College Sex Stories गर्ल्स स्कूल - Page 6 - SexBaba
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College Sex Stories गर्ल्स स्कूल

"हेलो अजीत भैया! कब....." तभी वाणी को अपने आँसू पूछते हुए सीमा दिखाई दी... उसने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी...
"देख छोटी! बहुत बार कहा है.. मुझे भैया मत कहा कर... आइन्दा कभी.."
"कहूँगी... भैया! भैया! भैया" और फिर टफ के कान के पास होन्ट ले जाकर बोली," ये सुंदर सी लड़की कौन है? पसंद कर ली क्या?" सीमा को भी बात समझ में आ गयी... उसने अपनी आँखों को रुमाल से ढाका हुआ था...
"तो हम जायें साहब?" सीमा की मया ने फिर से सवाल पूछा..
वाणी ने जाकर सीमा का हाथ पकड़ लिया...," ऐसे नही जाने दूँगी दीदी को, पहले चाय पिलावँगी.. फिर बातें करूँगी... फिर देखूँगी.. जाने देना है या नही!" उसकी आवाज़ में इतनी मिठास थी की सीमा अपने आप को रोक ना सकी... दुखों के पहाड़ से उबरने की कोशिश में उसने वाणी को ही छाती से लगा लिया और फिर से सुबकने लगी..

वाणी अपने कोमल हाथों से उसके प्यारे प्यारे गालों से उसका पानी समेटने लगी..," क्या हुआ दीदी.. प्लीज़.. चलो चाय बनाते हैं!" वाणी की बात को तो शायद एक बार भगवान भी टालते हुए सोचे... सीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ किचन में चली गयी...

तभी शमशेर की अर्धांगिनी ने दरवाजे में प्रवेश किया.. आते ही टफ खड़ा हो गया और दोनो हाथ जोड़ कर बोला," भाभी जी प्रणाम!"


दिशा हमेशा ही उसके प्रणाम पर शर्मा जाती थी..," आप हमेशा ऐसे ही क्यूँ करते हैं... मैं आपसे कितनी छोटी हूँ!"
"तो क्या हुआ? मेरे लिए तो आप शमशेर भाई के बराबर ही हैं" टफ दिल से उस्स फॅमिली को इतनी ही इज़्ज़त देता था..
"वाणी नही आई है क्या?" दिशा ने सीमा की मा को प्रणाम करते हुए पूछा..
तभी वाणी किचन से बाहर निकल आई.. ," एक बार इधर आना सीमा दीदी!" सीमा किचन के दरवाजे पर आ गयी...
"अजीत भैया! सीमा दीदी दिशा दीदी जितनी सुंदर हैं ना!"
टफ ने सीमा के चेहरे पर नज़र डाली... वो वापस किचन में घुस गयी...
टफ ने वाणी को आँख मारते हुए अपना सिर हां में हिला दिया...
वाणी "पूछ लो" कहती हुई किचन में भाग गयी... मस्त 'अपनी' वाणी!!!
चाय पीने के बाद वो फिर से खड़े हुए," साहब लेट हो जाएँगे"
"नही! मुझे भी रोहतक की और जाना है.. चलिए में छोड़ दूँगा!" कहकर वो तीनो घर से बाहर निकल गये........
शिव प्राची को साथ लेकर बेडरूम में गया. शिवानी अभी भी सो रही थी. प्राची शिव के लिए पैग बनाने लगी...
करीब 20 मिनिट में शिव का सुरूर बन'ने लगा था. उसने अपना गिलास उठाया और जाकर शिवानी के पास बैठ गया.. नींद में अपने आपको देखे जाने से बेख़बर शिवानी टेढ़ी लेटी हुई थी... उसने एक घुटना मोड़ कर अपने पेट से लगा रखा तहा... और अपने हाथ से अपनी चूचियाँ ढक रखी थी... नींद में भी उसके चेहरे पर ख़ौफ़ तैरता देखा जा सकता था...
शिव ने प्राची से सिग्गेरेत्टे और लाइटर देने को कहा.. जैसे ही प्राची उसके पास आई.. उसने प्राची को अपनी और खींच लिया... पर बॅलेन्स बिगड़ जाने से प्राची उसकी गोद में से पलट कर शिवानी के चूतदों पर जा गिरी..
शिवानी चिल्ला कर अचानक उठ बैठी और बेड के एक कोने पर सिमट गयी... डारी सहमी सी..
प्राची उसको देखकर मुश्किराई...
शिव ने प्राची को आदेश दिया," मेरी जान के लिए मेरी पसंद के कपड़े लेकर आओ!"
प्राची सिर झुका कर बिना बोले चली गयी...," शिव ने उसकी और मुँह घुमाया,"प्राची के आने से पहले तुम्हारे तन पर एक भी कपड़ा नही होना चाहिए."
शिवानी सिहर गयी,"नही... प्लीज़!"
"साली क्या पतिव्रता बन'ने का नाटक करती है... अपने आदमी से झूठ बोल कर कहाँ रंगरलियाँ मानने गयी थी? बोल"

यह सुन'ना था की शिवानी को ज़ोर से चक्कर आने लगे.. उसका चेहरा सफेद पद गया और वो निर्जीव से होकर एकटक शिव की और देखने लगी... उसके सामने 'विकी' का चेहरा घूम गया... उसके विकी का!"

"बोल हराम्जदि.. अब क्या हो गया..!" वह उठा और शिवानी के गले से नाइटी खींच कर फाड़ डाली... और उसके साथ ही शिवानी का दूधिया यौवन नशे में धुत शिव की आँखों के सामने आ गया... वा एक बार फिर से राक्षस सा लगने लगा रात वाला राक्षस...
पर शिवानी को अब उस्स डर से कहीं बड़ा डर सामने नज़र आने लगा...
उसको अपने नंगेपन का अहसास तब हुआ जब शिव ने आगे झुक कर उसकी ब्रा के उपर से उसकी चुचियों पर दाँत गाड़ा दिए.. वह एकद्ूम उचक कर पीछे लेट गयी.. "आपको कैसे मालूम?" शिवानी ने अपने नंगे पेट और जांघों को छुपाने की कोशिश करी...
अब शिव कुछ बताने के मूड में नही करने के मूड में था... उसने शिवानी की टाँग पकड़ी और अपनो और खींच लिया... उसके पेट पर अपना मोटा हाथ रख दिया.. शिवानी असहाय मेम्ने की भाँति उसकी और निरीह नज़रों से देखती रही... तभी वहाँ प्राची आ गयी... उसके हाथ में कपड़े के दो टुकड़े थे... एक को पनटी और दूसरे को ब्रा कहते हैं...

शिव ने उसके हाथ से दोनो चीज़ ले ली. उनको सूंघ कर देखा, उनमें से प्राची के देव की खुसबू आ रही थी...
"प्राची! अपने कपड़े उतार दो!" शिव के आदेश का पालन करने में प्राची ने कुल 1 सेकेंड लगाई... अपनी छातियों और जांघों को ढके हुए कपड़े को अपने से जुड़ा कर दिया...
उसको बाहों में लेकर शिव ने ख़तरनाक अंदाज से शिवानी को देखा... प्राची को तुरंत आक्षन लेते देख वो समझ गयी थी... यहाँ देर करने का अंजाम बुरा होता होगा... दिमाग़ सुन्न हो गया था पर जीने की इच्छा कायम थी.. उसने अपनी पनटी को टाँगों से अलग कर दिया और बिना कोई भाव चेहरे पर लिए अपने हाथ कमर पर लेजाकार उस्स आखरी बंधन से भी मुक्त हो गयी... अब उसको इज़्ज़त प्यारी ना थी... इज़्ज़त तो बची ही ना थी...

शिव उठकर बाहर गया और बाहर बैठी नौकरानी को वीडियो कॅम्रा ऑन करने को कहा... और अंदर आकर सोफे पर बैठ गया..," प्राची उसको प्यार करना सिख़ाओ! साली बहुत गांद हिलाती है... करवाते हुए..
प्राची जाकर बेड पर उसके साथ बैठ गयी... उसका हाथ पकड़ा और अपनी और खींच लिया...
हर पल की मोविए बन'नि शुरू हो गयी थी... प्राची ने उसके होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... दूसरी और से कोई विरोध नही हुआ... पर समर्थन भी नही...

"इसको साली को नशे का इंजेक्षन लगाओ!" शिव ढाडा..
" नही नही .. प्लीज़... मैं सब कुछ करूँगी.." शिवानी ने प्राची को कस कर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी बाहर निकल आई जीभ को चाटने लगी.. उनके होन्ट मिल गये.. जीभ एक दूसरे के मुँह में अठखेलियन करने लगी.. दोनो के हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसालने लगे... कुल मिला कर शिवानी वैसा ही कर रही थी जैसा प्राची उसके साथ... प्राची उससे 3 साल छोटी थी.. पर मुकाबला बराबरी का चल रहा था...
प्राची शिवानी के उपर आ गयी.. दोनो की छातिया आपस में रगड़ खाने लगी.. दोनो की टांगे जैसे चूतो पर चिपकी हुई थी.. शिवानी उत्तेजित सी महसूस करने लगी... दोनो की चूत पर शेव करने के बाद उग्ग आए छोटे छोटे बॉल एक दूसरी की चूतो से रगड़ खा कर अब भाहूत मज़ा दे रहे थे...
दोनो ही अब खुद को एक दूसरी से ज़्यादा शाबिट करने पर तूल गयी.. पर पहल प्राची ही करती थी.. और शिवानी उसका जवाब ज़ोर से देती...




प्राची ज़ोर से हाँफी और आख़िर कार एक तरफ लुढ़क गयी...
शिव अपनी जगह से खड़ा हुआ और प्राची का स्थान लेने पहुँच गया...
उसने शिवानी को बेड से उतार कर रात वाली पोज़िशन में झुका दिया.. घुटने ज़मीन पर थे और उसकी गांद बेड के किनारे पर टिकी थी...
कल तो कुछ प्राब्लम भी हुई थी.. पर आज तो जैसे बेड बनाया ही इश्स पोज़िशन के लिए था...
जैसे ही शिव ने उसको कमर पर हाथ रखकर दबाया... उसकी गांद की दरार उचक कर और खुल गयी...
शिव ने प्राची की चूत में लंड देकर अपने रस से नहलकर चिकना किया और कड़क हो चुके लंड को शिवानी के छेद पर रेक दिया... ग़लत छेद पर... जो शिवानी को कभी पसंद नही था... शिवानी ने अपनी गांद हिलाकर हल्का सा विरोध जताने की कोशिश की पूर शिव ने उसको एक बकरी की तरह दबोच लिया..
अब इश्स बकरी में जान ही कितनी बची थी... विरोध करने को....
दुख और दर्द से लबालब एक लुंबी चीख शिवानी के हुलक से निकली और उसकी गांद का व्रत टूट गया... कभी भी ना चुडाने का...
लंड गांद में फँसा खड़ा था.. और करीब आधा घुसने की तैयारी में था... धीरे धीरे करते करते लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. शिवानी की चीखें अब भी जारी थी... पर अब उनमें दर्द कूम था... दुख ज़्यादा...
वा चीखती रही... वा रोन्दता रहा... वा चिल्लती रही... वा चोदता रहा...

जब तक की शिवानी की गांद में वीरया ने अपनी मौजूदगी दर्ज नही करवाई... उसके बाद तो जैसे लंड को गांद अच्छी लगती ही ना हो... एकद्ूम रूठ कर बाहर निकल आया... अपना रूप परिवर्तन करके... छोटा होकर...
शिव उठकर सोफे पर जा बैठा... शिवानी अब भी चीख मार रही थी... उसके विकी के लिए; उसके राज के लिए... वो वैसे ही पड़ी रही.

प्राची ने सहारा देकर उसको बेड पर चढ़ा दिया...

शिवानी रोते रोते सो गयी..........

टफ ने देल्ही रोड पर सीमा के घर के बाहर गाड़ी रोक दी... टफ बॅक व्यू मिरर में से सीमा को लगातार देखता आ रहा था... सीमा की नज़र भी एक बार शीशे में से उसको देख रहे टफ पर पड़ी थी, पर वो यूँ ही थी... उसने तुरंत अपनी नज़रें घुमा दी थी....
मा बेटी दोनो ज़ीप से उतार गये. मा ने सीमा का हाथ पकड़ा और जाने लगी," "क्या चाय के लिए नही पूचोगे!" जाने क्यूँ टफ कुछ देर और उनके साथ रहना चाहता था... मा थोड़ी झेंप गयी पर बेटी ने मूड कर भी नही देखा," आओ ना! इनस्पेक्टर साहब... मैने तो सोचा था आप कहाँ हमारे घर में आएँगे... आ जाओ!"
टफ ने घर के बाहर रोड पर गाड़ी पार्क कर दी और उतार कर उनके साथ ही अंदर घुस गया...
सीमा लज्जित सी महसूस कर रही थी. आज सुबह से ही पोलीस उनके घर के चक्कर लगा रही थी और कॉलोनी में सभी की ज़ुबान पर उन्ही की चर्चा थी... और अब ये पोलीस जीप वाला... शुक्रा है उसने वर्दी नही पहनी हुई थी... वरना अकेला घर में एक पोलीस वाले को आया देख लोग पता नही क्या क्या कहते... उसने समाज को करीब से जान लिया था... उसको टफ से कोई हुंदर्दी नही थी...
टफ घर के अंदर घुसते ही उनकी कसंकस से भारी जिंदगी से रूबरू हो गया...
हालाँकि सॉफ सफाई बहुत ही उम्दा थी. फिर भी एक कमरे में कोने पर तंगी रस्सी पर पड़े कपड़े, दूसरे कोने में रसोई का समान और दीवार के साथ डाली हुई दो चारपाई और उनके साथ एक टेबल पर रखी हुई ढेर सारी किताबें... उस कमरे में ही उनका संसार था... और शायद वो किताबें ही उनके पास सबसे बड़ी पूंजी थी, सीमा की किताबें... टेबल के साथ दीवार पर चिपकी हुई एक छोटी सी श्री राम की तस्वीर इश्स बात की और इशारा कर रही थी की ये दिन देखने के बाद भी वो दोनो मा बेटी मानती थी की भगवान सबके लिए होता है... सबका होता है... शायद इसी विस्वास ने आज तक उनको टूटने नही दिया था... वरना लड़कियाँ तो कौन कौन से धंधे नही अपना लेती; अपने जीववन को मौज मस्ती से भरा बनाने के लिए मजबूरी का नाम देकर...
सामने वाली दीवार पर एक नौजवान आदमी की माला डाली तस्वीर लगी हुई थी, भगवान ने इनका एकमात्रा सहारा भी छीन लिया... टफ भावुक हो गया...
सीमा ने जाते ही गॅस पर पानी चढ़ा दिया.. वो जल्दी से जल्दी टफ को रफू-चक्कर कर देना चाहती थी...


दोनो चारपाई साथ साथ डाली हुई थी... जब टफ चारपाई पर बैठ गया तो मा खड़ी ही रही... ," बेतिए ना माता जी!"
"नही बेटा! कोई बात नही... आपके जाने के बाद तो बैठना ही है...
सीमा की मा के मुँह से साहब की जगह बेटा सुनकर मुश्किल से टफ अपने को रोक पाया... वह रह रह कर दूसरी और मुँह करके चाय बना रही सीमा के मुँह को देखने की कोशिश करता रहा. शायद पहली बार ऐसा उसकी लाइफ में हुआ था की पिछवाड़ा सामने होने पर भी टफ का ध्यान उसकी गोलाइयों पर ना जाकर उसके चेहरे में कुछ ढूँढ रहा था... पहली बार!
उसको वाणी की बात याद आई," अजीत भैया! ये दीदी दिशा जितनी सुंदर हैं ना!"

"हां! दिशा जैसी है... !" वह कह उठा.
"क्या बेटा?" सीमा की मा ने उसके मुँह से निकले इन्न शब्दों का मतलब पूछा..
"कुछ नही माता जी!" फिर चारपाई को पीछे सरका कर बोला,"आप बैठिए ना!"

सीमा चाय बना लाई. और उसके पास टेबल पर रख दी...
"मैं भी कितनी पागल हूँ! मैं अभी आई" कहकर उसकी मा बाहर निकल गयी...
इस तरह अपना टफ सीमा पर फिदा हो गया था .दोस्तो कहानी अभी बाकी है
 
दोस्तो आपने गर्ल्स स्कूल--18 मैं देखा ही था अपना टफ सीमा पर लट्तू हो रहा था .सीमा की मा टफ के लिए कुछ लाने के लिए बाहर चली गयी थी . अब आगे की घटना पढ़े....
अपने आपको इनस्पेक्टर के साथ अकेला पाकर सीमा बेचैन हो गयी. उसको रह रह कर उस्स 'दुष्ट' द्वारा उसकी जांघों पर डंडा लगाना और निहायत ही बदतमीज़ी से बात करना याद आ रहा था... वह टफ से मुँह फेर कर कोने में जा खड़ी हुई...
"मुझे माफ़ कर दो सीमा... जी!" टफ उसकी आवाज़ सुन-ने को तड़प रहा था ..
2 बार माफी माँगे जाने पर भी सीमा ने कोई उत्तर नही दिया... ऐसा इसीलिए हो रहा था क्यूंकी सीमा को विस्वास था की इनस्पेक्टर को अपनी ग़लती का अहसास हो गया है... अगर पहले वाली 'टोने' में पूछता तो वो दोनो बार जवाब देती..

तभी उसकी मा आ गयी.. उसके हाथ में नमकीन और बिस्किट्स के 2 पॅकेट थे.. एक प्लेट में रखकर उसने टफ के सामने रख दिए और चारपाई पर बैठ कर अपना कप उठा लिया," तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है बेटी!" मा ने सीमा से कहा..
सीमा ने अपना कप उठाया और गेस के सामने पड़े पीढ़े पर बैठ गयी.. दीवार से सिर लगाकर... उसकी आँखों में जैसे दिन भर का गुस्सा बाहर ना निकल पाने का मलाल था.. ग़रीब हो गये तो क्या हुआ.. आख़िर वो भी स्वाभिमान से जीने का हक़ रखते थे... उसको याद आया कैसे टफ ने थाने जाते ही उसके मुँह पर ज़ोर का तमाचा मारा था... उसके जाने कब से अपमान की डोर से बँधे आँसू खुल गये और टॅपर टॅपर उसके गालों पर गिरने लगे... पर वह रो नही रही थी... वो उसके हृदय को तार तार करने वाले की सहानुभती नही पाना चाहती थी.. बस उसके आँसुओं पर उसका वश नही था...
टफ ने उसकी मा के सामने ही अपनी ग़लती के लिए माफी माँगी," प्लीज़ सीमा जी! मैं बता चुका हूँ की वैसा करना मेरी मजबीरी थी.. आख़िर एक जिंदगी का सवाल है"
सीमा ने अपना कप दूर फैंक दिया, जाने कब से वो अपने अंदर उठ रहे भूचाल को रोकने की कोशिश कर रही थी..टफ ने इतनी खुद्दार और इतनी शर्मसार करने वाली बात अपनी जिंदगी में नही सुनी थी.. वह एक एक शब्द को चबा चबा कर उसके सीने में उतारती चली गयी..," हुमारी कोई जिंदगी नही है.. हुमारा इज़्ज़त से जीने का कोई हक़ नही... अगर मेरी जगह किसी अमीर बाप की बेटी होती तो क्या तुम ऐसे ही करते?अगर वो तुम्हारी कोई लगती होती तो भी क्या तुम उसको वही डंडा लगाते... हम... हम लावारिस हो गये क्या? हम अगर मर भी गये तो कोई ये नही कहने वाला की तुम! ... की तुम उसके लिए ज़िम्मेदार हो.. तुमने तो बस अपनी ड्यूटी निभाई है.. चले जाओ मेरे घर से... निकल जाओ अभी के अभी..."
अपनी भदास निकाल कर वो अपनी मा के सीने से जा लगी... उसका और कोई भी ना था... कोई भी... अब उसका कारू न क्रंदन टफ के लिए सहना मुश्किल हो रहा था... पर जाने क्यूँ वा अब भी किसी इंतज़ार में था... जाने कौनसा हक़ जान कर अब भी वही बैठा रहा..
मा को भी सीमा की बातें सुनकर तसल्ली सी हुई... वह उसके बालों में हाथ फेरने लगी... शायद कहना तो वो भी उसको यही चाहती थी.. पर बेशर्म टफ खुद ही चाय पीने आ गया था..
टफ की हालत खराब थी... कुछ कह भी तो नही सकता था.. वह उठा और बोला," माता जी मुझे आपका नंबर. दे दीजिए... मुझे इश्स बारे में कोई बात करनी होगी तो कर लूँगा.."

"अब और कितने नंबर. दे साहब!" बेटी की चीत्कार सुनकर उसके मॅन में भी दिनभर की बेइज़्ज़ती की ग्लानि बाहर आ गयी.. उसने उसको बेटा नही साहब कहा." दोनो नंबर. तो लिखवा ही चुके हैं हम कम से कम बीस बार...
टफ जैसे वहाँ से अपनी इज़्ज़त लुटवा कर चला हो.." अच्छा माता जी!" उसने मुड़ते हुए ही कहा और बाहर निकल गया...

सीमा को लग रहा था की उसने कहीं ग़लती की है... उसको निकल जाने को कह कर..
मा की गोद में सिर रखे पड़ी हुई सीमा ने दरवाजे की और देखा... टफ गाड़ी घुमा कर चला गया!!!

प्राची को शिवानी से हुम्दर्दि होने लगी थी. आख़िर थी तो वह भी एक लड़की ही.. क्या पता उसकी कुछ मजबूरिया रही हों या उसकी ऊँचा उड़ने की हसरत जो उसने चाँद ज़्यादा रुपायों की खातिर शिव को अपना सब कुछ दे दिया था... पर लड़की का दिल आख़िर लड़की का ही होता है.. शिव के फार्म हाउस से जाते ही वो अपनी ड्रेस निकाल लाई और सूनी आँखों से बेडरूम की छत निहार रही शिवानी को दे दी," जब तक बॉस नही आते, आप ये पहन सकती हैं..."
शिवानी ने उसको क्रितग्य नज़रों से देखा और उसके हाथ से कपड़े ले लिए...," आप को कुछ पता है... मेरे बारे में!"
"नही... और जान'ना ज़रूरी भी नही है.. इतना तो जान ही गयी हू की आप अपनी मर्ज़ी से यहाँ नही आई!" प्राची ने उसके कंधे पर हाथ रख और उसके पास बैठ गयी..
"अब मेरा क्या होगा!" शिवानी ने कपड़ों से अपने आपको ढकते हुए कहा...
"पता नही... पर मैं इसमें कुछ नही कर सकती.. मेरी नौकरी का सवाल है.. आख़िर मुझे भी जीने के लिए पैसा चाहिए!"
"पर इसको मेरे बारे में कैसे पता चला..!" शिवानी जानती थी की ये ओमप्रकाः का दोस्त है और उसको घर से ही पता चला होगा...!"
"अब वह घर वापस नही जाना चाहती थी... पर यहाँ से भी जल्दी से जल्दी बाहर निकलना था... किसी भी तरह?"
"क्या तुम मुझे यहाँ से निकाल सकती हो?"
"नही! मैने तुमको सॉफ सॉफ बता दिया है... मैं ये नौकरी नही छोड़ सकती, किसी भी हालत में... वरना तुम खुद ही सोचो अगर किसी की कोई मजबूरी ना हो तो क्या वो यहाँ काम करेगा?"

टफ सीधा गाँव में अंजलि के घर पहुँचा... वहाँ पर ओमप्रकाश को देखकर हैरान रह गया...," अरे! आप वापस भी आ गये! आप तो 3-4 दिन के लिए गये थे ना!" राज और अंजलि भी वहीं थे... गौरी लिविंग रूम में बैठी थी... सब उदास थे...
"हां... वो .. मेरा काम जल्दी हो गया.. इसीलिए वापस आ गया!" ओम ने हड़बड़ा कर टफ को सफाई दी..
"पर आप तो कह रहे थे की काम नही बना.." अंजलि ने टफ के दिमाग़ में शक़ का कीड़ा पैदा कर दिया... ओम ने कुछ देर पहले ही अंजलि को सफाई दी थी की बीच रास्ते में ही उसके दोस्त का फोन आ गया की अभी 3-4 दिन मत आना.
"हां .. वही तो है.. अब क्या मैं सब सबकुछ बतावँगा!.." सच तो ये था की ओम को अंजलि को दिया हुआ एक्सक्यूस हड़बड़ाहट में याद ही नही रहा था.. उसकी आवाज़ हकला रही थी.. और पोलीस वालों को इतना इशारा काफ़ी होता है..

टफ ने सिग्गेरेत्टे निकली और उसको सुलगा लिया... उसका दिमाग़ तेज़ी से काम कर रहा था.. वह कल रात हुई एक एक बात को याद करने की कोशिश कर रहा था..

तभी अचानक उसने सिग्गेरेत्टे ओम की और बढ़ा दी.. " लीजिए सर! गुस्सा छोड़िए और कश लगाइए!"
"नही में सिग्गेरेत्टे नही पीता!" ओम ने मुँह फेर कर कहा," अंजलि चाय बना लाओ!"


टफ का शक मजबूत होता जा रहा था.. उसने कल रात को आते ही नेवी कट का टोटका टेबल के पास पड़ा देखा था... इसका मतलब कोई और भी आया था ओम के साथ रात को.. पर ओम तो कह रहा था की वो 10 बजे के बाद आया है..
"क्या नाम बताया था आपने अपने दोस्त का जो कल आपके साथ आए थे!" टफ ने बातों ही बातों में पूछा..!
"वो... शिव... आअ कल रात को कोई भी तो नही! मैं तो उसकी बात कर रहा था जिसका फोन आया था.." ओम का गला सूख गया. टफ को यकीन हो चला था की लोचा यहीं है.. पर वह और पक्का करना चाहता था... उसने राज को इशारे से बाहर ले जाकर कुछ टाइम के बाद कॉल करने को कहा; उसके फोन पर...

वो चाय पी ही रहे थे की टफ के मोबाइल पर राज की कॉल आ गयी..
टफ ने फोन काट दिया और अकेला ही बोलने लग गया, फोन को कान से लगा कर..
"हेलो!"
-------
"हां दुर्गा बोलो!"

"क्या? शिवानी का पता चल गया!" कहाँ है?" टफ की बात सुनकर अंजलि और गौरी भाग कर कमरे में आए...," ओह थॅंक गॉड!"
ओम के चेहरे का रंग सफेद होता गया... टफ की नज़र उसके चेहरे पर ही थी...

""क्या? क्या बक रहे हो...?" टफ का नाटक जारी था...
ओम बैठा बैठा काँप रहा था.. टफ का आइडिया काम कर गया... उसने फोन काटा और ओम की और मुखातिब होकर कहा..," हां तो मिस्टर. ओम प्रा...!"
"मैने कुछ नही किया जनाब... वो मैने तो मना भी किया था.. शिव को..!" आगे टफ ने उसको बोलने ही ना दिया... उसके चेहरे पर ऐसा ज़ोर का थप्पड़ मारा की वो बेड से मुँह के बाल फर्श पर जा गिरा.. उसने दोनो हाथ जोड़ लिए और गिड़गिदने लगा," इनस्पेक्टर साहब! मेरी बात सुन लो प्लीज़.. मैने कुछ नही किया.." अंजलि और गौरी दोनो को उससे घृणा हो रही थी...
टफ ने ओम की कॉलर पकड़ी और उठा कर बेड पर डाल दिया," साले! जल्दी बक के बकना है.. ना ते तेरी...!" लड़कियों को देखकर उसने अपने आपको काबू में किया," चल जल्दी बक!"
ओम ने पहली लाइन से आखरी लाइन तक रटे हुए तोते की तरह बोलता चला गया...

टफ ने उसको जीप में डाला और राज को साथ लेकर फार्महाउस की और गाड़ी दोडा दी........

शिवानी ने प्राची को एक इज़्ज़तदार काम और इतनी ही सॅलरी की नौकरी दिलवाने का लालच दिया... ," देख प्राची! इश्स तरह की नौकरी करने से कही अच्छा लड़की के लिए स्यूयिसाइड कर लेना है.. मेरे ख्याल से तू भी इश्स बात को समझती है... मैं तुझे एक बहुत ही अच्छा काम और इससे ज़्यादा तनख़्वाह दिलवा सकती हूँ.. अगर तू मेरी यहाँ से निकालने में मदद करे तो!"
"पर अगर ऐसा नही हुआ तो मैं ना घर की रहूंगी, ना घाट की..!" प्राची ने अपना शक जाहिर कर दिया!"
"देख प्राची! यहाँ बैठे बैठे तो मैं कुछ कर नही सकती. विस्वास करना या ना करना तुम पर निर्भर है... पर सोच ले.. क्या तुझे कभी भी अपना परिवार नही चाहिए... हुमेशा इश्स कुत्ते की रखैल रह सकती है" अब की बार शिवानी ने प्राची की दुखती राग पर हाथ रख दिया...
"ठीक है शिवानी! तुम तैयार हो जाओ! बाहर मेरी स्कूटी खड़ी है... मैं नौकरों को इधर उधर करती हूँ..." कहकर वो कमरे से बाहर निकल गयी.....

कुछ देर बाद शिवानी और प्राची फार्महाउस के गेट पर पहुँचे ही थे की टफ की ज़ीप ने उनके सामने ब्रेक मारे..
टफ ने शिवानी को एक शब्द भी नही बोला और प्राची को हाथ से कसकर पकड़ लिया और सीधा अंदर चला गया...

राज की नज़रें शिवानी से मिली.....
 
राज शिवानी को देखते ही उसको बाहों में भर लेने को दौड़ा.. उसको पता चल चुका था की कल रात से लेकर अभी तक उसके साथ क्या क्या हुआ है.. शिवानी ने भी उसको अपने पास आता देख अपनी बाहें फैला दी.. पर दो कदम चलते ही राज के कदम ठिठक गये... उसके सामने खड़ी नारी सीता नही थी जो माफ़ कर दिया जाए... और फिर माफी तो सीता माता को भी नही मिली थी.. राज को उससे जाने कितने सवालों के जवाब लेने थे... राज वही रुक गया.. शिवानी उसके रुकने का मतलब जानती थी... वह उसकी अपराधी थी... उसने राज को धोखा दिया था... उसकी बाहें वापस सिमट गयी. अब राज को बहुत कुछ बताना था... बहुत कुछ.. शिवानी ने नज़रें झुका ली. राज की आँखों में कड़वाहट भरने लगी...

कुछ देर बाद टफ अंदर से एक नौकर और 2
नौकरानियों को प्राची के साथ बाहर लाया... ,"
उस्स साले का घर किधर है...?" टफ ने ओम का
गला पकड़ा और पूछा.
"रहने दो अजीत! कोई ज़रूरत नही है.. मैं एफ.आइ.आर. नही करना चाहता... !"
"क्या कह रहे हो भाई?" टफ ने अचरज से पूछा..

"जो औरत मुझे छोड़ कर किसी दूसरे के पास जा
सकती है, उसको अगर कोई तीसरा उठा ले जाए तो
क्या फ़र्क़ पड़ता है.. क्या पता कल को ये अदालत
में कुछ और ही बयान दे! मैं अपनी और बे-इज़्ज़ती नही कराना चाहता!"
टफ उसकी हालत को समझ रहा था.. उसने उसको ठंडे दिमाग़ से सोचने की सलाह दी.. पर राज अपनी बात से नही डिगा," आइ आम नोट गोयिंग
टू कंप्लेन इन पोलीस एनीवे..."
टफ ने सबको छोड़ दिया.. प्राची किसी उम्मीद से शिवानी को देख रही थी; पर जिसको अपना ही भरोसा ना हो, वो किसी का सहारा क्या बनेगी.
प्राची ने ये सोच कर तसल्ली कर ली की उसको तो अब
जाना ही था.. वहाँ से छूट कर.. उसने अपने
अरमानो पर मिट्टी डाली और वापस अंदर चली
गयी, अपने मात हतों को साथ लेकर.

टफ ने ओम को वहीं छोड़ दिया और राज और
शिवानी को बिठा कर घर ले आया...

घर जाने पर सभी शिवानी को अजीब सी नज़रों से देखते रहे.. अंजलि और गौरी तक उसके पास नही गये.. उसके साथ शिव ने जो कुछ भी किया उसके लिए वह सहानुभूति की पात्रा नही थी.. बल्कि राज के साथ उसने जो कुछ किया; उससे वा कुलटा साबित हो गयी थी.. अछूत!
टफ ने राज को अकेले ले जाकर बात करने की कोशिश की," यार हम आदमी हमेशा ऐसा ही क्यूँ सोचते हैं.. फिर तो तुम्हे भी तुम्हारे और अंजलि के रीलेशन बता देने चाहिए.."
"बस यार! मैं इश्स टॉपिक पर बात ही नही करना चाहता!" लगभग हर आदमी अपने कुत्सित कर्मों को उठाए जाने पर वैसा ही जवाब देता... जैसा राज ने दिया.. हां औरत हर-एक को सिर्फ़ 'उसकी ही चाहिए!
टफ को आगे बात करने का कोई फ़ायदा नही दिखाई दिया.. उसने अपनी ज़ीप स्टार्ट की और चला गया... मियाँ बीवी को उनके हाल पर छोड़ कर...

शिवानी को अंजलि खाना देने आई पर उसने मना कर दिया... अंजलि ने उस्स 'कुलटा' को दोबारा पूछने की ज़रूरत नही समझी.. उसको भी राज से ही हुम्दर्दि थी.. अपने राज से...
सिर्फ़ एक भूल से शिवानी अपनो में बेगानी हो गयी... सिर्फ़ एक भूल से वह 'अकेली' हो गयी... राज ने उससे ना हुम्दर्दि दिखाई और ना ही गुस्सा.. वा मुँह फेर कर लेट गया.. शिवानी अपने आपको पवितरा कर लेना चाहती थी.. राज के पसीने से नाहकर, उसकी बाहों में डूब कर... वह दूसरी तरफ मुँह किए हुए राज की छाती को उपर नीचे होता देखती रही.. शायद गुस्से की प्रकस्ता में... पर उसकी हिम्मत ना हुई राज को छूने की, वा सज़ा भुगत रही थी; उससे झूठ बोलकर जाने की... अपने विकी के पास..


पर शिवानी से रहा ना गया. वह उठी और राज के साथ बैठ गयी.. धीरे से अपनी उंगली के नाख़ून से उसको अपने होने का अहसास कराया. पर राज तो जैसे खार खाया बैठा था.. वा अचानक उठा और शिवानी के मुँह पर थप्पड़ रसीद कर दिया," हराम जादि, कुतिया! क्या समझती है मुझे... मैं कोई कुत्ता हूँ जो बाकी कुत्तों के उतरते ही तुझ पर चढ़ जवँगा.. साली.. मैने तुझे क्या समझा था.. और तू क्या निकली... मेरी शुक्रगुज़ार होना चाहिए तुझे इश्स घर में पैर रखने दिया... तेरे घर वाले.. सालों ने ज़रूरत ही नही समझी कि पूछ तो लें आकर की उनकी बदचलन बेटी कहाँ रंगरलियाँ मना रही है आजकल... हरांजदों ने फोने तक नही किया.. करते भी तो कैसे.. पता है सालों को अपनी औलाद का.. बहनचोड़.. मेरी जिंदगी में नासूर बन कर फिर आ गयी.. मर क्यूँ नही गयी तू..."


अंजलि को लगा की अब तो उसको बताना ही पड़ेगा.. चाहे कुछ हो जाए. वो जलालत की जिंदगी लेकर नही जी सकती थी.. पर फिर विकी का क्या होगा.. ये विचार दिमाग़ में आते ही उससने बहाया बनकर जीना पसंद किया बजाय उसके 'विकी' पर आँच आने के..
वह बेड के दूसरे किनारे पर लेट गयी और अपने भगवान को याद करती हुई.. जाने कब सो गयी..........

अगले दिन एकनॉमिक्स डिपार्टमेंट में पीयान ने आकर सीमा को खत दिया.. वह उस्स पर भेजने वेल का नाम पढ़कर चौंकी.. उसस्पर 'तुम्हारा अजीत' लिखा हुआ था.
जी भर कर कोसने के बाद उसने जिग्यासा वस बाथरूम में जाकर लेटर को खोला और पढ़ने लगी.....

टफ शमशेर की जान खा रहा था," यार तूने लेटर लिख तो दिया.. उसकी समझ में तो आ जाएगा ना!"
शमशेर हँसने लगा," आबे! थोड़ी ठंड रख, अब तो वो लेटर पढ़ चुकी होगी.. अगर उसका फोने आ गया तो समझ लेना.. वो समझ गयी.. नही तो कहीं और ट्राइ मारना!"
टफ बेड से उठ कर उसके पास सोफे पर आकर बैठ गया," नही यार! मैं कुँवारा ही मार जांगा; पर मैने भगवान को कसम दी है.. 5-7 जीतने भी मेरे बच्चे होंगे.. सब सीमा के पेट से निकलेंगे.. उसके अलावा सबको मा बेहन मानूँगा.. कभी भी किसी से उल्टा पुल्टा नही बोलूँगा... बता ना यार.. वो मान तो जाएगी ना.. मुझे कुँवारा तो नही मरना पड़ेगा?"
शमशेर ने उसके गालों को हिलाया," वाह रे मेरे नादान आशिक.. 900 चूहे खाकर तू भगवान के दरबार पहुँच गया.. हा हा हा.. आबे तू ऐसा कब से हो गया मेरे लाल.."
तभी फोन बज उठा.. टफ ने एकद्ूम से उछाल कर फोन उठाया.. पर फोन उसके ऑफीस से था..," साले ! तेरी मा की.. काट फोन.. और आइन्दा फोन किया तो तेरी मा चोद दूँगा..!
शमशेर ज़ोर ज़ोर से हुँसने लगा," साले! अभी तो तू कह रहा था.. किसी से उल्टा पुल्टा नही बोलेगा! कसम खाई है.."
"पर भाई! अभी तो सीमा का फोन आएगा ना... क्या पता वो दौबारा ना करे!"

उधर सीमा ने लेटर पढ़ना शुरू किया:

सीमा!



जाने कब से दिल पर एक धूल सी जमी हुई थी... मैं भूल ही गया था की अहसास होता क्या है.. बस चल रहा था.. जिधर जिंदगी लिए जा रही थी.. ना मुझे कभी किसी से प्यार मिला... और ना ही मैने किसी को दिया.. दिया तो सिर्फ़ दर्द; लिया तो सिर्फ़ दर्द!

कल तुमने जाने अंजाने, मेरे दिल की वो धूल हटा दी.. मुझे प्यार देना सिखाया, प्यार लेना सिखाया.. और.. प्यार करना भी सिखाया.. मेरी समझ में नही आता मैं किस तरह से आपको शुक्रिया करूँ..

ऐसा नही है की मुझे कभी कोई अच्छा नही लगा, ऐसा भी नही है की मैं किसी को अच्छा नही लगा. पर ये अच्छापन; अपनेपन और पराएपन के बीच लटकता रहा.. और मैं कभी समझ ही नही पाया था की वो अपनापन क्या होता है.. जिसमें आदमी की नींद उड़ जाती है, चैन खो जाता है... कल से पहले!

कल तुमने मेरा सबकुछ एक साथ जगा दिया.. मेरे अरमान, मेरे सपने और मेरे आदमी होने का अहसास! तुमने मेरी जिंदगी बदल दी..

मैं तुमसे कुछ भी कहने से डरता हूँ.. तुम्हारे सामने आने से डरता हूँ.. पर मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ; की मैं तुमसे प्यार करता हूँ...

सिर्फ़ इसीलिए नही की तुम शायद मेरी दुनिया में आने वाली सबसे हसीन लड़की हो... सिर्फ़ इसीलिए नही की तुमने ही मेरे दिल में वो ज्योत जगाई है जो तुम्हारे बिना जलती ही नही... अंधेरा ही रहता... मेरे दिल में..!

बुल्की इसीलिए भी की मैं अब और कुछ कर ही नही सकता.. तुम्हारे बगैर, मैं और जी ही नही सकता; तुम्हारे बगैर.. मैने भगवान से तुम्हे माँगा है.. सिर्फ़ तुम्हे.. और मुझे विस्वास है की भगवान मेरी प्रार्थना सुनेगा.. क्यूंकी वो एक आशिक को बिन मौत नही मार सकता....

मैने तुम्हारे मॅन को जाना है.. उसी से प्यार किया है.. तुम अगर इनायत बक्शो गी तो अजीत टफ नही रहेगा, सॉफ्ट हो जाएगा.. हमेशा के लिए.. मेरी पहचान बदल जाएगी.. और वो तुमसे होगी.. मेरी पहचान...

मैं तुम्हारा सहारा नही बन सकता.. मैं तुम्हारा सहारा लेना चाहता हूँ.. अपने आपको बदलने के लिए.. अपनी सूनी दुनिया बदलने के लिए...

क्या तुम मेरी पहचान बनोगी?.... प्लीज़!

प्लीज़.... मेरी दुनिया में आ जाओ, सीमा..... प्लीज़!

मैं पूरा हो जवँगा... मेरी सीमा बन जाओ, ताकि मैं और ना भटकू, अपनी सीमा में ही रहूं...

मेरा नंबर. है... 9215 9215 **


प्लीज़ फोन करना......... प्लीज़!!!

तुम्हारा,

अजीत.....



आख़िर आते आते सीमा की आँखें भारी हो गयी.. और उस्स भारीपन को हूल्का किया.. उसकी आँख से निकले 2 आँसुओं ने.. एक लेटर में लिखे 'सीमा' पर जा टपका... दूसरा 'अजीत' पर!

सीमा ने लेटर को मोड़ कर अपनी जेब में डाला और आँसू पोंछते हुए बाहर निकल आई....

संजय और निशा आज घर पर ही थे.... वो वीकेंड पर ही घर आता था. ममी पापा खेत में गये हुए थे.. अपने भाई की दीवानी हो चुकी निशा उस-से हर तरह का प्यार पाना चाहती थी....
संजय ने जब गौरी के बारे में पूछा तो वो जल उठी.. उसने संजय को अपनी बाहों में भर लिया," क्या आपको मेरे अलावा किसी और के बारे में सोचने की ज़रूरत है?"
"निशा! ये बहुत ग़लत है.. उस्स दिन जाने कैसे... प्लीज़ निशा! मुझे माफ़ कर दो.. हम भाई बेहन हैं... सगे!" संजय ने उस-से चिपकी हुई निशा को अलग करते हुए कहा.
निशा जल बिन मच्हली की तरह तड़प उठी.. वह हाथ करती हुई फिर उसके सीने से जा चिपकी," मुझे ग़लत सही नही पता! तुमने ही मुझे प्यार सिखाया है... तुमसे लिपट कर ही मैने जाना है की कुछ होता है.. और मैं अपने आपको कभी और किसी की नही होने दे सकती.. और ना ही आपको होने दूँगी... एक बार मेरी तरफ जी भर कर देखो तो सही..!" निशा ने अपना कमीज़ उतार फैंका और उसकी दूधिया रंग की कातिल चूचियाँ नशा सा पैदा करने लगी.. संजय को पागल बनाने के लिए...


संजय ने लाख कोशिश की अपने मॅन को काबू में रखने के लिए.. वह बाहर चला गया, पर जब उन्न रसभरी छातियों का जादू उसके दिमाग़ पर हावी हो गया तो वह अचानक अंदर आया और अपनी हार को भूलने की कोशिश कर रही निशा पर झपट पड़ा...
संजय ने उसकी जाँघ के नीचे से निकल कर अपनी एक टाँग बेड पर रखी और उसके चूतड़ पकड़ कर ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिए..
निशा तो गरम हो ही चुकी थी.. उसने भी अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगाया कपड़ों के उपर से ही अपनी चूत को उसके बढ़ रहे लंड से मिलने के लिए..
संजय ने उसकी ब्रा खोल दी.. और उसकी चूचियों को अपने हाथों और जीब से मस्त करने लगा.. निशा सिसकने लगी थी.. अपने भाई के लंड को अंदर लेने के लिए.. उसने वासना में तर अपने दाँत संजय के कंधे पर गाड़ दिए और अपना नाडा खोल कर सलवार नीचे सरका दी....
संजय उसकी चूत को अपने एक हाथ से मसल रहा था और दूसरा हाथ पनटी के अंदर ले जाकर उसकी गांद की दरार में कंपन सा पैदा कर रहा था...
निशा ने संजय की पॅंट खोल कर नीचे सरका दी और अंडरवेर में हाथ डालकर बेहयाई से उसके लंड को अपनी और खींचने लगी.... अपनी चूत से घिसाने लगी..

इसी पोज़िशन में संजय ने निशा को बेड पर लिटा दिया.. और टाँगों से पनटी को निकल फैंका.. निशा का सब कुछ गरम था.. जैसे अभी अभी पकाया हो, भाई के लंच के लिए....
ज़्यादा मसला मसली की ज़रूरत किसी को नही थी.. दोनो तैयार थे.. अपना अपना जलवा दिखाने के लिए...
संजय ने अपना लंड अपनी बेहन की चूत पर रखा और दोनो का खून फिर से एक हो गया.. एक दूसरे के अंदर फिट.. और निशा कराह उठी.. आनंद की अति में..

संजय पागलों की तरह धक्के लगाने लगा.. और निशा भी... नीचे से..," पूराआा कर दो भायाअ.... पूराआा बाहर निकलल्ल्ल.... आआअज... तेज तेज माआरो.... प्लीज़.... तेज़..... मेरी छातियों को .... भ.... भीइ... पीत...ए.. राजल्हो... प्लीससस्स.... जोर्र्र से... अया याहाआ मजाअ हाअ रहाआ हाई... हाआँ पीछईए अंग्लियीयियी सीए घुस्स्स्स आ लो... धीरीए ई लॉवववे उ ...., भौया.., अयाया

और संजय उसकी हर आवाज़ के साथ तेज होता गया .. जब ताक निशा गिड़गिदने ना लगी," प्लीज़ भैया अब न्निकल लो.. दर्द हो .. तहाआ है... नीची .. हन ... अंदर मत निकलनाअ...

संजय ने लंड बाहर निकाल लिया और उसको बैठा कर उसके होंटो को लंड की जड़ में लगा कर.. हाथो से ही चूत में अंदर बाहर होने का मज़ा लेना लगा... थोड़ी देर में जब उसका भी निकलने को हुआ तो उसने अपना लंड पीछे खींचकर निशाना निशा के मुँह पर कर दियाअ... निशा का चेहरा अपने भाई के रस से तर बतर हो गया... "आइ लव यू निशा!" हर झटके के साथ संजय बोलता गया.. और झटके बंद होते ही शर्मिंदा होकर बाथरूम में घुस गया...

निशा अपने चेहरे पर लगे.. भाई के दाग को उंगली से लगा कर देखने लगी.........
 
गर्ल्स स्कूल--20

पूरे 24 घंटे बीत जाने पर भी कोई जवाब ना आने पर टफ बेचैन हो गया था.. उसकी बेचैनी का ये आलम था की हर 15 मिनिट के बाद आज वो सिग्गेरेट निकल लेता... शमशेर ने उसके हाथ से सिग्गेरेट छीन ली," यार! क्या हो गया है तुझे; और कोई काम नही बचा क्या, खुद को जलाने के अलावा... "यार तू तो समझता है ना प्यार की तड़प! कुछ बता ना... ऐसे तो मैं मर ही जवँगा यार!" टफ ने दूसरी सिगरेट जलाते हुए कहा. शमशेर ने उसको गुरुमन्त्र देते हुए कहा," भाई, इशक़ आग का दरिया है... और अगर इसके पार उतरना है तो डूब कर ही जाना पड़ेगा... अगर तुझे लगता है की उसको गालियाँ निकालने के बाद तू एक लव लेटर उसके मुँह पर मारेगा, और वो हमेशा के लिए तेरी हो जाएगी; तो तुझसे बड़ा उल्लू पूरी दुनिया में नही है..." "तो भाई! तू ही बता ना, मैं क्या करूँ की मेरी लाइफ झक्कास हो जाए!" टफ ने शमहेर का हाथ पकड़ कर कहा. "मैं कुछ भी करूँगा यार, उसको पाने के लिए!" "तू तो कहता था तेरी लाइफ झकास है... ऐसे ही घुमक्कड़ बनकर यार दोस्तों में पड़े रहना और रोज़ नयी सुहाग्रात मानना! उसका क्या?" शमशेर ने उस्स पर कॉमेंट किया.. "नही यार! मुझे तो पता ही नही था अब तक की प्यार के बिना इस हसिनाओ के सागर में रहकर भी प्यास कभी नही बुझती... मेरी प्यास तो अब सीमा ही बुझा सकती है.." " तो फिर इंतज़ार काहे को करता है... पहुँच जा ना उधर ही उसके घर पे! बोल दे दिल की बात...!" फिर आगे भगवान की मर्ज़ी!" शमशेर ने उसके साथ मज़ाक किया. "यार तू मेरी बची कूची भी लुटवाएगा. कैसा भाई है रे तू!" टफ की हिम्मत ही ना हो रही थी सीमा के सामने जाने की. "फिर तो तेरे लिए ऐसे ही ठीक है... कोई बात नही.. साल छे महीने मैं भूल जाएगा.. पता है मुझे तेरा" "यार तू मेरे प्यार को गली दे रहा है... मैं सच में ही पहुँच जाउन्गा उसके घर...." टफ ने निर्णायक दाँव ठोका... "तो फिर रोका किसने है...? चल आजा खाना तैयार होगया होगा..." टफ ने घर की तरफ चलते हुए कहा....

अंदर दिशा और वाणी उनका ही वेट कर रही थी.... दिशा शादी के बाद गुलाब के फूल की तरह खिल सी गयी थी.. शमशेर के प्यार से उसका अंग अंग जैसे निखार गया था.. उसकी छातियों का कसाव और बढ़ गया था.. उसके नितंबों में थिरकन पहले से भी कामुक हो गयी थी... कल की स्वर्ग की राअजकुमारी अब महारानी बन चुकी थी.. शमशेर की महारानी.. हां, पहले जैसा उसका गुस्सा अब उतना नही रहा था.. उसके शरीर की दबी हुई कामवासना उसके नाकचॅढी होने के लिए ज़िम्मेदार थी और जब वो शमशेर ने जगा दी तो अब वो खुलकर मज़ा लेती थी, सेक्स का; प्यार का... इसीलिए अब वा बहुत ही सन्तुस्त दिखने लगी थी... पर उसने ग्रॅजुयेशन से पहले खुद को मा ना बनाने का फ़ैसला किया था और शमशेर को भी इश्स-से कोई ऐतराज ना था... वाणी... दीनो दिन जवानी के करीब आती जा रही वाणी अब समझदार होती जा रही थी और ये समझदारी उसके अंगों में भी सॉफ देखी जा सकती थी... उसके चेहरे और बातों की मासूमियत का उसके अंग विरोध करते दिखाई देते थे.. सहर में रहने के कारण उसको पहनावे का सलीका भी जल्दी ही आ गया.. अब दिशा उसकी वो तमाम हसरतें पूरी कर देना चाहती थी.. जो वो शादी से पहले खुद पूरी नही कर पाई.. ग़रीबी के कारण.. उसको जी भर कर अपनी पसंद के कपड़े खरीद वाती... सज़ा संवार कर रखती... वाणी अक्सर उसको टोक देती," दीदी! मैं क्या बच्ची हूं, आप मुझे 'ऐसे रहना! वैसे रहना!' समझाती रहती हैं..." "तू चुप कर! और जैसे मैं कहती हूँ, वैसे ही रहा कर... समझी.. कितनी प्यारी है तू.. राजकुमारी जैसी" और दिशा उसको अपने गले से लगा लेती. कल की गाँव की राजकुमारी... आज शहर की राजकुमारी को सारे शहर की धड़कन बना कर रखती थी.. और वाणी बन चुकी थी.. धड़कन, युवा दिलों की... जिधर से भी वा निकलती थी.. मानो कयामत आ जाती.. मानो समय रुक सा जाता... पर लड़कों के हर इशारे को समझने के बावजूद वो उनकी अनदेखी कर देती... उसको पता था.. समय आने पर उसको भी उसका राजकुमार मिल जाएगा... दिशा ने वाणी को बता दिया था की आजकल अजीत भी प्यार के जाल में उलझा हुआ है.. जब अजीत खाना खा रहा था तो वाणी रह रह कर उसके मुँह की और देखती और दिशा को हाथ लगाकर खिलखिला कर हंस पड़ती.. "क्या बात है? क्या मिल गया है तुझे वाणी" टफ ने वाणी को अपनी तरफ देख कर इस तरह हँसती पाकर पूछा. "भैया! ये टॉप सीक्रेट है..." वाणी ने उससे चुहल बाजी की... "देख भाई, पहले तो अपनी साली को समझा दे; मुझे भैया ना बोले.." टफ ने वाणी की शिकायत शमशेर से की.. "वाणी! ऐसे नही बोलते... तू अंकल भी तो कह सकती है.." और तीनो खिलखिला कर हंस पड़े... टफ का चेहरा देखने लायक था," भाई! यहाँ तो आना ही पाप है.. एक बार मेरा टाइम आने दे, देखना 'उससे' रखी ना बँधवाई तो मेरा भी नाम नही... कल ही जाता हूँ..

"उससे किस-से भैया! सीमा दीदी से, उसको तो मैने पहले ही दीदी बना लिया है..." टफ अपनी अंदर की बात का सबको पता लगे देख खीज गया," यार, तू तो बड़ा घनचक्कर है.. तूने तो मुनादी ही कर दी..." शमशेर ने वाणी की और देखकर इशारा किया और एक बार फिर से ठहाका गूँज उठा.. एक सुखी परिवार में... अगले दिन सुबह 11 बजे से ही टफ यूनिवर्सिटी के ईको देपारटमेंट के बाहर खड़ा था... वो बड़ी हिम्मत करके वहाँ आया था.. अपने दिल का हाल सुनने, उसका दिल हर लेने वाली सीमा को.. करीब 3 घंटे के सालों लंबे इंतज़्ज़ार के बाद टफ को सीमा दिखाई दी... डिपार्टमेंट से बाहर आते... टफ आज डंडा नही लाया था.. सीमा की नज़र टफ पर पड़ी.. पर वो अपनी सहेलियों के साथ थी.. उसने टफ को इग्नोर कर दिया और सीधी चली गयी.. टफ को अपने 3 घंटे पानी में जाते दिखाई दिए," सीमा जी!" टफ ने सीमा को पुकारा. "जी!" सीमा उसके पास आ गयी.. साथ ही सहेलियाँ भी थी. "वववो.. आपने जवाब नही दिया!" टफ की साँसे उखाड़ रही थी... जाने कितनो को पानी पीला पीला कर रुलाने वाला टफ आज प्यार की पतली डोर से ही अपने आपको जकड़ा हुआ सा महसूस कर रहा था..

"किस बात का जवाब इनस्पेक्टर साहब?" सीमा ने अंजान बनते हुए पूछा... "क्या? क्या पीयान ने आपको कुछ नही दिया कल?" "हाँ! दिया तो था.. तो?" सीमा जी भर कर बदला लेना चाहती थी.. उसकी हर हरकत का "तो.. ट्त्तू... क्क्क.. कुछ नही... मतलब.. वो.. मैं.. " टफ को अब पता चला था की सही कहते हैं.. प्यार का इज़हार ही कर सको तो बहुत बड़ी बात है.. सारी लड़कियाँ उसकी हालत देखकर हंस पड़ी.. और चली गयी.. हंसते हुए ही.. सीमा को अपने से फिर दूर जाता देख टफ तड़प उठा.. आख़िर वो क्या मुँह दिखाएगा शमशेर को! उसने तो उसकी मुनादी ही करवा दी थी..," सीमा जी!" अब की बार सीमा अकेली आई.. उसकी सहेलियाँ दूर खड़ी होकर उसका इंतज़ार करने लगी... "बोलो इनस्पेक्टर साहब!" सीमा ने उसके पास आकर पूछा.. "सीमा जी! मेरा नाम अजीत है.. आप नाम से बुलाइए ना!" "पर मैं तो आपको एक बहुत ही अच्छे इनस्पेक्टर के रूप में जानती हूँ. मैं इतने बड़े आदमी का नाम कैसे लूँ?" "ज्जजई.. मैं बड़ा नही हूँ... 25 का ही हूँ..!" टफ ने अपनी उमर बताई.. सीमा उसके चेहरे पर जाने कहाँ से आई हुई मासूमियत देखकर हँसने को हुई पर उसने जैसे तैसे खुद को रोके रखा!"

"इट्स ओके! आप काम की बात पर आइए..." सीमा ने टफ से कहा. "जी आपने उस्स खत का जवाब नही दिया" टफ अपना धीरज खोता जा रहा था. "हुम्म.. तो आपको लगता है की मुझे जवाब देना चाहिए था!" सीमा उसकी शहनशीलता की हद देखना चाहती थी.. "जी.. वो... मैने रात भर भी इंतज़ार किया.." टफ अपने घुटने टेक चुका था.. सीमा के प्यार में.. "वैसे आपको क्या लगता था.. मैं जवाब दूँगी!" "पता नही.. पर... मुझे अब भी उम्मीद है..!" सीमा ने उसको और तड़पाना ठीक नही समझा... आख़िर वो भी तो सारी रात बार बार लेटर पढ़ती रही थी... पर प्यार के बेबाक इज़हार की उसमें हिम्मत नही थी," हम दोस्त बन सकते हैं...!" सीमा ने अपना हाथ टफ की और बढ़ा दिया... "सिर्फ़ दोस्त?" टफ तो जैसे जिंदगी भर आज से ही उसके पहलू में रहना चाहता था... "अभी तो.... सिर्फ़ दोस्त ही..! मैं आपको रात को फोने करती हूँ...." टफ ने उसके वापस जाते हाथ को दोनो हाथों से पक्क़ड़ लिया...," सीमा जी! मैं इंतज़ार करूँगा!" "अब ये सीमाजी कौन है? मैं सीमा हूँ... आपकी दोस्त.. अब चलूं.." टफ कुछ ना बोल पाया.... जाते हुए सीमा अचानक पलट कर बोली," मैने सारी रात वो लेटर पढ़ा... बार बार.. और हूल्का सा शर्मा कर चली गयी..... टफ प्यार की पहली सीधी चढ़ चुका था..........! शिवानी और राज दो दिन से बिना बोले रह रहे थे.. रात को शिवानी से ना रहा गया.. उसने मुँह फेरे लेट राज को अपनी बाहों में भर लिया...," आइ लव यू राज!" राज के लिए ये शब्द उसके घान्वो पर नमक जैसे थे..," मुझे हाथ लगाने की जुर्रत मत करना हरमज़ड़ी..." राज ने शिवानी को अपने से परे धकेल दिया.. "एक छोटी सी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा मत दो राज.... प्लीज़.. मेरा दम निकला हुआ है तीन दिन से..." राज हद से ज़्यादा दूर कर चुका था शिवानी को... अपने दिल से...," साली कुतिया... दम निकल रहा है तो वहाँ जा.. जहाँ तू अपनी गांद मरवा कर आई है... साली... दम निकला जा रहा है तेरा.. अरे ये सब करने से पहले तूने ज़रा भी नही सोचा... अपने बारे में.... मेरे बारे में...."

"जान वो ज़बरदस्ती थी... तुम्हे नही पता.. मैं पल पल कैसे रोई हूँ... वो एक हादसा था... रेप था मेरा! और तुमने उसकी तो रिपोर्ट भी करनी ज़रूरी नही समझी... जिसने तुम्हारी बीवी की धज्जियाँ उड़ा दी... क्या उसके लिए मैं दोषी हूँ..." "मैं उसकी बात नही कर रहा कुतिया! जान बूझ कर अंजान मत बन... मुझे झूठ बोल कर अपने यार के पास रहकर आई... भूल गयी तू..." "कौन यार! तुम किसकी बात कर रहे हो?" राज से शिवानी का ये नाटक शहान नही हुआ.. वो बैठ कर शिवानी को ताबड़तोड़ मारने लगा.. शिवानी बेजान की तरह मार खाती रही," साली! ये ले.. मैं बतावँगा नाम भी तेरे यार का... बता कहाँ गयी थी... बता साली बता!!!" शिवानी कुछ ना बोली... राज की अपराधी तो वो थी ही.. उससे इसकी जिंदगी का एक अहम राज छिपा कर रखने की... पर जो इल्ज़ाम राज ने उसस्पर लगाया.. उसने तो उसको अंदर तक तोड़ दिया... वा विकी के पास गयी थी.. अपने प्यारे विकी के पास... पर लाख चाहकर भी राज को वो कुछ नही बता सकती थी.. पर ये इल्ज़ाम लगने के बाद उस-से छुपा कर रखना भी मुश्किल हो गया... आख़िर किसी के लिए ही क्यूँ ना हो.... वो अपने घर की खुशियों को आग कैसे लगा सकती थी.... जब राज मार मार कर थक गया और बेड से खड़ा होकर जाने लगा तो शिवानी धीरे से बोली," तुम विकी से मिलना चाहते हो?" "क्या यही नाम है तेरे यार का? साली कितनी बेशर्म से नाम ले रही है... साली!" राज ने शिवानी की और देखकर ज़मीन पर थूक दिया... "हाँ यही नाम है, जिसके लिए मैने तुमसे झूठ बोला.. और सिर्फ़ अभी नही... मैं पहले भी काई बार उससे मिलने गयी हूँ... अपनी शादी के बाद... पर आप मिलकर सब समझ जाओगे! अब मैं इस राज को राज रखकर तुम्हारी नफ़रत शहन नही कर पाउन्गि.... मिलोगे ना... विकी से... राज ने कुछ ना बोला और बेड पर गिरकर चादर औधली... उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था.....

"कल से बोर्ड के एग्ज़ॅम शुरू हो रहे हैं..! आपको नही लगता की बच्चों की तैयारी कुछ खास नही है?" अंजलि ने ऑफीस में बैठे स्टाफ से पूछा. "नही मेडम! ऐसी तो कोई बात नही है.. आप खुद क्लास में चलकर बच्चों की तैयारी का जायजा ले सकती हैं!" एक मेडम ने अंजलि से कहा. "इट्स ओके! मैं बस यही जान'ना चाहती हूँ की आप लोग संत्ुस्त हैं या नही... और एक और मॅत टीचर शायद अगले हफ्ते तक जाय्न कर लेंगे.. न्यू अपायंटमेंट है.. उम्मीद है.. अब स्टाफ की कोई समस्या नही रहेगी...नेक्स्ट सेशन के लिए..मिस्टर. वासू को अपायंटमेंट लेटर मिल चुका है... बस मेडिकल वैईगारह की फॉरमॅलिटी बाकी है... राज जी आज नही आएँगे... उन्हे कहीं जाना है.. वैसे भी कल किसी भी क्लास का साइन्स का पेपर नही है... आप चाहें तो उनकी क्लास ले सकती हैं.... राज और शिवानी बस में बैठे जा रहे थे... शिवानी उसको विक्ककी से मिलाने लेकर जा रही थी... उस्स राज से परदा हटाने के लिए जो उसने शादी के 6 महीने बाद तक भी अपने राज से छिपाए रखा था... पानीपत आर्या नगर जाकर शिवानी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया... अंदर से कोई पागल सी दिखने वाली महिला निकली...," तुम फिर आ गयी.. हूमें नही चाहिए कुछ.. अपना अपने पास रखो... चाहो तो जो है वो भी ले जाओ... मैं अब जीकर क्या करूँगी... तुम तो पागल हो गयी हो... यहाँ मत आया करो.. उस्स औरत की बातों का कोई मतलब नही निकल रहा था.. शिवानी ने कुछ ना कहा और अंदर चली गयी... पीछे पीछे राज भी अंदर घुस गया और वहाँ पड़े पुराने सोफे पर बैठ गया... घर काफ़ी पहले का बना हुआ लगता था... उसकी देख रेख भी लगता था होती ही नही है... जगह जगह दीवारों से रोगन उतरा हुआ था... राज के लिए सब कुछ असचर्या करने जैसा था... इश्स औरत और इश्स घर से शिवानी का क्या संबंध हो सकता है..भला!" वा मूक बैठा कभी उस्स औरत को कभी शिवानी को देखता रहा.. तभी एक 5-6 साल का प्यारा सा बच्चा बाहर से अंदर आया..," नमस्ते मम्मी.. और वो शिवानी से लिपट गया...
 
"विकी तो तेरे बिना जी नही सकता... जब साथ नही रख सकती तो क्यूँ लाई थी इश्स दुनिया में... क्यूँ पैदा किया था उसको" बुढ़िया की बात सुनकर राज के पैरों तले की ज़मीन खिसाक गयी... शिवानी ने बेटा पैदा किया है... राज को लगा जैसे घर की दीवारें गिरने वाली हैं.. उसको चक्कर सा आ गया.. उसने अपना सिर पकड़ लिया... वो एक बच्चे की मा का पति है... विकी की मा का पति.... शिवानी अंदर से पानी का गिलास लेकर आई और राज को दे दिया.. पागल सा हो चुका राज गिलास को हाथ में लेकर देखता रहा.. उसने जितना सोचा था.. शिवानी तो उस्स-से कहीं गिरी हुई निकली... वो तो सिर्फ़ ये सोच रहा था की उसने बाहर कोई यार पाल रखा है, और उससे गुलचर्रे उड़ाने जाती है... पर यहाँ तो मामला उससे भी भयानक निकला.. 5-6 साल का बेटा... राज के जी में आया वहीं सब को काट कर रख दे पर उसका शरीर जवाब दे चुका था.. उसमें तो कुछ पूछने तक की हिम्मत ना बची थी... वो टुकूर टुकूर शिवानी की गोद में बैठे विकी को देखता रहा,"मम्मी! ये अंकल कौन हैं.." शिवानी ने अपने साथ लाए कुछ खिलौने और खाने पीने की चीज़े विकी को दी," ये लो बेटा! मम्मी जुल्दी ही वापस आएगी..." "मम्मी आप मुझे साथ लेकर क्यूँ नही जाते! मेरा यहाँ पर दिल नही लगता!" शिवानी की आँखों में आँसू आ गये...,"जवँगी बेटा! तू थोड़ा सा बड़ा हो जा... हुम्म... फिर तू मेरे साथ ही रहना...जा अपनी दादी के साथ खेल ले दूसरे कमरे में..""अच्छा मम्मी!" अच्छे बच्चे की तरह विकी दूसरे कमरे में चला गया..राज शिवानी को आँखें फाड़कर देख रहा था.. पता नही अब अपने बेटे से मिलकर ये अपने आपको क्या शबित करना चाहती है...शिवानी अब और ज़्यादा सस्पेनस बनाकर नही रखना चाहती थी,"राज!ये मेरा बेटा नही है.. मेरी बेहन का बेटा है...."

"व्हाट? तुम्हारी बेहन कहाँ है?" "है नही थी..." शिवानी ने लंबी साँस लेते हुए कहा.. "प्लीज़ शिवानी! मेरा सिर फटा जा रहा है... तुम सेधे सीधे बताओ.. क्या चक्कर है विकी और तुम्हारा.. जहाँ तक मुझे पता है तुम तो अपने मा बाप की अकेली लड़की हो... और ये औरत कौन है? "ये मेरी बेहन की सास है...! मैं शुरू से बताती हूँ... शिवानी राज को फ्लेश बॅक में ले गयी... करीब 7 साल पहले...... मेरी एक बड़ी बेहन थी.. मुझसे 2 साल बड़ी... मीनू नाम था उसका... वह 17 साल की थी. उसको संजय से प्यार हो गया.. संजय राजपूत.. इश्स औरत का लड़का.. उसकी क्लास में ही पढ़ता था.. दोनो ने प्यार करने की हद लाँघते हुए एक दूसरे से शारीरिक संबंध बना लिए... मेरी बेहन को गर्भ ठहर गया... जमाने का डर और साथ जीने के सपने को साकार करने के लिए दोनो घर से भाग गये... एक दूसरे के भरोसे.... घर से कहीं दूर जाकर उन्होने शादी कर ली और मीनू ने घर पर फोने करके सूचना दी... पर मेरे घर वालों को ये शादी मंजूर नही हुई... मीनू नाबालिग थी... घर वालों ने एफ.आइ.आर. कर दी.. संजय को मीनू से प्यार का आरोपी बना दिया गया.. पोलीस उन्हे ढूँढने लगी... यहाँ आकर संजय की मा को पोलीस ने इतना सताया की ये बेचारी पागल हो गयी.. एक तो बेटे के जाने का गुम और दूसरे रोज़ रोज़ पोलीस की गाली गलोच... इसके पति तो पहले ही नही थे... संजय और मीनू ने खूब कोशिश की घरवालों और पोलीस से बचने की पर पैसे की तंगी और कम उमर के चलते वो जहाँ भी जाते.. लोगों को उन्न पर शक हो जाता और उन्हे वहाँ से भागना पड़ता... करीब 6 महीने बाद पोलीस ने दोनो को पकड़ लिया.. अदालत ने संजय को जैल भेज दिया. पर मेरी बेहन ने घर आने से माना कर दिया... वो नारी निकेतन चली गयी... वहीं पर मीनू ने विकी को जनम दिया... संजय मीनू की जुदाई और जैल में कदियो के ताने सहन ना कर सका और उसने जैल में ही फाँसी लगा ली... प्यार करने की सज़ा उसको समाज के हाथों से मंजूर नही थी.... मेरी बेहन को पता लगा तो उसके होश उड़ गये.. मैं उससे घरवालों से छिप कर मिलने जाती थी... उसकी तबीयत हर रोज़ बिगड़ने लगी.. उसको अपने अंत का अहसास हो गया था," शिवानी! मेरे बेटे को लावारिस मत होने देना... मैने प्यार किया था.. पाप नही... " ये उसके आखरी शब्द थे जो मैने सुने थे... कुछ दिन बाद में गयी तो पता चला मीनू नही रही.. मैने सभी जारूरी कागजात पुर किए और विकी को अपने साथ ले आई... पर घर वालों ने सॉफ मना कर दिया," इस पाप को हम अपने सिर पर नही धोएंगे... हूमें तुम्हारी शादी भी करनी है..." मैं क्या करती.. विकी को लावारिस तो नही छोड़ सकती थी.. सो इसको यहाँ ले आई.. पागल हो चुकी इसकी दादी के पास.. तब से लेकर अब तक.. मैं लगभग हर महीने घर वालों से और बाद में तुमसे झूठ बोलकर यहाँ आती रही.. काई बार सोचा.. तुम्हे बता दूं.. पर 6 महीने के बाद भी मुझे विस्वास नही होवा था की तुम मेरी बेहन के इश्स 'पाप' को अपने साथ रख लोगे.. बस अच्छे दिनों के इंतज़ार में थी......" राज ने शिवानी की आँखों से आँसू पोंछे और उसको सीने से लगा लिया," पगली! क्या मैं इतना बुरा हूँ..." राज ने विकी को पुकारा.. विकी के हाथ में हवाई जहाज़ था..," हां! अंकल!" राज ने उसको गोद में उठा लिया.. उसके गाल पर एक प्यार भरी पुचि दी," बेटा! मैं तुम्हारा अंकल नही पापा हूँ... मम्मी से बोलो... चलो अपने घर चलते हैं... शिवानी उठकर राज से चिपक गयी," आइ लव यू जान!... आइ लव यू..............

टफ शमशेर के पास ही था जब उसके फोने पर सीमा की कॉल आई. टफ ख़ुसी से नाच उठा," ये लो बेटा... अब तुम बन गये ता उ... मेरी तो निकल पड़ी भाई.." "क्या हुआ भैया?" "तू चुप हो जा बस.. घुस जा अंदर... बहुत हंस रही थी ना दिन में.." टफ ने वाणी को प्यार से दुतकारा... वाणी मायूस होकर अंदर जाने लगी... तो टफ ने उसको पकड़ लिया," मेरी छोटी बहना.. तेरी भाभी आने वाली है... गुस्सा मत हो.. तू मुझे भैया बोल लिया कर... ठीक है?" "नही! मुझे नही बोलना आपसे!" वाणी नाराज़ होकर चली गयी.... एक बार फिर से फोने बज उठा... टफ फोने लेकर छत पर जा चढ़ा.. उसने फोने काटा और खुद डाइयल किया," हेलो!" टफ की आवाज़ इतनी मधुर थी जैसे वो कड़क इनस्पेक्टर नही, कोई गवैया हो. "मैं बोल रही हूँ; सीमा!" "हां हां! मुझे पता है.. थॅंक्स फॉर कॉलिंग!" "वाडा जो किया था!" सीमा की आवाज़ में ले थी, मधुरता थी... और हूल्का हूल्का प्यार भी मानो छान कर आ रहा था.. "थॅंक्स!" "अब सारे थॅंक्स बोल लिए हों तो....." सीमा बीच में ही रुक गयी... "सॉरी!" मैं कुछ ज़्यादा ही एग्ज़ाइट हो रहा हूँ......" फिर चुप हो गया.. "तुम लेटर बहुत अच्छा लिखते हो...." "थॅंक्स" "फिर थॅंक्स... अभी तक तुमने थॅंक्स और सॉरी के अलावा कुछ नही बोला है...." सीमा उसको उकसा रही थी.. उस बात के लिए जो उसने लेटर मैं पढ़ी थी और खुद भी कहना चाहती थी... "आइ लव यू सीमा!" "मैं कैसे मान लूँ?" "मैं वेट कर सकता हूँ... तुम्हारे मान लेने तक.." "बहुत देर हो गयी तो?" "मार जाउन्गा.." "क्यूँ... मेरे बिना?" "नही! तुम्हे साथ लेकर..." पता नही इतनी हाज़िर जवाबी कहाँ से आई टफ को... सीमा हन्स पड़ी... टफ फोने के अंदर से आ रही उस्स वीना के तारों की खनक सुनकर मंतरा मुग्ध सा हो गया. उसने पहली बार सीमा को हुंस्ते देखा था..," आपकी हुनसी बहुत प्यारी है.." "क्या तुम सच में सारी उमर मुझे झेल सकते हो!" सीमा ने गॅरेंटी माँगी.. अगर पहले वाला टफ होता तो यक़ीनन यही कहता," पेल (चोद) सकता हूं; झेल नही सकता," आजमा कर देखना!" "क्या मैं मम्मी को बता दूं?" "क्यूँ नही! तुम हां कर दो! मम्मी को तो मैं ही बता दूँगा.." "वैसे पूच सकती हूँ की ये प्यार मुझ पर कैसे लूटा रहे हो..?" "सच बोलता हूँ सीमा! तुमने मुझे इंसान बना दिया है... शायद अगर तुम ना मिलती तो मैं वैसा ही रहता.. पर मुझे लगता है भगवान ने तुम्हे मुझे सुधारने के लिए ही भेजा था....." "सुनो!" सीमा ने टफ को बीच में ही रोक दिया.... "क्या?" "मैं मम्मी को बता दूं और उन्होने मना कर दिया तो..?" टफ कुछ बोल ही ना पाया... .... "मज़ाक कर रही हूँ.... मैने मम्मी को बोल दिया है और उन्हे तुम पसंद हो..." टफ खिल उठा," और तुम्हे!" "देखती हूँ..... अच्छा मेरे एग्ज़ाम नज़दीक हैं... अब मुझे पढ़ाई करनी है.. ओ.के.?" टफ ने एक लुंबी साँस ली.... उस्स साँस में जुदाई की कशिश थी..," ओके.. गुड नाइट.." "गुड नाइट! स्वीट ड्रीम्स!"" कह कर सीमा ने फोने काट दिया.... राज शिवानी और विकी के साथ घर पहुँचा तो ओम वहाँ आ चुका था.. राज का खून खौल उठा... शिवानी की आत्मा पर लगे घाव राज को अब उसके पाक सॉफ साबित होने पर चुभने लगे थे. राज ने ओम का गला पकड़ लिया," हररंजड़े! तू भेड़ की शकल में भेड़िया है कुत्ते.. " राज ने ओम को झकझोर दिया... तभी अंजलि बीच में आ गयी," प्लीज़ राज! अपने आपको संभलो, जो कुछ हुआ; इसमें इनका दोष नही है.. इन्होने मुझे सबकुछ बता दिया है... चाहो तो शिवानी से पूछ लो... इन्होने तो उल्टा शिवानी की जान बचाई है... शिव इसको नदी में फैंकने जा रहा था...!" "पर सबकुछ इश्स हरमजड़े की वजह से ही हुआ है.. ये चाहता तो उसको पहले ही रोक सकता था.." राज को शिवानी बीच रास्ते सब बता चुकी थी...

ओम राज के पैरों में गिर गया.. ," मुझे माफ़ कर दो भाई.. मैं नशे में था और मुझे समय से पहले होश नही आया... बाद में जब मुझे अहसास हुआ तो सभ कुछ खो चुका था..." ओम की आँखों में पासचताप के आँसू थे.. "तू मुझे उस्स कुत्ते का नाम पता बता... उसको तो में ऐसे छोड़ूँगा नही..." ओम शिव के बारे में जितना जानता था.. सब बक दिया.. राज ने टफ के पास फोन किया," दोस्त! मैं अपनी शिवानी को इंसाफ़ दिलाना चाहता हूँ... मैं ग़लत था... उसके साथ बहुत ही बुरा हुआ है.." "मेरे यार! मुझे जानकार बहुत खुशी हुई की देर से ही सही; तुम्हारा विस्वास, तुम्हारा प्यार तुम्हे वापस मिल गया... अब तुम मुझ पर छोड़ दो... और बीती बात को भुला कर अपनी खुशियाँ वापस ले आओ... मैं कल ही आकर शिवानी की स्टेट्मेंट दिलवा देता हूँ... उनको कोई नही बचा सकता... अब चैन से खा पीकर सो जाओ.." टफ को जानकार बड़ी खुशी हुई की राज का अपनी बीवी पर शक ग़लत था... दिशा और वाणी बैठी पढ़ाई कर रही थी... शमशेर ने दिशा को बेडरूम में बुलाया," दिशा! एक बार आना तो सही..!" दिशा अपनी किताब खुली छोड़ कर बेडरूम में गयी," क्या है!" शमशेर ने उसको पकड़ लिया और अपनी छाती से लगाने की कोशिश करने लगा... इश्स प्यार को देखकर कौन नही पिघल जाएगा पर दिशा ने उसको तड़पाने के इरादे से अपनी कोहनियाँ अपनी छतियो और शमशेर के सीने के बीच फँसा दी.. और मुँह एक और कर लिया," छोड़ो ना! मुझे पढ़ाई करनी है...!" "जान! ये पढ़ाई तो मेरी जान की दुश्मन बन गयी है... पता है आज तीसरा दिन है...! प्लीज़... बस एक बार.. 30 मिनिट में क्या होता है..? मान जाओ ना.." "नही! मुझे प्यार करने के बाद नींद आ जाती है... छोड़ो ना.. वाणी क्या सोचेगी.. पढ़ने भी नही देता...!" शमशेर ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर दोनो और दीवार से चिपका दिया.. अब दिशा कुछ नही कर सकती थी.. शमशेर को अपने उपर छाने से रोकने के लिए.. उसने आत्मसमर्पण कर दिया.. जब दिशा की छातियाँ शमशेर के चौड़े सीने से डब कर कसमसाई तो वो जन्नत में पहुँच गयी... उसको कुछ याद ना रहा.. ना वाणी, ना पढ़ाई.. अपने रसीले होन्ट भी उसने शमशेर के सुपुर्द कर दिए.. चूसने के लिए..

दिशा के वापस आने की राह देख रही वाणी को जब गड़बड़ का अहसास हुआ तो वा ज़ोर ज़ोर से गाने लगी..," तुम्हारे शिवा हम कुछ ना करेंगे जब तक जियेंगे जब तक रहेंगे उन दोनो को पता था.. वाणी उनको छेड़ने के लिए गाना गा रही है..," ज़रा एक मिनिट छोड़ दो.. मैं उसको सबक सीखा कर आती हूँ.." दिशा को वाणी पर गुस्सा आ रहा था.. उसने तो जैसे सपने से जगा दिया.. "मुझे पता है.. तुम कल की तरह मुझे चकमा देकर भाग जाओगी.. " शमशेर पागल हो उठा था.. उसमें डूब जाने के लिए.. "नही..! मैं अभी आआए.. दिशा ने खुद को चुडवाया और बाहर भाग आई," बनाउ क्या तुझे.. लता मंगेशकर..?" दिशा ने प्यार भरे गुस्से से वाणी को झिड़का.. "नही दीदी! मैं तो बस.. बॅक ग्राउंड म्यूज़िक दे रही थी.. अंदर चल रही पिक्चर के लिए..!" वाणी ने खिलखिला कर हंसते हुए अपनी बेहन पर तीर मारा.. "तू है ना! बहुत शैतान हो गयी है... अब जब तक मैं आऊँ.. सोना मत.. ये चॅप्टर कंप्लीट मिलना चाहिए.. समझी..." दिशा ने बात को टालते हुए कहा.. "दीदी! आपका कोई भरोसा नही है.. आप तो क्या पता सारी रात ही कमरे से बाहर ना निकलो.. तो क्या मैं आपका सारी रात वेट करूँगी?... मैं तो एक घंटे से ज़्यादा नही जागूंगी..." "ठीक है बाबा! एक घंटे में सो जाना. ओक?" कहकर दिशा ने अपनी किताब बंद करके रखी और अंदर चली गयी... अंदर से दिशा की सिसकारी सुनकर वाणी को अपने अंदर गीलापन महसूस हुआ......
 
गर्ल्स स्कूल--21

अंदर शमशेर तैयार हो चुका था.. दिशा अंदर गयी तो वह सिर्फ़ अंडरवेर में बेड पर बैठा था... "बहुत जल्दबाज़ी करते हो.. मैं अगर ना आती तो.." "उठा लाता तुम्हे.. ज़बरदस्ती.. आज नही रुकता; किसी भी कीमत पर.. दिशा अपनी नाइटी निकाल कर शमशेर के उपर जा गिरी... और उसके छाती के बालों को सहलाने लगी...," तुम जब यूँ ज़बरदस्ती सी करते हो तो मज़ा और बढ़ जाता है.." "इसका मतलब तुम्हारा रेप करना पड़ेगा.." शमशेर ने दाई और पलट कर उसको अपने नीचे ले आया.. और उसकी छातियों को मसालने लगा.. उसके होंटो से खेलने लगा.. 5 मिनिट में ही सब कुछ दिशा की बर्दास्त के बाहर था.. वह अपनी चूत पर हाथ फिरा रहे शमशेर के लंड को अपनी मुति में भींच कर बोली..," अब और मत तद्पाओ जान अंदर कर दो... मुझसे सहन नही हो रहा.. उसने आँखें बंद कर ली.. शमशेर ने सीधा लेट कर दिशा की दोनो टाँगों को अपनी कमर के गिर्द करके उपर बिठा लिया.. दिशा की चूत का मुँह शमशेर के लंड के ठीक उपर रखा था.. शमशेर ने उसकी चूचियों को दोनो हाथों से संभाला हुआ था.. "ऐसे मज़ा नही आता जान.. आ.. मुझे नीचे लिटा लो ना..!" दिशा लंड की मोटाई अपनी चूत के मुहाने पर महसूस करती हुई बोली... "मेरी जान.. प्यार आसन बदल बदल कर करना चाहिए.. " कहते हुए शमशेर ने दिशा को थोड़ा उपर उठाया और अपना सूपड़ा सही जगह पर रख दिया... 

दिशा अपने आपको उसमें फाँसती चली गयी," आआअहहााआहहाा..आइ लव यू जाआआआआन!" उसने शमशेर की छाती से चिपकने की कोशिश की.. पर शमशेर उसकी चूचियों को अपने हाथों से मसलता; दबाता.. उसको धीरे धीरे उपर नेचे करने लगा..... दोनो सबकुछ भूल चुके थे.. वाणी को बाहर ढेरे धीरे आ रही उनकी आवाज़ सुनाई दे रही थी.. उसका मन पढ़ाई में नही लगा.. वा अपने बेडरूम में गयी और बेड पर लेट कर स्कर्ट ऊँचा उठा कर अपनी गीली हो चुकी चूत से खेलने लगी... जाने कब शमशेर दिशा की बेस्ट पोज़िशन.. में उसको ले आया था.. दिशा टाँगें उठाए सिसक रही थी.. शमशेर दनादन धक्के मार रहा था...... दिशा के 2 बार झड़ने पर भी शमशेर ने उसको नही छ्चोड़ा.. वह सारी कसर निकाल लेना चाह रहा था... जब तीसरी बार भी दिशा ने जवाब दे दिया तो शमशेर ने अपना लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से ही स्ट्रोक चालू कर दिए... दिशा आँखें बंद किए... उसकी गोलियों को सहला रही थी... अचानक एक तेज झटकेदार धार ने दिशा की छाती को प्यार के रस से बुआर दिया.. दोनो निहाल हो उठे........ दिशा जब अपने आपको सॉफ करके बाहर आई तो वाणी सो चुकी थी... अपनी भूख अपने हाथों से शांत करके... दिशा वापस शमशेर के पास गयी और बेड पर उससे लिपट गयी... "का बात है..? पढ़ाई नही करनी क्या?" शमशेर ने उससे मज़ाक किया..! "हुम्म... इतना तक जाने के बाद पढ़ाई हो सकती है भला... दिशा ने शमशेर की छाती पर सिर रखा और अपनी आँखें बंद कर ली...... अगले दिन टफ ने सदर थाने ले जाकर शिवानी की स्टेट्मेंट रेकॉर्ड की और फिर कोर्ट ले जाकर अंडर सेक्षन 64 के तहत सी जे एम कोर्ट में पेश कर दिया... शिवानी ने अपनी स्टेट्मेंट में शिव के साथ ही ओम पर भी आरोप लगाए.. शिव को शाह देने और उकसाने के लिए.. जज साहब ने दफ़ा 363, 366, 373 और 506 की धारायें शिव पर लगाई और शिव और ओम की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया.... इंक्वाइरी ऑफीसर ए.एस.आइ. अभिषेक ने उन्हे 3 दिन के अंदर गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया जहाँ से दोनो को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जैल भेज दिया गया...... अंजलि को सुनकर धक्का सा लगा.. पर उसने ये सोचकर संतोष कर लिया की करनी का फल तो उसको भुगतना ही पड़ेगा... और फिर राज तो साथ था ही... उसकी तन की आग शांत करने के लिए... गौरी यह सब जान कर उद्वेलित सी हो गयी और मन ही मन शिवानी और राज से खार खाने लगी... आख़िर जैसा भी था.. उसका बाप था... फिर उसने कुछ किया भी तो नही था....!



पूरा दिन ना तो सीमा का फोन आया था और ना ही उसने उठाया.. टफ बेचैन हो गया.. सुबह से करीब 50वा फोन था जो अब जाकर सीमा ने उठाया..," हेलो!" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ की जान में जान आई.. ," कहाँ थी आप.. सारा दिन?" "मैं लाइब्ररी में थी.. एग्ज़ॅम की तैयारी घर पर नही होती.. कोई ना कोई आया ही रहता है दुकान पर... " "पर कम से कम फोने उठा कर बता तो देती.. मैं कितना परेशान रहा सारा दिन..!" "सच में.." सीमा के चेहरे पर उसके प्यार में पागल आशिक की तड़प की चमक तेर उठी.." लगता है आपको किसी से प्यार हो गया है.." सीमा ने इठलाते हुए कहा.. "प्यार की तो... बताओ ना क्यूँ नही उठाया फोन?" टफ के मुँह से कुछ उल्टा पुल्टा निकालने वाला था... "अरे ये साइलेंट पर रखा हुआ था... टेबल पर.. मैने देखा ही नही.. अब घर फोन करने के लिए निकाला तो आपकी कॉल आती हुई देखी... "कब से हैं आपके एग्ज़ॅम?" "तीन तो अभी हैं इसी हफ्ते में.. एक 28 एप्रिल को है..." सीमा ने पूरी डटे शीट ही बता डाली... " क्या हम नेक्स्ट सनडे मिल सकते हैं..?" टफ उसको देखने के लिए बेचैन हो उठा था... " नेक्स्ट सनडे क्यूँ.. कभी भी मिल लो घर आकर..! तुम्हे तो वैसे भी कोई नही रोक सकता.. पोलीस इनस्पेक्टर हो!" सीमा ने कहा!"



"सीमा जी प्लीज़.. मुझे बार बार शर्मिंदा ना करें.. और मैं घर की बात नही कर रहा.. कहीं बाहर...?" "कभी नही...!" सीमा हँसने लगी.. "क्या कभी भी नही...?" टफ को झटका लगा.. "अच्छा जी.. सॉरी! अभी नही.. बस!" सीमा ने अपना वाक़्या सुधारा.. "अभी नही तो कब? देख लो मैं सीधा घर आ जवँगा..!" "क्यूँ.. उठाकर थाने ले जाने..!" सीमा ने फिर चोट की.. "आप क्यूँ बार बार मेरे जले पर नमक छिड़क रही हैं.... उठाकर तो अब मैं आआपको डॉली में ही लेकर अवँगा.." "देखते हैं.." खुद की शादी की सोच कर सीमा चाहक पड़ी... तभी टफ के फोन पर शमशेर की कॉल वेटिंग आने लगी..," अच्छा! शमशेर का फोन है.... मैं बाद में करता हूँ..बाइ!" बाइ कहकर सीमा ने फोन काट दिया... टफ ने शमशेर की कॉल रिसीव की," हां भाई!" "अबे कितनी देर से फोन कर रहा हूँ.. तेरे लिए एक इन्विटेशन आया है..!" "कैसा इन्विटेशन भाई?" "वो मेरे एक पुराने यार का फोन आया था.. कोई चिड़िया फँसाई है.. कह रहा था मस्त आइटम है... साथ एंजाय करेंगे... अब मैने तो; तुझे पता ही है.... मस्ती छोड़ दी है.. सो सोचा तुझे बता दूं...!" शमशेर ने टफ को इन्विटेशन के बारे में बताया.. टफ का माइंड 50-50 हो गया.. कभी उसको सीमा का चेहरा याद आता कभी नयी चिड़िया के साथ हो सकने वाली मस्ती... "अबे कुछ बोल.. क्या कहता है.." "ठीक है भाई.. एक पाप और सही.. बोल किधर आना है.... पर ये आखरी; हां!" "उसके बाद क्या सन्यासी बन'ने का इरादा है..?" शमशेर ने उसके मन को टटोला.. "सन्यासी नही भाई.... घरवासी.. सीमा का पति.. और पत्निवर्ता पति...!" "छोड़ साले! इस जानम में तो तू सुधार नही सकता.. लिख कर ले ले.." "बता ना भाई.. किधर आना है..?" "आना नही है.. जाना है.. रोहतक!" शमशेर ने बताया.. "अरे वाह.. एक तीर से दो शिकार.. सुबह सीमा से भी मिलता आउन्गा..... थॅंक यू बिग ब्रदर.. थॅंक यू.." टफ उछल पड़ा.. "जा ऐश कर साले!" शमशेर ने मज़ाक किया.... "भाई तूने गाली देनी सीख ली..?" टफ ने 'साले' पर ऐतराज किया.. "गाली नही है साले.. अपना रिश्ता बता रहा हूँ.. तूने वाणी को बेहन बोला था की नही...!" "आब्बी यार! तू तो मेरा फालूदा करवा कर मानेगा... चल ठीक है जीजा जी.. अब उस्स दोस्त का नंबर. तो लिखवाओ!" शमशेर ने टफ को उस्स दोस्त का नंबर बताया..," और हां तुम एक दूसरे को जानते हो!" "कौन है मदारचोड़!" टफ के दिल में उतार आई रंगीनियत उसके बोल में झलकने लगी... "शरद..!" "शरद कौन?" "अरे शरद ओला यार... कॉलेज में जो मुझसे जूनियर था.. प्रेसीडेंट बनवाया था जिसको हुमने...." शमशेर ने "अरे शरद यार! कॉलेज में जो मुझसे जूनियर था और हमने जिसको प्रेसीडेंट का एलेक्षन लॅड्वेया था.." शमशेर ने टफ को याद दिलाने की कोशिश की... "अर्रे शरद... भाई, वो मेरा दोस्त था पहले... अब आपका कोई अहसान नही है.... आपने तो हद कर दी यार... उसको कहाँ से ढूँढ निकाला.. क्या जिगर वाला लड़का था.." टफ शरद को याद करके खुश हो गया... "चल ठीक है..... कल शाम का प्रोग्राम कह रहा था.. तू उससे बात कर लेना..." "पर भाई उसको बताना नही की अजीत आ रहा है... मैं सर्प्राइज़ दूँगा.. तो उससे फोन करके पूछ लेना, वो कहाँ वेट करेगा... मैं अचानक एंट्री मारूँगा..." "ठीक है... ! ओक, बाइ..." "बाइ भाई... थॅंक युउउउउउउउउउउउ....." टफ बहुत खुश था अपने दोस्त को दोबारा पाकर... पर वो उस'से कयि साल बड़ा था.. करीब 4 साल.... टफ बेशबरी से अगले दिन का वेट करने लगा..



अगले दिन स्कूल से छुट्टी के वक़्त वाणी ने अपनी सहेली को कहा," मानसी! तुम आज भी मेरी बुक लेकर नही आई ना... कल से एग्ज़ॅम शुरू हैं.. अब क्या करूँ.." मानसी अपने माथे पर हाथ लगाकर बोली," ओहो! यार.. तू फोन पर याद दिला देती!" "अरे मुझे भी तो अब्भी याद आई है... चलो मैं तुम्हारे घर होते हुए निकल लेती हूँ." वाणी ने अपना बॅग उठाते हुए कहा... "व्हाट ए ग्रेट आइडिया! इसी बहाने तुम मेरा घर भी देख लॉगी... चलो!" मानसी खुस हो गयी... जल्दी ही दोनो घर पहुँच गयी.. दरवाजा मानसी के भाई ने खोला..," इनसे मिलो! ये हैं मेरे भैया, मनु! और भैया ये हैं मेरी प्यारी सहेली, वाणी! जिसके बारे में घर में हमेशा बात करती हूँ.. मनु वाणी को गौर से देखने लगा... वाणी तो थी ही गौर से देखने लायक... आँखों में चमक, होंटो पर अंत हीन मुस्कान और शरीर में कमसिन लचक.... मनु वाणी को देखता ही रह गया... अचानक वाणी अपने मुँह पर हाथ रखकर ठहाका लगा कर हंस पड़ी.. वो लगातार मनु की और देखे जा रही थी... और हंस रही थी.. बुरी तरह... "क्या हुआ वाणी?" मानसी ने वाणी को इश्स तरह बिना वजह ज़ोर ज़ोर से हुंस्ते देखकर पूछा... मनु की हालत खराब होने लगी...," अंदर आ जाओ.. बाहर क्यूँ खड़े हो..?" वाणी ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," मानी! सच में यही तुम्हारा भाई है..?" "हां क्यूँ?" मानसी को सहन नही हो रहा था.. "वाणी अपना बॅग टेबल पर रखते हुए सोफे पर बैठ गयी और फिर हंसते हंसते लोटपोट हो गयी...! "बात क्या है वाणी.. बताओ भी.." मानसी ने रूखे स्वर में कहा... "मानी! तुम तो कहती थी.. तुम्हारा भाई बहुत इंटेलिजेंट है..आइ आइ टी की तैयारी कर रहा है... इसकी शर्ट तो देखो.." कहते हुए वाणी फिर खिलखिला पड़ी.. अब दोनो का ध्यान शर्ट पर गया.. मनु ने शर्ट उल्टी पहन रखी थी.. मनु देखते ही झेंप गया.. वो झट से अंदर चला गया... जिस वाणी के बारे में अपनी बेहन से सुनसून कर उससे एक बार मिलवा देने की भगवान से दुआ करता था... उसने आते ही उसको 'बकरा' साबित कर दिया..... "तो क्या हो गया वाणी.. तुम भी ना.. मौका मिलते ही इज़्ज़त उतार लेती हो बस... ये भोला ही इतना है... इसको पढ़ाई के अलावा कुछ नही आता...! हां पढ़ाई में इसका कोई मुकाबला कर नही सकता... वाणी अब तक बात को भुला चुकी थी," अच्छा मानी! अब बुक दे दो! मैं चलती हूँ... इतने में मनु एक ट्रे में चाय और नमकीन ले आया... बकायडा शर्ट सीधी पहन कर..," चाय लेती जाओ.." मानसी मनु का ये रूप देखलार चौंक पड़ी..," अरे भैया! आज कहीं सूरज पस्चिम से तो नही निकला था... क्या बात है.. इतनी सेवा! चिंता मत करो.. मेरी बेस्ट फ्रेंड है.. शर्ट वाली बात स्कूल में लीक नही होगी.. है ना वाणी.." "चाय पीकर बतावुँगी... क्या पता इसमें भी कुछ!" कहकर वाणी फिर हँसने लगी.. उसने चाय का कप उठा लिया.... मनु वाणी को चाय पीते एकटक देखता रहा.. हालाँकि जब वा देखती तो नज़रें हटा लेता... पहली नज़र में ही वा उसको अपना दिल दे बैठा था... चाय पीकर वाणी जाने लगी तो मनु को लगा.. दिन ढाल गया! पता नही यह कयामत फिर कक़्ब दर्शन देगी.



उधर टफ शमशेर के बताए ठिकाने पर ठीक 6 बजे पहुँच गया.. उसको वाइट सिविक गाड़ी की पहचान बताई गयी थी.. टफ को गाड़ी डोर से ही दिखाई दे गयी.. टफ जान बूझ कर वर्दी में आया था.. उसने गाड़ी काफ़ी दूर पार्क की.. और उतर कर वाइट सिविक की और चल दिया.. गाड़ी के शीशे ज़्-ब्लॅक थे.. पर अगला शीशा खुला होने की वजह से उसको शरद बैठा दिखाई दे गया.. वो शमशेर की राह देख रहा था... टफ ने उसको देखते ही पहचान लिया पर शरद के द्वारा टफ को पहचान'ना मुश्किल काम था.. एक तो उस्स वक़्त और अब में डील डौल में काफ़ी फ़र्क आ गया था.. दूसरे शरद को अहसास भी नही था की कभी उसका खास दोस्त रहा अजीत अब उसको टोकने ही वाला है... "आए मिसटर... नीचे उतरो और कागज दिखाओ!" टफ ने उसके कंधे पर हाथ मार कर कहा... "कौन है बे तू? दिखाओ क्या कागज? चल मूड ऑफ मत कर... अपना रास्ता नाप.. नही तो अभी बेल्ट ढीली कर दूँगा.." शरद शुरू से ही दिलेर था.. और अब तो उसने पॉलिटिक्स में भी पैर जमा लिए थे.. उसकी पार्टी की ही हरयाणा में सरकार थी और नेक्स्ट एलेक्षन में उसका टिकेट भी पक्का था... टफ भी मान गया उसकी दिलेरी को.. पर उसने अपना रुख़ कड़क बने रखा....," नीचे उतार कर चुप चाप कागज दिखा वरना घुसेड दूँगा अंदर.... सफेद कपड़े पहन कर ये मत समझ की नेता बन गया है... नेता गीली कर देते हैं यहाँ....." शरद को सब सहन नही हुआ," तेरी तो..." उसने गाड़ी से उतरते ही अपना हाथ सीधा टफ के चेहरे की और किया... पर बिना एक पल गँवाए.. टफ ने उसका हाथ हवा में ही रोक लिया...," अबबे साले! शरद होगा अपने घर में... तेरे को बॉडी नही दिखती क्या सामने वाले की... रहम कर अपनी हड्डियों पर वरना भाभी जी....!" शरद अचंभे में पड़ गया," कौन है बे तू?... यानी तू मुझको जानता है... शरद गाड़ी के आगे जाकर खड़ा हो गया और उसको गौर से देखने लगा...," चल बता ना यार तू है कौन... बता दे चल..!" "साले तेरी 'कुतिया' वाली बात आज तक पेट में दबाए बैठा हूँ.. और तू है .... "आब्बी.. तेरी तो... अजीत... सुकड़े.. साले... तू इतना तगड़ा हो गया बे.." शरद ने भागकर टफ को अपनी छाती से लगा लिया.. उसकी आँखों में आँसू आ गये...," यार कितना प्यारा दिन है...,"अपने शमशेर भाई साहब भी आने वाले हैं... उनसे मिला है क्या तू.. कॉलेज के बाद!" "उन्होने ही तो भेजा है तेरे पास... झटका देने को... वो नही आ रहे... वो सुधर गये हैं ना..." "चलो अच्छा है.. चल आ बैठ गाड़ी में... आज तेरा अहसान चुका दूँगा.. कुतिया वाली बात पाते में रखने का.." दोनो ठहाका लगाकर हंस पड़े.. गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल दी. टफ ने गाड़ी में बैठते ही पीछे की और देखा, 21-22 साल की लगने वाली दो हसीन लौंडिया पिछली सीट पर आराम से बैठी थी... ," इनमें से चिड़िया कौनसी है शरद...?" "अरे दोनो ही चिड़िया हैं मेरी जान... जा पीछे बैठ जा.. जी भर कर देख परख ले.. साली मस्त लड़कियाँ हैं दोनो.. किसी को हाथ तक नही लगाने देती थी... मैं रास्ते पर लेकर आया हूँ... दोनो की सील तोड़नी है आज! जा पीछे जा.." "क्या जल्दी है शरद.. पूरी रात ही अपने पास है..." "जैसी तेरी मर्ज़ी भाई...!" शरद ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी... सेक्टर वन में एक आलीशान कोठी के सामने गाड़ी रुकी.. गेट कीपर ने दरवाजा खोल दिया और गाड़ी सीधी अंदर चली गयी.... "यार! ये तेरा ही घर है क्या?" टफ ने आसचर्या से पूछा... "नही भाई! एक मंत्री का है... पर इसको यूज़ में ही करता हूँ... दिन में ये पार्टी का ऑफीस हो जाता है और रात को अयाशी का अड्डा.." शरद हंसते हुए बोला... "सही है बॉस! क्या अंदाज है; जनता की सेवा करने का.." टफ ने कॉमेंट किया.. "अरे आजकल तो पॉलिटिक्स ऐसे ही चलती है... अगर बिना घोड़े (रिवाल्वेर) और घोड़ी ( लड़की) के पॉलिटिक्स करने निकलोगे तो कोई वोट मिलना तो दूर की बात है.. टिकेट ही नही मिलेगा...." बात करते करते दोनो एक बड़े हॉल में पहुँच गये... उनके जाते ही सर्वेंट जॉनी वॉकर की 2 बोतलें और कुछ खाने पीने का सामान रखकर जाने लगा.. "जब तक कोई ना बुलाए, अपनी तशरीफ़ मत लाना..बहादुर!" "ठीक है शाब! वेटर ने बोला और चला गया.. "अरे मेरी अनारकलियो! अंदर आ जाओ.. काहे शर्मा रही हो... वो दोनो अंदर आकर उनके सामने सोफे पर बैठह गयी... "पैग बनाने आते हैं क्या?" शरद ने उनसे पूछा.. दोनो ने नज़रें झुका कर ना में सिर हिला दिया... "यार शरीफ लड़कियाँ चोदने का यही मज़ा है.. शरमाने की हद करती हैं... आखरी साँस तक.. अंदर डलवाकर भी शरमाती रहेंगी. ज़रा करीब आ जाओ मेरी तितलियो.. तुम्हे भी पीनी पड़ेगी.. हमारे साथ.. तभी तो महफ़िल का रंग जमेगा.." एक ने बोलने का साहस किया," नही सर! हम पी नही सकते.. हमें आदत नही है.." "अरे हम सीखा देंगे पीना भाई! ये कौनसी बड़ी बात है... और भूलो मत... आज की रात तुमपर मेरा हक़ है.. यही डील हुई थी ना! अगर जाना चाहो तो जा सकती हो... आइ हेट रेप!" और शरद ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा... बातों बातों में वो पहला पैग ले चुके थे.. पर टफ खामोश था... दोनो लड़कियों ने एक दूसरी को देखा और दोनो आकर शरद और टफ के बीच में बैठ गयी..... "ये लो! जल्दी खाली करो.. और पैग भी बनाने हैं..." शरदने दोनो को पैग थमा दिए.. दोनो जैसे तैसे कड़वी दवाई समझ कर पहले पैग को अपने गले से नीचे उतार गयी... एक बार झुरजुरी सी आई.. और फिर नॉर्मल हो गयी.. शरद ने अपने सहारे बैठी लड़की की जांघों पर हाथ मार कर कहा..," देख भाई.. मुझे तो वो तेरी तरफ बैठी पतली जांघों वाली ज़्यादा पसंद है.. वैसे तेरी इच्छा..." शरद ने दूसरे पैग तैयार कर दिए थे.. टफ ने दोनो को उपर से नीचे तक देखा.. उसकी तरफ वाली हद से जाड़ा पतली थी.. हां छातियाँ देखकर उसकी उमर का अंदाज़ा हो जाता था.. पर बाकी तो वो सोलह से उपर की ही नही दिखती थी... दूसरी उसकी बजाय.. सारी गदराई हुई अच्छे जिस्म वाली थी.. जैसी टफ को पसंद होती हैं... रंग दोनो का सॉफ था और जीन्स टॉप में कमाल की सेक्सी लग रही थी.. एक से बढ़कर एक..... "टफ ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ दूसरा पैग भी गले से नीचे उतार लिया.. दोनो लड़कियाँ अब भी अपने हाथ में लिए गिलासों को देख रही थी... शरद के कहते ही उन्होने गिलास खाली कर दिए... दोनो लड़कियों पर शराब का असर सॉफ दिख रहा था.. अभी तक चुपचाप और चिंतित दिखाई दे रही दोनो अब कभी कभार एक दूसरी को देखकर मुश्कुरा जाती... अरे प्रिया.. ज़रा म्यूज़िक तो ऑन कर दे... वहाँ गेट की तरफ से दूसरा स्विच है... पतले वाली लड़की उठी और म्यूज़िक चल पड़ा... "शाम को दारू... रात को लड़की.... आए गनपत...." 

तीसरा पैग लेते लेते लड़कियाँ बैठी बैठी ही गानो की धुन पर थिरकने सी लगी थी.... वो पूरी तरह अपने आपको भुला चुकी थी.. और शरद की बातो. पर ज़ोर ज़ोर से हुँसने लग जाती..... "चलो भाई.. एक मुज़रा हो जाए.. चलो दिखाओ अपनी नृत्या प्रतिभा.... मुझे पता है तुम दोनो ने यूनिवर्सिटी के यौथ फेस्टिवल में इनाम जीता था... मैं सी.एम. साहब के साथ वहीं था... तभी से तो मैं तुम्हारे पीछे पड़ा था....." लड़कियाँ अपना आपा खो चुकी थी.. और उनमें भी पतले वाली... अपने प्राइज़ की याद करके वो दोनो अपने आपको ना रोक सकी और गाना बदल कर थिरकने लगी....... टफ दोनो लड़कियों के लहराते, बलखते बदन को गौर से देख रहा था.. वास्तव में ही उनके डॅन्स में क्वालिटी थी.. शरीर की लचक तारीफ़ के लायक थी.. टफ का ध्यान निरंतर उनके नितंबों की ताल पर ही थिरक रहा था.. कभी इश्स पर; कभी उस्स पर... नाचने की वजह से दोनो लड़कियों के खून का प्रवाह ज्यों ज्यो तेज होता जा रहा था.. वैसे वैसे उन पर शराब हावी होती जा रही थी.. अब उनके चेहरे से मजबूरी नही बुल्की उनकी अपनी इच्छा झलक रही थी.. समय बीतने के साथ दोनो के डॅन्स में कला कम और वासना अधिक होती गयी.. तभी शरद ने एक का नाम लेकर बोला और दोनो ने अपना टॉप उतार कर हवा में उछाल दिया.. अब उनकी चूचियाँ मस्ती से लरज रही थी, उछाल रही थी और बहक रही थी.. ब्रा से बाहर आने को... शरद ने काम आसान कर दिया.. वो सोफे से उठा और एक एक करके दोनो को अपने सीने से दबोच कर उनकी ब्रा के हुक खोल दिया.. एक बार दोनो हिचकी.. अपनी ब्रा संभालने की कोशिश की. पर हुक ना डाल पाने पर पतले वाली ने अपनी ब्रा निकाल कर फैंक दी... मोटी कहाँ पीछे रहती.. टफ का कलेजा मुँह को आने लगा.. उसका तो जैसे नशा ही उतर गया.. उसने एक पैग और बनाया और तुरंत खाली कर दिया... दोनो की छातियों में अद्भुत रूप से एक जैसी ही गति थी.. नशे में भी शर्म के चलते उनके निप्पल कड़क हो गये.. उनकी छातियाँ अचानक ही भारी और सख़्त लगने लगी... पेट दोनो का ही पतला और अंदर को धंसा हुआ था.. नाभि से नीचे जांघों के बीच जा रही हड्डियाँ इशारा कर रही थी.. अंदर क्या माल है... बहुत हो गया था... शरद ने टफ को कहा..," तू कुछ सीरीयस लग रहा है यार... एंजाय नही कर रहा महफ़िल को... तू मूड में भी है या मुझे ही दोनो उसे करनी पड़ेंगी..." "बेडरूम किधर है?" टफ ने शरद से पूछा.. "अरे हम दोनो में कैसी शरम यार.. यहीं चोद डालते हैं ना दोनो को बारी बारी... वैसे अगर तुझे एकांत चाहिए तो वो रहा बेडरूम का दरवाजा.. पतले वाली मेरी फॅवुरेट है.. वैसे जो तू चाहे ले जा.. ऐश कर... टफ ने मोटी को अपने कंधे पर उठाया और बेडरूम में ले जाकर बेड पर पटक दिया...... उधर शरद ने इशारे से पतले वाली को अपने पास बुलाया.. उसका सिर चकरा रहा था.. वह आई और सोफे पर बैठ गयी.. उसकी छातियों से पसीना चू रहा था.. जम कर नाची थी वो... शरद ने बारी बारी से उसकी दोनो चूचियों को हाथों में लेकर देखा," हाए! क्या चीज़ है तू जाने-मन!" और एक चूची को ज़ोर से दबा दिया.. "ऊई मा.." लड़की के मुँह से निकला.. "कितनी प्यारी चूचियाँ है तेरी.. जानेमन..!" लड़की शर्मा कर उसकी छाती से लग गयी.. "ज़रा मेरे भी तो बटन खोल दे..." शरद ने उसके निप्पल पर उंगली घूमाते हुए कहा.. चल आजा मेरी गोद में बैठ जा.. शरद ने अपनी पॅंट निकालते हुए कहा.. लड़की बेहिचक उसके अंडरवेर के उभार पर बैठ गयी.. उसको अजीब सा अहसास हुआ... उसने अपनी कमर शरद के सीने से लगा ली और हाथ पीछे लेजकर उसका सिर पकड़ लिया.. शरद ने अपने हाथ आगे ले जाकर उसकी जीन्स का बटन खोल दिया.. चैन नएचए सर्कायि और लड़की ने अपनी कमर उचका ली.. जीन्स निकलवाने के लिए...
 
अब शरद का लंड उसके चूतदों के बीच फँसा हुआ था और शरद उसकी बाँह के नीचे से सिर निकाल कर उसकी चूची को चाट रहा था.. लड़की पागल सी हो चुकी थी... रह रह कर उसके मुँह से कामुक सिसकी निकल जाती.. मज़ा बढ़ने के साथ ही वा अपने चूतदों को नीचे ढकने की कोशिश करने लगी... अपनी चूत पर उसके लंड को ज़्यादा से ज़्यादा महसूस करने के लिए... शरद का हाथ उसके पेट से होता हुआ उसकी पनटी के अंदर उसकी चूत के दाने को कुरेदने लगा... हद से ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी लड़की हाए हाए करने लगी... अपनी एक खाली छाती को अपने ही हाथ से दबाने लगी.. आँख बंद करके... कसमसने लगी... शरद ने उसको अपने घुटनो के बीच नीचे बिता लिया और उसको तगड़े मोटे लंड का दीदार करा कर उसका काम समझाया.. लड़की तो आज प्यार का हर पाठ सीख लेना चाहती थी.. बेझिझक, बेहिचक... उसने लंड को अपने होंटो से रगड़ा.. होन्ट अपने आप खुलते चले गये..'हॉट आइस्क्रीम' खाने को.... कुछ देर सूपड़ा मुँह में रखने के बाद शरद ने उसको नीचे से चटकार उपर आने को कहा.. अपनी गोलियों से सूपदे तक.. "तुम्हारा नाम ही भूल गया.. क्या बताया था?" शरद ने उसके होंटो को अपने लंड से सटा तेहुए पूछा... "प्रिया!" "हां प्रिया! ये होन्ट क्यूँ रग़ाद रही है.. अपनी जीभ बाहर करके चाट इसको..... ..".... हााआअँ आआहह.. ऐसेयययययययी... और दूसरी का क्या नाम है.. उफफफफफफफफफ्फ़.." "स्नेहा!" कहकर उसने फिर से सूपदे पर जीब घुमा दी...... "आआआआः मार दियाआ तूने तो ... मेरी जाअन... और ले.. नीचे से उपर तक..." शरद अपने बचे खुचे होश भी खो बैठा... प्रिया को भी खूब आनद आ रहा था.. अपनी जिंदगी की पहली नोन-वेज कुलफी को चूस्ते... चाट-ते... उसकी स्पीड लगातार बढ़ रही थी.. पर कुलफी पिघलने की बजाय सख़्त होती जा रही थी.. "ले अब मुँह में डाल ले... पूरा लेने की कोशिश करना.." ज्यूँ ही प्रिया ने अपना मुँह खोल कर... उसके सूपदे को मुँह में लिया.. शरद ने उपर से अपने हाथो का दबाव डाल दिया... प्रिया खाँसती हुई पीछे जा गिरी... उसकी आँखों में पानी आ गया... "कोई बात नही जान धीरे धीरे सब सीख जाएगी..." शरद ने उसकी पनटी पकड़ कर जांघों से नीचे खींच दी... क्या खूबसूरत फ़िज़ा थी.. उसकी जांघों के बीच.. लाल हो चुकी, गीली हो चुकी, फूल चुकी और तपाक रही चूत... शरद ने खुद उठाने की जहमत ना की.. उसके घुटने सोफे पर टिकवाए और थोड़ा सा नीचे सरक कर उसकी चूत से मुँह लगा दिया.. प्रिया ने आनंद सहन ना कर पाने की वजह से पिछे हटने की कोशिश की पर शरद ने उसकी गांद के दोनो उभारों को कसकर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी चूत में हुलचल मचा दी... "आआआआअ ईईईईईईई एयेए माआआ रीइ... ज़ाराआ आआराआामा से... प्लीज़ ज्जज्ज!" पर इसी सिसकारी को सुन'ने का तो मज़ा लेना था... शरद ना माना बुल्की जीभ उसकी चूत की फांको में घुस कर उसके छेद को कुरेदने लगी... "आआह आआह आअह आआह... मर गयी... शरद्द्दद्ड.. प्लीज़ सस्स्स्सहन नही हो रहा.. आआह"


शरद उसकी गांद के छेद को अपनी उंगली से सहला रहा था.. वह चूत के रस में उसको गीला करता और जब तक सूख ना जाती उसकी गांद के छेद पर घूमता रहता... प्रिया का आनंद काई गुना बढ़ गया... वह बरस पड़ी... अपनी चूत में से... झार झार रस का दरिया बहने लगा.. प्रिया ने शरद के सिर को ज़ोर से वहाँ पर ही दबा लिया.. और शरद ने अपने होंटो से बाँध बना दिया.. उसकी चूत के मुहाने पर...... रस का एक भी कतरा बाहर ना जाने दिया.. सब पी गया.. शरद को कुँवारा रस अमृत से भी प्रिय था... शरद ने उसको छोड़ा तो वह धदाम से सोफे पर गिर पड़ी... जैसे उसका सब कुछ निकल गया हो.. "ऐसे नही मेरी जान! अभी तो शुरुआत है... सारी रात बाकी है.. ऐसे गिर पड़ोगी तो काम कैसे चलेगा... प्रिया की वासना का नशा उतर चुका था.. पर शराब का नशा अभी बाकी था... शरद ने उसको प्यार से उठाया और फार्स पर घुटने टिकवा कर सोफे पर उल्टा कर दिया... प्रिया ने कोई विरोध ना किया.. शरद ने उसकी गांद को हाथों से फैलाकर देखा.. चूत अभी भी चिकनी थी.. सही टाइम था... शरद को पता था एक बार ये ज़रूर कूदेगी... चूत का बंद छेद इसकी पुस्ती कर रहा था.... वा पूरी तरह से प्रिया के उपर आ गया.. उसकी कमर को अपनी कमर से दबा लिया और उसके हाथो को ज़ोर से पकड़ लिया.. लंड सही जगह टीका हुआ था.. शरद ने दबाव डालना शुरू किया... प्रिया चिहुनकि पर हिल ना सकी.. वा भयभीत हो गयी.. अपने को फट-ता देख.. उसने गांद को इधर उधर किया.. पर लंड को रास्ता दिख चुका था.. वह चूत के मुँह पर चिपका हुआ ही इधर उधर होता रहा.. ज्यों ज्यों दबाव बढ़ता गया.. प्रिया की चीख तेज होती गयी.. पर 10000 वॉट के म्यूज़िक सिस्टम के आगे उसकी चीख कौन सुनता... "बस.. थोड़ा सा और... बस थोडा सा और.. करते करते शरद ने सूपड़ा ज़बरदस्ती अंदर फिट कर दिया.. लग रहा था जैसे पहले लंड डालकर फिर उसका साइज़ बढ़ाया है.. इतनी पतली चूत में इतना मोटा लंड घुस कैसे सकता है.. खुद शरद को हैरत थी.. पर अब उसने और घुसाना छोड़ कर प्रिया की कमर को चाटना शुरू कर दिया था.. ुआकी चूचियों को सहलाना और धीरे धीरे मसलना शुरू कर दिया था... प्रिया की चेखें कम होने लगी.. धीरे धीरे उसकी चीत्कार सिसकियों में बदलने लगी.. शरद ने उसके गालों पर चुंबन दिया तो वा भी उसको काट खाने को लालायित हो गयी.. अब चूत में आराम था.. उसने अपनी टाँगों को थोड़ा चौड़ा कर लिया ताकि दर्द में और आराम आ सके... पर टाँगों का चौड़ा होना प्रिया के लिए आराम देह भले ही साबित ना हुआ हो.. शरद के लिए आसान ज़रूर हो गया.. उसके और अंदर घुस जाना.. एक बार फिर प्रिया रो उठी.. एक बार फिर सिसकियाँ चीत्कार में बदल गयी.. पर इश्स बार पूरा काम हो गया.. और चीत्कार भी कम हो गयी.. प्रिया ने सुना था की पहली बार तो दर्द होता ही है.. लेकिन ये भी सुना था की बाद में मज़े भी आते हैं... दर्द को भूल चुकी प्रिया अब मज़े लेने के इंतज़ार में थी.. करीब 2 मिनिट बाद उसकी ये तमन्ना भी पूरी हो गयी... जैसे ही शरद ने अंदर बाहर करना शुरू किया.. प्रिया पागल हो उठी... ये चूत तो मज़े की ख़ान है.. उसने पहले क्यूँ नही लिए... वह बदहवासी और नशे की हालत में कुछ का कुछ बके जा रही थी..," सोचा था... आ... मेरा.. हुस्स्स्बंद.. चोदेगा... पर .. क्या..... आआह .. क्या पता था की... यहाँ.. ये मज़े मिलेंगे... पैसों के बदले... आअह... शरद... ... जब चाहे बुला लेना... पर... मेरी.. ज़रूरत ... पूरी .. कर देना..... मुझे... बहुत ... पैसों की.. ज़रूरत... है... अपने भाई को.... कोचैंग दिलानी है... प्लीज़... उसके .... पैसे/.. देते रहना.... उसमें... बहुत... आआएकमाआ... टॅलेंट ... हाईईईईईईईईय्ाआआआआआईयईईईई इमाआआआआ मररर्र्रर्ड गाइिईई... बुसस्स्स बुसस्स निकाल लो... मर गयी.... जलन हो रही है.... शरद ने बाहर लंड निकाल कर उसको पलटा और मुँह खोलने को कहा... ना चाहते हुए भी प्रिया ने अपना मुँह खोल दियाअ... और 2-4 बार हाथ आगे पीछे करने पर शरद अकड़ गया.. उसने लंड पूरा मुँह खोले बैठी.. प्रिया के मुँह में लंड थूस कर अपनी सारी मेहनत का फल अंदर निकाल दिया.. और लंड बाहर निकाल लिया... प्रिया ने नीचे मुँह करके होन्ट खोल दिए.. सारा रस ज़मीन पर गिर पड़ा...



शरद उठा और बेडरूम के दरवाजे के पास जाकर ज़ोर से बोला," अरे भाई बदलनी है क्या..?" "नहिी.. यही ठीक है... मुझे.. पतली पसंद नही.." टफ की आवाज़ आई.. "अरे थोड़ा साँस भी लेने दे... उसको.. बाहर आजा एक एक पैग पीते हैं.. टफ दरवाजा खोलकर अपनी पॅंट की जीप बंद करते हुए बाहर आया..... "कैसी लगी..?" विकी ने पूछा..... "एकद्ूम मस्त आइटम है यार... पहली बार था पर क्या चुदाई करवाई है..." टफ ने पैग बनाते हुए कहा.. "चल तू तब तक पैग बना और इससे मुलाक़ात कर.. मैं 20 मिनिट में आया, स्नेहा से मिलकर.." टफ ने उसका हाथ पकड़ लिया..," रहने दे यार... अभी चोद कर हटा हूँ... कुछ तो दया कर.." "क्या बात है.. क्या बात है.. लगता है तुझे तो प्यार हो गया है उससे..." शरद ने मज़ाक किया.... प्यार शब्द सुनते ही टफ की आँखों के सामने सीमा का चेहरा घूम गया... वह खुद पर ही शर्मिंदा हो गया और नज़रें धरती में गाड़ ली... "ठीक है दोस्त.. मैं एक बार और इसको लपेट लूँ... फिर आराम से नींद आ जाएगी....." शरद ने टफ से कहा... टफ उठा और बेडरूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया... शरद ने प्रिया को उठाया और उसको फिर से तैयार करने लगा.... टफ अंदर जाते ही बिना स्नेहा से बात किए... सीमा की यादों में खोया खोया.. आँखों में आँसू लिए सो गया..... स्नेहा टफ की और देखती रही... उसकी आँखों में नींद नही थी... सुबह टफ उठा तो स्नेहा वहाँ नही थी, अपनी अड़खुली आँखों को मालता हुआ वह बाहर आया; देखा शरद अभी भी सो रहा है.. उसने हाथ मारकर उसको उठाया," उठ जा भाई!" शरद ने एक ज़ोर की अंगड़ाई ली..," ओवाआआ! साली सुबह सुबह भाग गयी... एक बात और लेनी थी यार... स्नेहा को तो मैं चोद ही नही पाया.. कैसी थी?" टफ ने वॉश बेसिन के सामने अपनी आँखों पर छीते मारे... आँखें शायद शराब के कारण लाल हो चुकी थी...," ठीक थी.. कुछ खास कोपरेशन नही किया..." "अगली बार मैं सिख़ावँगा उसको साथ देना..." शरद सोफे से ही उठते ह बोला... "यार तू उनको यहाँ लाया कैसे?.. दिखती तो दोनो शरीफ ही थी.." "सबको ये चाहिए होता है बेटे!" शरद ने अपने अंगूठे को अपनी उंगली पर चलाया...," यहीं पढ़ती हैं यूनिवर्सिटी में.. घर से पूरा खर्च मिलता नही.. तो अयाशी और मौज मस्ती के लिए ऐसे ही रातों को आती जाती रहती हैं.. हम जैसे ज़रूरतमंदों के पास..." "यार! इतनी पढ़ी लिखी होकर भी... कैसे कर लेती हैं ये सब...." टफ सीमा को याद करके बेचैन हो गया... उसको यहाँ नही आना चाहिए था.. ये सोचकर वो रह रह कर परेशन हो रहा था... "आबे साले! तू अंबिया चूस कर गुठली गिन'ने में लग गया... चल आ चाय पी ले...!" नौकर अभी अभी टेबल पर चाय रखकर गया था... 


करीब सुबह 9 बजे टफ यूनिवर्सिटी के गेट नंबर. 2 पर खड़ा था.. सीमा को सर्प्राइज़ देने के लिए... ऑटो से उतारकर प्रिया को अपनी और आते देख टफ भौचक्का रह गया.. वह दूसरी तरफ घूम गया ताकि अगर प्रिया ने उसको ना देखा हो तो वो उस'से बच सके.. पर प्रिया तो उसको देखकर ही उतरी थी.. वरना तो उसको अगले गेट पर जाना था..," हे फ्रेंड! कैसे हो?" प्रिया उसके आगे आकर खड़ी हो गयी.. टफ ने अब और तब में उसमें बहुत फ़र्क देखा.. तब वह पैसों की खातिर बिकने वाली एक वेश्या लग रही थी और अब अपने करियर के लिए यूनिवर्सिटी आने वाली एक सभ्या लड़की...," ठीक हूँ... जाओ यहाँ से...!" "हां हां! जा रही हूँ.. एक रिक्वेस्ट करनी थी.." प्रिया ने टफ की तरफ प्यासी निगाहों से देखा.. "जल्दी बोलो.. मुझे यहाँ पर ज़रूरी काम है.." टफ ने अपनी बेचैनी दर्शाई... "वो... सर आप बड़े लोग हैं... आपके लिए पैसा कोई मायने नही रखता होगा... मेरे जैसी घरों की लड़कियों को पैसे की बहुत ज़रूरत होती है.... अपने और परिवार के सपनो को जिंदा रखने के लिए... उम्मीद है आप समझ रहे होंगे... बदले में हमारा शरीर ही होता है.. आप बड़े लोगों का दिल बहलाने के लिए......" "अपनी चौन्च बंद करो और भागो यहाँ से..!" टफ गुस्से से दाँत पीस रहा था... सीमा के आने का टाइम हो चुका था... "सॉरी टू डिस्टर्ब... बट कभी आप अपनी सेवा का मौका दे सकें तो... प्लीज़ आप अपना नंबर. दे दीजिए......." तभी मानो टफ पर आसमान टूट पड़ा...," अरे प्रिया! तुम इनको कैसे जानती हो? ... और आप यहाँ कैसे..?" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ पलटा... उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया... "मैं तो बाद में बतावुँगी.. पहले तुम बताओ.. तुम इनको कैसे जानती हो?" प्रिया ने सीमा के गले मिलते हुए कहा... "बस यूँही... आप यहाँ कब आए... बताया भी नही... अच्छा मैं अभी आती हूँ.. 1 घंटे में... मुझे ज़रूरी एषाइनमेंट्स जमा करना हैं... मिलेंगे ना..! मैं जल्द से जल्द अवँगी..." अपने सपनो के राजकुमार को देखकर उसने लाइब्ररी जाने का प्लान कॅन्सल कर दिया था... "सीमा.. एक मिनिट! सुनो तो सही...!" टफ का गला भर आया.. "मैं बस अभी आई.." कहती हुई सीमा प्रिया का हाथ पकड़ कर खींचती हुई ले गयी.. टफ अपने माथे पर हाथ लगा वहीं घुटनों के बाल बैठ गया... सीमा और प्रिया के गले मिलने को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना बिल्कुल आसान था की दोनो पक्की सहेलियाँ थी.... सीमा ने अंजलि से पूछा," तूने बताया नही.. अजीत को कैसे जान'ती है..?" प्रिया ने टालने की कोशिश की," यार.. बस ऐसे ही एक फ्रेंड के दोस्त के पास मुलाक़ात हो गयी थी..." "चल छोड़! ये बता.. कैसा लगा तुझे ये.." सीमा ने अपनी पसंद पर मोहर लगवानी चाही... "रॉकिंग मॅन! कुछ भी तो कमी नही है... पर तू ये बता तू ऐसा क्यूँ पूच रही है..?" प्रिया ने शंकित निगाहों से सीमा की और देखा... "बस ऐसे ही.. चल छोड़.. जल्दी चल.. लेट हो रहे हैं!" अब की बार सीमा ने टालने की कोशिश करी.... "नहिी ! तुम्हे बताना पड़ेगा... मेरी कसम!" प्रिया को दाल में कुछ काला सा लगा.. "वो.. ये.. अजीत मुझसे प्यार करता है..." "Wहाआआआआत?" प्रिया ने ऐसे रिक्ट किया मानो 'प्यार' शब्द प्यार ना होकर कोई बहुत बड़ी गाली हो... "क्या हुआ?" प्रिया का रिएक्शन देखकर सीमा की धड़कन बढ़ गयी.... "तू बहुत ग़लत कर रही है सीमा! तू एक बहुत अच्छी लड़की है.. और ये प्यार व्यार तेरे लिए नही बना." प्रिया ने लुंबी साँस लेते हुए कहा.... "अच्छी हूँ तो इसका ये मतलब तो नही की मैं शादी के सपने भी ना देख सकूँ!..." सीमा ने प्रिया से सवाल किया... "तो तू ये समझती है की ये लड़का तुझसे शादी करेगा... है ना?" प्रिया उसको इशारों में समझना चाहती थी... टफ जैसों की तासीर. "तू पहेलियाँ क्यूँ बुझा रही है... खुल कर बता ना.. क्या बात है?" प्रिया बताती भी तो क्या बताती.. वो सीमा के पड़ोस में रहती थी.. उनकी भी कॉलोनी में उतनी ही इज़्ज़त थी.. जितनी सीमा और उसकी मा की.. पर वो सीमा को इश्स दलदल में नही जाने देना चाहती थी... और सीमा पर भरोसा भी कर सकती थी.. उसका काला 'सच' छुपा कर रखने के लिए...," तू एषाइनमेंट दे आ सीमा.. मैं तुझे सब बताती हूँ..." "ओ.के... मैं अभी आई" सीमा ने बेचैन निगाहों से प्रिया को देखते हुए कहा.. उसका दिल बैठा जा रहा था.. जाने.. प्रिया उसको क्या बताएगी.... सीमा जितनी जल्दी हो सका; वापस आ गयी.. प्रिया के पास.. उसके कॉमेंट ने सीमा के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी..," हाँ प्रिया.. जल्दी बता दे.. तू कहना क्या चाहती है..?" प्रिया उसका हाथ पकड़ कर रोज़ पार्क में ले गयी... "देख सीमा! मैं तुझको जो बताने जा रही हूँ.. वो बताने लायक नही है.. हम दोस्त हैं.. इसीलिए मैं तुझे इश्स प्यार के गटर में ढकेले जाने से बचना चाहती हूँ.. और जो कुछ मैं बतावुँगी.. सुनकर तुझे एक नही दो झटके लगेंगे... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना.. और मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करना.." "यार तू डरा मत प्लीज़.. मेरी जान निकली जा रही है..." सीमा सुन'ने से पहले ही कुछ कुछ समझने लगी थी.. "मुझे पता है.. पर तुझे सुन ही लेना चाहिए...!.. तरुण पढ़ाई में बहुत अच्छा है.. तुझे पता है.. पर कॉंपिटेशन के जमाने में सिर्फ़ इंटेलिजेन्सी से काम नही चलता... उसकी कोचैंग के लिए 50000 रुपए चाहियें... घर वालों ने उसको बी.एस सी. करने को कहकर अपने हाथ उठा लिए हैं..." "तू सीधी सीधी असली बात पर क्यूँ नही आती?" सीमा ना चाहकर भी वो सुन'ने के लिए बेचैन थी... क्या पता उसका अंदाज़ा ग़लत ही निकल जाए... प्रिया ने थूक गटकते हुए अपनी बात जारी रखी," बता तो रही हूँ... मेरा भाई डॉक्टर बन'ना चाहता है.. और मैं जान'ती हूँ वो बनेगा..." प्रिया का गला भर आया... आँखों में आँसू आ गये," और मैने फ़ैसला किया की उसको डॉक्टर बना'ने के लिए मैं अपना जिस्म बेच दूँगी!" कह कर वो फुट फुट कर रोने लगी.. सीमा की छाती पर सिर रखकर वो झार झार बरसने लगी... "ये क्या कह रही है तू प्रिया" सीमा ने कसकर उसको अपने सीने से भींच लिया... पर उसको पता था ये बेहन का प्यार है... कुछ भी कर गुजरेगा.. अपने भाई के सपने को पूरा करने की खातिर... करीब पाँच मिनिट तक दोनो में चुप्पी छाई रही.. सीमा की हिम्मत ना हुई; प्रिया के बलिदान की आँच पर अपनी जिगयसा की रोटियाँ सेकने की... प्रिया ने खुद ही अपने आपको संभाला और आगे बोलना शुरू किया..," मैने एक डील करी... 5 रातों के बदले 50000... ... और कल में पहली रात बिता कर आ चुकी हूँ..." "क्या? ... किसके साथ..?" "तुम्हारे इश्स अजीत के साथ.... सीमा सुनते ही सब कुछ भूल गयी... बस याद रहा तो टफ का वो खत जिसने उसको सपना दिखाया था.. जिसने उसको जीना सिखाया था.. सपने के साथ.. सीमा को लगा जैसे पार्क में खिले गुलाब उसकी हँसी उड़ा रहे हैं.. उसको सब कुछ घूमता सा लगा... सपनें पिघल कर लुढ़क आए... उसके गालों पर.. प्रिया उसको एकटक देखे जा रही थी... सीमा को अब भी विस्वास सा नही हुआ.. क्या आदमी की जात इतनी घटिया भी हो सकती है..," क्या सच में इसने तुम्हारे साथ...." "नही.. इसने नही.. पर ये भी था किसी दूसरी के साथ.. नाम बताना नही चाहती... खुद पर लांछन लगा कर तुमको रास्ता दिखाने से मुझे कोई हर्ज़ नही.. पर हुमने एक दूसरी को वादा किया है.. नाम ना बताने का.. सॉरी..!" प्रिया ने अपने आँसू पोछते हुए कहा... सीमा के पास अब जैस उसका कहने को कुछ बचा ही ना था... वह प्रिया का धन्यवाद करना भी भूल गयी... उसको इस गर्त में गिरने से बचाने के लिए...... उसके मनमोहक चेहरे पर चाँदी सी नफ़रत तैरने लगी.. वह उठी और टफ के पास जाने लगी... पीछे पीछे उसकी सहेली प्रिया चल दी... हर बात के सबूत के तौर पर...... टफ अपनी गाड़ी से कमर लगाए खड़ा था... सीमा की सूरत देखकर ही वो समझ गया... सीमा ने पास आते ही भर्रय हुई आवाज़ में उसको जाने क्या का कहना शुरू कर दिया," तुमको तो जीना आ गया है ना.. तुम तो मुझे देखकर ही पागल हो गये थे.. तुमने.... कहा था ना... कहा था ना तुमने की... मेरे बिना जी नही पाओगे... ये जीना है तुम्हारा.." टफ कुछ बोल नही पा रहा था.. और ना ही कुछ सुन पा रहा था.. बस जैसे सब कुछ लूट चुका हो.. और वो चुपचाप खड़ा अपनी बर्बादी के जनाज़े में शामिल हो.. सीमा की बड'दुआयं जारी थी," तुम बड़े लोग.. लड़की को समझते क्या हो.. सिर्फ़ सेक्स पूर्ति का साधन.. मुझमें तुम्हे कौनसी बात लगी की मुझे भी खिलौना समझ बैठे... क्यूँ दिखाए मुझे सपने.. क्यूँ रुला मुझे... बोलते क्यूँ नही..!" आँखों में आँसू लिए सीमा ने टफ के कंधे को पकड़ कर हिलाया और सिसकती हुई नीचे बैठ गयी... उसमें खड़ा रहने की हिम्मत ही ना बची थी... टफ ने बड़ी कोशिश के बाद अपने मुँह से शब्द टुकड़ो के रूप में निकले..," सी..मा ( गला सॉफ करके)... उससे एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" प्रिया पास खड़ी सब सुन रही थी... "क्या पूछ लूँ... की कैसे तुमने उस्स बेचारी की मजबूरी का फयडा उठाया होगा.. की कैसे तुमने उसको रौंदा होगा... क्या पूछ लू हां.... सीमा खड़ी हुई और अपनी बहती आँखों से एक बार देख कर पलट कर जाने लगी.. प्रिया का हाथ पकड़ कर.. धीरे धीरे! टफ का रोम रोम काँप उठा... उस्स'से ये क्या हो गया... अपने ही अरमानो के तले उस्स'ने अपने सपनो का गला घोंट दिया... वह गाड़ी में बैठ गया.. और अपने मर्दाना आँसू निकालने लगा.. जी भर कर... प्रिया को टफ की एक बात बार बार कौंध रही थी.. " उस्स'से एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" "सीमा! मैं अगर तुम्हे उस्स लड़की से मिलवा दू तो तुम उसकी बात को राज रख सकती हो ना?" "क्या करना है अब मिलकर..? बचा ही क्या है मिलने को.." "नही प्लीज़.. एक बार.. मैं उसको फोन लगती हूँ.. प्रिया ने अपना फोन निकाला और स्नेहा का नंबर. डाइयल कर दिया... लाउडस्पिकर ऑन करके.. "हेलो!" "स्नेहा?" "हां प्रिया बोलो....." स्नेहा शायद घर पर ही थी.... "यार कल रात से रिलेटेड एक बात पूछनी थी..." "मैं तुम्हे दो मिनिट में फोन करती हूँ..." स्नेहा ने कहकर फोन काट दिया... प्रिया और सीमा एक दूसरी को देखने लगी.. मानो उम्मीद की कोई किरण नज़र आ ही जाए.. 2 मिनिट से कम समय में ही स्नेहा का फोन आ गया," हां प्रिया! बोलो.." "यार वो जो कल दूसरा लड़का नही था.. शरद के साथ.. वो आज रात के लिए बुला रहा है.. क्या करूँ?.. जाऊं क्या?" प्रिया ने सही तरीका अपनाया था बात शुरू करने का... सीमा साँस रोके सब सुन रही थी..... "कौन? अजीत जी!" स्नेहा ने प्रिया से पूछा.. "हां हां.. ज़्यादा तंग तो नही करता ना?" प्रिया ने उसको उकसाया.. "तुम अब 4 दिन बाद एप्रिल फूल बना रही हो क्या.. या मुझे जला रही हो!" स्नेहा ने स्टीक उत्तर दिया.. "क्या मतलब?" प्रिया ने चौंकते हुए से पूछा.. "मतलब क्या? उनके जैसा देवता इंसान तो मैने आज तक देखा ही नही... वो किसी की मजबूरी का फयडा उठाने वालों में से नही है... जाने कैसे वो शरद के साथ आ गया.." सीमा की आँखें चमक उठी.. 

दिल फिर से धड़क उठा.. अपने अजीत के लिए..... "तुम थोड़ा खुलकर नही बता सकती क्या?" प्रिया सबकुछ जान'ना चाहती थी... "यार उस्स आदमी से तो मुझे प्यार सा हो गया है.. अगर कहीं मिल गया तो... पर यार मैं अब इश्स लायक कहाँ हूँ... खैर.. तुम्हे याद होगा जब शरद ने उसको कहा था.... "यार! तुम्हारा मूड खराब लग रहा है.. कोई इचा भी है या दोनो को मैं ही संभालू" ऐसा करके कुछ!" "हां हां! याद है.." प्रिया ने याद करते हुए बताया... "तो वो मुझे उठाकर बेडरूम में ले गया था.. क्यूंकी शरद ने कहा था की उसको तुम पसंद हो.." "हां हां.." "अंदर जाते ही उसने मुझे चादर औधा दी थी.. और सॉरी बोला था.. और ये भी कहा था की मुझे वहाँ ना लाता तो तुम भी बर्बाद हो जाती..... उसने सारी रात मेरी और देखा तक नही.. छूना तो दूर की बात है यार... सच ऐसे आदमी भी होते हैं दुनिया में..." सीमा का हर शक़ दूर हो गया था.. पर प्रिया के मॅन में संशय बाकी था," पर यार मैने देखा था.. जब वो बाहर आया था तो उसने अपनी ज़िप बंद करी थी.." प्रिया ने सीमा से शरमाते हुए से ये बात कही.. "हो सकता है.. इसका मुझे नही पता.. हां शायद उसने मुझको कहा था की अगर शरद पूछे तो उसको ये नही बताना है की मैने कुछ नही किया... वरना वो मुझको बाहर ले जाएगा... शायद शरद को दिखाने के लिए ऐसा कहा हो... उसने तो यार अपना नंबर. भी नही दिया... भगवान बस एक बार उससे मिलवा दे..." "ठीक है स्नेहा! मैं तो एप्रिल फूल ही बना रही थी.. पर मुझे क्या पता था.. एनीवेस थॅंक्स...." स्नेहा हँसने लगी.. और फोन कट गया......
 
गर्ल'स स्कूल --22

सीमा फोने काटते ही बाद हवस सी होकर भाग ली गेट की तरफ.. अपने प्यार के लिए.. उसको नही पता था टफ वहाँ मिलेगा या नही.... पर उसको भगवान पर भरोसा था.. फोन करना भी ज़रूरी नही समझा.....
गेट पर आते ही उसको टफ की गाड़ी दिखाई दे गयी.. वह भागती हुई ही ड्राइवर सीट के बाहर पहुँची.. उसने देखा टफ की बंद आँखों में आँसू थे... उसने शीशे पर नॉक किया.. टफ ने देखा सीमा बाहर खड़ी है.. उसकी भी आँखों में आँसू थे.. दोनो के आँसू एक रंग के हो चुके थे.. प्यार के आँसू.. मिलन की तड़प के आँसू..
टफ गाड़ी से नीचे उतरा.. सीमा उससे लिपट गयी.. बिना उसकी इजाज़त लिए... कभी ऐसा भी होता है क्या.. पहल तो लड़का करता है... पर कहानी उलट गयी थी.. सीमा रोड पर ही उसके अंदर घुस जाना चाहती थी.. हमेशा के लिए....," तुमने बताया क्यूँ नही?"
टफ ने उसकी कमर पर हाथ लगाकर और अंदर खींच लिया," कहा तो था जान; उससे पूछ तो लो.."
"फिर तुम इतने घबराए हुए क्यूँ लग रहे थे.." सीमा ने अपने आँसू टफ की शर्ट पर पोंछ दिए...
"वहाँ जाने की ग़लती के कारण सीमा... सॉरी.. सच में मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता.."
"मैं भी अजीत... आइ लव यू" सीमा अपना सिर उठाकर टफ की आँखों में अपने लिए मंडरा रहा बेतहाशा प्यार ढूँढने लगी.......

दोनो गाड़ी में बैठे और चल दिए... पीछे प्रिया खड़ी अपने आँसू पॉच रही थी... काश उसकी भी ऐसी किस्मत होती..

"कहाँ चलें?" टफ ने गाड़ी रोड पर चढ़ा कर सीमा से पूछा.
"जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी!" सीमा सीट से कमर लगाए आँखें बंद किए बैठी थी.. जाने कैसे वो यूनिवर्सिटी के बाहर टफ के सीने से जा चिपकी थी.. उस्स वक़्त उसको कतई अहसास नही हुआ की वो एक मर्द का सीना है.. उसकी ठोस छाती की चुभन अब जाकर वो अपने दिल में महसूस कर रही थी.. उसकी छातियाँ मर्द का संसर्ग पाकर उद्वेलित सी हो गयी थी... यह उसका पहला प्यार था, पहली कशिश थी.. पहली चुभन थी और पहली बार वो अपने आपको बेचैन पा रही थी; दोबारा उसके सीने में समा जाने के लिए.. उसका दिल उछल रहा था, पहले मिलन को याद करके भविस्या के सपनो में खोया हुआ!
"कहीं का क्या मतलब है? अपने घर ले चलूं क्या?" टफ ने मज़ाक में कहा..
सीमा ने अपनी मोटी आँखें खोल कर टफ की और देखा," तो क्या सारी उमर बाहर ही मिलने का इरादा है?"
"अरे मैं अभी की पूछ रहा हूँ.."
"अभी तो मंदिर मैं चलते हैं.. देल्ही रोड पर थोड़ी ही दूर सई बाबा का मंदिर है.. चलें?" सीमा ने टफ से पूछा...
"क्यूँ नही! " और टफ ने गाड़ी देल्ही की और बढ़ा दी...

करीब 15 मिनिट के बाद दोनो मंदिर के पार्क में बैठे थे," सीमा! मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ..!"
"कहो!" सीमा भी अब कुछ ना कुछ सुनना ही चाहती थी... कुछ प्यारा सा, रोमॅंटिक सा..
"सीमा! मैं अपनी बीती जिंदगी में निहायत ही आवारा टाइप का रहा हूँ.. केर्लेस और थोड़ा वल्गर भी... जैसा मैने कहा था.. तुमने मेरी जिंदगी में आकर उसको बदल दिया.. मैं मंदिर में बैठा हूँ.. आज जो चाहो पूछ लो; प्लीज़ आइन्दा कभी कोई बात सुनकर मुझसे यूँ दूर ना चली जाना जैसे आज..... मैं मर ही गया था सीमा.." टफ ने सीमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया..
"अजीत! कल रात वाली बात का खुलासा होने पर कोई भी बहुत बड़ी बेवकूफ़ होगी जो तुम पर कभी शक करेगी... मैं तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ की तुमने मुझ में प्यार ढूँढा.. तुमने मुझे अपनाया... मुझसे मिलने से पहले तुमने क्या किया है, ये मेरे . कतई मायने नही रखता... बस अब मुझे मंझदार में ना छोड़ देना... मैने बहुत सारे सपने देख लिए हैं..उनको बिखरने मत देना प्लीज़...

दोनो लगातार एक डसरे की आँखों में देखे जा रहे थे... शायद दोनो ही अपने देखे सपनो को एक दूसरे की आँखों में ढूँढ रहे थे... टफ के हाथों की पकड़ सीमा के मूलाम हाथों पर कास्ती चली गयी...

"आऔच! अब क्या मसल दोगे इनको." सीमा ने अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करी..
"ओह सॉरी! मैं कहीं खो गया था.." टफ ने सहम्ते हुए उसका हाथ छोड़ दिया..
"अब ये अपना पुलिसिया अंदाज छोड़ दो.. मेरे साथ नही चलेगा.. अंदर कर दूँगी हां!" सीमा ने अपना हक़ जताना शुरू कर दिया था..

"कहाँ अंदर करोगी!" खिलाड़ी टफ अपने आपको रोक ही ना पाया.. द्वि- अर्थी कॉमेंट करने से...
गनीमत था सीमा उसकी बात का 'दूसरा' मतलब नही समझी... वरना वहाँ पर झगड़ा हो जाता... या क्या पता...? प्यार ही हो जाता! ," घर लेजाकार बाथरूम मे. रोक दूँगी... हमेशा के लिए!"
"अगर तुम भी मेरे साथ बंद हो जाओ तो में बाथरूम में उमर क़ैद काटने के लिए भी तैयार हूँ..." टफ ने फिर शरारत की..
"धात!.. बेशरम.." सीमा ने अपनी नज़रें झुका ली.. उसका दिल कर रहा था अजीत उसको अपनी छाती से वैसे ही चिपका ले जैसे वो रोड पर जा चिपकी थी.... उस्स मिलन की ठंडक अब तक उसकी छातियों में थी....
"चलें..... मुझे पढ़ाई करनी है.." सीमा चाह रही थी.. वो उसको कहीं ले जाए, अकेले में..!

टफ तो जैसे जोरू का गुलाम हो गया था.. ना चाहते हुए भी वो उठ गया," चलो! जैसी तुम्हारी मरजी"

अब सीमा क्या कहती.. वो उसके पीछे पीछे चल दी........

आज 10+2 के एग्ज़ॅम का तीसरा दिन था... सुबह सुबह गौरी निशा के घर पहुँच गयी," निशा! आज तू लेट कैसे हो गयी? तेरा इंतज़ार करके आई हूँ.. चल जल्दी!"
"सॉरी गौरी! मैं तुझे बताना ही भूल गयी... मेरे भैया के एग्ज़ॅम ख़तम हो गये हैं.. वो कल रात को घर आ गये थे... मैं तू बाइक पर उसी के साथ जाउन्गि.. सॉरी!" निशा गौरी को साथ लेकर नही जाना चाहती थी.. इतने में संजय बाथरूम से बाहर निकला.. उसने कमर के नीचे तौलिया बाँध रखा था.. चंडीगड़ में वह लगातार जिम जाता रहा था.. कपड़ों के उपर से गौरी उसकी मांसपेशियों के कसाव को नही देख पाई थी.. कपड़ों में वा इतना सेक्सी नही लगता था जितना आज नंगे बदन.. गौरी ने शर्मा कर नज़रें नीची कर ली...

"तो क्या हुआ निशा? ये चाहे तो हमारे साथ चल सकती है.. तीन में कोई प्राब्लम नही है" संजय ने बनियान पहनते हुए कहा..

निशा ने एक बार घूर कर संजय की और देखा फिर पलट कर निशा की और प्रेशन शूचक निगाहों से देखा...
"हां ठीक है.. अगर तीन में प्राब्लम नही है तो मैं भी चल पड़ती हूँ... तुम्हारे साथ.." गौरी को आज सच में ही संजय बहुत स्मार्ट लगा.. वह रह रह कर तिरछी निगाहों से संजय को देख रही थी....

"ठीक है.. चलो!" निशा ने बनावटी खुशी जताई.. सच तो ये था की वो संजय और गौरी को आमने सामने तक नही देखना चाहती थी.. उसको पता था की उसका भाई गौरी पर फिदा है... पर वा मजबूर हो गयी...

संजय ने बाइक बाहर निकली तो झट से निशा संजय के पीछे बैठ गयी.. संजय ने निशा की और देखा," निशा! दोनो तरफ पैर निकालने होंगे.. ऐसे नही बैठ पावगी दोनो.."
"तुम तो कह रहे थे की तीनो आराम से बैठ जाएँगे!" निशा ने मुँह बनाया और दोनो तरफ पैर करके संजय से चिपक कर बैठ गयी.. गौरी निशा के पीछे बैठ गयी.. तीनो एक दूसरे से चिपके हुए थे... संजय ने बाइक चला दी...

सलवार कमीज़ में होने के कारण निशा की चूत संजय की कमर से नीचे बिल्कुल सटी हुई थी.. संजय उसमें से निकल रही उष्मा को महसूस करके गरम होता जा रहा था.. निशा ने अपने हाथ आगे लेजकर उसकी जांघों पर रख लिए.. संजय के लंड में तनाव आने लगा...
गौरी संजय के बारे में सोच कर गरम होती जा रही थी.. उसकी जांघों की बीच की भट्टी भी सुलग रही थी.. धीरे धीरे...
अचानक रोड पर ब्रेकर आने की वजह से गौरी लगभग उछल ही गयी, उसने घबराकर निशा को पकड़ने की कोशिश करी... पर उनके बीच में तो जगह थी ही नही.. गौरी के हाथ संजय के पेट के निचले हिस'से पर जाकर जम गये..


जिस वक़्त गौरी को वो झटका लगा था.. उससे थोड़ी देर पहले ही निशा संजय का ध्यान गौरी से हटाने के लिए उसकी पॅंट के उपर से उसके लंड को सहलाने लगी थी.. संजय कोई रिक्षन नही दे पाया हालाँकि उसके लंड ने तुरंत आक्षन लिया.. ट्राउज़र के पतले कपड़े में से वो अपना सिर उठाने लगा.. निशा ने पॅंट के उपर से ही उसको मजबूती से पकड़ लिया.. संजय बेकाबू हो रहा था.. निरंतर.. निशा ने सोने पर सुहागा कर दिया.. अपनी उंगलियों से ज़िप को पकड़ा और नीचे खींच दी.. अंडरवेर का सूती कपड़ा लंड के दबाव मे. पॅंट से बाहर निकल आया... निशा उस्स पर उंगलियाँ घुमाने लगी..
सब कुछ संजय की बर्दास्त के बाहर था.. तभी अचानक निशा की बदक़िस्मती कहें या संजय की खुसकिस्मती.. अचानक वो झटका लगा और गौरी के हाथ निशा की कलाईयों के उपर से होते हुए संजय के पेट से जा चिपके..
अचानक गौरी से अंजाने में हुई इस हरकत से निशा सकपका गयी.. उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए...
गौरी के दिल की धड़कन बढ़ गयी.. गौरी को अहसास था की उसकी उंगलियाँ संजय के गुप्ताँग से कुछ ही इंच उपर हैं.. उसने अपने हाथ हटा लेने की सोची; पर संजय को छूने का अहसास उसको इश्स कदर रोमांच से भर गया की उसके हाथों की पकड़ वहाँ कम होने की बजाय बढ़ती चली गयी..
निशा कसमसा कर रह गयी; पर कर क्या सकती थी... उसने हाथ अपनी जांघों पर ही रख लिए...
अचानक गौरी को ध्यान आया; निशा के हाथ तो वहाँ से भी नीचे थे जहाँ से वो संजय को पकड़े हुए थी.. उसकी नाभि के भी नीचे से.. तो क्या निशा के हाथ..
ये सोचते ही गौरी को अपनी पनटी पर कुछ टपकने का अहसास हुआ.. उधर संजय का भी बुरा हाल था.. उससने एक हाथ से अपने हथियार को जैसे तैसे करके पॅंट में अंदर थूसा पर वो ज़िप बंद ना कर पाया... ऐसा करते हुए उसके हाथ गौरी के कोमल हाथों से रग़ाद खा रहे थे.. गौरी अंदाज़ा लगा सकती थी की उसके हाथ कहाँ पर हैं और वो क्या कर रहा है...

जैसे तैसे वो भिवानी एग्ज़ॅमिनेशन सेंटर पर पहुँचे.. गौरी का ध्यान उतरते ही संजय की पॅंट के उभार पर गया.. संजय की काली ट्राउज़र में से सफेद अंडरवेर चमक रहा था.. उसकी ज़िप खुली थी...
गौरी का बुरा हाल हो गया.. वह भागती हुई सी बाथरूम में गयी.. अपने रुमाल से पसीना पोछा और सलवार खोल कर रुमाल उसकी पनटी और चिकनी टपक रही चूत के बीच फँसा लिया.. ताकि सलवार भीगने से बच जाए..
जैसे ही वह बाहर आई निशा ने पैनी निगाहों से देखते हुए पूछा," क्या हो गया था; गौरी?"
"कुछ नही.. वो.. पेशाब...!" गौरी ने अपनी नज़रें झुका ली...
निशा को एक अंजान डर ने आ घेरा.. गौरी अब संजय में इंटेरेस्ट लेने लगी है.. संजय तो पहले दिन से ही उसका दीवाना था....," चल अपनी सीट पर चलते हैं.."
कुछ ही देर में पेपर शुरू हो गया.. दोनो सब कुछ भूल कर अपना पेपर करने में जुट गयी..

बाहर संजय का बुरा हाल था... गौरी के हाथों का कामुक स्पर्श अब भी उसके पाते पर चुभ रहा था.. उसकी शराफ़त जवाब देने लगी थी.. बाइक से उतरते ही उसकी पॅंट की और देखती गौरी उसकी नज़रों से हटाने का नाम नही ले रही थी.. वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर उधर घुमा पर उसके 'यार' का कदकपन जा ही नही रहा था... कैसे उसको अपने पीछे चिपका कर बैठाया जाए, सारा टाइम वो इसी उधेड़बुन में लगा रहा.....
कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह.. उसकी आँखें चमक उठी... अपना प्लान सोचकर.......

पेपर ख़तम होते ही निशा और गौरी दोनो बाहर आई..
संजय ने दोनो से मुखातिब होते हुए पूछा," कैसा पेपर हुआ?"
"बहुत अच्छा" निशा ने गौरी को ना बोलता देख बात कुछ और बढ़ा दी," दोनो का...!"
संजय ने गौरी को देखते हुए बाइक स्टार्ट की और बैठने का इशारा किया.. निशा लपक कर बीच में आ बैठी.. गौरी उसके पीछे बैठ गयी... चिपक कर!"

वो लोहरू रोड पर मुड़े ही थे की अचानक संजय ने बाइक रोक दी..," हवा कुछ कम लग रही है.. देखूं तो!"
संजय ने पिछले टाइयर की हवा आधी निकल दी थी.. तीनों बैठने पर टाइयर पिचक सा गया था...," ओहो! पंक्चर हो गया लगता है.. अब क्या करें..?"
निशा ने झुक कर टाइयर को देखा और बोली," पंक्चर लगवा लाओ; और क्या करोगे!"
"नही लग सकता ना! तभी तो परेशान हूँ..." संजय ने प्लान तैयार कर रखा था.
"क्यूँ?" निशा हैरानी से बोली...
"यहाँ किसी ऑटोपार्ट्स वाले को पोलीस ने कल बेवजह पीट दिया.. इसीलिए सभी हड़ताल पर गये हैं.. कोई भी नही मिलेगा.. अब तीन तो बैठ नही सकते.. देर मत करो.. चलो पहले गौरी को छोड़ आता हूँ.. फिर तुम्हे ले जवँगा.." संजय को लग रहा था ये तरीका काम करेगा..," हो सका तो गाँव से पंक्चर भी लगवाता आउन्गा.."
निशा उसके बिछाए जाल में फँस गयी.. उसने आव देखा ना ताव.. झट से बिके पर बैठ गयी," पहले मुझे छोड़ कर आओ" पागल ने ये नही सोचा की कोई पहले जाए या बाद में.. पर गौरी अकेली तो होगी ना उसके साथ...

"ठीक है, गौरी! मैं यूँ गया और यूँ आया.." कहकर संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी...
तभी निशा को ध्यान आया; वो भी कितनी मूर्ख है..," संजय! तुम जान बूझ कर तो ऐसा नही कर रहे... वो जीप में भी तो आ सकती थी.."
"पागल मत बनो, निशा! क्या सोचती वो" संजय ने सपास्टीकरण दिया..
"नही! मुझे लग रहा है तुम उसके साथ अकेले आना चाहते हो.."
"ऐसा कुछ नही है निशा.. बेकार की बहस मत करो.." और संजय ने बाइक की स्पीड बढ़ा दी...
निशा ने अपना हाथ आगे लेजाकार उसके लंड को पकड़ कर भींच दिया.....

वापस आते हुए संजय ने बाइक मैं हवा भरवा ली.. वह अकेला था और उसका दिल और लंड दोनो ही गौरी को सोच सोच कर उछाल रहे थे.....

गौरी के पास पहुँच कर उसने स्टाइल से बाइक मोडी और एकद्ूम ब्रेक लगाकर गौरी के पास रोक दी," बैठो!"
गौरी मन ही मन बहुत खुश थी पर बाहर से वो शरमाई हुई लग रही थी...
वह एक ही तरफ दोनो पैर करके बैठ गयी...
"ये क्या है गौरी! आजकल की लड़किया.. दोनो और पैर करके बैठती हैं.. ये पुराना फॅशन हो गया है.. और तुम तो वैसे भी शहर से हो....
'अँधा क्या चाहे दो आँखें' गौरी झट से उतरी और अपनी एक टाँग उठाकर बाइक के उपर से घुमा कर बाइक के बीचों बीच बैठ गयी.. लेकिन संजय से दूरी बना कर..........

संजय ने सब कुछ प्लान कर रखा था.. उसने बाइक की स्पीड तेज की और अचानक ही ब्रेक लगा दिए," संभालना गौरी!"
संभालने का टाइम मिलता तब ना.. झटके के साथ ही गौरी की चूचियाँ तेज़ी के साथ संजय की कमर से टकराई.. संजय तो मानो उस्स एक पल में ही स्वर्ग की सैर कर आया.. गौरी की मस्त चूचियाँ बड़ी बहरहमी से संजय की कमर से लग कर मसली सी गयी.. अचानक हुए इश्स दिल को हिला देने वेल 'हादसे' से गौरी की साँसे उखाड़ गयी..
"सॉरी गौरी! आगे गढ़ा था.." संजय ने बाइक रोक कर गौरी की और देखा....
गौरी की शकल देखने लायक हो गयी थी.. उसकी समझ में नही आ रहा था वा दर्द के मारे रो पड़े; या आनंद के मारे झूम उठे.. उसने नज़रें झुका ली..
"बहुत दर्द हुआ क्या?" संजय ने गौरी को लगभग छेड़ते हुए कहा....
गौरी क्या बोलती.. उसने नज़रें झुकाई.. मिलाई और फिर झुककर अपनी गर्दन हिला दी.. गर्दन का इशारा भी कुछ समझ में आने वाला नही था.. ना तो हां थी.. और ना ही ना..
"तुम आगे होकर मुझे कसकर पकड़ लो! सारा रास्ता ही खराब है.." संजय ने आँखों से झूठी सराफ़ात टपकाते हुए कहा...
"गौरी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.. एक ही रास्ता था उसकी धड़कन को कम करने का... और उसने ऐसा ही किया.. अपनी छाती को संजय की कमर से सटकर बैठ गयी.. अपने हाथ उसकी छाती पर कस दिए.....

दोनो एक ही बात सोच रहे थे.. अब कंट्रोल होना मुश्किल है.. पर दोनो ही ये बात एक दूसरे के लिए सोच रहे थे.. किसी में भी पहल करने की हिम्मत ना थी..
संजय धीरे धीरे बाइक चला रहा था.. गौरी की मस्टाई गड्राई और गोलाई वाली छातियाँ अपनी कमर से सटा देख संजय ने खुद को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.. गौरी एक बार तो पिछे की और हुई.. फिर संजय को जानबूझ कर ऐसा करते देख उसने भी आगे की तरफ दबाव डालना शुरू कर दिया.. आलम ये था की चूचियों की ऊँचाई आधी रह गयी थी.. दोनो की ज़िद के बीच में पीस कर..
कोई हां नही कर रहा था, कोई ना नही कर रहा था.. कोई हार नही मान रहा था... गौरी को असहनीया आनंद की प्राप्ति होने लगी... गौरी नीचे से भी संजय के कमर के निचले हिस्से से सॅट गयी.. उसकी जांघें भींच गयी.. संजय धन्य हो गया...पर जब तक बात और आगे बढ़ती.. उनका गाँव आ गया...
गौरी का हाल संजय से भी बुरा था.. किसी मर्द के इतने करीब वा पहली बार आई थी.. वो भी उस्स मर्द के करीब जो उसको बेहद पसंद था...
"संजय उसके दिल का हाल उसके गुलाबी हो चुके गालों से जान गया था...," कल मैं तुम्हे अकेला लेकर जाउ क्या? पहले जल्दी से निशा को छोड़ आउन्गा.. उसको बोल देना तुम अलग आओगी... क्या कहती हो?"

गौरी नीचे उतरी; नीचे गर्दन करके मुस्कुराइ और घर भाग गयी... संजय गौरी के भागते हुए नितंबों की थिरकन देखकर मदहोश हो गया... उसने किक लगाई और घर की और चल दिया..," हँसी मतलब........!"

गौरी जैसे सेक्स करके थक गयी हो.. उसकी साँसे अभी भी उखड़ी हुई थी... उसका दिल अब भी धड़क रहा था.. ज़ोर से...!

संजय के घर पहुँचते ही निशा ने उसको घूरा," क्या चक्कर है? उसको लाने में इतनी देर कैसे?"
"तुम भी ना निशा... वो मैं पंक्चर लगवाने लग गया था गाँव में....
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा दिया और उसके उपर सवार हो गयी......

अगले दिन वही हुआ... संजय कहीं जाने की बात कहकर करीब 2 घंटे पहले ही निशा को सेंटर पर छोड़ आया.. निशा गौरी को जाते हुए बता आई थी की आज मैं जल्दी जा रही हूँ....
निशा भी खुश थी.. उसकी जान; उसका भाई गौरी को आज लेकर नही गया.....
अंजलि और राज स्कूल जा चुके थे.. गौरी टाइम का अंदाज़ा लगा कर घर से निकल पड़ी.... जब संजय निशा को छोड़ कर वापस आया तो गौरी सड़क पर खड़ी थी...
संजय के उसके पास बिके रोकते ही वा उस्स पर बैठ गयी... दोनो तरफ पैर करके...

गौरी ने सारी रात जाने का क्या सोचा था और संजय ने भी जाने क्या क्या! पर दोनो ही प्यार के कच्चे खिलाड़ी थे.. अपने मान की बेताबी को तो समझ रहे थे.. पर दूसरी और क्या चल रहा है.. उससे अंजान थे...
समय निकलता देख संजय ने पहल कर ही दी," आज मुझे पाक्ड़ोगी नही क्या?"
गौरी ने हल्क हाथों से उसको थाम लिया...
"बस?" संजय धीरे धीरे उसके मान की थाः ले रहा था...
"हूंम्म्म!" गौरी को शर्म आ रही थी; बिना झटका लगे अपनी छाती मसलवाने की, उसकी कमर से दबा कर..
"क्यूँ?" संजय बेचैन हो गया...

गौरी कुछ ना बोली... उस्स गढ़े को समझ लेना चाहिए था.... की हेरोइन तैयार है...
"तुम्हे पता है... तुमसे सुन्दर लड़की मैने आज तक नही देखी..." संजय ने प्रशंसा के फूल उस्स पर न्योछावर कर दिए.. गौरी मन ही मन खिल उठी...

"मैने निशा से कुछ कहा था; तुम्हारे बारे में.. क्या उसने नही बताया..?" संजय उस्स'से कुछ ना कुछ तो आज सुन ही लेना चाहता था....
"उम्म्म!" गौरी का फिर वही जवाब....
"उम्म्म्म क्या?" संजय ने कहा..
"बताया था!" गौरी मानो हवा में ऊड रही हो.. वो अपने आपे में नही थी.. संजय को पहल करते देख...
"क्या बताया था?" संजय ने पूछा..
गौरी कुछ ना बोली.. अपने गाल संजय की कमर पर टीका दिए.. हाथों का संजय की छाती पर कसाव थोडा सा बढ़ गया.. पर छातियों की कमर से दूरी अभी बाकी थी...
"बताओ ना प्लीज़... क्या बताया था...?" संजय को मामला फिट होता लग रहा था....
"यही की...... की तुम मुझसे ... प्प्पयार करते हो.." गौरी ने आँखे बंद करके लरजते गुलाबी होंटो से कहा...
"और तुम?" संजय ने प्यार का जवाब माँगा...
गौरी इससे बेहतर जवाब क्या देती.. अपने आपको आगे करके संजय से सटा लिया.. हाथों का घेरा उसकी छाती पर कस दिया और अपनी छातियों को जैसे संजय के अंदर ही घसा दिया..... ये कच्ची उमर के प्यार की स्वीकारोक्ति थी... सीमा और टफ के प्यार से बिल्कुल अलग... गौरी बाइक पर संजय से चिपकी हुई काँप रही थी..
उसके रोम रोम में लहर सी उठ गयी... भिवानी आ गया था.. संजय ने गौरी को कहा," पेपर के बाद किसी भी तरह से यहीं रुक जाना.. निशा बस में जाएगी.....

गौरी तो संजय के प्रेम की दासी हो चुकी थी... कैसे उसका कहा टालती.....

पेपर ख़तम होने के करीब आधे घंटे बाद संजय सेंटर पर गया... उसकी प्रेम पुजारीन वहीं खड़ी थी.. अकेली......

निसचिंत होकर वह संजय के पीछे बैठ गयी... अंग से अंग लगाकर....
"होटेल में चलें...!" संजय ने गौरी से पूछा...
"लेट हो जाएँगे...!" हालाँकि इस बात में 'ना' बिल्कुल नही थी... संजय भी जानता था...
" कुछ नही होता... कुछ बहाना बना देंगे..." संजय ने बाइक हाँसी रोड पर दौड़ा दी...
कुछ हो या ना हो... जो दोनो की मर्ज़ी थी वा तो हो ही जाएगा.....
एक घटिया से टाइप के होटेल के आगे संजय ने बाइक लगा दी.. गौरी बाहर ही खड़ी रही...
"रूम चाहिए!" संजय ने वहाँ बैठे आदमी से कहा..
आदमी ने बाहर खड़ी बाला की सेक्सी गौरी को देखकर अपने होंटो पर जीभ फिराई," कितनी देर के लिए?" होटेल शायद इन्ही कामो के लिए उसे होता था...
"2 घंटे!"
"हज़ार रुपए!" इस वक़्त का फयडा कौन नही उठाता...
संजय ने पर्स से 1500 रुपए निकल कर उसको दिए..," हूमें डिस्टर्ब मत करना"
"सलाम साहब!"
संजय ने गौरी के हाथ में हाथ डाला और उनको दिए कमरे में घुस गया...

होटेल का कमरा कुछ खास नही था, अंदर जाते ही संजय को कॉंडम की सी गंध आई.. गद्दों पर बेडशीट तक नही थी.. पर ये वक़्त इंटीरियर डिज़ाइनिंग के बारे में सोचने का नही था...
उसने पलट कर गौरी की और देखा.. अपने राइटिंग बोर्ड से अपना सीना छिपाए खड़ी गौरी नज़रें झुकायं जाने क्या सोच रही थी..
"इधर आओ गौरी!" संजय ने मदहोश आवाज़ में हाथ फैलाकर गौरी को अपनी बाहों में आने को कहा...
जाने किस कसंकस में एक कदम पीछे हटकर दीवार से सटकार खड़ी हो गयी.. उसकी पलकों ने शरमाती आँखों को धक लिया..

संजय खुद ही 4 कदम चलकर उसके करीब, उसके सामने जाकर खड़ा हो गया... उसने गौरी के बेमिसाल शरीर पर एक नज़र डाली...

सच में गौरी किसी हसीन कयामत से कम नही थी.. उसका सुंदर मासूम सा लगने वाला गौरा चेहरा हर तरह से सौंदर्या की कसौटी पर नंबर 1 था.. उसकी पतली लंबी सुरहीदार गर्दन उसके ऊँचे ख्वाबों को दर्साति थी.. गर्दन से नीचे प्रभु की कला की 2 अनुपम कृतियाँ; किसी भी मर्द को उसके कदमों में सबकुछ लूटा देने को बद्धया कर सकती थी.. छातियों से नीचे पेट का पटलापन और नाभि से नीचे शुरू होने वाला उठान उसकी मस्त चिकनी जांघें उसके नितंबों के बीच की अंतहीन गहराई को बरबस ही उजागर कर देती थी....
संजय तो पहले से ही बेकाबू था.. वह थोड़ा सा झुका और एक हाथ से गौरी के कानो पर गिरी उसकी लट को पीछे करके गालों पर अपने होन्ट रख दिया..
"आआह!" इश्स आवाज़ से गौरी के समर्पण का बोध संजय को हुआ..
उसने गौरी के हाथों को पकड़ा और उन्हे उसकी छातियों से हटा दिया.. हुल्की सी हिचकिचाहट के साथ गौरी अपने हाथों को अपने मोटे कुल्हों के पास ले गयी...
संजय उससे सटकार खड़ा हो गया.. गौरी की चूचियाँ संजय की छाती के निचले हिस्से को छू रही थी; हूल्का हूल्का.. गौरी की साँसे गरम होती जा रही थी.. संजय अपने गले से उन्न सांसो की गरमाहट महसूस कर रहा था...
संजय झुका और अपने होन्ट गौरी के पतले मुलायम होंटो पर बिछा दिए.. और थोड़ा सा आगे होकर उसकी छातियों को अपने भर से दबा दिया.. गौरी के हाथ उपर उठकर संजय के बालो में अपनी उंगलियाँ फँसा दी.. उसके होन्ट संजय का सहयोग करने लगे..
संजय ने गौरी की कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा.... उसके हाथ धीरे धीरे नीचे की और जा रहे थे.
गौरी के नितंब को मजबूती से पकड़कर संजय ने अपनी और खींच लिया... गौरी बहाल सी हो गयी.. उसने अपने होंटो को अलग किया और ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगी.. उसकी छातियाँ अब भी संजय के सीने में गाड़ी हुई थी..
गौरी को अपनी चूत से थोडा सा उपर संजय का लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ.. वा अपने आपको पीछे हटाने लगी.. डर से..
पर संजय ने उसके नितंब को पूरी सख्ती से अपनी और खींच कर रखा था.. गौरी को अपनी चूत में जलन सी होने लगी... उसने अपना हाथ अपनी चूत और संजय के लंड के बीच में फँसा दिया.. संजय ने थोड़ा पीछे हटकर अपनी चैन खोली और अंडरवेर में से ताना हुआ अपना लंड निकाल कर गौरी के हाथों में दे दिया...
गौरी, नारी के लिए बेमिशाल उफार यूयेसेस लंड को अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत को बचा रही थी...
संजय ने गौरी की गांद के नीचे से अपना हाथ लेजकर उसकी चूत की पत्तियॉं पर रख दिया.. गौरी उछाल पड़ी... उसका मौन टूट गया," याइयीई... ये क्या कर रहे हो?"
उसकी साँसे किसी भट्टी से निकली आँच की तरह गरम थी....
"जान वही कर रहा हूँ; जिसके लिए हम यहाँ आए हैं... प्यार!"
"नही! मैं ऐसा नही कर सकती.." गौरी ने पूरी तरह खुद को संजय से छुड़ा लिया..
"क्क्या? क्या कह रही हो तुम... जो अभी तक कर रही थी.. वो क्या था?" संजय के साथ कलपद हो गयी..( क्यूँ??)
गौरी पूरी तरह अपने आपको संभाल चुकी थी..," ये सच है संजय की मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो... जब तुमने कहा की तुम मुझसे प्यार करते हो तो मैं तुम्हारे करीब आकर तुम्हे जान'ने को मचल उठी.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ.. बट मैं नही जान'ती हमारा प्यार किसी मुकाम तक पहुँचेगा या नही...
सॉरी! संजय; मैं शादी से पहले अपना शरीर तुम्हे नही सौंप सकती.. किसी भी हालत में.. गौरी ने एक बार फिर अपनी नज़रें झुका ली थी.."
संजय सुनकर हक्का बक्का रह गया.. उसका दिल किया की उसका रेप कर डाले.. पर वह इतनी प्यारी थी की कूम से कूम कोई इंसान तो उसको घायल कर ही नही सकता था.. और संजय शैतान नही था...
बेचारे का लोडेड हथियार बगैर अनलोड हुए ही क्रॅश हो गया..
संजय के चेहरे से बे-इंतहा गुस्सा झलक रहा था... उसने फाटक से दरवाजा खोला और बाहर निकल गया... गौरी उसके पीछे दौड़ी....
संजय ने बाइक स्टार्ट कर दी.. गौरी जाकर उसके पीछे बैठ गयी....
"एक तरफ पैर करो!" संजय की हालत सब समझ सकते हैं....
सहमी हुई गौरी उतरी और उसके कहे अनुसार बैठ गयी... वह लज्जित थी... उसने संजय को हर्ट किया था......

संजय ने गौरी को गाँव के अड्डे पर ही उतार दिया..," यहाँ से पैदल चली जाओ... लोग सोचेंगे.. इज्ज़ात गावा कर आई है.." संजय ने व्यंगया कसा!
बेचारी गौरी क्या करती... उसका क्या मालूम था की प्यार में इंटेरवाल नही होता... जब भी होता है.. पूरा ही करना होता है... उसका चेहरा उतार गया था.. संजय ने बाइक आगे बढ़ा दी... गौरी थके हुए से कदमों से घर की और बढ़ गयी.

गौरी अजीब कसमकस में थी.. सच था की वो मन ही मन संजय को बहुत चाहने लगी थी.. आख़िर लड़की को चाहिए क्या होता है किसी लड़के में, अच्छा करेअर, सुंदर चेहरा, और तगड़ा बदन. ये सभी कुछ उसको संजय में मिल सकता था. बहुत कम लोग होते हैं जिनमें ये सारी खूबियाँ एक साथ मिल जायें.. पर गौरी को एक चीज़ और चाहिए थी.. जीवन भर साथ निभाने का विस्वास. वो कहाँ से लाती, विस्वास किसी की शकल से नही टपकता;, साथ रहने से, एक दूसरे को जान'ने से आता
है.. गौरी भी अपने हर अंग में सिहरन महसूस कर रही थी, जब संजय ने उसको जगह जगह हाथ लगाया.. एक लड़के के हाथ में और खुद के हाथ में कितना फ़र्क होता है, ये गौरी जान गयी थी.. और संजय के हाथ ने अब तक उसके दिमाग़ में खलबली मचा रखी थी.. वह जल्द से जल्द संजय को जान लेना चाहती थी... ताकि... उसको हां कर दे... उस्स पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए... ताकि उसको हां कर दे... अपने हर अंग को झकझोरने के लिए..

जब गौरी से रुका ना गया तो वो निशा के घर जा पहुँची... करीब 6 बजे शाम को...

निशा गौरी को देख कर भुन सी गयी," क्या बात है गौरी? आजकल..."
"कुछ नही.. बस घर पर दिल नही लग रहा था... और सुना.. कल के पेपर की तैयारी कैसी है?"
तभी संजय अपने रूम से बाहर आ गया.. उसने तिरछी नज़र से गौरी को देखा.. गौरी ने नेजरें झुका ली...
"चल तू मेरे कमरे में आ जा!" निशा जितना हो सकता था, गौरी को संजय से दूर रखना चाहती थी..
"निशा! मैं तुझसे एक बात बोलना चाहती हूँ...!" गौरी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा..
"क्या?" निशा को गौरी का अंदाज कुछ राज बताने वाला सा लगा....
"वो.. तू कह रही थी.. की संजय.... मुझसे प्यार करता है.... क्या घर वाले.. हमारी शादी को मान जाएँगे?"
"नही! घर वाले तो दूर की बात है.. संजय ही नही मानेगा..!" निशा की बात सुनकर गौरी को सदमा सा लगा..
"क्यूँ?"
"क्यूँ क्या! मैं अपनने भाई को नही जानती क्या.. उसने चंडीगड़ भी एक लड़की से चक्कर चला रखा है... पर मुझे पता है.. वो शादी तो उसी से करेगा....!"
गौरी अवाक रह गयी.. उससे फिर वहाँ रुका ना गया.. वो तुरंत अपने घर वापस आ गयी..
 
घर आते आते गौरी का संजय के ख़यालों में उलझे उलझे बुरा हाल हो गया था.. पहली बार उसने किसी को दिल दिया था.. पहली बार उसको किसी ने शारीरिक और मानसिक तौर पर अंदर तक छुआ था.. और पहली बार में ही उसका दिल चलनी हो गया, ना वा संजय को देखती, ना संजय से दिल लगाती और ना ही ऐसा होता.. गौरी बाथरूम में जाकर अपने आप को शीशे में देखने लगी.. क्या वा ऐसी नही है की सारी उमर किसी को अपने से बँधसके... संजय को! क्या वो सिर्फ़ उससे खेलना चाहता था.. उसके साथ जीना नही.. ऐसा कैसे हो गया? उसने तो जब भी देखा,, संजायकी आँखों में प्यार ही देखा था.. उसके लिए.. या फिर ये मेरा भ्रम है... ख़यालों में खोए खोए ही वो होटेल के कमरे में जा पहुँची.. कैसे संजय ने उसके रोम रोम को आहलादित कर दिया था.. कैसे संजय के होंटो ने उसके होंटो को पहली बार मर्दाना गर्मी का अहसास कराया था.. पहली बार वो पागल सी हो गयी थी.. जाने कैसे वो खुद को काबू में कर पाई.. नही तो संजय उसके दिल के साथ उसके सरीर को भी भोग चुका होता...
गौरी के हाथ अपनी जांघों के बीच वहीं पहुँच गये जहाँ कल संजय पहुँच गया था.. उसने अपनी पट्टियों को वैसे ही कुरेड कर देखा... पर अब वो मज़ा नही था जो पहले आता था गौरी को," संजय ने ये क्या कर दिया... नही... मैं ऐसा नही होने दूँगी... मैं संजय को अपने पास लेकर अवँगी.. जिंदगी भर के लिए.. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े..."
सोचते सोचते गौरी बाहर आई और किताबें उठा ली.. पर आज उस'से पढ़ा ही नही जा रहा था.. उसके दिल में ख़ालीपन सा घर कर गया.. शरीर में भी...

अगले दिन जब वा एग्ज़ॅम सेंटर पहुँची तो संजय गेट पर ही खड़ा था.. निशा अंदर जा चुकी थी..
"संजय!" गौरी ने उसके पास खड़ी होकर दूसरी और देखते हुए उसको आवाज़ लगाई..
"अब क्या रह गया है!" संजय अभी तक उस 'से नाराज़ था..
"मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ! अपने बारे में.. नही... हम दोनो के बारे में..." गौरी ने आ रही एक लड़की को देखते हुए कहा..
"बोलो!" बाहर से संजय रूखा होने की भरपूर कोशिश कर रहा था... पर उसके दिल की खुशी उसकी आवाज़ से झलक उठी थी... वो भी तो हमेशा के लिए गौरी को अपना बना लेना चाहता था...
"अभी नही! कल हमारे पेपर्स ख़तम हो जाएँगे... तुम कल रात 11 बजे हमारे घर आना.. चुप चाप.. फिर बात करेंगे.." कहने के बाद गौरी ने ज्वाब का इंतज़ार नही किया... वो जान'ती थी.. संजय ज़रूर आएगा...

संजय जाती हुई गौरी के कुल्हों की लचक को देखकर तड़प गया.. रात को बुलाने का मतलब! .... अपने आप ही मतलब निकल कर उसकी आँखें चमक उठी...." बस अब सिर्फ़ कल का इंतज़ार है.. कल रात 11 बजे का...

दिशा और वाणी के दो दिन बाद पेपर ख़तम होने वाले थे.. वो उसके बाद घर जाने वाली थी... महीने भर के लिए.. यूँ तो उनकी मम्मी पापा से लगभग रोज़ ही बात हो जाती थी... पर फोन पर वो लाड प्यार कहाँ था जो वाणी को और दिशा को घर पर मिलता था.. उसकी मम्मी उनसे बात करते करते काई बार रो उठी थी.. वाणी को अब जल्द से जल्द घर जाना था.. बस एक बार पेपर ख़तम हो जायें.," दीदी! मैं अपनी हाफ पॅंट बॅग में रख लूँ..."
"ना वाणी! गाँव में बुरी लगेगी..."
"लेने दो ना दीदी.. मुझे बहुत अच्छी लगती है.. अपनी सहेलियों को दिखावँगी..!"
"मुझे पढ़ने दे.. जो मर्ज़ी कर ले, मेरा दिमाग़ मत खा बस.."

"दीदी! मैं भी तो रात को पढ़ती हूँ.. तुम भी पढ़ लेना. रात को ही..." वाणी ने गर्दन नीची करके.. अपनी आँखों को शरारती ढंग से उपर उठा कर दिशा को देखते हुए कहा!
"बताऊं क्या तुझे?" और दिशा की हँसी छूट गयी.. वाणी को मालूम था.. आज तीसरा दिन था और रात को शमशेर दिशा को पढ़ने नही देगा... वैसे भी 2 दिन बाद दिशा शमशेर को अकेला छोड़कर गाँव जा रही है...
वाणी ने दिशा को चिडाने वाला वही पुराना तराना छेड़ दिया...," तुम्हारे सिवा कुछ ना..."
दिशा चप्पल उठा कर वाणी को सबक सिखाने दौड़ी.. पर वो कहाँ हाथ आने वाली थी.. दरवाजा खोल कर जैसे ही वाणी बाहर निकालने को हुई बाहर से आ रहे टफ से टकरा गयी... भिड़ंत जबरदस्त थी.. वाणी सहम गयी," देखो भैया दिशा... नही! मैं तो आपसे बात ही नही करती.." वाणी अब संभाल गयी थी..
"क्यूँ बात नही करती वाणी.. और दिशा को क्या देखूं.." टफ ने अंदर आते हुए वाणी से पूछा....
"कुछ नही.. वाणी शरारती हो गयी है.." दिशा ने पानी के गिलास वाली ट्रे टफ की और बढ़ते हुए कहा.....
वाणी ने ब्लॅकमेलिंग चालू कर दी," मुझे सबका पता है.. कौन शरारत करता है.. मैं कुछ नही बोलती तो इसका मतलब मुझे ही शरारती साबित करदोगे सब.. मैं सबका रेकॉर्ड रखती हूँ.. हां!"
"जा वाणी चाय बना ले.. तुझे पढ़ना तो है नही.." टफ ने कहा और वाणी चाय बनाए किचन में चली गयी.. शमशेर के आने का समय हो गया था...

"मम्मी! मैं ज़रा विनय के पास जा रहा हूँ" अगर ज़्यादा लेट हो गया तो शायद वहीं सो जवँगा... चिंता मत करना!" अगले दिन रात के करीब 9:00 संजय ने नहा धोकर तैयार होते हुए कहा.

"खाना तो खा जा!" मम्मी की किचन से आवाज़ आई...
"नही! मम्मी, मैं वही खा लूँगा" संजय को पता था; अगर उसके पापा आ गये तो इश्स वक़्त उसको निकलने नही देंगे..
"भैया! ज़रा ये क़ुईसचन तो समझाना एक बार!" निशा ने अपने बेडरूम से आवाज़ दी..
"आता हूँ.." संजय उसके रूम की और बढ़ा...
निशा दरवाजे के पीछे खड़ी हो गयी... जैसे ही संजय कमरे में घुसा.. निशा ने दरवाजा बंद किया और उस 'से चिपक गयी... उसने ब्रा नही पहनी हुई थी.... उसकी चूचियों के निप्पल संजय को अपनी कमर में तीर की भाँति लग रहे थे," छोड़ो निशा! ये क्या हर वक़्त पागलपन सवार रहता है तुम पर.. प्लीज़.. मुझे जाना है....
निशा ने उसकी एक ना सुनी.. अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए निशा ने अपने दाँत संजय की कमर में ज़ोर से गाड़ा दिए..
"आ.. मार गयाआ!" संजय ने घूम कर अपने को चुडवाया..," निशा हद होती है.. बेशर्मी की.. तुम्हे पता है.. ये ग़लत है.. फिर भी!"
निशा ने उस पर ताना कसा..," उस्स दिन ग़लत नही था; जब तुमने पहली बार मुझको
नंगा किया था और...."
"मत भूलो निशा.. उस्स दिन तुमने मुझे उकसाया था.." संजय ने अपना बचाव करने की कोशिश की....
निशा ने गुस्से में अपनी नाइटी उतार फैंकी.. उसका एक एक अंग' प्यार की आग में झुलस रहा था.. उसकी चूचियाँ पहले से कुछ मोटी और सख़्त हो गयी थी.. उसके भाई के प्यार से खिली वो काली अब गुलाब से भी मादक हो चुकी थी..," लो आज फिर उकसा रही हूँ... आज क्यूँ नही करते!" उसने दरवाजे की और देखा.. कुण्डी उसने लगा दी थी.. उसकी चूचियाँ उसकी आवाज़ की ताल से ताल मिला कर नाच रही थी..
"पर अब मुझे अहसास हो गया है निशा.. मैं ग़लत था.. मुझे माफ़ कर दो.. मुझे जाना है.." संजय ने अपने हाथ जोड़ कर निशा से कहा..
"ये क्यूँ नही कहते की अब तुम्हे तुम्हारी 'गौरी' मिल गयी है.... मैं किसके पास जाउ.. बोलो.. मेरे यहाँ आग लगती है.. मेरे यहाँ आग लगती है...." निशा ने अपनी पनटी और अपनी छातियों पर हाथ रखकर कहा...," तुमने ही मुझे ये सब सिखाया है.. अब वापस कैसे आ सकते हैं संजय!.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ..." निशा की आँखें भर आई....
"निशा.. प्लीज़.. हम इस बारे में कल बात करते हैं.. अभी मुझे जाने दो प्लीज़.." संजय भी जानता था की वो बराबर का.. बुल्की निशा से कहीं ज़्यादा इस हालत के लिए दोषी है..
निशा ने सुबक्ते हुए अपनी आँखों से आँसू पोंछे और अपनी नाइटी उठा कर संजय को रास्ता दे दिया....
संजय ने बेचारी निगाहों से एक बार निशा को उपर से नीचे देखा और बाहर निकल गया......

संजय के बाहर जाते ही निशा फफक फफक कर रो पड़ी.. आख़िर उसके भाई ने ही उसको इश्स आग में झोंका था.. उसने रह रह कर फेडक रही अपनी चूचियों को अपने हाथ से ही गुस्से से मसल दिया.. पर चैन कहाँ मिलता.. इनकी आग तो कोई मर्द ही बुझा सकता था.. उसके दिमाग़ में हलचल मची हुई थी.. अपनी आग बुझाने के लिए.." मैं क्या कर सकती हूँ..." उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई.. टेबल पर 10 रुपए वाली मोटी मोमबत्ती रखी थी.. उसने मोमबत्ती उठा कर अपनी उंगलियों का घेरा उस्स मोमबत्ती पर बनाया.. मोटी तो उसके भाई के लंड से ज़्यादा ही थी..," क्या ये
काम कर सकती है..?" उसको उस्स पल के लिए वही बेहतर लगा.. पढ़ाई गयी भाड़ में.... वा बाहर गयी," मम्मी मैं सो रही हूँ.. सुबह जल्दी उतूँगी.."
"ठीक है बेटी.. मैं उठा दूँगी.. 4 बजे.. ठीक है?"
"अच्छा मम्मी.." निशा ने अंदर आते ही दरवाजा लॉक कर लिया.. अपनी निघट्य और पनटी उतार दी.. ड्रेसिंग टेबल को खींच कर बेड के सामने कर दिया.... एक रज़ाई को गोल करके उससे अपनी कमर सटा कर मिरर के सामने बैठ गयी..
निशा ने अपनी टाँगों को खोल कर ड्रेसिंग टेबल पर मिरर के दोनो और रख लिया....
उसकी नज़र अपनी आज तक 2 बार ही शेव की गयी चूत पर पड़ी... चूत तो पहले ही जलते कोयले की तरह गोरी से लाल हो चुकी थी.. उसकी खूबसूरती देखकर उसका चेहरा भी लाल हो गया...
मोमबत्ती कुछ जली हुई थी.. वा उठी और टेबल के ड्रॉयर से ब्लेड निकल लाई.. बड़ी मेहनत से उसने मोमबति के अगले भाग को तराश कर सूपदे जैसा सा बना लिया.. वासना की आती देखिए की उसने उस 'सूपदे' में आगे एक प्यारा सा छेद भी बना दिया, मानो उस्स छेद में से रस निकल कर उसकी चूत को ठंडक देगा.... उसने उसके इस कामचलू लंड को गौर से देखा... ऐसा वो पहली बार कर रही थी..
निशा मोम के लंड को अपनी टाँगों के बीच ले आई और चूत के उपर लगाकर शीशे में देखने लगी.... "ये चिकना कैसे हो?..
निशा ने अपनी उंगलियों पर ढेर सारा थूक लगाया और उसको मोम्लंड पर लगाने लगी.. उसकी चूत उसी को देख कर पिघलने लगी.... मोमबत्ती के लंड को उसने अपनी छातियों पर रगड़ा.... मज़ा आया.. वो फीलिंग ले रही थी.. जैसे उसने अपने भाई का लंड उधार ले लिया हो..
निशा उठी और घूम कर अपनी गांद की रखवाली कर रहे अपने मोटे मोटे चूतदों और उनके बीच में कसी हुई गहरी घाटी को देखने लगी.. ये लंड सिर्फ़ उसी का था.. उसने अपने चूतदों के बीच 'लंड' फसा दिया और अपना हाथ हटाकर उसको देखने लगी.. लंड कसी हुई फांकों के बीच में टंगा रह गया.. निशा खुद पर मुश्कुराइ.. वा बेड के उपर झुक कर कुतिया बन गयी.. उसकी चूत की रस भारी पत्तियाँ उभर आई.. बाहर की और...
शीशे में देखते हुए ही उसने अपनी चूत के मुँह पर उसका अपना लंड रखा और उसको रास्ता बताने लगी.. चूत की पत्तियाँ उसके स्वागत में खुल गयी.. निशा ने अपने हाथ से दबाव डाला.. चूत एक बार हुल्की सी बरस कर तरीदार हो चुकी थी... दबाव डालने के साथ साथ वो अंदर होता चला गया.. निशा ने अपने मुँह से हुल्की सी सिसकी निकाली.. ताकि चूत को बेवकूफ़ बना सके.. की लंड ओरिजिनल है.. पर कहाँ.. उसमें वो मज़ा कहाँ था.. चूत ने कोई खास खुशी नही जताई.. पर काम तो पूरा करना ही था... निशा सीधी हो गयी..
फिर से रज़ाई के साथ अपनी कमर लगा कर उसने टांगे खोली और कामचलू हथियार अपनी चूत में फँसा दिया..
निशा ने अपनी आँखें बंद की और अपने भाई को याद करके वो खिलौना अंदर बाहर करने लगी.. ज़ोर ज़ोर से... सिसकियाँ लेलेकर... अब उसको शीशे की ज़रूरत नही थी.. अब उसके सामने उसका भाई था.. उसकी बंद आँखों से वो देख रही थी..
निशा की स्पीड बढ़ती चली गयी.. और करीब 3 मिनिट बाद उस लंड को अपनी चूत में पूरा फँसा कर अकड़ कर सीधी लेट गयी.. आख़िर कार उसने चूत को आज तो बेवकूफ़ बना ही दिया.. पर उसको ओरिजिनल लंड की सख़्त ज़रूरत थी.. चाहे किसी का भी मिले...
रस बहने के काफ़ी देर बाद उसने मोमबत्ती को बाहर निकाला.. और किताबों के पीछे रख दिया... अब वो कम से कम आज तो चैन से सो ही सकती थी.......

करीब 10:50 पर गौरी धीरे से उठी और लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी... उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.... जाने क्या होने वाला था.. पर गौरी फाइनल कर चुकी थी.. संजय को अपनी दुनिया में लाकर रहेगी.. चाहे उसको कुछ भी करना पड़े...
गौरी ने दोनो बेडरूम्स के दरवाज़ों पर कान लगा कर देखा.. कोई आवाज़ नही आ रही थी.... कुछ निसचिंत होकर गौरी ने जाली वाले दरवाजे से अपने दोनों हाथों को सेटाकर उनके बीच से बाहर देखने की कोशिश की...

करीब 1 घंटे से दीवार फाँद कर चारदीवारी के अंदर आ चुका संजय लाइट ऑन होते ही चौकस हो चुका था.. वह कार के पीछे अंधेरे में बैठा था और जैसे ही उसने गौरी को दरवाजे से झँकते देखा.. उसने आगे उजाले में अपना हाथ हिलाया..
"संजय आया हुआ है.. ये देखकर गौरी का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा... अभी तक उसको पूरा विस्वास नही था की संजय आएगा भी या नही....
वा बिना आवाज़ किए दरवाजा खोल कर बाहर निकली और घर की दीवार के साथ साथ थोड़ा आगे अंधेरे में जाकर खड़ी हो गयी...
हरी झंडी मिलते ही संजय झुक कर बाउंड्री के साथ साथ गौरी की और बढ़ गया.. और उससे करीब एक फुट जाकर खड़ा हो गया," हां! क्यूँ बुलाया था..?"
गौरी ने मुड़कर दरवाजे की और देखा," मुझे डर लग रहा है संजय.."
"तो वापस जाओ ना.. जाओ?" संजय अब की बार अपनी तरफ से पहल नही करना चाह रहा था........
"क्या हुआ? अभी तक नाराज़ हो क्या.." रात के सन्नाटे में सिर्फ़ कानो तक पहुँचने वाली आवाज़ भी ऐसी लग रही थी मोनो सबको जगा देगी...
"सुनो! .. वो.. क्या घफ़ के पीछे वाली साइड में चलें... वहाँ एक कमरा सा है.." गौरी ने संजय को जी भर कर देखते हुए कहा..
संजय उसकी और देखता रहा.. गौरी ने उसका हाथ पकड़ा और अपने पीछे खींचा...
चोरों की तरह चूपते छुपाते घर के पीछे वाले एक बेकार से कमरे में पहुँच गये.. शायद ये कमरा पहले जानवरों के लिए प्रयोग किया जाता होगा... अब वो पहले से अधिक सेफ थे.. और घर वालों से दूर भी...
संजय ने फिर सवाल किया..," जल्दी बोलो! क्यूँ बुलाया था.. या मैं जाउ..." गौरी को बाहों में लपेटने की इच्छा वो जाने कैसे दबा पा रहा था...
"वो चंडीगड़ वाली कौन है..?" गौरी ने संजय की आँखों में देखते हुए अपने नाख़ून कुतरने शुरू कर दिए..
"चंडीगड़ वाली..?... कौन चंडीगड़ वाली..." संजय की कुछ समझ में ना आया..
"मुझे उल्लू ना बनाओ.. निशा ने सब बता दिया है..." गौरी ने अपना गुस्सा दिखाया..


क्याअ?.! निशा ने तुमको ऐसा कहा.." असचर्या की लकीरें संजय के माथे पर छा गयी.. अपनी वफ़ा दिखाने के लिए संजय ने गौरी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया...
"क्यूँ क्या ये झूठ है?.. उसने तो मुझे ये भी बताया था की तुम मुझसे शादी करने के बारे में सोच भी नही सकते..!" गौरी ने संजय को थोड़ा और झटका दिया...
"तुम्हे क्या लगता है गौरी.. मेरी आँखों में एक बार देखो तो सही..!" पिछे वाली गली में लगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी उनको एक दूसरे की आँखों में झाँकने का मौका दे रही थी...
"मुझे तो नही लगता.. की.. निशा को मुझसे झूठ बोल कर कोई फयडा होगा..!" गौरी की बात में तो डम था.. पर संजय समझ चुका था की निशा ऐसा क्यूँ कर रही है.......
संजय के हाथो से अनायास ही गौरी के हाथ फिसल गये.. कुछ ना बोल कर वा सोचता ही रहा की उसकी ग़लती उसको आज कितनी महनगी पड़ रही है.. बेहन से संबंध बनाने की ग़लती....
"सोच क्या रहे हो.. क्या तुम सिर्फ़ मेरे शरीर से प्यार करते हो..?" गौरी अपनी बात का जवाब हर हालत में चाहती थी...
"गौरी...! अगर मुझे सिर्फ़ तुम्हारे शरीर से प्यार होता तो मैं आज यहाँ ना आता.. ये जानते हुए भी की तुम मुझे हाथ तक नही लगाने दोगि... मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी.. इसीलिए एक घंटे से यहाँ बैठा हुआ हूँ.. 11 बजने का इंतज़ार मुझसे नही हो सका..
"क्या सच में?" गौरी के चेहरे पर संतोष और प्यार के भाव आसानी से पढ़े जा सकते थे...," पर निशा ने ऐसा क्यूँ कहा?"
गौरी की बात का जवाब संजय के पास था.. पर वह बोलता भी तो क्या बोलता...
"मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ.. संजय! इश्स वादे के साथ की अगर तुम हर हालत में मेरे साथ जीने की कसम खाओ तो मैं अपने आपको दुनिया की सबसे ख़ुसनसीब लड़की समझूंगी..."
"मुझे नही पता ऐसा क्यूँ है.. पर मैं तुमको पाने के लिए दुनिया से भीड़ सकता हूँ... दुनिया को झुका सकता हूँ या दुनिया छोड़ सकता हूँ.. मैं तुमसे प्यार करता हूँ गौरी..! दिल से....
गौरी भावुक हो गयी.. उसने अपने गुलाब की पंखुड़ी जैसे सुर्ख लाल होन्ट संजय के गाल पर टीका दिए.. संजय ने कुछ नही किया.. बस आँखें बंद कर ली...
"क्या आज मुझे गले से नही लगाओगे..?" गौरी ने संजय को अपनी बाहों में आने का निमंत्रण दिया..
"नही.. गौरी.. मैं तुम्हे यकीन दिलाना चाहता हूँ की मैं तुम्हारे शरीर से नही.. बुल्की तुम्हारे कोमल दिल से प्यार करता हूँ..."
"आ जाओ ना..!" कहते हुए गौरी ने संजय को अपनी छातियों से चिपका लिया.. संजय ने अपनी बाहें गौरी की कमर में डाल दी.... और उसको अपनी और खींच लिया..
आज गौरी को शरीर में अजीब सी बेचैनी का अहसास हो रहा था.. वह मन ही मन संजय को अपना सब कुछ सौप देना चाहती थी..
"मुझे परसों की तरह पकड़ लो ना... संजू!" गौरी की साँसों से मदहोशी की बू आ रही थी..
"कैसे?"
"जैसे होटेल में..." गौरी ने अपनी छातियों का दबाव बढ़ा दिया....
"पर वो तो तुम्हे पसंद ही नही है.." संजय अपना हाथ गौरी की कमर में फिरा रहा था.. पर कमर से नीचे जाने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी....
"मुझे कुछ नही पता.. तुम करो... जैसा तुम चाहते हो तुम करो... मुझे हर जगह से छू लो संजू.. मुझे पूरी कर दो..." गौरी निस्चय कर चुकी थी.. उसको संजय को अपना सब कुछ देकर उसका सब कुछ सिर्फ़ अपने लिए रख लेना है..
"काबू करने की भी तो कोई हद होती है.. और अब तो गौरी का ही निमंत्रण मिल गया था....
संजय के हाथ उसके कमाल से भी ज़्यादा सेक्सी चूटरों की दरार पर अपनी दस्तक देने लगे...
"आ संजू..." गौरी ने अपनी एडियीया उठा ली, ताकि संजय के हाथ जहाँ जाना चाहें वहाँ तक जा सकें... उसने संजय के होंटो को अपने होंटो की तपिश का अहसास कराया....
संजय ने जीभ उसके मुँह में डाल दी.. और उंगलियाँ उसकी गांद में.. उसकी चूत के द्वार तक..
"गौरी मदहोशी में उछाल पड़ी... उसकी आइडियान और उपर उठ गयी.. उसकी टाँगें और ज़्यादा खुल गयी....
"कौन है?" अचानक राज ने पिछे से आकर दोनो के होश उड़ा दिए... राज ने संजय का गला पकड़ लिया.....
"गौरी की घिग्गी बाँध गयी.. संजय ने एक ज़ोर का झटका राज के हाथों को दिया.. और एक ही झटके में दीवार कूद कर भाग गया........

राज ने गौर से गौरी को देखा.. उस्स प्यार की प्यासी गौरी के लाल चहरे का रंग.. अचानक ऊड गया... वह नज़रें झुका कर नीचे देखने लगी.......
"वह उतनी शर्मिंदा नही थी.. जितना राज उसको करने की सोच रहा था.....
"शरम नही आई तुझे रात को..... ऐसे बाहर आकर.." राज ने अपना दाँव लगाने की सोची..
"नही.. मुझे उतनी शर्म नही आई.. जितनी आपको आनी चाहिए.. अपनी बीवी के होते हुए अंजलि दीदी के साथ ग़लत होने के लिए.." गौरी ने नहले पर दहला मारा और वहाँ से बाहर निकल गयी.......
पर उसको अचंम्बुआ था... दुनिया से भिड़ने की कसम खाने वाला संजय.. एक आदमी के सामने भी ठहर ना पाया....
"निशा सही कह रही थी... वो ऐसा ही है... गौरी को रोना सा आ गया... वह अपने बिस्तेर पर गिरकर सोचने लगी..

मनु 2 दिन बाद भी वाणी की खुमारी को अपने दिमाग़ से नही निकल पा रहा था.. रह रह कर उसकी हँसी उसके कानो में गूँज उठती.. और इसके साथ ही अकेले बैठे मनु के होंटो पर मुस्कान तेर जाती.. क्या बकरा बना था वो उस्स दिन..
मनु किताब बंद करके चेर से अपना सिर सटा कर बैठ गया.. आज तक उसने कभी किसी लड़की में रूचि नही दिखाई थी.. स्कूल की लगभग सभी लड़कियाँ उसके लिए दीवानी थी.. उसका दिमाग़ जो इतना तेज था.. यहाँ तक की स्कूल के टीचर उसको मिस्टर.
माइंड बुलाते थे... उसके चेहरे से भोलापन और शराफ़त एक राह चलते को भी दिख जाती थी... सुंदर गोल चेहरा.. गोरा रंग.. मोटी मोटी आँखें और हर दिल अज़ीज स्वाभाव उसकी विशेषतायें थी जो हर किसी को उसका दोस्त बना देती थी.. पहली नज़र में ही हर लड़की उसको देखकर उसको हेलो बोलने को तरस जाती थी.. फिर. स्कूल की तो बात ही कुछ और थी.. सब उसके ईईटिअन बन'ने की बात ज़ो रहे थे....
कोई लड़की उसके पढ़ाई के प्रति जुनून को नही डिगा सकी थी.. सिवाय वाणी के...
"मानी!" मनु ने मानसी को पुकारा.
"आई भैया!" मानी अगले मिनिट ही उसके कमरे में थी..
"यहाँ बैठहो, मेरे पास!" मनु ने साथ रखी चेर की तरफ इशारा किया..
मानसी कुर्सी पर बैठ कर मनु के चेहरे को देखने लगी," क्या है भैया?"
"मानी! क्या ... वो कल सच में ही मैं बहुत बुरा लग रहा था.. उल्टी शर्ट में..
"नही तो.. मुझे तो नही लगे.. क्यूँ?" मानसी की समझ ना आया.. मनु कल की बात आज क्यूँ उठा रहा है..
"नही.. बस ऐसे ही..... फिर वो लड़की ऐसे क्यूँ हंस रही थी.. घर में तो किसी से भी चूक हो सकती है.. आक्च्युयली मैने रूम में वो शर्ट..."
"ओह! छोड़ो भी.. वो तो ऐसे ही है.. स्कूल में भी सारा दिन ऐसे ही खुश रहती है.. वो तो मौका मिलने पर टीचर्स तक को नही बक्षति.. पर पता नही.. फिर भी उससे सभी इतना प्यार करते हैं.. कोई भी बुरा नही मानता उसकी बात का..." मानसी पता नही वाणी का गुणगान कर रही थी या उसकी आलोचना... पर मनु उसके बारे में सब जान लेना चाहता था..," कहाँ रहती है.. वाणी..?"
"अरे यही तो रहती है.. सेक. 1 में ही... अगले रोड पर 1010 उन्ही का तो घर है.. वो कोने वाला! पर क्यूँ पूछ रहे हो?" मानसी ने अपने कमीज़ के कोने को मुँह से चबाते हुए तिरछी नज़र से मनु को देखा.. उसकी समझ में कुछ कुछ आ रहा था...
"नही.. कुछ नही.. मुझे क्या करना है उसके घर का.. मैं तो बस ऐसा ही पूछ बैठा था.." मनु अपनी बेहन को अपने दीवानेपन से रूबरू कैसे करता..

"ठीक है भैया! अब मैं जाउ..?" मानसी ने खड़े होते हुए पूछा..
"ठीक है.. जाओ.."
"एक मिनिट रूको...! वो आएगी क्या फिर कभी.... यहाँ?"मनु वाणी को एक बार और देखना चाहता था...
"नही तो.. वो तो आज अपने घर जा रही है.. हमारे एग्ज़ॅम ख़तम हो गये ना...!"
"क्या?.." फिर मनु अपने आपको संभालता हुआ बोला," तुम मिलॉगी नही क्या उससे जाने से पहले?"
"क्यूँ?" मानसी समझ रही थी.. वाणी का जादू उसके भाई पर भी छा गया है.."
"अरे हर बात में क्यूँ क्यूँ करती रहती है.. इतने दीनो बाद आएगी वापस.. तुम्हे मिलकर आना चाहिए...
आख़िर तुम्हारी दोस्त है वो..."
"फिर क्या हुआ भैया? हम आज ही तो मिले थे.. हुँने तो एक महीने के लिए एक दूसरे को गुड बाइ बोल भी दिया है... मुझे नही जाना.. अब मैं जाउ..?"
"जा... ख्हम्ख मेरा टाइम वेस्ट कर दिया.." खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे के अंदाज में मनु बड़बड़ा उठा...
मानसी बाहर चली गयी.. बाहर जाते ही उसको वाणी का प्यारा चेहरा याद आ गया... उसका भाई उसका दीवाना हो गया लगता था.. वाणी के बारे में पूछते हुए उसकी आँखों में चमक और चेहरे पर शरम का अहसास इश्स हक़ीकत को बयान कर रही थी की कुछ तो ज़रूर है उसके दिल में...
सोचकर मानसी मुस्कुरा पड़ी.. कितनी अच्छी जोड़ी लगती है दोनो की... वा उल्टे पाँव मनु के कमरे में गयी..," भैया मुझे वाणी से मिलने जाना है.. एक बार साथ चल पड़ोगे क्या??"
"कक्यू..न मैं क्या करूँगा..?" फ्री में लगी जैसे लाखों की लॉटरी के बारे में सोचकर उसकी ज़ुबान फिसल गयी.. जो उसका दिल कहना चाह रहा था, कह नही पाई...
"अकेली तो मैं नही जवँगी.. उनके कुत्ते से मुझे बड़ा दर लगता है... ठीक है रहने दो.. कोई खास काम भी नही था..."
मानसी के मुड़ते ही मनु ने उसको रोका," मैं तोड़ा नही लून... !"
"अरे नहाए धोए तो बैठे हो...!"
"नही प्लीज़.. बस 10 मिनिट लगवँगा.. मुझे उससे बहुत डर लगता है.. जाने क्या कह देगी.."
"ओ.क.!" मानसी हँसने लगी.....

दिशा और वाणी अपना समान पॅक करके बैठी थी...," वाणी! जल्दी से नहा ले नही तो उनके आने के बाद देर लगेगी.. तेरा दिल नही कर रहा क्या घर जाने का?" दिशा ने वाणी के कंधे पर हाथ रखा...
वाणी अपना कंधा उचका कर खड़ी हो गयी..," कर रहा है दीदी... बहुत मन कर रहा है.. पर जीजू अब्भी तक नही आए..!"
"तू नहा तो ले पहले.. और वो अभी आने ही वाले होंगे... आते ही निकल पड़ेंगे..." दिशा ने उसको बाथरूम में धक्का दे दिया....
तभी दिशा का मोबाइल बाज उठा... शमशेर का फोन था..
"क्या बात है आना नही क्या?" दिशा ने मीठा गुस्सा करते हुए बोली..
"आ रहा हूँ ना मेरी जान.. थोड़ा फँस गया हूँ.. एक घंटा लगेगा. वो तुम्हे अपना समान लेना था ना... सॉरी.. अगर बुरा ना मानो तो तुम खुद ही ले आओ तब तक.. नही तो और लेट हो जवँगा.."
"पहले कभी लाए हो.. जो आज लाओगे.. मैं क्या तुम्हारी शेविंग क्रीम नही लाती.. ठीक है.. फोने रखो.. मैं अभी ले आती हूं जाकर.."
"बाइ जान.." कहकर शमशेर ने फोने काट दिया..

दिशा ने दरवाजा खोलही था की दरवाजे पर मानसी और एक लड़के को देखकर चौंक पड़ी..," मानसी तुम!"
"हां दीदी.. मुझे वाणी से मिलना था.. फिर तो ये चल! जाएगी.. ये मेरे भैया हैं..!"
मनु ने दिशा को दोनो हाथ जोड़कर नमस्ते किए.. हालाँकि वो उससे करीब साल भाई छोटी थी.. पर मेक उप में वो कुछ बड़ी लग रही थी...
दिशा ने मनु को गौर से देखा.. बड़ा ही भोला और शकल से ही किताबी कीड़ा लग रहा था..
"मानसी! मेरे साथ एक बार मार्केट तक चलेगी क्या..?"
"क्यूँ नही दीदी.. भैया बाइक लेकर आए हैं.. इनको ले चलें.."
"दिशा ने मानसी का हाथ दबा कर कहा," नही! बस दो मिनिट में आ जायेंगे... आप अंदर बैठो तब तक.. हम अभी आए..." दिशा ने मनु की और देखकर कहा और मानसी का हाथ पकड़ कर खींच ले गयी...
"दीदी.. भैया को ले ही आते..!"
"अरे कुछ पर्सनल सामान लाना है... समझा कर...

मनु की ब्चैन निगाहे कमरे के कोने कोने तक अपने होश उड़ाने वाली की तलाश में भटकने लगी.. पर उसको दीवार पर टाँगे वाणी के 24'' बाइ 36'' के मुस्कुराते हसीन फोटो के अलावा कोई निशान दिखाई ना दिया.. वाणी मनु की और ही देख रही थी.. मानो कह रही हो," मैं तुम्हारी ही तो हूँ..."
मनु उसकी बिल्लौरी आँखों में झँकते हुए सपनों की दुनिया में खो गया," आइ लव यू वाणी!" उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा.. इसके साथ जिंदगी के हसीन सपनो में खोने को मिल जाए तो कोई कुछ भी खोने को तैयार हो सकता है.. कुछ भी.. वाणी मानो एक खूबसूरत लड़की ही नही थी.. कोयल जैसी आवाज़, अपनी सी लगने वाली आँखें, चिर परिचित मुस्कान, खालिस दूध जैसा रंग और सुबह गुलाब पर पड़ी ओस की बूँदों की रंगत वाले दानेदार लज़ीज़ होंटो की मल्लिका; वाणी सिर्फ़ एक सपनो की राजकुमारी ही नही थी.. एक जादूगरनी थी, जिसका जादू सब पर छाया था; किसी ना किसी रूप में.. सबको अपनी पहली मुस्कुराहट से अपना बना लेने वाली वाणी को अब अजीब नही लगता था जब कोई उसमें यूँ डूब जाता.. उसकी तो आदत सी हो गयी थी.. सबको अपना मान कर मज़ाक करना.. किसी की आँखों का बुरा ना मान'ना; चाहे वो आँखें प्यार की हों या हवस के भूखे सैयार की.. कुछ लड़के तो उसकी उनकी तरफ उछली गयी एक प्यारी मुस्कान को ही अब तक सीने में छिपाए बैठे थे, और मान रहे थे की उनके लिए कोई चान्स है शायद; रास्ते बंद नही हुए हैं.. और बेचारा मनु भी इसी विस्वास की ज्योत मान में जगाए.. यहाँ आया था!
एक और बात वाणी में खास थी.. जाने क्या बात थी की यूयेसेस पर कभी कोई ताना नही मारता था.. आते जाते.. उसका जादू ही ऐसा था की उसके बारे में मान में चाहे कोई कुछ सोच भी लेता.. पर अपनी आरजू को कभी गालियों की शकल दे कर बाहर नही निकल पता था.. सब भीगी बिल्ली बन जाते थे.. ऊस शेरनी को देख कर....
अचानक गोली सी आवाज़ सुनकर वाणी के फोटो के पास खड़ा मनु गिरते गिरते बचा..
" डीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

आवाज़ सुनते ही मनु तस्वीर से निकल कर वापस लौट आया.. हक़ीकत की दुनिया में.. पर उसके हलक से आवाज़ ही ना निकली.. आवाज़ कहाँ से आई है वो तभी समझ सका जब आवाज़ ने उसके कानो में मिशरी सी घोल दी...
"दी... टॉवेल दे दो जल्दी.. मैं ले कर आना भूल गयी थी.."
मनु की नज़र कमरे के साथ दूसरे कमरे के दरवाजे पर गयी थी.... आवाज़ शर्तिया उसी हसीना की थी....
पर मनु क्या कहता.. वो क्या करता.. वाणी की आवाज़ सुनते ही उसका गला बैठ गया.. उसको सामने से देखने के एक बार फिर मिले चान्स ने उसको असमंजस में डाल दिया...
"दीदी! देख लो.. मैं ऐसे ही आ जाउन्गि बाहर.. नंगी.. मुझे फिर ये मत कहना की इतनी बड़ी हो गयी.. अककाल नही आई.. मैं आ जाउ.. ऐसे ही..."

ये बात वाणी के मुँह से सुनकर मनु की कमर में पसीने की लहर करेंट के झटके की तरह दौड़ गयी.... क्या वाणी सचमुच ऐसे ही आ जाएगी.. नही नही..! मैं उसको शर्मिंदा होते नही देख सकता..," तुम्हारी दीदी यहाँ नही है वाणी...!"
"कौन?.. दीदी कहाँ है....."
कुछ जवाब ना मिलता देख वाणी शुरू हो गयी..," बचाओ! बचाओ!... चोर... चोर.. चोर!"
मनु को उसकी इश्स बात पर गुस्सा भी आया.. और हँसी भी.."
"मैं हूँ वाणी... मनु.." फिर धीरे से बड़बड़ाया.. तुम्हारा मनु.. वाणी!"
"मनु... कौन मनु.. दीदी कहाँ हैं.." वाणी अभी तक बाथरूम के अंदर ही थी...
मनु दरवाजे के करीब जा कर बोला..," मानसी का भाई! मानसी लेकर आई थी.. वो और तुम्हारी दीदी बाहर गयी हैं..." अपना नाम तक याद ना रखने पर मनु की सूरत रोने को हो गयी...
"मानसी! .... कौन मानसी.?" कहक्र वाणी खिलखिला कर हंस पड़ी....," मुझे पता है बुधहू! मनु.. उल्टी शर्ट पहन'ने वाला मनु.." कहकर फिर वाणी ने मनु पर बिजली सी गिरा दी.. हंस कर...
[size=large]"बाहर टवल पड़ा होगा.. दे दोगे प्लीज़!" वाणी ने अपन
 
गर्ल्स स्कूल--23

वाणी ने मनु की बात पर कोई ध्यान नही दिया.. वा दर्द से कराह रही थी..," मुम्मय्ीईईईईईई..." वाणी के कूल्हे पर चोट लगी थी..
वाणी की कराह सुनकर मनु सब कुछ भूल गया.. उसने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.. वाणी दरवाजे के पास ही पड़ी.. आँखें बंद किए वेदना से तड़प रही थी.. उसके शरीर पर कोई वस्त्रा नही था.. सिवाय उके हाथ से लिपटे तौलिए के अलावा..
मनु ने उसके हाथ से तौलिए लिया.. जितना उसको धक सकता था.. ढाका और अपनी बाहों में उठाकर बाहर ले आया..
धीरे से मनु ने वाणी को बिस्तेर पर लिटाया और उसके माथे पर हाथ रख लिया.. वाणी की गीली छातियों से वह अपनी नज़र चुराने की पूरी कोशिश कर रहा था...
"वाणी! एक बार कपड़े पहन लो.. कोई आ जाएगा.." मनु की आवाज़ उस्स बेपर्दा हुषण के सामने काँप रही थी..
वाणी को अब तक कोई होश ही नही था की वा किस हालत में है और किसके सामने है.. और जब अहसास हुआ तो सारा दर्द भूल कर बिस्तेर पर पड़ी चादर में अपने को समेटने की कोशिश करने लगी.. मनु खड़ा हुआ और वाणी की करोड़ों की इज़्ज़त को चादर में लपेटने में मदद करने लगा..," सॉरी वाणी.. मैं..."
"मेरे कपड़े दो जल्दी.." दर्द में लिपटी शर्म की आँच ने वाणी को पानी पानी कर दिया था.." वो टँगे हुए है.. हॅंगर पर".. वाणी ने अपन आँखों से इशारा किया..
मनु ने कपड़े उसके पास रख दिए और बेचैनी से उसको देखने लगा...
"बाहर जाआआओ!" दर्द कूम होते होते वाणी शरम की गर्त में डूबती जा रही थी..
"ओह हां... सॉरी" कहकर मनु बाहर निकल गया और सोफे पर जाकर बैठ गया...
कुछ देर बाद मनु ने वाणी को पुकारा...," वाणी ठीक हो ना..?"
"हूंम्म्म.." अंदर से वाणी इतना ही बोल सकी...
मनु के दिल को सुकून मिला.. उसने आँखें बंद कर ली.. उसकी आँखों के सामने वाणी का बेदाग बेपर्दा हुषण सजीव सा हो गया..
उस्स वक़्त मनु सिवाय वाणी की हालत पर हुंदर्दी के, कुछ सोच ना पाया था.. पर अब.. करीब 5 मिनिट बाद उसके शरीर में भी हलचल होने लगी..
उसने वाणी को देखा था.. वो भी बिना कपड़ों के.. अगर उस वक़्त सिर्फ़ वाणी के चेहरे के एक्सप्रेशन को भूल जायें तो हर अंग पागल करने की हद तक खिला हुआ था... उसकी सेब के खोल जैसे ढाँचें में ढली मांसल मजबूत छातियों पर पानी की चंद बूँदें ठहरी हुई थी... यहाँ वहाँ.. निप्पल्स दर्द से सिकुड से गये थे.. उसकी नाभि से नीचे तक का पेट किसी सिक़ुरकर बोतल के मध्य भाग की तरह ढलान और उठान लिए हुए था.. उसकी छोटी सी चिड़िया को एक तरफ फैली हुई टाँग ने प्रदर्शित कर रखा था.. उस्स बेपनाह खूबसूरत अंग के बाई और की पंखुड़ी पर बना छोटा सा कला तिल अब मनु के मर्डाने को जगा रहा था.. उसकी फाँकें बड़ी ही कोमल थी.. बड़ी ही प्यारी.. बड़ी ही मादक...
जब मनु ने उससे उठाया था तो उसको ऐसा लगा था जैसे रेशम में लिपटी कपास को उठा लिया हो.. इतनी हल्की.. मनु का नीचे वाला हाथ वाणी के पिछले उभारों को समेटे हुए था.. वाणी की आँखें बंद थी.. उसका चेहरा रोता हुआ कितना मासूम लग रहा था.. जैसे कोई 10 साल की गुड़िया हो.. पारी लोक से आई हुई..
वाणी का चेहरा याद आते ही मनु प्यारी उड़ान से अचानक वापस आया.. अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी..
"वाणी..!" मनु ने उसको पुकारा..
कोई जवाब ना आने पर उसने उसके कमरे का दरवाजा खोल दिया..
"नही... प्लीज़.. यहाँ मत आओ! मुझे शरम आ रही है.. बाहर जाओ.." वाणी ने अपना चहरा टवल से धक लिया.. वाणी के लिए अब समस्या यही थी की उस्स उल्टी शर्ट वाले लड़के के मज़े कैसे लेगी...
मनु बाहर वापस आ गया.. उसने वाणी के चेहरे की मुस्कान और हया दोनो को देख लिया था.. अब वा कुछ निसचिंत था.. तभी दिशा और मानसी कमरे में आए.. दिशा ने वाणी को अंदर वाले कमरे में डुबके पाया तो जाकर उसको हिलाते हुए बोली..," चाय वग़ैरह पिलाई या नही.. मनु को!"
"नही दीदी..!"
"तू कभी नही सुधार सकती.. बेचारा तब से अकेला ही बैठा है.. चल उठ कर बाहर आजा.." दिशा ने वाणी को डांटा..
"नही दी.. मुझे नींद आ रही है.." वाणी सोच रही थी की मनु के सामने जाए तो जाए कैसे..
"खड़ी हो ले जल्दी.. चलना नही है क्या.. और ये पुराने कपड़े क्यूँ पहन लिए..?" दिशा ने वाणी को ज़बरदस्ती उठा कर फर्श पर खड़ा कर दिया...
वाणी लंगड़ाकर अपने नये कपड़ों की और चली...
"क्या हुआ वाणी..? क्या हुआ तेरे पैर को" हुल्की सी लचक देखकर ही दिशा घबरा गयी..
"कुछ नही दीदी.. वो.. गिर गयी थी..!"
"कहाँ.. कैसे?.. दिखा क्या हुआ है.." अचानक ही दिशा ने ढेरों सवाल उस पर दाग दिए..
अब तक मानसी को बोलने का मौका ही नही मिला था..," अच्छा वाणी! मैं तो तुमसे मिलने आई थी.. जल्दी आना..!"
वाणी भी जल्दी मनु को भेज देना चाहती थी.. ताकि बाहर आकर चलने की तैयारी कर सके.. अच्छा मानसी.. सॉरी! मुझे दर्द है.."


घर से निकलते ही मानसी ने मनु से पूछा..," वाणी बोली थी क्या तुमसे..?"
"ना!" मनु मन ही मन सोच रहा था.. यहाँ आकर तो बिना बोले ही वाणी ने जाने क्या दे दिया था उसको.. उसने बाइक स्टार्ट कर दी और चल पड़ा........

निशा कुल मिला कर अब तक चार बार मोमबत्ती से अपनी आग बुझाने की कोशिश कर चुकी थी.. पर आग बुझाने की बजे हर बार बढ़ जाती.. भूख तो सिर्फ़ अब आदमी ही मिटा सकता है.. सेक्स की.. अपने अंगों को खुज़ला खुज़ला कर निशा पागल हुई जा रही थी.. अब यूस्क कोई शिकारी चाहिए था.. खुद शिकार होने के लिए.. बेचैन निशा तिलमिलती हुई छत पर आ चढ़ि..
निशा की आँखों के सामने हर उस्स साख़्श का चेहरा घूम रहा था, जिसने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं उसको दूसरी नज़र से घूरा था.. अब चाहे कोई भी हो, पर उसको अपनी चूत के लिए कोई लंड वाला दिलदार चाहिए ही था... कोई भी!
पड़ोसियों की छत की और नज़र दौड़ते हुए अचानक अपने से तीन घर छोड़ कर छत पर खाली कच्चे में खाट पर पड़े राहुल पर जा जमी.. उसका मुँह दूसरी तरफ था और वा कुछ पढ़ रहा था..
राहुल राकेश के गॅंग का निहायत ही आवारा लड़का था.. वा कॉलेज जाता तो था पर पढ़ाई करने नही, खाली बस में आते जाते लड़कियों के साइज़ की पमाइश करना.. और अगर कोई फँस जाती तो उसको शहर में किराए पर लिए हुए अपने कमरे में ले जाकर उसको कली से फूल या फूल से गुलदस्ता बना देने के लिए... निशा ने उसके बारे में काइयों से सुन रखा था...
अचानक राहुल की हरकत देखकर निशा पागल सी हो गयी...
राहुल का एक हाथ किताब खोले खोले ही अपने कच्चे में घुस गया और उपर नीचे होने लगा... निशा सीत्कार उठी.. जिस चीज़ को वो अपनी जांघों के बीच गुम कर लेना चाहती थी.. वो तो राहुल अकेला बैठा हुआ ही बाहर हिला रहा है....
निशा ने बेशर्म होकर एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसकी खत के पास फैंक दिया.. आवाज़ सुनते ही राहुल चौंक कर पलटा.. उसका हाथ बाहर निकल आया था.. लंड को अंदर ही छोड़ कर..
जैसे ही राहुल ने पलट कर देखा.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. पर वा मुंडेर के साथ ही खड़ी रही..
राहुल ने इधर उधर चारों और नज़र दौड़ाई.. पर निशा के अलावा उसको कोई छत पर नही दिखा...
राहुल सोच में पड़ गया.. ये आइटम तो कभी किसी के काबू में ही नही आया था.. वो खुद भी एक बार उसके हाथ से करारा तपद खा चुका था.. क्या.. सचमुच इसी ने.. नही नही... बापू तक बात पहुँच गयी तो जान से मार देगा.. ये सोचकर राहुल अपनी खाट पर वापस आकर लेट गया.. किताब उसने तकिये के नीचे रख दी.. और निशा की तरफ मुँह करके लेट गया.. बिना कोई हलचल किए.. वो रह रह कर तिरच्चि नज़रों से अपनी और देख रही निशा को ही घूरता रहा...
थोड़ी देर बाद राहुल ने कुछ सोचकर वापस मुँह दूसरी और कर लिया.. और अपने कच्चे में फिर से हाथ डाल लिया...
कुछ ही सेकेंड बाद राहुल की खत के पास एक और पत्थर आकर गिरा.. राहुल ने गौर किया.. पत्थर पिछे से ही आया था..
राहुल को अब किसी इशारे की ज़रूरत नही थी...
राहुल निशा की और मुँह करके बैठ गया और एक चादर से अपने दायें बायें को ढाका...
फिर निशा की और देखते हुए उसने अपना लंड निकाल कर उसके सामने कर दिया...
पहले जो निशा उसको तिरछी निगाहों से ही देख रही थी.. इश्स हरकत पर कूद पड़ी.. उसने सीधे उसकी और मुँह करके उसके लंड पर अपनी आँखें गाड़ा ली...
लूम्बाई का पता नही चल रहा था पर मोटा बहुत था... काले साँप जैसा.. उसके भाई से करीब 3/2 गुना मोटा... निशा का हाथ मुंडेर से नीचे अपनी चूत को छेड़ने लगा...
इस तरह बेहिचक निशा को अपनी और देखता पाकर राहुल फूला नही समा रहा था.. उसने खड़े होकर अपना कच्चा जांघों तक सरका दिया.. अब निशा की सीटी बजने की बरी थी... जिसको वो काले साँप जैसा सोच रही थी.. वो तो सच में ही कला साँप निकला.. राहुल ने अपने लंड को हाथ से उठाकर अपने पाते से लगाया था.. वो यूस्क नाभि तक छू रहा था.. निशा को पता नही क्या हुआ.. घबरा कर छत पर बने कमरे में घुस गयी...
नही वा घबराई नही थी.. अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपनी उखाड़ चुकी साँसों को नियंत्रण में किया और फिर दरवाजा बंद करके खिड़की खोल दी.. खिड़की से राहुल छत पर खड़ा सॉफ दिखाई दे रहा था.. पर उसका साँप पीटरे में घुस गया था.. और पिटारा आगे से बिल्कुल सीधा उठा हुआ था.. मानो निशा पर निशाना लगा रहा हो...
निशा ने अपने कमरे की लाइट जला दी.. राहुल उसको कमरे के अंदर से अपनी और देखते पाकर खुस हो गया.. उसने अपना लंड एक बार फिर आज़ाद कर दिया..
निशा सोच रही थी की उसको कैसे बताउ.. उसका साँप मुझे चाहिए है.. और जो तरकीब उसने सोची.. उसने तो राहुल के छक्के छुड़ा दिए..
निशा ने एक ही झटके में अपना कमीज़ उतार दिया.. अगर ब्रा ना होती तो राहुल को अटॅक ही आ जाता.. वो तो निशा को बंद प्रॉजेक्ट मान चुका था अपने लिए, थप्पड़ खाने के बाद.. आज ये घटा उस्स पर कैसे बरसी.. लाइट में राहुल निशा की नाभि से उपर का ढाँचा अपनी आँखों से देखकर व्याकुल हो उठा.. उसने अपनी आँखें मसली.. मानो फोकस चेंज करके सीधा निशा के पास ले जाना चाहता हो... अपनी नज़रों को... पर दूर से भी नज़ारा घायल करने लायक तो था ही.. निशा ने अपने हाथ अपनी ब्रा में फँसा लिए थे.. इशारा राहुल को सपस्त था.. की उसको क्या चाहिए...
राहुल को अपनी और पागलों की तरह देखता पाकर निशा के हॉंसले और बढ़ गये... उसने ब्रा के बाट्टों खोल दिए और अपनी गोरी, गोलाइयों के साक्षात दर्शन ही राहुल को करा दिया..
राहुल का हाथ मशीन की तरह अपने लंड पर चलने लगा.. वा बिना टिकेट मिले इस मौके का हाथों हाथ फयडा उठा रहा था..
राहुल के लगातार फूल रहे लंड को देखकर निशा सिहर गयी... उसकी उंगली भी बिना बताए ही अपने काम पर जुट गयी.. उसका दूसरा हाथ निशा की चूचियों को बारी बारी हिला रहा था... दबा रहा था.. और मसल रहा था...
राहुल के लंड से तेज पिचकारी सी निकल कर उससे करीब 2 फीट दूर रस की बोचर फर्श पर जा गिरी... राहुल मस्ती और रोमांच की अधिकता में सीधा खाट पर जा गिरा... पर निशा तो अब भी भूखी ही रह गयी... उसने उसी वक़्त एक कागज पर कुछ लिखा और अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल आई.. कागज को एक पत्थर में लपेटा और राहुल वाली छत पर फाँक दिया...
राहुल ने पर्चा खोला.. उसकी लॉटरी निकली थी.. आज रात 11 बजे की.. निशा के उपर वाले कमरे में..
राहुल ने निशा की और एक किस उछली और अपने कमरे में चला गया... निशा भी रात के इंतज़ार में खुश होकर नीचे चली गयी...


राहुल ने राकेश के पास फोने मिलाया," आबे साले! तुझे ऐशी खबर सूनवँगा.. की तेरा लंड खड़ा हो जाएगा..."
"और तेरी मा की गांद में घुस जाएगा.. आबे.. अपने बाप से तमीज़ से बात किया कर.. आज कल खड़ा ही रहता है अपना.. साली कोई मिलती ही नही... बैठने वाली.." राकेश ने बात पूरी की..
"आब्बी.. सुन तो ले.. तेरी गंद ना फट जाए तो मुझे कह देना..." राहुल उत्तेजित होकर बोल रहा था..
"अच्छा.. तो ले फाड़ मेरी गांद.. देखूं.. तेरे लौदे में कितना दूं है...?"
"आज तेरी नही.. निशा की गांद फाड़ेंगे.. 11 बजे बुलाया है.. रात को!"
"क्य्ाआआआ!" सच में ही फट सी गयी थी राकेश की.


शमशेर ने वाणी को सारे रास्ते गुमसूँ बैठे देख पूछा," क्या बात है मेरी जान! आज ये फूल मुरझाया सा क्यूँ है?"
वाणी कुछ ना बोली, बाहर की और मुँह करके उल्टे भाग रहे पेड़ों को देखने लगी...
गाँव आ गया था.. गाड़ी की रफ़्तार मंद हो गयी..
वाणी और दिशा कितने दीनो से घर आने की राह देख रही थी.. उत्साह तो वाणी में अब भी था.. पर मनु उसके दिमाग़ से निकालने का नाम ही नही ले रहा था.. आख़िर उसने निर्वस्त्रा वाणी को अपनी गोद में जो उठाया था...
गाड़ी के घर के बाहर पहुँचते ही वाणी की मम्मी भागी हुई आई.. और वाणी और दिशा के नीचे उतरते ही दोनो को अपनी छाती से लगा कर सूबक पड़ी.. यूँ तो वो 2 टीन बार शहर जाकर उनसे मिलकर आ चुकी थी.. पर उनको घर आया देख उसकी पूरण यादें ताज़ा हो गयी," क्या हो गया मेरी लड़ली को.. ऐसे क्यूँ खोई सी है.. क्या अब शहर के बिना दिल नही लगता तेरा.." मम्मी ने वाणी के वीरान से चेहरे को देखकर कहा...
"मामी जी ये उपर कैसा म्यूज़िक बाज रहा है...?"
उपर चल रहे लता राफ़ की आवाज़ में मधुर गीत को सुनकर दिशा ने मामी से हैरत में पूछा...
"बेटी! ये तुम्हारे स्कूल के नये मास्टर जी हैं.. अंजलि मेडम के कहने पर हुँने सोचा, चलो ख़ालीपन तो नही रहेगा घर में.. बहुत ही शरीफ और नएक्दील लड़का है बेचारा.... मम्मी ने शमशेर को पानी देते हुए कहा...
"मैं मिलकर आता हूँ... कहकर शमशेर खड़ा हो गया..
"मैं भी चलूं..." शमशेर की बाँह पाकर कर वाणी बोली...
"तू अब भी इनकी पूंछ ही बनी रहती है क्या?" मम्मी ने हंसते हुए वाणी को कहा...
वाणी बिना कोई जवाब दिए शमशेर के साथ उपर चढ़ गयी...
शमशेर ने उपर जाकर दरवाजा खटखटाया...
"ठहरिए... अभी आता हूँ 10 मिनिट में...
शमशेर ने वाणी की और देखा और दोनो हंस पड़े...," कैसी गधे की दूं है... दरवाजा खोलने में 10 मिनिट लगाएगा...

और वासू ने पुर 10 मिनट बाद ही दरवाजा खोला..," कहिए श्रीमान... देखिए मैं बार बार हाथ जोड़ कर विनती कर चुका हूँ की मैं मार जवँगा पर नारी जाती को टशन हरगिज़ नही पढ़ौँगा... जाने ये सरकार किस बात का बदला वासू शास्त्री से ले रही है की मुझे यहाँ नारियों के विद्यालया में पढ़ाने भेज दिया.. मैने उनको कितना समझाया की नारी नरक का द्वार है.. क्यूँ मुझे धकेल रहे हो.. पर माने ही नही.. कहने लगे की आप जैसे मास्टर की ही तो लड़कियों को ज़रूरत है... चलो सरकार के आगे तो मैं क्या करूँ.. पर टशन पढ़ाना ना पढ़ाना तो मेरे हाथ में है ना.. सो मैने कह दिया.. नो टूवुशन फॉर गर्ल्स... और शाम को केबल टीवी पर अड्वरटाइज़ भी पढ़ लेना.. वासू शास्त्री नारी को नरक का द्वार मानता.. है.. ओक!"
कहते ही वासू ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की.. शमशेर ने अपना हाथ दरवाजे पर लगा कर बोला," शास्त्री जी..हमारी भी तो सुनिए ज़रा.... ये इस घर की बेटी है.. और मैं यहाँ का दामाद..."

वासू की उमर कोई 25 साल .. चेहरे से दुनिया भर की शराफ़त यूँ टपक रही थी मानो बहुत ही ज़्यादा हो गयी हो. उसके कंधे को छू रहे घने बालों से उसकी चोटी 2 कदम आगे ही थी... आँखों पर लगे .5 के गोले चस्में उसकी शराफ़त में इज़ाफा ही कर रहे थे.. स्वेत कुर्ता पयज़ामा पहने शास्त्री जी कुछ विचलित से दिखाई दिए; शमशेर की बात सुनकर..," ये बात कतई विस्वास के लायक नही है की ये देवी आपकी बीवी...."
"ये मेरी साली है बंधु!" शमशेर ने उसी के लहजे में उसकी शंका का समाधान कर दिया..
"तब ठीक है श्रीमान.. पर कुछ तुछ व्यक्ति साली को.. आधी.... समझ रहे होंगे आप मेरी व्यथा को... मैं आज के युग में पैदा होने पर शर्मिंदा हूँ.. शुक्रा है गाँधी जी आज जीवित नही हैं.. नही तो..."
"छोड़िए ना शास्त्री जी.. अंदर आने को नही कहेंगे..!" शमशेर उसकी बातों से पाक सा गया था...
"देखो मित्रा... मुझे ना तो आपको यहाँ से भगाने का हक़ है.. और ना ही अंदर आने की इजाज़त देने का अधिकार.. मैं तो अंजलि जी की कृपा से यहाँ मुफ़्त में ही रह रहा हूँ.." वासू ने नाक पर चस्मा उपर चढ़ते हुए उनको अंदर आने का रास्ता दे दिया...
शमशेर ने अंदर आते ही उसकी टेबल पर दीवार से लगाकर रखी हुई हनुमान जी की मूर्ति देखी.. वासू पूरा ब्रहंचारी मालूम होता था..."क्या पढ़ाते हैं आप.?"
"गणित पढ़ाता हून श्रीमान.. वैसे मुझे याज्याविद्या भी आती है.. मैं शुरू से ही गुरुकुल में पढ़ा हूँ.."
"ओहो... तो ये बात है.." शमशेर ने वाणी का हाथ दबा कर उसको ना हँसने का इशारा किया.. वाणी अपनी हँसी नही रोक पा रही थी..
तभी दिशा चाय लेकर उपर आ गयी," गुड आफ्टरनून सर!" दिशा ने वासू को विश किया..
"प्रणाम!.. तो श्रीमान ये आपकी दूसरी साली है.." वासू ने दोनो एक जैसी जानकार सवाल किया..
"जी नही शास्त्री जी.. ये मेरी बीवी है.. और मुझे शमशेर कहते हैं.. श्रीमान नही.."

शायद दिशा को देख कर एक बार को वासू का ईमान भी डोल गया था.... पर उसको तुरंत ही अपनी ग़लती के लिए हनुमान जी की और हाथ जोड़ कर माफी माँगी...
"चाय लीजिए ना शास्त्री जी.." शमशेर ने कप वासू की और बढ़ा दिया..
"क्षमा करना शमशेर बंधु! मैं बाहर का कुछ नही ख़ाता.. और अगर आपको ना पता हो तो चीनी को सॉफ करने के लिए हड्डियों का प्रयोग किया जाता है.. अगर आप भी मेरी तरह शाकाहारी हैं तो कृपया आज से ही चीनी का प्रयोग बंद कर दें.." वासू ने एक बर्तन से गुड निकल कर शमशेर को दिखाया..," इसका प्रयोग कीजिए.. शुद्ध शाकाहार..! कहकर एक पतीले में ज़रा सा पानी डाल कर गुड उसमें डाल दिया और अपनी चाय गॅस पर बन'ने के लिए चढ़ा दी..
"अच्छा शास्त्री जी! फिर मिलते हैं.. अभी तो मुझे वापस जाना है.. और हन.. यहाँ की कन्याओं से बचके रहना.. सभी नों-वेग हैं.."

"मित्रा! मेरे साथ मेरे हनुमान जी हैं.. लड़कियाँ मेरे पास आते ही भस्म हो जाएँगी.. आप चिंता ना करें... आप कभी वापस आईएगा तो मुझसे ज़रूर मिलीएगा!"
"अच्छा अभी चलता हूँ.." कहकर शमशेर वाणी के साथ बाहर निकल गया..," ये क्या चाकर था.." वाणी ने शमशेर से पूछा.."
"बहुत ही नएक्दील इंसान है... बेचारा!" शमशेर ने वाणी की और देखते हुए कहा...
करीब आधे घंटे बाद शमशेर ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और सबको बाइ कहा.. दिशा उसको बहुत ही कातिल नज़रों से देख रही थी.. जैसे ही शमशेर मुश्कुराया.. दिशा ने उसकी और आँख मार दी..

शमशेर को अब 1 महीना गुजारना था.. अपनी दिशा के बगैर.

संजय के साथ अंशुल को देख कर निशा ख़ुसी से उछाल पड़ी," अंशु तुउउउ!" वह अपने कमरे से भाग कर उसके पास आई..," तू तो कह रहा था.. तू अभी नही आ सकता.. मुंम्म्मिईीईई... अंशु आया है..!"
अंशुल निशा की मौसी का लड़का था.. करीब 3 साल बाद वो अंशुल से मिल रही थी.. निशा के मौसजी की नौकरी वेस्ट बेंगल में थी.. अंशुल भी वहीं रहकर पढ़ रहा था.... अब 9त के एग्ज़ॅम देकर वो अपनी मम्मी के साथ मामा के यहाँ आया हुआ था और वहीं से संजय के साथ आ गया था..
"बस आ गया दीदी.. हम तो कल वापस जाने वाले थे.. पर अब अगले हफ्ते तक यहीं हैं.. सोचा आप सबसे मिलता चलूं..." अंशुल की आवाज़ मोटी हो गयी थी.. तीन साल में..
"अरे.. तेरी तो मूँछे भी निकल आई हैं.." निशा की ये बात सुनकर अंशुल झेंप गया और अपने मुँह पर हाथ रख लिया....
"तो क्या.. मर्द को मूँछे तो आएँगी ही.. देख नही रही, तुझसे भी कितना लंबा हो गया है.. और तगड़ा भी हो गया है मेरा बेटा!" निशा की मम्मी ने अंशुल का सिर पूचकार्टे हुए कहा...
मम्मी के मुँह से 'मर्द' शब्द सुनते ही निशा की नज़र सीधी अंशुल की पंत पर गयी.. मान ही मान सोचा.. अरे हां.. ये तो पूरा मर्द हो गया है... निशा के शरीर में कुछ सोच कर सिहरन सी दौड़ गयी.. ुआकी छातियों ने अंदर ही अंदर अंगड़ाई सी ली... उसकी शानदार गांद में कंपन सा हुआ.. अंशुल मर्द हो गया है...!
निशा की अंशुल से बचपन से ही बहुत छनती थी.. वो अपनी बेहन से ज़्यादा निशा से प्यार करता था.. घर वेल भी इश्स बात को जानते थे... पर करीब 3 साल से वो एक दूसरे के संपर्क में नही आए थे.. इस दौरान निशा गद्रा कर लड़की से युवती बन गयी थी और अंशुल लड़के से मर्द!
निशा रात को राहुल के साथ प्रोग्राम को भूल कर एक नया ही प्लान सोचने लगी.....

खाना खाने के बाद अंशुल संजय के कमरे में चला गया.. जाना तो वा अपनी दीदी के पास ही चाहता था.. पर जाने क्यूँ उसको शरम सी आ रही थी.. जिस निशा से वो 3 साल पहले इतना स्नेह करता था.. आज वो अपने स्नेह का खुलकर इज़हार करने से भी संकोच कर रहा था.. तीन साल पहले तो निशा और उसमें कोई फ़र्क ही नही था.. दोनो बच्चे थे.. हन तब भी निशा की छाती पर दो नींबू ज़रूर थे.. पर इससे अंशुल और उसकी मस्तियों में कोई व्यवधान उत्तपन्न नही हुआ था.. क्यूंकी अंशुल को पता ही नाहो था की वो नींबू उगते क्यूँ हैं लड़कियों को.. पर अब की बात अलग है.. अब तो वो नींबू पाक कर मौसम्मि बन गये थे.. और अब अंशुल को पता भी था.. बेहन की मौसम्मियों पर लार नही टपकाते... उनकी और देखना भी ग़लत बात होती है.. और इसीलिए वो उस'से नज़र मिलने में भी संकोच कर रहा था....
पर निशा तो अपने मन में कुछ पका ही चुकी थी.. वा संजय के कमरे में गयी... अंशुल के पास.. संजय का मूड उखड़ा हुआ था.. दर-असल वा गौरी की याद में डूबा हुआ था...
"भैया! कुछ खेलें.. अंशुल भी आया हुआ है.." निशा ने संजय की जाँघ पर हुल्की सी चुटकी काट'ते हुए बोला...
"नही.. मेरे सिर में दर्द है.. तुम दोनो ही खेल लो.." संजय की समझ में ना आया.. निशा कौँसे खेल की बात कर रही है....
"चेस खेलें अंशुल!" निशा ने चहकते हुए अंशुल से पूछा..
"हन दीदी.. चलो खेलें.." अंशुल खुलकर बात नही कर पा रहा था.. मौसम्मियों वाली दीदी से.. रह रह कर उसका ध्यान वहाँ अटक जाता था..
"संजय! कहाँ है चेस बॉक्स?" निशा ने अपनी आँखों पर कोहनी रखे संजय से पूछा...
"शायद तुम्हारे कमरे में ही है.. और प्लीज़ सोने से पहले मेरे रूम की लाइट ऑफ कर देना...."
"ठीक है... तो हम वहीं खेल लेते हैं.. चलो अंशु!" कहते हुए निशा ने उसको चलने का इशारा किया...
निशा ने संजय के कमरे की लाइट ऑफ कर दी और दोनो निशा के कमरे की और चल दिए...
करीब करीब 9:30 बाज चुके थे, रात के!

"अंशु, तुम चेस लगाओ! मैं अभी आई." निशा ने चेस बॉक्स अंशुल को देते हुए कहा और बाथरूम में घुस गयी.
निशा ने अपनी ब्रा निकल कर कमीज़ वापस पहन लिया.. कमीज़ का गला काफ़ी खुला था और निशा उसे सिर्फ़ रात को ही पहनती थी...
"दीदी! इस घोड़े को कैसे चलते हैं..?" अंशुल ने निशा के बाहर आते ही पूछा..," मैं भूल सा गया हूँ!"
"अभी बताती हूँ.." निशा बेड पर उसके सामने आकर बैठ गयी..
निशा की चूचियों के दानों को किसी कील की भाँति उसके कमीज़ में से बाहर की और निकालने की कोशिश करते देख अंशु के सिर से लेकर गांद तक ज़ोर की लहर 'सरराटे' के साथ गुजर गयी.. दोनो कील सीधे अंशु की आँखों में चुभ रही थी.. फिर भी वह अपने आपको उनकी तरफ बार बार देखने से रोक नही पा रहा था..
निशा अंशु की गरम हो रही ख्वाइशों को ताड़ गयी..," घोड़ा टेढ़ा चलता है.. मैं तुझे सब सीखा दूँगी.. ये मैने अपना प्यादा आगे बढ़ाया.. तुम्हारी बारी.." निशा ने अपनी टाँग फैला कर पालती मारे बैठे अंशुल के घुटने से सटा दी... निशा ने पारेलेल सलवार पहन रखी थी.. टाँग फैलने से उसकी जांघों के बीच की मछली उभर कर दिखने लगी..
अंशुल ने ऐसा नज़ारा आज तक कभी देखा नही था.. जहाँ निशा की टाँग ख़तम हो रही थी, वहीं से वो फूली सी.. मादक पंखों वाली तितली का राज शुरू होता था.. अंशु के माथे पर पसीने की बूँद उभर आई.. उसने अपना हाथी उठाकर प्यादे के उपर से ही 3 खाने आगे सरका दिया..
"ये क्या कर रहा है बुद्धू.. घोड़े के अलावा कुछ भी तुम्हारे प्यादों को पार नही कर सकता..." निशा ने हाथी वापस उसकी जगह पर रख दिया...
"मुझे नही खेलना दीदी.. चलो कुछ और खेलते हैं.." सच तो ये था की उसकी जांघों के बीच उसका लंड इतनी बुरी तरह फेडक रहा था की उसको 'खिलाए' बिना दिमाग़ कही और लग ही नही सकता था..
"क्या खेलें?" निशा ने आगे झुकते हुए अपनी कोहनियाँ बेड पर टीका कर अपने चूतदों को उपर उठा लिया.. और अंशुल की साँसें उखाड़ गयी.. निशा के आम बड़े ही मादक तरीके से झूलते दिख रहे थे.. निशा की साँसों के साथ उसकी चूचियों के बीच की दूरी कम ज़्यादा हो रही थी.. और अंशु की धड़कन उपर
नीचे..
अंशुल बेड से उतार कर घूमा और अपने फनफना रहे लंड को नीचे दबाने की कोशिश की पर नाकाम रहने पर वो बाथरूम में घुस गया...
निशा अंशु के हाथ के हिलने के तरीके से समझ गयी.. की उसका जादू चल गया है...

क्या कर रहे हो अंशु? जल्दी आओ..."
 
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