Chodan Kahani जवानी की तपिश - Page 5 - SexBaba
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Chodan Kahani जवानी की तपिश

सारा अभी तक अपनी नजरें नीचे झुकाए खड़ी थी, उसने कोई जवाब नहीं दिया मगर खामोशी से बस दो कदम आगे बढ़कर बेड की साइड से लगकर खड़ी हो गई। मैंने थोड़ा आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ पकड़ते ही मुझे महसूस हुआ कि वो धीरे-धीरे काँप रही है। मेरे हाथ पकड़ते ही सारा ने एक लम्हे के लिए अपनी नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा। मैं अब भी उसके चेहरे पर नजरें गाड़े उसको मुश्कुराकर देख रहा था। उसने मुझे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए पाकर जल्दी से अपनी नजरें नीची कर ली।

मैंने उसे कहा कुछ नहीं बस हल्के से उसके हाथ को अपनी तरफ खींचकर उसे बेड के साइड पर अपने पास बिठा लिया। वो भी जैसे मेरे लण्ड के ट्रांस में आई हुई मुझे महसूस हुई वो फौरन ही बेड की साइड पर बैठ गई।

मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा-“सारा यह तुम क्या कर रही थी?”

मेरी बात सुनकर उसने जल्दी से अपने दूसरे हाथ से अपना चेहरा छुपा लिया, और कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने एक बार फ़िर उससे पूछा-“सारा तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया। तुम यह क्या कर रही थी?” इस बार मैंने अपने लहजे में थोड़ी सी सख्ती पैदा की और अपने चेहरे पर आने वाली मुश्कुराहट को भी बड़ी मुश्किल से छुपाया।

मेरे लहजे की सख्ती को महसूस करते हुए। सारा ने अपने चेहरे से हाथ हटा लिया और मेरी तरफ देखा तो इस बार मेरे चेहरे पर संजीदगी देखकर उसने जल्दी से अपनी नजरें झुका ली। और धीरे से हकलाते हुए जवाब दिया-“छोटे… छोटे साईं वो…। वो आपका यह… बहुत… बहुत बड़ा है तो… तो मैं देख… देखकर हैरान हो गई थी… इस लिए…”

सारा की बात सुनकर मैं थोड़ा हैरान भी हुआ और समझ गया कि लण्ड सारा के लिए कोई नई चीज नहीं है।

सारा शायद इसकी मौजूदगी और इश्तेमाल से वाकिफ है। इसीलिए तो उसे मेरे बड़े लण्ड ने अपने होश-ओ-हवस गवाँने पर मजबूर कर दिया था। मैंने सारा की बात के जवाब में उससे कहा-“क्यों, क्या तुमने पहले कभी इतना बड़ा नहीं देखा, जो मेरा देखकर तुम इतनी हैरान हो गई हो?”

मेरी बात सुनकर उसने सिर्फ़ ना में गर्दन हिलाई। मगर जबान से कोई जवाब ना दिया।

“ह्म् म्म्म…” की एक आवाज मेरे मुँह से निकली और मैं कुछ सोचने लगा। फ़िर कुछ सोचते हुए मैंने सारा से पूछा-“इसका मतलब कि तुमने पहले भी किसी का देखा है? क्या तुम मुझे बताओगी कि तुमने किसका देखा है?”

मेरी बात सुनकर उसके गाल लाल हो गये, और उसने अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देखकर कहा-“छोटे साईं, हम दासियों को ऐसी बातें बताने की इजाजत नहीं होती। यह ना पूछें…”

मैं उसकी बात, उसकी नजरें और उसका लहजा सुनकर हैरान रह गया। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। लेकिन मैं इस कैफ़ियत को समझ नहीं पाया, और दिल की धड़कनों पर काबू पाते हुए उसको कहा-“क्यों, किसकी इजाजत नहीं है तुम्हें? मुझे बताओ…”

मेरी बात सुनकर सारा एक झटके से बेड पर से उठ गई, और बोली-“अभी तो हवेली में आए हैं आप। यहाँ रहेंगे तो आपको सब पता चल ही जाएगा। फ़िलहाल तो आप जल्दी से तैयार हो जाइए। बड़ी बीबी साईं आपका इंतजार कर रही हैं…”

सारा की यह बात सुनकर मेरे तो चारों तबाक रोशन हो गये। मैं जो यह सोच रहा था, सारा ने ही पहला कदम उठा लिया है, तो अभी हवेली में जाने से पहले ही सारा को चोदकर संतुष्ट कर लेता हूँ। वो सारे खलायत सारा की बात सुनकर मेरे दिमाग़ से भक्क करके उड़ गये। सारा के इस जवाब ने हवेली की पुर्सररियत मेरे दिल में और बढ़ा दी थी। अब मेरा फ़ितरती जासूस मुझे चैन नहीं लेने देगा, जब तक कि मैं अपने सारे सवालों का जवाब ना ढूँढ लूँ।
 
सारा की यह बात सुनकर मेरे तो चारों तबाक रोशन हो गये। मैं जो यह सोच रहा था, सारा ने ही पहला कदम उठा लिया है, तो अभी हवेली में जाने से पहले ही सारा को चोदकर संतुष्ट कर लेता हूँ। वो सारे खलायत सारा की बात सुनकर मेरे दिमाग़ से भक्क करके उड़ गये। सारा के इस जवाब ने हवेली की पुर्सररियत मेरे दिल में और बढ़ा दी थी। अब मेरा फ़ितरती जासूस मुझे चैन नहीं लेने देगा, जब तक कि मैं अपने सारे सवालों का जवाब ना ढूँढ लूँ।

तो फ़िलहाल मैं तमाम चीजों को अपने जेहन से निकालते हुए फौरन बेड से उठ गया और वाशरूम में घुस गया। और शावर खोलकर उसके नीचे खड़ा हो गया। कुछ देर वो सारे सवाल मेरे जेहन को डिस्टर्ब करते रहे। मगर गरम पानी की फुहार मुझे उन तमाम सवालों को अपने जेहन से झटकने में मदद दे रही थी। मैं अपने जेहन को इन तमाम सवालों से खाली करना चाहता था, और आज मैं खुले और फ्रेश दिमाग़ के साथ हवेली के जनानखाने में जाना चाहता था। ताकी मैं अपने उन तमाम रिश्तों को खुली आँखों और खुले जेहन के साथ देख और परख सकूँ, जिनसे मैं आज तक दूर रहा था।

मैं देखना और समझना चाहता था। क्या वो रिश्ते वाकई मुझसे वो मुहब्बत और तड़प रखते हैं, जिनका वो किसी ना किसी रवैये से मेरे साथ इजहार कर चुके थे। कुछ देर इसी तरह शावर के नीचे खड़े होने के बाद मैं फ्रेश होकर तौलिया बाँधकर बाहर रूम में आ गया था। अब मुझे सारा से वो परदा महसूस ना हुआ जो चन्द दिन पहले था। इसीलिए मैं सारा से वाशरूम में ही कपड़े माँगने के बजाए बाहर निकल आया था।

सारा मेरे कपड़े निकालकर बेड पर रखे मेरे वाशरूम से कपड़े माँगने का इंतजार कर रही थी कि मुझे अचानक से वाशरूम से बाहर आते देखकर चौंक गई। लेकिन जब उसने मेरी तरफ देखा तो वो अपनी नजरें मुझे पर से चाहकर भी हटा ना सकी।

और यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था। ऐसे तजुर्बे से मैं कितनी ही बार गुजर चुका था। मेरा गोरा-चिट्टा बालों से पाक कसरती बदन, मेरे लंबे कद के साथ पूरी तरह से मैच खाता था। चौड़ा सीना, बाजुओ के मिल, रोजाना की कसरती, और कराटे की प्रेक्टिस ने मेरे जिश्म पर बहुत वाजिए तब्दीलियाँ असर अंदाज की थी। मैं 17 साल की उमर में ही अपनी उमर के नौजवानों से ज़्यादा बड़ा दिखता था। मेरी हल्की-हल्की शेव और मूछें भी निकल आई थीं, जिसके पूरे काले बाल मेरे गोरे चेहरे पर बहुत जचते थे।

मैंने मुश्कुराती हुई नजरों से सारा की तरफ देखा तो उसने झट से अपनी नजरें नीची कर ली। मैंने उसपर से नजरें हटाते हुए बेड की तरफ देखा तो उसने बेड पर मेरा सफेद काटन सूट और उसके साथ एक आजरक और सिंधी टोपी भी रखी हुई थी। यह हमारे सिंध के पूरे कैजुअल लिबास था। मैंने तौलिए के ऊपर से ही सलवार पहनी और फ़िर तौलिया खींचकर निकाल दिया। इस दौरान मुझे महसूस हो रहा था कि सारा चोर नजरों से बार-बार मुझे ही देख रही है।

मैंने उसके ऊपर ध्यान ना देते हुए कपड़े पहन लिए। फ़िर सिंधी टोपी उठाकर अपने सिर पर रखी, और आजरक को फोल्ड करके अपने गले में डाल लिया। अब मुझे बहुत सख़्त भूख महसूस होने लगी थी। क्योंकी मैंने कल रात का भी खाना नहीं खाया था।

मैंने सारा की तरफ देखते हुए कहा-“आज तुम मेरा नाश्ता नहीं लाई…”

सारा-“आज आपका नाश्ता जनानखाने में है। वो आपको वहीं मिलेगा…”

मैं सारा की बात सुनकर मुश्कुरा दिया। एक नजर साइड पर लगी ड्रेसिंग टेबल के आदमकद आईने में खुद को देखा तो एक लम्हे के लिए मुझे खुद पर ही प्यार आ गया। मैं इन कपड़ों में बहुत अच्छा लग रहा था। सफेद काटन पर रेड रंग की सिंधी टोपी जिसमें मुख्तलिफ कलर्स के नगीने लगे हुए चमक पैदा कर रहे थे। और उसी टोपी से मैच खाती हुई अपने रिवाती रंग से बनी आजरक मेरी शख्सियत को और उजागर कर रही थी।
मेरे चेहरे के भाव देखते हुए सारा ने मुश्कुराकर कहा-“चलिए छोटे साईं। कहीं आईने में खुद को ही ना नजर लगा बैठें…”
सारा की बात सुनकर मैं थोड़ा सा झेंप गया, और चेहरे पर खिसियानी सी मुश्कुराहट लाते हुए जवाब दिया-“मुझे तो तुम्हारा डर था कि कहीं तुम मुझे देखते-देखते होश-ओ- हवास गवाँ बैठी तो मुझे जनानखाने कौन ले जाएगा?”

मेरे जवाबी हमले से सारा ने खुद को संभालते हुए जल्दी से कहा-“इसमें कोई शक नहीं कि आप बहुत खूबसूरत लग रहे हो, और आज तो वाकई मुझे आप झटके पे झटके दे रहे हो। मैं किसी भी वक्त अपने होश गवाँ सकती हूँ…”
 
मेरे जवाबी हमले से सारा ने खुद को संभालते हुए जल्दी से कहा-“इसमें कोई शक नहीं कि आप बहुत खूबसूरत लग रहे हो, और आज तो वाकई मुझे आप झटके पे झटके दे रहे हो। मैं किसी भी वक्त अपने होश गवाँ सकती हूँ…”

उसकी बात सुनकर मैं दिल ही दिल में थोड़ा सा खुश हुआ कि चलो हवेली में आज नहीं तो कल एक इबतदा तो हो ही जाएगी। क्योंकी अब मुझे नहीं लगता था कि सारा के लिए मुझे कोई ख़ास मेहनत करनी पड़ेगी। फ़िर उसकी बात के जवाब देते हुए मैंने कहा-“तो फ़िर जल्दी चलो। अगर तुमने यहाँ अपने होश खो दिए तो फ़िर शायद मैं भी अब खुद पर काबू ना रख सकूँ…”

मेरी बात समझकर सारा के गाल लाल हो गये थे और उसने अपनी नजरें झुका ली थी। फ़िर जल्दी से उसने बाहर की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए, और मैं भी उसके पीछे-पीछे रूम से बाहर निकल आया। सारा मुझसे कुछ ही कदम आगे चल रही थी। आज उसकी चाल में अजीब लहक थी। वो इस तरह इठला-इठला के चल रही थी, जैसे वो हवाओं में उड़ रही हो। और उसके इस तरह चलते हुए जब उसकी गाण्ड के दो हिस्से बारी-बारी हिलते तो मेरे दिल की बेचैनी बढ़ जाती थी।

एक लम्हे के लिए तो मुझे खयाल आया कि मैं सारा को यहाँ से पकड़कर वापिस अपने कमरे में ले जाऊँ और उसकी खूबसूरती का ऐसा खिराज अदा करूँ कि उसको भी पता चले कि जब खूबसूरती का खिराज अदा किया जाता है तो… तो जो फटीज होता है वो अपने ही मफ्तूह को किराज अदा करता है। वो जीत कर भी उसके जिश्म की सल्तनत पर अपना सब कुछ हार चुका होता है।

लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से दिल और लण्ड को समझाया कि थोड़ा सबर। पहले इस हवेली से पूरी तरह वाकिफ तो हो जाओ, फ़िर यह भी तुमसे दूर नहीं। बकौल सब लोगों के अब इस हवेली और यहाँ की हर चीज का मैं ही तो मालिक हूँ, तो फ़िर यहाँ की कोई चीज मुझसे कैसे दूर रह सकती थी? हम लोग सीढ़ियाँ उतरकर जनानखाने के दरवाजे पर पहुँच चुके थे।

अब मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। यह वो दरवाजा था जिसके पीछे मेरे वो तमाम रिश्ते कैद थे, जिनसे मैं आज तक वाकिफ नहीं था। मेरे खून के रिश्ते, मेरी दादी, मेरी फूफो, और मेरी वो बहनें, जो थी तो सौतेली लेकिन मेरे ही बाप का खून थी, मेरा अपना खून थी। मेरे बाप का खून। हमारी रगों में एक ही बाप का खून था, और बहनों का वो रिश्ता था, जिसके लिए मैं बचपन से ही तड़पा था। उनका खत पढ़कर ही मैं यहाँ रुकने पर मजबूर हुआ था, और अब मैने अपनी उन छोटी बहनों से दूर नहीं रह सकता।

सारा ने जनानखाने का मुख्य दरवाजा खोला और अंदर दाखिल होकर मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया तो मैं भी उसके पीछे-पीछे जनानखाने के दरवाजे में दाखिल हो गया। यह एक लंबी राहदरी थी जो बहुत आगे तक चली गई थी। राहदरी के दोनों तरफ दीवार में बड़े-बड़े शीशे लगे हुए थे, जिससे बाहर का मंज़र नजर आता था। इन शीशों के दूसरी तरफ दोनों साइड पर खूबसूरत लान बना हुआ था जिसमें मुख्तलिफ इक्साम के फूल और और दरख़्त लगे हुए थे। यह पूरा लान जादील और सुंदर सुंदर फूलों से भरा हुआ था।
 
सारा मेरे आगे-आगे राहदरी के दूसरे सिरे की तरफ बने एक और दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी। उस शानदार दरवाजे पर लकड़ी का बहुत ही आला काम बना हुआ था। उसपर उभरे हुए नक़्शो निगार करीगर की कारीगरी का मुँह बोलता सबूत थे। मैं सारा के पीछे-पीछे इन तमाम चीजों को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था। सारा ने आगे बढ़कर उस दरवाजे को खोला और खुद अंदर ना दाखिल होते हुए मुझे पहले अंदर दाखिल होने का इशारा किया। मेरे दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी। दिलो दिमाग़ पर जज़्बात हावी हो चुके थे। शायद यही वो आखिरी दीवार थी जो मेरे अनमोल रिश्तों के बीच में खड़ी थी। और अब मैं भी जल्द से जल्द इस दीवार को तोड़कर उन तक पहुँच जाना चाहता था।

मैंने धड़कते दिल के साथ उस दरवाजे की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए। मेरे उस दरवाजे से अंदर दाखिल होते ही मैं एक बड़े से हाल में पहुँच गया था। मेरी नजर सबसे पहले ही हाल के बीचोबीच लगे एक खूबसूरत से फ़ानूस पर पड़ी। जो हाल की छत से लटका यहाँ के मकीनो के अर्मट की गवाही दे रहा था। चारों तरफ की दीवारें बड़ी-बड़ी खूबसूरत तसवीरोज़ से सजी हुई थीं। अभी मैं उस हाल की ताजीन-ओ-आरैश को सही से देख भी नहीं पाया था कि मेरे ऊपर फूलों की पत्तियाँ निछावर होने लगीं।


पहले तो मैं इस अचानक इफ्तियाद से चौंक गया। मगर अपने ऊपर फूलों की बारिश होते देखकर हैरत और खुशी के मिले जुले भाव के साथ नजर दौड़ाई तो कुछ खूबसूरत लड़कियाँ मुनासिब से लिबास में अपने हाथों में फूलो से भरे थाल उठाए मुझ पर फूल बरसा रही थी। और सिंधी जबान में खुश-आमदीद का सेहरा (कुलत्रूल घाना) गाने लगी।

मैं अभी उनको देख ही रहा था कि एक जोरदार आवाज ने मुझे अपनी तरफ देखने पर मुतवीजा कर दिया-“भाई…”

भाई का लफ्र्ज सुनकर ही मेरे दिल की धड़कन और बढ़ गई और मैंने झट से सामने की तरफ देखा तो मुझे सामने कुछ औरतें खड़ी नजर आई। मैं उन्हें अभी सही से देख भी नहीं पाया था की दो नौजवान और खूबसूरत ऐसी की लगता था की आसमान से उतरी कोई परिया हों, मेरी तरफ भागने लगी। मैं अभी उनको पूरी तरह से देख भी नहीं पाया था कि वो दोनों भागती हुई आकर मेरे सीने से लग गई।

वो दोनों भी रगो-ओ-रूप की तरह कड़ो कामत मैं भी आम लड़कियों से कुछ हटकर ही थी। वो दोनों बड़ी जोर से आकर मेरे सीने से लगी थी। मैं एक लम्हे के लिए लड़खड़ा गया था। मगर मैंने अपने दोनों बाजू पहले ही खोलकर उनको भी थाम लिया और खुद को लड़खड़ाने से बचा लिया। वो मुसलसल रोए जा रही थी। उन दोनों ने अपना सिर मेरे चौड़े सीने में छुपाया हुआ था। मुझे उन दोनों के मिले जुले जो अल्फाज समझ में आ रहे थे, वो मैं यहाँ लिख रहा हूँ। मगर उस वक्त मैं अंदाज ना लगा पाया था कि कौन क्या कह रहा है।

“भाई, बाबा हमें छोड़ गये। भाई हम यतीम हो गये। भाई अब हमारा कौन है? आप भी हमसे बहुत दूर थे। हम डरे हुए थे कि आप हमारे पास आएँगे भी कि नहीं? भाई बाबा हमें छोड़ गये। भाई आप हमें ना छोड़ना। भाई इस दुनियाँ में हमारा और कोई नहीं हैं। इन बंद दीवारों में, इस हवेली की ऊँची-ऊँची दीवारों की कैद में हम आपके बगैर घुट-घुट कर मर जायेंगे। भाई हम मर जाएँगे, आप हमें छोड़कर मत जाना…”
 
“भाई, बाबा हमें छोड़ गये। भाई हम यतीम हो गये। भाई अब हमारा कौन है? आप भी हमसे बहुत दूर थे। हम डरे हुए थे कि आप हमारे पास आएँगे भी कि नहीं? भाई बाबा हमें छोड़ गये। भाई आप हमें ना छोड़ना। भाई इस दुनियाँ में हमारा और कोई नहीं हैं। इन बंद दीवारों में, इस हवेली की ऊँची-ऊँची दीवारों की कैद में हम आपके बगैर घुट-घुट कर मर जायेंगे। भाई हम मर जाएँगे, आप हमें छोड़कर मत जाना…”


उनकी बातें सुनकर मैं खुद पर से कंट्रोल खो बैठा था। जज़्बात मुझपर पूरी तरह हावी हो चुके थे। बाबा की मुहब्बत उनकी शफकत मुझे याद आ रही थी। मैंने अपनी बहनों को अपने साथ भींच लिया, और खुद भी रोने लगा। हवेली के इस बड़े हाल में हम भाई बहनों के रोने की आवाजों के साथ दूसरे लोगों के रोने की आवाजें भी शामिल हो गई थीं। हमारी तड़प, हमारा दुख, और हमारा मिलन शायद किसी के भी जज़्बात को रोक नहीं पाया था। अब जो थोड़ी देर पहले यहाँ सहरो की गूँज थी उसकी जगह आहों ने ले ली थी। मेरी बहनों की आवाज में बहुत दर्द था।

मैंने गैर इरादी तौर पर अपनी बहनों के सिर पर चूमा और बोलने लगा-“मैं हूँ ना। भाई की जान मैं हूँ, मैं तुम्हें बाबा का प्यार दूँगा। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाउन्गा। तुम मेरी जान हो और तुम दोनों के लिए ही तो अब मैं जिंदा हूँ और इस हवेली में आया हूँ। हवेली की दौलत और जागीर मुझे नहीं चाहिए। मेरी जागीर और दौलत तो बस तुम हो मेरी बहनों तुम हो। मैं तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा…”

हम तीनों भाई बहन एक दूसरे में चिपके हुए रो रहे थे कि मुझे बड़ी फूफो की आवाज सुनाई दी जो कब हमारे करीब आई मुझे पता ही नहीं चला। उनकी आँखों में भी आँसू जारी थे। वो हमारी एक साइड पर खड़े हम लोगों की पीठ और सिर पर बड़ी शफकत से हाथ फेर रही थी, और हमें तसल्ली दे रही थी-“बस करो बेटा। अब रोना बंद करो। देखो तुम्हारा भाई पहली बार हवेली में आया है। तुम्हारे पास आया है तो क्या तुम उसे यू ही रूलाती रहोगी?”

फूफो की बात सुनकर दोनों ने मेरे सीने पर से अपना सिर हटाकर गर्दन उठाकर मुझे देखा, और बारी-बारी दोनों अपने मासूम हाथों से मेरे आँसू पोंछने लगी। और उनमें से एक ने जो दूसरी से थोड़ी बड़ी लग रही थी, उसने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थामकर थोड़ा झुकाया और खुद अपने पंजों पर थोड़ा ऊपर उठते हुए मेरे माथे को चूम लिया। इस चूमने में जो राहत थी, मैं उसको यहाँ अल्फाज में बयान नहीं कर सकता। एक सकून की लहर थी। मेरा पूरा बदन उस सकून और मुहब्बत की लहर से भर गया।

फ़िर उसने कहा-“हमारा भाई तो शेर है। वो कभी नहीं रोएगा। बस बहनों की मुहब्बत में थोड़ा कमजोर हो गया था…” यह कहकर वो रोती हुई आँखों से हँसने लगी। इस दौरान मेरी दूसरी बहन ने भी पहली की तरह मेरा माथा चूमा, और बड़ी की बात सुनकर वो भी मुश्कुराने लगी।
 
फ़िर उसने कहा-“हमारा भाई तो शेर है। वो कभी नहीं रोएगा। बस बहनों की मुहब्बत में थोड़ा कमजोर हो गया था…” यह कहकर वो रोती हुई आँखों से हँसने लगी। इस दौरान मेरी दूसरी बहन ने भी पहली की तरह मेरा माथा चूमा, और बड़ी की बात सुनकर वो भी मुश्कुराने लगी।

मैंने भी बारी-बारी दोनों के आँसू पोंछे और कहा-“तुम्हारा भाई वाकई शेर है। दुनियाँ की कोई भी ताकत उसे रुला नहीं सकेगी। लेकिन तुम्हारी मुहब्बत उसकी अब बहुत बड़ी कमजोरी बन गई है। तुम अगर कभी रोई तो यह भाई भी रो देगा…”

मेरी बात सुनकर वो दोनों एक बार फ़िर मेरे गले लग गई। इसी दौरान एक दूसरी खूबसूरत सी खातून आगे बढ़ आई, उनके चलने और बात करने में एक अजीब ही वेकार और दबदबा था, उनकी आँखों से भी आँसू की झड़ी लगी हुई थी। उन्होंने करीब आकर मेरी बहनों की पीठ पर हाथ रखा और और जबरदस्ती मुश्कुराते हुए कहा-“अच्छा अब अगर बहनों का दिल भाई से मिलकर भर गया हो तो, हम भी अपने भाई की निशानी से मिल लें?”

तब मुझे अंदाज़ा हुआ कि वो खातून शायद मेरी छोटी फूफो हैं। उनकी बात सुनकर दोनों बहनों ने मुड़कर उन्हें देखा और छोटी वाली ने कहा-“छोटी फूफो साईं। हम नहीं छोड़ेंगे अपने भाई को। क्या इतनी जल्दी हमारा दिल अपने भाई से भर जाएगा?”

उसकी बात सुनकर सबके चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई।

मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा-“तुम्हारा भाई अब यहाँ है। लेकिन अब बड़ों से ना मिलकर अपने भाई को नाफरमान तो ना बनाओ…”

मेरी बात सुनकर बड़ी फूफो के मुँह से फौरन निकला-“मैं सदके मेरी जान। हमारा खून नाफरमान हो ही नहीं सकता…” यह कहकर उन्होंने आगे बढ़कर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और मेरे माथे को चूमते हुए, मुझे अपने गले से लगा लिया।

कुछ देर तक तो उन्होंने मुझे अपने गले से लगाए रखा, और फ़िर दूर होते हुए बोली-“मेरी जान मैं हूँ तुम्हारी बड़ी फूफो, तुम्हारे बाबा की बड़ी बहन…” उन्होंने यह तारूफ करवाकर मुझे जता दिया था कि मैं गलती से भी उनसे हुई मेरी पहली मुलाकात का इजहार ना करूँ और ना ही उनसे किसी शहनसाइ महसूस कारवाऊूँ।


मैंने एकदम से झुक कर बड़ी फूफो के पैर छू लिए।
जिस पर उन्होंने जल्दी ही पीछे हाथ करके मुझे दोनों बाजू से पकड़कर ऊपर उठा दिया और कहा-“नहीं मेरे बच्चे, तुम्हारी जगह तो हमारे दिल में है…”

मैंने मुश्कुराते हुए उन्हें देखकर कहा-“लेकिन बड़ी फूफो। मैं बड़ों का सम्मान और खानदानी रिवायत से भी तो रोगाडानी नहीं कर सकता…”

मेरी बात सुनकर उन्होंने एक बार फ़िर मेरे चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए, मेरे माथे को चूम लिया, और दो आँसू के कतरे उनकी आँखों से बह गये। मैंने अपने हाथों से उनके आँसू सॉफ करते हुए गर्दन हिलाकर उनको रोने से मना किया। इसी दौरान किसी ने पीछे से आकर मेरी पीठ को थपथपाया।

मैंने गर्दन घुमाकर देखा तो छोटी फूफो मेरे पीछे खड़ी मुश्कुरा रही थी। उनकी भी आँखें आँसुओं से भरी थीं, मगर उनके होंठों पर मुश्कुराहट थी। उन्होंने भी मेरे चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए मेरे माथे पर चूमा और कहा-“बिल्कुल हमारे बाबा का दूसरा रूप हो तुम, वही कद, वही आँखें, वैसा ही नैन नक्श। ऐसा लगता है कि बाबा… पीर सैयद बादशाह अली शाह फ़िर से हमारे सामने आ गये हों…”
 
मैंने गर्दन घुमाकर देखा तो छोटी फूफो मेरे पीछे खड़ी मुश्कुरा रही थी। उनकी भी आँखें आँसुओं से भरी थीं, मगर उनके होंठों पर मुश्कुराहट थी। उन्होंने भी मेरे चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए मेरे माथे पर चूमा और कहा-“बिल्कुल हमारे बाबा का दूसरा रूप हो तुम, वही कद, वही आँखें, वैसा ही नैन नक्श। ऐसा लगता है कि बाबा… पीर सैयद बादशाह अली शाह फ़िर से हमारे सामने आ गये हों…”

मैं हैरत से उन्हें देखा रहा था। वो बहुत ही खूबसूरत खातून थी। एक भरपूर खातून। उनके बातें करने के अंदाज में वेकार था। उनके देखने का अंदाज, किसी की भी रगों में खून की तेजी बढ़ा सकता था। वो मुझे बहुत ही प्यार से देखे जा रही थी। मैंने आगे बढ़कर उनको अपने सीने से लगा लिया, उनके बदन से शहर अंगेज खुश्बू उठ रही थी। जिसने मुझे चन्द लम्हों तक उनसे दूर होने ना दिया। मैं उनकी शख्सियत के शहर में जैसे खो सा गया। फ़िर दिल पर बहुत जबर करते हुए मैं उनसे थोड़ा अलग हुआ और फ़िर उनके चेहरे को भी हाथों में भरकर मैंने उनका माथा चूम लिया।


वो खामोशी से मुझे बस देखे जा रही थी। उनके लबों पर एक खूबसूरत मुश्कुराहट तैर रही थी जो कि शायद उनकी शख्सियत का ख़ास थी। फ़िर उन्होंने मुझे एक बाजू से पकड़ा और बीच हाल की तरफ ले जाने लगी। मैं उनकी शख्सियत के शहर में गुम उनके साथ आगे बढ़ने लगा। हाल के बीचोबीच उन्होंने मुझे लाकर खड़ा कर दिया, और फ़िर सामने जाती हुई एक बड़ी सी सीढ़ी के उपरी हिस्से की तरफ इशारा किया।

तब मैंने उनकी इशारे की तरफ देखा। सामने से ही 8 फीट चौड़ी सफेद मार्बल से मजीन सीढ़ियाँ 5 फीट की ऊँचाई तक जा रही थीं। फ़िर वहाँ से दायें और बायें को दो और सीढ़ियाँ ऊपर की मंज़िल की तरफ जाती दिखाई दी।

लेकिन 5 फीट की ऊँचाई तक बनी सीढ़ियों के पहले स्टॉप पर सामने की तरफ एक बहुत बड़ी तस्वीर एक खूबसूरत फ्रेम में लगी इस हवेली की शानो शौकत में मजीद इजाफा कर रही थी। चन्द लम्हे तो मैं उस तस्वीर को देखता ही रहा। फ़िर मैं हैरत के समुंदर में डूब गया।

वो तो मेरी ही तस्वीर थी। लेकिन तस्वीर में मेरे जैसे दिखाई देने वाले शख्स के चहेरे पर घनी सफेद दाढ़ी और बगलों से बल खाकर ऊपर को उठी हुई बड़ी-बड़ी सफेद मूछें थी। उन्होंने सिर पर एक बहुत बड़ा पटका। (बाजस्क के कपड़े एक लंबे हिस्से से सिर पर बाँधा जाता है जैसा अक्सर बलोच लोगों को आपने देखा होगा) बँधा हुआ है। उन्होंने अपने सहानो पर आजरक लिए हुए है, और एक बहुत बड़ी शानदार कुसी पर शाहाना अंदाज में बैठे हुए हैं। यह तस्वीर हाथ से पेंट की हुई लगती थी। मगर जिस पेंटर ने भी इसे पेंट किया था उसने अपनी पूरी कला इस तस्वीर को बनाने में लगा दी थी।
 
चन्द लम्हों के लिए तो ऐसा लगता था कि वो तस्वीर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से यहाँ रहने वाले हर एक इंसान को घूर रही हैं। मैं अभी तक उस तस्वीर के तसूर से ही बाहर नहीं निकल पाया था कि छोटी फूफो की आवाज ने मुझे चौंका दिया।

छोटी फूफो ने मेरे चेहरे पर हैरत से देखते हुए कहा-“यह हमारे बाबा और तुम्हारे दादा की तस्वीर है। अब बताओ। क्या तुम बिल्कुल इन जैसे नहीं दिखते हो?”

मैं अभी तक मुँह फाड़े उनकी तस्वीर देख रहा था। घनी दाढ़ी और बड़ी-बड़ी मूँछो में से उनके लब तो वाजिए नजर नहीं आ रहे थे पर उनकी आँखों के दोनों साइड से खिंचाओ और चेहरे को गौर से देखने पर वाजिए अंदाज में महसूस होता था कि उनके लबों पर एक पुरवेकार मुश्कुराहट फैली हुई है, और वो मुझे ही देख रहे हैं। मैं कुछ देर तक उनकी आँखों में देखता रहा। मगर मैं उनकी आँखों में ज़्यादा देर तक देख नहीं पाया।

उसी वक्त बड़ी फूफो ने मेरे बराबर में आकर कहा-“चलो बेटा, अपनी दादी से मिल लो…”

मैंने उनकी बात सुनकर सवालिया नजरों से उनकी तरफ देखा तो, उन्होंने नजरों से दायें साइड की तरफ जाती राहदरी की तरफ इशारा करते हुए कहा-“उनका रूम इस तरफ है…”

एक बार फ़िर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई थी। मैं उस शख्सियत से मिलने जा रहा था, जिनके हुकुम से सरतबी तो मेरे बाबा भी कभी नहीं कर पाए थे। उन्होंने मेरी माँ से शादी करके अपनी ज़िद तो पूरी की थी,

मगर उसके बदले मेरी माँ को इस हवेली में वो रुतबा वो कभी नहीं दिला पाए, जो उनका खवाब था। मेरी दादी इस हवेली की ‘बड़ी बीबी साईं’ मेरे दादा के बाद जिनके हुकुम के बगैर इस जागीर का एक पत्ता भी नहीं हिलता था, वो शख्सियत, जिनका दूध मेरे बाप के रगों में खून बनकर दौड़ता रहा और अब उनका खून मेरी रगों में दौड़ रहा था। वो रिश्ता, जिसकी हमेशा मैं नफरत से ही वाकिफ रहा। कभी उनकी मुहब्बत का भी मैंने ना सुना। जिनसे मैं भी आज तक शायद नफरत ही करता रहा।

लेकिन आज जिंदगी मुझे ऐसे मोड़ पर ले आई है। मैं तो अब उनसे इस बात का शिकवा भी नही कर सकता था कि दादी, मैं आपका वो पोता हूँ, जो बचपन से लेकर आज तक आपकी गोद के लिए तरसता रहा। दादी तो वो होती है, जो पोते के दुनियाँ में आते ही सुन से पहले उसे अपने सीने से लगाती है। लेकिन उन्होंने तो कभी मुझे अपने करीब भी नहीं बुलाया, न ही मुझे वो दादी का प्यार दिया।

मेरे कदम दादी के रूम की तरफ जाते-जाते रुक गये। मुझे मेरी माँ के वो आँसू अब भी याद थे, जो वो अक्सर तन्हाई में खुद को इस काबिल ना समझते हुए बहाती थी कि उसे और उसके बेटे को क्यों उस हवेली के काबिल नहीं समझा गया?

मुझे रुकते देखकर छोटी फूफो और बड़ी फूफो भी रुक गई। मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे, और मेरे कदम अब दादी के रूम की तरफ बढ़ने को तैयार नहीं थे।
 
समाप्त


मित्रो ये कहानी मुझे यहीं तक मिली थी अगर इससे आगे की कहानी किसी को पता हो तो मुझे बतावें
 
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