Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 4 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

सोचा था रिंकी चली गयी होगी अपनी कजिन सिस्टर के साथ, लेकिन जैसे ही मे कॉलेज के मेन गेट के बाहर रोड पे आया, रिंकी मुझे बाहर खड़ी मिली.

मे- क्यों यहाँ क्यों खड़ी हो, तुम्हारी सहेलियाँ कहाँ हैं..??

शायद वो लोग चली गयी, हमें बहुत देर हो गयी अंदर..वो बोली.

मे- कोई नही ! अच्छा रिंकी सच बताना, तुम खुश तो हो..ना..?

रिंकी- सच कहूँ, तो तुम्हारे साथ बिताया मेरा हर पल अनमोल था. उन पलों की यादों के सहारे अपना पूरा जीवन गुज़ार लूँगी. तुम अपना ख़याल रखना, और खूब मन लगा कर पढ़ना, में चाहती हूँ तुम अपने जीवन मे एक कामयाब इंसान बनो.

और हां मुझे अपना अड्रेस दे जाना, हर हफ्ते मे तुम्हें लेटर लिखूँगी, लेकिन तुम अपनी तरफ से उसका जबाब नही देना, मेरे सभी लेटर संभाल के रखोगे ठीक है.. मे चेक करूँगी जब मिलेंगे तब, समझ गये

वो मुझे लेसन देती रही, और में उसकी आँखों मे देखते हुए उसकी मन-मोहिनी बातों को बस सुनता रहा..

थोड़ी देर बाद हम नाम आँखों से एक-दूसरे से विदा हुए और चल दिए अपने-अपने घरों की ओर.

घर आकर मैने सबको अपना रिज़ल्ट दिखाया, सभी बड़े खुश थे मेरे रिज़ल्ट से, पिता जी ने पुछा कि अब क्या करना चाहते हो? 

मैने कहा, में इंजीनियरिंग करना चाहता हूँ, फॉर्म भर देता हूँ, डिग्री और डिप्लोमा दोनो के लिए, किसी एक मे तो एडमिशन मिल ही जाएगा. पिता जी ने भी हामी भर दी, और बोले.

तुम जाओ और जो चाहते हो वो करो, में यहा सब संभाल लूँगा, नौकरों के सहारे.

मैने दोनो जगह यूपी टेक्निकल बोर्ड से अफिलीयेटेड इन्स्टिटूषन्स मे फॉर्म भर दिए, और तकरीबन 20 दिनो में ही मेरा इंजीनियरिंग डिग्री के लिए एडमिशन कॉल आ गया, मुझे कॉलेज घर से करीब 150 किमी दूर मिला.

मैने पिता जी को दिखाया, वो बड़े खुश हुए, और अपनी नम आँखों से मुझे गले से लगा लिया, उनकी अब उम्र भी हो चुकी थी, बहुत मेहनत की थी उन्होने अपने जीवन में सो जल्दी शरीर कमजोर पड़ने लगा था, फिर भी उन्होने मुझे इजाज़त दे दी थी.

मुझे गले लगाकर वो भर्राई आवाज़ में बोले… ईश्वर ने मेरे जीवन को सफल कर दिया, मेरे चारों बेटे पढ़ लिख गये, दो तो अपने पैरों पे खड़े हो गये, 

प्रभु ने चाहा तो तुम दोनो भी अपना कुछ अच्छा कर ही लोगे, अब मेरी चिंताएँ दूर हो जाएँगे. और खूब मॅन लगाके पढ़ना मेरे बच्चे जिससे कोई भाई तुझे अपने से कम ना समझे.

फिर उन्होने चाचा से बात की, 

पिता जी – राम सिंग, अब समय आ गया है, की हम लोगों को अपना काम धंधा भी अलग-अलग कर लेना चाहिए..

चाचा- ऐसा क्या हुआ भाई..??

पिता जी – अब अरुण भी बाहर पढ़ने जा रहा है, में अकेला कहाँ तक तुम लोगों के बराबर कर पाउन्गा, नौकरों का तो तुम जानते ही हो, कल को तुम्हारे बेटे कोई बात खड़ी करें उससे पहले हमें शांति पूर्वक अलग-अलग हो जाना चाहिए, और वैसे भी हम लोगों की मिसाल कायम हो गयी है पूरे इलाक़े में हमारे प्रेम भाव की तो मे चाहता हूँ वो ऐसे ही बरकरार रहे.

बात चाचा को भी सही लगी, और दो दिनो में पटवारी को बुला के खेती की माप करके, दो बराबर हिस्से कर लिए और अलग-अलग हो गये.

आने से पहले मे एक बार और रिंकी से मिलना चाहता था, लेकिन समय ही नही मिला लेकिन किसी तरह अपने कॉलेज का अड्रेस ज़रूर उस तक पहुचवा दिया.

मैने अपने ज़रूरत का समान पॅक किया और बड़ों का आशीर्वाद लेके ट्रेन पकड़ की अपने गन्तव्य स्थान के लिए.
 
सफ़र कोई 4 से 5 घंटे का था, शाम 5-6 बजे तक पहुँच जाना था, लोकल ट्रेन थी, तो ज़्यादा भीड़ भाड़ भी नही थी,

उपर की एक बर्त पकड़ के समान अपनी सीट पर ही जमा लिया, और लेट गया बर्त पर, अपना सर समान के उपर रख लिया था.

लेटते ही विचारों की दुनिया मे खो गया, कुछ आने वाले फ्यूचर के बारे मे, नया शहर, नये लोग, नये दोस्त, कॉलेज कैसा होगा, टीचर्स कैसे होंगे… वग़ैरह-2..

फिर कुछ अतीत के पन्ने उलटना शुरू हो गये, बचपन किन परिस्थियों में गुजरा था, फिर धीरे-2 सब कुछ सामान्य होता चला गया समय के साथ-2.

कॉलेज के वो छात्र संघ के एलेक्षन से पहले की स्ट्राइक, पोलीस और स्टूडेंट्स की भिड़ंत, 

कैसे पोलीस की आँखों में धूल झोंक कर मैने और एक और लड़के ने मिलकर कॉलेज के मैन गेट पर ताला मार दिया था, सारे टीचर्स अंदर ही बंद कर दिए दो दिनों तक,

उसके बाद कॉलेज मॅनेज्मेंट से अपनी शर्तें मनवाई, और एलेक्षन हुआ.

वो एलेक्षन का धमाल, बड़ी ही रोमांचकारी यादें थी जीवन की.

फिर वो शिक्षा मंत्री का इनस्पेक्षन विज़िट, उसके स्वागत समारोह, रिहर्सल मे रिंकी का मिलना, उसके साथ बिताए जीवन के सुहाने पल, यादों को गुदगुदाने लगे… शरीर एक अद्भुत रोमांच से भर गया.

अंत में उसका बिछड़ना, उसका उदास चेहरा यादों में आते ही अनायास आँखें नम हो गयीं… 

कितनी ही देर आपनी यादों के भवर्जाल में खोया रहा, ट्रेन अपना सफ़र तय करती रही, स्टेशन आए और चले गये, पता ही नही चला, और करीब शाम 5 बजे मेरे गन्तब्य स्टेशन पर ट्रेन रुकी.

नीचे बैठे पेसेन्जर्स से पूछा तो पता चला मेरा स्टेशन आ चुका था, जल्दी-2 समान उठाया और उतर गया प्लॅटफार्म के उपर.

स्टेशन से बाहर आया, कॉलेज का पता किया, तो वो स्टेशन से कोई 6-8 किमी दूर था शहर के अंत में.

सेपरेट रिक्शे से बात की तो वो ज्यदा पैसे माँग रहा था, 

चलने से पहले पिता जी ने समझाया था, कि बेटा वैसे तो में तेरी ज़रूरत पूरी करने की पूरी कोशिश करूँगा, लेकिन चूँकि आमदनी सिर्फ़ ये खेती ही है, और श्याम भी पढ़ रहा है, दोनो बड़े कोई मदद नही करते, सो जितना हो सके पैसों का सही से स्तेमाल करना, आगे तुम खुद समझदार हो.

और बिना ज़रूरत के घर के बार-2 चक्कर लगाने की ज़रूरत नही है, मुझे चिट्ठी लिख दिया करना, मे पैसे मनीओरडर करवा दिया करूँगा प्रेम के हाथों. 

मैने पता किया तो उस तरफ शेरिंग घोड़ा गाड़ी (तांगा) जाती थी, तो पुच्छ के अपने समान लेके टाँगे में बैठ गया.

टप-टॅप-टॅप-टॅप, घोड़े की टापो की आवाज़ के साथ तांगा मुझे ले चला मंज़िल की ओर. 
 
तांगे वाले से पता किया की कॉलेज के पास कोई धर्मशाला वग़ैरह है क्या, आज की रात या और रातें तो गुजारनी थी, जबतक हॉस्टिल की व्यवस्था नही हो जाती.

उसने एक धर्मशाला बताई जो कॉलेज से कोई 1किमी दूर थी, मैने उसे वहाँ तक छोड़ने के लिए बोल दिया.

धर्मशाला में एक छोटा सा कमरा लेके रात गुज़ारी, अपन ठहरे देहाती आदमी, सो ज़्यादा सुख-सुविधा की दरकार ही नही थी.

दूसरी सुवह अपने डॉक्युमेंट्स लेके कॉलेज पहुँचे, फीस भरके एडमिशन कराया, फिर हॉस्टिल की पुछ-ताछ की, बार्डन से मिलके फीस जमा की वो भी काम हो गया, लेकिन इन सब में दिन पूरा चला गया, खाने तक का समय नही मिला.

तसल्ली थी कि काम हो गया, हॉस्टिल में अपने अलॉट कमरे को देखा, कमरा काफ़ी बड़ा था, इसमें 4 लोगों की शेरिंग थी, चारों के लिए अलग-अलग आल्मिरा, अलग-अलग लोहे की पट्टियों वाले पलंग, हरेक को 4-4 लोहे की 3 फीट लंबी रोड्स मच्छरदानी के लिए, क्योकि पास में उजड़ जॅंगल हॉस्टिल के पीछे ही था, तो मच्छर बहुत थे.

अभी तक चारों मे से में पहला स्टूडेंट था उस कमरे मे आनेवाला.

देख-दाख के अपना धर्मशाला से समान उठाया और लगा दिया एक आल्मिरा में.

हॉस्टिल में ही मेस की व्यवस्था थी, महीने का जेन्यूवन चार्जस थे, शुरू कर दिया अपना मीटर आज से ही.

अब थोड़ा कॉलेज कॅंपस के जियोग्रफी के बारे में भी यहाँ बताना ज़रूरी हो जाता है.

कॉलेज कॅंपस के मेन गेट के सामने से ही नॅशनल हाइवे गुज़रता है, मैं कॅंपस का बड़ा सा गेट, मैन गेट से एक 12फीट चौड़ा कच्चा रास्ता लेकिन वेल मेंटेंड, कोई 50 मीटर तक मेन बिल्डिंग के गेट तक, रास्ते के दोनो तरफ छोटे-2 गर्दन.

मैं बिल्डिंग में घुसते ही रिसेप्षन, फिर ऑफीस एरिया, प्रिन्सिपल रूम, डिपार्टमेंट रूम्स, फिर क्लासस, और लास्ट में वर्कशॉप्स थे.

मैं कॅंपस से ईस्ट की ओर . पर ही कोई 500 मीटर की दूरी पर दूसरा गेट, जो एक बहुत बड़े ग्राउंड में खुलता है, जहाँ सब तरह के गेम्स फेसिलिटीस हैं, उसके बाद हॉस्टिल एरिया, एअर वाइज़ डिवाइड किए हुए ब्लॉक्स में..

फर्स्ट एअर स्टूडेंट हॉस्टिल ब्लॉक सबसे लास्ट मे है, उसके बाद जंगल जैसा एरिया शुरू हो जाता है.

चूँकि अभी एडमिशन शुरू ही हुए थे, तो ब्लॉक में ज़्यादा स्टूडेंट्स नही आए थे अबतक. 

नयी जगह, नयी रात, सुनसान बिल्डिंग, रूम में अकेला जीव, बड़ी मुश्किल लगी वो रात.

रूम मे जॅंगल की ओर एक विंडो थी, हालाँकि उसमें आइरन रोड्स की जाली थी, फिर भी भयानक रात, तरह-2 के जानवरों की आवाज़ें, झींगुरों की झिन-झीनाहट, जब तक नीड नही आ गई, गान्ड फटती ही रही.

दूसरे दिन भी कोई खास तब्दीली नही हुई, क्लासेस तो अभी शुरू ही नही हुई थी, हां एक और बंदा रूम में आ गया था, 

इंट्रो हुआ, नाम धनंजय चौहान, अपने ही इलाक़े का था, पर्सनॅलिटी लगभग मेरी जैसी ही थी, मीडियम कलर, हाइट कोई 5’10” जो मेरे बराबर थी. कसरती बदन. कुल मिला कर अच्छा लगा वो मुझे.

शुक्र था कि चलो कोई तो साथी मिला पहला इस नये माहौल में.

एक हफ्ते में एडमिशन लगभग पूरे हो गये, दो और रूम मेट आ गये, एक था ऋषभ शुक्ला गोरा चिटा थोड़ा नाटा यही कोई 5’5” की हाइट वदन थोडा भारी सा, इलाहाबाद साइड का, दूसरा था जगेश अत्रि. ये भी पश्किमी यूपी से था हिगत 5’8” शरीर से थोड़ा दुबला लेकिन कमजोर बिल्कुल नही.

हम चारों मे धनंजय ऊपर मीडियम घर का था, वाकई हम तीनों एवरेज मीडियम क्लास से थे.

कॉलेज शुरू हो गया था, नये स्टूडेंट्स की रगिन्ग होती थी, कभी कॅंपस मे, तो कभी हॉस्टिल मे ही आ जाते थे सीनियर्स, किसी से गाना गवाना, किसी से डॅन्स करना, किसी के कपड़े निकलवाना..वग़ैरह …….

सोचा कोई नही करने दो थोड़े दिन इनको भी मनमानी थोड़े दिन ही मिलती है करने को, और फिर कभी इन्होने भी कराई होगी अपनी… रगिन्ग..

ऐसे ही कुछ दिन और निकल गये, हॉस्टिल से कॅंपस, क्लासस, वर्कशॉप, रेजिंग, मस्ती, हँसी-मज़ाक. समय अच्छा निकल रहा था.

हम चारों एक ही डिपार्टमेंट (मेच) मे थे, तो हर समय साथ रहना, पक्के वाले दोस्त बोले तो पेंटिया यार बन चुके थे.

कहते हैं ना कि समय कभी एक समान गति नही चलता, आने वाले समय में कुछ तो उथल-पुथल होनी थी जीवन में.

लगभग दो महीने बाद एलेक्षन प्रक्रिया शुरू हो गयी, पहले सीआर (क्लास रेप्रेज़ेंटेटिव) चुने जाने थे, फिर उनके बहुमत से प्रेसीडेंट, सेक, जेटी. सेक आदि के लिए मेंबर मनोनीत करने थे जो कि केवल 3र्ड & 4थ एअर से ही हो सकते थे.

हमारे सेक्षन में एक बॅक वाला लड़का था मनिराम गुटका सा भारी सा, 

सेकेंड एअर (साइ) स्टूडेंट्स जो उसके पुराने साथी थे उनके थ्रू उसने दबाब डलवाने की कोशिश की अपने को निर्विरोध सीआर चुनने के लिए, 

सेकेंड एअर वालों ने हम सभी (FY) के स्टूडेंट से बोला भी, 

हमने आपस में बात-चीत की, ज़्यादा तर लड़कों ने डिसाइड किया कि नही, हम अपना सीआर एलेक्षन से चुनेंगे. 

हमारे गुट की तरफ से हमने धनंजय को आगे किया.

दो दिन में सीआर चुने जाने थे, तो सेकेंड एअर के कुछ स्टूडेंट्स ने हम सभी फर्स्ट एअर स्टूडेंट्स को ग्राउंड मे बुलाया, खुद एक पेड़ की छाया मे बैठ गये, और हमें लाइन लगाके धूप मे बिठा दिया, मेरी तो वहीं से सुलग गयी.

वो नंबर बाइ नंबर सभी को खड़ा करते और पूछते कि तुम्हें मनिराम के सीआर बनाने मे कोई एतराज तो नही है, शुरू के कुछ लड़कों ने डर की वजह सर हिलाकर अपनी रज़ामंदी देदि.

जिधर से पुछना शुरू किया था, उस तरफ से पहले धनंजय, फिर में, ऋषभ दॅन जगेश बैठे थे.
 
धनंजय का नंबर आया, वो खड़ा हुआ, वैसे डर से उसकी टाँगें थोड़ी काँप रही थी, मैने उसकी टाँग दवा कर उसको प्रोत्साहित किया.

सेकेंड एअर स्टूडेंट- हां भाई तुम्हें कोई एतराज तो नही..

धनंजय- यस सर, मुझे एतराज है उसने थोड़ा हिचकते हुए कहा..

स एअर - क्या एतराज है…? और क्यों है..? 

धनंजय- सर हम चाहते हैं, स्टूडेंट अपने मन माफिक अपना सीआर चुने, जिसका बहुमत होगा वो सीआर बनेगा, हो सकता है मनी भाई ही बन जाएँ.

सेकेंड एअर टीम से श्रीवास्त्व करके काला गेंडा सा लड़का, वो अपनी जगह से उठा और अपनी शर्ट की बाजू उपर चढ़ाता हुआ धनंजय की तरफ बढ़ा,

धनंजय की डर के मारे टाँगें फिर से काँपने लगी..

श्रीवास्त्व पास आके – क्यों बे तेरी समझ में एक बार मे नही आया, जब हम चाहते हैं कि मनिराम सीआर हो तो होगा, तुझे क्यों एतराज हुआ. मादरचोद, भोसड़ी के लीडर बनाना चाहता है…

इतना गाली-गलोच काफ़ी नही था उसके लिए, उसने धनंजय का कॉलर पकड़ लिया और अपना हाथ उठाया उसे मारने के लिए….

जैसे ही श्रीवास्तवा का हाथ उठा, अभी वो हवा में ही था, कि मे लपक के उठा और उसका हाथ हवा में ही पकड़ा, मरोड़ के उसीकि गान्ड से चिपका दिया, जिससे वो घूम गया और जिधर से उठके आया था उधर को ही उसका मुँह हो गया.

जो लगाई कस्के मैने उसकी गान्ड पे लात, वो जहाँ से उठके आया था, मुँह के बल वहीं जाके गिरा, फिर मे दहाडा सभी फर्स्टएअर वाले स्टूडेंट की तरफ.

क्या चाहते हो तुम लोग, कि हम इनकी मनमानी सहें, लानत है तुम सब पर. अरे हम यहाँ पढ़ने आए हैं, अपनी इज़्ज़त गवाने नही, गिनती मे हम इनसे ज़्यादा हैं, मारो भोसड़ी वालों को जो अपनी सीनियर गिरी भूल जाएँ मदर्चोद.

मेरी बातों का इन्स्टेंट असर हुआ, सभी फर्स्ट एअर स्टूडेंट एक साथ खड़े हो गये, उधर जैसे ही श्रीवास्त्व पर अटॅक हुआ, जो उनका दबंग लीडर था धूल चाट रहा था ज़मीन पर पड़ा, और उपर से हम सभी एक साथ खड़े हो गये.

सेकेंड एअर वालों की गान्ड फट गयी, और इससे पहले कि हम उन पे अटॅक करें , वो उसे उठा कर सर पे पैर रख के भाग लिए.

मे भी उनके पीछे भागा, मेरे पीछे धनंजय और वाकी सब दौड़ लिए हमारे पीछे-पीछे.

नज़ारा ये था, कि सेकेंड एअर वाले आगे-2 हम सब थोड़ी दूरी पर उनके पीछे-2, सारे कॅंपस ग्राउंड मे हड़कंप जैसा मच गया. 

भागते भागते सेकेंड एअर स्टूडेंट अपनी क्लास में एंटर हुए, सोने पे सुहागा ये था कि उनका लेक्चयर चालू था, टीचर की तो कुछ समझ ही नही आया, वो भौचक्का सा उन्हें बुरी तरह भागते आते और एंटर होते हुए देखता ही रह गया, 

इतने में मे भी उनके पीछे-2 भागता हुआ क्लास में एंटर हो गया मेरे पीछे धनंजय, जैसे ही मेरी नज़र टीचर पे पड़ी, वहीं ब्रेक लग गये, लेकिन तब तक मे गेट में एंटर हो चुका था.

टीचर मुँह बाए, कितनी ही देर तक कभी मुझे और धनंजय को देखता, तो कभी उन सीनियर्स की तरफ.

में जब लौटने लगा, तो टीचर बोला… रूको… मे वहीं ठिठक गया और उसकी तरफ मुड़ा...

यस सर… मैने कहा…

ये सब क्या हो रहा है ? और लेक्चर के समय तुम लोग कहाँ थे..?

मैने उसे सारी बात डीटेल्स में बता दी एक-दम सच-सच.

टीचर- ठीक है, तुम लोग बाहर लॉबी में मेरा वेट करो, और वो वहाँ से प्रिन्सिपल ऑफीस में चला गया..

करीब 15 मिनट के बाद एक चपरासी हमें बुलाने आया, कि चलो तुम लोगों को प्रिन्सिपल साब ने बुलाया है.

और फिर वो उस क्लास में गया उन लोगों को बुलाने, हम प्रिन्सिपल ऑफीस में इकट्ठे खड़े हो गये.

थोड़ी देर बाद सेकेंड एअर वाले भी आ गये, प्रिन्सिपल अधेड़ उम्र का ईएमई से रिटाइर्ड बड़ा कड़क बंदा था.

उस टीचर ने हमारी तरफ इशारा करके उसके कान में कुछ कहा.

उसने पहले हम लोगों पर नज़र डाली उसके बाद उन लोगों की तरफ घूम के गुर्राहट जैसे स्वर में बोला, 

तो तुम लोग चाहते हो कि जूनियर गुलामों की तरह तुम्हारी हर जायज़-नाजायज़ बात माने क्यों..?
 
सेकेंड एअर से एक लड़का आगे आकर बोला- नो सर ऐसा कुछ नही है, हमने तो इन्हें जस्ट नाम साजेस्ट किया था सीआर का. 

तो इसको किसी पागल कुत्ते ने काट लिया था जो तुम्हारी गान्ड पे लात रसीद करदी ?

कान खोलकर सुनलो, चुनाव एक स्व्तन्त्र प्रक्रिया है, हर स्टूडेंट अपनी चाय्स का खुद मालिक है, यहीं नही पूरे देश का यही सिस्टम है, अगर तुम लोग उसे तोड़ने या दबँगाई करने की कोशिश करोगे, तो हम ये प्रक्रिया बंद कर देंगे.

फिर वो मेरे पास आए, और कंधे पर हाथ रखके बोले- आइ रेआली प्राउड ऑफ यू यंग मान, पहली बार किसी ने हिम्मत दिखाई ग़लत के खिलाफ, हम तुम्हें विस्वास दिलाते हैं, कि यहाँ किसी के साथ ज़्याददती नही होने देंगे, और हां मार-पीट कोई हल नही है, तो उससे बचना.

मे- यस सर ! आइन्दा ख्याल रखेंगे.

प्रिंसीपल- अब तुम सब लोग जा सकते हो, हम उन्हें थॅंक यू बोलके बाहर आ गये..

इतनी ही देर में ये बात पूरे कॅंपस में फैल गयी कि एक फर्स्ट एअर के स्टूडेंट ने सेकेंड एअर के स्टूडेंट श्रीवास्त्व को ठोक दिया..

श्रीवास्तव एक बदनाम स्टूडेंट था, जो रगिन्ग के नाम पर नये स्टूडेंट्स को परेशान करता था. 

लेक्चर ख़तम होने के बाद सभी डिपार्टमेंट के फर्स्ट एअर स्टूडेंट्स ग्राउंड में इकट्ठा हो गये, और हमारा वेट करने लगे, एक स्टूडेंट ने आके हमें बताया कि वहाँ सब तुम्हारा वेट कर रहे है, हम चारों यार जैसे ही वहाँ पहुँचे, उन लोगों ने मुझे कंधे पे उठा लिया और डॅन्स करते हुए शोर मचाने लगे खुशी से.

मैने नीचे उतर कर सभी को उँची आवाज़ में बोला- भाई लोगो मेरी बात ध्यान से सुनो, हम सभी यहाँ एक सपना लेके आए हैं, अपना-2 भविष्य बनाने और अपने घर वालों का मान सम्मान बढ़ाने का, ना कि दंगा-फ़साद, लड़ाई झगड़ा करने.

लेकिन इस कीमत पर बिल्कुल नही कि कोई हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुँचाए और हम चुप-चाप चूहे बन कर देखते-सुनते रहें.

प्रिन्सिपल सर ने हमें प्रॉमिस किया है, कि वो हम लोगों के साथ कभी कोई अन्याय नही होने देंगे, हम सब अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं. लेकिन डर कर चुप बैठ जाना ये हमारी कमज़ोरी होगी, जिसका इलाज़ ना मेरे पास है और ना कॉलेज प्रशासन के पास, इसलिए ग़लत के खिलाफ आवाज़ ज़रूर उठाना.

लेकिन ख्याल रहे कि अपनी इस आज़ादी का हम कोई ग़लत लाभ ना उठाएँ और सीनियर्स का सम्मान करना ही छोड़ दें, सभी सीनियर्स बुरे नही हैं, जो अच्छे हैं, वो हमें भी पता है, और हमें उन्हें सम्मान देकर अपना मार्ग दर्शक बनाना है.

वहाँ कुछ दूर पर कुछ सीनियर्स भी खड़े हमारी बातों को सुन रहे थे, और वो बड़े इंप्रेस हुए मुझे सुनके, इशारे से थॅम्स-अप करके चले गये.

सभी जूनियर खुशी-2 अपने-2 हॉस्टिल रूम में चले गये और हम अपने.

रूम में आकर ऋषभ धनंजय की खिचाई करने लगा कि कैसे उसकी फट गयी थी श्रीवास्तव को देखके…

तो मैने उसको समझाया कि ऐसा सभी को फील हो सकता है, अगर इसकी जगह तू होता तो सच बताना तेरा क्या हाल होता..बोल?

ऋषभ- सच कह रहा है यार ! मेरा तो इससे भी बुरा हाल हो जाता भाई ! वो साला भैंसा है भी तो सांड़ जैसा.

धनंजय- थॅंक यू अरुण, तू सच मे बहुत बहादुर है यार ! अगर आज तू उसे नही रोकता तो पता नही वो मेरा क्या हाल करता..?

मे- वैसे धन्नु, एक बात कहूँ, मुझे भी पता नही था कि इस तरह माहौल हमारे फेवर में हो जाएगा, मैने बस एक रिस्क लिया, और मेरी बातों का सभी क्लास मेट्स पर पॉज़िटिव एफेक्ट हुआ, अगर ऐसा नही होता तो हम भी पीट सकते थे भाई.

वैसे धन्नु यार ! इतनी फट क्यों रही थी तेरी ? क्या वो भोसड़ी का खा जाता तुझे, कैसा ठाकुर है यार तू..?

और तुम तीनों कान खोल के सुनलो, आज के बाद अगर तुम चाहते हो कि में तुम लोगों का दोस्त बना रहूं, तो शेर की तरह रहो, ग़लत किसी के साथ करो मत, तो ग़लत सहना भी मत. यही बात समझा कर मेरे बाप ने मुझे यहाँ भेजा है.

अगर तुम अपनी जगह सही हो तो मुझे हमेशा अपने पास ही पाओगे, और ये मेरा वादा है तुम लोगों से, कोई माई का लाल तुम्हे च्छू भी नही सकेगा, जब तक में हूँ.

वो तीनों मेरे गले से लग गये, और वादा किया, कि आज के बाद हम तेरे सिद्धांतों पर चल्लेन्गे….
 
दूसरे दिन सीआर को चुनना था, जो 3-4 लोग सीआर का एलेक्षन लड़ना चाहते थे, जिनमें हमारी ओर से धनंजय भी था, उन सभी ने मिलके एलान कर दिया कि हमारे सेक्षन से कोई चुनाव नही लड़ेगा और ना ही कोई वोटिंग होगी.

हम सब की तरफ से अरुण हमारा सीआर होगा, मैने कहा नही भाई मुझे किसी पद की लालसा नही है, मेरी तरफ से धन्नु सीआर है, तो वो बोला नही यार, हमें एक ऐसा रेप्रेज़ेंटेटिव चाहिए जो हमारे हितों के लिए निडर होकर बिना पक्ष-पात के आवाज़ उठा सके, और हम सब लोगों ने देख भी लिया है कि वो तुझसे अच्छा कोई नही कर सकता, क्यों भाई लोगो, क्या बोलते हो..?

सभी एक स्वर में- हां हमारा सीआर अरुण ही होगा और कोई नही…

धनंजय – तो फिर सभी लोग एक पेपर पर लिख के सिग्नेचर करके दे-देते है, की हमारा सीआर अरुण निर्विरोध चुन लिया गया है.

और फिर जैसा तय हुआ था, सबने लिख के साइन करके सेक्षन हेड को पकड़ा दिया और इश्स तरह से में निर्विरोध सीआर चुन लिया गया.

हमारे पूरे सेक्षन की एक खास इमेज पूरे कॅंपस में ख़ासतौर से फर्स्ट एअर में बन चुकी थी, यहाँ तक की एलेक्षन के बाद की अपनी स्पीच में प्रिन्सिपल ने कई बार हमें अप्रीशियेट किया.

लेकिन जैसा हमें बाहर से माहौल शांत पूर्ण लग रहा था, अंदर से ऐसा नही था….

श्रीवास्तव और उसके जैसे दूसरे सीनियर्स को ये बात हजम नही हो रही थी, कि एक फर्स्ट एअर का लड़का ना ही बाज़ी मार ले गया अपितु, पूरे कॅंपस में हीरो बन गया…

वो मौके की तलाश में लग गये कि कब वो मुझे लपेटें, मुझे ये भी पता लग गया था, कि श्रीवास्तव के साथ कुछ थर्ड एअर और फाइनल एअर तक के गुंडे टाइप के स्टूडेंट भी हैं और वो उसको फुल सपोर्ट कर रहे हैं.

मैने बस एक ही बात सीखी जिंदगी में, की मौत सिर्फ़ एक बार ही आती है, कोशिश हर सफलता की कुंजी है.

डर के जीना ना तो मेरे खून में था, और ना ही मेरे संस्कारों में. इसलिए मे हर संभव बिंदास रहने की कोशिश करता रहता.

समय अपनी रफ़्तार से गुजर रहा था, फाइनल्स का समय नज़दीक था, हमारा अधिकतर समय वर्कशॉप मे ही व्यतीत होने लगा प्रॉजेक्ट कंप्लीट जो करने थे..

एक दिन हम चारों दोस्त वॉरषोप में काम कर रहे थे, काफ़ी टाइम हो गया था शाम के लगभग 7 बज रहे थे.

तभी वहाँ श्रीवास्तव और उसके साथी आ गये, ये उनका देर शाम का अड्डा था रोज़ का, चूँकि शाम 6 बजे के बाद वर्क शॉप बंद हो जाता था, इसलिए वो लोग इसी समय यहाँ आके ड्रग्स लेते थे, वहीं पर वो ड्रग्स का अपना स्टॉक रखते थे छुपा के और दूसरे स्टूडेंट्स को भी सप्लाइ करते थे, ये हमें बाद मे पता चला.

ये बात हमें पता नही थी, वो लोग हमें इग्नोर करके हमारे पास से गुज़रते हुए अंदर की ओर जहाँ सबके ड्रॉवेर्स बने हुए थे उधर छिप्के ड्रग्स लेते रहे और थोड़ा सा स्टॉक लिया आज की सप्लाइ करने के लिए.

मे और धनंजय थोड़ा हटके दूसरी रो वाली मशीन पे काम कर रहे थे और जगेश & ऋषभ उस साइड थे जिधर से उनका पॅसेज था.

वो लोग 8 जने थे, लौटते मे वो लोग जैसे ही वहाँ से गुज़रे, उनमें से एक फाइनल एअर का बंदा नशे की पिन्नक मे अपनी सीनियर वाली टोन में, जगेश को बोला, 

क्यों बे सालो एक ही साल में इंजीनियरिंग करने आए हो क्या? बेहेन्चोद रात मे भी लगे हो, भागो यहाँ से अब…

जगेश – सर थोड़ा प्रॉजेक्ट वाकी है, तो कंप्लीट कर लेते हैं..

वो- अबबे तो भोसड़ी के कल नही कर सकता क्या? आज ही माँ चुदाना ज़रूरी है तुम लोगों को.

जगेश- सर तमीज़ से बात करिए, गाली गलौज करने की क्या ज़रूरत हैं, उनकी वार्तालाप सुनके ऋषभ भी वहाँ आगया.

वो- भोसड़ी के हमें तमीज़ सिखाएगा… तेरी माँ को चोदु, हमसे पंगा लोगे तुम लोग, 

सालो तुम्हारी औकात ही क्या है, हमसे ज़ुबान चलाता है भोसड़ी के, और वो उसकी तरफ मारने को बढ़ा, उसके साथी भी उसके पीछे ही थे.

मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दी, मशीन की आवाज़ में क्लियर नही था, मैने धनंजय को बोला - धन्नु, देखना क्या हो रहा है उधर..?

धनंजय ने जब झाँक के देखा, और बोला अरे यार, ये तो साले जगेश और ऋषभ के साथ मार-पीट कर रहे हैं भाई, जल्दी आ..

मैने मशीन बंद की और उधर दौड़ा, देखा कि एक फाइनल एअर का लड़का जगेश का कॉलर पकड़ के उसे मार रहा था और दो ने ऋषभ को पकड़ रखा था.

जैसे ही हम वहाँ पहुचे, दो लड़के धननज़े की ओर लपके और श्रीवास्तव और दो बंदे मेरी ओर.

धन्नु एक्शन, और कहते ही मैने आगे बढ़ते-2 एक सीधे पैर की किक एक के मुँह पे रसीद करदी, वो वही पीछे की तरफ मशीन के उपर गिरा, एक तो सेफ्टी शूस की किक इतनी तेज लगी, उपर से उसकी कमर लत्थे के बेड पर लगी, धडाम से वो वहीं ढेर हो गया.

वाकी के दोनो जब तक मेरे पास तक पहुँचते मैने लपक के अपना पसंदीदा पेन्तरा यूज़ किया और दोनो के गले एक-एक से पकड़ लिए.

एक मजदूर किसान के सख़्त हाथों की पकड़ इतनी मजबूत होती है, लाख कोशिशों के बावजूद वो छुड़ा नही पाए देखते-2 उनकी आँखें बाहर को उबलने लगी, नशे की हालत में और ज्यदा घबराहट जैसी महसूस हुई उनको, उपर से मैने उनके सर आपस मे टकरा दिए. कड़क.. और ढेर हो गये.

मैने उन दोनो को धक्का देके पीछे की ओर फेंका, वो दोनो पीछे रखी टूल्स टेबल जोकि लोहे की थी उसके उपर जाके गिरे. 

धनंजय भी मजबूत कसरती शरीर वाला लड़का था, उसने भी उन दोनो को संभाल लिया, और वो उन्हें अच्छी ख़ासी टक्कर दे रहा था, उन पर पूरी तरह हावी था वो.

में लपक के ऋषभ के पास पहुचा, और उन दोनो लौन्डो को पीछे से बाजू गले मे लपेट के कस दिया, तुरंत उनकी पकड़ ऋषभ से ढीली पड़ गई और वो हाथ पैर मारने लगे अपने को मेरी गिरफ़्त से छुड़ाने के लिए.

मैने ऋषभ को कहा, तू जल्दी से धन्नु की हेल्प कर.
 
उधर जगेश ने भी अपने शिकार को चित्त कर दिया था और वो उसकी छाती पर बैठ कर तबाद-तोड़ उसपर थप्पड़ बरसा रहा था चिल्लाते हुए, भोसड़ी के अब गाली देके दिखा मदर्चोद क्यों नही देता अब गाली.. देना...!!

मार-मार के उसने उसके थोबदे का फालूदा बना दिया और वो बेहोश हो गया,

शाबास मेरे शेर, मैने चिल्लाके उसे एनकरेज किया और अपने शिकार के गालों को और ज़ोर से कस दिया,

इतने मे वो पहले वाला जो मेरी किक से गिर गया था उठ चुका था और मेरी ओर आने लगा, तो उसे बीच में ही रशभ ने लपक लिया, और ऐसी पिलाई की उस भोसड़ी वाले की, नानी याद आ गयी.

जगेश उसे बेहोश छोड़ मेरी ओर आया तो उसकी नज़र उन दोनो मेरे शिकार के चेहरों पर पड़ी तो चीख पड़ा…

अरुण जल्दी छोड़ इन्हें नही तो मर जाएँगे साले.

मैने जैसे ही उन दोनो को छोड़ा, वो दोनो सेमेंट के बोरे की तरह धडाम से ज़मीन पर गिर पड़े, वो बेहोश हो चुके थे.

नज़ारा ये था कि वो आठों ज़मीन पर पड़े थे, कुछ अचेत, तो कुछ कराह रहे थे….

हमने उन सब को रस्सी से हाथ पैर बाँध के वही डाला और उनकी तलाशी ली तो उनके पास से ढेर सारे ड्रग्स निकले.

तुरंत ऑफीस जाकर हमने प्रिन्सिपल को फोन किया, और सारी बात बताई, वो तुरंत अपने साथ दो-चार टीचर्स और वर्कशॉप इंचार्ज को लेकर आधे घंटे में ही वर्कशॉप में पहुँच गये, 

हमने उन्हें सारी बात डीटेल मे बताई, उनके पास से मिले ड्रग्स दिखाए, मैने कहा सर इनके ड्रॉयर्स भी चेक कीजिए, वहाँ और स्टॉक हो सकता है, क्यूंकी मुझे लगता है ये कॅंपस में ड्रग डीलिंग का धंधा करते हैं.

जब उनके ड्रॉयर्स खोले तो प्रिन्सिपल की आँखें फटी की फटी रह गयी, उनके ड्रॉयर्स ड्रग्स से भरे पड़े थे.

प्रिन्सिपल ने वर्कशॉप इंचार्ज को लताड़ा, ये कैसा आड्मिनिस्ट्रेशन है आपका? आपकी नाक के नीचे ड्रग्स का धंधा हो रहा है कॅंपस में, और आपको पता ही नही चला ? ये कैसे संभव है?

वर्कशॉप इंचार्ज मिमियने लगा…. वो..वो.. स.स साब, अब कैसे पता चलेगा हम लोगों को कि ये लोग क्या-क्या रखते होंगे अपने ड्रॉयर्स में? हम तो एक बार ड्रॉयर अलॉट कर देते हैं उसके बाद थोड़ी देखते हैं.

तुरंत पोलीस को फोन लगाया और उनसबको उठवाया, तब तक उनलोगों को होश आ चुका था.

उन आठों लड़कों को रस्टिकेट कर दिया गया, उनपर ड्रग डीलिंग का चार्ज लगाके हवालात में डाल दिया गया.

इस तरह से एक बड़े गुनाह का भंडाफोड़ हुआ हम लोगों की वजह से.

प्रिन्सिपल ने हम लोगों की पीठ थपथपाई, और विशेष आडमिन कमिटी गठन करने का फ़ैसला हुआ, जिसका हम चारों को मेंबर बना दिया जाएगा, जो सीधे प्रिन्सिपल की अध्यक्षता में काम करेगी,

ये एक विशुद्ध “स्टूडेंट आडमिन सेवा समिटी” होगी इसलिए इसका नाम (सास्स) रख दिया गया, जिसमें हमें विशेष अधिकार दिए जाएगे, की अगर कुछ भी कॅंपस मे ग़लत होता दिखे, हम अपनी तरफ से डिसिशन लेके उचित कार्यवाही कर सकते है, चाहे वो किसी टीचर के खिलाफ ही क्यों ना हो.

और निकट भविश्य मे अगर और कोई योग्य स्टूडेंट जुड़ता है तो उस कमिटी का आकार भी बढ़ाया जा सकता है, जिसका अधिकार भी हमें ही होगा. इस सबका प्रायोजन सिर्फ़ ये था कि निकट भविष्य मे इस तरफ की और कोई घटना ना घटित हो जिससे हमारे कॉलेज की रेप्युटेशन खराब हो.

ये सब फ़ैसला प्रिन्सिपल के ऑफीस में बैठ कर लिया गया था, जिसका वास्तविक रूप कल सुबह ही तैयार कर लेना था.

ये बात रात को ही आग की तरह पूरे कॅंपस मे फैल चुकी थी कि श्रीवास्तव & कंपनी. ड्रग डीलिंग करते पकड़े गये हैं, सुबह सभी स्टूडेंट्स हमें अप्रीशियेट कर रहे थे, जैसे जिसका मिलना हो पारहा था.

हमारे द्वारा किए गये इस साहसिक कारया की सराहना कॉलेज के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स ने भी की, और हम लोगों को पुरस्कृत किया गया, साथ ही निर्धारित कमिटी को भी बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स की तरफ से स्वीकृति मिल गयी.

दूसरी सुबह ही सास्स कमिटी का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया, और उसको प्रिन्सिपल की सील साइन करके सर्क्युलेट कर्दिया, जिससे सभी स्टूडेंट्स को भी इसके बारे में पता चल गया.

सारे कॉलेज में हम चारों के ही चर्चे थे, जिधर देखो स्टूडेंट्स ग्रूप बना के बातें कर रहे थे कि कैसे हम चार लोगों ने उन आठ लोगों को धूल चटा दी और उनके काले कारनामों की पोल खोल के रख दी.

कुछ स्टूडेंट्स ने इंडीविदुआली कॉंटॅक्ट किया और अपनी इच्छा जताई समिति में पार्टिसिपेट करने की, मैने भी उनको आश्वासन दे दिया इस शर्त पर की तुम उन लोगों का पता लगाके दो जो कॅंपस के अंदर ड्रग्स लेते हैं.

एक-दो ने तो तुरंत कुछ के नाम भी बता दिए, मैने और दो स्मार्ट से स्टूडेंट्स को सेलेक्ट किया और इन चारों को काम दे दिया की तुम लोग एक लिस्ट तैयार करो, अपने सूत्रों से, कॉन-कॉन ड्रग्स लेता था इनसे और अब उनकी सोर्स क्या है.

तुम जितनी जल्दी ये काम करोगे, उतनी जल्दी हमारी समिति मे शामिल हो जाओगे. वो चारों लग गये काम पर.

मेरा इरादा था ड्रग्स की आउटसोर्स का पता लगाना, और अपने कॉलेज के भटके हुए बच्चों को सीधे रास्ते पर लाना.

मुझे आशा थी, कि हम इस कार्य मे जल्दी सफल हो जाएँगे….

एक हफ्ते बाद ही उन चार लड़कों ने जो लिस्ट दी, मेरी तो खोपड़ी ही उलट गयी…

लगभग 100 स्टूडेंट्स थे जो ड्रग्स के आदि हो चुके थे, जब करेंट सोर्स के बारे में पता किया, तो दो चार कुछ छोटे-2 अड्डे थे शहर में जो स्टूडेंट्स को इन लोगों के ज़रिए ड्रग्स सप्लाइ करते थे.

मैने प्रिन्सिपल को जब वो लिस्ट दिखाई तो वो भी सकते मे आ गये, वो बोले अरुण ये हो क्या गया है, आज की जेनरेशन को..?

मे- सर इसमें इन बच्चों का दोष नही है, इन्हें तो जैसे बहकाया जाए, ये बहक जाते हैं, ये एक बहुत बड़ा रॅकेट है जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं.

खैर सर उन्हें छोड़िए, अब हम ये चाहते हैं, कि इन सभी बच्चों की एक सीक्रॅट मीटिंग बुलाई जाए, और इनका आप ब्रेन बाश करने की कोशिश करें, जिससे ये अपनी पढ़ाई शांति पूर्वक करके निकल जाएँ, इसमें उनकी और कॉलेज दोनो की भलाई है.

प्रिन्सिपल –हॅम… तुम सही कहते हो, मे आज ही एक सेक्राट नोट इन सभी को भेजता हूँ, और कल ही इनकी मीटिंग लेते हैं, मे चाहूँगा कि तुम भी वहाँ मौजूद रहो.

मे- सर मे अकेला नही हम चारों मेंबर रहेंगे, जिससे उन लोगों को भी एनकरेज्मेंट मिलेगा.

प्रिन्सिपल- ब्रिलियेंट अरुण तुम बहुत दूर की सोचते हो.. 

हमें गर्व है कि हमारे कॉलेज को पहली बार एक अच्छा स्टूडेंट मिला है, जिसकी सोच समाज की भलाई के लिए है. धन्य हैं तुम्हारे पेरेंट्स जिन्होने तुम जैसी संतान पैदा की.

मेरे चेहरे पर अनायास ही एक रहस्यमयी मुस्कान आ गयी, जिसे देख कर प्रिन्सिपल रुस्तम सिंग उसका कारण पुछे वगैर नही रह सके…..

मेरी बात पर तुम मुस्कुराए क्यों..? पुछा प्रिन्सिपल ने.

मे- सर आपने बात ही ऐसी की थी …

प्रिन्सिपल - कोन्सि बात..?

मे- संतान पैदा करने वाली सर..

प्रिन्सिपल - क्यों मैने कुछ ग़लत कहा…?

मे- नही सर आपने कुछ ग़लत नही कहा लेकिन ये ग़लत है कि मेरे माता पिता ने मुझे ऐसा पैदा किया..

प्रिन्सिपल - क्या मतलब…?

मे- सर उनके लिए तो मे एक अनचाहा भ्रुड था, जिसे उन्होने पूरी कोशिश कि इस धरती पर आने से रोकने की..

फिर मैने उन्हें अपने जन्म से जुड़ी हर बात बताई, तो वो आश्चर्य चकित रह गये…

प्रिन्सिपल - तो ये है तुम्हारे इस तरह के नेचर का राज… गॉड गिफ्टेड हो..

मे- जी सर, और इसलिए में मौत से भी ख़ौफ़ नही ख़ाता कभी. क्योंकि उसी मौत ने मुझे पुनर-जीवित किया है, तो उससे क्या डरना… और फिर वो तो सभी को कभी ना कभी तो आनी ही है…

प्रिंसीपल- ग्रेट ! अरुण.. यू आर सिंप्ली ग्रेट.… गॉड ब्लेस्स यू माइ चाइल्ड, और इतना कह कर भावुकतावस उन्होने मुझे गले से लगा लिया.

प्रिन्सिपल का नोट मिलते ही दूसरे दिन 10 बजे वो सभी स्टूडेंट्स डरते-2 एक मीटिंग हॉल मे इकट्ठा हुए, जो उन्हें नोट मे ही बता दिया गया था.

हम चारों प्रिन्सिपल सर के साथ एंटर हुए, सबने एक स्वर में गुड मॉर्निंग कहा, 

प्रिन्सिपल सर का इशारा पा कर मैने उन लोगों को संबोधित किया…

मे- गुड मॉर्निंग फ्रेंड्स… जैसा की परसों की घटना ने हम सभी को चाहे वो टीचर्स हों या स्टूडेंट्स, शॉक मे डाल दिया है, की इतना बड़ा ग़लत काम हमारे कॅंपस में चलता रहा और किसी को पता भी ना चला.

इसका ज़िम्मेदार कॉन है ? 

हम सब इतने तो समझदार हैं कि अपना खुद भला-बुरा सोच सकें, आप सब में से शायद ही कोई ऐसा हो जिनके माँ बाप इस तरह की घृणित आदतों को सही ठहरायें, 

वो तो हमें इन सब चीज़ों से दूर रखने की भरसक कोशिश करते रहे हैं अब तक क्यों?

क्या में सही कह रहा हूँ?? मैने सवाल किया, तो सबने समवेत स्वर में हां कहा..

इसका मतलब आप लोग ग़लत हैं… सबकी मुन्डी नीचे को झुक गई..

मैने फिर कहा… इसमें आप लोगों को गिल्टी फील करने की ज़रूरत नही है.. हम टीनेज मे ही कॉलेज मे आजाते हैं, उसका ग़लत फ़ायदा कुछ स्वार्थी लोग उठा जाते हैं, और हमें नरक में झोंक देते हैं.

में चाहता हूँ, कि आप सभी अबतक जो हुआ उसे भूल कर, अपनी अंजाने मे हुई ग़लतियों से सबक लें और वापस अपने माता-पिता के लाड़ले बेटे बन कर एक अच्छा नागरिक बनाने की कोशिश करें.

में प्रिन्सिपल सर से रिक्वेस्ट करूँगा कि वो आप सभी को सुधारने का एक मौका और दें जिससे आप अपने पेरेंट्स के ख्वाबों को पूरा करके ही यहाँ से जाएँ… धन्याबाद.
 
प्रिन्सिपल सर और मेरे अन्य साथियों ने ताली बजा कर मेरी बात का अनुमोदन किया.. फिर प्रिन्सिपल बोले…

प्रिंसीपल- डियर स्टूडेंट्स.. ये कॅंपस आप लोगों के आने वाले भविश्य के निर्माण का एक ऐसा श्रोत है, जिसकी हम जैसी कद्र करेंगे, ये हमें वैसा ही मार्ग दर्शन देगा. 

अगर हम इसे बुराईओं का अड्डा बना देंगे, तो कल को हमारे संस्थान से निकले हुए स्टूडेंट की सामाजिक प्रतिष्ठा भी धूमिल पड़ जाएगी, लोग हमें इज़्ज़त की नज़र से देखना बंद कर देंगे.

आप सबका नाम देख कर एक बार को मेरे दिमाग़ मे आया था कि अगर मुझे अपने कॉलेज को साफ-सुथरा करना है तो आप सभी को यहाँ से निकल देना चाहिए. लेकिन… 

मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए… हमें रियली प्राउड फील करना चाहिए.. कि हमारे कॉलेज में अरुण जैसा स्टूडेंट मौजूद है.

जानते हो जब मैने आप सभी को रेस्ट्रीक्ट करने का फ़ैसला किया तो इसने क्या कहा…?? सभी उनके चेहरे की तरफ उत्सुकता से देखने लगे..

इसने कहा- सर इन बच्चों की नादानियों का इनके माता-पिता को डंड देना ठीक नही है, इसमें उनकी क्या ग़लती है? बड़े अरमान सँजोके उन बेचारों ने अपने बच्चों को यहाँ भेजा है, जिनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हैं कि दो वक़्त की रोटी का साधन जुटाने में भी असमर्थ हों, लेकिन महंत मजूरी करके इन्हें यहाँ पढ़ा रहे हैं.

और फिर इसी के सुझाव को मद्दे नज़र रखते हुए ये फ़ैसला लिया कि आप सभी को एक मौका और दिया जाए तो में चाहता हूँ, कि आप सभी ये वादा करें कि आज के बाद ऐसी कोई भी ग़लत आदत में नही पड़ोगे, अगर कोई भी स्टूडेंट दुबारा ऐसा करते हुए पाया गया, तो फिर कॉलेज उसे किसी भी कीमत पर आगे नही रख पाएगा.

क्या आप सभी एक मौका और चाहते हैं ? अपने-2 हाथ खड़े करके सहमति दें.. सबने अपने हाथ खड़े कर दिए..

प्रिंसीपल- आशा करता हूँ, आप सभी मन लगा कर अपनी पढ़ाई में लगेंगे, और आनेवाले एग्ज़ॅम में अच्छा कर के दिखाएँगे, ऑल दा बेस्ट बाय्स…आंड टेक केयर…

जैसे ही प्रिन्सिपल मीटिंग हॉल से गये, हम भी उनके पीछे-2 निकालने लगे, तो सभी स्टूडेंट्स ने हमें आवाज़ दे कर रोक लिया..

हम लोग मुड़े और उन लोगों की तरफ देखा. उनमें ज़्यादातर सीनियर्स ही थे. उन सभी ने मुझे थक्स बोला और सच्चे दिल से अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए, सुधरने का वादा किया.

कुछ एक तो मेरे पैरों में पड़ गये, और रोते हुए कहने लगे…

सच में अरुण तूने हमें बचा लिया, वरना हमारे निकाले जाने के बाद हमारे माँ-बाप शायद जिंदा नही बचते.. वो कैसे-2 करके हमें यहाँ पढ़ा रहे हैं, और हम ये नीच काम में लगे है… अपने आप पर ही घिन सी आ रही है हमें.

मे- बीती बात बिसार के आगे की सुध लो… यही रास्ते को फॉलो करो और अपनी ग़लतियों से सबक लेके आगे बढ़ते रहो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी, सो प्लीज़ डॉन’ट बे शाइ आंड मूव फॉर्वर्ड…

एक महीने बाद फाइनल एग्ज़ॅम शुरू हो गये, सब उसमें बिज़ी हो गये..

एक साल कैसे बीट गया, पता ही नही चला, कुछ खट्टी-मीठी यादों के बीच कहना पड़ेगा इट वाज़ नोट बाद.

इस एक साल के कॉलेज के अनुभव ने मेरे सेल्फ़ कॉन्फिडॅन्स को और बढ़ा दिया था, बचपन से चाचा के साथ बीते मेरे दिनो की वजह से जो दिलेरी आ चुकी थी, वो आज कारगर सिद्ध हो रही थी. 

एग्ज़ॅम गुजर गया, सीनियर वाले चले गये, हम सीनियर में आ गये, नये एडमिसन शुरू हुए, रगिन्ग की प्रथा फिर एक बार शुरू हुई, मेरे दोस्तों ने भी कहा, कि यार चलो किसी की रगिन्ग करते हैं, मैने मना कर दिया, कि देखो भाई, में कोई ऐसा काम नही करना चाहता जिससे किसी को कष्ट हो.

स्टूडेंट्स जो ड्रग अडिक्ट हो गये थे, वो कॉलेज छोड़ने से पहले पर्षनली मिलके गये, और मुझे उन्होने सच्चे मन से थॅंक्स कहा और आक्सेप्ट किया कि आज जो उन्हें डिग्री मिली है, वो मेरी वजह से है, वरना क्या पता वो एग्ज़ॅम दे भी पाते या नही, और देते भी तो कैसे?

उन चार लड़कों को मैने कमिटी मेंबरशिप तो दी, लेकिन उनका नाम गुप्त रखा और उन्हें सेक्रटेली काम करने के लिए कहा, जिससे इन्फर्मेशन निकालने में ज़्यादा मुश्किल पेश ना आए.

क्लासस स्टार्ट हो चुकी थी, सब अपनी-2 स्टडी मे बिज़ी हो गये. 

हर हफ्ते रिंकी का लेटर मुझे मिलता रहता था, वो इंटर्मीडियेट कर चुकी थी और कोशिश में थी कि उसके पापा, आगे भी पढ़ने की पर्मीशन दे दें. 

इस बीच, कुछ बाहरी असमाजिक तत्व कॅंपस में घुसने की कोशिश करते रहते थे अपने धंधे को आगे कॅंपस में फैलाने के लिए, चूँकि हमारी टीम सतर्क थी तो उन्हें चान्स नही मिल पा रहा था,

फिर भी डर तो रहता ही था, कि कभी ना कभी ये फिर पन्पेन्गे और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करेंगे. इसका कोई पार्मानॅंट सल्यूशन तो ढूढ़ना ही पड़ेगा.

मैने इस बाबत प्रिन्सिपल सर से मुलाकात की, और उनको रिक्वेस्ट की अगर आप पोलीस का बॅक-अप सपोर्ट अगर दिला सकें तो इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की जा सकती है.

उनके संबंध शहर के एसपी से अच्छे थे, उन्होने उनसे मिलने के लिए रिक्वेस्ट की, तो उन्होने हमें मिलने का समय दे दिया.

में प्रिन्सिपल के साथ एसपी ऑफीस पहुँचा, और उन्हें इस समस्या के निदान के लिए बात की.

प्रिंसीपल- एसपी साब, आपको तो ग्यात ही होगा, बीते साल हमारे कॉलेज में एक ड्रग डीलिंग का केस पकड़ा था, जिसमें 8 स्टूडेंट एन मौके पर पकड़े गये थे डीलिंग करते हुए..

एसपी- हां सर मुझे पता है, और उन आठों पर अभी भी केस चल रहा है.

प्रिंसीपल- उनको रंगे हाथों पकड़वाने का श्रेय, इस बच्चे और इसके 3 अन्य साथियों पर जाता है..

एसपी प्रशंसा भरी नज़रों से मुझे देखते हुए बोले- वेल डिड यंग मॅन.. क्या नाम है तुम्हारा…

मे- सर ! अरुण…

प्रिंसीपल- तबसे लेके आज तक, बाहरी ड्रग डीलर्स ने कई बार कोशिश की है घुसने की, लेकिन अरुण जैसे हमारे कुछ और भी स्टूडेंट्स हैं, जो इन चीज़ों पर नज़र रखे हुए हैं, और उन्हें नाकाम करते रहे हैं.

लेकिन कब तक,,? इसलिए हम चाहते हैं, कि इस बुराई का कोई स्थाई हल खोजा जाए, और इस शहर को भी इससे मुक्ति मिल सके. इसके लिए अरुण के पास एक योजना है, लेकिन वो तभी कारगर हो सकती है, जब उसमें पोलीस का सपोर्ट हो.

एसपी- श्योर सर हमारा महकमा आपकी हर संभव मदद करेगा, इनफॅक्ट हम भी इस बुराई का अंत चाहते हैं. बताओ अरुण तुम्हारी क्या योजना है ?
 
मैने अपनी योजना उन्हें समझाई, और अपने 8 नाम उन्हें लिख के दिए और कहा, कि अगर इन नामों में से किसी को भी पोलीस की जब भी मदद लगे उन्हें तुरंत मिले.

हम एसपी के ऑफीस और उनका पर्सनल फोन नंबर लेके कॉलेज लौट आए, 

अब मुझे लगा कि अगर इस बुराई से लोगों को निजात दिलानी है, तो मैदान मे बिना कुदे ये संभव नही है, ये भी संभावना थी कि शायद इसमे पोलीस के कुछ अधिकारी भी शामिल हों.

हॉस्टिल आकर मैने अपने कमिटी मेंबर्ज़ को बुलाया, और उनसे सलाह-मशविरा करने लगा..

अपडेटेड सास्स मेंबर्ज़: 
आक्टिव मेंबर्ज़ :- (साइ) - अरुण, धनंजय, ऋषभ, जगेश
सेक्राट मेंबर्ज़ :- (लाइ)- सागर, मोहन, (टाइ)- रोहन, कपिल.

मे- दोस्तों अब समय आ गया है ड्रग माफिया को इस शहर से उखाड़ फेंकने का, जिससे ना रहेगा बाँस, और ना बजेगी बाँसुरी. 

ये लो शहर एसपी का ऑफीस और घर का फोन नंबर, जब भी कभी तुम लोगों को पोलीस की हेल्प की ज़रूरत लगे, तुरंत फोन कर सकते हो, हम सभी के नाम उनके ऑफीस में हैं, और अपना नाम बताते ही वो हर संभव मदद करेंगे. 

अब ध्यान से सुनो, कल से ही हमें जल्दी सुबह 5 बजे उठके जिम में पहुँचना है, और यथा संभव जितनी जल्दी हो सके अपने को इस काबिल कर लेना है, कि कोई भी तुम्हें हल्के मे लेने की ग़लती ना कर सके.

शरीरक मजबूती हमें अपने काम में सफलता दिलाएगी. एक हफ्ते बाद हम फाइटिंग की प्रॅक्टीस शुरू करेंगे.

एक महीने के बाद हम इस पर आक्षन शुरू कर देंगे, किसी को इसमें कोई कुछ दिक्कत लगे तो अभी बता दो. 

सभी जान मेरी शक्ल इस तरफ देख रहे थे मानो में कोई अजूबा हूँ.

जगेश – पर यार अरुण, हम अपने कॅंपस पर तो फोकस रखे हुए ही हैं, फिर ये सबसे हमारा क्या मतलब? और हमें पढ़ाई भी तो करनी होती है, तो इन सब बातों के लिए समय कहाँ से मिलेगा.

मे- कितने घंटे पढ़ाई करता है जगेश..? 2-4 या और ज़्यादा. मे तेरी बात से सहमत हूँ कि हम अपने कॅंपस में फोकस रखे हुए ही हैं, लेकिन कब तक? कल को हमें यहाँ से जाना होगा, उसके बाद..?

रोहन – तो क्या जिंदगी भर का हमने कोई ठेका ले रखा है,..?

मोहन – और इन सब चक्करों में पड़ने से हम गुण्डों से सीधा-2 पंगा ले रहे हैं यार, हमारी जान को भी ख़तरा हो सकता है ऐसे तो.

मे- और किसी को कुछ कहना है इस बारे में..?

थोड़ी देर शांति छाई रही जब किसी की कोई और प्रतिक्रिया नही मिली तो मे बोला.

देखो भाई ! तुम्हें लगता है कि ये सब काम में कुछ पाने के लालच मे, या मेरा कोई निहित स्वार्थ सिद्ध हो रहा हो उसके लिए कर रहा हूँ, तो ऐसा बिल्कुल नही है. 

ड्रग अडिक्षन एक सामाजिक बुराई है, जो हमारे समाज को शरीरक और आर्थिक दोनो ही दृष्टि से खोखला कर रहा है, कुछ मुट्ठी भर लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए इसे समाज में फैला रहे हैं, लेकिन आचे लोग आँख बंद किए बैठे हैं, कोई इसके खिलाफ कुछ करना ही नही चाहता है.

हम लोगों ने एक छोटे से प्रयास से इस बुराई को किसी हद तक अपने कॉलेज से उखाड़ फेंका है, जिसका नतीजा हम सबके सामने है, इस साल के रिज़ल्ट के रूप में.

सोचो अब अगर हम और थोड़ी सी कोशिश करें तो इस शहर को भी इस बुराई से मुक्ति दिला सकते हैं.

रही बात गुण्डों से पंगा लेने की, तो अगर वो बुरे काम के लिए अपनी जान का रिस्क ले सकते हैं, तो क्या हम एक अच्छे काम के लिए रिस्क नही ले सकते ?

वैसे भी चोर के पाव कितने होते हैं दोस्त ? एक बार उखड़े, तो उन्हें खदेड़ने मे ज़्यादा वक़्त नही लगेगा.

सोचो अगर इस काम में हमें सफलता मिल जाती है, तो हमारा ही नही हमारे कॉलेज का नाम भी स्वर्ण अक्षरों मे लिखा जाएगा, इस शहर के इतिहास में.

और ना जाने कितनी ही माओं की दुयाएं मिलेंगी हमें. 

इस छोटी सी जिंदगी मे अगर कुछ अच्छा करके जायें तो उपरवाले के यहाँ भी सीना चौड़ा करके जा सकते हैं.

मेरे भाई, जिंदगी तो कुत्ते-बिल्ली भी जीते हैं, लेकिन शेर के जीने का अंदाज ही निराला होता है.

में तो भाई गुमनामी की जिंदगी जी नही सकता, और मैने फ़ैसला कर लिया है, कि जहाँ तक मेरे बस में होगा में इस बुराई के खिलाफ लड़ता रहूँगा, अब अगर जिसको मेरे साथ आना है, मोस्ट वेलकम, और नही आना है तो भी वेलकम.

कबीर ने कहा है “जो घर फूँके आपनो चले हमारे साथ” 

बस मुझे आप लोगों से इतना ही कहना है कि “ज़िल्लत की जिंदगी से इज़्ज़त का एक पल हज़ार बार बेहतर”

जिसको मेरे साथ आना है, वो सुबह डॉट 5 बजे जिम मे मिले, इतना बोल कर में कमरे से बाहर निकल गया, और पीछे छोड़ गया एक गहन सन्नाटा.
 
डिन्नर के बाद हम अपने कमरे में आ गये, मैने इस विषय पर अपनी तरफ से फिर कोई बात नही की थी, मे थोड़ी देर अपनी बुक लेके स्टडी करने में लगा था, कि धनंजय मेरे पास आके बैठ गया.

मैने सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखा.. उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला..

धनंजय – अरुण तू क्या है..?

मे – मतलब…? ये कैसा सवाल है…?

धनंजय- इतनी उँची सोच मात्र 19 साल के एक साधारण से लड़के की तो हो नही सकती ना यार !!

हमारी बताओं को सुनकर ऋषभ और जगेश भी हमारे पास आकर बैठ गये..

रिसभ- तेरे जैसा कलेजा हर किसी का नही है दोस्त !

में उन लोगों की ओर देख कर मुस्कराते हुए जगेश से बोला…

जगेश ! सच बताना, तूने क्या सोच कर वर्कशॉप मे उस लौडे को जबाब दिया था कि तमीज़ से बात कर..जबकि वो 8-8 जाने थे, और तू अकेला...बोल कहाँ से आई इतनी डेरिंग तुझमें.

जगेश – क्या बात करता है यार तू भी…? मे अकेला कहाँ था, तुम लोग भी तो थे मेरे साथ..

मे- तुझे कैसे लगा कि हम तेरे फटे में टाँग अड़ाएँगे..?

जगेश - झेन्प्ते हुए… हे हे हे…अब तू मेरी खिंचाई कर रहा है, है ना !

मे- नही मे सीरियस्ली पुच्छ रहा हूँ, तुझे कैसे लगा कि हम तेरे साथ हैं…

जगेश- तूने ही तो कहा था कि तेरे रहते हम लोगों को कोई छु भी नही सकता... तो इतना तो भरोसा था तुम लोगों पर मुझे..

मे- हॅम.. इसका मतलब तुझे मेरी बात पर भरोसा था…

जगेश - बिल्कुल ! और क्यों ना हो ! तू यारों का यार है अरुण ! इतना तो में समझ चुका हूँ तुझे इस एक साल में.

मे- तो फिर अब वो भरोसा कहाँ चला गया तेरा..? जो तूने शाम को बोला था उससे तो नही लगता कि तू मुझ पर आँख बंद करके भरोसा करता है..?

धनंजय- वो अपने कॉलेज के अंदर का मामला था भाई, अब जो हम करने की सोच रहे हैं वो एक तरह से बाहरी ताक़तों से सीधी टक्कर लेने जैसा है, और वो कितने ताक़तवर हैं हमें ये भी नही पता.

मे- एक मिनट भाई ! सोच रहे है.. मतलब ? जंग शुरू हो चुकी है मेरे भाई. तू क्या सोचता है.. ! वो लोग चुप बैठे हैं? नही वो हमारी ताक में कब्से घात लगाए बैठे हैं, तुम्हें अंदाज़ा ही नही है.

हमने उनके इस शहर के बहुत बड़े मार्केट को ब्लॉक करके रखा है, इस बात से तिलमिला गये हैं वो लोग, अब अगर हमने अपनी तरफ से कुछ नही किया तो इसमें हमारी ही ग़लती होगीमेरे भाई. 

इससे पहले कि वो लोग ये जान पाएँ की हम उनके खिलाफ कुछ करने वाले हैं, हमें पूरी ताक़त से उन्हें दबोचना होगा, और इसमें पोलीस हमारी यथासंभव मदद करेगी.

लेकिन यार ये तो बड़ा जोखिम है.. काँपते हुए बोला ऋषभ..

मे- ऋषभ के कंधे पर हाथ रखते हुए… तू घबराता क्यों है, कुछ नही होगा हमें, विस्वास रख मुझ पर, 

और एक बात गाँठ बाँध लो तुम लोग, मौत जिंदगी का एक मात्र सत्य है, जो एक दिन सबको आनी है, कोई पड़े-2 उसका इंतजार करता है, तो कोई उससे सामना करके, 
 
Back
Top