Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 11 - SexBaba
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Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

मैने उनकी ओर देखा तो आँखों में वही चिर परिचित भाव दिखाई दिए..

मैने डिसाइड कर लिया था कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??

मैने उनकी ओर देखा तो आँखों में वही चिर परिचित भाव दिखाई दिए..

मैने डिसाइड कर लिया था, कि अब खुलके बात कर ही लेनी चाहिए आख़िर पता तो चले कि इनके मन में है क्या…??

मे- भाभी ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे आप मुझसे कुछ कहना चाहती हैं पर कह नही पा रही.

वो कुछ सकपका सी गयी, बहुत देर तक कुछ बोल नही पाई, मेरी नज़र उनके खूबसूरत लेकिन सहमे हुए से चेहरे पर ही टिकी थी. 

नज़र नीची किए वो असमंजस की स्थिति में ही खड़ी रही, मेरे सीधे-2 सवाल की उनको आशा नही थी शायद, और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की हिम्मत भी नही जुटा पा रही थी.

मैने फिर अपना सवाल दोहराया, तो वो मेरी आँखों में झान्कति हुई बोली- जब आपने मेरी नज़रों को पढ़ ही लिया हैं तो ये भी पढ़ा लिया होगा कि मे चाहती क्या हूँ..?

मेरे सवाल के उपर उनका सवाल सुन कर मे हड़वाड़ा गया..! और सोचने लगा कि ये तो अपनी इच्छायें मेरे ही मुँह से कहलवाना चाहती हैं, 

मैने मन ही मन कहा - मान गये भाभी काफ़ी तेज हो.. पर चलो कोई नही हम भी किसी से कम नही. अब मुझे भी इस सवाल जबाब के खेल में मज़ा आने लगा था.

मे- क्या भाभी आप भी ! मे कोई जादूगर तो हूँ नही जो आपके अंतर्मन को पढ़ सकूँ..?

वो मेरे हाथों को चूमकर बोली- जादूगर तो तुम हो ही तभी तो मेरा मन तुम्हारी ओर खिंचा चला जा रहा है..?

मे भौंचक्का देखता ही रह गया…! अभी कुछ कहना ही चाहता कि उपरवाले ने मेरी सुन ली और भाभी उपर आ गई, हम दोनो थोड़ा दूर हट कर खड़े हो गये और बच्चों से खेलने लगे.

जान बची और लाख उपाए, लौट के बुद्धू नीचे आए….!!
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हमारी कंपनी का प्रॉडक्ट कुछ ऐसा था कि उसको फाइनल पॅक करने से पहले फिज़िकली चेक करना ज़रूरी था एक-दो बार मॅन्यूयेली ऑपरेट करके, और ये काम क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमेंट के अंडर ही था, इसके लिए मॅनपवर की तो ज़रूरत थी लेकिन टेक्निकल होना ज़रूरी नही था. 

एक टेक्निकल सूपरवाइज़र की देख रेख में उस काम के लिए अधिकतर लड़कियों को ही रखा गया था.

मे प्रॉडक्ट इंजिनियरिंग मे था जो फर्स्ट फ्लोर पर था, सेपरेट्ली. हमारे डेप्ट्ट से निकलते ही पर्चेस और उसके पहले अकाउंट्स. 

फर्स्ट फ्लोर पर सबसे लास्ट ऑफीस था हमारा.

एक सीनियर ड्रॅफ्ट्स्मन के साथ 3 और लड़के थे मेरे साथ, एक मॅनेजर जिसको मे रिपोर्ट करता था.

अकाउंट्स मे 5-6 लोग थे, जिनमें दो एक्सपीरियेन्स्ड लेडी थी, एक शादी शुदा पंजाबी कुड़ी.

शाम को छुट्टी के बाद सभी लड़कियाँ एक मिनी बस से जाती थी, नीचे टेस्टिंग में काम करने वाली लड़कियों में से एक-दो आधा घंटा पहले उपर आजाती थी अकाउंट्स में उन लॅडीस के साथ बैठने.

दोनो ऑफिसस के बीच में एक ट्रॅन्स्परेंट ग्लास का पार्टाइज़ेन ही था जिसमें से सब कुछ आर-पार दिखता था.

वैसे तो कभी-कभार अकाउंट्स की लॅडीस के साथ हँसी मज़ाक भी होता रहता था, हम सबका. 

हमारे मॅनेजर के अंडर में आर&डी भी था तो वो ज़्यादातर शाम के वक़्त नीचे ही होता था.

कुच्छ ही दिनो में मैने ओब्ज़र्व किया कि नीचे से जो लड़कियाँ उपर आकर बैठती थी उनमें से एक लड़की जिसका नाम टीना था, और कंपनी से 15-20 किमी पर उसका गाँव था, जो उस मिनी बस के रूट पर ही पड़ता था, वो हमारे ऑफीस की ओर ही देखती रहती थी. 

एक दिन मेरे र्राइव. डीएम (ड्रॅफ्ट्स्मन) रोहीला ने मुझसे कहा कि देखो वो लड़की हमारे ऑफीस की तरफ ही देखती रहती है. 

रोहीला शादी शुदा था लेकिन था बड़ा थर्कि टाइप, तो पहले तो खुद ने कोशिश की उसे पटाने की लेकिन जब उस लड़की ने उसे कोई घास नही डाली तब उसने मेरे को बताया.

अगले दिन जब वो उपर आई और हमारी ओर देखने लगी तो रोहीला ने मुझे कुहनी मारकर इशारा किया, 

मेरा ध्यान भी बाहर की ओर गया तो वो मेरी ओर ही देख रही थी, कुछ देर तो देखती रही फिर अपनी नज़रें नीची करके मुस्करा दी. 

रोहीला ये सब देख रहा था सो फट से बोला- अरे यार ये तो तेरे को ही लाइन दे रही है. 

मैने कहा छोड़ ना क्या फालतू कामों में ध्यान रहता है तेरा, अपना काम किया कर वरना मॅनेजर को बोल दूँगा समझा, 

भेह्न्चोद शादी-शुदा होके ऐसी बातों में ही लगा रहता है, तो वो कुछ डर गया और अपने काम में लग गया.

थोड़ी देर बाद फिर मैने जब उधर देखा तो पाया कि वो हमारी ओर ही देख रही थी, मे कुछ मिनट तक उसको ही देखता रहा तो वो मुस्करा दी और नज़र नीची करके जाने लगी. जाते-2 भी एक-दो बार चेहरे पर मुस्कराहट लिए मूडी.

अब यहाँ उसके हुश्न का विवरण देना भी बनता है, किसी ने अगर हरियाने की छोरियों को देखा हो तो उनको ज़्यादा एक्सप्लेन करने की ज़रूरत ही नही. उनका रंग रूप एक अलग ही लालिमा लिए होता है, 

उपर से उसका साँचे में ढला 32-28-33 का बदन, लंबाई साडे पाँच की, चाल में एक अलग सी थिरकन, जब भी तिर्छि नज़रों से देखती थी, किसी के भी दिल पर च्छूरियाँ चल जायें.

शायद ही कोई सीनियर, जूनियर स्टाफ या वर्कर होगा कंपनी में जो उससे चोदना ना चाहता हो सिवाय एक मेरे ऑफीस के सुरेश को छोड़ कर, वो तो साला पूरा संत ही था. 

बस उसे तो अपने शरीर की ही चिंता रहती थी, लाल सुर्ख सांड, चौड़ी छाती, शेर जैसी चाल लेकिन लड़कियों के मामले में एकदम ज़ीरो. पूरा ब्रह्मचारी था वो, औरत जात से 10 फुट दूर ही रहता था.

अपना ऐसा कोई सिद्धांत था नही, अगर कोई वाकई में प्यासी है और वो सामने से गुज़ारिश करे तो दिल पिघल ही जाता था आख़िरकार.

सो उसके कुछ दिनो की कोशिश के बाद पिघल ही गया, उपर से उसका रूप लावण्य ऐसा जान मारु था कि खींच ही लिया उसने अपनी ओर…

अब मेरा भी मन करने लगा उसे देखने का, ना जाने क्यों साडे 4 बजते ही मेरी नज़र उसी ओर चली ही जाती..

जितनी देर वो वहाँ रहती हम दोनो की नज़र एक दूसरे में ही खोई रहती किसी-ना-किसी बहाने. कहते हैं ना की इश्क और मुश्क छिपाये नही च्छुपता. 

उन अकाउंट की लेडी’स को पता लग ही गया, और धीरे-2 सारी को में ये बात जाहिर हो गयी, जबकि हमें अभी तक एक दूसरे को टच करने का भी मौका नही मिल पाया था.

इसमें उनमें से एक लड़की ने हमारी मदद की, वो काम का बहाना करके देर तक रुकने लगी, मे तो अपने पर्सनल स्कूटर से ही जाता था सो मुझे तो आने-जाने का कोई प्राब्लम नही था. 

पहले दिन वो अकेली ही रुकी और जैसे ही छुट्टी के बाद सब चले गये तो वो मेरे ऑफीस में आई और उसने उसका लेटर मुझे दिया और मुझसे रिप्लाइ देने को कहा.
 
मैने वो लेटर लिया और पढ़ा, ये मेरा पहला अनुभव था जब मे किसी लड़की का लव लेटर पढ़ रहा था क्योंकि अभी तक तो सभी फिज़िकल लव ही हुए थे. 

उसके लेटर की भाषा अपनी ज़्यादा पल्ले नही पड़ी, और उसको बोल दिया कि आके सीधे-2 बात करे जो भी करनी हो.

दूसरे दिन उसने उसको भी रोक लिया और छुट्टी के बाद मेरे ऑफीस में भेज दिया, वो शरमाती-सकुचती मेरे पास आई, मैने उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा, तो वो भी नीची नज़र करके मुस्कराने लगी.

मे अपनी सीट पर बैठा था वो मेरी बगल में आकर खड़ी थी..मैने उसका हाथ थामा.. तो वो कुछ सिहरति गयी..!

मैने उसका हाथ थामकर पुछा- टीना ! क्या काम था मुझसे..?

वो मेरी ओर सवालिया नज़रों से देखने लगी..! मानो पुच्छ रही हो कि तुम्हें नही पता..?

वो तुमने शीतल को लेटर दिया था ना कल… कोई काम था..? मुझे तो कुछ समझ में आया नही..? मैने उसे परेशान करने की कोशिश की ! 

वो कुछ नाराज़ सी दिखाई देने लगी…लेकिन कुछ बोली नही…!

मे- कुछ बोलती क्यों नही..? क्या गूंगी हो..? 

एकदम मेरी ओर गुस्से से देखा उसने ! और अपना हाथ झटक के जाने लगी. मैने झट से उसे पीछे से पकड़ा और खींच लिया अपनी ओर. 

झटके की वजह से वो सीधी मेरी गोद में आ गिरी. मैने उसके कान में कहा- देखो मे सीधी-सादी भाषा ही समझता हूँ, ये लेटर वेटर के चक्कर मेरी समझ से बाहर हैं, 

इसलिए जो भी कहना चाहती हो सीधे-2 कह दो.

एम्म…मे कुछ नही कहना चाहती…! छोड़ो मुझे प्लीज़.. वो मेरी गोद में कसमसा कर बोली.

मे- तो यहाँ मेरे पास क्यों आई थी..? और मैने उसके गाल पर एक किस कर दिया. 

वो मुझसे छूटने का नाटक करने लगी, लेकिन मन में उसके मेरी गोद में बैठे रहने का ही था. 

जब वो फिर भी कुछ नही बोली तो मैने फिर कहा.- क्या तुम मुझे पसंद करती हो..? 

उसने अपनी गर्दन झुका ली जैसे कहना चाहती हो की हां.. मे तुम्हें पसंद करती हूँ लेकिन मुँह से कुच्छ नही कहा.

मैने जानबूझकर उसको सताते हुए कहा- ठीक है ! अगर नही पसंद करती तो कोई बात नही, छोड़ो इस बात को यही ख़तम करते हैं....

और मैने उसे अपनी गोद से उठने का इशारा किया तो वो बहुत ही नीची आवाज़ में बोली- क्या आप मुझे पसंद करते हैं..? 

मे – मेरी पसंद ना पसंद से क्या होता है ? जब तुम ही मुझे पसंद नही करती तो…!

उसने मेरे पास आने के बाद से पहली बार मेरी आँखों में देखा और बोली- मे अगर ये कहूँ कि आप मुझे बहुत पसंद हैं तो..?

मे- तो..तो…तो ! और मैने उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके होंठ चूम लिए… और कहा- तो मेरा जबाब ये है.. ! पसंद आया हो तो तुम भी इसका जबाब दे सकती तो.. !

वो एकदम शरमा गयी, शायद उसे मुझसे ये उम्मीद नही थी या ये उसका पहला किस था जो किसी ने किया हो उसके होठों पर..! और वो उठकर तेज़ी से भागी.. 

लेकिन ऑफीस के गेट पर पहुँच कर ठितकी और पलट कर आई और झटके से उसने मुझे किस किया और चली गयी… मे मन ही मन मुस्कुराता हुआ थोड़ी देर अपनी सीट पर बैठा रहा.

जब वो दोनो चली गयी, तो मैने भी अपनी दुकान बंद की और घर चला आया.

एक कहावत है…!! घर खीर तो बाहर भी खीर…!! 

घर पहुँचा तो ताला लगा पाया, अब ये सब लोग कहाँ चले गये..? लेकिन मेन गेट खुला था सो गॅलरी से होकर अंदर गया और आँगन में से ही इंद्रमनी भाई साब को आवाज़ दी, 

कुछ देर में कोमल भाभी अपने बेडरूम से बाहर आई, जब मैने पुछा की बाहर ताला कैसे है, तो उन्होने बताया-

इनके स्टाफ के ठाकुर साब जो दूसरे टाउन में रहते हैं, आज उनकी लड़की की शादी है, उसमें सब लोग गये हैं, माजी की वजह से मुझे यहीं रहना पड़ा है, वरना मे भी जाती.

मैने किचेन साइड का गेट खोल कर अपने घर में गया, फ्रेश होकर कपड़े चेंज किए, बैठा ही था पलंग पर की वो चाइ लेकर आ गयी.

वो- लो चाइ पिओ ! और चाइ मुझे पकड़ा कर वहीं पलंग पर मेरे बाजू में बैठ गयी, फिर मेरी ओर देख कर बोली- खाना कितने बजे खाओगे तो मे उसी हिसाब से आपके लिए खाना बना दूँगी. 

मैने उनकी ओर एक नज़र डाली और बोला- जब आप लोग खाओ, उसी टाइम मे भी खा लूँगा इतना कह कर मैने चाइ का एक सीप लिया.

मे गर्दन झुका कर चाइ पी रहा था, उनकी नज़र मेरे उपर ही घड़ी थी. अचानक उनका हाथ मैने अपनी जाँघ पर महसूस किया, तो मेरी नज़र पहले जाँघ पर गयी और फिर उनकी ओर देखने लगा, 

वो मुझे ही घुरे जा रही थी जब मैने उनकी ओर देखा तो वो बोली- भाई साब आपने उस दिन की मेरी बात का जबाब अभी तक नही दिया…!

मे- कोन्सि बात भाभिजी…?

वो- वही, कि क्यों मेरा दिल आपकी ओर खिंचता जा रहा है ? क्या आप कोई जादूगर हो..?

मे- अपने दिल को काबू में करिए भाभी जी, आप शादी-सुदा हैं और ये हम दोनो के लिए अच्छा नही है…! किसी को पता चला तो क्या होगा ? ये तो सोचिए...!

वो- बहुत सोचा..! लेकिन कुछ सूझा ही नही, ये दिल आपकी बाहों में आने को मचलता है, अब आप ही बताओ मे क्या करूँ..?

मे- आप बहुत सुंदर हैं भाभी, सच मानिए अगर आप जैसी औरत मुझे तो क्या जिसके भी नसीब में हो वो बहुत भाग्यशाली होगा, लेकिन…..!

वो- लेकिन क्या..? मे तो आपको सामने से आपकी बाहों में सामने को ब्याकुल हूँ फिर क्यों दूर भाग रहे हो…?

मे- पता नही क्यों आपके साथ उस तरह का रिस्ता बनाने को दिल तो कहता है, लेकिन दिमाग़ कहता है कि ये ठीक नही है..!

वो- दिलों की प्यास दिमाग़ से नही बुझती अरुण…! प्लीज़ अपने दिल की मानो और मुझे प्यार दो, मे तुम्हारा प्यार पाने को तरस रही हूँ.. 

प्लीज़ मुझे प्यार करो, और मेरे गाल पर हाथ रख कर सहला दिया उन्होने.

मैने चाय का खाली प्याला टेबल पर रखा और उनकी कमर में हाथ डाल कर अपने से सटा लिया…! 

उनके 34 साइज़ के चुचे मेरे सीने में दब गये.. आहह.. क्या एहसास था.. शरीर से मादक महक फूटकर मेरे नथुनो में समा रही थी, उनकी आँखों में वासना के लाल डोरे तैर रहे थे.

ओह्ह्ह.. अरुण मुझे प्यार करो…! मे प्यासी हूँ..! मे चोंक कर उनकी ओर देख रहा था.. ! वो बोली- ऐसे क्या देख रहे हो..? 

मे- क्या भाई साब आपकी प्यास नही बुझा पाते..?

वो- ओह्ह्ह अरुण ऐसे समय उस नामर्द इंसान का नाम लेकर समय बर्बाद मत करो.. आअहह.. मुझे अपनी बाहों में भींच लो, मसल दो मेरे बदन को.. मे बहुत प्यासी हूँ.
 
मे- नामर्द..? ये आप क्या कह रही हैं..? इतना हॅटा-कट्टा आदमी नामर्द..? 

वो- अरे वो देखने में ही हट्टा कट्टा है, बिस्तर पे पहुँचते ही हिज़ड़ा हो जाता है, नामर्द साला.., मुझे उससे नफ़रत सी होती जारही है, लेकिन क्या करूँ मर्यादा वस छोड़ भी तो नही सकती उसे.

ओह्ह्ह.. अब बताओं में समय बर्बाद ना करो मेरे राजा.. मसल डालो मुझे.. और मेरे होठों को चूसने लगी…

वो मेरे से जोंक की तरह चिपक गयी, मैने उस वासना की आँधी यौवन से भरपूर कोमल भाभी को पलग पर धक्का देके गिरा दिया और चढ़ बैठा उसके उपर..!

उसके रस भरे होठों का रस निकालते हुए, उसके गदराए दशहरी आमों को बुरी तरह मसल डाला.., 

होठ मेरे मुँह में ही थे, लेकिन उसके चेहरे के एक्सप्रेशन बता रहे थे कि वो मज़े युक्त दर्द में थी.

होठ चूस्ते -2 मैने उसके ब्लाउस को खोल दिया, आअहह… क्या गोरी-2 गोलाइयाँ जो मात्र 1/3 ही अब उसकी ब्रा के अंदर थी, उसके कान के नीचे गले को अपनी जीभ से चाटा और उसकी ब्रा के उपर से ही उसके कड़क चुचकों को उमेठ दिया.

आअहह….हीईिइ… आराम सीई…जानू…

बड़ी मस्त माल हो भाभी, कैसे संभालती हो अपनी जवानी को…? मैने उसके गले को चूमते हुए कहा.

आह…ईीइसस्स्शह….क्या करूँ… पूरी रात करवट बदलते निकल जाती है, वो निगोडा कुछ करना भी चाहे तो ये बुढ़िया कान लगाए रहती है, और बीच-2 में आवाज़ें देती रहती है.

मे तंग आ गयी हूँ अपनी इस जिंदगी से, कभी-2 तो जी करता है, मर ही जाउ.

मैने उसके ब्रा को भी निकाल दिया और उसकी साड़ी भी खींच दी, और उसके चुचकों को उंगलियों के बीच में दबा कर खींचा और बोला- ऐसा सोचना भी मत, शूसाइड किसी बात का हल नही होता, 

वो सिसकती हुई बोली- आहह…सीईईईईईईईई… यही सोच कर रह जाती हूँ..!

अब मैने उसकी एक चुचि को अपने मुँह में भर लिया और पूरी ताक़त लगा कर एक बार वॅक्यूम पंप की तरह सक किया. 

ना चाहते हुए भी एक जोरदार मादक आहह…उसके मुँह से निकल गयी और अपना हाथ मेरे सर पर रख कर सहलाने लगी.

कहाँ से सीखा ये सब..? औरत को कैसे मज़ा मिलता है, कोई तुमसे सीखे.

मैने उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके कड़क हो चुके निपल को हल्के दाँतों से चबा दिया और दूसरे को हाथ से मसल्ने लगा.

उसकी सिसकियाँ और मादक हो उठी और मेरे सर को अपनी चुचि पर ज़ोर से दबाने लगी.

मेरा एक हाथ उसके पेटिकोट के नडे पर चला गया और उसको खींच दिया, अब उसी हाथ को उसकी पेंटी के उपर ले गया, तो पाया की वो पूरी तरह भीग चुकी थी उसके चूत-रस से.

मे- ओह भाभी, आपकी रामदुलारी तो कितन पानी छोड़ रही है, मेरा हाथ गीला हो गया, और ये कह कर अपने हाथ को सूंघने लगा.

बड़ी प्यारी स्मेल थी उसके रस की फिर मैने उसको सूँघाया और बोला- देखो कितना अच्छी सुगंध है आपके रस की, कभी सूँघी है.

उसने मेरे कंधे पर अपना मुँह रख कर शरमाते हुए कहा, नही ! आज पहली बार ही सूँघी है.

मे- है ना मस्त..! और फिर उसके होठ चूसने लगा और हाथ को उसकी पेंटी के अंदर डाल कर उसकी गीली चूत को सहलाते हुए एक उंगली अंदर कर दी.

आह्ह्ह्ह…अरुण…मेरे रजाअ.. और ना तरसाओ मुझे… ससिईई…उफ़फ्फ़.. समा जाओ मुझमें..अब.

अब मैने उसके पेटिकोट को निकाल कर पलंग के नीचे फेंक दिया और पेंटी निकाल कर उसकी हल्के-2 बालों वाली थोड़ी फूली हुई चूत को देखने लगा.

उसने शरम से अपने हाथों से चेहरे को धक लिया..!

मे- आहह.. कितनी प्यारी चूत है आपकी, जी करता है इससे खा जाउ..?

वो- आह…तो खा जाओ ना..! रोका किसने है, आज से इसपर सिर्फ़ आपका ही अधिकार है.

उसके घुटनों को मोड़ कर उसकी चूत को एक बार जीभ से चाटा, मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गयी और मुँह से एक जोरदार सिसकी निकली. 

दो तीन बार ऐसे ही उसकी चूत को चाटा और फिर उसके क्लिट को अपने होठों में दबा कर चूसने लगा और अपनी दो उंगलियाँ उसके सुराख में डाल कर अंदर-बाहर करने लगा.

कोमल अपनी कमर को हवा में उचका-2 कर उसको मटकाने लगी, हल्की-2 सिसकियाँ उसके मुँह से बदस्तूर जारी रही.

उसने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा लिया, कुछ ही देर में उसकी चूत पानी छोड़ने लगी और अपनी कमर को हवा में लहरा कर झड़ने लगी.

जब मैने उसका सारा पानी चट कर गया तो उसने मुझे पकड़ कर अपने उपर खींच लिया और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर अपने रस का टेस्ट लेने लगी.

आह्ह्ह्ह… सचमुच तुम कमाल के हो अरुण, जीभ से ही इतना मज़ा दे दिया मुझे कि कभी नही मिला था अब तक, तो जब तुम्हारा वो जाएगा अंदर तब कितना आएगा..?

मे – क्या जाएगा और किसके अंदर..? 

वो- अरे समझा करो..! वही जो इस समय मेरी जांघों पर ठोकरें लगा रहा है, 

उसका नाम बोलो मेरी जान तभी मिलेगा वो अब…!

अरे वोही..आपका एल.ल्ल..लू..न्ड.. और क्या..?, तो वो किस्में जाएगा ये लगे हाथ बता दो..

तुम बहुत शैतान हो.. चलो अब ज़्यादा बातें मत बनाओ, और जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में डालो, बहुत फडक रही है बेचारी..

मैने अब देर ना करते हुए, अपना लंड जो अब बिल्कुल लोहे जैसा सख़्त हो चुका था, उसकी रस से गीली हुई पड़ी चूत पर लगाया और एक-दो बार उसके उपर रगड़ा,

उसकी मस्ती में आँखें बंद हो चुकी थी. मैने अपने सुपाडे को उसके छेड़ पर रख कर एक झटका मारा और मेरा आधा लंड उसकी चूत में घुस गया. 

उसकी चूत शायद मेरे लंड के हिसाब से छोटी थी, सो उसके मुँह से दर्द भरी आहह.. निकल गयी.

वो ये नही चाहती थी, कि में उसके दर्द को समझ कर अब रुकने की कोशिश करूँ सो उसने फ़ौरन अपने होठ भींच लिए और दर्द को पीने की कोशिश करने लगी.
 
अब मैने एक और तगड़ा सा धक्का मारा और मेरा पूरा 8” लंबा और ख़ासा मोटा-ताज़ा लंड उसकी चूत में जड़ तक समा गया, 

लाख कोशिश के बावजूद उसकी चीख निकल गयी, जिसे उसने जल्दी ही फिर से अपने मुँह पर हाथ रख कर दबा दिया.

लेकिन दर्द कुछ ज़्यादा हुआ होगा सो उसकी आँखों से दो बूँद पानी की निकल पड़ी.

भाभी ! दर्द ज़्यादा है.. मैने उसको पुछा तो उसने हामी भरते हुए कहा- आपका मूसल कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है, इतना पहले कभी गया नही, पर आप चिंता मत करो, मे मॅनेज कर लूँगी.

कुछ देर उसकी चुचियों से खेलता रहा, और उसके गालों को चूमा, जब उसने आगे बढ़ने का बोला तो मैने भी धक्के लगाना शुरू कर दिया.

कुछ ही देर में उसकी चूत ने एक बार और गीला कर दिया पर में लगा रहा, और ताबड-तोड़ धक्के मारता रहा, अब वो भी नीचे से अपनी कमर उछालने लगी. 

हम दोनो को ही बहुत मज़ा आ रहा था, और दीन दुनिया से बेख़बर लगे थे चुदाई में.

जितना मैने आज तक एक्सपीरियेन्स लिया था सेक्स करने का वो सब मे उसके उपर आजमा रहा था.

वो धीमी आवाज़ में सिसकियाँ भरे जा रही थी, मे उसे अपने मनमाने तरीके से रौंदे जा रहा था,

कभी मे उसके उपर तो कभी वो मेरे उपर.. 1 घंटे तक ना मैने हार मानी और ना उसने, इस दौरान ना जाने वो कितनी बार झड़ी होगी, 

मे भी दो बार झड चुका था. जब हम दोनो के शरीर शीतल पड़ गये, तब जाके वो वासना का तूफान थमा, जो शायद कुछ समय के लिए ही था.

कुछ देर यौंही पड़े रहने के बाद वो उठी और मेरे सीने पर अपना सीना टिका कर मेरे गले लग कर सुबकने लगी…!

मैने उसकी पीठ पर हाथ फिरा कर पुच्छा- क्या हुआ भाभी आप रो क्यों रही हो..?

वो- ये सकुन के आँसू है अरुण, जो अब तक ना जाने कब से दबे पड़े थे मेरे अरमानों के नीचे, आज जब पूरे हुए तो इनका भी संयम टूट गया और बाहर आ गये. 

मुझे ऐसे ही प्यार करते रहना प्लीज़… वरना मे कुछ ग़लत कर बैठूँगी.

मे- कोशिश करूँगा, कि आपको वो सुख दे सकूँ जिसके लिए आप तरस रहीं थी. 

लेकिन मेरी भी कुछ मरियादाएँ हैं उनका आपको ख्याल रखना पड़ेगा. 

मे नही चाहता कि मेरी वजह से मेरे भाई के सम्मान को कोई ढेस पहुँचे.

वो- ये मे भी कभी नही चाहूँगी, मे भी भाई साब को अपना बड़ा भाई मानती हूँ. आप चिंता ना करो हम दोनो ही इन बातों का बखूबी ध्यान रखेंगे.

फिर वो उठके खाना बनाने चली गयी, मुझे खाना खिलया, अपनी सास की देखभाल की खाना खिलाया उनको सुला कर फिर हम एक हो गये.

ये सारी रात हमारी थी सो भरपूर लाभ उठाया इस सुहानी-मस्तानी रात का सुबह तक. 

उसके यौवन का रस ऐसा था कि जितना पीओ, उतना ही बढ़ता जाता, खाली होने का नाम ही नही था. 

काश इंद्रमनी ये जान पाता तो आज उस नेक औरत को अपनी मर्यादायें तोड़नी ना पड़ती.

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता हम एक हो जाते और वो उस मौके का भरपूर लाभ उठाती. 

मे तो बस उसकी इक्षा पूर्ति के लिए वचन बद्ध था…..!

उधर ऑफीस मे भी टीना और मेरे बीच दूरियाँ कम-से-कम होती जा रही थी, वो शर्मीली सी छुइ-मुई सी कोमलांगी बाला मेरे प्यार में पागल हो चुकी थी, 

कई बार जब भी मे किसी काम से शॉप फ्लोर में जाता, वो सारे काम धाम छोड़ बस उसकी नज़रें मेरा ही पीछा करती, जिस वजह से उसको अपने सूपरवाइज़र से डाँट खाने को मिलती.

दरअसल उसका सूपरवाइज़र भी उसको पाना चाहता था, लेकिन वो उसे अपने पास भी फटकने नही देती थी, इसलिए और चिडने लगा था साला.

एक दिन मैने उससे कहा कि देखो कंपनी. के अंदर अपनी भावनाओं को काबू में रखने की कोशिश किया करो, 

फिर एक दिन मैने उसे कहा - ऐसा करते हैं, किसी दिन सनडे को शहर आ जाओ, घमेंगे फिरेंगे अकेले मौज मस्ती करेंगे कही एकांत में चल कर, 

पहले तो वो हिचकिचाई फिर जब शीतल ने भी उसको समझाया तो मान गयी और सनडे को आने का वादा कर दिया…

हमारे छोटे से शहर के पश्चिमी साइड में एक पहाड़ी थी, जिसके उपर एक कॉंप्लेक्स बना हुया था, 

घूमने फिरने के लिए पार्क वग़ैरह भी थे, ठहरने के लिए लॉड्जिंग, बोरडिंग की व्यवस्था भी थी. 

उसका मॅनेजर मेरा परिचित था सो मैने एक रूम सनडे के लिए बुक कर लिया पूरे दिन के लिए.

टाइम के हिसाब से मैने अपना स्कूटर लिया और बस स्टॅंड से हटके रोड साइड की झाड़ियों के पास खड़ा हो गया. 
 
कोई 15 मिनट के इंतेजार के बाद ही उसकी बस आ गई, मैने उसको अपने पीछे बिठाया, उसने अपने दुपट्टा से अपना मुँह ढक लिया जिससे कोई उसे पहचान ना सके.

हम कॉंप्लेक्स पर जाकर रूम की चाबी ली और रूम में आ गये.

ये हम दोनो का पहला चान्स था जब हम किसी एकांत जगह पर मिल रहे थे. 

रूम में पहुँच कर जैसे ही मैने डोर लॉक किया, और उसकी ओर पलटा, वो पलग के साइड में खड़ी थी और उसके शरीर में कंपकपि सी दौड़ रही थी, होंठ थरथरा रहे थे मानो मलेरिया फीवर चढ़ा हो.

मैने उसके हाथ अपने हाथों में लेकर पुछा- तुम काँप क्यों रही हो टीना..? 

वो नज़र नीची करके बोली- मालूम नही..? कुछ डर जैसा लग रहा है.. थरथराती सी आवाज़ निकली उसके मुँह से.

मे- डर..? क्यों ? यहाँ कों है हम दोनो के अलावा जो डर रही हो..! क्या मुझसे डर रही हो..?

वो- नही ! पर पता नही क्यों लग रहा है..?

मैने उसका डर ख़तम करने के लिए उसके लवो को चूम लिया और उसकी गर्दन पर किस करके कहा, तुम भी मुझे किस करो टीना..! अच्छा लगेगा.

थोड़ी सी हिम्मत करके वो भी मेरा अनुसरण करने लगी, हम दोनो किसिंग में डूब गये, शुरू में उसका अनाड़ी पन दिखा, लेकिन कुछ देर में ही वो समझ गयी कि मज़ा कैसे लिया जाता है..

5-7 मिनट के किसिंग के बाद मैने उससे प्लाटा दिया अब मे उसकी गान्ड से लंड सटा कर जो अब अपनी औकात में आता जा रहा था, उसकी दोनो चुचियों को अपने हाथों में भर लिया, एकदम परफेक्ट साइज़ था मेरे हाथों का. 

पूरे हाथ में लेकर उसकी चुचियों को धीरे-2 सहलाने लगा और साथ-2 उसके गर्दन, गालों पर किस भी करता जा रहा था, 

वो आँखें बंद किए आनंद की अनुभूति में खोती चली गयी और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया.

उसके पेट को सहलाते हुए मेरा एक हाथ विंध्याचल की घाटी की ओर चला जा रहा था, जैसे ही वो उस घाटी में उतर कर एक चक्कर लगाया ही था कि उसने अपनी टांगे ज़ोर से भींच ली और सिसकती हुई आगे को झुकने लगी, 

आगे को झुकने की वजह से उसकी गोल-मटोल टाइट गान्ड के उभार और बाहर को आ गये जिससे मेरा पप्पू उसकी दरार में जो थोड़ा खुल सी गयी थी उसमें चप्पू चलाने को व्याकुल होने लगा.

मत करो ऐसा… प्लस्सस… ससिईई..आहह… मुझे कुछ-2 होता है..- सिसकती हुई वो बोली.

मैने उसकी गान्ड पर अपने पप्पू को दबाते हुए कहा- क्या होता है मेरी जान…??

मान जाओ ना प्लीज़… और झट से पलट कर मेरे होठों को चूमने लगी, उसकी अधखुली आँखें नशे से बोझिल होने लगी थी.

खड़े-2 उसका कुर्ता उतार के पलंग पर फेंक दिया मैने और जैसे ही मेरी नज़्ज़र उसकी ब्रा में कसी टाइट गोल-2 संतरों पर पड़ी.. 

हेययय.. भगवान क्या इतना भी गोरा हो सकता है किसी का वक्षस्थल, हल्की लालिमा लिए उसके ब्रा से झलकते हुए संतरे और उनके बीच की हल्की गहरी खाई में मेरी नज़र डूब गयी..! 

अपने सीने से ज़ोर्से कस कर उससे पीठ पर हाथ फेरते हुए मैने कहा.

सच में तुम बहुत खूबसूरत हो टीना…! मे आज अपने आपको बहुत शौभागयशाली मान रहा हूँ, जोकि तुम मेरी बाहों में हो.

उसकी सलवार का नाडा ढीला करते ही वो भी उसके पैरो में जा पड़ी. कितनी ही देर तक मैने उसे खड़ा करके घुमा-फिरा कर उसकी सुंदरता को निहारता रहा. 

सच में वो परमात्मा की एक अतुलियनिय रचना थी जो आज मेरे नसीब में थी.

मुझे अपने आप पर रस्क होने लगा की जिस सुंदर बदन के ना जाने कितने दीवाने लाख कोशिशों के बबजूद भी ना पा सके वो आज मेरे आगोश में है. 

मैने अपनी आँखें बंद करके कुछ देर तक तो उसकी सुंदरता को अपने दिल में उतरता रहा और फिर ईश्वर को धन्याबाद किया जिसने ये अवसर मुझे दिया .

मैने भी अब अपने कपड़ों को तिलांजलि देदि और अंडरवेर को छोड़ कर सारे कपड़े उतार फेंके.

वो भी मेरे कशारती बदन में खो गयी, अंत में उसकी नज़र अंडर वेयर में आकड़े मेरे पप्पू पर टिक गयी, जिससे वो कुछ देर के बाद अपना चप्पू चलवाने वाली थी.

मैने उसका हाथ पकड़ा और अपने अकडे हुए पापु पर रख दिया, पहले तो वो कुछ झेप सी गयी लेकिन जब मैने उसके हाथ को दबाए रखा तो वो धीरे-2 उसे सहलाने लगी, 

उसके हाथ का जेंटल टच पाकर पप्पू और ज़्यादा उच्छलने लगा. मैने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उसकी ब्रा के हुक को भी खोल दिया अब वो भी मात्र अपनी छोटी से पेंटी में थी, जिससे उसके हल्के-2 रोँये बाहर झलक दिखा रहे थे.

मे अब उसको गोद में उठाकर पलंग पर ले आया और लिटा कर उसके बगल में लेट गया और उसके पूरे बदन पर हाथ फेरने लगा. 

उसकी आँखें बंद थी और गर्दन पीछे को अकड़ने लगी थी.

उसको थोड़ा अपनी ओर घमाके मैने उसके होठों से चूमना शुरू किया फिर गाल, गर्दन से होते हुए उसकी गोल-2 संतरों को चूमा और एक हाथ से उसकी डाई चुचि को पकड़ कर मसल्ने लगा और बाईं को मुँह में भरके चूसने लगा.

वो मारे उत्तेजना के अपने शरीर को इधर-उधर नागिन की तरह लहरा रही थी, 

जब मैने उसके एक चुचक को अपने होठों में सख्ती से दावाया और दूसरे को उंगली और अंगूठे में पकड़ कर मसला तो उसका शरीर हवा में लहराने लगा और उसके मुँह से मादक सिसकी गूँज उठी…!

आअहह….सस्सिईईई…उऊहह…उउफ़फ्फ़… हआयईए…रामम्म…सुउुआहह…मारिइ.. उफफफ्फ़…ईए…क्याअ…हूओ..रहाआ…है मुझीई….माआअ…आहह..

चूमते चुसते जब में उसकी नाभिस्थल पर पहुँचा, एक हाथ अभी भी उसके चुचक को सहला रहा था.. 

मैने अपनी जीभ जैसे ही उसकी नाभि के चारों ओर फिराई…! वो अपना पेट और बाहर उठाने लगी और उसका पेट हिलने लगा जैसे कोई भूकंप आ गया हो..!

नाभि को चाटते हुए मेरा एक हाथ उसकी पेंटी के उपर से ही उसके यौनी प्रदेश को सहलाने लगा, 

पहले तो उसकी टांगे एक-दूसरे को कसने लगी, लेकिन जैसे ही मेरी एक उंगली उसकी दरार के उपर घूमी, उसकी टाँगे खुलती चली गयी.

अब समय आ गया था कि दुनिया के सबसे खूबसूरत द्वार को भी खोल दिया जाए, और मैने उसकी गीली पेंटी को भी खीच दिया. 

मैने उसकी टाँगों के बीच आकर उसके घुटने पकड़ कर उन्हें खोला तो वो उन्हें और बंद करने लगी, जब मैने उसकी जांघों को बाहर से सहलाता हुआ अंदर की ओर सहलाया तो उसने अपने घुटने खोल दिए.

आअहह… क्या नज़ारा था वो..! हल्के बालों के बीच उसकी पुष्ट कसी हुई पूसी अपने दोनो भीगे हुए होठों को भींचे हुए मानो अपने प्रियतम के इंतजार में व्याकुल हो. 
 
मैने अपना हाथ उसके योनि स्थल पर फिराया… गीली योनि के होंठ फड़काने लगे, और साथ-2 उसके उपर के होंठ भी फडफडाये मानो कुछ कहने के लिए लरज रहे हों..?

उसकी फांको को अपने हाथों के अंगूठों से दबा कर खोला तो वो थोड़े से खुल गये, फांकों को खुलते ही कुछ गुलाबी रंगत लिए उसकी अन्द्रुनि दीवारें संकुचित हो रही थी.

जी चाहा कि इसको खा जाउ, पर मन मार के मैने हल्के से अपनी जीभ उसके योनि मुख पर फिराई… 

खुरदरी लीभ लगते ही उसकी गीली मुनिया और ज़यादा खुशी से फड़कने लगी और पानी बहाने लगी. 

थोड़ा सा ही चाटने के बाद उसका भज्नासा खड़ा होकर मुँह चमकने लगा जिसे मैने अपनी जीभ से कुरेदकर और खड़ा कर दिया, और फिर होठों में भरकर चूसने लगा.

जैसे ही मैने उसके भग्नासे को चूसा और उसके संकरे छेद को उंगली से सहलाया उसकी कमर धनुष की तरह हवा में बेंड होती चली गयी और एक लंबी सी चीक्ख मार्कर फल्फला कर झड़ने लगी….

थोड़ी देर बाद उसकी कमर दुबारा पलंग पर लॅंड हुई, वो अनंखें बंद किए ऐसे हाँफ रही थी मानो मीलों दौड़ लगा कर आई हो.

मैने अपना अंडरवेर उतार दिया और लौडे को सहलाते हुए उसके मुँह की तरफ आया, मेरा पप्पू लगातार झटके दे रहा था. 

अब उससे रहा नही जाराहा था, मैने उसको टीना के गालों पर रख कर पूछा, तुम इसकी कुछ सेवा करना चाहोगी तो वो मेरी ओर देखने लगी और उसे हाथ से पकड़ कर सहलाने लगी और बोली- ये इतना गरम क्यों है..?

मैने कहा कि वो तुम्हारे मुँह में जाकर ठंडा होना चाहता है, करोगी तो उसने मुन्डी हिलाकर मना कर दिया, 

मैने कहा अच्छा एक किस तो दे सकती हो आख़िर ये तुम्हारी मुनिया के साथ यात्रा पर निकलने वाला है, तो कुछ तो प्यार देना चाहिए तुम्हें इससे.

उसने डरते-2 उसे सुपाडे के उपर चूमा, हाथ से आगे पीछे किया और उसके सुपाडे को खोल कर उसके उपर आए चमकते मोटी को देखने लगी, 

मैने कहा इसको चख कर देखो, बहुत टेस्टी है, तो वो हैरत से मेरी ओर देखने लगी मानो पुच्छ रही हो कि ये भी कोई चखने की चीज़ है, 

मैने कहा डरो नही ये जहर नही है बल्कि अमृत है, तुम्हें अच्छा ही लगेगा तो उसने धीरे-2 अपना मुँह लेजा कर जीभ की नोक से उसे चाट लिया.

कुछ देर उसका स्वाद समझती रही, फिर एक और किस किया और हाथ में लेकर सुपाडे को मुँह में रख लिए, मैने पुछा कैसा लगा.. तो नज़र उपर करके आँखों के इशारे से ही बता दिया कि अच्छा लगा.

थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको उपर किया और अपनी ओर खींच कर उसके होठों को चूम के लिटाया, 

नीचे आकर उसकी टाँगों को फैलाया और अपने पप्पू को हाथ से मसल्ते हुए उसकी रस से लिथडी हुई मुनिया के होठों के उपर रगड़ दिया…

टीना ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी, आने वाले भूचाल की कल्पना से उसके होंठ थरथरा रहे थे. 

मैने अपने मूसल जैसे कड़क लंड को उसकी रस गागर की दरार पर दो-तीन बार रगड़ा, उत्तेजना से उसकी गान्ड हिलने लगी.

एक हाथ से अपने पप्पू को थमा, और दूसरे हाथ के अंगूठे और उंगली की मदद से उसकी दरार के मुँह को खोला और उसके छोटे से सुराख पर सुपाडा रख के दबा दिया…

आअहह….उसके मुँह से एक कराह फुट पड़ी.. अपने होठों को कस्के भींच लिया. मैने उसको बोला- टीना थोड़ा सहन करना मेरी जान.. हान्ं..!! थोड़ा दर्द होगा, तो उसने बंद आँखों और होठों से ही मुन्डी हिला कर हामी भर दी.

अब मैने थोड़ा सा और अपने लौडे को उसके सुराख में पुश किया तो वो डेढ़ इंच अंदर सरक गया और जाकर रुक गया, 

टीना थोड़ा दर्द से तडपी. मे समझ गया कि अब कयामत की घड़ी आ गई है, 
 
उसके संतरों को हौले-2 सहलाते हुए उसके कंधों पर हाथ टिकाए और एक जोरे का झटका धीरे से लगा दिया.

मेरा ढाई इंच मोटा सुपाडा उसकी चूत की पतली सी दीवार को तोड़ता हुआ आधे से ज़्यादा अंदर जाकर फँस गया. 

टीना दर्द से छटपटाने लगी और मेरे सीने पर हाथ रखकर मुझे अपने से दूर धकेलने लगी.

मेरी जांघों ने उसकी जांघों पर दबाब बनाए रखा था और हाथों से उसके कंधे कस के दबा रखे थे वरना वो मुझे कबका धकेल कर नीचे से निकल चुकी होती.

उसकी आँखों से आँसुओं का सैलाब उमड़ रहा था, दर्द को पीने के कारण उसने अपना नीचे का होंठ लहुलुहान कर लिया, 

मैने उसको सहलाते हुए कहा.. टीना मेरी जान, बस अब हो गया, अब इसके आगे दर्द नही होगा.

उसने बस अपनी पलकें उठाकर मेरी ओर देखा और मौन स्वीकृति देकर फिर से बंद करलिय.

मे थोड़ी देर तक उसकी चुचियों को सहलाता रहा और उसके रक्तरंजित होत को मुँह में लेकर चूसने लगा. 

अब उसे थोड़ा आराम हुआ तो मैने अपने आधे लंड को ही अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, एक-बार तो उसके मुँह से कराह निकली और फिर बंद हो गयी. 

वो कुछ भी बोल नही रही थी, जैसे ही मुझे लगा कि अब उसको भी मज़ा आरहा है, मैने एक आख़िरी विन्निंग स्ट्रोक लगा दिया.

मेरा शेर पूरी तरह मांद में प्रवेश कर चुका था लेकिन इस बार टीना अपनी चीख नही रोक पाई…

हाययईई….माररर्रगाइिईई… मुम्मिईिइ.. बचाओ…मुझीए… उफ़फ्फ़…छोड़ो…हे भगवान्नन्…मे कहानन्न.. फँस गाइिईई…रीई…

मैने उसकी पलकों को चूमते हुए उसे तसल्ली दी… बस अब और नही होने दूँगा तुम्हें दर्द…प्रॉमिस… प्लीज़.. टीना चुप हो जाओ…

झुटे कहीं के… पहले भी तो बोले थे कि अब नही होगा तो अब ये कैसे हुआ..? वो रोती हुई बोली.. 

सच में अब नही होगा.. और मैने फिर से उसके होठों को चूम लिया.. उसके चुचियों को जीभ से सहलाया, उसके पेट, कमर की साइड्स को सहलाया, 

वो लंबी-2 साँसें ले रही थी, जब कुछ संयत हुई तो मैने धीरे-2 बड़े आराम से अपनी कमर को मूव्मेंट देना शुरू किया, 

कुछ धक्कों तक तो वो कराहती रही, उसके बाद उसका दर्द ख़तम होने लगा, अब वो सिसक रही थी और मज़े से बड़बड़ाने लगी…

आअहह….सस्सिईईई…उउउऊऊहह…हह…उफ़फ्फ़…धीरीए….आह…एब्ब..अच्छाअ..लग..रहाआ है…थोड़ाआ…तेजज…और साथ-2 अपनी कमर भी चलाने लगी..

अब गाड़ी अपनी फुल रफ़्तार से दौड़ने लगी थी, कभी वो अपने एक्सप्रेशन देने लगती, तो कभी मे. 

हम दोनो दीन दुनिया से डोर कहीं अंजानी डगर पर चल पड़े थे जिनकी मंज़िल एक ही थी लेकिन वो कहाँ थी किसिको नही पता थी.

15 मिनट की मसक्कत के बाद टीना का शरीर अकड़ने लगा और उसने अपनी टाँगों से मेरी कमर को कस दिया जिससे मुझे धक्के लगाने में परेशानी होने लगी, 

वो झड रही थी, मे धीरे-2 धक्के दे रहा था, मेरी मंज़िल आने में अभी भी वक़्त था. जब टीना झड गयी तो वो थोड़ी सिथिल पड़ गयी.

मैने उसके कूल्हे को थपथपा कर उसे उठने का इशारा दिया और उससे घुटनों के बल करके उल्टा कर दिया,

अब उसकी मनमोहिनी गान्ड मेरी ओर आ चुकी थी, टीना अपनी हथेलियाँ बिस्तेर पर टिकाए घोड़ी बनी बड़ी प्यारी लग रही थी मानो कोई मोरनी नाचने की तैयारी में हो.

मैने उसकी गान्ड को चूमा और फिर दोनो और चाट के उसकी गान्ड पर जीभ रख दी, उसकी गान्ड का भूरे रंग का छोटा सा छेद नुमाया हो रहा था, 

तो उसको अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगा. मेरे ऐसा करने से टीना की गान्ड का छेद खुल-बंद हो रहा था. 

गान्ड के छेद पर जीभ की चुभन महसूस करके टीना की ताज़ा फटी चूत में फिर से सुरसूराहट होने लगी, और वो अपनी गान्ड हिलाने लगी.

मैने अपना मूसल हाथ में लिया और उसकी चूत पर एक दो बार रगड़ा. 

चूत के छेद पर रख कर एक हल्का सा धक्का दे दिया, आधा लंड उसकी टाइट चूत में समा तो गया लेकिन उसके मुँह से कराह निकल पड़ी…

आअहह….धीरे…अरूंन्ं…., जानन्न..निकलोगे फिर से..?

मैने अपने हाथ उसकी कमर में लपेट दिए और उसकी पीठ से चिपकते हुए उसके कंधे पर किस करके बोला-टीना मेरी जान अब तो तुम मेरी जान बन गयी हो, 

अपनी जान की जान कैसे निकल सकता हूँ मेरी रानी और अपनी गान्ड को और आगे दबा दिया जिससे मेरा लंड और अंदर तक बढ़ गया.

अब टीना को उतना दर्द नही था एक-दो धक्कों में पूरा लंड पेल कर धक्के लगाना शुरू कर दिया, 

पहले कुछ देर आराम से फिर पूरा लंड बाहर लेकर फिर से अंदर कर दिया.. टीना का मज़ा चौगुना बढ़ गया और वो सिसकने लगी.

धक्के लगाते लगाते मेरी नज़र ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर गयी, उसमें अपनी चुदाई देख कर मज़ा आगया… 

क्या पोज़ था, टीना घोड़ी बनी मस्त लग रही थी, धक्कों के कारण उसके टाइट संतरे हल्के-2 हिल रहे थे, 

मैने टीना का ध्यान उस ओर कराया तो वो घोड़ी बनी अपनी खुद की चुदाई देख कर शरमा गयी, और शर्म से अपना मुँह तकिये में छुपा लिया, 

जिसके कारण उसकी गान्ड और उपर को उठ गयी और मेरा शॅफ्ट उसके सिलिंडर में और अंदर तक जाने लगा.. 

मेरी जांघें उसकी गान्ड पे धप्प से लगती तो एक मस्त आवाज़ होती, इधर उसकी चूत पनियाने लगी जिसकी वजह से फ़च-2 जैसी आवाज़ें भी होने लगी.

ढपा-धप, फूच-फूच चुदाई का संगीत गूँज रहा था, पूरे कमरे में हमारी साँसों की आवाज़ें आ रही थी. बदन पसीने से तर हो चुके थे.

अंत में 20मिनट की धुआधार चुदाई के बाद मेरे लंड ने जबाब दे दिया और मे घोड़े की तरह हिनहिनकार टीना के उपेर पसर गया, 

मेरे वीर्य की बौछार ने टीना को फिर एक बार झड़ने पर मजबूर कर दिया.

वो पलंग पर उल्टी पसर गयी और मे उसकी चूत में लंड चेंपे हुए उसके उपर था.

10 मिनट तक हम ऐसे ही पड़े रहे जब कुछ होश आया तो मे लुढ़क कर उसके बगल में लेट गया, 

उसका मुँह अपनी ओर करके एक सक्सीडिंग किस किया और उसे अपने से चिपका कर पुछा.

टीना तुम ठीक हो, तो उसने हमम्म.. करके जबाब दिया, मैने फिर पुछा, तुम खुश तो हो मेरे साथ आकर..? 

उसने फिर हमम्म में जबाब दिया और अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया, और फिर गहरी नींद के आगोश में चले गये.
 
शाम चार बजे तक हम यूँ ही पड़े रहे..जब उसकी नींद खुली तो मेरा हाथ अपने उपर से हटाया, और मेरे गाल पर एक किस करके बाथरूम में घुस गयी, 

पानी की आवाज़ सुनके मेरी भी नींद खुल गयी तो लपक के में भी बाथरूम में घुस गया और उसे शावर के नीचे खड़ा करके फिर चूमने चाटने लगा.

अभी मन नही भरा आपका..? अब तो शाम भी हो गयी मुझे निकलना है..वो बोली.

तुम्हारी जैसी हसीना को कॉन चूतिया छोड़ना चाहेगा..? मे बोला, तो उसने खलखिलाकर मुझे दूर धकेला और बाथरूम से बाहर निकल गयी.

मे भी शावर लेके फ्रेश हुआ और बाहर आकर हम दोनो ने कपड़े पहने एक- एक चाइ मॅंगा कर पी, और पोने पाँच बजे हम बाहर आ गये, 

उसको बस स्टॅंड छोड़ा, और मे अपने घर आ गया………

उधर टीना और घर में कोमल भाभी, जिसको जब भी मौका लगता चिपक जाती मेरे से, 

कभी-2 तो ऐसा भी चान्स पड़ जाता कि दिन में सनडे को टीना को बजा के आता और रात को कोमल मेरा लंड चुसती,

लॉडा भी भेन्चोद बेशर्म हो गया था, हर समय अकडा रहता था.

कभी-2 अपनी भाभी के सामने जाने में भी शर्म आती कि कहीं साला उनके सामने ही ना उच्छल कूद करने लगे. खैर जैसे-तैसे संभाल ही लेता मूसल चन्द को.

दिन बड़े मज़े में गुजर रहे थे, एक साल इस कंपनी में पूरा हो गया था. मे पर्मनेंट हो गया. 

सॅलरी के साथ-2 ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ गयी थी. चारों ओर से मुसीबतों का अंधड़ सा बढ़ रहा था मेरी ओर, कंपनी का काम भी बढ़ गया, चुदाई के दौर भी बढ़ रहे थे. 

मेरा मन अब इस शहर और कंपनी से उबने लगा था, देखते-देखते 6-8 महीने और निकल गये. 

एक दिन अचानक कोमल भाभी उल्टियाँ करने लगी, जब चेक-अप कराया तो पता लगा कि वो माँ बनाने वाली हैं. हम दोनो ही जानते थे कि ये कैसे हुआ पर उनके पतिदेव और सासू माँ बड़ी खुश हुए. 

और उनकी नज़र में कोमल का सम्मान बढ़ गया, अब वो लोग उन्हें किसी महारानी की तरह रखने लगे. 

कोमल ने मुझे जब ये खुशख़बरी पर्षनली मिलके बताई तो वो एमोशनल हो गयी जो मेरे लिए हमेशा से ही एक समस्या थी औरतों के आसू वो चाहे खुशी के हों या गम के.

खैर… अब मे सीरियस्ली यहाँ से भागने की सोचने लगा था, क्योंकि कल को साला कुछ बात खुल गयी तो लेने के देने पड़ जाएँगे. 

मेरा तो क्या है, भाई साब की मान मारायदा की चिंता होने लगी थी अब मुझे.

एक-दो जगह इंटरव्यू वग़ैरह भी दिए लेकिन बात नही बनी, आख़िरकार ज़्यादा लालच में ना पड़ते हुए मैने हिमालय की तराई के एक छोटे से शहर ह******* का ऑफर आक्सेप्ट कर लिया और एक महीने के नोटीस पीरियड के साथ जाय्न करने चल पड़ा...

मेरे भैया भाभी ने समझाने की कोशिश कि वहाँ अकेला क्या करेगा…? कैसे करेगा..? वग़ैरह-2, 

उधर जब टीना को पता लगा तो वो भी बहुत मायूस हुई… तो मैने उसे खुला ऑफर दे दिया कि अगर वो चाहे तो मेरे साथ चल सकती है, 

संस्कारी लड़की माता-पिता के मान सम्मान की खातिर उसने अपने पहले प्यार को भी भूलने को तैयार हो गयी और मे कई सारे लोगों का दिल तोड़कर, 

कोमल से नज़र चुराकर उस शहर से चल दिया एक और बेगाने शहर की ओर, जहाँ मुझे पता नही मेरी जिंदगी किस ओर ले जाने वाली थी.

मैने अपना ज़रूरत का समान पॅक किया और निकल लिया एक शाम.. वहाँ से धौला कुँवा (देल्ही) की बस पकड़ी.. धौला कुँवा से डीटीसी पकड़ कर आइएसबीटी पहुँचना था, जहाँ से रात की नैनीताल की बस मिलनी थी…

एक तो बॅग उपर से डीटीसी की बसों की भीड़… शायद जिन्होने सफ़र किया हो वो समझ सकते हैं… क्या हाल होता है…

खैर जैसे-तैसे मुन्डी घुसा-घुसुकर एक बस में चढ़ गया… बस में इतनी भीड़ कि 8-10 लोग तो उसके दोनो गेट पर लटके ही थे…

अपने बॅग के साथ ठूंस-ठूंस कर जैसे-तैसे मे कुछ अंदर तक पहुँचा..

बस में एक आगे गेट के पास, और एक पीछे गेट के पास पॅसेज में पाइप के पिलर जैसे थे.. तो मे पीछे वाले पिलर तक पहुँचा गया…

अंधेरा तो हो ही चुका था, बस की अंदर की लाइट भी इतनी नही थी.. कि इतनी भीड़ में कुछ रोशनी हो … 

पीछे के पिल्लर के साथ सटे हुए एक 28-30 साल की औरत खड़ी थी.. मे उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया…

मैने अपना एक हाथ पिल्लर पकड़ने के लिए उस भौजी के साइड से आगे किया…
वो भी अपने दोनो हाथ उस पाइप पर टिकाए हुए थी, और उसके हाथों के उपर उसके भारी-2 दूध, टिके हुए थे जो दबने से और ज़्यादा चौड़े हो गये…

मे उस पाइप को इसलिए पकड़ना चाहता था, कि भीड़ के धक्कों से उस औरत से अपने को दूर रख सकूँ..

मैने जैसे ही अपना एक हाथ पाइप पकड़ने के लिए तो अंधेरे की वजह से उसके हाथों के उपर ही रख गया.. जहाँ उसके दूध की टँकियाँ दबी पड़ी थी..

अब मुझे तो कुछ दिख नही रहा था, सो मेरा हाथ उसकी एक टंकी पर रख गया.. और मैने उसे मुट्ठी में भर लिया.. 

तबतक साला पीछे से एक धक्का और आ गया… लाख संभालने पर भी उसकी चुचि मसल गयी और मेरा अगड़ा उसके पिच्छवाड़े पर जा टिका…

चुचि के मसले जाने से उसके मुँह से कराह निकल गयी… और उसने मेरी तरफ मूड कर कहा – ये छोर… के मस्ती कर रिया से… आराम से खड़ा ना हो सके है के..

मे – भाभी, अब मे के करूँ ? भीड़ ही घनी से, उपर ते, पीछे से धक्का आरिया से..

वो – ठीक है, ठीक है… मने बेरा से .. भीड़ के बहाने तू के कार्डों चहवे है..?

मे – इब थारे को कैसे विश्वास दिलाऊ भाभी… सच में धक्का घना ही जोरे का था… तो वो मुस्करा उठी.. और बोली.. कोई ना.. यो सब चले भीड़ में..

वो सलवार सूट में थी.. उसकी मोटी गान्ड का दबाब मेरे लंड को चैन से बैठने नही दे रहा था.. सो वो अकड़ने लगा…और उसकी गान्ड की दरार के उपरी सिरे को दबाने लगा..

मेरा हाथ अभी भी उसकी चुचि से टच हो रहा था… लंड के दबाब को अपनी गान्ड पर फील करके बोली… आए भाई.. यो के मने चुभ रियहा से.. देख तो थारा कोई समान से मने लागे है..

मे – नही तो भाबी.. मेरा समान तो सब मेरे पास ही है.. तुम खुद चेक कर लो के से…

उसने अपना हाथ पीछे किया और मेरे पॅंट के उपर से मेरे लौडे को पकड़ कर बोली… यो तेरा ना से के.. और हँसने लगी…

मे – यो तो मेरा ही से पर है तो लिफ़ाफ़ा बंद, इब यो थारे को के प्राब्लम कर सके..?

वो – तो इसने लिफाफे से बाहर काढ़ ले.. और सही जगह पर लगा.. 

मे उसकी बात सूकर झटका ही खा गया… और बोला – के बार करे से भाईजी.. यहाँ खुले आम बस में..?

वो – अबे गान्डु इंशान.. एक तो इतनी घनी भीड़, उपर ते अंधेरा, कॉन देख रहा से तेरे लौडे ने… निकाल ले बाहर.. मेरी कंमीज़ से ढक जाबेगा.. उसमें के..
 
मैने अपने पॅंट की ज़िप खोल ली और हाफ अंडरवेर के मुताने वाले दरवाजे से उसको बाहर निकाल लिया…

इतने में ना जाने कब उसने अपनी सलवार और पेंटी की एलास्टिक सरका दी..

मैने कहा लो भाभी, मेरा समान इब जहाँ चाहो रख लो..

उसने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी गान्ड को और थोड़ा पीछे को निकाला और उसे अपनी चूत और गान्ड के बीच में टिका दिया…

उसकी चूत पानी छोड़ने लगी थी.. लेकिन लंड उसकी चूत की वजाय उसके गीले होठों से रगड़ता हुआ आगे को निकल जाता…

इधर बस की भीड़ के धक्के.. कभी साइड से लगते तो साइड में हो जाता और पीछे से लगते तो उसके आगे की तरफ निकल जाता..

उसने मेरा हाथ अपनी चुचि पर रख कर दबा दिया और बोली – तू तो पूरा चूतिया आदमी है.. अब भोसड़ी के थोड़ा घुटने मॉडले, घना ही लंबा है.. 

मेने अपने घुटने मोड़ कर अपने लंड को उसके छेद पर रखा, उसने भी अपनी गान्ड थोड़ा और पीछे कर दी… गीली चूत में वो सॅट्ट से घुस गया…

चैन पड़ गया हम दोनो को.. अब वो भी थोड़ा -2 गान्ड मटकाने लगी.. और मुझे तो कुछ करना ही नही था.. पीछे के धक्कों ने ही मेरा काम आसान कर दिया था…

वो मेरे हाथ से चुचि मसलवा-2 कर मज़े लेने लगी… और 5-7 मिनट में ही अपनी चूत को मेरे लंड पर कस कर झड गयी…

झड़ने के बाद उसने अपनी गान्ड सीधी कर ली, मेरा लंड उसकी चूत से बाहर आ गया… और उसने अपनी सलवार उपर चढ़ा ली…

मे – अरे भौजी… ये क्या किया.. मेरा तो कुछ हुआ ही नही…

वो – तो अपने हाथ से मसल कर निकाल ले… मे के करूँ…

मे – भेन्चोद साली बड़ी चालू है.. अपना काम निकाल कर मेरा तो कलपद कर दिया ना ! 

तो वो हहेहहे…. करके हँसने लगी और बोली – ला मे तेरा हिला देती हूँ..

मैने कहा रहने दो.. मुझे नही निकलवाना… हाथ से… 

वो बोली – तेरी मर्ज़ी..

फिर कुछ ही देर में शायद उसका स्टॉप आने वाला था तो वो आगे को बढ़ गयी.. मे अपना मूसल अंदर करके मसलता ही रह गया….

कुच्छ देर में आइएसबीटी पहुँच गया.. बॅग लटकाए सीधा बाथरूम भागा.. मूत की धार मारी, तो कुछ चैन पड़ा.. लेकिन अकड़ तो ऐसे जाने से रही..

नैनीताल वाले प्लतेफ़ोर्म से बस की टिकेट ली, बस 9:30 को निकलने वाली थी.. तैयार ही खड़ी थी.. सो बैठ गया.. 

पहाड़ी इलाक़े के लिए यूपी रॉडवेस ने छोटे साइज़ की बस निकाली थी.. दोनो साइड में दो-दो सीट वाली लाइन थी..

मे एक विंडो साइड वाली सीट पर बॅग उपर रख कर बैठ गया..

बस चलने तक मेरे साइड वाली सीट खाली ही थी… अगस्त-सेप्टेंबर का सुहाना मौसम था.. थोड़ी सी ग्लास खोल कर बड़ा सुकून मिला…

ग़ाज़ियाबाद पहुँचते-2 मुझे नींद आ गयी और आगे वाली सीट के बॅक से घुटने सटा कर सो गया…

ना जाने रात का क्या समय था… नींद में ही मुझे लगा जैसे मेरे लंड को कोई मसल रहा है.. आधी नींद में ऐसा लगा जैसे मे सपने में हूँ.. 

और वो डीटीसी वाली औरत फिर से मेरे पास आकर बैठी है.. और कह रही है.. ला अब मे तेरा पानी निकलवा देती हूँ…

लंड पूरी तरह आकड़ा हुआ था… मे नींद में ही बड़बड़ाया… अरे तो भाभी इसको बाहर तो निकाल कि मेरे पॅंट में ही पानी निकालेगी…

थोड़ी देर बाद मुझे लगा की उसने वाकाई में मेरा लंड बाहर निकाल लिया है और हाथ से सहला रही है… 

मुझे मेरे नंगे लंड पर उसके मुलायम हाथ का स्पर्श साफ-साफ फील हो रहा था… मेरे दिमाग़ ने झटका खाया और मेरी आँखें खुल गयी…

देखा तो वास्तव में मेरे बगल वाली सीट पर एक औरत बैठी हुई मेरे लंड को बाहर निकाल कर मसल रही थी…

मैने झट से उसकी कलाई थाम ली और बोला – कॉन हो तुम…? और ये क्या कर रही हो…?

उसने अपने होठों पर उंगली रख कर इसीईईईई… चुप रहने का इशारा किया और फुसफुसाकर बोली – चुप-चाप बैठ के मज़ा लो..

मे धीमी आवाज़ में-ऐसे कैसे मज़ा लूँ.. ये तुम्हारे बाप की खेती है.. सो बिना पुच्छे लग गयी ये सब करने…

वो – मे मुरादाबाद से बैठी थी, ये सीट खाली मिली सो बैठ गयी… फिर मेरी नज़र तुम्हारे पॅंट पर पड़ी.. तो ये तुम्हारा हथियार खड़ा हुआ दिखा..

कुछ देर देखती रही.. फिर मॅन नही माना और फिर ये सब… प्लीज़ तुम ग़लत मत समझना .. मुझे…

मे- तो अब कहाँ पहुँच गये हम…?

वो – बस रामपुर अभी निकला है....

मुझे कुछ ठंड सी लगाने लगी थी.. तो मैने विंडो का ग्लास बंद कर दिया.. वो बोली – ठंड लग रही है..?

मे – हां थोड़ी-2 सी…

उसके पास शॉल थी सो उसने हम दोनो के उपर डाल ली और अंदर ही अंदर उसने फिर मेरे लंड को पकड़ लिया…

मैने कहा – देखो ये सब बस में ठीक नही है.. तो वो बोली – देखो सब सो रहे हैं.. 3 बजने वाले हैं.. इस टाइम पर कोई भी जागने वाला भी नही है..

तो फिर मैने भी उसकी साड़ी के अंदर हाथ डाल दिया और उसकी पेंटी के उपर से उसकी चूत सहलाने लगा.. जो गरम होकर पानी देने लगी थी..

उसने अपने ब्लाउस के बटन भी खोल दिए तो मैने एक हाथ उसके गले से पीछे से ले जाकर उसकी चुचियों को मसलने लगा… वो सिसकी लेने लगी..
 
मेरा लंड साला शाम से ही उसकी वाट लगी पड़ी थी… चोट-पे चोट झेल रहा था.. तो अब फटने जैसी पोज़िशन हो चुकी थी.. बुरी तरह ऐंठन जैसी हो रही थी उसमें.

मैने कहा थोड़ा बाहर को झुक कर अपनी गान्ड तो उठा ले रानी… अब लेना ही है तो पूरा मज़ा ही कर लेते हैं… जो होगा सो देखा जाएगा…

तो उसने पहले अपनी गान्ड उचका कर अपनी पेंटी निकाल कर अपने हॅंड बॅग में रखली.. फिर पीछे से साड़ी और पेटिकोट उठा कर कमर पर रख कर दूसरी साइड को झुक गयी…

अब उसकी चूत दोनो जांघों के बीच से पीछे को उभर आई..

मैने भी अपना पॅंट और अंडरवेर घुटनो तक किया… और अपना एक घुटना उसकी गान्ड के पीछे सेट किया और दूसरी टाँग को उसकी दोनो टाँगों के बीच से निकाल कर उसकी उपर वाली जाँघ को अपनी जाँघ पर रखा…

उसकी चूत किसी फूल की तरह खिल कर मेरे लंड को नियौता दे रही थी..

मैने आव ना देखा ताव.. अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और एक ही झटके में पूरा लंड उसकी गीली चूत में फँसा दिया….

उसके मुँह से चीख निकल गयी… जिसे उसने अपने हाथ से कसकर दबा लिया…

मेरा लंड उसकी चूत में एकदम कस गया था… वो धीरे से फुसफुसाई..

अहह…तुमने तो दम जान ही निकाल दी मेरी… अब आराम से करना… फिर मैने धक्के स्टार्ट किए… कुछ देर में वो भी खुलकर साथ देने लगी…

उसकी चुचियाँ मसल्ते हुए में उसकी चुदाई में लगा हुआ था…

सारी बस में लोगों के खर्राटे गूँज रहे थे… आज शाम से सी आकड़ा हुआ मेरा लंड इतनी आसानी से हार मानने वाला नही था…

उसकी चूत लगातार रस बहाए जा रही थी.. ऐसे साइड को झुके-2 वो थक गयी तो मैने उसे अपनी गोद में बिठा लिया…

अब हमें कोई जागे या सोए… कोई परवाह नही थी.. बस किसी तरह से पानी निकल जाए बस तो चैन पड़े…

आख़िर कार मेरा लंड अपनी मज़िल पा ही गया.. और उसकी चूत को उसने लबालब भर दिया…

वो अबतक दो बार झड चुकी थी… सुकून उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था..

अपने कपड़े वग़ैरह सही करने के बाद थोड़ी देर हमने आपस में बात-चीत की.. वो उतरने वाली थी…उसने अपना अड्रेस भी दिया…और फिर मिलने का वादा करके वो अपनी मंज़िल पर उतर गयी……

मेरी नयी कंपनी में भी वही प्रॉडक्ट था जो मेरी प्रीवियस कंपनी में था, सो मुझे काम समझने की तो कोई प्राब्लम ही नही थी. 

हां थोड़ी ज़िम्मेदारियाँ और बढ़ गयी थी यहाँ आकर, मेरा बॉस एक साउत इंडियन टीएन से जो एक निहायत ही इंटेलिजेंट, काम और कूल माइंड बंदा था, 

छोटे से कद का राजशेखरण मेरे उपर बहुत ही भरोसा करने लगा था.

यहाँ भी वर्किंग कल्चर लगभग सेम ही था, फाइनल इनस्पेक्षन के लिए 5-6 पहाड़ी लड़कियाँ थी, एक से एक गोरी-चिटी वही 19-23 साल के बीच की उम्र वाली.

पहाड़ी लड़कियों की चुचियाँ नीबू साइज़ से लेके ज़्यादा से ज़्यादा संतरे के साइज़ की बस इससे ज़यादा रेर्ली किसी की बड़ी हों. हां गान्ड थोड़ी चौड़ी ही मिलेगी, शायद पहाड़ चढ़ते-2 हो जाती होगी. 

इनमें से एक लड़की थी शांति, उम्र 22 साल, वहाँ के अट्मॉस्फियर से उलट थोड़ी साँवली और चुचे और गान्ड 36 के, ना जाने कैसे ? 

थी वो भी पहाड़ी ही. शांति का झुकाव कुछ दिनो बाद ही मेरी तरफ बढ़ने लगा जिसे मे इग्नोर करता रहा.

प्रोडक्षन में एक लड़का था देव जोशी, जो थोड़ा अध्यात्मवादी था उससे मे थोड़ा घुल मिल गया था, कारण था उसकी शुरुआती मदद जो उसने मेरी की थी घर वग़ैरह सेट करने में.

एक दूसरे जोशी जी के ही घर में मैं एक रूम लेकर रहता था, वो एर फोर्स में थे उनकी 5 बेटियाँ थी, उसके बाद एक बेटा जो मेरे सामने ही पैदा हुआ था. 

सबसे बड़ी बेटी उस समय 11थ में ही पढ़ती थी दूसरे नंबर की 9थ में. उसी क्रम में वाकी की सब ….

काफ़ी बड़ा घर था, कई कमरे किराए पर दे रखे थे, ज़्यादातर पढ़नेवाले लड़के और एक डायमंड पॉलिशिंग की छोटी सी वर्कशॉप में काम करनेवाला लड़का था. 

मेरा रूम सबसे बाहर की साइड था, जिसका एक गेट ओपन रोड पर खुलता था, सो बहुत दिनो तक तो मेरा उन सभी घर के मेंबर और किरायेदारो से परिचय भी नही हो पाया था.

देव जोशी शाम को ब्रह्माकुमारी आश्रम में जाता था, जब हम और खुलने लगे एक-दूसरे के साथ तो वो अपने अनुभव मेरे साथ शेयर करने लगा.

उसकी बातों से मुझे भी अध्यात्म में जिगयासा पैदा होने लगी और योग-ध्यान की किताबें कसेट्स का कलेक्षन शुरू कर दिया.

किताबों और ऑडियो प्रवचन से प्रेरित होकर मैने ध्यान योग की तरफ टाइम देना शुरू कर दिया और सरल विधि के आधार को लेकर लाइट मेडिटेशन से शुरुआत की जो स्वामी विवेकानंद की बताई हुई पद्यति थी.

“एक बार शिष्य नरेन्द्रा डट (विवेकानंद) ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्णा परमहंस से पुछा, गुरदेव क्या आपने परमात्मा को देखा है ? 

जबाब में कुछ देर तो उनके गुरु उनकी ओर देखते रहे फिर वो बोले- हां मैने परमात्मा को देखा है और इतना अच्छे से देखा है, जितना मे तुम्हें भी नही देख सकता.” 

उसके आगे उन्होने कोई प्रशण नही किया और जो उनके विवेक ने कहा उसी रास्ते पर वो चल पड़े.

ये लाइन्स यहाँ मैने इसलिए लिखी हैं कि किसी बताए गये सदमार्ग की आलोचना करने की वजाय अगर हम उस पर चलने का प्रयास करें तो शायद हम उसकी अन्भुति कर सकते हैं.

खैर तो मैने वो लाइट मेडिटेशन वाला तरीक़ा अपनाया जो देव को भी उसके आश्रम में बताया गया था.
 
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