Chudai Story समाज सेविका - SexBaba
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Chudai Story समाज सेविका

hotaks444

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Nov 15, 2016
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समाज सेविका (भाग-1)
(लेखक – गुलफाम ख़ान)

मेरी पत्नी चूँकि पेशे से एक वकील है, इसलिए उसे
काफ़ी लोगों से मिलना जुलना है पड़ता है. खास तौर
से उन लोगों से जो समाज सेवी संस्थाओं से संबंध
रखते है. कयि लोग तो घर पर भी आ जाते है और
मेरी पत्नी धैर्य के साथ उनकी बाते, उनकी
समस्याए सुनती है. ऐसे ही लोगों मे एक है उर्मिला.
उर्मिला एक समाज सेविका है.

जब भी उर्मिला हमारे घर पर आती, मेरे मूह मे पानी
आ जाता. मैं अख़बार या कोई पत्रिका पढ़ने के
बहाने उसे चोर नज़रों से देखता. वो मेरी पत्नी से
काफ़ी बाते करती और कभी कभी नज़रे बचा कर मेरी
तरफ भी देख लेती. उसकी उमर लगभग 24 या 25 साल
होगी. उसकी आँखे मे अजीब सा नशा था. या यू कहिए
सेक्स की चाहत थी. ये मुझे क्यूँ महसूस हुआ, वो मैं
बता नही सकता, मगर मुझे हमेशा ऐसे ही लगता कि
वो मुझे देख कर नजरो ही नजरो मे सेक्स की दावत दे
रही है. मेरी उससे कम ही बातचीत होती थी. मगर
जब भी वो बात करती, उसके शब्दों मे दोहरा अर्थ
होता. मिसाल के तौर पर एक दिन जब वो आई तो मेरी
पत्नी बाथरूम मे थी. वो उसका इंतेजार करते सोफे मे
बैठ गयी. मैने निगाहों ही निगाहों मे उसे खा जाने
वाले भाव से देखा तो वो मुस्कुरा उठी. उसने बातों
का सिलसिला शुरू करने की गरज से पूछा... "मेडम
कहाँ है.. बेडरूम मे है क्या?"

मैने कहा...'नही बाथरूम मे'.

'अकेले ही!' उसने शरारती महजे मे कहा और हंस पड़ी.

मैं बोला, 'बाथरूम मे तो सभी अकेले होते है.'

वो फिर हंस पड़ी और बोली...'कमाल करते है आप,
बाथरूम और बेडरूम ही तो वो जगहे है, जहाँ किसी को
अकेला नही होना चाहिए.'

मैं कोई जवाब नही दे सका. वो भी चुप चुप हो गयी.

कुछ पल बाद मैने उससे पूछा...'आप करती क्या है?'

वो दो तीन सेकेंड तो मेरी तरफ देखती रही, फिर
बोली...'समाज सेवा.'

'कभी हमारी भी सेवा करदो...' मेरे मूह से निकल गया.

वो हल्के से मुस्कुराइ और बोली...'आपको क्या प्राब्लम
है?'

'बहुत ही खास प्राब्लम है...' मैने कहा

'तो बताइए'

'बताउन्गा...फिर कभी...'

'अकेले मे??' वो मेरी आँखे मे आँखे डालती हुई बोली.

मैं समझ गया कि इस औरत को पटाना कोई मुश्किल काम
नही. लगता है उसे भी मुझमे दिलचस्पी है. मगर
समाज सेवा के बहाने कयि लोगों के बिस्तर गर्म कर चुकी
होगी...ऐसी औरत से संबंध रखना ठीक भी होगा या
नही. मैं सोचने लगा. इतने मे मेरी पत्नी आ गयी और
वो दोनों घर से ही संग संग ऑफीस मे चले गये.
 
हमारा आपस मे एक अंजाना सा रिश्ता जुड़ गया था,
जिससे मेरी पत्नी नावाकिफ़ थी.
जब भी मेरा और उसका सामना होता, वो चोर नज़रों से
मुझे बार बार देखती. मेरा मन कभी हाँ करता और
कभी ना...देखने मे वो बहुत अच्छी थी. सेक्सी थी
कहना चाहिए. जिस्म बड़ा सी गुदाज सा था. पाँच फुट
पाँच इंच की होगी, लेकिन वजन 50 किलो से अधिक ना
होगा. अक्सर साड़ी पहनती थी और साड़ी से ब्लाउज का
फासला काफ़ी होता था. जिससे उसका नंगा गोरा पेट सॉफ
नज़र आता था. साड़ी वो नाभि के नीचे ही बाँधती
थी. उसकी नाभि का छेद बहुत सुहावना था. ऐसा
लगता था जैसे पेट पर कोई डिंपल हो. हमेशा सीना
ताने रखती थी. सीने का उभार गजब का था. मेरा
हमेशा दिल चाहता था कि अपना मूह दोनों उभारों के
बीच मे रख दूं और आँखे बंद करके गुम सूम हो
जाउ. कभी कभी वो जींस और टी-शर्ट भी पहनती थी.
उस वक्त उसके खूबसूरत कुल्हों और मेहनत से तराशे
हुए चुतडो (बम्स) का नज़ारा किसी जन्नत से कम नही
होता था. जब वो घूमती थी, तो क्या मज़ाल किसी की
नज़रे उसके मस्त चुतडो से हट जाए. और जब वो
सामने होती, तो कमर के नीचे, उसके ट्राउज़र की जिप
पर निगाहे रहती. जिप का भाग थोड़ा अंदर की तरफ
घुसा हुआ सा लगता था. इससे मालूम पड़ता कि उसके
पेट के नीचे का भाग कितना स्लिम है. मैं अपनी
कल्पना मे उसकी चूत का नज़ारा करता और ऐसा लगता
कि उसकी खूबसूरत चूत मेरे लंड तक पहुँचने के
मिए बेकरार है.


कुछ दिन वो नही दिखाई दी. मैं ऑफीस से शाम 6 बजे
घर आ जाता हू. रविवार को घर पर ही रहता हू.
मुझे पता चला कि वो अपने किसी ख़ास काम मे बहुत
व्यस्त है. मैने सोचा कि आख़िर मैं उसके बारे मे
इतना क्यों सोच रहा हू, या मेरे दिल ने कहा कि, बेटे,
तू उसकी चूत का दीदार करना चाहता है... तू उसे
घोड़ी बना कर उसे पीछे से चोदना चाहता है... तू
उसे इतना चोदना चाहता है कि फिर सारी उमर किसी
और को चोदने की चाहत बाकी ना रहे.

मैने अपने दिमाग़ को झटका और सोचने लगा कि क्या
वकाई मैं उसे चोदना चाहता हू... दिल ने कहा हां,
दिमाग़ ने कहा.. नही... क्यों नही?

इसलिए कि वो हर रोज पचासों लोगों से मिलती है...बड़े
बड़े लोगों से भी...पता नही कितनों के साथ सो चुकी
होगी.

तो क्या हुआ? सोई होगी तो सोई होगी...इसमे क्या? तू भी
सो जा एक बार...चूस लो उसकी जवानी. चढ़ जा उस पर.
घुसा दे अपना लंड उसकी चूत मे. मार
धक्के...लगातार...उस वक्त तक, जब तक कि वो ना
बोले...बस करो अभी.
क्या हर्ज है यार?
हां...हर्ज तो कुछ नही... चलो देखते है...अबकी
बार मिली तो...तो...तो...कैसे कहूँगा उससे अपने दिल
की बात?

और मेरी ये उलझन भी ख़तम हो गयी. बात अपने आप ही
बन गयी...
उस दिन रविवार था. मेरी पत्नी अपनी मा के यहाँ गयी
थी. उर्मिला को मालूम नही था शायद. वो कोई दो बजे
दोपहर को आ गयी. आते ही यहाँ वहाँ देखा और फिर
मुझे देख कर मुस्कुराइ और बोली... 'मेडम? बाथरूम
मे...???'

मैं भी मुस्कुराया और बोला... 'हाँ बाथरूम मे...और
अब भी अकेले ही.'
 
वो सोफे पर बैठ गयी और एक मॅगज़ीन उठा कर देखने
लगी. ये मेगज़ीने अँग्रेज़ी मे थी और उसमे पति और
पत्नी के संबंधों के बारे मे एक लेख था. विषय
था...पति-पत्नी के सेक्स जीवन के उलझाव.
वो उस लेख को पढ़ने लगी, फिर मेरी तरफ मुस्कुरा कर
देखने लगी और बोली...आपने पढ़ा ये आर्टिकल?
'नही...'
'क्यों नही?'
'हमारे सेक्स लाइफ मे कोई प्राब्लम नही है...इसलिए'
उसने फिर मेगज़िन मे अपनी नज़रे गाढ दी...फिर
अचानक पूछी...
'ये सेडक्षन का क्या मतलब होता है.'
मैं सोचने लगा. वो मेरी तरफ देख रही थी. उसने
फिर पूछा, 'बताइए ना...!'
'हूंम्म...सेडक्षन....सेडक्षन....' मेरी समझ मे नही
आया कि हिन्दी मे सेडक्षन को क्या कहते है. वो मेरी
तरफ लगातार देख रही थी...उसकी आँखे मे नशा सा
छाने लगा था...मैं उसे गौर से देखने लगा. उसके
होंठ खुश्क हो रहे थे. वो अपने होंठों होंठों पर
ज़बान फेरने लगी. मेरे मन मे आया कि यही मौका
है...चला दो तीर...निशाने पर लगने के 100% चान्स
है...
'बोलो ना...' वो इठला कर बोली...'क्या मतलब है
इसका?'
मैने कहा...'शायद चुदास!'
 
'क्या...क्या कहा....? मतलब?' वो हैरानी से बोली.
'चुदास नही समझती हो?'
'कुछ कुछ..क्या यही मतलब है सेडक्षन का?'
'हा, शायद... यानी अगर....मेरा मतलब है...कि ...
अगर कोई... अब कैसे समझाऊ तुम्हे?' मैं उलझा कर
बोला.
वो हँसने लगी और बोली...'कही चुदास का
मतलब...सेक्स करने की चाह तो नही?'

मैं उसे एक टक देखने मगा. उसके होंठों पर चंचल
मुस्कान थी.
मैने कहा...'ठीक समझी तुम.'
वो मेरी आँखों मे आँखे डालती हुई बोली... 'किस शब्द
से बना है...ये चुदास?' मैं उसकी आवाज़ मे कंप-कंपी
सी महसूस की.

मेरे दिल ने कहा...'गधे, इतना चान्स दे रही है...
तू भी बन जा बेशरम... वारना पछताएगा.'
मैं बोला...'चुदास...चोदना, इस शब्द से बना है?'
वो खिलखिला कर हँसने लगी और फिर जल्दी से चुप हो
कर बाथरूम की ओर देखने लगी कि कही मेडम ना आ
जाए.
वो फिर मेगज़िन की पन्ने पलटने लगी. मैं सोचने
लगा कि अब क्या करूँ. अचानक उसने फिर पूछा...'ये
वेजाइना का क्या मतलब होता है?'

मैने दिल ही दिल मे कहा...साली तू जान बूझ कर ऐसे
सवाल पूछ रही है...
मैने बिंदास हो कर कहा...'वाजीना, या वेजाइना...योनि को
कहते है...'
'व्हाट? योनि? योनि क्या?'
'योनि नही जानती हो...?'

'नही'
'चूत समझती हो?'
उसने झट से अपने मूह पर हाथ रख लिया और फिर
बाथरूम की तरफ देखने लगी.
'चूत समझती हो कि नही?' मैने पूछा.
वो मेगज़िन के पन्ने पलटते हुए धीरे से बोली...
'हाँ!'
'और फक्किंग ?'
वो फिर बाथरूम के दरवाजे की तरफ देखने लगी.
मैने कहा... 'मेडम नही है... अपनी मा के यहाँ गयी
है.'
उसने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराती हुई मेरी तरफ
देखने लगी. मेरे दिल ने कहा...मछली फँसी.
'तो मैं कल आती हू...' वो उठने लगी.
'ठहरो, आ जाएगी अभी... कहा था चार बजे शाम
तक आ जाएगी.'
'अभी तो दो ही बजे है.'
'तो क्या हुआ.. थोड़ा इंतेजार कर लो.'
'थोड़ा?.. पूरे दो घंटे बाकी है'
'हा तो क्या हुआ... मुझसे बाते करो....'
'क्या बात करूँ?'
'कुछ भी...ये बताओ तुम क्या करती हो?'
'कहा तो था, समाज सेवा करती हू.'
'किस किसाम की सेवा?'
'ज़रूरतमंद लोगों की ज़रूरते पूरी करना, उनकी
समस्याए सुलझाना...वग़ैराह.'

'मैं भी ज़रूरतमंद हू....मेरी ज़रूरत पूरी कर
सकती हो?'
'क्या ज़रूरत है आपकी?'
मैने उसके चेहरे पर नजरे गाढ दी और धीरे से
बोला...'तुम हो मेरी ज़रूरत.'
वो बिना कुछ कहे मेरी तरफ देखने लगी. फिर
बोली...'क्या करेंगे मेरे साथ?'
'वही जो एक आदमी एक औरत के साथ करता है....'
वो खामोश हो गयी....मैने हिम्मत करके बात आगे
बढ़ाई.... 'बड़ी चुदास महसूस हो रही है...'
उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और वो
बोली...'चुदास की प्यास?'
 
'वाह...बहुत अचाहा कहा तुमने...वाकई चुदास की
प्यास लग रही है.'
'सच कहु तो ये प्यास मुझे उस दिन से लगी है...जिस
दिन आपको पहली बार देखा था...'
वो मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से देखती हुई बोली.
मैने अपना शक दूर करने के लिए कहा...'तुम तो
इतने लोगों से मिलती हो...तुम्हारी प्यास तो कोई भी
मिटा सकता है... और शायद...'
'नही नही...अब इतनी भी गयी गुज़री नही हू
मैं...आपमे कुछ ख़ास बात है...'
'तो क्या तुमने कभी किसी के साथ....?'
'जब तक मेरा पति मेरे साथ था...तब तक... फिर
हमारा डाइवोर्स हो गया...और मैं दो साल से प्यासी हू.'
'ओह्ह... आइ सी...' मैने कहा... 'इसका मतलब है कि दो
साल से तुम्हारी चूत ने किसी लंड का मज़ा नही
चखा.'
'नही...' वो सर झुका कर बोली...'आप जैसा कोई
हॅंडसम आदमी नही मिला...'
'अगर मिल जाता तो...?'


'तो मैं अपनी चूत उसके लंड पर कुर्बान कर देती.'
'तो आओ... मेरा लंड तुम्हारी चूत पर न्योछावर होने
के लिए बेकरार है.' मैने उसके करीब जा कर उसका
हाथ पकड़ते हुए कहा.

वो फॉरेन मेरे सीने से लग गयी और मुझे ऐसा लगा
जैसे सीने मे ठंडक सी पड़ गयी हो. उसके गदराए
बदन से भीनी भीनी खुसबू आ रही थी. उसके मुलायम
बाल मेरे गालों को सहलाने लगे. मैने कस के उसे
अपनी बाहों मे जाकड़ लिया और उसके बाल पकड़ कर
उसके चेहरे को उपर उठाया. उसके होंठ खुल गये.
जैसे गुलाब की दो पंखुड़िया भवरे के पंजे मे फँस
जाने के बेताब हो. मैने उसके अधखुले गुलाबी होंठों
को हलके से अपने दाँतों मे पकड़ लिया. उसकी सिसकारी
निकल गयी. फिर धीरे से मैने उसके नरम नरम
होंठों को अपने मूह मे ले लिया. ऐसा लगा जैसे शहद
का घूँट पी लिया हो.
उसके कोमल होंठ अमृत कलश की तरह मेरी ज़बान को
तृप्त करने लगे. मैं धीरे धीरे उसके मस्त
होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगा.
मेरी आँखे बंद थी और उसकी भी. नशा सा छाने
लगा.
मैने महसूस किया कि उसके हाथ मेरे लंड की ओर बढ़
रहे है. मैने अपने टांगे फैला दी. उसने बड़ी
कोमलता से मेरे लंड को थाम लिया. फिर धीरे धीरे
उसे सहलाने लगी. मेरा लंड किसी लोहे की छड की तरह
सख़्त हो गया. वो पॅंट के ऊपर से ही मेरे लंड को
सहला रही थी, जैसे कोई औरत अपने बच्चे के
बालों को सहलाती है.
 
मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा था. मैने उसे एक तरफ
हटाया और फिर अपने अंडरवेर के साथ अपनी पॅंट
उतार दी. उसने मेरे लंड को तना हुआ देखा तो झट से
उसे पकड़ लिया. मैं काँप गया. उसने अपनी नाज़ुक
उंगलियों से मेरे लंड को थामा और दो उंगलियों से
उसकी मालिश करने लगी.. धीरे धीरे, कोमलता
से...सौम्यता से.

मेरे तन बदन मे आग सी लगी हुई थी.

वो ख़ास तौर से मेरे लंड के निचले तरफ की नस को
मसल रही थी, जिससे मेरा बुरा हाल था. कभी वो
लंड लंड के हेड को मसल्ति, तो कभी लंड के झाड़ को
अपनी उंगलियों से दबाती. फिर उसने अपनी मुट्ठी मे
मेरे लंड को पूरी तरह थाम लिया और हेड से जड तक
मसाज करने लगी. उसकी कोमल हथेली किसी स्वर्ग से
कम नही थी. लंड से निकलने वाली तरंगे मेरी आत्मा
तक को सराबोर कर रही थी.

मेरे आँखे बंद थी. अचानक मुझे अपने लंड पर कुछ
गीला गीला सा महसूस हुआ. देखा तो पता चला कि
उसने मेरे को अपने मूह मे ले लिया है. उसके रसीले
होंठ मेरे लंड के एक एक भाग को सहला रहे थे. मेरे
लंड का हेड उसके मूह मे था. फिर उसने धीरे धीरे
पूरे लंड को अपने मूह मे भर लिया. मैं अपना सर
इधर उधर करने लगा. ये पहला इत्तेफ़ाक था कि किसी
औरत ने मेरे लंड को अपने मूह मे लिया हो. मेरे सारे
शरीर मे सनसनी सी दौड़ने लगी. अजीब अजीब सी
तरंगे सरसराने लगी.


वो मेरे लंड को अपने मूह मे आगे पीछे करने लगी.
और मेरा बदन काँपने लगा. धीरे धीरे बड़ी
नज़ाकत से वो मेरे लंड को अपने मूह मे मसल रही थी
और मुझे दुनिया मे ही जन्नत का मज़ा आने लगा
था.

कभी वो मेरे लंड के हेड को चूसति तो कभी ज़बान
से सारे लंड को चाटते हुए उसकी जड तक पहुँच
जाती. ऐसा अनुभव मुझे पहले कभी नही हुआ था.
मैं तो इस औरत का गुलाम बन गया.
वो उसी तरह प्यार से मेरे सारे लंड को निहाल कर रही
थी. और मेरे रोम रोम मे करेंट दौड़ रहा था. उसके
मूह मे मेरा पूरा लंड आ गया था. वो किसी कुलफी की
तरह उसे चूसे जा रही थी. धीरे धीरे, धीमे
धीमे. आख़िर मेरे बदन मे एक लंबा सा तनाव आया
और फिर मैने अपने दाँतों को एक दूसरे मे गढ़ा कर
अपना सारा वीर्य उसके मूह मे खारिज कर दिया. वो
लंड को दबा दबा कर सारा वीर्य चूसने लगी. और
मैं तड़प तड़प कर एक एक बूँद उसके होंठों मे
टपकाने लगा.


फिर जब सारा वीरया निकल गया तो उसने मेरा लंड
छोड़ा और हट कर बैठ गयी. मई भी रिलॅक्स हो कर सोफे
पर आधा लेट गया. मेरा लंड धीरे धीरे सामान्या
होने लगा.

वो लंड को देखने लगी और मेरी तरफ देखते हुए
बोली... 'चार बजने वाले है...मेडम का आने का वक्त
हो गया.' मैं बोला...'नही वो आज नही आएगी...मैने
तुम से झूट बोला था.'

उसकी आँख चमकने लगी और वो मेरे खरीब आ गयी.
उस वक्त वो साड़ी पहनी हुई थी. मैने उसकी साड़ी के
अंदर हाथ डाला और उसकी जाँघो को सहलाता हुआ
उसकी चूत तक पहुँचा. उसने एक सिसकारी ली.

उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी...इतनी गीली, जैसे किसी
ने पानी मे भिगो दी हो. मैं पैंटी के उपर से ही उसकी
चूत को मसल्ने लगा. वो बिन पानी की मछली की तरह
तड़पने लगी. फिर मैने उसकी पैंटी के अंदर हाथ
डाला. अंदर का भाग किसी भट्टी की तरह गर्म था. मैं
उसकी चूत की दरार ढूँढने लगा. मेरी उंगलिया
उसकी क्लाइटॉरिस से टकराई और वो हल्के से काँप गयी.

मैं अपनी उंगली से उसकी क्लाइटॉरिस को मसलने लगा और
वो बेकरार होने लगी. मैने उसे सोफे पर लिटा दिया और
वो मूह दूसरी तरफ करके लेट गयी. मैने उसकी साड़ी
और पेटिकोट उठाई. उसकी गुलाबी पैंटी चूत के अमृत
से तर बतर थी. मैने पैंटी को पकड़ा और उसे
घसीटता हुआ उसकी जाँघो तक ले आया. फिर उसने
उठ कर खुद ही अपनी पैंटी उतार दी और दोबारा लेट
गयी. उसके घुटने उपर थे और टांगे फैली हुई. उसकी
बेहद खूबसूरत चूत अब बिल्कुल नंगी मेरे सामने थी.
 
शीशे की तरह सॉफ तरल पदार्थ उसकी चूत को तर
बतर कर रहा था. मैने अपनी पहली उंगली उसकी
चूत के छेद पर रखी. मुझे ऐसा लगा जैसे मैने आग
को छू लिया हो. इतनी गर्म चूत थी उसकी.

मैने धीरे से अपनी उंगली उसकी चूत मे घुसाई तो
उसके मूह से आह निकल गयी. धीरे धीरे मैं अपनी
उंगली उसकी चूत मे आगे पीछे करने लगा. वो सी
सी की आवाज़ निकालने लगी. मुझे अपनी उंगली को उसकी
चूत मे आगे पीछे करने मे बड़ा मज़ा आ रहा था.

इधर मेरा लंड फिर से तन कर तैयार हो गया था.
फिर मैने दो उंगलिया उसकी कोमल चूत मे घुसाई.
चिकनी चूत होने वजह से दोनों उंगलिया बड़े आराम
से अंदर बाहर हो रही थी. लगभग पाँच सात बार
मैने अपनी उंगलियों से उसकी चूत मे घिसाई की और
उसके मूह से बार बार सिसकियों की आवाज़ आती रही.
वो इतनी बेकरार थी कि कभी अपना सर दाए करती
तो कभी बाए. मैं उठ खड़ा हुआ और एक हाथ उसकी
कमर के नीचे और दूसरा उसकी गर्दन के नीचे डाल
कर उसे किसी फूल की तरह उठा लिया.

मैं उसे उठा कर अपने बेडरूम मे ले गया और धीरे
से उसे बिस्तर पर सुला दिया. वो आँखे बंद किए मेरे
अगले कदम का इंतेज़ार करने लगी. पेंट तो मेरी उतरी
हुई ही थी. मैने अपनी शर्ट भी उतार दी और पूरी
तरह नंगा हो गया. उसकी साड़ी और पेटिकोट उसके
शरीर पर अब भी मौज़ूद थे. मैने जैसे तैसे करके
उसकी साड़ी उतारी और पेटिकोट.

वाह...! क्या सीन था. नंगी होकर वो किसी अप्सरा की
तरह खूबसूरत लग रही थी. उसका जिस्म वीनस के रूप
की तरह शफ़ाफ़ था. उतना ही गदराया हुआ, उतना
ही आकर्षक बेदाग और चिकना.
 
समाज सेविका (भाग-2)


वो करवट होकर लेट गई. अब मैं उसके चुतडो को देख
रहा था. बहुत ही खूबसूरत, बहुत ही दिलकश. उसकी
गान्ड के दोनों उभार बड़े सेक्सी थे. उसकी गोलाइया
इतने सलीके की थी, कि मेरी आँखे मे नशा सा छाने
लगा. मैं उसकी गान्ड की गोलाइयों पर हज़ार जान से
फिदा हो गया. मैने धीरे से उसकी गान्ड पर हाथ
फेरा तो मुझे लगा जैसे मेरी उंगलियों को सब्र का फल
मिल गया हो... बहुत मीठा, बहुत रसीला.
उसकी गान्ड बहुत चिकनी और नाज़ुक थी. मैं दो मिनिट
तक उसे प्यार से सहलाता रहा और फिर उसकी कमर पर
हाथ रख कर मैने उसे चित लिटा दिया. उसकी दोनों
टांगे आपस मे सटी हुई थी. मैने आहिस्ते से दोनों
दोनों टाँगों को अलग किया और एक बार फिर मेरे सामने
वही खूबसूरत मंज़र था. उसकी मासूम और प्यारी सी
चूत मेरे सामने थी. गीलापन से छप छप करती
हुई. मैने जहा तक संभव था, उसकी टाँगों को
फैलाया और उसकी चूत को निहारने लगा. चूत का
द्रुश्य कयामत ढाने वाला था. मैं उसकी टाँगों के
बीच मे आ गया और धीरे से अपना मूह उसकी चूत के
पास ले गया. वो कस मसाने लगी. मैने अपनी ज़बान का
नोकीला सिरा उसकी क्लाइटॉरिस पर रखा और किसी साँप की
जीब की तरह थर थर हिलाते हुए उसे चाटने लगा.

उसके मूह से तरह तरह की आवाज़े आने लगी. मैं उसी
रफ़्तार से उसकी क्लाइटॉरिस को चाटता रहा. वो बिन पानी
की मछली की तरह तड़पने लगी. उसे इतना मज़ा आ रहा
था कि वो अपने बेड पर पटकने लगी थी. फिर वो
चीखने लगी... और उसके मूह से अजीब अजीब शब्द
निकलने लगे... मैं अपनी ज़बान से उसकी चूत के एक एक
भाग को चाट रहा था और उसके मूह से सी सी... आह
... उऊः की आवाज़े निकाल रही थी.
 
फिर उससे सहन नही हुआ और उसने मेरे बाल पकड़ लिए 
और बोली... "हटो अब.. कुछ और करो.."

मैने पूछा.. "क्या करू.."

"घुसा दो अपने लंड मेरी चूत के अंदर... खूब ज़ोर
से... चोदो, खूब चोदो... इतना चोदो की आज सारी
आरजुए पूरी हो जाए."

मैने अपना मूह उसकी चूत के पास से हटाया और उसने
अपने घुटने मॉड़े. मैं उसकी उठी हुई टाँगों के बीच
बैठ गया. उसने अपनी टांगे मेरे शरीर से लपेट दी.
मैने उसकी टाँगों को अलग किया और दोनों हाथों से
उन्हे अपनी बाहों मे ले लिया. मेरी बाहे उसकी उठी हुई
टाँगों को थाम रही थी, जिसकी वजह से उसकी चूत
पूरी तरह खुल कर मेरे सामने आ गयी थी. मैने
अपना सनसानता हुआ लंड उसकी चूत के छेद पर रखा
और उसने एक झूर झूरी सी ली. लंड के चूत पर रखते
ही वो अपने आप ही अंदर जाने लगा. बड़ी चिकनी चूत
थी उसकी.

मैने धीरे से धक्का दिया और बिना तकलीफ़ पूरा लंड
उसकी चूत मे समा गया. गरम गरम चूत के अंदर
लंड की अजीब हालत थी. मैं धीरे धीरे अपने लंड
को उसकी चूत मे आगे पीछे करने लगा. मुझे वॉर्म
मसाज का मज़ा आने लगा. मेरा लंड उसकी गर्म चूत
के घर्षण से बाग बाग हुआ जा रहा था. मेरे दिल मे
आवाज़ आने लगी कि ये सिलसिला कभी ख़त्म ना हो और
जिंदगी भर यू ही चलता रहे. 

मैं अपने लंड उसकी
चूत मे अंदर बाहर कर रहा था और हर स्ट्रोक मे वो
सिसकारिया भरती जा रही थी. अब मैइमे अपनी बाहों मे
जकड़ी उसकी टाँगों को और कस के पकड़ा और उसे थोड़ा
उपर उठाया. इस तरह उसकी चूतड़ भी उपर उठ गये.
थोड़ा और कोशिश किया तो चूतड़ पूरी तरह ऊपर उठ
गयी. यानी अब उसकी गान्ड बिस्तर से लगबग तीन इंच
ऊपर थी. ऐसा करने से उसकी चूत 60 डिग्री के ऐंगल
से उपर हो गयी. अब उसकी क्लाइटॉरिस मेरे लंड के सामने
थी. मैने अपने लंड के हेड से उसकी क्लाइटॉरिस को
मसलना शुरू किया और वो आनंद से विभोर हो कर थर
थर काँपने लगी. 

मैं लगातार उसकी क्लाइटॉरिस को अपने
लंड से मसले जा रहा था और वो तड़पे जा रही थी.
बीच बीच मे मैं अपना लंड उसकी चूत के अंदर
गहराई तक घुसा देता और चोदने का मज़ा डबल हो
जाता. मैं अपने लंड को उसकी चूत की पूरी दरार पर
घिस रहा था. साथ ही उसकी क्लाइटॉरिस को मसल भी
रहा था और मौका मिलते ही पूरे लंड को उसकी चूत
के अंदर डाल रहा था. वो खुशी से ऐसे थर थरा
रही थी, जैसे किसी बच्चे को उसका मन पसंद खिलौना
मिल गया हो.


कुछ देर मैं यू ही करता रहा. फिर मैने खेल ख़तम
करने के मकसद से उसे दोबारा अच्छी तरह बेड पर लिटा
दिया और उसकी गान्ड के नीचे नर्म तकिया रख दिया,
उसकी चूत उभर कर किसी फूल की तरह मेरे सामने
आ गयी. मैने अपना सख़्त और मजबूत लंड उसकी चूत
के उपर रखा और एक झटके मे सारा लंड उसकी चूत मे
अंदर डाल दिया. वो हल्के से चीख पड़ी. धीरे धीरे
मैं अपना लंड उसकी चूत मे उपर नीचे कर रहा था.
 
फिर मैने अपनी गति बढ़ा दी और मेरा लंड 100 की
रफ़्तार से उसकी चूत मे अंदर बाहर होने मगा. हर
स्टोक के साथ वो कराह रही थी. उसकी चूत की
खुजली मिट रही थी. दो साल बाद.
मैं लगातार उसकी चूत मे अपने तने हुए लंड को अंदर
बाहर कर रहा था. मेरा लंड फ़च फ़च की आवाज़ के
साथ उसकी चूत मे अंदर बाहर हो रहा था. वो
तड़पति जा रही थी. अब मेरी स्पीड 100 से भी आगे बढ़
बढ़ गयी और मस्ती मे अजीब अजीब आवाज़े निकालने लगी.


मेरी स्पीड और बढ़ी और उसकी आवाज़े और बढ़ी.
फ़चा..फ़च फ़चा..फ़च फ़चा..फ़च... मेरा
लंड उसकी चूत को चोदता ही जा रहा था. आख़िर
मंज़िल पास आ गई. वो चिल्लाई और मेरे लंड ने महसूस
किया कि कुछ गरम गरम पानी सा मेरे लंड को भीगो
रहा है... वो ढीली पढ़ने लगी.... मुझे भी लगा कि
मैं झड़ने वाला हू... अंग अंग मे एक तनाव सा आने
लगा और आख़िर मेरे लंड से जोरदार फव्वारा निकाला
और उसकी चूत मे अंदर तक समा गया. मैने अपने
स्ट्रोक बंद नही किए और जब तक एक एक बूँद नही निकल
गयी, मैने अपने स्ट्रोक जारी रखे. वो चूँकि झाड़
चुकी थी, इसलिए ढीली पड़ कर लेटी हुई थी. उसकी
टांगे सपाट सी हो कर बेड पर पड़ी हुई थी. मैने
आख़िरी बूँद को भी उसकी चूत मे उडेला और फिर
अपने गरम और कड़े लंड को उसकी चूत के बाहर
निकाला और उसके बाजू मे लेट गया.


वो दाहिने करवट से लेट गयी. उसकी साँसे तेज तेज चल
रही थी. मैने भी अपने आँखे बंद कर ली और रेस्ट
लेने लगा. मेरे सारा बदन हल्का फूलका हो गया था.
थोड़ी देर बाद मैने अपनी आँखे खोली तो देखा वो यू
ही करवट लिए सोई हुई थी. मेरी नज़र उसकी गान्ड की
तरफ गयी तो झट से मेरा लंड फिर तन गया. उसकी
खूबसूरत गान्ड का नज़ारा मुझे फिर पागल बनाने
लगा. मैने अपनी उंगली उसकी गान्ड के सुराख पर
रखी. उसकी गान्ड भी अंदर से गर्म थी. वो थोड़ा कस
मसाने लगी. उसकी गान्ड का छेद बहुत टाइट था. मैने
अपनी उंगली उसकी गान्ड मे घुसाने की कोशिश की.
 
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