hotaks444
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मे चाइ नाश्ता करके ट्यूब वेल पर जाने के लिए निकल ही रहा था कि श्याम भाई बोले - चल मे भी तेरे साथ चलता हूँ, फसल देख कर आता हूँ.
मे - ठीक है, चलो… और हम दोनो खेतों की ओर चल दिए अपनी अलग-अलग सोचों को अपने मन में लिए…..!
हम दोनो भाई ट्यूबिवेल के सामने चारपाई डाल कर बैठे थे..
कुछ देर की चुप्पी के बाद श्याम ने बोलना शुरू किया – कल थाने क्यों गये थे तुम दोनो ?
मे - थानेदार ने खबर भिजवाई थी, कि कोई काम है डकैती वाले केस से संबंधित इसलिए गये थे.
श्याम - क्या बात हुई थी वहाँ ..?
मे - किसी ने उसको खबर देदि है कि उन डाकुओं को गाँव वालों ने मिलकर नही मैने अकेले ने मारा था,
इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट एसपी ऑफीस को भेज दी थी, एसपी से एसएसपी ओर फिर डीआईजी तक बात पहुँच गयी..!
थाने में कल एसपी ने ही बुलवाया था, लेकिन साथ में एसएसपी भी आ गये, क्योंकि मामला मेरे नाम से जुड़ा हुआ था.
श्याम - तेरे नाम से जुड़ा था तो इसमें एसएसपी को क्या इंटेरेस्ट था.. वो तो एसपी की रिपोर्ट पर ही चलते हैं ना..!
मे - वो एसएसपी मुझे पहले से जानते हैं..! जब वो मेरे कॉलेज वाले शहर में एसपी थे..
श्याम - क्या..? वो तुझे पहले से जानते हैं..? और डीआईजी…?
मे - वो भी..! वो वहाँ कमिशनर थे उस समय..!
श्याम – सच में ?? लेकिन इतने बड़े-2 अधिकारी से तेरा परिचय कैसे हुआ..?
मे - वो था एक ड्रग डीलिंग का मसला जो हम कुछ स्टूडेंट्स ने मिलकर सुलझाया था..उसमें इन अधिकारियों ने हमारा साथ दिया था.
श्याम - ओह..! तो इसका मतलब वो तेरे फेवर में हैं..?
मे - इसमें फेवर या अन फेवर का क्या मतलब..? मैने कोई गुनाह किया है जो पोलीस मुझे परेशान करेगी.. ? मैने तो एक तरह से पोलीस का ही काम आसान किया है..!
श्याम - अरे तू नही जानता ये पोलीस वाले किसी के सगे नही होते.. कोई भी चार्ज लगा कर केस चला सकते हैं..
मे - वो कमजोरे लोगों के साथ ही ऐसा कर सकते हैं, जो उनके दबाब में आजाए.
श्याम - ये तेरी बात सही है, वैसे एसएसपी और डीआईजी अब क्या चाहते हैं..? क्यों बुलाया था उन्होने तुझे..?
मे - वो मे अभी किसी को नही बता सकता..!
श्याम - किसी को का क्या मतलब..? अपने सगे भाई को भी नही..?
मे - आपने अपने सगे भाई पर कभी भरोसा किया है..? आपसे तो बाहर के लोगों को ज़्यादा भरोसा है मेरे उपर..!!
श्याम - देख उस बात के लिए मुझे माफ़ कर्दे.. भाई..! वैसे अगर तू सोचके देखे तो वो मेरी तेरे लिए चिंता थी, मे कभी नही चाहूँगा कि तू किसी मुशिबत मे पड़े.
मे - चिंता कम आपका व्यवहार ज़्यादा था जो हमेशा मेरे प्रति रहा है,
सोचके देखो शायद कभी आपको लगा हो कि आपने मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार से बात की हो, हमेशा एक गुलाम की तरह समझा.
आपने ये तक नही सोचा, कि एक एसएसपी जो एक जिले की डिवीजन का पोलीस का हेड होता है, वो हमारी माँ के पाँव च्छुकर आशीर्वाद ले रहा था, वो मुझे कोई नुकसान पहुँचता..?
मुझे तो नही लगता कि आप उसके उस वार्ताव को समझ ही ना पाए हों. और यदि समझ रहे हों तो फिर ये चिंता वाली बात बेमानी लगती है..!
श्याम के मुँह पर ताला लग गया, उनकी आँखों में पश्चाताप सॉफ दिखाई दे रहा था.
मैने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- आप चिंता ना करो, अब आपको ज़्यादा दिन मेरी वजह से परेशानी नही होगी, हो सकता है इसी महीने मे यहाँ से चला जाउ..!
श्याम भाई – कहाँ जा रहा है..? कोई नौकरी मिल गयी है..?
मे - शायद आपको याद नही है, मे इंजिनियरिंग ग्रॅजुयेट हूँ. जिस कंपनी के गेट पर खड़ा हो जाउ मुझे नौकरी दे देगा.
फिर भी मे यहाँ अपनी मात्र भूमि समझ कर चला आया था.
लेकिन मेरी भावनाओं को समझने की वजाय मुझे एक मजबूर बेरोज़गार की तरह रहना पड़ा.
शायद पिता जी अगर कहीं से देखते होंगे तो उन्हें भी अपने बेटों के व्यवहार पर शर्मिंदगी होती होगी.
श्याम की रुलाई फुट पड़ी, अपने आँसू पोन्छते हुए बोले - बस कर मेरे भाई, अब और जॅलील ना कर..!
आज मे सच्चे दिल से अपने व्यवहार के लिए माफी माँगता हूँ, हो सके तो अपने भाई को माफ़ कर देना.
तू जहाँ भी रहे खुश रहे भगवान से जीवन भर यही दुआ करूँगा.
उसके बाद वो उठ कर चले गये खेतों की ओर……. !
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मे - ठीक है, चलो… और हम दोनो खेतों की ओर चल दिए अपनी अलग-अलग सोचों को अपने मन में लिए…..!
हम दोनो भाई ट्यूबिवेल के सामने चारपाई डाल कर बैठे थे..
कुछ देर की चुप्पी के बाद श्याम ने बोलना शुरू किया – कल थाने क्यों गये थे तुम दोनो ?
मे - थानेदार ने खबर भिजवाई थी, कि कोई काम है डकैती वाले केस से संबंधित इसलिए गये थे.
श्याम - क्या बात हुई थी वहाँ ..?
मे - किसी ने उसको खबर देदि है कि उन डाकुओं को गाँव वालों ने मिलकर नही मैने अकेले ने मारा था,
इंस्पेक्टर ने रिपोर्ट एसपी ऑफीस को भेज दी थी, एसपी से एसएसपी ओर फिर डीआईजी तक बात पहुँच गयी..!
थाने में कल एसपी ने ही बुलवाया था, लेकिन साथ में एसएसपी भी आ गये, क्योंकि मामला मेरे नाम से जुड़ा हुआ था.
श्याम - तेरे नाम से जुड़ा था तो इसमें एसएसपी को क्या इंटेरेस्ट था.. वो तो एसपी की रिपोर्ट पर ही चलते हैं ना..!
मे - वो एसएसपी मुझे पहले से जानते हैं..! जब वो मेरे कॉलेज वाले शहर में एसपी थे..
श्याम - क्या..? वो तुझे पहले से जानते हैं..? और डीआईजी…?
मे - वो भी..! वो वहाँ कमिशनर थे उस समय..!
श्याम – सच में ?? लेकिन इतने बड़े-2 अधिकारी से तेरा परिचय कैसे हुआ..?
मे - वो था एक ड्रग डीलिंग का मसला जो हम कुछ स्टूडेंट्स ने मिलकर सुलझाया था..उसमें इन अधिकारियों ने हमारा साथ दिया था.
श्याम - ओह..! तो इसका मतलब वो तेरे फेवर में हैं..?
मे - इसमें फेवर या अन फेवर का क्या मतलब..? मैने कोई गुनाह किया है जो पोलीस मुझे परेशान करेगी.. ? मैने तो एक तरह से पोलीस का ही काम आसान किया है..!
श्याम - अरे तू नही जानता ये पोलीस वाले किसी के सगे नही होते.. कोई भी चार्ज लगा कर केस चला सकते हैं..
मे - वो कमजोरे लोगों के साथ ही ऐसा कर सकते हैं, जो उनके दबाब में आजाए.
श्याम - ये तेरी बात सही है, वैसे एसएसपी और डीआईजी अब क्या चाहते हैं..? क्यों बुलाया था उन्होने तुझे..?
मे - वो मे अभी किसी को नही बता सकता..!
श्याम - किसी को का क्या मतलब..? अपने सगे भाई को भी नही..?
मे - आपने अपने सगे भाई पर कभी भरोसा किया है..? आपसे तो बाहर के लोगों को ज़्यादा भरोसा है मेरे उपर..!!
श्याम - देख उस बात के लिए मुझे माफ़ कर्दे.. भाई..! वैसे अगर तू सोचके देखे तो वो मेरी तेरे लिए चिंता थी, मे कभी नही चाहूँगा कि तू किसी मुशिबत मे पड़े.
मे - चिंता कम आपका व्यवहार ज़्यादा था जो हमेशा मेरे प्रति रहा है,
सोचके देखो शायद कभी आपको लगा हो कि आपने मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार से बात की हो, हमेशा एक गुलाम की तरह समझा.
आपने ये तक नही सोचा, कि एक एसएसपी जो एक जिले की डिवीजन का पोलीस का हेड होता है, वो हमारी माँ के पाँव च्छुकर आशीर्वाद ले रहा था, वो मुझे कोई नुकसान पहुँचता..?
मुझे तो नही लगता कि आप उसके उस वार्ताव को समझ ही ना पाए हों. और यदि समझ रहे हों तो फिर ये चिंता वाली बात बेमानी लगती है..!
श्याम के मुँह पर ताला लग गया, उनकी आँखों में पश्चाताप सॉफ दिखाई दे रहा था.
मैने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- आप चिंता ना करो, अब आपको ज़्यादा दिन मेरी वजह से परेशानी नही होगी, हो सकता है इसी महीने मे यहाँ से चला जाउ..!
श्याम भाई – कहाँ जा रहा है..? कोई नौकरी मिल गयी है..?
मे - शायद आपको याद नही है, मे इंजिनियरिंग ग्रॅजुयेट हूँ. जिस कंपनी के गेट पर खड़ा हो जाउ मुझे नौकरी दे देगा.
फिर भी मे यहाँ अपनी मात्र भूमि समझ कर चला आया था.
लेकिन मेरी भावनाओं को समझने की वजाय मुझे एक मजबूर बेरोज़गार की तरह रहना पड़ा.
शायद पिता जी अगर कहीं से देखते होंगे तो उन्हें भी अपने बेटों के व्यवहार पर शर्मिंदगी होती होगी.
श्याम की रुलाई फुट पड़ी, अपने आँसू पोन्छते हुए बोले - बस कर मेरे भाई, अब और जॅलील ना कर..!
आज मे सच्चे दिल से अपने व्यवहार के लिए माफी माँगता हूँ, हो सके तो अपने भाई को माफ़ कर देना.
तू जहाँ भी रहे खुश रहे भगवान से जीवन भर यही दुआ करूँगा.
उसके बाद वो उठ कर चले गये खेतों की ओर……. !
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