Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 13 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

अब में उसके संतरों को थोड़ा-2 मसल्ने लगा, तो वो पीछे की तरफ को गिरती हुई आँखें बंद करके सीत्कार उठी…

सस्स्सिईईई…..हाइईईईईई…..उउफ़फ्फ़… ऑश…ससुउउऊओ…म्माआ..आअहह..

बहुत मज़ाअ.. आअरराहहाअ.. हाइईइ…और जॉर्रईए…सीईए…ईीई…द.दाब्बाऊओ…हुन्न्ं…

मज़ा आया..? मैने उसके कान में कहा… तो वो शरमा कर बोली- हां बहुत..

मे- और ज़्यादा मज़ा लेना है… तो उसने हां में मुन्डी हिला दी.

मैने उसके कुर्ते को उसके उपर से निकाल दिया, उसकी फक्क गोरी चुचियाँ नुमाया हो गयी, जो एकदम कड़क गोल-गोल जिन्हें देखकर मेरी लार टपकने लगी, 

मैने एक को मुँह में भर लिया, दूसरी को हाथ से सहलाने लगा. जैसे ही मैने उसके कंचे के साइज़ के निपल को जीभ लगाके चाटा, उसकी आँखें बंद होती चली गयी, और सिसकने लगी.

कुछ देर चुचियों पर एक्सर्साइज़ करने के बाद मैने उसको उचका कर उसकी सलवार भी निकलवा दी…

हयईए… रब्बा…मारजावां गुड ख़ाके… लंड तो मस्ती में झूम उठा उसकी गान्ड देखकर, 

क्या सुडौल, गोल-गोल छोटी सी गान्ड गोरी चिटी एकदम मुलायम, 

पाजामा फाड़ने पे उतारू मेरा पप्पू, बुरी तरह फुफ्कारने लगा… जैसे कह रहा हो-खोल पाजामा साले, निकाल मुझे बाहर, 

इस गान्ड पर किस करवा दे मेरे भाई… प्लीज़… पर फिलहाल मैने उसकी माँग ठुकरा दी.

अब मैने भूरी को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी रस छोड़ती मुनिया को हाथ से सहलाया, 

थोड़े-2 बाल आते जा रहे थे, बालों में हथेली का घर्षण बड़ा सुखद लग रहा था, 

उसकी कोरी चूत के होंठ बंद थे, जब मैने अंगूठे से उन्हें खोला, आहह… क्या पतले-2 होठ बिल्कुल जैसे उसके उपर वाले थे बिल्कुल वैसे ही. 

भूरी मस्ती में आँखें बंद किए पड़ी थी. दीं दुनियाँ से बेख़बर दूर कहीं आसमानों में उड़ती हुई………

मैने उंगली को उल्टा करके उसकी मुनिया की दरार पर बहुत ही हल्के से फिराया नीचे से उपर, उपर से नीचे.. ! 

भूरी ने एक बार अपने घुटने मोड़ कर अपनी टाँगों को भींचा और फिर से खोल दिया, उसकी कमर में कंपन सा होने लगा.

जब मैने अपनी जीभ को उसकी बंद होठों वाली मुनिया के उपर चलाया तो उसकी कमर थरथराने लगी, 

मैने अंगूठों की मदद से उसके बंद होठों को खोला और उसके अन्द्रुनि गुलाबी परत को जीभ से चाट लिया…

आअहह….म्म्मा आंम्मिईिइ….ससिईईई..ऊूउउऊऊओह…हाआसस्स्शह..

आयईयीई….भ..आ..ईयी..इय्य्ाआअ…. हाययईई… मत करो…

और उसकी गान्ड हवा में उठाने लगी…, उपर की ओर मौजूद उसकी नन्ही सी भज्नासा (क्लिट) अब खड़ी होने लगी थी और कुक्कु की चोंच की तरह बाहर को आ गई, जिसे मैने अपने होठों में क़ैद करके चूसने लगा…

भूरी का मज़े के कारण बुरा हाल था, उसकी मुनिया पानी बहाने लगी, बूँद-2 करके चुहुने लगी.

मेरा एक हाथ उसकी एक चुचि को मसल्ने लगा, उसके छोटे से छेद के द्वार पर उंगली को रख कर उसका पोर अंदर कर दिया और जीभ अपना काम कर रही थी, 

दो मिनट में ही भूरी अपना आपा खो बैठी, और कमर को हवा में उच्छाल कर उसकी चूत फुदक-2 कर पानी फेंकने लगी. 

कुँवारी चूत का टेस्टी रस मेरे पेट में जाने लगा.

एक मिनट तक लगातार झड़ने के बाद भूरी शांत पड़ गयी.. उसकी आँखें बंद थी और लंबी-2 साँसे भर रही थी.

मैने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे हिलाते हुए पुछा- कैसा लगा भूरी..? मज़ा आया..?

उसने आँखें बंद किए ही हमम्म..में गर्दन हिला दी.

इससे भी आगे जाने का मेरा मन था.. सॉरी !! मेरे लंड महाराज का, लेकिन मुझे पता था, कि ढाई साल के ब्रह्म्चर्य को झेलना इस कच्ची कली के बस का रोग नही है. 

सो मैने भूरी को कहा- भूरी कपड़े पहन और घर जा.

वो एकदम चोंक कर मुझे देखने लगी.. !

मे- ऐसे क्या देख रही है ? तो वो बोली, और करो ना भैया… इसके आगे..का.

मे- क्यों मज़ा नही आया..?

वो- बहुत आया ! पर मे वो तुम्हारा वो लेना चाहती हूँ अपनी इसमें.. , जैसे मेरे भैया भाभी के साथ करते हैं… प्लीज़ भैया दे दो ना..!

मे- वो भी मिलेगा भूरी धीरज रख, अभी वो तेरे लेने लायक नही है, जब होगा तो ज़रूर दूँगा तुझे..! ठीक है…! अब जा..

वो- उउन्न्हुउ… अभी क्यों नही..? अभी उसमें क्या कमी है..?

मे- देख भूरी ज़िद नही करते मेरी गुड़िया.. ! जल्दी दे दूँगा तू चिंता ना कर हां..! अब जा घर.

जैसे तैसे मैने उसको समझा-बुझा कर घर रवाना किया.

भूरी तो चली गयी, लेकिन अब इस लौडे का क्या करूँ ? 

पाजामा फाडे दे रहा है मादरचोद… बैठ साले.. ! मे उसको जितना नीचे को दबाता वो उससे भी दुगनी तेज़ी से उपर को आ जाता.

मैने एक लोटा भरके पानी पिया और खेतों की ओर घूमने निकल गया ये सोच कर कि कुछ मन इधर-उधर लगाके शायद शांत हो जाए.

ज़्यादातर खेतों में गेंहू खड़े थे जो इस समय बाली आने को थे, माने कमर तक उँचाई थी उनकी. 

घूमते-2 दो-तीन खेत आगे निकल गया, एक खेत में एक मजदूर घास काट रही थी अपनी भैंस के लिए. 

मे उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया और अचानक से बोला.

मे- अरे फूलवतिया !! तू ! तू यहाँ अकेली क्या कर रही है..?

वो- पंडितजी ! भैंस के लिए घास काट रही हूँ..! 

मे- तो फिर ये अपनी झोली उतार के काट ना, इतनी बड़ी झोली साथ में लटका के काटेगी, तो गेंहू नही टूटेंगे..?

अभी तक उसने मेरी ओर मुड़कर देखा नही था, अब वो उठकर खड़ी हुई और मेरी ओर घूम कर बोली- देखो अभी तक एक भीईीई……, 

जैसे ही उसकी नज़र मेरे पाजामा पर पड़ी, वो बोलते-2 अटक गयी और आँखें फाड़-2 के मेरे उठे हुए पाजामा को देखे जा रही थी.
 
फूलवतिया एक गहरे काले रंग की थी, उसकी शादी 8-10 महीने पहले ही हुई थी, काले रंग के अलावा उसका वाकी का सामान बड़ा ही मस्त था, 

बड़े-2 पहाड़ जैसे उसके एकदम आगे को सिर उठाए चुचे, बड़ी-2 टीले जैसी मोटी गान्ड, कमर एकदम पतली. 

चेहरा भी अच्छा था, कुल मिलकर, रंग काला होने के बावजूद भी चोदने लायक मस्त माल थी.

जब वो बहुत देर तक मेरे खड़े अकदे लंड की ओर देखती ही रही तो मैने उससे पुछा- ऐसे क्या देख रही है..? कुछ चाहिए क्या..?

वो- चाहिए तो बहुत कुछ, पर तुम दोगे नही पंडित जी..!

मे- क्या चाहिए..? बोल ना..! देने लायक हुआ तो ज़रूर मिलेगा..!

वो मेरे पास आई और हाथ बढ़ाकर मेरे लंड को पाजामा के उपर से पकड़ लिया.. ये दोगे..?

मे- अबबे साली छोड़ ! चौड़े में ही लेगी..? कोई देख लेगा.., लेना है तो चल कमरे में.

मंत्रमुग्ध सी वो मेरे पीछे-2 कमरे में आ गई.

कमरे में घुसते ही उसने मेरा पाजामा खींच दिया और मेरे अकडे लंड को हाथ में लेकर मसल्ने लगी.

मे - भेन्चोद साली तू तो बड़ी गरम हो रही है, एक मिनट का भी सबर नही है तुझे ?

वो- अरे अरुण बाबू..! ऐसा हथियार सामने देख कर तो किसी का भी मन डोल जाएगा. 

और फिर मेरी शादी करके मेरा पति मदर्चोद जाने कहाँ मर गया, भडुए ने मूड कर भी नही देखा. 

दिन रात ये निगोडी मेरी चूत खुजाति रहती है.

मे - चल मे आज तेरी इस चूत की ऐसी खुजली मिटाउंगा की तू भी याद रखेगी, ले चल अब इसकी थोड़ी सेवा कर, तभी ये मेवा खिलाएगा तेरी चूत को, 

और मैने अपने मूसल को उसके होठों पे रख दिया, उसने फ़ौरन उसे अपने मुँह में ले लिया और मस्त चुसाइ करने लगी. 

इतने में मैने उसके बड़े-2 चुचे ब्लाउस खोल कर बाहर निकाल लिए और मसल्ने लगा.

वो उउन्नग्ग-2 जैसी आवाज़ें निकालती हुई अपनी ही धुन में लगी थी, वो तो ऐसी टूट के पड़ी की, जैसे इसके बाद कभी कोई लंड मिलेगा ही नही चूसने को.. हां शायद ऐसा गोरा लंड ना मिले उसे..!

जब उसका मुँह दुखने लगा तो वो फ़ौरन अपना लहंगा उपर उठा कर घोड़ी बनके खड़ी हो गयी चारपाई की पाटी पकड़ के, और बोली- 

अब बस पेल दो जल्दी से, पर धीरे-2 आराम से डालना, बहुत दिन से गया नही है इसमें.

मैने उसके मोटे-मोटे चुतड़ों पर थपकी दी गोल-गोल सहलाया और थूक हाथ पे लेके लौडे को गीला किया, रखा उसकी भैंस जैसी चूत के मुँह पर और पेल दिया एक तगड़े से धक्के के साथ.

अरेयययी…माररर ग्ाआईयईई…अमम्माआ…मेरी छूट फाड़ डीईइ… रीए…पा.न्ंदडीत्तटजजििीइ….नईए…

मैने उसकी नंगी पीठ पर एक थपकी दी.. भेन्चोद साली क्यों नाटक करती है.. ऐसी क्या कोरी चूत है तेरी जो इतना चिल्ला रही है..

वो- नही ! सच में फाड़ दी तुमने हइई… बड़ा मोटा है तुम्हारा सोटा… हाईए राम… धीरे से डालना था ना..

मे- अच्छा चल अब ध्यान रखूँगा.. और मैने धीरे-2 करके पूरा 8” का मोटा सोटा उसकी चूत में डाल दिया..!

अब लंड भी बेचारा क्या करे.. 2 घंटे से अकडा पड़ा है, ढाई साल से उसकी कोई सुध नही ली थी सो आ गया अपनी औकात में और कुछ ज़्यादा ही तगड़ा सा लग रहा था आज.

अब मैने धीरे-2 अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, पूरा सुपाडे तक निकालु और फिर जड़ तक पेल दूं. फूलवतिया भी पूरी हिल जाए, उसके दोनो पपीते ऐसे हिल रहे थे जैसे झूला झूल रहे हों.

मज़े से मेरी आँखें बंद हो चुकी थी, मुझे अब कुछ भी दिखाई नही दे रहा था बस दिमाग़ में एक ही धुन, जल्दी से माल रिलीस हो कैसे भी.

लेकिन वो तो साला जाने कहाँ सोया पड़ा था, अभी तक तो कोई आसार ही नज़र नही आए, 

फूलवतिया की कमर जबाब दे गयी, उसकी चूत बाल्टी भर-भरके पानी फेंक रही थी.

आख़िर वो थक कर खड़ी हो गयी, लेकिन मेरे धक्के बंद नही हुए.. 

पंडितजी साँस तो लेने दो, मेरी कमर दुखने लगी है,

मे- चल बिस्तर पर लेट जल्दी- और मैने उसे धक्का ही दे दिया, अब में उसकी टाँगे अपने कंधों पर रख कर उसकी धपा-धप चुदाई करने लगा. 

मेरे मुँह से हूँ..हूँ, जैसी आवाज़ें निकल रही थी मानो कोई कुल्हाड़ी लेकर किसी पेड़ के तने को काट रहा हो.

फूलवतिया को चोदते-2 एक घंटा हो गया था, उसका कुआँ बिल्कुल खाली हो चुका था, 

लेकिन मेरा अभी तक कोई अता-पता नही था, मुझे अब चिंता होने लगी कि साला निकलेगा भी या नही. 

मुशिबत ये थी कि जब तक वीर्य नही निकलेगा ये साला लॉडा बैठेगा ही नही, अगर नही बैठा तो..

मे ये सोच ही रहा था कि फूलवतिया हाए..हाए..करने लगी और मुझे छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगी, उसकी चूत बिल्कुल सूख चुकी थी, 

सूखी चूत में मेरे मूसल के घर्षण से उसकी चूत में दर्द होने लगा, उसकी चूत छिल्ने लगी.

अब छोड़ दो पंडितजी… मे तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, कभी भूलके भी तुमसे चुदने के लिए नही कहूँगी… भगवान के लिए अब छोड़ दो मेरी चूत में दर्द हो रहा है, हाई री अम्मा कहाँ फँस गयी आज…
 
मैने उसको इस पोज़िशन से चोदना बंद कर दिया, और कुछ देर उसकी चुचियाँ पीने के बाद थोड़ा फिर से उसको गरम किया और खुद पलग पर लेट कर, उसको अपने लंड पे बिठा लिया, 

अब वो बेमन से मेरे लंड पर अपनी बहाल हो चुकी चूत को रख कर कमर उपर नीचे करने लगी. 

थक चुकी थी बेचारी, सो ज़यादा देर नही कर पाई तो घुटने डालकर मेरे उपर पसर गयी, 

मुझे अब कुछ-2 लगने लगा था कि कुच्छ उठने लगा है मूलाधार से,... कुछ आ रहा है उर्जा श्रोत से मेरे आंडों की तरफ….
अब मेरे रुकने का तो कोई सवाल ही पैदा नही हो सकता था, सो उसकी गान्ड को थोड़ा सा उचका कर नीचे से बुरी तरह कमर चलाने लगा, 

उसके पपीतों को दोनो हाथों में थाम लिया, मेरी कमर की स्पीड इतनी तेज को गयी कि बॅंक की नोट गिनने वाली मशीन भी फैल हो जाए…लेकिन संख्या गिन ना सके….

मज़े में मे इतना बाबला हो गया था, कि उसके पपड़ी भरे सूखे से काले-2 होठ जो कभी चूसने की मे सोच भी नही सकता था, अपने मुँह में भर लिए और चूसने लगा.

जब फूलवतिया नही झेल पाई तो उसने अपने हाथों को मेरी छाती पर अड़ाकर जबर्जस्ती मेरे उपर से उठ गयी, 

मे अब क्या करता, मज़ा शुरू हो चुका था इस साली ने खड़े लंड पे धोका दे दिया.

लपक के पकड़ा उसका सर, और जबर्जस्ती से अपना मूसल उसके मुँह में घुसेड दिया जड़ तक, जो उसके गले में जाके अटक गया, और जल्दी-2 कमर चलाई. 

करीब 8-10 धक्कों में आख़िरकार मुझे मेरी मंज़िल मिल ही गयी और मैने डकार मारते हुए…उसके गले में लंड ठूंस कर दे दनादन पिचकारी पे पिचकारी छोड़ दी.., 

कम से कम डेढ़ छटांक गर्म-2 घी उसके गले में उतार दिया जो सीधा उसके पेट में चला गया.

जैसे ही मेरी उत्तेजना थोड़ी शांत हुई और मेरी नज़र उसके मुँह पर पड़ी, उसके गले की नसें फूल चुकी थी, आँखें बाहर को उबलने लगी थी…

फ़ौरन मैने अपना सोटा बाहर खींच लिया, 

वो खों-2 करके खांसने लगी मैं दौड़ कर एक ग्लास पानी लाया और उससे पिलाया तब जाके वो सामान्य हुई.

वो हान्फते हुए बोली- हे राम मार ही डाला था तुमने, पंडित जी बहुत जालिम हो, क्या हमेशा ऐसे ही करते हो क्या..? 

डेढ़ घंटे से रगड़-2 कर मेरी हालत खराब कर दी.

माफ़ कर्दे मेरी फुलफुल्ली…, भेन्चोद निकल नही रहा था तो मे परेशान हो गया, अब ढाई साल के बाद आज निकाला है तो ये तो होना ही था.., ये बता कैसा लगा.

वो- स्वाद तो अच्छा था मीठा लेकिन बहुत ही गरम, और अब जलन हो रही है गले में. लगता है बहुत गर्मी है तुम्हारे वीर्य में. 

मे - अब तू जा अपना काम कर और मुझे थोड़ा आराम करने दे. 

मैने जेब से उसे 500 का नोट निकाल कर पकड़ा दिया तो वो खुश हो गयी, और मेरे लंड को चूम कर चली गयी… ! 

वो तो चली गयी, लेकिन जैसे ही उसने मेरे लंड को चूमा, मेरा शेर फिर दहाड़ने लगा. 

लेकिन अब कुछ नही हो सकता था सो मैने उसे पूचकार कर शांत रहने के लिए कहा और जबर्जस्ती सो गया.

करीब एक-डेढ़ घंटा सोने के बाद मे उठ गया, वो साला पाजामे में अभी भी फन्फना रहा था, आज साला इसको हो क्या गया है भेन्चोद मान ही नही रहा. 

ये सब सोच ही रहा था कि तभी फूलवतिया अपना घास का गट्ठर लेके आ गयी और मेरे से पानी माँगा.

मैने उसे पानी पिलाया और उसको बोला- फुल्लो रानी देख ना ये साला अभी भी नही मान रहा कुछ करेगी क्या इसका,

तो वो बोली – ना ! पंडित जी, तुम दो-दो घंटे रगड़ते हो इतना मेरे बस का नही है.

मे- अरे अब नही लगेगा इतना टाइम, वो पहले तो दूसरा मामला था, थोड़ा कर ना जल्दी हो जाएगा.. आजा..

वो- वैसे पता नही, जबसे तुम्हारा वो घी पिया है, मेरी रामदुलारी भी बहुत आँसू बहा रही है, पर इस बार मेरी चूत को पिलाना पड़ेगा अपना घी. 

मैने कहा ठीक है, और फिर हम दोनो ने आधा घंटा खूब धमा चौकड़ी मचाई, अंत में उसकी पोखर को अपने पानी से लबालब भरके फुल कर दिया तो वो खुश होकेर बोली, 

मुझे यही चाहिए था अपनी बच्चेदानी की गर्मी शांत करने को, और उठाके अपना घास का गट्ठर चली गयी.

मे सोचता ही रह गया कि ये क्या बोलके गयी..? और क्यों..? लेकिन जब समझ में आया तो अपना सर पीट के रह गया.

पर चलो आज ये मेरा सारा प्रेशर तो रिलीस कर गयी, अब में और मेरा पप्पू दोनो नॉर्मल थे. 

कुल मिलाकर आज का दिन मेरे लिए अच्छा साबित हुआ.

दो दिन ऐसे ही निकल गये मे अपने रोजमर्रा के कामों में लगा रहता, तीसरे दिन दोपहर को मे घर खाना खाने के लिए निकलने वाला था कि भूरी आ धमकी. 

आज भी वो जलेबी लेके आई थी.

मैने कहा- अरी भूरिया रानी तुझे जलेबी के अलावा और कुछ अच्छा नही लगता क्या..?

वो - अरे अरुण भैया, और यहाँ गाँव में मिलता ही क्या है, ये कम-से-कम ताजी-2 मिल तो जाती हैं. लो खाओ अच्छी हैं.

हम दोनो ने मिलकर जलेबी ख़तम की और फिर बैठके बातें करने लगे. 
 
आज भूरी ठान के आई थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, आज अपनी सील तुड़वाके ही मानेगी.

शुरुआत उसी ने की, लपक के मेरी गोद में चढ़ गयी और किस करने लगी, मैने कहा क्या बात है भूरी मुँह झूठा करने की तुझे तो लत ही लग गयी.. तो वो हँसने लगी और मेरे सीने में मुँह छुपा लिया.

वो अब कुछ-2 क्या..? बहुत कुछ खुल गयी थी, फिर भी शरमाती हुई बोली- भैया आज तुम्हारा कोई बहाना नही चलेगा, आज मे तुम्हारा वो ना अपने अंदर लेके ही रहूंगी.

मे- वो क्या..? 

वो- वोही.. !

मे- नाम लेके बोल तभी मिलेगा, वरना भूल जा..

मेरा लंड पकड़ के – ये..! मैने कहा इसका नाम क्या है..?

वो झिझकते हुए बोली- ल..ल्ल..लंड.. बस अब तो ठीक है, मिल गयी खुशी और शर्मीली हँसी हँसने लगी..

मे- तो खोल ले पाजामा और लेले मेरे लंड को अपने अंदर..

उसने झट से पाजामा खोल कर उतार दिया, मूसल महाराज तो तैयार ही बैठे…ओह सॉरी !! खड़े थे उसके पास जाने के लिए..

कुछ देर तो वो उसे देखती रही फिर हाथ में लेकर सहलाते हुए बोली- अरुण भैया, आपका ये तो बहुत बड़ा और मोटा है..! क्या ये मेरे अंदर घुस पाएगा..?

मे- मुँह खोल..! घुसा के दिखाता हूँ..!

वो- अरे मे मुँह की बात थोड़ी कर रही हूँ..? मे तो उसकी बात कर रही हूँ..!

मे- और किसकी..? मुँह में ही तो जाएगा.. तू और कहाँ लेगी इसको..?

वो- अरे वहाँ..! जहाँ से सू सू करते हैं..!

मे- अब मुझे क्या पता तू कहाँ से सू सू करती है..?

वो- तुम भी ना ! बहुत बड़े वाले वो हो.. ! अरे वही मेरी च..च..चुत्त्त…में अब बस.. हो गयी तसल्ली और हंस पड़ी खिल-खिला कर.

मे- देख भूरी..! तुझे पता है, मे ये शब्द खुलकर बोलने के लिए क्यों कह रहा हूँ..? 

इस काम में जितना खुलकर बोला जाए ना उतना ज़्यादा मज़ा आता है समझी.. तो अपनी झिझक खोल और खुलके मज़ा ले. ठीक है.

उसने सर हिला कर और साथ-साथ मेरा लंड हिलाकर हामी भर दी.

मे- ले अब इसे थोड़ा ग्रीस लगा दे.. !

वो- कहाँ है ग्रीस..?

मैने हंसते हुए.. अरे इसे अपने मुँह में लेकर गीला कर.

वो- छि, ये भी कोई मुँह में लेने वाली चीज़ है, इसमें से मूत निकलता है, 

मे- देख फिर पागलों जैसी बात की तूने, मैने उस दिन तेरे को किस किया तब तूने कहा कि मुँह झूठा कर दिया, आज इसको मुँह में लेने के लिए बोला तो छि कर रही है, 

और उस दिन अपनी चूत मेरे से चटवाई तब बिल्कुल नही बोली छि..हैं बड़ी चालू बनती है अपने आपमें…ले पकड़..पहले इसका टोपा खोल.

भूरी ने काँपते हाथों से लंड की खाल पीछे करके सुपाडे का ढक्कन खोला, जिसपे एक बूँद वीर्य की लगी थी जो किसी मोती की तरह चमक रही थी, 

मे- देख इस्पे एक मोती लगा है, इसको चख के देख, मज़ा आएगा, अब भूरी मेरी हर बात मान रही थी सो उसने अपनी जीभ की नोक से उसे चाट लिया, 

मैने पुछा कैसा लगा ? तो कुछ देर बाद उसका स्वाद पता लगाकर बोली-मीठा सा है ये तो.

मे - हां ये असली वाला माल है, लड़किया इसे बड़े चाव से चुसती हैं, तू भी चूस के देख मज़ा आएगा.

मज़ा शब्द सुनते ही पहले उसने टोपे को मुँह में लिया उसे कुछ अच्छा लगने लगा तो और थोड़ा अंदर लेकर लॉलीपोप की तरह पुच-पुच करके चूसने लगी..

मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी तो मैं उसके सर के पीछे हाथ लगा कर उसके मुँह की चुदाई सी करने लगा…..,

भूरी बड़ी चालू थी, उसने अपने हाथ की मुट्ठी लंड की जड़ पर कस रखी थी जिससे पूरा लंड उसके मुँह में ना जाने पाए.

कुछ देर लंड चुस्वा कर मैने उसे अलग किया और उसके कपड़े उतार दिए….

दो ही तो कपड़े होते थे बेचारी के बदन पर.. उसे पूरी तरह नंगा करके बिस्तर पर लिटा दिया.

पहले मैने उसके पूरे शरीर पर हाथ फिराया और फिर उसके पैरों की उंगलियों से चूमना चाटना शुरू किया, 

जैसे-2 मे उपर बढ़ता जा रहा था, वासना की खुमारी उसके उपर बढ़ती जा रही थी. आँखें बंद किए वो हौले-2 सिसकियाँ ले रही थी.

बढ़ते-2 मे उसकी जांघों पर पहुँचा बाहर से चूमते-2 जब उसकी जांघों को अंदर की तरफ से चाटा, स्वतः ही उसकी टाँगें खुल गयी, 

उसकी सुंदर सी काली जैसी दो इंच लंबी दरार थोड़ी सी खुल गयी. 

मैने जीभ पर दबाब बना कर उसकी पूरी दरार में नोक से चाट लिया…

आअहह…..सस्स्सिईईईईई….. जैसी सिसकी लेकर भूरी अपने खुसक होठों पर जीभ फेरने लगी.

फिर मैने उसकी दरार को और खोला तो उसका गुलाबी अन्द्रुनि भाग खिल गया और उसकी भज्नासा फूलने लगी जिसे मैने अपने होठों से पकड़ कर चूस लिया..

ऊऊ…म्म्माआआ…हाईए…ससिईइ….आहह… और उसकी कमर उपर को उठने लगी..! उसकी चूत पानी बहाने लगी और उससे बूँद-2 बनके कमरस टपकने लगा.

अब मे अपने दूसरे पड़ाव की ओर बढ़ा और उसकी नाभि को चूमा, अपनी जीभ उसकी नाभि के चारों ओर फिराई…

उसका पतला सा पेट हिलने लगा और उसे गुदगुदी सी होने लगी जिसकी वजह से वो खिल-खिलाकर हँस पड़ी.

जब मे उसकी चुचियों को चूसने लगा तो उसके सब्र का बाँध फुट पड़ा और उसने मेरे कंधे पकड़ कर उपर की ओर खींचा, और मेरे होठ चूसने लगी. 

उसकी गर्दन पर चुंबन लेकर मे नीचे आया और उसकी टाँगें चौड़ा कर उसकी छोटी सी चूत को चूमा और उसकी ओर देख कर पुछा-

भूरी ! तू तैयार है ना मेरा लंड अपनी चूत में लेने के लिए..?

वो.. हमम्म ! मैने कहा खुलके बोले..

वो- भैया अब बातें नही प्लीज़… अब अपना लंड मेरी चूत में डालो…अब नही रहा जा रहा मुझसे.. उफफफ्फ़… जल्दी करो…आहह..

मैने उसकी गीली चूत को अपने थूक से और गीला किया और अपने लंड के सुपाडे को उसके उपर एक बार फिराया. 

फिर उसकी फांकों को एक उंगली और अंगूठे की मदद से खोला और दूसरे हाथ में अपना पप्पू पकड़ कर उसके नन्हे से छेद पर अड़ा दिया. 

हल्का सा दबाब डाला कि चिकनी चूत आधे सुपाडे को गडप गयी.

भूरी ने अपने होठ कस रखे थे, मैने एक और हल्का सा झटका दिया अपनी कमर में, मेरा करीब डेढ़ इंच लंड माने पूरा सुपाडा उसकी संकरी सुरंग में खो गया, लेकिन दर्द से उसकी चीख निकल गयी..
 
अब मेरा लंड उसकी झिल्ली की दीवार पर टिक चुका था, अब एक कड़ा फ़ैसला लेने की ज़रूरत थी जिसके बिना काम नही बनना था. मैने लिया भी और एक ताक़तवर प्रहार किया…

आआयययययीीईई….म्मुंम्मिईीईईई….माअरर्ररर….ग्ग्ाआयईीई..र्र्र्ृीि…

उफफफ्फ़…हश अरुण भैया.. मे हाथ जोड़ती हूँ आपके…मररर.. जवँगिइइ…निकालूओ…इसे…हे..रामम्म..

मैने वही दम साधे लंड को विराम दिया और बिना हीले डुले उसको चूमने चाटने लगा.. दोनो हाथों से उसकी चुचियों को मसल्ने लगा, जल्द ही वो थोड़ी नॉर्मल हुई..

उसकी झिल्ली फट चुकी थी, और हल्का सा खून लंड की बगल से बाहर भी आया.
मेरा आधा लंड उसकी कमसिन कसी हुई चूत के अंदर जा चुका था..

मैने उसके सर पर हाथ फेर कर उसको सांत्वना दी.. बस भूरी बस हो गया मेरी गुड़िया रानी, अब सब ठीक है, 

फिर हल्के-2 हाथों से उसके निपल सहलाए तो उसको सुरसुरी सी होने लगी और वो अपनी चूत के दर्द को भूल गयी..

मैने एक और झटका दे दिया और तीन चौथाई लंड उसकी चूत में डाल दिया, 

उसे फिर दर्द हुआ लेकिन अब में लगातार उसके होठ चूस रहा था, जिससे उसका दर्द आँसुओं के मध्यम से उसकी आँखों से बहने लगा.

मैं उसकी भीगी पलकों को चूमते हुए उतने लंड को धीरे-2 अंदर बाहर करने लगा.. 

वो धीरे-2 कराह रही थी, कुछ ही धक्कों के बाद उसकी कराहें सिसकियों में बदलने लगी और वो मज़े लेने लगी, 

उसकी चूत अब ज़्यादा गीली हो गयी थी जिससे लंड को अंदर बाहर होने में आसानी होने लगी.

अब समय था पूरी तरह ठप्पा लगाने का, सो लगा दिया… ज़ोर का झटका धीरे से और पूरा लंड चूत के अंदर चेम्प दिया, 

मेरे आँड उसकी गान्ड के पाटों पर टिक गये, उसकी हल्की सी चीख भी निकली पर वो अब इतनी नही थी कि सहन ना हो सके क्योंकि अब उसको दर्द से ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

हाए…भैया…धीरे..ससिईई..उउउहह…ऊओ…बड़ा मज़ा आ रहा है.. चोदो और जोरे से चोदो मेरे रजाआ…मेरी चूत के मालिक.. 

मैने उसके चेहरे की ओर देखा लेकिन उसकी आँखें बंद थी, मे भी दे दनादन लग गया उसकी चूत फाड़ने में.. 

करीब 15 मिनट में भूरी की चूत झड़ने लगी, उसने अपनी कमर उपर उठाई और एक बड़ी सी आअहह… भरके वो झड गयी..

मेरे धक्के निरंतर जारी थे, अब वो थोड़ी कमजोर पड़ गयी थी. तो मैने उसे उठाया और उल्टा करके उसकी गान्ड उठा दी सर तकिये पर गान्ड हवा में.

मोरनी बना दिया मैने उसको और उसकी गोल-मटोल गान्ड को चूम कर थोड़ा जीभ से उसकी गान्ड को चाटा, 

गान्ड के छोटे से छेद को जीभ की नोक से कुरेदा तो उसकी चूत में फिर से सुरसूराहट होने लगी और वो फिर गीली हो गयी.

मैने उसकी चूत के होठों को जो अब थोड़े फूल से गये थे खोला और सीधा निशाना लगा कर अपना लंड पीछे से डाल दिया उसकी टाइट चूत के छेद में,

आअहह….धीरीए…मेरे राज्ज्जजाआ जीिीइ… मारोगे.. भूरी अब फुल मज़े ले रही थी और खुल कर बोल रही थी. मेरी बातों का उसका पूरा असर हुआ था.

मैने अब उसके चुचियों को दोनो हाथों में पकड़ा और दे दनादन धक्के पे धक्के लगाने लगा..

चुदाई का भूत हम दोनो के सर चढ़ चुका था…

दोनो के शरीर थक चुके थे लेकिन मन नही थका, मेरा लंड नही थका, उसकी ताज़ा-2 फटी चूत भी नही थकि वो चुदती रही मे चोदता रहा, 

उसकी चूत पानी बहती रही, मेरा लंड उसमें गोते लगाता रहा…

लेकिन अंत तो हर काम का होता है, हर सुख का होता है… सो इसका भी हुआ और हुआ तो इतना सुखद कि हम दोनो ही उस आनंद के सागर में डूब गये.. और ऐसे डूबे की बाहर निकलने का मन नही हुआ. 
 
दोनो एक दूसरे की बाहों में समाए हुए पड़े रहे ना जाने कितनी ही देर 
हमारी तंद्रा टूटी दरवाजे पर हुई दस्तक से……!

दरवाजे को खटखटाने की आवाज़ सुन कर मेरी गान्ड फट गयी, लपक कर उठा और भूरी को झकझोर कर उठाया,

उसे जब ये पता लगा कि बाहर कोई है, तो वो डर की वजह से काँपने लगी..!

मैने होठों पर उंगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया, और फटाफट कपड़े पहनने के लिए बोला.

मैने भी अपना पाजामा और टीशर्ट डाली, मैने भूरी को कहा- बाहर कोई भी हो तू सटक लेना, कोई रोके तो भी रुकना मत, मे सब संभाल लूँगा. 

वो हां में गर्दन हिलाकर दरवाजे की साइड वाली दीवार से लग के खड़ी हो गयी..!

दरवाजा दोबारा खटखटाया गया और साथ ही मेघा सिंग भाई की आवाज़ आई- अरुण दरवाजा खोल क्या कर रहा है, अभी तक सो रहा है क्या..?

मैने फ़ौरन दरवाजा खोला तो मेरी ओर गहरी नज़र से देखते हुए बोले… इतनी देर क्यों लगा दी दरवाजा खोलने में….

तब तक भूरी साइड से निकल कर गाँव की ओर चल दी…

उसे निकलता देख वो भोंचक्के से कभी जाती हुई भूरी की तरफ देख रहे थे, तो कभी मेरी ओर…!

वो कुछ बोलते उससे पहले मे बोल पड़ा- अरे भैया आप इतनी जल्दी..? पुष्पा भाभी के यहाँ नही गये क्या आज..?

वो- थोड़ा मुस्कराते हुए बोले… तू ना बहुत चालू हो गया है.. है ना ! मे इस भूरी के बारे में कुछ पुछ्ता उससे पहले ही तीर छोड़ दिया वाह बच्चू !

मे हंस पड़ा…हहहे…! वैसे आज जल्दी आ गये आप..!

वो- जल्दी ? बेवकूफ़ साडे चार बज गये..! वैसे ये यहाँ क्यों आई थी..? और दरवाजा बंद करके तुम लोग क्या कर रहे थे..?

मे- कुछ नही ये अपने खेतों में आई थी, यहाँ पानी पीने आई तो थोड़ी देर मेरे पास आके बैठ गयी, कुछ घर परिवार का रोना लेके बैठ गयी.. बस और क्या..?

वो- ह्म…! वैसे तू मुझे चूतिया समझ रहा होगा.. है ना ! तुझे लगता है कि मे तेरी बातों में आ जाउन्गा. 

दरवाजा अंदर से लॉक करके कोई घर परिवार की बातें होती हैं. आएँ ? सच बता क्या कर रहे थे तुम दोनो..?

मे - जब आपने अंदाज़ा लगा ही लिया है तो अब खोद-2 के क्यों पुच्छ रहे हो..?

वो - तू अभी बच्चा है अरुण ! ये अपने मोहल्ले की बात है, किसी तरह खुल गयी तो पता है क्या होगा..?

मे - अब वो भेरनी फिर रही थी, अपनी सील तुड़वाने को तो मे क्या करता, 3 दिन पहले जैसे-तैसे उसको समझा बुझा कर टरकाया था, आज फिर आ धमकी, अब मे भी तो मर्द हूँ. कब तक रोक पाता अपने आप को..?

वो - चल ठीक है, कोई ना ! अच्छा ये तो बता, क्या वाकई में ये कोरी थी..

मैने उनको बिस्तर दिखाया जिस पर खून और वीर्य का बड़ा सा धब्बा लगा हुआ था.. 

वो मेरी पीठ थप थपा कर बोले - शाबास मेरे शेर, चल तूने किसी की सील तो तोड़ी..! यहाँ तो साली कभी कोई तोड़ने को ही नही मिली..!!

मे - क्या भाभी की सील…?

वो थोड़ा गंभीर हो गये.. फिर उदास स्वर में बोले- उस देवी के अलावा और कोई नही मिली तोड़ने को. 

पता नही इतनी जल्दी क्यों चली गयी हमें छोड़ कर.

मे उनके गले लगकर बोला —सॉरी भैया मैने आपको दुखी किया..!

वो - ये सब छोड़, तू घर जा ताई बुला रही हैं, बोल रही थी पता नही क्या कर रहा है, सुबह का नाश्ता करके गया है अभी तक नही आया खाना खाने.

मे फटाफट नाहया और कपड़े पहन कर घर को दौड़ पड़ा.

खाना खाकर देर शाम तक वनहीं मोहल्ले में इधर-उधर उठ बैठ कर समय पास हुआ. मौका निकाल कर भूरी से मिला, उसे 100 का नोट थमाया, 

वो खुश होगयि और पुछने लगी की मेरे आने के बाद क्या-2 हुआ.

मैने उसको समझा दिया, तू चिंता ना कर उन्हें मैने बेवकूफ़ बना दिया है.. तो उसने राहत की साँस ली.

अब तो भूरिया रानी को जेलेबी खाने और चूत चुद्वाने की ऐसी लपक लगी कि बीच रास्ते में हाथ पकड़ के सरसों-वर्सों के खेत जहाँ मौका लगे खेंच ले जाए, 

खूब गान्ड हिला-हिलाके हमच-हमच कर चुदे.

2-3 महीने में ही उसकी गान्ड और चुचियाँ किसी शादी-सुदा औरत जैसी हो गयी, अब तो साली और ज़्यादा मस्त हो गयी थी. उसे चोदने में और ज़्यादा मज़ा आने लगा था. 

ऐसे ही मे एक दिन अपने ट्यूब वेल पर उसे चोद रहा था, एक बार भूरी टाँग उपर करके झड चुकी थी, फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया ज़मीन पर ही.

उसकी गान्ड देख कर मेरा लंड बिचलाइट होने लगा और बार बार पनियाई हुई चूत से निकल निकल कर गान्ड के छोटे से छेद की तरफ मुँह कर लेता.

मैने भी उसकी इच्छा जान आज उसकी गान्ड मारने का फ़ैसला कर ही लिया.
 
वैसे भी थोड़ी भारी सी होकर उसकी गोल-मटोल गान्ड कुछ ज़्यादा ही मस्त हो गयी थी, 

सो घोड़ी बनाके पहले तो उसकी चूत में पेल दिया, और चोदते-2 मैने अपने हाथ का अंगूठा मुँह में लेकर गीला किया और फिर उसकी गान्ड के मुँह पर रख कर कुच्छ देर तो ऐसे ही फिरता रहा, और फिर अचानक से उसकी गान्ड के अंदर पेल दिया.

आययईीीई… गान्ड में क्या डाल दिया..? हयईए.. ये क्या कर रहे हो..?? नीचे से गान्ड हिलाती हुई भूरी बोली..

मे - कुछ नही तू मज़े ले बस.. अब में उसकी चूत के साथ-2 अंगूठे को उसकी गान्ड में अंदर बाहर करता रहा, उसे उसकी आदत हो गयी और दोनो छेद के सेन्सेशन की वजह से एक बार वो फिर जल्दी ही पानी छोड़ गयी.

मैने उसके जांघों के साइड से अपने पैर अडाके उसकी चूत को और चौड़ा दिया जिससे उसकी गान्ड का छेद और क्लियर हो गया.

मैने ढेर सारा थूक उसकी गान्ड के छेद पर ल्हेस दिया तो भूरिया को कुछ शक सा हुआ, और वो बोली- ये क्या कर रहे हो ?

मे - अब तेरी गान्ड मारूँगा भूरी…!!

वो – नही बिल्कुल नही..! गान्ड तो में कोई को भी ना दूं.. मेरा ख़सम माँगेगा तो उसको भी नही दूँगी. 

ये कहकर वो सीधी खड़ी होने लगी तो मैने अपने एक हाथ का दबाब उसकी पीठ पर डालकर उसे रोक दिया.

और फिर आव ना देखा ताव, चूत रस से लथपथ लंड गान्ड के छेद पर रखा और सटाक से पेल दिया आधा लंड उसकी गान्ड में.

हाईए.. डाइय्ाआ..माररररर..गाइिईई…रीईए… जालिमम्म… बैरीईई…फादद्ड़…डियी…मेरिइइ..गाअन्न्ँद्दद्ड…हहूओ…ससुउउ..

वो उठने को फिर जोरे करने लगी मैने उसके दोनो कंधों को दबाए रखा..

फिर उसको समझने लगा.. भूरी बस थोड़ा सा सहन करले.. फिर देखना तुझे चूत से भी ज़्यादा गान्ड मारने में मज़ा आएगा..

वो- सच कह रहे हो तुम..

मे- हां बिल्कुल सच.. तू खुद गान्ड पटक-पटक कर चुदवायेगि.

फिर मैने उसकी पीठ को सहलाया, और चूमा, चाटा.. थोड़ी देर में ही वो शांत हो गयी तो मैने फिर एक जोरे का झटका मारके पूरा लंड उसकी गान्ड में फिट कर दिया और उसकी चूत को सहलाने लगा..

कुछ देर और वो हाए-तौबा करती रही.. पर फिर जब उसको कुछ आराम मिला मैने अपने पिस्टन को मूव्मेंट देना शुरू कर दिया.

थोड़े देर के दर्द के बाद उसका सिलिंडर पिस्टन के हिसाब से सेट हो गया और वो भी गान्ड मटका-2 कर चुदने लगी, अपनी धुन में सिस्कार्ते हुए बड़बड़ाते हुए मज़े लेने लगी.

टाइट गान्ड की गर्मी, लंड ज़्यादा देर नही झेल पाया और फाइनलि मे डकराते हुए उसकी टाइट गान्ड में झड गया, वीर्य की गर्मी से उसकी चूत में सेन्सेशन हुआ और एक बार वो फिर से रस टपकने लगी.

चुदाई करते-2 मेरी साँसें उखड़ गयी थी तो कुछ देर में उसकी पीठ पर ही लदा रहा जैसे भैंसा, भैंस को चोदने के बाद उसपर पड़ा रह जाता है.

सब कुछ शांत होने के बाद वो बोली- आज तुमने मेरी गान्ड को भी नही छोड़ा..! बहुत बुरे हो तुम..मुझसे अब बैठा भी नही जारहा.

मे- सच बताना मज़ा आया कि नही,,?

वो- मज़ा तो आया पर…

पर-वर को मार गोली, और ये एक गोली.. पानी से गटक जा. 15 मिनट के बाद फिर से घोड़ी की तरह कूदने लगेगी.

उसने कपड़े पहने, गोली खाई, और लंगड़ाते हुए घर की ओर चली गयी.

मोहल्ले में ही कुछ महीनों पहले, प्रेमा दादी (मेरे चाचा की रखैल) के सबसे छोटे बेटे महेश (चौथे चाचा) जो मेरे से 2 साल बड़ा था उसकी शादी हुई थी…

मैने बस सुना था कि मोहल्ले के ही किसी के रिस्तेदार की लड़की के साथ ही उसका ब्याह हुआ है.. जब उसकी शादी हुई थी तब मे गाँव में नही आया था, तो मे कभी उसको अभी तक मिल ही नही पाया था. 

एक दिन सुबह-सुबह कोई 5 बजे में अपने खेतों की तरफ जा रहा था, छोटे चाचा की नयी दुल्हन लोटा हाथ में लिए सॉंच के लिए घर से निकली, लंबे कद की हल्की साँवली अपनी 36 की गान्ड मटकाते हुए मेरे आगे आगे चल रही थी.

अपने पीछे किसी के आने की आहट पा कर वो पलटी… कुछ देर मे उसके चेहरे की ओर देखता रहा, वो भी मुझे देख कर खड़ी हो गयी…

मे उसके और नज़दीक पहुँचा, तो उसकी शक्ल कुछ जानी पहचानी सी लगी.

वो मेरे से बोली – क्या देख रहे हो..? पहचाना नही..?

मे - ओ तेरी का…! अंजलि (मीरा के मामा की लड़की) तू..! यहाँ कैसे ? कब आई..? 

वो – मुझे तो एक साल हो गया …!

मे – क्या एक साल..? मैने तो आज देखा है.. तुम्हे.. कहाँ रहती हो ..?

वो – अरे तुम्हें नही पता, अब मे इस गाँव की बहू हूँ… अपने पति का नाम लेकेर.. उनके साथ मेरी शादी हुई है..!

मे – ओह्ह्ह… तो अब तो तुम हमारी चाची हो गयी..!

वो – मे तुम्हारे लिए वही पहले वाली अंजलि ही रहूंगी… अगर तुम चाहो तो.. 

मे – लेकिन चाची में क्या बुराई है.. ? उपर-उपर चाची, नीचे गैल खुदा की.. ये बोलकर हम दोनो ही हँसने लगे.. 

अभी थोड़ा अंधेरा सा ही था, वो बोली – चलो आगे चलते हैं, यहाँ रास्ते में खड़े होकर बात करना ठीक नही है.. कोई भी आ सकता है, 

तो हम दोनो आगे बढ़ गये, और दो खेतों के बीच की पगडंडी पर आकर खड़े हो गये..

दोनो खेतों में बाजरा खड़ा हुआ था, जो सर के उपर था.. वो बोली – चाची सुनने में कुछ अजीब सा लगता है.. और फिर हमारे पुराने सम्बन्ध तो कुछ और ही हैं..!

वो मेरे सामने खड़ी थी, उसकी लंबाई, मेरे से कुछ ही कम थी, उसकी चुचिया जो अब पहले से और ज़्यादा चौड़ी होकर उसके सीने पर किसी दुधारू भैंस की तरह उसकी साड़ी के पल्लू को उठाए हुए मुझे मुँह चिढ़ा रही थी.

मैने उसे आगे बढ़कर अपने हाथ उसके भारी चुतड़ों पर कस दिए, जिससे उसके थन मेरी छाती में धँस गये, और मैने उसके होठों को किस करलिया..

आह्ह्ह्ह… रजाअ.. थोड़ा खेत के अंदर ही चलते हैं.. यहाँ ठीक नही है..

मे – नही जानेमन.. मुझे ऐसे खेत-वेत में चुदाई करने में मज़ा नही आता.. 

तुम्हें तो पता ही है.. अपने को घंटे-दो घंटे चैन से मिलते हैं तभी सही रहता है….!

छोटे चाचा की अपने बड़े भाइयों से बिल्कुल भी नही पटती थी, तो वो सब अलग-2 रहते थे, 

प्रेमा दादी, अपने छोटे बेटे यानी छोटे (महेश) के साथ ही रहती थी.. जो अब गाँव में कभी-2 ही आती थी, 

वहीं अपने ट्यूबवेल पर ही 24 घंटे पड़ी रहती थी. आँखों से भी अब दिखना कम हो गया था.

वो बोली – इतना समय कहाँ से मिलेगा.., मैने कहा – चल मेरे साथ मेरे ट्यूबवेल पर.. तो वो बोली – नहीं घर पर क्या कहूँगी कि इतनी देर कहाँ गयी थी..?

मे – तो फिर जाने दे.. और मे फिर से उसकी गान्ड दबाकर उसके गाल को काट कर चल दिया.. तो उसने पीछे से मेरा हाथ पकड़ लिया.. और बोली – इतने निर्मोही ना बनो राजे..? 

तो फिर और क्या करूँ..? अगर तुझे मुझसे चुद्वाना है, तो इसका हल तू ही निकाल….मैने उसे कहा तो वो कुछ सोच कर बोली – ठीक है, आज शाम को मेरे घर आना तब बताती हूँ..

मे – लेकिन तेरे चाचा से क्या कहूँगा.. ? तो वो हंसते हुए बोली – चाचा तो वो तुम्हारे हैं.. मेरे तो वो, वो हैं..

मे – हां ! हां ! वही… उसको क्या कहूँगा कि मे यहाँ क्यों आया हूँ..? 

वो – तो क्या कोई मिलने नही आ सकता..? कुछ नही तो शादी की बधाई देने ही आ जाना..! कह देना तुम्हें अभी पता लगा है..

मे – वाह रानी क्या आइडिया दिया है..? चल ठीक है ! कितने बजे आउ..? वो बोली – 8 बजे के करीब आना..

फिर मे उसको एक और किस करके अपने रास्ते निकल गया और वो खेत में घुस गयी हँगने के लिए..

मे मन ही मन सोचता हुआ जा रहा था, कि यार ये तो घर बैठे-2 एक रसीली चूत का जुगाड़ हो गया.. भेन्चोद… इसे कहते हैं, खुदा जब देता है तो लहंगा फाड़ के देता है..

सच कहूँ तो अब तक कुछ ही चूतें ऐसी थी, जो ज़्यादा यादगार थी मेरी जिंदगी में, उनमें से एक ये अंजलि भी बड़ा मस्त माल थी, 

रति के बाद एक और हस्तिनी औरत… जवानी से लबालब भरी हुई, एकदम कूर्वी फिगर.. भेन्चोद छुट्टा चूतिया के तो भाग ही खुल गये थे.

लेकिन बेचारी का बाप बहुत ग़रीब था, तो उसने खेती-वाडी देख कर ब्याह दिया अपनी गदर लौंडिया एक ढीले लंड वाले के साथ….

अंजलि की चुदाई के बारे में सोचते-2 सारा दिन कब निकल गया, पता ही नही चला..

शाम को घर आया, अपने चिलम्चि यारों के पास चला गया, एक-दो गांजे के कस लगाए, फक्क्ड़ों की टोली की बातें चल रही थी, उसने उसको छोड़ा वो उसके साथ सेट है.. ऐसी ही.

फिर उनमें से एक बोला – यार मोहल्ले में चोदने लायक तो एक ही माल है आजकल..! मैने कहा- किसकी बात कर रहे हो..?

तो वो बोला – छुट्टा चाचा की चाची… साली क्या गद्दार माल है यार, उसकी गान्ड देखकर लॉडा खड़ा हो जाता है.. तूने नही देखी अभी तक..?

मे – नही मैने तो नही देखी, पर अब तुम लोग इतनी तारीफ उसकी कर रहे हो तो देखनी तो पड़ेगी ही.

दूसरा बोला – मेरा तो मन करता है, कि सारी रात उसकी चूत में लंड डालकर ही सो जाउ..!

ऐसी ही कुछ बातें होती रही कुछ देर और सट्टा लगाते रहे..! फिर मे उठकर अपने घर आया, खाना-वाना ख़ाके छोटे के घर की तरफ निकल गया.

अंधेरी रात थी, बिजली तो अभीतक गाँव में थी नही.. अभी भी लोग लालटेन से ही काम चलाते थे.. मैने दरवाजा खटखटाया…

एक मिनट में ही दरवाजा खुल गया.. वो मेरे सामने खड़ी थी, मैने पुछा महेश चाचा हैं.. तो उसने कहा कि खाना खा रहे हैं..

मैने फुसफुसा कर पुछा – क्या प्रोग्राम है.. ?

वो – थोड़ी देर बाद ये खाना ख़ाके खेतों पर जा रहे हैं, आज वहीं सोएंगे…

मे – क्या सच में…, तो वो मुस्करा कर बोली- हां..! फिर मे अंदर गया, उसके ख़सम से रामा किश्ना की..! और उसके पास ही बैठ गया..

मे – क्या चाचा ! यार चुप चाप शादी करली, कम से कम बता तो देते..

महेश – अरे यार ! तू यहाँ था ही नही, वरना दावत तो मिलती ही.. चलो कोई नही, कल आजाना दोपहर खाना यहीं करवा देते हैं.. 

फिर वो अपनी पत्नी से मुखातिब होकर बोला – अंजलि ! ये अरुण , अपना भतीजा है, शादी पर यहाँ नही था, कल इसकी दावत कर देते हैं.. थोड़ा अच्छा सा खाना बना लेना…! 

तबतक उसका खाना हो गया तो बोला – आज मुझे वारी रखाने जाना है, साली नील गाय बहुत नुकसान कर गयी हैं, तो मे तो निकलता हूँ, 

मैने कहा तो फिर ठीक है मे भी निकलता हूँ, कल मिलते हैं..

महेश – अरे तू बैठ ना ! नयी चाची से बात चीत कर, पहचान बना.. कब-कब मिलते हैं..

मे मन ही मन खुश हो रहा था, और शायद अंजलि भी, लेकिन प्रत्यक्ष में बोला- नही चाचा, पता नही चाची क्या सोचेगी..? 

अकेले में मेरा यहाँ रहना ठीक नही है.. तो चलो में भी निकलता ही हूँ.

महेश – अरे यार ! मुझे आदमी की पहचान है, तू बैठ.. बातें कर.. क्यों अंजलि, तुझे कोई दिक्कत तो नही होगी इससे..

वो – मुझे क्यों दिक्कत होगी, और वैसे भी जैसा मैने इनके बारे में सुना है, बहुत ही अच्छे आदमी हैं.. सबके भले के लिए ही सोचते हैं..

फिर छोटे चाचा तो निकल गया अपने खेतों के लिए और मैने अंजलि को बाहों में लेकर चूम लिया…


मे – और मेरी जान ! कल दावत में क्या खिला रही हो..?

वो हंसते हुए बोली… पहले आज की दावत का तो मज़ा लेलो.. कल की कल देखेंगे..

मैने उसकी गान्ड मसल्ते हुए कहा – यार अंजलि ! तू तो और ज़्यादा मस्त हो गयी है… चाचा के तो मज़े हो गये, भेन्चोद क्या गदर माल मिला है..

वो – छोड़ो ना इन बातों को ! और हमें जो करना है वो करते हैं..फिर उसने मेरे गले में अपनी मांसल बाहें डालकर मेरे होठों का रस चूसना शुरू कर दिया...

मेरी साँसें उसकी साँसों के साथ घुलने लगी, दोनो की मस्ती भारी हरकतें अपना असर दिखा रही थी. 

हम दोनो ही उसके किचेन में खड़े एक दूसरे में समाने की कोशिश में लगे थे, जल्दी ही मैने उसकी सारी उसके बदन से निकाल फेंकी.

ब्लाउस में कसी उसकी भरी पूरी चुचियाँ, ब्लाउस के उपर से छल्क्ने को उतावली दिख रही थीं, 

मैने उसके दोनो उरोजो के बीच अपना मुँह डाल दिया और उनके उपरी भाग को अपनी जीभ निकाल कर चाटने लगा.

मेरा लंड नीचे पाजामे में अकड़ कर ठीक उसकी चूत के उपरी हिस्से पर दस्तक दे रहा था, मानो उसे भी अपनी प्रियतमा के दीदार का इंतेज़ार हो.

मैने उसके होठों को चूस्ते हुए उसकी चुचियों को ब्लाउस के उपर से ही इतनी ज़ोर से मसला कि उसकी कराह ही निकल गयी…

आअहह…..अरूंन्ं…धीरीए…रजाआअ…. इसी के साथ उसके ब्लाउस के दो-तीन बटन चटक कर गिर पड़े….

वो अपने होठ को चबाते हुए बोली – मेरे दूधों की दीवानगी अभी तक गयी नही तुम्हारी…

मे – अरे मेरी रानी… तेरी चुचियाँ हैं ही इतनी कमाल की, जी करता है इन्हें हमेशा के लिए अपने पास ही रख लूँ…!

मेरी बात सुन कर वो खिल-खिलाकर हँस पड़ी और मेरे मूसल को पकड़ कर ज़ोर से मसल्ति हुई बोली – तो बदले में मुझे ये चाहिए.. हमेशा के लिए..

आअहह… ले ले… रानी… ये तो कब्से तेरी कुप्पी में मुँह डालने के लिए बेकरार है….
 
खड़े-2 ही हम दोनो के कपड़े शरीर से अलग होने लगे.. उसकी चुचियों का उठान और आकर देखकर मे बाबला होने लगा, और मैने उन्हें मसलना, मरोड़ना, चूसना शुरू कर दिया..,

एक हाथ उसकी चिकनी चूत जो चिकनी चूमेली हो रही थी, शायद आज ही चिकनाई होगी, उसको सहलाने लगा, और फिर मैने अपनी बीच की उंगली उसके अंदर डाल दी..

अंजलि मेरे लंड को मसल रही थी, और मादक कराहें उसके मुँह से लगातार निकल रही थी.

अब मे उसके आगे बैठ कर उसकी चूत को चूमते हुए चाटने लगा, उसने अपनी एक जाँघ मेरे कंधे पर रखली. 

उसके कुल्हों को दबाते हुए मे उसकी चूत में अंदर तक जीभ डालकर पूरी लगन से चाट रहा था, 

कभी -2 अपने मुँह में उसकी पूरी चूत को भरकर चूसने लगता तो वो मेरे सर को अपनी चूत पर और दबाने लगती.

10 मिनट में उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया, और वो हान्फते हुए झड़ने लगी, मेरा मुँह उसके कामरस से गीला हो गया.

मुझे कोई जल्दी नही थी, पूरी रात हमारी थी, अब मे खड़ा हो गया और उसके होठों को चूसने लगा, वो भी मेरे होठों से अपनी चूत से निकले रस को चाटने लगी.

फिर मैने उसके सर पर हाथ रख कर नीचे बैठने के लिए दबाया, वो मेरी आँखों में देखती हुई नीचे बैठ गयी और मेरा पाजामा और अंडरवेर को नीचे खींच कर अलग कर दिया, 

वो अब मेरे डंडे जैसे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर हिला रही थी.
फिर धीरे से पहले उसने उसको चूमा, और फिर आधा मुँह में लेकर चूसने लगी.
में उसकी मस्त चुचियों को मसलता जा रहा था, कभी-2 उसके निपल जो एकदम कड़क हो चुके थे, उन्हें भी मसल देता, 

जबाब में वो मेरे मूसल को और ज़्यादा अंदर लेकर चूसने लगती.

थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसे गोद में उठा लिया और उसके कमरे में पड़े पलंग पर लाकर पटक दिया.

अब मेरे लिए एक-एक सेकेंड भारी हो रहा था, सो उसके घुटनो को मॉड्कर पेट से लगा दिया और उसकी चिकनी चूत के मुँह पर अपना लंड टीकाया और एक तगड़ा सा झटका लगा दिया.

आआहह….ईीइसस्स्शह…..उफफफफ्फ़….. ध्ीएरीई….मेरीई… राजाआ…. आराम सीई…. डलूऊ…..हां ! ऐसी हिी….आअहह…मज़ाआ…आअ गय्ाआ…क्याअ…

मस्त लंड…है… तुम्हाराअ… हइई…मोरी..मैय्ाआ…. ऊहह…अब..मरूव.. धक्काा….जोर्र्र…सीईए…. 

बड़ी गरम हो रही थी अंजलि.. अपने पैरों को मेरी गान्ड पर कस्के अपने अंदर मुझे सामने की कोशिश कर रही थी…

फिर तो उसकी कमर भी हवा में उछ्लने लगी… और क्या रिदम था उसकी गान्ड का… 
एकदम परफेक्ट टाइमिंग से मेरे धक्कों का सटीक जबाब नीचे से धक्के देकर दे रही थी वो..

सच में इतना मज़ा कभी नही आया, कभी उसकी चूत मेरे लंड को एकदम कस लेती, तो दूसरे पल ढीला छोड़ देती…

20-25 मिनट के कमर तोड़ धक्कों के बाद हम दोनो ही एक साथ अपनी चरम सीमा पर पहुँच गये, और मैने अपने वीर्य से उसकी कुप्पी को लबालब भर दिया.

झड़ने के बाद उसने खुशी में मेरे गाल को चूम लिया और मुझे किसी जोंक की तरह अपने से चिपका लिया…

मज़ा आया मेरी जान… जब मैने कुछ देर बाद उससे पुछा तो उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े…

मे चोंक गया और उसके सर को सहलाते हुए सवाल किया – क्या हुआ.. रानी..? तुम्हारी आँखों में पानी..?

वो – अपनी किस्मत पर रोना आ गया…शादी के बाद आजतक मेरा मरियल पति कभी मुझे पूरा सुख नही दे पाया… दो मिनट में अपना पानी निकाल कर करवट लेकर सो जाता है..

तुमसे पहले जब मिली थी उसके बाद से आज फिर से पूरा सुख मिला है.. प्लीज़ हो सके तो मुझे ये सुख देते रहना…

फिर उसने नंगे ही मेरी गोद में बैठ कर खाना खाया, थोड़ा बहुत मैने भी उसका साथ दिया.. और कुछ देर इधर-उधर की बातों के बाद हम फिर एक बार दीन दिनिया से दूर कहीं बादलों की शैर को निकल पड़े.

पूरी रात उस मदभरी औरत ने मुझे सोने नही दिया और ना खुद सोई…
सुबह 5 बजे हम दोनो ही उसके घर से निकले, वो सॉंच के लिए और में अपने खेतों की ओर…

अब तो गाए-बगाए वो मौका निकाल ही लेती, मेरी बूढ़ी माँ की सेवा के बहाने मेरे घर आजाती, और मौका देखकर अपना प्रोग्राम फिक्स कर लेते..

कभी-2 तो ऐसा भी मौका आ पड़ता कि एक की सर्विस करके निकला कि दूसरी सामने पड़ जाती और वो गिडगिडाने लगती तो उसको भी चोदना पड़ता, उसके बाद मुझे ज़्यादा थकान हो जाती तो घर के काम रह जाते… 

लेकिन में कुछ ले दे कर मजदूरों से अपना काम पूरा करा लेता था… ..!!

घर खेती के काम, साथ-2 में समय निकाल कर अपनी दोनो चेलियों की सर्विसिंग करना.. ऐसे ही समय निकल रहा था….

इस सबके बावजूद भी मेरा रोज़का एक्सर्साइज़, मेडिटेशन करने का नियम नही टूटा था, वो में सुबह 4 बजे उठके ज़रूर करता था, हां कभी कभार मिस भी हो जाता…. 

कुछ नये-2 अनुभव भी होते जा रहे थे, जिनके आधार पर अपने ध्यान को और गहरा करने की कोशिश करता रहता.

खेती के कामों के अलावा देसी कसरत – डंड, बैठक जैसे व्यायाम भी मेरी रोज़ की दिनचर्या थी. 

स्वस्थ रहना मेरा शौक था, भले ही नशे पट्टे की आदत लग गयी थी.
 
नशे के नाम पर दिन में एक बार शाम को दो-तीन चेले चपटों को लेकर दूध और मेवा वाली भंग छन्वाना था, जिससे नशा मेरे शरीर पर हावी नही हो पाता, 

बड़ी मज़े से धन-धन कट रही थी, कि तभी डिस्टिक शहर के नामी गिरामी अग्रिकल्चर कॉलेज में स्टूडेंट्स का एग्ज़ॅम लेने आए ब्रिज भैया… बोले तो प्रोफेसर साब आ धम्के घर पर, और लगे लेक्चर झाड़ने. 

असल में उनकी शादी वाली बात ना मानने की वजह से वो ज़्यादा नाराज़ थे. 

मैने भी उनको जबाब तो दे दिया था और भन्नाये हुए मूड में मे ट्यूबिवेल पर चला आया था, जिसके कुछ ही देर में वहाँ भूरी आ धमकी.. और फिर वही हुआ जो हमेशा से हो रहा था.. 



भूरी के चले जाने के बाद मे अपने अतीत की यादों में खो गया, सारा दिन, सारी रात मे कमरा बंद करके पड़ा रहा, ना कुछ खाया ना कुछ पिया, अपने अतीत की यादों में खोया रहा.

फिर मे एक निश्चय करके उठ खड़ा हुआ, कि अब इस तरह से गुमनामी में पड़े रहना मेरी नियती नही है, अब मेरा यहाँ से चले जाने का समय आ गया है.

में अभी नहा धो कर कपड़े पहन ही रहा था, दिन के कोई 11 बजे थे कि प्रेम भाई का बड़ा बेटा राजू, जो उनकी दो बेटियों के बाद पैदा हुआ था, आया और बोला- 

चाचा जी आपको पिता जी बुला रहे हैं घर पर. मे प्रेम भाई का बड़ा सम्मान करता था…, 

प्रोफेसर महोदय अपना एग्ज़ॅम लेने जा चुके थे.

जब मे घर उनके पास पहुँचा तब वो खाना खाने बैठ ही रहे थे. मुझे देखते ही बोले- सही समय पर आया है, आजा खाना खाले.

मे- नही मे नीचे मा के पास खा लूँगा..

प्रेम- अरे ये भी तो घर ही है, आजा बहुत अच्छी सब्जी बनाई है तेरी भाभी ने, आलू-गोभी की देख.

उनके ज़्यादा जोरे देने पर, मे उनके साथ ही खाने बैठ गया. 

खाते-2 वो बोले, थाने से खबर आई है, हम दोनो को बुलाया है, चल देखते हैं क्या बात है.

मे - क्यों ? अब क्या हो गया…..? 

खैर चलो देखते हैं ये इनस्पेक्टर क्या कहता है. है तो साला बदमाश कहीं कोई लफडा ना कर्दे.

प्रेम - तू बस शांत रहना, अगर वो कुछ तड़क भड़क करे तो सुन लेना दो चार बात. 

वैसे ज़्यादा कुछ बड़ी बात तो नही होनी चाहिए, वो डकैती वाले केस का कोई मामला हो सकता है शायद. 

क़ानूनन तो वो कुछ कर नही सकता हमारे खिलाफ.

इन्ही बातों के बीच हमने खाना खाया, और मे अपने कपड़े चेंज करने नीचे चला गया, तब तक वो बाहर बाइक लेके खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे.

मैने बाइक स्टार्ट की, थाने पहुँचे.. हमें देखते ही वो इनस्पेक्टर मुस्कराते हुए हमारे स्वागत में खड़ा हो गया और बोला-

आइए-2 मास्टर साब ! मे आप लोगों का ही इंतेज़ार कर रहा था, एकदम सही समय पर पधारे हैं आप लोग.

प्रेम भैया उसके सामने बैठते हुए बोले - बात क्या है इनस्पेक्टर साब, हमें यौं अचानक किस लिए बुलाया आपने..? कोई प्राब्लम तो नही है ना..?

इनस्पेक्टर ने बोलने के लिए अपना मुँह खोला ही था कि एक पोलीस की गाड़ी जिसपर लाल बत्ती लगी हुई थी आकर थाने के गेट पर रुकी. 

वो इनस्पेक्टर लपक कर थाने के मेन गेट की तरफ भागा……..!

जब वो वापस अपने ऑफीस में एंटर हुआ तो उसके साथ एसएसपी और एसपी दोनो एक साथ अंदर दाखिल हुए.. 

जिस वर्दी पर एसएसपी की नेम प्लेट लगी थी उस शख्स को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया…!..

अंदर आते ही, एसएसपी ने सीधे मेरी ओर रुख़ किया और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझसे बोले – 

अपना मुँह बंद कर्लो बर्खुरदार.. ! वरना कोई मच्छर या मक्खी अंदर घुस जाएगी.. 

मैने झेन्पते हुए अपना मुँह बंद कर लिया लेकिन मेरी प्रश्नावाचक नज़रें अभी भी उनको ही देखे जा रही थी. 

मे- एसपी साब आप और यहाँ…?

वो- माइ डियर यंगमॅन अब मे एसपी नही एसएसपी हूँ..!

मे- हा..हां.. वही तो मे देख रहा हूँ, कि आपका प्रमोशन कब हो गया ? और उससे भी ज़्यादा हैरानी मुझे आपको यहाँ देख कर हो रही है…

वो - चलो अंदर चल कर बैठते है, तब तुम्हारी सारी शंकाओं को दूर कर देंगे.. ओके.. कम.

फिर हम पाँचों लोग एक ऑफिसर्स कॅबिन कम पोलीस कान्फरेन्स रूम में आकर बैठ गये. 

एसएसपी ने खास कर मुझे अपने बगल वाली चेयर पर बैठने का इशारा किया, उनके दूसरी ओर एसपी थे. 

प्रेम भैया तो आँखें फाडे ये सब देख रहे थे, उनके पल्ले अभी तक कुछ भी नही पड़ा था. 

ऐसा नही था कि वो अकेले ही असमंजस में थे, उस इनस्पेक्टर का भी कुछ ऐसा ही हाल था.

उसको तो शायद एसएसपी के आने का भी अनुमान नही था, उसे सिर्फ़ एसपी का ही पता था इसलिए वो भी हैरान था.

जब सब लोग बैठ गये तो एसएसपी ने बोलना शुरू किया.

एसएसपी - सबसे पहले अरुण मे तुम्हारी शंका का समाधान करना चाहूँगा. 

ये जो मेरे शरीर पर तमगे और एसएसपी की वर्दी देख रहे हो ना ! वो तुम्हारी वजह से ही है.

हम सभी के मुँह से एक साथ निकला- क्या..?

एसएसपी - मुस्कराते हुए- यस..! ये जब मेसी में पढ़ता था तब इसने अपने दोस्तों को लेकर एक ऐसा काम किया जो एक सभ्य समाज के लिए बहुत ही एहम और सकारात्मक होता है, 

फिर उन्होने वो ड्रग्स माफ़िया के सफ़ाए वाली घटना डीटेल में सबको बताई.

एसएसपी ने आगे बोलना शुरू किया - उस घटना का श्रेय पोलीस को भी मिला, चूँकि मे और उस समय के हमारे कमिशनर मिस्टर. रती इन लोगो के साथ पर्षनली इन्वॉल्व थे और हमने इनकी हर संभव मदद की तो सरकार ने हम दोनो का ही प्रमोशन कर दिया, साथ ही ट्रान्स्फर भी दे दिया.

मे- तो क्या कमिशनर साब भी प्रोमोट हो गये..?

एसएसपी- यस ! आंड नाउ ही ईज़ डीआईजी .

मे- क्या..? तो अब वो कहाँ हैं..?

एसएसपी - यहीं..! हमारे ही शहर में..!!

मे - क्या कह रहे हैं आप..? क्या सच में रती साब हमारे शहर के डीआईजी हैं आजकल..?

एसएसपी - एक दम सच.. ! और अब आते हैं मुद्दे पर जिसके लिए हम यहाँ आए हैं.

तुमने कुछ महीने पहले अपने घर पर चढ़ कर आए एक डकैतों के गिरोह का सफया किया था.., 

पोलीस रिपोर्ट के हिसाब से उसमें सभी गाँव वालों ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया.. जो उस समय तुम्हारे भाई ने बयान दिया था.

मे - जी सर, वो यहीं हैं मेरे भाई, प्रेम चन्द जी, टीचर हैं यहाँ स्कूल में.

एसएसपी ने उनसे हाथ मिलाया और बोले - मास्टर साब आप ने अपने घर में एक अनमोल हीरा छुपा रखा है, अब तो उसे बाहर निकालिए..? इतना बोल कर वो मुस्करा दिए.

प्रेम भाई आश्चर्य मिश्रित हसी हंसते हुए बोले - ज़ोहरि तो आप ही हैं ना एसएसपी साब जो हीरे को परख पाए.

एसएसपी - हां तो मे कह रहा था ! कि इनके बयान के मुताबिक ये सब गाँव वालों के सहयोग से संभव हुआ था, 

लेकिन कुछ दिन पहले आपके ही किसी दुश्मन ने यहाँ आकर हमारे इनस्पेक्टर को खबर दी कि ये काम अकेले अरुण ने किया है.

अब चूँकि केस शुरू हो चुका था, सो इनस्पेक्टर अपने एंड से कुछ नही कर सकते थे, तो इन्होने एक लिखित रिपोर्ट एसपी को भेजी, और इन्होने मुझे.

मे अरुण का नाम पढ़ते ही समझ गया था कि ये रिपोर्ट सच ही होगी, इसलिए उस रिपोर्ट को लेकर मे डीआइजी ऑफीस पहुँचा, और जब हमने ये केस डिसकस किया तो उन्होने बस एक ही बात कही. 

इस लड़के को मेरे पास लेकर आओ, अब इसकी ये खूबियाँ देश के काम आनी चाहिए, देश को ऐसी बिलक्षण शक्ति की ज़रूरत है. 

और देखलो मे तुम्हारे सामने बैठा हूँ.

मे - थोड़ा गर्व महसूस करके बोला- सॉरी सर ! लेकिन आपका तरीक़ा मुझे अच्छा नही लगा.

सब मेरी ओर हैरत से देखने लगे कि मे एक एसएसपी से इस तरह से भी बात कर सकता हूँ.

एसएसपी मुस्कुराए और बोले - मे समझ गया कि तुम क्या कहने वाले हो..? 

पर एक तो हम पोलीस वाले ऐसा ही कुछ तरीक़ा समझते हैं, दूसरा हमें तुम्हारे गाँव के बारे में कोई आइडिया नही था.. बट डॉन’ट वरी हम अभी चलेंगे तुम्हारे घर.. 

क्यों मास्टर साब ले चलेंगे ना हमें अपने घर और ये कह कर वो ठहाका मार कर हसने लगे..

मेरी बात का आशय समझ कर वाकी सब भी हसने लगे.

प्रेम - ये तो हमारा सौभाग्य होगा एसएसपी साब की आप हमारे घर आएँगे.

एसएसपी - तो फिर देर किस बात की, चलिए और वैसे भी हमें लौटना है आज ही अरुण को साथ लेकर.. डीआइजी साब से वादा जो किया है हमने…!

हम सब अपने घर पहुँचे – एसएसपी और एसपी की गाड़ियों को देख कर गाँव, मोहल्ले के लोगों में ख़ुसर-फुसर होने लगी.. 
 
जो व्यक्ति थाने में सच्चाई बता कर आया था, वो अति प्रशन्न था, शायद उसको लगा होगा कि अब ये सब गये लंबे समय के लिए जैल में.

एसएसपी और एसपी घर के वाकी लोगों से भी मिले, मेरी माँ के पैर भी छुये उन्होने और आशीर्वाद लेकर बोले- 

माताजी आप धन्य हैं जो आपने ऐसे हीरे को जन्म दिया है..

मेरी माँ की बूढ़ी आँखों में पानी आ गया, उसने मेरे माथे को चूम लिया.

हमने उन्हें चाय नाश्ता कराया, कुछ देर बैठ कर बातें की, और फिर मुझे साथ लिए हम सब निकल लिए, 

विरोधी अब और ज़्यादा खुश लग रहे थे कि फाइनली एक तो लंबा गया.

मैने प्रेम भाई को समझा दिया था, कि थाने में हुई वार्ता का अभी किसी से कोई जिकर ना करें.

मे एसएसपी के साथ शहर पहुँचा, वहाँ जाकर पता चला कि डीआइजी साब किसी दूसरे शहर के दौरे पर निकल गये थे, 

सो एसएसपी ने मुझे अपने आवास पर छोड़ा और अपने अरदालियों को मेरा ख़याल रखने को बोल कर वो अपने ऑफीस निकल गये.

देर शाम कोई 8 बजे उनका फोन उनके बंगले पर तैनात लोगों के पास आया और उन्होने उन्हें हिदायत दी कि उनमें से कोई ड्राइवर मुझे लेकर 1 घंटे में डीआइजी के बंगले पर पहुँचे.

मे जब डीआइजी के सामने पहुँचा तो उन्होने सारे प्रोटोकॉल तोड़कर अपनी सीट से उठाकर मुझे गले से लगा लिया.. और मेरे सर पर हाथ रख कर बोले..! 

वेल डन माइ बॉय.. यू सिंपल्ली आ ग्रेट गाइ..! आइ आम रियली प्राउड ऑफ यू.

बैठो.. और मेरी बात ध्यान से सुनो- 

तुम्हारे द्वारा अंजाम दी हुई दो ऐसी घटनाएँ हैं हमारे सामने जो चीख-2 कर ये कहती हैं, कि इस लड़के की ज़रूरत ऐसे कुछ छोटे-मोटे कामों के लिए काफ़ी नही है, इसे तो देश के लिए किसी बड़े काम के लिए होना चाहिए..!

मे - सर दो घटनाए नही चार, फिर जब मैने ऋषभ शुक्ला के गाँव में हुए मेले के दौरान गोंदिया डाकू वाली घटना, और *****/ रामपुर में आतंकवादियों द्वारा बॉम्ब ब्लास्ट की योजना को फैल करने वाली घटना बताई..

वो मुँह बाए मुझे देखते ही रह गये.. और फिर अनायास ही उनके मुँह से निकल पड़ा - यू आर आ वन मॅन आर्मी..! 

ओह कम ऑन यंग मॅन ! वाइ यू आर वैस्टिंग युवर इनक्रेडिबल इनर्जी इन सच आ स्माल थिंग्स ? 

इस गुम-नामी से तुम्हें बाहर निकलना अब ज़रूरी हो गया है.

एसएसपी कल ही एक फाइल तैयार करो और सेंट्रल होम मिनिस्ट्री को भेजो.. फिर आगे देखते हैं क्या फ़ैसला लेते हैं वो लोग इसके लिए.

मे - क्या करवाने वाले हैं सर मुझसे..?

डीआइजी - अभी कुछ भी कहना संभव नही है मेरे लिए, लेकिन इतना कह सकता हूँ, कुच्छ तो बड़ा सोचा है उपर वाले ने तुम्हारे लिए, अब उसके अगले आदेश का इंतजार करते हैं.

इसी तरह की फिर कुछ पर्सनल बातें की, कुच्छ देर बाद हम तीनों एक फाइव स्टार होटेल में बैठ कर डिन्नर ले रहे थे.

11 बजे हम होटेल से बाहर निकले, मैने अब उनको निकलने के लिए बोला तो वो रुकने के लिए कहने लगे. 

अब पोलीस वालों के माहौल में रात काटना इस समय मुझे सही नही लगा,

और वैसे भी घर पर सभी चिंतित थे, कि पता नही क्या हुआ होगा मेरे साथ…

सो मैने उनको फिर से रिक्वेस्ट की, तो उन्होने अपनी स्पेशल गाड़ी को मेरे साथ भेज दिया.

12 बजे में अपने घर पर था, उस ड्राइवर को चाइ पानी पिलाया और विदा किया.
प्रेम भाई ये जानने के लिए उत्सुक थे कि क्या बातें हुई मेरे और डीआइजी के बीच, 

लेकिन वाकी लोगों को इस विषय में कोई जानकारी नही थी तो उनके चेहरों पर चिंता की लकीरें थीं.

श्यामा भाई तो भड़क ही गये - और दिखा ले हीरो गिरी, अब हो गये ना पोलीस के चक्कर लगना शुरू.. 

मैने कुछ नही कहा और गर्दन नीची करके मन ही मन हँसने लगा.

प्रेम - ये तू क्या बात कर रहा श्याम..? किन चक्करों की बात कर रहा है..? 

उन्होने श्यामा के सर को अपनी उंगली से ठोकते हुए कहा- उसको डाँटने की वजाय, इसका इस्तेमाल कर, 

ये कोई साधारण बात नही है, कि एक एसएसपी हमारे घर आया, इतने बड़े अधिकारी ने ताई के पैर छुये…

इसे पर्षनली अपने साथ बिठाकर डीआइजी से मिलवाने ले गया, और तू इसे खाली हीरो गिरी मान रहा है.

तो सुन ये कोई ऐसा वैसा फिल्मों वाला हीरो नही है…, 

जहाँ हम सब दुम दबा कर बाहर खड़े उन बदमाशों के जाने का इंतेज़ार ही कर रहे थे, वहीं इस अकेले ने उन सबको मारा ही नही, अपने घर की इज़्ज़त भी बचाई. 

पुच्छ अपनी भाभी से क्या किया था उन लोगों ने इन सबके साथ, बोलते-2 उनकी आँखों से पानी बरसने लगा.

ये सच में एक देवता पैदा हो गया है हमारे घर में, हो सकता है हमारे पुरखों ने कोई पुन्य करम किए होंगे पहले. 

काश ये मेरा सगा भाई होता..? लेकिन तुम लोगों ने कभी इसके एहसानो को नही माना जो इसने इस घर पर किए हैं, उल्टा उसको एक मजदूर की तरह रखते हो.

मे - अब शांत हो जाइए भैया, मेरे लिए आप किसी से कुछ मत कहिए प्लीज़..! 

मे नही चाहता कि इस घर में मे अपने बचे खुचे दिन हम आपस में कहा-सुनी में बितायें.

श्याम – क्यों कहीं जाने वाला है ? कहाँ तेरे लिए मिल चल रहे हैं जहाँ तुझे एमडी रखने वाला है कोई..?

मे- मुझे किसी मिल में एमडी बनाने की कोई ज़रूरत नही है, मेरे लिए ईश्वार ने जो भी सोचा होगा वो मे कर ही लूँगा, 

पर अब ज़्यादा दिन आप लोगों पर बोझ नही बनूंगा, इतना वादा करता हूँ, अब आप सब लोग जाइए और सो जाइए प्लीज़…….. 

दूसरी सुबह प्रेम भाई ने मुझे पुछा कि क्या बात हुई वहाँ..? 
तो मैने उन्हें बताया कि अभी कुछ डिसाइड नही हुआ है, फाइल जाएगी, अब देखते हैं क्या होता है..

प्रेम – अरे देखना बहुत अच्छा ही होगा तेरे लिए, और इन ना-शूक्रों से जल्दी ही छुटकारा मिलेगा. 

मे - भैया मे आपके हाथ जोड़ता हूँ, आप मेरी वजह से आइन्दा किसी को कुछ नही कहेंगे जब तक मे यहाँ हूँ. वादा करिए..!

प्रेम - ठीक है तू जो कहेगा वैसा ही होगा, वैसे इस गधे को अकल है या नही, बस जो मुँह में आता है बोल देता है. 

अरे अंधे को भी दिख रहा है कि इतने बड़े-2 अधिकारी आइएएस, पीसीएस रंक के जिस लड़के से मिल रहे हैं अपने साथ बिता रहे, उसकी कुछ तो वॅल्यू होगी, हम कभी सोच भी नही सकते अपने लिए ये सब.

मे - जाने दीजिए.. हो सकता है उनका सोचने का नज़रिया कुछ अलग हो, कुछ डर हो उनके मन में.
 
Back
Top