hotaks444
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मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग
बात यूँ थी की हमारे मामा का घर हाज़ीपुर ज़िले में था.ज़िला सोनपुर
में हर साल ,माना हुआ मेला लगता है. हर साल की भाँति इस साल
भी मेला लगने वाला था. मामा का खत आया की दीदी और वीना बिटिया
को भेज दो. हम लोग मेला देखने जाएँगे. यह लोग भी हमारे साथ
मेला देख आएँगे. पेर पापा ने कहा कि तुम्हारी दीदी [यानी की मेरी मम्मी] का आना तो मुश्किल है पर वीना को तुम आकेर ले जाओ,उसकी मेला घूमने की
इच्छा भी है. तो फिर मामा आए और मुझे अपने साथ ले गये. दो
दिन हम मामा के घर रहे और फिर वहाँ से में यानी की वीना, मेरी
मामीजी , मामा और भाभी मीना[कज़िन'स वाइफ] आंड सेरवेंट रामू,
इत्यादि लोग मेले के लिए चल पड़े.
सनडे को हम सब मेला देखने निकल पड़े. हमारा प्रोग्राम 8 दिन का
था.. सोनपुर मेले में पहुँच कर देखा कि वहाँ रहने की जगह नही
मिल रही थी. बहुत अधिक भीड़ थी. मामा को याद आया कि उनके ही
गाओं के रहने वेल एक दोस्त ने यहाँ पर घर बना लिया है सो सोचा
की चलो उनके यहाँ चल कर देखा जाए. हम मामा के दोस्त यानी की
विश्वनथजी के यहाँ चले गये. उन्होने तुरंत हमारे रहने की
व्यवस्था अपने घर के उपर के एक कमरे में कर दी. इस समय
विश्वनथजी के अलावा घर पर कोई नही था. सब लोग गाओं में अपने
घर गये हुए थे. उन्होने अपना किचन भी खोल दिया,जिसमे खाने-
पीने के बर्तनो की सुविधा थी.
वहाँ पहुँच कर सब लोगों ने खाना बनाया और और विश्वनथजी को
भी बुला कर खिलाया. खाना खाने के बाद हम लोग आराम करने गये.
जब हम सब बैठे बातें कर रहे थे तो मैने देखा कि
विश्वनथजी की निगाहें बार-बार भाभी पर जा टिकती थी. और जब भी
भाभी की नज़र विश्वनथजी की नज़र से टकराती तो भाभी शर्मा
जाती थी और अपनी नज़रें नीची कर लेती थी. दोपहर करीब 2
बजे हम लोग मेला देखने निकले. जब हम लोग मेले में पहुँचे तो
देखा कि काफ़ी भीड़ थी और बहुत धक्का-मुक्की हो रही थी. मामा बोले
कि आपस में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलो वरना कोई इधर-उधर
हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी. मैने भाभी का हाथ पकड़ा, मामा-मामी
और रामू साथ थे.
मेला देख रहे थे कि अचानक किसी ने पीछे से गांद में उंगली
कर दी. में एकदम बिदक पड़ी, कि उसी वक़्त सामने से क़िस्सी ने मेरी
चूची दबा दी. कुच्छ आगे बढ़ने पर कोई मेरी चूत में उंगली कर
निकल भागा. मेरा बदन सनसना रहा था. तभी कोई मेरी दोनो
चूचियाँ पकड़ कर कान में फुसफुसाया - 'हाई मेरी जान' कह कर
हू आगे बढ़ गया. हम कुच्छ आगे बड़े तो वोही आदमी फिर आक़र
मेरी थाइस में हाथ डाल मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से
दबा कर मसल दिया. मुझे लड़की होने की गुदगुदी का अहसास होने
लगा था. भीड़ मे वो मेरे पीछे-पीछे साथ-साथ चल
रहा था,और कभी-कभी मेरी गांद में उंगली घुसाने की कोशिश कर
रहा था, और मेरे छूतदों को तो उसने जैसे बाप का माल समझ कर
दबोच रखा था. अबकी धक्का-मुक्की में भाभी का हाथ छ्छूट गया
और भाभी आगे और में पीछे रह गयी. भीड़ काफ़ी थी और में
भाभी की तरफ गौर करके देखने लगी. वो पीछे वाला आदमी
भाभी की टाँगों में हाथ डाल कर भाभी की चूत सहला रहा था.
भाभी मज़े से चूत सहल्वाति आगे बढ़ रही थी. भीड़ में किसे
फ़ुर्सत थी कि नीचे देखे कि कौन क्या कर रहा है. मुझे लगा कि
भाभी भी मस्ती में आ रही है. क्योकि वो अपने पीछे वाले आदमी
से कुच्छ भी नही कह रही थी. जब में उनके बराबर में आई और
उनका हाथ पकड़ कर चलने लगी तो उनके मुह्न से हाई की सी आवाज़ निकल
कर मेरे कनों में गूँजी. में कोई बच्ची तो थी नही, सब
समझ रही थी. मेरा तन भी छेड़-छाड़ पाने से गुदगुदा रहा था.
तभी किसी ने मेरी गांद में उंगली कर दी. ज़रा कुच्छ आगे बढ़े तो
मेरी दोनो बगलों में हाथ डाल कर मेरी चूचियों को कस कर पकड़
कर अपनी तरफ खींच लिया. इस तरह मेरी चूचियों को पकड़ कर
खींचा कि देखने वाला समझे कि मुझे भीड़-भाड़ से बचाया है.
शाम का वक़्त हो रहा था और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. इतनी
देर में वो पीछे से एक रेला सा आया जिसमे मामा मामी और रामू
पीछे रह गये और हम लोग आगे बढ़ते चले गये. कुच्छ देर बाद
जब पीछे मूड कर देखा तो मामा मामी और रामू का कहीं पता ही
नही था. अब हम लोग घबरा गये कि मामा मामी कहाँ गये. हम लोग
उन्हे ढूँढ रहे थे कि वो लोग कहाँ रह गये और आपस में बात
कर रहे थे कि तभी दो आदमी जो काफ़ी देर से हमे घूर रहे थे और
हमारी बातें सुन रहे थे वो हमारे पास आए और बोले तुम दोनो
यहाँ खड़ी हो और तुम्हारे सास ससुर तुम्हें वहाँ खोज रहे हैं.
भाभी ने पूचछा , कहाँ है वो? तो उन्होने कहा कि चलो हमारे
साथ हम तुम्हे उनसे मिलवा देते है. {भाभी का थोड़ा घूँघट था.
उसी घूँघट के अंदाज़े पर उन्होने कहा था जो क़ि सच बैठा} हम
उन दोनो के आगे चलने लगे. साथ चलते-चलते उन्होने भी हमे छ्चोड़ा नही बल्कि भीड़ होने का फायेदा उठा कर कभी कोई मेरी गांद पेर हाथ फिरा देता तो कभी दूसरा भाभी की कमर सहलाते हुए हाथ ऊपेर तक ले जकेर उसकी चूचिओ को छू लेता था. एक दो बार जब उस दूसरे वाले आदमी ने भाभी की चूचियों को ज़ोर से भींच दिया तो ना चाहते हुए भी भाभी के मुँह से आह सी निकल गयी और फिर तुरंत ही संभलकेर मेरी तरफ देखते हुए बोली कि इस मेले में तौ जान की आफ़त हो गयी है , भीड़ इतनी ज़्यादह हो गयी है कि चलना भी मुश्किल हो गया है.
मुझे सब समझ में आ रहा था कि साली को मज़ा तो बहुत आरहा है पर मुझे दिखाने के लिए सती सावित्री बन रही है. पर अपने को क्या गम, में भी तो मज़े ले ही रही थी और यह बात शायद भाभी ने भी नोटीस कर ली थी तभी तो वो ज़रा ज़्यादा बेफिकर हो कर मज़े लूट रही थी. वो कहते है ना कि हमाम में सभी नंगे होते हैं. मैने भी नाटक से एक बड़ी ही बेबसी भरी मुस्कान भाभी तरफ उच्छाल दी.इस तरह हम कब मेला छ्चोड़ कर आगे निकल गये पता ही नही चला.
बात यूँ थी की हमारे मामा का घर हाज़ीपुर ज़िले में था.ज़िला सोनपुर
में हर साल ,माना हुआ मेला लगता है. हर साल की भाँति इस साल
भी मेला लगने वाला था. मामा का खत आया की दीदी और वीना बिटिया
को भेज दो. हम लोग मेला देखने जाएँगे. यह लोग भी हमारे साथ
मेला देख आएँगे. पेर पापा ने कहा कि तुम्हारी दीदी [यानी की मेरी मम्मी] का आना तो मुश्किल है पर वीना को तुम आकेर ले जाओ,उसकी मेला घूमने की
इच्छा भी है. तो फिर मामा आए और मुझे अपने साथ ले गये. दो
दिन हम मामा के घर रहे और फिर वहाँ से में यानी की वीना, मेरी
मामीजी , मामा और भाभी मीना[कज़िन'स वाइफ] आंड सेरवेंट रामू,
इत्यादि लोग मेले के लिए चल पड़े.
सनडे को हम सब मेला देखने निकल पड़े. हमारा प्रोग्राम 8 दिन का
था.. सोनपुर मेले में पहुँच कर देखा कि वहाँ रहने की जगह नही
मिल रही थी. बहुत अधिक भीड़ थी. मामा को याद आया कि उनके ही
गाओं के रहने वेल एक दोस्त ने यहाँ पर घर बना लिया है सो सोचा
की चलो उनके यहाँ चल कर देखा जाए. हम मामा के दोस्त यानी की
विश्वनथजी के यहाँ चले गये. उन्होने तुरंत हमारे रहने की
व्यवस्था अपने घर के उपर के एक कमरे में कर दी. इस समय
विश्वनथजी के अलावा घर पर कोई नही था. सब लोग गाओं में अपने
घर गये हुए थे. उन्होने अपना किचन भी खोल दिया,जिसमे खाने-
पीने के बर्तनो की सुविधा थी.
वहाँ पहुँच कर सब लोगों ने खाना बनाया और और विश्वनथजी को
भी बुला कर खिलाया. खाना खाने के बाद हम लोग आराम करने गये.
जब हम सब बैठे बातें कर रहे थे तो मैने देखा कि
विश्वनथजी की निगाहें बार-बार भाभी पर जा टिकती थी. और जब भी
भाभी की नज़र विश्वनथजी की नज़र से टकराती तो भाभी शर्मा
जाती थी और अपनी नज़रें नीची कर लेती थी. दोपहर करीब 2
बजे हम लोग मेला देखने निकले. जब हम लोग मेले में पहुँचे तो
देखा कि काफ़ी भीड़ थी और बहुत धक्का-मुक्की हो रही थी. मामा बोले
कि आपस में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलो वरना कोई इधर-उधर
हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी. मैने भाभी का हाथ पकड़ा, मामा-मामी
और रामू साथ थे.
मेला देख रहे थे कि अचानक किसी ने पीछे से गांद में उंगली
कर दी. में एकदम बिदक पड़ी, कि उसी वक़्त सामने से क़िस्सी ने मेरी
चूची दबा दी. कुच्छ आगे बढ़ने पर कोई मेरी चूत में उंगली कर
निकल भागा. मेरा बदन सनसना रहा था. तभी कोई मेरी दोनो
चूचियाँ पकड़ कर कान में फुसफुसाया - 'हाई मेरी जान' कह कर
हू आगे बढ़ गया. हम कुच्छ आगे बड़े तो वोही आदमी फिर आक़र
मेरी थाइस में हाथ डाल मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से
दबा कर मसल दिया. मुझे लड़की होने की गुदगुदी का अहसास होने
लगा था. भीड़ मे वो मेरे पीछे-पीछे साथ-साथ चल
रहा था,और कभी-कभी मेरी गांद में उंगली घुसाने की कोशिश कर
रहा था, और मेरे छूतदों को तो उसने जैसे बाप का माल समझ कर
दबोच रखा था. अबकी धक्का-मुक्की में भाभी का हाथ छ्छूट गया
और भाभी आगे और में पीछे रह गयी. भीड़ काफ़ी थी और में
भाभी की तरफ गौर करके देखने लगी. वो पीछे वाला आदमी
भाभी की टाँगों में हाथ डाल कर भाभी की चूत सहला रहा था.
भाभी मज़े से चूत सहल्वाति आगे बढ़ रही थी. भीड़ में किसे
फ़ुर्सत थी कि नीचे देखे कि कौन क्या कर रहा है. मुझे लगा कि
भाभी भी मस्ती में आ रही है. क्योकि वो अपने पीछे वाले आदमी
से कुच्छ भी नही कह रही थी. जब में उनके बराबर में आई और
उनका हाथ पकड़ कर चलने लगी तो उनके मुह्न से हाई की सी आवाज़ निकल
कर मेरे कनों में गूँजी. में कोई बच्ची तो थी नही, सब
समझ रही थी. मेरा तन भी छेड़-छाड़ पाने से गुदगुदा रहा था.
तभी किसी ने मेरी गांद में उंगली कर दी. ज़रा कुच्छ आगे बढ़े तो
मेरी दोनो बगलों में हाथ डाल कर मेरी चूचियों को कस कर पकड़
कर अपनी तरफ खींच लिया. इस तरह मेरी चूचियों को पकड़ कर
खींचा कि देखने वाला समझे कि मुझे भीड़-भाड़ से बचाया है.
शाम का वक़्त हो रहा था और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. इतनी
देर में वो पीछे से एक रेला सा आया जिसमे मामा मामी और रामू
पीछे रह गये और हम लोग आगे बढ़ते चले गये. कुच्छ देर बाद
जब पीछे मूड कर देखा तो मामा मामी और रामू का कहीं पता ही
नही था. अब हम लोग घबरा गये कि मामा मामी कहाँ गये. हम लोग
उन्हे ढूँढ रहे थे कि वो लोग कहाँ रह गये और आपस में बात
कर रहे थे कि तभी दो आदमी जो काफ़ी देर से हमे घूर रहे थे और
हमारी बातें सुन रहे थे वो हमारे पास आए और बोले तुम दोनो
यहाँ खड़ी हो और तुम्हारे सास ससुर तुम्हें वहाँ खोज रहे हैं.
भाभी ने पूचछा , कहाँ है वो? तो उन्होने कहा कि चलो हमारे
साथ हम तुम्हे उनसे मिलवा देते है. {भाभी का थोड़ा घूँघट था.
उसी घूँघट के अंदाज़े पर उन्होने कहा था जो क़ि सच बैठा} हम
उन दोनो के आगे चलने लगे. साथ चलते-चलते उन्होने भी हमे छ्चोड़ा नही बल्कि भीड़ होने का फायेदा उठा कर कभी कोई मेरी गांद पेर हाथ फिरा देता तो कभी दूसरा भाभी की कमर सहलाते हुए हाथ ऊपेर तक ले जकेर उसकी चूचिओ को छू लेता था. एक दो बार जब उस दूसरे वाले आदमी ने भाभी की चूचियों को ज़ोर से भींच दिया तो ना चाहते हुए भी भाभी के मुँह से आह सी निकल गयी और फिर तुरंत ही संभलकेर मेरी तरफ देखते हुए बोली कि इस मेले में तौ जान की आफ़त हो गयी है , भीड़ इतनी ज़्यादह हो गयी है कि चलना भी मुश्किल हो गया है.
मुझे सब समझ में आ रहा था कि साली को मज़ा तो बहुत आरहा है पर मुझे दिखाने के लिए सती सावित्री बन रही है. पर अपने को क्या गम, में भी तो मज़े ले ही रही थी और यह बात शायद भाभी ने भी नोटीस कर ली थी तभी तो वो ज़रा ज़्यादा बेफिकर हो कर मज़े लूट रही थी. वो कहते है ना कि हमाम में सभी नंगे होते हैं. मैने भी नाटक से एक बड़ी ही बेबसी भरी मुस्कान भाभी तरफ उच्छाल दी.इस तरह हम कब मेला छ्चोड़ कर आगे निकल गये पता ही नही चला.