desiaks
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सुलतान सल्तनत का काम देखने लगे, मगर उसकी याद उनके दिल से न गई। जब कभी उसकी बाद आ जाती, उनका हृदय अधीर हो उठता था, कभी-कभी तो वे करवट लेते-लेते सुबह कर देते थे।
रात्रि के समय सुलतान पलंग पर उदास बैठे हुए थे। मेहर की याद ने उन्हें व्याकुल बना रखा था। वे नाना प्रकार के विचारों में बह रहे थे कि सहसा द्वार पर किसी का स्वर सुनकर, उन्होंने उधर देखा।
चौंक पड़े थे। बोले-*अजूरी, तुम!"
द्वार पर सचमुच अजूरी ही खडी थी। उसके हाथों में मदिरा का प्याला था। वह धीरे-धीरे आगे बढ आई।
सुलतान ने पूछा- "तुम कब आई अजूरी ?"
*आज ही आई हूं, जहाँपनाह ! ज्योंही आपका आना सुना, आपको शरबते-अनार पिलाने के लिए दिल बेताब हो गया।"
"अच्छा किया तुमने...।" सुलतान बोले। हाथ बन कर उन्होंने प्याला ले लिया—"मेरी दिलचस्पी के लिए तुम्हारा होना जरूरी भी था।"
सुलतान ने आज बहुत दिनों के बाद मदिरा पी थी। कई प्याले खाली हो गये। धीरे-धीरे उनके मस्तिष्क पर मदिरा ने प्रभाव डालना आरम्भ कर दिया।
वे बोले- आओ अजूरी!* उन्होंने अजूरी को अपने पास खींच लिया— बादशाहों की जिंदगी भी एक अजीज जिन्दगी है। दिन-रात शराब और औरतों में डूबे रहने पर भी उनका दिल जो चाहता है वह नहीं मिलता।"
“ठीक फरमा रहे हैं, आलीजाह!” ...अजूरी ने कहा।
सुलतान बहक रहे थे—“दिल की हालत पूछ रही हो न?...दिल में तो इतनी जलन है मानो आग लगी है। ताज्जुब करती हो?...नहीं अजूरी में सच कहता हूं। यों तो दुनिया के हर एक आदमी के दिल में जलन होती है। किसी के दिल में जलन है दौलत के लिए, किसी के जिगर में जलन है इज्जते-इशरत पाने के लिए, किसी के दिलों-दिमाग में है अपने दिलबर की मुहब्बत पाने के लिए यह सभी तो जलन हो है ! गरज यह कि दुनिया का कोई भी शख्स 'जलन से बचा नहीं है...मेरे जिगर में भी जलन है। मेरा दिल पहले से अब ज्यादा परेशान है। सब कुछ है, मगर मेरा दिल यहां से बहुत दूर है—वहाँ ! मेहर के पास है।"
"मेहर के पास?" --अजूरी ताज्जुब से बोली।
"तब क्या समझ रही है, हो कि मैं सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूं। तुम तो तितली हो। मेरे पास सिर्फ अपनी जवानी लुटाने के लिए आयी हो, मुहब्बत करने के लिए नहीं। मुहब्बत करने की शक्ल दुसरी होती है, अजरी तुम्हारे चेहरे की तरह उसमें बेशर्मी नहीं रहती, तुम्हारी तरह बेदर्द होकर वह मेरे सामने नहीं खडी हो सकती...और एक...एक प्याला और दो...ऐं! तुम्हारा मुंह उदास हो गया है?...और यह क्या? आंसू? वल्लाह! यह भी कोई बात थी जो आंसू निकल आये...अच्छा! यह लो।" और सुलतान ने अजूरी के अधरोष्ठ पर चुम्बन की एक हल्की -सी मुहर लगा दी।
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रात्रि के समय सुलतान पलंग पर उदास बैठे हुए थे। मेहर की याद ने उन्हें व्याकुल बना रखा था। वे नाना प्रकार के विचारों में बह रहे थे कि सहसा द्वार पर किसी का स्वर सुनकर, उन्होंने उधर देखा।
चौंक पड़े थे। बोले-*अजूरी, तुम!"
द्वार पर सचमुच अजूरी ही खडी थी। उसके हाथों में मदिरा का प्याला था। वह धीरे-धीरे आगे बढ आई।
सुलतान ने पूछा- "तुम कब आई अजूरी ?"
*आज ही आई हूं, जहाँपनाह ! ज्योंही आपका आना सुना, आपको शरबते-अनार पिलाने के लिए दिल बेताब हो गया।"
"अच्छा किया तुमने...।" सुलतान बोले। हाथ बन कर उन्होंने प्याला ले लिया—"मेरी दिलचस्पी के लिए तुम्हारा होना जरूरी भी था।"
सुलतान ने आज बहुत दिनों के बाद मदिरा पी थी। कई प्याले खाली हो गये। धीरे-धीरे उनके मस्तिष्क पर मदिरा ने प्रभाव डालना आरम्भ कर दिया।
वे बोले- आओ अजूरी!* उन्होंने अजूरी को अपने पास खींच लिया— बादशाहों की जिंदगी भी एक अजीज जिन्दगी है। दिन-रात शराब और औरतों में डूबे रहने पर भी उनका दिल जो चाहता है वह नहीं मिलता।"
“ठीक फरमा रहे हैं, आलीजाह!” ...अजूरी ने कहा।
सुलतान बहक रहे थे—“दिल की हालत पूछ रही हो न?...दिल में तो इतनी जलन है मानो आग लगी है। ताज्जुब करती हो?...नहीं अजूरी में सच कहता हूं। यों तो दुनिया के हर एक आदमी के दिल में जलन होती है। किसी के दिल में जलन है दौलत के लिए, किसी के जिगर में जलन है इज्जते-इशरत पाने के लिए, किसी के दिलों-दिमाग में है अपने दिलबर की मुहब्बत पाने के लिए यह सभी तो जलन हो है ! गरज यह कि दुनिया का कोई भी शख्स 'जलन से बचा नहीं है...मेरे जिगर में भी जलन है। मेरा दिल पहले से अब ज्यादा परेशान है। सब कुछ है, मगर मेरा दिल यहां से बहुत दूर है—वहाँ ! मेहर के पास है।"
"मेहर के पास?" --अजूरी ताज्जुब से बोली।
"तब क्या समझ रही है, हो कि मैं सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूं। तुम तो तितली हो। मेरे पास सिर्फ अपनी जवानी लुटाने के लिए आयी हो, मुहब्बत करने के लिए नहीं। मुहब्बत करने की शक्ल दुसरी होती है, अजरी तुम्हारे चेहरे की तरह उसमें बेशर्मी नहीं रहती, तुम्हारी तरह बेदर्द होकर वह मेरे सामने नहीं खडी हो सकती...और एक...एक प्याला और दो...ऐं! तुम्हारा मुंह उदास हो गया है?...और यह क्या? आंसू? वल्लाह! यह भी कोई बात थी जो आंसू निकल आये...अच्छा! यह लो।" और सुलतान ने अजूरी के अधरोष्ठ पर चुम्बन की एक हल्की -सी मुहर लगा दी।
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