hotaks444
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वहीं निशा अपने सामने खड़े एक नकाब पोश को देख कर हैरान परेशान थी, जो अब उसके बंधन खोल रहा था.
बंधन खुलते ही निशा अपनी बहन की ओर दौड़ी, और उससे लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी.
जल्दी से मेरी रस्सी खोलो निशा, ये वक़्त रोने का नही है मेरी बेहन.
ट्रिशा ने जब उसको कहा, तब उसको परिस्थिति का भान हुआ और वो उसकी रस्सी खोलने लगी.
तब तक उस नकाब पोश ने भानु के उपर लात घूँसों की बारिस सी कर रखी थी, 5 मिनट की धुलाई में ही वो चीखने चिल्लाने की स्थिति में भी नही था.
अधमरा सा भानु, हिलने डुलने के काबिल भी नही रहा.
ट्रिशा उसके पास पहुँची और उसके मुँह पर थूक कर बोली - हरजादे मैने तुझे चेताया था, क्यों अपनी शामत बुला रहा है,
लेकिन अपने घमंड के नशे में चूर, तू ये भी भूल गया कि, इस देश के रक्षकों पर हाथ नही डालना चाहिए.
फिर वो पलट कर अपने रहनुमा, अपने रक्षक उस नकाब पोश के सीने से लग कर फुट-फुट कर रो पड़ी.
ये देख कर निशा की आँखें चौड़ी हो गयी, वो ये नही समझ पारही थी, कि मरियादा की प्रतिमूर्ति उसकी बड़ी बेहन किसी गैर मर्द के सीने से कैसे लिपट कर रो रही है.
फिर उस नकाब पोश ने ट्रिशा के सर पर हाथ रख कर उसे चुप कराया और कुछ इशारा किया जिसे ट्रिशा ने समझ लिया और अपने-आप को कंट्रोल करके अपनी बेहन के फटे कपड़ों को एक गुंडे का गम्छा लेकर ढकने लगी.
नकाब पोश ने भानु की मुश्क कस दी और उसे अपने कंधे पर लाद कर बाहर निकल आया, दोनो बहनें उसके पीछे -2 लगभग दौड़ती हुई चल रही थी..!
बाहर का नज़ारा और भी ज़्यादा भिभत्स था,
सारे गुंडे मरे पड़े थे, सूरज का तो गला ही रेत दिया था एक तेज धार खंजर से.
निशा ये खौफनाक मंज़र देख ना सकी, और डर के मारे अपनी बड़ी बेहन से लिपट गयी.
वहाँ बाहर खड़ी गाड़ी में भानु के बेहोश शरीर को पटका और ट्रिशा के कान में कुछ कहा जो निशा सुन नही पाई,
वो उसे कोतवाली लेकर चली गयी, और वो नकाबपोश निशा का हाथ पकड़ कर वहाँ खड़ी दूसरी गाड़ी की तरफ लपका...!
एसपी ट्रिशा अपनी नाइट ड्रेस में ही थी, वो अपने ऑफीस ना जाकर सीधी उस थाने में पहुँची जहाँ से ये वाकीया शुरू हुआ था,
गाड़ी को गेट पर खड़ा छोड़ कर वो धड़ धडाती हुई अंदर दाखिल हुई.
नाइट ड्रेस में अपनी एसपी को देख कर थाने का पूरा स्टाफ चोंक पड़ा, और उसको गुस्से में देख कर तो सभी में हड़कंप मच गया…
लेकिन फिर भी उन्होने उसे सल्यूट किया, जिसका वो जबाब देती हुई लगभग चीखती हुई दाहडी, यादव, निर्मल कहाँ हो तुम लोग ?
वो दोनो दौड़ते हुए उसके सामने आए, और सल्यूट मार कर बोले- यस मेडम.
ट्रिशा – निर्मल ! बाहर गाड़ी में एक मुजरिम पड़ा है उसको अंदर लाकर हवालात में डालो फ़ौरन.
निर्मल दो सिपाहियों को लेकर बाहर की ओर दौड़ा, और जैसे ही उन्होने भानु को घायल अवस्था में गाड़ी में पड़ा पाया,
वो भोंचक्के रह गये, फिर कुछ सम्भल कर अपने ऑफीसर के आदेश पालन किया.
उन्होने घायल और अर्ध बेहोश भानु के शरीर को हवालात में लाकर पटक दिया…
फिर वो यादव से बोली - इस कुख्यात मुजरिम का ध्यान रखना यादव !, कोई भी कितना ही उपर से प्रेशर आए, छोड़ना नही है,
अगर तुमने इसे छोड़ने के बारे में सोचा भी, तो पहले ही सोचलेना, उसका अंजाम तुमहरे लिए क्या हो सकता है.
फिर वो निर्मल को लेकर ऑफीस के अंदर चली गयी और किसी को भी अंदर ना आने देने को ताकीद की,
कुछ देर तक वो उसे कुछ समझाती रही और फिर अपने घर की ओर चल पड़ी.
उधर निशा रास्ते भर उस नकाब पोश को ही घुरती रही, लेकिन उस नकाब पोश ने एक बार भी उसकी ओर आँख उठा कर भी नही देखा.
जब घर आ गया तो उसने गाड़ी वहीं बाहर खड़ी की और निशा को अंदर जाने का इशारा किया.
जब वो कुछ देर तक भी अपनी जगह से नही हिली, तो उसने उसकी आँखों में गुस्से से देखा और गुर्रा कर कहा- सुना नही तुमने ? अंदर जाओ..!
वो किसी कठपुतली की तरह गाड़ी से उतर कर घर के अंदर चली गयी जहाँ उसके माता-पिता अभी भी बाहर से बंद थे.
बाहर से दरवाजा खोलकर वो जैसे ही अंदर पहुँची, उसे देखते ही उन्होने उसे गले से लगा लिया, फिर उन्होने उसके उपर सवालों की झड़ी सी लगा दी, जिनके सारे जबाब उस बेचारी के पास भी नही थे.
उधर उस नकाब पोश ने निशा के उतरते ही गाड़ी को आगे बढ़ा दिया और करीब 1किमी दूर ले जाकर एक सुनसान से रास्ते पर खड़ा करके वापस पैदल ट्रिशा के घर की ओर चल दिया.
अभी वो उसके गेट पर पहुँचा ही था कि ट्रिशा भी आ पहुँची, दोनो बाहर ही मिल गये, और एक दूसरे से लिपट गये,
कुछ देर लिपटे रहने के बाद उन्हें लगा कि यहाँ कोई देख ना ले, तो वो अंदर को बढ़ गये.
अंदर निशा अपने मम्मी पापा के साथ सोफे पर बैठ कर अपनी आप बीती कह रही थी, साथ-2 सूबकती भी जा रही थी कि तभी ट्रिशा उस नकाब पोश के साथ अंदर दाखिल हुई.
उसे देख कर वो तीनो लपक कर उससे लिपट गये, और उससे सवाल जबाब करने लगे.
बंधन खुलते ही निशा अपनी बहन की ओर दौड़ी, और उससे लिपटकर फुट-फूटकर रोने लगी.
जल्दी से मेरी रस्सी खोलो निशा, ये वक़्त रोने का नही है मेरी बेहन.
ट्रिशा ने जब उसको कहा, तब उसको परिस्थिति का भान हुआ और वो उसकी रस्सी खोलने लगी.
तब तक उस नकाब पोश ने भानु के उपर लात घूँसों की बारिस सी कर रखी थी, 5 मिनट की धुलाई में ही वो चीखने चिल्लाने की स्थिति में भी नही था.
अधमरा सा भानु, हिलने डुलने के काबिल भी नही रहा.
ट्रिशा उसके पास पहुँची और उसके मुँह पर थूक कर बोली - हरजादे मैने तुझे चेताया था, क्यों अपनी शामत बुला रहा है,
लेकिन अपने घमंड के नशे में चूर, तू ये भी भूल गया कि, इस देश के रक्षकों पर हाथ नही डालना चाहिए.
फिर वो पलट कर अपने रहनुमा, अपने रक्षक उस नकाब पोश के सीने से लग कर फुट-फुट कर रो पड़ी.
ये देख कर निशा की आँखें चौड़ी हो गयी, वो ये नही समझ पारही थी, कि मरियादा की प्रतिमूर्ति उसकी बड़ी बेहन किसी गैर मर्द के सीने से कैसे लिपट कर रो रही है.
फिर उस नकाब पोश ने ट्रिशा के सर पर हाथ रख कर उसे चुप कराया और कुछ इशारा किया जिसे ट्रिशा ने समझ लिया और अपने-आप को कंट्रोल करके अपनी बेहन के फटे कपड़ों को एक गुंडे का गम्छा लेकर ढकने लगी.
नकाब पोश ने भानु की मुश्क कस दी और उसे अपने कंधे पर लाद कर बाहर निकल आया, दोनो बहनें उसके पीछे -2 लगभग दौड़ती हुई चल रही थी..!
बाहर का नज़ारा और भी ज़्यादा भिभत्स था,
सारे गुंडे मरे पड़े थे, सूरज का तो गला ही रेत दिया था एक तेज धार खंजर से.
निशा ये खौफनाक मंज़र देख ना सकी, और डर के मारे अपनी बड़ी बेहन से लिपट गयी.
वहाँ बाहर खड़ी गाड़ी में भानु के बेहोश शरीर को पटका और ट्रिशा के कान में कुछ कहा जो निशा सुन नही पाई,
वो उसे कोतवाली लेकर चली गयी, और वो नकाबपोश निशा का हाथ पकड़ कर वहाँ खड़ी दूसरी गाड़ी की तरफ लपका...!
एसपी ट्रिशा अपनी नाइट ड्रेस में ही थी, वो अपने ऑफीस ना जाकर सीधी उस थाने में पहुँची जहाँ से ये वाकीया शुरू हुआ था,
गाड़ी को गेट पर खड़ा छोड़ कर वो धड़ धडाती हुई अंदर दाखिल हुई.
नाइट ड्रेस में अपनी एसपी को देख कर थाने का पूरा स्टाफ चोंक पड़ा, और उसको गुस्से में देख कर तो सभी में हड़कंप मच गया…
लेकिन फिर भी उन्होने उसे सल्यूट किया, जिसका वो जबाब देती हुई लगभग चीखती हुई दाहडी, यादव, निर्मल कहाँ हो तुम लोग ?
वो दोनो दौड़ते हुए उसके सामने आए, और सल्यूट मार कर बोले- यस मेडम.
ट्रिशा – निर्मल ! बाहर गाड़ी में एक मुजरिम पड़ा है उसको अंदर लाकर हवालात में डालो फ़ौरन.
निर्मल दो सिपाहियों को लेकर बाहर की ओर दौड़ा, और जैसे ही उन्होने भानु को घायल अवस्था में गाड़ी में पड़ा पाया,
वो भोंचक्के रह गये, फिर कुछ सम्भल कर अपने ऑफीसर के आदेश पालन किया.
उन्होने घायल और अर्ध बेहोश भानु के शरीर को हवालात में लाकर पटक दिया…
फिर वो यादव से बोली - इस कुख्यात मुजरिम का ध्यान रखना यादव !, कोई भी कितना ही उपर से प्रेशर आए, छोड़ना नही है,
अगर तुमने इसे छोड़ने के बारे में सोचा भी, तो पहले ही सोचलेना, उसका अंजाम तुमहरे लिए क्या हो सकता है.
फिर वो निर्मल को लेकर ऑफीस के अंदर चली गयी और किसी को भी अंदर ना आने देने को ताकीद की,
कुछ देर तक वो उसे कुछ समझाती रही और फिर अपने घर की ओर चल पड़ी.
उधर निशा रास्ते भर उस नकाब पोश को ही घुरती रही, लेकिन उस नकाब पोश ने एक बार भी उसकी ओर आँख उठा कर भी नही देखा.
जब घर आ गया तो उसने गाड़ी वहीं बाहर खड़ी की और निशा को अंदर जाने का इशारा किया.
जब वो कुछ देर तक भी अपनी जगह से नही हिली, तो उसने उसकी आँखों में गुस्से से देखा और गुर्रा कर कहा- सुना नही तुमने ? अंदर जाओ..!
वो किसी कठपुतली की तरह गाड़ी से उतर कर घर के अंदर चली गयी जहाँ उसके माता-पिता अभी भी बाहर से बंद थे.
बाहर से दरवाजा खोलकर वो जैसे ही अंदर पहुँची, उसे देखते ही उन्होने उसे गले से लगा लिया, फिर उन्होने उसके उपर सवालों की झड़ी सी लगा दी, जिनके सारे जबाब उस बेचारी के पास भी नही थे.
उधर उस नकाब पोश ने निशा के उतरते ही गाड़ी को आगे बढ़ा दिया और करीब 1किमी दूर ले जाकर एक सुनसान से रास्ते पर खड़ा करके वापस पैदल ट्रिशा के घर की ओर चल दिया.
अभी वो उसके गेट पर पहुँचा ही था कि ट्रिशा भी आ पहुँची, दोनो बाहर ही मिल गये, और एक दूसरे से लिपट गये,
कुछ देर लिपटे रहने के बाद उन्हें लगा कि यहाँ कोई देख ना ले, तो वो अंदर को बढ़ गये.
अंदर निशा अपने मम्मी पापा के साथ सोफे पर बैठ कर अपनी आप बीती कह रही थी, साथ-2 सूबकती भी जा रही थी कि तभी ट्रिशा उस नकाब पोश के साथ अंदर दाखिल हुई.
उसे देख कर वो तीनो लपक कर उससे लिपट गये, और उससे सवाल जबाब करने लगे.