hotaks444
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सोचा था रिंकी चली गयी होगी अपनी कजिन सिस्टर के साथ, लेकिन जैसे ही मे कॉलेज के मेन गेट के बाहर रोड पे आया, रिंकी मुझे बाहर खड़ी मिली.
मे- क्यों यहाँ क्यों खड़ी हो, तुम्हारी सहेलियाँ कहाँ हैं..??
शायद वो लोग चली गयी, हमें बहुत देर हो गयी अंदर..वो बोली.
मे- कोई नही ! अच्छा रिंकी सच बताना, तुम खुश तो हो..ना..?
रिंकी- सच कहूँ, तो तुम्हारे साथ बिताया मेरा हर पल अनमोल था. उन पलों की यादों के सहारे अपना पूरा जीवन गुज़ार लूँगी. तुम अपना ख़याल रखना, और खूब मन लगा कर पढ़ना, में चाहती हूँ तुम अपने जीवन मे एक कामयाब इंसान बनो.
और हां मुझे अपना अड्रेस दे जाना, हर हफ्ते मे तुम्हें लेटर लिखूँगी, लेकिन तुम अपनी तरफ से उसका जबाब नही देना, मेरे सभी लेटर संभाल के रखोगे ठीक है.. मे चेक करूँगी जब मिलेंगे तब, समझ गये
वो मुझे लेसन देती रही, और में उसकी आँखों मे देखते हुए उसकी मन-मोहिनी बातों को बस सुनता रहा..
थोड़ी देर बाद हम नाम आँखों से एक-दूसरे से विदा हुए और चल दिए अपने-अपने घरों की ओर.
घर आकर मैने सबको अपना रिज़ल्ट दिखाया, सभी बड़े खुश थे मेरे रिज़ल्ट से, पिता जी ने पुछा कि अब क्या करना चाहते हो?
मैने कहा, में इंजीनियरिंग करना चाहता हूँ, फॉर्म भर देता हूँ, डिग्री और डिप्लोमा दोनो के लिए, किसी एक मे तो एडमिशन मिल ही जाएगा. पिता जी ने भी हामी भर दी, और बोले.
तुम जाओ और जो चाहते हो वो करो, में यहा सब संभाल लूँगा, नौकरों के सहारे.
मैने दोनो जगह यूपी टेक्निकल बोर्ड से अफिलीयेटेड इन्स्टिटूषन्स मे फॉर्म भर दिए, और तकरीबन 20 दिनो में ही मेरा इंजीनियरिंग डिग्री के लिए एडमिशन कॉल आ गया, मुझे कॉलेज घर से करीब 150 किमी दूर मिला.
मैने पिता जी को दिखाया, वो बड़े खुश हुए, और अपनी नम आँखों से मुझे गले से लगा लिया, उनकी अब उम्र भी हो चुकी थी, बहुत मेहनत की थी उन्होने अपने जीवन में सो जल्दी शरीर कमजोर पड़ने लगा था, फिर भी उन्होने मुझे इजाज़त दे दी थी.
मुझे गले लगाकर वो भर्राई आवाज़ में बोले… ईश्वर ने मेरे जीवन को सफल कर दिया, मेरे चारों बेटे पढ़ लिख गये, दो तो अपने पैरों पे खड़े हो गये,
प्रभु ने चाहा तो तुम दोनो भी अपना कुछ अच्छा कर ही लोगे, अब मेरी चिंताएँ दूर हो जाएँगे. और खूब मॅन लगाके पढ़ना मेरे बच्चे जिससे कोई भाई तुझे अपने से कम ना समझे.
फिर उन्होने चाचा से बात की,
पिता जी – राम सिंग, अब समय आ गया है, की हम लोगों को अपना काम धंधा भी अलग-अलग कर लेना चाहिए..
चाचा- ऐसा क्या हुआ भाई..??
पिता जी – अब अरुण भी बाहर पढ़ने जा रहा है, में अकेला कहाँ तक तुम लोगों के बराबर कर पाउन्गा, नौकरों का तो तुम जानते ही हो, कल को तुम्हारे बेटे कोई बात खड़ी करें उससे पहले हमें शांति पूर्वक अलग-अलग हो जाना चाहिए, और वैसे भी हम लोगों की मिसाल कायम हो गयी है पूरे इलाक़े में हमारे प्रेम भाव की तो मे चाहता हूँ वो ऐसे ही बरकरार रहे.
बात चाचा को भी सही लगी, और दो दिनो में पटवारी को बुला के खेती की माप करके, दो बराबर हिस्से कर लिए और अलग-अलग हो गये.
आने से पहले मे एक बार और रिंकी से मिलना चाहता था, लेकिन समय ही नही मिला लेकिन किसी तरह अपने कॉलेज का अड्रेस ज़रूर उस तक पहुचवा दिया.
मैने अपने ज़रूरत का समान पॅक किया और बड़ों का आशीर्वाद लेके ट्रेन पकड़ की अपने गन्तव्य स्थान के लिए.
मे- क्यों यहाँ क्यों खड़ी हो, तुम्हारी सहेलियाँ कहाँ हैं..??
शायद वो लोग चली गयी, हमें बहुत देर हो गयी अंदर..वो बोली.
मे- कोई नही ! अच्छा रिंकी सच बताना, तुम खुश तो हो..ना..?
रिंकी- सच कहूँ, तो तुम्हारे साथ बिताया मेरा हर पल अनमोल था. उन पलों की यादों के सहारे अपना पूरा जीवन गुज़ार लूँगी. तुम अपना ख़याल रखना, और खूब मन लगा कर पढ़ना, में चाहती हूँ तुम अपने जीवन मे एक कामयाब इंसान बनो.
और हां मुझे अपना अड्रेस दे जाना, हर हफ्ते मे तुम्हें लेटर लिखूँगी, लेकिन तुम अपनी तरफ से उसका जबाब नही देना, मेरे सभी लेटर संभाल के रखोगे ठीक है.. मे चेक करूँगी जब मिलेंगे तब, समझ गये
वो मुझे लेसन देती रही, और में उसकी आँखों मे देखते हुए उसकी मन-मोहिनी बातों को बस सुनता रहा..
थोड़ी देर बाद हम नाम आँखों से एक-दूसरे से विदा हुए और चल दिए अपने-अपने घरों की ओर.
घर आकर मैने सबको अपना रिज़ल्ट दिखाया, सभी बड़े खुश थे मेरे रिज़ल्ट से, पिता जी ने पुछा कि अब क्या करना चाहते हो?
मैने कहा, में इंजीनियरिंग करना चाहता हूँ, फॉर्म भर देता हूँ, डिग्री और डिप्लोमा दोनो के लिए, किसी एक मे तो एडमिशन मिल ही जाएगा. पिता जी ने भी हामी भर दी, और बोले.
तुम जाओ और जो चाहते हो वो करो, में यहा सब संभाल लूँगा, नौकरों के सहारे.
मैने दोनो जगह यूपी टेक्निकल बोर्ड से अफिलीयेटेड इन्स्टिटूषन्स मे फॉर्म भर दिए, और तकरीबन 20 दिनो में ही मेरा इंजीनियरिंग डिग्री के लिए एडमिशन कॉल आ गया, मुझे कॉलेज घर से करीब 150 किमी दूर मिला.
मैने पिता जी को दिखाया, वो बड़े खुश हुए, और अपनी नम आँखों से मुझे गले से लगा लिया, उनकी अब उम्र भी हो चुकी थी, बहुत मेहनत की थी उन्होने अपने जीवन में सो जल्दी शरीर कमजोर पड़ने लगा था, फिर भी उन्होने मुझे इजाज़त दे दी थी.
मुझे गले लगाकर वो भर्राई आवाज़ में बोले… ईश्वर ने मेरे जीवन को सफल कर दिया, मेरे चारों बेटे पढ़ लिख गये, दो तो अपने पैरों पे खड़े हो गये,
प्रभु ने चाहा तो तुम दोनो भी अपना कुछ अच्छा कर ही लोगे, अब मेरी चिंताएँ दूर हो जाएँगे. और खूब मॅन लगाके पढ़ना मेरे बच्चे जिससे कोई भाई तुझे अपने से कम ना समझे.
फिर उन्होने चाचा से बात की,
पिता जी – राम सिंग, अब समय आ गया है, की हम लोगों को अपना काम धंधा भी अलग-अलग कर लेना चाहिए..
चाचा- ऐसा क्या हुआ भाई..??
पिता जी – अब अरुण भी बाहर पढ़ने जा रहा है, में अकेला कहाँ तक तुम लोगों के बराबर कर पाउन्गा, नौकरों का तो तुम जानते ही हो, कल को तुम्हारे बेटे कोई बात खड़ी करें उससे पहले हमें शांति पूर्वक अलग-अलग हो जाना चाहिए, और वैसे भी हम लोगों की मिसाल कायम हो गयी है पूरे इलाक़े में हमारे प्रेम भाव की तो मे चाहता हूँ वो ऐसे ही बरकरार रहे.
बात चाचा को भी सही लगी, और दो दिनो में पटवारी को बुला के खेती की माप करके, दो बराबर हिस्से कर लिए और अलग-अलग हो गये.
आने से पहले मे एक बार और रिंकी से मिलना चाहता था, लेकिन समय ही नही मिला लेकिन किसी तरह अपने कॉलेज का अड्रेस ज़रूर उस तक पहुचवा दिया.
मैने अपने ज़रूरत का समान पॅक किया और बड़ों का आशीर्वाद लेके ट्रेन पकड़ की अपने गन्तव्य स्थान के लिए.