Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 17 - SexBaba
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Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

अब मैने उसको सीधा करके लिटा दिया और उसकी टाँगों के बीच आकर बैठ गया, उसने अपनी टांगे भींच ली तो मैने पुश करके एक दूसरे से अलग किया. और उसकी पेंटी को उतार फेंका.

उसकी अन्छुइ परी पहली बार मेरी आँखों के सामने थी, मैने नज़ाकत से उस पर हाथ फिराया और फिर उसकी फांकों को अलग करके उसके अन्द्रुनि गुलाबी भाग को अपने जीभ से चाट लिया..

उसके मुँह से सिसकी निकल गयी और कमर हिलाने लगी, दो-तीन बार जीभ उपर से नीचे फिराने के बाद मैने अपने मूसल को उसकी परी के होठों पर रख कर उसको उसकी खुश्बू सूँघाई,

वो मस्ती में झूम उठा, अब वो बिफरे सांड़ की तरह उसमें घुसने के लिए व्याकुल हो उठा.

मैने भी उसकी मनसा जान, ट्रिशा की परी के होठों को खोल्कर उसके लिए रास्ता बनाया और उसके छोटे से छेद पर अपना कड़क सोट जैसा लंड रख कर पुश करने ही वाला था कि मेरे फोन की बेल घनघना उठी…..!

इस वक़्त किस भेन्चोद की गान्ड में खुजली हुई है यार..! साला खड़े लंड पर हथौड़ा मारने जैसी हालत हो गयी मेरी तो.

फिर सोचा शायद कोई दोस्त मज़ाक करने के मूड में होगा तो उसको एक-आध गाली सुनाकर चुप करा दूं पहले. 

यह सोचकर मैने फोन उठा लिया, पर जैसे ही मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लश हो रहे नंबर को देखा…मेरे सारे मसानों ने एक साथ पानी छोड़ दिया !!

मे ट्रिशा को सॉरी बोलकर, एक तौलिया लपेटा और बाहर बाल्कनी में आकर कॉल अटेंड की. 

एनएसए चौधरी का फोन था, उन्होने मुझे जैसे ही परिस्थिति से अवगत कराया मेरा सारा सेक्स का मूड हवा हो गया, मेरा खड़ा लंड किसी डरपोक चूहे की तरह बिल में छिप गया.

उन्होने कहा - आइबी के हवाले से खबर मिली है, कि पड़ौसी मुल्क के पोर्ट से एक स्टीमर किसी बड़े टेरर अटॅक के लिए गुजरात के कोस्ट्ल एरिया जहाँ बीएसफ की निगरानी ना के बराबर होती है उस ओर निकल चुका है, 

वैसे तो पूरे कोस्टल एरिया पर सेक्यूरिटी फोर्सस बढ़ा दिए गये हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि उन्हें रास्ते में ही रोक दिया जाए और हो सके तो उस स्टीमर को अपनी सामुद्री सीमा पर ही उड़ा दिया जाए.

हमारे 10 एजेंट्स को ये काम सौंपा गया है, जिनमें तुम भी शामिल हो, अति शीघ्रा तुमें कच्छ पहुँच कर कल शाम से पहले वहाँ रिपोर्ट करना है. आगे की सारी रिपोर्ट तुम्हें वही मिलेगी…!

मे कितनी ही देर अवाक अवस्था मे खड़ा उस फोन को देखता रहा, लगता है उपर वाले ने मेरी किस्मत गधे के लंड से लिखी होगी शायद.

तभी तो ऐसे मौके पर जो आदमी के जीवन में सिर्फ़ एक बार ही आता है, उसकी सुहागरात , 

और ये फोन ठीक उस वक़्त, जब हम एक होने जा रहे थे…

मे अपनी इन्हीं सोचों में खोया था, कि तभी ट्रिशा ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझे चोंका दिया. 

वो एक चादर लपेटे हुए मेरे सामने खड़ी थी.

मैने उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा - सॉरी जान ! मेरे फोन की वजह से तुम्हारा मूड ऑफ हो गया.. लेकिन क्या करता बॉस का फोन था उठाना ही पड़ा.

वो - इट्स ओके जानू मे समझ सकती हूँ..!

मे - अब मुझे इसी वक़्त निकलना होगा, ऑफीस में कुछ प्राब्लम हो गयी है, 

ऑपरेशन रुका पड़ा है मुझे फ़ौरन बुलाया है, तुम थोड़ा अड्जस्ट कर लेना प्लीज़.

वो - इट्स ओके स्वीट हार्ट..! आप जाओ अपना काम देखो, अब तो हमें जीवन भर साथ रहना है, अपनी हसरतें तो हम कभी भी पूरी कर लेंगे. 

आप मेरी चिंता बिल्कुल मत करो..! 

मे - हो सकता है में कल भी ना लौट पाउ, ..? और तुम्हें तो कल शाम को निकलना था.

ट्रिशा मेरे हाथ अपने हाथों में लेकर बोली - कोई बात नही, हम निकल जाएँगे, आप अपना काम निपटाओ.. हमारी चिंता छोड़ दो. 

अब जाओ ! लेट मत करो.

मैने फटाफट अपना बॅग पॅक किया, कपड़े पहने और ट्रिशा के होठों का चुंबन करके उसे बाइ बोला, और निकल गया अपनी कार लेकर.

अभी सुबह के 3:30 बजे थे, रोड तो सॉफ ही मिलने वाले थे सो भगा दी गाड़ी अपनी फुल स्पीड में, एक दो जगह पोलीस की चेकिंग मिली जो आम बात थी.

एक जगह बीच में एक रोड साइड ढाबे पर गाड़ी रोक कर फ्रेश हुआ, चाइ पी, जिससे आँखों से नींद की खुमारी थोड़ा कम हुई, और फिर चल पड़ा.

कोई 11 बजे में अपने गन्तब्य स्थान पर पहुँच गया. 

वहाँ 9 लोग पहले से मौजूद थे जो मेरा ही वेट कर रहे थे, ये एक बीएसएफ का ही बेस कॅंप था जो विशेष पर्मिज़न से हमें मीटिंग के लिए मिला हुआ था, 

हमारा परिचय वहाँ एनएसजी के कमॅंडोस के तौर पर दिया गया था.

हमारे सामने पाकिस्तान-हिन्दुस्तान की समुद्रि सीमा का मॅप रखा हुआ था, पता चला था कि वो स्टीमर सीमा पर पहुँच चुका है, और पड़ौसी मुल्क की नेवी की देख रेख में आज दिन भर वहीं रहेगा.

रात के अंधेरे में उसको वहाँ से निकाला जाएगा, 

सीमा से हमारे तट तक पहुँचने में उसको दो घंटे से ज़्यादा समय नही लगेगा अगर कोई अड़चन नही आई तो.

इस तरफ चूँकि नमक का दलदल जैसा है, बहुत अंदर तक तो हमारी नेवी का कोई गस्ति शिप इधर नही आ सकता, इसलिए उन्होने इधर से घुसने का प्लान किया है.

यहाँ दूर-2 तक रेत और फिर नमक ही नमक है, तट पर भी बीएसएफ के अलावा और कोई सुरक्षा व्यवस्था नही है, 

वो किसी तरह नमक के दलदल को पार करके घुसने की कोशिश करेंगे.

चूँकि उनका स्टीमर भी किनारे तक नही आ सकता तो वो उसे कुछ अंदर ही रखेंगे और वहाँ से लाइफ बोट्स के ज़रिए किनारे तक आएँगे जैसा कि हमारा अनुमान है.

मैने सवाल किया- तो हमारा प्लान क्या है..? हम कैसे रोकेंगे उन्हें..?

ग्रूप लीडर बत्रा ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पेन्सिल से निशान लगाते हुए बताना शुरू किया.

अगर मेरा अनुमान सही निकला तो वो इस पॉइंट तक अपना स्टीमर लाएँगे जो लगभग रात के दो बजे तक आ जाना चाहिए, 

वजह ये है कि ये हमारे किनारे से नज़दीक भी है और यहाँ पानी की गहराई भी इस एरिया में सबसे अधिक है, 

तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है, कि यहाँ हमारी नेवी की कोई सेक्यूरिटी नही है.

फिर वो शायद कच्छ की तरफ सीधे तौर पर नही आएगे क्योंकि इधर बीएसएफ का बेस कॅंप है तो जाहिर सी बात है सेक्यूरिटी भी ज़्यादा होगी, 

हमारे हिसाब से वो लाइफ बोट्स का इस्तेमाल करके राजस्थान बॉर्डर की तरफ रुख़ करेंगे, हालाँकि उधर रेत ज़्यादा है, लेकिन खारे पानी का दलदल कम है.

तो हमें शाम ढलते ही कच्छ के दलदल को पार करके वहाँ उन्हें किनारे पर पहुँचने से पहले उनकी बोट्स को रोकना होगा.

मैने बीच में अपनी नाक घुसेड़ते हुए कहा – इफ़ यू डॉन’ट माइंड ! तो मे कुछ सजेस्ट करूँ, सब लोग मेरी ओर देखने लगे. 

लीडर बत्रा बोला - हां..हां ! श्योर ! यहाँ हम सबके व्यू लेने के बाद ही कोई डिसिशन लिया जाएगा, जो सबकी राय में उचित होगा वही एक्शन डिसाइड होगा.

मैने कहना शुरू किया - हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो अच्छे तैराक हैं..? मेरी बात पर तो मेरे अलावा 4 लोगों ने और हाथ खड़े किए.

और हमारे पास समुद्र के अंदर तैरने वाले सूट भी होंगे..मैने पुछा ! तो उसने हामी भर दी.
 
मैने आगे कहा - अब मेरे हिसाब से ये सही होगा कि अगर आपने जिस पॉइंट पर उनके स्टीमर को खड़ा रहने का अनुमान लगाया है वो अगर सही निकला तो हमें साउत की ओर से जहाँ पानी ही पानी है उधर से बोट द्वारा जाना चाहिए, 
वो भी उनके वहाँ पहुँचने से पहले. 

हम उनसे कुछ दूरी पर रह कर उनका इंतजार करेंगे, 

पहले पहुँचने से एक फ़ायदा ये होगा कि अगर उनका स्टीमर हमारे अनुमान से थोड़ा इधर उधर भी हो जाता है तो हम उसे कवर कर सकते हैं.

स्टीमर को रुकने और लंगर डालने में, और फिर उसमें से लाइफ बोट उतारने में, उसमें समान ट्रान्स्फर करने में उनको कम-से-कम 1 घंटा तो लग ही ज्जाएगा, 

इतनी देर में हम 5 लोग तैर कर उनके स्टीमर तक पानी के अंदर-2 पहुँच कर स्टीमर के आउटर सर्फेस में बॉम्ब फिट करके वापस आ सकते हैं.

इससे पहले कि वो लाइफ बोट में सिफ्ट हों, हम उस स्टीमर को ही उड़ा देंगे.

सब मेरी ओर देखते ही रह गये.. फिर कुछ देर बाद बत्रा बोला- प्लान तो सही है, लेकिन इसमें रिस्क बहुत है, बॉम्ब की इंटेन्सिटी हमें भी चोट पहुँचा सकती है.

मे - सर बिना रिस्क के हमारा कोई मिसन होता है क्या..? आप तो मुझसे ज़्यादा एक्सपीरियेन्स्ड हैं.

वो - सो तो है, फिर दूसरे लोगों की ओर देखते हुए बोला - आप लोगों की क्या राय है.. 

कुछ देर मिक्स डिसक्यूसषन के बाद यही तय हुआ कि हम उनके स्टीमर को बॉम्ब से ही उड़ाएँगे.

अब इस नये प्लान के मुताबिक हमें वहाँ से 150किमी साउत की तरफ जाना था, तो 4 बजे वहाँ से एक बीएसएफ की जीप में सारी ज़रूरत की चीज़ें लेकर निकल लिए, 

उस किनारे के नज़दीकी कॅंप पर फोन करके एक बोट तैयार रखने को भी बोल दिया.

अचह्ी ख़ासी गाड़ी भगाने के बबजूद भी वहाँ पहुँचते-2 हमें काफ़ी अंधेरा हो चुका था…

प्लान के मुतविक दरिया किनारे पर हमें बोट खड़ी मिली, हमारी टीम जीप छोड़कर बोट की तरफ बढ़ने लगी, मैने उन्हें अभी बोट की तरफ जाने से रोक दिया.

मैने कहा - अभी हमारे पास काफ़ी समय है थोड़ा यहीं बैठ कर कुछ खा पी लेते हैं, जिसको जो करना है, यहीं निपटा लो. 

तब तक मे इधर-उधर चक्कर लगाता हूँ, कोई कुछ प्राब्लम तो नही है.

उन लोगों ने वहीं एक घास के मैदान जैसी जगह में बैठ कर थोड़ा सा ड्रिंक वग़ैरह लिया, हल्का फूलका खाया पिया.

मे अपना बिनकलर गले में लटकाए हाथ में एक सॅंडविच लेकर निकल लिया थोड़ा जंगल की तरफ..

मे इधर-उधर नज़र मारते हुए आगे बढ़ता गया, थोड़ा दूर ही गया था कि मुझे दो लोग झाड़ियों के पीछे दिखाई दिए.

वो झाड़ियों के पीछे से हमारे ग्रूप पर नज़र रखे हुए थे. 

मेरा अंदाज़ा सही निकला, ज़रूर ये किनारे की रेकी करके यहाँ का अपडेट दे रहे होंगे. 

बोट को यहाँ देख कर चोन्कन्ने हुए होंगे और अब यहाँ आने-जाने वालों पर नज़र रख रहे हैं.

मे दबे पाँव उनके पीछे पहुँचा और गन हाथ में लेकर उनको ललकारा.. कॉन हो बे तुम लोग ? यहाँ छुप कर क्या कर रहे हो..? 

उनमें से एक हड़बड़ाते हुए बोला – क.क.कुछ नही,,! त्तुम कॉन हो..? और इतने अंधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो..?

मे उनको गन पॉइंट पर लेकर बोला - साला उल्टा चोर कोतवाल को डान्टे..! हैं ऐसे नही मनोगे तुम लोग और मैने आगे बढ़के एक के जोरदार चाँटा रसीद कर दिया, 

वो पीछे की तरफ उलट गया, तब तक दूसरे ने अपनी गन निकाल कर मेरे उपर तान दी और बोला- 

साला हमसे पंगा लेगा तू..! अब देख साले तेरा भेजा कैसे उड़ाता हूँ मे, ये कहकर उसने गोली चला ही दी.

मे तैयार था, सो साइड में हटके उसकी गोली को बेकार कर दिया और उसके हाथ पर एक केरट जमा दी,

गोली की आवाज़ सुनकर मेरे दूसरे साथी भी उधर को दौड़े,

तब तक दूसरा वहाँ से खिसकने लगा तो पीछे से आकर मेरे एक साथी ने उसको दबोच लिया.

अब वो दोनो हमारे कब्ज़े में थे, थोड़े से इलाज़ से ही बक दिए कि वो इस किनारे की इन्फर्मेशन अपने स्टीमर तक दे रहे थे, 

उनमें से एक का नाम मुस्ताक़ था, जिसके पास फोन थे और वो उन्हें टाइम टू टाइम इन्फर्मेशन पास ऑन कर रहा था.

ज़रूरत की जानकारी लेके हमने उन दोनो को शूट कर दिया और उनको बॉडी वहीं जंगल में पड़ा छोड़कर अपनी बोट की तरफ बढ़ गये.

बत्रा - तुम्हें कैसे पता लगा कि ये लोग हम पर नज़र रख रहे हैं..?

मे - यहाँ आने के बाद मेरे सिक्स्त सेन्स ने कहा कि कुछ तो गड़बड़ है, इसलिए आप लोगों को मैने रुकने के लिए बोला,

मे लिट्रली जंगल की तरफ आ गया और देखो ये लोग मिल गये, अब इसके फोन से उनकी स्थिति भी पता लग जाएगी.

बत्रा मेरी तारीफ किए बिना ना रह पाया और बोला - ब्रिलियेंट.. ! सच में तुम एकदम सटीक सोचते हो…
 
हम ये बातें करते-2 बोट तक पहुँचे ही थे कि तभी मुस्ताक़ का फोन बजने लगा.. 

मैने फोन पिक किया और मुस्ताक़ की आवाज़ निकाल कर बोला- हां भाई सलाम वलेकुम..!

मेरी आवाज़ सुनकर मेरे सभी साथी चोंक गये.. मैने मुस्करा कर उनकी ओर देखा.

उधर से पुछा गया - क्या स्थिति है अब उधर की, और कुछ पता लगा कि वो बोट किसलिए लगाई गयी है..

मे - लाइन एक दम क्लियर है भाई, वो तो पता नही कोई ऐसे ही खड़ी छोड़ गया होगा, शायद फ़्यूल ख़तम हो गया होगा इसका.

उधर से फिर बोला गया - तो इसका मतलब अभी तक ऐसा कुछ नही है ना उधर..!

मे - नही भाई इधर सब ठीक है, अब आप बताओ हमारे लिए क्या हुकुम है.

उधर से - ठीक है तुम वहीं रहो अब हमलोग भी वही आते हैं, कॉन साला वहाँ दलदल और रेत में मरेगा रात को, तब तक तुम लोग हमारे निकलने का पुख़्ता इंतज़ाम कर लो ठीक है, 

अगर सब कुछ अच्छे से कर दिया तुमने, तो तुम लोगों को स्पेशल इनाम मिलेगा ओके. बाइ..

मे - ओके बाइ ! खुदा हाफ़िज़ भाई.. !

सब एकदम शॉक्ड रह गये.. ! एक तो मुझे मुस्ताक़ की आवाज़ में बात करते देखा, और अब वो लोग भी इधर ही आ रहे हैं, तो अब क्या करें, ये सवाल सबके चेहरे पर था.

सोचा क्या था और क्या होगया…!!

अचानक मेरे मुँह से निकल पड़ा- ये मारा पापड वाले को..!! सब लोग मेरे मुँह की तरफ देखने लगे.. 

बत्रा बोला- अब कौनसा आइडिया आ गया तुम्हारे इस कंप्यूटर में..?

मैने कहा - अरे यार ये तो साला मज़ा ही आ गया, वो कहते हैं ना कि हल्दी लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही चोखा..!

बत्रा - अबे साले सस्पेंस में ही मार डालेगा क्या..? कुछ बताएगा भी या ये पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा..!

मैने कहना शुरू किया - तो सुनो ! अभी क्या टाइम हुआ है, घड़ी देखते हुए.. 

हन ! 9:30 बजे हैं, आप फोन करके पास के ही किसी सोर्स से दूसरी बोट का इटेज़ाम करो 1 घंटे में.

वो - फिर..! 

मे - पहले आप फोन करो फिर बताता हूँ..!

उसने बीएसएफ कॅंप में फोन किया और दूसरी बोट के लिए पुछा जो कि मौजूद थी, फ़ौरन एक घंटे में भेजने को बोला, तो उधर से कन्फर्म किया कि पहुँच जाएगी.

मे - अब सुनो, हम इस बोट में बॉम्ब फिट कर देते हैं और में इस बोट को ड्राइव करके उनके स्टीमर की ओर ले जाउन्गा, 

आप लोग दूसरी बोट को मेरे से करीब 500 मीटर दूर रखकर फॉलो करना, 

मे उन लोगों को फोन करके बोल दूँगा कि मे उनकी हेल्प के लिए अपनी बोट लेकर आ रहा हूँ.

वो लोग निश्चिंत हो जाएँगे और मेरी बोट पहुँचने तक इंतेज़ार करेंगे..


वो - फिर.. !

मे - वो लोग कुछ दूरी तक चेक करेंगे कि में बोट पर हूँ या नही लेकिन जब में उनके बेहद करीब मतलब150-200 मीटर पहले तक पहुँचुँगा.

वो निश्चिंत हो जाएँगे और चेक करना बंद करके मेरे पहुँचने का इंतजार करेंगे.

तभी में बोट की स्टेरिंग लॉक करके उसमें से पानी में कूद जाउन्गा, बोट फुल स्पीड में स्टीमर से टकराएगी और फिर भाड़ामम्म… बूमबब्ब्…!

सब भौचक्के मुझे ऐसे घूर्ने लगे जैसे में कोई भूत-वूत हूँ.

मे - क्यों क्या हुआ भाइयो..? आइडिया पसंद नही आया..?

बत्रा - नही मे तुम्हें ये ख़तरा मोल नही लेने दे सकता.

मे - अरे यार कोई ख़तरा नही है इसमें..! पानी में 150 मीटर तक बॉम्ब की इंटेन्सिटी इतनी ज़्यादा नही होगी और फिर आप लोग हो ही बॅक-अप के लिए मुझे सर्च कर लेना जल्दी ही अगर में ना पहुँच पाया तो..!

वो - नही मेरा मन नही मान रहा आक्स्पेट करने को..!

मे - देखो अब हमारे पास ज़्यादा समय नही है बर्बाद करने के लिए, और रही बात रिस्क की तो इतनी सारी जानें बचाने के लिए ये रिस्क तो लेना ही पड़ेगा, 

देश ने हमें रखा ही ऐसे रिस्क लेकर देश की रक्षा करने के लिए.. अब ज़्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत नही है.

इतने में वो बोट भी आ गई, और प्लान के हिसाब से हमने उस बोट में बॉम्ब फिट कर दिया, उस बॉम्ब की पॉवर ओपन सर्फेस पर इतनी थी कि एक बड़े से माल को भी उड़ा दे.

ये सब करते-2, 12:30 हो गये, उस पॉइंट तक पहुँचने के लिए 1 घंटा लग सकता था,

मैने मुस्ताक़ के फोन से स्टीमर वाला नंबर डाइयल किया, लाइन मिलते ही जैसा सोचा था वैसे ही बोलकर फाइनल कर दिया, 

वो लोग 2 बजे तक वहाँ पहुँचने वाले थे सो कुछ देर बाद हमने भी बोट स्टार्ट करली.

आधे रास्ते तक तो दोनो बोट्स साथ-2 चलाते रहे फिर करीब 1:30 को मैने अपनी बोट आगे बढ़ा दी, 

धीरे-2 दोनो बोट की डिस्टेन्स 500 मीटर रखकर हम आगे बढ़ते रहे.

कुछ देर बाद ही हमें स्टीमर की तरफ से एक पतली सी लाइट की रेखा जैसी दिखने लगी, जो धीरे-2 बड़ी होती जा रही थी. 

मुझे पता था कि स्टीमर से मेरी बोट को देखा जा रहा होगा सो मैने एक कपड़े से अपने सर को ढक लिया जो मेरे आधे फेस को भी ढके हुए था.

सच कहूँ तो मौत से सबको भय लगता है, जैसे-2 मेरी और स्टीमर की दूरी कम होती जारही थी, मेरे शरीर में कंपन जैसा होने लगा, 

लेकिन कुछ कर गुजरने के जज़्बे ने मुझे हमेशा ही सपोर्ट किया है, और मेरे डर को कम किया है.

मैने बोट की स्टेरिंग को लॉक कर दिया और स्पीड बढ़ा दी, 

तकरीबन हम दोनो के बीच 150-200 मीटर की ही दूरी बची थी कि मैने पानी में जंप लगा दी और जितनी देर में बोट स्टीमर तक पहुँचती और उससे टकराती मैने अपने तैरने की दिशा पकड़ ली और अपने साथियों की बोट की तरफ तेज़ी से तैरने लगा.

जैसे-2 बोट स्टीमर के नज़दीक पहुँचती जा रही थी, फिर्भी उसकी स्पीड में कोई अंतर आया ना देख स्टीमर में मौजूद आतंकवादियों में हड़कंप मच गया, 

लेकिन तब तक उनके लिए बहुत देर हो चुकी थी, इससे पहले कि वो कुछ कर पाते बोट स्टीमर से फुल स्पीड में टकराई और फिर एक कर्नभेदी बिस्फोट समुद्र के सीने पर हुआ.

एक आग का बहुत बड़ा सा गोला, पानी से कोई 25-30 मीटर उँचाई तक उच्छलता चला गया…

बोट और स्टीमर के परखच्चे उड़ कर समुद्र के पानी के साथ हवा में उड़ते नज़र आने लगे.

स्टीमर में मौजूद बिस्फोटक की वजह से और कई जोरदार धमाके हुए, और कितनी ही देर तक समुद्र के पानी पर दूर-2 तक आग ही आग फैलने लगी.

पता नही पानी का इतना फोर्स कैसे पैदा हुआ, कि उसने 200 मीटर से भी ज़्यादा दूरी पर मेरे शरीर को हवा में उछाल दिया.

और जब मेरा शरीर फिर से वापस पानी से टकराया, तो मेरे शरीर को इतना तेज झटका पड़ा कि मेरा पोर-2 हिल गया, 

स्टीमर की तरफ से आग का एक सैलाब सा मेरी ओर बढ़ता चला आ रहा था.
 
मरता क्या ना करता, ना चाहते हुए भी मे अपने हाथ पैर हिलान पर मजबूर था, जिससे कम-से-कम अपने को डूबने से बचा सकूँ, 

इधर फ़्यूल समुद्र के पानी में घुलने से आग तेज़ी से मेरी ओर लॅप-लपाती हुई चली आ रही थी…

कुछ देर तक तो मैने पानी की लहरों से लड़ने की कोशिश की, लेकिन जल्दी ही मेरा होश जबाब दे गया और मे अंधेरे की गर्त में डूबता चला गया.…..!!

मुझे नही पता कि मे कितनी देर बेहोश रहा, लेकिन जब मेरी आँख खुली तो मे एक हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ था,

आँखों के धुधल्के में मुझे एक-दो मानव आकृतियाँ सी दिखाई दी,

जैसे-2 मेरी देखने की क्षमता समान्य हुई, तो मैने अपने पास खड़े एक आर्मी डॉक्टर और उसकी एक असिस्टेंट को पाया.

कॉंग्रुलेशन्स यंग मॅन आख़िर तुमने अपनी मौत को मात दे ही दी - उस डॉक्टर ने मेरे से कहा, तो मैने उससे पूछा.-

मे इस समय कहाँ हूँ डॉक्टर और मेरे साथी कहाँ हैं..?

डॉक्टर - वो लोग तो चले गये.. और तुम इस समय भुज के आर्मी हॉस्पिटल में हो, आज इस बेड पर लेटे हुए तुम्हें 12 दिन हो गये..!

मे - 12 दिन..? आख़िर हुआ क्या था मुझे..?

डॉक्टर - पहले का तो मुझे भी नही पता, लेकिन जब तुम्हें यहाँ लाया गया था, तो तुम्हारे शरीर के बाहरी हिस्से पर तो मामूली सी ही चोटें थी, 

परंतु जब तुम्हारी पूरी बॉडी को एग्ज़ॅमिन किया गया, तो पता चला कि तुम्हारे शरीर को इतना जबेर्दस्त झटका पड़ा था कि बॉडी का पूरा स्ट्रक्चर ही हिल गया था, 

एक-2 जॉइंट हिल चुका था, सारे लिगमेंट फट चुके थे.

फिर तुम्हारी पूरी बॉडी को प्लास्टर से कवर कर दिया गया जिससे तुम ग़लती से भी किसी हिस्से को हिला ना सको. 

इंजेक्षन दे-देकर तुम्हें बेहोश रखा गया, खुराक भी इंजेक्षन के फॉर्म में या बोटेल चढ़ा कर दी जाती रही.

जब सारे लिगमेंट ओर जायंट्स पूरी तरह ठीक हो गये तब आज तुम्हारा प्लास्टर हटाया गया है और तुम्हें होश में लाया गया है, 

अब सिर्फ़ तुम्हारी लेफ्ट लेग में फ्रॅक्चर है, तो वही पर प्लास्टर है जो कि अभी एक महीने और रखना पड़ेगा.

मे - मेरे दोस्त कब और क्यों चले गये..? मेरा समान कहाँ है..?

डॉक्टर - तुम्हारे एक दो दोस्तों को भी मामूली सी चोटें थी, जो दो दिन में ठीक हो गयी और वो चले गये, 

उन्होने ये सामान दिया था तुम्हें देने के लिए जिसमें शायद ये वॉच तो शायद बंद हो गयी थी, सेल हमने चेक नही किया है, शायद उन लोगों ने ही स्विच ऑफ कर दिया होगा या हो गया होगा.

मैने अपना सेल लिया बेटर्री, सिम वग़ैरह निकाल कर चेक की और दुबारा डाल कर ऑन किया तो वो ऑन हो गया.

बेटर्री थोड़ा कम थी, चारजर भी नही था, सो उसका ज़्यादा यूज़ भी नही कर सकता था.

अभी मे कुछ और पुछ पाता या कर पाता, की मेरा सेल बज उठा, देखा तो ट्रिशा की कॉल थी, 

मैने जैसे ही फोन पिक किया, वो शेरनी की तरह बिफर पड़ी.

ट्रिशा - कहाँ हो आप..? फोन क्यों बंद था इतने दिनो से..? जब से गये हो बात ही नही की..? क्या हुआ था..?

मे - ओ मेरी माँ साँस तो लेले..! मुझे कुछ नही हुआ, मे अब ठीक हूँ.

वो - अब ठीक हूँ मतलब.. कुछ हुआ था..? बताओ जल्दी क्या हुआ था आपको..?

मे- कुछ नही एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया था बस..

वो - आक्सिडेंट..? कब..? कैसे…? अभी कहाँ हो आप..? मुझे बताओ प्लीज़ मे अभी निकलती हूँ यहाँ से..!

मे - अभी मे घर पर नही हूँ, ईवन अपने शहर में भी नही हूँ, तुम्हें बाद में बताता हूँ, ओके.

वो - नही मुझे अभी बताओ कोन्से हॉस्पिटल में हो मे वहीं आती हूँ आपको लेने. 

मे - सबर कर मेरी माँ, अच्छा मुझे 1 घंटे का समय देदो में बताता हूँ, ठीक है, ये कहकर मैने फोन कट कर दिया.

फिर मैने डॉक्टर से पुछा कि मे अपने घर कब जा सकता हूँ, तो उसने कहा कि कभी भी जाओ, 

ये प्लास्टर ही है जो कुच्छ दिन और रहेगा, फिर उसे किसी भी फिज़ीशियान से कन्सल्ट करके निकलवा सकते हो.

मे - क्या आप मेरा जाने का अरेंज्मेंट करवा सकते हैं, तो उसने अपनी नर्स को भेजा किसी को बुलाने के लिए.

कुछ देर में ही एक आर्मी का कर्नल अंदर आया, और मेरे से बोला- व्हाट कॅन आइ दो फ़ॉर यू मिस्टर. अरुण. ?

मे - कर्नल मुझे अपने घर जाना है, क्या आप अरेंज कर सकते हैं..?
कर्नल - राइट नाउ..?

मे - यस..! 

कर्नल - ऑफ कोर्स..! हमें उपर से आपकी हर संभव मदद करने की इन्स्ट्रक्षन्स हैं, सो यू बी रेडी, वी कॅन मूव विदिन अवर टाइम. 

मे देखता हूँ कोना सा हेलिकॉप्टर रेडी है.

मैने फिर डॉक्टर से पुछा- डॉक्टर अब खाना खा सकता हूँ, तो उसने कहा श्योर कुछ भी खाओ, तो मे बोला- तो फिर खिलाओ ना डॉक्टर पेट में चूहे कूद रहे हैं. 

डॉक्टर ने हसते हुए नर्स को खाना अरेंज करने के लिए बोला.

खाना खा कर मैने ट्रिशा को फोन करके बता दिया कि मे आज शाम तक अपने घर पहुँच जाउन्गा.

कुछ घंटों में ही हम मेरे शहर के मिलिटरी कांटोनमेंट के हेलिपॅड पर थे, 

वहाँ से फिर से मुझे चेक अप के लिए उस कॅंप के हॉस्पिटल ले जाया गया. और फिर एक नर्स को मेरे साथ भेज कर मिलिटरी की जीप मेरे घर तक छोड़ गयी.

घर आकर नर्स ने मुझे बेड रेस्ट की हिदायत दे थी, और खुद ने सब कुछ मॅनेज कर लिया. 

मैने आते ही एनएसए चौधरी को कॉल किया, तो उन्होने मेरा हाल-चाल पूछा, और फिर मेरी तारीफ़ करते हुए बोले- .

चौधरी - सच में तुम कमाल हो अरुण, तुम्हारी मिसन रिपोर्ट बत्रा (ग्रूप लीडर) ने भेज दी है, 

मे तुम्हें अभी मैल करता हू, पढ़ लेना क्या-2 हुआ था सारा डीटेल है उसमें, तुम्हारे बेहोश होने से लेकर हॉस्पिटल तक का भी.

मैने अपना लॅपटॉप ऑन किया, मैल चेक किए, बहुत सारे मैल पेंडिंग थे रीड करने को, 

मैने-2 मैल ओपन करके देखे, जिसमें ट्रिशा के भी डेली के हिसाब से एक-दो, एक-दो मैल थे जिनमें वही उसकी चिंता झलक रही थी.

तब तक एनएसए का भेजा हुआ मैल आ गया, जिसमें वो रिपोर्ट थी, उसको मैने ओपन किया, और पढ़ने लगा, 

वो हमारे मीटिंग से लेकर आक्षन तक सारा डीटेल था, सरसरी तौर पर देख कर मे अपने बेहोश होने के बाद के मॅटर पर आ गया, जो मेरा मैं क्न्सर्न था जानना कि क्या-2 हुआ था उसके बाद.
 
रिपोर्ट - हवा में कोई 10-12 फीट तक उपर उछल्ने के बाद अरुण का शरीर फिर से सागर के पानी में डूबता चला गया, हमारी बोट भी भीषण धमाके की वजह से समुद्र के पानी में आए भूचाल से बुरी तरह हिलने लगी, 

एक बार को तो लगा कि उलट ही जाएगी, ढेर सारा पानी बोट में भर गया था.

हमारे 3-4 साथी भी बोट में इधर-उधर गिरने की वजह से चोटिल हो गये थे. 

किसी तरह हमने बोट को संभाला, कुछ लोग उसका पानी निकालने में जुट गये. 

हम बराबर अरुण को तलाशने के लिए जहाँ उसकी बॉडी पानी में गिरी थी उसके आस-पास बिनकलर से सर्च कर रहे थे, 

कुछ देर तक वो हमें नज़र ही नही आया, किंतु कुछ देर के बाद वो हमें दिखाई दिया.

स्टीमर से उठी आग अरुण की तरफ से होती हुई हमारी ओर बढ़ रही थी, जल्द से जल्द हम अपनी बोट को उसके पास तक ले जाना चाहते थे, 

वो भी हमें पानी के उपर तैरने की कोशिश करता दिखाई दिया तो हमें कुछ राहत मिली.

लेकिन वो हमारी रहट ज़्यादा देर नही रह पाई और हमने अरुण का बेहोश शरीर पानी में डूबता नज़र आया, 

लाइट्स के फोकस उसी के उपर रख कर, हम उसके बेहद करीब पहुँच चुके थे, सो दो जनों ने पानी में छलान्ग लगा कर बेहोश अरुण को बाहर निकाला. 

उधर आग लगभग हम तक पहुँच ही चुकी थी.

हमने झट-पट उसके शरीर को बोट में डाला, और दोनो साथियों को भी चढ़ा ही पाए थे कि आग हमारी बोट तक पहुँच गयी.

फ़ौरन बोट को वापस घुमाया और दौड़ा दिया. 

आग को पीछे और पीछे छोड़ते हुए हम वहाँ से बच निकले. 

लेकिन किनारे पहुँचने तक भी, अरुण के शरीर में कोई हरकत हमें नज़र नही आई.

मैने फोन करके एर आंब्युलेन्स के लिए रिक्वेस्ट की जो मिल गयी, हमारे किनारे पहुँचने से पहले ही वो हमारा वेट कर रहे थे.

इस तरह से हम चन्द मिनट में ही भुज के मिलिटरी हॉस्पिटल में थे, जहाँ अरुण को आइसीयू में रख दिया और उसका ट्रीटमेंट शुरू हो गया.

हमारे घायल साथियों को भी मेडिकल ट्रीटमेंट दे दिया गया, चूँकि वो ज़्यादा सीरीयस नही थे सो दो दिन में ही ठीक हो गये.

सुबह डॉक्टर ने रिपोर्ट दी कि अरुण के सारे लिगमेंट डॅमेज हो चुके हैं, एक टाँग फ्रॅक्चर्ड है, 

पूरे शरीर को प्लास्टर कर दिया है, लेकिन वाकी और कोई सीरीयसनेस नही है, तो हम उसको अंडर मिलिटरी ट्रीटमेंट में छोड़ कर चले आए.

बत्रा की रिपोर्ट पढ़कर मे अभी उसके बाद की रिपोर्ट टाइप करके भेजने ही वाला था कि डोर बेल बजने लगी….

नर्स दूसरे रूम में थी तो उसने डोर खोला, सामने एक लेडी पोलीस ऑफीसर को देख कर वो चोंक गयी, 

इधर नर्स को वहाँ देख कर वो लेडी ऑफीसर जो कोई और नही अरुण की पत्नी ट्रिशा शर्मा थी, बुरी तरह से चोन्कि, उसके मन में अंजानी आशंका पैदा होने लगी.

उसे लगा, कि कहीं में ज़्यादा क्रिटिकल कंडीशन में तो नही हूँ, ये सोच कर वो तेज़ी से अंदर को बढ़ी, 

वो नर्स उसे रोकती ही रह गयी, लेकिन वो धड़ धड़ाती हुई अरुण के रूम में घुस गयी.

मे लॅपटॉप पर मैल कर रहा था, अभी सेंड का बटन क्लिक किया ही था कि भड़ाक से गेट ओपन हुआ और जैसे ही मेरी नज़र गेट पर पड़ी, 

सामने ट्रिशा एसपी की ड्रेस में कमर पर हाथ रखे मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी, गुस्सा उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था.

मैने उसे देखते ही कहा - आइए एसपी साहिबा.. वेलकम होम…!

ट्रिशा गुस्से में बिफर्ति हुई बोली - आप अपने आपको समझते क्या हो हान्ं..? 

15 दिन से ना कोई मेसेज, ना फोन कॉल, सोच-सोच के बुरा हाल हो रहा था मेरा. फोन भी स्विच ऑफ, करूँ तो क्या करूँ..? 

मन में ना जाने कैसे-2 ख्याल आ रहे थे. मे आपकी पत्नी हूँ, मुझे तो बताना चाहिए था कि आख़िर जनाब जा कहाँ रहे हैं..?

मे - अरे मेरी अम्मा..! थोड़ा शांत हो जा..! आओ मे सब बताता हूँ.

ट्रिशा - अब क्या बताता हूँ..? और आप तो बोलके गये थे कि ऑफीस में कोई प्राब्लम है, उसे सॉल्व करना है, फिर ये दूसरे शहर में कैसे पहुँच गये ? 

और वो आक्सिडेंट..? 

मे - अब ये अपनी थानेदारी छोड़ कर मेरे पास आओगी या वहीं से सवाल जबाब करती रहोगी..? 

पहले एक काम करो ये यूनिफॉर्म उतार कर फ्रेश होकर दूसरे कपड़े चेंज कर्लो फिर बात करते हैं ओके.

मे सच में आपसे बहुत नाराज़ हूँ, ये कहकर ट्रिशा पैर पटकती और भुन्भुनाति हुई बाथरूम में चली गयी, 10 मिनट बाद एक सारी पहन कर वो मेरे पास पलंग पर आकर बैठ गयी.

गुस्सा अभी भी उसके मुखमंडल पर ज्यों का त्यों विराजमान था, और उसी लहजे में वो बोली - हां अब बोलो क्या एक्सक्यूस हैं आपके..?

मैने लॅपटॉप में वो रिपोर्ट ओपन करके उसके सामने कर दी- लो ये पढ़ो तुम्हारे हर सवाल के जबाब इसमें मिल जाएँगे.

ट्रिशा ने रिपोर्ट पढ़ना शुरू किया, जैसे -2 वो रिपोर्ट पढ़ती जा रही थी, उसके चेहरे का तनाव कम होता जा रहा था, 

लेकिन उसकी जगह घोर आश्चर्य के भाव दिखाई देने लगे, रिपोर्ट का लास्ट पार्ट पढ़ते-2 उसकी आँखों से आँसुओं की लड़ी बहने लगी, 

रिपोर्ट ख़तम होते ही वो पागल लड़की मेरे सीने में लग कर फुट-2 कर रोने लगी.
 
दरवाजे पर खड़ी नर्स हमें देख कर कुछ समझी-कुछ ना समझी अवस्था में थी, 

जैसे ही मेरी नज़र उस पर गयी तो मैने इशारे से उससे जाने को कहा, वो वहाँ से चली गयी.

ट्रिशा सुबक्ते हुए बोली - आख़िर कॉन हो आप, अरुण प्लीज़ अब तो सच बता दो, एक इंजिनियर को क्या पड़ी कि वो वहाँ जाके ऐसे काम करे..? 

क्या मे इस लायक भी नही कि आपकी सच्चाई जान सकूँ..?

मे - तुम्हें याद है, जब तुमने मुझसे कमॅंडोस की ट्रैनिंग के बाद पुछा था, कि आपको इस जॉब के लिए ये ट्रैनिंग करने की क्या ज़रूरत है..!

ट्रिशा - हां पुछा था, और आपने बोला था कि समय आने पर सब बता दूँगा. तो क्या वो समय अभी भी नही आया है..?

मे - आ गया है मेरी जान..!

ट्रिशा - तो बताओ अपने बारे में.. सब कुछ..!

मे - बस ज़्यादा कुछ नही, मेरा एक ही सच है जो तुम्हें नही पता और वो ये कि मे एनएसएसआइ का अंडर कवर एजेंट 928 हूँ.

ट्रिशा मेरी सच्चाई सुनकर बुरी तरह उछल पड़ी - क्या..? क्या सच में..?

मे - हां ! ये बिल्कुल सच है, और चूँकि तुम भी एक आइपीएस ऑफीसर हो तो तुम पर इतना ट्रस्ट तो कर ही सकता हूँ कि ये सच्चाई अब सिर्फ़ हम दोनो तक ही सीमित रहेगी. 

भूल से भी किसी और को पता नही होना चाहिए कि मे कॉन हूँ.. यहाँ तक कि हमारे होने वाले बच्चों को भी.

बच्चों का नाम सुन कर वो शरमा गयी और मुझे और जोरे से कस्ति हुई बोली - ओह्ह अरुण… मेरे स्वामी…. आप सचमुच महान हो..! 

मे वादा करती हूँ, मेरी ज़ुबान कट भले ही जाए लेकिन किसी के सामने खुलेगी नही. आप तो मेरे पति हैं, ऐसे राज़ तो दूसरों के भी नही बताए जाते.

मेरे घरवाले यहाँ तक कि ऋषभ भैया भी मुझे क्या-2 बोलकर चिढ़ाते थे कि कैसी पागल है ये लड़की, 

एक आइपीएस होकर इंजिनियर के प्यार में पड़ गयी. लेकिन उन्हें क्या पता की मेरा पति मेरा ही नही इस पूरे देश का रखवाला है, 

ये कहकर उसने मेरे पूरे चेहरे को चुंबनों से भर दिया. 

मैने आगे कहा - जानती हो ! ये मेरा तीसरा मिसन था.

वो एकदम चोन्क्ते हुए बोली - क्या..? दो और कोन्से थे..? फिर मैने उसको अलीगढ़ के और ज़फ़रुल्ला वाले मिसन के बारे में भी बताया.

वो - आप एक सच्चे देश भक्त हो, हमारी पोलीस तो किसी काम की नही होती, बस नेताओं के तलवे चाटते रहो और अपनी नौकरी करते रहो, पैसा कमाते रहो बस.

फिर कुछ देर वो यौंही मेरे कंधे से लगी बात करती रही, कभी-2 मेरे सीने को चूम लेती. 

मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे, जो धीरे-2 नीचे की ओर चले गये और फिर उसके गोल-गोल कसे हुए कुल्हों को सहलाने लगे, 

मुझे कुछ शरारत करने की सूझी और मैने अपनी एक उंगली उसकी गान्ड की दरार में डाल दी.

वो चिंहूक कर मेरे सीने से अलग हो गयी और गहरी नज़रों से देखती हुई बोली - उउन्न्हुउ..! ये अभी नही.. पहले आप एकदम से ठीक हो जाओ फिर..!

मे - अरे यार ! वो प्लास्टर तो घुटने से नीचे ही तो है, वाकी सब समान तो फिट है ना..!

ट्रिशा - नही..बिल्कुल नही..! अभी ऐसा कुछ भी करने की पेर्मिशन नही है आपको.

मे - क्या मुशिबत है यार ! ये साली थानेदारनी ही लिखी थी मेरे भाग्य में. 

शादी को 17-18 दिन हो गये, और अभी तक साला ना तो हनी का पता हैं और ना मून का.

ट्रिशा मेरी बात सुन कर खिल-खिला कर फिर से गले से लिपट गयी, मैने अपनी उंगली उसके लिप्स पर घुमाते हुए कहा- ड्राइ सेक्स तो कर सकते हैं ना..! कि उसकी भी परमिशन लेनी पड़ेगी.

वो कुछ सोच कर बोली - ठीक रात को, अभी नही ओके, अब में घर को थोड़ा ठीक करके, खाने-वाने का देखती हूँ.
 
जब वो बाहर चली गयी तो नर्स मेरे कमरे में आई और बोली- सर ! ये पोलीस ऑफीसर कॉन हैं..?

मे - अरे सिस्टर ये मेरी पत्नी है.. ट्रिशा शर्मा, आइपीएस. वो ओह्ह्ह.. करके चली गयी.

ट्रिशा घर को व्यवस्थित करने में लग गयी, 3 डिन्नर किसी अच्छे से होटेल से ऑर्डर करके मॅंगा लिए जो हम तीनो ने एक साथ बैठ कर खाए. 

इस बीच नर्स ने पुछा कि मेडम अब अगर आप यहाँ हैं तो में थोड़ा अपने घर जाउ, 

मैने उसे मना कर दिया कि नही, मेडम दो दिन बाद चली जाएँगी अपनी ड्यूटी पर, तब तक के लिए अगर जाना चाहो तो जा सकती हो.

खाना खाकर नर्स अपने घर चली गयी, उसने रिक्वेस्ट की थी कि उसके घर जाने की बात हम उसके ऑफीस में ना बताएँ, जो हमने आक्सेप्ट कर ली.

खाना खा कर हम दोनो पति-पत्नी अपने बिस्तर पर आ गये और एक दूसरे की भूली-बिसरी बातों में लग गये.

बातों-2 में मैने उसके साथ छेड़ छाड शुरू कर दी, तो वो भी गरम होने लगी, और देखते-2 हम दोनो अपने अंतर वस्त्रों में आ गये…! 

मेरी हरकतों से ट्रिशा इतनी ज़्यादा गरम हो चुकी थी कि, वो ये भी भूल गयी कि उसने दो घंटे पहले क्या प्रॉमिस लिया था मुझसे. 

अब वो किसी भी तरह से अपनी वर्जिनिटी खोना ही चाहती थी आज की रात, आज एक पूर्ण औरत होने की जैसे ठान ली थी उसने…..!!

ट्रिशा ने मेरे आख़िरी वस्त्र को भी निकाल फेंका, और खुद भी मात्र पेंटी में आ गयी, वो अपने हाथों से मेरे मूसल महाराज को बड़े प्यार से सहला रही थी, बीच-बीच में वो उसे चूम भी लेती थी.

मेरी आँखें आनंदतिरेक में बंद हो चुकी थी, मेरा लंड फटने तक की कगार पर पहुँच चुका था.

नीली – 2 नसें 1 सेमी तक की मोटाई में उभर आईं थी, वो इतना सख़्त हो चुका था, कि ट्रिशा अपने हाथ से उसे दबा भी नही पा रही थी…

मैने ट्रिशा की गान्ड को पकड़ कर अपने मुँह की तरफ घुमाया और उसकी पेंटी निकाल कर अपने मुँह के उपर बिठा लिया, अब हम दोनो 69 की पोज़िशन में थे, 

उसकी जीभ मेरे लंड के गोल-2 लाल सुपाडे से खेल रही थी और में उसकी परी को अपनी जीभ से चाट रहा था.

मुझसे अब सब्र करना मुश्किल होता जा रहा था, और शायद वो भी अब अपने को रोक नही पा रही थी.

मैने कहा - डार्लिंग..! एक बार तुम कोशिश करो तो मेरे उपर बैठ कर..! शायद मैने उसके मन की बात कह दी थी.. 

वो तुरंत पलट गयी और अपनी परी को मेरे मूसल पर रख कर रगड़ने लगी, दोनो के ही पार्ट चिकने होकर स्लिपैरी हो गये थे.

मैने उसकी जांघों के उपर से अपने दोनो हाथ लेजा कर उसकी परी के होंठों को खोल कर बोला- 

जान तुम मेरा लंड पकड़ के सेट तो करो अपने छेद पर, 

उसने वैसा ही किया और जब डाइरेक्षन मॅच हो गया तो उसको धीरे से बैठने को कहा.

जैसे ही उसने अपनी गान्ड को नीचे की तरफ मूव किया, उसके हलक से एक चीख नियकल पड़ी..और वो हाँफती सी बोली- नही अरुण ये मुझसे नही होगा, ऐसा लगा जैसे मेरी जान ही निकल गयी हो. 

प्लीज़ मे नही कर पाउन्गि ये.

मेरे हाथ उसके दोनो कुल्हों पर ही जमे थे मुझे पता था कि जैसे ही उसे दर्द होगा वो उठ जाएगी, सो मैने उसे उसी पोज़िशन में दबाए रखा. 

इस समय मेरा सुपाडा पूरी तरह पोज़िशन में था और उसकी परी की सील की झिल्ली पर टिका हुआ था.

मैने उसको समझाया, देखो डार्लिंग ! ये सब तो हर लड़की को झेलना पड़ता है फर्स्ट टाइम, अब ऐसे तो तुम जिंदगी भर नही रहोगी ना, तो फिर आज ही क्यों नही.

उसको कुछ मेरी बात जमी, और वो मेरे साथ स्मूच करने लगी, मे उसकी गान्ड को सहलाता रहा, 

जब उसको कुछ राहत महसूस हुई, तो मैने उसे फिर एक बार और कोशिश करने का इशारा किया, उसने थोड़ा सा पुश किया, साथ ही मैने उसके कुल्हों को थोड़ा ज़्यादा दबा दिया.

नतीजा मेरा आधे से ज़्यादा लंड उसकी सील को तोड़ता हुआ उसकी लाल परी के अंदर समा गया.

वो बुरी तरह छ्ट-पाटने लगी, उसकी आँखों से पानी निकलने लगा, और वो मेरे हाथों को अपने कुल्हों से हटाने की भरपूर कोशिश में लग गयी.

मैने उसे एनकरेज करते हुए कहा - बस मेरी जान, मैं दरवाजा तो टूट चुका है, सिपाही को अंदर जाने का रास्ता मिल चुका है, 

और थोड़ी सी कोशिश करनी है बस, फिर फ़तह ही फ़तह..अब थोड़ा सा और.. प्लीज़…

वो कराहते हुए बोली - आह…जानू ! दर्द के मारे जैसे मेरी कमर फटी ही जा रही है, प्लीज़ थोड़ा सा निकालने दो ना..… फिर से कर लेंगे..!

मैने थोड़ा डाँटते हुए कहा - पागल मत बनो ट्रिशा, जो अभी तक मेहनत की है तुमने, वो सब बेकार हो जाएगी.. प्लीज़ मुझे स्मूच करो और अपना ध्यान सेक्स में लगाओ..

वो फिर से मुझे चूमने चाटने लगी में भी उसको उत्तेजित करने की कोशिश कर रहा था, 

मे अपनी एक उंगली से उसकी गान्ड के छेद को कुरेदने लगा, जिससे उसकी परी की अन्द्रुनि दीवारों में सुरसूराहट होने लगी और धीरे-2 उसकी कमर हिलने लगी.

अब कुछ कम हुआ दर्द.. मैने उसे पुछा तो वो हमम्म.. करके बोली,

तो अब धीरे-2 इससे अंदर बाहर करो… आप लोग सोच रहे होंगे कि पहली बार शायद किसी लड़की ने खुद उपर चढ़ कर अपनी वर्जिनिटी खोई हो ये संभव नही, 

पर यहाँ ट्रिशा की मजबूरी थी. वो अब रुक भी नही सकती थी सो धीरे-2 अपनी कमर को उपर नीचे करने लगी.
 
अब उसे इसमें थोड़ा – 2 मज़ा आने लगा था, मे भी अब उसकी गान्ड से हाथ हटा कर उसकी चुचियों को मसल्ने लगा उसके निप्प्लो को सहलाने लगा, जिससे उसका मज़ा और बढ़ गया.

अब उसके मुँह से आनंद की किल्कारी फुट रही थी, मुझे लगा कि अब वो झड़ने वाली है, तभी मैने उसके कुल्हों पर हाथ रख कर सहलाया और उसको उत्तेजित करने के लिए बोला- 

यस डार्लिंग.. ऐसे ही मेरी रानी.. शाबास और ज़ोर से…यस, और साथ ही उसकी गान्ड को अपने हाथों में कसकर, पूरी ताक़त से नीचे को दबा दिया.

मज़े की वजह से ट्रिशा इस झटके को नज़र अंदाज कर गयी और एक हल्की सी दर्द भरी चीख के साथ वो झड़ने लगी,

लेकिन तब तक मेरा खूँटा पूरी तरह उसकी सन्करि सी गुफा में फिट हो चुका था.

वो कुछ देर यौही पड़ी हफ्ती रही और मेरे सीने से लग कर सुस्ताने लगी. 

मेरा मूसल उसकी परी के अंदर फूल-पिचक रहा था, बड़ी बैचैनि मे था आज वो बेचारा, 

क्योंकि आज की कमॅंड उसके मालिक के हाथ में नही थी तो मजबूरी थी.

मैने कहा - डार्लिंग मेरा बाबू परेशान है अंदर उसको थोड़ा खुराक तो दो, तो वो मेरी ओर देख कर एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बोली- अब क्या करूँ..?

मे - अब फिर से धीरे-2 कमर चलो, तो उसने बहुत ही धीरे से अपनी कमर को उपर किया, उसे फिर से दर्द का आभास हुआ और उसके मुँह से एक कराह निकल गयी, 

लेकिन अब उसे अपने साथी को भी तो खुस करना था, सो बेचारी फिर से उसको दबाने लगी.

उसकी कोशिश रंग लाई और कुछ ही प्रयासों में उसका दर्द कम होता गया और वो आनंद में परिवर्तित होने लगा.

अब उसके धक्कों में थोड़ी गति आती जा रही थी, लेकिन इतनी नही जैसी मूसल महाराज को चाहिए थी,

सो अब उसकी कमान मैने अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया, मैने अपनी प्लास्टर वाली टाँग को सीधा रखते हुए, ट्रिशा को अपने नीचे ले लिया, 

उस टूटी टाँग को ट्रिशा की जाँघ के उपर सीधा किया, और उसकी दूसरी टाँग को उपर उठाकर उसकी फ्रेश सील टूटी मुनिया में अपना लंड पेल दिया…

एक बार वो फिर बुरी तरह कराह उठी, लेकिन अब समय नही था, उसके उपर ध्यान देने का…

सो उसके होठ चूस्ते हुए, मैने अपनी कमर चलाना शुरू कर दिया…

एक हाथ से उसकी चुचियों को मसल्ते हुए मेरे धक्कों की रफ़्तार में निरंतर तेज़ी आती जा रही थी…

मेरी तूफ़ानी चुदाई से ट्रिशा का मुँह खुला का खुला रह गया… लेकिन कुछ पलों बाद ही, वो भी पूरी तरह से सहयोग करने लगी.

इतनी स्पीड के धक्कों को ट्रिशा की लाल परी नही झेल पाई और वो फिर से आँसू बहाने लगी, 

उसके झड़ने से लंड और मस्ती से अंदर बाहर होने लगा, और कुच्छ ही पलों बाद मैने भी अपना फब्बरा उसकी नयी-2 फटी चूत में छोड़ दिया, 

पहली बार उसकी परी मर्दाने वीर्य का रसास्वादन करने से आनंदतिरेक में फिर से पानी छोड़ने लगी और पूरी तरह शांत हो गयी.

मैने फिर से नीचे लेट कर उसे अपने उपर लिटा कर चिपका लिया, 
 
कितनी ही देर तक में उसे अपने से चिपकाए पड़ा रहा, वो भी मेरे सीने से चिपकी पड़ी रही, शायद नींद में ही चली गयी थी, मैने भी उसे ऐसे पड़े रहने दिया, 

बेचारी थक गयी थी, इतनी देर कमर चलाते-2. 

कुछ देर बाद वो खुद ही कुन्मुनाई और मेरे उपर से उठ गयी.

जैसे ही वो उठी, एक पुच.. की आवाज़ के साथ मेरा लंड उसकी परी से बाहर आया, जो शायद उसकी गर्मी पाकर फिर से अकड़ने लगा था.

उसकी नव-विक्षित योनि से खून के साथ-2 हम्दोनो का मिश्रित वीर्य भी बाहर निकला और बेड शीट को गीला करने लगा.

वो मेरे सीने पर हाथ रख कर मेरी बगल में पड़ी थी, मैने उसको पुछा - ट्रिशा अब दर्द तो नही है..?

वो - नही ज़्यादा नही, थोड़ा सा फील हो रहा है, वैसे मज़ा बहुत आया, सच में मुझे नही पता था कि इसमें इतना मज़ा है, वरना मे अभी तक आपको नही छोड़ती.

मे - अच्छा अब इतनी डेरिंग आ गयी मेरी थानेदारनी में..?

वो थोडा चिढ़कर बोली - आप मुझे क्यों छेड़ते रहते हैं, ये थानेदारनी -2 बोल-2 कर, मे सिर्फ़ आपकी पत्नी हूँ बस.

मैने उसके होठों को चूमते हुए कहा - अरे मे तो बस ऐसे ही मज़ाक में बोल देता हूँ, अगर तुम्हें अच्छा नही लगता है तो अब आगे से नही कहूँगा.. 

सॉरी..!!

वो बोली - अरे..! प्लीज़ सॉरी नही, बस बार -2 सुनना अच्छा नही लगा सो बोल दिया, प्लीज़ आप माइंड मत करना..!

मुझे भी लगा की ज़्यादा मज़ाक हर किसी को असह्नीय हो सकता है, तो आज के बाद बंद…!

ऐसी ही बातें करते-2 हम एक दूसरे की बाहों में समाए हुए सो गये.

यूपी पूर्वांचल का एक छोटा सा शहर प्रीतम नगर, जहाँ के एक बाहुबली ठाकुर साब का एक तरह से इस शहर में एक छत्र राज था, 

नाम था भानु प्रताप सिंग उर्फ भैया जी.

यहाँ की जनता आज़ादी के 45 साल के बाद भी इनको अपना राजा ही मानती थी, और जो नही मानता था, उससे इनके गुंडे मार-2 कर मनवा लेते थे.

आज़ाद हिन्दुस्तान की यहाँ पर कोई छाप अभी तक दिखाई नही पड़ती थी, वजह थी, हमेशा ही भैया जी विधायक का चुनाव जीत जाते थे, 

अब्बल तो कोई इनके सामने खड़ा ही नही होता था, और अगर ग़लती से हो भी जाए तो किसी की हिम्मत नही कि इनके खिलाफ वोट दे सके.

इतने चालू भैया जी कि चुनाव तो निर्दलीय का ही लड़ते थे, लेकिन सरकार किसी भी पार्टी की हो, उसमें इनकी भागीदारी ज़रूर रहती थी. 

8-10 एमएलए हमेशा इनकी जेब में रहते थे, तो जाहिर सी बात है कि, सरकार में इनका दबदबा भी रहता होगा.

यहाँ की शहर कोतवाली में नयी-2 भरती हुई लेडी एसपी ट्रिशा शुक्ला जो अब शादी के बाद ट्रिशा शर्मा हो चुकी थी. 

अभी एसपी साहिबा को यहाँ आए हुए 2-3 महीने ही हुए थे, आइपीएस की ट्रैनिंग के बाद यहाँ इनकी पहली पोस्टिंग थी एसपी के तौर पर.

अभी उनका इंट्रोडक्षन भी ठीक से नही हो पाया था पूरे स्टाफ के साथ, 
कोतवाली से शहर और उसके आस-पास के कई थाने लगते थे.

इस समय वो ऐसे ही एक थाने का विज़िट करने पहुँची थी, 

एसपी साहिबा के आने से कुछ ही समय पहले ही उस थाने के एक सब इंस्पेक्टरर निर्मल कुमार जो 6 महीने पूर्व ही भरती हुआ था, और उसके साथ दो कॉन्स्टेबल एक गुंडे को पकड़ कर थाने लाए थे. 

ये महोदय अपने दो मुस्टांडों के साथ बाज़ार में हफ़्ता बसूली कर रहे.

सब इंस्पेक्टरर के मना करने पर ऐंठ दिखाने लगे सो उठा लाए थाने. 

जैसे ही इनके सरपरस्तो को खबर मिली, तो चले आए थाने दनदनाते हुए.

उससे ठीक दो मिनट पहले ही एसपी साहिबा विज़िट में पहुँची थी उसी थाने में, जो इस समय स्टाफ के साथ इंट्रोडक्षन कर रही थी.

ओये..! किस मादरचोद पोलीस वाले ने मेरे आदमी को पकड़ने की जुर्रत की है ? बुलाओ उसको मेरे सामने..! 

जानता नही सूरज प्रताप सिंग के आदमी को हाथ लगाने का अंजाम क्या होता है..?

सब इंस्पेक्टरर निर्मल कुमार सामने आकर बोला- मैने पकड़ा है इसको, ये मार्केट में लोगों को धमका कर उनसे पैसे ले रहा था, एक-दो के साथ इसने मार-पीट भी की है.

आव ना देखा ताव की तडाक..! एक झन्नाटेदार चान्टा रसीद कर दिया उस सब इंस्पेक्टरर के गाल पर उसने, और बोला- 

मैने कहा था उसको हफ़्ता बसूलने के लिए, तू कॉन होता है उसे रोकने वा..लाअ..?

सत्तकक.. ! अभी सूरज अपना वाक्य पूरा भी नही कर पाया था कि एक पोलीस की रोड उसके कूल्हे पर रसीद हो गयी, 

मार इतनी पवारफ़ुल्ल थी कि सूरज महाराज खड़े नही रह पाए और बिल-बिला कर अपनी चोट वाली जगह पर हाथ रखते हुए बैठते चले गये. 

तभी उसको लेडी एसपी की गुर्राहट सुनाई दी - यहाँ सरकार का राज चलता है, तेरे बाप का नही, 

सरकार हमें क़ानून व्यवस्था ठीक रखने के पैसे देती है, तुम्हारे जैसे गुण्डों से मार खाने के लिए.

अपने दर्द पर काबू करके गुराते हुए बोला सूरज - ओ एसपी साहिबा, नयी -2 आई हो, पता नही तुम किससे पंगा ले बैठी हो, सूरज प्रताप नाम है मेरा, भैया जी का भतीजा हूँ मे.

एसपी - तो.. ! वैसे है कॉन ये भैया जी जो इतने गिरी हुए काम करता है. 

कान खोल कर सुन्ले, तू भले ही कोई भी हो, पोलीस के काम में हस्तक्षेप कतयि बर्दास्त नही होगा समझे, अपनी खैर चाहता है तो निकल ले यहाँ से वरना ये डंडा देख रहा है. 

इतने लगाउन्गी पिछवाड़े पर कि ठीक से बैठ भी नही सकेगा.

सूरज वहाँ से एसपी साहिबा को धमकाकर निकल गया, फिर एसपी ने सब इंस्पेक्टरर को शाबासी दी और उस गुंडे को किसी भी हालत में ना छोड़ने की हिदायत की.

तभी थाने का इंचार्ज यादव आगे आया और उसने उसे भैया जी के बारे में बताया, जिसे सुन कर वो कुछ देर सोच में पड़ गयी, लेकिन फिर कुछ निश्चय करके बोली- 

देखो अगर भैया जी सरकार के नुमाइंदे हैं तो उनको भी समझना पड़ेगा कि पोलीस का काम क़ानून व्यवस्था सुधारना होता है, 

अब अगर गुंडे उनके नाम की आड़ में ये सब करेंगे तो पोलीस का तो कोई काम ही नही रहेगा इलाक़े में. 

तुम लोग चिंता मत करो और अपना काम क़ानून के मुताबिक करते रहो.

इंस्पेक्टरर यादव एसपी की बात से कुछ नाखुश दिख रहा था, लेकिन इस समय वो अपने सीनियर ऑफीसर से ज़्यादा कुछ आर्ग्युमेंट नही कर सकता था सो चुप हो गया.

उधर सूरज प्रताप भनभनाता हुआ थाने से निकला और अपने चाचा भानु को फोन कर दिया..! एक-दो बार तो बेल बजती रही लेकिन फोन नही उठाया गया, 
 
इस समय भानु अपने सरपरस्त ** मिनिस्टर के पास बैठा एक 7स्टार होटेल में शराब की चुस्कियाँ ले रहा था. 

फिर वो टाय्लेट का इशारा करके वहाँ से उठा और बाहर लॉबी में आकर उसने सूरज को कॉल बॅक किया.

जब सूरज ने नमक मिर्च मसाला लगा कर उसे सारी घटना बताई तो उसका घमंड फट पड़ा और उसने हुकुम दनदना दिया कि उठा ले साली को लेकिन मेरे आने तक कुछ करना मत उसके साथ.

उधर एसपी आवास पर इस समय ट्रिशा के मम्मी-पापा और उसकी छोटी बहन निशा भी आए हुए थे, 

निशा इस समय लखनऊ से एमसीए का कोर्स कर रही थी, और अपने पेरेंट्स के साथ बड़ी बहन से मिलने के लिए आई हुई थी. 

उनका छोटा बेटा सोनू, इस समय अपने बड़े भाई ऋषभ शुक्ला के पास रहकर इंजीनियरिंग कर रहा था, उसका ये फाइनल एअर था.

एसपी ट्रिशा अपनी ड्यूटी ऑफ करके घर पहुँचती है, आज की घटना और फिर भानु के रतवे का डर उसकी नयी-2 नौकरी पर हावी हो गया था, तो उसका असर उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था. 

अनुभवी पिता आरके शुक्ला ने बेटी के चेहरे के तनाव को भाँप लिया.

सब लोगों ने मिल बैठ कर खाना खाया और थोड़ी बहुत देर इधर-उधर की बातें की और सब अपने-2 रूम में सोने चले गये. 

कुछ देर के बाद आरके शुक्ला जी अपनी पत्नी को बोलकर बेटी के रूम में गये, जो इस समय हाथों में कोई फाइल लिए पलंग के बॅक से टेक लिए बैठी थी.

वो उसके पास जाकर बैठ गये और उसके सर पर हाथ फेर कर बोले- ट्रिशा बेटी लगता है आज तुम कुछ टेन्षन मे हो..!

ट्रिशा बोली - नही पापा ऐसी कोई बात नही है, आप सो जाओ मे ठीक हूँ.

पापा - देख बेटी में तेरा पिता हूँ.. भली भाँति समझ सकता हूँ अपने बच्चों की परेशानी को, बता बेटा क्या बात है, हो सकता है बात चीत से उसका कोई हल निकल आए.

फिर ट्रिशा ने आज के पूरे घटना क्रम को उन्हें बता दिया, 

पहले तो वो सुन कर थोड़ा चिंतित हुए, फिर कुछ सोच कर बोले- बेटी तुम कल ही भैया जी से मीटिंग फिक्स करके उनको समझाओ कि पोलीस के साथ ऐसा व्यवहार उनकी छवि को ही धूमिल कर रहा है, हो सकता है कि वो समझ जाए.

इसी तरह की मंत्रणा बाप-बेटी के बीच कुछ देर होती रही, 

अभी वो वहाँ से अपने रूम में जाने के लिए उठे ही थे कि, मेन गेट को तोड़ कर 15-20 गुंडे जैसे लोग धडधडा कर घर के अंदर घुस आए.

आते ही उन गुण्डों ने सबके साथ मार पीट शुरू करदी, माँ-बाप को घर में ही बंद करके, वो लोग उनकी दोनो बेटियों को उठा ले गये….!
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मे सुबह 4 बजे अपने नित्य कार्यों से निवृत होकर ध्यान क्रिया के लिए बैठा था, 

मेरे पैर का प्लास्टर कट चुका था, बस थोड़ी मालिश करनी होती थी, वो भी अब ज़रूरत नही लग रही थी.

बार-2 कोशिश करने के बाद भी मेरा मन विचलित सा हो रहा था, ध्यान लगाने की काफ़ी कोशिश के बाद भी नही लग पा रहा था, मन मैं आजीव सी वैचैनि होने लगती. 

आप लोगों ने अनुभव किया होगा, जब आपके दिल के कोई ज़यादा करीब होता है, और उसके साथ कोई प्रिय-अप्रिय घटना घटित हो, तो उसका प्रभाव जाने-अंजाने आपके मन मस्तिस्क पर अवश्य होता है.

साधारणतया, हम उस पर ज़्यादा मनन नही करते, लेकिन जब उसके बारे में ग्यात होता है, तब ज़रूर सोचते हैं, कि इसलिए उस समय हमें ऐसा भान हुआ था….

लेकिन अषधारण मनुश्य, उसकी गहराई को भाँप लेते हैं...

कुछ देर की कोशिश के बाद में ध्यान मुद्रा में चला गया, ध्यान की गहराई में पहुँचते ही, मेरी अन्तरआत्मा में हलचल शुरू हो गयी, 

जिसे एक साधक अपने साक्षी भाव से देख-सुन सकता है. 

मैने अपने साक्षी भाव को एकाग्र किया तो देखा, कि मेरी अंतरआत्मा भौतिक शरीर को छोड़कर वायुमंडल में विलुप्त होती जा रही है, 

मेरा साक्षी भाव भी उसके साथ ही साथ है, 

मेरे अंतरात्मा को क्षण मात्र में ही पता चल गया, कि ट्रिशा किसी मुसीबत में है, और वो उसकी खोज में उसके आवास पर पहुँच जाती है, लेकिन वो उसे वहाँ कहीं नज़र नही आती.

वो फिर से उसकी सूंघ लेते हुए, उसकी तलाश में भटकती हुई उस जगह पहुँचती है, जहाँ एक बड़े से हवेली नुमा मकान में एक अंधेरे कमरे में वो अपनी छोटी बेहन के साथ बँधी पड़ी थी.

मेरी अंतरात्मा विचलित हो उठती है, बिना भौतिक शरीर के वो कुछ भी नही कर सकती थी, सो अविलंब वो अपने भौतिक शरीर की तरफ लौटी.

जैसे ही वो अपने शरीर में वापस प्रवेश करती है, मेरा शरीर मारे उत्तेजना के काँपने लगता है और एक अनचाहे भय से मेरी आँखें खुल जाती हैं. 

मेरा शरीर मारे उत्तेजना के इस समय थर-2 काँप रहा था, आवेश और उत्तेजना मेरे उपर बुरी तरह हाबी थी.

जैसे ही मेरे साक्षी भाव ने मेरी भौतिक चेतना को परिस्थिति से अवगत कराया, क्रोध के मारे मेरे मुँह से हुंकार सी निकल पड़ी और मे अविलंब अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ,

झट पट मैने अपना ज़रूरत का सामान पॅक किया और लखनऊ जाने वाली पहली ही फ्लाइट पकड़ ली जो एक चेंज ओवर थी विया देल्ही.
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भौ प्रताप पूरी रात *** मिनिस्टर के साथ अयाशी करने के बाद सुबह-2 अपनी गाड़ी से अपने घर को निकल पड़ा, 

3-4 घंटे लगातार चलने के बाद वो जब घर पहुँचा तो सूरज ने उसे सारी बातें बता दी. 

दो कमसिन जवानियों को अपने महल में होने के एहसास से ही उसके अंदर फिर से वासना के कीड़े कुलबुलाने लगे.

उसने चाइ नाश्ता किया और फिर अपने खास आदमियों को लेकर उस तरफ चल दिया जहाँ वो दोनो बहनें बँधी पड़ी थी, 

सूरज को उसने बाहर ही रोक दिया जहाँ और लोग भी थे जो उस हॉल नुमा कमरे के बाहर खड़े पहरा दे रहे थे.

भानु की नज़र जैसे ही ट्रिशा और निशा पर पड़ी, उसकी आँखें चौड़ी हो गयी और उसके मुँह से लार टपकने लगी.

उसने अपने आदमियों को बोलकर उन दोनो को खड़ा करवाया और ट्रिशा को एक खंबे से बँधवा दिया, 

निशा को वैसे ही खड़ा कर रखा था, दोनो बहनों के मुँह पर टेप चिपका रखा था.

भानु ट्रिशा के सामने आकर खड़ा हो गया, और उसकी आँखों में झाँकते हुए उसने उसके मुँह से टेप हटा दिया और बोला- 

कहिए एसपी साहिबा, आपको कोई बोला नही का.., कि हियाँ हमार राज चलत है, पोलीस का नाही.

ट्रिशा बस उसको खा जाने वाली नज़रों से देखती रही…!

फिर वो निशा के पास गया और उसके गाल पर हाथ फेरते हुए बोला- वाह ! क्या गदर माल है ये छुकरिया, बहुत मज़ा देगी ये तो..! 

निशा बस कश मसा कर रह गयी, उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे.

लेकिन ट्रिशा से नही रहा गया और वो गुर्रा कर बोली- भानु प्रताप अपने गंदे हाथों से मेरी बहन को मत छूना, वरना ये तेरे लिए ठीक नही होगा.

भानु - वाह मेरी चिरैया ! इस हालत में भी फडफडा रही है..! अब तू देखती जा, तेरी आँखों के सामने मे तेरी इस मस्त जवान बहन की इज़्ज़त की कैसे धज्जियाँ उड़ाता हूँ ?

ट्रिशा भभक्ते हुए स्वर में बोली - उसको हाथ भी मत लगाना हरामज़ादे, वरना में तेरा खून पी जाउन्गि. 

भानु - अच्छा ! तू मेरा खून पी जाएगी, बताना ज़रा कैसे पिएगी, ले मैने हाथ तो लगा दिया इसको, और इतना बोलके उसने निशा का नाइट गाउन उसके सीने के उपर से फाड़ दिया, 

अब उसके 34डी साइज़ के गोरे-2 बूब्स उसकी आँखों के सामने नुमाया हो गये जिन्हें देख कर उस शैतान की हवस उसकी आँखों में और बढ़ गयी..

उसके बदन की झलक देख कर ही उसकी लार टपकने लगी, और उसने उसके गालों को सहलाते हुए उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ने लगे…

इससे पहले कि वो उसके नग्न वक्षों तक पहुँचते, वातावरण गोलियों की आवाज़ से गड़गड़ा उठा,

धाय…धाय.. धाय…लगातार 6 गोलियाँ चली और उसके आस-पास खड़े उसके 6 गुंडे ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे.

भानु भोचक्का सा खड़ा, ज़मीन पर पड़े अपने तड़पते हुए गुण्डों को देख रहा था, 

अभी वो इस असमजस की स्थिति से उबर भी नही पाया था, कि उसके आदमियों को किसने उड़ा दिया ? 

कि एक हथोडे जैसा घूँसा उसकी कनपटी पर पड़ा और वो चीख मारता हुआ 10-12 फुट दूर जाकर गिरा.

ट्रिशा मन ही मन बुदबुदाई.. आ गया हमारा रखवाला..! 
 
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