hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
मैने उनकी ओर देखा तो आँखों में वही चिर परिचित भाव दिखाई दिए..
मैने डिसाइड कर लिया था कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??
मैने उनकी ओर देखा तो आँखों में वही चिर परिचित भाव दिखाई दिए..
मैने डिसाइड कर लिया था, कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??
मे- भाभी ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे आप मुझसे कुछ कहना चाहती हैं पर कह नही पा रही.
वो कुछ सकपका सी गयी, बहुत देर तक कुछ बोल नही पाई, मेरी नज़र उनके खूबसूरत लेकिन सहमे हुए से चेहरे पर ही टिकी थी.
नज़र नीची किए वो असमंजस की स्थिति में ही खड़ी रही, मेरे सीधे-2 सवाल की उनको आशा नही थी शायद, और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की हिम्मत भी नही जुटा पा रही थी.
मैने फिर अपना सवाल दोहराया, तो वो मेरी आँखों में झान्कति हुई बोली- जब आपने मेरी नज़रों को पढ़ ही लिया हैं तो ये भी पढ़ा लिया होगा कि मे चाहती क्या हूँ..?
मेरे सवाल के उपर उनका सवाल सुन कर मे हड़वाड़ा गया..! और सोचने लगा कि ये तो अपनी इच्छायें मेरे ही मुँह से कहलवाना चाहती हैं,
मैने मन ही मन कहा - मान गये भाभी काफ़ी तेज हो.. पर चलो कोई नही हम भी किसी से कम नही. अब मुझे भी इस सवाल जबाब के खेल में मज़ा आने लगा था.
मे- क्या भाभी आप भी ! मे कोई जादूगर तो हूँ नही जो आपके अंतर्मन को पढ़ सकूँ..?
वो मेरे हाथों को चूमकर बोली- जादूगर तो तुम हो ही तभी तो मेरा मन तुम्हारी ओर खिंचा चला जा रहा है..?
मे भौंचक्का देखता ही रह गया…! अभी कुछ कहना ही चाहता कि उपरवाले ने मेरी सुन ली और भाभी उपर आ गई, हम दोनो थोड़ा दूर हट कर खड़े हो गये और बच्चों से खेलने लगे.
जान बची और लाख उपाए, लौट के बुद्धू नीचे आए….!!
……………………………………………………………………..
हमारी कंपनी का प्रॉडक्ट कुछ ऐसा था कि उसको फाइनल पॅक करने से पहले फिज़िकली चेक करना ज़रूरी था एक-दो बार मॅन्यूयेली ऑपरेट करके, और ये काम क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमेंट के अंडर ही था, इसके लिए मॅनपवर की तो ज़रूरत थी लेकिन टेक्निकल होना ज़रूरी नही था.
एक टेक्निकल सूपरवाइज़र की देख रेख में उस काम के लिए अधिकतर लड़कियों को ही रखा गया था.
मे प्रॉडक्ट इंजिनियरिंग मे था जो फर्स्ट फ्लोर पर था, सेपरेट्ली. हमारे डेप्ट्ट से निकलते ही पर्चेस और उसके पहले अकाउंट्स.
फर्स्ट फ्लोर पर सबसे लास्ट ऑफीस था हमारा.
एक सीनियर ड्रॅफ्ट्स्मन के साथ 3 और लड़के थे मेरे साथ, एक मॅनेजर जिसको मे रिपोर्ट करता था.
अकाउंट्स मे 5-6 लोग थे, जिनमें दो एक्सपीरियेन्स्ड लेडी थी, एक शादी शुदा पंजाबी कुड़ी.
शाम को छुट्टी के बाद सभी लड़कियाँ एक मिनी बस से जाती थी, नीचे टेस्टिंग में काम करने वाली लड़कियों में से एक-दो आधा घंटा पहले उपर आजाती थी अकाउंट्स में उन लॅडीस के साथ बैठने.
दोनो ऑफिसस के बीच में एक ट्रॅन्स्परेंट ग्लास का पार्टाइज़ेन ही था जिसमें से सब कुछ आर-पार दिखता था.
वैसे तो कभी-कभार अकाउंट्स की लॅडीस के साथ हँसी मज़ाक भी होता रहता था, हम सबका.
हमारे मॅनेजर के अंडर में आर&डी भी था तो वो ज़्यादातर शाम के वक़्त नीचे ही होता था.
कुच्छ ही दिनो में मैने ओब्ज़र्व किया कि नीचे से जो लड़कियाँ उपर आकर बैठती थी उनमें से एक लड़की जिसका नाम टीना था, और कंपनी से 15-20 किमी पर उसका गाँव था, जो उस मिनी बस के रूट पर ही पड़ता था, वो हमारे ऑफीस की ओर ही देखती रहती थी.
एक दिन मेरे र्राइव. डीएम (ड्रॅफ्ट्स्मन) रोहीला ने मुझसे कहा कि देखो वो लड़की हमारे ऑफीस की तरफ ही देखती रहती है.
रोहीला शादी शुदा था लेकिन था बड़ा थर्कि टाइप, तो पहले तो खुद ने कोशिश की उसे पटाने की लेकिन जब उस लड़की ने उसे कोई घास नही डाली तब उसने मेरे को बताया.
अगले दिन जब वो उपर आई और हमारी ओर देखने लगी तो रोहीला ने मुझे कुहनी मारकर इशारा किया,
मेरा ध्यान भी बाहर की ओर गया तो वो मेरी ओर ही देख रही थी, कुछ देर तो देखती रही फिर अपनी नज़रें नीची करके मुस्करा दी.
रोहीला ये सब देख रहा था सो फट से बोला- अरे यार ये तो तेरे को ही लाइन दे रही है.
मैने कहा छोड़ ना क्या फालतू कामों में ध्यान रहता है तेरा, अपना काम किया कर वरना मॅनेजर को बोल दूँगा समझा,
भेह्न्चोद शादी-शुदा होके ऐसी बातों में ही लगा रहता है, तो वो कुछ डर गया और अपने काम में लग गया.
थोड़ी देर बाद फिर मैने जब उधर देखा तो पाया कि वो हमारी ओर ही देख रही थी, मे कुछ मिनट तक उसको ही देखता रहा तो वो मुस्करा दी और नज़र नीची करके जाने लगी. जाते-2 भी एक-दो बार चेहरे पर मुस्कराहट लिए मूडी.
अब यहाँ उसके हुश्न का विवरण देना भी बनता है, किसी ने अगर हरियाने की छोरियों को देखा हो तो उनको ज़्यादा एक्सप्लेन करने की ज़रूरत ही नही. उनका रंग रूप एक अलग ही लालिमा लिए होता है,
उपर से उसका साँचे में ढला 32-28-33 का बदन, लंबाई साडे पाँच की, चाल में एक अलग सी थिरकन, जब भी तिर्छि नज़रों से देखती थी, किसी के भी दिल पर च्छूरियाँ चल जायें.
शायद ही कोई सीनियर, जूनियर स्टाफ या वर्कर होगा कंपनी में जो उससे चोदना ना चाहता हो सिवाय एक मेरे ऑफीस के सुरेश को छोड़ कर, वो तो साला पूरा संत ही था.
बस उसे तो अपने शरीर की ही चिंता रहती थी, लाल सुर्ख सांड, चौड़ी छाती, शेर जैसी चाल लेकिन लड़कियों के मामले में एकदम ज़ीरो. पूरा ब्रह्मचारी था वो, औरत जात से 10 फुट दूर ही रहता था.
अपना ऐसा कोई सिद्धांत था नही, अगर कोई वाकई में प्यासी है और वो सामने से गुज़ारिश करे तो दिल पिघल ही जाता था आख़िरकार.
सो उसके कुछ दिनो की कोशिश के बाद पिघल ही गया, उपर से उसका रूप लावण्य ऐसा जान मारु था कि खींच ही लिया उसने अपनी ओर…
अब मेरा भी मन करने लगा उसे देखने का, ना जाने क्यों साडे 4 बजते ही मेरी नज़र उसी ओर चली ही जाती..
जितनी देर वो वहाँ रहती हम दोनो की नज़र एक दूसरे में ही खोई रहती किसी-ना-किसी बहाने. कहते हैं ना की इश्क और मुश्क छिपाये नही च्छुपता.
उन अकाउंट की लेडी’स को पता लग ही गया, और धीरे-2 सारी को में ये बात जाहिर हो गयी, जबकि हमें अभी तक एक दूसरे को टच करने का भी मौका नही मिल पाया था.
इसमें उनमें से एक लड़की ने हमारी मदद की, वो काम का बहाना करके देर तक रुकने लगी, मे तो अपने पर्सनल स्कूटर से ही जाता था सो मुझे तो आने-जाने का कोई प्राब्लम नही था.
पहले दिन वो अकेली ही रुकी और जैसे ही छुट्टी के बाद सब चले गये तो वो मेरे ऑफीस में आई और उसने उसका लेटर मुझे दिया और मुझसे रिप्लाइ देने को कहा.
मैने डिसाइड कर लिया था कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??
मैने उनकी ओर देखा तो आँखों में वही चिर परिचित भाव दिखाई दिए..
मैने डिसाइड कर लिया था, कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??
मे- भाभी ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे आप मुझसे कुछ कहना चाहती हैं पर कह नही पा रही.
वो कुछ सकपका सी गयी, बहुत देर तक कुछ बोल नही पाई, मेरी नज़र उनके खूबसूरत लेकिन सहमे हुए से चेहरे पर ही टिकी थी.
नज़र नीची किए वो असमंजस की स्थिति में ही खड़ी रही, मेरे सीधे-2 सवाल की उनको आशा नही थी शायद, और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की हिम्मत भी नही जुटा पा रही थी.
मैने फिर अपना सवाल दोहराया, तो वो मेरी आँखों में झान्कति हुई बोली- जब आपने मेरी नज़रों को पढ़ ही लिया हैं तो ये भी पढ़ा लिया होगा कि मे चाहती क्या हूँ..?
मेरे सवाल के उपर उनका सवाल सुन कर मे हड़वाड़ा गया..! और सोचने लगा कि ये तो अपनी इच्छायें मेरे ही मुँह से कहलवाना चाहती हैं,
मैने मन ही मन कहा - मान गये भाभी काफ़ी तेज हो.. पर चलो कोई नही हम भी किसी से कम नही. अब मुझे भी इस सवाल जबाब के खेल में मज़ा आने लगा था.
मे- क्या भाभी आप भी ! मे कोई जादूगर तो हूँ नही जो आपके अंतर्मन को पढ़ सकूँ..?
वो मेरे हाथों को चूमकर बोली- जादूगर तो तुम हो ही तभी तो मेरा मन तुम्हारी ओर खिंचा चला जा रहा है..?
मे भौंचक्का देखता ही रह गया…! अभी कुछ कहना ही चाहता कि उपरवाले ने मेरी सुन ली और भाभी उपर आ गई, हम दोनो थोड़ा दूर हट कर खड़े हो गये और बच्चों से खेलने लगे.
जान बची और लाख उपाए, लौट के बुद्धू नीचे आए….!!
……………………………………………………………………..
हमारी कंपनी का प्रॉडक्ट कुछ ऐसा था कि उसको फाइनल पॅक करने से पहले फिज़िकली चेक करना ज़रूरी था एक-दो बार मॅन्यूयेली ऑपरेट करके, और ये काम क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमेंट के अंडर ही था, इसके लिए मॅनपवर की तो ज़रूरत थी लेकिन टेक्निकल होना ज़रूरी नही था.
एक टेक्निकल सूपरवाइज़र की देख रेख में उस काम के लिए अधिकतर लड़कियों को ही रखा गया था.
मे प्रॉडक्ट इंजिनियरिंग मे था जो फर्स्ट फ्लोर पर था, सेपरेट्ली. हमारे डेप्ट्ट से निकलते ही पर्चेस और उसके पहले अकाउंट्स.
फर्स्ट फ्लोर पर सबसे लास्ट ऑफीस था हमारा.
एक सीनियर ड्रॅफ्ट्स्मन के साथ 3 और लड़के थे मेरे साथ, एक मॅनेजर जिसको मे रिपोर्ट करता था.
अकाउंट्स मे 5-6 लोग थे, जिनमें दो एक्सपीरियेन्स्ड लेडी थी, एक शादी शुदा पंजाबी कुड़ी.
शाम को छुट्टी के बाद सभी लड़कियाँ एक मिनी बस से जाती थी, नीचे टेस्टिंग में काम करने वाली लड़कियों में से एक-दो आधा घंटा पहले उपर आजाती थी अकाउंट्स में उन लॅडीस के साथ बैठने.
दोनो ऑफिसस के बीच में एक ट्रॅन्स्परेंट ग्लास का पार्टाइज़ेन ही था जिसमें से सब कुछ आर-पार दिखता था.
वैसे तो कभी-कभार अकाउंट्स की लॅडीस के साथ हँसी मज़ाक भी होता रहता था, हम सबका.
हमारे मॅनेजर के अंडर में आर&डी भी था तो वो ज़्यादातर शाम के वक़्त नीचे ही होता था.
कुच्छ ही दिनो में मैने ओब्ज़र्व किया कि नीचे से जो लड़कियाँ उपर आकर बैठती थी उनमें से एक लड़की जिसका नाम टीना था, और कंपनी से 15-20 किमी पर उसका गाँव था, जो उस मिनी बस के रूट पर ही पड़ता था, वो हमारे ऑफीस की ओर ही देखती रहती थी.
एक दिन मेरे र्राइव. डीएम (ड्रॅफ्ट्स्मन) रोहीला ने मुझसे कहा कि देखो वो लड़की हमारे ऑफीस की तरफ ही देखती रहती है.
रोहीला शादी शुदा था लेकिन था बड़ा थर्कि टाइप, तो पहले तो खुद ने कोशिश की उसे पटाने की लेकिन जब उस लड़की ने उसे कोई घास नही डाली तब उसने मेरे को बताया.
अगले दिन जब वो उपर आई और हमारी ओर देखने लगी तो रोहीला ने मुझे कुहनी मारकर इशारा किया,
मेरा ध्यान भी बाहर की ओर गया तो वो मेरी ओर ही देख रही थी, कुछ देर तो देखती रही फिर अपनी नज़रें नीची करके मुस्करा दी.
रोहीला ये सब देख रहा था सो फट से बोला- अरे यार ये तो तेरे को ही लाइन दे रही है.
मैने कहा छोड़ ना क्या फालतू कामों में ध्यान रहता है तेरा, अपना काम किया कर वरना मॅनेजर को बोल दूँगा समझा,
भेह्न्चोद शादी-शुदा होके ऐसी बातों में ही लगा रहता है, तो वो कुछ डर गया और अपने काम में लग गया.
थोड़ी देर बाद फिर मैने जब उधर देखा तो पाया कि वो हमारी ओर ही देख रही थी, मे कुछ मिनट तक उसको ही देखता रहा तो वो मुस्करा दी और नज़र नीची करके जाने लगी. जाते-2 भी एक-दो बार चेहरे पर मुस्कराहट लिए मूडी.
अब यहाँ उसके हुश्न का विवरण देना भी बनता है, किसी ने अगर हरियाने की छोरियों को देखा हो तो उनको ज़्यादा एक्सप्लेन करने की ज़रूरत ही नही. उनका रंग रूप एक अलग ही लालिमा लिए होता है,
उपर से उसका साँचे में ढला 32-28-33 का बदन, लंबाई साडे पाँच की, चाल में एक अलग सी थिरकन, जब भी तिर्छि नज़रों से देखती थी, किसी के भी दिल पर च्छूरियाँ चल जायें.
शायद ही कोई सीनियर, जूनियर स्टाफ या वर्कर होगा कंपनी में जो उससे चोदना ना चाहता हो सिवाय एक मेरे ऑफीस के सुरेश को छोड़ कर, वो तो साला पूरा संत ही था.
बस उसे तो अपने शरीर की ही चिंता रहती थी, लाल सुर्ख सांड, चौड़ी छाती, शेर जैसी चाल लेकिन लड़कियों के मामले में एकदम ज़ीरो. पूरा ब्रह्मचारी था वो, औरत जात से 10 फुट दूर ही रहता था.
अपना ऐसा कोई सिद्धांत था नही, अगर कोई वाकई में प्यासी है और वो सामने से गुज़ारिश करे तो दिल पिघल ही जाता था आख़िरकार.
सो उसके कुछ दिनो की कोशिश के बाद पिघल ही गया, उपर से उसका रूप लावण्य ऐसा जान मारु था कि खींच ही लिया उसने अपनी ओर…
अब मेरा भी मन करने लगा उसे देखने का, ना जाने क्यों साडे 4 बजते ही मेरी नज़र उसी ओर चली ही जाती..
जितनी देर वो वहाँ रहती हम दोनो की नज़र एक दूसरे में ही खोई रहती किसी-ना-किसी बहाने. कहते हैं ना की इश्क और मुश्क छिपाये नही च्छुपता.
उन अकाउंट की लेडी’स को पता लग ही गया, और धीरे-2 सारी को में ये बात जाहिर हो गयी, जबकि हमें अभी तक एक दूसरे को टच करने का भी मौका नही मिल पाया था.
इसमें उनमें से एक लड़की ने हमारी मदद की, वो काम का बहाना करके देर तक रुकने लगी, मे तो अपने पर्सनल स्कूटर से ही जाता था सो मुझे तो आने-जाने का कोई प्राब्लम नही था.
पहले दिन वो अकेली ही रुकी और जैसे ही छुट्टी के बाद सब चले गये तो वो मेरे ऑफीस में आई और उसने उसका लेटर मुझे दिया और मुझसे रिप्लाइ देने को कहा.