hotaks444
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रात को आठ बजे मैं वापस आया तब तक शालिनी ने खाना बना लिया था और हमने कुछ देर तक टीवी देखी फिर मैंने शालिनी से कहा, मैं नहा लूं फिर खाना खाते हैं और मैं नहाने के लिए बाथरूम में आ गया। पिछले दिनों से लगातार शालिनी के सेक्सी बदन को देखने से सैकड़ों बार मेरा लन्ड खड़ा हो चुका था, और इस समय भी मैंने जैसे ही अपनी बनयान और चढ्ढी उतार कर पानी डाला, तो लन्ड फिर से खड़ा हो गया। मैंने सोचा कि अब हस्तमैथुन करने से ही आराम मिलेगा , आज के पहले मैंने हजारों बार मुठ मारी थी अलग अलग भाभियों, आंटियों, फिल्म की हीरोइनों को याद करते हुए, आज भी मैं पड़ोस वाली सुनीता भाभी को याद करके मुठ मारने लगा। पर पता नहीं कब मेरी बंद आंखों में शालिनी का चेहरा आया और मैं दोपहर में देखे नजारे को सोचते हुए झड़ गया,
झड़ने के बाद मैं जल्दी से नहाया और सिर्फ टावेल लपेट कर बाहर आ गया । अंजाने में ही सही शालिनी के नाम ये मेरा पहला हस्तमैथुन था ।
कमरे में आ कर मैंने सिर्फ बरमूडा पहना बिना अंडरवियर के और उपर बनयान भी नहीं पहनी, बहाना गर्मी का था पर मेरे दिमाग में कुछ और खुराफात चल रही थी।
सागर- शालिनी तुम भी नहा लो फिर खाना खाते हैं ।
शालिनी- जी, भाई मैं भी यही सोच रही थी, यहां शहर में गर्मी कुछ ज्यादा ही होती है, खाना बनाने में पसीना पसीना हो जाता है पूरा। अगर कूलर ना हो तब तो यहां रहना मुश्किल है।
सागर- हां, यहां गर्मी थोड़ी ज्यादा होती है गांव से,,,
और शालिनी पीछे कमरे में जाकर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई।
थोड़ी देर बाद कमरे में फिर से मादा महक फैल गई, मैं लेटकर टीवी देख रहा था, मैंने नज़रें उठा कर देखा तो शालिनी ने दूसरी टी-शर्ट और निक्कर पहनी हुई थी और वह आईने के सामने अपने बाल संवार रही थी ।
क्या गजब ढा रही थी वो ....
हम लोगों ने खाना खाया और फिर मैंने शालिनी से कहा कि अगर तुम बोर हो गई हो दिन भर घर में तो चलो थोड़ा सा बाहर वाक करके आते हैं, शालिनी ने मना कर दिया बाहर जाने को,,,
आज मौसम में उमस और गर्मी कुछ ज्यादा ही थी, हम लोग बेड पर लेट कर टीवी देख रहे थे, और सुबह शालिनी के एडमिशन के बारे में बात कर रहे थे ।
शालिनी- भाई जी आज गर्मी बहुत है, ऐसा लग रहा है कि नींद नहीं आयेगी ।
सागर- हां,,,, है तो,,, और उपर से तुमने इतने कपड़े भी लाद रखें हैं ।
शालिनी- हां, बट हम लड़कियों को आप लोगों जैसी लिबर्टी कहां,,,
सागर- क्यों , किसने तुम्हारी लिबर्टी पे रोक लगा रखी है, कम से कम मैंने तो नहीं...
शालिनी- नहीं, मेरा वो मतलब नहीं था, बट मैं कपड़े निकाल कर भी तो नहीं रह सकती,,,, आप की तरह
सागर- हां, निकाल कर नहीं रह सकती बट कम तो कर सकती हो,,, जब भी ज्यादा गर्म हो। तुम ऐसा करो कि अपनी पुरानी वाली समीज और निक्कर पहन लो, अंडरगार्मेंट टाइट होने से गर्मी ज्यादा ही लगती है , मैंने भी नहीं पहने हैं ।
शालिनी- नहीं नहीं भाई, मुझे ठीक नहीं लगेगा,,,, ऐसे मैं कभी रही नहीं ।
सागर- क्या ठीक नहीं लगेगा, तुम मेरे साथ भी कम्फ़र्टेबल नहीं हो तो बाहर कैसे निकलोगी अकेले माडर्न कपड़ों में,
मैंने उसे काफी समझाया तब उसने कहा कि ठीक है मैं ट्राई करती हूं, और वो उठकर पीछे रूम में चली गई।
मैं लेटे लेटे अपने प्लान की कामयाबी पर खुश हो रहा था और अब मुझे यकीन हो रहा था कि मैं शालिनी को धीरे धीरे अपनी लिव इन गर्ल फ्रेंड बना ही लूंगा बस मुझे थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा, अब तक मैंने शालिनी को छुआ भी नहीं था ना ही मुझे इसकी कोई जल्दी थी... इतने में शालिनी आकर मेरे पास लेट गई।
सागर- दैट्स गुड,,,, अब कुछ गर्मी कम लगेगी।
शालिनी- जी,
वो अब भी मेरे तरफ देख नहीं रही थी, सीधे टीवी स्क्रीन पर ही नजर गड़ाए थी।
उसकी समीज सफेद रंग की थी और उसके उन्नत उरोजों से कुछ नीचे उसकी नाभि के ऊपर तक थी, मैंने थोड़ा सा आंखें घुमाकर देखा तो उसके निप्पल अलग से नुमायां हो रहे थे, मैंने तुरंत अपनी आंखें हटाई क्योंकि मुझे लगा कि मेरा लन्ड ने फिर से जागने लगा है और नीचे मैंने चढ्ढी भी नहीं पहनी हुई थी ।
मैं सोच रहा था कि जल्दी से जल्दी शालिनी सो जाये, जिससे मैं बिना डर के उसके शरीर को देखूं, शायद छू भी लूं।
हम ऐसे ही बातें करते हुए टीवी आफ करके सो गए।
मैं तो सोने का नाटक ही कर रहा था करीब एक घंटे तक मेरे मन में फिर से...
खुद के सवाल और खुद के ही जवाब....
वासना तो किसी रिश्ते को नही मानती, फिर ये उधेड़बुन क्यूँ?
कहीं ऐसा तो नही जो चाहत जिस्म की प्यास ने शुरू की थी वो आत्मा की प्यास में बदल गयी है।
मेरे दिलोदिमाग में आँधियाँ चल रही थी, मेरा जिस्म जैसे एक सूखे पत्ते की तरह फड़फडा रहा था. ये क्या हो रहा है, क्या ये समाज भाई बहन के प्यार को इज़ाज़त देगा अपनी ही बहन से प्यार करने के लिए.
क्या ये प्यार कभी परवान चढ़ पाएगा. अगर ये प्यार ही है तो इसमे वासना कहाँ से आ गयी। क्यूँ मेरा जिस्म शालिनी के जिस्म में समाने के लिए बेताब है. क्यूँ उसके जिस्म से भड़की हुई प्यास को मैं उसी के बदन से बुझाने की आस लगाए बैठा हूं ।
कैसे बेशर्मो की तरह अपनी बहन की लाज के टुकड़े टुकड़े कर रहा हूं उसके अर्ध नग्न बदन को घूरते हुए।
उफफफफफफ्फ़ ये क्या हो रहा है ये किस दलदल की ओर बढ़ रहा हूँ मैं,
क्या माँ के विश्वास को उसके निश्चल प्रेम को वासना की बलि चढ़ाना ठीक होगा? क्या शालिनी कभी दिल से उसके साथ ऐसा संबंध बनाएगी - नही.... क्या शालिनी कभी उसे एक मर्द के रूप में देखेगी - शायद नही ।
तो फिर क्यूँ ये गंदे ख़यालात मेरे मन से क्यूं नही जा रहे. इसी उधेड़बुन में मैं यूँ ही जागता रहा ।
झड़ने के बाद मैं जल्दी से नहाया और सिर्फ टावेल लपेट कर बाहर आ गया । अंजाने में ही सही शालिनी के नाम ये मेरा पहला हस्तमैथुन था ।
कमरे में आ कर मैंने सिर्फ बरमूडा पहना बिना अंडरवियर के और उपर बनयान भी नहीं पहनी, बहाना गर्मी का था पर मेरे दिमाग में कुछ और खुराफात चल रही थी।
सागर- शालिनी तुम भी नहा लो फिर खाना खाते हैं ।
शालिनी- जी, भाई मैं भी यही सोच रही थी, यहां शहर में गर्मी कुछ ज्यादा ही होती है, खाना बनाने में पसीना पसीना हो जाता है पूरा। अगर कूलर ना हो तब तो यहां रहना मुश्किल है।
सागर- हां, यहां गर्मी थोड़ी ज्यादा होती है गांव से,,,
और शालिनी पीछे कमरे में जाकर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई।
थोड़ी देर बाद कमरे में फिर से मादा महक फैल गई, मैं लेटकर टीवी देख रहा था, मैंने नज़रें उठा कर देखा तो शालिनी ने दूसरी टी-शर्ट और निक्कर पहनी हुई थी और वह आईने के सामने अपने बाल संवार रही थी ।
क्या गजब ढा रही थी वो ....
हम लोगों ने खाना खाया और फिर मैंने शालिनी से कहा कि अगर तुम बोर हो गई हो दिन भर घर में तो चलो थोड़ा सा बाहर वाक करके आते हैं, शालिनी ने मना कर दिया बाहर जाने को,,,
आज मौसम में उमस और गर्मी कुछ ज्यादा ही थी, हम लोग बेड पर लेट कर टीवी देख रहे थे, और सुबह शालिनी के एडमिशन के बारे में बात कर रहे थे ।
शालिनी- भाई जी आज गर्मी बहुत है, ऐसा लग रहा है कि नींद नहीं आयेगी ।
सागर- हां,,,, है तो,,, और उपर से तुमने इतने कपड़े भी लाद रखें हैं ।
शालिनी- हां, बट हम लड़कियों को आप लोगों जैसी लिबर्टी कहां,,,
सागर- क्यों , किसने तुम्हारी लिबर्टी पे रोक लगा रखी है, कम से कम मैंने तो नहीं...
शालिनी- नहीं, मेरा वो मतलब नहीं था, बट मैं कपड़े निकाल कर भी तो नहीं रह सकती,,,, आप की तरह
सागर- हां, निकाल कर नहीं रह सकती बट कम तो कर सकती हो,,, जब भी ज्यादा गर्म हो। तुम ऐसा करो कि अपनी पुरानी वाली समीज और निक्कर पहन लो, अंडरगार्मेंट टाइट होने से गर्मी ज्यादा ही लगती है , मैंने भी नहीं पहने हैं ।
शालिनी- नहीं नहीं भाई, मुझे ठीक नहीं लगेगा,,,, ऐसे मैं कभी रही नहीं ।
सागर- क्या ठीक नहीं लगेगा, तुम मेरे साथ भी कम्फ़र्टेबल नहीं हो तो बाहर कैसे निकलोगी अकेले माडर्न कपड़ों में,
मैंने उसे काफी समझाया तब उसने कहा कि ठीक है मैं ट्राई करती हूं, और वो उठकर पीछे रूम में चली गई।
मैं लेटे लेटे अपने प्लान की कामयाबी पर खुश हो रहा था और अब मुझे यकीन हो रहा था कि मैं शालिनी को धीरे धीरे अपनी लिव इन गर्ल फ्रेंड बना ही लूंगा बस मुझे थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा, अब तक मैंने शालिनी को छुआ भी नहीं था ना ही मुझे इसकी कोई जल्दी थी... इतने में शालिनी आकर मेरे पास लेट गई।
सागर- दैट्स गुड,,,, अब कुछ गर्मी कम लगेगी।
शालिनी- जी,
वो अब भी मेरे तरफ देख नहीं रही थी, सीधे टीवी स्क्रीन पर ही नजर गड़ाए थी।
उसकी समीज सफेद रंग की थी और उसके उन्नत उरोजों से कुछ नीचे उसकी नाभि के ऊपर तक थी, मैंने थोड़ा सा आंखें घुमाकर देखा तो उसके निप्पल अलग से नुमायां हो रहे थे, मैंने तुरंत अपनी आंखें हटाई क्योंकि मुझे लगा कि मेरा लन्ड ने फिर से जागने लगा है और नीचे मैंने चढ्ढी भी नहीं पहनी हुई थी ।
मैं सोच रहा था कि जल्दी से जल्दी शालिनी सो जाये, जिससे मैं बिना डर के उसके शरीर को देखूं, शायद छू भी लूं।
हम ऐसे ही बातें करते हुए टीवी आफ करके सो गए।
मैं तो सोने का नाटक ही कर रहा था करीब एक घंटे तक मेरे मन में फिर से...
खुद के सवाल और खुद के ही जवाब....
वासना तो किसी रिश्ते को नही मानती, फिर ये उधेड़बुन क्यूँ?
कहीं ऐसा तो नही जो चाहत जिस्म की प्यास ने शुरू की थी वो आत्मा की प्यास में बदल गयी है।
मेरे दिलोदिमाग में आँधियाँ चल रही थी, मेरा जिस्म जैसे एक सूखे पत्ते की तरह फड़फडा रहा था. ये क्या हो रहा है, क्या ये समाज भाई बहन के प्यार को इज़ाज़त देगा अपनी ही बहन से प्यार करने के लिए.
क्या ये प्यार कभी परवान चढ़ पाएगा. अगर ये प्यार ही है तो इसमे वासना कहाँ से आ गयी। क्यूँ मेरा जिस्म शालिनी के जिस्म में समाने के लिए बेताब है. क्यूँ उसके जिस्म से भड़की हुई प्यास को मैं उसी के बदन से बुझाने की आस लगाए बैठा हूं ।
कैसे बेशर्मो की तरह अपनी बहन की लाज के टुकड़े टुकड़े कर रहा हूं उसके अर्ध नग्न बदन को घूरते हुए।
उफफफफफफ्फ़ ये क्या हो रहा है ये किस दलदल की ओर बढ़ रहा हूँ मैं,
क्या माँ के विश्वास को उसके निश्चल प्रेम को वासना की बलि चढ़ाना ठीक होगा? क्या शालिनी कभी दिल से उसके साथ ऐसा संबंध बनाएगी - नही.... क्या शालिनी कभी उसे एक मर्द के रूप में देखेगी - शायद नही ।
तो फिर क्यूँ ये गंदे ख़यालात मेरे मन से क्यूं नही जा रहे. इसी उधेड़बुन में मैं यूँ ही जागता रहा ।