hotaks444
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सिंधु टपक पड़ी " देख तो भाई ..कितना नाटक करती है...अंदर से तो मरी जा रही है तेरे साथ सोने को और बाहर से शर्मा रही है... दीदी शरमाना छोड़ और बैठ जा भाई की गोद में ..ज़रा उसके हथियार की झलक तो ले ले बाहर से ..देख ना कैसा कड़क हो रहा है "
और ऐसा बोलते हुए सिंधु झट खाट से उठी , बिंदु के सामने गयी , उसे हाथों से थामा , उठाया और मेरी गोद में डाल दिया...और खुद भागती हुई मा के पास चली गयी ..
मेरा लंड सही में तना था ...बिंदु के भारी भारी मुलायम चूतड़ के भार से मैं सिहर उठा ..मैने उसे अपने सीने से लगाया और उसकी भारी भारी चुचियाँ हल्के हल्के मसल्ने लगा ...बिंदु मेरी गोद में कसमसा रही थी और मेरा लौडा उसकी चूतड़ की गुदाज़ फांकों में धंसा था ...बिंदु भी सिहर उठी
मैने उसके चेहरे को अपनी तरफ करते हुए उसके नर्म और गर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूसने लगा ...
बिंदु ने आँखें बंद कर ली थीं और सिसकारियाँ ले रही थी ...पर वो सिंधु की तरह बेधड़क और बिंदास नही थी...थोड़ी देर में ही उसकी शर्म और लाज़ उस पर हाबी हो गये , उस ने सिसकारियाँ लेते हुए फुसफुसाते हुए कहा .." भाई ..अभी छोड़ो ना ....क्या करते हो ...मा देखेगी ना ...."
मैने धीमी आवाज़ में उसके गालों को चूमते हुए कहा.." ह्म्म्म्मम.. ..तो फिर अकेले में सब कुछ करेगी क्या ..?"
" जब अकेले होंगे तो देखेंगे .." और झट से अपने को मेरी बाहों से छूटती हुई मेरे गालों की चूम्मी लेते हुए वो भी मा की तरफ चली गयी ..
मैं उसकी इस अदा पर बस मर मिटा ...बिंदु दोनो से कितना अलग थी ...उसकी झिझक , उसका शरमाना उसे और भी हसीन बना देता था ...
थोड़ी देर में ही एक थाली में समोसे और नमकीन लिए और दूसरी थाली में चार ग्लास चाइ लिए तीनों मा बेटियाँ आ गयीं ...समोसे और चाइ की थालिया नीचे फर्श पर रख , तीनों नीचे बैठ गयीं , मैं भी मा के पास आ कर बैठ गया ...
हम कितने दिनों बाद आज इस तरह साथ बैठ चाइ पी रहे थे...
"मा ..आज कितना अच्छा लग रहा है ना...सब साथ साथ बैठे चाइ पी रहे हैं .." मैने कहा
सिंधु ने भी कहा " हां ..मा ..भाई ठीक ही बोल रहा है..अब से रोज अपन ऐसे ही साथ चाइ पिएँगे ..कितना अच्छा लगता है..."
मा की आँखों में आँसू थे ... "हां मेरे बच्चों ...अपनी जिंदगी में और क्या है..बस हम सब का साथ ...भगवान हमेशा हमें ऐसे ही साथ बनाए रखे ..."
बिंदु से रहा नहीं गया वो भी बोल उठी " हां मा ..हम सब हमेशा ऐसे ही रहेंगे ..हमें और कोई नहीं चाहिए..और कुछ नहीं चाहिए ...बस ....हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं ..सब कुछ ..."
" वाह वाह ,,वाह रे बिंदु ..तू बोलती कम है पर जब बोलती है खूब बोलती है . कितनी बड़ी बात बोल दी तू ने ..हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं .... " मैने कहा
" हां भाई सब कुछ .....है ना मा ...??" बिंदु ने फिर से बोला..
मा ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा " हां बिंदु ... "
माहौल ज़रा सीरीयस हो गया था..मैने उसे हल्का बनाने की कोशिश करते हुए कहा
" अरे वाह री बिंदु ..तू तो मेरी सब कुछ है...फिर इतनी दूर क्यूँ बैठी है....पास आ ना ..." बिंदु ने शरमाते हुए नज़रें झुका ली ..पर मा और सिंधु हंस पड़े ....
तब तक चाइ पीनी ख़त्म हो गयी थी ...मा और सिंधु ने सब समेटा और दोनो चले गये चूल्हे की तरफ ...बिंदु भी उनके साथ जाने लगी ..मैने उसे थामते हुए अपनी तरफ खिचा
" तू तो मेरी सब कुछ है मेरी रानी ...." ऐसा बोलते हुए उसके होंठ चूम लिए ..इस बार उस ने भी मेरा साथ दिया ..पर फिर थोड़ी देर बाद कहा :
" भाई इतनी बेसब्री क्यूँ कर रहे हो....बस आज रात भर की तो बात है..कल मेरा सब कुछ ले लेना ना भाई.....सच मानो भाई मैं सब कुछ तुझ पे लूटा दूँगी ..सब कुछ..."
और मेरे गालों को चूमते हुए सिंधु और मा की तरफ भागती हुई चली गयी..
मैने उसकी आँखों में एक अजीब तड़प, प्यार और शर्म की मिलीजुली झलक देखी...
मैं मन ही मन आनेवाली खुशियों से झूम उठा ...
आज मुझे समझ आ गया अच्छी तरह ..... हम ग़रीब थे ज़रूर , पर प्यार , एक दूसरे का साथ और खुशियों में कितने अमीर थे.... कितने अमीरों से भी अमीर...
तीनों मा बेटियाँ चूल्हे के पास जाने क्या क्या ख़ूसूर पूसूर करती रात के खाने की तैय्यारियाँ कर रहीं थीं ..मैं ऐसे ही खाट पर आँखें बंद किए लेटा लेटा बोर हो रहा था .
मैं थोड़ी देर बाहर निकल गया , घूमा घामा और वापस आया ..फिर सब साथ मिल कर खाना खाए और मैं तो खाट पर जाते ही सोने लगा ..काफ़ी थक गया था .... सिंधु और मा की चुदाइ का असर था शायद ..
थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा मेरे बगल कोई आ कर लेटा है....देखा तो सिंधु थी ..
"क्या है सिंधु ...मुझे सोने दे ना .." मैने आधी नींद में ही उस से बोला ..
" भाई तो मैने कब कहा मत सो...तू सो ना ..बस मैं तेरे हथियार को पकड़ के तेरे साथ सोती हूँ ...मुझे उसे थामे बिना चैन नही आ रहा है ...पकड़ने दे ना ..मैं और कुछ नहीं करूँगी ...."
उस ने धीमी आवाज़ में कहा और अपने हाथ से मेरे पॅंट की ज़िप खोल दी , पॅंट को कमर से नीचे सरका दिया और अंडरवेर के अंदर हाथ डाल मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया ..मैं सिहर उठा
" उफ्फ तू भी ना सिंधु ..." मैने झुझलाते हुए कहा
" अरे भाई ..कहे को अपना दिमाग़ खराब करते हो...तू चुपचाप लेटा रह ..मैं बस अपने प्यारे लंड को सहलऊंगी..देख ना मा और बिंदु कैसे सो रहे हैं नीचे..उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा .."
'ठीक है बाबा तेरा जो जी में आए कर मैं सोता हूँ " और मैने उसकी ओर पीठ कर आँखें बंद कर ली .
सिंधु बड़े आराम आराम से उसे सहलाती जाती ,कभी दबा देती , कभी सुपाडे के उपर नाख़ून चलाती ....मुझे भी अच्छा लग रहा था , बहुत हल्का हल्का महसूस हुआ और मैं जाने कब गहरी नींद में सो गया..
सुबेह उठा तो देखा सब कुछ नॉर्मल था ..पॅंट की ज़िप लगी थी ..पर तंबू ज़रूर बना था ....एक दम उँचाई लिए हुए ...
मा चाइ बना कर काम पे निकल गयी थी , सिंधु जाने की तैय्यारि में थी और बिंदु कोने में खड़ी सारी पहेन रही थी ....बिंदु हमेशा सारी ही पेहेन्ति थी और सिंधु सलवार कुर्ता ...बिंदु थोड़ी भारी भारी थी ..सारी उस पर अच्छी लगती ....
सिंधु ने कहा " बिंदु देख ले रे कैसा तैय्यार है भाई का हथियार ....बस ले ले आज अपने अंदर ...देखना कितना मस्त है रे ...उफ़फ्फ़ मेरा तो जी कर रहा है आज फिर से ले लूँ अंदर ..." और उस ने फिर से मेरे लौडे को कस के पकड़ लिया
" अरे छोड़ सिंधु .....मुझे मूतास लगी है रे ...जाने दे ..छोड़ ना ..." और मैं हड़बड़ाता हुआ उठा ...अपने हाथों से अपने लंड को दबाता हुआ.....और पानी से भरा मग्गा उठाया और बाहर निकल गया ...
बिंदु और सिंधु मेरी बदहाली पर जोरों से हंस पड़ीं....
जब मैं वापस आया तो देखा बिंदु खाट पर बैठी थी ... सिंधु का पता नहीं था ...
मैने इधर उधर देखा और पूछा " सिंधु नहीं दिख रही ...गयी क्या..?"
" हां भाई गयी वो काम पर ..." और अपना चेहरा मुँह से छुपाते हुए हँसने लगी ...
" ह्म्म्म्म ... याने कि मैदान सॉफ ..." और मैं उसे अपने से जाकड़ लिया और उसे खाट पर लिटाते हुए उसके उपर आ गया ,
...उसकी सारी की पल्लू सीने से अलग हो गयी थी ..उसका सीना धौंकनी की तरह चल रहा था .उसकी चुचियाँ उपर नीचे हो रहीं तीन ..बड़ी सुडौल थी , सिंधु से.थोड़ी बड़ी ,हथेलियों मे भरा भरा , बड़े अच्छे से मेरे हाथों में समा गयी दोनो चुचियाँ ,.मैं उन्हें मसल्ते हुए बिंदु के होंठ चूमने लगा ..
" उफफफफ्फ़ भाई थोड़ा तो सब्र करो ना बाबा..मैं कहाँ भाग रही हूँ..आज तो पूरा दिन है अपने पास ..,मैने आज काम की छुट्टी कर ली है...चलो उठो भाई ..हाथ मुँह धो लो ..साथ चाइ पीते हैं ...फिर जो जी में आए करो ...." बिंदु ने मेरे हाथ हटा दिए अपने सीने से और मेरे चेहरे को थामते हुए चूम लिया ...." मेरे राजा भाई ..चल उठ ..." और मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखी और खाट से उठी , चूल्हे की तरफ चली गयी ..
मैं तो उसके इस रूप से फिर से दंग रह गया..कहाँ तो इतनी चुप रहती है और अभी इतनी बातें कर ली ...येई था बिंदु का कमाल ... मौके के हिसाब से अपने आप को ढाल लेती ...
मैं भी उठ गया और हाथ मुँह धो , खाट पर बैठा बिंदु के चाइ लाने का इंतेज़ार कर रहा था.
बिंदु एक थाली में दो ग्लास चाइ और कल शाम के बचे नमकीन गरम कर ले आई थी ...
हम दोनो ने एक एक ग्लास ले ली और बिंदु मेरे बगल बैठ गयी और नमकीन वाली थाली को अपनी गोद में रख लिया ...
मैं सरकते हुए उस से बिल्कुल चिपक गया ...मैं उसकी सुडौल, मांसल और मुलायम जांघों की गर्मी अपने जाँघ पर महसूस कर रहा था.... मैं चाइ की चुस्कियाँ लिए जा रहा था ...
" भाई ..नमकीन भी खाओ ना ...'"
" तुम खिलाओ ना बिंदु अपने हाथ से ....अभी तो कोई देख नहीं रहा ना ..." मैने उसे छेड़ते हुए कहा ..
"उफ़फ्फ़ तुम भी ना भाई ...बड़े बदमाश हो गये हो ....अच्छा चलो ..मुँह खोलो ..."
क्रमशः…………………………………………..
और ऐसा बोलते हुए सिंधु झट खाट से उठी , बिंदु के सामने गयी , उसे हाथों से थामा , उठाया और मेरी गोद में डाल दिया...और खुद भागती हुई मा के पास चली गयी ..
मेरा लंड सही में तना था ...बिंदु के भारी भारी मुलायम चूतड़ के भार से मैं सिहर उठा ..मैने उसे अपने सीने से लगाया और उसकी भारी भारी चुचियाँ हल्के हल्के मसल्ने लगा ...बिंदु मेरी गोद में कसमसा रही थी और मेरा लौडा उसकी चूतड़ की गुदाज़ फांकों में धंसा था ...बिंदु भी सिहर उठी
मैने उसके चेहरे को अपनी तरफ करते हुए उसके नर्म और गर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूसने लगा ...
बिंदु ने आँखें बंद कर ली थीं और सिसकारियाँ ले रही थी ...पर वो सिंधु की तरह बेधड़क और बिंदास नही थी...थोड़ी देर में ही उसकी शर्म और लाज़ उस पर हाबी हो गये , उस ने सिसकारियाँ लेते हुए फुसफुसाते हुए कहा .." भाई ..अभी छोड़ो ना ....क्या करते हो ...मा देखेगी ना ...."
मैने धीमी आवाज़ में उसके गालों को चूमते हुए कहा.." ह्म्म्म्मम.. ..तो फिर अकेले में सब कुछ करेगी क्या ..?"
" जब अकेले होंगे तो देखेंगे .." और झट से अपने को मेरी बाहों से छूटती हुई मेरे गालों की चूम्मी लेते हुए वो भी मा की तरफ चली गयी ..
मैं उसकी इस अदा पर बस मर मिटा ...बिंदु दोनो से कितना अलग थी ...उसकी झिझक , उसका शरमाना उसे और भी हसीन बना देता था ...
थोड़ी देर में ही एक थाली में समोसे और नमकीन लिए और दूसरी थाली में चार ग्लास चाइ लिए तीनों मा बेटियाँ आ गयीं ...समोसे और चाइ की थालिया नीचे फर्श पर रख , तीनों नीचे बैठ गयीं , मैं भी मा के पास आ कर बैठ गया ...
हम कितने दिनों बाद आज इस तरह साथ बैठ चाइ पी रहे थे...
"मा ..आज कितना अच्छा लग रहा है ना...सब साथ साथ बैठे चाइ पी रहे हैं .." मैने कहा
सिंधु ने भी कहा " हां ..मा ..भाई ठीक ही बोल रहा है..अब से रोज अपन ऐसे ही साथ चाइ पिएँगे ..कितना अच्छा लगता है..."
मा की आँखों में आँसू थे ... "हां मेरे बच्चों ...अपनी जिंदगी में और क्या है..बस हम सब का साथ ...भगवान हमेशा हमें ऐसे ही साथ बनाए रखे ..."
बिंदु से रहा नहीं गया वो भी बोल उठी " हां मा ..हम सब हमेशा ऐसे ही रहेंगे ..हमें और कोई नहीं चाहिए..और कुछ नहीं चाहिए ...बस ....हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं ..सब कुछ ..."
" वाह वाह ,,वाह रे बिंदु ..तू बोलती कम है पर जब बोलती है खूब बोलती है . कितनी बड़ी बात बोल दी तू ने ..हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं .... " मैने कहा
" हां भाई सब कुछ .....है ना मा ...??" बिंदु ने फिर से बोला..
मा ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा " हां बिंदु ... "
माहौल ज़रा सीरीयस हो गया था..मैने उसे हल्का बनाने की कोशिश करते हुए कहा
" अरे वाह री बिंदु ..तू तो मेरी सब कुछ है...फिर इतनी दूर क्यूँ बैठी है....पास आ ना ..." बिंदु ने शरमाते हुए नज़रें झुका ली ..पर मा और सिंधु हंस पड़े ....
तब तक चाइ पीनी ख़त्म हो गयी थी ...मा और सिंधु ने सब समेटा और दोनो चले गये चूल्हे की तरफ ...बिंदु भी उनके साथ जाने लगी ..मैने उसे थामते हुए अपनी तरफ खिचा
" तू तो मेरी सब कुछ है मेरी रानी ...." ऐसा बोलते हुए उसके होंठ चूम लिए ..इस बार उस ने भी मेरा साथ दिया ..पर फिर थोड़ी देर बाद कहा :
" भाई इतनी बेसब्री क्यूँ कर रहे हो....बस आज रात भर की तो बात है..कल मेरा सब कुछ ले लेना ना भाई.....सच मानो भाई मैं सब कुछ तुझ पे लूटा दूँगी ..सब कुछ..."
और मेरे गालों को चूमते हुए सिंधु और मा की तरफ भागती हुई चली गयी..
मैने उसकी आँखों में एक अजीब तड़प, प्यार और शर्म की मिलीजुली झलक देखी...
मैं मन ही मन आनेवाली खुशियों से झूम उठा ...
आज मुझे समझ आ गया अच्छी तरह ..... हम ग़रीब थे ज़रूर , पर प्यार , एक दूसरे का साथ और खुशियों में कितने अमीर थे.... कितने अमीरों से भी अमीर...
तीनों मा बेटियाँ चूल्हे के पास जाने क्या क्या ख़ूसूर पूसूर करती रात के खाने की तैय्यारियाँ कर रहीं थीं ..मैं ऐसे ही खाट पर आँखें बंद किए लेटा लेटा बोर हो रहा था .
मैं थोड़ी देर बाहर निकल गया , घूमा घामा और वापस आया ..फिर सब साथ मिल कर खाना खाए और मैं तो खाट पर जाते ही सोने लगा ..काफ़ी थक गया था .... सिंधु और मा की चुदाइ का असर था शायद ..
थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा मेरे बगल कोई आ कर लेटा है....देखा तो सिंधु थी ..
"क्या है सिंधु ...मुझे सोने दे ना .." मैने आधी नींद में ही उस से बोला ..
" भाई तो मैने कब कहा मत सो...तू सो ना ..बस मैं तेरे हथियार को पकड़ के तेरे साथ सोती हूँ ...मुझे उसे थामे बिना चैन नही आ रहा है ...पकड़ने दे ना ..मैं और कुछ नहीं करूँगी ...."
उस ने धीमी आवाज़ में कहा और अपने हाथ से मेरे पॅंट की ज़िप खोल दी , पॅंट को कमर से नीचे सरका दिया और अंडरवेर के अंदर हाथ डाल मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया ..मैं सिहर उठा
" उफ्फ तू भी ना सिंधु ..." मैने झुझलाते हुए कहा
" अरे भाई ..कहे को अपना दिमाग़ खराब करते हो...तू चुपचाप लेटा रह ..मैं बस अपने प्यारे लंड को सहलऊंगी..देख ना मा और बिंदु कैसे सो रहे हैं नीचे..उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा .."
'ठीक है बाबा तेरा जो जी में आए कर मैं सोता हूँ " और मैने उसकी ओर पीठ कर आँखें बंद कर ली .
सिंधु बड़े आराम आराम से उसे सहलाती जाती ,कभी दबा देती , कभी सुपाडे के उपर नाख़ून चलाती ....मुझे भी अच्छा लग रहा था , बहुत हल्का हल्का महसूस हुआ और मैं जाने कब गहरी नींद में सो गया..
सुबेह उठा तो देखा सब कुछ नॉर्मल था ..पॅंट की ज़िप लगी थी ..पर तंबू ज़रूर बना था ....एक दम उँचाई लिए हुए ...
मा चाइ बना कर काम पे निकल गयी थी , सिंधु जाने की तैय्यारि में थी और बिंदु कोने में खड़ी सारी पहेन रही थी ....बिंदु हमेशा सारी ही पेहेन्ति थी और सिंधु सलवार कुर्ता ...बिंदु थोड़ी भारी भारी थी ..सारी उस पर अच्छी लगती ....
सिंधु ने कहा " बिंदु देख ले रे कैसा तैय्यार है भाई का हथियार ....बस ले ले आज अपने अंदर ...देखना कितना मस्त है रे ...उफ़फ्फ़ मेरा तो जी कर रहा है आज फिर से ले लूँ अंदर ..." और उस ने फिर से मेरे लौडे को कस के पकड़ लिया
" अरे छोड़ सिंधु .....मुझे मूतास लगी है रे ...जाने दे ..छोड़ ना ..." और मैं हड़बड़ाता हुआ उठा ...अपने हाथों से अपने लंड को दबाता हुआ.....और पानी से भरा मग्गा उठाया और बाहर निकल गया ...
बिंदु और सिंधु मेरी बदहाली पर जोरों से हंस पड़ीं....
जब मैं वापस आया तो देखा बिंदु खाट पर बैठी थी ... सिंधु का पता नहीं था ...
मैने इधर उधर देखा और पूछा " सिंधु नहीं दिख रही ...गयी क्या..?"
" हां भाई गयी वो काम पर ..." और अपना चेहरा मुँह से छुपाते हुए हँसने लगी ...
" ह्म्म्म्म ... याने कि मैदान सॉफ ..." और मैं उसे अपने से जाकड़ लिया और उसे खाट पर लिटाते हुए उसके उपर आ गया ,
...उसकी सारी की पल्लू सीने से अलग हो गयी थी ..उसका सीना धौंकनी की तरह चल रहा था .उसकी चुचियाँ उपर नीचे हो रहीं तीन ..बड़ी सुडौल थी , सिंधु से.थोड़ी बड़ी ,हथेलियों मे भरा भरा , बड़े अच्छे से मेरे हाथों में समा गयी दोनो चुचियाँ ,.मैं उन्हें मसल्ते हुए बिंदु के होंठ चूमने लगा ..
" उफफफफ्फ़ भाई थोड़ा तो सब्र करो ना बाबा..मैं कहाँ भाग रही हूँ..आज तो पूरा दिन है अपने पास ..,मैने आज काम की छुट्टी कर ली है...चलो उठो भाई ..हाथ मुँह धो लो ..साथ चाइ पीते हैं ...फिर जो जी में आए करो ...." बिंदु ने मेरे हाथ हटा दिए अपने सीने से और मेरे चेहरे को थामते हुए चूम लिया ...." मेरे राजा भाई ..चल उठ ..." और मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखी और खाट से उठी , चूल्हे की तरफ चली गयी ..
मैं तो उसके इस रूप से फिर से दंग रह गया..कहाँ तो इतनी चुप रहती है और अभी इतनी बातें कर ली ...येई था बिंदु का कमाल ... मौके के हिसाब से अपने आप को ढाल लेती ...
मैं भी उठ गया और हाथ मुँह धो , खाट पर बैठा बिंदु के चाइ लाने का इंतेज़ार कर रहा था.
बिंदु एक थाली में दो ग्लास चाइ और कल शाम के बचे नमकीन गरम कर ले आई थी ...
हम दोनो ने एक एक ग्लास ले ली और बिंदु मेरे बगल बैठ गयी और नमकीन वाली थाली को अपनी गोद में रख लिया ...
मैं सरकते हुए उस से बिल्कुल चिपक गया ...मैं उसकी सुडौल, मांसल और मुलायम जांघों की गर्मी अपने जाँघ पर महसूस कर रहा था.... मैं चाइ की चुस्कियाँ लिए जा रहा था ...
" भाई ..नमकीन भी खाओ ना ...'"
" तुम खिलाओ ना बिंदु अपने हाथ से ....अभी तो कोई देख नहीं रहा ना ..." मैने उसे छेड़ते हुए कहा ..
"उफ़फ्फ़ तुम भी ना भाई ...बड़े बदमाश हो गये हो ....अच्छा चलो ..मुँह खोलो ..."
क्रमशः…………………………………………..