Chodan Kahani दस लाख का सवाल - Page 2 - SexBaba
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Chodan Kahani दस लाख का सवाल

कर रहा था. ऐसा जबरदस्त हमला चूत कब तक झेलती! वहीदा का शरीर अकड़ा और एक लम्बी ‘आऽऽऽऽह!’ के साथ उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. उसका जिस्म बुरी तरह कांप रहा था. मुझे लगा कि

बिजलियाँ कड़क रही हैं और बरसात होने वाली है पर अपनी पूरी विल पॉवर लगा कर मैंने किसी तरह अपने आप को झड़ने से रोक लिया.

जब वहीदा का होश लौटा तो उसने मुझे बार-बार चूम कर मुझे मूक धन्यवाद दिया. मुझे फख्र महसूस हुआ कि मैं उसे इतना मजा दे पाया. इससे भी ज्यादा फख्र मुझे इस बात पर था कि मैं अभी तक नहीं झड़ा था. वहीदा जरूर मेरी मर्दानगी की

कायल हो गई होगी. मैं यही चाहता था. उसे और खुश करने के लिए मैंने कहा, “वहीदा, तुम्हारे हुस्न की तरह तुम्हारी चूत भी लाजवाब है. मुझे ख़ुशी है कि मैं उसकी थोड़ी इबादत कर पाया.”

मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर हया की लाली छा गई. उसने नज़रें झुका कर कहा, “लाजवाब तो आप हैं! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकी. काश मैं भी आपकी खिदमत कर पाती.”

“मुझे कौन सी जल्दी पड़ी है,” मैंने कहा. “हाँ, तुम्हे जल्दी हो तो और बात है.”

“जल्दी कैसी, मैं तो सिर्फ आपको खुश करना चाहती हूँ,” वहीदा ने कहा. “आप जो करना चाहें, कीजिये और मुझ से कुछ करवाना हो तो हुक्म दीजिये.”

मेरा मन तो कर रहा था कि मैं वहीदा को अपना लंड चूसने को कहूं पर इसमें जल्दी झड़ने का जोखिम था. बहरहाल मैं वहीदा में आये बदलाव से बहुत खुश था. अब वो पूरी तरह मेरे काबू में लग रही थी. मैंने उसके ऊपर से उतरते हुए कहा,

“क्या तुम घोड़ी बन सकती हो?”

वहीदा समझ गई कि मैं उसे पीछे से चोदना चाहता हूँ. वो फ़ौरन पलट कर घोड़ी बन गई. उसके मांसल और सुडौल चूतड़ मेरी आंखों के सामने नुमाया हो गये. मेरी सहूलियत के लिए उसने अपनी टांगों को थोडा फैला दिया. अब जो मंज़र मेरी नज़रों

के सामने था वो बहुत ही दिलकश था. एक तरफ वहीदा की चुस्त गुलाबी गांड मेरे लंड को दावत दे रही थी तो दूसरी तरफ उसकी फड़कती हुई चूत कह रही थी कि आओ और मेरे अन्दर समा जाओ. लेकिन मुझे अपने बेकरार लंड को थोडा आराम

देना था ताकि वो जल्दी निपट कर मुझे शर्मिंदा न कर दे.

मैंने आगे झुक कर अपना मुंह वहीदा के चूतड़ों के बीच रख दिया. जैसे ही मेरी जीभ का स्पर्श उसकी गांड से हुआ, वहीदा चिहुंक उठी. लेकिन वो मेरे मुंह से दूर होती उससे पहले ही मैंने उसकी रानों को पकड़ लिया. मैं अपनी जीभ कभी उसके एक

चूतड़ पर फिराता तो कभी दूसरे पर. बीच-बीच में मेरी जीभ उसकी गांड और चूत का जायजा भी ले लेती. वहीदा एक बार फिर मस्ती से सराबोर होने लगी. उसका जिस्म मचलने लगा. मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसा दी और अपनी जीभ

उसकी गांड पर जमा दी. जब ऊँगली और जीभ का दोहरा हमला हुआ तो वहीदा बेसाख्ता बोल उठी, “बस एहसान साहब, अब आ जाइए!”

अब वहीदा को और मुन्तजिर रखना बे-अदबी होती. इसलिए मैं एक बार फिर पोजीशन में आ गया, इस दफा उसके चूतड़ों के पीछे. उसकी गांड और चूत दोनों मेरी पहुँच में थीं. गांड के आकर्षण पर काबू पाना आसान न था पर मुझे इल्म था कि गांड मारने में जल्दबाजी मुझे उसकी चूत से भी महरूम कर सकती थी. इसलिए फ़िलहाल मैंने उसकी चूत को ही अपना निशाना बनाया. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर उसे आगे धकेला. उसने अपनी चूत को ढीला छोड़ दिया था

इसलिए लंड चूत के अंदर धंसने लगा. चूत में काफी चिकनाई भी थी इसलिये मेरे लंड को उसके अंदर दाखिल होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उनकी चूत में धक्के मारने लगा. मुझे अपना लंड उसके हसीन चूतड़ों के बीच चूत के अंदर-बाहर होता नज़र आ रहा था. यह एक बहुत ही दिलकश नज़ारा था! मैं उसकी चूत में मुसलसल धक्के मार रहा था और वो अपनी कमर को पीछे धकेल कर मेरा पूरा साथ दे रही थीं. उसके मुंह से बेसाख्ता आहें निकल रही थीं, “आह! आsssह! ओह! ओsssह! उंह…! हाय अल्लाह!”
 
चार-पांच मिनट की पुरलुत्फ चुदाई के बाद मेरे लंड पर वहीदा की चूत का शिकंजा कसने लगा. मुझे अपने लंड पर एक लज्ज़त भरा दबाव महसूस होने लगा. मुझे लगा कि अब मेरा काम होने वाला है. एक तरफ मैं अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए बेसब्र हो रहा था पर दूसरी तरफ मेरा दिल कह रहा था कि मज़े का यह आलम अभी ख़त्म नहीं होना चाहिए. बहरहाल मैंने फैसला किया कि इतनी जल्दी निपटना मुनासिब नहीं है. मैंने किसी तरह अपने धक्कों को रोका. जब मैंने अपने लंड को चूत से बाहर खींचा तो वहीदा ने अपना चेहरा पीछे घुमाया. उसकी सवालिया निगाहें पूछ रही थीं कि मैंने लंड को चूत से जुदा क्यों कर दिया. मैंने उसे तस्कीन देते हुए कहा, “मैं फिर तुम्हे सामने से चोदना चाहता हूं. अब सीधी लेट जाओ.”

मेरे अल्फाज़ से वहीदा बेशक शर्मज़दा हुई पर उसे यह तसल्ली भी हुई कि चुदाई अभी ख़त्म नहीं हुई है. उसने तुरंत मिश्नरी पोजीशन अख्तियार कर ली. मेरा मकसद पोजीशन बदलने के बहाने थोडा वक़्त हासिल करना था. मैं उसकी कमर पर बैठ गया. मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चूचियों पर रख दिये और उन्हें मसलने लगा. वहीदा की गर्मी बढ़ने लगी और उसकी साँसें तेज हो गईं. मैं उसकी चून्चियों को मसलते हुए आगे झुक कर उसके होंठों को चूमने लगा. कभी-कभी मैं उसके निप्पल अपनी अंगुलियों के बीच पकड़ कर मसल देता था. वहीदा की आँखें बंद थी. उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी. कुछ देर उसकी जीभ के जायके का मज़ा लेने के बाद मैंने अपने मुंह को उसके मुंह से अलग किया और उसे उसके मम्मे पर रख दिया. मैं उसके एक मम्मे को चूसने लगा और दूसरे को अपने हाथ से मसलने लगा. एक बार फिर वहीदा की गर्मी शिखर पर पहुँच गई. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी साँसे उखडने लगीं. उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे इल्तज़ा

भरी नज़र से देखा.

मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा चुका था इसलिए अब मैं भी चुदाई फिर से शुरू करने के लिए तैयार था. मैं वहीदा के पुरकशिश और दिलफरेब जिस्म से पूरी तरह लुत्फ़-अंदोज़ होना चाहता था. मेरा लंड भी अब चूत की गिरफ्त का ख्वाहिशमंद था.

मैं उसके ऊपर लेट गया. उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मेरा तना हुआ लंड उसकी चूत के मुहाने से टकराया. चूत का गीलापन उसकी हालत को बयां कर रहा था. वो पूरी तरह गर्म हो चुकी थी. वहीदा ने अपना हाथ नीचे किया और मेरे लंड को

पकड़ कर अपनी चूत से सटा दिया. मैंने अपने चूतड़ों को आगे धकेला तो मेरा लंड चूत को फैलाता हुआ उसके अंदर समाने लगा. वहीदा के मुंह से एक आह निकल गई. उसने मेरी कमर को अपने हाथों से थाम कर अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर-नीचे

किया ताकि मेरा लंड ठीक से उसकी चूत में अपनी जगह बना ले. जब उसकी चूत ने लंड को पूरी तरह ज़ज्ब कर लिया तो उसने मेरे चेहरे को अपनी जानिब खींचा और मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसके होंठों का मज़ा लेने के साथ-साथ मैं
 
अपने लंड के गिर्द उसकी चूत की खुशगवार गिरफ्त को महसूस कर रहा था. चूत इस बार पहले की बनिस्बत ज्यादा चुस्त लग रही थी, शायद उत्तेजना की वजह से.

वहीदा आहिस्ता-आहिस्ता अपने चूतड़ उठाने लगी. उसने मुझे आँखों से इशारा किया कि मैं भी धक्के मारूं. मैं उसकी ताल से ताल मिला कर हलके-हलके धक्के लगाने लगा. जब मेरा लंड आसानी से चूत के अंदर जाने लगा तो मैने अपने धक्कों की

ताक़त बढ़ा दी. वहीदा भी मेरे धक्कों का जवाब पुरजोर धक्कों से दे रही थी. वो कुछ देर तो चुपचाप चुदती रहीं लेकिन जब मेरे धक्के गहरे हो गए तो वो सिसकने लगी, ‘उंह…! आsss! ओsssह!’

उस के मुँह से निकलने वाली सिसकारियों से मुझे लगा कि उसे इस काम में खासा मज़ा आ रहा था. मुझे यह जान कर सुकून मिला कि मैं वहीदा को अपने कब्जे में लेने के मकसद में कामयाब हो रहा था. साथ ही उसे चोदते हुए मैं एक मज़े के

समंदर में गोते खा रहा था. वहीदा ने मेरी कमर को अपनी बांहों में कस रखा था. उसके चूतड़ों की हरकत तेज़ हो गई थी और उसकी चूत में और कसावट आ गयी थी. उसकी चूत की कसावट इशारा कर रही थी कि वो फिर से झड़ने की तरफ बढ़

रही थी. मुझे खुशी थी कि मै पहली ही चुदाई में वहीदा पर अपनी मर्दानगी की छाप छोड़ने में कामयाब हो रहा था. मैं पूरा दम लगा कर उसकी चूत में धक्के मारने लगा. चूत अब बुरी तरह फड़क रही थी. साथ में वहीदा का बदन मुसलसल लहरा

रहा था. अब मेरे लिये अपने आप को रोकना नामुमकिन हो गया था.

मैंने बेअख्तियार हो कर अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. वहीदा को शायद इल्म हो गया कि मैं झड़ने के कगार पर हूँ. उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर भींचना शुरू कर दिया. मेरी रग-रग में एक मदहोश कर देने वाली लज्ज़त का तूफान उठ रहा

था. मैं झड़ने की नीयत से उसकी चूत में जबरदस्त शॉट मारने लगा. जल्द ही मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर एक मीठी गुदगुदी महसूस हुई और मैं अपना होश खो बैठा. मैं अंधाधुंध धक्के मारने लगा. वो भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरे धक्कों

का जवाब दे रही थी. अचानक मेरे लंड पर उसकी चूत का शिकंजा कसा और मैं अपनी मंजिल पर जा पहुंचा. मेरे लंड ने उसकी चूत में पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दीं. जैसे ही वहीदा की चूत में पानी की पहली बौछार पडी, उसका जिस्म अकड़ गया

और उसकी चूत भी पानी छोड़ने लगी. मुझ पर एक मस्ती का आलम तारी हो गया. वहीदा ने अपनी चूत को भींच-भींच कर मेरे लंड को पूरी तरह निचोड़ डाला. खलास होने के बाद मैं बेदम हो कर उस पर गिरा तो उसने प्यार से मुझे अपनी बांहों में

भींच लिया. ... थोड़ी देर बाद हमारे होश लौटे तो वहीदा ने मुझे बार-बार चूम कर मेरा शुक्रिया अदा किया. मुझे यकीन हो गया कि ये चिड़िया अब मेरे जाल से नहीं निकल सकेगी.

अगली शाम युसूफ मेरे घर आया. ताज्जुब की बात यह थी कि पहली बार वहीदा भी उसके साथ आई थी. उसे देख कर मेरा ख़ुश होना लाजमी था. मैंने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया. तहजीब के तकाजे के

मुताबिक मैंने अपनी बेगम को उनसे मिलने के लिए ड्राइंग रूम में बुलाया. कुछ देर हमारे दरमियान इधर-उधर की बातें होती रहीं. फिर मेरी बेगम ने उठते हुए कहा, “आप लोग बैठिये. मैं चाय का इंतजाम करती हूं.”

वहीदा ने उठ कर कहा, “मैं भी आपके साथ चलती हूँ. इस बहाने मैं आपका किचन भी देख लूंगी.”
 
इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता था. मेरी बेगम ने कहा, “हां, आइये ना. हम कुछ देर और बातें कर लेंगे.”

मुझे लगा कि वहीदा मुझे और युसूफ को अकेला छोड़ना चाहती थी ताकि युसूफ मेरे से क़र्ज़ अदायगी की मियाद बढाने की बात कर सके. मैं भी इसी का इंतजार कर रहा था. मैं एक बार वहीदा को हासिल कर चुका था. अब मुझे ऐसा इंतजाम करना

था कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहे. इसके लिए मुझे युसूफ पर अपनी पकड़ बनानी थी. जैसे ही हमारी बीवियां अन्दर गईं, युसूफ बोला, “मेरा खयाल है कि हमें क़र्ज़ वाला मामला निपटा देना चाहिए. अब मियाद ख़त्म होने को है. मैंने जो

एग्रीमेंट साइन किया था वो यहीं है या तुम्हारे ऑफिस में है?”

यह सुन कर मैं भौंचक्का रह गया. मुझे उम्मीद थी कि युसूफ मियाद बढाने की बात करेगा पर वो तो मियाद ख़त्म होने से पहले ही क़र्ज़ चुकाने की बात कर रहा है. मुझे अपने मंसूबे पर पानी फिरता नज़र आया. मैंने बुझी हुई आवाज में कहा,

“एग्रीमेंट तो यहीं है, मेरे स्टडी रूम में. लेकिन क़र्ज़ चुकाने की कोई जल्दी नहीं है. तुम्हे और वक़्त चाहिए तो ...?

“जो काम अभी हो सकता है उसमे देर क्यों करें?” युसूफ ने मेरी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया. “चलो, तुम्हारे स्टडी रूम में चलते हैं.”

अपनी योजना को नाकामयाब होते देख कर मैं मायूस हो गया था. मैं बेमन से उसे स्टडी रूम में ले गया. मैंने अलमारी से एग्रीमेंट निकाला. वो एक लिफाफे में था. मैं उसे लिफ़ाफे से बाहर निकालता उससे पहले युसूफ बोला, “ओह, मैं तुम से

एक बात पूछना भूल गया. तुमने अपने घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगवा रखे हैं या नहीं?”

एक तो मैं वैसे ही परेशान था, ऊपर से यह सवाल मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने कहा, “सी.सी.टी.वी. कैमरे किसलिए?”

युसुफ ने जवाब दिया, “तुम तो जानते ही हो कि आजकल चोरी-चकारी कितनी आम हो गयी है. हम सिर्फ पुलिस के भरोसे बैठे रहें तो चोर कभी नहीं पकडे जायेंगे. हां, घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हों तो पुलिस चोरों तक पहुँच सकती है. मैंने तो

अपने घर में कई जगह कैमरे लगवा रखे हैं.”

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह बात मेरे लिए परेशानी का सबब बन सकती थी. मैंने युसूफ की तरफ देखा. वो आगे बोला, “आज मैं सी.सी.टी.वी. की रिकॉर्डिंग देख रहा था. मैंने जो देखा वो यकीन करने के काबिल नहीं हैं.”

स्टडी रूम में मेरा कम्प्यूटर ऑन था. युसूफ ने उसमे एक पैन ड्राइव लगाई और अपना हाथ माउस पर रख दिया. कुछ ही पलों में स्क्रीन पर उसके ड्राइंग रूम के अन्दर का नज़ारा दिखा. ड्राइंग रूम के अन्दर वहीदा और मैं नज़र आ रहे थे. मेरे होंठ

वहीदा के होंठों पर थे और मेरा हाथ उसकी चूंची पर. यह देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए. युसूफ ने वीडियो को रोक कर मेरी तरफ देखा और कहा, “तुम तो यकीनन मेरे सच्चे दोस्त निकले. मेरी गैर-मौजूदगी में एक सच्चा दोस्त ही मेरी बीवी की

इस तरह खिदमत कर सकता है!”

युसूफ की बात सुन कर मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया. मेरी बोलती बंद हो गई. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. मैं तो सोच रहा था कि उसने क़र्ज़ की मियाद बढ़वाने के लिए वहीदा का इस्तेमाल किया था (और मुझे उसका इस्तेमाल

करने दिया था). लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा था. वो तो आज ही क़र्ज़ चुकाने के लिए तैयार था, बिना मियाद बढवाए. इसका मतलब था कि जो भी हुआ वो उसकी जानकारी के बिना हुआ था.

लेकिन वहीदा ने ऐसा क्यों किया? उसने क्यों मुझे अकेले में घर बुलाया? वो क्यों मुझसे चुदने को राज़ी हो गई? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ... लेकिन जब इंसान किसी मुसीबत में फंस जाता है तो सबसे पहले अपना बचाव करने की

कोशिश करता है. मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत बटोर कर कहा, “जो तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं है. मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया ... मेरा मतलब है कि ... वहीदा ने खुद अपने आप को मेरे हवाले कर दिया.”

“वाकई, तुम्हारे जैसे खूबसूरत शहज़ादे को देख कर भला कोई औरत अपने आप को रोक सकती है?” युसूफ ने व्यंग्य से कहा. “वहीदा ने जबरदस्ती तुम्हारा हाथ अपने सीने पर रख दिया होगा. उसने जबरदस्ती अपने होंठ तुम्हारे होंठों पर रख

दिए होंगे. शायद तुम यह भी कहोगे कि उसने तुम्हारे साथ बलात्कार किया था! क्यों?”

युसूफ ने मुझे बिलकुल बेजुबान कर दिया था. मैं जानता था कि वहीदा ने जो किया और मुझे करने दिया, उसका मेरी शक्ल-सूरत से कोई वास्ता नहीं था. मेरे ख़याल में उसका वास्ता सिर्फ मेरे दिए हुए क़र्ज़ से था पर अब तो मेरा खयाल गलत

साबित हो चुका था. मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस मुसीबत से कैसे पार पाऊं. फिर भी मैंने कोशिश की, “मेरा यकीन करो, मैं वहीदा का फायदा नहीं उठाना चाहता था. उसने खुद ही ...”

युसूफ ने मेरी बात काट कर कहा, “ठीक है, मेरे सच्चे दोस्त. हम ये रिकॉर्डिंग तुम्हारी प्यारी बेग़म को दिखा देते हैं और फैसला उन्ही पर छोड़ देते हैं. इसे देखने के बाद वो अपने आप को मेरे हवाले कर दें तो तुम्हे कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए.

और मैं तो उनकी पेशकश को ठुकराने से रहा!”

उसके अल्फ़ाज़ मेरे दिल में खंज़र की तरह उतरे. मैंने चीख कर कहा, “नहीं!!! तुम ऐसा नहीं ... मेरा मतलब है ...” मैं आगे नहीं बोल पाया. मेरे लिए यह कल्पना करना ही दर्दनाक था कि मेरी बेग़म अपने आप को इस इंसान के हवाले कर

देगी. ... लेकिन ये उन्होंने रिकॉर्डिंग देख ली तो वो क्या करेगी, यह खयाल भी बेहद खौफनाक था.

अब युसूफ भी खामोश था और मैं भी. मेरी नज़रें झुकी हुई थीं. मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो गया था. मुझे किसी भी तरह युसूफ को यह रिकॉर्डिंग अपनी बेग़म दिखाने से रोकना था पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे रोकूं!

आखिर युसूफ ने सन्नाटा तोड़ा. वो बोला, “एक रास्ता है. हम इस रिकॉर्डिंग और एग्रीमेंट की अदला-बदली कर सकते हैं. तुम रिकॉर्डिंग को मिटा देना और मैं एग्रीमेंट को फाड़ दूंगा. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.”

मैं बेइंतिहा खौफ और बेबसी के आलम में था. युसूफ के अल्फ़ाज़ में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखी. उसकी तजबीज मानने के अलावा मुझे और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. मैंने हथियार डालते हुए कहा, “इसकी कोई और कॉपी तो नहीं है?”

“एक कॉपी मेरे कम्प्यूटर में है,” युसूफ ने जवाब दिया. “लेकिन मैं घर पहुँचते ही उसे मिटा दूंगा. तुम्हे मेरे पर भरोसा करना होगा.”

युसूफ पर भरोसा करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैंने एग्रीमेंट उसे दे दिया. उसने उसे अपनी जेब में रखा और पैन ड्राइव मुझे दे दी.

हम चुपचाप ड्राइंग रूम में वापस लौटे. हमारी बीवियां वहां पहले से ही मौजूद थीं, चाय के साथ. अगले दस मिनट मेरे लिए बहुत बोझिल रहे. चाय के दौरान युसूफ, वहीदा और मेरी बेग़म के बीच कुछ आम किस्म की बातें होती रहीं पर मैं न तो

कुछ बोला और न ही उनकी कोई बात मेरे जेहन तक पहुंची. चाय ख़त्म होने के बाद जब युसूफ और वहीदा रुखसत हुए, मैं स्टडी रूम में वापस आया. युसूफ और वहीदा स्टडी रूम की खिड़की के पास से गुजर रहे थे. युसूफ कुछ बोलता हुआ जा रहा

था. उसके कुछ अल्फ़ाज़ मेरे कान में पड़े, “... कैसे नहीं फंसता हमारे जाल में?”

यह सुन कर मैं दंग रह गया. तो यह उनका जाल था? मैं समझ रहा था कि जाल मेरा है और वहीदा उसमें फंस रही है! पर असली जाल युसूफ और वहीदा ने बिछाया था ... और मैं बेवक़ूफ़ की तरह उसमे फंस गया! वहीदा को एक बार चोदने की

कीमत दस लाख रुपये? होगा कोई मेरे जैसा बेवक़ूफ़!!!

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