hotaks444
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मेरे ऐसा कहने पर उसने अपना लण्ड मेरी चूत से बाहर निकाल लिया. मैंने अपना सर उठा कर अपनी चूत की ओर देखा. उसकी फांकें फूल कर मोटी और लाल हो गई थी और बीच में से खुल सी गई थी. मुझे अपनी चूत के अंदर खालीपन सा अनुभव हो रहा था. मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी उसने बीच में ही चुदाई क्यों बंद कर दी।
'भौजी एक बार तू घुटनों के बल हो जा !'
'क..क्यों...?' मैंने हैरान होते हुए पूछा।
हे भगवान ! कहीं यह अब मेरी गांड मारने के चक्कर में तो नहीं है? डर के मारे में सिहर उठी. मैं जानती थी मैं इस मूसल को अपनी गांड में नहीं ले पाउंगी.
'ओहो भौजाई , एक बार मैं जैसा कहता हूँ करो तो सही...जल्दी.'
'ना बाबा मैं गांड नहीं मारने दूंगी.'
'अरे मेरी रनिया ! तुम्हें मरने कौन साला देगा. एक बार गांड मरवा लो जन्नत का मज़ा आ जाएगा तुम्हें भी.'
'न... ना... आज नहीं.... बाद में.' मैं ना तो हाँ कर सकती थी और ना ही उसे मन कर सकती थी. मुझे डर था वो कहीं चुदाई ही बंद ना कर दे. इसलिए मैंने किसी तरह फिलहाल उससे पीछा छुड़ाया.
'चलो भौजाई , कोई बात नहीं , कुतिया तो बन जा , कुत्ते के तरह चूत तो मार लेने दो?"
मैं झट से अपने घुटनों के बल (डॉगी स्टाइल में) हो गई. अब वो मेरे पीछे आ गया. उसने पहले तो अपने दोनों हाथों से मेरे नितंबों को चौड़ा किया और फिर दोनों नितंबों को बारी बारी चूम लिया. फिर उसने उन पर थपकी सी लगाई जैसे किसी घोड़ी की सवारी करने से पहले उस पर थपकी लगाई जाती है. फिर उसने अपने लण्ड को मेरी फांकों पर घिसना चालू कर दिया. मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली.उसने अपना लण्ड फिर छेद पर लगाया और मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगाया. एक गच्च की आवाज़ के साथ पूरा लण्ड अंदर चला गया. धक्का इतना तेज था कि मेरा सर ही नीचे पड़े तकिये से जा टकराया.
'उईईईईई.... मा.... म... मार डा...ला...रे...मादर चो!'
'मेरी जान अब देखना कितना मज़ा आएगा.'
कह कर उसने उसने दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।'अबे बहन चोद जरा धीरे... आह.'
'बहनचोद नहीं भौजी चोद बोलो.'
'ओह... आह...धीरे... थोड़ा धीरे.'
'साली बहन की लौड़ी... नखरे करती है...यह ले... और ले.' कह कर वो और तेज तेज धक्के लगाने लगा.
वो कभी मेरे चूतडो पर थप्पड़ लगाता तो कभी अपने हाथों को नीचे करके मेरे उरोजों को पकड़ लेता और मसलने लगता. ऐसा करने से वो मेरे ऊपर कुछ झुक सा जाता तो उसके लटकते भारी टट्टे मेरी चूत पर महसूस होते तो मैं तो रोमांच में ही डूब जाती. कभी कभी वो अपना एक हाथ नीचे करके मेरे किशमिश के दाने को भी रगड़ने लगाता. मैं तो एक बार फिर से झड़ गई.
हमें इस प्रकार उछल कूद करते आधा घंटा तो हो ही गया होगा पर गजेन्द्र तो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था. वो 3-4 धक्के तो धीरे धीरे लगाता और फिर एक जोर का धक्का लगा देता और साथ ही गाली भी निकलता हुआ बड़बड़ा रहा था. पता नहीं क्यों उसकी मार और गालियाँ मुझे दर्द के स्थान पर मीठी लग रही थी. मैं उसके हर धक्के के साथ आह.... ऊंह.... करने लगी थी. मेरी चूत ने तो आज पता नहीं कितना रस बहाया होगा पर गजेन्द्र का रस अभी नहीं निकला था.
'भौजी एक बार तू घुटनों के बल हो जा !'
'क..क्यों...?' मैंने हैरान होते हुए पूछा।
हे भगवान ! कहीं यह अब मेरी गांड मारने के चक्कर में तो नहीं है? डर के मारे में सिहर उठी. मैं जानती थी मैं इस मूसल को अपनी गांड में नहीं ले पाउंगी.
'ओहो भौजाई , एक बार मैं जैसा कहता हूँ करो तो सही...जल्दी.'
'ना बाबा मैं गांड नहीं मारने दूंगी.'
'अरे मेरी रनिया ! तुम्हें मरने कौन साला देगा. एक बार गांड मरवा लो जन्नत का मज़ा आ जाएगा तुम्हें भी.'
'न... ना... आज नहीं.... बाद में.' मैं ना तो हाँ कर सकती थी और ना ही उसे मन कर सकती थी. मुझे डर था वो कहीं चुदाई ही बंद ना कर दे. इसलिए मैंने किसी तरह फिलहाल उससे पीछा छुड़ाया.
'चलो भौजाई , कोई बात नहीं , कुतिया तो बन जा , कुत्ते के तरह चूत तो मार लेने दो?"
मैं झट से अपने घुटनों के बल (डॉगी स्टाइल में) हो गई. अब वो मेरे पीछे आ गया. उसने पहले तो अपने दोनों हाथों से मेरे नितंबों को चौड़ा किया और फिर दोनों नितंबों को बारी बारी चूम लिया. फिर उसने उन पर थपकी सी लगाई जैसे किसी घोड़ी की सवारी करने से पहले उस पर थपकी लगाई जाती है. फिर उसने अपने लण्ड को मेरी फांकों पर घिसना चालू कर दिया. मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली.उसने अपना लण्ड फिर छेद पर लगाया और मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगाया. एक गच्च की आवाज़ के साथ पूरा लण्ड अंदर चला गया. धक्का इतना तेज था कि मेरा सर ही नीचे पड़े तकिये से जा टकराया.
'उईईईईई.... मा.... म... मार डा...ला...रे...मादर चो!'
'मेरी जान अब देखना कितना मज़ा आएगा.'
कह कर उसने उसने दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।'अबे बहन चोद जरा धीरे... आह.'
'बहनचोद नहीं भौजी चोद बोलो.'
'ओह... आह...धीरे... थोड़ा धीरे.'
'साली बहन की लौड़ी... नखरे करती है...यह ले... और ले.' कह कर वो और तेज तेज धक्के लगाने लगा.
वो कभी मेरे चूतडो पर थप्पड़ लगाता तो कभी अपने हाथों को नीचे करके मेरे उरोजों को पकड़ लेता और मसलने लगता. ऐसा करने से वो मेरे ऊपर कुछ झुक सा जाता तो उसके लटकते भारी टट्टे मेरी चूत पर महसूस होते तो मैं तो रोमांच में ही डूब जाती. कभी कभी वो अपना एक हाथ नीचे करके मेरे किशमिश के दाने को भी रगड़ने लगाता. मैं तो एक बार फिर से झड़ गई.
हमें इस प्रकार उछल कूद करते आधा घंटा तो हो ही गया होगा पर गजेन्द्र तो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था. वो 3-4 धक्के तो धीरे धीरे लगाता और फिर एक जोर का धक्का लगा देता और साथ ही गाली भी निकलता हुआ बड़बड़ा रहा था. पता नहीं क्यों उसकी मार और गालियाँ मुझे दर्द के स्थान पर मीठी लग रही थी. मैं उसके हर धक्के के साथ आह.... ऊंह.... करने लगी थी. मेरी चूत ने तो आज पता नहीं कितना रस बहाया होगा पर गजेन्द्र का रस अभी नहीं निकला था.