Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना - Page 3 - SexBaba
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Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

जब हमारे संगीत के टीचर ने आडिशन के लिए गाने को बोला था, तब मेरी नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं, और स्वतः ही मेरे मुँह से यही गाना निकल पड़ा.

में गाने में इतना खो गया, उसको निहारते हुए, कि और लोगों से तो केवल मुखड़ा ही सुना, में पूरा गाना ख़तम करके ही रुका.

पप्पू मास्टर साब मुँह फाडे मेरी ओर देखते ही रह गये, जब गाना ख़तम हुआ तो सभी तालियाँ बजाने लगे, सबकी तालियाँ थोड़ी देर में बंद हो गयी बजना, लेकिन एक ताली बजती रही,

जब मेरा ध्यान गया तो रिंकी मेरे गाने में खोई हुई ताली बजाए जा रही थी और नज़रें मेरी तरफ थी, जब मैने उसकी आँखों में देखा तो सॉफ-2 उनमें तारीफ दिखाई दे रही थी.

पूरे रिहर्सल के दौरान हमारी कई बार नज़रें चार हुई, दिल से एक आवाज़ सी आई कि अरुण ये लड़की तेरे लिए स्पेशल है, 

हम सभी चुने हुए लोग डेली 3 घंटे रिहर्सल करते, टीचर के एक साइड में लड़के बैठते, दूसरी साइड में लड़कियाँ.

रिंकी ने भी डुयेट के अलावा एक कोरस में भी पार्टिसिपेट किया था, अब तो ज़्यादातर हम दोनो की नज़रे टकराने लगी, 

कभी-2 तो बहुत देर तक एक दूसरे में खोए रहते थे, जब दूसरों के गाने का नंबर होता.

हम अपने दिल की बातें ज़ुबान से तो नही कर पा रहे थे लेकिन आँखें बहुत कुछ कह जाती, 

कॉलेज के बाद वो अपनी सहेलियों और अपनी कज़िन जो मेरी क्लास में ही थी उसी के साथ आती और जाती, 

घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, उसका घर भी कॉलेज से मात्र 500-600 मीटर दूर ही था.

आख़िर में पॅनल इनस्पेक्षन वाला दिन आ गया, सुबह से ही सब तैयारी में व्यस्त थे, प्रोग्राम शाम को शुरू होना था.

हमारे कॉलेज में स्टडी कॅंपस के साइड में मैं कॉलेज की बराबर जगह में टीचर्स कॉलोनी थी, जिसके पीछे की साइड में एक अमरूदो का बाग था,

अमरूदो के पेड़ इतने घने थे कि ज़मीन तक टिके हुए थे, सीज़न था तो अमरूदो के बजन से और ज़्यादा झुक जाते थे.

मौका देख कर मैने इशारे से उसको बाग में आने को बोला, तो वो थोड़ा सकुचाई, फिर में जब उधर जाने लगा, तो थोड़ी देर बाद वो भी हिम्मत जुटा कर मेरे पीछे-2 आ गई,

थोडा पेड़ों की आड़ में जाकर हम खड़े हो गये, एक दूसरे के सामने. ये पहला मौका था जब हम अकेले एक दूसरे के इतने नज़दीक थे.

रिंकी – यहाँ क्यों बुलाया मुझे, किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे लोग मेरे बारे में. उसकी आवाज़ काँप रही थी.

कंपकंपी तो मुझे भी छूट रही थी, लेकिन थोड़ा सम्भल कर उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर में बोला,

देखो रिंकी ऐसा वैसा कुछ नही है, में बस ये कहने के लिए बुलाया था, कि हमें अपने गाने को पूरे एफर्ट से गाना है, जिससे हमारी पर्फॉर्मेन्स बेस्ट रहे.

हम जानते हैं, कि हम दोनो ही अच्छा गाते हैं, लेकिन अब हमें स्टेज पर पर्फॉर्म करना है, जो कि पहली बार में हर किसी के लिए आसान नही है, हज़ारों की भीड़ हमें देख और सुन रही होगी,

सो प्लीज़ घबराना बिल्कुल नही, अगर तुम्हें घबराहट हो तो लोगों की तरफ बिल्कुल मत देखना, तुम सिर्फ़ मेरी तरफ ही ध्यान रखना, और सब कुछ अच्छा होगा.

बस इतना कह कर हम वहाँ से मैं कॅंपस में आ गये, और तैयारियों में हाथ बाँटने लगे…….



प्रोग्राम शुरू हुआ, सबसे पहले हमारे एक ड्रामे का प्ले था, इसमें मेरा छोटा सा रोल था, उसके बाद रिंकी का कोरस, जिसमे 8-10 लड़के और लड़किया ने मिलके गाया,

बीच में मेरी कब्बाली का प्रोग्राम हुआ, जिसमें में लीड गायक था, भीड़ जबर्जस्त थी,

उस समय पर रूरल एरीयाज़ में टीवी वग़ैरह तो थे नही, दूर-दूर तक हमारा इंटर कॉलेज फेम्स था, तो लोग ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में आए थे प्रोग्राम देखने.

लास्ट में मेरा और रिंकी का डुयेट हुआ, जिसमें शुरू-शुरू में वो थोड़ा झेपी, पर मैने इशारे से उसे अपने उपर फोकस रखने को कहा, तो वो मेरी आँखों में देखते हुए अपनी लाइन्स पर फोकस करने लगी,

म्युज़ीशियन म्यूज़िक बजा रहे थे, हम गाने के साथ साथ पर्फॉर्म भी कर रहे थे, जैसे बॉबी फिल्म में ऋषि केपर और डिंपल ने किया था,

प्ले इतना शानदार रहा, में और पिंकी अपने करेक्टर्स में खो से गये,

प्ले ख़तम होते ही, मंत्री महोदय तक खड़े हो कर ताली बजाने लगे, हम दोनो अभी भी एक दूसरे की बाहों में, एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले खोए हुए थे.

जब तालियों की गड़गड़ाहट बंद हुई तब हमारी तंद्रा टूटी. सबने हम दोनो को अप्रीशियेट किया, मंत्री जी ने खुद अपने हाथों से हमें फर्स्ट प्राइज़ दिया.

उसके बाद तो सभी लोगों को आभास हो गया था हमारी प्रेम कहानी का, लड़के लड़कियाँ रिंकी को मेरा नाम लेके कॉमेंट पास करते, और मुझे उसका.

जब भी हमें मौका मिलता हम पीरियड बंक करके बाग में सबसे अंत में पेड़ों की आड़ में बैठ जाते, एक दूसरे को निहारते रहते, बातें करते रहते.

कभी वो मेरी गोद में सर रख कर लेट जाती, कभी में उसकी गोद में.

हमारा प्यार और गहराइयों में पहुँचता गया, लेकिन इस प्यार में वासना का लेश मात्र भी अंश कभी नही आया.

समय गुज़रता गया, 10थ बोर्ड एग्ज़ॅम हुए, जैसे तैसे में पास हो गया, 

11थ में मैथ और बाइयालजी मे से कोई एक चूज़ करना था, मेरा इंटेरेस्ट बाइयालजी में था, लेकिन पिता जी की ज़िद मैथ, क्या करते, लेना पड़ा.

कहते हैं ना, कि समय किसी का इंतजार नही करता, लोग समय का इंतजार करते हैं, हम दोनो का प्यार भी समय के साथ-2 बढ़ता गया.

पता नही चला दो साल और कैसे निकल गये, 12थ बोर्ड के एग्ज़ॅम थे, दो महीने बाद, उससे पहले लोकल ख़तम होने थे, सो उस दौरान हमरी प्रेपरेशन लीव एक महीने की थी, 

रिंकी लोकल 11थ में थी उसके एग्ज़ॅम अपने ही कॉलेज में थे, हमारे बोर्ड के एग्ज़ॅम, दूसरे सेंटर यानी, तहसील वाले टाउन में देने थे जो कि दूर था.
 
एक दिन मौका निकाल कर हम फिर मिले, और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगे,

रिंकी चिंतित स्वर में- अरुण अब तो तुम्हारे एग्ज़ॅम हो जाएँगे उसके बाद क्या प्लान है,

मे – देखते हैं रिज़ल्ट कैसा आता है, वैसे मैने इंजीनियरिंग डिप्लोमा का सोचा है, फिर देखते हैं, क्या हो पता है समय के हिसाब से.

रिंकी – तो अब हम कभी नही मिल पाएँगे..?

मे – क्यों ? ऐसा क्यों बोल रही हो? क्यों नही मिल पाएँगे..?

रिंकी गंभीर स्वर में, तुम अगर बाहर चले जाओगे तो कैसे मिलेंगे, में तुम्हारे बिना कैसे रह पाउन्गी ?

मे – तुम 4 साल मेरा इंतजार कर सकती हो..?

रिंकी – अरुण मुझे नही लगता है कि हम कभी एक हो पाएँगे, इसलिए में एक बार तुम्हे संपूर्ण रूप से पा लेना चाहती हूँ, क्या तुम ऐसा कर सकते हो??

मे – मतलब ?? 

अरुण, हम दिल से एक दूसरे के तो हो ही चुके हैं, तो में चाहती हूँ कि तन से भी एक दूसरे के हो जाएँ, फिर जिंदगी में मिल पाए या नही ये कहते हुए रिंकी की आँखे छालछला गयी.

में उसकी आँखों मे छलकते हुए उसके जज्बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, जैसे ही मेरे ज़ज्बात उसके जज्बातों से मिले, मैने कस के उसे अपने सीने से लगा लिया.

मैने उसके माथे को चूमा और उसकी झील सी आँखों से निकले मोतियों को पीने लगा,

रिंकी की रुलाई फुट पड़ी, अरुण प्लीज़ कुछ करो ना, में तुम्हे संपूर्ण रूप से पाना लेना चाहती हूँ, फिर चाहे मुझे मौत भी आजाए तो गम नही.

मैने अपने होठ उसके होठों पे रख दिए और एक सॉफ्ट किस करते हुए कहा,

नही जान, मरे हमारे दुश्मन, ईश्वर ने चाहा तो हम एक साथ जिंदगी बिताएँगे… मैने भावुक होकर कहा.

ऐसा संभव नही हो पाएगा अरुण, ये सामाजिक बंधन, हमारे परिवारों की सामाजिक परंपरा कभी इसकी इजाज़त नही देंगी.. वो बोली.

तुम ब्राह्मण परिवार से हो में जैन, दोनो ही एक दूसरे को नही अपनाएँगे.

में सोच मे पड़ गया, … फिर कुछ सोच के.. 

मे- ठीक है, मेरा सेंटर तहसील टाउन मे है, और पेपर टाइम सुबह 7 बजे से रहेगा तो हम अपने घरों से तो रोज़ जा नही सकेंगे, हमें वहाँ रहने के लिए एक महीने रेंट पर लेना पड़ेगा.

उस बीच तुम मौका निकाल कर वहाँ आ सकती हो..?

रिंकी – उसमें कोई बड़ी बात नही है, मेरे पिता जी की कंपनी वही है, और मेरे एग्ज़ॅम के बाद छुट्टियाँ है, तो में उनके पास चली जाउन्गी.

फिर ठीक है, वही मिलते हैं और पूरा करते हैं अपना अधूरा मिलन.

में मस्त मौला, मेहनत करते करते, इतना बड़ा हुआ, लेकिन सेक्स में एबीसीडी भी नही पता था, मौहोल ही नही था मेरा, परिवार में सब बहुत बड़े-2 थे.

यारों दोस्तों में भी सभी लफंदर थे, मार-पीट में माहिर लेकिन सेक्स से कोसों दूर रहते थे, 

एरेक्टेड लंड कैसा होता है ज़्यादा पता नही था, तो औरत के शरीर के बारे में तो बहुत ज़्यादा पता ही क्या होगा.

सबसे बड़ा कारण था घर के संस्कार, गीता भागवत पढ़ने वाला माहौल था, तो सेक्स भी शादी-सुदाओं तक ही सीमित था, 

होता होगा, करते होंगे लोग लेकिन चूँकि अपना कोई इंटेरेस्ट नही था, तो ज़्यादा क्यों खोपड़ा लगाए.

कभी-कभी सुबह अंडरवेर कड़क सा लगता था, जैसे कि चासनी लग्के सुख गयी हो, दोस्तों से पुछा भी तब पता लगा कि ये स्वाभाविक है, 

इसको नाइट फॉल कहते हैं, शरीर में जब वीर्य की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, तो सपने में कुछ दिखाई देता है, तो निकल भी जाता है, इसमें चिंता की कोई बात नही है,

मैने कहा, लेकिन मुझे तो कोई सपना नही आया फिर.. दोस्त- तुझे याद नही होगा, आता है, मुझे तो हफ्ते में कई बार हो जाता है.

वैसे तू चाहे तो किसी लड़की या औरत को पटा ले और उसको चोद दे तो फिर नही होगा.

मे कहा ना यार इस चक्कर में नही पड़ना, जब ज़्यादा ज़रूरत होगी तब देखा जाएगा, वैसे भी इन कामों के लिए समय चाहिए, जो अपने पास नही है.

तो फिर एग्ज़ॅम की तैयारी शुरू हो गयी, 1 महीना ही बचा था, पिता जी ने भी एक मजदूर और रखलिया और मुझे सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा,

में भी मन लगाके पढ़ाई मे जुट गया, क्योंकि बिना अच्छे मार्क्स लिए, कहीं इंजीनियरिंग डिग्री या डिप्लोमा में एडमीशन संभव नही था तो सीरियस्ली लग गया.

एग्ज़ॅम से 4 दिन पहले मेरे चाचा दी ग्रेट, मुझे लेके तहसील टाउन पहुँचे और अपने पहचान से एक माँ के मंदिर मे साइड का कमरा खाली था वो मुझे दे दिया रहने को.

कमरा क्या, पूरा हॉल जैसा, आगे बौंड्री वॉल से घिरा हुआ काफ़ी बड़ा आँगन जैसा.

एग्ज़ॅम से एक दिन पहले में वहाँ पहुँच गया, बिस्तर-इस्तर नीचे ज़मीन पर ही लगा लिया, अब एक महीने की ही बात थी, उसमें से भी बीच-2 मे लंबी छुट्टियाँ थी तो घर चले जाना था, तो क्या पलन्ग-वलन्ग का जुगाड़ करते.

वैसे मंदिर के पुजारी जी ने तो बोला भी की, चारपाई चाहिए तो है हमारे पास से ले-लेना, मेने कहा कोई ज़रूरत नही है, अपने को तो पढ़ना ही है ना.

एग्ज़ॅम शुरू हुआ, पहला ही पेपर साला मैथ का, जिसमे गान्ड फटी पड़ी थी, तो डर था कि पता नही कैसा होगा.

माँ की कृपा से ईज़ी पेपर आया और मेरी एक्सपेक्टेशन से अच्छा गया.

रिंकी को में आने से पहले अड्रेस बता के आया था, में जैसे ही पेपर देके वापस आया मुझे मंदिर मे रिंकी मिल गयी,

वाउ! डबल खुशी… पेपर भी अच्छा, और अपनी जान भी अपने पास.

मंदिर मे दोपहर के समय ज़्यादा भीड़ नही थी, पुजारी जी माँ का भोग वग़ैरह लगा के अपने आराम करने मंदिर के पीछे बने हुए कमरे मे चले गये.

हम दोनो दर्शन करके अपने रूम पर आ गये, मैने उसे अपनी बाहों मे कस लिया और पूछा..

कैसे क्या चल रहा है, यहाँ का क्या हिसाब किताब है, तुम्हारे पिता जी का.

रिंकी – पिता जी वैसे तो यहाँ रहते नही है, लेकिन कभी-कभार रुकते हैं तो कंपनी ने ही क्वार्टर दे रहा है, उसी में रुकते हैं.

मैने कहा कि छुट्टियाँ हैं तो कुछ दिन में हवा पानी बदलने के लिया आपके पास आ जाओ, तो वो तैयार हो गये, कि ठीक है, 10-15 दिन रह लो.

दिन में वो सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक फॅक्टरी मे ही रहते हैं. (रिंकी के पिता एक ग्लास फॅक्टरी में मॅनेजर हैं).
 
रिंकी मेरे लिए खाना भी लेके आई थी, मे कहा, ये तो मस्त हो गया यार, माने पूरा दिन अपना… 

मैने रिंकी का लाया हुआ खाना खाया, और फिर हम नीचे लगे हुए बिस्तर पर एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए, एक दूसरे की आँखों मे देखते हुए बातें करने लगे….

मैने अपनी ओर खींच कर रिंकी को गोद में बिठा लिया, क्रॉस करके उसके हाथों की उंगलिया मैने अपने हाथों की उंगलियों फँसा ली, उसका सर मेरे कंधे पर था,

दोनो ही अनाड़ी तो थे ही, जो भी हो रहा था, स्वतः ही होता चला जा रहा था,

रिंकी मेरे कान की लौ अपनी जीभ से टच करती हुई बोली… अरुण आइ लव यू, में तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ, 

मे – आइ लव यू टू जान, और उसे कस्के अपने बाहों मे जकड लिया, स्वतः ही मेरे होंठ उसके पतले-पतले, गुलाबी रसीले होंठो पर टिक गये, 

हम एक दूसरे के होठों का रस्पान करने लगे. रिंकी ने मेरे हाथों को पकड़ अपने उरोजो पर रख दिया, 

में धीरे-2 उसके दशहरी आम जैसे उरोजो को सहलाने लगा,…जो अब रस से लबालब हो चुके थे इन दो सालों में.

आअहह… अरुण, थोड़ा ज़ोर्से मस्लो इनको, रिंकी उत्तेजना मे भरके बोली,

मेरे हाथ अब उसकी शर्ट के बटन खोलने मे जुट गये, शर्ट सामने से खुलते ही जो नज़ारा मेरी आँखों ने पहली बार देखा, वो मेरे लिए अद्भुत था, 

रिंकी बिना ब्रा के थी, उसके डाल से पके हुए दशहरी आम जैसे एकदम गोरे दूध जैसे उरोज, बिल्कुल सीधे, ज़रा भी लटकन नही, 

एकदम लाल-भूरे रंग के मात्र 1 या 1.5सेमी की गोलाई लिए आधे इंच के करीब उठे हुए उसके चुचक लगता था जैसे दो बर्फ के गोलों पर किस्मिस चिपका दिए हों,

में तो उसके उरोजो की सुंदरता मे ही खो गया, रिंकी की सोख आवाज़ सुनके होश आया,

क्या देख रहे हो अरुण, कभी किसी के देखे नही क्या??? 

मे – नही,… सच मे रिंकी मैने आजतक किसी के उरोज कम-से-कम इस तरह तो नही देखे, 

कभी-कभार ग़लती से किसी औरत को अपने बच्चे को दूध पिलाते दिख गये हों, या बचपन मे अपनी माँ का दूध पीते हुए…

कैसे लगे तुम्हें ये..? 

अब क्या बोलता उसे, बस देखे ही जा रहा था…,

जी करता है, चूस कर इन आमों का रस निकल लूं, मे बोला.

तो निकालो ना…, देख क्या रहे हो उल्लुओं की तरह, उसकी आवाज़ मे शोखी थी..

झपट ही पड़ा में उन दोनो आमों पर, लपक के उसके बाए उरोज को मुँह मे भर लिया और, दूसरे को हाथ से मसल्ने लगा.

आहह…. अरुण ….. हहाआअन्न ऐसे ही करो, और ज़ोर ज़ोर से चूसो… दोनो को… आअहह…. म्म्माोआ… बह..अयू..त्त्त…आ..कच्छाा.. लग रहाआ.. है..

में और ज़ोर ज़ोर से उसकी चुचि को पीने लगा बच्चे की तरह, रिंकी का एक हाथ स्वतः ही मेरे बालों मे फिरने लगा, जैसे माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते समय फेरती है…

थोड़ी देर के बाद रिंकी ने अपनी दूसरी चुचि मेरे मुँह मे ठूंस दी.. में अब उसकी राइट चुचि को पीने लगा, और लेफ्ट को मसलने लगा..

रिंकी सिसकियाँ भर रही थी, मुझे भी बहुत मज़ा आरहा था, मेरा लंड फूल के कुप्पा हो गया था, और रिंकी के कूल्हे मे घुसा ही जा रहा था,

रिंकी ने अपना हाथ बढ़ा कर उसे पाजामे के उपर से ही पकड़ लिया और सहलाते हुए बोली…

इसे दिखाओ ना अरुण… मे कहा खुद ही देखले मेरी जान, अब तो ये तेरे लिए ही है, जो जी मे आए वो कर.

हम दोनो खड़े हो गये, उसने मेरे पाजामे का नाडा खोल दिया और मे अंडरवेर मे आगया. वो उसे अंडरवेर के उपर से ही मसल्ने लगी.

मैने उसकी शर्ट को निकाल फेंका, और उसके ट्रौसर की जीप खींच के नीचे कर दी, अब वो मात्र पेंटी मे थी, गुलाबी रंग की पेंटी आगे से गीली हो चुकी थी.

खड़े-2 हम एकदुसरे के होठों को चूसने लगे, मेरा शेर उसकी नाभि के उपर रगड़ रहा था, जिसकी वजह से रिंकी को मस्ती आरहि थी, और उसने घोड़े की लगाम की तरह उसे थाम लिया.

मेरे हाथ पेंटी के उपर से ही उसकी पिंकी को रगड़ने लगे. रसभरी पिंकी मे सुरसूराहट होने लगी और वो और ज़्यादा रस छोड़ने लगी.

मेरा शेर अब बेकाबू होने लगा था, और वो अपनी मांद मे जाने के लिए तड़पने लगा, उसकी मनसा जान, रिंकी ने उसे अंडरवेर की क़ैद से आज़ाद कर लिया और मेरी आँखों मे देखते हुए उसे मसल्ने लगी.

मैने भी हाथ नीचे करके उसकी पेंटी को सरका दिया और उसकी पिंकी को मुट्ठी में कस दिया.

आआययईीीईईई….ससिईईईईईईईयाअहह…… अरुण क्या करते हूऊ, प्लस्सस्स…आईीइसस्साआ….म्मात्त्ट.. कार्ररूव…न्नाअ… आआहह …मईए..म्माअर्र्र्ृिइ…..हहाअययययईए….म्म्माछआअ….उउउऊऊहह

और मेरा हाथ पूरा भिगो दिया उसकी प्यारी मुनिया ने.

रिंकी की मस्ती मे दुबई नशीली आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे, मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल था, दोनो की साँसें भारी होती जारही थी.

हम दोनो की आँखों मे अभी तक वासना का कोई नामो-निशान नही था, थी तो बस एक चाहत, एक समर्पण, एक दूसरे खो जाने की चाह बस...

अरुण प्लीज़ अब कुछ करो ना..प्लस्सस्स.. अब और सब्र नही होता मुझसे, समा जाओ मुझमे मेरे प्रियतम… मेरे हमदम…........

रिंकी बिस्तर पे लेट गयी, और मे उसके साइड मे बैठके उसके पूरे शरीर को जी भरके देखने लगा, 

जैसे ही मेरी नज़र पहली बार उसके रस सागर पर पड़ी, अपनी सुध-बुध खो बैठा,

उसकी मुनिया हल्के-2 बालों के बीच अपने होठों को भीछे बड़ी प्यारी सी लगी, कोई 2-2.5” लंबी सेंटर मे एक दरार सी, मानो डेल्टा सा हो जिसमें दरार पड़ गयी हो.

दरार के अंतिम छोर पर उसके कामरस के हल्के सफेद मोटी से टपक रहे थे.

मेरा हाथ जैसे ही उसकी रस से भरी प्यारी सी मुनिया के उपर गया, रिंकी ने कस्के अपनी जंघे भीच ली, और उसके मुँह से एक लंबी सी सिसकी निकल पड़ी.

मैने धीरे-2 उसकी मुनिया को सहलाया, और फिर अपनी मध्यमा उंगली को उसके चीरे मे डालने की कोशिश की, उसकी टाँगे मेरे हाथ पर कस्ति जा रही थी, 

फिर में उठाके उसकी टाँगों के बीच मे आ गया, और ज़ोर लगा के उसकी टाँगों को खोला, 

शरमा कर रिंकी ने अपना मुँह एक तरफ को करके आँखों को बाजू से ढक लिया,

उसके निकलते कमरस को चखने का मन किया मेरा, सो मैने अपनी जीभ को दरार के अंतिम सिरे से निकल रहे कामरस को चाट लिया, और फिर अपनी पूरी जीभ को उपर तक लेगया.

आअहह… अरुण, प्लस्सस… ऐसा मत करूऊ…. उउऊवहााहह…ईए तूमम..क्क्याअ…क्कार्र…र्रााहीई…हहूओ…..ससिईईई…आअहनन्न…

में अपनी धुन मे लगा था, उसकी सिसकियों का मज़ा लेते हुए, मैने अपने अंगूठों की मदद से उसके योनिमुख को खोला…

आअहह… क्या नज़ारा था, एकदम गुलाबी रंग की कली सी खिल रही हो मानो…फूल बनाने के लिए…, उपरी भाग पर एक चिड़िया की चोच जैसी उसकी क्लोरिटस, 

अपनी खुरदरी जीभ से उसके अंदरूनी गुलाबी भाग को रगड़ दिया… 

रिंकी तो मानो कहीं बादलों मे दूर उड़ चली, उसकी कमर स्वतः ही इधर-उधर, उपर-नीचे डॅन्स करने लगी.

उत्सुकतावस अपनी जीभ को उसकी क्लोरिटस से भिड़ा दिया, जैसे ही वो थोड़ा बाहर को निकली हल्के से अपने दाँतों के बीच पकड़ लिया उसे, साथ साथ जीभ से चाटता भी जा रहा था.

तर्जनी उंगली से उसके 5-6एमएम दिया के सुराख को कुरेदने लगा, मुश्किल से दो मिनूट लगे कि रिंकी की कमर लगभग 1 फीट उपर की तरफ उठ गई, 

उसका पूरा शरीर बुरी तरह झटके खाने लगा, और उसने चीख मारते हुए ढेर सारा कामर्स छोड़ दिया, जिसे में स्वाद लेकर चाट गया.

करीब 30 सेक के बाद उसकी कमर ने ज़मीन पर लॅंड किया, रिंकी बुरी तरह हाँफ रही थी, मानो मीलों की दौड़ लगाके आई हो.

मैने अपना चेहरा उपर किया और उसको पुछा, क्या हुआ था रिंकी तुम्हें ? क्यों चीखी..??

ऑश…अरुण, इट वाज़ अमेज़िंग, मुझे नही पता था कि चाटने से भी इतना सुख मिल सकता है, क्या तुम्हे पता था ये सब,

मे- नही तो, में तो… बस.. इच्छा हुई और अपने आप होता चला गया.. कैसा लगा तुम्हे..??

मत पुछो, कैसा लगा..?? में बता नही सकती, बस महसूस कर सकती हूँ, स्वर्ग की अगर कोई अनुभूति होती है, तो इससे बढ़के तो नही होगी.

में उसके बाजू मे लेट गया, उसने मेरे सीने पर अपना सर रखलिया, और मेरे लंड को हाथ में पकड़ कर सहलाने और मसल्ने लगी,

मेरा जंग बहादुर तो पहले से ही हुंकार भर रहा था, उसके कोमल हाथ मे आते ही बेकाबू होने लगा…

रिंकी अब बस बहुत हो गया, अब मेरे से नही सहन होगा… जल्दी कुछ करो..?

में क्या करूँ ? वो बोली, …जो भी करना है, तुम्हे ही करना है, 

मैने फ़ौरन उसकी टाँगों को चौड़ा किया, और उनको अपनी जांघों पे रखके अपने बेकाबू लंड को उसकी लिस्लिसि गुलाबो के उपर रगड़ने लगा, 

दोनो हाथों के अंगूठे से उसकी छोटी सी मुनिया की फांकों को खोला और अपना लंड उसके छोटे से सुराख के उपरे रखके दबा दिया,

चूत बहुत चिकनी हो रही थी उसके रस से, सो लंड उपर को फिसलता चला गया, 
और जाके उसकी चोंच से जा भिड़ा,

आआययईीीई…. क्या करते हो मेरे अनाड़ी बलम, यहाँ नही, नीचे के छेद मे डालो,,,,

वही तो किया था, लेकिन ये साला उपर को सरक गया में क्या करूँ..

तो हाथ मे पकड़ के डालो, वो जैसे मुझे इन्स्ट्रक्षन दे रही थी.

मैने अपने मूसल महाराज को हाथ मे जकड़ा और दूसरे हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगली से उसकी मुनिया की फांकों को खोला और भिड़ा दिया अपने टमाटर जैसे सुपाडे को उसके सुराख पर,

हल्का सा धक्का मारते ही सुपाडा उसकी सन्करि गली के द्वार मे फिट हो गया.

अब मुझे पकड़ने की ज़रूरत नही थी, रिंकी मीठे दर्द युक्त मज़े मे आँखें बंद किए पड़ी थी, आनेवाले अन्भिग्य पलों के इंतजार मे.

मैने थोड़ा सा अपनी कमर को और धकेला आगे को, तो रिंकी के मुँह से एक चीख निकल पड़ी, साथ ही मुझे भी दर्द का एहसास हुआ अपने सुपाडे के निचले हिस्से में.

क्या हुआ रिंकी..? मैने पुछा उसको, ….अगर नही हो पा रहा तो निकाल लूँ इसे बाहर……
वो तुरंत बोली, नही… बिल्कुल नही, तुम मेरी चिंता मत करो, आगे बढ़ो.

मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरा सुपाडा किसी प्लॅटफार्म पे रेस्ट कर गया हो, और उसके आगे का रास्ता ब्लॉक हो. 

ये शायद उसकी झिल्ली थी, जो मेरे लंड को आगे जाने से रोक रही थी, 

मैने अपने हाथों को ज़मीन पे जमाया, उसके दोनो बगलों से, और एक कस्के धक्का देदिया…..
हम दोनो के ही मुँह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी, मुझे लगा जैसे मेरा लंड फट गया हो, किसी दीवार की रगड़ से,

रिंकी का तो और ही बुरा हाल था, वो अपने चेहरे को इधर से उधर पटक रही थी, मारे दर्द के उसकी कजरारी आँखों से झर-झर पानी बह रहा था,

बेड शीट को अपनी मुट्ठी में जकड लिया,…और अपने निचले होंठ को दाँतों से चवा डाला…

कितनी ही देर मे दम साढे यूही पड़ा रहा, जब कुछ रिलॅक्स फील हुआ, तो मैने रिंकी से फिर पुछा, जान ! बहुत दर्द हो रहा है ?

वो बहुत बहादुर निकली, और कराहते हुए बोली…ये तो पहली बार सबको ही होता है अरुण, तुम उसकी चिंता मत करो, धीरे-2 अंदर बाहर करो और आगे बढ़ते रहो.

अभी तक मेरा शेर गुफा मे आधे रास्ते तक ही पहुच पाया था,
 
में हल्के हल्के अपनी कमर को मूव करते हुए, बड़े प्यार से धक्के लगाने लगा, जैसे ही मैने अपने लंड को बाहर खीचा, रिंकी की कराह निकल गयी,

फिर धीरे से अंदर किया, उतना ही और फिर बाहर, 2-3 मिनट तक ऐसे ही किया, तो रिंकी को कुछ मज़ा आनेलगा, और उसने अपनी कमर चलाना शुरू किया,

ये सिग्नल था मेरे लिए और आगे का रास्ता तय करने का, मैने दाँत भीच कर एक और कस्के स्ट्रोक जमा ही दिया, और पूरा शेर गुफा के अंदर, दोनो पहरेदार दरवाजे पर सॅट गये.

लेकिन फिर से हम दोनो की चीख निकल गयी, मुझे लगा कि मेरे लंड का निचला हिस्सा फट गया शायद.

हम दोनो दर्द को पीने के कारण हाफने लगे, रिंकी का सर उपर को उठ गया, और निचला होठ दाँतों से काटने के कारण उसमें से खून झलकने लगा, गले की मासपेशियों मे खिचाव आ गया.

मैने दर्द कम करने की गरज से रिंकी के होठों को चूसना शुरू कर दिया, और साथ-साथ मे उसके उरोजो को मसलने लगा, 

करीब 4-5 मिनट की मेरी इन कोशिशों के बाद, रिंकी का दर्द कम होने लगा, और मेरी आँखों मे देखकर आगे बढ़ने का इशारा किया,

धीरे-धीरे, मैने अपनी कमर को आगे-पीछे करना शुरू किया, शुरू के एक-दो धक्कों में तो दर्द का एहसास हुआ, लेकिन फिर मज़ा भी उसमे शामिल होने लगा, तो धक्कों मे स्वतः ही तेज़ी आने लगी.

रिंकी के मुँह से अब कराहों के स्थान पर सिसकारियाँ निकलने लगी, और वो मुझे और तेज़ी से धक्के लगाने को उकसाने लगी,

अब हमारे दर्द ने पूरी तरह तौबा करली थी, अब तो बस दीन-दुनियाँ से बेख़बर, हम दोनो दो प्रेमी चल पड़े अपनी सुहानी और सुखद मंज़िल को पाने..

रिंकी की चूत पूरी तरह से मेरे लंड को जगह दे चुकी थी, और उसने उसके स्वागत मे रास्ते को छिड़काव करके सुगम बना दिया था, 

सिसकियों की गति भी धक्कों की गति से तालमेल मिलाने लगी थी, अब तो बस इंतजार था कि कब मंज़िल पर पहुँचें.

और मंज़िल आही गयी, रिंकी का शरीर मेरे तेज धक्कों की परवाह किए बगैर अकड़ने लगा और उसकी कमर उपर उठाने लगी, उसके पैरों ने मेरी गान्ड को जकड़ना शुरू कर दिया और कसने लगे.

आआहह…..ऊऊओह…..हहूऊंम्म…श अरुण… हाईए….ज़ोर्से…और जोर्र्र से …. चोदो मुझे… तेजज्ज़…अओउर्र्र..त्टीज्जज्ज…आआईयईईईईई….म्म्मा आआ….म्म्मीेईगग्ाआयईीई….

और उसने मुझे कस्के जाकड़ लिया, में भी चरम पे पहुँच चुका था, बावजूद उसके कसने के मैने कस्के दो-तीन जबर्जस्त सुलेमानी धक़्की मारे..

मुझे लगा जैसे कोई करेंट सा मेरे अंडों से निकल के बहता हुआ लंड के रास्ते बाहर आरहा हो और, 1,2,3… चूत मे एक के बाद एक कई देर तक पिचकारी सी चलती रही, और चूत ओवरफ्लो होने लगी.

जब पूरी मॅगज़ीन खाली हो गयी, तो में रिंकी के उपर पसर गया, और भैंसे की तरह हाँफने लगा, दोनो पसीने से सराबोर हो चुके थे, कोई होश नही रहा.

10 मिनट तक में यूही उसके उपर पड़ा रहा, लंड उसकी ताज़ी फटी रामप्यारी मे ही था,

ताज्जुब की बात थी, वो बेचारी नाज़ुक कली दुबली पतली सी अपने से डेढ़गुने वजन को सहन कर गयी.

जब में लुढ़क के उसके बराबर मे लेट गया, तो उसने अपना सर मेरी छाती पे टिका लिया, एक हाथ और टाँग मेरे उपर रख कर आँखें बंद करके लेट गयी, 

हमें कोई होश नही रहा, लगभग नींद में ही चले गये, 
कोई आधे घंटे के बाद में उठा, धीरे से उसके हाथ और पैर को अपने उपर से अलग किया,

वो ज्यों की त्यों सीधी लेटी रह गयी, में उठा तो देखा बिस्तर लाल सुर्ख हो गया था, मेरे लंड और उसकी चूत पर भी खून लगा हुआ था,

मैने जाके अपने लंड को पानी से सॉफ किया, और देखा तो मेरे सुपाडे के नीचे की तरफ की स्किन जो लौडे से जुड़ी होती है, वो फट चुकी थी, 

एक तरह से मेरी भी सील टूट गयी थी, मुझे कुछ नही दिखा तो अपना हेर आयिल ही लौडे की फटी चमड़ी पर लगा लिया.

फिर मैने एक तौलिया गीली करके रिंकी की टाँगों को चौड़ी करके उसकी रामप्यरी को सॉफ करने लगा, तो रिंकी चोंक के उठने लगी, मैने उसे लेटे रहने को कहा, और उसको सॉफ करने लगा, 

वो मेरी तरफ बड़े प्यार से देख रही थी, जब मैने उसकी भी सफाई करदी, तब वो मेरे गले से लिपट गयी, और खुशी के मारे उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े…

ओह ! अरुण तुम कितने अच्छे हो… में बहुत खुश हूँ जो मुझे तुम जैसा केरिंग साथी मेरी जिंदगी में आया.

आज मेरे जीवन की सबसे बड़ी तमन्ना पूरी कर दी तुमने, आइ लव यू अरुण, अब मुझे कोई गुम नही चाहे जियू या मरु…

क्यों बार-बार मरने की बात करती हो यार..? में थोड़ा तेज से बोला, तो बो फिरसे मेरे सीने से लिपट गयी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी..

तुम नही जानते अरुण हम हमेशा एक साथ कभी नही रह पाएँगे, और में तुम्हारे बिना जी नही पाउन्गी.

छोड़ो ये सब समय पर, मैने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा. अभी तो हम साथ हैं ना, जब तक हैं अपनी जिंदगी अपनी तरह से जी लेते हैं, 

अपने वर्तमान को भविष्य की चिंता मे क्यों बर्बाद करें, मेरी बातों का उसपर तुरंत असर हुआ, और उसने अपने होंठ मेरे होठों पर चिपका दिए,

एक बार फिरसे हम एक दूसरे में खो गये, कितनी देर तक एकदुसरे को चूमते, चाटते रहे…

एक बार फिरसे में उसके रस सागर मे गोते लगाने को उतावला हो उठा, मेरा शेर तन कर खड़ा हो गया, और झटके देने लगा, कभी-2 तो पेट तक टक्कर देने लगा.

अगर आपने अनुभव किया हो, दूसरी बार में लौडे मे एरॅक्षन जल्दी और जबरदस्त होता है, 
 
मैने नीचे आकर फिर उसकी यौनिमुख को खोलकर जीभ फिराई… तो रिंकी ने सिसकी लेते हुए मुझे उपर को खीचा और बोली..

नही अरुण तुम ये मत करो, मुझे शर्म सी महसूस होती है.. 

मे- क्यों ? तो वो बोली..

मुझे ऐसा फील होता है, जैसे तुम मेरे गुलाम हो,

मेने कहा… इसमे क्या शक है मे तो अब तेरे इस रस सागर का गुलाम ही हो गया हूँ मेरी हुष्ण पारी.

नही तुम गुलाम नही, मेरे दिल के राजा हो, और में तुम्हारी दासी.

मे- तो फिर दासी वाला काम करो…., हुकुम करो मेरे सरताज, ये दासी तुरंत बजा लाएगी, शोखी भरे स्वर मे बोली रिंकी.

में चाहता हूँ कि तुम अपने श्रीमुख से मेरे इस शेर को चुमो, चाटो और चूसो…

नही ये मुझसे नही होगा, ऐसी गंदी जगह पर तुम्हारा भी मुँह लगाना मुझे अच्छा नही लगा.

गंदी जगह…. ? क्या बात कर रहो ? ये और गंदी जगह, अरे मेरी जान जो चीज़ ईश्वर ने सृष्ठी के निर्माण के लिए बनाई है, उसे गंदा कैसे कह सकती हो..?

इन्ही की वजह से 1 के 4 या उससे भी ज़यादा होते हैं.

फिर भी मेरा मन नही करता, मे कहा ठीक है, जो तुम्हारा मन करे वैसा करो..

उसने मेरे लौडे को जो स्टील की तरह कड़क हो गया, और भट्टी की तरह गरम हो रहा था हाथ मे लिया और सहलाने लगी,

फिर उसकी चमड़ी को पीछे खींच कर सुपाडे को देखने लगी, थोड़ी देर अपने हाथ से आगे-पीछे किया तो वो और कड़क हो गया, और मेरे प्री-कम की एक बूँद उसके छेद पर आ गई.

पता नही रिंकी ने क्या सोच कर नीचे अपना मुँह करके जीभ को बाहर निकाला और बड़े प्यार से उस बूँद को चाट लिया….

सीईईईई…..आअहह… रिंकी… कैसा लगा मेरा स्वाद..??

रिंकी…वाउ ये तो बड़ा टेस्टी है, और फिर उसने मेरे पूरे खुले हुए सुपाडे को अपने मुँह मे गटक लिया…

में मन ही मन खुश हो गया, पर प्रकट मे बोला… अरे-अरे रिंकी ये क्या कर रही हो, गंदी चीज़ को मुँह मे डाल लिया तुमने तो…

वो मेरी तरफ नज़र भर देखी और मुस्कराई, लेकिन लंड को मुँह से बाहर नही निकाला…

अब वो जितना संभव हो सका उसने अंदर लिया और चूसने लगी.. साथ-2 हाथ से सहलाती भी जा रही थी.

मेरा मज़े के मारे, बुरा हाल था, और आँखे बंद हो गयी….. 



अब मुझसे सबर नही हो रहा था, तो उसके कंधे पकड़ के अपने उपर खींच लिया, अब वो मेरे दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी,

में भी गान्ड टिका कर बैठ गया और उसे अपनी गोद मे बिठा लिया, फिरसे होठ चुसाइ शुरू होगयि, और दोनो हाथों ने उसके आमों को कब्ज़े मे लेलिया.

एक बार पूरे ज़ोर से उसके मुम्मों को मसल डाला मैने, आआयययययीीईई…..उउउऊओह…. अरुण ज़ोर से नही प्लस्सस्स… दर्द होता है…

फिर्भी मे उन्हें थोड़े हल्के हाथों से मींजता ही रहा, उसकी सफेद गोरी चुचिया लाल सुर्ख हो गयी, और निपल एकदम कड़क हो गये, 

मैने आव ना देखा ताव, अपने अंगूठे और उंगिलयों मे पकड़ के उसके दोनो निपल को बड़ी बेरहमी से मरोड़ दिया…

आआआययययययीीईईईईई……उूुुउउऊऊओह….म्म्मा आअम्म्मिईीई…. हहआयईईए… मरररर…ग्गगाआययईीीई…..द्द्धहीएरररीईए….प्लस्सस्स…

फिर अपने मुँह मे भरके बारी-2 से चूसने लगा… रिंकी इस दौरान एक बार झाड़ चुकी थी…

फिर मैने उसको ज़मीन पर घुटने टेक का बैठने को कहा, और उसकी कमर को उपर करके मेरे लंड के उपर बैठने को कहा, 
 
रिंकी समझ गयी, और उसने अपनी रामप्यारी के सुराख को लंड के उपर सेट करके धीरे-2 बैठने लगी, 

अभी आधा ही अंदर हुआ कि वो चिहुक कर उठ गयी, 

मे- क्या हुआ..?

बोली दर्द होता है मुझसे नही हो पा रहा.. तुम्ही कुछ करो..

मैने झटके से उसे नीचे किया, क्योंकि अब रुकना असंभव हो रहा था, और अपने जंग बहादुर को उसके रस सागर के मुंहाने पे फिट करके एक झटका दिया…

लंड तो झटके में आधी मंज़िल तय कर गया, लेकिन रिंकी की चीख निकल गयी और उसकी आँखों से खारा पानी बाहर आने लगा,

धीरे-2 आधे लंड से ही उसको चोदता रहा, फिर एक झटका मार कर पूरा डाल दिया,

दर्द से कराही रिंकी लेकिन मैने अब रुकना मुआसिब नही समझा और धीरे-2 लयबद्ध तरीके से धक्के देता रहा, 

थोड़ी ही देर में रिंकी की कराहें मस्ती भरी सिसकियों मे बदल गयी..

चुदाई अपनी फूल स्पीड मे शुरू हो चुकी थी… कोई एक दूसरे से हारने को तैयार नही था, 

मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था, रिंकी की चूत से रस्धार लगातार जारी थी, जिसकी वजह से कमरे मे फुकछ-फुकछ की आवाज़ें, और जांघों से जांघों की थपकन गूँज रही थी.

तकरीबन 20-25 मीं की धमाकेदार चुदाई के बाद, आख़िर वो समय आही गया, और हम दोनो अपने चरम सुख को पा गये.

रिंकी की गुलब्बो का थोड़ा मुँह सूजा हुआ था, उधर मेरे जंग बहादुर भी कुछ मुँह फुलाए से दिखे. अब इतना तो होना ही था, मज़े भी तो इन्होने ही किए.

शाम के 6 बजने वाले थे, फ्रेश हुए, कपड़े बगरह पहने और बाहर को चल दिए, रिंकी को चलने मे थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, उसे अभी भी दर्द था,

बाहर आकर मेडिकल स्टोर से पेन किल्लर और एंटी-प्रेग्नेन्सी डोस उसको दिलाया, 

एक चाइ की दुकान से चाइ पीके थोड़ा मार्केट घूमे, रिंकी जाने लगी अपने घर, तो मैने उसको कल कितने बजे मिलना है पुछा,

कह नही सकती, कल क्या हालत रहती है, आ पाउन्गी या नही वो बोली… और रिक्शे मे बैठ के चली गयी,

में थोड़ी देर और इधर-उधर भटका, एक होटल मे खाना खाया, और आके अपने रूम में लेट गया, थकान सी महसूस हो रही थी सो आँख लग गयी.

जब मेरी आँख खुली तो सुबह के 7 बज चुके थे..वो तो अच्छा था कि आज पेपर का गॅप था वरना फटके हाथ में ही आजाती.

उस दिन रिंकी नही आई, दूसरे दिन पेपर था, बाइयालजी का, तो बैठ गया पढ़ने, जम के पढ़ाई की और सुबह उठके पेपर देने गया, 

पेपर देखते ही मेरा दिन बन गया, मेरे हिसाब से पेपर ईज़ी ही लगा, 

पोने दो घंटे में पेपर लिख दिया, और 15 मे रिविषन मे लगाए.

लौटने लगा मस्ती मे अपने कमरे की तरफ, ये सोचते हुए, कि अब तो 5 दिन का गॅप है, रिंकी भी यही है, तो अपनी हर दिन होली और रात दीवाली होगी..

कमरे पे आके कपड़े चेंज किए और थोड़ा आँख बंद करके लेटा ही था की रिंकी आ गई, और आते ही झूल गयी मेरे गले मे बाहें डालके.

इतनी प्यारी लग रही थी मेरी जान, मानो कोई स्वर्ग की अप्सरा धरती पर उतर आई हो…

में उसकी खूबसूरती मे खो गया, आज वो एक लूज सा सिल्क का कुर्ता और एक पिंडलियों तक की लोंग स्कर्ट पहने थी.

अचानक मेरे मुँह से रफ़ी साब का ये गाना निकल पड़ा…




बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया !
सितारो रागिनी गाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया है !!
 
वो खिलाकर हंस पड़ी, मानो कहीं दूर चिड़ियों ने चहचाया हो…

कल क्यों नही आई..?? मैने पुछा उसे, वैसे मुझे पता था कारण..

आने लायक छोड़ा था तुमने परसों ? और अगर किसी तरह आ भी जाती तो जाने लायक नही रहती. पूरे दिन दुख़्ता रहा मेरा बदन. कितनी बेदर्दी से रोंदा था मुझे. बहुत बेदर्दी हो तुम सच मे.

तो फिर आज क्यों आई, अपने इस बेदर्दी के पास..?

तुम्हारा दिया हुआ दर्द भी अब मुझे दवा लगने लगा है, सोचती हूँ जब तुम नही मिलोगे तो कैसे कटेंगे मेरे दिन..?

जैसे पहले कटते थे… मे बोला.

पहले की बात और थी अरुण, तब हम मिले नही थे ना… वो रुआंसे स्वर मे बोली.

कुछ दिन मुश्किल होगी, फिर सब्र होने लगेगा.. मैने उसे समझाते हुए कहा.

हां वो तो करना ही पड़ेगा, और कोई चारा भी तो नही.. जैसे हर मान ली हो उसने.

फिर हम एक दूसरे के हाथ थामे बिस्तर पर बैठ गये, मैने कहा रिंकी तुम यहाँ कब तक रहोगी…?

पापा तो दो दिन बाद ही जाने की बोल रहे थे, लेकिन मैने उन्हें एक हफ्ते की लिए मना लिया है.

फिर तो मज़ा आगया, मेी बोला… मेरी अब 5 दिन की गॅप है, तो पूरे दिन मस्ती करेंगे.

अच्छा जी… मस्ती करेंगे… जैसे घर मे मुझे और कोई काम नही होता.

लो अब ये खाना खाओ, और अपने साथ लाए टिफिन को मेरे सामने रख दिया,
मैने टिफिन खोला और खाना खाने लगा, वो मेरी तरफ ही देखती रही.. मैने चुटकी लेते हुए कहा…

तुम क्या मेरे निबाले गिन रही हो… ? उसने एक प्यार भरी चपत लगाई मेरे कंधे पर… और बोली…

बहुत बदमाश हो तुम, में क्यों तुम्हारे निबाले गिनूँगी, खाना तो मे तुम्हारे लिए ही लाई हूँ ना.

तुम भी खा लो थोड़ा बहुत, मे बोला और एक निबला अपने हाथ से उसके मुँह मे दे दिया…

उसने भी मुँह खोल कर निबाला खाया और साथ मे मेरी उंगलियों को काट लिया…

आआययईीीई… कटखनी बिल्ली साली कटती है… वो हँसने लगी..

ऐसी चुहलबाज़ी करते हुए हमने खाना ख़तम किया, और फिर बैठके बातें करने लगे…

बातें करते करते कब हमारे होठ एक दूसरे जे जुड़ गये पता ही नही चला… और फिर वो सब होता चला गया, जिसके लिए हम तड़प रहे थे.

एक तूफान सा आया, और आकर गुजर गया, हमारे बदन निढाल हो कर बिस्तर पे पसर गये,

आज हमने 3 बार जमके चुदाई की, शाम को रिंकी अपने घर चली गयी, मे थोड़ा बहुत पढ़ा और फिर नीद में चला गया.

इसी तरह हमारा एक वीक कैसे निकल गया पता ही नही चला.. जिस दिन रिंकी लौटने वाली थी, उसके पापा साथ नही थे, 

मे उसे बस मे बिठा कर आया, तो वो मेरे कंधे पर सर रख कर कितनी ही देर रोती रही, में उसे चुप कराता रहा, लेकिन सच तो ये था कि मेरा भी रोने का मन कर रहा था, लेकिन रोया नही वरना हम जुदा नही हो पाते, और कुछ ऐसा हो जाता जो हम दोनो के परिवारों की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती.

रिंकी चली गयी, में उदास मन अपने कमरे पर लौट आया..
 
एग्ज़ॅम तो सिंसियर्ली देने ही थे, भारी मन से अगले पेपर की तैयारी में जुट गया, बेमन से पढ़ाई मे मज़ा नही आया, नेक्स्ट सेकेंड लास्ट पेपर थोडा खराब हो गया,

ये भी अच्छा था, कि हिन्दी सब्जेक्ट था, तो उसकी ज़्यादा इंपॉर्टेन्स नही थी, आगे की पढ़ाई के लिए,

ऐसे ही एग्ज़ॅम भी ख़तम हो गये, घर आ गया, और लग गया घर के कामों में, रिज़ल्ट को तो अभी दो महीने थे.

मन साला बार-बार रिंकी के साथ बिताए पलों में ही अटका रहता था, जैसे ही वो लम्हे याद आते, शरीर रोमांच से भर जाता, 

पता नही ऐसा क्या जादू सा था हमारे प्यार का, किसी अन्य लड़की या औरत का विचार भी मन में नही आता.

ऐसा भी नही था कि गाँव में और हसीनाएँ नही थी, लेकिन शुरू से ही मेरा झुकाव नही था सेक्स की ओर. पता नही रिंकी के साथ ही क्यों हुआ और वो भी उसकी इक्षा थी इसलिए…

एक-दो दिनो के गॅप से टाउन भी जाना होता था घर के कामों की वजह से, लेकिन हिम्मत नही होती थी उससे मिलने की, 

मन में इनसेक्यूरिटी उसके और उसके पिता के मान-सम्मान को लेके ज़्यादा थी, अपने डर की वजह से नही……
आख़िर इंतजार की घड़ियाँ समाप्त हुई, आज रिज़ल्ट आनेवाला था, 

उन दिनों रिज़ल्ट का माध्यम केवल न्यूज़ पेपर था, या फिर कॉलेज में जाके ही देखना पड़ता था, अब गाँव मे न्यूज़ पेपर तो आते नही थे, सोचा कॉलेज मे ही जाके देख लेंगे.

सुबह जल्दी उठा, थोड़ा बहुत घर का काम भी करना था, वो निपटाया, और फिर नहा धोके मंदिर मे भगवान के आगे हाथ जोड़े, प्रार्थना की कुछ अच्छे की चाह में.

सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया, साइकल उठाई और निकल गया कॉलेज की तरफ.

हमारा कॉलेज रोड के किनारे ही था, रोड क्रॉस करके, रेलवे लाइन, और थोड़ा ही आगे रेलवे स्टेशन, 

अपने गाँव से आएँ तो या तो रेलवे फाटक से होके बाज़ार से होते हुए, रोड पे आया जा सकता था, या फिर रेलवे लाइन क्रॉस कर के सीधा आया जा सकता था.

अब साइकल को उठाने में कोन्सि ज़्यादा परेशानी होनी थी, तो हम सीधे ही आ जाते थे समय बचाने के लिए.

कॉलेज का बड़ा सा मेन गेट था, गेट से एंटर होते ही दोनो साइड आर्ट्स की क्लासस थी, उसके बाद बड़ा सा प्रेयर ग्राउंड, फिर मैं बिल्डिंग डबल स्टोरी.

मैं बिल्डिंग का गेट सेंटर मे था, जिसके घुसते ही बाए साइड में क्लरिकल ऑफीस तन प्रिन्सिपल ऑफीस, ऑपोसिट मे टीचर्स रूम, दॅन गर्ल्स चेंजिंग रूम फिर क्लास रूम्स.

प्रिन्सिपल रूम और टीचर्स रूम ख़तम होते ही 12 फुट की गेलरी दोनो साइड को जाती थी, प्रिन्सिपल रूम साइड की गेलरी जो 12 फीट चौड़ी और करीब 150 फीट लंबी, सेंटर मे लाइब्ररी रूम का गेट.

उसी गेलरी में दीवार के उपर सभी सेक्षन्स के रिज़ल्ट्स लगाए गये थे.
सबसे पहले आर्ट्स के चार्ट्स, दॅन लाइब्ररी रूम का गेट, उसके बाद साइन्स बाइयालजी, दॅन साइन्स मत के रिज़ल्ट्स लगे थे.

मेरा रिज़ल्ट लास्ट मे ही था, दोस्त लोग मिल गये उनके साथ रिज़ल्ट देखने लगे, सभी ज़्यादातर स्टूडेंट्स आए थे तो भीड़ हो गयी पूरी गेलरी में.

मैने धड़कते दिल से आँख बंद करके भगवान का स्मरण किया, और फिर चार्ट पर नज़र डाली. डिविषन वाइज़ थे रिज़ल्ट.

60% यूपी ईस्ट डिविषन थी, जिसमे हमेशा कम ही स्टूडेंट होते थे, वैसे भी यूपी बोर्ड मे ईस्ट दिव लाना मतलब गान्ड तक का ज़ोर लगाना पढ़ाई मे, वो भी साइन्स मैथ से.

उपर से कुछ 4-6 ही नाम थे ईस्ट डिवीजन, जिनमे तो रोल नंबर. होने के कम ही चान्स थे, सेकेंड डिवीजन की लिस्ट कुछ लंबी थी, देखते-2 कुछ 5-6 नंबर के बाद ही मेरा रोल नंबर. दिख गया, 

सीने पे हाथ रखके भगवान को धन्याबाद दिया, अपनी मेहनत को नही, ये ज़्यादातर हमान नेचर होता है, ख़ासतौर से हमारे जैसे टिपिकल ब्राह्मण फॅमिली के लोगो में.

पर्सेंटेज देखा, वाउ !! नोट बॅड, 58% मिले, सोचा अगर साला हिन्दी का पेपर और अच्छा जाता तो शायद 1स्ट डिवीजन हो सकती थी.

लेकिन “अब पछ्ताये हॉट क्या, जब चिड़िया चुग गयीं खेत”

कोई नही, वैसे भी इंजीनियरिंग के लिए हिन्दी मार्क्स कन्सिडर होने नही थे, सो एक होप तो था, कि शायद एडमिशन मिल जाए.

बाइयालजी मे लड़कियाँ ज़्यादा थीं, वो अपने से जस्ट पहले वाला ही चार्ट था.

में अपना रिज़ल्ट देख के पीछे भीड़ से बाहर आया, यहाँ बता दूं, कि गेलरी की आधी लंबाई के बाद ही दूसरी साइड में एक रेक्टॅंग्युलर गार्डन था.

तो में उस गार्डन मे आके खड़ा हो गया, और अनायास ही लड़कियों के झुंड की तरफ मेरी नज़र गयी.

वाउ ! दिन ही बन गया मेरा आज तो, आज भगवान से और भी कुछ माँगता तो शायद वो भी मिल जाता.

वहाँ लड़कियों के पीछे, मतलब मेरे से कुछ ही कदम की दूरी पर मेरी जान रिंकी खड़ी थी, वो मेरी ही ओर देख रही थी.

मैने स्माइल करके उसको विश किया, उसने भी मुस्कराते हुए अपनी पलकें झपका के रिप्लाइ दी.

वो अपनी कजन के साथ आई थी, जस्ट फॉर गॅदरिंग, अदरवाइज़ उसका रिज़ल्ट्स से कोई लेना देना नही था. बाद में उसने असली रीज़न बताया.

जहाँ से ये गेलरी मुड़ती थी, उसके सीधे, माने गेलरी की आधी लंबाई तक बिल्डिंग थी, और आधी तक गार्डन, बिल्डिंग की निचली स्टोरी में सभी लॅब थीं,

फर्स्ट बाइयालजी, दॅन फिज़िक्स आंड दॅन केमिस्ट्री लास्ट. 

केमिस्ट्री लॅब असिस्टेंट. अपना खास चेला था, उसके लिए में अक्सर अपने खेतों मे से कुछ ना कुछ लाता रहता था.

मैने रिंकी को इशारा किया, कि थोड़ी देर के बाद मेरे पीछे-2 आना, और में, गार्डन से होते हुए, केमिस्ट्री लॅब के लास्ट मे पहुँच गया, फिर उसे भी आने का इशारा किया.

जब वो उधर को आने लगी, मे दीवार की साइड होगया और उसका वेट करने लगा, गार्डन कोई 200-250 फीट लंबा था.

जैसे उसे में दीवार की साइड मे दिखा, लपक के मेरे पास आई और मेरे से लिपट गयी.

रिंकी एक मिनट रूको, यहाँ नही, किसी की भी नज़र में आ सकते हैं, मैने कहा, तो वो अलग हो गयी मेरे से.

मैने उसको वहीं खड़ा किया, कॉलेज की लास्ट दीवार थी जो बौंडरी वॉल के जस्ट 5 फीट पहले थी, वैसे तो उधर किसी के आने के चान्स होते नही थे, फिर भी ओपन तो था ही.

में घूम के लॅब के गेट पर पहुँचा, अंदर देखा तो शंकर लॅब मे अकेला बैठा था.

मुझे देखते ही वो खुश होके बोला, आओ अरुण बाबू, कैसे हो, रिज़ल्ट कैसा रहा… वग़ैरह…2

मे – अरे शंकर यार, एक साथ इतने सवाल, में ठीक हूँ, रिज़ल्ट अच्छा है, 58% मिले हैं.

अच्छा शंकर मेरा एक सपोर्ट करोगे, उसने तपाक से कहा, बोलिए ना, आपके लिए किसी काम के लिए कभी मना किया है मैने.

मैने कहा, वो मे मानता हूँ, लेकिन ये काम थोड़ा पर्सनल है, और अगर तुम ये वादा करो कि इस बारे में तुम किसी को ना कुछ बताओ, और ना किसी को पता लगने पाए, तो ही में तुमसे कहूँ.. बोलो..

शंकर – अरे अरुण बाबू आपको मुझ पे भरोसा नही है, आप काम तो बोलिए.

मे- रूको एक मिनट, बाहर आके, मे रिंकी को साथ लिए लॅब मे पहुँचा, उसे देखते ही शंकर हड़बड़ा गया, 

मैने कहा- देखो शंकर हम दोनो कुछ देर अकेले मे बात करना चाहते हैं, क्या तुम हमे यहाँ कुछ देर के लिए स्पेस दे सकते हो ? तो हां बोलो..

वो थोड़ा सकुचाते हुए बोला, देखो बाबू, मे ज़्यादा से ज़्यादा आपको आधे घंटे का टाइम दे सकता हूँ, अगर इस बीच कोई इधर आ गया तो मुसीबत हो सकती है, वो भी मेरे लिए. आपका तो कोई क्या कुछ बिगड़ेगा अब.

मैने उसको समझाया- तुम एक कम करो, हमें बाहर से बंद कर दो, और इधर-उधर हो जाना, रहना पास में ही, 

जैसे ही हमारी बातें ख़तम हो जाएँगी हम 3 बार गेट को नोक कर देंगे, तुम गेट खोल देना.

और वैसे भी जब गेट बाहर से बंद दिखेगा, तो ग़लती से भी अगर कोई इधर आता है, तो लॅब बंद समझ के वापस चला जाएगा, क्यों?

बात उसकी खोपड़ी मे समा गयी और हमे अंदर बंद करके वो चला गया.

अब हमारे पास मन मर्ज़ी टाइम था साथ मे बिताने का.

में लॅब मे पड़ी ब्रेंच पर बैठ गया, रिंकी मेरी गोद मे बैठ गयी, मैने अपना सर थोड़ा आगे को झुकाया, उसने अपना सर थोड़ा मेरी तरफ घुमाया, 

अब हम दोनो के फेस एक दूसरे के सामने बेहद करीब थे, रिंकी मेरी आँखों मे देखती हुई शिकायत भरे लहज़े मे बोली..

ढाई महीने हो गये, अब शक्ल दिखाई है, बिल्कुल भूल गये मुझे…हाआँ, कभी भूले से भी याद नही आई मेरी.. भीगे हुए स्वर में बोली वो, आँखों में पानी छलक आया था उसकी.

मे – रिंकी मेरी जान, अब तुम्हें कैसे विस्वास दिलाऊ की मैने तुम्हें कितना याद किया है, काश में हनुमान जी की तरह अपना सीना चीर के दिखा पाता, 
जिसमें केवल और केवल तुम हो मेरी प्रिय… मेरी आवाज़ भी भीगने लगी थी.

मैने बहुत चाहा, कोशिश भी की तुमसे मिलने की, कई बार तुम्हारे घर के सामने से भी गुजरा, लेकिन हिम्मत नही हुई अंदर आने की.

डरता था कि कहीं मेरी जान मेरी वजह से रुसवा ना हो जाए, उसके पापा की सामाजिक प्रतिष्ठा खराब ना हो मेरे कारण.

फफक-फफक कर रो ही पड़ी वो, सीने से लग कर कितनी ही देर सुबक्ती रही, मे उसकी पीठ पर हाथ फेरके उसे चुप करने की कोशिश करता रहा, आँखे मेरी भी छलक आईं थी.

इतना ख़याल करते हो मेरा तुम ! और में बाबली तुम्हे ही दोष देने लगी,, माफ़ करदो अरुण मुझे, सोचना चाहिए था मुझे, की कोई तो मजबूरी रही होगी तुम्हारी जो मिलने ना आ सके, प्ल्स मुझे माफ़ करदो.

और वो फिर फफक पड़ी मेरे हाथों को अपने हाथों मे लेकर.

मैने माहौल को चेंज करने की गर्ज से टॉपिक चेंज करके बोला… छोड़ो ये गिले शिकवे डार्लिंग, और ये बताओ, तुम्हारा रिज़ल्ट कैसा रहा, 

वो अपने सर पे चपत लगा के बोली, में सही मे बाबली हूँ, जो बातें करनी चाहिए, वो तो कर ही नही रही, 

मेरा तो कोई नही, पास हो गयी हूँ, तुम बताओ, तुम्हरा रिज़ल्ट कैसा रहा? अच्छा रहा ना ! 

में हसके बोला- हां में पास हो गया, और 58% मिले हैं, उस दिन तुम्हें बस मे बिठा कर लौटा था, और फिर पढ़ने का मूड नही हुआ तो हिन्दी मे थोड़ा कम ही कर पाया वरना फर्स्ट डिवीजन हो सकती थी.

वो फिर सीरीयस हो गयी, और इसके लिए भी खुद को ज़िम्मेदार ठहराने लगी.. मे सोचने लगा क्या इसी को प्यार कहते है, की एक को कुछ ग़लत हो तो दूसरा दुखी हो जाता है, ये कैसा प्यार है??

मैने उसे समझाया और बोला, कि आगे इंजीनियरिंग के लिए हिन्दी के मार्क्स नही चाहिए, वैसे भी उसमें पीसीएम ही इंपॉर्टेंट हैं, तब जाके शांत हुई वो.

और मेरे अच्छे रिज़ल्ट की खुशी में मेरे गले से लिपट गयी, आज पहली बार उसने अपनी तरफ से पहल की और मेरे होठों पे किस कर लिया……
हम दोनो गहरे किस में डूब गये, किसिंग के साथ-2 मेरे हाथ भी अपने मनपसंद काम में जुट गये, और कुर्ते के उपर से उसके रसीले फलों को निचोड़ने लगे.

आज उसने सफेद हल्के कॉटन का सूट पहना था, जिसके कुर्ते पर लखनवी कढ़ाई हो रही थी, उसकी हल्की गुलाबी ब्रा का इंप्रेशन साफ दिखाई दे रहा था.

एक बार क्स्के दोनों आमों को जो रगड़ा, वो दर्द और मज़े के कारण सिसकार कर उठी, और ज़ोर-ज़ोर से मेरे होठों को चवाने लगी.

अब धीरे-2 हम दोनो को ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा लेने का अनुभव होता जा रहा था. 
 
मैने उसे अपनी गोद मे लिए हुए ही उसका कुर्ता निकाल फेंका, आअहह… क्या शेप होती जा रही थी उसके रस्फलो की, पहले से ज़्यादा भरे-2 से लग रहे थे, और उनमें कसाव भी बढ़ गया था,

ब्रा के उपर से ही मे उन्हें कितनी ही देर तक मसलता रहा, वो मज़े में आँखें बंद किए सिसकिया लेती रही, 

मेरा लंड अपने पूरे शबाब पर आ चुका था, और उसकी कसी हुई गान्ड मे ठोकरें मार रहा था. मेरे लंड को फील करके रिंकी अपनी गान्ड उसपे रगड़ने लगी.

अब मैने उसे डेस्क के उपर बिठा दिया और उसकी सलवार को भी निकाल फेंका. वो अब ब्रा और पेंटी मे थी, आअहह…, मासा अल्लाह… क्या सगेमरमर की मूरत लग रही थी वो. 

मैने उसकी ब्रा के हुक खोल के उसको भी अलग कर दिया, और उसके चुचकों को मुँह मे लेके चुभलने लगा, वो उसका सेन्सिटिव पार्ट था, जब भी मे ऐसा करता था, वो बेकाबू हो जाती थी और मेरे सर को अपने सीने में दवाने लगती थी.

अब में उसके पूरे दूध को मुँह मे भर के चूसने लगा, और एक हाथ से दूसरी चुचि को मसल्ने लगा…

आआहह…. अरुण चूसो मेरे राज एयेए… और जोर्र्र्र…सी…आआहह…ख़ाआ..जाऊओ..इन्हेंन्न…आअहह…उउउहह…

उसकी मादक सिसकिया, मुझे और ज़्यादा उत्तेजित कर रही थी. कोई 5 मिनट दूध पीने के बाद मैने उसकी पेंटी को भी निकाल दिया, उसने अपनी गान्ड उचका के मेरी मदद करदी.

मैने उसको कोहनी के बल पीछे को अढ़लेटी कर दिया और उसकी रस गागर को चूमा, और फिर चाटने लगा…

ये उससे कभी सहन नही होता था, हमेशा चूत पे जीभ लगते ही उसकी उत्तेजना चरम पर पहुँच जाती थी.

मैने अपनी जीभ से उसकी क्लोरिटूस को कुरेदा तो उसकी गान्ड अधर उठ गयी और सीसीयाने लगी, साथ ही साथ अपनी मध्यमा उंगली उसकी गीली चूत में पेल दी, और ज़ोर ज़ोर से उसको अंदर-बाहर करने लगा, 

जीभ और उंगली के एक साथ हमले को वो ज़्यादा देर तक झेल नही पाई और चीख मारते हुए झड़ने लगी. उसकी रामप्यारी रस बरसाती रही, और मेरी चटोरी जीभ रसास्वादन करती रही.

मेरे सब्र का पैमाना अब छल्कने लगा था, मैने उसे डेस्क पर लिटाया, झट-पाट अपने पेंट और अंडरवेर दोनो एक साथ ही निकाल दिया, फुनफानते लंड को उसकी रसीली चूत पर एक-दो बार रगड़के गीला किया और धप्प से पेल दिया, 

आधा लंड सॅट से घुस गया उसकी पनीलि चूत मे, वो हल्के दर्द और मज़े के समिशरन मे कराहने लगी, मैने उसके होंठो को चूसा और एक और झटका मार दिया जिससे पूरा शेर मान्द के अंदर घुस गया.

उसके दोनो टाँगों को उपर उठाके पैरों को अपने कंधों पे रख लिया, और दोनो हाथों से उसकी चुचियों को मसल्ते हुए धक्के मारने लगा.

ढप-धाप, सटा-सॅट्ट… चुदाई तूफ़ानी रफ़्तार से चलने लगी, कॉलेज की लॅब मे चुदाई करने की एग्ज़ाइट्मेंट एक अलग ही अनुभव दे रही थी, हल्का सा डर, उत्तेजना को और बढ़ावा दे रहा था…

थोड़ी ही देर में रिंकी की पीठ डेस्क के हार्ड सर्फेस की वजह से दुखने लगी, तो मैने उसे नीचे खड़ा कर लिया, और उसके हाथों को डेस्क के उपर रखवा कर, उसे घोड़ी बना दिया.

ये पॉज पहली बार ट्राइ कर रहे थे हम, मैने उसकी चिकनी और रूई जसी मुलायम गान्ड के उपर हाथ फिराया…

आअहहाा-हहाअ…. क्या मुलायम गान्ड है, तेरी रिंकी… हाई… जीि.. करता है खा जाउ… सच में…आअहह..

और मैने अपना मुँह मार ही दिया एक साइड के चूतड़ पे… 

आहह…ईईईई….क्या करते..हो.. जंगली कहीं के… काटते क्यों.. हो..?

देखा तो वाकई में दाँतों के गहरे निशान पड़ गये उस चूतड़ पे..

मैने कहा… में तुम्हारी मनुहारी गान्ड देख के पागला गया था..सब्र ही नही हुआ, मे क्या करूँ… और उस निशान को चूम के जीभ से चाटने लगा,

फिर उसको थोड़ा और झुका के, अपनी जीभ को उसकी चूत से चाटता हुआ, उसकी गान्ड के भूरे रंग के छेद को कुरेदने लगा.. जिसकी वजह से उसकी चूत मे सुरसूराहट होने लगी और वो अपनी गान्ड के छेद को खोल-बंद करने लगी, और अपनी कमर मटकाते हुए बोली…

अब डालो ना…
 
मैने कहा, क्या डालू, 

वो बोली वोही अपना वो..

मे – क्या..? 

वो- अरे यार वोही समझा करो,

मे- अरे क्या..? उसका नाम तो बताओ…

मुझे शर्म आती है, मे नाम नही बोलूँगी उसका, अब जल्दी से डालो अपना वो, मेरी उसमें..

ये क्या है रिंकी.. ? ये क्या इशारे से कर रही हो..? साफ-साफ बोलो ना क्या डालूं किस्में??

अरे बाबा.. अच्छा ठीक है, आपपना..वउूओ..एल..ल्लून्न ..ड्ड.. डालो मेरी..च..चयू..त्त्त. मे, बॅस… अब जल्दी करो…ना.. प्लस्सस…

मैने थूक लेके अपने सुपाडे पे मला, और उसकी चूत के मुँह पे सेट करके एक सूलमानी धक्का दे दिया…

पूरा लंड सततत्ट… से अंदर पूरा का पूरा, एक ही झटके में…

आअहह…ऊओह… अरुण.. माअररर…ददाालल्ल्लाअ…जाअलिमम्म…

हइई….मम्मि… मर्रीइ…ररीई…आअहह…सस्सिईईई… उउउहह….

उसकी मादकता देख कर मे और जोश मे आ गया.. और दे-दनादन..सटा-सॅट…
धक्के-पे-धक्के…फुल..स्पीड मे लगाने लगा, 

लब में थप्प-थप्प की आवाज़ें गूंजने लगी, मेरे मुँह से हुउन्न्ं…हुन्न्ं जैसी आवाज़ें निकल रही थी,

अगर शंकर दरवाजे के नज़दीक हुआ, तो ज़रूर सुन रहा होगा, ये आवाज़ें..

15-20 मिनट की धड़ा-धड़ चुदाई के बाद हम दोनो ही अपनी चरम सीमा पर पहुँच गये, रिंकी भी लगातार अपनी गान्ड ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड पे मार रही थी, उसकी टाइट लेकिन मुलायम चुचियाँ पेंडुलम की तरह आगे-पीछे झूल रही थी, बड़ा ही मनुहरी दृश्य था.

और फिर एक लंबी हुंकार मार कर वो फलफला के झड़ने लगी… 8-10 करारे धक्कों के बाद मैने भी अपनी पिस्टल का मुँह खोल दिया, और दे-दनादन लगातार कई फाइयर उसकी चूत मे कर दिए…और उसके उपर गिर पड़ा,

वो भी सख़्त डेस्क के उपर पसर गयी.. जैसे ही तूफान थमा, उसने मुझे अपने उपर से उठने के लिए कहा..

हम दोनो खड़े हुए, अपने अंगों को रुमाल से साफ किया, वो रुमाल रिंकी ने अपने पर्स में संभाल के रख लिया, मैने पुछा इस गंदे रुमाल का क्या करोगी, वो बोली ये मेरे पास यादगार के तौर पर रहेगा.

हमने कपड़े पहने और डोर खटखटाया..

1 मिनट बाद शंकर ने डोर खोला, रिंकी अपनी नज़रें नीची करके बाहर चली गयी.. मैने शकर को धन्यवाद किया, और 2 मिनट बाद मे भी बाहर आ गया.
 
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