यूं कालीन पर गिरा देती हैं जैसे उसके आत्मघात के बाद रिवॉल्वर उसकी उंगलियों में से फिसलकर वहां गिरी हो । फिर अपने आपको काबू में करने के लिये आप एक सिगरेट सुलगा लेती हैं और इसी वजह से आप मेरे घंटी बजाने पर फौरन दरवाजा नहीं खोलतीं क्योंकि अभी आपने आत्महत्या की स्टेज सेट करनी थी और अपनी हालत पर काबू पाना था। कहिए कैसी है यह कहानी ?"
 
पुलिस ऐसा सोचेगी इस घटना के बारे में ?"

"जी हां । पुलिस ऐसा सोचेगी इसीलिए आपको मेरी मदद की जरूरत है।"

"तुम्हारी मदद मुझे हासिल हो जाने पर पुलिस ऐसा सोचना छोड़ देगी ?"

"नहीं । वह फिर भी ऐसा ही सोचेगी लेकिन मेरी मदद हासिल हो जाने के बाद उनके ऐसा सोचने का आपको कोई नुकसान नहीं होगा।"

"वो कैसे ?"

"क्योंकि तब आपका मददगार यानी कि मैं, हालात का हुलिया बदल देगा। तब राज आपका गवाह बन * जायेगा कि आपने अपने पति की हत्या नहीं की थी। और अगर वाकई आपने अपने पति की हत्या नहीं की, तो ।
कहने की जरूरत नहीं कि आपका यह खादिम आपके पति के हत्यारे को खोज निकालने के भी काम आ सकता है।

"तुम हत्या-हत्या का राग मतवात अलाप रहे हो । आखिर उन्होंने आत्महत्या क्यों नहीं की हो सकती ?"

"क्योंकि आपके पति के माथे में जो तीसरी आंख दिखाई दे रही है उसके इर्द-गिर्द जले बारूद के कण कतई नहीं । दिखाई दे रहे । यह बात साफ साबित करती है किए गोली फासले से चलाई गई थी। इन्होंने खुद रिवॉल्वर को अपने माथे के साथ सटाकर गोली चलाई होती तो गोली के सुराख के इर्द-गिर्द जले बारूद के कण चिपके शर्तिया दिखाई दे रहे होते । और फिर यूं गोली चलाने के लिए आपके पति की बांह दस-बारह फुट लम्बी होनी चाहिए थी जो कि नहीं है. ।। वैसे भी आत्महत्या करने वाला शख्स गोली का निशाना अपनी कनपटी को, ज्यादा सुविधाजनक जगह को, बनाता है न कि माथे को ।"

अब वह साफ-साफ मुझसे प्रभावित दिखाई दे रही थी।

"तुम" - कुछ क्षण कुर्सी पर बेचैनी से पहलू बदलते रहने के बाद वह इस बार एकदम बदले स्वर में बोली - "वाकई मुझे इस झमेले से निजात दिला सकते हो ?"

"और मेरा काम क्या है ?" - मैं बोला ।

"कैसे करोगे यह काम ?"

"आपके हाथ के कुछ हल्के पत्ते गायब करके, कुछ बदल के और कुछ के बदले में तुरुप के पत्ते पेश करके ।"

"बदले में मुझसे क्या उम्मीद करते हो ?"

"वही, जो कोई नौजवान मर्द किसी खूबसूरत औरत से कर सकता है।"

"बस !"

"नहीं ।" - मैंने तुरन्त संशोधन किया - "जो कोई मेहरबान मर्द किसी दौलतमन्द विधवा से कर सकता है।"

"बड़े चालाक हो ।”

"शायद ।"

"और कमीने भी ।"

"शुक्रिया !"

"किस बात का ?"

"मुझे एकदम सही पहचानने का ।"

"तुम्हारी सही पहचान तो मैंने कुछ और ही की है जिसे कि मौजूदा नाजुक हालात में मैं अभी जुबान पर नहीं लाना चाहती ।"

"आई डोंट माइंड । मैं इन्तजार कर सकता हूं। मुझे कोई जल्दी नहीं ।”
 
"अब बोलो, क्या कीमत चाहते हो अपनी मदद की ?"

"कारआमद मदद की। मदद कारआमद साबित न हो तो कोई कीमत नहीं ।" =

"कीमत बोलो।"

"दो लाख । बीस हजार डाउन । बाकी बाद में।"

उसने उत्तर न दिया। वह कुर्सी से उठ खड़ी हुई और दरवाजे के पास दायें-बायें टहलने लगी।
कुछ क्षण बाद वह मेरे सामने ठिठकी।

"इस बात की क्या गारण्टी है" - वह बोली - कि तुम मुझे धोखा नहीं दोगे ? मुझे कैसे विश्वास हो कि तुम मुझे ब्लैकमेल के लिए कल्टीवेट नहीं कर रहे हो ?"

"कोई गारंटी नहीं । आपको ऐसा कोई विश्वास दिलाने का इस वक्त मेरे पास कोई जरिया नहीं।"

"तो ?"

"तो क्या ? मैं अपनी खिदमात आप पर थोप नहीं रहा हूं । उनको कबूल करना या न करना आपकी मर्जी पर मुनहसर है।"

"फिर भी मुझे कोई तसल्ली तो होनी चाहिए।"

"ऐसी कोई तसल्ली आपको देने की स्थिति में मैं नहीं हूं।"

"लेकिन..."

"यह न भूलिए कि आपको बचाने के लिए मुझे खुद अपने-आपको फंसाना होगा।"

"तुम कैसे फंस सकते हो ?"

"हत्या के केस में हत्यारे का मददगार उसके बराबर का गुनहगार माना जाता है। आपको हत्यारा साबित करने वाले कई सबूत मुझे यहां से गायब करने पड़ेंगे या नष्ट करने पड़ेंगे। ऐसा मैं आप पर यह विश्वास करके करूगा कि हत्यारी आप नहीं हैं । अगर मैं आप पर विश्वास कर सकता हूं तो आप भी मेरे पर विश्वास कर सकती हैं।"

"तुम कौन-से सबूतों को नष्ट या गायब करने की बात कर रहे हो ?"

"मुझे आप द्वारा पिये गये सिगरेट को यहां से गायब करना होगा, ताजे गुलाब के फूलों के गुलदस्ते को नष्ट करना होगा, आपके रूमाल को भी कहीं ठिकाने लगाना होगा ।"

"मैंने तुम्हारे आगमन से पहले यहां कोई सिगरेट नहीं पिया था, फूलों के गुलदस्ते के बारे में मैं कतई नहीं जानती और मैं खुद हैरान हूं कि मेरा कोई रूमाल शैल्फ उस निचले दराज में कैसे पहुंचा !"

"यानी कि यह आपको फंसाने के लिए आपके खिलाफ कोई साजिश है ?"

"लगता तो यही है।"

"तब तो मेरी मदद की आपको और भी ज्यादा जरूरत है।"

वह खामोश रही ।

"बहरहाल दोनों ही हालात में एक बात निहायत जरूरी है।"

"क्या ?"

"कि ये सबूत पुलिस के हाथ न लगें ।" २ "तुम ठीक कह रहे हो ।”

"इसके बाद आपको एलीबाई देने के लिए मुझे यह भी कहना होगा कि हम दोनों एक ही वक्त यहां पहुंचे थे।"

"तुम एक प्राइवेट डिटेक्टिव हो और यह बात पुलिस से छुपाकर नहीं रखी जा सकती । पुलिस यह भी तो पूछेगी कि मैंने तुम्हें यहां क्यों बुलाया था !"

"उसकी आप असली वजह बयान कर सकती है।"

"यह कि मुझे अपने पति के चरित्र पर शक था इसलिए मैं उसकी निगरानी करवाना चाहती थी ?"

“हां ।"

"तुम्हारी एलीबाई की वजह से और तुम्हारे मेरे खिलाफ यहां सबूतों को गायब या नष्ट कर देने के बाद पुलिस मेरा, पीछा छोड़ देगी ?"
 
"आसानी से तो नहीं छोड़ देगी लेकिन आपके पीछे पड़े रहने से जब उन्हें कुछ हासिल होता नहीं दिखाई देगा तो मजबूरन तो उन्हें आपका पीछा छोड़ना ही पड़ेगा।" वह फिर खामोश हो गई। चहलकदमी का जो सिलसिला बीच में बन्द हो गया था, वह फिर शुरू हो गया। कुछ क्षण बाद वह बड़े निर्णयात्मक भाव से फिर कुर्सी पर बैठ गई।

“ठीक है" - वह बोली - "मुझे सौदा मंजूर है।"

"जानकर खुशी हुई।"

"अब बोलो, अब क्या चाहते हो ?"

"डाउन पेमण्ट ।”

"वो इस वक्त कैसे मुमकिन है ? बीस हजार की रकम क्या कोई साथ लिए फिरता है !"

"हर कोई नहीं फिरता । एक दौलतमन्द आदमी की बीवी फिरती हो सकती है।"

"मेरे पास बीस हजार रुपए नहीं हैं इस वक्त ।"

"हजार-पांच सौ कम भी चलेंगे।" - मैं आशापूर्ण स्वर में बोला।

"हजार-पांच सौ तो कुल हैं मेरे पास ।"

"ओके । नेवर माइण्ड । आई विल कलैक्ट लेटर ।"

वह मुस्कराई।

मैं भी मुस्कराया। उस वक्त यह कह पाना मुहाल था कि कौन किसे फंसा रहा था। फिर मैं फोन के करीब पहुंचा।
मैंने 100 डायल किया। २ तुरन्त उत्तर मिला। - "मेरा नाम राज है । मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं। मैं ग्यारह छतरपुर से अमर चावला के फार्म हाउस से बोल रहा हूं और यह रिपोर्ट करने के लिए फोन कर रहा हूं कि अभी-अभी चावला साहब ने अपने आपको शूट करके आत्महत्या कर ली है।"

"कौन चावला साहब ?" - पूछा गया - "चावला मोटर्स वाले ?"

"वही ।"

"अपना नाम फिर से बोलो।" "राज ।"

“मौकायेवारदात पर और कौन है तुम्हारे साथ ?"

"चावला साहब की पत्नी कमला चावला ।”

“ठीक है। वहीं इन्तजार करो । पुलिस पहुंचती है।" मैंने फोन रख दिया । मैंने रुमाल वापिस कमला को सौंप दिया ।

"इसे अपने बैग में रख लो।" मैं बोला।

"मैं इसे धो लें ?"

"जरूरत नहीं । आपके बैग की तलाशी कोई नहीं लेने वाला । कोई लेगा तो ताजा धुला रूमाल ज्यादा शक पैदा करेगा।"

"ओह !" | फिर मैंने फूलदान से फूलों का गुलदस्ता निकाला। कमला से रास्ता पूछकर मैं टॉयलेट में पहुंचा । सिगरेट के टुकड़े। और गुलदस्ते को पुर्जा-पुर्जा करके मैं उन्हें टॉयलेट में डालने ही लगा था कि मुझे उसमें तैरता एक कागज का टुकड़ा दिखाई दिया।
 
मैंने वह टुकड़ा पानी से निकाल लिया। मैंने उसे खोलकर सीधा किया तो पाया कि वह एक पेपर नैपकिन था जिस पर कि उसी रंग की लिपिस्टक के निशान थे जो कि कमला लगाये हुए थी । जरूर उसने वो नैपकिन पानी में बहाने की कोशिश की थी लेकिन वह वापिस तैर आया था।

मैंने नैपकिन समेत सब कुछ टॉयलेट में डाला और फ्लश चलाया । जब तक सब कुछ बह न गया और मुझे कमोड में साफ पानी न दिखाई देने लगा, मैं वहां से न हिला । वापिस लौटने से पहले मैं इमारत का जायका लेने की नीयत से एक बार सारी इमारत में फिर गया।

हासिल कुछ न हुआ ।

मैं वापिस लौटा।

कमला को मैंने किचन में पाया ।।

वहां मैंने कमला को वहां पड़े एक रेफ्रिजरेटर में से बर्फ की ट्रे निकालते पाया।

"बहुत टैंशन हो गई है.." - वह बोली - "सोचा एक-एक डिंक हो जाये ।"

वाह ! - मैं मन-ही-मन बोला - क्या औरत थी ! पति की लाश अभी ठण्डी नहीं पड़ी थी और वह अपनी टैंशन कम करने के लिए डिंक बनाने की तैयारी कर रही थी। कितना बड़ा उल्लू का पट्ठा साबित होता था मर्द औरत की - खूबसूरत औरत, खूबसूरत नौजवान, दिलफरेब औरत की - हस्ती के सामने !

"बहुत ठीक सोचा आपने" - मैं बोला - "आप ताजी-ताजी विधवा हुई हैं। इतने चियरफुल माहौल में चियर्स तो हमें बोलना ही चाहिए।" मेरी बात में निहित व्यंग्य की तरफ उसने ध्यान न दिया। उसने ऊपर बने शैल्फों में से एक को खींचकर उसमें से । ब्लैक डॉग की एक बोतल निकाली और उसके दो बड़े-बड़े जाम तैयार किए । एक गिलास उसने मुझे थमा दिया। उस प्रक्रिया में यह लगभग मेरे साथ आ सटी । उसने मेरे जाम से जाम टकराया, अपने दिवंगत पति पर यह अहसान किया कि चियर्स नहीं बोला और विस्की की चुस्कियां लेने लगी।

तभी दूर कहीं फ्लाइंग स्क्वाड के सायरन की आवाज गूंजी । मैंने विस्की का एक घूट भरा और एक बार फिर सोचा कि क्या वह औरत हत्यारी हो सकती थी ? किसी हत्यारे का साथ देने से मुझे कोई गुरेज हो, ऐसी बात नहीं थी।

लेकिन उस सूरत में यह रकम कम साबित हो सकती थी, जिसकी कि अपनी सेवाओं के बदले में मैंने उससे मांग की थी।
हालात जरूर किसी और बात की चुगली कर रहे थे लेकिन मेरी अक्ल यही कह रही थी कि उसने हत्या नहीं की थी। अगर वह हत्या के इरादे से वहां आई होती तो अपनी करतूत का खामखाह एक गवाह पैदा करने के लिए उसने मुझे - न बुलाया होता । और अगर चावला इत्तफाक से वहां पहुंच गया था या वह कमला के वहां पहुंचने से पहले ही वहां मौजूद था और वहां उनमें एकाएक ऐसी कोई तकरार छिड़ गई थी जिससे भड़ककर कमला ने अपने पति को गोली मार दी थी तो तब वह इतनी जल्दी इतनी शान्त नहीं लग सकती थी जितनी कि वह उस वक्त लग रही थी । ऊपर से वह इतनी अहमक भी नहीं लगती थी कि वह वहां आत्महत्या की स्टेज सेट करती और फिर अपने खिलाफ इतने सारे- सूत्र वहां बने रहने देती । जरूर किसी ने उसे फंसाने की कोशिश की थी।

पुलिस पहुंचने ही वाली है।" - मैं बोला - "इसलिए हमें पहले फैसला कर लेना चाहिए कि हमने पुलिस को क्या कहना है।"

“क्या कहना है?" - वह इठलाकर बोली ।।

उस घड़ी उसका इठलाना मुझे बुरा लगा। "तकरीबन तो हमने वही कहना है जो हकीकत है। जो झूठ कहना है वह यह है कि हम यहां एक ही वक्त में पहुंचे थे। और इकट्टे यहां भीतर आये थे और हम दोनों ने ही लाश बरामद की थी । ओके ?"

उसने सहमति में सिर हिलाया और फिर बोली - "वैसे तुम तो मानते हो न कि कत्ल मैंने नहीं किया ?"

"मानता हूं।" "फिर पुलिस क्यों नहीं मानेगी ?" "क्योंकि वो पुलिस है।"

"क्या कतलब ?"

"मेम साहब ! मेरे और पुलिस के मिजाज में जो एक भारी फर्क है, वो यह है कि उनका काम लोगों को सजा दिलाना होता है जबकि मेरा काम उन्हें सजा से बचाना होता है। उन्होंने अपनी तनखाह को जस्टीफाई करने के लिए बेगुनाह को भी मुजरिम बनाना होता है, मुझे अपनी फीस को जस्टीफाई करने के लिए मुजरिम को भी बेगुनाह साबित करके दिखाना होता है । इसीलिए मेरी फीस उनकी तनखाह से कहीं ज्यादा है।"

"अगर मैं बेगुनाह साबित न हुई तो जानते हो कि तुम एक हत्यारे के सहयोगी माने जाओगे और फिर तुम भी नप जाओगे।"

"जानता हूं । मेरे से बेहतर इस बात को और कौन जान सकता है ?" तभी पुलिस के कदम वहां पड़े।
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