hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
एक दिन जब वो अपने बड़े चक (ज़मीन का एक बड़ा भाग) से दूसरी ज़मीन की तरफ जा रहे थे, और प्रेमा काकी अपने खेत घर के दरवाजे पर खड़ी थी, रामचंद काका कहीं खेतों में काम कर रहे थे…
अपने निचले होंठ के किनारे को दाँतों में दवाके बड़े मादक अंदाज में प्रेमा काकी ने रामसिंघ को पुकारा…… लल्ला जी ज़रा सुनो तो…
रामसिंघ ठितके, और उनकी ओर मुड़ते हुए पुछा जी काकी…
थोड़ा बहुत हमारे पास भी बैठ लिया करो… तुम तो हमारी ओर देखते तक नही, ऐसे बुरे लगते हैं तुम्हें…??
अरे नही काकी.. आप तो बहुत अच्छी लगती हो, आपको कॉन बुरा कह सकता है भला… थोड़ा सकुचाते हुए जबाब दिया रामसिंघ ने…
तो फिर हमारे साथ बोलते-बतियाते क्यों नही…?
व..वऊू… थोड़ा काम ज़्यादा रहता है, और वैसे भी आप हमारी चाची लगती हैं, तो आपसे क्या बात करें..? यही बस… और क्या, …थोड़ा असहज होते हुए जबाब दिया उन्होने…
सुना है आप हर किसी की मदद करते है, उनके काम आते हैं, तो हमारे दुख-दर्द की भी खैर खबर कर लिया करो,… थोड़ा मौसी भरे स्वर में बोली प्रेमा…
आपकी क्या परेशानी है बताइए मुझे, बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करने की कोशिश करूँगा….
अब तुम्हें क्या बताएँ लल्लाजी, तुम्हारे काका को तो हमारी कोई फिकर ही नही है, अभी एक साल भी नही हुआ हमें इस घर आए हुए, और वो हमसे अभी से दूर-दूर रहने लगे हैं…, अब नही बनता था तो शादी क्यों की..? बात को लपेटते हुए कहा प्रेमा ने...
अब कुछ-2 रामसिंघ की समझ में आने लगा था कि काकी कहना क्या चाहती है, फिर्भी उन्होने अंजान बनते हुए कहा….
तो काकी अब इसमें में क्या कर सकता हूँ भला…? काका का काम तो काका ही कर सकते हैं ना…
तुम चाहो तो अपने काका से भी अच्छा काम कर सकते हो हमारे लिए…., और ये कहकर प्रेमा रामसिंघ की पीठ से सॅट गयी, और अपनी दोनो लंबी-लंबी बाहें उनके सीने पर लपेट कर अमरबेल की तरह लिपट गयी…
प्रेमा काकी से इस तरह की हरकत की उम्मीद नही थी रामसिंघ को…, उन्होने काकी के हाथ पकड़े और उन्हें अपने से अलग करते हुए कहा…
ये ठीक नही है काकी, और वहाँ से चले गये…..
उसी शाम जब वो गाओं पहुँचे, तो वहाँ चौपाल पर बैठे लोग आपस में बातें कर रहे थे, रामसिंघ भी चर्चा में शामिल हो गये…
जैसे ही उन्हें लोगों के बीच हो रही चर्चा का पता लगा, उनका मुँह खुला का खुला रह गया, और सकते में पड़ गये….
चौपाल की चर्चा का विषय था “रामचंद की प्रेमा भाग गई” जैसे ही ये बात रामसिंघ को पता लगी, फ़ौरन उनके दिमाग़ में सुबह वाली अपनी और प्रेमा काकी की मुलाकात घूम गई, कैसे वो उससे लिपट गयी और क्यों?…फिर भी उन्होने और ज़्यादा जानकारी के लिए वहाँ बैठे लोगों से पुछा…
राम सिंग- आख़िर हुआ क्या था..? असल मे ये नौबत क्यों और कैसे बनी..??
आदमी1- ज़्यादा तो पता नही चला.. लेकिन कुछ तो हुआ है, जो वो रामचंद काका से झगड़ा करके अपने कपड़े-लत्ते समेट कर चली गयी..
आदमी2- और वो काका को धमका भी गयी है, कि अगर तुम या कोई और तुम्हारे घर से मुझे लेने आया और ज़बरदस्ती की, तो में उसका गला काट दूँगी या खुद मर जाउन्गि…
काका और उनके घरवाले डरे हुए हैं… किसी की हिम्मत भी नही हुई उसे रोकने की, और वो अकेली ही चली गयी..
अपने निचले होंठ के किनारे को दाँतों में दवाके बड़े मादक अंदाज में प्रेमा काकी ने रामसिंघ को पुकारा…… लल्ला जी ज़रा सुनो तो…
रामसिंघ ठितके, और उनकी ओर मुड़ते हुए पुछा जी काकी…
थोड़ा बहुत हमारे पास भी बैठ लिया करो… तुम तो हमारी ओर देखते तक नही, ऐसे बुरे लगते हैं तुम्हें…??
अरे नही काकी.. आप तो बहुत अच्छी लगती हो, आपको कॉन बुरा कह सकता है भला… थोड़ा सकुचाते हुए जबाब दिया रामसिंघ ने…
तो फिर हमारे साथ बोलते-बतियाते क्यों नही…?
व..वऊू… थोड़ा काम ज़्यादा रहता है, और वैसे भी आप हमारी चाची लगती हैं, तो आपसे क्या बात करें..? यही बस… और क्या, …थोड़ा असहज होते हुए जबाब दिया उन्होने…
सुना है आप हर किसी की मदद करते है, उनके काम आते हैं, तो हमारे दुख-दर्द की भी खैर खबर कर लिया करो,… थोड़ा मौसी भरे स्वर में बोली प्रेमा…
आपकी क्या परेशानी है बताइए मुझे, बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करने की कोशिश करूँगा….
अब तुम्हें क्या बताएँ लल्लाजी, तुम्हारे काका को तो हमारी कोई फिकर ही नही है, अभी एक साल भी नही हुआ हमें इस घर आए हुए, और वो हमसे अभी से दूर-दूर रहने लगे हैं…, अब नही बनता था तो शादी क्यों की..? बात को लपेटते हुए कहा प्रेमा ने...
अब कुछ-2 रामसिंघ की समझ में आने लगा था कि काकी कहना क्या चाहती है, फिर्भी उन्होने अंजान बनते हुए कहा….
तो काकी अब इसमें में क्या कर सकता हूँ भला…? काका का काम तो काका ही कर सकते हैं ना…
तुम चाहो तो अपने काका से भी अच्छा काम कर सकते हो हमारे लिए…., और ये कहकर प्रेमा रामसिंघ की पीठ से सॅट गयी, और अपनी दोनो लंबी-लंबी बाहें उनके सीने पर लपेट कर अमरबेल की तरह लिपट गयी…
प्रेमा काकी से इस तरह की हरकत की उम्मीद नही थी रामसिंघ को…, उन्होने काकी के हाथ पकड़े और उन्हें अपने से अलग करते हुए कहा…
ये ठीक नही है काकी, और वहाँ से चले गये…..
उसी शाम जब वो गाओं पहुँचे, तो वहाँ चौपाल पर बैठे लोग आपस में बातें कर रहे थे, रामसिंघ भी चर्चा में शामिल हो गये…
जैसे ही उन्हें लोगों के बीच हो रही चर्चा का पता लगा, उनका मुँह खुला का खुला रह गया, और सकते में पड़ गये….
चौपाल की चर्चा का विषय था “रामचंद की प्रेमा भाग गई” जैसे ही ये बात रामसिंघ को पता लगी, फ़ौरन उनके दिमाग़ में सुबह वाली अपनी और प्रेमा काकी की मुलाकात घूम गई, कैसे वो उससे लिपट गयी और क्यों?…फिर भी उन्होने और ज़्यादा जानकारी के लिए वहाँ बैठे लोगों से पुछा…
राम सिंग- आख़िर हुआ क्या था..? असल मे ये नौबत क्यों और कैसे बनी..??
आदमी1- ज़्यादा तो पता नही चला.. लेकिन कुछ तो हुआ है, जो वो रामचंद काका से झगड़ा करके अपने कपड़े-लत्ते समेट कर चली गयी..
आदमी2- और वो काका को धमका भी गयी है, कि अगर तुम या कोई और तुम्हारे घर से मुझे लेने आया और ज़बरदस्ती की, तो में उसका गला काट दूँगी या खुद मर जाउन्गि…
काका और उनके घरवाले डरे हुए हैं… किसी की हिम्मत भी नही हुई उसे रोकने की, और वो अकेली ही चली गयी..