hotaks444
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गतान्क से आगे.......
राज के जीब के स्पर्श ने रोमा के शरीर मे फिर हलचल पैदा कर दी
थी. उसे लगा कि जैसे उत्तेजना की ज्वाला उसकी चुचियों से होती हुई
उसकी चूत तक पहुँच चुकी है. उसे लगा की जैसे चूत मे जोरों
की खुजली मच रही है.
"तुम्हारी चूत रिस रही है जान..." राज ने कहा.
"हां शायद...."
"एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ राज ने अपना मुँह उसकी चुचियों पर
से हटा लिया, "नही में ऐसी किसी चीज़ पर विश्वास नही करता जो
में खुद ना देख लूँ."
"ये कोई अच्छी बात नही राज!"
"नहीं में खुद देखूँगा," राज ने कहा, "लेकिन इसके बाद."
इतना कहकर राज ने फिर एक बार रोमा के निपल अपने मुँह मे ले लिए.
वो उन्हे चूमने लगा, चूसने लगा, कभी अपने दाँतों के बीच लेता
और हल्के से काट लेता.
"ओह राज क्या कर रहे हूऊओ....." रोमा मस्ती मे सिसक पड़ी.
राज का एक हाथ उसके सपाट पेट पर से होता हुआ उसकी खुली जीन्स पर
पहुँचा और उसकी उंगलियाँ उसकी पॅंटी की एलास्टिक को पकड़ ली. रोमा
ने अपने चूतड़ थोड़ा सा उँचा किए और राज ने उसकी जीन्स और पॅंटी
को नीचे खिसका दिया.
फिर उसकी उंगलियाँ चूत को सहलाते हुए उसकी फांको को अलग कर अंदर
घुसने लगी. उसने देखा कि रोमा की चूत किसी भट्टी की तरह सुलग
रही थी और पूरी तरह गीली हो चुकी थी.
"ओह राज्ज्जज्ज्ज्ज........." रोमा सिसक पड़ी, "जानते हो कितना मिस
किया मेने तुम्हे पूरे हफ्ते भर."
राज ने अपने मुँह को उसकी चुचियों से उपर कर उसके होंठ पर रख
दिए, "में तुमसे प्यार करता हूँ," और वो उसके होठों को चूसने
लगता है, "बहोत प्यार करता हूँ तुमसे...."
रोमा ने प्यार से अपनी बाहें उसके गले मे डाल दी और अपना मुँह खोल
उसकी जीब को मुँह मे ले चूसने लगी. उसने उसे ऐसे गले लगा लिए
जैसे दो प्रेमी कई महीनो बाद एक दूसरे से मिल रहे थे.
रोमा ने अपना हाथ उसकी गर्दन से निकाला और नीचे की ओर करते हुए
उसके खड़े लंड को पकड़ लिया. लंड किसी लोहे की सलाख की तरह तन
चुका था. उसे ऐसा लगा की जैसे उसने किसी जलती हुई सलाख हाथ मे
पकड़ ली हो.
राज ने अपने आपको थोड़ा हिलाया और अपनी जंघे रोमा के चेहरे पर
कर लेट गया. फिर उसकी जांघों को फैला उसकी चूत से उठती महक
को सूंघने लगा.
"तुम्हारा लंड बहोत प्यारा है...." रोमा उसके लंड को सहलाते और
उसके अंडकोषों को मसल्ते हुए बोली.
"मुझे तो बहोत भूक लग रही है," उसकी चूत को फैलाते हुए
बोला, "क्या तुम्हे नही लग रही?"
"एम्म.....बहोत ज़्यादा" कहकर उसने पहले तो उसके सूपदे पर अपनी जीब
फिराई फिर उसके लंड को अपने मुँह मे ले चूसने लगी.
अगले आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे को तृप्त करने मे लगे रहे.
रोमा उसके लंड को अपने गले तक लेकर चूस्ति तो राज अपनी जीब को
उसकी चूत की और गहराइयों तक डाल देता. राज अपने लंड को उपर से
उसके मुँह मे डालता तो रोमा नीचे से अपने चूतड़ उठा अपनी चूत
को और उसके मुँह पर दबा देती.
रोमा की चूत ने सबसे पहले पानी छोड़ दिया, राज उसकी चूत मे अपनी
जीब के साथ साथ अपनी दो उंगलियाँ भी अंदर बाहर कर रहा था.
उसका शरीर आकड़ा और उसने अपने चूतड़ उपर को जोरों से उठा सिसक
पड़ी.......
राज उसके उपर से उठता है और रोमा को पलट कर घोड़ी बना देता
है. रोमा भी अपनी कोहनी पर झुक अपने चूतड़ उपर को उठा देती
है. राज उसके पीछे आ अपने लंड को पहले तो उसकी गीली चूत पर
घिसता है फिर धीरे से अपना लंड अंदर घुसा देता है.
"ओह राआाज तुम्हारा लंड मेरी चूत मे कितना अच्छा लग रहा
है.......ओह"
"क्या तुम्हे अब भी डर लग रहा है?" राज ने पूछा.
"नही अब इतना नही लग रहा...." कहकर रोमा कमरे के बंद दरवाज़े
की ओर देखने लगती है.
राज अब धीमे और लंबे धक्के लगा उसे चोदने लगता है. उसका लोहे
जैसा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उनके शरीर हर
धक्के पर ऐसे मिल रहे थे जैसे सुर और ताल का संगम होता है.
थोड़ी ही देर मे राज का लंड भी उबाल खाने लगता है.
"ओह हाआआं" सिसकते हुए राज अपने लंड को उसकी चूत के अंदर
तक पेल अपना वीर्य उसकी चूत मे छोड़ देता है.
रोमा भी अपनी चूत को सिकोड उसके लंड की हर बूँद को निचोड़ने
लगती है. थोड़ी ही देर मे दोनो थके हुए एक दूसरे का हाथ पकड़े
निढाल हो लेट जाते हैं.
"अगर अचानक मम्मी कमरे मे आ जाती तो तुम क्या करती?" राज अपनी
बेहन को चिढ़ाते हुए पूछता है.
"में तो डर के मारे मार ही जाती," रोमा ने जवाब दिया, "अब इसके
पहले की हमारी सोच हक़ीकत मे बदले हमे कपड़े पहन लेने चाहिए."
पर राज था कि उसके मुलायम और नाज़ुक बदन को अपनी बाहों से छोड़ना
ही नही चाहता था, "रोमा पता है तुम्हारी इन बाहों मे कितना सकून
मिलता है मुझे, मन करता है की इसी तरह हमेशा पड़ा रहूं."
रोमा शरमा गयी, "अब उठो भी......." वो उसकी बाहों से निकलने की
कोशिश करने लगी.
लेकिन राज की बाहें ज़्यादा मजबूत थी. उसने उसे खींच कर अपने उपर
लीटा लिया, "सच सच बताओ क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा?"
उसके नंगे बदन से लिपट कर लेटना उसे भी अच्छा लग रहा था, मन
कर रहा था कि वो ऐसे ही लेटी रहे अपने प्यार की बाहों मे लेकिन
मम्मी के आने का डर अभी मन मे समाया हुआ था.
"नही मुझे अच्छा नही लग रहा."
"अगर मम्मी आ गयी तो क्या कहोगी?" राज ने पूछा.
"मुझे नही पता और में जानना भी नही चाहती, प्लीज़ राज मुझे
जाने दो."
आख़िर राज ने उसे छोड़ दिया. वो तुरंत अपने कपड़े पहनने लगी. राज
अपनी बेहन को कपड़े पहनते देखता रहा. रोमा ने अपने कपड़े पहने
और उसका टवल उसकी तरफ उछाल दिया. राज को लगा कि रोमा गुस्से मे
है, इसलिए उसने उसे अपनी बाहों मे भरा और चूम लिया.
"में तुमसे बाद मे मिलता हूँ," कहकर राज ने अपना टवल लपेटा और
उसके कमरे से बाहर चला गया.
"तुम पागल हो!" वो ज़ोर से पीछे से चिल्लाई.
राज एक बार तो थीट्का फिर मुस्कुराते हुए अपने कमरे के ओर बढ़ गया.
* * * * *
रात के वक़्त जब राज और जय तालाब के किनारे बढ़ रहे थे उस
समय काफ़ी कोहरा छाया हुआ था और ठंड भी बढ़ गयी थी. अलाव के
नज़दीक जाकर दोनो ने मिलकर उसमे कुछ लकड़ियाँ डाली और आग
सुलगा दी.
दोनो अलाव के सामने बैठ गये. जय ने अपनी जेब से वही नशे वाली
सिग्रेट निकाली और सुलगा ली. सिग्रेट का ज़ोर का कश लेकर उसने
अपनी छाती धुएँ से भर ली फिर धुएँ को धीरे धीरे छोड़ने
लगा.
"राज मुझे रोमा बहोत पसंद है," उसने अपने फेफड़ों मे इकट्ठा
किए हुए धुएँ को छोड़ते हुए कहा, "बहोत सुन्दर लगती है वो."
"इतनी भी सुन्दर नही है वो," राज ने उसकी सुंदरता को कम आँकते
हुए कहा. जय की बात सुनकर उसके मन मे जलन की भावना उमड़ पड़ी
थी, "पर मुझे नही लगता कि वो तुम्हे पसंद करती हो, अगर करती
तो मुझे ज़रूर बताती."
"पर ये उसका फ़ैसला होगा... क्यों सही है ना?" जय फिर से धुएँ को
छोड़ता हुआ बोला, "जैसे कि रिया का फ़ैसला था तुम्हे पसंद करने का
और तुम्हारे साथ चली गयी थी मुझे यहीं छोड़ कर पीछले
हफ्ते.... याद है ना तुम्हे?"
"हां वो उसका फ़ैसला था," राज ने अपने कंधे उचकाते हुए
कहा. "वैसे भी तुम जो करना चाहे करो मुझे क्या, में तो सिर्फ़ ये
कह रहा था कि अगर ऐसा कुछ होता तो वो मुझसे ज़रूर कहती."
"यार इतना क्यों नाराज़ हो रहे हो, जब रिया ने फ़ैसला किया तो में
तो नाराज़ नही हुआ था." जय ने कहा.
राज जय के कहने का मतलब समझ रहा था. जय की नज़र रोमा पर
थी ये राज समझ रहा था और ये भी जानता था कि रिया से उसके
संबंध को लेकर वो नाराज़ है.
"देखो में किसे लेकर आ रही हूँ."
दोनो लड़कों ने रोमा की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. दोनो ने अपनी
नज़रें घर की तरफ घूमा दी जहाँ से दो परछाईयाँ उन्ही की तरफ
चली आ रही थी. थोड़ी ही देर मे उन्हे रोमा के साथ रिया नज़र आने
लगी. पर दोनो को उमीद नही थी कि इतनी जल्दी रिया से मुलाकात
होगी.
"तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गयी," जय ने चौंकते हुए पूछा.
रिया जय से नही कहना चाहती थी कि उसने कुछ ऐसा नही किया था कि
वो इतनी जल्दी वापस आ जाती लेकिन वो झगड़े के मूड मे नही थी
इसलिए बनावटी हँसी के साथ बोली, "क्या एक लड़की अपने भाई और
पुराने दोस्तों से मिलने नही आ सकती?"
"हां हां.. क्यों नही में तो बस चौंक पड़ा था तुम्हे देखकर."
जय ने कहा. पर मन ही मन उसे गुस्सा आ रहा था. वो कुछ देर के
लिए रोमा के साथ अकेले रहना चाहता था जो रिया के आने से अब
मुमकिन नही था. उसे शक था कि रिया भी रोमा के लिए ही वापस
आई है.
बुझती आग का बहाना कर जय वहाँ से उठा और अलाव मे लकड़ियाँ
डालने लगा. उसने देखा कि रोमा और रिया राज के बगल मे बैठ गये
थे. अल्लव से पड़ती रोशनी मे वो रोमा के शरीर को निहारने लगा.
शॉर्ट्स के नीचे उसकी नंगी टाँगे और जंघे हल्की रोशनी मे बहोत
ही आकर्षित लग रही थी. और उसका छोटा सा टॉप उसकी सेव जैसे
चुचियों को काफ़ी लुभावना बना रहा था.
रोमा को पाने की इच्छा और ज़ोर पकड़ने लगी. उसका असहाय लंड उसकी
पॅंट के अंदर फुदकने लगा. जितना वो उसकी पतली जाँघो को देखता
उतने ही ख़याल उसके मन मे आने लगे. अपनी कल्पना मे वो रोमा को
अपनी बाहों मे भर लेता है और उसकी शॉर्ट्स और पॅंटी को खींच
नीचे कर देता है. फिर अपने फूले हुए लंड को उसकी चूत के अंदर
घुसा देता है.
लंड मे उठते तनाव ने उसे उसके ख़यालों से बाहर निकाला. उसने
देखा कि तीनो मशगूल हो कर बातें कर रहे थे. गुस्से मे उसने
ज़ोर से लकड़ियाँ अलाव मे पटक दी.
"क्यों ना एक सिग्रेट हो जाए?" जय ने रोमा को एक सिग्रेट पकड़ाते
हुए कहा.
लेकिन रोमा ने उसे ना कर दिया तो रिया बीच मे बोल पड़ी, "क्या में
ले सकती हूँ?"
रिया ने जय के हाथों से सिग्रेट ले ली और उसके कश लेने लगी,
उसने इशारे से रोमा को उसका साथ देने के लिए कहा. दोनो लड़कियाँ
एक दूसरे के सामने मुँह कर बैठ गयी और फिर पहले तो एक दूसरे
ने कश लिया फिर होंठ से होंठ सताते हुए एक दूसरे के मुँह मे
धुआँ छोड़ने लगी फिर दोनो की जीब आपस मे मिल गयी.
जय को ये देख गुस्सा आ रहा था कि उसकी बेहन किस तरह रोमा को
बहका रही थी. और वहाँ राज था कि जो सब कुछ देखते हुए भी
अंजान बना हुआ था, "ओह आज कितनी ठंड है, मज़ा आ रहा है,"
उसने अपने आप से कहा.
रोमा और रिया के चुंबन और गहराने लगे. इतने मे रिया को अपनी
बाहों मे ले ज़मीन पर लुढ़कते हुए उन्दोनो से थोड़ी दूर चली गयी
जिससे उन्हे एकांत मिल सके. रात के अंधेरे मे जय उन दोनो को
लुढ़कते देखता रहा, वो समझ रहा था कि रिया अब रोमा के साथ क्या
करने वाली है. गुस्से मे जय ने एक और सिग्रेट सुलगा ली और गहरे
गहरे कश लेने लगा. पर हर कश के साथ उसके अंदर का गुस्सा और
रोमा को पाने की लालसा और बढ़ने लगी.
"मुझे लगता है कि तुम्हारे भाई को काफ़ी गुस्सा आ रहा है," रोमा
रिया के होठों को चूस्ते हुए बोली.
रोमा ने अपनी गर्दन हन मे हिलाई, "मरने दो उसे, अभी नासमझ
है, में हमेशा उससे अच्छीतारह बर्ताव करती हूँ और वो है की
मुझे अपनी ज़ागिर समझता है."
"रिया तुम नही जानती जब से तुम मिली हो में कब से इस दिन का
इंतेज़ार कर रही थी," रोमा ने कहा.
"उस रात पहली बार जब मेने तुम्हे देखा था तो मुझे भी यही लगा
कि तुम्हे भी किसी दूसरी लड़की के साथ सेक्स करने मे कोई ऐतराज़ नही
होगा, इसीलिए आज समय मिलते ही में तुम्हारे पास चली आई"
"ओह रिया तुम कितनी अच्छी हो?" कहकर रोमा उसे और जोरों से
चूमने लगी.
"हां, पर अभी तुमने मेरे अच्छे पन का स्वाद ही कहाँ लिया है,"
रिया मुस्कुराते हुए बोली.
रोमा एक बार तो उसकी बात को सुन चौंक पड़ी, फिर उसके गाल पर हल्का
सा थप्पड़ मारते हुए बोली, "तुम बड़ी शैतान हो?"
काफ़ी देर एक दूसरे को चूमने के बाद रिया ने अपने होंठ उसके
होंठो से नीचे करते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगे. फिर उसके
टॉप को उपर कर उसने उसकी चुचियों को नंगा कर दिया. फिर अपनी
हथेली से उसकी चुचि को सहलाते हुए वो उसके निपल को मुँह मे ले
चूसने लगी. एक अजीब से लहर रोमा के शरीर मे दौड़ गयी.
उन दोनो के सिसकने और करहों की आवाज़ अंधेरे मे गूँज सी रही
थी. जय गुस्से मे खड़ा हो अलाव के चारो और चक्कर लगाते हुए
अपने पाँव ज़मीन पर पटक रहा था, राज ये सब क्या है? वो दोनो अपनी
मन मानी कर रहे है, और हम दोनो है जो बेवकूफो की तरह उनका
इंतेज़ार कर रहे है? क्या तुम्हे अजीब सा नही लग रहा?"
"हां लग तो रहा है, पर इसमे बुरा भी क्या है, में यहाँ पर हूँ
क्यों कि मुझे इस तरह ठंड मे तालाब के किनारे बैठना अच्छा लगता
है. अगर रिया और रोमा साथ साथ मज़े ले रहे है तो क्या हुआ तुम्हे
क्यों गुस्सा आ रहा है? आख़िर वो तुम्हारी बेहन है." राज ने कहा.
राज जय के चेहरे को देखने लगा, उसे पता था कि जिस तरह रोमा
उसकी बेहन थी रिया भी जय की बेहन थी लेकिन जय के चेहरे पर
उभरते गुस्से ने थोड़ा उसे सहमा सा दिया था.
वहीं उन दोनो से थोड़ी दूर रिया रोमा की चुचियों को चूसने के
बाद थोड़ा नीचे खिसकी और उसकी शॉर्ट्स को खोल नीचे खिसकने
लगी. साथ ही उसने उसकी गीली हुई पॅंटी भी खिसका दी. रोमा का किसी
लड़की के साथ ये पहला अवसर था इसलिए वो थोड़ा सा नर्वस थी. जब
से वो रिया से मिली थी राज के साथ साथ रिया भी उसके ख़यालों मे
थी, वो इसी दिन का इंतेज़ार कर रही थी.
क्रमशः..................
गतान्क से आगे.......
राज के जीब के स्पर्श ने रोमा के शरीर मे फिर हलचल पैदा कर दी
थी. उसे लगा कि जैसे उत्तेजना की ज्वाला उसकी चुचियों से होती हुई
उसकी चूत तक पहुँच चुकी है. उसे लगा की जैसे चूत मे जोरों
की खुजली मच रही है.
"तुम्हारी चूत रिस रही है जान..." राज ने कहा.
"हां शायद...."
"एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ राज ने अपना मुँह उसकी चुचियों पर
से हटा लिया, "नही में ऐसी किसी चीज़ पर विश्वास नही करता जो
में खुद ना देख लूँ."
"ये कोई अच्छी बात नही राज!"
"नहीं में खुद देखूँगा," राज ने कहा, "लेकिन इसके बाद."
इतना कहकर राज ने फिर एक बार रोमा के निपल अपने मुँह मे ले लिए.
वो उन्हे चूमने लगा, चूसने लगा, कभी अपने दाँतों के बीच लेता
और हल्के से काट लेता.
"ओह राज क्या कर रहे हूऊओ....." रोमा मस्ती मे सिसक पड़ी.
राज का एक हाथ उसके सपाट पेट पर से होता हुआ उसकी खुली जीन्स पर
पहुँचा और उसकी उंगलियाँ उसकी पॅंटी की एलास्टिक को पकड़ ली. रोमा
ने अपने चूतड़ थोड़ा सा उँचा किए और राज ने उसकी जीन्स और पॅंटी
को नीचे खिसका दिया.
फिर उसकी उंगलियाँ चूत को सहलाते हुए उसकी फांको को अलग कर अंदर
घुसने लगी. उसने देखा कि रोमा की चूत किसी भट्टी की तरह सुलग
रही थी और पूरी तरह गीली हो चुकी थी.
"ओह राज्ज्जज्ज्ज्ज........." रोमा सिसक पड़ी, "जानते हो कितना मिस
किया मेने तुम्हे पूरे हफ्ते भर."
राज ने अपने मुँह को उसकी चुचियों से उपर कर उसके होंठ पर रख
दिए, "में तुमसे प्यार करता हूँ," और वो उसके होठों को चूसने
लगता है, "बहोत प्यार करता हूँ तुमसे...."
रोमा ने प्यार से अपनी बाहें उसके गले मे डाल दी और अपना मुँह खोल
उसकी जीब को मुँह मे ले चूसने लगी. उसने उसे ऐसे गले लगा लिए
जैसे दो प्रेमी कई महीनो बाद एक दूसरे से मिल रहे थे.
रोमा ने अपना हाथ उसकी गर्दन से निकाला और नीचे की ओर करते हुए
उसके खड़े लंड को पकड़ लिया. लंड किसी लोहे की सलाख की तरह तन
चुका था. उसे ऐसा लगा की जैसे उसने किसी जलती हुई सलाख हाथ मे
पकड़ ली हो.
राज ने अपने आपको थोड़ा हिलाया और अपनी जंघे रोमा के चेहरे पर
कर लेट गया. फिर उसकी जांघों को फैला उसकी चूत से उठती महक
को सूंघने लगा.
"तुम्हारा लंड बहोत प्यारा है...." रोमा उसके लंड को सहलाते और
उसके अंडकोषों को मसल्ते हुए बोली.
"मुझे तो बहोत भूक लग रही है," उसकी चूत को फैलाते हुए
बोला, "क्या तुम्हे नही लग रही?"
"एम्म.....बहोत ज़्यादा" कहकर उसने पहले तो उसके सूपदे पर अपनी जीब
फिराई फिर उसके लंड को अपने मुँह मे ले चूसने लगी.
अगले आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे को तृप्त करने मे लगे रहे.
रोमा उसके लंड को अपने गले तक लेकर चूस्ति तो राज अपनी जीब को
उसकी चूत की और गहराइयों तक डाल देता. राज अपने लंड को उपर से
उसके मुँह मे डालता तो रोमा नीचे से अपने चूतड़ उठा अपनी चूत
को और उसके मुँह पर दबा देती.
रोमा की चूत ने सबसे पहले पानी छोड़ दिया, राज उसकी चूत मे अपनी
जीब के साथ साथ अपनी दो उंगलियाँ भी अंदर बाहर कर रहा था.
उसका शरीर आकड़ा और उसने अपने चूतड़ उपर को जोरों से उठा सिसक
पड़ी.......
राज उसके उपर से उठता है और रोमा को पलट कर घोड़ी बना देता
है. रोमा भी अपनी कोहनी पर झुक अपने चूतड़ उपर को उठा देती
है. राज उसके पीछे आ अपने लंड को पहले तो उसकी गीली चूत पर
घिसता है फिर धीरे से अपना लंड अंदर घुसा देता है.
"ओह राआाज तुम्हारा लंड मेरी चूत मे कितना अच्छा लग रहा
है.......ओह"
"क्या तुम्हे अब भी डर लग रहा है?" राज ने पूछा.
"नही अब इतना नही लग रहा...." कहकर रोमा कमरे के बंद दरवाज़े
की ओर देखने लगती है.
राज अब धीमे और लंबे धक्के लगा उसे चोदने लगता है. उसका लोहे
जैसा लंड उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था. उनके शरीर हर
धक्के पर ऐसे मिल रहे थे जैसे सुर और ताल का संगम होता है.
थोड़ी ही देर मे राज का लंड भी उबाल खाने लगता है.
"ओह हाआआं" सिसकते हुए राज अपने लंड को उसकी चूत के अंदर
तक पेल अपना वीर्य उसकी चूत मे छोड़ देता है.
रोमा भी अपनी चूत को सिकोड उसके लंड की हर बूँद को निचोड़ने
लगती है. थोड़ी ही देर मे दोनो थके हुए एक दूसरे का हाथ पकड़े
निढाल हो लेट जाते हैं.
"अगर अचानक मम्मी कमरे मे आ जाती तो तुम क्या करती?" राज अपनी
बेहन को चिढ़ाते हुए पूछता है.
"में तो डर के मारे मार ही जाती," रोमा ने जवाब दिया, "अब इसके
पहले की हमारी सोच हक़ीकत मे बदले हमे कपड़े पहन लेने चाहिए."
पर राज था कि उसके मुलायम और नाज़ुक बदन को अपनी बाहों से छोड़ना
ही नही चाहता था, "रोमा पता है तुम्हारी इन बाहों मे कितना सकून
मिलता है मुझे, मन करता है की इसी तरह हमेशा पड़ा रहूं."
रोमा शरमा गयी, "अब उठो भी......." वो उसकी बाहों से निकलने की
कोशिश करने लगी.
लेकिन राज की बाहें ज़्यादा मजबूत थी. उसने उसे खींच कर अपने उपर
लीटा लिया, "सच सच बताओ क्या तुम्हे अच्छा नही लग रहा?"
उसके नंगे बदन से लिपट कर लेटना उसे भी अच्छा लग रहा था, मन
कर रहा था कि वो ऐसे ही लेटी रहे अपने प्यार की बाहों मे लेकिन
मम्मी के आने का डर अभी मन मे समाया हुआ था.
"नही मुझे अच्छा नही लग रहा."
"अगर मम्मी आ गयी तो क्या कहोगी?" राज ने पूछा.
"मुझे नही पता और में जानना भी नही चाहती, प्लीज़ राज मुझे
जाने दो."
आख़िर राज ने उसे छोड़ दिया. वो तुरंत अपने कपड़े पहनने लगी. राज
अपनी बेहन को कपड़े पहनते देखता रहा. रोमा ने अपने कपड़े पहने
और उसका टवल उसकी तरफ उछाल दिया. राज को लगा कि रोमा गुस्से मे
है, इसलिए उसने उसे अपनी बाहों मे भरा और चूम लिया.
"में तुमसे बाद मे मिलता हूँ," कहकर राज ने अपना टवल लपेटा और
उसके कमरे से बाहर चला गया.
"तुम पागल हो!" वो ज़ोर से पीछे से चिल्लाई.
राज एक बार तो थीट्का फिर मुस्कुराते हुए अपने कमरे के ओर बढ़ गया.
* * * * *
रात के वक़्त जब राज और जय तालाब के किनारे बढ़ रहे थे उस
समय काफ़ी कोहरा छाया हुआ था और ठंड भी बढ़ गयी थी. अलाव के
नज़दीक जाकर दोनो ने मिलकर उसमे कुछ लकड़ियाँ डाली और आग
सुलगा दी.
दोनो अलाव के सामने बैठ गये. जय ने अपनी जेब से वही नशे वाली
सिग्रेट निकाली और सुलगा ली. सिग्रेट का ज़ोर का कश लेकर उसने
अपनी छाती धुएँ से भर ली फिर धुएँ को धीरे धीरे छोड़ने
लगा.
"राज मुझे रोमा बहोत पसंद है," उसने अपने फेफड़ों मे इकट्ठा
किए हुए धुएँ को छोड़ते हुए कहा, "बहोत सुन्दर लगती है वो."
"इतनी भी सुन्दर नही है वो," राज ने उसकी सुंदरता को कम आँकते
हुए कहा. जय की बात सुनकर उसके मन मे जलन की भावना उमड़ पड़ी
थी, "पर मुझे नही लगता कि वो तुम्हे पसंद करती हो, अगर करती
तो मुझे ज़रूर बताती."
"पर ये उसका फ़ैसला होगा... क्यों सही है ना?" जय फिर से धुएँ को
छोड़ता हुआ बोला, "जैसे कि रिया का फ़ैसला था तुम्हे पसंद करने का
और तुम्हारे साथ चली गयी थी मुझे यहीं छोड़ कर पीछले
हफ्ते.... याद है ना तुम्हे?"
"हां वो उसका फ़ैसला था," राज ने अपने कंधे उचकाते हुए
कहा. "वैसे भी तुम जो करना चाहे करो मुझे क्या, में तो सिर्फ़ ये
कह रहा था कि अगर ऐसा कुछ होता तो वो मुझसे ज़रूर कहती."
"यार इतना क्यों नाराज़ हो रहे हो, जब रिया ने फ़ैसला किया तो में
तो नाराज़ नही हुआ था." जय ने कहा.
राज जय के कहने का मतलब समझ रहा था. जय की नज़र रोमा पर
थी ये राज समझ रहा था और ये भी जानता था कि रिया से उसके
संबंध को लेकर वो नाराज़ है.
"देखो में किसे लेकर आ रही हूँ."
दोनो लड़कों ने रोमा की आवाज़ को तुरंत पहचान लिया. दोनो ने अपनी
नज़रें घर की तरफ घूमा दी जहाँ से दो परछाईयाँ उन्ही की तरफ
चली आ रही थी. थोड़ी ही देर मे उन्हे रोमा के साथ रिया नज़र आने
लगी. पर दोनो को उमीद नही थी कि इतनी जल्दी रिया से मुलाकात
होगी.
"तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गयी," जय ने चौंकते हुए पूछा.
रिया जय से नही कहना चाहती थी कि उसने कुछ ऐसा नही किया था कि
वो इतनी जल्दी वापस आ जाती लेकिन वो झगड़े के मूड मे नही थी
इसलिए बनावटी हँसी के साथ बोली, "क्या एक लड़की अपने भाई और
पुराने दोस्तों से मिलने नही आ सकती?"
"हां हां.. क्यों नही में तो बस चौंक पड़ा था तुम्हे देखकर."
जय ने कहा. पर मन ही मन उसे गुस्सा आ रहा था. वो कुछ देर के
लिए रोमा के साथ अकेले रहना चाहता था जो रिया के आने से अब
मुमकिन नही था. उसे शक था कि रिया भी रोमा के लिए ही वापस
आई है.
बुझती आग का बहाना कर जय वहाँ से उठा और अलाव मे लकड़ियाँ
डालने लगा. उसने देखा कि रोमा और रिया राज के बगल मे बैठ गये
थे. अल्लव से पड़ती रोशनी मे वो रोमा के शरीर को निहारने लगा.
शॉर्ट्स के नीचे उसकी नंगी टाँगे और जंघे हल्की रोशनी मे बहोत
ही आकर्षित लग रही थी. और उसका छोटा सा टॉप उसकी सेव जैसे
चुचियों को काफ़ी लुभावना बना रहा था.
रोमा को पाने की इच्छा और ज़ोर पकड़ने लगी. उसका असहाय लंड उसकी
पॅंट के अंदर फुदकने लगा. जितना वो उसकी पतली जाँघो को देखता
उतने ही ख़याल उसके मन मे आने लगे. अपनी कल्पना मे वो रोमा को
अपनी बाहों मे भर लेता है और उसकी शॉर्ट्स और पॅंटी को खींच
नीचे कर देता है. फिर अपने फूले हुए लंड को उसकी चूत के अंदर
घुसा देता है.
लंड मे उठते तनाव ने उसे उसके ख़यालों से बाहर निकाला. उसने
देखा कि तीनो मशगूल हो कर बातें कर रहे थे. गुस्से मे उसने
ज़ोर से लकड़ियाँ अलाव मे पटक दी.
"क्यों ना एक सिग्रेट हो जाए?" जय ने रोमा को एक सिग्रेट पकड़ाते
हुए कहा.
लेकिन रोमा ने उसे ना कर दिया तो रिया बीच मे बोल पड़ी, "क्या में
ले सकती हूँ?"
रिया ने जय के हाथों से सिग्रेट ले ली और उसके कश लेने लगी,
उसने इशारे से रोमा को उसका साथ देने के लिए कहा. दोनो लड़कियाँ
एक दूसरे के सामने मुँह कर बैठ गयी और फिर पहले तो एक दूसरे
ने कश लिया फिर होंठ से होंठ सताते हुए एक दूसरे के मुँह मे
धुआँ छोड़ने लगी फिर दोनो की जीब आपस मे मिल गयी.
जय को ये देख गुस्सा आ रहा था कि उसकी बेहन किस तरह रोमा को
बहका रही थी. और वहाँ राज था कि जो सब कुछ देखते हुए भी
अंजान बना हुआ था, "ओह आज कितनी ठंड है, मज़ा आ रहा है,"
उसने अपने आप से कहा.
रोमा और रिया के चुंबन और गहराने लगे. इतने मे रिया को अपनी
बाहों मे ले ज़मीन पर लुढ़कते हुए उन्दोनो से थोड़ी दूर चली गयी
जिससे उन्हे एकांत मिल सके. रात के अंधेरे मे जय उन दोनो को
लुढ़कते देखता रहा, वो समझ रहा था कि रिया अब रोमा के साथ क्या
करने वाली है. गुस्से मे जय ने एक और सिग्रेट सुलगा ली और गहरे
गहरे कश लेने लगा. पर हर कश के साथ उसके अंदर का गुस्सा और
रोमा को पाने की लालसा और बढ़ने लगी.
"मुझे लगता है कि तुम्हारे भाई को काफ़ी गुस्सा आ रहा है," रोमा
रिया के होठों को चूस्ते हुए बोली.
रोमा ने अपनी गर्दन हन मे हिलाई, "मरने दो उसे, अभी नासमझ
है, में हमेशा उससे अच्छीतारह बर्ताव करती हूँ और वो है की
मुझे अपनी ज़ागिर समझता है."
"रिया तुम नही जानती जब से तुम मिली हो में कब से इस दिन का
इंतेज़ार कर रही थी," रोमा ने कहा.
"उस रात पहली बार जब मेने तुम्हे देखा था तो मुझे भी यही लगा
कि तुम्हे भी किसी दूसरी लड़की के साथ सेक्स करने मे कोई ऐतराज़ नही
होगा, इसीलिए आज समय मिलते ही में तुम्हारे पास चली आई"
"ओह रिया तुम कितनी अच्छी हो?" कहकर रोमा उसे और जोरों से
चूमने लगी.
"हां, पर अभी तुमने मेरे अच्छे पन का स्वाद ही कहाँ लिया है,"
रिया मुस्कुराते हुए बोली.
रोमा एक बार तो उसकी बात को सुन चौंक पड़ी, फिर उसके गाल पर हल्का
सा थप्पड़ मारते हुए बोली, "तुम बड़ी शैतान हो?"
काफ़ी देर एक दूसरे को चूमने के बाद रिया ने अपने होंठ उसके
होंठो से नीचे करते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगे. फिर उसके
टॉप को उपर कर उसने उसकी चुचियों को नंगा कर दिया. फिर अपनी
हथेली से उसकी चुचि को सहलाते हुए वो उसके निपल को मुँह मे ले
चूसने लगी. एक अजीब से लहर रोमा के शरीर मे दौड़ गयी.
उन दोनो के सिसकने और करहों की आवाज़ अंधेरे मे गूँज सी रही
थी. जय गुस्से मे खड़ा हो अलाव के चारो और चक्कर लगाते हुए
अपने पाँव ज़मीन पर पटक रहा था, राज ये सब क्या है? वो दोनो अपनी
मन मानी कर रहे है, और हम दोनो है जो बेवकूफो की तरह उनका
इंतेज़ार कर रहे है? क्या तुम्हे अजीब सा नही लग रहा?"
"हां लग तो रहा है, पर इसमे बुरा भी क्या है, में यहाँ पर हूँ
क्यों कि मुझे इस तरह ठंड मे तालाब के किनारे बैठना अच्छा लगता
है. अगर रिया और रोमा साथ साथ मज़े ले रहे है तो क्या हुआ तुम्हे
क्यों गुस्सा आ रहा है? आख़िर वो तुम्हारी बेहन है." राज ने कहा.
राज जय के चेहरे को देखने लगा, उसे पता था कि जिस तरह रोमा
उसकी बेहन थी रिया भी जय की बेहन थी लेकिन जय के चेहरे पर
उभरते गुस्से ने थोड़ा उसे सहमा सा दिया था.
वहीं उन दोनो से थोड़ी दूर रिया रोमा की चुचियों को चूसने के
बाद थोड़ा नीचे खिसकी और उसकी शॉर्ट्स को खोल नीचे खिसकने
लगी. साथ ही उसने उसकी गीली हुई पॅंटी भी खिसका दी. रोमा का किसी
लड़की के साथ ये पहला अवसर था इसलिए वो थोड़ा सा नर्वस थी. जब
से वो रिया से मिली थी राज के साथ साथ रिया भी उसके ख़यालों मे
थी, वो इसी दिन का इंतेज़ार कर रही थी.
क्रमशः..................