hotaks444
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वे मेरे लंड से खेलते रहे. दोनों हाथों में लेकर बेलन से बेलते, कभी मुठ्ठी में लेकर दबाते और कभी अंगूठे और उंगली में लेकर मसलते "अब बोल, क्या कह रहा था तू कि लड़का है? तो लड़के याने मर्द आपस मजा नहीं कर सकते क्या ऐसे? तुझे मजा आया कि नहीं? मैं भी लड़का हूं, तू भी लड़का है, पर इससे कोई फ़रक पड़ा तेरी मस्ती में? बोल, कैसा लगा ये लेसन?"
"सर आप बहुत अच्छा सिखाते हैं" मैं उन्हें देखकर शरमाता हुआ बोला.
’और दिखने में कैसा लगता हूं? कि लड़का हूं इसलिये अच्छा नहीं लगता?" चौधरी सर ने मेरे लंड के सुपाड़े को चूमते हुए पूछा.
"नहीं सर, बहुत प्यारे लगते हैं, मैडम जैसे ही. कितने हैंडसम हैं आप" मैं अब हाथ को मेरी गोद में झुके उनके सिर के घने बालों में चला रहा था.
अब तक मेरे लंड में फ़िर गुदगुदी होने लगी थी और वह सिर उठाने लगा था. देख कर चौधरी सर ने उसे फ़िर मुंह में ले लिया और चूसने लगे. एक हाथ से वे अब मेरे पैर के तलवे में गुदगुदी कर रहे थे. मेरा जल्द ही पूरा खड़ा हो गया.
"तो ये पाठ पसंद आया तुझे?" चौधरी सर उठ कर सोफ़े पर बैठकर मुझे फ़िर बांहों में भरके बोले. अब मेरी हिम्मत बंध गयी थी. चौधरी सर ने जिस तरह से मेरा लंड चूसा था, मैं उनका गुलाम ही हो गया था. इसलिये अब बिना हिचकिचाहट मैंने खुद ही उनके होंठ चूम लिये. "हां सर, आप बहुत अच्छे हैं सर"
"तो अब चल, पाठ में जो सीखा, कर के बता. मेरे ऊपर कर" मेरा हाथ पकड़कर उन्होंने अपने तंबू पर रखते हुए कहा.
मैं बिना शरमाये सर के तंबू पर हाथ फ़िराने लगा. मेरा दिल भी अब उनका लंड देखने का कर रहा था पर थोड़ा डर भी लग रहा था कि शायद चूसना पड़ेगा!
मेरे हाथ से मस्त होकर सर बोले "हां ... बहुत अच्छे ... और चलाओ हाथ अपना अनिल ... लगता है ऐसा ही करते हो क्लास में क्यों? तभी तजुर्बा है लगता है ... बदमाश कहीं के!"
दो मिनिट बाद सर बोले "अब ज़िप खोलो बेटे, मेरा लंड बाहर निकालो"
मैंने ज़िप खोली. अंदर सर ने जांघिया पहना था और लंड खड़ा हो कर अपने आप स्लिट से बाहर आ गया था. ज़िप खोलते ही पूरा टन्न से बाहर आ गया.
"बाप रे ..." मेरे मुंह से निकल आया.
"क्या हुआ?" चौधरी सर मुस्करा रहे थे.
"बहुत बड़ा है सर, मुझे पता नहीं था कि किसीका इतना बड़ा होता है" सर के तन्ना कर खड़े लंड की ओर आंखें फ़ाड़ कर देखता हुआ मैं बोला.
"अच्छा लगा तुझे? ठीक से देख, हाथ में ले" सर बोले.
मैंने लंड हाथ में लिया.
"कैसा है, पूरा वर्णन करके बता"
"सर ऐसा लगता है जैसा गोरा मोटा मूसल है, गन्ने जैसा रसीला लगता है" मैं बोला.
"हां, और बोल" मस्त होकर सर बोले.
"सर नसें उभरी हुई हैं, एकदम मस्त दिखती हैं सर. और सर ये गोल गोल ...."
"इसे क्या कहते हैं बोल? मालूम होगा तुझे, अगर नहीं मालूम है तो एक तमाचा मारूंगा" सर मस्ती भरी आवाज में बोले.
"सुपाड़ा सर"
"ये हुई ना बात. तो बोल, कैसा है सुपाड़ा?"
"सर ....किसी टमाटर जैसा रसीला लग रहा है, लाल लाल फ़ूला हुआ. कभी रसीले सेब जैसा लगता है."
"और ?"
"सर स्किन ऐसे तनी है जैसे हवा भरा गुब्बारा ... कैसी मखमल सी लगती है ये गुलाबी स्किन ..."
"चल अब ठीक से पकड़" चौधरी सर ने कहा. मैंने लंड को दो मुठ्ठियों में लिया, फ़िर भी पूरा नहीं आया, डंडे का दो इंच भाग और सुपाड़ा मेरी ऊपर की मुठ्ठी के बाहर निकले थे.
"सर बहुत बड़ा है सर, दो हथेली में भी पकड़ाई में नहीं आता है. सर .... नाप के देखूं?" मैंने उसुकता से पूछा.
क्रमशः। ...........................
"सर आप बहुत अच्छा सिखाते हैं" मैं उन्हें देखकर शरमाता हुआ बोला.
’और दिखने में कैसा लगता हूं? कि लड़का हूं इसलिये अच्छा नहीं लगता?" चौधरी सर ने मेरे लंड के सुपाड़े को चूमते हुए पूछा.
"नहीं सर, बहुत प्यारे लगते हैं, मैडम जैसे ही. कितने हैंडसम हैं आप" मैं अब हाथ को मेरी गोद में झुके उनके सिर के घने बालों में चला रहा था.
अब तक मेरे लंड में फ़िर गुदगुदी होने लगी थी और वह सिर उठाने लगा था. देख कर चौधरी सर ने उसे फ़िर मुंह में ले लिया और चूसने लगे. एक हाथ से वे अब मेरे पैर के तलवे में गुदगुदी कर रहे थे. मेरा जल्द ही पूरा खड़ा हो गया.
"तो ये पाठ पसंद आया तुझे?" चौधरी सर उठ कर सोफ़े पर बैठकर मुझे फ़िर बांहों में भरके बोले. अब मेरी हिम्मत बंध गयी थी. चौधरी सर ने जिस तरह से मेरा लंड चूसा था, मैं उनका गुलाम ही हो गया था. इसलिये अब बिना हिचकिचाहट मैंने खुद ही उनके होंठ चूम लिये. "हां सर, आप बहुत अच्छे हैं सर"
"तो अब चल, पाठ में जो सीखा, कर के बता. मेरे ऊपर कर" मेरा हाथ पकड़कर उन्होंने अपने तंबू पर रखते हुए कहा.
मैं बिना शरमाये सर के तंबू पर हाथ फ़िराने लगा. मेरा दिल भी अब उनका लंड देखने का कर रहा था पर थोड़ा डर भी लग रहा था कि शायद चूसना पड़ेगा!
मेरे हाथ से मस्त होकर सर बोले "हां ... बहुत अच्छे ... और चलाओ हाथ अपना अनिल ... लगता है ऐसा ही करते हो क्लास में क्यों? तभी तजुर्बा है लगता है ... बदमाश कहीं के!"
दो मिनिट बाद सर बोले "अब ज़िप खोलो बेटे, मेरा लंड बाहर निकालो"
मैंने ज़िप खोली. अंदर सर ने जांघिया पहना था और लंड खड़ा हो कर अपने आप स्लिट से बाहर आ गया था. ज़िप खोलते ही पूरा टन्न से बाहर आ गया.
"बाप रे ..." मेरे मुंह से निकल आया.
"क्या हुआ?" चौधरी सर मुस्करा रहे थे.
"बहुत बड़ा है सर, मुझे पता नहीं था कि किसीका इतना बड़ा होता है" सर के तन्ना कर खड़े लंड की ओर आंखें फ़ाड़ कर देखता हुआ मैं बोला.
"अच्छा लगा तुझे? ठीक से देख, हाथ में ले" सर बोले.
मैंने लंड हाथ में लिया.
"कैसा है, पूरा वर्णन करके बता"
"सर ऐसा लगता है जैसा गोरा मोटा मूसल है, गन्ने जैसा रसीला लगता है" मैं बोला.
"हां, और बोल" मस्त होकर सर बोले.
"सर नसें उभरी हुई हैं, एकदम मस्त दिखती हैं सर. और सर ये गोल गोल ...."
"इसे क्या कहते हैं बोल? मालूम होगा तुझे, अगर नहीं मालूम है तो एक तमाचा मारूंगा" सर मस्ती भरी आवाज में बोले.
"सुपाड़ा सर"
"ये हुई ना बात. तो बोल, कैसा है सुपाड़ा?"
"सर ....किसी टमाटर जैसा रसीला लग रहा है, लाल लाल फ़ूला हुआ. कभी रसीले सेब जैसा लगता है."
"और ?"
"सर स्किन ऐसे तनी है जैसे हवा भरा गुब्बारा ... कैसी मखमल सी लगती है ये गुलाबी स्किन ..."
"चल अब ठीक से पकड़" चौधरी सर ने कहा. मैंने लंड को दो मुठ्ठियों में लिया, फ़िर भी पूरा नहीं आया, डंडे का दो इंच भाग और सुपाड़ा मेरी ऊपर की मुठ्ठी के बाहर निकले थे.
"सर बहुत बड़ा है सर, दो हथेली में भी पकड़ाई में नहीं आता है. सर .... नाप के देखूं?" मैंने उसुकता से पूछा.
क्रमशः। ...........................