Antarvasna kahani नजर का खोट - Page 5 - SexBaba
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Antarvasna kahani नजर का खोट

वो थोड़ी सी टेढ़ी हो गयी और एक बार फिर मेरे हाथ उसकी चुचियो पर आ गए जिन्हें मैंने उसके पेट पर कर लिया 

मैं- तू बहुत सुन्दर है तेरा तन ही नहीं मन भी 

वो- तन भी तेरा मन भी तेरा 

मैं- एक सवाल है तूने अपने वचन में बांध लिया अब तेरी आज्ञा बिना मैं वहा जाऊंगा नहीं तो अपना मिलन कैसे होगा 

वो- जैसे आज होता, तू जब भी कहेगा मैं तेरी ही तो हु 

मैं उसकी नाभि को उंगलियों से छेड़ते हुए- तो ठीक है जब मेरी फसल लहलहाएगी जब सर्दी अपने चरम पर होगी जब ओस की बुँदे किसी शबनम की तरह तेरे मेरे तन को भिगोयेंगी तब अपना मिलन होगा जब तेरी धड़कने रफ़्तार पकड़ेंगी और मेरी सांसे मंद होगी जब चाँद छुपा होगा गहरी धुंध की चादर तले और तारे छुप छुप पर तुझे और मुझे देखेंगे तब अपना मिलन होगा 

वो-जब ठंडी हवा अपनी खुशुबू फिज़ाओ में फैलाएगी जब खमोश रस्ते तेरी आवाज से गुन्जेंगे जब ढलती सांझ रात से मिलेगी जब मन मेरा होगा और दर्पण तेरा तब अपना मिल्न होगा 

मैं- हां, तब अपना मिलन होगा पर मेरी एक इच्छा और है 

वो- क्या 

मैं- मैं अपने हाथो से तेरा श्रृंगार करना चाहता हु तुझे सजाना चाहता हु 

वो- जरुर 

मैं- आज की रात खास है ना 

वो- कैसे 

मैं- तू जो पास है 

वो- मैं तो हरदम तेरे पास हु 

मैं- हरदम पास ही रहना तू है तो मैं हु 

मैं- वैसे तेरी चुचिया मस्त है बड़ी ये कहकर मैंने उसकी चूची को हलके से दबा दिया 

वो- आह, 

मैं- इनमे दूध होता तो पि लेता 

वो- कोशिश करेगा तो दूध भी आ जायेगा 

मैं- सच में 

वो- सच में 

मैं- और इनका क्या मैंने उसके नितम्बो पर हाथ फेरते हुए कहा 

वो- सब तेरा तू ही जाने 

मैं- तू मेरी तू ही बतादे 

वो- मेरे मुह से सुनेगा क्या 

मैं- तू सुनाएगी 

वो- हां पर फिर कभी अभी सो जा 

मैं- जब तू ऐसे इस हालत में पास तो नींद किसे आएगी 

वो- सो जा 

मैं- वैसे ठकुराईन , तू है जबर 

वो- तू भी कम नहीं 

मैं- एक पपी देना 

वो- दो लेले मेरे राजा 

मैं- सच में 

वो- सच में 

वो पलटी और उसने अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए ये मैं ही जानता था की कैसे मैंने अपने आप को काबू किया उस रात पर शायद काबू कर लेना ही ठीक था सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मेरे पास ही थी उसने अपने आप को उस हाल में देखा तो एक पल के लिए वो भी शर्मा गयी उसने अपने बदन पर चादर लपेट ली 

मैं- अजी अब काहे शर्माते हो और फिर हमसे कैसा पर्दा रात को ठीक से देख ना पाए तुमको अब जरा दीदार करवाओ तो बात बने 

वो- रहने दो ना 

मैं- बस पूजा रात को बड़ी बड़ी बाते कर रही थी अब एक झलक नहीं दिखा सकती 

वो- तब बात अलग थी अब मुझे लाज आती है 

मैं- वाह जी वाह ये कैसी लाज रात को नहीं आती दिन में आती है 

वो- मत छेड़ ना 

मैं- बस एक बार तुझे दिन की रौशनी में देखने की इच्छा है 

वो- तू नहीं मनेंगा न ले देख ले फिर 

पूजा बिस्तर से उठी और चादर को धीरे से निचे गिरा दिया गुलाबी कच्छी ने उसके गोरे बदन की सुन्दरता को और बढ़ा दिया था मैंने ऊपर से निचे तक उसे निहारा और फिर चूम लिया एक बार धीरे से हमने अपने कपडे पहने और बाहर आकर देखा रात को जबर बरसात हुई थी सब कुछ गीला गीला सा था 

मैं- चलता हु 

वो- वापिस कब आओगे 

मैं- जब तू बुलाएगी 

वो- तो फिर जाओ ही ना 

मैं- जाना तो पड़ेगा जी पर जल्दी ही आता हु 

वो- ठीक है 

उसे छोड़कर जाने का दिल तो नहीं किया पर घर जाना तो था ही तो साइकिल को मोड़ दी रस्ते में जगह जगह कीचड था तो बचते बचाते गाँव का सफ़र जारी था मोसम बहुत ही खुशगवार था हर चीज़ खिली खिली सी लग रही थी होंठो पर पता नहीं कौन सा गीत था पर गुनगुनाते हुए हम चले जा रहे थे रस्ते में पता नहीं कब खारी बावड़ी आई तो अचानक हमारे पैडल रुक गए 

मैंने नजर भर के उस तरफ देखा और वैसा ही सूनापन मुझे एक बार फिर से महसूस हुआ जैसे की उस रात को हुआ था कुछ तो कशिश सी थी जो मुझे उस दिन की तरह आज भी खीच रही थी पिछले कुछ दिनों में पता नहीं कितनी बार नहीं शायद ये उस रात के बाद आज ही मैं बेध्यानी में इस तरफ से आया था वर्ना मैं दूसरा रास्ता लेता था जो थोड़ी दूर से था 

मेरे मन में कुछ उत्सुकता सी जागने लगी थी वो जो सूनापन था उसमे कुछ तो बात थी मैंने एक बार फिर से वैसे ही महसूस किया जैसे उस रात थी वैसा ही डर सा लगने लगा मैंने फिर से आस पास देखा दूर दूर तक कोई नहीं था मेरे आलावा मैंने साइकिल को पैडल मारा और तेजी से उस बावड़ी के पास से निकल गया अपनी बढ़ी धडकनों को काबू करते हुए जब अपने खेतो पर आया तो चैन मिला
घर पहुचे तो राणाजी से ही मुलाकात हुई सबसे पहले 
वो- कहा से आ रहे हो बरखुरदार 
मैं- जी वो जमीन की तरफ गया था तो मोसम ख़राब हो गया था तो रुकना पड़ा 
वो- अन्दर जाओ 
 
मैं अन्दर आया और आते ही माँ सा के हजारो सवालों का सामना करना पड़ा उसके बाद बड़ी मुस्किल से जान छुड़ा कर अपने कमरे में गया और कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने लगा दरअसल मैं पूजा और जयसिंह गढ़ के बारे में सोच रहा था की आखिर पूजा ने मुझसे वो वचन क्यों लिया होगा दरअसल मेरे पास सोचने का कारण था और वो कारण ये था की मुझे पता था की पहले दोनों गाँवो में भाई-चारा हुआ करता था और हमारा परिवार गाँव में रसूखदार था तो जो भी बात रही होगी हमारा परिवार उससे जुड़ा अवश्य होगा 
पर सवाल तो यही था की पूजा ने मेरे हाथ बांध दिए थे तो मैं वहा जा नहीं सकता था और पता करना बेहद जरुरी था पर तभी भाभी आ गयी तो मेरे ख्याल अधूरे रह गए 
भाभी – तो कहा कटी रात तुम्हारी 
मैं- कुवे पर था भाभी 
वो- झूठ मत बोलो 
मैं- आपसे झूट क्यों बोलूँगा 
वो- अब जबकि तुमने ताज़ा ताज़ा दुश्मनी मोल ली है जयसिंह गढ़ वालो से अंगार को हरा के कुंदन वो लोग पीठ पीछे वॉर जरुर करेंगे जानते हो पूरी रात बस आँखों आँखों में काटी है हमने और तुम हो की कोई फरक नहीं पड़ता है ऊपर से तबियत ख़राब पर तुम्हे क्या फरक पड़ता है तुम्हे तो बस अपनी दुनिया में जीना है बाकी इस घर के लोगो की फ़िक्र ना पहले थी न अब है तुम्हे 
मैं- भाभी, मौसम ख़राब हो गया था तो वही रुकना पड़ा इतनी सी तो बात है 
वो- हद हो गयी झूठ की कल तुम कुवे पर नहीं थे हम और माँ सा कल गए थे वहा पर 
पता नहीं क्यों भाभी के आगे मेरा एक झूठ नहीं चलता था अब क्या कहते उनको पर क्या ये सही समय था पूजा के बारे में उनको बताने का जबकि जयसिंह गढ़ के नाम से वो वैसे ही चिंतित थी भाभी की कजरारी आँखे गुस्से से दहक रही थी मैं चुप रहा इसके सिवा मैं कर भी तो क्या सकता था फिर कोशिश होने लगी भाभी को मानाने की इस बात के साथ की आगे से बिना बताये कही नहीं जाऊंगा और उनकी हिदायतों का ध्यान रखूँगा 
पर पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था की जैसे कभी ना उतरने वाला बोझ सा उठा लिया है हमने अब मदद की सख्त जरुरत थी पर ऐसा कौन जिस से मदद मिले एक बार सोचा की लाल मंदिर के पुजारी से बात करू पर वो राणाजी को बता सकता था तो आखिर किया जाये स्तिथि बड़ी विचित्र थी और हम थे अंधकार में वैसे कायदे से तो हमे इस पचड़े में पड़ना नहीं चाइये था पर बस आजकल हम मुसीबतों को नहीं मुसीबते हमे गले लगा रही थी 
सर दुखने लगा था वो अलग तो मैं भाभी के पास गया 
मैं- भाभी सर दुःख रहा है थोडा दबा देंगी 
वो- हम्म्म , जरा ये कपडे अलमारी में रख दू आ बैठ जरा 
मैं- नए कपडे लिए है 
वो- हां कुछ सिलवाये है तू बता कौन सा जंचेगा हम पर 
मैं- आप कुछ भी पहनो सुन्दर लगती हो 
वो- अच्छा जी, चलो किसी ने तो हमारी तारीफ की वर्ना कान तरस गए थे 
मैं- भैया नहीं करते क्या तारीफ 
वो-उनको हमारे लिए फुर्सत कहा 
मैं- अब आपके बीच में मैं क्या कह सकता हु 
वो- क्यों नहीं कह सकते तुम 
मैं- भाभी कुछ कहना है मुझे 
वो- हां 
मैं- कुछ पैसे मिलेंगे 
वो- पैसे, जरुर मिलेंगे पर किसलिए चाहिए 
मैं- कुछ सामान खरीदना है 
वो- क्या 
मैं- वो नहीं बता सकता 
वो- तो पैसे नहीं है मेरे पास माँ सा से लो 
मैं- भाभी आज तक आपसे ही तो लेते आया हु 
वो- तो बताओ 
मैं- कुछ नहीं जाने दो 
वो- मेरे प्यारे देवर जी नाराज हो गए क्या 
मैं- आपसे नाराज होकर कहा जाऊंगा भाभी 
वो- तो बताओ ना हमे अच्छा लगता है 
मैं- जी वो........ मैं सोच रहा था की कुछ कपडे ले लू 
वो- पर कुछ दिन पहले ही तो तुमने नए कपडे सिलवाये है ओह! अच्छा अब समझी तोहफा लेना है तुम्हे 
मैं- किसके लिए 
वो- उसके लिए 
मैं- क्या भाभी 
भाभी उठी और अपनी अलमारी खोली और एक के बाद एक तरह तरह की ड्रेस का ढेर लगा दिया और बोली- कुंदन, छांट लो जो तुम्हे पसंद आये हमारी तरफ से तुम्हारी उसके लिए छोटी सी भेंट 
मैंने भाभी की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा पड़ी 
वो- शरमाने की जरुरत नहीं इतना तो हमारा भी हक़ है अब तुम्हारे खास हमारे भी तो कुछ हुए ना 
कितना समझती थी वो मुझे बिना कहे ही सब जन लिया था उन्होंने 
मैं- आप ही छांट दो 
भाभी ने एक के बाद एक कई ड्रेस अलग रख दी और फिर अपनी अलमारी से सोने के कंगन निकाले और बोली- ये उसको हमारी तरफ से देना 
मैं- इसकी जरुरत नहीं भाभी 
वो- हमारी तरफ से देना वो समझ जाएगी 
मैं- क्या समझ जाएगी 
वो- हमने कहा न वो समझ जाएगी आओ मैं सर दबा देती हु 
मैं निचे बैठ गया और भाभी कुर्सी पर बैठे हुए मेरे सर को दबाने लगी तो कुछ आराम सा मिला मैं सोचने लगा की भाभी को उसके बारे में बता दू या नहीं 
भाभी- क्या सोच रहे हो 
मैं- कुछ नहीं 
वो- बताओ ना 
मैं- क्या है मेरे पास सोचने को भाभी बस ख्याल आया की लाल मंदिर की तरफ घूम आऊ 
वो- क्या जरुरत है वहा जाने की नहीं जाना उस तरफ 
मैं- आप कहती है तो नहीं जाता पर एक सवाल है 
वो- क्या 
मैं- आपके पिताजी राणाजी के मित्र है ना 
वो- हाँ 
मैं- तो आपको राणाजी के सभी मित्रो के बारे में पता होगा 
वो- राणाजी के बहुत कम मित्र है मैं सबको तो नहीं जानती पर कुछ एक के बारे में पता है 
मैं- तो ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में भी पता होगा आपको 
भाभी के हाथ रुक गए 
वो- उठो 
मैं- क्या हुआ 
वो- क्या खिचड़ी पक रही है तुम्हारे मन में हम अभी इसी वक़्त जानना चाहेंगे 
मैं- क्या हुआ भाभी 
वो- सुना नहीं हमने क्या पूछा 
मैं- मैं बस ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में पूछना चाहता था 
वो- कुंदन मेरी आँखों में देखो क्या दीखता है 
मैं- समझा नहीं भाभी 
वो- जिस राह पर चलने की सोच रहे हो ना वहा पर कदम कदम पर कांटे बिछे है हम सब की एक हद है और हमारा हुक्म है की इस हद को तुम कभी पार नहीं करोगे आज से हमारी मर्ज़ी से बिना तुम इस घर से बाहर नहीं जाओगे तुम्हारी पढाई- लिखाई सब यही होगी हम तुम्हारे मास्टरों से बात कर लेंगे तुम्हे जो चाहिए सब यही मिल जायेगा पर इस घर से तुम्हारे कदम बाहर नहीं जायेंगे 
मैंने पहली बार भाभी की आँखों में एक आग दिखी मैं कुछ कहना चाहता था पर भाभी के तेवर देख कर मैं खामोश हो गया भाभी कमरे से बाहर चली गयी थी पर मैं इतना तो जान गया था की हमारा बहुत कुछ लेना देना है पूजा के परिवार से पर क्या बस ये पता करना था ख्यालो ख्यालो में ना जाने कब साँझ घिर आयी मेरी तन्द्रा जब टूटी जब भाई और चाची लौट आये और तब मुझे ख्याल आया की भाई मेरी बात नहीं टालेगा भाई से पूछना पड़ेगा कुछ जुगत लगाके
 
रात को भाई पेग लगा रहा था छत पर तो मैं भी चला गया 

मैं- भाई और बताओ कैसा रहा प्रोग्राम 

वो- बढ़िया ले सलाद खा 

मैंने सलाद खाते हुए पूछा- भाई क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हु 

वो- हां यार जो दिल करे 

मैं- पक्का 

वो- पूछ ना 

मैं सवाल करने ही वाला था की भाभी आ गयी और बोली- खाना तैयार है आप कहो तो लगा दू 

भाई-मुझे अभी नहीं खाना तुम कुंदन के लिए लगा दो 

मैं- मुझे भी भूख नहीं है 

भाभी- भूख क्यों नहीं है 

मैं- मेरी भूख मर गयी है 

भाभी- तुम्हारी नाराजगी जायज है पर इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती 

भाई- कैसी नाराजगी क्या बात है हमे भी बताओ 

भाभी- आपके भाई को ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में जानना है 

भाई ने अपना गिलास टेबल पर रखा और बोला- कुंदन अभी इन बातो का समय नहीं जब समय आएगा तो तुम खुद जान जाओगे 

मैं- भाई सा मैं जानना चाहता हु की दोनों गाँवो की दुश्मनी की असली वजह क्या है 

भाई- देखो कुंदन कुछ बाते बस बाते होती है और फिर दुश्मनी को कोई वजह नहीं होती है तुम इन पचड़ो में मत पडो राणाजी को पता चला तो घर में कलेश होगा वो वैसे ही नाराज है तुमसे 

मैं- पर भाई 

वो- पर वर कुछ नहीं बात ख़तम चलो खाना खाते है 

मैं- भूख नहीं है मुझे 

भाभी- तो मत खाओ, मैं भी देखती हु कब तक नहीं खाओगे और अगर फिर भी कुछ पूछना है तो निचे राणाजी है उनसे सवाल करो 

भाभी को पता नहीं किस चीज़ का गुस्सा आ रहा था पर तभी चाची आ गयी तो बातो का विषय बदल गया 

वो- कुंदन सुन, आज रात तू हमारे यहाँ सोने आ जा 

मैं- भाभी ने घर से बाहर जाने को मना किया है 

वो- क्यों और क्या वो तेरा घर नहीं है तू कहा घर से बाहर जा रहा है घर में ही तो आयेगा ना वो तो मैं इस लिए बोल रही थी की तेरे मामा ने कुछ गहने दिए है मुझ अकेली को डर लगेगा कल तो राणाजी को दे दूंगी वो बैंक के लाकर में रख आयेंगे 

भाभी- तो अभी दे दो न चाची

चाची- अब रात को कहा सूटकेस खोलूंगी और फिर जस्सी तू इतना क्यों मना कर रही है पहले कभी क्या ये हमारे घर नहीं सोया 

भाई- जाने दे जस्सी, कही भी सोये है तो अपने ही घर 

अब भाई के आगे भाभी क्या कहती इतना ही बोली- ठीक है पर खाना खाके जाना और चाची के घर से सुबह सीधा यही आना कही बाहर ना निकल जाना 

मैं- जी जैसा आप कहे 

उसके बाद मैंने खाना खाया मेरी नजरे बस चाची की मटकती गांड पर ही थी जी कर रहा था अभी भर लू उसको अपनी बाहों में और रगड़ डालू काली साड़ी में उसका हुस्न हिलोरे मार रहा था जब उसने मेरी तरफ देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरी तो मेरा लंड पेंट में बुरी तरह से फद्फदाने लगा चाची सबसे नजरे बचा कर अपनी कातिल अदाओ की बिजलिया मुझ पर गिरा रही थी निवाला निचे उतरना मुश्किल होने लगा था 

वैसे भी जब जिस्म की प्यास जागती है तो बाकि हर भूख-प्यास की उसके आगे क्या कहानी पर मैं अभी और इंतजार करना चाहता था और ये भी चाहता था की भाभी से अब सामना न हो क्योंकि एक तो वो पुरे दिन से नाराज थी और अब जब मैं चाची के साथ जाने वाला था तो वो और किलस गयी थी तो मैंने सिलसिले को दूसरी बातो की तरफ मोड़ दिया करीब घंटे भर तक मैं और चाची बस इधर उधर की गपे लड़ाते रहे वो पिछले दो दिन की कहानी बताती रही 

तो करीब घंटे भर बाद मैं चाची के साथ उसके घर आ गया जैसे हमने दरवाजा बंद किया मैंने लपक कर उसको अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके लाल सुर्ख होंठो को अपने मुह में भर लिया और वो भी बिना किसी लाग लपेट के मेरा सहयोग करने लगी किस करते करते मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही उसकी गांड को सहलाने लगे थे तो वो भी उत्तेजित होने लगी 

पांच-सात मिनट तक बस उसके होंठो को ही निचोड़ता रहा मैं और फिर उसको अपनी गोदी में उठा कर उसके कमरे की तरफ बढ़ गया उसने भी अपनी बाहे मेरे गले में डाल दी मैंने उसे बिस्तर पर पटका और उसपे चढ़ गया चाची ने मेरी आँखों में आँखे डालते हुए अपने होंठ एक बार फिर से मेरे लिए खोल दिए और हमारी जीभ एक बार फिर फिर से आपस में रगड़ खाने लगी 

चाची के अन्दर एक आग थी कामुकता की और इस आग में आज मैं एक बार फिर से जलना चाहता था कुछ देर की चूमा चाटी के बाद मैं धीरे से उसके कान में बोला- पूरी रात चोदुंगा मेरी जान 

वो- चोद ले 

मैंने चाची के आँचल को साइड में किया और उसके ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाने लगा चाची मस्ताने लगी और उसका हाथ मेरे लंड पर पहुच गया तो मैंने अपने कपडे उतार दिए चाची ने भी साड़ी खोल दी अब वो बस ब्लाउज और पेटीकोट में थी चाची ने खुद अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किये और मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा काले ब्लाउज के अन्दर सफ़ेद ब्रा में कैद उसके कबूतर बाहर आने को तड़प रहे थे 


और कुछ पल बाद ही ब्रा भी उतर गयी उसके चुचुक देख कर मेरे मुह में पानी आने लगा पर तभी चाची ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे लंड पर टूट पड़ी उसने बड़ी तेजी से लंड को अपनी मुट्टी में कसा और फिर अपना हाथ ऊपर निचे करने लगी उसकी आँखों में जैसे नशा उभर आया था उसने अपना मुह थोडा सा खोला और अपने दहकते होंठ मेरे लंड के सुपाडे पर रख दिए

मेरे तन बदन में मस्ती भरने लगी और मेरा लंड और बुरी तरह से ऐंठने लगा चाची कुछ देर बस सुपाडे को ही किसी टॉफी की तरह चुस्ती रही और फिर उसने लगभग आधा लंड अपने मुह में ली लिया और उसको मजे से चाटने लगी चूसने लगी मैं इस कदर मस्ती में डूब चूका था की चाची के सर को अपने लंड पर दबाने लगा जैसे मैं पूरा लंड उसके हलक में उतार देना चाहता हु 

वो भी मजे से चुप्पे मारते हुए मुझे मुखमैथुन का भरपूर मजा दे रही थी वो बहुत अनुभवी थी चुदाई के खेल की और किसी खेली खायी औरत के साथ चुदाई का सुख प्राप्त करना हमेशा से ही आनंद दायक रहा है और आज भी ऐसा ही था पर मुझे झड़ने का भी डर था तो मैंने अपना लंड उसके मुह से निकाल लिया और चाची का पेटीकोट भी खोल दिया 

अब उसके मादक बदन पर बस एक काली कच्छी ही थी जो उसके मतवाले नितम्बो पर कसी हुई बेहद सुन्दर लग रही थी मैं अहिस्ता अहिस्ता उसके पुरे बदन को चूमने लगा उसकी नंगी पीठ कमर और फिर मैं उसके चूतडो पर आया मैं कच्छी के ऊपर से ही चाची की गांड पर जीभ फेरने लगा तो वो भी अपने चुतड हिलाने लगी जिस से मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी 
 
मैंने कच्छी को उसके घुटनों तक सरकाया और उसके गोरे चुतड मेरी आँखों के सामने थे मैंने उसकी फानको में उंगलिया फंसाई और उनको फैलाया तो चाची की चूत और उसकी गांड का छेद दिखने लगा मैंने कभी गांड नहीं मारी थी और चाची की गांड पर तो मेरा दिल मचल ही रहा था मैंने सोचा आज इसकी गांड जरुर मरूँगा चाहे कुछ भी हो जाये मैंने चाची के चूतडो को चूमना शुरू किया तो वो भी अपने चुतड जोरो से हिलाने लगी वो धीरे धीरे आहे भर गयी थी 

चाची थोड़ी सी आगे को झुक गयी जिस से उसके चुतड और उभर आये मैंने अपनी ऊँगली उसकी गांड के छेद पर रखी और सहलाने लगा चाची का बदन थर थर कापने लगा और वो थोड़ी सी और झुक गयी सहलाते हुए मैंने अपनी ऊँगली उसकी चूत में दे दी तो उसके होंठो से आह निकल पड़ी और मैंने अपने होंठो को उसके गांड के भूरे छेद पर रख दिया 

मेरी नुकीली जीभ गांड में घुसने की कोशिश करने लगी और ऊँगली तेजी से चूत में अन्दर बाहर होने लगी चूँकि चूत बहुत ज्यादा गीली थी तो चाची को दोनों छेदों से भरपूर मजा आने अलग था उसके दोनों छेदों में बस इंच भर का ही फासला था तो मेरी जीभ दोनों छेदों पर साथ साथ चलने लगी और उसके बदन में जैसे भूचाल सा आ गया रही सही कसर मेरी ऊँगली पूरा कर रही थी 

कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा फिर मैं वहा से हट गया चाची ने अपने हाथ घुटनों पर रखे हुए थे तो मैंने उसकी कमर को पकड़ा और अपने लंड को चूत पर टिका दिया मस्ती में चूर चाची ने खुद अपनी गांड को पीछे सरकाते हुए मुझे अन्दर डालने का इशारा किया और तभी मैंने एक जोर का झटका मारते हुए लंड को उस मस्तानी चूत की गहराइयों की तरफ धकेल दिया और फिर धक्के लगाने शुरू किये 

“आः aaaahhhhhhhh aaahhhhhhhhhh ” की मधुर आवाजे चाची के मुह से लगातार निकल रही थी और वो मेरा पूरा साथ देते हुए चुद रही थी 

चाची- अआः शाबाश ऐसे ही जोर जोर से धक्के मार आः ऐसे ही 

मैं- चिंता मत कर तेरी प्यास जी भरके बुझाऊंगा चाची क्या चूत है तेरी इतनी कसी हुई की मेरा लंड छिलने लगता है 

वो- तू कुछ ज्यादा ही तारीफ करता है मेरी 

मैं – तू कमाल है चाची कमाल है 

मैंने अपना लंड चाची की चूत से बाहर खीचा और उसको बिस्तर पर पटक दिया मैंने उसकी लपलपाती चूत को देखा जिसकी फांके खुली हुई थी मैंने उसकी टांगो को अपनी टांगो पर चढ़ाया और फिर से अपना मुसल उसकी ओखली में पेल दिया और हम एक दुसरे में फिर से समा गए हम दोनों के चेहरे एक दुसरे के थूक से सने हुए थे थप्प थप्प की आवाज का शोर हो रहा था पर हमे कोई फरक नहीं पड़ रहा था 

मेरे हाथ बेदर्दी से उसकी छातियो को मसल रहे थे जिससे वो और ज्यादा मस्त हो रही थी उसकी चूत से इतना रस बह रहा था की निचे चादर तक सनने लगी थी पर मस्ती टूट नहीं रही थी चाची ने अब अपनी टांगो को मेरे कंधो पर रख दिया और खुद अपने बोबो को भीचते हुए चुदने लगी 

मेरी उंगलिया उसकी जांघो के मांस में जैसे धंस रही थी पल पल मेरा लंड चूत के छल्ले को चौड़ा करते हुए चाची को स्खलन की और ले जा रहा था और साथ मुझे भी करीब दस मिनट और मैंने उसे रगडा और फिर आगे पीछे ही हम झड़ गए उसकी गरम चूत को मेरे वीर्य की धार ठंडा करने लगी झड़ते हुए मैं उसके ऊपर ही पड़ गया उसने भी मुझे अपनी बाहों में भीच लिया 

कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे फिर चाची बाथरूम में चली गयी उसके आने के बाद मैंने भी पेशाब किया और अपने लंड को साफ किया और फिर उसके पास आकर ही लेट गया 

मैं- मजा आया 

वो- हां ये मजा पूरी रात लुतुंगी 

मैं- हां पर मुझे भी थोडा ज्यादा मजा चाहिए 

वो- क्या 

मैं- आपकी गांड मारूंगा आज 

वो- ठीक है पर जंगली मत बनियों आराम से प्यार से करियो 

मैं- ठीक है मेरी जान 

वो- चाची को जान बोलता है 

मैं- अब तो जान ही है तू मेरी 

चाची ने मेरा लंड पकड़ लिया और उसको सहलाते हुए बोली- तूने मुझे फिर से जवान कर दिया है कुंदन
मैने एक ऊँगली चाची की चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा उसने अपनी आँखे बंद कर ली ऊँगली करते करते मैं एक बार फिर से उसके होंठो को भी चूमने लगा जल्दी ही उसकी चूत रस छोड़ने लगी तो मैंने उंगली बाहर निकाल ली और ऊठ कर रसोई से सरसो का तेल एक कटोरी में भर लाया 
चाची- ये सब बाद में करियो जो आग मेरी चूत में अभी लगाई है पहले इसको बुझा दे 
मैं-आजकल तुम्हारी आग ज्यादा भड़क रही है 
चाची- भड़काई भी तूने ही है
मैं समझ गया था कि ये एक बार फिर से मेरा लण्ड चूत में लेना चाहती है पर आज मुझे उसकी गांड मारनी ही थी तो मैंने चाची को घोड़ी बना दिया और एक बार फिर से उसका कातिलाना पिछवाड़ा मेरी आँखों के सामने आ गया उसकी गांड सच में इस कदर मस्त थी की मैं बस उसके चूतड़ देखते ही पागल हो जाता था 
चाची- अब कितना तड़पायेगा मुझे कर ना 
मैंने पास रखी कटोरी में अपनी उंगलिया डुबोई और अपना लण्ड चूत में ठेल दिया कुछ धक्के लगाने के बाद मैंने अपनी रफ़्तार कम की और अपनी तेल से तर ऊँगली को उसकी गांड के छेद पर रगड़ने लगा जल्दी ही मेरी ऊँगली का कुछ हिस्सा चंदा चाची की गांड में सरक गया 
चाची- आह कुंदन तू नहीं मानेगा ना मैंने कहा न मैं झड़ जाऊ फिर तू पीछे कर लेना 
मैं-इतना इंतज़ार अब नहीं होगा चाची और तुम तो मजा लो दोनों छेदों में कुछ न कुछ है 
चाची अपनी गांड हिलाते हुए-जितना तड़पाना है तड़पा ले पर मेरी बारी भी आएगी 
मैं-नाराज क्यों होती है जानेमन ले पहले तेरी चूत की आग ही बुझाता हु
मैंने उसकी गांड से ऊँगली बाहर निकाल ली और उसकी कमर में हाथ डालते हुए उसे थोडा सा और झुकाया और चोदने लगा उस मस्तानी रांड को मस्ती भरी आहे कमरे में फिर से गूंजने लगी थी मैं बार बार उसकी नंगी पीठ को चूमता हुआ उसको जन्नत की सैर करवा रहा था और वो भी अपने जोबन का भरपूर मजा मुझ पर लुटा रही थी 
उसकी चूत एक बार फिर से रस टपकाने लगी थी जिस से लण्ड और जोश में भर गया था पर मैं झड़ना नहीं चाहता था इसलिये मैंने अपनी रफ़्तार पर काबू बनाया हुआ था मुझे बस उसके झड़ने का इंतज़ार था करीब दस बारह मिनट तक मैंने उसको घोड़ी बनाकर ही पेला और उसी अवस्था में वो झड़ गयी
वो बिस्तर पर औंधी गिर गयी मैंने कटोरी से थोड़ा तेल लिया और उसकी गांड के छेद पर टपकाने लगा उफ्फ्फ कितना मस्त नजारा था वो उसके भूरे छेद की सुंदरता को तेल की चमक ने और मस्त बना दिया था मैंने ऊँगली पे दवाब डालना शुरू किया तो वो गांड के छेद को फैलाते हुए अंदर जाने लगी 
"आह दर्द होता है "चाची बोली 

मैं- मेरे लिए थोड़ा दर्द सहले मेरी जान
 
मैं खुद भी नहीं चाहता था कि उसको ज्यादा तकलीफ हो मैं बस प्यार से उसकी गांड मारना चाहता था मैंने थोड़ा तेल और लगाया और फिर आहिस्ता से अपनी ऊँगली अंदर बाहर करने लगा तो चाची ने भी अपने चूतड़ ढीले कर लिए जो एक इशारा था कि वो भी मन से अपनी गांड मरवाना चाहती है
धीरे धीरे मैंने दो उंगलिया सरका दी तेल की चिकनाई ने मेरे काम को आसान कर दिया था गांड का छल्ला कुछ हद तक खुल गया था करीब 5 मिनट तक बस मैं उंगलियो से काम चलाता रहा फिर मैंने ढेर सारा तेल अपने पूरे लण्ड पर भी लगाया और उसे एक दम चिकना कर लिया मैंने चाची को चूतड़ खोलने को कहा तो उसने अपने हाथों से दोनों पुट्ठों को फैलाया 
मेरी मंजिल मेरी आँखों के सामने थी मैंने अपनी पोजीशन बनायीं और अपने लण्ड को गांड पे रख दिया 
चाची- आराम से करियो 
मैं-घबरा मत 
मैंने लण्ड का दवाब डालना शुरू किया तो सुपाड़ा उस बेहद टाइट छेद को खोलते हुए आगे सरकने लगा और चन्दा रानी की तकलीफ बढ़ने लगी 
मैं-दर्द हो रहा क्या 
वो-सह लुंगी तेरे लिए तेरी खुशि में ही मेरी ख़ुशी है 
मैने हल्का सा झटका दिया और सुपाड़ा लगभग पूरा गांड में घुस गया 
"आयी आयी आयी" चाची अपनी चीख़ न रोक पायी 
मैं- बस गया गया 
वो- बहुत दर्द हो रहा है 
मैं- थोड़ा दर्द तो सहन कर ले फिर मजा ही आज चाची चूतड़ ढीले छोड़ भीच मत इनको चाची की आँखों में आंसू आ गए थे पर मैंने धीरे धीरे करके पूरा लण्ड अंदर पेल दिया और उसके ऊपर लेट गया 
मैं- घुस गया पूरा 
वो-पूरा
मैं-हां बस अब बहुत आराम से करूँगा चाची तूने आज बहुत खुश कर दिया मेरी जान 
चाची अपनी तारीफ सुनकर दर्द में भी मुस्कुराने लगी और मैंने थोड़ा थोड़ा करके धक्के लगाने लगा बीच बीच में मैं उसके गालो पे पप्पी लेता कुछ देर बाद उसके बदन में भी मस्ती आने लगी तो मैंने धक्के तेज कर दिए और चाची की दर्द भरी आहे भी तेज हो गयी 
गांड लण्ड की मोटाई के हिसाब से चौड़ी हो चुकी थी कभी मैं धक्के तेज करता तो कभी हौले हौले चाची भी अब गांड मरायी का आनंद ले रही थी कुछ देर बाद मैंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और चाची को सीधी लिटा दिया 
वो सोची चूत में डालेगा पर मैंने अपने सुपाड़े पर और तेल लगाया और उसकी गांड से लण्ड लगा दिया इस बार मैंने कुछ जोर से झटका लगाया तो उसके पैर ऐंठ गए पर मेरा लण्ड उसकी टाइट गांड में घुस गया था मैंने उसके पैरों को पकड़ा और फिर से उसकी गांड मारने लगा 
आयी आईं सी सी करते हुए वो अपने पिछले छेद में मेरे लण्ड को महसूस कर रही थी उसका बदन मेरे झटको से बुरी तरह हिल रहा था करीब दस मिनट का समय मैंने और लिया और फिर चाची की गांड को अपने वीर्य से सींच दिया
थक कर हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े और फिर नींद के आगोश में चले गए सुबह वापिस आने से पहले हमने एक बार और किया फिर मैं घर आ गया तो देखा घर पे कोई नहीं था सिवाय भाभी के मैं अपने कमरे में चला गया 
कुछ देर बाद भाभी आयी और नाश्ते को मेज पर रखते हुए बोली- नाश्ता करलो रात भर खूब मेहनत की होगी 
भाभी के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था तो मैंने कुछ नहीं बोला और चुपचाप नाश्ता करने लगा वो पास ही कुर्सी पर बैठ गयी कुछ देर हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला
मैं- सब कहा गए 
भाभी- माँ सा मंदिर गयी है तुम्हारे भाई अपने दोस्तों से मिलने गए है और राणाजी अपने काम से तुम बताओ कैसी कटी रात
मैं-एकदम बढ़िया 
जैसे ही मैंने भाभी को जवाब दिया उन्होंने बर्तन उठाये और मेरी और गुस्से से देखते हुए कमरे से बाहर निकल गयी मैंने कुछ सोचा और उनके पीछे पीछे रसोई की तरफ चल दिया
भाभी बरतन धो रही थी बल्की यू कहु की अपना गुस्सा बर्तनों पर निकाल रही थी मैं समझ गया था की भाभी को कल जो सवाल मैंने पूछे थे उनसे ज्यादा गुस्सा मैंने चाची के साथ रात गुजारी है उस बात का है पर मैं कर भी क्या सकता था मेरी ज़िंदगी में सबकी अहमियत अपनी अपनी जगह थी पर इस बात को कोई समझता नहीं था 

मैंने भाभी का हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ किया 

मैं-क्या बात है किस बात का गुस्सा बर्तनों पर उतारा जा रहा है 

वो- मुझे भला किस बात का गुस्सा होगा 

मैं- अब आप मुझसे छुपाओगे 

वो- तुझसे ही सीखा है 

मैं- बताओ न 

वो- क्या बताऊँ अब तू बड़ा जो हो गया इतना बड़ा की भाभी अब क्या लगे तेरी

मैंने अपना हाथ भाभी के होंठो पर रख दिया और बोला- आज के बाद ये दुबारा मत कहना आपकी छाया तले रहा हु और रहूँगा आप ऐसी दिल तोड़ने वाली बात करोगी तो मेरा क्या होगा 

वो- और जो तू रोज मेरा दिल तोड़ता है उसका क्या 

मैं- भाभी आप पहले ये बताओ किस बात से नाराज हो जो सवाल मैंने पूछे उनसे या फिर रात को मैं चाची के साथ था उससे 

वो- कही भी मुह मार मुझे क्या और तेरे सवालो पर बात कल ही खत्म हो चुकी है 

मैं- समझ गया आप को जलन होती है जब मैं चाची के साथ होता हूं 

वो- जलन और मुझे इतनी भी कमजोर नहीं हूं मैं 

मैं- तो फिर क्या नाराजगी 

वो- कुछ नहीं 

भाभी ने अपना हाथ छुड़ाया और फिर से मुड़ने लगी पर मैंने फिर से हाथ पकड़ लिया भाभी ने जोर लगाया तो मैंने भी मजबूती दिखाई और इसी कश्मकश में वो मेरे सीने से आ लगी मेरा हाथ उसकी कमर पर आ गया 

भाभी- छोड़ मुझे 

मैंने पकड़ ढीली कर दी भाभी की चुन्नी थोड़ी सी सरक गयी तो मुझे उनके टाइट माध्यम आकार के संतरे जैसे चुचो का नजारा मिलने लगा उसने भी ढकने की कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखायी 

मैं- भाभी आपकी नाराजगी मुझे दुःखी कर रही है मैं सब सह सकता हु पर आपकी नाराजगी नहीं आपने कहा मैं कुछ नहीं पूछुंगा आपकी इजाजत के बिना घर से बाहर भी नहीं जाऊंगा पर अगर आप नाराज रहोगी तो ।।।।।।।।

भाभी ने मुझे जाने को कहा तो मैं वहाँ से आकर धुप मे बैठ गया कुछ देर बाद भाभी भी पास आकर बैठ गयी और बोली- सबको इतने वचन देते फिरते हो भाभी को कुछ दोगे

मैं- सबकुछ तो आपका ही है भाभी और जो आपका है तो उसे मांगना क्या 

वो- सच में 

मैं- कोई संदेह 

वो- तो फिर ठीक है अगर मेरा इतना ही मान है तो तुम्हे चाची के साथ अपने इस अवैध संबंध को खत्म करना पड़ेगा 

मैं- वाह भाभी माँगा तो क्या माँगा कुछ भी नहीं अगर आपकी यही इच्छा है तो ये ही सही जब तक आप खुद अपने मुह से चाची के पास जाने को नहीं कहेंगी मैं उसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा मेरे लिए भाभी सबसे पहले है दुनिया बाद में 

वो- कुंदन मैं बस इतना चाहती हु की तुम इन सब से दूर रहो ये सब तुम्हारे लिए ठीक नहीं है माना की आजकल तुम्हारा रुतबा बहुत बढ़ गया है पर फिर भी हम चाहते है की तुम सम्भल कर रहो ये हवस की आग दिन दिन बढ़ती जाती है और कुछ हासिल नहीं होता सिवाय जलने के रही बात जयसिंह गढ़ की तो उसमें दिलचस्पी मत लो कुछ राज़ ऐसे होते है क़ी कुछ नहीं मिलता तुम्हारे सामने नयी ज़िन्दगी पड़ी है गुजरे वक़्त की धूल ना झाड़ो

मैं- जैसा आप कहे 

वो मुस्कुराई और बोली- तो बताओ कल क्या क्या किया तुमने 

मैं- आपको नहीं पता क्या क्या होता है 

वो- उफ्फ्फ तुम्हारी ये हाज़िर जवाबी जब भी चाची को देखती हूं मैं सोचती हूं कैसे ये औरत अपने बेटे के साथ ।।।।। पर मुझे ये भी लगता है की एक बार तो तुमको उसके साथ देखना चाहिए था 

मैं- क्या क्या सोचती हो 

वो- तुम कर सकते हो हम सोच भी न सके 

मैं- आपके दिल में आखिर चल क्या रहा है भाभी 

वो- काश तुम्हे बता पाती खैर हम तुमपर से तमाम पाबंदिया हटाते है तुम जहा जाना चाहो जा सकते हो 

मैं- एक दिन मे क्या हो गया सरकार

वो- कल हम गुस्से में थे पर फिर हमने सोचा और हम जानते है कि तुम चाहे जो करो पर हमारे विश्वास को ठेस नहीं पहुँचोगे 

मैं- भाभी एक बात कहु 

वो- हाँ 

मैं- गले लगाओगी एक बार 

भाभी उठी और अपनी बाहे फैलाते हुए मुझे अपने सीने से लगा लिया मुझे तो पता भी न चला की कब हौले से उन्होंने मेरे गाल पर चुम लिया हमे तो कुछ समझ ही नहीं आया उसके बाद भाभी नीचे को जाने लगी पर जाते जाते सीढ़ियों पर रुकी और फिर मेरी और देखते हुए चली गयी
 
मैं वापिस अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेटते हुए भाभी में अचानक आये इस बदलाव को समझने की कोशिश करने लगा भाभी का और मेरा रिश्ता बहुत दोस्ताना था कुछ नटखट कुछ चुलबुला पर हमारी दहलीज़ बहुत स्पष्ट थी पता नहीं कब सोचते सोचते मुझे नींद आ गयी 

जब मैं सोकर उठा तो चारो तरफ अँधेरा फैला हुआ था मैंने देखा बिजली नहीं थी मैंने लैंप जलाया और नीचे आया तो घर पर कोई दिख नहीं रहा था न कोई उजाला था घर के बाहर आकर देखा तो वहा भी कोई नहीं था न ही गाड़िया थी सिवाय मेरी गाड़ी के मैं सोचने लगा कहा गए सब लोग 

अब जब कोई नहीं घर पर तो मैं रह कर क्या करूँ मैंने अंदर से चाबी ली और अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला पर फिर बंद कर दिया औऱ अपनी साइकिल उठा ली और चल दिए अपनी उस अंजानी मंज़िल की ओर मैंने अपने खेतों को पार किया इलाके में बिजली न होने से चारो तरफ घुप्प अँधेरा फैला हुआ था 

धीरे धीरे मैं पूजा के घर की तरफ बढ़ रहा था कि तभी मेरी सायकिल पंक्चर हो गयी 

"हो गयी मुसीबत" मैं गुस्से से बोला और अब कोई चारा नहीं था तो उसे घसीटते हुए मैं आगे बढ़ने लगा और कुछ देर बाद एक दुराहा आया जहा से दो रास्ते पूजा के घर की तरफ जाते थे एक में थोड़ा समय लगता था और एक खारी बावड़ी के पास से जाता था हमेशा की तरह मुझे ही चुनाव करना था पर चूँकि मेरी साइकिल पंचर थी तो मैंने सोचा की खारी बावड़ी के पास से ही गुजर जाऊंगा टाइम बचेगा

वहाँ से गुजरने में मुझे डर भी लगता था पर मुझे बस पूजा का दीदार करने की जल्दी थी तो मैंने उसी रास्ते पर अपने कदम बढ़ा दिए अब इंतज़ार करना जो मुश्किल था
भाभी बरतन धो रही थी बल्की यू कहु की अपना गुस्सा बर्तनों पर निकाल रही थी मैं समझ गया था की भाभी को कल जो सवाल मैंने पूछे थे उनसे ज्यादा गुस्सा मैंने चाची के साथ रात गुजारी है उस बात का है पर मैं कर भी क्या सकता था मेरी ज़िंदगी में सबकी अहमियत अपनी अपनी जगह थी पर इस बात को कोई समझता नहीं था 

मैंने भाभी का हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ किया 

मैं-क्या बात है किस बात का गुस्सा बर्तनों पर उतारा जा रहा है 

वो- मुझे भला किस बात का गुस्सा होगा 

मैं- अब आप मुझसे छुपाओगे 

वो- तुझसे ही सीखा है 

मैं- बताओ न 

वो- क्या बताऊँ अब तू बड़ा जो हो गया इतना बड़ा की भाभी अब क्या लगे तेरी

मैंने अपना हाथ भाभी के होंठो पर रख दिया और बोला- आज के बाद ये दुबारा मत कहना आपकी छाया तले रहा हु और रहूँगा आप ऐसी दिल तोड़ने वाली बात करोगी तो मेरा क्या होगा 

वो- और जो तू रोज मेरा दिल तोड़ता है उसका क्या 

मैं- भाभी आप पहले ये बताओ किस बात से नाराज हो जो सवाल मैंने पूछे उनसे या फिर रात को मैं चाची के साथ था उससे 

वो- कही भी मुह मार मुझे क्या और तेरे सवालो पर बात कल ही खत्म हो चुकी है 

मैं- समझ गया आप को जलन होती है जब मैं चाची के साथ होता हूं 

वो- जलन और मुझे इतनी भी कमजोर नहीं हूं मैं 

मैं- तो फिर क्या नाराजगी 

वो- कुछ नहीं 

भाभी ने अपना हाथ छुड़ाया और फिर से मुड़ने लगी पर मैंने फिर से हाथ पकड़ लिया भाभी ने जोर लगाया तो मैंने भी मजबूती दिखाई और इसी कश्मकश में वो मेरे सीने से आ लगी मेरा हाथ उसकी कमर पर आ गया 

भाभी- छोड़ मुझे 

मैंने पकड़ ढीली कर दी भाभी की चुन्नी थोड़ी सी सरक गयी तो मुझे उनके टाइट माध्यम आकार के संतरे जैसे चुचो का नजारा मिलने लगा उसने भी ढकने की कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखायी 

मैं- भाभी आपकी नाराजगी मुझे दुःखी कर रही है मैं सब सह सकता हु पर आपकी नाराजगी नहीं आपने कहा मैं कुछ नहीं पूछुंगा आपकी इजाजत के बिना घर से बाहर भी नहीं जाऊंगा पर अगर आप नाराज रहोगी तो ।।।।।।।।

भाभी ने मुझे जाने को कहा तो मैं वहाँ से आकर धुप मे बैठ गया कुछ देर बाद भाभी भी पास आकर बैठ गयी और बोली- सबको इतने वचन देते फिरते हो भाभी को कुछ दोगे

मैं- सबकुछ तो आपका ही है भाभी और जो आपका है तो उसे मांगना क्या 

वो- सच में 

मैं- कोई संदेह 

वो- तो फिर ठीक है अगर मेरा इतना ही मान है तो तुम्हे चाची के साथ अपने इस अवैध संबंध को खत्म करना पड़ेगा 

मैं- वाह भाभी माँगा तो क्या माँगा कुछ भी नहीं अगर आपकी यही इच्छा है तो ये ही सही जब तक आप खुद अपने मुह से चाची के पास जाने को नहीं कहेंगी मैं उसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा मेरे लिए भाभी सबसे पहले है दुनिया बाद में 

वो- कुंदन मैं बस इतना चाहती हु की तुम इन सब से दूर रहो ये सब तुम्हारे लिए ठीक नहीं है माना की आजकल तुम्हारा रुतबा बहुत बढ़ गया है पर फिर भी हम चाहते है की तुम सम्भल कर रहो ये हवस की आग दिन दिन बढ़ती जाती है और कुछ हासिल नहीं होता सिवाय जलने के रही बात जयसिंह गढ़ की तो उसमें दिलचस्पी मत लो कुछ राज़ ऐसे होते है क़ी कुछ नहीं मिलता तुम्हारे सामने नयी ज़िन्दगी पड़ी है गुजरे वक़्त की धूल ना झाड़ो

मैं- जैसा आप कहे 

वो मुस्कुराई और बोली- तो बताओ कल क्या क्या किया तुमने 

मैं- आपको नहीं पता क्या क्या होता है 

वो- उफ्फ्फ तुम्हारी ये हाज़िर जवाबी जब भी चाची को देखती हूं मैं सोचती हूं कैसे ये औरत अपने बेटे के साथ ।।।।। पर मुझे ये भी लगता है की एक बार तो तुमको उसके साथ देखना चाहिए था 

मैं- क्या क्या सोचती हो 

वो- तुम कर सकते हो हम सोच भी न सके 

मैं- आपके दिल में आखिर चल क्या रहा है भाभी 

वो- काश तुम्हे बता पाती खैर हम तुमपर से तमाम पाबंदिया हटाते है तुम जहा जाना चाहो जा सकते हो 

मैं- एक दिन मे क्या हो गया सरकार

वो- कल हम गुस्से में थे पर फिर हमने सोचा और हम जानते है कि तुम चाहे जो करो पर हमारे विश्वास को ठेस नहीं पहुँचोगे 

मैं- भाभी एक बात कहु 

वो- हाँ 

मैं- गले लगाओगी एक बार 

भाभी उठी और अपनी बाहे फैलाते हुए मुझे अपने सीने से लगा लिया मुझे तो पता भी न चला की कब हौले से उन्होंने मेरे गाल पर चुम लिया हमे तो कुछ समझ ही नहीं आया उसके बाद भाभी नीचे को जाने लगी पर जाते जाते सीढ़ियों पर रुकी और फिर मेरी और देखते हुए चली गयी

मैं वापिस अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेटते हुए भाभी में अचानक आये इस बदलाव को समझने की कोशिश करने लगा भाभी का और मेरा रिश्ता बहुत दोस्ताना था कुछ नटखट कुछ चुलबुला पर हमारी दहलीज़ बहुत स्पष्ट थी पता नहीं कब सोचते सोचते मुझे नींद आ गयी 
 
जब मैं सोकर उठा तो चारो तरफ अँधेरा फैला हुआ था मैंने देखा बिजली नहीं थी मैंने लैंप जलाया और नीचे आया तो घर पर कोई दिख नहीं रहा था न कोई उजाला था घर के बाहर आकर देखा तो वहा भी कोई नहीं था न ही गाड़िया थी सिवाय मेरी गाड़ी के मैं सोचने लगा कहा गए सब लोग 

अब जब कोई नहीं घर पर तो मैं रह कर क्या करूँ मैंने अंदर से चाबी ली और अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला पर फिर बंद कर दिया औऱ अपनी साइकिल उठा ली और चल दिए अपनी उस अंजानी मंज़िल की ओर मैंने अपने खेतों को पार किया इलाके में बिजली न होने से चारो तरफ घुप्प अँधेरा फैला हुआ था 

धीरे धीरे मैं पूजा के घर की तरफ बढ़ रहा था कि तभी मेरी सायकिल पंक्चर हो गयी 

"हो गयी मुसीबत" मैं गुस्से से बोला और अब कोई चारा नहीं था तो उसे घसीटते हुए मैं आगे बढ़ने लगा और कुछ देर बाद एक दुराहा आया जहा से दो रास्ते पूजा के घर की तरफ जाते थे एक में थोड़ा समय लगता था और एक खारी बावड़ी के पास से जाता था हमेशा की तरह मुझे ही चुनाव करना था पर चूँकि मेरी साइकिल पंचर थी तो मैंने सोचा की खारी बावड़ी के पास से ही गुजर जाऊंगा टाइम बचेगा

वहाँ से गुजरने में मुझे डर भी लगता था पर मुझे बस पूजा का दीदार करने की जल्दी थी तो मैंने उसी रास्ते पर अपने कदम बढ़ा दिए अब इंतज़ार करना जो मुश्किल था
वक़्त पता नहीं कैसे बीता जब होश संभला तो ऊपर आसमान में सूरज चमक रहा था आँखे खुलने से मना कर रही थी पर जैसे तैसे होशो हवास संभाले तो देखा की मैं बावड़ी के चबूतरे पर पड़ा था मैंने अपने आप को राख में लिपटे हुए पाया 
इससे एक बात स्पष्ट थी की कल जो भी हुआ वो न कोई छलावा था न कोई आँखों का धुआं मैंने जो भी देखा था वो सच था मैंने राख को अपनी हथेली से टटोला अब भी गर्म थी पर अगर ये सच था तो वो औरत कौन थी और अगर वो जली थी तो फिर उसका शरीर कहा गया
किसी तूफान की तरह बहुत सारे सवाल अनचाहे ही दस्तक दे रहे थे जिनके जवाब जानना बहुत ही जरुरी था चूँकि चोटे लगी थी तो अब उनका दर्द भी हो रहा था प्यास से गला सुख रहा था वो अलग अपने बदन से राख झाड़ते हुए मैं उस पुराने से कमरे के पास आया
तो मैंने पाया कि कुण्डी अपनी जगह पर सही तरीक़े से लगी हुई थी जबकि मुझे अच्छे से याद था की कल मैंने कब्ज़ा तोड़ कर दरवाजा खोला था मैंने फिर से प्रयास किया पर इस बार कब्ज़ा जरा भी हिला नहीं मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही कल तो झट से टूट गया था पर एक सवाल ये भी था की जब कल टूट ही गया तो आज ये लगा कैसे
तभी मेरी नजर पास रखे मटके पर पड़ी मटका एकदम नया था मैंने ढक्कन हटाया और देखा अंदर बिलकुल ताज़ा पानी था मैंने उसे अपने मुह से लगाया और पीने लगा पानी पीकर कुछ चैन मिला तो मैंने रात की हर बात पे गौर करना शुरू किया शुरू से लेकर अंत तक 
की कैसे क्या हुआ औऱ एक बार फिर से मैं उस राख़ वाली जगह पर आया तो मुझे याद आया कैसे उस जलती हुई औरत ने मुझे देख कर अपनी बाहे फैलायी थीं और उसकी आँखे ।।।।उसकी वो आँखे उस जलते चेहरे को जैसे मैंने पहले भी कही देखा था पर कहा मैं सोचने लगा 
अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे की या तो किसी से पूछा जाये या फिर इस पुरी जगह को बारीकी से खंगाला जाये ताकि कुछ सुराग सा मिले अच्छा खासा पूजा से मिलने जा रहे थे कहा इस बावड़ी के झमेले में फस गए जान सलामत थी ये ही बड़ी बात थी


पर समस्या ये थीं की ये पूरी ज़मीन तक़रीबन दो ढाई एकड़ में फैली हुई थी और कुछ तरफ बेहद घने पेड़ झाड़िया थी और अकेले के बस का काम भी नहीं था अब किसकी मदद ली जाये मैंने सोचते हुए उस पूरी जमीन के टुकड़े का एक चक्कर लगाया और फिर वापिस उसी जगह पर आ गया
कल रात जो हुआ किसी को बताये तो कोई विश्वास नहीं करेगा और इस बात का पता लगाना अब तो बेहद जरुरी सर में दर्द होने लगा तभी ध्यान आया साइकिल का अब जो भी था उसको साइकिल की क्या जरुरत आन पडी वो भी पंक्चर वाली की
सोचा पूजा से मिल लिया जाये कुछ बाते करेंगे कुछ रोटी पानी खाएंगे तो पैदल ही चल दिया पर उसके घर पर ताला लगा था ये पूजा भी न भटक रही होगी पता नहीं कहा तो कुछ देर इंतज़ार करके फिर मैं अपने दादा की जमीन की तरफ चल दिया
झोपडी का दरवाजा खोला और अंदर देखा तो पूजा सो रही थी मैंने उसे जगाया तो आँखे मलती हुई वो उठी
पूजा- कब आये और ये क्या हाल बना रखा है और ये खून क्या हुआ कुंदन 
मैं- कुछ नहीं गिर गया था तो चोट लग गयी
वो- ऐसे कैसे लग गयी तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो पहले के ज़ख्म भरे नहीं और नए पाल रहे हो 
मैं- शांत हो जा मेरी झाँसी की रानी और ये बता तू यहाँ क्या कर रही हैं
वो- तेरी याद आ रही थीं तो इधर आ गयी
मैं- और तेरे पशु
वो- बेच दिए 
मैं- क्यों 
वो- बस यु ही सोच रही हु घर की मरम्मत करवा लू साथ ही एक दो नए कमरे बनवा लू
मैं- ह्म्म्म तू बस बोल मैं मजदुर भेज देता हूं
वो- रहने दे मैं करवा लुंगी 
मैं-कभी हमे भी सेवा का मौका दो 
वो- सोचती हूं तुम बताओ 
मैं- बस बढ़िया तुम्हारी याद आ रही थी तो चले आये 
वो-और याद न आती तो 
मैं- तब भी चले आते 
वो- कहा से सीखा ये बाते बनाना 
मैं- तुमसे 
वो- अच्छा जी 
मैं- भूख लगी है खाना खिलायेगी 
वो- थोड़ी देर बैठ पास मेरे फिर घर चलते है 
मैं- ठीक है
कुछ तो बात थी इस लड़की में मैं बस खिंचता चला आता था इसकी और जैसे वो पल पल छा रही थी मुझ पर मुझ तनहा को अगर कही कुछ घडी सुकून मिलता था तो बस इसके पास ऐसा लगता था की जैसे बरसो की पहचान है मैंने अपना सर उसकी गोद में रख दिया
वो मेरे बालो में हाथ फेरने लगी मेरी चोट को सहलाने लगी उसके आगोश में आराम सा मिला मेरी आँखे नींद के बोझ से बंद सी होने लगी तो मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया 
वो- नींद आ रही है 
मैं- हाँ 
वो- आराम करो मैं यही खाना ले आती हु 
मैं- नहीं मैं भी चलता हूं नहा भी लूंगा और कपडे भी बदल लूंगा तो हम वहाँ से चल पड़े उसके घर की तरफ आपस में हंसी मजाक करते हुए पर कल रात का पूरा घटनाक्रम अभी भी मेरे जेहन में था 
खैर मैं फिर नहाने चला गया और वो खाना बनाने लगी उसके बाद हम साथ बैठ कर खाना खा ही रहे थे की मैंने पूछा - पूजा खारी बावड़ी के बारे में कुछ जानती हो क्या 
और उसका निवाला उसके हाथ में ही रह गया कुछ देर वो खामोश रही और बोली- जानना क्या कभी वो हमारी होती थी
मैं- मतलब
वो- कभी मेरे पुरखो ने उसे बनवाया था पर अब वो किसी खँडहर की तरह है अपने वजूद की कोशिश करता खंडहर किसी ज़माने में आने जाने वाले वहा बैठ कर सुस्ता लिया करते थे पानी पी लिया करते थे पर काफी साल से उसकी हालत खस्ता है 
मैं - मैंने सुना है कि वह बावड़ी भुतहा है 
वो - सुना है तो होगी 
मैं -तुझे क्या लगता है 
वो - कुछ नहीं रोटी खा पहले 
मैं - पुजा एक बात कहु 
वो - बोल 
मैं - कल पूरी रात मैं खारी बावड़ी पर था 
उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैंने कुछ गलत बोल दिया हो पर फिर वो चुपचाप खाना खाती रही पर उसके चेहरे पर एक गंभीरता का भाव देखा मैंने मैं भी अपना खाना खाते हुए सोचने लगा की पूजा क्या बताती हैं
मेरी नजरे उसके चेहरे पर जम गयी थी पर वो जैसे बहुत गहरी सोच में डूबी थी फिर वो बोली- घूमने चलेगा 

मैं- कहा 

वो- जहा तू कल रात था 

मैं- चल 

वो- अभी नहीं रात को 

मैं- जैसा तू कहे 

वो-कुंदन पर तुझे पक्का विश्वास है कि वहाँ जो तूने देखा वो ।।।

मैं- तुझसे कभी झूठ बोला है मैंने और तू तो खुद जादू करती है ऐसी वैसी बात होगी तो तू पकड़ लेना 

वो- मुझे कहा जादू आता है वो तो मैं किताब में पढ़ के कोशिश कर रही थी फिर तू मिला तबसे जादू किया नहीं 

मैं- छोड़ आ थोड़ी देर आराम करते है फिर रात को पता करेंगे 
 
मैं अन्दर आया और आते ही माँ सा के हजारो सवालों का सामना करना पड़ा उसके बाद बड़ी मुस्किल से जान छुड़ा कर अपने कमरे में गया और कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोचने लगा दरअसल मैं पूजा और जयसिंह गढ़ के बारे में सोच रहा था की आखिर पूजा ने मुझसे वो वचन क्यों लिया होगा दरअसल मेरे पास सोचने का कारण था और वो कारण ये था की मुझे पता था की पहले दोनों गाँवो में भाई-चारा हुआ करता था और हमारा परिवार गाँव में रसूखदार था तो जो भी बात रही होगी हमारा परिवार उससे जुड़ा अवश्य होगा 
पर सवाल तो यही था की पूजा ने मेरे हाथ बांध दिए थे तो मैं वहा जा नहीं सकता था और पता करना बेहद जरुरी था पर तभी भाभी आ गयी तो मेरे ख्याल अधूरे रह गए 
भाभी – तो कहा कटी रात तुम्हारी 
मैं- कुवे पर था भाभी 
वो- झूठ मत बोलो 
मैं- आपसे झूट क्यों बोलूँगा 
वो- अब जबकि तुमने ताज़ा ताज़ा दुश्मनी मोल ली है जयसिंह गढ़ वालो से अंगार को हरा के कुंदन वो लोग पीठ पीछे वॉर जरुर करेंगे जानते हो पूरी रात बस आँखों आँखों में काटी है हमने और तुम हो की कोई फरक नहीं पड़ता है ऊपर से तबियत ख़राब पर तुम्हे क्या फरक पड़ता है तुम्हे तो बस अपनी दुनिया में जीना है बाकी इस घर के लोगो की फ़िक्र ना पहले थी न अब है तुम्हे 
मैं- भाभी, मौसम ख़राब हो गया था तो वही रुकना पड़ा इतनी सी तो बात है 
वो- हद हो गयी झूठ की कल तुम कुवे पर नहीं थे हम और माँ सा कल गए थे वहा पर 
पता नहीं क्यों भाभी के आगे मेरा एक झूठ नहीं चलता था अब क्या कहते उनको पर क्या ये सही समय था पूजा के बारे में उनको बताने का जबकि जयसिंह गढ़ के नाम से वो वैसे ही चिंतित थी भाभी की कजरारी आँखे गुस्से से दहक रही थी मैं चुप रहा इसके सिवा मैं कर भी तो क्या सकता था फिर कोशिश होने लगी भाभी को मानाने की इस बात के साथ की आगे से बिना बताये कही नहीं जाऊंगा और उनकी हिदायतों का ध्यान रखूँगा 
पर पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था की जैसे कभी ना उतरने वाला बोझ सा उठा लिया है हमने अब मदद की सख्त जरुरत थी पर ऐसा कौन जिस से मदद मिले एक बार सोचा की लाल मंदिर के पुजारी से बात करू पर वो राणाजी को बता सकता था तो आखिर किया जाये स्तिथि बड़ी विचित्र थी और हम थे अंधकार में वैसे कायदे से तो हमे इस पचड़े में पड़ना नहीं चाइये था पर बस आजकल हम मुसीबतों को नहीं मुसीबते हमे गले लगा रही थी 
सर दुखने लगा था वो अलग तो मैं भाभी के पास गया 
मैं- भाभी सर दुःख रहा है थोडा दबा देंगी 
वो- हम्म्म , जरा ये कपडे अलमारी में रख दू आ बैठ जरा 
मैं- नए कपडे लिए है 
वो- हां कुछ सिलवाये है तू बता कौन सा जंचेगा हम पर 
मैं- आप कुछ भी पहनो सुन्दर लगती हो 
वो- अच्छा जी, चलो किसी ने तो हमारी तारीफ की वर्ना कान तरस गए थे 
मैं- भैया नहीं करते क्या तारीफ 
वो-उनको हमारे लिए फुर्सत कहा 
मैं- अब आपके बीच में मैं क्या कह सकता हु 
वो- क्यों नहीं कह सकते तुम 
मैं- भाभी कुछ कहना है मुझे 
वो- हां 
मैं- कुछ पैसे मिलेंगे 
वो- पैसे, जरुर मिलेंगे पर किसलिए चाहिए 
मैं- कुछ सामान खरीदना है 
वो- क्या 
मैं- वो नहीं बता सकता 
वो- तो पैसे नहीं है मेरे पास माँ सा से लो 
मैं- भाभी आज तक आपसे ही तो लेते आया हु 
वो- तो बताओ 
मैं- कुछ नहीं जाने दो 
वो- मेरे प्यारे देवर जी नाराज हो गए क्या 
मैं- आपसे नाराज होकर कहा जाऊंगा भाभी 
वो- तो बताओ ना हमे अच्छा लगता है 
मैं- जी वो........ मैं सोच रहा था की कुछ कपडे ले लू 
वो- पर कुछ दिन पहले ही तो तुमने नए कपडे सिलवाये है ओह! अच्छा अब समझी तोहफा लेना है तुम्हे 
मैं- किसके लिए 
वो- उसके लिए 
मैं- क्या भाभी 
भाभी उठी और अपनी अलमारी खोली और एक के बाद एक तरह तरह की ड्रेस का ढेर लगा दिया और बोली- कुंदन, छांट लो जो तुम्हे पसंद आये हमारी तरफ से तुम्हारी उसके लिए छोटी सी भेंट 
मैंने भाभी की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा पड़ी 
वो- शरमाने की जरुरत नहीं इतना तो हमारा भी हक़ है अब तुम्हारे खास हमारे भी तो कुछ हुए ना 
कितना समझती थी वो मुझे बिना कहे ही सब जन लिया था उन्होंने 
मैं- आप ही छांट दो 
भाभी ने एक के बाद एक कई ड्रेस अलग रख दी और फिर अपनी अलमारी से सोने के कंगन निकाले और बोली- ये उसको हमारी तरफ से देना 
मैं- इसकी जरुरत नहीं भाभी 
वो- हमारी तरफ से देना वो समझ जाएगी 
मैं- क्या समझ जाएगी 
वो- हमने कहा न वो समझ जाएगी आओ मैं सर दबा देती हु 
मैं निचे बैठ गया और भाभी कुर्सी पर बैठे हुए मेरे सर को दबाने लगी तो कुछ आराम सा मिला मैं सोचने लगा की भाभी को उसके बारे में बता दू या नहीं 
भाभी- क्या सोच रहे हो 
मैं- कुछ नहीं 
वो- बताओ ना 
मैं- क्या है मेरे पास सोचने को भाभी बस ख्याल आया की लाल मंदिर की तरफ घूम आऊ 
वो- क्या जरुरत है वहा जाने की नहीं जाना उस तरफ 
मैं- आप कहती है तो नहीं जाता पर एक सवाल है 
वो- क्या 
मैं- आपके पिताजी राणाजी के मित्र है ना 
वो- हाँ 
मैं- तो आपको राणाजी के सभी मित्रो के बारे में पता होगा 
वो- राणाजी के बहुत कम मित्र है मैं सबको तो नहीं जानती पर कुछ एक के बारे में पता है 
मैं- तो ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में भी पता होगा आपको 
भाभी के हाथ रुक गए 
वो- उठो 
मैं- क्या हुआ 
वो- क्या खिचड़ी पक रही है तुम्हारे मन में हम अभी इसी वक़्त जानना चाहेंगे 
मैं- क्या हुआ भाभी 
वो- सुना नहीं हमने क्या पूछा 
मैं- मैं बस ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में पूछना चाहता था 
वो- कुंदन मेरी आँखों में देखो क्या दीखता है 
मैं- समझा नहीं भाभी 
वो- जिस राह पर चलने की सोच रहे हो ना वहा पर कदम कदम पर कांटे बिछे है हम सब की एक हद है और हमारा हुक्म है की इस हद को तुम कभी पार नहीं करोगे आज से हमारी मर्ज़ी से बिना तुम इस घर से बाहर नहीं जाओगे तुम्हारी पढाई- लिखाई सब यही होगी हम तुम्हारे मास्टरों से बात कर लेंगे तुम्हे जो चाहिए सब यही मिल जायेगा पर इस घर से तुम्हारे कदम बाहर नहीं जायेंगे 
मैंने पहली बार भाभी की आँखों में एक आग दिखी मैं कुछ कहना चाहता था पर भाभी के तेवर देख कर मैं खामोश हो गया भाभी कमरे से बाहर चली गयी थी पर मैं इतना तो जान गया था की हमारा बहुत कुछ लेना देना है पूजा के परिवार से पर क्या बस ये पता करना था ख्यालो ख्यालो में ना जाने कब साँझ घिर आयी मेरी तन्द्रा जब टूटी जब भाई और चाची लौट आये और तब मुझे ख्याल आया की भाई मेरी बात नहीं टालेगा भाई से पूछना पड़ेगा कुछ जुगत लगाके
 
रात को भाई पेग लगा रहा था छत पर तो मैं भी चला गया 

मैं- भाई और बताओ कैसा रहा प्रोग्राम 

वो- बढ़िया ले सलाद खा 

मैंने सलाद खाते हुए पूछा- भाई क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हु 

वो- हां यार जो दिल करे 

मैं- पक्का 

वो- पूछ ना 

मैं सवाल करने ही वाला था की भाभी आ गयी और बोली- खाना तैयार है आप कहो तो लगा दू 

भाई-मुझे अभी नहीं खाना तुम कुंदन के लिए लगा दो 

मैं- मुझे भी भूख नहीं है 

भाभी- भूख क्यों नहीं है 

मैं- मेरी भूख मर गयी है 

भाभी- तुम्हारी नाराजगी जायज है पर इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती 

भाई- कैसी नाराजगी क्या बात है हमे भी बताओ 

भाभी- आपके भाई को ठाकुर अर्जुन सिंह के बारे में जानना है 

भाई ने अपना गिलास टेबल पर रखा और बोला- कुंदन अभी इन बातो का समय नहीं जब समय आएगा तो तुम खुद जान जाओगे 

मैं- भाई सा मैं जानना चाहता हु की दोनों गाँवो की दुश्मनी की असली वजह क्या है 

भाई- देखो कुंदन कुछ बाते बस बाते होती है और फिर दुश्मनी को कोई वजह नहीं होती है तुम इन पचड़ो में मत पडो राणाजी को पता चला तो घर में कलेश होगा वो वैसे ही नाराज है तुमसे 

मैं- पर भाई 

वो- पर वर कुछ नहीं बात ख़तम चलो खाना खाते है 

मैं- भूख नहीं है मुझे 

भाभी- तो मत खाओ, मैं भी देखती हु कब तक नहीं खाओगे और अगर फिर भी कुछ पूछना है तो निचे राणाजी है उनसे सवाल करो 

भाभी को पता नहीं किस चीज़ का गुस्सा आ रहा था पर तभी चाची आ गयी तो बातो का विषय बदल गया 

वो- कुंदन सुन, आज रात तू हमारे यहाँ सोने आ जा 

मैं- भाभी ने घर से बाहर जाने को मना किया है 

वो- क्यों और क्या वो तेरा घर नहीं है तू कहा घर से बाहर जा रहा है घर में ही तो आयेगा ना वो तो मैं इस लिए बोल रही थी की तेरे मामा ने कुछ गहने दिए है मुझ अकेली को डर लगेगा कल तो राणाजी को दे दूंगी वो बैंक के लाकर में रख आयेंगे 

भाभी- तो अभी दे दो न चाची

चाची- अब रात को कहा सूटकेस खोलूंगी और फिर जस्सी तू इतना क्यों मना कर रही है पहले कभी क्या ये हमारे घर नहीं सोया 

भाई- जाने दे जस्सी, कही भी सोये है तो अपने ही घर 

अब भाई के आगे भाभी क्या कहती इतना ही बोली- ठीक है पर खाना खाके जाना और चाची के घर से सुबह सीधा यही आना कही बाहर ना निकल जाना 

मैं- जी जैसा आप कहे 

उसके बाद मैंने खाना खाया मेरी नजरे बस चाची की मटकती गांड पर ही थी जी कर रहा था अभी भर लू उसको अपनी बाहों में और रगड़ डालू काली साड़ी में उसका हुस्न हिलोरे मार रहा था जब उसने मेरी तरफ देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरी तो मेरा लंड पेंट में बुरी तरह से फद्फदाने लगा चाची सबसे नजरे बचा कर अपनी कातिल अदाओ की बिजलिया मुझ पर गिरा रही थी निवाला निचे उतरना मुश्किल होने लगा था 

वैसे भी जब जिस्म की प्यास जागती है तो बाकि हर भूख-प्यास की उसके आगे क्या कहानी पर मैं अभी और इंतजार करना चाहता था और ये भी चाहता था की भाभी से अब सामना न हो क्योंकि एक तो वो पुरे दिन से नाराज थी और अब जब मैं चाची के साथ जाने वाला था तो वो और किलस गयी थी तो मैंने सिलसिले को दूसरी बातो की तरफ मोड़ दिया करीब घंटे भर तक मैं और चाची बस इधर उधर की गपे लड़ाते रहे वो पिछले दो दिन की कहानी बताती रही 

तो करीब घंटे भर बाद मैं चाची के साथ उसके घर आ गया जैसे हमने दरवाजा बंद किया मैंने लपक कर उसको अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके लाल सुर्ख होंठो को अपने मुह में भर लिया और वो भी बिना किसी लाग लपेट के मेरा सहयोग करने लगी किस करते करते मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही उसकी गांड को सहलाने लगे थे तो वो भी उत्तेजित होने लगी 

पांच-सात मिनट तक बस उसके होंठो को ही निचोड़ता रहा मैं और फिर उसको अपनी गोदी में उठा कर उसके कमरे की तरफ बढ़ गया उसने भी अपनी बाहे मेरे गले में डाल दी मैंने उसे बिस्तर पर पटका और उसपे चढ़ गया चाची ने मेरी आँखों में आँखे डालते हुए अपने होंठ एक बार फिर से मेरे लिए खोल दिए और हमारी जीभ एक बार फिर फिर से आपस में रगड़ खाने लगी 

चाची के अन्दर एक आग थी कामुकता की और इस आग में आज मैं एक बार फिर से जलना चाहता था कुछ देर की चूमा चाटी के बाद मैं धीरे से उसके कान में बोला- पूरी रात चोदुंगा मेरी जान 

वो- चोद ले 

मैंने चाची के आँचल को साइड में किया और उसके ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाने लगा चाची मस्ताने लगी और उसका हाथ मेरे लंड पर पहुच गया तो मैंने अपने कपडे उतार दिए चाची ने भी साड़ी खोल दी अब वो बस ब्लाउज और पेटीकोट में थी चाची ने खुद अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किये और मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा काले ब्लाउज के अन्दर सफ़ेद ब्रा में कैद उसके कबूतर बाहर आने को तड़प रहे थे 


और कुछ पल बाद ही ब्रा भी उतर गयी उसके चुचुक देख कर मेरे मुह में पानी आने लगा पर तभी चाची ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे लंड पर टूट पड़ी उसने बड़ी तेजी से लंड को अपनी मुट्टी में कसा और फिर अपना हाथ ऊपर निचे करने लगी उसकी आँखों में जैसे नशा उभर आया था उसने अपना मुह थोडा सा खोला और अपने दहकते होंठ मेरे लंड के सुपाडे पर रख दिए

मेरे तन बदन में मस्ती भरने लगी और मेरा लंड और बुरी तरह से ऐंठने लगा चाची कुछ देर बस सुपाडे को ही किसी टॉफी की तरह चुस्ती रही और फिर उसने लगभग आधा लंड अपने मुह में ली लिया और उसको मजे से चाटने लगी चूसने लगी मैं इस कदर मस्ती में डूब चूका था की चाची के सर को अपने लंड पर दबाने लगा जैसे मैं पूरा लंड उसके हलक में उतार देना चाहता हु 

वो भी मजे से चुप्पे मारते हुए मुझे मुखमैथुन का भरपूर मजा दे रही थी वो बहुत अनुभवी थी चुदाई के खेल की और किसी खेली खायी औरत के साथ चुदाई का सुख प्राप्त करना हमेशा से ही आनंद दायक रहा है और आज भी ऐसा ही था पर मुझे झड़ने का भी डर था तो मैंने अपना लंड उसके मुह से निकाल लिया और चाची का पेटीकोट भी खोल दिया 
 
अब उसके मादक बदन पर बस एक काली कच्छी ही थी जो उसके मतवाले नितम्बो पर कसी हुई बेहद सुन्दर लग रही थी मैं अहिस्ता अहिस्ता उसके पुरे बदन को चूमने लगा उसकी नंगी पीठ कमर और फिर मैं उसके चूतडो पर आया मैं कच्छी के ऊपर से ही चाची की गांड पर जीभ फेरने लगा तो वो भी अपने चुतड हिलाने लगी जिस से मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी 

मैंने कच्छी को उसके घुटनों तक सरकाया और उसके गोरे चुतड मेरी आँखों के सामने थे मैंने उसकी फानको में उंगलिया फंसाई और उनको फैलाया तो चाची की चूत और उसकी गांड का छेद दिखने लगा मैंने कभी गांड नहीं मारी थी और चाची की गांड पर तो मेरा दिल मचल ही रहा था मैंने सोचा आज इसकी गांड जरुर मरूँगा चाहे कुछ भी हो जाये मैंने चाची के चूतडो को चूमना शुरू किया तो वो भी अपने चुतड जोरो से हिलाने लगी वो धीरे धीरे आहे भर गयी थी 

चाची थोड़ी सी आगे को झुक गयी जिस से उसके चुतड और उभर आये मैंने अपनी ऊँगली उसकी गांड के छेद पर रखी और सहलाने लगा चाची का बदन थर थर कापने लगा और वो थोड़ी सी और झुक गयी सहलाते हुए मैंने अपनी ऊँगली उसकी चूत में दे दी तो उसके होंठो से आह निकल पड़ी और मैंने अपने होंठो को उसके गांड के भूरे छेद पर रख दिया 

मेरी नुकीली जीभ गांड में घुसने की कोशिश करने लगी और ऊँगली तेजी से चूत में अन्दर बाहर होने लगी चूँकि चूत बहुत ज्यादा गीली थी तो चाची को दोनों छेदों से भरपूर मजा आने अलग था उसके दोनों छेदों में बस इंच भर का ही फासला था तो मेरी जीभ दोनों छेदों पर साथ साथ चलने लगी और उसके बदन में जैसे भूचाल सा आ गया रही सही कसर मेरी ऊँगली पूरा कर रही थी 

कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा फिर मैं वहा से हट गया चाची ने अपने हाथ घुटनों पर रखे हुए थे तो मैंने उसकी कमर को पकड़ा और अपने लंड को चूत पर टिका दिया मस्ती में चूर चाची ने खुद अपनी गांड को पीछे सरकाते हुए मुझे अन्दर डालने का इशारा किया और तभी मैंने एक जोर का झटका मारते हुए लंड को उस मस्तानी चूत की गहराइयों की तरफ धकेल दिया और फिर धक्के लगाने शुरू किये 

“आः aaaahhhhhhhh aaahhhhhhhhhh ” की मधुर आवाजे चाची के मुह से लगातार निकल रही थी और वो मेरा पूरा साथ देते हुए चुद रही थी 

चाची- अआः शाबाश ऐसे ही जोर जोर से धक्के मार आः ऐसे ही 

मैं- चिंता मत कर तेरी प्यास जी भरके बुझाऊंगा चाची क्या चूत है तेरी इतनी कसी हुई की मेरा लंड छिलने लगता है 

वो- तू कुछ ज्यादा ही तारीफ करता है मेरी 

मैं – तू कमाल है चाची कमाल है 

मैंने अपना लंड चाची की चूत से बाहर खीचा और उसको बिस्तर पर पटक दिया मैंने उसकी लपलपाती चूत को देखा जिसकी फांके खुली हुई थी मैंने उसकी टांगो को अपनी टांगो पर चढ़ाया और फिर से अपना मुसल उसकी ओखली में पेल दिया और हम एक दुसरे में फिर से समा गए हम दोनों के चेहरे एक दुसरे के थूक से सने हुए थे थप्प थप्प की आवाज का शोर हो रहा था पर हमे कोई फरक नहीं पड़ रहा था 

मेरे हाथ बेदर्दी से उसकी छातियो को मसल रहे थे जिससे वो और ज्यादा मस्त हो रही थी उसकी चूत से इतना रस बह रहा था की निचे चादर तक सनने लगी थी पर मस्ती टूट नहीं रही थी चाची ने अब अपनी टांगो को मेरे कंधो पर रख दिया और खुद अपने बोबो को भीचते हुए चुदने लगी 

मेरी उंगलिया उसकी जांघो के मांस में जैसे धंस रही थी पल पल मेरा लंड चूत के छल्ले को चौड़ा करते हुए चाची को स्खलन की और ले जा रहा था और साथ मुझे भी करीब दस मिनट और मैंने उसे रगडा और फिर आगे पीछे ही हम झड़ गए उसकी गरम चूत को मेरे वीर्य की धार ठंडा करने लगी झड़ते हुए मैं उसके ऊपर ही पड़ गया उसने भी मुझे अपनी बाहों में भीच लिया 

कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे फिर चाची बाथरूम में चली गयी उसके आने के बाद मैंने भी पेशाब किया और अपने लंड को साफ किया और फिर उसके पास आकर ही लेट गया 

मैं- मजा आया 

वो- हां ये मजा पूरी रात लुतुंगी 

मैं- हां पर मुझे भी थोडा ज्यादा मजा चाहिए 

वो- क्या 

मैं- आपकी गांड मारूंगा आज 

वो- ठीक है पर जंगली मत बनियों आराम से प्यार से करियो 

मैं- ठीक है मेरी जान 

वो- चाची को जान बोलता है 

मैं- अब तो जान ही है तू मेरी 

चाची ने मेरा लंड पकड़ लिया और उसको सहलाते हुए बोली- तूने मुझे फिर से जवान कर दिया है कुंदन
मैने एक ऊँगली चाची की चूत में डाल दी और अंदर बाहर करने लगा उसने अपनी आँखे बंद कर ली ऊँगली करते करते मैं एक बार फिर से उसके होंठो को भी चूमने लगा जल्दी ही उसकी चूत रस छोड़ने लगी तो मैंने उंगली बाहर निकाल ली और ऊठ कर रसोई से सरसो का तेल एक कटोरी में भर लाया 
चाची- ये सब बाद में करियो जो आग मेरी चूत में अभी लगाई है पहले इसको बुझा दे 
मैं-आजकल तुम्हारी आग ज्यादा भड़क रही है 
चाची- भड़काई भी तूने ही है
मैं समझ गया था कि ये एक बार फिर से मेरा लण्ड चूत में लेना चाहती है पर आज मुझे उसकी गांड मारनी ही थी तो मैंने चाची को घोड़ी बना दिया और एक बार फिर से उसका कातिलाना पिछवाड़ा मेरी आँखों के सामने आ गया उसकी गांड सच में इस कदर मस्त थी की मैं बस उसके चूतड़ देखते ही पागल हो जाता था 
चाची- अब कितना तड़पायेगा मुझे कर ना 
मैंने पास रखी कटोरी में अपनी उंगलिया डुबोई और अपना लण्ड चूत में ठेल दिया कुछ धक्के लगाने के बाद मैंने अपनी रफ़्तार कम की और अपनी तेल से तर ऊँगली को उसकी गांड के छेद पर रगड़ने लगा जल्दी ही मेरी ऊँगली का कुछ हिस्सा चंदा चाची की गांड में सरक गया 
चाची- आह कुंदन तू नहीं मानेगा ना मैंने कहा न मैं झड़ जाऊ फिर तू पीछे कर लेना 
मैं-इतना इंतज़ार अब नहीं होगा चाची और तुम तो मजा लो दोनों छेदों में कुछ न कुछ है 
चाची अपनी गांड हिलाते हुए-जितना तड़पाना है तड़पा ले पर मेरी बारी भी आएगी 
मैं-नाराज क्यों होती है जानेमन ले पहले तेरी चूत की आग ही बुझाता हु
मैंने उसकी गांड से ऊँगली बाहर निकाल ली और उसकी कमर में हाथ डालते हुए उसे थोडा सा और झुकाया और चोदने लगा उस मस्तानी रांड को मस्ती भरी आहे कमरे में फिर से गूंजने लगी थी मैं बार बार उसकी नंगी पीठ को चूमता हुआ उसको जन्नत की सैर करवा रहा था और वो भी अपने जोबन का भरपूर मजा मुझ पर लुटा रही थी 
उसकी चूत एक बार फिर से रस टपकाने लगी थी जिस से लण्ड और जोश में भर गया था पर मैं झड़ना नहीं चाहता था इसलिये मैंने अपनी रफ़्तार पर काबू बनाया हुआ था मुझे बस उसके झड़ने का इंतज़ार था करीब दस बारह मिनट तक मैंने उसको घोड़ी बनाकर ही पेला और उसी अवस्था में वो झड़ गयी
वो बिस्तर पर औंधी गिर गयी मैंने कटोरी से थोड़ा तेल लिया और उसकी गांड के छेद पर टपकाने लगा उफ्फ्फ कितना मस्त नजारा था वो उसके भूरे छेद की सुंदरता को तेल की चमक ने और मस्त बना दिया था मैंने ऊँगली पे दवाब डालना शुरू किया तो वो गांड के छेद को फैलाते हुए अंदर जाने लगी 
"आह दर्द होता है "चाची बोली 

मैं- मेरे लिए थोड़ा दर्द सहले मेरी जान
मैं खुद भी नहीं चाहता था कि उसको ज्यादा तकलीफ हो मैं बस प्यार से उसकी गांड मारना चाहता था मैंने थोड़ा तेल और लगाया और फिर आहिस्ता से अपनी ऊँगली अंदर बाहर करने लगा तो चाची ने भी अपने चूतड़ ढीले कर लिए जो एक इशारा था कि वो भी मन से अपनी गांड मरवाना चाहती है
धीरे धीरे मैंने दो उंगलिया सरका दी तेल की चिकनाई ने मेरे काम को आसान कर दिया था गांड का छल्ला कुछ हद तक खुल गया था करीब 5 मिनट तक बस मैं उंगलियो से काम चलाता रहा फिर मैंने ढेर सारा तेल अपने पूरे लण्ड पर भी लगाया और उसे एक दम चिकना कर लिया मैंने चाची को चूतड़ खोलने को कहा तो उसने अपने हाथों से दोनों पुट्ठों को फैलाया 
मेरी मंजिल मेरी आँखों के सामने थी मैंने अपनी पोजीशन बनायीं और अपने लण्ड को गांड पे रख दिया 
चाची- आराम से करियो 
मैं-घबरा मत 
मैंने लण्ड का दवाब डालना शुरू किया तो सुपाड़ा उस बेहद टाइट छेद को खोलते हुए आगे सरकने लगा और चन्दा रानी की तकलीफ बढ़ने लगी 
मैं-दर्द हो रहा क्या 
वो-सह लुंगी तेरे लिए तेरी खुशि में ही मेरी ख़ुशी है 
मैने हल्का सा झटका दिया और सुपाड़ा लगभग पूरा गांड में घुस गया 
"आयी आयी आयी" चाची अपनी चीख़ न रोक पायी 
मैं- बस गया गया 
वो- बहुत दर्द हो रहा है 
मैं- थोड़ा दर्द तो सहन कर ले फिर मजा ही आज चाची चूतड़ ढीले छोड़ भीच मत इनको चाची की आँखों में आंसू आ गए थे पर मैंने धीरे धीरे करके पूरा लण्ड अंदर पेल दिया और उसके ऊपर लेट गया 
मैं- घुस गया पूरा 
वो-पूरा
मैं-हां बस अब बहुत आराम से करूँगा चाची तूने आज बहुत खुश कर दिया मेरी जान 
चाची अपनी तारीफ सुनकर दर्द में भी मुस्कुराने लगी और मैंने थोड़ा थोड़ा करके धक्के लगाने लगा बीच बीच में मैं उसके गालो पे पप्पी लेता कुछ देर बाद उसके बदन में भी मस्ती आने लगी तो मैंने धक्के तेज कर दिए और चाची की दर्द भरी आहे भी तेज हो गयी 
गांड लण्ड की मोटाई के हिसाब से चौड़ी हो चुकी थी कभी मैं धक्के तेज करता तो कभी हौले हौले चाची भी अब गांड मरायी का आनंद ले रही थी कुछ देर बाद मैंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और चाची को सीधी लिटा दिया 
वो सोची चूत में डालेगा पर मैंने अपने सुपाड़े पर और तेल लगाया और उसकी गांड से लण्ड लगा दिया इस बार मैंने कुछ जोर से झटका लगाया तो उसके पैर ऐंठ गए पर मेरा लण्ड उसकी टाइट गांड में घुस गया था मैंने उसके पैरों को पकड़ा और फिर से उसकी गांड मारने लगा 
आयी आईं सी सी करते हुए वो अपने पिछले छेद में मेरे लण्ड को महसूस कर रही थी उसका बदन मेरे झटको से बुरी तरह हिल रहा था करीब दस मिनट का समय मैंने और लिया और फिर चाची की गांड को अपने वीर्य से सींच दिया
थक कर हम दोनों बिस्तर पर गिर पड़े और फिर नींद के आगोश में चले गए सुबह वापिस आने से पहले हमने एक बार और किया फिर मैं घर आ गया तो देखा घर पे कोई नहीं था सिवाय भाभी के मैं अपने कमरे में चला गया 
कुछ देर बाद भाभी आयी और नाश्ते को मेज पर रखते हुए बोली- नाश्ता करलो रात भर खूब मेहनत की होगी 
भाभी के चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था तो मैंने कुछ नहीं बोला और चुपचाप नाश्ता करने लगा वो पास ही कुर्सी पर बैठ गयी कुछ देर हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला
मैं- सब कहा गए 
भाभी- माँ सा मंदिर गयी है तुम्हारे भाई अपने दोस्तों से मिलने गए है और राणाजी अपने काम से तुम बताओ कैसी कटी रात
मैं-एकदम बढ़िया 
जैसे ही मैंने भाभी को जवाब दिया उन्होंने बर्तन उठाये और मेरी और गुस्से से देखते हुए कमरे से बाहर निकल गयी मैंने कुछ सोचा और उनके पीछे पीछे रसोई की तरफ चल दिया
भाभी बरतन धो रही थी बल्की यू कहु की अपना गुस्सा बर्तनों पर निकाल रही थी मैं समझ गया था की भाभी को कल जो सवाल मैंने पूछे थे उनसे ज्यादा गुस्सा मैंने चाची के साथ रात गुजारी है उस बात का है पर मैं कर भी क्या सकता था मेरी ज़िंदगी में सबकी अहमियत अपनी अपनी जगह थी पर इस बात को कोई समझता नहीं था 

मैंने भाभी का हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ किया 

मैं-क्या बात है किस बात का गुस्सा बर्तनों पर उतारा जा रहा है 

वो- मुझे भला किस बात का गुस्सा होगा 

मैं- अब आप मुझसे छुपाओगे 

वो- तुझसे ही सीखा है 

मैं- बताओ न 

वो- क्या बताऊँ अब तू बड़ा जो हो गया इतना बड़ा की भाभी अब क्या लगे तेरी

मैंने अपना हाथ भाभी के होंठो पर रख दिया और बोला- आज के बाद ये दुबारा मत कहना आपकी छाया तले रहा हु और रहूँगा आप ऐसी दिल तोड़ने वाली बात करोगी तो मेरा क्या होगा 

वो- और जो तू रोज मेरा दिल तोड़ता है उसका क्या 

मैं- भाभी आप पहले ये बताओ किस बात से नाराज हो जो सवाल मैंने पूछे उनसे या फिर रात को मैं चाची के साथ था उससे 

वो- कही भी मुह मार मुझे क्या और तेरे सवालो पर बात कल ही खत्म हो चुकी है 

मैं- समझ गया आप को जलन होती है जब मैं चाची के साथ होता हूं 

वो- जलन और मुझे इतनी भी कमजोर नहीं हूं मैं 

मैं- तो फिर क्या नाराजगी 

वो- कुछ नहीं 

भाभी ने अपना हाथ छुड़ाया और फिर से मुड़ने लगी पर मैंने फिर से हाथ पकड़ लिया भाभी ने जोर लगाया तो मैंने भी मजबूती दिखाई और इसी कश्मकश में वो मेरे सीने से आ लगी मेरा हाथ उसकी कमर पर आ गया 

भाभी- छोड़ मुझे 

मैंने पकड़ ढीली कर दी भाभी की चुन्नी थोड़ी सी सरक गयी तो मुझे उनके टाइट माध्यम आकार के संतरे जैसे चुचो का नजारा मिलने लगा उसने भी ढकने की कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखायी 

मैं- भाभी आपकी नाराजगी मुझे दुःखी कर रही है मैं सब सह सकता हु पर आपकी नाराजगी नहीं आपने कहा मैं कुछ नहीं पूछुंगा आपकी इजाजत के बिना घर से बाहर भी नहीं जाऊंगा पर अगर आप नाराज रहोगी तो ।।।।।।।।
 
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