hotaks444
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अपडेट 11:
बच्चे का नाम समीर रखा गया ...साना और हरदयाल की जिंदगी में एक ख़ुशगवार हवा के झोंके की तरेह यह बच्चा था ...एक शीतल , ताज़ा और मस्ती भरी हवा का झोंका ..दोनों झूम उठे थे ..
और फिर उस दीन ..
अभी साना हॉस्पिटल में ही थी ... प्रसव का पाँचवा ही दिन था ..किसी ज़रूरी बिज़्नेस मीटिंग के सिलसिले में हरदयाल एक दिन पहले ही बॅंकाक गया हुआ था ....आज शाम की फ़्लाइट से उसे आना था ....एर पोर्ट से प्लेन में बोर्ड करने के पहले साना से काफ़ी अच्छी बातें हुई ....साना को क्या मालूम कि वो अपने दिल-अज़ीज़ से आखरी बार बात कर रही है...
प्लेन टेक ऑफ करते ही क्रॅश हो जाता है धमाके के साथ ....उसके टूकड़े टूकड़े हो जाते हैं ... और नीचे सागार की गहराइयों में डूब जाता है प्लेन के टूकड़े..और इसके साथ साना की जिंदगी के भी टूकड़े टूकड़े हो जातें हैं .... किसी की लाश तक नही मिली...कुछ भी बाकी नही रहा ...
उसकी जिंदगी में शीतल और ताज़ा हवा का झोंका एक भयानक तूफान में बदल चूका था ..साना की जिंदगी तहस नहस हो गयी ...
उसी पल साना को समीर से अब तक जितना प्यार था ..उतनी ही नफ़रत हो गयी...ना जाने क्यूँ उसे ऐसा लगा समीर का आना एक बहोत बड़ा अप शकून था..उसके आते ही उस ने अपनी सब से प्यारी चीज़ खो दी...
हॉस्पिटल से घर तो आ गयी साना ..पर यह साना अब पूरानी साना की सिर्फ़ परछाईं मात्र रह गयी ...असली साना शायद हरदयाल के साथ ही सागर की गहराइयों में दफ़न हो चूकी थी .... हमेशा हमेशा के लिए ...
पर जिंदगी की गाड़ी तो चलती ही रहती है ...साना की जिंदगी भी चलती गयी , पर अब इस में रफ़्तार , तेज़ी और मस्ती नही थी.उसकी जगेह हिचकॉलों , धक्कों और सूस्त रफ़्तार ने ले ली थी....
समीर की तरेफ से उसका ध्यान बिल्कुल ही हट गया था ..उस के लिए उसका होना यह ना होना बराबर था ....वो उसकी सूरत से नफ़रत करती ....
समीर म्र्स. डी'सूज़ा के ही हाथों और देख रेख में बड़ा होता गया ..म्र्स. डी' सूज़ा ने उसकी परवरिश में कोई भी कमी नही की अपनी तरेफ से ..वो उसके लिए मा से भी बढ़ कर थी ...
साना अपनी जिंदगी के हिचकॉलों और झटकों को शांत करने की नाकामयाब कोशिश में फिर से अपने आप को शराब और शबाब की पुरानी लत में डूबो देती है ..जहाँ समीर के लिए उसके पास कोई समय , लगाव यह जगेह नही थी ....
साना की अंधेरी जिंदगी में एक ही रोशनी थी ..वो था अभी भी उसका हरदयाल के लिए अटूट प्यार ....वो अपने आप को उसके प्यार की निशानी समझती ...अपने आप को हरदयाल की निशानी समझती ...उसे ना जाने क्यूँ ऐसा लगता कि हरदयाल शायद ..शायद सागार की गहराइयों से उछलता हुआ एक दिन ज़रूर बाहर आएगा और उसे अपनी बाहों में जाकड़ लेगा ..भर लेगा....
उसे अपने आप को संभालना पड़ेगा , अपने आप को उस दिन के लिए तैय्यार रखना होगा...इस सोच ने उसे अपनी शरीर को बिल्कुल फिट रखा , मन से तो साना बूझी रहती पर शरीर तरो-ताज़ा , फिट जैसी साना को हरदयाल ने जाने के पहले देखा था साना ने अपने बदन को बिल्कुल वैसा ही रखा ...नतीज़ा उसकी खूबसूरती , जवानी और सेक्स अपील अभी भी बरकरार थी ...
और दूसरी रोशनी की किरण थी उसका हरदयाल के बिज़्नेस से लगाव....हरदयाल की वापसी की कल्पना और सपनों में खोई ..वो इसे बर्बाद नही होने देना चाहती ..उस ने बड़े अच्छे से पूरा बिज़्नेस संभाल लिया था...
पर घर में अकेलापन उसे काटने को दौड़ता ... समीर से उसे कोई लगाव था नही ..इसी अकेलेपन को दूर करने की नाकाम कोशिश में साना ने शराब और शबाब का सहारा लिया ..क्लब और पार्टीस में ही उसकी शामें गुज़रती ..
समीर बड़ा हो रहा था ... अपनी मोम की ओर प्यार भरी नज़रों से देखता , पर उसे वहाँ प्यार की जगेह एक खाली खाली सा , बड़ा ठंडा और सूखा सा जवाब मिलता..उसका दिल टूट जाता ..पर फिर भी उसे अपनी मोम से अंदर ही अंदर लगाव , आकर्षण और एक खींचाओ सा महसूस होता ....वो उसके बाहों में आने को , उसके सीने से लगने को , उस के करीब जाने को ,उसकी गर्म और नर्म गोद में समा जाने को तड़प उठ ता ..
म्र्स. डी'सूज़ा ऐसे मौकों पर उसे समझाती " सॅम बेटा ..मोम को तंग मत करो..वो बहोत काम में बिज़ी रहती हैं ....थक जाती हैं ..सॅम ... आओ मैं तुम्हें कहानी सूनाती हूँ , " और वो अपनी बाहों में लिए अपने सीने से लगाए उसे उसके कमरे मे ले जातीं . कहानी यह कोई लॉरी सूनाती...
समीर के बर्थ डे पर साना आती , पर सिर्फ़ एक गेस्ट की तरेह , उसे गले से लगाती , गालों पर एक ठंडी सी किस देती , रस्म निभाने की कोशिश में , और फिर काम का बहाना ..और चली जाती ...सम उसकी ओर बढ़ता उसे थामने को , उसे रोकने को ..पर साना उसकी पहून्च से दूर चली जाती ....
इसी तरेह समय गुज़रता गया और समीर बच्चे की दहलीज़ पार करता हुआ अब 18 साल का खूबसूरत, हॅंडसम जवान था , कसरती , गथीला बदन ,हरदयाल की जवानी की तस्वीर , साना उसे देख कई बार उसे गले लगाने को मचल उठ ती पर फिर हरदयाल की याद आते ही उसके बढ़ते पावं थम जाते ...
पर समीर के दिल में अपनी मा के लिए कोई नफ़रत नही थी ....उसे विश्वास था अपने प्यार और पूजा पर ...मोम को सूँदरता की देवी की तरेह पूजता ... उसके लिए वो एक ऐसी देवी थी जिसका आशीर्वाद और प्यार पाना उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था ...और उस ने ठान लिया था , अपनी मोम को पा कर ही रहेगा ...आज नहीं तो कल ...जिंदगी के किसी भी पल ..और वो उसी एक पल के इंतेज़ार के सहारे ही जी रहा था....
बच्चे का नाम समीर रखा गया ...साना और हरदयाल की जिंदगी में एक ख़ुशगवार हवा के झोंके की तरेह यह बच्चा था ...एक शीतल , ताज़ा और मस्ती भरी हवा का झोंका ..दोनों झूम उठे थे ..
और फिर उस दीन ..
अभी साना हॉस्पिटल में ही थी ... प्रसव का पाँचवा ही दिन था ..किसी ज़रूरी बिज़्नेस मीटिंग के सिलसिले में हरदयाल एक दिन पहले ही बॅंकाक गया हुआ था ....आज शाम की फ़्लाइट से उसे आना था ....एर पोर्ट से प्लेन में बोर्ड करने के पहले साना से काफ़ी अच्छी बातें हुई ....साना को क्या मालूम कि वो अपने दिल-अज़ीज़ से आखरी बार बात कर रही है...
प्लेन टेक ऑफ करते ही क्रॅश हो जाता है धमाके के साथ ....उसके टूकड़े टूकड़े हो जाते हैं ... और नीचे सागार की गहराइयों में डूब जाता है प्लेन के टूकड़े..और इसके साथ साना की जिंदगी के भी टूकड़े टूकड़े हो जातें हैं .... किसी की लाश तक नही मिली...कुछ भी बाकी नही रहा ...
उसकी जिंदगी में शीतल और ताज़ा हवा का झोंका एक भयानक तूफान में बदल चूका था ..साना की जिंदगी तहस नहस हो गयी ...
उसी पल साना को समीर से अब तक जितना प्यार था ..उतनी ही नफ़रत हो गयी...ना जाने क्यूँ उसे ऐसा लगा समीर का आना एक बहोत बड़ा अप शकून था..उसके आते ही उस ने अपनी सब से प्यारी चीज़ खो दी...
हॉस्पिटल से घर तो आ गयी साना ..पर यह साना अब पूरानी साना की सिर्फ़ परछाईं मात्र रह गयी ...असली साना शायद हरदयाल के साथ ही सागर की गहराइयों में दफ़न हो चूकी थी .... हमेशा हमेशा के लिए ...
पर जिंदगी की गाड़ी तो चलती ही रहती है ...साना की जिंदगी भी चलती गयी , पर अब इस में रफ़्तार , तेज़ी और मस्ती नही थी.उसकी जगेह हिचकॉलों , धक्कों और सूस्त रफ़्तार ने ले ली थी....
समीर की तरेफ से उसका ध्यान बिल्कुल ही हट गया था ..उस के लिए उसका होना यह ना होना बराबर था ....वो उसकी सूरत से नफ़रत करती ....
समीर म्र्स. डी'सूज़ा के ही हाथों और देख रेख में बड़ा होता गया ..म्र्स. डी' सूज़ा ने उसकी परवरिश में कोई भी कमी नही की अपनी तरेफ से ..वो उसके लिए मा से भी बढ़ कर थी ...
साना अपनी जिंदगी के हिचकॉलों और झटकों को शांत करने की नाकामयाब कोशिश में फिर से अपने आप को शराब और शबाब की पुरानी लत में डूबो देती है ..जहाँ समीर के लिए उसके पास कोई समय , लगाव यह जगेह नही थी ....
साना की अंधेरी जिंदगी में एक ही रोशनी थी ..वो था अभी भी उसका हरदयाल के लिए अटूट प्यार ....वो अपने आप को उसके प्यार की निशानी समझती ...अपने आप को हरदयाल की निशानी समझती ...उसे ना जाने क्यूँ ऐसा लगता कि हरदयाल शायद ..शायद सागार की गहराइयों से उछलता हुआ एक दिन ज़रूर बाहर आएगा और उसे अपनी बाहों में जाकड़ लेगा ..भर लेगा....
उसे अपने आप को संभालना पड़ेगा , अपने आप को उस दिन के लिए तैय्यार रखना होगा...इस सोच ने उसे अपनी शरीर को बिल्कुल फिट रखा , मन से तो साना बूझी रहती पर शरीर तरो-ताज़ा , फिट जैसी साना को हरदयाल ने जाने के पहले देखा था साना ने अपने बदन को बिल्कुल वैसा ही रखा ...नतीज़ा उसकी खूबसूरती , जवानी और सेक्स अपील अभी भी बरकरार थी ...
और दूसरी रोशनी की किरण थी उसका हरदयाल के बिज़्नेस से लगाव....हरदयाल की वापसी की कल्पना और सपनों में खोई ..वो इसे बर्बाद नही होने देना चाहती ..उस ने बड़े अच्छे से पूरा बिज़्नेस संभाल लिया था...
पर घर में अकेलापन उसे काटने को दौड़ता ... समीर से उसे कोई लगाव था नही ..इसी अकेलेपन को दूर करने की नाकाम कोशिश में साना ने शराब और शबाब का सहारा लिया ..क्लब और पार्टीस में ही उसकी शामें गुज़रती ..
समीर बड़ा हो रहा था ... अपनी मोम की ओर प्यार भरी नज़रों से देखता , पर उसे वहाँ प्यार की जगेह एक खाली खाली सा , बड़ा ठंडा और सूखा सा जवाब मिलता..उसका दिल टूट जाता ..पर फिर भी उसे अपनी मोम से अंदर ही अंदर लगाव , आकर्षण और एक खींचाओ सा महसूस होता ....वो उसके बाहों में आने को , उसके सीने से लगने को , उस के करीब जाने को ,उसकी गर्म और नर्म गोद में समा जाने को तड़प उठ ता ..
म्र्स. डी'सूज़ा ऐसे मौकों पर उसे समझाती " सॅम बेटा ..मोम को तंग मत करो..वो बहोत काम में बिज़ी रहती हैं ....थक जाती हैं ..सॅम ... आओ मैं तुम्हें कहानी सूनाती हूँ , " और वो अपनी बाहों में लिए अपने सीने से लगाए उसे उसके कमरे मे ले जातीं . कहानी यह कोई लॉरी सूनाती...
समीर के बर्थ डे पर साना आती , पर सिर्फ़ एक गेस्ट की तरेह , उसे गले से लगाती , गालों पर एक ठंडी सी किस देती , रस्म निभाने की कोशिश में , और फिर काम का बहाना ..और चली जाती ...सम उसकी ओर बढ़ता उसे थामने को , उसे रोकने को ..पर साना उसकी पहून्च से दूर चली जाती ....
इसी तरेह समय गुज़रता गया और समीर बच्चे की दहलीज़ पार करता हुआ अब 18 साल का खूबसूरत, हॅंडसम जवान था , कसरती , गथीला बदन ,हरदयाल की जवानी की तस्वीर , साना उसे देख कई बार उसे गले लगाने को मचल उठ ती पर फिर हरदयाल की याद आते ही उसके बढ़ते पावं थम जाते ...
पर समीर के दिल में अपनी मा के लिए कोई नफ़रत नही थी ....उसे विश्वास था अपने प्यार और पूजा पर ...मोम को सूँदरता की देवी की तरेह पूजता ... उसके लिए वो एक ऐसी देवी थी जिसका आशीर्वाद और प्यार पाना उसके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था ...और उस ने ठान लिया था , अपनी मोम को पा कर ही रहेगा ...आज नहीं तो कल ...जिंदगी के किसी भी पल ..और वो उसी एक पल के इंतेज़ार के सहारे ही जी रहा था....