Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 14 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

मे चाइ नाश्ता करके ट्यूब वेल पर जाने के लिए निकल ही रहा था कि श्याम भाई बोले - चल मे भी तेरे साथ चलता हूँ, फसल देख कर आता हूँ.

मे - ठीक है, चलो… और हम दोनो खेतों की ओर चल दिए अपनी अलग-अलग सोचों को अपने मन में लिए…..!
हम दोनो भाई ट्यूबिवेल के सामने चारपाई डाल कर बैठे थे.. 

कुछ देर की चुप्पी के बाद श्याम ने बोलना शुरू किया – कल थाने क्यों गये थे तुम दोनो ?

मे - थानेदार ने खबर भिजवाई थी, कि कोई काम है डकैती वाले केस से संबंधित इसलिए गये थे.

श्याम - क्या बात हुई थी वहाँ ..?

मे - किसी ने उसको खबर देदि है कि उन डाकुओं को गाँव वालों ने मिलकर नही मैने अकेले ने मारा था, 

इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट एसपी ऑफीस को भेज दी थी, एसपी से एसएसपी ओर फिर डीआईजी तक बात पहुँच गयी..! 

थाने में कल एसपी ने ही बुलवाया था, लेकिन साथ में एसएसपी भी आ गये, क्योंकि मामला मेरे नाम से जुड़ा हुआ था.

श्याम - तेरे नाम से जुड़ा था तो इसमें एसएसपी को क्या इंटेरेस्ट था.. वो तो एसपी की रिपोर्ट पर ही चलते हैं ना..! 

मे - वो एसएसपी मुझे पहले से जानते हैं..! जब वो मेरे कॉलेज वाले शहर में एसपी थे..

श्याम - क्या..? वो तुझे पहले से जानते हैं..? और डीआईजी…?

मे - वो भी..! वो वहाँ कमिशनर थे उस समय..!

श्याम – सच में ?? लेकिन इतने बड़े-2 अधिकारी से तेरा परिचय कैसे हुआ..?

मे - वो था एक ड्रग डीलिंग का मसला जो हम कुछ स्टूडेंट्स ने मिलकर सुलझाया था..उसमें इन अधिकारियों ने हमारा साथ दिया था.

श्याम - ओह..! तो इसका मतलब वो तेरे फेवर में हैं..?

मे - इसमें फेवर या अन फेवर का क्या मतलब..? मैने कोई गुनाह किया है जो पोलीस मुझे परेशान करेगी.. ? मैने तो एक तरह से पोलीस का ही काम आसान किया है..!

श्याम - अरे तू नही जानता ये पोलीस वाले किसी के सगे नही होते.. कोई भी चार्ज लगा कर केस चला सकते हैं..

मे - वो कमजोरे लोगों के साथ ही ऐसा कर सकते हैं, जो उनके दबाब में आजाए.

श्याम - ये तेरी बात सही है, वैसे एसएसपी और डीआईजी अब क्या चाहते हैं..? क्यों बुलाया था उन्होने तुझे..?

मे - वो मे अभी किसी को नही बता सकता..!

श्याम - किसी को का क्या मतलब..? अपने सगे भाई को भी नही..?

मे - आपने अपने सगे भाई पर कभी भरोसा किया है..? आपसे तो बाहर के लोगों को ज़्यादा भरोसा है मेरे उपर..!!

श्याम - देख उस बात के लिए मुझे माफ़ कर्दे.. भाई..! वैसे अगर तू सोचके देखे तो वो मेरी तेरे लिए चिंता थी, मे कभी नही चाहूँगा कि तू किसी मुशिबत मे पड़े.

मे - चिंता कम आपका व्यवहार ज़्यादा था जो हमेशा मेरे प्रति रहा है, 

सोचके देखो शायद कभी आपको लगा हो कि आपने मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार से बात की हो, हमेशा एक गुलाम की तरह समझा. 

आपने ये तक नही सोचा, कि एक एसएसपी जो एक जिले की डिवीजन का पोलीस का हेड होता है, वो हमारी माँ के पाँव च्छुकर आशीर्वाद ले रहा था, वो मुझे कोई नुकसान पहुँचता..? 

मुझे तो नही लगता कि आप उसके उस वार्ताव को समझ ही ना पाए हों. और यदि समझ रहे हों तो फिर ये चिंता वाली बात बेमानी लगती है..!

श्याम के मुँह पर ताला लग गया, उनकी आँखों में पश्चाताप सॉफ दिखाई दे रहा था.

मैने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- आप चिंता ना करो, अब आपको ज़्यादा दिन मेरी वजह से परेशानी नही होगी, हो सकता है इसी महीने मे यहाँ से चला जाउ..!

श्याम भाई – कहाँ जा रहा है..? कोई नौकरी मिल गयी है..?

मे - शायद आपको याद नही है, मे इंजिनियरिंग ग्रॅजुयेट हूँ. जिस कंपनी के गेट पर खड़ा हो जाउ मुझे नौकरी दे देगा. 

फिर भी मे यहाँ अपनी मात्र भूमि समझ कर चला आया था. 

लेकिन मेरी भावनाओं को समझने की वजाय मुझे एक मजबूर बेरोज़गार की तरह रहना पड़ा. 

शायद पिता जी अगर कहीं से देखते होंगे तो उन्हें भी अपने बेटों के व्यवहार पर शर्मिंदगी होती होगी.

श्याम की रुलाई फुट पड़ी, अपने आँसू पोन्छते हुए बोले - बस कर मेरे भाई, अब और जॅलील ना कर..! 

आज मे सच्चे दिल से अपने व्यवहार के लिए माफी माँगता हूँ, हो सके तो अपने भाई को माफ़ कर देना. 

तू जहाँ भी रहे खुश रहे भगवान से जीवन भर यही दुआ करूँगा.

उसके बाद वो उठ कर चले गये खेतों की ओर……. !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 
मे चाइ नाश्ता करके ट्यूब वेल पर जाने के लिए निकल ही रहा था कि श्याम भाई बोले - चल मे भी तेरे साथ चलता हूँ, फसल देख कर आता हूँ.

मे - ठीक है, चलो… और हम दोनो खेतों की ओर चल दिए अपनी अलग-अलग सोचों को अपने मन में लिए…..!
हम दोनो भाई ट्यूबिवेल के सामने चारपाई डाल कर बैठे थे.. 

कुछ देर की चुप्पी के बाद श्याम ने बोलना शुरू किया – कल थाने क्यों गये थे तुम दोनो ?

मे - थानेदार ने खबर भिजवाई थी, कि कोई काम है डकैती वाले केस से संबंधित इसलिए गये थे.

श्याम - क्या बात हुई थी वहाँ ..?

मे - किसी ने उसको खबर देदि है कि उन डाकुओं को गाँव वालों ने मिलकर नही मैने अकेले ने मारा था, 

इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट एसपी ऑफीस को भेज दी थी, एसपी से एसएसपी ओर फिर डीआईजी तक बात पहुँच गयी..! 

थाने में कल एसपी ने ही बुलवाया था, लेकिन साथ में एसएसपी भी आ गये, क्योंकि मामला मेरे नाम से जुड़ा हुआ था.

श्याम - तेरे नाम से जुड़ा था तो इसमें एसएसपी को क्या इंटेरेस्ट था.. वो तो एसपी की रिपोर्ट पर ही चलते हैं ना..! 

मे - वो एसएसपी मुझे पहले से जानते हैं..! जब वो मेरे कॉलेज वाले शहर में एसपी थे..

श्याम - क्या..? वो तुझे पहले से जानते हैं..? और डीआईजी…?

मे - वो भी..! वो वहाँ कमिशनर थे उस समय..!

श्याम – सच में ?? लेकिन इतने बड़े-2 अधिकारी से तेरा परिचय कैसे हुआ..?

मे - वो था एक ड्रग डीलिंग का मसला जो हम कुछ स्टूडेंट्स ने मिलकर सुलझाया था..उसमें इन अधिकारियों ने हमारा साथ दिया था.

श्याम - ओह..! तो इसका मतलब वो तेरे फेवर में हैं..?

मे - इसमें फेवर या अन फेवर का क्या मतलब..? मैने कोई गुनाह किया है जो पोलीस मुझे परेशान करेगी.. ? मैने तो एक तरह से पोलीस का ही काम आसान किया है..!

श्याम - अरे तू नही जानता ये पोलीस वाले किसी के सगे नही होते.. कोई भी चार्ज लगा कर केस चला सकते हैं..

मे - वो कमजोरे लोगों के साथ ही ऐसा कर सकते हैं, जो उनके दबाब में आजाए.

श्याम - ये तेरी बात सही है, वैसे एसएसपी और डीआईजी अब क्या चाहते हैं..? क्यों बुलाया था उन्होने तुझे..?

मे - वो मे अभी किसी को नही बता सकता..!

श्याम - किसी को का क्या मतलब..? अपने सगे भाई को भी नही..?

मे - आपने अपने सगे भाई पर कभी भरोसा किया है..? आपसे तो बाहर के लोगों को ज़्यादा भरोसा है मेरे उपर..!!

श्याम - देख उस बात के लिए मुझे माफ़ कर्दे.. भाई..! वैसे अगर तू सोचके देखे तो वो मेरी तेरे लिए चिंता थी, मे कभी नही चाहूँगा कि तू किसी मुशिबत मे पड़े.

मे - चिंता कम आपका व्यवहार ज़्यादा था जो हमेशा मेरे प्रति रहा है, 

सोचके देखो शायद कभी आपको लगा हो कि आपने मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार से बात की हो, हमेशा एक गुलाम की तरह समझा. 

आपने ये तक नही सोचा, कि एक एसएसपी जो एक जिले की डिवीजन का पोलीस का हेड होता है, वो हमारी माँ के पाँव च्छुकर आशीर्वाद ले रहा था, वो मुझे कोई नुकसान पहुँचता..? 

मुझे तो नही लगता कि आप उसके उस वार्ताव को समझ ही ना पाए हों. और यदि समझ रहे हों तो फिर ये चिंता वाली बात बेमानी लगती है..!

श्याम के मुँह पर ताला लग गया, उनकी आँखों में पश्चाताप सॉफ दिखाई दे रहा था.

मैने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- आप चिंता ना करो, अब आपको ज़्यादा दिन मेरी वजह से परेशानी नही होगी, हो सकता है इसी महीने मे यहाँ से चला जाउ..!

श्याम भाई – कहाँ जा रहा है..? कोई नौकरी मिल गयी है..?

मे - शायद आपको याद नही है, मे इंजिनियरिंग ग्रॅजुयेट हूँ. जिस कंपनी के गेट पर खड़ा हो जाउ मुझे नौकरी दे देगा. 

फिर भी मे यहाँ अपनी मात्र भूमि समझ कर चला आया था. 

लेकिन मेरी भावनाओं को समझने की वजाय मुझे एक मजबूर बेरोज़गार की तरह रहना पड़ा. 

शायद पिता जी अगर कहीं से देखते होंगे तो उन्हें भी अपने बेटों के व्यवहार पर शर्मिंदगी होती होगी.

श्याम की रुलाई फुट पड़ी, अपने आँसू पोन्छते हुए बोले - बस कर मेरे भाई, अब और जॅलील ना कर..! 

आज मे सच्चे दिल से अपने व्यवहार के लिए माफी माँगता हूँ, हो सके तो अपने भाई को माफ़ कर देना. 

तू जहाँ भी रहे खुश रहे भगवान से जीवन भर यही दुआ करूँगा.

उसके बाद वो उठ कर चले गये खेतों की ओर……. !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 
करीब 25 दिन बाद डीआईजी ऑफीस से एक सरकारी गाड़ी आई मुझे लेने,

प्रेम भाई मेरे साथ आना चाहते थे, लेकिन बिना डीआईजी साब की पेर्मिशन लिए ये उचित नही था…

मे उनके ऑफीस पहुँचा तो वहाँ एनएसए (नॅशनल सेक्यूरिटी एजेन्सी चीफ़) खुद मौजूद थे. उनके अलावा आइजी पोलीस और डीआईजी भी थे. 

एनएसए ने एक बार मेरी फाइल की ओर देखा और फिर मेरी ओर देख कर मुखातिब हुए - सो यंग मॅन व्हाट यू आर डूयिंग नाउ..?

मे - नतिंग सर, जस्ट एजोयिन्ग माइ नेटिव लाइफ..! 

एनएसए - व्हाई..? यू आर एन इंजिनियर, आंड वैस्टिंग युवर वॅल्युवबल टाइम..! ईज़ दिस नोट शोस युवर इररेस्पओनसीबल नेचर..?

मे - यू कॅन से दिस सर, बट इट्स डिपेंड्स ऑन इंडिविजुयल्स नेचर..! आ पॉज़िटिव थॉट कॅन क्रियेटिविटी अट एनी वेर आंड नेगेटिविटी कॅन’ट सर्व ईवन सिट्टिंग इन लग्षूरीयस ऑफीस.

एनएसए - वेरी नाइस..! ब्रिलियेंट आन्सर..! नाउ कम टू दा पॉइंट.., 

आइ सीन दिस फाइल. नो डाउट आपने जो किया है एक आम आदमी तो उसके बारे में सोच भी नही सकता, ईवन जो क्विक डिसिशन लेके आपने जो स्टेप्स लिए वो तो एक ट्रेंड कमॅंडो भी नही ले सकता. हाउ डिड दिस..?

मे - क्यूंकी मुझे कहीं से कोई कमॅंड मिलने वाली नही थी, जो भी करना था मैने खुद करना था, तो समय पर मेरे दिमाग़ ने जो भी डिसिशन लिया, मैने कर दिया. 

अपनी बात को जारी रखते हुए मे आगे बोला – 

और सर ! वहीं एक कॉम्मोडो को उसके उपर से कमॅंड मिलती है तो वो एक डिपेंडेन्सी जैसा फील करते हुए अपना काम करता है, 

हो सकता है वो सेल्फ़ डिसिशन से और अच्छा कर सकता हो, क्योंकि ज़रूरी नही कि उसे कमॅंड देने वाला सर्वगुण संपन्न ही हो.

एनएसए - सही कहा तुमने ! एक आख़िरी सवाल- आपने जो भी किया है पास्ट में, क्या आपको नही लगता कि वो क़ानून को ताक में रख कर किया गया था.

मे- सर ! बिफोर टू आन्सर यू फॉर दिस, क्या मे एक सवाल आपसे पुच्छ सकता हूँ..?
एनएसए ने मुस्कराते हुए कहा - ज़रूर पुछो..!!

मे - आपने मेरी फाइल देखी है, इनमें से कोई भी सिचुयेशन आपको ऐसी लगी, जहाँ मैने क़ानून को अनदेखा किया हो..? जहाँ ज़रूरत लगी वहाँ इन्वॉल्व ना किया हो दो केस को छोड़के.!

क्या डकैती वाले केस में मुझे पोलीस को इनफॉर्म करके उसका इंतजार करना चाहिए था..? जबकि पोलीस के पास खबर पहुँचने के बावजूद भी दो-तीन घंटे के बाद पहुचि…. 

बॉम्ब ब्लास्ट की साजिस वाले केस में भी अगर मे पोलीस को इनफॉर्म करता तो क्या इस तरह की सफलता मिलने की उम्मीद थी..?

सॉरी टू से सर ! बट यू कॅन’ट एक्सपेडाइट ऑल था थिंग्स विदिन दा लॉ, कुछ काम्मों को समाज और ईवन देश की भलाई के लिए आप भी शायद बियॉंड दा लॉ जाते ही होंगे..!

उनकी सिर्फ़ गर्दन ही हां में हिली… कोई जबाब नही दिया.

एनएसए - देश के लिए कुछ करना चाहोगे..? 

उनकी ये बात सुनकर मुझे हल्की सी हँसी आ गयी..! वो मेरी तरफ देख कर बोले.

एनएसए - मेरी बात पर हँसी क्यों आई आपको..? मैने कुछ ग़लत कह दिया,,?

मे - नही सर ! आपने ग़लत तो कुछ नही कहा- लेकिन मे ये समझ नही पाया कि देश के लिए ऐसा क्या काम करना होगा जो मैने अभी तक नही किया है..!

एनएसए थोड़ा झेन्प्ते हुए बोले - ओह्ह.. ! आइ आम सॉरी ! यू आर रिघ्त, ईवन माइ क्वेस्चन वाज़ रॉंग..!

मेरा मतलब है, कि जो देश भक्ति आपके अंदर है, क्या उसे देश की किसी संस्था के दायरे में रहकर करना चाहोगे..? 

जो कि दो तरफ़ा होगा.. तुम देश की हिफ़ाज़त करो, और देश तुम्हारी हिफ़ाज़त करे.

सी मिस्टर. अरुण ! ये जो आपने काम किए हैं, या जो करने वाले हो, उन कामों से निकट भविश्य में आपके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ती जाएगी…

जिनमें से कुछ तो इतने पवरफुल होंगे, जिनसे आप अकेले मुकाबला ना कर पाओ… 

देश नही चाहेगा, कि आपके जैसा कोई देशभक्त, किसी गंदी राजनीति या माफिया की भेंट चढ़े…

होप यू अंडरस्टॅंड मी….

मे समझ गया सर, लेकिन मे समय के साथ खुद डिसिशन लेने का आदि हूँ, तो ऐसे में किसी की सूपरमिशी आड़े आ सकती है.

एनएसए - वो सब तुम हमारे उपेर छोड़ दो, हम ऐसा कुछ करेंगे जिससे इस तरह की सिचुयेशन ही तुम्हारे सामने पैदा ना हो. 

बस तुम अपना निर्णय बताओ, क्या तुम करना चाहोगे..?

मे - अभी मे इस विषय पर कोई निर्णय नही ले सकता सर !.. आप अपना कॉंटॅक्ट नंबर दे दीजिए, मे आपको कॉंटॅक्ट करके जल्दी ही बता दूँगा.

फिर उन्होने अपना पर्सनल सेल नंबर मुझे दे दिया, उसे लेकर मे अपने घर वापस लौट लिया………!!!!
ध्यान के साथ-2 अब मैने कुछ योगा और प्राणायाम एक्सर्साइज़ भी शुरू करदी थी जिनका इन्स्टेंट असर पड़ना शुरू हो गया. 

योगा प्राणायाम करने के बाद ध्यान गहरा होने लगा, जिससे मेरी डिसिशन पवर, फिज़िकल पवर और भी बढ़ रही थी.

एक दिन सुबह के साडे तीन – चार का वक़्त था, मे ध्यान में बैठा था कि अचानक मेरी आँखों के सामने एक छनाका सा हुआ, 

मेरे आस-पास का वातावरण एक दम हल्की नीलिमा लिए हुए सफेद रोशनी से जगमगा उठा, 

वो रोशनी चारो ओर बिखरती जा रही थी, उसका दायरा बढ़ता चला जा रहा था, अब जहाँ तक मेरी कल्पना शक्ति पहुँच रही थी वाहा तक वो रोशनी मुझे दिखाई दे रही थी.

मे उस रोशनी में नहाया हुआ था, मेरी आँखों के ठीक सामने एक जगह वो रोशनी एक समुंह में इकट्ठा होने लगी, मानो बादल एक जगह ज्यदा गहेन हो गये हों, और उसके आस-पास धुए जैसा बिखरा हुआ हो. 

धीरे - 2 वो रोशनी का समुंह एक आकृति में परिवर्तित होने लगा.

धीरे-2 अब वो आकृति एक मानव शरीर अख्तियार करती जा रही थी, लेकिन पूर्णतः सामान्य मानव जैसी नही..! 

प्रतीत होरहा था मानो कोई परच्छाई सी हवा में तैर रही हो.

अनायास ही वातावरण में कुछ गर्जना जैसी हुई, और उस आकृति से एक आवाज़ उत्पन्न हुई मानो वो मुझे संबोधित कर रही हो.. ! 

मे उस आकृति को विश्मय से देख रहा था.

अपने आप को पहचानने की कोशिश करो हे मानव- जैसे ये शब्द उस आकृति ने मुझसे कहे हों. 

वो आवाज़ मेरे चारों ओर व्याप्त वातावरण में गूँज रही थी. मे सिर्फ़ अपलक उसकी ओर देखे जा रहा था, और उन शब्दों को सुन रहा था. 

तुम असीमित क्षमताओं से युक्त हो, अपनी इस क्षमता को ठीक से पहचानो और उसे मानव जाती के कल्याण में लगाओ इसी में तुम्हरा कल्याण है और यही तुम्हारी नियती भी…! 

मे - लेकिन मे तो सामाजिक सीमाओं में बँधा हूँ, फिर मे इन बन्धनो के रहते कैसे जान कल्याण के कार्य कर सकता हूँ, और उससे मुझे क्या लाभ..?

सत्कर्म करने के लिए कोई सीमा या बंधन तुम्हें रोक नही पाएगा.. बस एक बार निश्चय कर लो..उस परच्छाई ने जबाब दिया ! 

रही बात लाभ की तो वो अपने कर्मों पर छोड़ दो. 

याद करो भगवान श्रीकृष्ण का गीता में दिया हुआ वो उपदेश….!

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||

तुम सिर्फ़ कर्म करो, फल उसी अनुपात में नियती निर्धारित करती है.

स्वतः ही मेरे होठ हिल रहे थे, मैने फिर उस परच्छाई से सवाल किया- हे देव ! आप कॉन है..?

वो - तुम्हारे अंदर स्थित अलौकिक शक्ति का ही एक स्वरूप हूँ मे..! जब तुम अपने आपको पूर्णतः पहचान लोगे तो पाओगे कि मे तुम ही हूँ. 

सिर्फ़ अपने तीसरे नेत्र को खोलने की ज़रूरत है, जो हर प्राणी-मात्र में विद्यमान होता है…!

जो उसे खोल पाता है, वो स्वतः को पहचान लेता है, और लाभ-हानि के चक्करों से मुक्त होकर निस्वार्थ कर्म करता रहता है…

इतना कह कर वो आकृति लुप्त हो गयी और धीरे-2 वो रोशनी का समुंह मेरे अपने शरीर में ही विलुप्त होगयि. 
 
मैने हड़बड़ा कर आँखें खोली और अपने चारों ओर का निरीक्षण किया, सब कुछ पूर्ववत सामान्य ही था.

मे थोड़ी देर शवसन की मुद्रा में लेट गया और अचेतन में डूब गया. 

सुबह जब में उठा, तो सब कुछ पहले जैसा ही था पर अंदर कुछ-2 बदल रहा था मानो, अब मे एक निर्णय की स्थिति मे आ चुका था.

मैने सोच लिया कि अब मुझे आती शीघ्र यहाँ से निकल जाना चाहिए. नियती ने मेरे लिए जो रास्ता निर्धारित किया है, उसी पर चलने का समय आ चुका है...

मे घर आया, नाश्ता वग़ैरह किया, और बाइक लेके टाउन में पहुँचा वहाँ एक स्ट्ड बूथ से एनएसए अमित चौधरी को फोन लगाया..

कुछ देर रिंग जाने के बाद फोन पिक हुआ- हेलो कॉन..? उधर से एनएसए की आवाज़ उभरी

मे - मे आइ टॉक तो एनएसए ऑफ इंडिया मिस्टर. अमित चौधरी..??

यस ! अमित चौधरी स्पीकिंग..! हू आर यू..? उधर से बोला गया.

मे - सर ! गुड मॉर्निंग !! अरुण शर्मा दिस साइड..!

एसी - हू अरुण शर्मा..? ओह ! तुम हो ! एस टेल मी अरुण.. व्हाट यू हॅव डिसाइडेड..??

मे - सर आइ वॉंट टू मीट यू..! वुड यू..?

एसी - एस ! ऑफ कौर्स ! व्हाई नोट..? टेल मी व्हेन कॅन यू कम टू माइ ऑफीस..?

मे - अट अर्लीयेस्ट सर !!

एसी - ओके यू कॅन कम टुमॉरो अट 11 आम. आइ विल बी अवेलबल हियर.

मे - सर ! वुड यू स्टेट मी युवर ओफिस अड्रेस.. प्लीज़ इफ़ पासिबल. 

एसी - शुवर ! आइ आम गिविंग दिस कॉल टू माइ सीक्रेटरी, शी विल एक्सप्लेन यू ऑल. ओके

फिर कुछ देर शांति रही उसके बाद एक सुरीली सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- 

हाई आइ आम श्यामल मल्होत्रा दिस साइड, सीक्रेटरी ऑफ एनएसए इंडिया. प्लीज़ नोट डाउन माइ ऑफीस अड्रेस…!

फिर उसने मुझे अपना अड्रेस लिखवाया और फोन कट कर दिया.

दूसरी सुबह अर्ली मॉर्निंग मैने ट्रेन पकड़ी और 10:45 आम को में सेक्रेट एरिया में था. 

ऑफीस ढूढ़ते-2 11 बज ही गये. सेक्यूरिटी में एंट्री कराई और जाके उनके ऑफीस में एंटर हुआ.

सामने एक बहुत बड़ी सी टेबल के पीछे एक बड़ी सी रिवॉल्विंग चेर पर मिस्टर. चौधरी बैठे हुए थे उनके बगल की एक सीट पर एक साटन की साड़ी में उनकी सीक्रेटरी श्यामल मल्होत्रा बैठी थी, 

वो एक लगभग 30 साल की निहायत ही खूबसूरत महिला थी.

मे आइ कम इन सर..! उन्होने अपना सर दरवाजे की ओर उठाया, और मुझे देखते ही एक स्माइल देके बोले – ओह अरुण ! प्लीज़ कम..!

मे अंदर गया तो उन्होने मुझे बैठने का इशारा किया. जब मे बैठ गया तो उन्होने अपनी सीक्रेटरी को कोई काम दिया और उसे बाहर भेज दिया.

एसी - मेरी ओर देखते हुए.. यू आर सो पुंचुअल.. अपने घर से यहाँ तक राइट टाइम पर पहुँच गये. आइ लाइक इट..!

मे - सॉरी सर ऑफीस ढूढ़ने के चक्कर में दो मिनट लेट हो गया.

एसी - इट्स ओके. टेल मी व्हाट यू डिसाइडेड..?

मे - सर आप बोलिए ! मेरे लिए क्या आदेश है ? मुझे तो बस देश और देशवासियों की हिफ़ाज़त करने का शौक है. इससे ज़्यादा मे और कुछ नही कहना चाहता.

एसी - मैने तुम्हारे बारे में होम मिनिस्टर से बात कर ली है, उनके सुझाव पर पीएम( प्रधान मंत्री ) से भी मिला, 

पीएम ने सॉफ-साफ कहा है, कि हमें देश हित में काम करने वाले हर नागरिक की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए, और जो जिस काबिल है उसे उस हिसाब से ज़िम्मेदारी दे सकते हो.

हमारी एक संस्था है जो देश की इंटर्नल और एक्सटर्नल सुरक्षा सुनिश्चित करती है, जिसकी जानकारी सिर्फ़ पीएम, एचएम, डीएम को ही है, 

वाकी सरकार के नुमाइंडों को सिर्फ़ इतना पता है कि कोई नॅशनल सेकरीट सर्विस ऑफ इंडिया (एनएसएसआइ) नाम की भारत सरकार की कोई एजेन्सी है, 

लिकिन इसमें कों लोग हैं, कितने एजेंट काम करते और किसको रिपोर्ट करते हैं, किसी को नही मालूम. 

भारत सरकार ने ये ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी है, और इसके तमाम एजेंट या तो पीएम, वरना मुझे रिपोर्ट करते हैं, 

अगर हम दोनो में से कोई अवेलबल नही है, और कोई अर्जेन्सी होती है तभी एचएम और डीएम कोई डिसिशन ले सकते हैं उन एजेंट्स के बारे मैं.

अब मैने पीएम को इसी संस्था के लिए तुम्हारा नाम प्रपोज़ किया था, जो उन्होने अप्रूव्ड कर दिया है, 

अब तुम्हें इस एजेन्सी के तहत एक अंडर कवर एजेंट के तौर पर काम करना है, जो देश के अंदर या बाहर परिस्थिति के हिसाब से तुम्हें डिसाइड करना होगा. 

हमारी ओर से केवल एक असाइनमेंट के तौर पर एक ऑर्डर इश्यू होगा, वाकी का काम तुम्हारा खुद का होगा.

एक बात नोट करके रखना, तुम्हारी आइडेंटिटी एनएसएसआइ के एजेंट के तौर पर किसी भी सूरत में सार्वजनिक नही होनी चाहिए, 

अगर ग़लती से भी ऐसा हुआ, तो तुम्हें तुरंत वहाँ से हटा कर अंडर ग्राउंड कर दिया जाएगा, 

ये भी हो सकता है कि तुम्हें अपनी जिंदगी से भी हाथ धोना पड़े. एक बार फिर से सोच लो, क्या ये हो पाएगा तुमसे..?

मैने कहा – सर ! अब जब ओखली में सर डाल ही दिया है, तो मूसल से क्या डरना…
मेरी बात पर वो ठहाका लगा कर हँस पड़े, मे भी उनका साथ देने लगा…

फिर वो बोले - शाबाश बेटे ! मुझे तुमसे ऐसी ही दिलेरी की आशा थी….!

एनएसए अजीत चौधरी बोले- अब हम तुमें एक जॉब के लिए अपायंटमेंट लेटर देंगे जो तुम्हारी डिग्री के मुताबिक भारत सरकार द्वारा मान्याताप्राप्त पीएसयू में एक इंजीनियर के तौर पर रहेगा. 

ध्यान रहे वो सिर्फ़ दिखावे के लिए होगा, तुमसे उस ऑफीस में कभी भी, कोई भी, किसी काम या उपस्थित रहने के लिए नही कहेगा. 

तुम वहाँ एक बहुत बड़े सिफारीसी कर्मचारी के तौर पर देखे जाओगे जैसे किसी बड़े मिनिस्टर या नेता के खास आदमी होते हैं.

वहाँ जाय्न करने से पहले 6 महीने तुम्हें एक कमॅंडो ट्राइंग कॅंप भेजा जा रहा है, जहाँ तुम्हारी ऐसी ट्रैनिंग होगी कि तुम्हें नानी याद आ जाएगी, 

ये बोलकर वो हँसने लगे. फिर थोड़ा सीरीयस होकर बोले-

ध्यान रहे अरुण, अब तुम भारत सरकार के एक ऐसे नुमाइंदे हो जिसकी ज़िम्मेदारियाँ देश के प्रेसीडेंट और प्राइम मिनिस्टर से भी बढ़कर होंगी देश की सुरक्षा को लेकर, 

ये लोग तो बदलते भी रहेंगे, लेकिन तुम सदैव इस देश की हिफ़ाज़त करते रहोगे. 

सो अबसे तुम एक नये अवतार में बदल चुके हो, इस बात को अपने दिल और दिमाग़ में अभी से बैठा लो.
 
मैने सीधे अकड़ कर बैठते हुए कहा- मे आज से बल्कि अभी से ये सुनिश्चित करूँगा सर, कि आपने जो कहा है, उन बातों का शत-प्रतिशत पालन होगा. 

मे आपसे एक वादा करता हूँ, कि मुझे सौपी गयी कोई भी ज़िम्मेदारी, मे अपनी जान देकर भी पूरी करने की कोशिश करूँगा.

मुझे लेकर आपका सर कभी नही झुकेगा, ये मेरा वादा है आपसे. बस इससे ज़्यादा और मे कुछ नही कहना चाहता.

एसी- अभी कुछ ही घंटों में तुम्हारे पास सारे नेसेसरी डॉक्युमेंट्स और बॅंक अकाउंट नंबर. उससे रेलेटेड सारे डॉक्युमेंट्स मिल जाएँगे. 

6 महीने कमांडो ट्रैनिंग कॅंप में तुम्हें ट्रैनिंग लेना है, उसके बाद तुम्हें जिस पीएसयू का अपायंटमेंट लेटर मिलेगा उसमें जाय्न करना है.

डॉक्युमेंट्स के साथ एक सेल फोन जो तुम्हारे नाम से रिजिस्टर होगा एनएसएसआइ ऑफीस में, जिसमें सारे नेसेसरी कॉंटॅक्ट नंबर्स होंगे जो तुम्हारे काम के दौरान लगेंगे इंक्लूडिंग प्रसिडेंट ऑफ इंडिया, पीएम और मेरा भी. 

तमाम राज्यों के आइजी, डीआईजी, हर बड़े शहर के बड़े अधिकीयों से तुम कभी भी कॉंटॅक्ट करके कोई भी मदद माँग सकते हो, 

सिर्फ़ तुम्हें अपनी आइडेंटिटी पुच्छे जाने पर एनएसएसआइ एजेंट का नंबर- 1,2,3 (जो तुम्हारा एजेंट नंबर. होगा) ही बताना होगा….

कुछ देर ठहर कर वो आगे फिर बोले- 

जो बॅंक अकाउंट तुम्हें दिया जा रहा है, उसकी लिमिट तुम खुद तय करोगे, जितना चाहो उतना पैसा निकाल सकते हो, ये अकाउंट आज और अभी से आक्टीवेट हो चुका है…

लेकिन उसका पूरा लेखा जोखा ऑफीस को देना होगा प्रॉपर जस्टिफिकेशन के साथ. 
महीने के 50000/- तक की लिमिट में कोई सवाल जबाब देना नही होगा, मतलब ये तुम्हारी अफीशियल मंत्ली सॅलरी होगी.

अब तुम जाओ, और इसी बिल्डिंग के ब्लॉक नंबर 4, रूम नंबर 12 में जाके आराम करो ये सारे डॉक्युमेंट्स वित ऑल नेकेसरी इन्फर्मेशन वहीं पहुँच जाएगे. 4 दिन बाद तुम्हें ट्राइंग कॅंप में पहुँचना है. 

मे उनको थॅंक्स बोलकर उनके बताए हुए पते पर पहुच गया, रूम देख कर मेरी आँखें खुली रह गयीं,

रूम क्या, ये तो 7स्टार होटेल का कोई सूयीट जैसा लगता था, जिसमें सारी सुख सुविधाएँ मौजूद थीं यहाँ तक कि दुनिया की तमाम तरह की महगी से महँगी शराब भी जो फिलहाल मेरे किसी काम की नही थी. 

सुबह अर्ली मॉर्निंग की ट्रेन पकड़ने के लिए 3 बजे उठना पड़ा था मुझे, और वैसे भी नींद नही आई थी रात भर सोच विचार में, 

सो सामने मुलायम बिसतेर दिख जाए एक देहाती को जो एक तो रात भर का जगा हुआ, और उपर से टूटी-फूटी खाट पर मामूली से बिस्तर पर सोने वाला, सोच सकते हो क्या हुआ होगा.

पड़ते ही नींद ने ऐसा झपट्टा मारा कि सीधा किसी के झकझोरने पर ही उठा, 
कोई मुझे बुरी तरह से झकझोर रहा था, कुछ देर तो ये भी मेरे साथ सपने में हो रहा है, ऐसा ही लगा, 

लेकिन जब काफ़ी देर हिलाते-2 वो जगाने वाला बंदा भी फ्रस्टरेट हो गया और उसने मेरे हाथ को पकड़ कर ज़ोर्से खींचा, तब जाकर मेरी आँख खुली.

मे हड़बड़ा कर आँखे मलते हुए उठा, देखा तो सामने एक अधेड़ उम्र का आधा गंजा आदमी, जो बदन से भी बेडौल लग रहा था खड़ा मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था और साथ ही साथ कुछ बड़बड़ाये जा रहा था.

वो - क्या घोड़े बेच कर सोए हो ? लगता है कितने ही दिनो के बाद सोने को मिला है..? 

लो ये अपना बॅग संभलो. एनएसए ऑफीस से भेजा है तुम्हे देने को.

मे- इसमें क्या है..?

वो - मुझे नही पता, खुद देखलो..! मेरा काम था ये बॅग तुम तक पहुँचाने का सो मैने कर दिया, अब तुम जानो तुम्हारा काम.. 

कब्से हिलाए जा रहा हूँ ? उठने का नाम ही नही ले रहा था, ये सब साले मिनिस्टरों के पहचान वाले ऐसे ही आते हैं क्या..? 

और ना जाने क्या-2 बड-बडाता हुआ वो वहाँ से चला गया.

वॉल क्लॉक में मैने समय देखा..! ओ तेरी का.. 6 बज गये… !!

फिर मैने बॅग खोलकर चेक करना शुरू किया…देखें तो सही क्या है इस जादू के पिटारे में..?

उसमें बॅंक अकाउंट्स से रिलेटेड डाक्युमेन्ट, एक पीएसयू का आपॉइंटमेट लेटर, जो गुजरात के बड़े शहर में है, जाय्निंग डेट आज से 7 महीने बाद की थी.

एक डिकोडेड लेटर जो मुझे ट्रैनिंग कॅंप में देना था, किसको रिपोर्ट करना था किस डेट में, ये सारी बातें डीटेल्स में थी, मेरे एजेंट कोड के साथ. 

मेरा एजेंट कोड था 928. इसका मतलब 927 एजेंट्स आर ऑलरेडी वर्किंग फॉर एनएसएसआइ, जिनका हर किसी को पता नही था, सिवाय कुछ गिनती के लोगों के.

डॉक्युमेंट्स के अलावा एक पॅकेट निकला जिसमें एक ड्युयल सिम सेल फोन था जिसकी एक सिम ऑर्डिनएरी थी, जो मेरे नाम से ही रिजिस्टर्ड थी, लेकिन दूसरी सिम को खोलते ही मेरी आँखें खुली रह गयी..

ये कोई मामूली सिम नही थी, इसे ओपन करने के लिए पहले मुझे कुछ इन्स्ट्रक्षन फॉलो करने पड़े, जो कि उसी पॅकेट में रखे एक पेपर में दिए थे. 

वो सारे इन्स्ट्रक्षन्स पढ़ने के बाद मैने उस सिम को आक्टीवेट किया तो उसमें सारे सीक्रीट्स भरे पड़े थे,
पूरे देश के सभी बड़े-2 अधिकारियों के कॉंटॅक्ट नंबर्स से लेके उनसे संबंधित सारी इन्फर्मेशन्स भी थी. 

ये कोई आम नंबर नही था, मात्र 6 डिज़िट का नंबर इंटरनॅशनल ट्रॅनस्मिशन केपबिलिटी वाला था, 

मतलब अगर मे दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना होऊ, किसी को भी कॉंटॅक्ट कर सकता था, और मुझे कोई ट्रेस भी नही कर सकता था, 

यानी ये किसी भी सबस्क्राइब्ड नेटवर्क की रेंज में नही आ सकता था.

कितनी ही देर मे उस ओफ्फिसियल नंबर वाली सिम को समझता रहा, फिर भी अभी 1/4 सिस्टम ही समझ पाया था. 

मेरा ध्यान भंग हुआ किसी के आने से, मैने उस व्यक्ति की ओर देखा तो वो बोला - साब ये रूम मेरी सर्विस में है, 

अब आपको जो भी चाहिए, रात के खाने में वो आप इस मेनू से सेलेक्ट करके मुझे बता दीजिए.

मैने मेनू उसके हाथ से लिया, और कुछ मन पसंद खाना लाने को बोल दिया. जब वो चला गया तो फिर से मे उस बॅग को खंगालने लगा. 

देखें तो सही, और क्या-2 निकलता है इस जादुई पिटारे में से. 

सेल को एक किनारे रख मैने दूसरा पॅकेट निकाला जो कुछ वज़नदार था. 

जब मैने उस पॅकेट को खोला तो.. वाउ ! उसमें से एक फुल्ली ऑटोमॅटिक करीब 8” लंबी 11 राउंड गन निकली, इंपोर्टेड मेड इन जर्मनी, 

साथ में 5 रेडी मेगज़ीनेस. और लास्ट में एक शानदार काबुली खंजर…..एकदम चमचमाता हुआ, जो मेरा खास वेपन था.

बॅग के अंदर एक और पॉकेट थी जिसकी जिप बंद थी, उत्सुकता वश मैने वो जीप खोलकर उस पॉकेट को भी देखने लगा, 

जैसे ही उसमें हाथ डाला की एक छोटा सा पॅकेट मेरे हाथ में आ गया, मैने उसे भी खोला तो उसमें से एक मल्टी फंक्षनल रिस्ट . निकली.

बॅटरी से चलने वाली ये रिस्ट . देखने मे तो आम . जैसी ही थी, लेकिन मैने जैसे ही उसे ऑन किया और वन बाइ वन उसके फंक्षन्स चेक करने लगा, 

ये कोई आमवाच नही थी, इसमें एक मिनी कॉंपस भी था, 

और सबसे खास बात थी की वाच एक्सप्लोषन को 500 मीटर की दूरी से ही सेन्स कर सकती थी उसका डाइरेक्षन किधर है वो भी बता सकती थी. 

जैसे-2 टारगेट की ओर जाया जाए तो उसकी डिस्टेन्स भी इंडिकेट होती थी, ये सारे इंडिकेशन्स डिजिटल थे.
 
सेल फोन को छोड़ कर वाकी सभी चीज़ों को मैने दुबारा से बॅग में डाला और अभी उस सेल फोन के वाकी के सिस्टम को समझने के लिए ओपन किया ही था कि सेल की बेल बजी…!

मे एकदम उच्छल पड़ा मानो किसी बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो, कारण था वो बेल जो स्पेशल नंबर पर आई थी.

मैने कॉल पिक की तो उधर से एनएसए चौधरी की आवाज़ कानों में पड़ी..

मैने ईव्निंग विश करके उनको थॅंक्स कहा- फिर वो कुछ देर और ज़रूरी इन्स्ट्रक्षन देते रहे और कल निकलने से पहले एक बार मिलके जाने को बोल कर कॉल कट कर दी.

उसके कुछ देर बाद ही खाना आ गया, मैने खाना खाया और जैसे ही रूम सर्विस बर्तन समेट कर गया, मैने बिस्तर पर बैठ कर फिर से उस सेल के स्पेशल फंक्षन समझता रहा. 

इसी में कब 12 बज गये पता ही नही चला, जब आँखें बोझिल होने लगी तो मे उसे बंद करके सो गया, 

एसी रूम में ऐसी नींद आई कि रात का पता ही नही चला.
सुबह 7 बजे मेरी नींद खुली, उठकर नित्य कर्म करके नहाया धोया, योगा, प्राणायाम किया, ध्यान लगाने का समय नही था, तो निकलने के लिए रेडी हुआ ही था कि रूम सर्विस ने नाश्ता लाके दे दिया. 

एनएसए ऑफीस 10 बजे से पहले तो खुलने की संभावना ही नही थी सो न्यूज़ पेपर पढ़ने में लग गया. 

वोही खबरें रोज़ की, कही लूट पाट, कहीं किसी को ठग लिया, कहीं औरत के साथ बलात्कार हो गया. किसी ने प्रॉपर्टी के लिए अपने सगे भाई को मार डाला…

साला पता नही इस देश के लोगों को हो क्या गया है. आराम से मेहनत और ईमानदारी से जिंदगी बसर नही कर सकते किया..? 

यही सब सोचते-2 टाइम हो गया तो बॅग उठाया और रूम सर्विस को बोलके निकल गया.

एनएसए ऑफीस के रिसेप्षन पर पहुँचा तो पता चला कि वो अभी तक ऑफीस नही पहुचे थे, कुच्छ देर वहीं बैठ के इंतजार करने लगा, कोई 15 मिनट के बाद वो आए.

मुझे रिसेप्षन में ही बैठा देख कर उन्होने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया, मे उनके पीछे-2 चल पड़ा....

उन्होने मुझसे पता किया, कि बॅग में जो भी समान था, उसके बारे में कोई कन्फ्यूषन हो तो वो क्लियर करले, 

जब मैने उन्हें सब कुछ ब्रीफ किया तो वो खुश हुए और मेरी नालेज को अप्रीशियेट करते हुए बोले-

हां तो अरुण, अब क्या प्लान है तुम्हारा..?

मे - सर यहाँ से घर जाउन्गा, जो दो चार दिन बचे हैं, उन्हें घर वालों के साथ गुज़ार के कॅंप के लिए निकल लूँगा..!

वो - याद है ना कि तुम्हारी आइडेंटिटी अब एक इंजिनियर की ही रहेगी दुनिया के सामने, चाहे वो तुम्हारा कितना भी सगा क्यों ना हो..! 

मे - डॉन’ट वरी सर, मेरे मुँह से ये राज कभी नही निकलेगा कि मे कॉन हूँ, चाहे मेरी गर्दन ही क्यों ना कट जाए..!

वो - वेरी गुड..! आंड विश यू ऑल दा बेस्ट फॉर युवर फ्यूचर लाइफ..!

मे - थॅंक यू वेरी मच सर ! मैने शेक हॅंड किया और उनका ऑफीस छोड़ दिया…!! 

और फिर चल पड़ा अपनी जिंदंगी की एक नयी मंज़िल की ओर जो कि ना जाने कितनी काँटों भरी थी..?

बाहर आकर मैने ऑटो लिया और न्यू देल्ही रेलवे स्टेशन आ गया. 

अभी लगभग 1 बजा था, सोचा खाना ख़ाके ही देखते हैं कोन्सि ट्रेन मिलती है, 

दिल्ली से कॅल्कटा लाइन सबसे बड़ी लाइन है, सबसे ज़्यादा ट्रेन उसी रूट से गुजरती हैं, तो कोई ना कोई तो मिल ही जानी थी.

एक अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खाया और पास की ही एक गारमेंट शॉप से मैने अपने लिए दो जोड़ी अच्छे से कपड़े खरीदे, 

एक अच्छा सा ब्लेज़र और टाइ भी ले लिया क्योंकि अब अपना हुलिया भी समय और मौके के हिसाब से रखना पड़ सकता था.

एक लोकल ट्रेन की टिकेट ली, जो ढाई बजे निकलने वाली थी, करीब रुकते रुकते हरेक स्टेशन पर रात 10 बजे के बाद ही पहुँचनी थी मेरे स्टेशन पर.

ट्रेन प्लेट फॉर्म पर लग चुकी थी, लेकिन अभी उसके च्छुटने में 10-15 मिनट और थे, लोकल ट्रेन थी सो ज़्यादा भीड़ भी नही थी. 

सोचा थोड़ा चक्कर लगा लेते हैं प्लेट फॉर्म पर, वो स्पेशल वाच मेरी रिस्ट में बँधी हुई थी.

एंजिन की तरफ से मे पीछे की ओर प्लेट फॉर्म पर चला जा रहा था, कि लास्ट से कोई 3-4 बोगी पहले मेरी कलाई में कुछ वेब्रॅशन महसूस हुआ, 

अब एक तो नये-2 एनएसएसआइ एजेंट का भूत सवार था, तो उसका इंप्रेशन कुछ ज़्यादा ही था मेरे उपर, 

मैने वाच पर नज़र डाली तो नीली लाइट ब्लिंक हो रही थी, जो इंडिकेट करता था, कि आस-पास कहीं तो कुछ अनवॉंटेड चीज़ है…

मैने एक्सप्लोसिव फंक्षन ऑन किया, तो उसका सेन्सर ब्लिंकिंग करने लगा, किसी शिकारी कुत्ते की तरह मेरे कान तुरंत खड़े हो गये.

मे उस बोगी के पास खड़ा हो गया, सिग्नल भी उसी के अंदर की तरफ इंडिकेशन देने लगी, 

मे पीछे मुड़ा और आगे वाले गेट से उस डिब्बे में घुस गया, बॅग मेरे कंधों पर लटका हुआ था.

पॅसेज से गुज़रता हुआ मे आगे से पीछे की ओर आया, तो जहाँ से इंडिकेशन आ रहा था उधर को एक उड़ती सी नज़र डाली, और गुज़रते-2 ही मैने वहाँ का जायज़ा ले लिया और आगे बढ़ गया, 

मे एक ब्लॉक छोड़ कर दूसरे ब्लॉक की साइड वाली सीट पर बैठ गया उधर की ओर ही मुँह करके.

वो चार लोग थे जो हाव भाव से ही सिम्मी के मेंबर लग रहे थे . 

वो चारों दो-दो के हिसाब से आमने सामने की सीट पर बैठे थे, उनके बॅग सीट के नीचे रखे हुए थे.

मे जानना चाहता था उनके प्लान को, उसकी जड़ तक पहुँचने के लिए बस उनपर नज़र रख कर ही पहुचा जा सकता था.

ट्रेन चल पड़ी, वो चारों आपस में बात-चीत करते हुए बैठे थे, 

मे भी दिखाने के लिए अपनी आँखें बंद करके उनके सामने ही बैठा था, जिनमें से दो को ही नज़र आ रहा था, वाकी दो आड़ में थे.

मे उनके दिमाग़ में कोई शक पैदा नही करना चाहता था, एक आम पेसेन्जर की तरह मे अपनी आखे बंद किए बैठा रहा, 

ट्रेन अपने शेड्यूल के हिसाब से रुकती रुकती बढ़ी चली जा रही थी. करीब 3 घंटे का सफ़र तय हो चुका था. 

मेरे अनुमान के हिसाब से उन लोगों को अलीगढ़ पर उतरना चाहिए था, जो अब आधे घंटे में आ जाना चाहिए. 

में अब उनकी गतिविधियों पर नज़र गढ़ाए हुए था, लेकिन कोशिश यही थी कि उनको शक ना हो.

वो स्टेशन भी आनेवाला था, ट्रेन आउटर सिग्नल पर स्लो हो गयी, वो लोग अपना सामान लेकर पिछले गेट पर आ गये, 

उनके जाने के बाद मैने उनकी सीट के नीचे चेक किया कि कुछ समान छोड़ तो नही गये हैं, और आगे के गेट पर पहुच गया.
 
स्टेशन अभी दूर था, गाड़ी स्लो और स्लो होती जा रही थी कि वो चारों एक-एक करके चलती गाड़ी से ही कूद गये अपना सामान लेकर, 

उनके ऑपोसिट साइड में आकर, मे भी उतर गया.

हल्का हल्का अंधेरा होने लगा था. वो लोग समान उठाकर एक तरफ को बढ़ गये, 

थोड़ी दूरी बनाकर मे भी उनके पीछे पीछे लग गया और ध्यान रखा कि वो मुझे ना देख पाएँ.

रेलवे ट्रॅक से उतर कर उन्होने एक रिक्शा लिया, मैने भी फ़ौरन एक रिक्शे को हाथ दिया और उसको उस रिक्शे के पीछे-2 चलने को कहा.

वो चारों एक घनी मुस्लिम अवादी वाली बस्ती में पहुच कर एक मदरसे के बाहर उतरे. 

मेरा अनुमान एक दम सही निकला, वो जिस इमारत में दाखिल हुए वो सिम्मी का ही एक अड्डा था.

वो चारों अंदर चले गये. मैने रिक्शा कुछ आगे जाके रुकवाया और उसको पैसे देके रवाना किया. 

अब मेरे सामने एक सवाल मुँह बाए खड़ा था कि मे अंदर कैसे जाउ..?

बहुत देर तक मे वहीं इधर उधर टहलता रहा और सोचता रहा, कि अब आगे क्या किया जाए..? 

कि तभी वो चारों बाहर निकलते दिखाई दिए.. 

अब उन दो के पास ही बॅग थे, दो अपने-2 बॅग अंदर ही छोड़ आए थे.

मे एक साइड में हो गया जिससे उनकी नज़र मुझ पर ना पड़े. जब वो मेरे पास से गुजर गये तो मे फिर से उनके पीछे -2 चल पड़ा. 

लेकिन अब मेरी वाच कोई इंडिकेशन नही दे रही थी, इसका मतलब वो उस एक्सप्लोषन को अंदर ही छोड़ आए थे…..!

कुछ देर बाद वो चारों एक पुराने, लेकिन बड़े से हवेली नुमा मकान के सामने थे, मे भी उनका पीछा करते-2 यहाँ तक पहुँच गया, 

ये एक बहुत ही पुराना सा मकान था, जिसकी दीवारों पर से कई जगह पपड़ी और सीलन से उसका प्लास्टर उखड़ चुका था, 

दीवारें पान- की पीकों से लाल हो रही थी, जगह-2 पर, ऐसा लगता था मानो इसमें लंबे समय से कोई नही रहता था.

वो चारों बड़े फाटक नुमा दरवाजे के अंदर चले गये, मैने इधर-उधर नज़र दौड़ाई कि कहीं कोई और तो नही देख रहा हमें. 

जब अस्वस्त हो गया कि और कोई नही है यहाँ, तो मे भी उस मकान में घुस गया, मेन गेट से तकरीबन 20 फीट तक गॅलरी जैसी थी जिसके दोनो तरफ ओपन बारादरी जैसा ही था.

उसके बाद एक बहुत बड़ा ओपन ग्राउंड जैसा था, उसके बाद बहुत सारे कमरे तीन तरफ.

मे ग्राउंड में ना जाकर उस बारादरी में से खंबों की आड़ लेता हुआ बस अंदाज़े से ही एक तरफ को बढ़ गया,

जहाँ एक तरफ की बारादरी ख़तम होती थी वही से उसके पर्पेनडिक्युलर कमरे शुरू हो जाते थे, और तीन साइड से होते हुए, दूसरी साइड की बारादरी के अंत में मर्ज हो रहे थे. 

मे कमरों को च्छुपते-च्छूपाते चेक करता हुआ जा रहा था, उस लाइन में वो लोग मुझे नही मिले, तो दूसरी तरफ, माने मैन गेट के सामने वाले पोर्षन को देखना शुरू कर दिया, 

एक के बाद एक कमरे को चेक करता हुआ मे, मेन गेट के सामने तक आ पहुँचा… लेकिन कोई आहट मुझे अभी तक सुनाई नही दी, जिससे ये अंदाज़ा लगा सकूँ कि वो लोग कहाँ हैं.

मैने अपना चेक करने का काम जारी रखा, और एक और कमरा चेक करके आगे बढ़ा ही था, कि अचानक मुझे उन लोगों की बात-चीत करने की आवाज़ सुनाई देने लगी, मे धीरे-2 उस आवाज़ की दिशा में बढ़ गया.

वो एक हॉल जैसे कमरे में कुल 7 लोग थे, जिनमें एक तकरीबन 38-40 साल का आदमी, लंबा चौड़ा, लंबी दाढ़ी, क्रीम कलर का पठानी सूट पहने हुए उन सबके बीच खड़ा था, और उन लोगों को कुछ समझा रहा था, मे समझ गया कि ये इनका लीडर हो सकता है.

मे उस कमरे से लगे दूसरे कमरे की खिड़की से उन्हें बड़े अच्छे से देख और सुन सकता था.

लीडर उन चार लड़कों को, जो दिल्ली से मेरे साथ आए थे शाबासी देते हुए कह रहा था - तुम चारों ने बहुत हिम्मत का काम किया है,

जो बॉम्ब का सामान और बारूद हम इतने दिनो से लाने की सोच रहे थे, वो तुम लोगों ने लाकर हमारी मुसीबत हल कर दी है, 

मे इसके लिए रहमान साब से अलग से तुम लोगों को इनाम दिलवाउंगा.

वो फिर आगे बोला - देखो, हम वो बॉम्ब दो दिन में तैयार कर लेंगे, मैने एक बॉम्ब एक्सपर्ट को भी बुलाया है, 

वो कल ही हमारे ठिकाने पर पहुँच जाएगा, उसके आते ही हम बॉम्ब असेंबल कर लेंगे, तो परसों की रात तुम सब लोग वहाँ ठीक रात 9 बजे तक आ जाना, 

वो एक्सपर्ट और रहमान साब भी होंगे, तभी आगे की प्लॅनिंग सेट करके इस काम को अंजाम देंगे. 

इंशा अल्लाह अगर हमें इस काम में फ़तह मिल गयी, तो हम इस देश की काफ़िर सरकार को एक बहुत बड़ा झटका देने में कामयाब होंगे.

उनमें से एक बंदा बोला - इंशा अल्लाह हम ज़रूर कामयाब होंगे जनाब..! आप फिकर ना करें, हम अपनी जान की बाज़ी लगाकर इस काम को अंजाम देंगे, और इन काफिरों से अपना हिसाब चुकता करेंगे..

लीडर - शाबास मुझे तुम लोगों से यही उम्मीद थी, अब तुम सब लोग जाओ, और परसों मिलते है, खुदा हाफ़िज़.

वाकी सब – खुदा हाफ़िज़ जनाब..!! 

फिर उस लीडर ने कुछ नोटों की गद्दी अपनी जेब से निकाली और उन 6 लोंगों में बाँट दी, और वहाँ से चले गये.
अब मेरे हिसाब से फिलहाल उनलोगों का पीछा करने का कोई मतलब नही था सो मे वहाँ से सावधानी बरतते हुए निकल आया और उस इमारत, जिसमें उनलोगों ने वो एक्सप्लोसिव रखे थे के नज़दीक ही एक छोटे से होटेल में रूम ले लिया.

रूम में पहुँच कर सबसे पहले मैने चौधरी साब को मेसेज किया कि अभी बात हो सकती है या नही, दो मिनट बाद ही उनकी कॉल आ गई ट्रॅन्समिज़्षन लाइन पर.

मैने कॉल पिक की ईव्निंग विश की और फिर एक ही साँस में पूरी घटना उन्हें बता दी अबतक की.

वो सबसे पहले तो ठहाका लगाकर हंसते रहे और फिर बोले - क्या अरुण तुम्हारे पैरों में कोई चक्कर लगता है ? 

घर भी नही पहुँचे कि उससे पहले काम पर भी लग गये…! 

फिर जल्दी ही सीरीयस हो कर बोले - मामला गंभीर है, सच में ये एक बहुत बड़ी साजिश हो सकती है, और अगर ये लोग सफल हो गये तो बहुत बड़ी जान माल की हानि होने की संभावना है.

मे - अब मुझे क्या करना चाहिए सर..??

वो कुछ देर सोचते रहे..! और फिर बोले - मे वहाँ के कमिशनर को इनफॉर्म करता हूँ, वो लोग इस साजिश को अंजाम दें उससे पहले ही हमें उसे नाकामयाब करना होगा.

मे कुच्छ और ही सोच रहा था सर ! मैने कहा, तो वो बोले- क्या..?

मे - मुझे लगता है, पोलीस कार्यवाही इतनी सीक्रेट्ली नही हो पाएगी, वो लोग चोन्कन्ने हो सकते हैं, 

और ये भी संभव है, कि उनका कोई लिंक पोलीस डिपार्टमेंट में भी हो और वो बच निकलें..!

वो - तो फिर क्या करना चाहते हो तुम..?

मे - जिस तरह उनकी बातों से पता चला है, परसों रात 9 बजे वो सब एक जगह इकट्ठे होंगे सभी अंबुनेशन के साथ तो मे किसी तरह से वहाँ पहुँच कर समान के साथ-2 उन सबको उड़ा देता हूँ जिससे किसी के बचने की उम्मीद ही ना रहे, 

इससे कम-से-कम उनका एक बड़ा नेटवर्क तबाह हो जाएगा, और कुछ दिनो तक उनके दोबारा उठ खड़े होने की संभावना ख़तम हो जाएगी.

वो - ये बहुत रिस्क वाला काम होगा अरुण..! मे इसके लिए तुम्हें पर्मिज़न नही दे सकता..!

मे - ज़रा सोचिए सर ! अगर मान लो पोलीस उन्हें घेर कर सरेंडर करा भी देती है, और इस योजना को असफल कर भी देती है तो क्या गॅरेंटी है, कि उनमें से कोई बचेगा नही.. 

अगर एक भी बच गया, तो वो फिर खड़ा हो जाएगा. और ये भी संभव है कि इनके लोग पोलीस में भी हों. 

यू कॅन ट्रस्ट मे सर ! मे ये मॅनेज कर लूँगा.

वो - मुझे तुमपर पूरा ट्रस्ट है माइ डियर बॉय, लेकिन…!!!

मे - डॉन’ट वरी सर.. आइ विल बी कम बॅक सून वित गुड न्यूज़..

उन्होने अनमने स्वर में मुझे पर्मिज़न देदि.. और विश करके कॉल कट हो गयी..
 
मैने उनको बोल तो दिया था, लेकिन सच कहूँ तो अभी तक मेरे दिमाग़ में वहाँ तक पहुँचने की कोई योजना नही थी. 

दो दिन थे मेरे पास, तो सोचा कि इन दो दिनों में कोई ना कोई रास्ता निकल ही आएगा.

दूसरे दिन मैने मार्केट जाकर कुछ ज़रूरत की चीज़ें खरीदी, और थोड़ा बहुत मेक-अप का सामान लिया, 

रूम में आकर हल्का सा मेक-अप करके अपने को थोड़ा चेंज किया, अब मे पहली नज़र में एक मुस्लिम युवक ही लग रहा था, 

रूम से बाहर आया और इमारत के आस-पास मंढराने लगा, जिससे कोई ऐसा रास्ता निकल सके कि मे उसके अंदर तक पहुँच सकूँ…

मैने उस इमारत के आस-पास की भगौलिक स्थिति को दिमाग़ में बिठाया, एक घनी लेकिन स्लम बस्ती से घिरी वो इमारत काफ़ी जगह में फैली हुई थी, 

उसका मेन गेट बस्ती के रोड की तरफ था, उसके पीछे की ओर घनी बस्ती थी, जहाँ तमाम लकड़ी के खोखों मे लाइन से गंदी और बदबूदार वातावरण में मीट की दुकानें एक-दो पान की दुकानें, 

चाइ के तपरे, और एक बड़ी सी लकड़ी की टाल, जिससे धूल सी उड़ती रहती थी दिन में हमेशा.

इमारत के चारों ओर एक 10 फीट उँची चारदीवारी थी, उसके टॉप पर काँच के टुकड़े लगे हुए थे, जिससे उसको कूद कर अंदर जाना आसान नही था.

मे इस समय एक पान की दुकान पर खड़ा था, मैने उससे एक सादा पान बनवाया, और उससे बात-चीत करने लगा. 

मेरा इंटेन्षन था, उस इमारत से जुड़े लोगों की जानकारी निकालना.

पान वाला खुश मिज़ाज आदमी था, सो बातें करने में उसको भी इंटेरेस्ट रहता था, जैसा कि ज़्यादातर पान वाले होते ही हैं. 

जितनी इन्फर्मेशन चाइ और पान की दुकानों से मिल सकती है उतनी कहीं और जगह से नही मिलती.

बातों-2 में मैने ये भी जान लिया कि इस इमारत के करता-धर्ताओं से लोकल लोग खुश नही थे, 

कुछ-2 लोगों को ये भी आभास था कि यहाँ कुछ ना कुछ देश विरोधी गतिविधियाँ इसमें पनप रही हैं, 

चूँकि रहमान और उसके गुर्गे बहुत पवरफुल थे, इस वजह से किसी की हिम्मत नही होती थी, उनके खिलाफ कुछ भी बोलने की. 

यहाँ तक कि इनकी पहुँच पोलीस के आला ऑफिसर्स तक थी और वो लोग इनको सपोर्ट करते थे जैसा कि मुझे शक था..

दो दिन मैने इन्ही सब जानकारियों में निकाल दिए, चूँकि रात को पिछले हिस्से में स्ट्रीट लाइट वग़ैरह की भी कोई सुविधा नही थी वहाँ पर.. 

तो मैने उधर से ही घुसने का प्लान बनाया वो भी एक लंबे बाँस के ज़रिए जंप लगा कर. 

ये सब एक्सर्साइज़ मैने बचपन में ही बहुत की थी खेल खेल में जो अब काम आने वाली थी.

मेरा प्लान तैयार था, एक रिस्क ये था कि मेरे अंदर कूदते ही अगर कोई वहाँ मौजूद हुआ तो..? पर इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा.

एक्शन लेने का समय आ चुका था और कोई रास्ता भी तो नही था, अगर अभी नही तो हो सकता है कभी नही, 

पक्का इरादा करके मे अपने होटेल रूम से 8:15 पीएम पर निकला, दिन वाले ही मेक-अप में और 15 मिनट में ही उस इमारत के गेट के पास एक सेफ जगह पर बैठकर आने जाने वालों पर नज़र रखने लगा.

करीब 10 मिनट ही गुज़रे होंगे कि उन युवकों का आना शुरू हो गया, वो दो-2 के हिसाब से बाइक पर बैठ कर आए और उस इमारत में एंटर हो गये, 

तकरीबन 8:55 पर एक काले रंग की स्कॉर्पियो गेट में दाखिल हुई, जिसमें शायद वो लीडर और रहमान के साथ-2 वो बॉम्ब एक्सपर्ट भी था.

मेरी धड़कने तेज होने लगी, चाहे कैसा ही मैने पास्ट में कुछ भी किया हो, लेकिन इतना रिसकी कभी नही था, और फिर इस समय मे अकेला भी था, 

जो भी करना था मुझे ही करना था. मैने 4-6 लंबी-2 साँस खीची और टहलते हुए इमारत के पीछे की साइड पहुँच गया.
उधर इक्का-दुक्का कोई बल्ब किसी-किसी खोके के माथे पर टिमटिमा रहा था, वाकी ज़्यादातर इलाक़ा अंधेरे में ही डूबा था, 

उस लकड़ी की टाल पर भी कोई खास उजाला नही था. 

एक लंबा मजबूत बॅमबू, जो मे आज शाम को ही एक साइड में रख गया था अपने काम के मतलब का, जो मेरा भार सहन कर सके.

उस स्कॉर्पियो को अंदर गये 15 मिनट से उपर हो गये थे, अब मुझे जल्दी-से- जल्दी अंदर जाना ही था, 

सो उस बॅमबू को हाथों में कस लिया और बाउंड्री वॉल से करीब 15-20 कदम पीछे गया साँस रोकी और दौड़ता हुआ दीवार की तरफ आया,

दीवार से 3-4 फुट दूर बॅमबू को टीकाया और उसके फोर्स के साथ ही उपर उठता चला गया, उपर पहुँचते ही बॅमबू को पीछे की ओर छोड़ा और अंदर कूद गया.

हल्की सी धप्प की आवाज़ मेरे जूतों से निकली, मानो कोई बिल्ली कूदी हो..और इसी के साथ अब में अंदर की घास पर बैठा था.

चारों ओर की स्थिति का जायज़ा लेकर मे फ़ौरन उठा और बिल्डिंग की दीवार से सट कर खड़ा हो गया और किसी भी प्रकार की हलचल का इंतजार करने लगा. 

जब 5 मिनट तक भी कोई हलचल सुनाई नही दी तो मैने अपने पास की एक खिड़की पर कान लगाए और अंदर का जायज़ा लेने लगा.

मेरी खुशकिश्मति समझो या उन लोगों की बदक़िस्मती, जिस कमरे की खिड़की पीछे को खुलती थी वो लोग उसी कमरे में मौजूद थे जिनकी हल्की हल्की आवाज़ उस खिड़की का सीना चीर कर बाहर आ रही थी.

मैने खिड़की को पकड़ कर हल्के से खींच कर खोलने का ट्राइ किया लेकिन शायद वो अंदर से बंद थी. 

विंडो काफ़ी पुरानी थी, तो संभावना ये भी थी कि कुछ ना कुछ तो ऐसा रास्ता होगा जिससे अंदर को झाँकने का ज़रिया मिल सके..! 

जल्दी ही मुझे एक खिड़की की लकड़ी का टूटा हुआ हिस्सा जो बिल्कुल उसके नीचे की किनारी पर उसकी चौखट पर टिका हुआ मिल गया, मैने हल्का सा अपनी उंगली में फँसाया अपनी ओर खींचा तो वो खिचता चला आया, 

अब उसमें अच्छा ख़ासा एक रेक्टॅंग्युलर झरोखा सा बन गया था.

मैने उसमें से झाँका तो अंदर का नज़ारा पूरी तरह सॉफ दिखाई देने लगा.
 
वो 9 लोग कमरे के सेंटर में एक टेबल के चारों ओर खड़े थे, जिस पर लाइन से चार टाइम बॉम्ब रखे थे, और वो शायद एक्सपर्ट ही होगा जो उन सबको उनके बारे में कुछ समझा रहा था.

मैने फ़ैसला कर लिया था, मेरे पास अब बिल्कुल भी समय नही था बर्बाद करने के लिए, इन लोगों का काम कभी भी ख़तम हो सकता था.

इससे पहले कि ये यहाँ से निकलें मुझे आक्षन में आना ही पड़ेगा, 

सो बॅक में लगी बेल्ट से मैने अपनी गन निकली और उनमें से बीच वाले बॉम्ब पर निशाना साधा और ट्रिग्गर दबा दिया…..!

ट्रिग्गर दबाते ही मैने पूरी फुर्ती के साथ पीछे को जंप लगा दी….!!!

बूऊमम्म्मम….भडाम…!!!!!!

धमाके के झटके ने मेरे पैर ज़मीन पर टिकने से पहले ही फिर से उछाल दिए, 

में पूरे वेग के साथ पीछे की बाउंड्री वॉल की तरफ उच्छलता चला गया, और उससे जा टकराया, 

मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया, लाख कोशिशों के बावजूद में अपने होश हवास खोता चला गया…...!!!

यहाँ मेरा ध्यान और योग क्रिया का परिणाम सामने आया, इससे पहले कि अफ़रा-तफ़री ज़ोर पकड़ती कोई 5-7 मिनट में ही मेरा होश लौट आया, 

मैने अपने चारों ओर का जायज़ा लिया, हर तरफ धुन्ध ही धुन्ध छाइ हुई थी, उपर से रात का अंधेरा.

धमाके की इंटेन्सिटी इतनी ज़्यादा थी कि वो कमरा मलबे के ढेर में बदल चुका था, इमारत के वाकी के हिस्से भी बुरी तरह छत-विच्छित हो चुके थे.

पीछे वाली बस्ती की लाइट ही उड़ गयी और वहाँ गेहन अंधेरा छा गया, अंधेरे में लोगों की चीखो पुकार मची हुई थी, बाहर चारों ओर अफ़रा-तफ़री का माहौल था.

मैने अपने पूरे शरीर पर हाथ फिरा कर चेक किया कि कहीं कुछ डॅमेज तो नही हुआ ना ! लेकिन एश्वर की कृपा रही…और सब कुछ सही सलामत लगा..! 

जब सब कुछ अपनी जगह पर सही सलामत पाया, तो मैने हिलने की कोशिश की, झटके की वजह से शरीर में थोड़ा सा दर्द उठा, लेकिन फिर्भी में दम लगा कर उठ खड़ा हुआ, और धीरे-2 इमारत के मैन गेट की तरफ चल दिया.

लोगों में भय व्याप्त था, इसलिए अभी तक किसी की हिम्मत नही हुई वहाँ घुसने की, सो बिना किसी की नज़र में आए मे चुपके से वहाँ से निकल गया, 

मेरे सारे कपड़े धूल में अटे पड़े थे, एकांत में आकर धूल सॉफ की, और सब कुछ फिर से चेक किया कि कुछ छूट तो नही गया वहाँ.

मे अपने कमरे में आया और गुनगुने पानी से नहाया तब जाकर मुझे कुछ राहत महसूस हुई. 

मे खुद आश्चर्य चकित था कि इतना बड़ा काम मैने अकेले कर दिया था. मन ही मन मैने उपरवाले को धन्यवाद किया.

कुछ देर बाद मैने वेटर को बुलाया, तो पहले तो वो हड़बड़ाया था, और मुझे वो ये बताने के लिए मरा जा रहा था कि पास में क्या हादसा हुआ है. 

मैने भी हैरानी जताते हुए उसकी बात सुनी, फिर खाने का ऑर्डर दिया.

खाना खाकर अब मे अपनी जीत को चौधरी साब से शेयर करना चाहता था, सो कॉल लगा दिया. 30 सेकेंड तक रिंग जाने के बाद ही बिना पिक किए ही कॉल कट हो गया..! मैने सोचा बात क्या हुई, कॉल क्यों पिक नही की..?

मे अभी इसी उधेड़ बुन में बैठा था कि मेरे स्पेशल नंबर पर बेल बजी. मैने नंबर चेक किया जो कि मेरे लिए अननोन था.

मैने कॉल पिक करली, उधर से चौधरी साब की आवाज़ आई- हेलो..! हां अरुण क्या खबर है ..? 

उनकी आवाज़ में उत्सुकता कम जश्न की खुशी ज़्यादा जान पड़ रही थी.

मे- लगता है सर..हमारा मीडीया कुछ ज़्यादा ही आक्टिव होता जा रहा है आजकल..!

वो थोड़ा हंसते हुए… हमारी आशाओं से काफ़ी तेज निकले तुम..! वेल डन अरुण, सच में तुमने साबित कर दिया कि तुम्हें लेकर हमने कोई ग़लती नही की, हमें फख्र है तुम पर… वी रियली प्राउड ऑफ यू.

जानते हो इस समय मे कहाँ बैठा हूँ..? पीएम ऑफीस में उनके सामने साथ में होम मिनिस्टर भी हैं, लो पीएम साब से बात करो.. और उन्होने फोन पीएम को दे दिया..!

पीएम- वेल डन माइ चाइल्ड ! गॉड ब्लेस्स यू ! ना जाने तुमने कितने निर्दोस लोगों की जान बचाई है. देश हमेशा तुम्हारा अभारी रहेगा, और हां ये बताओ कि तुम ठीक तो हो ना !

मे- गू..गुड..ई.वेनिंग सर..! पीएम से बात करते हुए मेरी आवाज़ में कंपन्न जैसा था.. एक अंजानी उत्तेजना वश, 

मे अपने आपको कितना गौरवान्वित समझ रहा था, ये मे बता नही सकता. 

फिर मैने कहा - मे अब ठीक हूँ सर..!

पीएम- मतलब ! कुच्छ हुआ था तुम्हें..?

मे- वो सर बॉम्ब हाइ इंटेन्सिटी वाला था , तो थोड़ा बॉडी को जर्क लगा था, अब मे बिल्कुल ठीक हूँ.

पीएम- टेक केर माइ चाइल्ड… ! अगर कुछ सीरीयस हो तो मेडिकल केर लेना, ट्राइंग को एक्सटेंड कर सकते हैं. ओके.

मे- ओके सर आइ विल टेकन केर माइ सेल्फ़, & विल इनफॉर्म तो ऑफीस इफ़ एनी थिंग एल्स, अदरवाइज़ ट्राइ करूँगा सेम डेट को कॅंप में पहुँचने की.

पीएम- ओके टेक केर.. आंड गुड नाइट ! और फिर उन्होने फोन एनएसए को दे दिया- उन्होने भी केर रखने का बोला और डेट एक्सटेंड करने का इन्सिस्ट करके गुड नाइट विश करके फोन कट कर दिया.

सारी रात, शहर की सड़कों पर पोलीस स्यरन की आवाज़ सुनाई देती रही, अब पता नही कोन्से बाबरी के जिन्न को बाहर लाने में जुटी हुई थी ये पोलीस. 

पहले तो थोड़े से लालच में आकर ऐसी वारदातों को पनपने का मौका देते हैं, और जब कुछ घटना हो जाती है तो जुट जाते हैं देश का पैसा बर्बाद करने में.

अब पता नही ये हमारे देश के क़ानून में कुछ कमियाँ हैं, या खून में, ये गुत्थी कई बार मेरे सामने आई लेकिन अभी तक सुलझ नही पाई, और शायद कभी सुलझ ही ना पाए..?

खैर सुबह उठके मे रेडी हुआ, पहली ट्रेन पकड़के अपने घर/ गाँव आ गया. 

माँ के पाँव च्छुकर आशीर्वाद लिया अपने नये जीवन की सलामती के लिए, क्योंकि इन सब में कहीं ना कहीं उस पुण्यत्मा का भी हाथ था, जिसने अपनी औलाद की सलामती के लिए ना जाने कितने माघ, ना जाने कितने कार्तिक मास नहाए थे और भूखे रह कर उपासना की थी. 

आज शायद उसी की कोई दुआ कबूल हुई हो उपरवाले के दरबार में.
 
अब लोग चाहे मुझे सूपरस्टिशस समझें या कुछ और, लेकिन में आत्मा-परमात्मा, प्रारब्ध में विश्वास करता हूँ, तो अपनी माँ द्वारा किए गये पुन्य कर्मों का प्रताप अपने जीवन में समझता आया हूँ और समझता रहूँगा.

मेरे पास अभी कुछ दिन थे ट्रैनिंग जाय्न करने में. घर पर अब मेरा ज़्यादा मन नही लगता था, सोचा पुराने मित्रों से मिल लिया जाए, फिर ना जाने कब मुलाकात हो, हो भी या नही जिंदगी में.

तो मैने धनजय के गाँव जाने का निश्चय किया और भाई की बाइक ली और चल दिया उसके गाँव की ओर. 

उसके घर जाकर पता चला कि वो गुरगाँव में जॉब करता है, शादी अभी नही हुई थी. 

उसके रहने ना रहने से उसके घरवालों को कोई फ़र्क नही पड़ता था. उन्होने मुझे बड़े ही अप्नत्व भाव से वेल कम किया. 

रेखा की शादी हो चुकी थी और वो भी किसी शहर में अपने पति के साथ रहती थी.

घर पर उसके पेरेंट्स और भैया भाभी ही थे. सबसे पहले उसके घर से उसका कॉंटॅक्ट नंबर लिया और अपने सेल से उसको कॉल किया, 

जब उसने कॉल पिक की तो मैने उसको 36 गालियाँ दी. 

उसने रिक्वेस्ट की, कि मे आज की रात उसके घर रुकु, वो कल दोपहर से पहले कैसे भी करके पहुँच जाएगा. 

भाबी और माँ पास ही बैठी थी, तो मैने टॉंट मारते हुए कहा.

मान ना मान मे तेरा मेहमान, किसी के भी घर में ऐसे कैसे कोई रुक सकता है, भाभी ने फटकार लगा कर भगा दिया तो..? 

वो फोन पर ही हसने लगा, भाभी और आंटी भी हसने लगी, 

फिर भाभी ने मेरे हाथ से फोन ले लिया और धनजय से बोली, देवर जी तुम कल आराम से आ जाना, इनके तो हम हाथ पैर बाँध कर डाल देंगे, 

जाने की बात तो दूर, यहाँ से हिलने भी नही देंगे और खिल-खिला कर हँसने लगी. 

वो इतनी खुश दिखाई दे रही थी मेरे आने से की मानो कोई उनकी कोई बहुत पुरानी मनोकामना पूरी हो गयी हो.

कुछ देर बाद आंटी भी उठके अपने काम में लग गयी, तो मैने उनसे पुछा कि अमर कहाँ है..? तो उन्होने बताया कि वो स्कूल गया है..!

मे- वाउ ! स्कूल जाने लगा, तो वो बोली- क्यों नही, अब तो वो २न्ड स्ट्ड. है, बड़ी-2 बातें करता है बिल्कुल तुम्हारी तरह.

कुछ देर में ही वो स्कूल से आ गया, मे उसे देखता ही रह गया, क्या सुंदरता पाई थी उसने, एकदम गोरा-चिटा बिल्कुल अपनी माँ पर गया था, हां आँखें मुझसे मिलती थी. 

धूप में चल कर आया था सो उसका चेहरा एकदम लाल हो रहा था, मैने उसे अपनी गोद में बिठा कर उसके गाल पर एक किस किया.

अमर- मम्मी ये कॉन हैं..?

वो कुछ देर चुप रही.. तो मैने ही कहा, बेटा मे तुम्हारे धन्नु अंकल का दोस्त हूँ. 

तो वो बोला- फिर तो आप भी मेरे अंकल हुए ना ! मैने कहा- बिल्कुल बेटा ! हम भी आपके अंकल है ये कहकर मैने उसे अपने सीने से लगा लिया….!

उसे गले लगाते ही ना जाने क्यों मेरी आँखें नम हो गयी………

भाभी मेरी ओर देख रही थी, और आँखों-2 में ही शुक्रिया अदा किया. फिर अमर को लेकर उसके कपड़े वगिरह चेंज करने चली गयी.

रात को 1 बजे भाभी, अपने बच्चे और पति को सुलाने के बाद मेरे कमरे में आ गयी, लिपट गयी मुझसे. सुबक्ते हुए बोली-

कितने दिनों में खबर ली है मेरी, भूल ही गये थे अपनी दासी को..?

मे- अच्छा जी उल्टा चोर कोतवाल को डान्टे.. हान्ं..!! मे यहाँ आ गया तो लगी शिकायत करने, कभी आपने खबर ली की देवर मार गया या जिंदा है.

वो- मेरे मुँह पर हाथ रखते हुए बोली - मरें आपके दुश्मन, भगवान से यही दुआ है मेरी कि तुम सौ साल जियो..!

मे- बस सौ साल…? उसके बाद..? तो वो हँस पड़ी और मुझे और ज़ोर से जाकड़ लिया.. 

मैने भी उसकी पीठ पर से हाथ फेरता हुआ उसके कुल्हों पर ले जाकर मसल दिया, और बोला..

वाउ ! आपकी गान्ड तो और ज़यादा मोटी हो गयी हैं भाभी, क्या खाती हो..? थोड़ा बहुत मेहनत किया करो..!

वो- क्यों घरके काम क्या पड़ोस की रामा काकी करने आती होगी..? सारे घर के काम तो करती हूँ और कितनी मेहनत करूँ..हान्न्न..?

मे - तो फिर ये और बाहर को ही क्यों निकलते आ रहे हैं, भैया मेहनत करते हैं क्या इनपर..?

वो - अरे कहाँ !! वो तो आगे से ही कर लें यही बहुत है..?

ऐसी ही छेड़ छाड़ के साथ-2 हम लोग गरम हो गये, और फिर हो गये शुरू अपने पसंदीदा खेल को खेलने में, 

सुबह के चार बजे जाकर ही दम लिया. उसके तीनों छेदों की अच्छे से सर्विस करके मे सो गया और वो उठके अपने कमरे में चली गयी.

दूसरे दिन दोपहर तक धनंजय आ गया, और आते ही मुझसे लिपट गया, कुछ देर शिकवे-शिकायत हुए और फिर हम दोनो दोस्त अपने-2 भविष्य की बातों में लग गये.

वो गुरगाँव में ही किसी कंपनी में असिस्टेंट मॅनेजर था . 

जब उसने मेरे बारे में पुछा तो मैने उसको बता दिया कि मे तो आज-कल सब कुछ छोड़-छाड़ कर घर पर ही मज़े कर रहा हूँ, लेकिन मेरा जॉब गुजरात में एक पीएसयू में फिक्स हो गया है, 6-7 महीने के बाद जाय्न करूँगा.

फिर मैने उससे पुछा कि कितने दिन की छुट्टी लेके आया है, तो वो बोला- तू बता कितने दिन रहेगा मेरे साथ उतने दिन की ले लूँगा..!

मैने कहा तो चल जगेश के यहाँ चलते हैं, फिर उसको लेके ऋषभ से मिलते हैं.

उसके पास दोनो के कॉंटॅक्ट नंबर थे, तो उसने पहले जगेश को फोन किया वो भी उसी शहर में किसी दूसरी कंपनी में था, 

जब उसको बताया कि हमारा प्लान क्या है ? तो वो तुरंत तैयार हो गया और दूसरे दिन धनंजय के घर ही आने को तैयार हो गया.

जब हमने ऋषभ को कॉल किया तो वो पुणे की एक बड़ी फर्म में जॉब पर ही था, अब उससे कैसे मिला जाए ? 

वो बोला कि क्यों ना तुम लोग भी यहीं आ जाओ, और फिर चारो मिलकर गोआ घूमने चलें. 

आइडिया बुरा नही था सो हो गया तय, और उसी शाम हम तीनो बाइक से मेरे घर पहुँचे, रात रुक कर दूसरे दिन पुणे के लिए ट्रेन पकड़ ली अपने शहर से.

ऋषभ से घर परिवार की राज़ी खुशी से पता चला कि उसकी बेहन ट्रिशा ग्रॅजुयेशन के बाद आइपीएस के लिए सेलेक्ट हो गयी है और इस समय पोलीस ट्रैनिंग कॅंप में ट्रैनिंग ले रही है जो अगले 1 साल में कंप्लीट भी हो जाएगी. 

ऋषभ और जगेश दोनो ने सदी कर ली थी, लेकिन फिलहाल वो सिंगल ही रहते थे.

हम चारो दोस्त गोआ पहुँचे, वहाँ हमने जी भरके मस्ती की, वहीं पहली बार मैने बीयर भी पी, 

धन्नु और जगेश तो पहले से ही आल्कोहॉलिक हो चुके थे, मैने और ऋषभ ने पहली बार टेस्ट किया था किसी तरह के आल्कोहॉलिक ड्रिंक को.

2-3 दिन गोआ एंजाय करने के बाद हम सब अपने-2 ठिकाने लौट लिए, क्योंकि मेरे कॅंप जाय्न करने की डेट नज़दीक थी, इस विषय को मैने अपने दोस्तों को हवा भी नही लगने दी.

कुछ दिन घर रुक कर माँ की सेवा की और एक दिन उसका आशीर्वाद लिया, उठाया झोला और निकल लिया सरफरोशी के रास्ते पर जिसका मेरे अलावा मेरे किसी जानने वाले को हवा तक नही थी….!!

मन में एक सवाल सा उठा..! मे अपनों से दूर, अपनों से सच्चाई छिपाकर एक अंजानी राह पर निकल पड़ा हूँ दरअसल ये है क्या…? 

कोई मकसद तो कतई नही हो सकता..? क्योंकि मकसद तो कुछ पाने के लिए होता है, एक टारगेट डिसाइडेड होता है, 

यहाँ तो मैने सब कुछ खो दिया था, रिस्ते-नाते, प्रेम, विश्वास सब कुछ, घर, जयदाद सब कुछ.. ! आख़िर क्यों..? किसलिए..?

फिर स्वतः ही मुझे मेरे अंदर से ही जबाब भी मिल गया.. शायद वो मेरी अंतरात्मा होगी जिसने ये जबाब दिया- ये तुम्हारा प्रारब्ध है ! 

इसमें तुम्हारा अपना कोई फ़ैसला नही है, और ना ही ले सकते हो. 

जन कल्याण के कार्यों में भागीदारी के लिए नियती कुछ लोगों को चुनती है, जिनमे से एक तुम हो, इसलिए बिना सोच – विचार किए, वही करो जो नियती तुमसे करना चाहती है.
 
Back
Top