hotaks444
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"हेलो अजीत भैया! कब....." तभी वाणी को अपने आँसू पूछते हुए सीमा दिखाई दी... उसने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी...
"देख छोटी! बहुत बार कहा है.. मुझे भैया मत कहा कर... आइन्दा कभी.."
"कहूँगी... भैया! भैया! भैया" और फिर टफ के कान के पास होन्ट ले जाकर बोली," ये सुंदर सी लड़की कौन है? पसंद कर ली क्या?" सीमा को भी बात समझ में आ गयी... उसने अपनी आँखों को रुमाल से ढाका हुआ था...
"तो हम जायें साहब?" सीमा की मया ने फिर से सवाल पूछा..
वाणी ने जाकर सीमा का हाथ पकड़ लिया...," ऐसे नही जाने दूँगी दीदी को, पहले चाय पिलावँगी.. फिर बातें करूँगी... फिर देखूँगी.. जाने देना है या नही!" उसकी आवाज़ में इतनी मिठास थी की सीमा अपने आप को रोक ना सकी... दुखों के पहाड़ से उबरने की कोशिश में उसने वाणी को ही छाती से लगा लिया और फिर से सुबकने लगी..
वाणी अपने कोमल हाथों से उसके प्यारे प्यारे गालों से उसका पानी समेटने लगी..," क्या हुआ दीदी.. प्लीज़.. चलो चाय बनाते हैं!" वाणी की बात को तो शायद एक बार भगवान भी टालते हुए सोचे... सीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ किचन में चली गयी...
तभी शमशेर की अर्धांगिनी ने दरवाजे में प्रवेश किया.. आते ही टफ खड़ा हो गया और दोनो हाथ जोड़ कर बोला," भाभी जी प्रणाम!"
दिशा हमेशा ही उसके प्रणाम पर शर्मा जाती थी..," आप हमेशा ऐसे ही क्यूँ करते हैं... मैं आपसे कितनी छोटी हूँ!"
"तो क्या हुआ? मेरे लिए तो आप शमशेर भाई के बराबर ही हैं" टफ दिल से उस्स फॅमिली को इतनी ही इज़्ज़त देता था..
"वाणी नही आई है क्या?" दिशा ने सीमा की मा को प्रणाम करते हुए पूछा..
तभी वाणी किचन से बाहर निकल आई.. ," एक बार इधर आना सीमा दीदी!" सीमा किचन के दरवाजे पर आ गयी...
"अजीत भैया! सीमा दीदी दिशा दीदी जितनी सुंदर हैं ना!"
टफ ने सीमा के चेहरे पर नज़र डाली... वो वापस किचन में घुस गयी...
टफ ने वाणी को आँख मारते हुए अपना सिर हां में हिला दिया...
वाणी "पूछ लो" कहती हुई किचन में भाग गयी... मस्त 'अपनी' वाणी!!!
चाय पीने के बाद वो फिर से खड़े हुए," साहब लेट हो जाएँगे"
"नही! मुझे भी रोहतक की और जाना है.. चलिए में छोड़ दूँगा!" कहकर वो तीनो घर से बाहर निकल गये........
शिव प्राची को साथ लेकर बेडरूम में गया. शिवानी अभी भी सो रही थी. प्राची शिव के लिए पैग बनाने लगी...
करीब 20 मिनिट में शिव का सुरूर बन'ने लगा था. उसने अपना गिलास उठाया और जाकर शिवानी के पास बैठ गया.. नींद में अपने आपको देखे जाने से बेख़बर शिवानी टेढ़ी लेटी हुई थी... उसने एक घुटना मोड़ कर अपने पेट से लगा रखा तहा... और अपने हाथ से अपनी चूचियाँ ढक रखी थी... नींद में भी उसके चेहरे पर ख़ौफ़ तैरता देखा जा सकता था...
शिव ने प्राची से सिग्गेरेत्टे और लाइटर देने को कहा.. जैसे ही प्राची उसके पास आई.. उसने प्राची को अपनी और खींच लिया... पर बॅलेन्स बिगड़ जाने से प्राची उसकी गोद में से पलट कर शिवानी के चूतदों पर जा गिरी..
शिवानी चिल्ला कर अचानक उठ बैठी और बेड के एक कोने पर सिमट गयी... डारी सहमी सी..
प्राची उसको देखकर मुश्किराई...
शिव ने प्राची को आदेश दिया," मेरी जान के लिए मेरी पसंद के कपड़े लेकर आओ!"
प्राची सिर झुका कर बिना बोले चली गयी...," शिव ने उसकी और मुँह घुमाया,"प्राची के आने से पहले तुम्हारे तन पर एक भी कपड़ा नही होना चाहिए."
शिवानी सिहर गयी,"नही... प्लीज़!"
"साली क्या पतिव्रता बन'ने का नाटक करती है... अपने आदमी से झूठ बोल कर कहाँ रंगरलियाँ मानने गयी थी? बोल"
यह सुन'ना था की शिवानी को ज़ोर से चक्कर आने लगे.. उसका चेहरा सफेद पद गया और वो निर्जीव से होकर एकटक शिव की और देखने लगी... उसके सामने 'विकी' का चेहरा घूम गया... उसके विकी का!"
"बोल हराम्जदि.. अब क्या हो गया..!" वह उठा और शिवानी के गले से नाइटी खींच कर फाड़ डाली... और उसके साथ ही शिवानी का दूधिया यौवन नशे में धुत शिव की आँखों के सामने आ गया... वा एक बार फिर से राक्षस सा लगने लगा रात वाला राक्षस...
पर शिवानी को अब उस्स डर से कहीं बड़ा डर सामने नज़र आने लगा...
उसको अपने नंगेपन का अहसास तब हुआ जब शिव ने आगे झुक कर उसकी ब्रा के उपर से उसकी चुचियों पर दाँत गाड़ा दिए.. वह एकद्ूम उचक कर पीछे लेट गयी.. "आपको कैसे मालूम?" शिवानी ने अपने नंगे पेट और जांघों को छुपाने की कोशिश करी...
अब शिव कुछ बताने के मूड में नही करने के मूड में था... उसने शिवानी की टाँग पकड़ी और अपनो और खींच लिया... उसके पेट पर अपना मोटा हाथ रख दिया.. शिवानी असहाय मेम्ने की भाँति उसकी और निरीह नज़रों से देखती रही... तभी वहाँ प्राची आ गयी... उसके हाथ में कपड़े के दो टुकड़े थे... एक को पनटी और दूसरे को ब्रा कहते हैं...
शिव ने उसके हाथ से दोनो चीज़ ले ली. उनको सूंघ कर देखा, उनमें से प्राची के देव की खुसबू आ रही थी...
"प्राची! अपने कपड़े उतार दो!" शिव के आदेश का पालन करने में प्राची ने कुल 1 सेकेंड लगाई... अपनी छातियों और जांघों को ढके हुए कपड़े को अपने से जुड़ा कर दिया...
उसको बाहों में लेकर शिव ने ख़तरनाक अंदाज से शिवानी को देखा... प्राची को तुरंत आक्षन लेते देख वो समझ गयी थी... यहाँ देर करने का अंजाम बुरा होता होगा... दिमाग़ सुन्न हो गया था पर जीने की इच्छा कायम थी.. उसने अपनी पनटी को टाँगों से अलग कर दिया और बिना कोई भाव चेहरे पर लिए अपने हाथ कमर पर लेजाकार उस्स आखरी बंधन से भी मुक्त हो गयी... अब उसको इज़्ज़त प्यारी ना थी... इज़्ज़त तो बची ही ना थी...
शिव उठकर बाहर गया और बाहर बैठी नौकरानी को वीडियो कॅम्रा ऑन करने को कहा... और अंदर आकर सोफे पर बैठ गया..," प्राची उसको प्यार करना सिख़ाओ! साली बहुत गांद हिलाती है... करवाते हुए..
प्राची जाकर बेड पर उसके साथ बैठ गयी... उसका हाथ पकड़ा और अपनी और खींच लिया...
हर पल की मोविए बन'नि शुरू हो गयी थी... प्राची ने उसके होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... दूसरी और से कोई विरोध नही हुआ... पर समर्थन भी नही...
"इसको साली को नशे का इंजेक्षन लगाओ!" शिव ढाडा..
" नही नही .. प्लीज़... मैं सब कुछ करूँगी.." शिवानी ने प्राची को कस कर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी बाहर निकल आई जीभ को चाटने लगी.. उनके होन्ट मिल गये.. जीभ एक दूसरे के मुँह में अठखेलियन करने लगी.. दोनो के हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसालने लगे... कुल मिला कर शिवानी वैसा ही कर रही थी जैसा प्राची उसके साथ... प्राची उससे 3 साल छोटी थी.. पर मुकाबला बराबरी का चल रहा था...
प्राची शिवानी के उपर आ गयी.. दोनो की छातिया आपस में रगड़ खाने लगी.. दोनो की टांगे जैसे चूतो पर चिपकी हुई थी.. शिवानी उत्तेजित सी महसूस करने लगी... दोनो की चूत पर शेव करने के बाद उग्ग आए छोटे छोटे बॉल एक दूसरी की चूतो से रगड़ खा कर अब भाहूत मज़ा दे रहे थे...
दोनो ही अब खुद को एक दूसरी से ज़्यादा शाबिट करने पर तूल गयी.. पर पहल प्राची ही करती थी.. और शिवानी उसका जवाब ज़ोर से देती...
प्राची ज़ोर से हाँफी और आख़िर कार एक तरफ लुढ़क गयी...
शिव अपनी जगह से खड़ा हुआ और प्राची का स्थान लेने पहुँच गया...
उसने शिवानी को बेड से उतार कर रात वाली पोज़िशन में झुका दिया.. घुटने ज़मीन पर थे और उसकी गांद बेड के किनारे पर टिकी थी...
कल तो कुछ प्राब्लम भी हुई थी.. पर आज तो जैसे बेड बनाया ही इश्स पोज़िशन के लिए था...
जैसे ही शिव ने उसको कमर पर हाथ रखकर दबाया... उसकी गांद की दरार उचक कर और खुल गयी...
शिव ने प्राची की चूत में लंड देकर अपने रस से नहलकर चिकना किया और कड़क हो चुके लंड को शिवानी के छेद पर रेक दिया... ग़लत छेद पर... जो शिवानी को कभी पसंद नही था... शिवानी ने अपनी गांद हिलाकर हल्का सा विरोध जताने की कोशिश की पूर शिव ने उसको एक बकरी की तरह दबोच लिया..
अब इश्स बकरी में जान ही कितनी बची थी... विरोध करने को....
दुख और दर्द से लबालब एक लुंबी चीख शिवानी के हुलक से निकली और उसकी गांद का व्रत टूट गया... कभी भी ना चुडाने का...
लंड गांद में फँसा खड़ा था.. और करीब आधा घुसने की तैयारी में था... धीरे धीरे करते करते लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. शिवानी की चीखें अब भी जारी थी... पर अब उनमें दर्द कूम था... दुख ज़्यादा...
वा चीखती रही... वा रोन्दता रहा... वा चिल्लती रही... वा चोदता रहा...
जब तक की शिवानी की गांद में वीरया ने अपनी मौजूदगी दर्ज नही करवाई... उसके बाद तो जैसे लंड को गांद अच्छी लगती ही ना हो... एकद्ूम रूठ कर बाहर निकल आया... अपना रूप परिवर्तन करके... छोटा होकर...
शिव उठकर सोफे पर जा बैठा... शिवानी अब भी चीख मार रही थी... उसके विकी के लिए; उसके राज के लिए... वो वैसे ही पड़ी रही.
प्राची ने सहारा देकर उसको बेड पर चढ़ा दिया...
शिवानी रोते रोते सो गयी..........
टफ ने देल्ही रोड पर सीमा के घर के बाहर गाड़ी रोक दी... टफ बॅक व्यू मिरर में से सीमा को लगातार देखता आ रहा था... सीमा की नज़र भी एक बार शीशे में से उसको देख रहे टफ पर पड़ी थी, पर वो यूँ ही थी... उसने तुरंत अपनी नज़रें घुमा दी थी....
मा बेटी दोनो ज़ीप से उतार गये. मा ने सीमा का हाथ पकड़ा और जाने लगी," "क्या चाय के लिए नही पूचोगे!" जाने क्यूँ टफ कुछ देर और उनके साथ रहना चाहता था... मा थोड़ी झेंप गयी पर बेटी ने मूड कर भी नही देखा," आओ ना! इनस्पेक्टर साहब... मैने तो सोचा था आप कहाँ हमारे घर में आएँगे... आ जाओ!"
टफ ने घर के बाहर रोड पर गाड़ी पार्क कर दी और उतार कर उनके साथ ही अंदर घुस गया...
सीमा लज्जित सी महसूस कर रही थी. आज सुबह से ही पोलीस उनके घर के चक्कर लगा रही थी और कॉलोनी में सभी की ज़ुबान पर उन्ही की चर्चा थी... और अब ये पोलीस जीप वाला... शुक्रा है उसने वर्दी नही पहनी हुई थी... वरना अकेला घर में एक पोलीस वाले को आया देख लोग पता नही क्या क्या कहते... उसने समाज को करीब से जान लिया था... उसको टफ से कोई हुंदर्दी नही थी...
टफ घर के अंदर घुसते ही उनकी कसंकस से भारी जिंदगी से रूबरू हो गया...
हालाँकि सॉफ सफाई बहुत ही उम्दा थी. फिर भी एक कमरे में कोने पर तंगी रस्सी पर पड़े कपड़े, दूसरे कोने में रसोई का समान और दीवार के साथ डाली हुई दो चारपाई और उनके साथ एक टेबल पर रखी हुई ढेर सारी किताबें... उस कमरे में ही उनका संसार था... और शायद वो किताबें ही उनके पास सबसे बड़ी पूंजी थी, सीमा की किताबें... टेबल के साथ दीवार पर चिपकी हुई एक छोटी सी श्री राम की तस्वीर इश्स बात की और इशारा कर रही थी की ये दिन देखने के बाद भी वो दोनो मा बेटी मानती थी की भगवान सबके लिए होता है... सबका होता है... शायद इसी विस्वास ने आज तक उनको टूटने नही दिया था... वरना लड़कियाँ तो कौन कौन से धंधे नही अपना लेती; अपने जीववन को मौज मस्ती से भरा बनाने के लिए मजबूरी का नाम देकर...
सामने वाली दीवार पर एक नौजवान आदमी की माला डाली तस्वीर लगी हुई थी, भगवान ने इनका एकमात्रा सहारा भी छीन लिया... टफ भावुक हो गया...
सीमा ने जाते ही गॅस पर पानी चढ़ा दिया.. वो जल्दी से जल्दी टफ को रफू-चक्कर कर देना चाहती थी...
दोनो चारपाई साथ साथ डाली हुई थी... जब टफ चारपाई पर बैठ गया तो मा खड़ी ही रही... ," बेतिए ना माता जी!"
"नही बेटा! कोई बात नही... आपके जाने के बाद तो बैठना ही है...
सीमा की मा के मुँह से साहब की जगह बेटा सुनकर मुश्किल से टफ अपने को रोक पाया... वह रह रह कर दूसरी और मुँह करके चाय बना रही सीमा के मुँह को देखने की कोशिश करता रहा. शायद पहली बार ऐसा उसकी लाइफ में हुआ था की पिछवाड़ा सामने होने पर भी टफ का ध्यान उसकी गोलाइयों पर ना जाकर उसके चेहरे में कुछ ढूँढ रहा था... पहली बार!
उसको वाणी की बात याद आई," अजीत भैया! ये दीदी दिशा जितनी सुंदर हैं ना!"
"हां! दिशा जैसी है... !" वह कह उठा.
"क्या बेटा?" सीमा की मा ने उसके मुँह से निकले इन्न शब्दों का मतलब पूछा..
"कुछ नही माता जी!" फिर चारपाई को पीछे सरका कर बोला,"आप बैठिए ना!"
सीमा चाय बना लाई. और उसके पास टेबल पर रख दी...
"मैं भी कितनी पागल हूँ! मैं अभी आई" कहकर उसकी मा बाहर निकल गयी...
इस तरह अपना टफ सीमा पर फिदा हो गया था .दोस्तो कहानी अभी बाकी है
"देख छोटी! बहुत बार कहा है.. मुझे भैया मत कहा कर... आइन्दा कभी.."
"कहूँगी... भैया! भैया! भैया" और फिर टफ के कान के पास होन्ट ले जाकर बोली," ये सुंदर सी लड़की कौन है? पसंद कर ली क्या?" सीमा को भी बात समझ में आ गयी... उसने अपनी आँखों को रुमाल से ढाका हुआ था...
"तो हम जायें साहब?" सीमा की मया ने फिर से सवाल पूछा..
वाणी ने जाकर सीमा का हाथ पकड़ लिया...," ऐसे नही जाने दूँगी दीदी को, पहले चाय पिलावँगी.. फिर बातें करूँगी... फिर देखूँगी.. जाने देना है या नही!" उसकी आवाज़ में इतनी मिठास थी की सीमा अपने आप को रोक ना सकी... दुखों के पहाड़ से उबरने की कोशिश में उसने वाणी को ही छाती से लगा लिया और फिर से सुबकने लगी..
वाणी अपने कोमल हाथों से उसके प्यारे प्यारे गालों से उसका पानी समेटने लगी..," क्या हुआ दीदी.. प्लीज़.. चलो चाय बनाते हैं!" वाणी की बात को तो शायद एक बार भगवान भी टालते हुए सोचे... सीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ किचन में चली गयी...
तभी शमशेर की अर्धांगिनी ने दरवाजे में प्रवेश किया.. आते ही टफ खड़ा हो गया और दोनो हाथ जोड़ कर बोला," भाभी जी प्रणाम!"
दिशा हमेशा ही उसके प्रणाम पर शर्मा जाती थी..," आप हमेशा ऐसे ही क्यूँ करते हैं... मैं आपसे कितनी छोटी हूँ!"
"तो क्या हुआ? मेरे लिए तो आप शमशेर भाई के बराबर ही हैं" टफ दिल से उस्स फॅमिली को इतनी ही इज़्ज़त देता था..
"वाणी नही आई है क्या?" दिशा ने सीमा की मा को प्रणाम करते हुए पूछा..
तभी वाणी किचन से बाहर निकल आई.. ," एक बार इधर आना सीमा दीदी!" सीमा किचन के दरवाजे पर आ गयी...
"अजीत भैया! सीमा दीदी दिशा दीदी जितनी सुंदर हैं ना!"
टफ ने सीमा के चेहरे पर नज़र डाली... वो वापस किचन में घुस गयी...
टफ ने वाणी को आँख मारते हुए अपना सिर हां में हिला दिया...
वाणी "पूछ लो" कहती हुई किचन में भाग गयी... मस्त 'अपनी' वाणी!!!
चाय पीने के बाद वो फिर से खड़े हुए," साहब लेट हो जाएँगे"
"नही! मुझे भी रोहतक की और जाना है.. चलिए में छोड़ दूँगा!" कहकर वो तीनो घर से बाहर निकल गये........
शिव प्राची को साथ लेकर बेडरूम में गया. शिवानी अभी भी सो रही थी. प्राची शिव के लिए पैग बनाने लगी...
करीब 20 मिनिट में शिव का सुरूर बन'ने लगा था. उसने अपना गिलास उठाया और जाकर शिवानी के पास बैठ गया.. नींद में अपने आपको देखे जाने से बेख़बर शिवानी टेढ़ी लेटी हुई थी... उसने एक घुटना मोड़ कर अपने पेट से लगा रखा तहा... और अपने हाथ से अपनी चूचियाँ ढक रखी थी... नींद में भी उसके चेहरे पर ख़ौफ़ तैरता देखा जा सकता था...
शिव ने प्राची से सिग्गेरेत्टे और लाइटर देने को कहा.. जैसे ही प्राची उसके पास आई.. उसने प्राची को अपनी और खींच लिया... पर बॅलेन्स बिगड़ जाने से प्राची उसकी गोद में से पलट कर शिवानी के चूतदों पर जा गिरी..
शिवानी चिल्ला कर अचानक उठ बैठी और बेड के एक कोने पर सिमट गयी... डारी सहमी सी..
प्राची उसको देखकर मुश्किराई...
शिव ने प्राची को आदेश दिया," मेरी जान के लिए मेरी पसंद के कपड़े लेकर आओ!"
प्राची सिर झुका कर बिना बोले चली गयी...," शिव ने उसकी और मुँह घुमाया,"प्राची के आने से पहले तुम्हारे तन पर एक भी कपड़ा नही होना चाहिए."
शिवानी सिहर गयी,"नही... प्लीज़!"
"साली क्या पतिव्रता बन'ने का नाटक करती है... अपने आदमी से झूठ बोल कर कहाँ रंगरलियाँ मानने गयी थी? बोल"
यह सुन'ना था की शिवानी को ज़ोर से चक्कर आने लगे.. उसका चेहरा सफेद पद गया और वो निर्जीव से होकर एकटक शिव की और देखने लगी... उसके सामने 'विकी' का चेहरा घूम गया... उसके विकी का!"
"बोल हराम्जदि.. अब क्या हो गया..!" वह उठा और शिवानी के गले से नाइटी खींच कर फाड़ डाली... और उसके साथ ही शिवानी का दूधिया यौवन नशे में धुत शिव की आँखों के सामने आ गया... वा एक बार फिर से राक्षस सा लगने लगा रात वाला राक्षस...
पर शिवानी को अब उस्स डर से कहीं बड़ा डर सामने नज़र आने लगा...
उसको अपने नंगेपन का अहसास तब हुआ जब शिव ने आगे झुक कर उसकी ब्रा के उपर से उसकी चुचियों पर दाँत गाड़ा दिए.. वह एकद्ूम उचक कर पीछे लेट गयी.. "आपको कैसे मालूम?" शिवानी ने अपने नंगे पेट और जांघों को छुपाने की कोशिश करी...
अब शिव कुछ बताने के मूड में नही करने के मूड में था... उसने शिवानी की टाँग पकड़ी और अपनो और खींच लिया... उसके पेट पर अपना मोटा हाथ रख दिया.. शिवानी असहाय मेम्ने की भाँति उसकी और निरीह नज़रों से देखती रही... तभी वहाँ प्राची आ गयी... उसके हाथ में कपड़े के दो टुकड़े थे... एक को पनटी और दूसरे को ब्रा कहते हैं...
शिव ने उसके हाथ से दोनो चीज़ ले ली. उनको सूंघ कर देखा, उनमें से प्राची के देव की खुसबू आ रही थी...
"प्राची! अपने कपड़े उतार दो!" शिव के आदेश का पालन करने में प्राची ने कुल 1 सेकेंड लगाई... अपनी छातियों और जांघों को ढके हुए कपड़े को अपने से जुड़ा कर दिया...
उसको बाहों में लेकर शिव ने ख़तरनाक अंदाज से शिवानी को देखा... प्राची को तुरंत आक्षन लेते देख वो समझ गयी थी... यहाँ देर करने का अंजाम बुरा होता होगा... दिमाग़ सुन्न हो गया था पर जीने की इच्छा कायम थी.. उसने अपनी पनटी को टाँगों से अलग कर दिया और बिना कोई भाव चेहरे पर लिए अपने हाथ कमर पर लेजाकार उस्स आखरी बंधन से भी मुक्त हो गयी... अब उसको इज़्ज़त प्यारी ना थी... इज़्ज़त तो बची ही ना थी...
शिव उठकर बाहर गया और बाहर बैठी नौकरानी को वीडियो कॅम्रा ऑन करने को कहा... और अंदर आकर सोफे पर बैठ गया..," प्राची उसको प्यार करना सिख़ाओ! साली बहुत गांद हिलाती है... करवाते हुए..
प्राची जाकर बेड पर उसके साथ बैठ गयी... उसका हाथ पकड़ा और अपनी और खींच लिया...
हर पल की मोविए बन'नि शुरू हो गयी थी... प्राची ने उसके होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... दूसरी और से कोई विरोध नही हुआ... पर समर्थन भी नही...
"इसको साली को नशे का इंजेक्षन लगाओ!" शिव ढाडा..
" नही नही .. प्लीज़... मैं सब कुछ करूँगी.." शिवानी ने प्राची को कस कर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी बाहर निकल आई जीभ को चाटने लगी.. उनके होन्ट मिल गये.. जीभ एक दूसरे के मुँह में अठखेलियन करने लगी.. दोनो के हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसालने लगे... कुल मिला कर शिवानी वैसा ही कर रही थी जैसा प्राची उसके साथ... प्राची उससे 3 साल छोटी थी.. पर मुकाबला बराबरी का चल रहा था...
प्राची शिवानी के उपर आ गयी.. दोनो की छातिया आपस में रगड़ खाने लगी.. दोनो की टांगे जैसे चूतो पर चिपकी हुई थी.. शिवानी उत्तेजित सी महसूस करने लगी... दोनो की चूत पर शेव करने के बाद उग्ग आए छोटे छोटे बॉल एक दूसरी की चूतो से रगड़ खा कर अब भाहूत मज़ा दे रहे थे...
दोनो ही अब खुद को एक दूसरी से ज़्यादा शाबिट करने पर तूल गयी.. पर पहल प्राची ही करती थी.. और शिवानी उसका जवाब ज़ोर से देती...
प्राची ज़ोर से हाँफी और आख़िर कार एक तरफ लुढ़क गयी...
शिव अपनी जगह से खड़ा हुआ और प्राची का स्थान लेने पहुँच गया...
उसने शिवानी को बेड से उतार कर रात वाली पोज़िशन में झुका दिया.. घुटने ज़मीन पर थे और उसकी गांद बेड के किनारे पर टिकी थी...
कल तो कुछ प्राब्लम भी हुई थी.. पर आज तो जैसे बेड बनाया ही इश्स पोज़िशन के लिए था...
जैसे ही शिव ने उसको कमर पर हाथ रखकर दबाया... उसकी गांद की दरार उचक कर और खुल गयी...
शिव ने प्राची की चूत में लंड देकर अपने रस से नहलकर चिकना किया और कड़क हो चुके लंड को शिवानी के छेद पर रेक दिया... ग़लत छेद पर... जो शिवानी को कभी पसंद नही था... शिवानी ने अपनी गांद हिलाकर हल्का सा विरोध जताने की कोशिश की पूर शिव ने उसको एक बकरी की तरह दबोच लिया..
अब इश्स बकरी में जान ही कितनी बची थी... विरोध करने को....
दुख और दर्द से लबालब एक लुंबी चीख शिवानी के हुलक से निकली और उसकी गांद का व्रत टूट गया... कभी भी ना चुडाने का...
लंड गांद में फँसा खड़ा था.. और करीब आधा घुसने की तैयारी में था... धीरे धीरे करते करते लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. शिवानी की चीखें अब भी जारी थी... पर अब उनमें दर्द कूम था... दुख ज़्यादा...
वा चीखती रही... वा रोन्दता रहा... वा चिल्लती रही... वा चोदता रहा...
जब तक की शिवानी की गांद में वीरया ने अपनी मौजूदगी दर्ज नही करवाई... उसके बाद तो जैसे लंड को गांद अच्छी लगती ही ना हो... एकद्ूम रूठ कर बाहर निकल आया... अपना रूप परिवर्तन करके... छोटा होकर...
शिव उठकर सोफे पर जा बैठा... शिवानी अब भी चीख मार रही थी... उसके विकी के लिए; उसके राज के लिए... वो वैसे ही पड़ी रही.
प्राची ने सहारा देकर उसको बेड पर चढ़ा दिया...
शिवानी रोते रोते सो गयी..........
टफ ने देल्ही रोड पर सीमा के घर के बाहर गाड़ी रोक दी... टफ बॅक व्यू मिरर में से सीमा को लगातार देखता आ रहा था... सीमा की नज़र भी एक बार शीशे में से उसको देख रहे टफ पर पड़ी थी, पर वो यूँ ही थी... उसने तुरंत अपनी नज़रें घुमा दी थी....
मा बेटी दोनो ज़ीप से उतार गये. मा ने सीमा का हाथ पकड़ा और जाने लगी," "क्या चाय के लिए नही पूचोगे!" जाने क्यूँ टफ कुछ देर और उनके साथ रहना चाहता था... मा थोड़ी झेंप गयी पर बेटी ने मूड कर भी नही देखा," आओ ना! इनस्पेक्टर साहब... मैने तो सोचा था आप कहाँ हमारे घर में आएँगे... आ जाओ!"
टफ ने घर के बाहर रोड पर गाड़ी पार्क कर दी और उतार कर उनके साथ ही अंदर घुस गया...
सीमा लज्जित सी महसूस कर रही थी. आज सुबह से ही पोलीस उनके घर के चक्कर लगा रही थी और कॉलोनी में सभी की ज़ुबान पर उन्ही की चर्चा थी... और अब ये पोलीस जीप वाला... शुक्रा है उसने वर्दी नही पहनी हुई थी... वरना अकेला घर में एक पोलीस वाले को आया देख लोग पता नही क्या क्या कहते... उसने समाज को करीब से जान लिया था... उसको टफ से कोई हुंदर्दी नही थी...
टफ घर के अंदर घुसते ही उनकी कसंकस से भारी जिंदगी से रूबरू हो गया...
हालाँकि सॉफ सफाई बहुत ही उम्दा थी. फिर भी एक कमरे में कोने पर तंगी रस्सी पर पड़े कपड़े, दूसरे कोने में रसोई का समान और दीवार के साथ डाली हुई दो चारपाई और उनके साथ एक टेबल पर रखी हुई ढेर सारी किताबें... उस कमरे में ही उनका संसार था... और शायद वो किताबें ही उनके पास सबसे बड़ी पूंजी थी, सीमा की किताबें... टेबल के साथ दीवार पर चिपकी हुई एक छोटी सी श्री राम की तस्वीर इश्स बात की और इशारा कर रही थी की ये दिन देखने के बाद भी वो दोनो मा बेटी मानती थी की भगवान सबके लिए होता है... सबका होता है... शायद इसी विस्वास ने आज तक उनको टूटने नही दिया था... वरना लड़कियाँ तो कौन कौन से धंधे नही अपना लेती; अपने जीववन को मौज मस्ती से भरा बनाने के लिए मजबूरी का नाम देकर...
सामने वाली दीवार पर एक नौजवान आदमी की माला डाली तस्वीर लगी हुई थी, भगवान ने इनका एकमात्रा सहारा भी छीन लिया... टफ भावुक हो गया...
सीमा ने जाते ही गॅस पर पानी चढ़ा दिया.. वो जल्दी से जल्दी टफ को रफू-चक्कर कर देना चाहती थी...
दोनो चारपाई साथ साथ डाली हुई थी... जब टफ चारपाई पर बैठ गया तो मा खड़ी ही रही... ," बेतिए ना माता जी!"
"नही बेटा! कोई बात नही... आपके जाने के बाद तो बैठना ही है...
सीमा की मा के मुँह से साहब की जगह बेटा सुनकर मुश्किल से टफ अपने को रोक पाया... वह रह रह कर दूसरी और मुँह करके चाय बना रही सीमा के मुँह को देखने की कोशिश करता रहा. शायद पहली बार ऐसा उसकी लाइफ में हुआ था की पिछवाड़ा सामने होने पर भी टफ का ध्यान उसकी गोलाइयों पर ना जाकर उसके चेहरे में कुछ ढूँढ रहा था... पहली बार!
उसको वाणी की बात याद आई," अजीत भैया! ये दीदी दिशा जितनी सुंदर हैं ना!"
"हां! दिशा जैसी है... !" वह कह उठा.
"क्या बेटा?" सीमा की मा ने उसके मुँह से निकले इन्न शब्दों का मतलब पूछा..
"कुछ नही माता जी!" फिर चारपाई को पीछे सरका कर बोला,"आप बैठिए ना!"
सीमा चाय बना लाई. और उसके पास टेबल पर रख दी...
"मैं भी कितनी पागल हूँ! मैं अभी आई" कहकर उसकी मा बाहर निकल गयी...
इस तरह अपना टफ सीमा पर फिदा हो गया था .दोस्तो कहानी अभी बाकी है