hotaks444
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मोना:"इस की क्या ज़रोरत है?"
किरण ने फॉरन ही उसे टोकते हुए कहा
किरण:"वो इतने प्यार से दे रहे हैं ना तो इनकार नही करते. उनका शुक्रिया अदा करो."
मोना:"श...शुक्रिया." वो शरम से बोली. ये सब उसे ठीक नही लग रहा था और इस तरहा फॉरन किरण का पेसे पकड़ लेना उसे अच्छा नही लगा था. काश के उसे किरण की मजबूरी का अंदाज़ा होता. किरण के लिए ये पैसे नासिरफ़ ज़रूरी थे बल्कि उसके लिए एक दरिंदे की क़ैद से छुटकारे का ज़रिया भी थे.
असलम:"कोई बात नही. ये तो मेरा फर्ज़ बनता है."
किरण:"आरे बतो मे कुछ याद ही नही रहा. 5 मिनिट मे अगर काम पे ना पोहन्चे तो गड़बड़ हो जाएगी. अंकल आप बुरा ना मानिए पर हमे फॉरन जाना पड़ेगा."
असलम:"घबराओ मत मे अपनी गाड़ी पे छोड़ देता हूँ. बताओ कहाँ जाना है?" किरण ने जल्दी से उन्हे पता बताया और कुछ ही देर मे वो दोनो असलम सहाब की गाड़ी मे कॉल सेंटर की जानिब जा रही थी. तीनो ही अपनी अपनी सौचौं मे गुम थे. किरण आज़ादी की नयी ज़िंदगी का सौच रही थी तो मोना एक ही दिन मे कितना कुछ हो गया ये सौच रही थी और असलम सहाब शीशे से मोना को देख कर सौच रहे थे के कम से कम उनके बेटे की पसन्द तो उन पे गयी. और यौं मोना की ज़िंदगी का सफ़र एक नये मोड़ पे चल पढ़ा. कुछ ही आरसे मे उसकी ज़िंदगी एक नये शहर मे इतनी जल्दी बदल जाएगी ये उसने सौचा नही था. पर उसे क्या पता था के ज़िंदगी ने उसे अभी और क्या क्या रंग दिखाने हैं?.
रात के 12 बज रहे थे और असलम सहाब अपने कमरे मे लेटे हुए थे. नींद आँखौं से दूर थी और आज जो हुआ उसके बारे मे सौच रहे थे. कभी कभार इंसान सौचता तो कुछ और है पर हो उससे कुछ और जाता है. ये ही कुछ असलम सहाब के साथ भी हुआ था. घर मे दोनो बेटो को झगरता देख उन्हे बहुत दुख हुआ था. पर अली की आँखौं मे गुस्सा देख मामला ठंडा करने के लिए इमरान को उन्हों ने झाड़ दिया था. मोना से मिलने वो कोई बेटे का रिश्ता पक्का करने नही गये थे बल्कि उससे मिल कर ये मामला हमेशा के लिए ख्तम करने गये थे. बहुत जूतिया घिस घिस के वो यहाँ तक पोहन्चे थे और ये नही चाहते थे के कभी ऐसा उनके बेटो के साथ भी हो. इमरान की शादी बड़े उँचे घराने मे करवाई थी और अब ऐसा ही उन्हो ने अली के लिए भी सौच रखा था. अली ने जब उन्हे किरण के घर मोना है ये बता के वहाँ का पता दिया तो वो गये तो इस कहानी को हमेशा के लिए ख़तम करने गये थे पर हुआ वो जो उन्हो ने भी नही सौचा था. किरण के बारे मे थोड़ी छान बीन उन्हो ने कोई बहाना ढूढ़ने के लिए की थी और जो पेसे भी बाद मे उसे दिए वो कुछ घेंटे पहले एक क्लाइंट से पेमेंट ली थी जो उनके पास थी. फिर ये सब हुआ केसे? जाने क्यूँ मोना को देख कर उन्हे अपनी मरहूम पत्नी की याद आ गयी. वो भी तो छोटे से शहर की थी और संस्कार भी वैसे ही थे जैसे उन्हो ने मोना मे देखे. पेसे तो पहले ही बहुत हैं पर ऐसी लड़की भला कहाँ मिलेगी? "अली लाख गधा सही पर कम से कम पसंद तो बाप जैसी ही है." वो सौच कर मुस्कुराने लगे.
किरण ने फॉरन ही उसे टोकते हुए कहा
किरण:"वो इतने प्यार से दे रहे हैं ना तो इनकार नही करते. उनका शुक्रिया अदा करो."
मोना:"श...शुक्रिया." वो शरम से बोली. ये सब उसे ठीक नही लग रहा था और इस तरहा फॉरन किरण का पेसे पकड़ लेना उसे अच्छा नही लगा था. काश के उसे किरण की मजबूरी का अंदाज़ा होता. किरण के लिए ये पैसे नासिरफ़ ज़रूरी थे बल्कि उसके लिए एक दरिंदे की क़ैद से छुटकारे का ज़रिया भी थे.
असलम:"कोई बात नही. ये तो मेरा फर्ज़ बनता है."
किरण:"आरे बतो मे कुछ याद ही नही रहा. 5 मिनिट मे अगर काम पे ना पोहन्चे तो गड़बड़ हो जाएगी. अंकल आप बुरा ना मानिए पर हमे फॉरन जाना पड़ेगा."
असलम:"घबराओ मत मे अपनी गाड़ी पे छोड़ देता हूँ. बताओ कहाँ जाना है?" किरण ने जल्दी से उन्हे पता बताया और कुछ ही देर मे वो दोनो असलम सहाब की गाड़ी मे कॉल सेंटर की जानिब जा रही थी. तीनो ही अपनी अपनी सौचौं मे गुम थे. किरण आज़ादी की नयी ज़िंदगी का सौच रही थी तो मोना एक ही दिन मे कितना कुछ हो गया ये सौच रही थी और असलम सहाब शीशे से मोना को देख कर सौच रहे थे के कम से कम उनके बेटे की पसन्द तो उन पे गयी. और यौं मोना की ज़िंदगी का सफ़र एक नये मोड़ पे चल पढ़ा. कुछ ही आरसे मे उसकी ज़िंदगी एक नये शहर मे इतनी जल्दी बदल जाएगी ये उसने सौचा नही था. पर उसे क्या पता था के ज़िंदगी ने उसे अभी और क्या क्या रंग दिखाने हैं?.
रात के 12 बज रहे थे और असलम सहाब अपने कमरे मे लेटे हुए थे. नींद आँखौं से दूर थी और आज जो हुआ उसके बारे मे सौच रहे थे. कभी कभार इंसान सौचता तो कुछ और है पर हो उससे कुछ और जाता है. ये ही कुछ असलम सहाब के साथ भी हुआ था. घर मे दोनो बेटो को झगरता देख उन्हे बहुत दुख हुआ था. पर अली की आँखौं मे गुस्सा देख मामला ठंडा करने के लिए इमरान को उन्हों ने झाड़ दिया था. मोना से मिलने वो कोई बेटे का रिश्ता पक्का करने नही गये थे बल्कि उससे मिल कर ये मामला हमेशा के लिए ख्तम करने गये थे. बहुत जूतिया घिस घिस के वो यहाँ तक पोहन्चे थे और ये नही चाहते थे के कभी ऐसा उनके बेटो के साथ भी हो. इमरान की शादी बड़े उँचे घराने मे करवाई थी और अब ऐसा ही उन्हो ने अली के लिए भी सौच रखा था. अली ने जब उन्हे किरण के घर मोना है ये बता के वहाँ का पता दिया तो वो गये तो इस कहानी को हमेशा के लिए ख़तम करने गये थे पर हुआ वो जो उन्हो ने भी नही सौचा था. किरण के बारे मे थोड़ी छान बीन उन्हो ने कोई बहाना ढूढ़ने के लिए की थी और जो पेसे भी बाद मे उसे दिए वो कुछ घेंटे पहले एक क्लाइंट से पेमेंट ली थी जो उनके पास थी. फिर ये सब हुआ केसे? जाने क्यूँ मोना को देख कर उन्हे अपनी मरहूम पत्नी की याद आ गयी. वो भी तो छोटे से शहर की थी और संस्कार भी वैसे ही थे जैसे उन्हो ने मोना मे देखे. पेसे तो पहले ही बहुत हैं पर ऐसी लड़की भला कहाँ मिलेगी? "अली लाख गधा सही पर कम से कम पसंद तो बाप जैसी ही है." वो सौच कर मुस्कुराने लगे.