Chudai Story ज़िंदगी के रंग - Page 3 - SexBaba
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Chudai Story ज़िंदगी के रंग

मोना:"इस की क्या ज़रोरत है?"

किरण ने फॉरन ही उसे टोकते हुए कहा

किरण:"वो इतने प्यार से दे रहे हैं ना तो इनकार नही करते. उनका शुक्रिया अदा करो."

मोना:"श...शुक्रिया." वो शरम से बोली. ये सब उसे ठीक नही लग रहा था और इस तरहा फॉरन किरण का पेसे पकड़ लेना उसे अच्छा नही लगा था. काश के उसे किरण की मजबूरी का अंदाज़ा होता. किरण के लिए ये पैसे नासिरफ़ ज़रूरी थे बल्कि उसके लिए एक दरिंदे की क़ैद से छुटकारे का ज़रिया भी थे.

असलम:"कोई बात नही. ये तो मेरा फर्ज़ बनता है."

किरण:"आरे बतो मे कुछ याद ही नही रहा. 5 मिनिट मे अगर काम पे ना पोहन्चे तो गड़बड़ हो जाएगी. अंकल आप बुरा ना मानिए पर हमे फॉरन जाना पड़ेगा."

असलम:"घबराओ मत मे अपनी गाड़ी पे छोड़ देता हूँ. बताओ कहाँ जाना है?" किरण ने जल्दी से उन्हे पता बताया और कुछ ही देर मे वो दोनो असलम सहाब की गाड़ी मे कॉल सेंटर की जानिब जा रही थी. तीनो ही अपनी अपनी सौचौं मे गुम थे. किरण आज़ादी की नयी ज़िंदगी का सौच रही थी तो मोना एक ही दिन मे कितना कुछ हो गया ये सौच रही थी और असलम सहाब शीशे से मोना को देख कर सौच रहे थे के कम से कम उनके बेटे की पसन्द तो उन पे गयी. और यौं मोना की ज़िंदगी का सफ़र एक नये मोड़ पे चल पढ़ा. कुछ ही आरसे मे उसकी ज़िंदगी एक नये शहर मे इतनी जल्दी बदल जाएगी ये उसने सौचा नही था. पर उसे क्या पता था के ज़िंदगी ने उसे अभी और क्या क्या रंग दिखाने हैं?.

रात के 12 बज रहे थे और असलम सहाब अपने कमरे मे लेटे हुए थे. नींद आँखौं से दूर थी और आज जो हुआ उसके बारे मे सौच रहे थे. कभी कभार इंसान सौचता तो कुछ और है पर हो उससे कुछ और जाता है. ये ही कुछ असलम सहाब के साथ भी हुआ था. घर मे दोनो बेटो को झगरता देख उन्हे बहुत दुख हुआ था. पर अली की आँखौं मे गुस्सा देख मामला ठंडा करने के लिए इमरान को उन्हों ने झाड़ दिया था. मोना से मिलने वो कोई बेटे का रिश्ता पक्का करने नही गये थे बल्कि उससे मिल कर ये मामला हमेशा के लिए ख्तम करने गये थे. बहुत जूतिया घिस घिस के वो यहाँ तक पोहन्चे थे और ये नही चाहते थे के कभी ऐसा उनके बेटो के साथ भी हो. इमरान की शादी बड़े उँचे घराने मे करवाई थी और अब ऐसा ही उन्हो ने अली के लिए भी सौच रखा था. अली ने जब उन्हे किरण के घर मोना है ये बता के वहाँ का पता दिया तो वो गये तो इस कहानी को हमेशा के लिए ख़तम करने गये थे पर हुआ वो जो उन्हो ने भी नही सौचा था. किरण के बारे मे थोड़ी छान बीन उन्हो ने कोई बहाना ढूढ़ने के लिए की थी और जो पेसे भी बाद मे उसे दिए वो कुछ घेंटे पहले एक क्लाइंट से पेमेंट ली थी जो उनके पास थी. फिर ये सब हुआ केसे? जाने क्यूँ मोना को देख कर उन्हे अपनी मरहूम पत्नी की याद आ गयी. वो भी तो छोटे से शहर की थी और संस्कार भी वैसे ही थे जैसे उन्हो ने मोना मे देखे. पेसे तो पहले ही बहुत हैं पर ऐसी लड़की भला कहाँ मिलेगी? "अली लाख गधा सही पर कम से कम पसंद तो बाप जैसी ही है." वो सौच कर मुस्कुराने लगे.
 
कॉल सेंटर पे काम करते उस दिन दोनो लड़कियाँ चहक रही थी. "ये कैसा दिन है आज?" मोना सौच रही थी. 1 ही दिन मे पहले ममता का घर छोड़ कर ऐसी राह पे चल देना जहाँ कि मंज़िल का ही नही पता था तो फिर अली का ऐसे इज़हार-ए-मोहबत. जब लगा के अब वो ज़िंदगी के सफ़र मे अकेली नही तो फिर ऐसे उसका पहले ही मोड़ पे साथ ना दे पाना. फिर उसकी सहेली का ऐसे उसका साथ देना तो आख़िर मे असलम सहाब का ऐसे आ जाना और उसे अपनी होने वाली बहू मान लेना. ये सब एक ख्वाब ही की तरहा तो था. और वो जागती आँखौं से ये सपने बैठे बैठे काम पे देख रही थी. दोसरि ओर किरण उपर वाले का लाख लाख शूकर अदा कर रही थी के उसने इस तरहा से उसकी मदद की. जहाँ मनोज से छुटकारे का रास्ता ही कोई नही दिखता था तो अब वो उस लम्हे का इंतेज़ार कर रही थी जब वो घर जा के मनोज को उठा के घर से बाहर फेंकेगी. वो अपने सपनो मे यौं ही खोई हुई थी जब सरहद उसके पास आया.

सरहद:"क्या बात है किरण आज किन ख्यालो मे खोई हुई हो?"

किरण:"बस तुम्हारे बारे मे ही सौच रही थी. क्या करू तुम ने मेरी रातो की नींद जो उड़ा दी है." उसका शोख चंचल्पन भी आज वापिस आ गया था. ये सुन कर सरहद का मुँह तो शरम से लाल हो गया. वो जानता था के मज़ाक कर रही है लेकिन फिर भी इस तरहा का मज़ाक पहले तो कभी उसने नही किया था.

सरहद:"टांग खेंचने के लिए मैं ही मिला हूँ?"

किरण:"तो बता दो ना किसी और को ढूँढ लूँ क्या?"

सरहद:"नही." उसने जल्दी से जवाब दिया और फिर अपनी बेवकूफी का आहेसास हुआ. ये सुन कर किरण खिलखिला कर हँसने लग गयी. जाने सरहद ने कहाँ से थोड़ी हिम्मत कर के पूछ ही लिया

सरहद:"किरण वो मैं सौच रहा था के......क्या मेरे साथ डिन्नर पे चलो गी?" अब तक किरण को अंदाज़ा तो हो ही गया था के सरहद को उसपे प्यार है और इतने दिन उसके साथ काम कर के अंदाज़ा भी हो गया था के वो देखने मे जैसा भी हो, दिल का अच्छा बंदा है. कॉलेज के दिल फेंक आशिक़ो और मनोज जैसे दरिंदे के बाद वो सरहद की खूबियो को सॉफ देखने लगी थी.

किरण:"ज़रूर." दोनो एक दूजे की आँखौं मे देखने लगे और अन कहे वादे आँखौं ही आँखौं मे करने लगे.

सरहद:"मैं आज रात को आठ बजे आप को घर पे लेने आ जाउन्गा."

किरण:"मैं इंतेज़ार करूँगी." किरण ने मुस्कुरा कर कहा.

सरहद जल्दी से वहाँ से चला गया इससे पहले के ख़ुसी से वो कोई बेवकूफी ना वहाँ कर बैठे. मोना जो कुछ दूर ये सब देख रही थी किरण के पास आ गयी.

मोना:"क्या बात है! दोनो तरफ है आग बराबर लगी हुई."

किरण:"चल चुप कर. ऐसा कुछ नही है."

मोना:"वो तो तेरा दीवाना है ये सब ही जानते हैं. क्यूँ क्या तुझे पसंद नही? "

किरण:"शायद."

रात को जब किरण आंड मोना घर पोहन्चे तो मनोज की गाड़ी पहले ही खड़ी थी. जिसे देख किरण सौचने लगी "आज तो इसका कुछ करना ही पड़ेगा" जैसे ही वो घर मे दाखिल हुए तो देखा के मनोज ड्रॉयिंग रूम मे बैठा हुआ था..

मोना को यौं किरण के साथ देख कर उसे अजीब सा लगा. जिस दिन उसने किरण को मारने के बाद उसे घर पे कभी भी किसी लड़के के साथ यां बाहर घूमने फिरने से मना किया था उस के बाद तो कभी वो किसी लड़की के साथ भी उसे घर के आस पास नज़र नही आई. उसने जो गौर से मोना को देखा तो उसके अंदर का शैतान जाग गया. "ये तो किरण से भी ज़्यादा गर्म माल है. लगती भी अमीर घर से नही. साली किरण को कहता हूँ के इसको भी मेरी रंडी बना दे. चार पेसे लग भी गये तो कोई बात नही." वो मोना को हवस भरी नज़रौं से देखते हुए ये सौच रहा था के किरण ने उसको ख्वाबो की दुनिया से वापिस खेंचा.

क्रमशः....................
 
ज़िंदगी के रंग--12

गतान्क से आगे..................

किरण:"मनोज मैं चाहती हूँ के तुम ये घर फॉरन खाली कर दो. किरण अब यहाँ तुम्हारी जगह रहेगी." मोना को ये सुन कर हैरत तो हुई के किरण ने एक दम से मनोज को निकलने का कहा है और वो भी इस रूखे लहजे से पर मनोज के लिए तो जैसे ज़मीन ही फॅट गयी थी. उसकी ठोकरो पे पलने वाली उससे ये कह किस तरहा रही है उसे तो यकीन ही नही आ रहा था. मोना की वजह से अपने घुस्से पे काबू पाते हुए वो बोलना शुरू हुआ

मनोज:"किरण जी आप होश मे तो हैं ना? आप को पता भी है ये आप क्या कह रही हैं?"

किरण:"मुझे अछी तरहा मालूम है के मैं क्या कह रही हूँ. अपना समान उठाओ और निकल जाओ मेरे घर से." कोशिश करने के बावजूद मनोज का गुस्सा बर्दाश्त से बाहर होने लगा.

मनोज:"तुम्हे पता है ना के तुम किस से बात कर रही हो?"

किरण:"अच्छी तरहा से मालूम है. मैं एक ऐसे वहशी दरिंदे से बात कर रही हूँ जो दूसरो की मजबूरियो से खेलता है. पर ना तो अब मैं मजबूर हूँ और ना ही तुम्हारे जैसे ज़लील इंसान की शक्ल भी देखना चाहती हूँ." इतने आरसे से जो नफ़रत किरण के दिल मे लावे की तरहा पैदा हो रही थी आज वो फॅट कर बाहर आ गयी थी. दोसरि ओर मनोज को यकीन ही नही आ रहा था के ये वो ही लड़की है जिस की उसके सामने ज़ुबान तक नही खुलती थी. अब तो उसे मोना की भी फिकर नही थी और वो गुस्से से पागल हो चुका था.

मनोज:"साली रंडी दिखा दी ना तूने अपनी औकात. बोल हरमज़ड़ी क्या नया यार मिल गया है तुझे?"

किरण:"अपनी बकवास बंद करो और दफ़ा हो जाओ यहाँ से."

मनोज:"तो जानती है ना मे कौन हूँ? साली तेरे साथ तेरी मा को भी सड़को पे नंगा ना नचाया तो मेरा नाम भी मनोज नही. देखता हूँ मैं भी के किसी का बाप भी मुझे केसे इस घर से निकाल सकता है?" मोना उन दोनो की बाते सुन कर हैरान-ओ-परेशान वहाँ खड़ी थी. "ये हो क्या रहा है?" उसे तो यकीन ही नही आ रहा था जो आँखौं से देख और कानो से सुन रही थी. ऐसे मे घर की घेंटी बजी. मनोज और किरण तो एक दूसरे को बुरा भला कहने मे इतने मसरूफ़ थे के उन्हो ने परवाह ही नही की के घर की घेंटी बजी है. सहमी हुई हालत मे मोना ने जा कर दरवाज़ा जो खोला तो सामने सरहद खड़ा था. शोर शराबा सुन कर वो भी थोड़ा घबरा गया.
 
सरहद:"क्या मैं ग़लत समय पे तो नही आ गया?"

मोना:"मुझे तो खुद कुछ समझ मे नही आ रहा. किरण और करायेदार के बीच नैन लड़ाई हो रही थी. तुम पहले अंदर तो आओ बाकी सब भी तमाशा देखेंगे ऐसे तो." सरहद घर के अंदर आ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया.

मनोज:"साली कुतिया कल तक तो चंद टाको के लिए मेरा बिस्तर गरम करती रही है और आज तेरी इतनी जुरत के तू मेरे मुँह लग रही है?" ये आवाज़ जो सरहद के कानो मे पड़ी तो उसका तो खून खूल उठा. जल्दी से वो आवाज़ की सिमत मे भागा. जो ड्रॉयिंग रूम मे घुसा तो देखा मनोज ने किरण को बालो से पकड़ रखा है और ऐसे लग रहा था जैसे के वो उसका खून ही पी जाएगा. ये देख सरहद का तो गुस्से से खून खोल उठा. उसने ज़ोर से जा कर एक घूँसा मनोज के मुँह पर मार दिया. मनोज जो सही तरहा से सरहद को अपनी ओर आते देख भी नही पाया था दूर जा कर गिरा और किरण उसकी गिरिफ़्ट से आज़ाद हो गयी. भाग के ज़ोर से एक लात सरहद ने ज़मीन पे गिरे हुए मनोज के मुँह पे जो मारी तो उसकी नाक से खून निकलने लगा. थोड़ी ही देर मे दोनो घुथम गुथा हुए पड़े थे. मनोज अब थोड़ा सा संभाल तो गया था लेकिन जो मार उसे पड़ चुकी थी उसकी वजा से उसका सर घूम रहा था. सरहद के सर पे तो वैसे ही खून सवार था. उसने जम के मनोज की पिटाई की जब तक के वो खुद थक के हांपने ना लग गया. थोड़ी देर बाद जो मनोज ने थोड़ा होश संभाला तो सरहद को बोलना शुरू हुआ.

मनोज:"ठीक है मैं जा रहा हूँ यहाँ से पर मेरी एक बात याद रखना. कल तक मेरे टुकड़ो पे पलने वाली अगर आज मेरे साथ ये करवा सकती है तो तेरी भी कभी नही बने गी." ये कह कर वो धीरे से उठा और अपने मुँह से खून सॉफ करता हुआ घर से बाहर चला गया. सरहद ने जो किरण की ओर देखा तो वो रो रही थी और उसके होंठ से खून निकल रहा था. ज़रूर मनोज ने उसे सरहद के आने से पहले मारा होगा. जल्दी से वो किरण की ओर गया और उसके आँसू सॉफ करने लगा. मोना भी किरण का खून सॉफ करने लगी और दोनो उसे चुप कराने लगे.

सरहद:"बस बस सब ठीक हो जाएगा प्लीज़ तुम रो मत."

किरण:"सरहद मुझे तुम्हे और मोना को कुछ बताना है."

मोना:"किरण तुम अभी चुप हो जाओ हम बाद मे बात कर लेंगे ना."

सरहद:"हां मोना ठीक कह रही है."

किरण:"नही कुछ बाते इंतेज़ार नही कर सकती." ये कह कर वो सब कुछ कैसे उसके पिता के देहांत के बाद उन्हे पेसौं की ज़रूरत पड़ी से ले कर जो कुछ भी मनोज ने किया सब कुछ बताने लगी. जब वो सब कुछ बता के चुप हुई तो उसके साथ साथ मोना की आँखौं से भी आँसू निकल रहे थे और सरहद की आँखे भी नम हो गयी थी.

किरण:"बोलो क्या अब भी तुम एक ऐसी लड़की के साथ जो पेसौं की खातिर किसी की रखैल रही हे से दोस्ती बढ़ाना चाहोगे?" सरहद ने ये सुन कर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथो से पकड़ा और उसके आँसू सॉफ करते हुए बोला.

सरहद:"आज मैं भी तुम्हे एक राज़ बताना चाहता हूँ. मैं 1-2 दिन नही, सालो से तुम्हे चाहता हूँ. आज ये सब कुछ जानने के बाद तो मेरे दिल मे तुम्हारे लिए प्यार और भी बढ़ गया है. कौन भला अपनी मा के लिए इतना कुछ कर सकती है जो तुमने किया है? किरण मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ और सारी ज़िंदगी चाहता रहूँगा." ये सुन कर किरण की आँखौं से फिर आँसू निकलने लगे पर इस बार वो खुशी के आँसू थे. दोनो एक दोसरे के सीने से लिपट गये. मोना भी ये देख उन दोनो के लिए बहुत खुश थी. थोड़ी देर बाद जब किरण ने अपने आँसू पौंछ लिए तो बोली

किरण:"चलो मैं तुम्हे अपनी मा से मिलाती हूँ." जब वो उसके कमरे मे गये तो उसकी मा की लाश बिस्तर पर पड़ी थी और आँखौं से बहने वाले आँसू अभी तक पूरी तरहा से खुसक नही हुए थे..

अच्छे बुरे वक़्त तो सभी की ज़िंदगी मे आते हैं लेकिन ना वक़्त रुकता है और नही ज़िंदगी आगे बढ़ने से रुकती है. बीते हुए कल मे रहने वाले ज़िंदगी की दौड़ मे बहुत पीछे रह जाते हैं और हिम्मत ना हारने वाले ही अपनी मंज़िल पे पोहन्च पाते हैं. किरण की मा को गुज़रे अब 3 महीने हो गये थे. मोना की दोस्ती और सरहद के प्यार की वजा से ही वो इस सदमे को सह पाई थी. सरहद और वो कुछ ही अरसे मे एक दूजे के बहुत करीब आ गये थे. लगता था जैसे एक दूजे को सदियों से जानते हो. सरहद तो उसे सालो से चाहता था और अब जब वो उसे मिल ही चुकी थी तो उसकी ज़िंदगी की सब से बड़ी खोवाहिश भी पूरी हो गयी थी. मनोज भी उस दिन के बाद कभी लौट कर नही आया. ऐसे लोग वैसे भी अपने अगले शिकार की ऑर चले जाते हैं आंड बदक़िस्मती से दुनिया भरी पड़ी है ऐसी लड़कियो से जिन की मजबूरी का ये फ़ायदा उठाते रहे. जहाँ किरण और सरहद इतने जल्दी ही एक दूजे के करीब आ गये थे वहाँ ऐसा अली और मोना के बीच मे नही हुआ था. कहीं ना कहीं दोनो के दिमाग़ पे जो भी उस दिन अली के घर मे हुआ उसका असर तो ज़रूर हुआ था. पर धीरे धीरे ही सही दोनो फिर से अच्छे दोस्त तो बन गये थे और मन ही मन ये भी जानते थे के उन्हे एक दूजे से प्यार है. ना तो अली ने ज़रूरत से ज़्यादा करीब आने की कोशिश की तो ना ही मोना को कोई जल्दी थी. शायद उस दिन जो हुआ उसके बाद दोनो को इतनी अकल तो आ ही गयी थी के दोनो अभी इतने बड़े कदम उठाने के काबिल नही. जहाँ मोना अपने माता पिता के सहारा बनने के लिए दिन रात मेहनत कर रही थी तो वहीं अब अली भी ज़िंदगी मे पहली बार पढ़ाई मे ध्यान देने लग गया था. वो भी कल को मोना को पाने के लिए ज़िंदगी को संजीदगी से लेने लगा.
 
इस दौरान असलम साहब ने अपना वादा पूरा किया और हर महीने ना सिर्फ़ किरण को मोना का कराया पहुचाते रहे बल्कि मोना के लाख माना करने के बावजूद उसे जेब खरच भी देने लगा. मोना जो कुछ अब नौकरी से कमाती थी वो अपने घर भेजने लगी. उसके पिता को शुरू मे तो अच्छा नही लगा लेकिन बेटी के इसरार पर मान गये. कुछ ही आरसे बाद मोना को एक और अछी खबर भी मिली जब उसकी छोटी बेहन के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया. बड़ी बेहन की शादी किए बिना छोटी के हाथ केसे पीले कर दें ये चिंता तो देना नाथ जी को हुई पर आज कल के ज़माने मे अच्छे रिश्ते वो भी ग़रीबो को मिलते ही कहाँ हैं? फिर क्या था उन्हो ने बात पक्की कर दी. लड़का लंडन मे अछी नौकरी पे लगा हुआ था और उसके घर वाले जल्द ही उसकी शादी एक अछी लड़की से करना चाहते थे के कहीं बिगड़ ना जाए और परदेस से किसी दिन बहू की जगह अपने साथ उनके लिए दामाद ना ले आए. मास्टर दीना नाथ जी भी खुश थे के एक बेटी शहर मे अपने पैरों पे खड़ी हो गयी है और साथ साथ पढ़ाई भी मुकामल कर रही है तो दोसरि की शादी होने वाली है. रही सही चिंता इस बात ने दूर कर दी थी के लड़के वालो ने दहेज लेने से मना कर दिया था. इतना अंदाज़ा तो उनको भी था के बेचारे मास्टर जी देना चाहे भी तो दे ही क्या सकते हैं? एक तो लड़के वालो को शादी की जल्दी थी दोसरा मास्टर जी भी इस ज़िमदारी से मुक्ति चाहते थे. 2 महीने बाद की शादी की तारीख पक्की कर दी गयी जब लड़के ने सर्दियों की छुट्टी पे शादी करने आना था. सब कुछ ठीक हो रहा था पर ग़रीबो की ज़िंदगी मे खुशियाँ भी गम की चादर ओढ़ कर आती हैं. रिश्ता पक्का किए अभी 2 हफ्ते भी नही गुज़रे थे के मास्टर साहब को दिल का दौड़ा पड़ा और वो बेटी की खुशियाँ देखने से पहले ही भगवान को प्यारे हो गये. मोना और उसके घर वालो पर तो जैसे गम का पहाड़ ही टूट गया. खबर मिलते साथ ही वो पहली ट्रेन से नैनीताल की पोहन्च गयी. जब इस बात का असलम सहाब को पता चला तो वो भी अपनी गाड़ी से नैनीताल किरण को ले कर पोहन्च गये. वहाँ पोहन्च कर मास्टर जी के क्रिया करम की सारी ज़िम्मेदारी उन्हो ने खुद ही उठा ली. मोना और उसकी मा बेहन को तो उनका अपना होश ना था तो भला ये सब कहाँ से कर पाते? खुद असलम सहाब ने पास ही के एक होटेल मे अपने लिए कमरा ले लिया था. ना तो मोना के घर मे महमानो के लिए कोई कमरा था और ना ही उन्हो ने ठीक समझा ऐसे उन पे बोझ बनना. वैसे भी लोगो का क्या है? ना जाने क्या क्या बाते बनाने लग जाय? मास्टर जी के क्रिया करम के 2 दिन बाद असलम सहाब मोना के घर बैठे चाइ पी रहे थे और ऐसे मे उन्हो ने मोना की मा से वो बात कर दी जो वो भी अपने ज़ेहन मे सौच रही थी.

असलम:"इतने जल्दी ये कहते ठीक तो नही लग रहा पर आप तो समझती ही होंगी के इन बातो से मुँह भी फेरा नही जा सकता. आप ने मेघा की शादी के बारे मे क्या सौचा है?"

पूजा:"पता नही भाई सहाब कुछ समझ ही नही आ रही. उन्हे भी तैयारियाँ करते मुस्किल हो रही थी तो भला मैं कैसे ये सब कर पाउन्गी? समझ ही नही आ रहा क्या करूँ? तारीख भी तो आगे नही कर सकती के लड़के वालों ने तो कार्ड तक छपवा लिए हैं. डरती हूँ के आगे करने का कहूँ तो कहीं रिश्ता ही ना टूट जाए. वैसे भी आज कल अच्छे रिश्ते मिलते ही कहाँ हैं भला?"

असलम:"आप ठीक कहती हैं. वैसे भी चाहे अब करो या साल बाद, काम तो उतना ही है. अगर आप बुरा ना माने तो मैं ये ज़िम्मेदारी संभालना चाह रहा था. पेसों वग़ैरा की आप फिकर ना करो मैं सब संभाल लूँगा." जहाँ ये सुन कर एक तरफ तो पूजा की आँखे चमक उठी वहाँ साथ ही ये अहसास भी हो गया के ये ठीक नही है. मोना असलम सहाब के बारे मे सब कुछ पूजा को बता चुकी थी. होने वाले संबंधी से ऐसे काम लेना और फिर उसी को पेसे खरचने देना पूजा को ठीक नही लग रहा था. साथ ही साथ ये भी सच है के हर मा की तरहा दिल तो उसका भी था के बेटी की शादी धूम धाम से करे. ग़रीब होने से कोई खावहिशे मर तो नही जाती बल्कि ग़रीबों के लिए तो ये चंद खुशियाँ जैसे के बच्चों की शादी से बढ़ के कुछ और होता ही नही.

क्रमशः....................
 
ज़िंदगी के रंग--13

गतान्क से आगे..................

पूजा:"नही नही ये ठीक नही. पहले ही आप ने इतना कुछ किया है के समझ नही आती के आप के अहसानो का बदला केसे चुका पाउन्गी?" कमज़ोर सी आवाज़ मे उसने ये कह दिया. ये सुन कर असलम सहाब को भी अंदाज़ा हो गया के वो चाह क्या रही है और सच कहते उसे क्यूँ शर्मिंदगी महसूस हो रही है.

असलम:"मैने आज तक वोई किया जो मेरा फ़राज़ बनता है. अगर मैं नही करूँगा तो और कौन करेगा? आप ये पेसे रख लें और मेघा बेटी और अपने लिए कपड़े बनवाने शुरू कर दें. मैं मोना को ले कर कल शहर वापिस जा रहा हूँ और जल्द ही और पैसों का बंदोबस्त कर के यहाँ आ के शादी की सब ज़िम्मेदारी संभाल लूँगा." मोना भी वहीं पास ही बैठी ये सब सुन रही थी. किरण मेघा के साथ किसी काम से बाहर गयी हुई थी. उसे भी समझ नही आ रहा था कि क्या कहे? "सच मे अली बहुत ही खुशनसीब है जो इतने अच्छे पिता मिले उसे. काश पिता जी इन से मिल पाते?" वो सौचने लगी. पूजा तो असलम सहाब की बात सुन कर बस अपनी मजबूरी पर रोने लगी. असलम सहाब और मोना ने उन्हे चुप कराया. असलम सहाब ने पूजा को कोई 2 लाख पकड़ा दिए. नौकरी और कॉलेज की समस्या ना होती तो इतनी जल्दी वापिस जाने को मोना का मन तो नही कर रहा था पर जाना पड़ा. असलम सहाब दोनो लड़कियो को साथ ले कर वापिस देल्ही आ गये. किरण के घर पहुचने पर जब किरण ने उन्हे चाइ की सलाह दी तो वो भी उनके साथ घर मे आ गये.

असलम:"किरण बेटी अगर आप बुरा ना मानो तो मे मोना से कुछ अकेले मे बात करना चाहता था."

किरण:"जी अंकल आप बात कर लें मैं बाज़ार से कुछ खाने के लिए ले आती हूँ." ये कह कर वो चली गयी और मोना उनके साथ ड्रॉयिंग रूम मे बैठ गयी.

असलम:"मोना आप के साथ थोड़े ही आरसे मे जितना कुछ हुआ उसका मुझे बहुत दुख है. ख़ास कर आप के पिता के देहांत का. काश मैं आप की कुछ मदद कर सकता होता पर ज़िंदगी मौत पे किस का ज़ोर है?"

मोना:"ऐसा ना कहे. आप ने तो पहले ही इतने कुछ कर दिया है और अभी भी इतना कर रहे हैं जब अपनो मे से कोई मदद के लिए आगे नही बढ़ा."

असलम:"ये दुनिया ऐसी ही है बस. क्या पराए और क्या अपने, सब का ही खून सफेद हो चुका है. इसी लिए मैं आप को ये कहना चाह रहा हूँ के आप ही को अपने परिवार का अब सहारा बनना पड़ेगा. पर इस छोटी सी उमर मे ये बोझ आप के लिए बहुत ज़्यादा है ये भी एक सच है. ऐसे मे आप को एक मज़बूत सहारे की ज़रूरत है. आप को अपनी खुशी से बढ़ कर अपनी मा बेहन की खुशी के बारे मे सौचना पड़ेगा. अगर आप को एतराज ना हो तो वो सहारा मैं बनना चाहूँगा."

मोना:"मैं समझी नही...."

असलम:"मोना मैं आप से शादी करना चाहता हूँ."...

असलम:"मोना मे आप से शादी करना चाहता हूँ." ये सुन कर मोना का तो मुँह खुला का खुला रह गया और वो काँपने लगी. उसकी ये हालत असलाम सहाब ने भी महसूस कर ली.

असलम:"मोना मुझे ग़लत नही समझना. मेरी बीबी को गुज़रे कितने ही साल बीत गये हैं. अकेले ही बच्चो को मा बाप दोनो का प्यार और साथ ही साथ काम का सारा बोझ भी मैने खुद ही ने उठाया है. अगर बस शादी ही करनी होती तो वो तो कब की कर सकता था. मैं तो अपनी ख्वाहिसे ही अपने अंदर ही मार ली थी. आप को जो देखा तो ये आहेसास हुआ के अभी भी मेरे अंदर का इंसान ज़िंदा है. थक गया हूँ मैं ज़िंदगी के सफ़र मे अकेले चलते चलते. क्या मुझे हक़ नही के अपने बारे मे भी सौचू?" ये कह कर धीरे से उन्हो ने मोना का हाथ थाम लिया.
 
असलम:"मोना मैं तुम्हारा सहारा बनना चाहता हूँ. मैं जनता हूँ के तुम मुझ से प्यार नही करती पर धीरे धीरे करने लगो गी. मैं तुम से वादा करता हूँ के तुम्हारी हर मुस्किल मे तुम्हारा साथ दूँगा. कभी भी ज़िंदगी मे तुम्हारे पे कोई तकलीफ़ नही आने दूँगा. तुम्हारे साथ तुमहारे परिवार का भी पूरी तरहा से ध्यान रखूँगा. आज मेरा हाथ थाम लो, वादा करता हूँ ज़िंदगी मे कभी ठोकर नही खाने दूँगा. मोना क्या तुम मेरे से शादी करोगी?" अब तक मोना का अगर कांपना थोड़ा कम हो भी गया था तो जो हो रहा था वो उसे किसी भयानक सपने से कम नही लग रहा था. मोना तो लगता था अपनी आवाज़ ही खो बैठी थी ये सब सुन कर. मन मे कितने ही सवाल उठ रहे थे जैसे "ये क्या कह रहे हैं आप? अली के बारे मे तो सौचो?" वगिरा वगिरा पर उसके मुँह से एक शब्द भी निकल नही पा रहा था. असलाम सहाब ने आख़िर ये खामोशी खुद ही तोड़ी.

असलम:"कोई बात नही मोना मुझे आप की खामोशी ने जवाब दे दिया है जो शायद आप नही दे पा रही. मैं ही शायद बेवकूफ़ हूँ जो अपने मन मे जो कुछ भी था आप को सॉफ सॉफ बता दिया. खेर अगर आप को मेरे प्यार की कदर नही तो कोई बात नही मैं समझ सकता हूँ. अगर हो सके तो इतना अहेसान तो कर दी जिएगा के जो कुछ मैने कहा है वो हमारे बीच मे रहने दीजिएगा. किरण भी आती होगी, बेहतर है उसके आने से पहले मे चला जाउ. आप फिकर मत की जिए आइन्दा आप को कभी परेशान नही करूँगा." ये कह कर असलाम सहाब उठे और दरवाज़े की तरफ चल दिए.

मोना:"रु...रुकिये." असलम सहाब ये सुन कर वहीं रुक गये. बड़ी मुस्किल से अपने आप को काबू मे करते हुए मोना ने कहा

मोना:"मुझे ये शादी कबूल है." असलाम सहाब की तो ये सुन कर ख़ुसी की कोई इंतेहा ही नही रही.

असलम:"मोना मुझे पता था के मे जो सौच रहा हूँ वो ग़लत नही. आप भी भी अपनी खुशी से मुझ से शादी करना चाहती हैं ये जान कर मुझे जितनी खुशी हुई है इसका आप अंदाज़ा नही लगा सकती." मोना ये सुन कर चुप ही रही.

असलम:"अगर आप बुरा ना मानो तो कल ही शादी कर लेते हैं. आप की बेहन की शादी का समय भी सर पे आता जा रहा है. वहाँ जा कर आप के शोहार के तौर पर जब मे सब कुछ करूँगा तो लोग भी बाते नही करेंगे. क्या आप को कोई एतराज तो नही?"

मोना:"नही......जैसे आप की मर्ज़ी."

असलम:"ठीक है आप फिर मुझे इजाज़त दें मैं चल कर शादी की तैयारियाँ करता हूँ. कल सुबह आप को लेने आ जाउन्गा." ये कह कर वो तो जल्दी से चले गये पर मोना की आँखौं मे रुका हुआ आँसू का सैलाब बहने लगा. उसके मुँह से कोई आवाज़ नही निकल रही थी बस आँसू का दरिया बह रहा था. हर आँसू मे अरमानो की एक लाश बह रही थी. थोड़ी देर बाद किरण जो खाना लेकर आई तो मोना को इस हाल मे देख कर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी. बड़ी मुस्किल से उसने मोना को चुप कराया और उस से पूछा के हुआ क्या है? मोना ने उसे जो कुछ भी हुआ बता दिया.

किरण:"तेरा दिमाग़ तो खराब नही हो गया? ये क्या करने लगी है टू? पेसौं के लिए अपने प्यार, खुशियो सब को कुर्बान कर रही है? और अली का क्या? सौचा है उसके दिल पे क्या बीते गी जब जिसे वो पागलौं की तरहा चाहता है उसके बाप से ही शादी कर लेगी? पागल हो गयी है क्या?"

मोना:"अगर अपनी बूढ़ी मा और बेहन का सहारा बनना पागलपन है तो हां मैं पागल हो गयी हूँ. जो कुछ भी तूने कहा सब का मुझे पता है पर क्या ये सब बाते उन कुर्बानियो से बढ़ कर हैं जो मेरे माता पिता ने दी? क्या मैं उनके लिए अपनी एक खुशी कुर्बान नही कर सकती?" ये सुन कर किरण की आँखौं से आँसू बहने लगे. उसने भी तो क्या कुछ अपनी मा के लिए किया था. आज जब वो उस ज़िंदगी से निकल ही आई थी तो मोना के साथ ये होता देख उसका दिल गम से फटने लगा.
 
[size=large]किरण:"रुक मैं अभी आई." अपने आँसू सॉफ करते हुए वो वहाँ से चली गयी. थोड़ी देर बाद जो वो आई तो हाथ मे कुछ था.
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किरण:"काश मे तेरी मदद कर सकती होती पर.......खेर छोड़. ये छोटा सा तोफा मेरी तरफ से रख ले. मा ने बड़े प्यार से मेरे लिए ले कर रखी थी. मुझे बड़ी खुशी होगी अगर ये साड़ी कल तू पहन ले. देख इनकार ना करना." मोना ये सुन कर किरण से लिपट कर रोने लगी.



अगली सुबह किरण ने ही मोना को तैयार किया. कल उन आँसुओ मे सब कुछ बह गया था. अब ना तो मोना की आँखौं मे कोई आँसू थे और ना ही मन मे कोई जज़्बात. असलम सहाब सब तैयारियाँ तो कर ही चुके थे. उनके वकील ने थोड़ी ही देर मे कोर्ट मे दोनो की शादी करवा दी. असलम सहाब ने मोना के लिए एक मकान भी किराए पे ले लिया था. वहीं शादी के बाद मोना को ले गये. शादी के बाद ना सिर्फ़ मोना ने नौकरी छोड़ दी बल्कि कॉलेज भी छोड़ दिया. वैसे भी अब ना तो उसके कोई सपने बचे थे और ना ही अरमान. शादी को 3 दिन बीत गये थे और अब 2 दिन बाद वो नैनीताल जाने वाले थे. बुढ़ापे मे आरमान पूरे भी कर लो तो बुढ़ापा तो नही जाता ना? असलाम सहाब भी घर मे घोड़े बेच कर सो रहे थे जब घर की घंटी बजी. मोना ने जा कर जब दरवाज़ा खोला तो सामने अली खड़ा था. उसे देख कर मोना का तो खून ही सूख गया.



अली:"अंदर आने के लिए नही कहोगी?" ये सुन कर मोना पीछे हट गयी और अली घर के अंदर आ गया.



मोना:"अली मे..."



अली:"बस मोना कुछ मत कहना. और कोई झूट मे बर्दाशत नही कर पाउन्गा. मैं जा रहा हूँ यहाँ से हमेशा के लिए. जाने से पहले कुछ तुम्हारे लिए था जो दे कर जाना चाहता था. सौचा था तुम्हे शादी के बाद दूँगा. बस ये ही तो करने आया हूँ आज." ये कह कर जेब से एक सोने का कड़ा निकाल कर अली ने मोना को थमा दिया और मूड कर घर से बाहर जाने लगा.



मोना:"रुक जाओ अली. मुझे एक बार सच कहने का मौका तो दो. देखो तो सही के उस कमरे मे जो बंदा सो रहा है वो है कौन?" ये सुन कर अली ने उसे पलट कर जो देखा तो उसकी आँखों मे आँसू थे.



अली:"शादी मुबारक हो मिसेज़.असलम." ये कह कर वो घर से निकल गया. आँसू अब रुक नही पा रहे थे और दिल था के लगता था फॅट ही जाएगा. मंज़िल क्या थी कुछ पता नही था पर इस बेवफा शहर से वो दूर भाग जाना चाहता था. मन से बस एक ही आवाज़ निकल रही थी......



आज जिस प्यार मे पागल फिरते हो



कल उस से ही दिल तुडवाओगे



आज जिन दोस्तो की दोस्ती पे नाज़ है



कल उन से ही पीठ पे छुरा खाओगे



है मतलब की दुनिया साली



यहाँ कोई किसी का यार नही



उपर से ये ज़िंदगी भी है बेवफा



कब साँस साथ छोड़ जाए कोई एतवार नही



ज़िंदगी को जितना समझने की कोशिश करोगे



उतना ही इसकी उलझनों मे उलझ जाओगे



आज जिस मौत से डर के भागे फिरते हो



एक दिन वो भी आएगा



जब इसको भी ज़िंदगी से ज़्यादा हसीन पाओगे



समाप्त



दा एंड
 
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