hotaks444
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निशा की आवाज़ सुनकर अचानक अंशु कल्पना के आकाश से धरती पर गिरा.. निशा की ब्रा से उसकी खुश्बू सूँघता हुआ वा अपनी मुट्ठी को निशा की चूत समझ कर चोद रहा था.. जल्दी जल्दी...! कुछ पल के लिए रुक कर वह फिर शुरू हो गया," आआय्ाआ.. दिददडी!" लंड से पैदा हुए जोरदार झटके की वजह से उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गयी.. अंशु दीवार से सटकार हाँफने लगा..
अंशु ने जल्दी से पसीने से तर अपना चेहरा और वीरया से सन गए अपने हाथ और लंड को धोया और बाहर निकल आया....
"क्या कर रहे थे अंशु..?" निशा ने उसको छेड़ कर उकसाने की कोशिश करी..
"कुछ नही दीदी.. वो... फ्रेश होकर आया हूँ.. अब मैं सोने जा रहा हूँ दीदी.. मुझे नींद आ रही है...." अंशुल दरवाजे की और बढ़ा तो निशा को अपने अरमानो का खून होता हुआ सा लगा...," नही अंशु.. अभी मत जाओ... प्लीज़!"
"क्यूँ दीदी.. और कुछ खेलना है क्या..?"
निशा ने बात को संभाला," हां वो.. मेरा मतलब है की.. अभी तो हमें ढेर सारी बातें करनी हैं... तुम यही रुक जाओ ना.. थोड़ी देर और..."
"ठीक है दीदी.." कहकर अंशुल बेड पर लेट गया...
"अंशु तुम्हे याद है हम बचपन में कौन कौन से खेल खेलते थे..?" निशा ने उसके मुँह के पास मुँह लाकर उसकी बराबर में लेट-ते हुए अपना जादू फिर से शुरू किया... वो जान बूझ कर इस तरह से अंशु से थोड़ा नीचे होकर लेटी थी ताकि अंशु जी भरकर उसकी चूचियों का रस आँखों से पी सके..
और अंशुल कर भी यही रहा था.. उसका जी चाह रहा था की उस'से सिर्फ़ 6 इंच के फ़ासले पर स्थित इस खजाने को दोनो हाथों से लपक ले.. पर वो ऐसा कर नही सकता था.. क्यूंकी उसको अहसास नही था की निशा ने सिर्फ़ उसके लिए वो मस्तियाँ बंधन मुक्त की हैं.. सिर्फ़ उसके लिए!
"हन दीदी, याद है.. हम रेस लगते थे.. कारृूम खेलते थे और लूका छिपी भी खेलते थे.." अंशुल का दिल चाह रहा था की वा खुद को उसकी चूचियों में छिपा ले..
"तुम्हे याद है अंशु.. एक बार बाग में अमरूद के पेड से उतरते हुए तुम्हारी पॅंट फट गयी थी..और.." निशा उस'से नज़रें मिलाए बिना उसको 'काम' की बात पर ला रही थी...
"धात दीदी... आप भी.." अंशुल निशा के सीधे सीधे उसके नंगेपन पर हमले से बौखला गया.. निशा हँसने लगी..
"अच्छा अब तो बड़े शर्मा रहा है.. उस्स वक़्त तो नही शरमाया था तू!... तूने कच्चा नही पहना हुआ था ना.." निशा अंशुल से बोली...
"दीदी प्लीज़.." अंशुल ने अपना चेहरा अपने हातहों से धक लिया..," तब तो मैं कितना छोटा था...
निशा ने ज़बरदस्ती सी करके उसके हाथ चेहरे से हटा दिए... अंशुल की आँखें बंद थी..
"अच्छा.. अब तो जैसे बहुत बड़े मर्द बन गये हो.. है ना.." निशा उसके अपनी वासणपूर्ण बातों से भड़का रही थी.. पर अंशुल उस'से खुल नही पा रहा था..
हां.. निशा को अंशुल के चेहरे की मुस्कान देखकर ये तो यकीन था की उसको भी मज़ा आ रहा है.. इन्न बातों में...
"एक बात बताओगे अंशु?"
"क्या?"
"अंशु ने आँखें बंद किए किए ही जवाब दिया...
"तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त का क्या नाम है?"
"तारकेश्वर! वा पढ़ाई में बहुत तेज है..."
"और..?"
"और... सार्थक.."
"और..?"
"हिमांशु!"
"और?" निशा की आवाज़ गहराती जा रही थी..
"और क्या दीदी... ऐसे तो क्लास के सभी बच्चे दोस्त हैं...
"अच्छा.... कोई... लड़की भी...?" निशा ने रुक रुक कर अपनी बात पूछी...
"नही दीदी... लड़की भी कोई दोस्त होती है.." अंशुल ने छत को घूरते हुए कहा.. उसने आँखें खोल ली थी..
"क्यूँ.. लड़कियाँ क्यूँ दोस्त नही होती.. सच बताओ अंशु.. तुम्हे मेरी कसम..!"
"सच.. दीदी.. कोई नही है.. आपकी कसम!" अंशु ने उसकी छातियों में झँकते हुए उसके सिर पर हाथ रखा...
"क्यूँ नही है? क्या तुम्हे लड़कियाँ अच्छी नही लगती?"
"छोड़ो ना दीदी.. अंशुल ने शर्मकार मुँह दूसरी और कर लिया....
निशा थोडा सा उठकर उस'से जा सटी और उसके चेहरे को अपने हाथों से प्यार से सहलाते हुए बोली...," बताओ ना अंशु.. मुझसे कैसी शरम.. मैं तो तुम्हारी बहन हूँ.. बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई लड़की पसंद नही..."
निशा की चूचियाँ अब अंशु की बाजू पर रखी थी..," ये बात दीदी से थोड़े ही की जा सकती हैं... मत पूछो दीदी प्लीज़..."
"दोस्त से तो की जाती हैं ना.. मुझे अपनी दोस्त ही मान लो....
"दीदी दोस्त कैसे हो सकती है दीदी?" अंशु को अब भी शक था.. पर मज़ा वो पूरा ले रहा था.. अपने हाथ पर रखी चूचियों का..
"क्यूँ नही हो सकती... बताओ ना.. तुम्हे लड़कियाँ अच्छी क्यूँ नही लगती?"
"लगती तो हैं दीदी.. पर बात करने से डर लगता है.." अंशुल ने अपनी व्यथा अपनी नयी दोस्त को बता दी...
"क्यूँ? डर क्यूँ लगता है..? लड़कियाँ कोई खा तो नही जाती.. मैं भी तो लड़की ही हूँ.. मैं खा रही हूँ क्या तुमको.." निशा ने बात कहते हुए अंशुल के पेट पर हाथ रख दिया.. और अपनी चूचियों का दबाव अंशु की छाती पर बढ़ा दिया..
अंशु को लगा जैसे वह लेटा नही है.. ऊड रहा है.. मस्ती की दुनिया में.. अपनी एकमत्रा दोस्त के साथ.. निशा के दाने उसकी छाती में चुभ कर मज़ा दे रहे थे...
"हां दीदी.. वो तो है.. पर.."
"पर क्या.. बोलो ना.." निशा उसको खुलते देख मचल उठी थी..
"तुम किसी को बताओगे तो नही ना दीदी.."
"मुझे दीदी नही..." निशा ने अंशुल के गालों को चूम लिया..," ...दोस्त कहो. और दोस्त कभी सीक्रेट्स लीक नही करते.. बताओ ना...!"
अंशुल ने फिर आँख बंद करके जवाब दिया," दीदी वो... "
"फिर दीदी.. अब मैं तुम्हारी दीदी नही दोस्त हूँ..."
"अच्छा..... दोस्त! वो मेरी क्लास में एक उर्वशी नाम की लड़की है... अंजाने में एक दिन मेरा हाथ उसके पीछे लग गया था.. उसने प्रिन्सिपल को शिकायत कर दी... तब से मुझे डर लगता है..." अंशुल ने अपना राज अपनी दोस्त को सुना दिया....
"हाए राम.. बहुत गंदी लड़क होगी... इतनी सी बात पर शिकायत कर दी... कहाँ पर लग गया था हाथ...!" निशा अब अंशुल को धीरे धीरे करके असली बात पर लाना चाहती थी....
"यहाँ पर.." अंशुल ने निशा के कुल्हों से उपर कमर पर हाथ लगाकर कहा... निशा को ये चुआन बड़ी मादक सी लगी...
"झूठ बोल रहे हो... यहाँ की शिकायत तो लड़की कर ही नही सकती... सच बताओ ना अंशु.. क्या तुम मुझे दोस्त नही मानते.." निशा अंशुल के कच्चे गुलाबी होंटो
पर अपनी उंगली घुमाने लगी.. अंशुल के लंड में खलबली मचने लगी थी...
"यहाँ पर दी...." अंशुल ने अपने ही चूतदों पर हाथ रखकर निशा को बताया.. वा शर्मा रहा था बुरी तरह..
"ऐसे मुझे कैसे पता लगेगा की उर्वशी को बुरा क्यूँ लगा.... मुझे लगाकर बताओ ना..." निशा ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया...
"नही दीदी.. मुझे शर्म आती है..!"
"देख लो तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुमसे बात नही करेगी फिर.." निशा ने झूठ मूठ रूठने की आक्टिंग करी...
अंशुल के मान में तो लड्डू फुट ही रहे थे.. बाहर शर्म का एक परदा था जो धीरे धीरे फट रहा था.. उसने निशा की मादक गोल गांद की दरार के पास अपनी उंगली हल्क से रख दी..," यहाँ लगा था दी.. सॉरी दोस्त!"
"बस ऐसे ही लगा था क्या.. जैसे अभी तुमने मुझे लगाया है.. " निशा की आग भड़क गयी थी.. गांद पर उंगली रखते ही...
"नही दीदी... थोड़ी सी ज़्यादा लगी थी..."
"तो बताओ ना यार.. तभी तो मुझे अहसास होगा की उसको बुरा क्यूँ लगा.. बिल्कुल वैसे ही करके दिखाओ.. तुम्हे मेरी कसम...!"
अंशुल ने अपनी हथेली पूरी खोलकर निशा के बायें चूतड़ पर रख दी.. उसकी उंगलियों के सिरे दरार के पार दूसरे चूतड़ से लगे हुए थे.. निशा की आ निकल गयी......
"क्या हुआ दीदी.. बुरा लगा..." अंशुल ने अपना हाथ हटा लिया...
"नही रे! दोस्त की बात का बुरा नही मानते.. तू रखे रह.. छेड़ पूरी रात.. तू यहीं सो जा..... निशा ने उसका हाथ वापस और अच्छी तरह से अपनी गॅंड पर टीका लिया....
तभी दरवाजे पर नॉक हुई...
"अंशुल तू सोने की आक्टिंग कर ले... मुझे अभी तुझसे बहुत बात करनी हैं.. नही तो तुझे संजय के पास जाना पड़ेगा....." निशा ने धीरे से अंशुल को कहा और उठकर दरवाजा खोल कर इस तरह खड़ी हो गयी... जैसे वो नींद से उठकर आई हो....
बाहर उसकी मम्मी खड़ी थी..," ले बेटी दूध पी ले.. अरे! ये यहीं सो गया.. चल कोई बात नही.. मैं इसका दूध भी यही दे जाती हूँ.. इसको पीला देना उठाकर...."
जब उसकी मम्मी संजय के कमरे में दूध देने गयी तो संजय ने कहा..," मम्मी अंशुल का दूध?"
"वो तो वहीं सो गया.. निशा के पास.. मैं वहीं दे आई.. निशा पीला देगी...
संजय का माता ठनका... कहीं.. वो अंशुल.. वह उठा और निशा के कमरे में गया..
निशा ने अंशुल पर फिर से डोरे डालने शुरू किय ही थे की वहाँ संजय आ धमका.. निशा ने अंशुल को फिर से सुला दिया और अपना गला थोड़ी उपर खींच कर दरवाजा खोला... संजय ने निशा को कड़वी नज़र से देखा और अंशुल के पास जाकर उसको हिलाने लगा..," अंशुल..... अंशुल्ल्ल!"
अंशुल कहाँ उठता.. उसने करवट ली और दूसरी तरफ बेड से चिपक गया....
"मम्मी ने कहा है सोने दो यहीं..!" निशा ने संजय का हाथ पकड़ कर झटक दिया..
संजय गुस्से में दाँत पीसे रहा था पर कर क्या सकता था.. अपनी बेहन को उसने ही इस रास्ते पर धकेला था.. धीरे से उसने निशा को 'कुतिया' कहा और दरवाजा भड़क से बंद करके निकल गया..
निशा ने संजय के बाहर निकलते ही दरवाजा लॉक कर दिया....
पर अब तक पिच्छली बात पुरानी हो चुकी थी.. उसको नये सिरे से शुरुआत करनी थी..
"अंशु.. सच में सो गये क्या?" निशा ने अंशुल के गालों पर अपना हाथ लगाकर हिलाया...
अंशुल ने घूम कर आँखें खोल दी और मुस्कुराने लगा.... वह आज कैसे सो सकता था....
"फिर प्रिन्सिपल ने क्या किया अंशुल...?" निशा बात को वापस ट्रॅक पर लाने के लिए बोली.. वा अंशुल के थोड़ा करीब आ गयी थी.. उल्टी लेटी होने की वजह से अंशुल को निशा की चूचियों ने तो बाँध ही रखा था.. थोड़ा नज़र पीछे करने पर उसकी पतली कमर से अचानक उभर लिए हुए स्की गांद भी अंशुल को दोबारा उसको छू कर देखने के लिए लालायित कर रही थी... अंशुल सीधा लेटा था.. उसने करवट ली और अपने सिर के नीचे हाथ रखकर कोहनी बेड से लगा ली और थोड़ा उपर उठ गया.. अब उसको उतनी शरम नही आ रही थी," किया क्या.. 2 मिनिट मुर्गा बनाया और यहाँ पर एक डंडा लगाया.." अपने चूतदों की और इशारा करते हुए अंशुल ने जवाब दिया...
"हाए! यहाँ पर तो बहुत दर्द होता होगा ना.." निशा ने अंशु के चूतड़ पर हाथ रख दिया.. अंशुल ने हटाने की कोशिश नही की....
"अच्छा! अब हम दोस्त हैं ना.... एक बात पूछूँ..?" निशा ने अंशुल के चूतदों पर उंगली फिरते हुए पूचछा...
"हां... पूछो!" अंशुल की नज़र कभी निशा की गांद को कभी उसकी चूचियों को निहार रही थी...
"सच बोलॉगे ना?... प्रोमिसे..!"
"सच ही बोलूँगा दी.. प्रोमिसे दोस्त.." अंशुल अपनी ज़ुबान से दीदी हटाने की कोशिश कर रहा था...
"तुमने उसको यहाँ पर जान बूझ कर हाथ लगाया था ना?" निशा ने उसके चूतदों पर दबाव डालते हुए कहा...
"अंशुल का लंड लगातार फूल रहा था.. उसने अपनी उपर वाली टाँग आगे करके उसको छिपाने की कोशिश की.. टाँग निशा की कमर से जा लगी..," नही दीदी.. सॉरी दोस्त.. मैने जानबूझ कर नही किया.. सच्ची!"
निशा ने अपने को थोड़ा सा टेढ़ा करके अंशुल का घुटना अपने पेट के नीचे दबा लिया...," मज़ा तो आया होगा तुमको.. जब हाथ वहाँ पर लगा होगा.." निशा सीधी उसकी आँखों में देख रही थी.. अंशुल शर्मा गया और अपन आँखें बंद कर ली...
"अंशु! कभी सोचा है? लड़के को लड़की का या लड़की को लड़के का हाथ लग जाए तो मज़ा क्यूँ आता है.. मुझे पता है.. मज़ा तो तुम्हे आया होगा ज़रूर.." निशा ने अपना हाथ उसके चूतदों से हटाकर उसके आगे रख दिया.. उसके घुटने से आगे.. लंड के पास..
हाथ की गंध पाते ही लंड का बुरा हाल हो गया.. लंड इतना शख्त हो गया था की अंशुल को लग रहा था.. की एक बार फिर बाथरूम जाना पड़ेगा...
"बताओ ना अंशु.. मज़ा क्यूँ आता है..?"
"पता नही.. अंशु ने अपनी कोहनी हटाकर बेड पर ही अपना सिर रख लिया.. अब तो उसकी नज़र निशा के अनार्दानो के चारों और की हुल्की सी लाली तक पहुँच रही थी...
"पर मज़ा तो आता है ना..!" निशा ने कन्फर्म करने की कोशिश करी...
"हूंम्म" अंशुल ने धीरे धीरे उसके लंड की और सरक रहा निशा का हाथ पकड़ लिया और हाथ उपर खींच लिया.. वह अब भी हाथ को पकड़े हुए था.. कहीं निशा उसके लंड को हाथ लगने से जान ना जाए की उसका कितना बुरा हाल हो रहा है...
"फिर मज़ा आता है तो कभी लिया क्यूँ नही.. तुम इतने सुंदर हो.. ज़रूर तुम्हारी काई गर्लफ्रेंड होंगी.. निशा ने अंशुल द्वारा पकड़े गये अपने हाथ को अपनी छातियों की और खींच लिया.. अंशुल का हाथ भी साथ ही आकर उसकी चूची के दाने से चिपक गया.. दोनो साथ ही सिसक पड़े...
निशा की राह आसान होती जा रही थी...
"नही दी.. मेरी कोई दोस्त नही है.. तुम्हारी कसम.. " अंशुल ने अपना हाथ थोड़ा और दबा दिया निशा की छाती की और.. निशा भी अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगा रही थी..
"तुम झूठ बोल रहे हो.. तुम्हारी एक दोस्त तो ज़रूर है...."
"नही है ना.. मैने आपकी कसम भी खाई है.. फिर भी..."
"इसका मतलब तुम मुझे अपनी दोस्त नही मानते..? है ना..!"
"तुम तो....." अंशुल धर्मसंकट में फँस गया...
"बोलो ना... क्या तुम तो..?" निशा ने उसको उकसाया...
"कुछ नही दीदी..." अंशुल को अपनी पाँचों उंगलियाँ.. और साथ में लंड घी में नज़र आ रहा था... निशा की चूत के घी में...
"तो बताओ.. मैं तो तुम्हारी दोस्त हूँ ना..."
"हां... " अंशुल ने उसको अपनी एकमत्रा दोस्त मान लिया...
"पता है अंशु.. मेरा भी ना.... कोई दोस्त नही है.. सभी लड़कियाँ कहती हैं.. जब दोस्त छोटा हो तो बड़ा मज़ा आता है... मैं भी.... देखना चाहती थी.. कोई मुझे छुए तो कैसा लगता है..." निशा ने उसका हाथ ज़ोर से अपनी छातियों के बीच फँसा रखा था...
अंशुल समझ चुका था की निशा उसको आज मर्द होने का इनाम देने वाली है.. पर वो जान बूझ कर अंजान बना रहा... ," तो किसी से कह दो...!"
"किस से कहूँ.. मेरा कोई दोस्त है तो नही ना..." अब निशा अपने सामने बैठे दोस्त को भूल गयी थी.. या शायद भूलने की आक्टिंग कर रही थी...
"मैं हूँ ना.. आपका दोस्त.."अंशुल ने निशा के होंटो के करीब अपने होन्ट ले जाकर कहा...
निशा अब और इंतज़ार कर सकने की हालत में नही थी.. और ना ही अंशु..
"अंशु! मुझे हाथ लगाओ ना.. मुझे देखना है कैसा लगता है?"
"कहाँ लगाऊं.." अंशुल की आवाज़ काँप रही थी.. मारे आनंद के..
"कहीं भी लगाओ जान.. जहाँ तुम्हारा दिल करे.. कही भी.. निशा ने उसके होंटो को दबोच लिया.. और मोमबत्ती से भड़की अपनी प्यास मिटाने में जुट गयी...
अंशुल उसका पूरी तरह साथ दे रहा था.. वा भी उतने ही जोश से उसके होंटो को खाने लगा.. पर था कच्चा खिलाड़ी.. अभी भी उसकी हिम्मत नही हो रही थी.. की कहीं भी हाथ घुसा दे..
होन्ट चूस्ते चूस्ते ही निशा ने अपनी जीभ अंशुल के होंटो के पार कर दी.. निशा के रस में डूबे अंशुल को ये होश ही ना रहा की.. निशा उसके लंड को पॅंट के उपर से मसल रही है.. और लंड ने उसकी पॅंट खराब कर दी है...
जब लंड की खुमारी उतर चुकी तो अंशुल को होश आया.. और एक दम से निशा के होन्ट छोड़ कर पॅंट में ही लंड को दबोचा और बाथरूम में भाग गया...
"अंशु! प्लीज़.. ऐसे छोड़ कर मत जाओ.. मैं मार जवँगी.. " निशा बेड पर बैठी बैठी बिलख पड़ी...
कुछ देर बाद ही अंशु सिर झुकाए वापस आ गया.. उसने कहीं सुन रखा था.. की अगर किसी का लड़की पहले निकल जाए तो वो नमार्द होता है...
"सॉरी दीदी! मैं मर्द नही हूँ.." कहकर अंशुल सुबकने लगा..
निशा ने उसको सीने से लगाकर अपनी छातियों में दाहक रही ज्वाला को कुछ ठंडा किया," पगले! कौन कहता है.. तू मर्द नही है.. कितना लंबा और मोटा है तेरा ये.... और कितना गरम भी..."
"पर दीदी.. मेरा तो आपसे पहले निकल गया ना...." अंशुल ने उसके सीने से चिपके चिपके ही अपने आँसू पोछते हुए कहा...
"तू चिंता मत कर.. मैं अपने आप ठीक कर दूँगी.. निकाल तो ज़रा..." निशा लंड की प्यासी थी.. और उसकी चूत लंड की भूखी...
"मुझे शरम आ रही है दीदी..." अंशुल को शांति मिलने के बाद ये सब शर्मिंदगी वाला काम लग रहा था...
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा लिया और उसके उपर सवार होकर उसकी पॅंट खोल दी.. पॅंट को कच्चे समेत अपने नीचे से पीछे सरका दिया और अंशुल का मुड़ा तुडा लंड अपने हाथ में ले लिया...
अंशुल बेजान होकर बेड पर पड़ा रहा..
निशा अंशुल के उपर से उतरी और झुक कर अपनी जीभ निकाल कर अंशुल के लंड को नीचे से उपर चाट लिया... लंड में तुरंत रिक्षन दिखाई दिया.. वह झटके खा खा कर अपना आकर बढ़ाने लगा.. उसको बढ़ते देख निशा से ज़्यादा ख़ुसी खुद अंशुल को हो रही थी....
निशा ने बढ़ रहे लंड को अपने गले तक उतार लिया.. नम दीवारों को पाकर अंशुल का लंड बाग बाग हो गया.... करीब 2 मिनिट में ही निशा का मुँह पूरी तरह भर गया.. और लंड फिर से अकड़ कर खड़ा हो गया..
निशा अपने नाज़ुक होंटो से लंड की अच्छी तरह उपर नीचे मालिश करने लगी.. अंशुल फिर से जन्नत में पहुँच गया.. ," आआह दीदी... दोस्त... कितना मज़ा आ रहा है... और तेज़ करो... और तेज़.."
अंशुल अपने चूतदों को उपर उचका उचका कर निशा के गले में ठोकर मार रहा था... निशा की आँखों में पानी आ गया.. पर उसने हार ना मानी..
निशा ने अंशुल का हाथ पकड़ कर अपनी चूची उसके हवाले कर दी.. अंशुल तो इनको भूल ही गया था...
"दीदी! अपना कमीज़ निकाल दो.. मुझे तुमको नंगी देखना है...!"
नेकी और पूछ पूछ! निशा ने एक झटके में अपनी कमीज़ को अपने शानदार जिस्म से अलग करके किसी हेरोइन की तरह अंगड़ाई लेकर बेड पर बिखर गयी... ," अब तुम करो जान..."
अंशुल ने जवान चूचियाँ नंगी कभी देखी ही ना थी.. और किस्मत से देखने को मिली भी ऐसी चूचियाँ को देखने वाला दूर से ही टपक पड़े.. उसने दोनो चूचियों को अपने हाथों में भर लिया.. निशा कसमसा उठी.. नादान अंशुल के मर्दाना हाथ उसकी चूचियों को जैसे निचोड़ रहे थे..," आआआआः आआंसूओ! थोड़ा आराम से जान..! इनको चूस लो ना...!"
"अंशुल को निशा की बात मान' ने के अलावा कुछ ध्यान ही नही था.. वो तो ऐसी ख़ान में आ गया था जहाँ से कितना ही लूट लो.. माल ख़तम ही नही होता.. उसने अपना सिर झुकाकर अपना पूरा मुँह खोल कर जितना हो सकता था उतना माल अपने मुँह में भर लिया... ," आ अंशू.. तू कितना प्यारा है... मेरी जान.. और चूस.. दोनो को चूस ना यार..!" निशा ने अंशुल का सिर अपनी चूचियों में लगभग घुसा ही रखा था... उसकी आँखें मदहोशी के आलम में रह रह कर कभी खुल रही थी कभी बंद हो रही थी..
निशा ने अपना एक हाथ नीचे अपनी चूत की फांको पर लरजकर थोडा इंतज़ार करने को कहा.. पर वो हाथ लगते ही फट पड़ी.. और कितने दीनो से प्यासी उसकी चूत को आज चैन मिला... मर्द के हाथों से....
अंशुल अपने आप ही लड़की को मदहोश करने के गुण अपनाता जा रहा था.. उसने अपनी एक उंगली निशा के होंटो में दे दी और खुद के होंतों को धीरे धीरे नीचे लाता जा रहा था... निशा उंगली को ही लंड समझ कर आँखें बंद करके चूसने लगी...
निशा का पेट बहुत ही सुंदर था.. पतला सा.. गोरा सा.. अंशुल के होंटो की चुअन से वो रह रह कर छरहरा रहा था.. नाभि से नीचे तक निशा को चूस चूस कर पूरा लाल कर देने के बाद अंशुल के होंटो को एक रुकावट महसूस हुई.. निशा की सलवार की.. पर अब कौनसी रुकावट क्या काम आती... अंशुल ने झट से सलवार का नाडा खोला और निशा की गांद उपर उठाकर सलवार को पैरों से निकल दिया.. निशा अंशुल को अपने निचले हिस्से को पागलों की तरह देखता पाकर मस्त हो गयी...
अंशुल पनटी के पास उसकी जांघों पर आ गया और अपनी जीभ से पनटी के किनारों को गीला करने लगा.. ये हरकत निशा को दीवाना बना गयी.. उसने अपने आप ही पनटी निकाल कर एक तरफ डाल दी और अपनी चूत पर उंगली रख कर बोली.. यहाँ.. यहाँ बहुत दर्द होता है जानू.. ये मुझे टिकने नही देती... पागल कर देती है.. इसकी आग बुझाओ ना...
अंशुल तो कब से इस रास्ते पर चला ही इस मंज़िल के लए था.. उसने पर से निशा की चूत.. जांगुओ और उसके नीचे से उसकी गंद पर हाथ फेरा... उसके उपर आया और अपने 6" बाइ 3" लंड का निशाना चूत के मुँह की और कर दिया...
"ऐसे नही पागल.. उठो एक मिनिट.." निशा ने अपने उपर से अंशुल को हटाया और अपनी टाँगें उपर उठाकर अपने हाथों से पकड़ ली..," अब करो!"
"हां.. ऐसे सही होगा..! अंशुल निशा के पैरों के बीच आ गया और रसीली चूत के उपर अपना रंगीला लंड रख दिया....
"एक मिनिट रूको..! निशा ने अपने हाथ से भटके लंड को सही सुराख पर लगाया और बोली," घुसााअ दो......"
आदेश मिलते ही मिसिले सीधी अंदर घिस गयी.. पूरी की पूरी.. और अंशुल के गोले निशा की जांघों के बीच जा टकराए... ," धक्के लगाओ.. अंदर बाहर करो... तेज़ तेज़ जाआअँ... अया अया अया.. और तेज़ करो... मार गयी मया... एक बार और करेगा ना.... अया अया अंशु! तू पूरा मर्द है... धक्के तो लगा... अया...
अंशु निशा की आवाज़ के साथ साथ उत्तेजित होता गया.. और धक्कों की स्पीड बढ़ता गया... खच खच.. और फ़चा फॅक जैसी मनमोहक आवाज़ें निशा की सिसकियों के साथ ताल से ताल मिला रही थी...
करीब 5 मिनिट के बाद निशा ने अंशुल को पकड़ लिया.. बस.. मेरा निकल गया..
पर अंशुल ने उसकी एक ना सुनी.. अपने आपको मर्द पाकर और निशा के झाड़ जाने के बाद वो दुगने जोश से उसकी चूत की घिसाई करने लगा.. 1 मिनिट में ही निशा फिर से तैयार हो गयी... अब वो एक बार फिर अपने चूतड़ उछाल रही थी.. सिसकियाँ उसकी पहले से जाड़ा बढ़ गयी थी.. अपने मुँह के पास अंशुल की बानी देखकर उसने उसको काट खाया.. पर इसमें भी अंशुल का मज़ा कुछ बढ़ ही गया.. वो बिना बोले अपना काम करता रहा..
निशा अपनी कोहनियों पर बैठ कर अपनी चूत में आते जाते लंड को प्यार से देखने लगी.. लंड के बाहर निकालने के साथ ही उसकी कोमल पंखुड़िया बाहर आती और फिर लंड के साथ ही गायब हो जाती... दोनो पसीने से सराबोरे हो गये थे.. और अंततः: नादान खिलाड़ी अंशुल ने अपने लंड की धार निशा की चूत में ही मार दी.. निशा की चूत भी जैसे उस्स रस का रस से ही स्वागत करने को तैयार बैठी थी.. उसने अपने उपर आ गिरे अंशुल को अपनी चूचियों पर ज़ोर से दबा लिया और हाँफने लगी....
"दीदी! मैं असली मर्द हूँ ना.." अंशुल ने निशा के होंटो को चूसने के बाद पूछा....
"मुझे दीदी मत कहना.. तू मेरी जान है जान..!" और निशा उसके होंटो को किसी रसीले फल की तरह चूसने लगी... लंड का आकर एक बार फिर चूत में पड़े पड़े ही बढ़ने लगा... अंशुल ने दोबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए थे....
"आब्बी साले.. कहाँ है तेरी मा की चूत... 11:30 हो गये... अब उसको बुला नही तो तेरी गांद मारूँगा..." राकेश राहुल के साथ छत पर बैठा था.. निशा के इंतज़ार में...
"यार बेहन की लौदी.. चूतिया बना गयी... पर मैं उसको अब छोड़ूँगा नही.. साली ने मेरे आगे कमीज़ निकाल कर दिखाया था.. और मेरे लंड की पिचकारी भी देखी थी..." राहुल अपने आपको और राकेश को तसल्ली दे रहा था...
"तूने कोई सपना देखा होगा.. साले.. यहाँ अपनी मा और चूड़ा ली.. आज एक और लड़की फँस सकती थी.. इसकी मा की गांद.. उसको भी छोड़ दिया इसके लालच में..
"तू चिंता ना कर भाई.. इसको तो दोनो इकते ही चोदेन्गे.. इसकी तो मा की.. इसकी गांद और चूत में इकट्ठे सुराख ना किया तो मेरा नाम बदल देना... चल अब इंतज़ार करने का क्या फयडा....
"तू इनके घर में गया है कभी....." राकेश ने राहुल से कहा...
"नही तो ...क्यूँ?" राहुल ने राकेश को देखा...
"मैं गया हूँ.. मुझे पता है उसका कमरा अलग है.. वो उसी में मिलेगी...."
"तो क्या तू अब नीचे से उसको लेकर आयगा..?" राहुल ने अचरज से पूछा...
"मैं नही तू...!" राकेश ने मुस्कुरा कर राहुल की और देखा......
"नही भाई, मैं नही जवँगा.. मुझे मरने का शौक नही है.. आज नही तो कल उसकी चोदे बिना तो रहेंगे नही... पर यूँ घर जाना तो अपनी गांद मरवाने जैसा ही है..." राहुल ने नीचे जाने से बिल्कुल माना कर दिया...
"चल ठीक है साले... अगर तूने मेरे बिना इसकी सील तोड़ी तो देख लेना फिर...."दोनो उठकर वापस चल दिए...
"तुझे पता है क्या राका... वाणी पूरी आइटम हो गयी है.. शहर जाकर.. आज शाम को मैं उधर से गुजरा तो अपने घर के बाहर थी... यार.. पहचान में भी नही आती.. बिल्कुल अपनी आयशा टाकिया की बेहन लगती है... " राहुल ने राकेश को जी खोल कर बताया...
"आबे भूट्नी के.. आयशा तो उसके आगे पानी भी नही भर सकती.. इस'से अच्छा तो तू दिशा का ही नाम ले लेता...आयशा से तो अब भी वो 2-3 इंच लुंबी होगी...." राकेश ने वाणी के सौंदर्या और भोले पन के आगे हेरोइन आएशा को भी फीका साबित कर दिया...," यार क्या आयशा.. वाएशा.. उसको नज़र भर कर देख कर ही मुथि मारने ( मस्तुबतिओं) का माल मिल जाता था आँखों को.. जिस दिन वो दिखाई दे जाती थी.. बस और कुछ देखने का दिल ही नही करता था... मैं तो अब तक रेप कर चुका होता दोनो का.. पर सालियों पर बहुत तगड़े आदमी का हाथ है... तू एक बात बता.. वो मास्टर चोदता तो वाणी को भी होगा..."
राहुल ने उसकी हां में हां मिलाई..," और नही तो क्या.. वहाँ क्या वैसे ही लेकर गया है.. तू ही सोच.. अगर तू दिशा का लोग होता तो वाणी को चोद देता क्या बिना चोदे......."
"चल छोड़ इन सब बातों को.. याद रखना.. मुझे बुलाना मत भूलना.. निशा की सील तोड़ते समय... उन्हे क्या पता था.. निशा अब गॅरेंटी में नही रही... वो तो नीचे 3 बार लगातार.. नये खिलाड़ी को मर्द बना चुकी है......
अंशु ने जल्दी से पसीने से तर अपना चेहरा और वीरया से सन गए अपने हाथ और लंड को धोया और बाहर निकल आया....
"क्या कर रहे थे अंशु..?" निशा ने उसको छेड़ कर उकसाने की कोशिश करी..
"कुछ नही दीदी.. वो... फ्रेश होकर आया हूँ.. अब मैं सोने जा रहा हूँ दीदी.. मुझे नींद आ रही है...." अंशुल दरवाजे की और बढ़ा तो निशा को अपने अरमानो का खून होता हुआ सा लगा...," नही अंशु.. अभी मत जाओ... प्लीज़!"
"क्यूँ दीदी.. और कुछ खेलना है क्या..?"
निशा ने बात को संभाला," हां वो.. मेरा मतलब है की.. अभी तो हमें ढेर सारी बातें करनी हैं... तुम यही रुक जाओ ना.. थोड़ी देर और..."
"ठीक है दीदी.." कहकर अंशुल बेड पर लेट गया...
"अंशु तुम्हे याद है हम बचपन में कौन कौन से खेल खेलते थे..?" निशा ने उसके मुँह के पास मुँह लाकर उसकी बराबर में लेट-ते हुए अपना जादू फिर से शुरू किया... वो जान बूझ कर इस तरह से अंशु से थोड़ा नीचे होकर लेटी थी ताकि अंशु जी भरकर उसकी चूचियों का रस आँखों से पी सके..
और अंशुल कर भी यही रहा था.. उसका जी चाह रहा था की उस'से सिर्फ़ 6 इंच के फ़ासले पर स्थित इस खजाने को दोनो हाथों से लपक ले.. पर वो ऐसा कर नही सकता था.. क्यूंकी उसको अहसास नही था की निशा ने सिर्फ़ उसके लिए वो मस्तियाँ बंधन मुक्त की हैं.. सिर्फ़ उसके लिए!
"हन दीदी, याद है.. हम रेस लगते थे.. कारृूम खेलते थे और लूका छिपी भी खेलते थे.." अंशुल का दिल चाह रहा था की वा खुद को उसकी चूचियों में छिपा ले..
"तुम्हे याद है अंशु.. एक बार बाग में अमरूद के पेड से उतरते हुए तुम्हारी पॅंट फट गयी थी..और.." निशा उस'से नज़रें मिलाए बिना उसको 'काम' की बात पर ला रही थी...
"धात दीदी... आप भी.." अंशुल निशा के सीधे सीधे उसके नंगेपन पर हमले से बौखला गया.. निशा हँसने लगी..
"अच्छा अब तो बड़े शर्मा रहा है.. उस्स वक़्त तो नही शरमाया था तू!... तूने कच्चा नही पहना हुआ था ना.." निशा अंशुल से बोली...
"दीदी प्लीज़.." अंशुल ने अपना चेहरा अपने हातहों से धक लिया..," तब तो मैं कितना छोटा था...
निशा ने ज़बरदस्ती सी करके उसके हाथ चेहरे से हटा दिए... अंशुल की आँखें बंद थी..
"अच्छा.. अब तो जैसे बहुत बड़े मर्द बन गये हो.. है ना.." निशा उसके अपनी वासणपूर्ण बातों से भड़का रही थी.. पर अंशुल उस'से खुल नही पा रहा था..
हां.. निशा को अंशुल के चेहरे की मुस्कान देखकर ये तो यकीन था की उसको भी मज़ा आ रहा है.. इन्न बातों में...
"एक बात बताओगे अंशु?"
"क्या?"
"अंशु ने आँखें बंद किए किए ही जवाब दिया...
"तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त का क्या नाम है?"
"तारकेश्वर! वा पढ़ाई में बहुत तेज है..."
"और..?"
"और... सार्थक.."
"और..?"
"हिमांशु!"
"और?" निशा की आवाज़ गहराती जा रही थी..
"और क्या दीदी... ऐसे तो क्लास के सभी बच्चे दोस्त हैं...
"अच्छा.... कोई... लड़की भी...?" निशा ने रुक रुक कर अपनी बात पूछी...
"नही दीदी... लड़की भी कोई दोस्त होती है.." अंशुल ने छत को घूरते हुए कहा.. उसने आँखें खोल ली थी..
"क्यूँ.. लड़कियाँ क्यूँ दोस्त नही होती.. सच बताओ अंशु.. तुम्हे मेरी कसम..!"
"सच.. दीदी.. कोई नही है.. आपकी कसम!" अंशु ने उसकी छातियों में झँकते हुए उसके सिर पर हाथ रखा...
"क्यूँ नही है? क्या तुम्हे लड़कियाँ अच्छी नही लगती?"
"छोड़ो ना दीदी.. अंशुल ने शर्मकार मुँह दूसरी और कर लिया....
निशा थोडा सा उठकर उस'से जा सटी और उसके चेहरे को अपने हाथों से प्यार से सहलाते हुए बोली...," बताओ ना अंशु.. मुझसे कैसी शरम.. मैं तो तुम्हारी बहन हूँ.. बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई लड़की पसंद नही..."
निशा की चूचियाँ अब अंशु की बाजू पर रखी थी..," ये बात दीदी से थोड़े ही की जा सकती हैं... मत पूछो दीदी प्लीज़..."
"दोस्त से तो की जाती हैं ना.. मुझे अपनी दोस्त ही मान लो....
"दीदी दोस्त कैसे हो सकती है दीदी?" अंशु को अब भी शक था.. पर मज़ा वो पूरा ले रहा था.. अपने हाथ पर रखी चूचियों का..
"क्यूँ नही हो सकती... बताओ ना.. तुम्हे लड़कियाँ अच्छी क्यूँ नही लगती?"
"लगती तो हैं दीदी.. पर बात करने से डर लगता है.." अंशुल ने अपनी व्यथा अपनी नयी दोस्त को बता दी...
"क्यूँ? डर क्यूँ लगता है..? लड़कियाँ कोई खा तो नही जाती.. मैं भी तो लड़की ही हूँ.. मैं खा रही हूँ क्या तुमको.." निशा ने बात कहते हुए अंशुल के पेट पर हाथ रख दिया.. और अपनी चूचियों का दबाव अंशु की छाती पर बढ़ा दिया..
अंशु को लगा जैसे वह लेटा नही है.. ऊड रहा है.. मस्ती की दुनिया में.. अपनी एकमत्रा दोस्त के साथ.. निशा के दाने उसकी छाती में चुभ कर मज़ा दे रहे थे...
"हां दीदी.. वो तो है.. पर.."
"पर क्या.. बोलो ना.." निशा उसको खुलते देख मचल उठी थी..
"तुम किसी को बताओगे तो नही ना दीदी.."
"मुझे दीदी नही..." निशा ने अंशुल के गालों को चूम लिया..," ...दोस्त कहो. और दोस्त कभी सीक्रेट्स लीक नही करते.. बताओ ना...!"
अंशुल ने फिर आँख बंद करके जवाब दिया," दीदी वो... "
"फिर दीदी.. अब मैं तुम्हारी दीदी नही दोस्त हूँ..."
"अच्छा..... दोस्त! वो मेरी क्लास में एक उर्वशी नाम की लड़की है... अंजाने में एक दिन मेरा हाथ उसके पीछे लग गया था.. उसने प्रिन्सिपल को शिकायत कर दी... तब से मुझे डर लगता है..." अंशुल ने अपना राज अपनी दोस्त को सुना दिया....
"हाए राम.. बहुत गंदी लड़क होगी... इतनी सी बात पर शिकायत कर दी... कहाँ पर लग गया था हाथ...!" निशा अब अंशुल को धीरे धीरे करके असली बात पर लाना चाहती थी....
"यहाँ पर.." अंशुल ने निशा के कुल्हों से उपर कमर पर हाथ लगाकर कहा... निशा को ये चुआन बड़ी मादक सी लगी...
"झूठ बोल रहे हो... यहाँ की शिकायत तो लड़की कर ही नही सकती... सच बताओ ना अंशु.. क्या तुम मुझे दोस्त नही मानते.." निशा अंशुल के कच्चे गुलाबी होंटो
पर अपनी उंगली घुमाने लगी.. अंशुल के लंड में खलबली मचने लगी थी...
"यहाँ पर दी...." अंशुल ने अपने ही चूतदों पर हाथ रखकर निशा को बताया.. वा शर्मा रहा था बुरी तरह..
"ऐसे मुझे कैसे पता लगेगा की उर्वशी को बुरा क्यूँ लगा.... मुझे लगाकर बताओ ना..." निशा ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया...
"नही दीदी.. मुझे शर्म आती है..!"
"देख लो तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुमसे बात नही करेगी फिर.." निशा ने झूठ मूठ रूठने की आक्टिंग करी...
अंशुल के मान में तो लड्डू फुट ही रहे थे.. बाहर शर्म का एक परदा था जो धीरे धीरे फट रहा था.. उसने निशा की मादक गोल गांद की दरार के पास अपनी उंगली हल्क से रख दी..," यहाँ लगा था दी.. सॉरी दोस्त!"
"बस ऐसे ही लगा था क्या.. जैसे अभी तुमने मुझे लगाया है.. " निशा की आग भड़क गयी थी.. गांद पर उंगली रखते ही...
"नही दीदी... थोड़ी सी ज़्यादा लगी थी..."
"तो बताओ ना यार.. तभी तो मुझे अहसास होगा की उसको बुरा क्यूँ लगा.. बिल्कुल वैसे ही करके दिखाओ.. तुम्हे मेरी कसम...!"
अंशुल ने अपनी हथेली पूरी खोलकर निशा के बायें चूतड़ पर रख दी.. उसकी उंगलियों के सिरे दरार के पार दूसरे चूतड़ से लगे हुए थे.. निशा की आ निकल गयी......
"क्या हुआ दीदी.. बुरा लगा..." अंशुल ने अपना हाथ हटा लिया...
"नही रे! दोस्त की बात का बुरा नही मानते.. तू रखे रह.. छेड़ पूरी रात.. तू यहीं सो जा..... निशा ने उसका हाथ वापस और अच्छी तरह से अपनी गॅंड पर टीका लिया....
तभी दरवाजे पर नॉक हुई...
"अंशुल तू सोने की आक्टिंग कर ले... मुझे अभी तुझसे बहुत बात करनी हैं.. नही तो तुझे संजय के पास जाना पड़ेगा....." निशा ने धीरे से अंशुल को कहा और उठकर दरवाजा खोल कर इस तरह खड़ी हो गयी... जैसे वो नींद से उठकर आई हो....
बाहर उसकी मम्मी खड़ी थी..," ले बेटी दूध पी ले.. अरे! ये यहीं सो गया.. चल कोई बात नही.. मैं इसका दूध भी यही दे जाती हूँ.. इसको पीला देना उठाकर...."
जब उसकी मम्मी संजय के कमरे में दूध देने गयी तो संजय ने कहा..," मम्मी अंशुल का दूध?"
"वो तो वहीं सो गया.. निशा के पास.. मैं वहीं दे आई.. निशा पीला देगी...
संजय का माता ठनका... कहीं.. वो अंशुल.. वह उठा और निशा के कमरे में गया..
निशा ने अंशुल पर फिर से डोरे डालने शुरू किय ही थे की वहाँ संजय आ धमका.. निशा ने अंशुल को फिर से सुला दिया और अपना गला थोड़ी उपर खींच कर दरवाजा खोला... संजय ने निशा को कड़वी नज़र से देखा और अंशुल के पास जाकर उसको हिलाने लगा..," अंशुल..... अंशुल्ल्ल!"
अंशुल कहाँ उठता.. उसने करवट ली और दूसरी तरफ बेड से चिपक गया....
"मम्मी ने कहा है सोने दो यहीं..!" निशा ने संजय का हाथ पकड़ कर झटक दिया..
संजय गुस्से में दाँत पीसे रहा था पर कर क्या सकता था.. अपनी बेहन को उसने ही इस रास्ते पर धकेला था.. धीरे से उसने निशा को 'कुतिया' कहा और दरवाजा भड़क से बंद करके निकल गया..
निशा ने संजय के बाहर निकलते ही दरवाजा लॉक कर दिया....
पर अब तक पिच्छली बात पुरानी हो चुकी थी.. उसको नये सिरे से शुरुआत करनी थी..
"अंशु.. सच में सो गये क्या?" निशा ने अंशुल के गालों पर अपना हाथ लगाकर हिलाया...
अंशुल ने घूम कर आँखें खोल दी और मुस्कुराने लगा.... वह आज कैसे सो सकता था....
"फिर प्रिन्सिपल ने क्या किया अंशुल...?" निशा बात को वापस ट्रॅक पर लाने के लिए बोली.. वा अंशुल के थोड़ा करीब आ गयी थी.. उल्टी लेटी होने की वजह से अंशुल को निशा की चूचियों ने तो बाँध ही रखा था.. थोड़ा नज़र पीछे करने पर उसकी पतली कमर से अचानक उभर लिए हुए स्की गांद भी अंशुल को दोबारा उसको छू कर देखने के लिए लालायित कर रही थी... अंशुल सीधा लेटा था.. उसने करवट ली और अपने सिर के नीचे हाथ रखकर कोहनी बेड से लगा ली और थोड़ा उपर उठ गया.. अब उसको उतनी शरम नही आ रही थी," किया क्या.. 2 मिनिट मुर्गा बनाया और यहाँ पर एक डंडा लगाया.." अपने चूतदों की और इशारा करते हुए अंशुल ने जवाब दिया...
"हाए! यहाँ पर तो बहुत दर्द होता होगा ना.." निशा ने अंशु के चूतड़ पर हाथ रख दिया.. अंशुल ने हटाने की कोशिश नही की....
"अच्छा! अब हम दोस्त हैं ना.... एक बात पूछूँ..?" निशा ने अंशुल के चूतदों पर उंगली फिरते हुए पूचछा...
"हां... पूछो!" अंशुल की नज़र कभी निशा की गांद को कभी उसकी चूचियों को निहार रही थी...
"सच बोलॉगे ना?... प्रोमिसे..!"
"सच ही बोलूँगा दी.. प्रोमिसे दोस्त.." अंशुल अपनी ज़ुबान से दीदी हटाने की कोशिश कर रहा था...
"तुमने उसको यहाँ पर जान बूझ कर हाथ लगाया था ना?" निशा ने उसके चूतदों पर दबाव डालते हुए कहा...
"अंशुल का लंड लगातार फूल रहा था.. उसने अपनी उपर वाली टाँग आगे करके उसको छिपाने की कोशिश की.. टाँग निशा की कमर से जा लगी..," नही दीदी.. सॉरी दोस्त.. मैने जानबूझ कर नही किया.. सच्ची!"
निशा ने अपने को थोड़ा सा टेढ़ा करके अंशुल का घुटना अपने पेट के नीचे दबा लिया...," मज़ा तो आया होगा तुमको.. जब हाथ वहाँ पर लगा होगा.." निशा सीधी उसकी आँखों में देख रही थी.. अंशुल शर्मा गया और अपन आँखें बंद कर ली...
"अंशु! कभी सोचा है? लड़के को लड़की का या लड़की को लड़के का हाथ लग जाए तो मज़ा क्यूँ आता है.. मुझे पता है.. मज़ा तो तुम्हे आया होगा ज़रूर.." निशा ने अपना हाथ उसके चूतदों से हटाकर उसके आगे रख दिया.. उसके घुटने से आगे.. लंड के पास..
हाथ की गंध पाते ही लंड का बुरा हाल हो गया.. लंड इतना शख्त हो गया था की अंशुल को लग रहा था.. की एक बार फिर बाथरूम जाना पड़ेगा...
"बताओ ना अंशु.. मज़ा क्यूँ आता है..?"
"पता नही.. अंशु ने अपनी कोहनी हटाकर बेड पर ही अपना सिर रख लिया.. अब तो उसकी नज़र निशा के अनार्दानो के चारों और की हुल्की सी लाली तक पहुँच रही थी...
"पर मज़ा तो आता है ना..!" निशा ने कन्फर्म करने की कोशिश करी...
"हूंम्म" अंशुल ने धीरे धीरे उसके लंड की और सरक रहा निशा का हाथ पकड़ लिया और हाथ उपर खींच लिया.. वह अब भी हाथ को पकड़े हुए था.. कहीं निशा उसके लंड को हाथ लगने से जान ना जाए की उसका कितना बुरा हाल हो रहा है...
"फिर मज़ा आता है तो कभी लिया क्यूँ नही.. तुम इतने सुंदर हो.. ज़रूर तुम्हारी काई गर्लफ्रेंड होंगी.. निशा ने अंशुल द्वारा पकड़े गये अपने हाथ को अपनी छातियों की और खींच लिया.. अंशुल का हाथ भी साथ ही आकर उसकी चूची के दाने से चिपक गया.. दोनो साथ ही सिसक पड़े...
निशा की राह आसान होती जा रही थी...
"नही दी.. मेरी कोई दोस्त नही है.. तुम्हारी कसम.. " अंशुल ने अपना हाथ थोड़ा और दबा दिया निशा की छाती की और.. निशा भी अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगा रही थी..
"तुम झूठ बोल रहे हो.. तुम्हारी एक दोस्त तो ज़रूर है...."
"नही है ना.. मैने आपकी कसम भी खाई है.. फिर भी..."
"इसका मतलब तुम मुझे अपनी दोस्त नही मानते..? है ना..!"
"तुम तो....." अंशुल धर्मसंकट में फँस गया...
"बोलो ना... क्या तुम तो..?" निशा ने उसको उकसाया...
"कुछ नही दीदी..." अंशुल को अपनी पाँचों उंगलियाँ.. और साथ में लंड घी में नज़र आ रहा था... निशा की चूत के घी में...
"तो बताओ.. मैं तो तुम्हारी दोस्त हूँ ना..."
"हां... " अंशुल ने उसको अपनी एकमत्रा दोस्त मान लिया...
"पता है अंशु.. मेरा भी ना.... कोई दोस्त नही है.. सभी लड़कियाँ कहती हैं.. जब दोस्त छोटा हो तो बड़ा मज़ा आता है... मैं भी.... देखना चाहती थी.. कोई मुझे छुए तो कैसा लगता है..." निशा ने उसका हाथ ज़ोर से अपनी छातियों के बीच फँसा रखा था...
अंशुल समझ चुका था की निशा उसको आज मर्द होने का इनाम देने वाली है.. पर वो जान बूझ कर अंजान बना रहा... ," तो किसी से कह दो...!"
"किस से कहूँ.. मेरा कोई दोस्त है तो नही ना..." अब निशा अपने सामने बैठे दोस्त को भूल गयी थी.. या शायद भूलने की आक्टिंग कर रही थी...
"मैं हूँ ना.. आपका दोस्त.."अंशुल ने निशा के होंटो के करीब अपने होन्ट ले जाकर कहा...
निशा अब और इंतज़ार कर सकने की हालत में नही थी.. और ना ही अंशु..
"अंशु! मुझे हाथ लगाओ ना.. मुझे देखना है कैसा लगता है?"
"कहाँ लगाऊं.." अंशुल की आवाज़ काँप रही थी.. मारे आनंद के..
"कहीं भी लगाओ जान.. जहाँ तुम्हारा दिल करे.. कही भी.. निशा ने उसके होंटो को दबोच लिया.. और मोमबत्ती से भड़की अपनी प्यास मिटाने में जुट गयी...
अंशुल उसका पूरी तरह साथ दे रहा था.. वा भी उतने ही जोश से उसके होंटो को खाने लगा.. पर था कच्चा खिलाड़ी.. अभी भी उसकी हिम्मत नही हो रही थी.. की कहीं भी हाथ घुसा दे..
होन्ट चूस्ते चूस्ते ही निशा ने अपनी जीभ अंशुल के होंटो के पार कर दी.. निशा के रस में डूबे अंशुल को ये होश ही ना रहा की.. निशा उसके लंड को पॅंट के उपर से मसल रही है.. और लंड ने उसकी पॅंट खराब कर दी है...
जब लंड की खुमारी उतर चुकी तो अंशुल को होश आया.. और एक दम से निशा के होन्ट छोड़ कर पॅंट में ही लंड को दबोचा और बाथरूम में भाग गया...
"अंशु! प्लीज़.. ऐसे छोड़ कर मत जाओ.. मैं मार जवँगी.. " निशा बेड पर बैठी बैठी बिलख पड़ी...
कुछ देर बाद ही अंशु सिर झुकाए वापस आ गया.. उसने कहीं सुन रखा था.. की अगर किसी का लड़की पहले निकल जाए तो वो नमार्द होता है...
"सॉरी दीदी! मैं मर्द नही हूँ.." कहकर अंशुल सुबकने लगा..
निशा ने उसको सीने से लगाकर अपनी छातियों में दाहक रही ज्वाला को कुछ ठंडा किया," पगले! कौन कहता है.. तू मर्द नही है.. कितना लंबा और मोटा है तेरा ये.... और कितना गरम भी..."
"पर दीदी.. मेरा तो आपसे पहले निकल गया ना...." अंशुल ने उसके सीने से चिपके चिपके ही अपने आँसू पोछते हुए कहा...
"तू चिंता मत कर.. मैं अपने आप ठीक कर दूँगी.. निकाल तो ज़रा..." निशा लंड की प्यासी थी.. और उसकी चूत लंड की भूखी...
"मुझे शरम आ रही है दीदी..." अंशुल को शांति मिलने के बाद ये सब शर्मिंदगी वाला काम लग रहा था...
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा लिया और उसके उपर सवार होकर उसकी पॅंट खोल दी.. पॅंट को कच्चे समेत अपने नीचे से पीछे सरका दिया और अंशुल का मुड़ा तुडा लंड अपने हाथ में ले लिया...
अंशुल बेजान होकर बेड पर पड़ा रहा..
निशा अंशुल के उपर से उतरी और झुक कर अपनी जीभ निकाल कर अंशुल के लंड को नीचे से उपर चाट लिया... लंड में तुरंत रिक्षन दिखाई दिया.. वह झटके खा खा कर अपना आकर बढ़ाने लगा.. उसको बढ़ते देख निशा से ज़्यादा ख़ुसी खुद अंशुल को हो रही थी....
निशा ने बढ़ रहे लंड को अपने गले तक उतार लिया.. नम दीवारों को पाकर अंशुल का लंड बाग बाग हो गया.... करीब 2 मिनिट में ही निशा का मुँह पूरी तरह भर गया.. और लंड फिर से अकड़ कर खड़ा हो गया..
निशा अपने नाज़ुक होंटो से लंड की अच्छी तरह उपर नीचे मालिश करने लगी.. अंशुल फिर से जन्नत में पहुँच गया.. ," आआह दीदी... दोस्त... कितना मज़ा आ रहा है... और तेज़ करो... और तेज़.."
अंशुल अपने चूतदों को उपर उचका उचका कर निशा के गले में ठोकर मार रहा था... निशा की आँखों में पानी आ गया.. पर उसने हार ना मानी..
निशा ने अंशुल का हाथ पकड़ कर अपनी चूची उसके हवाले कर दी.. अंशुल तो इनको भूल ही गया था...
"दीदी! अपना कमीज़ निकाल दो.. मुझे तुमको नंगी देखना है...!"
नेकी और पूछ पूछ! निशा ने एक झटके में अपनी कमीज़ को अपने शानदार जिस्म से अलग करके किसी हेरोइन की तरह अंगड़ाई लेकर बेड पर बिखर गयी... ," अब तुम करो जान..."
अंशुल ने जवान चूचियाँ नंगी कभी देखी ही ना थी.. और किस्मत से देखने को मिली भी ऐसी चूचियाँ को देखने वाला दूर से ही टपक पड़े.. उसने दोनो चूचियों को अपने हाथों में भर लिया.. निशा कसमसा उठी.. नादान अंशुल के मर्दाना हाथ उसकी चूचियों को जैसे निचोड़ रहे थे..," आआआआः आआंसूओ! थोड़ा आराम से जान..! इनको चूस लो ना...!"
"अंशुल को निशा की बात मान' ने के अलावा कुछ ध्यान ही नही था.. वो तो ऐसी ख़ान में आ गया था जहाँ से कितना ही लूट लो.. माल ख़तम ही नही होता.. उसने अपना सिर झुकाकर अपना पूरा मुँह खोल कर जितना हो सकता था उतना माल अपने मुँह में भर लिया... ," आ अंशू.. तू कितना प्यारा है... मेरी जान.. और चूस.. दोनो को चूस ना यार..!" निशा ने अंशुल का सिर अपनी चूचियों में लगभग घुसा ही रखा था... उसकी आँखें मदहोशी के आलम में रह रह कर कभी खुल रही थी कभी बंद हो रही थी..
निशा ने अपना एक हाथ नीचे अपनी चूत की फांको पर लरजकर थोडा इंतज़ार करने को कहा.. पर वो हाथ लगते ही फट पड़ी.. और कितने दीनो से प्यासी उसकी चूत को आज चैन मिला... मर्द के हाथों से....
अंशुल अपने आप ही लड़की को मदहोश करने के गुण अपनाता जा रहा था.. उसने अपनी एक उंगली निशा के होंटो में दे दी और खुद के होंतों को धीरे धीरे नीचे लाता जा रहा था... निशा उंगली को ही लंड समझ कर आँखें बंद करके चूसने लगी...
निशा का पेट बहुत ही सुंदर था.. पतला सा.. गोरा सा.. अंशुल के होंटो की चुअन से वो रह रह कर छरहरा रहा था.. नाभि से नीचे तक निशा को चूस चूस कर पूरा लाल कर देने के बाद अंशुल के होंटो को एक रुकावट महसूस हुई.. निशा की सलवार की.. पर अब कौनसी रुकावट क्या काम आती... अंशुल ने झट से सलवार का नाडा खोला और निशा की गांद उपर उठाकर सलवार को पैरों से निकल दिया.. निशा अंशुल को अपने निचले हिस्से को पागलों की तरह देखता पाकर मस्त हो गयी...
अंशुल पनटी के पास उसकी जांघों पर आ गया और अपनी जीभ से पनटी के किनारों को गीला करने लगा.. ये हरकत निशा को दीवाना बना गयी.. उसने अपने आप ही पनटी निकाल कर एक तरफ डाल दी और अपनी चूत पर उंगली रख कर बोली.. यहाँ.. यहाँ बहुत दर्द होता है जानू.. ये मुझे टिकने नही देती... पागल कर देती है.. इसकी आग बुझाओ ना...
अंशुल तो कब से इस रास्ते पर चला ही इस मंज़िल के लए था.. उसने पर से निशा की चूत.. जांगुओ और उसके नीचे से उसकी गंद पर हाथ फेरा... उसके उपर आया और अपने 6" बाइ 3" लंड का निशाना चूत के मुँह की और कर दिया...
"ऐसे नही पागल.. उठो एक मिनिट.." निशा ने अपने उपर से अंशुल को हटाया और अपनी टाँगें उपर उठाकर अपने हाथों से पकड़ ली..," अब करो!"
"हां.. ऐसे सही होगा..! अंशुल निशा के पैरों के बीच आ गया और रसीली चूत के उपर अपना रंगीला लंड रख दिया....
"एक मिनिट रूको..! निशा ने अपने हाथ से भटके लंड को सही सुराख पर लगाया और बोली," घुसााअ दो......"
आदेश मिलते ही मिसिले सीधी अंदर घिस गयी.. पूरी की पूरी.. और अंशुल के गोले निशा की जांघों के बीच जा टकराए... ," धक्के लगाओ.. अंदर बाहर करो... तेज़ तेज़ जाआअँ... अया अया अया.. और तेज़ करो... मार गयी मया... एक बार और करेगा ना.... अया अया अंशु! तू पूरा मर्द है... धक्के तो लगा... अया...
अंशु निशा की आवाज़ के साथ साथ उत्तेजित होता गया.. और धक्कों की स्पीड बढ़ता गया... खच खच.. और फ़चा फॅक जैसी मनमोहक आवाज़ें निशा की सिसकियों के साथ ताल से ताल मिला रही थी...
करीब 5 मिनिट के बाद निशा ने अंशुल को पकड़ लिया.. बस.. मेरा निकल गया..
पर अंशुल ने उसकी एक ना सुनी.. अपने आपको मर्द पाकर और निशा के झाड़ जाने के बाद वो दुगने जोश से उसकी चूत की घिसाई करने लगा.. 1 मिनिट में ही निशा फिर से तैयार हो गयी... अब वो एक बार फिर अपने चूतड़ उछाल रही थी.. सिसकियाँ उसकी पहले से जाड़ा बढ़ गयी थी.. अपने मुँह के पास अंशुल की बानी देखकर उसने उसको काट खाया.. पर इसमें भी अंशुल का मज़ा कुछ बढ़ ही गया.. वो बिना बोले अपना काम करता रहा..
निशा अपनी कोहनियों पर बैठ कर अपनी चूत में आते जाते लंड को प्यार से देखने लगी.. लंड के बाहर निकालने के साथ ही उसकी कोमल पंखुड़िया बाहर आती और फिर लंड के साथ ही गायब हो जाती... दोनो पसीने से सराबोरे हो गये थे.. और अंततः: नादान खिलाड़ी अंशुल ने अपने लंड की धार निशा की चूत में ही मार दी.. निशा की चूत भी जैसे उस्स रस का रस से ही स्वागत करने को तैयार बैठी थी.. उसने अपने उपर आ गिरे अंशुल को अपनी चूचियों पर ज़ोर से दबा लिया और हाँफने लगी....
"दीदी! मैं असली मर्द हूँ ना.." अंशुल ने निशा के होंटो को चूसने के बाद पूछा....
"मुझे दीदी मत कहना.. तू मेरी जान है जान..!" और निशा उसके होंटो को किसी रसीले फल की तरह चूसने लगी... लंड का आकर एक बार फिर चूत में पड़े पड़े ही बढ़ने लगा... अंशुल ने दोबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए थे....
"आब्बी साले.. कहाँ है तेरी मा की चूत... 11:30 हो गये... अब उसको बुला नही तो तेरी गांद मारूँगा..." राकेश राहुल के साथ छत पर बैठा था.. निशा के इंतज़ार में...
"यार बेहन की लौदी.. चूतिया बना गयी... पर मैं उसको अब छोड़ूँगा नही.. साली ने मेरे आगे कमीज़ निकाल कर दिखाया था.. और मेरे लंड की पिचकारी भी देखी थी..." राहुल अपने आपको और राकेश को तसल्ली दे रहा था...
"तूने कोई सपना देखा होगा.. साले.. यहाँ अपनी मा और चूड़ा ली.. आज एक और लड़की फँस सकती थी.. इसकी मा की गांद.. उसको भी छोड़ दिया इसके लालच में..
"तू चिंता ना कर भाई.. इसको तो दोनो इकते ही चोदेन्गे.. इसकी तो मा की.. इसकी गांद और चूत में इकट्ठे सुराख ना किया तो मेरा नाम बदल देना... चल अब इंतज़ार करने का क्या फयडा....
"तू इनके घर में गया है कभी....." राकेश ने राहुल से कहा...
"नही तो ...क्यूँ?" राहुल ने राकेश को देखा...
"मैं गया हूँ.. मुझे पता है उसका कमरा अलग है.. वो उसी में मिलेगी...."
"तो क्या तू अब नीचे से उसको लेकर आयगा..?" राहुल ने अचरज से पूछा...
"मैं नही तू...!" राकेश ने मुस्कुरा कर राहुल की और देखा......
"नही भाई, मैं नही जवँगा.. मुझे मरने का शौक नही है.. आज नही तो कल उसकी चोदे बिना तो रहेंगे नही... पर यूँ घर जाना तो अपनी गांद मरवाने जैसा ही है..." राहुल ने नीचे जाने से बिल्कुल माना कर दिया...
"चल ठीक है साले... अगर तूने मेरे बिना इसकी सील तोड़ी तो देख लेना फिर...."दोनो उठकर वापस चल दिए...
"तुझे पता है क्या राका... वाणी पूरी आइटम हो गयी है.. शहर जाकर.. आज शाम को मैं उधर से गुजरा तो अपने घर के बाहर थी... यार.. पहचान में भी नही आती.. बिल्कुल अपनी आयशा टाकिया की बेहन लगती है... " राहुल ने राकेश को जी खोल कर बताया...
"आबे भूट्नी के.. आयशा तो उसके आगे पानी भी नही भर सकती.. इस'से अच्छा तो तू दिशा का ही नाम ले लेता...आयशा से तो अब भी वो 2-3 इंच लुंबी होगी...." राकेश ने वाणी के सौंदर्या और भोले पन के आगे हेरोइन आएशा को भी फीका साबित कर दिया...," यार क्या आयशा.. वाएशा.. उसको नज़र भर कर देख कर ही मुथि मारने ( मस्तुबतिओं) का माल मिल जाता था आँखों को.. जिस दिन वो दिखाई दे जाती थी.. बस और कुछ देखने का दिल ही नही करता था... मैं तो अब तक रेप कर चुका होता दोनो का.. पर सालियों पर बहुत तगड़े आदमी का हाथ है... तू एक बात बता.. वो मास्टर चोदता तो वाणी को भी होगा..."
राहुल ने उसकी हां में हां मिलाई..," और नही तो क्या.. वहाँ क्या वैसे ही लेकर गया है.. तू ही सोच.. अगर तू दिशा का लोग होता तो वाणी को चोद देता क्या बिना चोदे......."
"चल छोड़ इन सब बातों को.. याद रखना.. मुझे बुलाना मत भूलना.. निशा की सील तोड़ते समय... उन्हे क्या पता था.. निशा अब गॅरेंटी में नही रही... वो तो नीचे 3 बार लगातार.. नये खिलाड़ी को मर्द बना चुकी है......