Chudai Story मौसी का गुलाम - Page 4 - SexBaba
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Chudai Story मौसी का गुलाम

मौसी ने मेरी चुदासी बुझाने की बिलकुल कोशिश नहीं की और मुझे कहने लगी कि दोपहर तक सब्र करूँ मैं उसकी घनी ज़ुल्फों में पीछे से मुँह छुपाकर बोला "मौसी, दोपहर को तो ललिता आ जाएगी, फिर क्या करेंगे?"

वह शैतानी से बोली कि ललिता आएगी इसीलिए तो रुकना है मैं कुछ कुछ समझा और बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी उत्तेजना दबाई खाना खाकर मौसी ने पानी पिया और फिर मेरी प्यास बुझाने को मुझे बाथरूम में ले गयी, जहाँ उसने मन लगाकर मेरे मुँह में मूता बाहर आकर एक दूसरे के शरीर से खेलते हुए हम फिर ललिता का इंतजार करने लगे

घंटी बाजी और मौसी ने बड़ी अधीरता से दरवाजा खोला ललिता पान चबाती हुई अंदर आई उसने एक नीली साड़ी और चोली पहन रखी थी साड़ी उसने घुटनों के उपर बाँध रखी थी जैसे अक्सर काम करते समय नौकरानियाँ करती हैं; इससे उसकी चिकनी गठी पिंडलियाँ सॉफ दिख रही थीं

मौसी ने दरवाजा लगाकर अंदर से सिटकनी लगाई और फिर वापस आकर सोफे पर बैठते हुई अधीर होकर पूछा "ललिता, पान लाई है ना? भूली तो नहीं? ला जल्दी मुझे दे"

शन्नो ने हँसकर सिर दुलाकर हाँ कहा और पान चबाती रही उसके होंठ पान के रस से लाल हो गये थे और पान की सौंधी खुशबू पूरे कमरे में फैल गयी थी मेरी ओर उसने देखा और फिर मौसी की ओर देखकर आँखों आँखों में कुछ पूछा मौसी मुस्करा दी और ललिता समझ गयी कि मेरे वहाँ होने की वह परवाह ना करे, ऐसा मौसी कह रही है

मुझे अब तक उसके हाथ में कुछ भी नहीं दिख रहा था इसलिए मैं यह सोच रहा था कि उसने मौसी का पान कहाँ रखा है मुझे लगा कि पुडिया शायद उसने अपनी साड़ी में खोस रखी होगी पर अगले ही पल मुझे समझ में आ गया कि वह रसिया नौकरानी अपनी मालकिन के लिए पान कैसे लाई है

ललिता चल कर मौसी के पास आई और अपनी बाँहें मौसी के गले में डालकर उसने अपने लाल लाल होंठ मौसी के होंठों पर रख दिए मौसी ने भी उसकी कमर में बाँहें डालकर उसे पास खींच लिया और दोनों एक गहरे चुंबन में बँध गयीं मौसी ने अपना मुँह खोला और चूमने चूमने में ही ललिता ने अपने मुँह का चबाया हुआ पान और रस मौसी के मुँह में दे दिया

मौसी ने उसे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और एक दूसरे का मुँह चूसती हुई वे आपस में लिपट कर बेतहाशा चूमा चाटी करने लगीं आख़िर जब उनका चुंबन बंद हुआ तो मैंने देखा कि मौसी के होंठ भी अब लाल हो गये थे दोनों औरतें एक दूसरे की आँखों में बड़ी वासना से झाँक रही थीं
 
"क्यों दीदी, पान कैसा है?" ललिता ने लडिया कर पूछा मौसी ने पान चबाते हुए ललिता का सिर अपने हाथों में पकडकर कहा "तेरे मुँह का स्वाद भरा है तो मस्त ही होगा मेरी चुदैल बाई"

अब दोनों औरतें वासना से फनफनाकर एक दूसरे से लिपटकर चुम्मा चाटी करती हुई एक दूसरे के कपड़े उतारने लगीं ललिता पहले नंगी हो गयी क्योंकि उसने सिर्फ़ साड़ी चोली पहनी थी मौसी को नंगा होने में कुछ समय लग गया क्योंकि वह साड़ी, ब्लओज़, पेटीकोट, ब्रेसियार और पैंटी, सारे वस्त्र पहने हुए थी ललिता अब तैश में थी और मौसी के कपड़े खींचती हुई थोड़ी चिढ कर बोल पडी "क्या दीदी, तरसाती क्यों हो? पहले ही कपड़े निकालकर तैयार रहना था हमेशा की तरह"

"लेट आने की और मुझे इतने दिन तडपाने की सज़ा दे रही हूँ तुझे हरामज़ादी" मौसी ने भी खुलकर गाली दी मादरजात नंगी होकर दोनों औरतें अब एक दूसरे को चिपटकर सोफे पर गिरकर बेतहाशा एक दूसरे को चूमते हुए एक दूसरे के बदन को वासना से नोंचने लगीं बड़ा मादक सीन था, मौसी की गोरी चिकनी भरी हुई मांसल काया और ललिता का काला सांवला गठा हुआ छरहरा देसी बदन आपस में लिपटे हुए गजब ढा रहे थे

"ललिता, पहले मेरी चुनमूनियाँ चूस, सुबह से गीली है, चल जल्दी कर, चुनमूनियाँ का पानी पी ले फटाफट" कहते हुए मौसी ने ललिता को अपने सामने ज़मीन पर अपनी फैली टाँगों के बीच बिठा लिया ललिता ने झपटकर मौसी की चुनमूनियाँ में सिर छुपा लिया और चूसने लगी उसका सिर मौसी की जांघों में उपर नीचे होने लगा वह मौसी की पूरी चुनमूनियाँ उपर से नीचे तक चाट रही थी

मौसी ने उसका सिर अपनी झांतों में दबा लिया और उसे पकडकर अपने नितंब आगे पीछे करते हुए धक्के लगाने लगी "साली हरामी, ठीक से चूस, जीभ घुसेड अंदर तक, और ज़रा मेरे बटन को गुदगुदा उसपर जीभ रगड"

दो ही मिनिट में शन्नो मौसी ऐसी झडी कि एक चीख के साथ सोफे में ढेर हो गई"हाइईईईईईईईईईई रीईईईईईईईईईईई झड गयी रेईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई &, मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर गयी रे कितने दिन के बाद तेरी जीभ से चुदवाने का मज़ा आया ललिता रानी, साली चुदैल, अब तूने चूस ली तो देख क्या करती हूँ!" ललिता ने स्वाद ले लेकर मौसी की चुनमूनियाँ से पूरा रस चाट चाट कर सॉफ कर दिया

क्रमशः……………………
 
मौसी का गुलाम---17

गतान्क से आगे………………………….

अब मौसी की बारी थी अपनी नौकरानी का देसी रस पीने की पर उसने मेरी ओर निगाह डाली तो देखा कि मैं लंड हाथ में लेकर मुठ्ठ मार रहा हूँ असल में दो औरतों की इस नंगी कामक्रीडा ने और ख़ास कर गंदे गंदे शब्दों में एक दूसरे को गाली देते हुए भोगने के इस नये तरीके को देखकर मैं पागल सा हो गया था सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मौसी ऐसे शब्दों का प्रयोग खुल कर अपनी नौकरानी के साथ संभोग करते हुए करेगी

मौसी मुझे हस्तमैथुन करते हुए देखकर चिल्लाई "अरे ललिता, यह बदमाश लडका तो मुठ्ठ मार रहा है ऐसा नहीं चलेगा राजा, चल ललिता इसे बाँध देते हैं और गरम होने दे इस नालायक को, फिर मज़ा लेंगे" और फिर हँसते हुए दोनों ने मिलकर मेरी मुश्कें बाँध कर मुझे एक नीची बेंच पर लिटा दिया मैं गिडगिडाता रहा गया पर मेरी उन्होंने एक ना सुनी

"इसका लंड तन्ना कर अपने लिए तैयार रहेगा अब दीदी पर कुछ भी कहो, बड़ा लंबा हाथ मारा है दीदी आपने इतना चिकना और ज़रा सा छोकरा पटा लिया! और वह भी सग़ी बहन का लडका!" ललिता हँसते हुए मेरी गाँठें कसते हुए बोली

मौसी फिर ललिता का हाथ पकडकर उसकी आँखों में देखती हुई बोली "चल मेरी चुदैल रानी, अब मुझे तेरी रसीली चूत चूसने दे मुठ्ठ मार कर तो नहीं आई साली?" ललिता मौसी को प्रेम से चूमती हुई बोली "माँ कसम दीदी, एक हफ्ते से नहीं झडी, तुम्हारे लिए बचा कर रखा है अपनी चुनमूनियाँ का यह देसी माल हमें मालूम है आप कितना इसे पसंद करती हो"

ललिता ने बड़े प्यार से शन्नो मौसी को सोफे पर लिटाया फिर बहुत प्रेम से उसने मौसी का मुँह चूमा मौसी ने अपने कोमल गुलाबी होंठ खोले और जल्द ही वे अपनी जीभें लडाती हुए एक दूसरे के मुँह को भूखों की तरह चूसने लगी चुम्मा लेते हुए ललिता लगातार मौसी की चुचियाँ दबा रही थी और उसकी चुनमूनियाँ में उंगली कर रही थी

आख़िर झल्लाकर मौसी ने ज़ोर से ललिता के चुतडो पर एक चपत लगाई "चल, खेल मत, चुनमूनियाँ चुसवा अपनी" अपनी मालकिन की इस अधीरता पर खिलखिलाते हुए आख़िर ललिता उठ कर मौसी के सिर के दोनों ओर घुटने टेककर बैठ गई अपनी टपकती चुनमूनियाँ को मौसी के मुँह पर जमा कर उसने आगे झुककर सोफे का हैँडरेस्ट पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से मौसी के मुँह को चोदने लगी

मौसी चटखारे ले लेकर अपनी प्यारी नौकरानी की रसीली काली चुनमूनियाँ चूस रही थी अपने हाथ उसने ललिता के चुतडो के इर्द गिर्द डाले और उसे और पास अपने मुँह पर खींच लिया
 
चुनमूनियाँ चूसते हुए सहसा मौसी ने अपनी एक उंगली ललिता की गान्ड में घुसेड दी और दूसरे से उसके चुतड दबाने लगी ललिता दर्द से चिहुक उठी "उई माँ मररर्र्र्र्र्र्र्र्ररर गैिईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई, गान्ड में उंगली मत करो दीदी, दुखता हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई, मैं हमेशा तुम को बोलती हूँ पर आप बार बार उंगली करती हो" पर मौसी को मज़ा आ रहा था वह उंगली करती रही थोड़ी देर के लिए मुँह ललिता की चुनमूनियाँ से निकालकर बोली "तेरी गान्ड बहुत सकरी है ललिता रानी, मरवाएगी तो बहुत दुखेगा तुझे कभी मरवा ले, मज़ा भी आएगा!"

ललिता मौसी के मुँह को सपासाप चोदती हुई "इसी लिए तो नहीं मरावाती कभी दीदी, मुझे तो बस चूत चुसवाने में मज़ा आता है और वह भी आप से" मौसी के मुँह को उछल उछल कर चोदते हुए बीच बीच में ललिता सिर घुमा कर मेरी ओर देखती और मेरे तने हुए लंड को देखकर हँसकर आँख मारकर चुपचाप अपने होंठों से आवाज़ ना किए बोलती "अब तेरी बारी है राजा चूसेगा?" मैं तो यह सब देखकर पागल हुआ जा रहा था लंड ऐसा खड़ा हो गया था कि जैसे लोहे का डंडा हो

मन भरकर ललिता की चुनमूनियाँ चूसकर और उसे कई बार झडाकर आख़िर मौसी की प्यास कुछ बुझी ललिता को अपनी बाँहों में खींच कर उसे चूमते हुए मौसी बोली "मज़ा आ गया साली तेरी चुनमूनियाँ चूस कर, आज तो तेरी चुनमूनियाँ का पानी बहुत गाढा था, शहद जैसा" मेरी ओर देखकर हँसते हुए वे आपस में कुछ बातें करती हुई खिलखिलाकर हँसने लगीं

"दीदी, तुम बड़ी चुदैल हरामी निकलीं, अपने सगे भांजे को ही चोद डाला वह भी इतने छोटे बच्चे को? और ना जाने क्या क्या कराया होगा बेचारे से" ललिता के चुतड मसलते हुए मौसी ने जवाब दिया "तो क्या हुआ री रंडी, अगर मेरा बेटा होता तो भी मैं ऐसा ही करती, और कब का उसे चोद चुकी होती ऐसा मस्त कुँवारा माल कोई छोडता है!"
 
कुछ देर बाद वे उठ खडी हुईं शन्नो मौसी ने एक मदभरी अंगड़ाई ली और उससे उसके उरोज तन कर और खड़े हो गये साथ ही पसीने से लथपथ उसकी कांखें मुझे सॉफ दिखीं मेरी जीभ अपने आप अपने प्यासे होंठों पर फिरने लगी मेरी नज़र भाँपकर मुस्कराकर ललिता को हाथ से पकडकर खींचते हुए मौसी मेरे पास आई झुककर मेरा चुंबन लिया और फिर मेरे लंड को मुठ्ठी में पकडकर बोली "लगता है मेरा पसीना चाटने का मूड है तेरा राज बेटे? है ना? शाब्बास, ये ले, चाट"

और अपनी कांखें उसने मेरे मुँह पर लगा दीं उन पसीने से भीगे बालों को मैं चूसने लगा मेरे देखते देखते मौसी का दूसरा हाथ उठाकर ललिता ने उसमें मुँह छुपा लिया मेरे चेहरे के आश्चर्य पर मौसी हँसने लगी "मेरी नौकरानी को भी यह अच्छा लगता है खूब कांखें चाटती है मेरी अब तेरे साथ मिल बाँट कर चखना पड़ेगा उसे"

हम दोनों से अपनी कांखें सॉफ करवाने के बाद मौसी ने मुझसे कहा कि मैं ज़रूर भूखा हुँगा और इसलिए उसकी चुनमूनियाँ के रस से अच्छा क्या होगा मेरी भूख मिटाने को? जिस बेंच पर मैं बँधा था, मौसी उसके दोनों ओर अपने पैर फैला कर खडी हो गई मुझे जीभ बाहर निकालने को कहकर उसने जीभ अपने भगोष्ठो में ली और नीचे मेरे मुँह पर अपनी चुनमूनियाँ जमा कर बैठ गयी और उसे चोदने लगी

उसकी झांतों में मेरा मुँह छुप गया और मौसी का पूरा वजन मेरे मुँह पर आ गया मेरा दम घुटने लगा पर यह बड़ी मीटी घुटन थी मैं जीभ से मौसी की चुनमूनियाँ चोदते हुए उसे चूसता रहा चिपचिपा रस मेरे मुँह में बह निकला और मैं मन लगाकर अपनी मौसी के उस अमृत को पीने लगा

तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरे लंड को दो खुरदरे हाथों ने पकड़ा और साथ ही एक गीले गरम मुँह ने मेरा सुपाडा चूसना शुरू कर दिया सॉफ था कि ललिता रानी अपनी मालकिन के भांजे के लंड पर मेहरबान हो गई थी

मौसी ने मेरे मुँह को चोदना जारी रखकर सिर घुमा कर उससे कहा "ललिता, चूस ले, माल है, पर झडाना नहीं! इस बच्चे को अगर झड़ाया तो मार मार कर भुर्ता बना दूँगी तेरा" ललिता हँस पडी और बिना ध्यान दिए चूसती रही हाँ मौसी की बात से सावधान को कर उसका चूसना ज़रा धीमा हो गया जब मैं तडपता तो साली मुँह हटा लेती और जब मैं संभलता तो फिर चूसने लगती

जल्द ही मौसी ने झड कर अपना रस मुझे पिलाया और फिर चुनमूनियाँ और जांघें पूरी मुझसे चटवाकर सॉफ करवा कर उठ बैठी बेंच पर से उतर कर ललिता के बाल खींच कर उससे मेरे लंड को छुडाया और उसे प्यार से बोली "चल रान्ड, अब तुझे इस चिकने लंड से चुदवाती हूँ"

क्रमशः……………………
 
मौसी का गुलाम---18

गतान्क से आगे………………………….

ललिता अधीरता से मेरे लंड के उपर पैर फैला कर खडी हो गयी, मौसी ने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ा और दूसरे हाथ से ललिता की चुनमूनियाँ खोलकर उसमें मेरा सुपाडा फंसा दिया फिर ललिता को नीचे बैठने को कहा ललिता की चुनमूनियाँ बड़ी टाइट थी और जैसे मेरा लंड उसमे धीरे धीरे घुसा, मैं सुख से सिसक उठा मुझे लगा नहीं था कि इस उम्र में भी उस नौकरानी की चुनमूनियाँ ऐसी सकरी होगी

ललिता को भी बड़ा मज़ा आया और सिसकारियाँ भरते हुए वह धीरे धीरे मेरे लौडे को अंदर लेती हुई मेरे पेट पर बैठने लगी "हाय दीदी क्या मस्त लौडा है, बच्चा है पर फिर भी क्या कस कर खड़ा है, बहुत दिन हुए लंड को अपनी चूत में ले के बड़ा मज़ा आ रहा है दीदी"

मौसी ने पूछा "मुझे मालूम है कि तूने अपने मर्द को छोड़ दिया है तो साली तू रात में आजकल क्या करती है, और किसी से चुदवाती नहीं क्या? तेरे जैसी चुदैल को तो बहुत लौडे मिल जाएँगे गाँव में"

शन्नो शैतानी से बोली "वह मेरे और मेरी बेटी के बीच की बात है, नहीं बताउन्गि, शरम आती है पर कभी कभी एक छोटा गाजर या ककडी घुसेड लेती हूँ, मेरी बेटी को बाद में खाने में मज़ा आता है " सुनकर मैं चकरा गया माँ बेटी के इन कारनामों को सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया लगा ललिता आगे भी बताएगी पर उस बदमाश ने चुप्पी साध ली और हँसती रही

आधा लंड अब तक ललिता की चुनमूनियाँ में घुस चुका था मौसी ने जल्द उसे घुसेडने के लिए ललिता के कंधों पर हाथ रखकर उसे ज़ोर से नीचे दबा दिया फच्च से पूरा लंड अंदर चला गया और उसकी झांतें मेरे पेट पर आ टिकीं

मेरा लंड अंदर लेकर ललिता का मुँह असहनीय आनंद से खुला था और वह ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी एक मिनिट वह अपनी चुनमूनियाँ में फँसे लंड का मज़ा लेती हुई बैठी रही और फिर धीरे धीरे मुझे चोदने लगी उसकी गरमा गरम गीली चुनमूनियाँ इतनी कस के मेरे लंड को पकड़े थी कि मैं चहक उठा "मौसी, ललिता की चूत क्या टाइट फिट होती है मेरे लंड पर, जैसे कोई छोटी बच्ची की हो"
 
मौसी ने मुझे समझाया "अरे ये सिर्फ़ लड़कियों को ही भोगती है, चुदवाती कभी नहीं, इसलिए साली हरामी ऐसे टाइट है" अब तक ललिता अपने हाथ बेंच पर टेक कर उनके सहारे उचक उचक कर मुझे जोरों से चोदने लगी थी उसके छोटे पर कड़े और पुष्ट स्तन टेनिस बोल्ल जैसे उछल रहे थे उसके काले निपल वासना से छोटे जामुनों जैसे कड़े हो गये थे

शन्नो मौसी ने झुककर अपना एक निपल मेरे मुँह में दे दिया और चूसने को कहा खुद वह ललिता के सिर को अपनी हथेलियों में पकडकर उसकी आँखों में देखती हुई उसके होंठ चूमने लगी

ललिता ने मुझे बहुत देर चोदा साली मुझे बिना झडाये चोदने में माहिर थी आख़िर खुद झड गयी और मौसी के मुँह में अपनी जीभ डालकर चुसवाने लगी उसकी झडती चुनमूनियाँ मेरे लंड को गाय के थन जैसा दुह रही थी

मस्ती उतरने पर मौसी को कर वह खुशी खुशी मेरा लंड अपनी चुनमूनियाँ से निकालकर खडी हो गयी मेरा फनफनाया लंड बाहर आते समय पुक्क की आवाज़ आई मौसी ने अपना दूसरा निपल मुझे चूसने को दिया और ललिता को इशारे से पास बुलाया

वह साली अपनी मालकिन के मन की बात जानती थी पास आकर पैर फैलाकर मौसी के सामने खड़ा हो गयी और मौसी ने उसकी झडी चुनमूनियाँ को चाट चाट कर सॉफ कर दिया चुनमूनियाँ चाटने के बाद मौसी झुकी और मेरा लंड चाटकर और चूसकर अपनी प्यारी नौकरानी के गुप्ताँग का रस मेरे लंड से पूरा सॉफ कर दिया

अब मौसी मुझे चोदने को तैयार हुई मेरे लॅम्ड को अपनी चुनमूनियाँ में खोंस कर वह मेरे पेट पर बैठी और ललिता से बोली "ललिता रानी, अब मैं ज़रा अपने प्यारे बेटे को चोद लूँ, पहले तू मेरी चूची चूस, फिर तू भी इसके मुँह में अपनी छूट दे दे और चुसवा ले, देखें तेरा मसालेदार देसी रस इसे कैसा लगता है"

मेरा लौडा मौसी की गीली चुनमूनियाँ में आराम से समा गया और वह मुझे चोदने लगी उसके मोटे मोटे मम्मे और उनके बीच का मंगलसूत्र बड़े लुभावने तरीके से उछल रहे थे ललिता ने अपनी मालकिन के कहने पर उसके मम्मे मसलते हुए निपल चूसना शुरू कर दिए कुछ देर स्तन पान करवा कर मौसी ने उसे मेरे मुँह पर चढ जाने का आदेश दिया "इसे ज़रा अपना देसी माल तो चखा, आख़िर इसे भी तो पता चले कि इसकी मौसी क्यों अपनी नौकरानी की चूत की दीवानी है"
 
ललिता आकर मेरे मुँह पर अपनी चुनमूनियाँ रख कर तैयार हो गयी अब तक मैं उसकी चुनमूनियाँ चूसने को बड़ा लालायित हो चुका था ललिता की झांते मौसी से छोटी और घूंघराली थीं काले पेट पर काली झांतें बड़ी प्यारी लग रही थीं उस साँवली चुनमूनियाँ में लाल लाल छेद और उसमें से टपकता सफेद रस देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया

मेरी आँखों में झलक रही भूख को देखकर ललिता हँसकर मेरे मुँह में चुनमूनियाँ देकर बैठ गयी और मैं उस पूरी चुनमूनियाँ को मुँह में लेकर चूसने लगा उसका रस मौसी से बहुत अलग था, मानों एक अँग्रेज़ी शराब थी और दूसरी देसी ठर्ऱा भले ही उस उम्र में मैंने कभी शराब नहीं पी थी पर फिर भी यह मैं कह सकता हूँ ललिता का क्लिट भी एक छोटे कंकड़ जैसा कड़ा था और उसे मैं जब भी जीभ से चाटता तो साली उछल कर चीख देती

मौसी अब तक पीछे से ललिता के दोनों स्तन हाथों में लेकर धीरे धीरे मसल रही थी ललिता ने आख़िर मस्ती में मेरे मुँह को चोदते हुए अपना सिर घुमाया और गुहारने लगी "दीदी, ज़रा ज़ोर ज़ोर से मसलो मेरी चूचियों को, बहुत सताते हैं यह साले मम्मे मुझे कुचल डालो दीदी, सालों को पिलपिला कर दो"

मौसी ने भी ऐसे चुचियाँ मसली कि सुख और यातना की मिली जुली मार से ललिता सिसक सिसक कर तडपने लगी और अपना मुँह खोल कर अपनी जीभ मौसी को दिखाने लगी मौसी ने उस लाल जीभ को मुँह में पकड़ा और चूसने लगी, साथ ही दाँतों में दबाकर धीरे धीरे चबाने लगी मुझे अब दोनों मिलकर ऐसे ज़ोर से चोद रही थीं कि जैसे घुडसवारी कर रही हों बेंच भी चर्ऱ मर्ऱ चर्ऱ मर्ऱ करती हुई हिलने लगी

मैं झडने को मरा जा रहा था पर मेरी चुदैल एक्स्पर्ट मौसी के सामने मेरी क्या चलती मुझे बिना झडाये दोनों ने खूब मज़ा किया ललिता ने झड झड कर करीब कटोरी भर चिपचिपा देसी ठर्ऱा तो मुझे ज़रूर पिलाया होगा आख़िर मन भर कर झड कर दोनों रुकीं और उठ कर खडी हो गयीं

मौसी ने पहले मेरे लंड को ललिता से चटवाया "साली, चाट ले लंड को, मेरा रस उसपर लगा है, बेकार नहीं जाना चाहिए" फिर उसने ललिता से अपनी चुनमूनियाँ चुसवाई "इतना रस निकाला है मेरी चूत से इस लडके के लंड ने, तू ही पी ले मेरी रानी" ललिता अब झड झड कर बिलकुल ठंडी हो गयी थी और अपनी मालकिन की हर आग्या का पालन कर रही थी

मौसी ने अब मेरे बंधन खोले और कहा कि मैं सच में बड़ा प्यारा मुन्ना हूँ और मैंने उन दोनों को बहुत सुख दिया है इनाम के तौर पर मौसी ने मुझसे कहा "चल मेरे राजा बेटा, अब तुझसे ललिता की गान्ड मरवाती हूँ तुझे भी मज़ा आ जाएगा इस नालायक की टाइट गान्ड मारकर"

ललिता घबरा गयी और मुकरने लगी मैंने पहले ही देखा था कि उसका गुदा सच में काफ़ी सकरी था और उंगली डालने पर भी दर्द होता था वह अब धीरे धीरे सरकती हुई हमसे दूर जा रही थी और भागने का रास्ता ढुन्ढ रही थी मौसी समझ गयी और झपट से कस कर दबोच लिया "भागती कहाँ है रानी, काम बाद मे कर लेना गान्ड तो मरा ले, फिर चली जाना"

गिडगिडाती ललिता को धकेल कर मौसी बिस्तर पर ले गयी और उसे ओन्धे मुँह पटककर उसके हाथ पकडकर खुद उसके सिर पर बैठ गयी कि वह भाग ना सके ललिता की गान्ड में मेरा लंड ठूँसने की कल्पना ही मौसी को इतना उत्तेजित कर रही थी कि वह अपनी चुनमूनियाँ में खुद ही उंगली करने लगी और मुझसे ललिता पर चढ जाने को कहा

क्रमशः……………………
 
मौसी का गुलाम---19

गतान्क से आगे………………………….

मैंने मौसी से पूछा कि गुदा चिकना करने के लिए क्या लगाऊ मौसी अब काफ़ी सेडिस्टिक मूड में थी बोली "नहीं राजा, साली की सूखी ही मारो, रोने दो दर्द से, बाद में देखना कैसे मस्त गान्ड मरवाएगी मादरचोद, फालतू में नखरा करती है"

मैंने एक क्षण भी इंतजार नहीं किया और ललिता के ओन्धे बदन पर चढ कर अपना बुरी तरह से सूजा सुपाडा उसकी भूरी ज़रा सी गुदा में पेलने लगा ललिता छटपटा उठी रोते हुए अपनी मौसी के नीचे दबे मुँह से अस्पष्ट आवाज़ में बोली "दीदी, मेरा छेद सचमुच बहुत सकरा है, दुखेगा, मत चोदो इसे, इसमें तो मैं कभी उंगली भी नहीं करती, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ दीदी, मेरी गान्ड मत मारो और कुछ भी करवालो मुझसे मारना ही है तो कम से कम गान्ड के छेद को चिकना तो कर लो"

साथ ही अपनी गुदा को सिकोड कर वह मेरे लंड को बाहर ही रोकने की कोशिश करने लगी मैंने अपने हाथों से उसके चुतड अलग किए और सुपाडा अंदर उतार ही दिया असल में मेरा लंड अब इतना कड़ा हो चुका था कि लोहे के राड जैसा मैं उसे कहीं भी घुसा सकता था मेरी मार को ललिता की गान्ड ना सह सकी और जवाब दे गयी उसकी गुदा खुल गयी और सट्ट से मेरा आधा लंड अंदर चला गया

ललिता ऐसे तडपी जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो उसने चीखने की भी कोशिश की पर मौसी ने उसका मुँह दबोच कर उसे चुप कर दिया मैंने फिर ज़ोर से अपना लौडा पेला और एक ही बार में जड तक लंड ललिता की गान्ड में उतार दिया मौसी भी मस्त होकर बोली "शाब्बास मेरे शेर, ऐसी मारी जाती है गान्ड, साली को अब ऐसे चोदो कि उसकी गान्ड फट जाए

मैं ललिता की गान्ड मारने लगा ललिता का गुदा उसकी चुनमूनियाँ से बहुत ज़्यादा टाइट था बल्कि मौसाजी की मर्दानी गान्ड से भी ज़्यादा टाइट था लंड को ऐसे ज़ोर से पकड़ा था कि सरकता ही नहीं था चिकनाई भी नहीं थी इसलिए घर्षण भी हो रहा था उस सूखी मखमली टाइट गरमागरम म्यान को चोदने में इतना आनंद आया कि क्या कहूँ
 
ललिता के सिसकने और तडपने से मेरे आनंद में और चार चाँद लग गये साली ने बहुत देर मुझे तडपाया था अब मैं अपना बदला ले रहा था मौसी ने अब उसका मुँह छोड़ दिया था और ललिता अब रो रो कर गुहार कर रही थी "राजा बेटा, दया कर मुझ पे, बहुत दुखता है रे, आईईईईईईईईईईईईईईईईई फट्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त जाएगी रीईईईईईईईईईईईईईईईईईई, मत गान्ड माररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर मेरी, ऊीीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई म्माआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह पर अब शायद उसे थोड़ा मज़ा भी आ रहा था क्योंकि रोने चिल्लाने के साथ उसका हाथ अपनी जांघों के बीच पहुँचकर अपने क्लिट को खुद ही रगड रहा था

मेरे जोरदार धक्कों से उसका शरीर लगातार हिल रहा था मैंने ललिता की गान्ड मारते हुए अपने हाथ से उसकी चुनमूनियाँ टटोली तो उसमें से छिपचिपा सफेद रस निकाला साली बुरी तरह पानी फेक रही थी मौसी भी अब अपनी नौकरानी की गान्ड की ठुकाई देखते हुए जमा के हस्तमैथुन करा रही थी और मुझे और ज़ोर से मारने को कह रही थी "मार ज़ोर से राज बेटे, मार मादरचोद की गान्ड, बहुत बनती है साली, बिलबिलाने दे इसे, तू बस गान्ड मारता रह इसकी फाड़ डाल तो और इनाम दूँगी तुझे"

फिर अपना एक हाथ उसने ललिता की चुनमूनियाँ में लगाकर देखा और अपनी उंगली पर लगे रस को चाटा मुझे बोली "राज, यह चुदैल फालतू नखरा कर रही है, इसकी चूत तो पानी फेक रही है और पानी भी मस्त स्वाद वाला है साली रंडी को मज़ा आ रहा है, तू मारता जा इसकी गान्ड और देख इसके मम्मे भी मत छोड़ , मसल डाल, यही मौका है"

मैंने हाथों में ललिता के उरोज पकड़े और जितनी ज़ोर से हो सकता था उतनी ज़ोर से कुचलने और मसलने शुरू कर दिए ललिता फिर दर्द से कराह उठी और मुझे मज़ा आ गया मौसी ने भी ललिता को ऐसा तडपाने के लिए मुझे शाबासी दी "बहुत अच्छे राजा, देख कैसे बिलबिलाई चूची दबाते हीअब उसके निपल खींच तो और हुनकेगी"
 
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