hotaks444
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भैया का ख़याल मैं रखूँगी
फ्रेंड्स मैं डॉली शर्मा इस साइट की नई यूज़र हूँ मुझे इस साइट की कहानियाँ बहुत अच्छी लगती है क्योंकि यहाँ सारी कहानियाँ हिन्दी में ही है . जो हिन्दी नही पढ़ सकते उनकी तो एक मजबूरी होती है वरना जो मज़ा हिन्दी मे पढ़ने मे आता है उतना रोमन स्क्रिप्ट मे नही . चलिए ये सब तो अपने अपने विचारों की बात है . आज से मैं एक कहानी शुरू करने जा रही हूँ . वैसे तो ये कहानी काफ़ी पुरानी है इसे त्रिवेणी विजय ने काफ़ी समय पहले रोमन स्क्रिप्ट में लिखा था
यह कहानी एक भाई -बेहन की है. सो जो लोग डॉन'ट लाइक इन्सेस्ट, प्लीज़ डॉन'ट गो थ्रू. मगर एक गुज़ारिश यह भी है कि एक नज़र ज़रूर डालिएगा इस स्टोरी पर. अब आप पर निर्भर करता है कि आप इसे पढ़ें और सराहें या किनारा कर लें.
तो आइए मेरे साथ सफ़र शुरू करते हैं एक अनोखी कहानी का जिसमे एक बेहन कैसे अपने भाई को अपना सब कुछ सौंपने पर जी-जान लगा देती है. उसकी हर तमन्ना को अपनी तमन्ना बना कर कैसे वो उसके साथ ज़िंदगी के उतार और चढ़ाव को पार करती है. आइए पढ़ते हैं कि वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुँचा सकती है या नहीं. बी इन टच..................
.
कहानी के पात्र:
1. आशना, 20 यियर्ज़ ओल्ड, 5फीट 6" {आक्युपेशन- एयिर्हसटेस्स}
2. वीरेंदर, 33 यियर्ज़ ओल्ड, 5 फीट 11" {आक्युपेशन- सक्सेस्फुल बिज़्नेसमॅन}
कहानी मैं काफ़ी कॅरेक्टर्स ऐसे हैं जो वक्त आने पर अपनी छाप छोड़ेंगे बट मेन करेक्टर्स आशना और वीरेंदर के ही रहेंगे. तो आइए शुरू करते हैं..........
काफ़ी लंबी कहानी है, धीरज रखेेयगा.
पिछले दस दिनों से बदहाल ज़िंदगी मे फिर से एक किरण आ गई थी. वीरेंदर को होश आ चुका था, उसे आइसीयू से कॅबिन वॉर्ड मे शिफ्ट करने की तैयारियाँ शुरू हो गई थी, आशना की खुशी का ठिकाना ना था, वो जल्द से जल्द वीरेंदर से मिलना चाहती थी, उसे होश मे देखना चाहती थी. उसकी दुआ ने असर दिखाया था. वो उससे मिलके उसे अपनी नाराज़गी बताना चाहती थी. वो पूछना चाहती थी कि ज़िंदगी के इतने ख़तरनाक मोड़ पर आने के बावजूद उसे वीरेंदर ने कुछ बताया क्यूँ नहीं. वो जानना चाहती थी उसकी इस हालत के पीछे के हालात. बहुत कुछ जानना था उसको पर सबसे पहले वो वीरेंदर से मिलना चाहती थी. बस कुछ ही पलों बाद वो उससे मिल सकेगी, अपने भाई को 12 साल बाद देख सकेगी.
वीरेंदर की ज़िंदगी इस नाज़ुक मोड़ पर कैसे पहुँची और दो भाई बेहन 12 सालों से मिले क्यूँ नहीं, जानने के लिए पढ़ते रहे...........................
फ्रेंड्स मैं डॉली शर्मा इस साइट की नई यूज़र हूँ मुझे इस साइट की कहानियाँ बहुत अच्छी लगती है क्योंकि यहाँ सारी कहानियाँ हिन्दी में ही है . जो हिन्दी नही पढ़ सकते उनकी तो एक मजबूरी होती है वरना जो मज़ा हिन्दी मे पढ़ने मे आता है उतना रोमन स्क्रिप्ट मे नही . चलिए ये सब तो अपने अपने विचारों की बात है . आज से मैं एक कहानी शुरू करने जा रही हूँ . वैसे तो ये कहानी काफ़ी पुरानी है इसे त्रिवेणी विजय ने काफ़ी समय पहले रोमन स्क्रिप्ट में लिखा था
यह कहानी एक भाई -बेहन की है. सो जो लोग डॉन'ट लाइक इन्सेस्ट, प्लीज़ डॉन'ट गो थ्रू. मगर एक गुज़ारिश यह भी है कि एक नज़र ज़रूर डालिएगा इस स्टोरी पर. अब आप पर निर्भर करता है कि आप इसे पढ़ें और सराहें या किनारा कर लें.
तो आइए मेरे साथ सफ़र शुरू करते हैं एक अनोखी कहानी का जिसमे एक बेहन कैसे अपने भाई को अपना सब कुछ सौंपने पर जी-जान लगा देती है. उसकी हर तमन्ना को अपनी तमन्ना बना कर कैसे वो उसके साथ ज़िंदगी के उतार और चढ़ाव को पार करती है. आइए पढ़ते हैं कि वो इस रिश्ते को अंजाम तक पहुँचा सकती है या नहीं. बी इन टच..................
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कहानी के पात्र:
1. आशना, 20 यियर्ज़ ओल्ड, 5फीट 6" {आक्युपेशन- एयिर्हसटेस्स}
2. वीरेंदर, 33 यियर्ज़ ओल्ड, 5 फीट 11" {आक्युपेशन- सक्सेस्फुल बिज़्नेसमॅन}
कहानी मैं काफ़ी कॅरेक्टर्स ऐसे हैं जो वक्त आने पर अपनी छाप छोड़ेंगे बट मेन करेक्टर्स आशना और वीरेंदर के ही रहेंगे. तो आइए शुरू करते हैं..........
काफ़ी लंबी कहानी है, धीरज रखेेयगा.
पिछले दस दिनों से बदहाल ज़िंदगी मे फिर से एक किरण आ गई थी. वीरेंदर को होश आ चुका था, उसे आइसीयू से कॅबिन वॉर्ड मे शिफ्ट करने की तैयारियाँ शुरू हो गई थी, आशना की खुशी का ठिकाना ना था, वो जल्द से जल्द वीरेंदर से मिलना चाहती थी, उसे होश मे देखना चाहती थी. उसकी दुआ ने असर दिखाया था. वो उससे मिलके उसे अपनी नाराज़गी बताना चाहती थी. वो पूछना चाहती थी कि ज़िंदगी के इतने ख़तरनाक मोड़ पर आने के बावजूद उसे वीरेंदर ने कुछ बताया क्यूँ नहीं. वो जानना चाहती थी उसकी इस हालत के पीछे के हालात. बहुत कुछ जानना था उसको पर सबसे पहले वो वीरेंदर से मिलना चाहती थी. बस कुछ ही पलों बाद वो उससे मिल सकेगी, अपने भाई को 12 साल बाद देख सकेगी.
वीरेंदर की ज़िंदगी इस नाज़ुक मोड़ पर कैसे पहुँची और दो भाई बेहन 12 सालों से मिले क्यूँ नहीं, जानने के लिए पढ़ते रहे...........................