hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
मैं बोली- “कोई बात नहीं, मैं पानी डाल देंगी...”
वो बोली- “अरे जालिम, यह आग पानी से नहीं बुझेगी। यह तो लण्ड के पानी से बुझती है...”
फिर हमने कपड़े चेंज कर लिये। शादी वाले घर में भीड़ काफी होती है और सोने की जगह मुश्किल से मिलती है। हमको भी ऊपर वाली मंजिल में एक छोटे से कमरे में सोने को जगह मिली थी। मैं और नयला वहाँ सोती थीं। वहां सिर्फ दो चारपाई की जगह थी और बाकी जगह में सामान पड़ा हुवा था। सर्दियों के दिन थे और इससे पहले की वहाँ पर कोई और कब्ज़ा करता, मैं और नयला वहाँ पहुँच गये सोने के लिये।
हमने लाइट बंद की और लेट गये।
नयला ने काहा- “अब तो जोड़ी ने काम शुरू कर दिया होगा और दोनों नंगे हो गये होंगे...”
मैंने कहा- “नयला, मैं तो अपनी फुद्दी पर हाथ फेर रही हूँ और आज यह बड़ा तड़पी है...”
नयला बोली- “तुम हाथ फेर रही हो, मैंने तो उंगली डाली हुई है। जा कोई लड़का ले आ मुझसे बर्दाश्त नहीं होता..”
मैंने कहा- “अगर मेरे पास होता तो मैं इस समय सुहागरात ना मना रही होती...”
लड़के तो कम्बख़्त बहुत हैं लेकिन बदनाम होने से डर लगता है...” नयला बोली- “वैसी मेरे पास एक आयडिया है। इस कमरे में कितना अंधेरा है, अगर दो लड़के यहाँ आकर हमें चोदकर चले जाएँ और अंधेरे में उनको क्या पता चलेगा की हम कौन हैं?”
मैंने कहा- “आइडिया तो ठीक है लेकिन वो आयेंगे कहां से...”
नयला बोली- “मैं बुला के लाती हूँ..”
मैं बोली- “लेकिन कहाँ से?”
वो बोली- “इधर बाहर कोई ना कोई घूम रह होगा."
मैंने कहा- “लेकिन जब तुम बाहर जाओगी तो वो तुमको पहचान लेंगे...”
नयला बोली- “तो फिर कुछ तो करना पड़ेगा...”
मैंने कहा- “एक तरह हो सकता है, तुम यहाँ दरवाजे में नकाब्ब करके थोड़ा सा मुँह बाहर निकालकर खड़ी हो जाओ, कोई ना कोई यहाँ से गुजरे तो उसको अंदर बुला लेना...”
वो बोली- “हाँ यह ठीक है..” नयला बोली और फिर उठकर उसने चादर ली नकाब किया और दरवाजे से बाहर मुँह निकाल लिया, खड़ी रही, काफी देर खड़ी रही।
मैंने पूछा- “कोई मिला क्या?”
वो बोली- “नहीं आ रहा...”
मुझे बड़ी बेचैनी हो रही थी और मैं मुसलसल अपनी फुददी को मसल रही थी। फिर नयला ने सरगोशी की- “आ एक लड़का आ रहा है...”
मेरा दिल धड़का जब वो करीब आया तो नयला ने उसको शी श्इ किया। वो देखके पास आया।
वो बोली- “अरे जालिम, यह आग पानी से नहीं बुझेगी। यह तो लण्ड के पानी से बुझती है...”
फिर हमने कपड़े चेंज कर लिये। शादी वाले घर में भीड़ काफी होती है और सोने की जगह मुश्किल से मिलती है। हमको भी ऊपर वाली मंजिल में एक छोटे से कमरे में सोने को जगह मिली थी। मैं और नयला वहाँ सोती थीं। वहां सिर्फ दो चारपाई की जगह थी और बाकी जगह में सामान पड़ा हुवा था। सर्दियों के दिन थे और इससे पहले की वहाँ पर कोई और कब्ज़ा करता, मैं और नयला वहाँ पहुँच गये सोने के लिये।
हमने लाइट बंद की और लेट गये।
नयला ने काहा- “अब तो जोड़ी ने काम शुरू कर दिया होगा और दोनों नंगे हो गये होंगे...”
मैंने कहा- “नयला, मैं तो अपनी फुद्दी पर हाथ फेर रही हूँ और आज यह बड़ा तड़पी है...”
नयला बोली- “तुम हाथ फेर रही हो, मैंने तो उंगली डाली हुई है। जा कोई लड़का ले आ मुझसे बर्दाश्त नहीं होता..”
मैंने कहा- “अगर मेरे पास होता तो मैं इस समय सुहागरात ना मना रही होती...”
लड़के तो कम्बख़्त बहुत हैं लेकिन बदनाम होने से डर लगता है...” नयला बोली- “वैसी मेरे पास एक आयडिया है। इस कमरे में कितना अंधेरा है, अगर दो लड़के यहाँ आकर हमें चोदकर चले जाएँ और अंधेरे में उनको क्या पता चलेगा की हम कौन हैं?”
मैंने कहा- “आइडिया तो ठीक है लेकिन वो आयेंगे कहां से...”
नयला बोली- “मैं बुला के लाती हूँ..”
मैं बोली- “लेकिन कहाँ से?”
वो बोली- “इधर बाहर कोई ना कोई घूम रह होगा."
मैंने कहा- “लेकिन जब तुम बाहर जाओगी तो वो तुमको पहचान लेंगे...”
नयला बोली- “तो फिर कुछ तो करना पड़ेगा...”
मैंने कहा- “एक तरह हो सकता है, तुम यहाँ दरवाजे में नकाब्ब करके थोड़ा सा मुँह बाहर निकालकर खड़ी हो जाओ, कोई ना कोई यहाँ से गुजरे तो उसको अंदर बुला लेना...”
वो बोली- “हाँ यह ठीक है..” नयला बोली और फिर उठकर उसने चादर ली नकाब किया और दरवाजे से बाहर मुँह निकाल लिया, खड़ी रही, काफी देर खड़ी रही।
मैंने पूछा- “कोई मिला क्या?”
वो बोली- “नहीं आ रहा...”
मुझे बड़ी बेचैनी हो रही थी और मैं मुसलसल अपनी फुददी को मसल रही थी। फिर नयला ने सरगोशी की- “आ एक लड़का आ रहा है...”
मेरा दिल धड़का जब वो करीब आया तो नयला ने उसको शी श्इ किया। वो देखके पास आया।