Antarvasna kahani नजर का खोट - Page 9 - SexBaba
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Antarvasna kahani नजर का खोट

मेरे दिल का चोर गुस्ताखी करने को मचलने लगा डीटीसी की बस में भीड़ के दवाब के साथ भाभी के जिस्म की वो रगड़ाई,बस में उनके पसीने की वो मादक गन्ध मुझ पर अपना जादू चला रही थी ऊपर से होचकोले खाती बस मेरा तना हुआ हथियार भाभी के नितंबो पर लगातार दवाब डाल रहा था ।

बस जब जब मोड़ लेती मैं अपना हाथ कमर पर रख देता और भाभी के कांपते जिस्म को एहसास करवाता की मैं सुलग रहा हु,जब भी भाभी थोड़ी सी कसमसाती मेरे लण्ड को असीम सुख मिलता हलकी सर्दी के मौसम में भी भाभी के चेहरे पर पसीना छलक आया था 

जब मैंने उनके गले के पिछले हिस्से पर रिसती पसीने की बूंदों को भरी भीड़ में चाट लिया तो भाभी सिहर ही गयी पर किस्मत, हमारा स्टॉप भी अभी आना था तो हम उतर गए न वो कुछ बोली न मैं 

पर जैसे ही कमरे में आये भाभी ने मुझे खींच कर दिवार के सहारे लगा दिया और अपने सुर्ख होंटो को मेरे होंटो से जोड़ दिया भाभी के दांत बेदर्दी से मेरे होंठो को काटने लगे यहाँ तक की खून निकल आया

मैं- आह, काट लिया ना 

भाभी- क्यों क्या हुआ बस में तो बड़ी आशिकी हो रही तो 

मैं- हालात पे काबू नहीं रख पाया मैं

भाभी- तो अब मैं काबू नहीं रख पा रही हु 

भाभी ने एक बार फिर से किस करना शुरू किया और साथ ही मेरे लण्ड से खेलने लगी कब उनकी उंगलियो ने उसे बाहर निकाल लिया पता ही नहीं, भाभी की मुठ्ठी मेरे लण्ड पर कसी हुई थी और जीभ मेरी जीभ से रगड़ खा रही थी 

उत्तेजना से मेरा पूरा जिस्म कांप रहा था उनकी तनी हुई छातियों के निप्पल मेरे सीने में जैसे सुराख़ कर देना चाहते थे ,भाभी बड़ी तल्लीनता से मुझे चूमे जा रही थी पर कुछ देर बाद भाभी भाभी ने किस तोड़ दी और मुझ से अलग हो गयी

भाभी हाँफते हुए- आगे से ऐसी कोई हरकत मत करना 

मैंने बस गर्दन हिला दी

भाभी- नहाने जा रही हु 

भाभी ने बैग से अपने कपडे निकाले और बाथरूम में घुस गयी पर उन्होंने दरवाजे की सिटकनी नहीं लगायी कुछ मिनट बाद शावर की आवाज आने लगी ,अभी अभी जो भाभी ने किया वो मेरे दिमाग को भन्ना गया था मेरा लण्ड दोनों टांगो के बीच झूल रहा था

कुछ सोच कर मैंने अपने कपडे उतारे और नँगा ही बाथरूम की और चल दिया मैंने दरवाजे को हल्का सा धकियाया और जो नजारा देखा उसके बाद लगा की जन्नत कही है तो यही है भाभी शावर के नीचे पूर्ण नग्न अवस्था में मेरी तरफ पीठ किये खड़ी थी 

इतना कातिलाना नजारा देख कर मेरे लण्ड की ऐंठन और बढ़ गयी धड़कने दिल को चीर ही देना चाहती थी गले से थूक सूख गया मैं भाभी के पास गया और पीछे से उनको पकड़ लिया भाभी ने नजर घुमा कर मेरी ओर देखा और फिर खुद को ढीला छोड़ दिया मेरी बाहों में

मेरे हाथ भाभी के उन्नत उभारो पर पहुच गए थे और लण्ड उनकी गांड की दरार पर अपनी दस्तक दे रहा था ,ऊपर से गिरती पानी की बूंदों ने उत्तेजना को शिखर पर पंहुचा दिया था 

"आई" भाभी की आह फुट पड़ी जब मैंने उनके निप्पल्स को अपनी उंगलियों में फंसा लिया गहरे काले रंग के निप्पल्स जैसे अंगूर के दाने हो ,भाभी की गर्दन को चूमते हुए मैं धीरे धीरे अपने हाथों का दवाब भाभी की गदराई छातियों पर डालने लगा था 

तभी भाभी ने अपने पैर खोलते हुए अपनी गांड का पूरा भार मेरे लण्ड पर डाल दिया जिससे वो फिसलता हुआ भाभी की बिना बालो वाली चूत जे मुहाने पर आ टिका उफ्फ्फ मैं भाभी की इस हरकत से पागल ही हो गया था उत्तेजना वश मैंने भाभी की गर्दन पर काट लिया तो भाभी सिसक उठी

मैंने अब भाभी को पलट दिया और उनकी चूची को अपने मुंह में भर लिया भाभी का बदन हलके हल्के कांप रहां था जैसे ही मेरी उंगलिया भाभी की योनि पर पहुची भाभी ने अपनी जांघो को भीच लिया तभी मैंने चिकोटी काट ली जिससे उनके पैर खुल गए और तभी मेरी ऊँगली योनि में सरक गयी

भाभी की चूत अंदर से तप रही थी उनके उभारो को चूसते हुए मैं चूत में ऊँगली अंदर बाहर कर रहा था धीरे धीरे भाभी पस्त होने लगी थी और फिर मैं नीचे भाभी के पैरों के बीच बैठ गया और उनके पैरों को चौड़ा करते हुए गुलाबी चूत को अपने मुंह में भर लिया
जैसे ही मेरी खुरदरी जीभ का अहसास चूत की फांको को हुआ उन्होंने अपना रस छोड़ना चालू कर दिया भाभी की चूत में मेरी जीभ जैसे करंट लगा रही थी उनको पुरे बाथरूम को सुलगा दिया था भाभीकी आहो ने

टप टप शावर से गिरती पानी की बूंदों के बीच भाभी का तपता बदन मेरे इशारो का मोहताज था भाभी की चूत का नमकीन रस मेरी जीभ से लिपटा हुआ था भाभी के कूल्हे मटकने लगे थे पैर कांप रहे थे और तभी भाभी को पता नहीं क्या सुझा उन्होंने मुझे धक्का देकर अपने से अलग कर दिया और बाथरूम से बाहर निकाल दिया दरवाजा बंद कर लिया और मैं खड़ा रह गया बाहर ,मैं समझ गया था की शायद वो आगे नहीं बढ़ना चाहती पर फिर क्यों यहाँ तक भी नहीं रोका था

हार कर मैंने अपने कपडे पहने और बिस्तर पर लेट गया और पूजा फिर से मेरे ख्यालो पर कब्ज़ा करने लगी मैंने सोच लिया था की यहाँ से जाते ही कुछ तीखे सवाल उससे करूँगा जिनको चाह कर भी वो टाल नहीं पायेगी.

साथ ही भाभी से भी कुछ और बाते पता कर लूंगा साथ ही मैंने सोचा की क्या ये सही समय है राणाजी से खुल के बात करने का ,तमाम सवाल एक बार फिर से मेरे दिमाग में हलचल मचाने लगे थे 

और जवाब एक भी नहीं था बल्कि हर जवाब देने वाला खुद सामने सवाल बनकर खड़ा था मामला बहुत जटिल था ऊपर से खारी बावड़ी में मैंने पद्मिनी को देखा था पर भाभी ने उसकी मौजूदगी को सिरे से निकाल दिया 
 
तभी भाभी बाथरूम से निकली कुछ समय लिया उन्होंने तैयार होने में उसके बाद हमने खाना खाया बाथरूम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया उन्होंने करिब घण्टे भर बाद हम साथ बैठे थे।

मैं-आप खजाने की प्रथम प्रहरी कैसे है 

भाभी- बस इतना समझ लो की मैं हु क्यों कैसे किसलिए इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता है 

मैं- पर जब वारिस आएगा तो खजाना वैसे ही ले लेगा ना 

भाभी- ऐसे ही नहीं उसे साबित करना होगा की वो ही असली हकदार है 

मैं- कैसे 

भाभी- खजाना पहचान लेगा उसे

मैं- तो फिर प्रहरी क्यों

भाभी- कहा न ताकि भूल से भी खजाना गलत हाथो में ना जा सके ये एक बहुत ही जटिल व्यवस्था है जिसे तुम नहीं समझ पाओगे

मैं- तो क्या राणाजी और भैया को इस बात का पता है 

भाभी- मैं प्रहरी इसीलिए हु की वो इस खजाने को छू भी न सके ,पर ये बात उनकी समझ में नहीं आयी ये सब एक भूलभुलैया है कुंदन 

मैं- आप खुल कर क्यों नहीं बताती है की असल में ये सब है क्या 

भाभी- बात सिर्फ इतनी है की अगर तुम खुद को वारिस समझते हो तो प्रयास कर लो 

मैं- पर मुझे कुछ नहीं चाहिए

भाभी- तो दूर रहो इनसब से 

मैं- पर वारिस 

भाभी- ले आओ उसको और बात खत्म 

मैं- नहीं बल्कि सब शुरू तब होगा जब वारिस खजाना निकाल लेगा और तब राणाजी अपना जोर लगाएंगे 

भाभी- अब की तुमने सही बात

मैं- पर मैं ऐसा होने नहीं दूंगा 

भाभी- राणाजी को रोक सकोगे

मैं- हां 

भाभी- तो ले आना वारिस को 

मैं- उसे भी नहीं चाहिए खजाना भाभी उसकी चाहत कुछ और है 

भाभी- इस जहाँ में बस दो चाहत होती है औरत का जिस्म और बेपनाह दौलत 

मैं- मैंने कहा न उसकी चाहत कुछ और है 

भाभी- काश मैं भी ऐसा कह पाती 

मैं- भाभी एक सौदा करोगी 

वो- कैसा सौदा 

मैं- मैं आपको कुछ बाते बताउंगा आप मुझे और मैं वादा करता हु की आपको खजाने का आधा हिस्सा दूंगा 

भाभी- हँसी आती है तुम पर देवर जी ,तुम अभी भी नहीं समझे भला मुझे धन का क्या लोभ है क्या करुँगी इन सब का , पर फिर भी तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू जिस खजाने की बात कर रहे हो उसका आधा हिस्सा मेरा ही हैं 
 
भाभी ने मेरे सर पर एक बम और फोड़ दिया था मेरा दिमाग पूरी तरह से भन्ना गया 

मैं- आप कैसे वारिस हो सकती है और वारिस है तो प्रहरी कैसे 

भाभी- हमने कहाँ ना ये एक जटिल भूलभुलैया है अब मैं तुमसे एक सौदा करती हूं तुम मेरा एक काम करो मैं तुम्हे आधा हिस्सा देती हूं 

भाभी ने साबित कर दिया की वो एक मंजी हुई खिलाडी है इस खेल की बिना अपने पत्ते खोले ही बाज़ी जीतने का हुनर था उनमे 

मैं- क्या चाहती है आप 

भाभी- जान चाहिए दे सकोगे 

मैं- बस माँगा भी तो क्या माँगा बताओ कैसे लोगी 

भाभी- जैसे तुम देना चाहो

मैं- ठीक है जब आप कहो 

भाभी- मजाक कर रही हु बुद्धू ,तुमसे बढ़कर कौन है मेरे लिए तुम मेरी बात समझे नहीं मैं तुम्हारी बात कर रही थी मेरे लिए खजाने से भी अनमोल हो तुम अब ये न कहना की इतना हक़ भी नहीं है मेरा 

मैं- सब आपका ही है भाभी पर अब बातो को घुमा के मुझे नहीं टरका सकती हो आप ,आपको बताना ही होगा की कैसे

भाभी- जैसे तुम हो

मैं- मैं इसलिए हु क्योंकि अर्जुन सिंह की वसीयत में लिखा है 

भाभी- पर मेरे पास कोई वसीयत नहीं है 

मैं- एक मिनट भाभी, आपके अनुसार अर्जुन सिंह की वसीयत झूठी है तो अगर मान लू तो मैं हक़दार नहीं हुआ और सच माने तो ये मुझ पर ही नहीं भैया पर भी लागू होती है, और भैया की शादी हुई आपसे तो इस तरह आप की दावेदारी होती है,है ना 

भाभी- नहीं प्यारे नहीं, जब हमने कह दिया की हमे विश्वास नहीं है उस कागज़ के टुकड़े पे तो ये सम्भावना ख़त्म हो जाती है न हमारा अर्जुनगढ़ से कोई ताल्लुक है न अर्जुन सिंह से न किसी ओर से

मैं-पर आपने कहा था कि पद्मिनी की वजह से आप प्रहरी है 

भाभी- हां ऐसा ही है 

मैं- पर वो आपको ही क्यों बनायीं, 

भाभी- हक़ , कुंदन हक़

मैं- कैसा हक़ 

भाभी- जो कभी मिला नहीं,

मैं- तो अब आप क्या चाहती है 

भाभी- कुछ नहीं कुछ भी नहीं 

मैं- जानता हूं कि घर में आपके साथ बहुत अन्याय हुआ है भाभी मेरी क्षमा भी आपकी आत्मा के घाव नहीं भर सकती यहाँ तक की जब जब मैं बहका आपके लिए मैंने अपने प्रति आपके विश्वास को तोड़ कर भी आपको दुःख दिया है पर मेरे मन में आपके लिए बहुत सम्मान है 

भाभी- खोखली बाते न करो कुंदन आने वाले वक़्त के बारे में सोचो अतीत के पन्ने पलटने से क्या फायदा कुछ हासिल नहीं होना सिवाय दर्द के रुस्वाई के

मैं- तो आप इस राहः पर क्यों हो 

भाभी- कुछ नसीब बेईमान कुछ हम बेपरवाह बस इतनी से कहानी है इतना ही फ़साना 

मैं- और मैं 

भाभी- जीवन में कौन मैं कौन तुम इंसान अगर इंसान ही बने रहे तो क्या नुकसान है पर नफा नुकसान हम सब बस इसमें ही सिमट कर रह गए है खुली हवा तो कभी थी ही नहीं बस चंद सांसे है किराये पर ली हुई 

मैं- क्या मैं इस काबिल नहीं की मुझे बता सको आखिर किस नासूर की सीने में लिए जी रही हो आखिर क्या छुपा रही हो मुझसे 
भाभी- ज़िन्दगी खुली किताब है कुंदन जब चाहे पढ़ लो 

मुझे ये सुनकर पूजा की बात याद आ गयी वो भी ऐसा ही बोलती थी आखिर ये कैसी भूलभुलैया था जिसमे हम सब घूम रहे थे आखिर ये अनसुलझे सवाल किस ओर इशारा कर रहे थे, समझ नहीं आ रहा था की कौन अपना है कौन पराया दिल तो अपना था पर प्रीत परायी लगने लगी थी
 
दिल्ली का काम निपटा कर हम वापिस आ रहे थे भाभी ने उलझा कर रख दिया था कभी कभी तो लगता था दो झापड़ धर दू और हलक से निकाल लू सारे जवाब पर शायद यही फर्क था ठाकुर कुंदन और बस कुंदन होने में,
मैंने ज़िन्दगी में लोगो पर भरोसा करना सीखा था अब कोई भरोसा तोड़े तो ये बात और थी मैंने भाभी को घर छोड़ा और सीधा अपनी मंजिल की तरफ चल दिया आसमान में अभी थोड़ी धुप थी दिन ढलने में वक़्त था अभी
पूजा के दरवाजे पर वो ही ताला झूल रहा था अब तो कोफ़्त सी होने लगी थी ये पूजा भी ना जाने कहा गुम हो जाती थी,खैर अब वो आये जब ही आये तो मैं जमीन की ओर चल दिया कुछ ही देर में मैं पहुच गया,
तो देखा की जुम्मन काका और कुछ लोग काम में लगे हुए थे 
मैं- और काका क्या हाल चाल 
जुम्मन- बस बढ़िया बेटा थोड़ा ही काम बचा है बस कल तक ख़तम हो जायेगा 
मैं- काका, पूजा आयी थी इधर 
जुम्मन- हां, वो पीछे कुवे की तरफ है 
मैं उस तरफ चल दिया तो जाके देखा की धूल मिट्टी में सनी हुई वो झाड़ियो को काट रही थी 
मैं- इतना काम भी न करो सरकार की हाथो में छाले हो जाये 
पूजा- तुम जो हो मरहम लगाने को कहा गायब थे 
मैं- भाभी के साथ दिल्ली गया था कुछ काम से 
वो- कमसे कम बता के तो जा सकते थे 
मैं- बहुत कुछ है बताने को पर पहले पास आ जरा गले लग तब करार आएगा थोड़ा 
वो- बस आते ही शुरू 
मैं- वैसे तू क्या कर रही है 
वो- सोचा सफाई हो जायेगी ,तुम्हारे जाने के बाद जुम्मन काका आये थे तो मैंने बता दिया की कैसे क्या करना है
मैं- ठीक किया पर तुम्हे ये सब करने की क्या जरूरत है आदमी है ना 
वो- हम भी आम इंसान ही है न
मैं- पर अभी आ कुछ जरुरी काम है 
वो- क्या हुआ 
मैं- कुछ बाते करनी है 
वो- आती हु तू बैठ मैं हाथ मुह धो लू जरा 
मैं- ठीक है
कुछ ही देर में पूजा आ गयी उसको मुस्कुराता देख कर मेरी धड़कने मद्धम सी हो जाती थी मैंने जुम्मन को समझाया कि काम की छुट्टी होने के बाद आराम से जाना घर कुछ पैसे दिए और फिर मैं पूजा के साथ उसके घर आ गया
और उसको अपनी बाहों में भर लिया वो भी लिपट गयी जैसे किसी पेड़ से कोई लता लिपट गयी हो 
पूजा- बता के जाया कर तेरी दुरी सहन नहीं होती है 
मैं- मजबूरी हो जाती है वर्ना मैं एक पल तुझसे दूर न रह पाउ, 
पूजा- और जो मुझ पे गुजरती है उसका क्या जानते हो जब तुम नहीं होते तो एक एक पल साल सा गुजरता है मेरा 
मैं- जानता हूं सरकार
वो- मेरा साथ छोड़कर नहीं जाओगे ना 
मैं- कभी नहीं 
हलके पीले सूट में पूजा बेहद प्यारी लग रही थी इतनी प्यारी की जी तो करता था की अभी उसे अपनी बाहों में भर लू पर अभी सही समय नहीं था 
मैं-तुझे ऐसे गांव वालों के सामने नहीं आना चाहिये था 
वो- कब तक छुपाके रखोगे मुझे 
मैं- तुझे महफूज़ रखना मेरी ज़िम्मेदारी है 
वो- तू नहीं था तब भी मैं महफूज़ ही थी और मैंने कहा ना मुझे किसी से कोई खतरा नहीं है 
मैं-पर मुझे परवाह है तेरी 
वो- तो घबराता क्यों है क्या तुझे डर है कि दुनिया क्या सोचेगी तेरे मेरे रिश्ते के बारे में 
मैं- दुनिया तेरे मेरे बीच में कहा आ गयी 
वो- तो बस बात खत्म 
मैं- अच्छा बाबा, जो दिल में आये कर पर एक बात और थी 
वो-क्या 

मैं- भाभी तुझसे मिलना चाहती है 
पूजा- तो उसमें क्या है तुम्हारी भाभी मेरी भाभी जब वो चाहे मिल लुंगी 
मैं- ठीक है पर अभी तू जल्दी से खाना बना तब तक मैं हाथ मुह धो लेता हूं उसके बाद हमे कही चलना है 
वो- कहा 
मैं- तू खुद देख लियो 
वो- अच्छा बाबा 
करीब घंटे भर बाद हम खा पीकर तैयार थे हल्की ठण्ड थी तो मैंने कम्बल और पूजा ने शाल ओढ़ रखा था सफर कुछ लम्बा था क्योंकि गाड़ी थी नहीं मेरे पास तो करीब दो घंटे पैदल चलने और रास्ते भर पूजा के सवाल सुनने के बाद आखिर हम मंजिल पर पहुच ही गए 
पूजा- तू मुझे यहाँ क्यों लेकर आया है 
मैं- बस ऐसे ही 
पूजा- मैंने कहा था ना कुंदन तेरी हर बात मंजूर है पर मुझ पर शक ना करियो 
मैं- मैं तुझपे शक करता हु क्या पूजा 
वो- तो तू कभी मुझे लाल मंदिर नहीं लेके आता 
मैं- मेरी बात सुन पहले 
वो- क्या सुनु तूने भी आखिर परख लिया मुझे है ना 
मैं- मेरी बात समझ पूजा जैसा तू सोच रही है वैसा कुछ नहीं है 
वो- इतनी नासमझ भी नहीं हूं मैं जो तेरे प्रयोजन को समझ नहीं पाउ तू यहाँ मुझे इसलिए लाया है न ताकि तू देख सके की मैं अर्जुनगढ़ की असली वारिस हु या नहीं
पूजा ने पल भर में ही मेरी बोलती बंद कर दी थी अब मैं क्या कहता उसको 
मैं- नहीं पूजा, मेरा मकसद कुछ और था 
पूजा- तेरा मकसद समझती हूं मैं पर जब तूने सोच ही लिया मुझे परखने का तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी अगर तेरी यही ख़ुशी है तो मैं ये भी करुँगी 
 
पूजा ने अपने कपडे उतारे और धीरे धीरे बावड़ी के शांत पानी में उतरने लगी जब तक की वो पूरी तरह पानी में डूब ना गयी कुछ मिनट गुजर गए पर वो वापिस नहीं आयी मेरा दिल घबराया ये मैंने क्या किया कही उसे कुछ हो तो नहीं गया और तभी
तभी जैसे किसी सैलाब की तरह सारा पानी छिटक गया और पूजा अपने कंधे पर किसी अद्रश्य बेल से कुछ खींचते हुए ऊपर आने लगी और जैसे ही वो मेरे पास आकर रुकी पूरी बावड़ी खजाने की चमक से रोशन हो गयी 
पूजा- ले ये ही देखना चाहता था ना तू जा ले ले सब तेरा ही है 
मैंने पास रखा शाल पूजा को ओढ़ाते हुए कहा- इन पत्थर के टुकड़ों का क्या करूँगा मैं पगली जब मेरे पास तू है मेरा असली खजाना तो तू है कुंदन को इतना भी नजरो से मत गिराना पूजा मेरा मकसद कुछ ओर है तुझे यहाँ लाने का
वो- क्या 
मैं- इसी जगह से अंत हुआ था हम इसी जगह से नयी शुरुआत करेंगे मैं अतीत का तो कुछ नहीं कर सकता पर वर्तमान के बारे में तो सोच सकते है ना और सबसे महत्वपूर्ण बात मैं तुझसे एक वचन मांगता हूं
पूजा -क्या
मैं- अगर मेरी मौत हो तो तेरे हाथ से हो 
पूजा - क्या बोल रहा है तुझ बिन मैं कैसे जी सकुंगी अगर फिर कभी ऐसी बात की तो मैं नाराज हो जाउंगी
मैं- मैं जानता हूं पूजा पर मेरा इतना कहा अवश्य करना तुम 
पूजा चलते हुए मेरे पास आई और बस चूमने लगी मुझे बोली- ये बात फिर ना कहना जब तक मैं हु ढाल बनके अड़ी रहूंगी 
मैं- इस खजाने को अपनी जगह पंहुचा दे 
पूजा ने अपने कपडे पहने और सबकुछ पहले जैसा हो गया
मैं- आजके बाद कभी ये न कहना की कुंदन को लालच है कुछ
पूजा- तू भी कभी मत परखना मुझे पर तू भी कभी परेशान मत करना मुझे
वो- मैंने ऐसा क्या किया जो तुम्हे परेशान होना पड़े 
मैं- देख मुझे गलत मत समझिये पर एक बात मुझे परेशान कर रही है की तूने जाहरवीर जी का धागा कैसे उठाया 
पूजा कुछ देर मुझे ख़ामोशी से देखती रही और फिर बोली- शक मत कर मुझ पर 
मैं- नहीं पर दिल घबराता है 
वो- मैं वो धागा उठा सकती हु कुंदन, 
मैं- पर कैसे, क्या तू ।।।
वो- हां ,मैं ब्याहता हु
 
[font=Verdana, Helvetica, Arial, sans-serif]पूजा के शब्द तीर की तरह मेरे कलेजे को बेध गए बहुत कोशिश की पर आँखों से आंसू निकल आये 
पूजा- हां मैं ब्याहता हु 
मैं- कौन,,,, कौन है वो पूजा 
पूजा- तुम 
पूजा पता नही क्या कह रही थी भला वो मेरी ब्याहता कैसे हो सकती थी उसकी बात ने हैरान कर दिया था मुझे 
मैं- पर कैसे 
वो- ऐसे आँखे मत फाड़ो बताती हु,याद करो अपनी पहली मुलाकात जब मेरी शरारत की वजह से तुम गिर गए थे और चोट लग गयी थी 
मैं- याद है 
वो- जब तुम्हे उठा रही थी तभी तुम्हारे खून से मेरी मांग भरी गयी ,किसी भी स्त्री के लिए मांग भरना प्रथम निशानी है उसके विवाहित होने की और मेरी मांग तो रक्त से भरी गयी अनजाने ही सही पर हम एक ड़ोर में बंध गए 
मैं- तो ये बात मुझसे छुपाई क्यों 
वो- प्रेम में कुछ नही छुपता है 
मैं- तो अबसे तुम मेरी अर्धांगी हो
वो- अबसे नहीं अपनी पहली मुलाकात से ही 
तभी मुझे समझ आया खारी बावड़ी में मिले दुल्हन के जोड़े और सिंदूर की डिबिया का क्या मतलब था ,शायद अब वक़्त आ गया था कि मैं पूजा का हाथ थाम लू 
मैं- फेरे लेगी 
वो- अवश्य 
मैं- तो आ आज अभी इसी वक़्त 
वो- ऐसे नहीं मैं फेरे तब लुंगी जब तुम खुद मुझे लेने आओगे 
मैं- कहाँ 
वो- तुम्हे मालूम है 
पूजा के होंठो पर मुस्कान थी पर उसकी आँखों में एक फीकापन था जिसे मैं समझ नहीं पाया पर हम वापिस हो लिए जब उसके घर तक पहुचे तो थक गए थे मैं तो पड़ते ही सो गया ,अगली दोपहर में अपनी जमीन पर काम कर रहा था कुछ ही दिन बाद मुझे गेहू बोने थे 
तभी ठाकुर जगन सिंह की गाडी आकर रुकी और वो उतरा
जगन- कैसे हो कुंदन 
मैं- ठीक हु आपका आना कैसे हुआ
जगन- तुम्हारे ही काम से आया हु, तुम चाहते थे न की दोनों गाँवो में भाई चारा फिर से हो तो इसका एक रास्ता खोज लिया है मैंने
मैं- क्या 
जगन- मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे लिए लाया हूँ अगर दोनों घरानों में रिश्तेदारी हो जाये तो भाई चारा अपने आप हो जायेगा 
जगन की बात दुरुस्त थी पर मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकता था 
मैं- आपने इस काबिल समझा मेरे लिए सम्मान की बात है परंतु मैं इस प्रस्ताव को स्वीकारने में असमर्थ हु 
जगन- सोच लो कुंदन कम से कम एक बार मेरी बेटी से मिल लो क्या पता तुम्हारा मन बदल जाये और फिर तुम्हारा ही तो सपना है कि दोनों गांव एक हो जाये 
मैं- मैंने कहा ना ठाकुर साहब मैं असमर्थ हु 
मैंने अपने हाथ जोड़ दिए
जगन- क्या मैं इस ना की वजह जान सकता हु 
मैं- मेरी अपनी मजबूरियां है 
जगन ने बहुत जोर दिया पर मैं उसे क्या बताता की पूजा है मेरे जीवन में जगन के जाने के बाद पूजा आ गयी
पूजा- चाचा क्यों आया था 
मैंने उसे सारी बात बताई
पूजा- वो गांव वालों की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने आया था वो सोचता है कि बेटी ब्याहने से प्रॉपर्टी वाला पंगा ठीक हो जायेगा 
मैं- भाड़ में जाये तेरा चाचा, तू ये बता सुहागरात का क्या इरादा है 
वो- यही नाड़ा खोल दू क्या मेरे भोले बालम 
मैं- बेशर्म ज्यादा हो गयी है तू आजकल 
वो- अब क्या करूँ सरकार तुम तो दूर दूर भागते हो 
मैं- बस कुछ वक़्त और फिर तेरे मेरे मिलन की रात भी आएगी उस दिन जब तू सुर्ख जोड़े में लिपटी मेरे आगोश में होगी 
जोड़े से मुझे कुछ याद आया 
मैं- आ जरा साथ मेरे 
मैं पूजा को अपने साथ उस जगह ले आया जहाँ मैंने वो जोड़ा रखा था 
पूजा- ये यहाँ कैसे
मैं- ये तेरे लिए है मेरी जान और ये सिंदूर की डिबिया जब तुझे फेरो के लिए लेने आऊंगा तब इसी डिबिया के सिंदूर से तेरी मांग भरूँगा
पूजा- पर कुंदन 
मैं- पर वर कुछ नहीं मेरी जान मुझे भी अब लगता है कि समय आ गया है पर अपनी गृहस्थी शुरू होने से पहले एक काम और निपटाना है अपनी तमाम उलझनों को सुलझाना होगा 
पूजा- पर कैसे करेंगे कुंदन कैसे 
मैं- मैं करूँगा पूजा और इसकी शुरुआत होगी तेरी हवेली से जल्दी ही हम दोनों जायेंगे और फिर एक के बाद एक कड़ी जोड़ लेंगे 

पूजा- वहां जाने की कोई जरुरत नहीं है कुंदन 
मैं- जरुरत है पूजा 
पूजा- तुझे क्या चाहिए मैं या वो हवेली 
मैं- पर तेरे लिए ही तो 
वो- तेरे साथ ये झोपडी भी महल लगे है कुंदन मैं तेरे और तेरे प्यार के साथ जीना चाहती हु कुंदन ये दौलत ये शोहरत ये तमाम चीज़े कुछ मायने नहीं रखता सिवाय तेरे , तेरे आने से पहले मैं जिन्दा थी जीना तेरे आने के बाद सीखा मैंने,मुझे बस तेरी बाहो में पनाह चाहिए और कुछ नहीं
मैंने चुपचाप पूजा को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी धड़कनो को अपने अंदर समेट लिया तक़दीर ने शायद हमारी नियति चुन ली थी बस देखना ये था की मोहब्बत का अंजाम क्या होना था 
मुझे दो दिन बाद कुछ काम से गाँव जाना हुआ तो देखा की घर के बाहर
मैंने देखा की गाड़ियों की कतार लगी थी तो मुझे उत्सुकता सी हुई और मैं बस बढ़ गया घर की ओर अंदर बैठक में कुछ लोग थे और मैंने ठाकुर जगन सिंह को देखा और सबसे पहला सवाल मेरे मन में ये ही आया की ये हमारे घर में क्या कर रहा है
पर तभी मुझे सीढियो पर भाभी दिखी उन्होंने ऊपर आने का इशारा किया तो मैं लपक लिया 

मै- जगन सिंह हमारे घर क्या कर रहा है 

भाभी- कमरे में आओ 

मैं भाभी के साथ कमरे में आया 

भाभी- अर्जुनगढ़ से तुम्हारे लिए रिश्ता आया है 

मैं- पर मैं इसको मना कर चुका हूं भाभी और ये घर तक आ गया अभी सीधा करता हु इसे, हड्डिया तुड़वायेगा ये मेरे हाथों से 

भाभी- शांत, अभी वो मेहमान है इस घर का और हमारे घर में मेहमानों की इज्जत की जाती है 

मैं- पर भाभी 

भाभी- राणाजी कर रहे है ना बात 

मैं- तो , मेरी ज़िंदगी का ये फैसला मैं लूँगा राणाजी नहीं 

भाभी- अभी शांत रहो मुझे लगता है राणाजी मना ही करेंगे 

मैं- और हां करदी तो 

भाभी- तुम शांत रहो पहले 

मैं- कैसे, भाभी मैं बता रहा हु इस जगन सिंह को अभी के अभी घर से बाहर नहीं किया तो क्लेश हो जायेगा फिर कहना मत

भाभी- तो जाओ और जो करना है करो, कमसे कम दुनिया के आगे जो झूठी इज्जत बची है उसे भी तार तार कर दो 

मैं- ये आप कह रही है 

भाभी- अभी बस बात ही हुई है प्रस्ताव स्वीकार नहीं हुआ है 

मैं गुस्से से भरा हुआ नीचे आया और घर से बाहर जा ही रहा था कि राणाजी ने मुझे एकांत में बुलाया और बोले- हमने तुम्हारा रिश्ता ठाकुर जगन सिंह की बेटी से तय किया है दस दिन बाद सगाई का मुहूर्त है 

मैं- किस से पूछ कर 

राणाजी- पूछना नहीं हम बता रहे है तुमसे 

मैं- मुझे नहीं मंजूर 

राणाजी- दस दिन बाद तैयार रहना सगाई के लिए 

मैं- पिताजी मैं कह चुका हूं मुझे ये रिश्ता ना मंजूर है 

राणाजी- हमारे हुकुम की अवमानना करोगे

मैं- बात मेरी ज़िंदगी की है ये मेरा फैसला है 

राणाजी- क्या बुराई है इस रिश्ते में आखिर तुमको भी तो रूचि है अर्जुनगढ़ में तो अब क्या दिक्कत 

मैं- है पर किसी और कारन से ,अगर आपकी यही इच्छा है कि मैं अर्जुनगढ़ में ही ब्याह करू तो ठीक है पर जगन सिंह की बेटी से नहीं 

राणाजी- तो किससे

मैं- अर्जुन सिंह की बेटी से 
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मेरे शब्द सुन कर राणाजी के चेहरे के भाव बदल गए और वो बोले- हम जगन सिंह को जुबान दे चुके है और राणा हुकुम सिंह की जुबान की कीमत तो समझते होंगे तुम 

मैं- चाहे जान देनी पड़े पर कुंदन जगन की बेटी से ब्याह नहीं करेगा 

राणाजी- सगाई वाले दिन तैयार रहना उसी दिन ब्याह का मुहूर्त निकाला जाएगा

मेरा दिल कर रहा था कि अभी जगन सिंह की गांड पे लात दू पर मजबूर था तो मैं हैरान परेशान जाकर पीर साहब की दरगाह पर पहुच गया दिया जलाया माथा टेका और बस दुआ कर रहा था कि इन तमाम उलझनों से आज़ाद कर दो मुझे

"बहुत सताते है आप आजकल अभी हम इतने अजनबी भी नहीं हुए है कि हमे भुला ही दिया जाये"

मैंने पलट कर देखा छज्जे वाली खड़ी थी 

मैं- आप 

वो- शुक्र है पहचाना तो सही 

मैं-ऐसा क्यों कहती हो 

वो- तो क्या कहे दिन पे दिन बीत जाते है पर आप है कि बस 

मैं- ज़िन्दगी की परेशानियां है उलझा हु 

वो- हमें तो बेगाना समझते है वर्ना दो चार परेशानियां तो हमसे भी बाँट सकते है ना 

मैं जान गया था की बहुत नाराज है पर मेरा अब क्या दोष था 

मैं- आपकी नाराजगी समझता हूं पर मेरे हालात आजकल ठीक नहीं है 

वो- समझते है हम पर हर मुश्किल का हल होता है 

मैं- जरूर होता है 

वो- तरस से जाते है आपके दीदार को आँखे बस आपको देखना चाहती है और आप है की, आखिर ये कैसी सजा दे रहे है आप 

मैं- भला मैं क्या सजा दूंगा, मैं खुद झुलस रहा हु एक आग में 

वो- हमपे भरोसा तो कीजिये ठंडी हवा का झोंका बन जायेंगे

मैं- आप पे भरोसा है 

वो मेरे पास बैठ गयी और मेरे हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोली- कुंदन जी , ना जाने क्यों मेरा दिल घबराता है 

मैं- ये तो दिल ही बता सकता है की कैसी घबराहट है उसको

वो- तो आप ही पूछ लीजिये 

उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख दिया 

वो- हम तो परेशां है इस कम्बख्त से दर्द भी देता है और मरहम भी नहीं करता 

मैं- ये जगह ठीक नहीं है जी

वो- रब्ब के घर से ज्यादा महफूज़ हम कहा है 

मैं- मैं बेबस हु इस समय 

वो- और हम लाचार, सच कहते है सह नहीं पाएंगे आपकी रुस्वाई को 

मैं- आप समझ नहीं रही हो

वो- क्या आपको हमसे मोहब्बत नहीं 

छज्जे वाली ने सीधे सीधे ही पूछ लिया था अब मेरी मुश्किल का कौन समाधान करे मैं कैसे इसे बताऊ की क्या बीत रही है मेरे साथ, मैंने उसकी आँखों में देखा जहा आँखों में एक उम्मीद के साथ साथ एक दर्द भी था 

मैंने उसकी ओर देखा 

वो- क्या हमसे मोहब्बत नहीं आपको 

मैं- मोहब्बत में क्या हां क्या ना, मोहब्बत तो बस एक जावेदा ज़िन्दगी है 

वो- तो मेरी प्रीत का मोल क्या 

मैं- प्रीत का कोई मोल नहीं होता प्रीत तो अनमोल 

वो-तो फिर होंठ क्यों लरजते है कहने में 

मैं- एक सवाल करू 

वो- बेशक

मैं- एक दोराहा है सामने और दिल अपना है प्रीत परायी 

वो- प्रीत परायी कैसे हुई 

मैं- बस हो ही गयी है दिल का ख्याल रखु तो प्रीत का दुःख होये और प्रीत को थामु तो दिल का रोग लगे 

वो- उलझन है फिर तो 

मैं- उलझन ये मेरी कोई सुलझाता नहीं

वो- कौन है वो 

मैं खामोश रहा 

वो- कौन है हमारे सिवा आपकी ज़िंदगी में जिसने हमारी मोहब्बत के बावजूद हमसे चुरा लिया आपको, जरूर कोई खुशनसीब ही होगी जो हमारी इतनी दुआओ के बावजूद भी खैर कुंदन जी खुदा के घर में खड़े है आपसे कुछ न कहेंगे बस एक सवाल का जवाब दीजिये हमारे

“मेरे बस एक सवाल का जवाब दोगे”

मैं- मेरे पास कोई जवाब नहीं है अगर कुछ है तो बस कुछ बिखरे जज्बात और बिखरती जिंदगानी 

वो- सुन लीजिये ना अब बात बड़ी मुश्किल से होंठो पर आई है 
 
बेशक वो सर्दियों की दोपहर थी पर फिर भी पसीना पसीना हो रहा था मैं मेरी नजरे झुकी थी दिल में परेशानी थी इन सब में उसका भला क्या दोष था नजरे कैसे मिलाऊ मैं उससे और भला क्या कहू, झूठ बोल नहीं सकता खुदा के घर में जो खड़ा था और सच बोलने की हसियत नहीं थी मेरी , ये कैसी बेबसी थी ये क्या हो रहा था मुझे , अब कहू तो क्या कहू , बोलू तो क्या बोलू, मैंने भी सोचा तो बस इसके साथ ही जीने का था पर हाय रे तकदीर .

पर क्या तकदीर को दोषी ठहराना उचित था मुझे हर पल मालूम था की आगे चल कर ये लम्हा किसी यक्ष प्रश्न की तरह मेरे सामने खड़ा हो जायेगा

“आपके होंठो पर य ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती है ” कहा उसने 

मैं- मुस्कुरा भी तो नहीं सकता 

वो- इजाजत हो तो सवाल करू मैं 

उसने अपनी लरजती हुई आवाज में कहा जैसे बड़ी मुश्किल से रुलाई को रोका हो और मैं भी अपनी आँखों से गिरते दर्द को रोक ना सका वो मेरे पास बैठी थी मेरे हाथो को थामे हुए सामने खुदा था और मेरी दुआ थी की इसके साथ आज इंसाफ हो क्योंकि आज इसका दिल टुटा तो मोहब्बत की रुसवाई तो होगी ही पर हम भी बेवफा कहलायेंगे 

वो- मत घबराइए आप की हर उलझन से आजाद कर दूंगी आपको 

मैं- और आप 

वो- अजी हमारा क्या आप खुद को रोक सकते है पर हमे नहीं , हमारा दिल है हमारी जिंदगी है हमारे दिल पर आज भी हमारा ही हक़ है और आप तो क्या खुदा भी हमे आपसे इश्क करने से रोक नहीं सकता है ये बात और है इश्क एकतरफा हुआ तो क्या हुआ और फिर ज़िन्दघी बड़ी जालिम है सरकार जीना सिखा ही देगी किसी बहाने से 

मैं- मेरी बात तो सुनो 

वो- जरुर सुनूंगी पर जरा पहले अपनी तो कह लू ,जानते है जीना मैंने तब सीखा था जब आप मेरी जिंदगी में आये उससे पहले बस सांसे चल रही थी आपके आने से खिल गयी थी मैं वो पहली बार जब आपने मेरे दुप्पट्टे को छुआ तह आजतक उसे सीने से लगा के सोती हु मैं पर आज ऐसे लगता है की 

“इतने करीब आकर सदा दे गया मुझे,मैं बुझ रही थी कोई हवा दे गया मुझे , उसने भी खाक डाल दी मेरी कब्र पर वो भी मोहब्बतों का सिला दे गया मुझे ”


मैं- कुछ दिन से जिंदगी मुझे पहचानती नहीं, देखती है जैसे मुझे जानती नहीं 

आज हम दोनों अपनी अपनी शिकायत लिए बैठे थे उसकी हर शिकायत मेरे सर माथे पर थी पर वो भी निराली ही थी कुछ बोलते कुछ खामोश हो जाते हाथो में हाथ उलझे थे और आँखों से आँखे दर्द मेरे सीने में भी था दर्द उसके सीने में भी था उसकी आँखों में निराशा के आंसू थे मेरी आँखों में बेबसी के , अब कैसे कहू मैं उससे की किसी और का हाथ थाम आया हु मैं किसी और की मांग में सिंदूर बनकर सजा हु मैं .

वो- मैं ये नहीं कहूँगी की क्यों आये मेरी जिंदगी में न दोष दूंगी क्योंकि मैं जानती हु होगी कोई खुशनसीब जिसने आपका हाथ थामा है और ख़ुशी भी है की हम नहीं तो क्या हुआ कोई तो है हमसफर आपका 

मैं- ऐसी बात नहीं है 

वो- अजी रहने भी दीजिये ना , क्या फरक पड़ता है अब आप कह नहीं पाएंगे और हम शायद सुन नहीं पाएंगे और गिले शिकवे भी क्या करने दिल भी अपना और प्रीत भी अपनी , बस आपसे इतना ही कहती हु की मोहब्बत को मज़बूरी का नाम ना दीजिये वो क्या है ना बात जरा हलकी सी हो जाएगी 

मैं- मोहब्बत, सुनने में बहुत अच्छा लगता है करने में और अच्छा , जब अचानक ही नीरस राते अच्छी लगने लगती है जब किसी के ख्याल भर से ही होंठो पर हंसी आ जाती है , वो जब पहली बार तुम्हे देखा था छजे पर खड़ी दिल तो मैं तब ही हार गया था वो जब छुप छुप कर गलियों में तुमको आते जाते देखता था . वो जब तुम अपनी चुन्नी में उंगलिया घुमाती हो जब तुम धीरे से आँखों से सब कुछ कह जाती हो ,

जानती तो कितनी राते उस चाँद को देख कर मैंने अनखो आँखों में काट दी इसलिए नहीं की चांदनी में कोई बात थी बल्कि इसलिए की चाँद में भी तुमको देखा मैं, अपनी खिड़की की सलाखों से टपकती बरसात में किसी ठन्डे हवा के झोंके को महसूस किया मैंने जो अपने साथ तुम्हारे बदन की खुशुबू लेकर आया था , जब पानी की टंकी पर तुम्हे पानी पीते देखता था तो इर्ष्या की मैंने उन बूंदों से जो तुम्हारे लबो को चूम कर आई थी 

मोहब्बत, हां, की मैंने मोहब्बत कभी तुमसे उस तरह कह नहीं पाया जैसे की शायद तुमने अपेक्षा की हो पर ये खुदा जानता है हर धड़कन ने अगर किसी को महसूस किया तो बस तुमको पर जिंदगी की बिसात पर मोहबत की चाल बस किसी प्यादे भर की ही है, ये मैंने आज जाना है गुनेहगार हु मैं तुम्हारा पर माफ़ी नहीं मांगूंगा क्योंकि मुझे हर पल पता था की एक ऐसा दिन अवश्य आएगा 

वो- मैं आपसे कोई सफाई नहीं मांगूंगी क्योंकि मोहब्बत में कहा किसी को पाना होता है और कहा किसी को खोना प्रेम तो बस प्रेम 
होता है खैर, आप बातो में मुझे न उलझाइये बस मेरे प्रश्न का जवाब दीजिये 

उसने बड़ी गहराई से मेरी आँखों में देखा और बोली-राधिके और मीरा में से किसका प्रेम ज्यादा सच्चा था 
दिल ही दिल मैं उसका लोहा मान ल्लियाय- बस एक वाक्य म अपना सारा दर्द अपना सब घोल दिया था उसने बिना कुछ कहे सब कुछ बोल गयी थी वो 

वो- बताइए कुंदन जी 

मैं- दोनों का 

वो- तो फिर मोहन रुकमनी को क्यों मिले मोहन के लिए राधिका भी थी और मीरा भी तो फिर प्रीत का अंतर क्यों भला जवाब दीजिये

मैं- प्यार बस प्यार होता है चाहे राधिका का हो या मीरा का, प्रेम क्या तेरा मेरा , रुक्मणि को बेशक माधव ने चुना पर पर आज भी श्याम राधा के नाम से जाने जाते है और मोहन मीरा के नाम से ,
रही बात मेरी तो मेरे लिए राधा भी वो ही जो मीरा है फर्क इतना है बस मैं कान्हा नहीं हूं , मेरे दिल की हर धड़कन को तुम्हारे नाम किया मैंने पहली मुलाकात से आज तक बस तुम्हारा ख्याल किया पर ये मोहब्बत भी बड़ी जालिम है ,
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो,हम ही हम है तो क्या हम है बात तब बने जब हम तुम बने तुम हम बनो
वो- खोखली बातो का क्या फायदा 
मैं- आप ही बताओ मैं क्या करूँ,
वो- अब क्या कहना जब आपने राह जुदा कर ही ली है, मोहब्बत का यही सिला तो ये ही सही खाली हाथ हु तो क्या हुआ दुआ तो दे ही सकती हूं ना 
वो उठी और चलने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया ,वो रुक गयी
वो- किस हक़ से रोकते हो सरकार 
मैं- तुम्हे भी तो पता है 
वो- जाने दो, कदम डगमगा गए तो मुश्किल हो जायेगी
मैं- होने दो क्या हुआ जो कदम डगमगाये मैं हु ना
वो- ये कैसी मोहब्बत है आपकी 
मैं- वो ही जिसे तुम्हारा दिल समझता है जो बसी है तुम्हारी रूह में 
वो- तो क्यों रुस्वा करते हो जख्म भी देते हो और मरहम की बात भी करते है 
मैं- और मेरा क्या ,मैं कैसे जीता हु ,कैसी दुविधा है मेरी की हाथ थामा भी ना जाये और छोड़ा भी न जाए
वो मेरे इतने पास आ गयी की सांसो की डोर सांसो से उलझने लगे पसीने की महक एक बार फिर मुझे पागल करने लगी, धड़कने धड़कनो को सदा देने लगी थी होंठ कुछ पलों के लिए खामोश हो गए पर ख़ामोशी बहुत कुछ कह रही थी
वो- छोड़ो हमे कोई आ जायेगा ऐसे देखेगा तो 
मैं- देखने दो, आज सबको पता चलने दो 
वो- जाते जाते बदनाम करोगे हमे
मैं- प्रीत की डोर इतनी कच्ची भी नहीं 
वो- जब टूट ही गयी तो क्या कच्ची क्या पक्की
उसकी बात किसी तीक्ष्ण बाण की तरह कलेजे को चीरे जाती थी पर हमें तो अभी और रुस्वा होना था, थोड़ा और गिरना था खुद की नजरों में,
मैं- काश मैं तुम्हे बता सकता 
वो- अगर कभी अपना समझते तो छुपाते ही नहीं 
मैं-ये खुदा जानता है या फिर तुम जानती हो की अपनी हो या परायी हो 
वो- अपनी होती तो ऐसे ठुकराते नहीं
मैं- मैंने तुम्हे नहीं बल्कि मेरे नसीब ने 
वो- कितना अच्छा है न जब कुछ न सूझे तो नसीब पर दोष डालदो
मैं-अब जवाब देता हु तुम्हारे सवाल का , माना मोहन ने रुक्मणी का हाथ थामा पर आज भी पूजते वो राधा या मीरा के साथ ही है, बस पा लेना ही प्यार नहीं मैं चाहे तुम्हारे साथ रहु या ना राहु प्रेम था तुमसे और मेरी अंतिम सांस तक रहेगा
वो- यही तो मैं कह रही हु जब प्रेम करते हो तो जुदाई की सजा क्यों देते हो मुझे 


मैं- तुम्हे नहीं खुद को 
वो- पर जलूँगी तो मैं भी साथ ही ना 
मैं- जलोगी पर आग की तरह नहीं बल्कि मेरे दिल में दिए की तरह, तुम्हे कसम है मेरी की मुझे भूल जाना ज़िन्दगी में तुम्हे इतनी खुशिया मिलेंगी की मेरी तमाम यादे कब धूमिल हो गयी पता भी न चलेगा
वो- क्या आप भुला सकेंगे मुझे 
मैं- ज़िन्दगी को कैसे भूल सकता है कोई 
वो- तो मैं कैसे भुला पाऊंगी कुंदन जी
मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े ,
मैं- तो क्या करूँ मैं 
वो- एक अधिकार देंगे मुझे 
मैं- सब तुम्हारा ही है 
वो- ना मैं ये कहूँगी की आप उसका दामन छोड़ कर मेरा आँचल थामो, न मैं आपको उसके साथ बाँट पाऊँगी क्योंकि मैं दूजी न बनूँगी , पर यदि प्रेम मेरी परीक्षा ही लेना चाह रहा है तो मैं आपको साक्षी मानकर मेरी नियति चुनती हु जिस तरह कान्हा की मीरा था मैं आपकी मीरा बनूँगी
मैं- कदापि नहीं 
वो- आप मुझे आपसे प्रेम करने से नहीं रोक सकते मेरे प्रेम पर बस मेरा हक़ है 
इतना कहकर हाथो से हाथ छुड़ा कर वो चल पड़ी बिना मेरी और देखे,दिल चाह कर भी उसे रोक ना सका, बस देखते रहे उसे जाते हुए पर वो अकेली नहीं गयी थी बल्कि अपने साथ मेरी आत्मा का एक टुकड़ा भी ले गयी थी।
अपनी आँखों में बिखरी ज़िन्दगानी के टुकड़े लिए मैं निकला वहां से पर जाये तो कहा जाए आज सब बेगाना लग रहा था सब पराया दिल भी और प्रीत भी जैसे तैसे करके अपनी जमीन के टुकड़े पर पहुंचा और कुवे की मुंडेर पर बैठके सोचने लगा 
और तभी मैंने भाभी की गाडी को आते देखा शाम कुछ ही देर में रात में बदल जानी थी इस समय भाभी यहाँ
भाभी मेरे पास आई और बोली- बात करनी थी तुमसे कुछ 
मैं- बाद में भाभी 
वो- अभी करनी है तुम्हारे और राणाजी के विषय में 
मैं- अरे, भाड़ में जाये राणाजी और भाड़ में जाओ आप मुझे मेरे हाल पे जीने दो, नहीं करनी शादी यार किसी से भी भाड़ में जाये दुनिया मुझे जीने दो 
भाभी- इतने उखड़े हुए क्यों हो
मैं- तो क्या करूँ जो भी मिलता है बस अपनी बातें थोप देता है मेरी कोई नहीं सुनता अरे क्या माँगा है किसी से कुछ भी तो नहीं पर हम साले हमारी कोई नहीं सुनता 
भाभी- कुंदन मेरी बात सुनो गुस्सा करने से क्या होगा क्या तुम्हारी परेशानियां कम होंगी नहीं बल्कि बढ़ और जाएँगी 
मैं- अकेला रहना चाहता हु मैं 
भाभी- जानती हूं पर अकेला छोड़ नहीं सकती तुम्हे 
मैं- भाभी आज टुटा हुआ हूं मैं आज न कोई सवाल है ना जवाब है मेरे पास न कुछ कहना है ना कुछ सुनना है 
भाभी- जानती हू आओ मेरे साथ आओ 
भाभी मुझे अंदर कमरे में ले आयी 
भाभी- समझती हूं तुम परेशान हो पर हर समस्या का हल जरूर होता है 
मैं- दिल के दो टुकड़े करना चाहता हु कैसे करूँ 
भाभी- दिल है ही कहा तुम्हारे पास
 
भाभी की बात बड़ी जोर से चुभी मुझे पर सच का घूंट तो कडवा ही होता है 

भाभी- कुछ गलत तो नहीं कहा मैंने ,दरअसल हम परेशान इसलियी होते है क्योंकि हम चीजों को उस तरह से देखते है जैसे हमे चाहिए होता है पर हकीकत कुछ जुदा ही होती है बस इतनी बात है तुम आज किस बात से परेशान हो मैं नहीं जानती पर क्या तुम्हे पता नहीं था की एक समय आएगा 

मैं- हर पल पता था मुझे हर पल .

भाभी- तो अब दुखी किसलिए होते हो वो कहावत तो सुनी ही होगी की जब बोया पेड़ नीम का तो कडवा कडवा ही होए .

मैं-काश आप समझ पाती.

भाभी- काश कोई मेरी समझ पाता . 

मैं- कुछ समझा नहीं 

वो- समझे नहीं या समझना नहीं चाहते हो. 

मैं- क्या कहना चाहती हो .

भाभी- बस इतना की, जिस हक़ की बाते तुम हमेशा करते हो आज जब उसी हक़ पर राणाजी के हुकुम की तलवार लटकी तो कायरो की तरह भाग आये तुम घर से .

मैं- भाभी आप तो जानती हो. 

भाभी- हमारे जानने से क्या होता है देवर जी, कौन सा हम कुछ फरक पड़ना है मैंने तो बस आपकी बातो को दोहराया है . 

भाभी की आँखों में देखते हु ना जाने क्यों आज मुझे ऐसा लगा की नियति जैसे उस खेल की बिसात बिछा रही थी जिससे मैं भागने की हर संभव कोशिश कर रहा था मेरी आँखों में वो हाहाकारी मंजर आने लगा जो मैंने पद्मिनी की जलती आँखों में देखा था , एक तरफ मेरा हक़ था, एक तरफ मेरा प्रेम था एक तरह किसी का विश्वास था तो एक तरफ किसी की आस थी और बीच मैं कुंदन ठाकुर जो भाग रहा था अपने आप से. 

भाभी- कहा खो गए . 

मैं- आपकी बात समझता हु पर आप भी तो ये ही करती है आप भी तो भागती है अपने आप से अपने हक़ से आप कोई कदम क्यों नहीं उठाती .

भाभी- क्योंकि नफरत से बस नफरत फैलती है और मैं नफरत करू तो किस से तुम से या राणाजी से , हाँ मैं सहती हु सब मेरी आत्मा इस कदर रक्त-रंजित है हर पल मैं टूट के बिखरती हु, मैं अपनी जिल्लत को मुस्कराहट के पीछे छुपा लेती हु पर कुंदन, मेरे अपने कारण है और ऊपर वाले पर मुझे पूरा भरोसा है , उसकी लाठी में आवाज नहीं होती पर मार बहुत जोर ही पड़ती है ,

हक़, जैसा मैं तुम्हे पहले भी बता चुकी हु की अब ये सब मेरे लिए मायने रखते नहीं क्योंकि न्याय भी अगर समय पर नहीं मिले तो उसका कोई मोल नहीं रहता पर मैं नियति को स्वीकार भी नहीं करुँगी,क्योंकि मैं स्वयं की नियति अपने हाथो से लिखूंगी , मेरी रगों में भी ठाकुरों का खून दौड़ रहा है पर उसके बाद होगा क्या हर रिश्ता तबाह हो जायेगा , तुम्हारी ही हवेली को घर मैंने बनाया था , 

पर अफ़सोस , खैर हम बस इतना ही चाहेंगे की तुम अपनी जिंदगी में खुश रहो क्योंकि आखिर कौन है तुम्हारे सिवा हमारा अपना , ना कोई तुम्हारे पहले था ना कोई तुम्हारे बाद .



मैं- आके साथ उस घर में जो कुछ भी हुआ हम सब ही गुनेहगार है आपकी हर सजा वीकार है और सबसे बड़ा गुनेहगार तो मैं हु जिसे ये भान तक ना हुआ की आखिर हो क्या रहा है .

भाभी- वो मेरे और राणाजी के बीच की बात है और हम चाहेंगे की तुम इस मामले में न आओ

मैं- बिलकुल नहीं आऊंगा मेरा उस घर से रिश्ता उसी दिन टूट गया था बस एक डोर है जो आपसे जुडी है 

भाभी- खैर, जाने दो राणाजी ने वादा किया है जगन ठाकुर से 

मैं- अब आएगा मजा, राणाजी भी समझे की दुनिया दारी होती क्या है 

भाभी- कच्चे हो तुम दुनियादारी के कायदों में 

मैं- आप मेरे साथ हो,

भाभी- हमेशा 

मैं- बाकि मैं संभाल लूँगा .पर आप आखिर क्यों उस घर को नहीं छोडती है हम सब कही और चले जायेंगे आखिर कब तक आप 
घुटती रहेंगी आखिर ऐसी भी क्या मज़बूरी है जो आप इस बात पर मेरा साथ नहीं दे पाती है कही आपको लत तो नहीं हो गयी राणाजी की 

भाभी – कितनी बार कहा है हमे रंडी ही बोल दिया करो सीधे सीधे , क्यों घुमा कर कहते हो , वैसे लत तो हमे तुम्हारे भी है तो कहो तो उतार दे कपडे .

मैं- रुसवा होता हु मैं जब आप मुझे छोड़ कर राणाजी को चुनती है 

भाभी- मेरे अपने कारण है , और बात वही है एक दिन आएगा जब तुम समझ जाओगे की आखिर क्यों 

मैं- तो बता क्यों नहीं देती हो 

वो- ठाकुरों को अपने राज़ बताने की इजाजत नहीं होती है 

मैं- मैं तो बस नाम का ठाकुर हु 

भाभी- मैं भी, 

भाभी उठी पर बाहर जाने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड लिया .

मैं- आज यही रुक जाओ 

वो- क्या इरादा है 

मैं- कुछ नहीं . 

वो- तो क्यों रोकते हो. 

मैं- शायद इरादा बन जाये .

भाभी- सच में . 

मैं- आपकी कसम. 

भाभी- तो ठाकुर का खून जोर मारने लगा है . 

मैं- ठकुराईन जब इतनी जबर हो तो ठाकुर क्या करेगा . 

भाभी- और ना उतर आये मैदान में तो. 

मैं- मैदान की बात करते हो सारी जमीन ही हमारी है .

भाभी- वो तो है . 

मैंने भाभी की कमर में हाथ डाल कर खींचा तो वो मेरी बाँहों में आ गयी 

मैं- भाई के बिना कैसा लगता है.

भाभी- जैसा पहले लगता था मुझे उसके रहने से कोई फर्क नहीं था उसकी मौत से कोई फर्क नहीं . 

मैं- क्यों अब देवर को फांस ली हो इसलिय 

भाभी- क्या सच में, मैं तो मरे जा रही हु तुम्हारे निचे लेटने को जैसे. 

मैं- निचे नहीं तो ऊपर आ जाओ . 

भाभी- जिस दिन इस लायक हो जाओगे, टांगे खोल दूंगी वादा करती हु.

मैं- कहो तो अभी . 

भाभी- रहने दो, तुमसे न हो पायेगा.

मैं- कभी तो होगा. 

भाभी- होगा तो तैयार हु मैं . 

मैं- क्या लगता है इन्दर को किसने मारा होगा. 

भाभी- जिसने भी मारा उसका यही अंत होना था . 

मैं- बिलकुल बेशक भाई था पर फिर भी उसके कातिल की तलाश जारी है 

भाभी- क्या करोगे अगर मिल गया तो क्या उसे भी मार दोगे. 

मैं- भाई भी था वो मेरा.

भाभी- तो कातिल तुम्हारे सामने है कर दो कतल.....
 
भाभी- तो कातिल तुम्हारे सामने है कर दो कतल 

जैसे ही भाभी ने ऐसा कहा मेरी पकड़ ढीली हो गयी मैंने पहली बार भाभी के होंठो पर एक फीकी हंसी दिखी और मेरी आँखों में खून उतर आया जो भाभी बस कुछ पल पहले मेरी बाँहों में थी मेरे हाथ उसके गले पर पहुच गए, मेरी आँखों में खून उतर आया , 

मैं- क्यों किया ऐसा .

भाभी- तुम्हे कातिल की तलाश जो थी . बाप ने कितनो को मार दिया अब बेटा भी वो सब करेगा तुम्हे कातिल चाहिए और मेरे पास वजह भी है ठाकुर इंद्र को मारने की तो दोनों का ही मसला ख़तम हुआ ना.

मैंने भाभी को धक्का दिया और बोला- इतना भी मत खेलो भाभी, की फिर खेल खेल ना रहे इंद्र लाख बुरा था पर भाई भी था मेरा और भाई का नाता क्या होता है कुंदन इतना भी बेगैरत नहीं है .

भाभी- कुंदन, नहीं ठाकुर कुंदन कहो देवर जी . क्या कहते हो भाई खोया है तुमने तो मैं कौन हु अगर तुम्हारी बात पे जाऊ तो मैंने तो अपना सुहाग, मांग का सिंदूर खोया है मुझे तो दुनिया ही जला देनी चाहिए रही बात तुम्हारी तो बड़े टीस मार खान बनते फिरते हो , भाई क लिए कलेजा फट गया तुम्हारा ठाकुर साहब, जरा उन भाइयो के कलेजे के बारे में सोचो जिनकी बहनों को उनकी आँखों के सामने तुम्हारे पूजनीय भाई ने नंगा कर दिया ,

उन बूढ़े माँ- बाप का सोचो जिनके जवान बेटो का सर काट दिया तुम्हारे भाई ने , तुम्हे तलाश है कातिल की ताकि उसे मार कर तुम्हारे भाई का बदला ले सकोगे पर जिनको तुम्हारे भाई ने बर्बाद कर दिया उनको इंसाफ कैसी दोगे ,तुम्हारे दोगले खून की इतनी कीमत क्योंकि तुम ठाकुर हो दबंग हो, और किसी दुसरे के खून की पानी बराबर औकात वाह रे कुंदन ठाकुर, वाह,तुम और तुम्हारे दोगले उसूल.

बात करते हो अपने खून की अपने भाई की कभी अपनी बहन की याद नहीं आई आजतक , कभी खोज-खबर ना ली उसके ना तुमने, न तुम्हारे उसी पूजनीय बाप और भाई ने ,आये है बड़े बदला लेने वाले ठाकुर कुंदन जी, जाओ पता करो अपनी बहन के बारे में .

मैं- पर कविता तो विदेश में है ना 

भाभी- मेरी जूती, तुम और तुम्हारे उसूल , एक औरत को कहना आसान होता है क्या तुमने भाभी के करीब आने का मौका नहीं लपक लिया भाई की मौत के बाद दुःख है मुझे की मेरी मांग का सिंदूर मिट गया क्योंकि औरत किसी भी हाल में रहे उसकी मांग में सिंदूर है तो एक सहारा महसूस करती है वो पर मुझे ख़ुशी है की इतनो को बर्बाद करने वाला एक दरिंदा मारा गया ,


तुम सब मांसखोर कुत्ते हो जिनके लिए हम औरते बस महज निचे लेटने के लिए बनी है तुम्हे कोई फरक नहीं पड़ता चाहे माँ, हो या बेटी या बहन तुम साले तो हिजड़े हो जो हम पर मर्दानगी का ठप्पा लगाते हो , तुम रिश्ते नाटो की बात करते हो ठाकुर कुंदन सिंह , तुम, अरे कभी अपनी पल पल मरती माँ के पास दो पल बैठने लायक ना हुए तुम, तुम रिश्तो की बात करते हो.

कभी उससे पूछा तुमने माँ कैसी है तु, बीमार पड़ी है कभी उसका हाथ पकड़ कर दिलासा देने लायक हुए तुम , कभी पानी का गिलास तक न पकडाया गया तुमसे, बस मौका मिला और बाहर भाग गए, कायर हो तुम हर चीज़ का सामना करने के बजाये भागते हो , घर में जुगाड़ ना हुआ तो बाहर मुह मारने लगे शराफत का चोला ओढ़ कर , रिश्तो की बात करते है , पूछते है की आखिर क्यों तुम और राणाजी में से मैं उनको चुनती हु , तो आज जवाब देती हु तुम्हे, 

मैं राणाजी को नहीं तुम्हारी मां को चुनती हु, क्योंकि जानती हु अगर मैंने ये घर छोड़ा तो उसका क्या हाल होगा, कौन करेगा उसकी देख रेख चले है कातिलो का शिकार करने ताकि भाई का बदला ले सके, तो करो शुरुआत मुझसे , आओ जब हाथ गले तक पहुच ही गए है तो रुकते क्यों हो दबा ही दो और फिर भी जी ना निकले तो काट डालो मुझे किसी तलवार से और फिर भी कुछ बच जाये तो तुम भी मेरा मांस नोच लेना आओ ठाकुर साहब कर लो अपने मन की .

भाभी की हर बात जैसे एक थप्पड़ की तरह पड़ रही थी उनकी आँखों से गिरते आंसू और दिल की सदा ने मुझे और निचे गिरा दिया था क्या गलत कहा था उन्होंने कुछ भी तो नहीं मैं कुंदन, ना जाने कब कुंदन ठाकुर बन गया था जान ही नहीं पाया था मैं , जिस छवि को बदलन के लिए मैंने इतना कुछ किया था उस छवि ने ही मुझे बदल दिया था ,

भाभी- हमने सोचा था की कोई औलाद नहीं हुई, कोई बात नहीं कोई दोस्त नहीं कोई बात नहीं कोई अपना नहीं कोई बात नहीं क्योंकि हमे अगर कोई दीखता था तो तुम बस तुम, जब पहली बार तुम्हे देखा था तबसे आजतक एक बेटे, एक दोस्त , एक देवर सबको तुम्हारे रूप में देखा हमने यहाँ तक की जिस हद तक तुम गए जाने दिया तुमको तुम्हारी ख़ुशी के लिए पर तुम भी उन्ही में से एक हो. उन्ही में से एक हो .

और पता नहीं भाभी गुस्से में क्या क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा , उनके जाने के बाद भी मैं बस उसी जगह खड़ा रहा , पर पता नहीं कितनी दूर जाकर उनकी गाडी फिर से वापिस आई और वो बोली- राजगढ़ में सूरज बंजारे का पता करना काम आएगा तुम्हारे ,
सूरज बंजारा भाभी जाते जाते मुझे उसका नाम क्यों बता गयी आखिर क्या सूत्र देकर गयी थी वो अब किस नए झमेले में उलझने वाला था मैं क्या मेरी मुसीबते बढ़ने वाली थी या ये कोई उम्मीद की नयी किरन थी .

रात भर मैं बस सबके बारे में सोचता रहा पूजा,भाभी, छःज्जे वाली, राणाजी और मेरी माँ, सही कहा था भाभी ने पर माँ ने क्या कभी बेटे का दर्जा दिया जब देखा बस टोका टाकी, हमेशा सौतेला व्यवहार किया एक बेटे के लिए इतनी ममता और मेरे लिए बस फटकार तो क्या करता मैं उस माँ के पास जाकर,

एक दबंग बाप जिसकी ईमानदारी की आज मिसाल दी जाती थी उसका चेहरा इतना घिनोना था एक भाई जिसे मैं अपनी लाठी समझता था जिसके होते मुझे ये एहसास था कि पीछे खड़ा है वो मुझे सँभालने के लिए ,

पर हकीकत का जब वास्ता हुआ तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा बस मैं बिखर गया, मेरी भाभी मेरी सबसे अच्छी दोस्त ,इस घर में एक वो ही तो वजह थी मेरे मुस्कुराने की जिसने हर कदम मुझे संभाला था और मैं उसके अहसानो के बदले उसके लिए भी अपने मन में पाप लिए था,
 
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