desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
सलतान के पास ही पलंग पर तीन सुंदर युवतियां लेटी हुई है। सुलतान की तरह उन्हें भी आस-पास की कोई चिंता नहीं है। उनके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गए हैं, फिर भी वे आराम से खर्राटे ले रही हैं।
पलंग के पास ही चांदी की चौकी पर सुराही और प्याला रखा है, जिससे मालम होता है कि सोने से पहले वहां शरबते-अनार का खुलकर दौर-दौरा हुआ था। सबब यही हैं कि सुलतान और छोकरियां एक तरह से बेसुध और चिंतारहित होकर सो रही हैं। ख्वबगाह के एक कोने में पीतल का एक छोटा-सा घंटा टंगा हुआ है, जिसकी चमक सोने जैसी है।
घंटा हिला। टन-टन का शब्द हुआ।, फिर हिला, फिर शब्द हुआ-टन-टन!!
"यह बेवक्त घंटे की आवाज कैसी?"... कहते हुए सुलतान काशगर हडबड कर उठ बैठे। उनकी दृष्टि तत्क्षण कोने में हिलते हुए घंटे पर जा पड। घंटा अभी तक हिल रहा था। उसकी आवाज अभी तक ख्वाबगाह में गूंज रही थी।
सलतान ने शीघ्रता से तीनों युवतियों को जगाया। सुलतान की आंखों में आश्चर्य का भाव देखकर उनका सुख स्वप्न भंग हो गया और वे सोने की अवस्था में उठकर खड़ी हो गई।
"अपने वस्त्र सम्हाल लो और दरवाजा खोल दो। वजीरे आजम इस बेवक्त मिलने आए हैं, कोई पेचीदा मामला जान पड़ता है- जल्दी करो।" सुलतान ने गंभीरता से कहा। उनके ललाट पर व्याकुलता के चिह्न प्रकट हो आए थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि इतनी रात गए वजीर क्यों आए हैं उनके पास?
वजीर के अतिरिक्त और किसी को भी सुलतान से असमय में मिलने की आज्ञा न थी।
युवतियों ने अपने अस्त-व्यस्त कपड_f को यथास्थान कर लिया। एक ने सुलतान का शाही चोगा लाकर रख दिया। दूसरे ने वजीर के लिए एक चांदी की कुर्सी लाकर रख दी और तीसरे ने आगे बढकर मुख्य द्वार धीरे से खोल दिया।
घबराहट की अवस्था में वजीर अंदर आया और उसने अदब के साथ सुलतान का अभिवादन किया। युवतियां श्रेणीबद्ध होकर चुपचाप खडी हो गई।
“इतनी रात को तुमने क्यों तकलीफ की? तुम्हारी सूरत पर इतनी परेशानी क्यों?" सुलतान ने प्रश्न किया।
“जहाँपनाह ! बात बडी खौफनाक है-" वजीर ने उत्तर दिया।
"जाओ-" सुलतान ने युवतियों को आदेश दिया और गांव तकिये के सहारे उठकर वजीर से पूछा, “बताओ, किस बात ने तुम्हें इतना परेशान कर रखा है? मुझे सख्त ताज्जुब हो रहा है कि तुम...।"
"बात बड। हैरत की शहंशाह ! मैं वजीर हूं, अदना वजीर ! और आप हैं दीन-दुनिया के मालिक। मैं किस मुंह से वह हैरतअंगेज दास्तान आपको सुनाऊं? डर है मुझे कहीं वह बात कहकर मैं खुद जहाँपनाह के गुस्से का शिकार न हो जाऊं, फिर भी जहाँपनाह यकीन रखें अगर मेरे खून का एक-एक कतरा, मेरे मांस का एक-एक जर्रा भी आपके काम आ सके तो मैं जां-निसारी के लिए तहेदिल से तैयार रहंगा..." वजीर ने मिश्रित स्वर में कहा।
पलंग के पास ही चांदी की चौकी पर सुराही और प्याला रखा है, जिससे मालम होता है कि सोने से पहले वहां शरबते-अनार का खुलकर दौर-दौरा हुआ था। सबब यही हैं कि सुलतान और छोकरियां एक तरह से बेसुध और चिंतारहित होकर सो रही हैं। ख्वबगाह के एक कोने में पीतल का एक छोटा-सा घंटा टंगा हुआ है, जिसकी चमक सोने जैसी है।
घंटा हिला। टन-टन का शब्द हुआ।, फिर हिला, फिर शब्द हुआ-टन-टन!!
"यह बेवक्त घंटे की आवाज कैसी?"... कहते हुए सुलतान काशगर हडबड कर उठ बैठे। उनकी दृष्टि तत्क्षण कोने में हिलते हुए घंटे पर जा पड। घंटा अभी तक हिल रहा था। उसकी आवाज अभी तक ख्वाबगाह में गूंज रही थी।
सलतान ने शीघ्रता से तीनों युवतियों को जगाया। सुलतान की आंखों में आश्चर्य का भाव देखकर उनका सुख स्वप्न भंग हो गया और वे सोने की अवस्था में उठकर खड़ी हो गई।
"अपने वस्त्र सम्हाल लो और दरवाजा खोल दो। वजीरे आजम इस बेवक्त मिलने आए हैं, कोई पेचीदा मामला जान पड़ता है- जल्दी करो।" सुलतान ने गंभीरता से कहा। उनके ललाट पर व्याकुलता के चिह्न प्रकट हो आए थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि इतनी रात गए वजीर क्यों आए हैं उनके पास?
वजीर के अतिरिक्त और किसी को भी सुलतान से असमय में मिलने की आज्ञा न थी।
युवतियों ने अपने अस्त-व्यस्त कपड_f को यथास्थान कर लिया। एक ने सुलतान का शाही चोगा लाकर रख दिया। दूसरे ने वजीर के लिए एक चांदी की कुर्सी लाकर रख दी और तीसरे ने आगे बढकर मुख्य द्वार धीरे से खोल दिया।
घबराहट की अवस्था में वजीर अंदर आया और उसने अदब के साथ सुलतान का अभिवादन किया। युवतियां श्रेणीबद्ध होकर चुपचाप खडी हो गई।
“इतनी रात को तुमने क्यों तकलीफ की? तुम्हारी सूरत पर इतनी परेशानी क्यों?" सुलतान ने प्रश्न किया।
“जहाँपनाह ! बात बडी खौफनाक है-" वजीर ने उत्तर दिया।
"जाओ-" सुलतान ने युवतियों को आदेश दिया और गांव तकिये के सहारे उठकर वजीर से पूछा, “बताओ, किस बात ने तुम्हें इतना परेशान कर रखा है? मुझे सख्त ताज्जुब हो रहा है कि तुम...।"
"बात बड। हैरत की शहंशाह ! मैं वजीर हूं, अदना वजीर ! और आप हैं दीन-दुनिया के मालिक। मैं किस मुंह से वह हैरतअंगेज दास्तान आपको सुनाऊं? डर है मुझे कहीं वह बात कहकर मैं खुद जहाँपनाह के गुस्से का शिकार न हो जाऊं, फिर भी जहाँपनाह यकीन रखें अगर मेरे खून का एक-एक कतरा, मेरे मांस का एक-एक जर्रा भी आपके काम आ सके तो मैं जां-निसारी के लिए तहेदिल से तैयार रहंगा..." वजीर ने मिश्रित स्वर में कहा।