hotaks444
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एक नंबर के ठरकी
ये कहानी है राहुल की. जिसकी उम्र करीब 25 साल है.
कहानी शुरू करने से पहले राहुल की लाइफ का बॅकग्राउंड बता दूँ ..जिससे आपको इसकी आगे की कहानी समझने में मदद मिलेगी.
राहुल पुणे में एक मल्टिनॅशनल कंपनी में काम करता था..और उसे अपने ऑफीस में काम करने वाली एक लड़की से प्यार हो गया, और दोनो ने एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें भी खा डाली..बात शादी तक पहुँच गयी..लेकिन राहुल के घर वालो को उसका ये फ़ैसला मंजूर नही था...कारण था वो लड़की...क्योंकि वो मुसलमान थी. नाम था सबा.
आज से पहले राहुल के खानदान में किसी ने भी इंटरकास्ट मैरिज नही की थी...राहुल के घर वालो ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो किसी की भी बात समझने को राज़ी नही हुआ...आख़िरकार उसके पापा ने गुस्से में आकर उसे घर से निकल जाने की बात कह दी...जवान खून था और प्यार का भूत सवार था, इसलिए राहुल ने भी बिना कोई देरी किए उसी वक़्त अपना सामान पैक किया और घर छोड़ दिया...उसकी माँ और बहन ने काफ़ी रोका, रोई,पर उन बाप-बेटे ने अपने फैसले नही बदले..
वहां से निकलकर राहुल सीधा सबा के घर पहुँचा..
उसके पिता का देहांत कई साल पहले हो चुका था...उसकी माँ एक सरकारी स्कूल में टीचर थी और सबा की एक छोटी बहन कॉलेज में पढ़ रही थी...उसकी माँ को राहुल के घर वालो की तरह उनकी शादी से कोई आपत्ति नहीं थी ..वो अपनी बेटी की खुशी में ही खुश थी...इसलिए उसने उन दोनो को एक साथ रहकर अपनी जिंदगी जीने की इजाज़त दे दी ..
राहुल और सबा की शादी आनन-फानन में एक आर्यसमाज मंदिर में हुई...और शादी के बाद राहुल सीधा मुंबई के लिए निकल गया..जहाँ उसके दोस्त ने एक अच्छी सी जॉब का पहले से प्रबंध कर रखा था.
नौकरी तो उसे मिल गयी पर घर आसानी से नही मिल सका..राहुल कुछ दिन के लिए अपने दोस्त के घर पर ही रुक गया..उसका भी छोटा सा घर था, इसलिए राहुल जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहता था..
मुंबई मे घर मिलना आसान काम नही था...वो शुरू से ही सॉफ सुथरे माहौल में रहता आया था..इसलिए अब भी ढंग की जगह पर ही रहना चाहता था...और जो ढंग की जगह उसे पसंद आती वहां का किराया काफ़ी था जो राहुल की सैलेरी का लगभग आधा था...आधे से ज़्यादा पैसे अगर किराए में दे दिए तो बाकी के खर्चे कैसे चलाएगा..यही सोचकर राहुल अक्सर परेशान रहता था.
उसकी परेशानी देखकर सबा ने भी जॉब करने की बात कही...आख़िरकार पहले भी तो वो जॉब कर ही रही थी..राहुल भी उसकी बात मान गया और सबा ने जॉब ढुढ़नी शुरू कर दी.राहुल के बॉस को जब ये बात पता चली तो उसने उसी ऑफीस में सबा को जॉब करने की सलाह दी..इंटरव्यू हुआ और सिलेक्शन भी हो गया.अब उन दोनो की सॅलरी से वो आसानी से एक अच्छा सा घर ले सकते थे.
और यहाँ भी राहुल के बॉस ने ही उसकी मदद की,उन्होने अपनी ही सोसायटी में उसे एक फ्लॅट किराए पर दिलवा दिया, जो ऑफीस के काफ़ी करीब था...सोसायटी भी अच्छी थी और रेंट भी वाजिब था...और धीरे-2 राहुल और सबा की जिंदगी सेट्ल होने लगी.
और अब आप सभी को ज़्यादा बोर ना करते हुए असली कहानी पर आती हूँ.
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ये कहानी है राहुल की. जिसकी उम्र करीब 25 साल है.
कहानी शुरू करने से पहले राहुल की लाइफ का बॅकग्राउंड बता दूँ ..जिससे आपको इसकी आगे की कहानी समझने में मदद मिलेगी.
राहुल पुणे में एक मल्टिनॅशनल कंपनी में काम करता था..और उसे अपने ऑफीस में काम करने वाली एक लड़की से प्यार हो गया, और दोनो ने एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें भी खा डाली..बात शादी तक पहुँच गयी..लेकिन राहुल के घर वालो को उसका ये फ़ैसला मंजूर नही था...कारण था वो लड़की...क्योंकि वो मुसलमान थी. नाम था सबा.
आज से पहले राहुल के खानदान में किसी ने भी इंटरकास्ट मैरिज नही की थी...राहुल के घर वालो ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो किसी की भी बात समझने को राज़ी नही हुआ...आख़िरकार उसके पापा ने गुस्से में आकर उसे घर से निकल जाने की बात कह दी...जवान खून था और प्यार का भूत सवार था, इसलिए राहुल ने भी बिना कोई देरी किए उसी वक़्त अपना सामान पैक किया और घर छोड़ दिया...उसकी माँ और बहन ने काफ़ी रोका, रोई,पर उन बाप-बेटे ने अपने फैसले नही बदले..
वहां से निकलकर राहुल सीधा सबा के घर पहुँचा..
उसके पिता का देहांत कई साल पहले हो चुका था...उसकी माँ एक सरकारी स्कूल में टीचर थी और सबा की एक छोटी बहन कॉलेज में पढ़ रही थी...उसकी माँ को राहुल के घर वालो की तरह उनकी शादी से कोई आपत्ति नहीं थी ..वो अपनी बेटी की खुशी में ही खुश थी...इसलिए उसने उन दोनो को एक साथ रहकर अपनी जिंदगी जीने की इजाज़त दे दी ..
राहुल और सबा की शादी आनन-फानन में एक आर्यसमाज मंदिर में हुई...और शादी के बाद राहुल सीधा मुंबई के लिए निकल गया..जहाँ उसके दोस्त ने एक अच्छी सी जॉब का पहले से प्रबंध कर रखा था.
नौकरी तो उसे मिल गयी पर घर आसानी से नही मिल सका..राहुल कुछ दिन के लिए अपने दोस्त के घर पर ही रुक गया..उसका भी छोटा सा घर था, इसलिए राहुल जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहता था..
मुंबई मे घर मिलना आसान काम नही था...वो शुरू से ही सॉफ सुथरे माहौल में रहता आया था..इसलिए अब भी ढंग की जगह पर ही रहना चाहता था...और जो ढंग की जगह उसे पसंद आती वहां का किराया काफ़ी था जो राहुल की सैलेरी का लगभग आधा था...आधे से ज़्यादा पैसे अगर किराए में दे दिए तो बाकी के खर्चे कैसे चलाएगा..यही सोचकर राहुल अक्सर परेशान रहता था.
उसकी परेशानी देखकर सबा ने भी जॉब करने की बात कही...आख़िरकार पहले भी तो वो जॉब कर ही रही थी..राहुल भी उसकी बात मान गया और सबा ने जॉब ढुढ़नी शुरू कर दी.राहुल के बॉस को जब ये बात पता चली तो उसने उसी ऑफीस में सबा को जॉब करने की सलाह दी..इंटरव्यू हुआ और सिलेक्शन भी हो गया.अब उन दोनो की सॅलरी से वो आसानी से एक अच्छा सा घर ले सकते थे.
और यहाँ भी राहुल के बॉस ने ही उसकी मदद की,उन्होने अपनी ही सोसायटी में उसे एक फ्लॅट किराए पर दिलवा दिया, जो ऑफीस के काफ़ी करीब था...सोसायटी भी अच्छी थी और रेंट भी वाजिब था...और धीरे-2 राहुल और सबा की जिंदगी सेट्ल होने लगी.
और अब आप सभी को ज़्यादा बोर ना करते हुए असली कहानी पर आती हूँ.
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