desiaks
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"आह-आह !" सरदार ने करवट बदली।
“कैसी तबीयत है सरदार आपकी? "
सरदार ने अपनी निस्तेज आंखें ऊपर की ओर उठाईं—“सुलतान, मैं किस मुंह से तुम्हारी तारीफ करूं? तुम मेरे भाई हो। तुमने मुझ पर जो एहसान किया है, उसका बदला तुम्हें खदा देगा, मैं तो अदना इन्सान हूँ। तुम्हारे एहसान का बदला चुकाना मेरी ताकत से बाहर है।
धीरे-धीरे गिरोह का प्रत्येक व्यक्ति सुलतान को चाहने लगा। सभी सुलतान से दो-दो बातें करने के लिए लालायित रहा करते।
सरदार भी सुलतान को जी-जान से चाहने लगा था, मगर उसे मेहर और सुलतान की प्रेम लीलायें, उनका घंटों अकेले बैठकर बातें करना अच्छा न लगता था।
जब से सुलतान वहां रहने लगा, तब से सरदार ने, फिर कभी मेहर को तंग करने का प्रयास नहीं किया। सुलतान गिरोह के हर एक आदमी को प्रसन्न रखने के लिए जी-जान से कोशिश कर रहे थे।
कादिर और सुलतान में खूब बनती थी। मेहर का प्रेम पाकर सुलतान सब कुछ भूल गये थे। मेहर के प्रेम के कारण ही सुलतान डाकुओं का साथ दे रहे थे, मगर अवसर की ताक में सदा रहते थे। मेहर की मुक्ति का प्रश्न उनके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण था।
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एक महीने बाद
सरदार बिल्कुल स्वास्थ्य हो गया। उसने अपने सब साथियों को और सुलतान को बुलाकर कहा- आज बहुत दिनों बाद मेरी तबियत ठीक हुई है। अब मैं चाहता हूं कि हम लोग किसी ऐसी जगह डाका डालें कि हमारा इतने दिनों का नुकसान पूरा हो जाये। इस काम के लिए मैंने सुलतान काशगर का महल चुना है।"
सुनते ही सुलतान चौंक पड। वह सरदार उन्हीं के महल को लूटने का मंसूबा बांध रहा है। खैर, देखा जायेगा।
सरदार कहता गया—“मुझे अच्छी तरह मालूम है कि सुलतान काशगर के महल में काफी रकम इकट्ठी है और अगर कोशिश करके हम यह रकम हाथ में कर सके। तो हमें इस पेशे से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जायेगी। इधर सुनने में आया है कि सुलतान, सल्तनत छोड़ कर न जाने कहां चले गये हैं और तख्त पर इस वक्त नाकाबिल परवेज का कब्जा है। इसलिए हमें कुछ भी दिक्कत न उठानी पड़गी। जाओ, तैयारी करो।"
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जब से सुलतान काशगर सिंहासन छोड कर चले गये हैं, वृद्ध वजीर बराबर चिन्ताग्रस्त रहता है, क्योंकि उसे शहजादे परवेज के रंग-ढंग अच्छे नहीं दीखते।
सुलतान का रंगमहल आजकल सूना पड़ा हुआ है। महल के बाह्य भाग में वजीर ने अपने रहने का स्थान चुन रखा है, ताकि महल के अंदर जितनी अपार धनराशि एकत्रित है, उस पर कोई बद-निगाह न डाल सके। __यों तो वजीर के लिए एक छोटा-सा महल अलग है, परंतु सुलतान के महल को असुरक्षित देखकर उसने वहीं रहना ठीक समझा।
अर्धरात्रि के अवसान होने में कुछ ही समय शेष था कि वृद्ध वजीर को निद्रा अकस्मात् भंग हो गईं।
वह जल्द से पलंग पर उठ बैठा और कान लगाकर उस आवाज पर गौर करने लगा, जिसे सुनकर निद्रा टूटी थी।
उसने महल के अन्त:पुर से कुछ आवाज सुनी, जैसे महल में बहुत से आदमी घुस आये हों और धीरे-धीरे बातें कर रहे हों।
शीघ्रता के साथ, मगर इस तरह कि अवाज न हो, वह उठ खड़ा हुआ और दरवाजा खोलकर बाहर के पहरेदार को जगाया। पहरेदार आंख मलता हुआ उठ बैठा।
वजीर ने उससे कहा—"माद् ! महल में डाकू घुस आये हैं। तू जल्दी से जा और सिपहसालार से कह कि पांच सौ सिपाहियों को लेकर महल का कोना-कोना घेर ले। बहुत होशियारी और आहिस्ता से यह काम हो। समझ गया ना जा, जल्दी कर!" पहरेदार चला गया।
वजीर ने अपनी तलवार उठाई और अंधेरे में ही वह दबे पांव महल के अग्रभाग वाले हिस्से की ओर बढ़ गया।
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“कैसी तबीयत है सरदार आपकी? "
सरदार ने अपनी निस्तेज आंखें ऊपर की ओर उठाईं—“सुलतान, मैं किस मुंह से तुम्हारी तारीफ करूं? तुम मेरे भाई हो। तुमने मुझ पर जो एहसान किया है, उसका बदला तुम्हें खदा देगा, मैं तो अदना इन्सान हूँ। तुम्हारे एहसान का बदला चुकाना मेरी ताकत से बाहर है।
धीरे-धीरे गिरोह का प्रत्येक व्यक्ति सुलतान को चाहने लगा। सभी सुलतान से दो-दो बातें करने के लिए लालायित रहा करते।
सरदार भी सुलतान को जी-जान से चाहने लगा था, मगर उसे मेहर और सुलतान की प्रेम लीलायें, उनका घंटों अकेले बैठकर बातें करना अच्छा न लगता था।
जब से सुलतान वहां रहने लगा, तब से सरदार ने, फिर कभी मेहर को तंग करने का प्रयास नहीं किया। सुलतान गिरोह के हर एक आदमी को प्रसन्न रखने के लिए जी-जान से कोशिश कर रहे थे।
कादिर और सुलतान में खूब बनती थी। मेहर का प्रेम पाकर सुलतान सब कुछ भूल गये थे। मेहर के प्रेम के कारण ही सुलतान डाकुओं का साथ दे रहे थे, मगर अवसर की ताक में सदा रहते थे। मेहर की मुक्ति का प्रश्न उनके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण था।
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सरदार बिल्कुल स्वास्थ्य हो गया। उसने अपने सब साथियों को और सुलतान को बुलाकर कहा- आज बहुत दिनों बाद मेरी तबियत ठीक हुई है। अब मैं चाहता हूं कि हम लोग किसी ऐसी जगह डाका डालें कि हमारा इतने दिनों का नुकसान पूरा हो जाये। इस काम के लिए मैंने सुलतान काशगर का महल चुना है।"
सुनते ही सुलतान चौंक पड। वह सरदार उन्हीं के महल को लूटने का मंसूबा बांध रहा है। खैर, देखा जायेगा।
सरदार कहता गया—“मुझे अच्छी तरह मालूम है कि सुलतान काशगर के महल में काफी रकम इकट्ठी है और अगर कोशिश करके हम यह रकम हाथ में कर सके। तो हमें इस पेशे से हमेशा के लिए छुट्टी मिल जायेगी। इधर सुनने में आया है कि सुलतान, सल्तनत छोड़ कर न जाने कहां चले गये हैं और तख्त पर इस वक्त नाकाबिल परवेज का कब्जा है। इसलिए हमें कुछ भी दिक्कत न उठानी पड़गी। जाओ, तैयारी करो।"
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जब से सुलतान काशगर सिंहासन छोड कर चले गये हैं, वृद्ध वजीर बराबर चिन्ताग्रस्त रहता है, क्योंकि उसे शहजादे परवेज के रंग-ढंग अच्छे नहीं दीखते।
सुलतान का रंगमहल आजकल सूना पड़ा हुआ है। महल के बाह्य भाग में वजीर ने अपने रहने का स्थान चुन रखा है, ताकि महल के अंदर जितनी अपार धनराशि एकत्रित है, उस पर कोई बद-निगाह न डाल सके। __यों तो वजीर के लिए एक छोटा-सा महल अलग है, परंतु सुलतान के महल को असुरक्षित देखकर उसने वहीं रहना ठीक समझा।
अर्धरात्रि के अवसान होने में कुछ ही समय शेष था कि वृद्ध वजीर को निद्रा अकस्मात् भंग हो गईं।
वह जल्द से पलंग पर उठ बैठा और कान लगाकर उस आवाज पर गौर करने लगा, जिसे सुनकर निद्रा टूटी थी।
उसने महल के अन्त:पुर से कुछ आवाज सुनी, जैसे महल में बहुत से आदमी घुस आये हों और धीरे-धीरे बातें कर रहे हों।
शीघ्रता के साथ, मगर इस तरह कि अवाज न हो, वह उठ खड़ा हुआ और दरवाजा खोलकर बाहर के पहरेदार को जगाया। पहरेदार आंख मलता हुआ उठ बैठा।
वजीर ने उससे कहा—"माद् ! महल में डाकू घुस आये हैं। तू जल्दी से जा और सिपहसालार से कह कि पांच सौ सिपाहियों को लेकर महल का कोना-कोना घेर ले। बहुत होशियारी और आहिस्ता से यह काम हो। समझ गया ना जा, जल्दी कर!" पहरेदार चला गया।
वजीर ने अपनी तलवार उठाई और अंधेरे में ही वह दबे पांव महल के अग्रभाग वाले हिस्से की ओर बढ़ गया।
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