Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास ) - Page 3 - SexBaba
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Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

पुलिस के साथ उनका जो अधिकारी वहां पहुंचा था, उस पर निगाह पड़ते ही मेरा चेहरा उतर गया। शहर से इतना परे भी मेरा मत्था सब-इंस्पेक्टर यादव से ही लगेगा, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी । सब-इंस्पेक्टर देवेन्द्र यादव एक लगभचा पैंतीस वर्ष का छ: फुट से भी ऊपर कद का, हट्टा कट्टा, कड़ियल जवान था और फलाइंग स्कवायड के उस दस्ते से सम्बद्ध था जो केवल कत्ल के केसों की तफ्तीश के लिए भेजा जाता था। इस लिहाज से उसके वहां पहुंचने पर हैरानी या मायूसी जाहिर करना मेरी हिमाकत थी । वैसे मेरी उससे सदा अदावत और सिर-फुड़ोवल ही रहती थी लेकिन हाल ही में मेरी पत्नी की हत्या के केस की तफ्तीश के दौरान मेरी उससे कुछ-कुछ सुलह हुई थी। मैं और कमला उसे इमारत के बाहर मुख्यद्वार के सामने मिले थे ।

मुझे देखकर उसके चेहरे पर कोई भाव न आये । ऐसा होना भी इस बात का सबूत था कि उसे मेरी वहां मौजूदगी पसन्द नहीं आई थी।

"कहां ?" - वह भावहीन स्वर में बोला। "स्टडी में ।" - मैं बोला।

"रास्ता दिखाओ ।"

वह, मैं, कमला और उसके साथ आये चार पुलिसिये स्टडी में पहुंचे, जहां कि वे लोग पहुंचते ही लाश के हवाले हो गए

फिंगरप्रिंट्स उठाये जाने लगे । तस्वीरें खींची जाने लगीं। सूत्रों की तलाश होने लगी । यादव ने एक चक्कर न • | सिर्फ सारी इमारत का बल्कि सारे फार्म का भी लगाया।

उसके आदेश पर उस दौरान हम बाहर ड्राइंगरूम में जा बैठे। तफ्तीश के दौरान पुलिस का डॉक्टर भी वहां पहुंचा । उसने इस बात की तसदीक की कि मौत साढ़े सात और आठ बजे के बीच हुई थी, उसे एक ही गोली लगी थी जिससे कि उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी । एक अन्य पुलिस टेक्नीशियन ने बताया कि गोली उसी रिवॉल्वर से चली थी जो कि उसकी कुर्सी के करीब कालीन पर पड़ी पाई गई थी।

और गोली कोई आठ या दस फुट के फासले से चलाई गई थी। उस आखिरी बात को सुनकर यादव के चेहरे पर बड़े संतोष के भाव प्रकट हुए । फिर अंत में यादव ने हमारी सुध ली। उसके वहां पहुंचते ही मैंने उसे बताया था कि कमला कौन थी लेकिन फिर भी उसने पृछा - "आप हत्प्राण की बीवी हैं।

कमला ने सहमति में सिर हिलाया । "मैं आपका बयान लेना चाहता हूं।"

"लीजिए।"

"तुम" - यादव मेरी तरफ घूमा - "जरा फार्म की ठंडी हवा खा आओ और सिगरेट-विगरेट पी आओ।"

"लेकिन...." - मैंने कहना चाहा।

"क्या लेकिन ?" - वह मुझे घूरता हुआ बोला ।

"कुछ नहीं ।" - मैं बोला और उठ खड़ा हुआ।

"और हवा फार्म की ही खाना । टहलते हुए कुतुबमीनार न पहुंच जाना ।"

"नहीं पहुंचूंगा।"

मैंने इमारत से बाहर कदम रखा। फार्म में उतरने के स्थान पर मैं प्लेटफार्म पर ही टहलने लगा। मैंने अपने ताबूत की एक कील सुलगा ली और सोचने लगा।


आखिर अमर चावला वहां तक पहुंचा तो कैसे पहुंचा ? वह मर्सिडीज कार तो वहां कहीं दिखाई नहीं दे रही थी जिस पर कि दिन में मैंने उसे जगह-ब-जगह जाते देखा था।
और जिसे उसका वर्दीधारी शोफर चला रहा था। क्या यह हो सकता था कि वह वहां पहुंचा तो अपने शोफर और। = दादाओं के साथ ही हो लेकिन वहां पहुंचने के बाद उसने गाड़ी वापिस भिजवा दी हो ? वापिसी के लिए अपनी बीवी की कार तो उपलब्ध थी ही ।

या शायद वह यहां आया ही अपनी बीवी के साथ हो ? वह बात मुझे न जंची । बीवी को मालूम था कि मैं वहां पहुंचने वाला था । वह अपने पति को वहां साथ क्यों लाती ? इसलिए लाती क्योंकि उसका पहले से ही उसे वहां लाकर उसका कत्ल करने का और मुझे अपनी एलीबाई बनाने का इरादा था।

वह ख्याल मुझे बेचैन करने लगा इसलिए मैंने नई संभावना का विचार किया।
फर्ज करो, हत्यारा कोई और था और चावला हत्यारे के साथ उसकी कार पर वहां पहुंचा जो कि कमला के वहां पहुंचने से पहले चावला का कत्ल करके वहां से जा चुका था।
कौन ?
कोई भी ।
मसलन जूही चावला ।
 
चावला को नहीं मालूम था कि उसकी बीवी उस रात फार्म पर जाने वाली थी इसलिए वह जूही चावला के साथ तफरीह के लिए वहां आया हो सकता था। उन दोनों में कोई तकरार छिड़ी हो सकती थी जिसका अंजाम चावला के कत्ल तक पहुंचा हो सकता था। लेकिन अभी तो इसी बात का कोई सबूत सामने नहीं आया था कि चावला के जूही चावला के साथ कोई ऐसे वैसे, तफरीह मार्का, ताल्लुकात थे। घूम फिरकर बात फिर कमला पर ही पहुंच जाती थी और मैं बौखलाने लगता था। पैसे का लालच कहीं इस बार मेरी दुक्की तो नहीं पिटवाने वाला था। तभी एक पुलिसिये ने टैरेस पर कदम रखा। "आपको साहब बुला रहे हैं ।" - वह बोला। मैं उसके साथ फिर इमारत में दाखिल हुआ। कमला ड्राइंगरूम में अकेली बैठी थी लेकिन पुलिसिये ने मुझे वहां न रुकने दिया। वह मुझे सीधा स्टडी में ले गया जहां दरवाजे के पास एक कुर्सी पर यादव बैठा था। "बैठो।" - वह बगल में पड़ी एक अन्य कुर्सी की ओर इशारा करता हुआ बोला । बैठने से पहले मैंने मेज की दिशा में निगाह उठाई।

गनीमत थी कि किसी ने लाश को चादर से ढक दिया हुआ था।
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"अब बोलो, क्या हुआ था ?" - यादव बोला - "कैसे पहुंच गए तुम यहां ? मिसेज चावला से कैसे वास्ता हुआ था ? शुरू से शुरू करो।"

"आज फोन किया था मुझे मिसेज चावला ने ।" - मैं बोला - "उसे मेरी व्यावसायिक सेवाओं की जरूरत थी।"

"क्या कराना चाहती थी वह तुमसे ?" । “यही बताने के लिए उसने मेरे साथ यहां की आठ बजे की अपोइंटमेंट फिक्स की थी।"

"कुछ हिंट तो दिया होगा उसने काम का ?" –

"हां, इतना हिंट दिया था कि काम का ताल्लुक उसकी शादीशुदा जिन्दगी से था।"

फिर ?"

"फिर क्या निर्धारित समय पर मैं यहां पहुंचा तो यहां कुछ और ही गुल खिला हुआ था ।"

“मिसेज चावला से कहां मुलाकात हुई तुम्हारी ?"

"बाहर ।"

"वो पहले से यहां थी ?"

"हां, लेकिन अभी पहुंची ही थी । सच पूछो तो हम दोनों आगे पीछे ही यहां तक पहुंचे थे। वह कार को पार्क करके उसमें से बाहर कदम रख रही थी कि मेरी कार फार्म में दाखिल हुई थी।"

"तुमने उसकी कार को फार्म में दाखिल होते हुए देखा था ?"

"नहीं ।"

"बाहर सड़क पर अपनी कार के आगे-आगे देखा हो ?"

फिर तुम कैसे कह सकते हो कि वह तुम्हारे आगे-आगे वहां पहुंची थी ?"

"क्योंकि मैंने उसे अपनी कार से बाहर निकलते देखा था।"

"शायद वो अपने पति का काम तमाम करके यहां से कूच कर जाने के लिये कार में दाखिल हो रही हो और तुम्हारी कार को आता पाकर बाहर निकलने लगी हो ?"

मैं खामोश रहा । मैंने तनिक बेचैनी से पहलू बदला।

"सिर्फ उसके कार के करीब पाये जाने से" - यादव के स्वर में जिद का पुट था - "यह कैसे साबित होता है कि वह तभी वहां पहुंची थी ? तुमने सच ही उसे कार में दाखिल होते नहीं, कार से निकलते देखा था तो भी वह कैसे साबित होता है कि वह कार तक उसका दूसरा फेरा नहीं था, यानी कि वह पहले ही इमारत के भीतर नहीं हो आई हुई थी ?"

मुझे जवाब न सूझा ।

"खैर, छोड़ो । बहरहाल तुम यहां पहुंचे । तुमने मिसेज चावला को अपनी कार से निकलते देखा, तुमने करीब लाकर अपनी कार खड़ी की और फिर मिसेज चावला से मुखातिब हुए । ठीक ?"

"ठीक ।"

उस वक्त मूड कैसा था मिसेज चावला का ? क्या वह घबराई, बौखलाई हुई थी, आन्दोलित थी, किसी बात से त्रस्त
लग रही थी, किसी इमोशनल स्ट्रेन में थी ?"

"ऐसी कोई बात नहीं थी। मुझे तो वह बिल्कुल ठीक-ठाक और स्वाभाविक मूड में लगी थी।"

"फिर ?"

"फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया । एकाध और औपचारिक बात की और फिर हम इमारत तक पहुंचने वाली
सीढ़ियों की तरफ बढ़ गये । इमारत में रोशनी थी जो कि मिसेज चावला को हैरानी की बात लगी थी। हम इमारत में दाखिल हुए थे। हम यहां, स्टडी में पहुंचे थे तो यहां अमर चावला की लाश पड़ी थी ।
 
"वैसे ही जैसे इस वक्त भी पड़ी है ?"

"हां ।"

"इमारत का प्रवेश द्वार खुला था या उसे मिसेज चावला ने चाबी लगाकर खोला था ?"

"इस बात की तरफ तो मैंने ध्यान नहीं दिया था।"

"क्यों ?"

"सच बताऊं ?"

"सच ही बताओगे तो बनेगी बात ।" "सच यह है, यादव साहब, कि उस वक्त मेरा ध्यान मिसेज चावला की शानदार फिगर की तरफ था, उसके सांचे में ढले जिस्म की तरफ था, उसकी मदमाती चाल की तरफ था।"

"भीतर बत्ती जली होने जैसी अस्वाभाविकता को नोट कर चुकने के बावजूद तुमने यह देखने की कोशिश नहीं की कि दरवाजा खुला था या उसमें ताला लगा हुआ था ?"

"नहीं की। सॉरी !"

"जब तुम लोगों ने स्टडी में लाश बरामद की थी, उस वक्त कितने बजे थे ?"

"आठ ।"

“पूरे ?"

एक-दो मिनट ऊपर होंगे ।"

"लेकिन पुलिस को फोन तो तुमने बड़ी देर में किया था । लाश बरामद होते ही तुमने फौरन फोन क्यों नहीं किया था ?"

"फौरन नम्बर नहीं मिला था। टेलीफोन में कोई नुक्स था । कई बार डायल करने के बाद मुझे पुलिस का नम्बर मिला
था।"

"मुझे तो फोन में कोई नुक्स नहीं दिखाई दिया ।"

"अब नहीं होगा। तब था।"

"यह विस्की जो तुम्हारी सांसों में बसी है यह तुम घर से पीकर आये थे या यहां आकर पी थी ? मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहता । सवाल का जवाब इस बात को निगाह में रखकर देना कि किचन में दो गिलास और उनके करीब एक आइस-ट्रे पड़ी मैंने देखी है और" - उसने मुझे घूरा- "गिलासों पर से उंगलियों के निशान उठाये जा सकते हैं।"

"विस्की का एक पैग मैंने यहां पिया था ।"

"जो कि मिसेज चावला ने पेश किया था ?"

"हां ।”

"जो कि उसने खुद भी पिया था ?"

"हां ।" - मैं विचलित स्वर में बोला।

"ऐसी औरत के बारे में तुम क्या राय कायम करोगे जो कि अपने ताजे-ताजे मरे पति की लाश के सिरहाने खड़ी २ होकर विस्की पीती हो और किसी दूसरे को भी पिलाती हो ?"

"विस्की हमेशा नशे के लिए ही नहीं पी जाती इंस्पेक्टर साहब !"

“सब-इंस्पेक्टर । मैं इंस्पेक्टर नहीं हूं।"

"विस्की ट्रांक्विलाइजर का भी काम करती है । घबराये, बौखलाये आदमी को तसकीन देने का भी काम करती है।"

"आई सी ! तो मिसेज चावला विस्की के जाम में तसकीन तलाश कर रही थी ? खाविन्द की मौत के सदमे के शिकार अपने दिल को राहत पहुंचा रही थी ?"

"हां ।"

"साथ में तुम भी ?"

"मैं किसी सदमे का शिकार नहीं था। मैं, सिर्फ मिसेज चावला का साथ दे रहा था ।"

"बाकायदा ? चियर्स बोलकर ?"

"अब यादव साहब आप तो...."

"नेवर माइण्ड । तो फिर तुम्हारी मिसेज चावला से तफसील में कोई बात हुई थी कि उसे तुम्हारी क्यों खिदमत दरकार थी ?"

"तफसील से नहीं हुई । अलबत्ता इतना उसने जरूर बताया कि उसे अपने पति पर शक था कि उसके किसी गैर औरत से ताल्लुकात थे इसलिए हकीकत जानने के लिए वह अपने पति की निगरानी करवाना चाहती थी। अब जबकि पति ही नहीं रहा था इसलिये इस काम के लिये मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं रही थी।"

"यानी कि तुम्हारी छुट्टी ?"

"नहीं । छुट्टी नहीं । छुट्टी हो गई होती तो मैं यहां से चला न गया होता !"

"तो ?"

"वो अभी भी मेरी क्लायंट है।"

"अब किसलिए ?"

"इसलिये कि पुलिस वाले उसके पति की हत्या के लिये उसे जिम्मेदार न ठहराने पाएं?"

"यह हत्या का केस है ?"

"हां ।"

"तुम जानते हो इस बात को ?"

"हां । यह तो अन्धे को दिखाई दे रहा है कि.."

"फिर भी तुमने पुलिस को खबर देते वक्त टेलीफोन पर कहा था कि चावला साहब ने अपने-आपको शूट करके आत्महत्या कर ली थी ?"

"तब कहा था लेकिन बाद में मेरे ज्ञानचक्षु खुल गये थे।"

"कैसे ?"

हैं "गोली से हत्प्राण के माथे में बने सुराख के गिर्द जले बारूद के कण मुझे नहीं दिखाई दिये थे, जिससे साफ जाहिर
होता था कि गोली फासले से चलाई गई थी।"

"लेकिन मर्डर वैपन पर हत्प्राण की उंगलियों के निशान पाये गये हैं और यह बात इसे आत्महत्या का केस साबित करती है।"

"तुम इसे आत्महत्या का केस समझ रहे हो ?"

"समझ लें ?" - वह ऐसे स्वर में बोला जैसे मेरे साथ बिल्ली-चूहे का खेल खेल रहा हो । "मुझसे पूछ रहे हो ?"

"हां ।"

समझ लो ।"

यूं ही ? फोकट में ?

" मैंने हड़बड़ाकर यादव का मुंह देखा। "रोकड़े का तुमसे क्या वादा किया है विधवा ने ?"

“तुम हिस्सा चाहते उसमें ?"

"हर्ज क्या है ?"

"हर्ज तो कोई नहीं लेकिन वह हिस्सा बहुत कम होगा। तुम इस बाबत सीधे मिसेज चावला से बात करो।"

"तुम करा दो ।"

"तुम मुझे घिस रहे हो ।”

वह खामोश रहा । उसके चेहरे पर बड़ी अजीब मुस्कराहट थी । उसकी आंखों में बड़ी अजीब चमक थी। यादव कोई दूध का धुला पुलिसिया नहीं था । एक केस के सिलसिले में उसने नगर के करोड़पति ज्वैलर, अब-दिवंगत, दामोदर गुप्ता से मेरे सामने रिश्वत ली थी जिसमें से पांच हजार रुपये उसे उसकी पोल खोल देने की धमकी देकर मैंने भी झपट लिये थे लेकिन इस बार मुझे विश्वास न हुआ कि वह रिश्वत की तरफ इशारा कर रहा था । ऐसी बात होती तो उसने मुझे हर हाल में पहले ही वहां से चलता कर दिया होता । वह सिर्फ मुझे खिजा रहा था, मुझे घिस रहा था मेरे साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहा था। "यह एक आजाद मुल्क है।" –
 
एकाएक यादव बदले स्वर में बोला - "यहां के हर शहरी को हर वो काम करने की मुकम्मल आजादी है जो कि गैरकानूनी न हो । मिसेज चावला बाखुशी अपनी मदद के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवायें हासिल करे । तुम बाखुशी उसके मददगार और मुहाफिज बनो लेकिन एक बात याद रहे । अगर मुझे यह मालूम हुआ कि तुमने मुझसे कोई बात छुपाई है या यहां से कोई सूत्र, कोई सबूत गायब किया है या ऐसी कोई । हेरा-फेरी की है जो कि तुम अपने पैसे वाले क्लायंटों से पैसा ऐंठने के लिए कर सकते हो, करते हो, तो इस बार तुम्हें जेल का दरवाजा दिखाने की गारंटी मैं करता हूं।"

"मैंने कुछ नहीं किया है।"

"मेरी बात समझ में आई तुम्हारी ?"

"हां । आई ।"

"उस औरत को मैं शक की बिना पर गिरफ्तार कर सकता हूं लेकिन नहीं कर रहा। फिलहाल नहीं कर रहा । मगर उसे समझा देना कि उसकी भलाई इसी में है कि वह आने वाले दिनों में कहीं गायब हो जाने की कोशिश न करे ।"

"बेहतर ।"

"और तुम भी ।"

"मैं किसलिए ? क्या मैं भी मर्डर सस्पेक्ट हूं?"

"तुम मैटीरियल विटनेस हो।" |

मैंने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया।

"अब फूटो ।"

"मैं फूटा ।" मिसेज चावला मुझे एक बेडरूम में एक सोफे पर बैठी दिखाई दी। उसके साथ लगभग उससे जुड़ा हुआ एक सूट-बूटधारी व्यक्ति बैठा हुआ था जो उसके चेहरे के इतने करीब मुंह ले जाकर उससे बात कर रहा था कि उसके कान में फेंक मारता मालूम हो रहा था। मेरे आगमन पर दोनों की जुगलबन्दी भंग हुई। मिसेज चावला ने मेरा उससे परिचय कराया । मालूम हुआ कि उस शख्स का नाम बलराज सोनी था था और वह वकील था। वकील ने उठकर बड़ी फू-फां के साथ मुझसे हाथ मिलाया ।

"आप यहां कैसे पहुंच गये ?" - मैं पूछे बिना न रह सका।

"सोनी साहब का यहां फोन आया था" - जवाब मिसेज चावला ने दिया - "चावला साहब से बात करने के लिये । फोन मैंने सुना तो मैंने इन्हें बताया कि यहां क्या हो गया था। ये दौड़े चले आये यहां ।"

"तांगा कर लेते तो ज्यादा अच्छा रहता।" - मैं बोला।

“जी !" - बलराज सोनी सकपकाया ।

"कुछ नहीं ।" - मैं जल्दी से बोला - "तो सोनी साहब, आपने चावला साहब के लिए यहां फोन किया था ?"

"हां ।"

"आपको मालूम था वे यहां आने वाले थे ?"

"नहीं मालूम था लेकिन पहले मैंने मद्रास होटल फोन किया था, चावला साहब वहां से जा चुके थे। फिर मैंने गोल्फ | लिंक उनकी कोठी पर फोन किया था। वे वहां पहुंचे नहीं थे। तब मुझे यहां फोन करने का ख्याल आया था। यहां । फोन कमला ने उठाया । असली बात सुनकर मैं सन्नाटे में आ गया । मैं दौड़ा यहां चला आया।"

"बहुत जल्दी पहुंचे आप यहां ।”

"मैं यहां से ज्यादा दूर जो नहीं था।"

"कहां से तशरीफ लाये आप यहां ?"

"हौजखास से।"

"हौजखास रहते हैं आप ?"

"नहीं । रहता तो मैं सुन्दर नगर में हूं।"

"मैडम से सारी दास्तान तो आप सुन ही चुके होंगे ?"

"हां ।"

"आपकी क्या राय है इस बारे में ?"

"जो हुआ, बहुत बुरा हुआ । अमरजीत मेरा बचपन का दोस्त था । भाई जैसा । भाई से ज्यादा ।"

"आप वकील हैं। चावला साहब को अपना जिगरी दोस्त बताया आपने । फिर तो वे आपके क्लायंट होंगे ?"

"थे।"

"अब मिसेज चावला की कानूनी स्थिति क्या होगी आपके ख्याल में ?"

"सब ठीक ही होगा। चावला साहब के तमाम कागजात कानूनी तौर पर चौकस हैं। उनकी वसीयत..."

"मैंने विरासत की कानूनी स्थिति के बारे में सवाल नहीं किया था, वकील साहब ।”

"तो ?"
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"मैं तो बतौर मर्डर सस्पैक्ट इनकी कानूनी स्थिति जानना चाहता था।"

"मर्डर !"

"जी हां । लगता है मैडम ने आपको केस का आत्महत्या वाला संस्करण ही सुनाया है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए पुलिस की निगाह में यह कत्ल का केस है । और मैडम मर्डर सस्पैक्ट नम्बर वन हैं।"

"नॉनसेंस ।"

"मैडम ऐसा नहीं समझती । समझती होतीं तो ये मेरी - एक प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवाओं की - तलबगार न होतीं ।”

उसने कमला की तरफ देखा। कमला ने हौले से, बड़ी संजीदगी से, सहमति में सिर हिलाया ।

"आप अभी भी समझते हैं" - मैं बोला - "कि यह नॉनसैंस है ?

" "हां ।" - वकील जिदभरे स्वर में बोला।

"ठीक है समझिये । लेकिन समझते रहेंगे नहीं आप । बहुत जल्द मैडम को फांसी नहीं तो उम्रकैद तो जरूर हो जाएगी ओर इनकी - एक हत्यारी की - मदद करने के इलजाम में आपका यह खादिम भी तीन-चार साल के लिए तो नप ही जायेगा।"
 
वकील के चेहरे पर गहन गम्भीरता के भाव आये। तभी चौखट पर सब-इंस्पेक्टर यादव प्रकट हुआ । कमला ने उसका वकील से परिचय करवाया जिसकी तरफ यादव ने कोई खास तवज्जो न दी । "हम लोग लाश समेत यहां से जा रहे हैं।" - यादव बोला – आपके लिए पुलिस की क्या हिदायत है, यह आपका जासूस आपको समझा चुका होगा । कोई कसर रह गई हो तो अपने वकील से समझ लीजिएगा । मुझे सिर्फ इतना बता दीजिए कि भविष्य में आप कहीं उपलबध होगीं ?

" "गोल्फ लिंक ।" - कमला बोली । उसने अपनी कोठी का पता और फोन नम्बर यादव को लिखवा दिया।

"शुक्रिया ।" फिर यादव अपने दलबल के साथ वहां से विदा हो गया। उसके बाद वकील भी।

पीछे उजाड़ फार्म हाउस में फिर मैं और कमला चावला रह गए । “अब तुम क्या चाहते हो ?" - वह बोली ।।

"जो मैं चाहता हूं" - मैं उसे नख से शिख तक निहारता हुआ बोला - "मुझे उसके हासिल हो पाने का माहौल तो मुझे इस वक्त नहीं दिखाई दे रहा ।"

"इस वक्त क्या चाहते हो ?"

"अपनी फीस ।" "बीस हजार रुपये ?" "डाउन पेमैंट । फिलहाल ।”

"मैं तुम्हें पहले ही नहीं बता चुकी कि इस वक्त मेरे पास हजार रुपये भी नहीं है?"

"यहां नहीं हैं न?"

"नकद रकम घर पर भी मुमकिन नहीं ।”

"चैक भी चलेगा।"

"तुम कल तक इंतजार नहीं कर सकते ?"

"कल किसने देखा है, मैडम !"

"ठीक है । मेरे साथ गोल्फ लिंक चलो । मैं तुम्हें चैक लिख दूंगी।"

"मंजूर ।"
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बेगुनाह चॅप्टर 2

गोल्फ लिंक में अमर चावला की बहुत बड़ी कोठी थी जहां कि कमला और मैं आगे-पीछे अपनी-अपनी कार चलाते हुए पहुंचे।

तब मैंने एक बात नोट की। ० कमला ड्राइविंग के वक्त कॉटन के दस्ताने पहनती थी। अपनी मारुति कार से उतरने से पहले दस्ताने उसने उतारकर भीतर कार में रख दिये थे।

उस वक्त तक आधी रात हो चुकी थी। मैंने देखा कि कोठी के आगे इतना बड़ा लॉन था और ड्राइव-वे की दोनों तरफ इतने पेड़ थे कि यह कोई छोटा-मोटा पब्लिक पार्क मालूम होता था । आधी रात को भी लॉन के बीचोंबीच एक खूबसूरत फव्वारा तक चल रहा था। कोठी का एक साइड डोर उसने चाबी लगाकर खोला । हम दोनों भीतर दाखिल हुए।

संगमरमर के फर्श वाले गलियारे पर चलते हुए हम एक बन्द दरवाजे तक पहुंचे । उसने वह दरवाजा खोला । भीतर रोशनी थी। मैंने देखा, वह एक रेलवे प्लेटफार्म जैसा विशाल, बेहद कीमती फर्नीचर वगैरह से सजा ड्राइंगरूम था। फर्श पर इतना कीमती कालीन बिछा हुआ था जिस पर कि कदम रखते हुए मुझे झिझक हो रही थी । एक ओर दीवार के साथ बार बना हुआ था जिस पर कम-से-कम तीस ब्रांड की डिंक्स की बोतलें सुसज्जित थीं। उसका पृष्ठभाग सारे का सारा शीशे के दरवाजों का था जिस पर कि उस वक्त पर्दे खिंचे हुए थे। मैंने आगे बढ़कर एक पर्दै को थोड़ा सरकाकर बाहर झांका तो मुझे बाहर एक शानदार स्वीमिंग पूल दिखाई दिया। रईस होना बहुत फायदे की बात थी । इसलिए गरीब होना लानत की बात थी। इसलिए दौलत हासिल करने के लिए खतरा - जान तक का खतरा - मोल लेना आपके खादिम की आदत बन गई थी।

"बैठो।" - वह बोली ।।

"शुक्रिया ।" - मैं बोला लेकिन मैंने बैठने का उपक्रम न किया।

“ड्रिक ?" मैंने बोतलों से अटे पड़े बार पर निगाह दौड़ाई और बोला - "आई डोंट माइंड ।”

“क्या पियोगे ?"

"हैनेसी ।" - मैं निस्संकोच बोला । वहां मौजूद ड्रिक्स में सबसे कीमती मुझे वही दिखाई दी थी। वह बार पर पहुंची । उसके पीछे-पीछे चलता मैं भी बार पर पहुंचा।

उसने दो गिलासों में हैनेसी की ढेर सारी मात्रा डाली।

"वाटर ?" - वह बोली ।

"न न ।" - मैं जल्दी से बोला - "मिलावट का जमाना है लेकिन इतनी कीमती चीज में मुझे मिलावट गवारा नहीं होगी
| मैंने एक गिलास उठा लिया। मैंने उस उम्दा कोनियाक ब्रांडी की एक हल्की-सी चुस्की ली और फिर बोला - "इस
किले में कितने आदमी रहते हैं ?"
 
"अब तो" - वह बोली - "मैं अकेली ही समझो ।"

"ओह !"

"वैसे नौकर-चाकर बहुत हैं।"

तब मुझे चावला के वर्दीधारी शोफर का ध्यान आया। "साहब का शोफर" - मैंने पूछा –

"यहीं रहता है या मर्सिडीज छोड़कर घर चला जाता है ?"

"यहीं रहता है।"

"उसे बुलाओ।"

"क्यों ?"

"उससे यह मालूम हो सकता है कि साहब छतरपुर कैसे पहुंचे थे।"

"जरूरी नहीं, उसे मालूम हो ।”

"मैंने कहा है, मालूम हो सकता है। पूछने में क्या हर्ज है?"

"अच्छा । भीतर स्टडी में इण्टरकॉम है। मैं उस पर उसे यहां आने के लिए भी कहती हूं और तुम्हारा चैक भी बनाकर लाती हूं।"

"वैरी गुड ।"

अपना ब्रांडी का गिलास हाथ में थामे वह बार के पहलू में ही बने एक बन्द दरवाजे को खोलकर भीतर दाखिल हो गई

मैं ब्रांडी का गिलास संभाले एक सोफे पर जा बैठा और बीस हजार की डाउन पेमंट और कुल जमा दो लाख रुपये का सपना देखने लगा। सपना मुझे बहुत सुखद लगा। राज - मैंने खुद अपनी पीठ थपथपाई - दि लक्की बास्टर्ड।

कमला वापिस लौटी । उसके हाथ में एक चैक था जो कि उसने मुझे सौंप दिया।

"शुक्रिया" - मैंने चैक का एक बार मुआयना किया और फिर उसे दोहरा करके जेब में रख लिया - "अब यह समझ लो कि हमारे सहयोग पर सरकार की मोहर लग गई।"

"दैट्स गुड ।" तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी।

कमला ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला। उसी शख्स ने भीतर कदम रखा जिसे मैंने दिन में शोफर की वर्दी पहने चावला की मर्सिडीज चलाते देखा था। उस वक्त वह कुर्ता-पाजामा पहने था और कंधों के गिर्द एक शाल लपेटे था।

"इसका नाम कदमसिंह है" - कमला बोली - "यह साहब का शोफर है।"

"मुझे पहचाना, कदमसिह ?" - मैंने पूछा।

"नहीं ।" - वह बोला ।

"मुझे राज कहते हैं। मैं डिटेक्टिव हूं।" प्राइवेट मैंने जानबूझकर नहीं कहा। वह खामोश रहा । मेरे डिटेक्टिव होने का उसने कोई रोब खाया हो, ऐसा उसकी सूरत से न लगा ।

"आज दिन में तुम चावला साहब की गाड़ी चला रहे थे !" - मैं बोला।

“जी हां" - वह बोला - "हमेशा ही चलाता हूं।"

"कहां-कहां गए थे, साहब ?" वह हिचकिचाया । उसने कमला की तरफ देखा।

"जवाब दो, कदमसिंह ।" - कमला बोली ।

"पहले हम यहीं से मद्रास होटल गए थे" - वह बोला –

"वहां से साहब को मैं लंच के लिए चेम्सफोर्ड क्लब लेकर गया था। फिर वापिस आया था। फिर राजेन्द्रा प्लेस जाना हुआ था।"

"अकेले ? यानी कि तुम और साहब ?"
 
"नहीं । साथ दो आदमी और थे ।"

"तुम उन्हें जानते हो ?"

"हां । वे दोनों साहब के भरोसे के आदमी हैं । एक का नाम उमरावसिंह है और दूसरे का लच्छीराम ।”

"चितकबरे का नाम उमरावसिंह है या लच्छीराम ?"

"लच्छीराम ।" - वह हैरानी से मेरा मुंह देखता हुआ बोला ।

फिर ? राजेन्द्र प्लेस से कहां गए तुम ?"

"नारायणा । वहां से साहब ने मुझे वापिस भेज दिया था।"

"क्यों ?"

"वजह पूछना तो मेरा काम नहीं ।”

"नारायणा में तुम उन्हें कहां लेकर गए थे?"

"पायल सिनेमा के पास कहीं गया था मैं ।"

"यह तो बहुत गोलमोल जवाब हुआ । पायल सिनेमा के पास कहां गए थे तुम ?"

"मैं जगह से वाकिफ नहीं ।”

"कोई नम्बर-वम्बर तो बताया होगा साहब ने ?"

"बताया था लेकिन अब वह मुझे भूल गया है।"

"उमरावसिह और लच्छीराम का क्या हुआ ?"

"वे तो राजेन्द्रा प्लेस ही रह गए थे।"

"वे साहब के साथ नारायणा नहीं गए थे ?"

"नहीं ।"

"तुमने साहब से पूछा नहीं कि वे पीछे क्यों रह गए थे ?"

"मैं भला क्यों पूछता ?"

"इस बाबत उन दोनों में और तुम्हारे साहब में तुम्हारे सामने कोई बात नहीं हुई थी ?"

"जी नहीं ।"

"कदमसिंह !"

"जी, साहब ?"

"तुम झूठ बोल रहे हो।"

"जी !"

“तुम्हें यह भी मालूम है कि वे दोनों पीछे क्यों रह गये थे और यह भी मालूम है कि तुम्हारे साहब नारायणा में कहां गए
थे !"

वह खामोश रहा । उसने व्याकुल भाव से कमला की तरफ देखा। “तुम्हारी जानकारी के लिए तुम्हारे साहब अब इस दुनिया में नहीं हैं।”

“जी !" - वह बुरी तरह से चौंका ।
 
"छतरपुर में उनके फार्म में उनका कत्ल हो गया है । और पुलिस को कातिल की तलाश है। मेरे सामने झूठ बोलने से तो कछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन अगर पुलिस के सामने झूठ बोलोगे तो हवालात में नजर आओगे । समझे ?

" उसने बेचैनी से पहलू बदला।

"अब सच-सच मेरे सवालों का जवाब दो।"

"जबाब मैडम के सामने देना मुनासिब न होगा।"

"तुम मेरी परवाह न करो।" - कमला बोली ।

"साहब नारायणा में जूही चावला के बंगले पर गए थे।"

"और अपने चमचों को पीछे क्यों छोड़े गए थे?"

लच्छीराम का ख्याल था कि कोई आदमी उनके पीछे लगा हुआ था। वे राजेंद्रा प्लेस में यही देखने के लिए साहब से अलग हो गए थे कि उनका शक सही था या नहीं।"

"शक सही था उनका ?"

जी हां, था। उन्होंने खुद ही आकर बताया था कि जो आदमी साहब के पीछे लगा हुआ था, उसके साथ उनकी मारपीट भी हुई थी।"

"मर्सिडीज तो उसी सड़क पर खड़ी थी । मारपीट तुमने नहीं देखी थी ?"

"नहीं । मैं इत्तफाक से उस वक्त गाड़ी में नहीं था । मैं जरा" - उसने सशंक भाव से कमला की तरफ देखा - "बगल की गली में गया हुआ था।"

जो कि अच्छा ही हुआ - मैंने सोचा - नहीं तो मार-पीट में दो के मुकाबले तीन हो जाते ।

"फिर ?" - प्रत्यक्षत: मैं बोला।

"वहां हम तीनों थोड़ी देर बाहर ठहरे थे, फिर साहब ने बाहर आकर हम सबको वहां से रुखसत कर दिया था।" - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला - "साहब का कत्ल जूही मेम साहब ने किया ?"

- "यह कैसे सूझा तुम्हें ?"

"यूं ही ।"

"यूं ही क्या ! हर बात की कोई वजह होती है । इस संदर्भ में जूही का ही नाम क्यों सूझा तुम्हें ?"

"मैं साहब को जूही मेम साहब के साथ छोड़कर आया था। आपने कत्ल की बात की तो मैंने सोचा कि शायद ऐसा उन्हीं ने किया हो ।”

"क्या कहने तुम्हारे सोचने के !"

वह खामोश रहा ।

"बाद में तुम साहब को लेने दोबारा नारायणा गये थे?"

"नहीं।"

"उन्होंने तुम्हें गाड़ी कहीं और लाने के लिये कहा था ?"

"नहीं । उन्होंने मुझे नारायणा से ही भेज दिया था।"
 
"आई सी । ठीक है, तुम जा सकते हो ।” वह चेहरे पर हैरानी और अविश्वास के भाव लिए वहां से विदा हो गया।

"आप जूही चावला को जानती हैं" - मैंने कमला से पूछा।

"जानती हूं। यहां की पार्टियों में वह अक्सर आया करती है और हमेशा मेरे साथ बड़े अदब से पेश आती है। लेकिन यह मुझे कभी नहीं सूझा था कि मेरे हसबैंड की उसके साथ आशनाई हो सकती थी।"

"ऐसा कोई संकेत तो अभी भी हासिल नहीं ।"
"कैसे हासिल नहीं ? अपना ऑफिस छोड़कर उसके घर पर चावला साहब और किसलिए जाते ? जरूर उस कुतिया की वजह से ही वे मुझसे तलाक चाहते थे । मुझे इस बात का अन्देशा तो था कि मेरे मर्द की किसी गैर औरत से आशनाई थी लेकिन वह औरत जूही चावला थी, यह मुझे कभी नहीं सूझा था । हरामजादी मुझे आंटी कहा करती थी जबकि वो मुश्किल से दो या तीन साल छोटी होगी मुझसे ।"

"तलाक तो आप भी चाहती थीं अपने पति से ?"

"कोई भी गैरतमंद औरत अपने बेवफा पति से तलाक चाह सकती है। लेकिन मेरे तलाक चाहने में और मेरे पति के तलाक चाहने में फर्क है ?"

"क्या फर्क है ?"

"मेरा पति फोकट में मुझसे पीछा छुड़ाना चाहता था ।"

"जबकि आप जायदाद में हिस्से की और हर्जे-खर्चे की ख्वाहिशमंद थीं ?"

"हां ।"

"आप चाहती थीं कि इससे पहले आपका पति किसी बहाने आपको दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर करें,
आप उसकी किसी गैर औरत से आशनाई साबित कर सकें और उस बिना पर हर्जे-खचे के साथ उससे तलाक हासिल कर सकें । इसीलिये आपको एक प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवाओं की जरूरत थी ?"

"हां ।"

" "मेरा नाम कैसे सूझा आपको ?"

"किसी ने सुझाया था।"

"किसने ?"

"बलराज सोनी ने ।"

"आई सी ।" - मैं गंभीरता से बोला ।

“ड्रिंक और हो जाए ।" - मेरा खाली गिलास देखकर वह बोली ।

"हो जाये !" - मैं बोला - क्या हर्ज है !"

मेरा और अपना गिलास लेकर वह बार पर गई । हैनेसी के नये जाम तैयार करके वह वापिस लौटी। हम दोनों एक सोफे पर अगल-बगल बैठ गए । बड़े अफसोस की बात थी कि हम दोनों के बीच एक निहायत इज्जतदार फासला था
 
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