Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी ) - Page 2 - SexBaba
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Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )

आशा---’ रणधीर बाबू के धीर स्थिर आवाज़ ने सन्नाटे को भंग किया |

‘ज.. जी सर...’ आशा ने रणधीर बाबू की ओर देख कर जवाब दिया--- आवाज़ में उत्सुकता का पुट है |

‘नर्वस हो?’ रणधीर बाबू ने पूछा |

‘न-- नो सर..’ आशा की उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी |

‘यू आर अ यंग लेडी--- कम्पेयर्ड टू मी--- राईट?’

‘य... यस सर---’ थोड़ा सहम कर जवाब दी इस बार आशा |

‘ह्म्म्म--- फ़िर भी मुझे कुछ फ़ील क्यूँ नहीं हो रहा?’ धीरे ही सही, पर अब पॉइंट में आना शुरू किया रणधीर बाबू ने---

‘प-- प --- पता --- न-- नहीं स--- सर’ घबराने लगी वह बेचारी --- देती भी तो क्या जवाब देती इस बात का |

‘मुझे पता है क्यों--- और ये भी कि क्या करने से कुछ ---- कुछ अच्छा फ़ील हो सकता है ----| ’ होंठों पे एक घिनौनी मुस्कान लिए बोला वो शैतान |

‘क --- कहिए सर--- क्या करने से अच्छा फ़ील होगा--- आई विल ट्राई टू डू दैट--- |’

‘ट्राई नहीं आशा--- सिर्फ़ तुम्हीं कर सकती हो और तुम्हें करना ही होगा--- |’ अपने पासे एक एक कर फ़ेंक रहा था वह हवसी |

‘ओ--- ओके सर--- |’ घबराई आशा ने तुरंत हामी भरी ----

‘अगर देखा जाए तो मैं ऑलरेडी तुम्हारा बॉस हूँ--- राईट?? ’

‘यस सर---- ’

‘एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट----- राईट??’

‘यस सर--- ’

‘और हर एम्प्लोईज़ को बॉस की बात बिना रोक टोक और न नुकुर के सुनना चाहिए---- राईट ?!’

‘बिल्कुल सर---’

‘तुम भी मेरी हर बात को बिना रोक टोक और ना नुकुर के सुनोगी और मानोगी--- इसलिए नहीं की तुम मेरी एम्प्लोई हो--- वरन इसलिए की तुमने एक सादे कागज़ में लिख कर दिया है जोकि एक तरह का बांड है--- |’

‘यस सर---- बिल्कुल---| ’

‘ह्म्म्म’

शैतानी मुस्कुराहट मुस्कराया वह ठरकी बुड्ढा ---- साफ़ था--- अब कुछ ‘आउट ऑफ़ लीग’ बोलने वाला है----

और हुआ भी वही---

‘तो आशा ---- मुझे ‘फ़्री’ टाइप रहने वाली लेडीज बहुत पसंद है ---- और फ़िलहाल तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो तुम बहुत ‘ओवर- बर्डन’ हो अभी--- बोझ बहुत ज़्यादा है--- डू वन थिंग--- रिमूव योर पल्लू----!!’ वासनायुक्त अपना पहला ही आदेश खतरनाक ढंग से दिया रणधीर बाबू ने |

आशा चौंक उठी---

अविश्वास से आँखें बड़ी बड़ी हो उठी---

मानो उसने भी पहला आदेश या यूँ समझें की ‘इंटरव्यू’ का पहला ही निर्देश कुछ ऐसा होने की आशा नहीं की थी---

प्रतिरोध स्वरुप कुछ कहने हेतु होंठ खोला आशा ने--- पर कुछ याद आते ही तुरंत होंठों को बंद भी कर लिया |

रणधीर मुस्कराया--- सुनहरे चश्में से झाँकते उसके आँखें किसी वहशी दरिंदे के माफ़िक चमकने लगी---

गंभीर स्वर में बोला,

‘आई एम सीरियसली सीरियस आशा--- अपना पल्लू हटाओ--- |’

अत्यंत स्पष्ट स्वर में स्पष्ट निर्देश आया रणधीर की तरफ़ से---

आशा हिचकी--- आँसू रोकी---- थूक का एक बड़ा गोला गटकी--- और धीरे से हाथ उठा कर बाएँ कंधे पर पिन के पास ले गई --- पिन खोलती कि तभी दूसरा निर्देश / आदेश आया ---

‘मेरी तरफ़ देखते हुए आशा--- आँखों में आँखें डाल कर---’

बड़ा ही सख्त कमीना जान पड़ा ये आदमी आशा को--- घोर अपमानित सा बोध करती हुई वह धीरे से आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी--- सीधे उसकी आँखों में --- बिना पलकें झपकाए--- फ़िर आहिस्ते से पिन खोल कर सामने टेबल पर रखी---- कंधे पर ही पल्लू को ज़रा सा सरकाई--- और दोनों हाथ चेयर के आर्मरेस्ट पर रख दी--- दो ही सेकंड में पल्लू सरसराता हुआ पूरा ही सरक कर आशा की गोद में आ गिरा--- रणधीर बाबू के आँखों में लगातार देखे जा रही आशा रणधीर बाबू के आँखों की चुभन अपने जिस्म की ऊपरी हिस्से पर साफ़ महसूस करने लगी और परिणामस्वरुप एक तेज़ सिहरन सी दौड़ गई पूरे शरीर में--- |

आशा भले ही रणधीर बाबू के आँखों में बिन पलकें झपकाए देख रही थी पर ठरकी बुड्ढे की नज़र आशा के पिन खोलते ही उसके सुपुष्ट सुडौल उभरी छाती पर जा चिपके थे |

नीले ब्लाउज में गहरे गले से झाँकती पुष्टकर चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों के आपस में अच्छे से सटे होने से बनने वाली बीच की दरार; अर्थात क्लीवेज ---- बरबस ही रणधीर बाबू की आँखों की दिशा को अपने ओर बदलने पर मजबूर कर रही थीं ---- आशा की चूचियाँ और विशेषतः उसकी चार इंच की क्लीवेज--- उसके लिए ऐसा नारीत्व वाला वरदान था जोकि उसे एक सम्पूर्ण नारी बना रहे थे --- और इस वक़्त एक हवसी ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू का शिकार |

रणधीर बाबू अधीर होते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराई--- और ख़ुद को चेयर पर एडजस्ट करते हुए अपनी दृष्टि को और अधिक केन्द्रित किया आशा के वक्षों पर ---

और जो दिखा उसे ---- उससे और भी अधिक मनचला और उत्तेजित हो उठा वह----!!

आशा के ब्लाउज के ऊपर से ब्रा की पतली रेखा दोनों कन्धों पर से होते हुए नीचे उसके छाती --- और छाती से दोनों चूचियों को दृढ़ता से ऊपर की ओर उठाकर पकड़े; ब्रा कप में बदलते हुए नज़र आ रहे हैं ---- ऐसा दृश्य तो शायद किसी अस्सी बरस के बूढ़े के बंद होती दिल और मुरझाये लंड में जान फूँक दे ---- फ़िर रणधीर जैसे पैंसठ वर्षीय हवसी ठरकी की बिसात ही क्या है ??

रणधीर बाबू ने गौर किया ---- नीले ब्लाउज में गोरी चूचियों की गोलाईयाँ जितनी फ़ब रही हैं ---- उन दोनों गोलाईयों के बीच की दरार --- ऊपर में थोड़ी कत्थे रंग की और फ़िर जैसे जैसे नीचे, ब्लाउज के पहले हुक के पीछे छिपने से पहले, वह शानदार क्लीवेज की लाइन – वह दरार; काली होती चली गई --- ज़रा ख़ुद ही कल्पना कर सकते हैं पाठकगण – एक चालीस वर्षीया सुंदर गोरी महिला --- उनके सामने अपनी नीली साड़ी की पल्लू को गोद में गिराए; गहरे गले का ब्लाउज पहने बैठी है ---- ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रेप की दो पतली धारियाँ कंधे पर से होते हुए --- सीने के पास चूचियों को सख्ती से पकड़ कर इस तरह से उठाए हुए हैं कि क्लीवेज नार्मल से भी दो इंच और बन जाए तो??!! ---- रणधीर बाबू की भी हालत कुछ कुछ ऐसी ही बनी हुई थी --- लाख चाहते हुए भी अपनी नज़रें आशा की दो गोल गोरी चूची और उनके मध्य के लंबी काली दरार पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं --- आकर्षण ही कुछ ऐसा है ---- करे तो क्या करे --- बेचारा बुड्ढा !

उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू के मुख से बरबस ही निकल गया ,

‘पहला हुक खोलो आशा --’

‘ऊंह --!’

आशा चिहुंकी --- निर्देश का आशय समझने के लिए रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू की आँखें तो अभी भी गहरी घाटी में विचरण कर रही थीं --- उनकी नज़रों को फॉलो करते हुए आशा अपने पल्लू विहीन ब्लाउज की ओर नज़र डाली --- और ऐसा करते वह अपने नए नवेले बॉस के निर्देश का आशय समझ गई --- थोड़ी ठिठकी --- पल भर को सही-गलत, पाप-पुण्य का विचार उसके दिल – ओ – दिमाग में आया --- और आ कर चला भी गया --- आख़िर निर्देश का पालन तो करना ही है --- रणधीर बाबू इज़ हर बॉस एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट !

नज़रें नीची किए आहिस्ते से ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ते हुए पहला हुक खोल दी ----

अभी खोली ही थी कि दूसरा निर्देश तुरंत आया ---

‘थोड़ा फैलाओ --- ’

रणधीर बाबू की ओर देखे बिना ही आशा अब थोड़ा मुक्त हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब अपने बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और क्लीवेज का दर्शनीय हिस्सा थोड़ा और बढ़ गया बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए |

‘थोड़ा आगे की ओर करो’ अगला निर्देश !

आशा समझी नहीं --- सवालिया दृष्टि से रणधीर की ओर देखी ---

रणधीर ने हथेलियों के इशारे से थोड़ा आगे होने को बोला ---

इसबार चुक नहीं हुई आशा से ---

बहुत हल्का सा झुक कर अपने सुपुष्ट को उभारों को तान कर सामने की ओर बढ़ा दी !! --- आहह: !! ---- स्वर्ग !!---- यही एक शब्द कौंधा रणधीर बाबू के दिमाग में --- सचमुच --- अप्रतिम सुडौलता लिए हुए परम आकर्षणमय लग रहे हैं --- दोनों --- आशा और उसके दो उभर ! ---- |
 
कुछ मिनटों तक घूरते रहने के बाद रणधीर बाबू ने अपना आईफ़ोन निकाला और आशा को सिर एक तरफ़ झुका कर आँखें ज़रा सा बंद करने को कहा ---- जैसे कि वो नशे में हो --- नशीली आँखें --- जैसा रणधीर बाबू चाहते थे बिल्कुल वैसा करते ही रणधीर बाबू ने फटाफट तीन-चार पिक्स खिंच लिए --- |

फ़िर आँखों को नार्मल रखने को बोल कर फ़िर से तीन- चार पिक्स लिए --- यह सोच कर कि अगर किसी दिन थोड़ी ऊँच-नीच हो जाए तो वह प्रमाण के तौर पर यह दिखा सके कि उन्होंने वो पिक्स आशा के पूरे होशो हवास और उसकी सहमती से ही लिए थे |

उन पिक्स में कमाल की कामुक औरत लग रही थी आशा --- हरेक अंग-प्रत्यंग से --- रोम रोम से कामुकता टपक रही हो --- बिल्कुल किसी काम देवी की भांति --- और स्वर्ग क्या या उसका अर्थ क्या होता है यह तो उसके सामने की ओर अधिक तने हुए बूब्स और डीप क्लीवेज बता ही रहे हैं रणधीर बाबू को |

रणधीर बाबू के शैतान खोपड़ी में अब एक और बात खेल गई --- कि स्वर्ग तो सामने देख लिया पर यदि स्वर्गलाभ नहीं लिया तो फ़िर क्या किया --- इतना खेल खेलने का परिश्रम तो व्यर्थ ही जाएगा |

एक दीर्घ श्वास लेकर रणधीर बाबू ने एक निर्णय और लिया --- कुछ और बोल्ड करने का --- इस तरह के खेल वो बाद में भी खेल सकता है --- फ़िलहाल वक़्त है इस खेल का लेवल बढ़ाने का --- |

खड़े लंड को वैसे ही पैंट की ज़िप से बाहर निकला रख, रणधीर बाबू अपने उस आरामदायक विशेष रेवोल्विंग चेयर से उठे और कुछ ही कदमों में आशा के निकट पहुँच गए ---- |

आशा अपने धौंकनी की तरह बढ़ी हुई दिल की धड़कन पर नियंत्रण का बेहद असफ़ल प्रयास करते हुए तिरछी निगाहों से अपने दाईं ओर बिल्कुल पास आ कर उसकी कुर्सी से सट कर खड़े हुए रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनकी बढ़ी हुई पेट से ऊपर का हिस्सा तो नहीं देख सकी पर नज़र एकदम से उनके पैंट की ज़िप से बाहर बिल्कुल काले रंग के लंड की ओर गई; जो किसी स्टार्ट की हुई खटारे इंजन वाले किसी खटारे टेम्पो की छत पर रखे बांस की तरह हिल रहा था --- |

लंड के अग्र भाग के चमड़ी के मध्य से हल्का सा दिख रहा हल्की गुलाबी रंग का लंडमुंड धीरे धीरे बिल से बाहर आता किसी खतरनाक सांप की भाँति सामने आ रहा था --- आशा ने देखा, --- अग्र भाग की कुछ चमड़ी धीरे धीरे पीछे की ओर जा रही है और अब तक हल्की गुलाबी रंग का प्रतीत होता मशरूम-नुमा लंडमुंड अत्यधिक रक्त प्रवाह के कारण लाल रंग अख्तियार करता जा रहा है --- मशरूम नुमा भाग के टॉप पर बना चीरा बिल्कुल आशा के चेहरे के समीप ही है और पसीने और मूत्र की एक अजीब सी मिली-जुली गंध आशा के नाक में समा रही है --- |

एक पुरुष के यौननांग को अपने इतने समीप पाकर आशा तो एकदम से सकपका गई ---- बेचारी बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर रह गई --- और जब यह बात ध्यान आई कि जिसका यौननांग उसके इतने पास खड़ा है; वह उससे कहीं, कहीं अधिक उम्र के व्यक्ति का है तो शर्म से दुहरा कर लाल हो गई ---- तुरंत ही अपने चेहरे को दूसरी तरफ़ घूमा कर बोली,

‘स... सर... यह क्या....?’

‘ओह कम ऑन आशा--- डोंट बिहेव लाइक अ सिली गर्ल ---- यू आर अ मैरिड वुमन --- तुम्हें तो अच्छे से पता है न, कि यह क्या है ??’

चेहरे पर ऐसे भाव लिए और ऐसी टोन में बोले रणधीर बाबू मानो, परीक्षा केंद्र में किसी छात्रा ने एक जाना हुआ क्वेश्चन का मतलब पूछ ली हो और इससे इन्विजिलेटर को बहुत अफ़सोस हुआ |

‘न..न.. नो सर... म.. मेरा मतलब... आप ये क्या...क्या क...कर रहे ....हैं...?’

घबराहट के अति के कारण सूखते अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर भिगाने की कोशिश करती आशा ने किसी तरह अपना सवाल पूरा किया ---

‘ओह... यू मीन दिस?!!’ अपने तने लंड को देखते हुए आशा की ओर देख कर रणधीर बाबू अपने हल्के पीले-सफ़ेद दांतों की चमक बिखेरते हुए आगे बोले,

‘म्मम्म.... आशा.... अब ऐसे सवाल करने और इस तरह से दूसरी ओर मुँह घुमा लेने तो काम नहीं चलेगा----??--- अब इस बेचारे का ध्यान तो तुम्हें ही रखना है --- कम ऑन --- टर्न हियर --- लुक एट इट ---- इट्स डाईंग फॉर योर लव फिल्ड डिवाइन अटेंशन --- |’

आशा फ़िर भी नहीं मुड़ी --- रणधीर बाबू ने दो तीन बार अच्छे से, नर्म लहजे में आशा को मानाने की कोशिश की --- पर फ़िर भी जब आशा अपेक्षाकृत उत्तर नहीं दी तो रणधीर बाबू का स्वर एकाएक ही बहुत हार्श हो गया ----

‘आशा !! --- आई ऍम नॉट आस्किंग यू टू डू दिस --- ऍम टेलिंग यू --- ऍम ऑर्डरिंग यू टू डू दिस --- !! |’

रणधीर बाबू की आवाज़ में इस बार एक अलग ही धमक थी ---

आशा सहम कर तुरंत ही अपना चेहरा दाईं ओर की --- और ऐसा करते ही उसकी नजर सीधे रणधीर बाबू के फनफनाते लंड पर पड़ी ---

रणधीर बाबू बोले,

‘गिव सम लव --- आशा ---’

आशा आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी --- सुनहरे फ्रेम के ब्राउन ग्लास के अंदर से झाँकते रणधीर बाबू की आँखें एक खास तरह से सिकुड़ कर एक ख़ास ही मतलब बयाँ कर रही थी --- |

आशा के अंदर की बची खुची प्रतिरोधक क्षमता भी हवा में फुर्रर हो गई --- किस्मत का खेल समझ कर अब मन ही मन खुद को तन-मन से पूरी तरह रणधीर बाबू को समर्पित कर उनका मिस्ट्रेस बनने का दृढ़ निश्चय कर आशा ने अपना दाहिना हाथ उठाया और काले, सख्त तने हुए लंड को अपने नर्म हाथों की नर्म उँगलियों की गिरफ़्त में ली और बहुत ही हिचकिचाहट से; बहुत धीरे धीरे अपना हाथ आगे पीछे करने लगी ----

और ऐसा करते ही, रणधीर बाबू सुख और आनंद के चरम सीमा पर पहुँच गए --- आखिर उनकी ड्रीमगर्ल --- (यहाँ शायद ड्रीमलेडी कहना उचित होगा) --- ने उनके हथियार को अपने नर्म हाथों के गिरफ़्त में जो ले लिया है --- लंड के चमड़े पर हथेली के नर्म स्पर्श का अहसास ही उन्हें वो सुख दे रहा है जो शायद किसी कॉल गर्ल की अनुभवी चूत ने भी नहीं दी होगी --- |

इधर आशा भी धीरे धीरे आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगी --- क्योंकि आशा के हाथ के नर्म छूअन के बाद से ही रणधीर बाबू का लंड पल-प्रतिपल फूलता ही जा रहा है और मोटाई और चौड़ाई भी ऐसी बना रखी है जैसा की आज तक आशा ने केवल पोर्न मूवी क्लिप्स में ही देखा है --- रोज़ रातों को मम्मी, पापा और नीर के सो जाने के बाद आशा अकेली तन्हा हो कर बिस्तर पर पड़े पड़े ही मोबाइल पर पोर्न मूवी देखते हुए साड़ी को जाँघों तक उठा कर अपनी बीच वाली लंबी ऊँगली से चूत खुजाती और कलाकार ऊँगली की कलाकारी की मदद से ही पानी छोड़ते हुए सो जाती --- कुछेक बार ऐसा भी हुआ है की पानी छोड़ने के बाद मन में भारी पश्चाताप का बोध की है आशा ने --- पर; ---- एक मशहूर अभिनेता का डायलॉग --- ‘अपने को क्या है; अपने को तो बस; पानी निकालना है ---’ याद आते ही शर्म से लाल हो जाती और दोगुने उत्तेजना से भर वो फ़िर से पानी निकालने के काम में लग जाती ----

पर यहाँ बात यह है कि आजतक आशा ने जिस तरह के आकार वाले लंड देखी थी ; सब के सब मोबाइल के पोर्न मूवीज़ में --- उसने कभी यह कल्पना नहीं की होगी की वास्तविक जीवन में भी ऐसा औज़ार का होना सम्भव है !!
 
निःसंदेह नीर के पापा का भी हथियार का दर्शन की है वह ---- पर --- इतने सालों में तो वह उसका चेहरा भी लगभग भूल सी चुकी है --- हथियार को याद रखना बाद की बात है --- और अगर हथियार तक याद नहीं है, तो इसका मतलब हथियार कुछ खास नहीं रहा होगा ! (ऐसा कभी कभी आशा सोचती थी ---!!) |

इधर लंड फुंफकार रहा था और उधर रणधीर बाबू दिल ही में ज़ोरों से आहें भर रहे थे ---- खड़े रणधीर बाबू ने जब नज़रें नीची कर कुर्सी पर बैठी आशा को उनका लंड हिलाते हुए देखने कोशिश की तो पहली ही कोशिश में उनकी आँखें चौड़ी होती चली गई --- ऊपर से देखने पर आशा की पल्लू विहीन दूधिया चूचियों के बीच की घाटी अधिक लंबी और गहरी लग रही है और आकर्षक तो इतना अधिक की एकबार के लिए तो रणधीर बाबू का दिल ही धड़कना बंद हो गया !! ---- और तो और ----- उसकी ब्लाउज भी पीछे से ---- पीठ पर --- डीप ‘U’ कट लिए है जिससे कि आधे से अधिक गोरी, चिकनी, बेदाग़ पीठ सामने दृश्यमान हो रही है --- ब्लाउज भी कुछ ऐसी टाइट पहनी है की जिससे उसके पीठ की भी करीब तीन इंच की क्लीवेज बन गई है --- |

रणधीर बाबू हाथ बढ़ा कर आशा की दाईं चूची को थाम लिया और प्रेम से दबा कर उसकी नरमी का आंकलन करने लगे --- आह: ! सचमुच---- जितना सोचा था --- उससे भी कहीं अधिक नर्म है इसकी चूचियाँ ---- हह्म्म्म --- साली पूरा ध्यान रखती है अपना----- ! ऐसा सोचा रणधीर बाबू ने |

अचानक हुई इस क्रिया से आशा हतप्रभ हो कर हडबडा गई ---- पर ख़ुद ही जल्दी संभल भी गई --- पहले दिन के पहले ही प्रोजेक्ट में रणधीर बाबू को निराश या नाराज़ नहीं करना चाहती ---

अतः चुपचाप मुठ मारने के कार्य में केन्द्रित रही ---

इधर चूचियों की नरमी मन का लालच और अधिक से अधिक बढ़ाने लगी ---- ब्लाउज के ऊपर से करीब ५ मिनट तक दबाने के बाद रणधीर बाबू उन दोनों चूची को ब्लाउज और ब्रा के नापाक कैद से आज़ाद कर --- उन्हें नंगा कर अपने हाथों में ले उनके छूअन का आनंद ले पूर्ण तृप्त होना चाहते थे --- पर पहले ही दिन एकसाथ इतने सारे काण्ड करने का कोई इरादा नहीं है उनका--- पुराने खिलाड़ी हैं ---

जानते हैं नारी हृदय की आकुलता को ---

उनकी व्यग्रता और मनोभावों को ---

उनके छटपटाहट के सही समय को ---

इसलिए बिना किसी तरह की कोई जल्दबाज़ी किए वह उन नर्म, पुष्ट, गदराई चूचियों को अपनी सख्त मुट्ठी में भींचने में ही लगे रहे ---

उनकी पारखी उँगलियाँ , जल्द ही आशा को बिना कोई खास तकलीफ़ दिए --- यहाँ तक की उसे पता लगने दिए बिना ही ---- उसके ब्लाउज के अगले दो हुक्स को खोल दिए --- अभी भी दो और हुक्स शेष थे , पर उन्हें रहने दिया --- ब्लाउज के खुले दोनों सिरों/ पल्लों को थोड़ा और फैलाया --- अब करीब सत्तर प्रतिशत चूची अनावृत हो गई --- बाकि के अभी अंदर मौजूद एक सफ़ेद-क्रीम कलर के ब्रा में कैद हैं ---

कसे ब्रा कप के कारण ऊपर उठ कर पहले से फूले चूचियाँ और अधिक फूले हुए हैं --- ये देख कर रणधीर बाबू के होश ही मैराथन के लिए भाग गई --- दूधिया चूचियों को क्रीम कलर के ब्रा में देख मन ही मन हद से अधिक प्रफुल्लित होते रणधीर बाबू ये सपने देखने लगे कि गोरी आशा की ये गोरी चूचियाँ काले, लाल और गुलाबी ब्रा में कैसे लगेंगें ??!

ब्लाउज के ऊपर से ही एक एक कर दोनों चूचियों के नीचे हाथ रख कर बारी बारी से तीन चार बार इस तरह उठा उठा कर देखा मानो दोनों चूचियों का वज़न माप (तौल) रहा हो ---

पहले तो आशा बहुत बुरी तरह से शरमाई; पर जब रणधीर बाबू को उसके चूचियों के वज़न देखते हुए एक कामाग्नि भरी ‘ऊफ्फ्फ़...ओह्ह्ह..... लवली ...’ कहते सुनी तो गर्व से भर वह दुगुनी हो गई ..

और वाकई रणधीर बाबू उसके दोनों चूची के भार को देख जितना आश्चर्यचकित हुए --- उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी से बल्लियों उछलने लगे अंदर ही अंदर ---- ये सोच सोच कर कि आने वाले दिनों में इन्हीं चूचियों पर आरामदायक ; सुकून भरे पल बीतने वाले हैं --!

इधर आशा --- ;

पता नहीं क्यूँ, अपने से पच्चीस - तीस साल बड़े --- एक बुज़ुर्ग आदमी के लंड को हिलाने तो क्या; छूने तक घृणा कर रही थी --- वही अब उसी आदमी के द्वारा उसके बूब्स मसले जाने पर वह एक अलग ही ख़ुशी, आनंद मिलने लगी --- एक एडवेंचर सा फ़ील होने लगा उसे |

हिलाते हिलाते बहुत देर हो गई --- लंड अब और भी ज़्यादा अकड़ गया --- लंड हिलाते हुए आशा की हाथों की चूड़ियों से आती ‘छन छन’ की आवाज़ माहौल और मूड को और भी गरमा रही थी --- वीर्य की धार कभी भी फूट सकती है --- और रणधीर बाबू अपना कीमती वीर्य बूंदों को यूँ ही वेस्ट नहीं जाने देना चाहते – इसलिए उन्होंने एक हल्के थप्पड़ से अपने लंड पर से आशा का हाथ हटाया और आगे हो कर उसके होंठों से अपने लंड का छूअन कराया --- आशा भीषण रूप से हिचकी --- कसमसाई --- कातर दृष्टि से रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू अपना सारा होश बहुत पहले ही अपने लंड के सुपाड़े में डाल चुके थे --- सोचने समझने का काम फिलहाल उन्होंने अपने लंड पर छोड़ रखा था और लंड आशा के मुँह में घुसने को बुरी तरह से तत्पर था --- |

आशा नर्वस हो ज़रा सा मुस्कुराई और ऐसा दिखाने की कोशिश की कि;

उसे भी अब थोड़ा थोड़ा इस खेल में मज़ा आ रहा है –

और पूरे मन से रणधीर बाबू का मुठ मारने में खुद को व्यस्त दिखाने का भी भरपूर प्रयास की ----

पर रणधीर बाबू इतने में खुश होने वालों में से नहीं ---

आशा के हाथ में एक और थप्पड़ मारते हुए थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा,

‘एनफ विथ द हैंड्स, स्लट..! --- ’

और इतना कहते हुए एक झटके में जोर का प्रेशर देते हुए आशा के मुँह में लंड का प्रवेश कर दिया ---

‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह....’

इतनी ही आवाज़ निकली आशा की ---

कुछ सेकंड्स लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में ;

थोड़ा सा निकाला,

फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया आशा के गले में ---

मारे दर्द के आशा तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे तगड़े लंड को मुँह में रखने के लिए मुँह / होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर रणधीर हवस में अँधा होकर थोड़ा पर तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा आशा के मुँह में घुसे अपने लंड को --- वह आज कम से कम आशा के हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था ---

‘आःह्हह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म.....’ आशा बस इतना ही कह पा रही थी --
 
जबकि रणधीर बाबू मस्ती में डूबे ज़ोरों से आहें भर रहे थे,

‘ओह्ह्ह्हsssss---- आह्ह्हssssssssss.... यssसsss आsssशाsssss ----- ओह्ह्हssss यसsssssss ----- टेssक ssइटssss ---- टेक इट ssss डीपssss ---- मोर--- मोर--- इनसाइडsss यूsssss ----- ओह्ह्ह फ़कssssss ----!!’

इधर आशा,

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हsssssssss... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss गूंsssss गूंssss ह्ह्ह्हह्हsss ह्ह्ह्हह गोंss गोंss गोंss गोंsss गोंsss म्म्फ्हह्हss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssss’ अब मुँह के किनारों से लार टपकने लगा --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा |

रणधीर बाबू चूचियों को मसलना छोड़ कर आशा के सिर के पीछे हाथ रख अपने तरफ़ धकेलते और ठीक उसी समय अपने कमर को जोर से आगे की ओर झटकते --- इस तरह बेचारी आशा बचने के लिए अपना मुँह हटाए भी तो हटाए कहाँ --- ??

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मssssप्प्फ्हह्ह्हsss ... गूंsss गूंsss गूंssss गूंssss गूंssss गूंsss ह्ह्ह्हह्हsssss’

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्ह.ssss.. गोंss गोंss गोंsss गोंsss गोंsssss ........ म्म्फ्हह्हssss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssssssss’

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्ह गूं गूं गूंssssssss गूं गूं गूं ह्ह्ह्हह्हssssss ह्ह्ह्हहsssss ...... आह्ह्हssssssह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हssssssssssss ....... गोंsss गों ss गोंssss गोंsss गों sssss …. म्म्फ्हह्ह म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssss’

इसी तरह घपाघप आशा के मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार ठरकी बुड्ढा अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच ही गया ----

‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगला उनके औज़ार ने --- पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य की थोड़ा सा निगल लेने के सिवा और कोई चारा न था और बहुत सा तो आशा के कुछ भी सोचने समझने के पहले ही गले से नीचे उतर गया --- नमकीन स्वाद ने आशा के मुँह का जायका पूरी तरह से बिगाड़ दिया ---- उससे अधिक उम्र के --- एक खूंसट ठरकी बुड्ढे का काला गन्दा लंड को मुँह में लेना और फ़िर उसका वीर्यपान करना --- कड़वाहट से भर दिया आशा को – बाकि बचे वीर्य को उगलते हुए खांसने लगी --- हरेक कतरे को निकाल बाहर करना चाहती थी –

इधर बुड्ढे ने दो तीन सफ़ेद कागज़ उसकी ओर बढ़ा कर साफ़ हो लेने को बोला --- साथ ही अपना वाशरूम भी दिखाया --- आशा दौड़ कर अंदर घुस गई --- रणधीर बाबू बड़े प्रेम से एक कागज़ से अपने लंड को पोछते पोछते अपनी कुर्सी पर आ बैठे --- और पहली सफ़लता पर बेहद प्रसन्न मन से मुस्कुराने लगे |

करीब दस मिनट बाद आशा निकली --- कपड़े सही कर ली थी – बाल जो कि रणधीर बाबू के उसके सिर को पकड़ने के वजह से अस्त-व्यस्त हो गए थे; उन्हें भी ठीक कर ली --- पिन लगाईं --- और कुर्सी पर बैठ गई -- |

रणधीर – ‘आशा , दैट वाज़ औसम !! .... आई लव्ड इट --- थैंक्स --- |’

आशा कुछ नहीं बोली, चुप रही ---- नज़रें नीची किए --- |

रणधीर बाबू भी उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना बोले,

‘आशा --- एक और बात --- अच्छे सुन और समझ लो --- और दिमाग में बैठा लो --- आज के बाद , हर दिन, स्कूल बिना ब्रा पहन के आया करोगी --- ओके? और हाँ, कल ही अपने बेटे का फॉर्म और ज़रूरी डाक्यूमेंट्स लेती आना ---- कल से तुम्हारी जॉइनिंग एंड तुम्हारे बेटे का एडमिशन परसों पक्का --- ....’

यह सुनते ही आशा को जैसे अपने कानों पर यकीं नहीं हुआ --- आश्चर्य से रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनके चेहरे पर एक सहमती वाली मुस्कान देख कर उसकी आँखें छलक गईं --- रुंधे स्वर में बोली,

‘थैंक्यू सो मच सर --- थैंक्यू ---’

रणधीर बाबू एक बड़ी सी कमीनी मुस्कान लिए बोला,

‘ओके ओके... एनफ ऑफ़ थैंक्स ---- यू मे गो नाउ --- पर जाने से पहले एक छोटा सा काम और करो --- |’

आशा सवालिया नज़रों से देखी उनकी ओर,

‘अभी जो ब्रा पहनी हुई हो उसे खोल कर यहाँ रख जाओ --- |’

आशा उठी और वाशरूम में जल्दी से घुस गई --- रणधीर बाबू का फ़िर कोई नया आदेश न आ जाए यह सोच कर जल्दी से ब्रा उतर कर ; कपड़ों को ठीक कर के बाहर निकली--- उसे बाहर निकलते देखते ही रणधीर बाबू ने अपना बाँया हाथ बढ़ा दिया --- आशा ने इशारा समझ कर ब्रा उनकी हथेली पर रख दी --- बिना नज़रें उठाए धीरे कदमों से कुर्सी तक पहुँची --- अपना बैग उठाई और जाने लगी --- दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि रणधीर बाबू की आवाज़ आई ,

‘एक और बात --- आज तुम्हारा फर्स्ट टाइम था क्या--- आई मीन टेकिंग माय थिंग इनटू योर माउथ --??!’ बड़ी बेशर्मी से सवाल दागा बुड्डे ने --- |

आशा सिर घूमाए बिना बोली,

‘यस सर |’

और इतना बोल कर तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर चली गई --- |

इधर रणधीर बाबू हैरान --- साफ़ सुनकर भी यकीं नहीं हो रहा --- मानो यकीं करने को ही उनका दिमाग नहीं चाह रहा ---

आखिर एक शादीशुदा, उच्च घर की, संस्कारी, सुशिक्षित महिला का वर्जिन मुँह चोदा है उन्होंने --- न जानते हुए ही सही --- पर चोदा तो ---- और एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने आज एक ऐसी ही महिला को अपना लंड चूसा कर उसके शर्म – ओ – ह्या, हिचक, झिझक, बेबसी और ऐसे ही बहुत सी बाधाओं का बाँध तोड़ा है ---- जो आगे जा कर बहुत काम आने वाला है ----

‘आह्ह्ह:’

एक और आह निकली रणधीर बाबू के मुँह से और हाथ में पकड़े आशा की मुलायम क्रीम कलर के ब्रा को पागलों की तरह नाक और मुँह से लगा कर उसका गंध सूँघने लगे --------- |

क्रमशः

 
करीब १०-१२ दिन बीत गए हैं ---

पिछली घटना को हुए --- |

आशा की नौकरी लग गई है स्कूल में --- नॉन टीचिंग स्टाफ कम रिजर्व्ड टीचर के रूप में --- कभी कोई टीचर नहीं आ पाए तो उसके जगह आशा क्लास ले लेती --- हालाँकि रणधीर बाबू के पास आप्शन तो था, आशा को नर्सरी या जूनियर क्लासेज में टीचर नियुक्त करने का --- पर इससे होता यह कि वह आशा को हर वक़्त अपने पास नहीं पाता --- नॉन टीचिंग स्टाफ़ बनाने से वह जब चाहे आशा को अपने कमरे में बुला सकता है और जो जी में आये कर सकता है | आशा तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है --- मौखिक और लिखित --- दोनों रूपों में; --- इसलिए उसकी ओर से रणधीर बाबू को रत्ती भर की चिंता नहीं थी --- और आशा के अलावा जितनी भी लेडी टीचर्स हैं स्कूल में; उन सबको रणधीर बाबू बहुत अच्छे से महीनों और सालों तक भोग चुके हैं – रणधीर बाबू के स्कूल में काम करना अपने आप में एक गर्व की बात है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता --- इसके अलावा भी, रणधीर बाबू उन सबको समय समय पर इन्क्रीमेंट, हॉलीडेज, और दूसरे सुविधाएँ देते रहते थें --- |

इसलिए, स्कूल छोड़ कर जाना किसी से बनता नहीं था ---

और जितने मेल टीचर्स हैं, वे सब रणधीर बाबू के मैनपॉवर से डरते हैं --- कई नामी गुंडों, नेताओं, मंत्रियों, पुलिस और वकीलों के साथ जान पहचान और उठना-बैठना है | इन सब के बीच रणधीर बाबू की छवि एक बहुत बड़े और पैसे वाले बिज़नेसमैन, ऐय्याश आदमी और अपने काम के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने वाले एक ज़िद्दी इंसान के रूप में प्रचलित है ---

खुद को हरेक दिशा, हरेक कोण से पूरी तरह सुरक्षित कर रखे हैं ये रणधीर बाबू ---

आम इंसान जिस कानून से डरता है,

रणधीर बाबू का उसी के साथ उठना बैठना है ---

जो उसका (रणधीर) साथ दिया--- उसका वारा न्यारा

और जो कोई भी विरोध करने के विषय में सोचने के बारे में भी कभी भूल से सोचा ---

रणधीर बाबू उसका ऐसा इंतज़ाम लगाते कि वह फ़िर कभी कोई भूल करने की स्थिति में न रहा |

पर साथ ही रणधीर बाबू की ख़ासियत भी हमेशा से यह रही की वे कभी भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करते --- फ़िर चाहे कभी किसी हॉस्पिटल का खर्चा उठाना हो --- या नौकरी दिलवाना --- कहीं एडमिशन करवाना हो ---- या फिर नगद (कैश) सहायता ---- कभी पीछे नहीं हटते |

जैसे,

उसी के शागिर्द / चमचों में किसी ने अगर किसी ज़रूरी काम के लिए एक लाख़ रुपए माँगे ; तो रणधीर बाबू उसे दो लाख़ दे देते ---- और दिलदारी ऐसी की बाकि के पैसों के बारे में कुछ पूछते भी नहीं |

किसी शागिर्द / चमचे के घर का कोई सदस्य अगर अस्पताल में है और पैसे कम पड़ रहे हैं तो रणधीर बाबू को पता चलते ही डॉक्टर के बिल से लेकर अस्पताल और दवाईयों के बिल तक चुका देते हैं --- |

रणधीर बाबू को पार्टियों का भी बहुत शौक है ---

अक्सर ही पार्टी देते रहते हैं --- और ऐसी वैसी नहीं ---- बिल्कुल टॉप क्लास की --- हाई फाई लेवल की --- |

और ऐसी पार्टियों में, कानून के पैरोकार हो या उसके रक्षक , मंत्री --- नेता ---- सब अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाते --- |

पार्टियों में जम कर शराब --- शवाब --- और कबाब परोसा जाता ---

और इन सब का बिल जाता रणधीर बाबू के खाते में --- और बिल भी हज़ारों में नहीं ---

वरन लाखों में होते --- जिनका भुगतान बड़े शौक से करते हैं बाबू --- ‘रणधीर बाबू’ |

अब भला ऐसे आदमी को किसका डर--- किस बात का डर ?!

------

इन्हीं दस - बारह दिनों में कई बार छू चुके हैं आशा को रणधीर बाबू ---- और जाहिर ही है की केवल छूने तक खुद को सीमित नहीं रखा है उन्होंने --- अपने रूम में बुला कर बेरहमी से चूचियों को मसलना, देर तक किस करना---- नर्म, फ्लेवर वाले लिपस्टिक लगे होंठों को चूसते रहना --- टेबल के नीचे घुटनों के बल बैठा कर लंड चुसवाना --- ये सब करवाए – किए बिना तो जैसे रणधीर बाबू को दिन ; दिन नहीं लगता और रात को तो नींद आती ही नहीं |

हद तो तब होती जब रणधीर बाबू घंटों आशा को अपनी गोद में बैठाए, मेज़ पर रखे ज़रूरी फाइल्स के काम निपटाते और बीच – बीच में दूसरे हाथ से आशा के नर्म, गदराये, बड़े-बड़े, पुष्टकर चूचियों को पल्लू के नीचे से दम भर दबाते रहते ---

और अगर इतने में कोई लेडी स्टाफ़ / लेडी टीचर किसी काम से कमरे में आने के लिए बाहर से नॉक करती तो आशा को बिना गोद से उतरने को कहे ही स्टाफ़/टीचर को अंदर आने की परमिशन देते और उनके सामने भी आशा की चूचियों के साथ साथ जिस्म के दूसरे हिस्सों से खेलते रहते --- |

बेचारी लेडी स्टाफ़ मारे शर्म के कुछ कह नहीं पाती और ---

यही हालत आशा की भी होती --- |

शर्म – ओ – ह्या से आशा का चेहरा लाल होना और हल्के दर्द में एक तेज़; धीमी सिसकारी लेना रणधीर बाबू को बहुत अच्छा लगता है --- और यही कारण है कि जब आशा को गोद में, बाएँ जांघ पर बैठा कर बाएँ हाथ से --- पल्लू के नीचे से --- बाईं चूची के साथ खेलते हुए मेज़ पर रखी फ़ाइलों पर दस्तख़त या कुछ और कर रहे होते और अगर तभी कोई लेडी स्टाफ़ आ जाए रूम में तो उसके सामने आ कर खड़े या बैठते ही रणधीर बाबू अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली और अँगूठे को अपनी थूक से थोड़ा भिगोते और दोबारा पल्लू के नीचे ले जाकर उसकी बायीं चूची के निप्पल को ट्रेस करते और निप्पल हाथ में आते ही तर्जनी अंगुली और अंगूठे से उसे पकड़ कर ज़ोर से मसलते हुए आगे की ओर खींचते ---

और हर बार ऐसा करते ही ---

आशा भी दर्द के मारे --- ज़ोर से कराह उठती ----

शुरू शुरू में तो लेडी स्टाफ़ चौंक जाती कि ‘अरे क्या हुआ?!’ ----

पर मामला समझ में आते ही शर्म वाली हँसी रोकने के असफ़ल प्रयास में बगलें झाँकने लगती --- |

पर धीरे धीरे ये रोज़ की बात हो गई ---

रोज़ ही कोई न कोई लेडी स्टाफ़ रूम में आती ---

रोज़ ही आशा, रणधीर बाबू की गोद में बैठी हुई पाई जाती ---

और रोज़ ही लेडी स्टाफ़ के सामने ही,

रणधीर बाबू, तर्जनी ऊँगली और अंगूठे पर थूक लगाते ---

और,

फिर, उसी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बीच दबा कर निप्पल को मसलते हुए आगे की ओर खींचने लगते,

और;

रोज़ ही की तरह, हर बार आशा दर्द से एक मीठी आर्तनाद कर उठती --- !

और फ़िर,

दोनों ही --- लेडी स्टाफ़ --- जो कोई भी हो --- वो और आशा दोनों ही मारे शर्म के एक दूसरे से आँखें मिलाने से तब तक बचने की कोशिश करती जब तक वो लेडी स्टाफ़ वहाँ से उठ कर चली नहीं जाती ---

और उसके जाते ही आशा थोड़ा गुस्सा और थोड़ा शिकायत के मिले जुले भाव चेहरे पे लिए रणधीर बाबू की ओर देखती --- और रणधीर बाबू एक गन्दी हँसी हँसते हुए उसके चूचियों से खेलते हुए उसके चेहरे और होंठों को चूमने – चूसने लगते |

धीरे धीरे कुछ लेडी टीचर्स को यह बात खटकने लगी की हालाँकि रणधीर बाबू ने उन लोगों के साथ भी काफ़ी मौज किये हैं; पर आख़िर ये आशा नाम की बला में ऐसी क्या ख़ास बात है जो रणधीर बाबू हमेशा --- सुबह – शाम उसके साथ चिपके रहते हैं ---

सुन्दर तो वाकई में वो है ही ---

बदन भी अच्छा खासा भरा हुआ है ---

ये दो ही बातें तो चाहिए होती हैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बनाने के लिए --- और रणधीर बाबू की बात की जाए तो वो गुलाम बनने वालों में नहीं बल्कि बनाने वालों में से हैं ---

और जो बंदा दूसरों को अपना गुलाम बनाने में माहिर हो --- वह इस एक औरत के पीछे लट्टू हुए क्यूँ घूमेगा भला ??

कोई तो ख़ास वजह होगी ही --- पर क्या ---

ये बात उन लेडी टीचर्स को समझ न आती थी --- और आती भी कैसे --- रणधीर बाबू तो वो हवसी शिकारी है जो हर खूबसूरत औरत को अपना बनाने में लगा रहता है और पहली बार आशा के रूप में उसे वह रत्न मिली जिसे पा कर वह दूसरी सभी औरतों को कुर्बान कर सकता था --- या अब यूँ कहा जा सकता है कि लगभग कुर्बान कर चुके हैं ---

आशा के स्कूल ज्वाइन करने के बाद से ही शायद ही रणधीर बाबू ने किसी ओर औरत के बारे में शायद ही सोचा होगा --- ये और बात है कि रणधीर बाबू के द्वारा; स्कूल के गैलरी या लॉबी में चलते वक़्त कोई लेडी टीचर मिल जाए तो उसके होंठों पर किस करना --- या बूब्स मसल देना या फ़िर पिछवाड़े पर ‘ठास !’ से एक थप्पड़ रसीद देना; ---- ये सब बहुत कॉमन था और चलता ही रहता था और आगे भी न जाने कितने ही दिनों तक चलता रहेगा --- |

उन्हीं टीचर्स में एक है मिसेस शालिनी --- स्कूल में बहुत पहले से टीचर पोस्ट पर पोस्टेड है, पर उम्र में आशा से छोटी है --- चौंतीस साल की --- चूचियाँ उसकी आशा जैसी तो नहीं पर छत्तीस के आसपास की है --- गोल पिछवाड़ा --- आशा के तुलना में पतली कमर --- आशा जैसी दूध सी गोरी भी नहीं पर रंग फ़िर भी साफ़ है --- कह सकते हैं की वो भी गोरी ही है --- दोनों गालों पर दो-तीन पिम्पल्स हैं --- अधिकांश वो सलवार कुरता ही पहनती है --- कुछ ख़ास मौकों पर ही साड़ी पहनना होता है उसका |

शालिनी पिछले सप्ताह भर से देख रही है कि रणधीर बाबू उसकी तरफ़ कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं --- जबकि वो उनकी फेवरेट हुआ करती थी |

ठरकी बुड्ढे से कोई विशेष तो क्या ; रत्ती भर की कोई प्यार व्यार की गुंजाइश नहीं रखती है शालिनी ---

पर अचानक से ही पता नहीं क्यूँ ,

वो थोड़ा इंसिक्योर सा फ़ील करने लगी है ---

आशा जाए भाड़ में --- पर अगर बुड्ढा भी उसके साथ भाड़ में चला गया तो ??

खैर,

उसने तय कर लिया कि वह धीरे धीरे आशा के करीब आएगी और एक दिन सारे राज़ जान कर उसे ब्लैकमेल कर के या तो स्कूल से हटा देगी या फ़िर किसी तरह आशा को साइड कर फ़िर से बुड्ढे के दिल ओ दिमाग में अपने लिए जगह बना लेगी |

--------

 
एक दिन की बात है,

आशा समय से बीस मिनट पहले स्कूल पहुँच गई थी ---- नीर को उसके क्लास में बैठा आई --- बहुत ही कम स्टाफ्स और स्टूडेंट्स को आए देख वह आराम करने का सोची --- पर तभी ध्यान आया कि उसे थोड़ा और सलीके से ठीक होना है --- रणधीर बाबू के लिए --- |

एक श्वास छोड़ी,

एक से दस तक गिनी और फ़िर चल दी वाशरूम की ओर --- ;

लेडीज़ वाशरूम की अपनी ही एक अलग ख़ासियत है इस स्कूल में ---- और जब बनवाने वाला ख़ुद रणधीर बाबू हो, तब तो खास होना ही है |

टाइल्स, मार्बल्स, फैंसी वॉशबेसिंस , लाइटिंग, ... आहा... एक अलग ही बात है ऐसे वाशरूम में...

आशा अब तक एक बात छुपाती आ रही थी रणधीर बाबू से ----

और वो बात यह थी कि ---- ;

आशा ब्रा पहन कर स्कूल आती थी !

घर से निकलते समय तो उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनी होती पर जैसे ही वो स्कूल पहुँचती, जल्दी से नीर को उसके क्लास में पहुँचा कर वह लगभग भागती हुई सी वाशरूम पहुँचती और ब्रा उतार कर अपने बैग में रख लेती !

आज भी वह वाशरूम में घुस कर यही कर रही थी कि तभी शालिनी आ गई --- !

आशा चौंकी; उस वक़्त किसी के आने की कल्पना की ही नहीं थी आशा ने ---- पर अच्छी बात यह रही कि शालिनी के भीतर कदम रखने के दस सेकंड पहले ही उसने अपनी ब्रा बैग में रख चुकी थी और फिलहाल साड़ी पल्लू को सीने पर रख पल्लू के नीचे से हाथ घुसा कर हुक्स लगा रही थी ---

शालिनी भी इक पल को ठिठकी .. उसने भी किसी के वहाँ होने की कल्पना नहीं की थी ---

और अभी अपने सामने आशा को देख वह भी दो पल के लिए भौचक सी रह गई --- |

और कुछ ही सेकंड्स में उसके होंठों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई ---

उसकी अनचाही प्रतिद्वंदी; आशा जो खड़ी है सामने --- आज शायद कुछ अच्छी बातें हो जाए इसके साथ ---

हौले से मुस्कराकर ‘गुड मोर्निंग’ विश की आशा को और दीवार पर लगे लार्ज फ्रेम आईने के सामने खड़ी हो कर अपना दुपट्टा और बाल ठीक करने लगी ---

आशा भी मुस्करा कर रिटर्न विश की दोबारा अपने काम में लग गई --- ब्लाउज हुक्स लगाने के काम में ---

इधर शालिनी भी मन ही मन अपने सवालों को अच्छे से सजाने में लगी रही --- और जल्द ही तैयार भी हुई ---

आईने में देखते हुए अपने बालों के जुड़े को ठीक करते हुए बोली,

‘दीदी, आज जल्दी आ गई आप?’

‘हाँ शालिनी, वो गाड़ी आज जल्दी आ गई थी तो ---- ’

आशा ने अपने वाक्य को अधूरा ही छोड़ा |

‘ओह्ह अच्छा---’ शालिनी ने बात को ज़ारी रखने की कोशिश में बोली |

आशा ने हुक्स लगा लिए --- अब पल्लू को सलीके से प्लेट्स बना कर कंधे पर रखना रह गया जिसे बखूबी, बड़े आहिस्ते से कर रही थी आशा ---

शालिनी को कुछ सूझा,

समथिंग हॉट --- वैरी नॉटी !!

कुछ ऐसा जिसे सोचने मात्र से ही वह शर्मा कर अंदर तक हिल गई ---

आशा की ओर देख चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए बोली,

‘वाह दीदी ! आज तो बड़ी सुंदर लग रही हो इस साड़ी में....’

सुनकर आशा भी मुस्कुराये बिना रह न सकी |

वो खुद भी अब तक तीन - चार बार आईने में गौर से देख देख कर ख़ुद ही पर मोहित सी हो गई है --- और हो भी क्यूँ न ?

गोरे तन पे नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह वाकई अद्भुत सुन्दर लग रही है आज ---

पुरुष तो क्या ; औरत भी आज उसकी अनुपम सुंदरता पर मुग्ध हुए बिना न रह पाए --- |

और हॉट तो वह हमेशा से ही लगती है |

अभी वो पल्लू के एक हिस्से को लेकर सीने पर रखी ही थी कि तभी उसे यह अहसास हुआ कि जैसे शालिनी उसके पास आ कर खड़ी हो गई है --- और तुरंत ही पीछे खड़ी हो गई ---

आशा भौंचक सी हो, सिर उठा कर सामने आईने की ओर देखी --- और पाया की वाकई शालिनी उसके पीछे खड़ी हो कर; पीछे से सामने आईने में आशा को ही अपलक देखे जा रही है --- होंठों पर प्यारी सी मुस्कान --- आँखों में चमक --- ऐसे जैसे किसी छोटी बच्ची को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो --- |

पीछे इस तरह से खड़ी हुई थी शालिनी, कि उसका वक्षस्थल आशा की पीठ से सटे जा रहा था --- आशा को इसका अहसास तो हो रहा था पर एकदम से उससे कुछ कहते नहीं बना --- क्या बोले, ये सोचने, शालिनी को देखने और उसके अगले कदम के धैर्यहीन प्रतीक्षा में ही उसके बोल होंठों से बाहर आज़ादी नहीं पा रहे थे |

दोनों एक दूसरे को आईने में देख रही हैं --- एक, चेहरे पर एक बड़ी सी शर्मीली – शरारती मुस्कान लिए और दूजी, चेहरे पर जिज्ञासा का भाव लिए --- |

अचानक से शालिनी आईने में ही देखते हुए आशा से आँखें मिलाई --- दोनों की आँखें मिलते ही शालिनी के गाल लाज से लाल हो गए --- आशा को अब थोड़ा अजीब लगने लगा --- और कोई बात बेवजह अजीब लगना आशा को बिल्कुल सहन नही होता --- इसलिए और देर न करते हुए भौंहें सिकुड़ते हुए फीकी सी मुस्कान लिए, बहुत धीमे स्वर में पूछी,

‘क्या हुआ----?’

प्रत्युत्तर में शालिनी सिर को हल्के से दाएँ बाएँ घूमा कर ‘ना या कुछ नहीं’ बोलना चाही --- |

फ़िर से दो – चार पलों की चुप्पी ---

और,

तभी एक हरकत हुई;

 
हरकत हुई शालिनी की तरफ़ से ----

आशा की डीप ‘यू’ कट ब्लाउज से उसकी गोरी चिकनी, बेदाग़ पीठ का बहुत सा हिस्सा बाहर निकला हुआ था --- और अभी – अभी शालिनी ने जो किया उससे आशा के शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई --- |

दरअसल,

हुआ ये कि आशा के पीछे खड़ी हो कर उससे आती भीनी भीनी चन्दन सी खुशबू और गोरे तन पर नारंगी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज और उसपे भी डीप यू कट बैक ब्लाउज से झाँकती आधे से भी अधिक गोरी बेदाग़, चमचम करती पीठ; जोकि थोड़ी भीगी हुई थी आशा के ही भीगे बालों के कारण --- देख कर खुद पर नियंत्रण न रख सकी शालिनी और अपना दाँया हाथ सीधा उठा कर, तर्जनी ऊँगली की लंबी नाखून को आशा की पीठ पर टिकाते, धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी थी |

पीठ पर से आशा के कमर तक आते काले लम्बे बाल, जिन्हें वो वाशरूम में खुला छोड़ दी थी; को हटा कर धीरे धीरे उसकी पूरी पीठ पर अपनी ऊँगली के पोर और नाखून से सहलाने लगी ---

आशा हतप्रभ सी कुछ देर तक सहती रही ---

समझ नहीं आ रहा था उसे कि आखिर वो करे तो करे क्या?

सिंगल मदर होने के कारण यौन आकांक्षाओं को अपने अंदर ही मार देना उसने अपनी नियति समझ ली थी ----

पर ये भी सत्य है कि;

ज़रा सा उत्तेजक बात या ऐसी कोई बात हो जाए जिसमें यौनता प्रमुख हो --- तो वह तुरंत ही कामाग्नि में जल उठती थी ---

और आज, अभी ऐसा ही हो रहा है ---

उससे कम उम्र की, उसी की सहकर्मी, स्कूल की एक टीचर उसे यौनेत्तेजक रूप से छू रही है और कहाँ तो उसे रोकने के बजाए उल्टे आशा ही मज़े लेने लगी ---- |

करीब पांच मिनट तक ऐसे ही करते रहने के बाद, शालिनी दोनों हाथों की तर्जनी ऊँगली के नाख़ून से आशा के गदराए मांसल पीठ को सहलाने लगी और फ़िर तीन मिनट बाद दोनों हाथों की तर्जनी और अँगूठे से आशा के कंधे पर से ब्लाउज के बॉर्डर को पकड़ कर बहुत ही धीरे से कंधे पर से सरका दी ---

आशा की अब तक आँखें बंद हो आई थीं ---

कहीं और ही खो गई थी अब तक वो --- अतः उसे शालिनी की करतूत के बारे में पता ही न चला --- वो तो बस अपनी पीठ पर शालिनी के नुकीले नाखूनों से मिलने वाली गुदगुदी और आराम को भोग करने में लगी थी ---- |

पल्लू चमचमाते फर्श पर लोटने लगी और आशा रोम रोम में उठने वाले यौन उत्तेजना की अनुभूति करने में खो गई --- ये देख कर शालिनी ने अब पूरे नंगे कंधे से होकर गर्दन के पीछे वाले हिस्से तक नाखूनों से सहलाते हुए हल्के साँस छोड़ने लगी --- और इसी के साथ ही बीच बीच में दोनों हाथों की अपनी लंबी तर्जनी ऊँगली को गर्दन से नीचे उतारते हुए आशा की उन्नत चूचियों के ऊपरी गोलाईयों के अग्र फूले हिस्सों पर, जो ब्लाउज के “वी” कट से ऊपर की ओर निकले हुए थे; पर हल्के दबावों से दबाने लगी ----

और ऐसा करते ही आशा एक मादक कराह दे बैठी -----

शालिनी के लंबी उँगलियों के हल्के पड़ते दबाव एक मीठी सी गुदगुदी दौड़ा दे रही थी आशा के पूरे जिस्म में --- पूरे दिल से वह रोकना चाहती है फ़िलहाल शालिनी को; पर पता नही ऐसी कौन सी चीज़ है तो जो आशा के हाथों और होंठों को थामे हुए है --- मना कर रही है उसे कि जो हो रहा है उसे होने दो ---- ऐसे पल बार बार नहीं मिलते ---- जस्ट एन्जॉय द फ़ील --- द मोमेंट --- |

करीब दस मिनट ऐसे ही हल्के दबाव देते देते शालिनी की चूत भी पनिया गई --- वो आशा से प्रतिद्वंद्विता का भाव अवश्य रखती है मन में ; पर फ़िलहाल मन के साथ साथ चूत में भी चींटियों की सी रेंगती गुदगुदी ने उसके अंदर की स्वाभाविक कामुकता को इतना बढ़ा दिया कि वह लगभग भूल ही चुकी है की वो और आशा फ़िलहाल स्कूल के वाशरूम में हैं और क्लासेज स्टार्ट होने में कुछ ही मिनट रह गए हैं ----

शालिनी ने ब्लाउज के बॉर्डर वाले सिरों को तर्जनी और अंगूठे से थाम कंधे से और नीचे उतार दी ----

और,

अपने दोनों हाथों को कन्धों के ऊपर से ही ले जाते हुए, थोड़ा हिम्मत करते हुए, काँपते हाथों से ; ब्लाउज के प्रथम हुक को आहिस्ते से खोल दी ----

और बिना कोई समय गंवाते हुए,

शालिनी ने अपने पतले लंबे ऊँगलियों से, खुले हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब आशा के पुष्टकर, नर्म, फूले हुए बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और गहरी क्लीवेज और भी अधिक दर्शनीय हो गई ---- बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए | क्लीवेज के गहराई में शालिनी की ऊँगलियों की छूअन ने आशा को और भी मस्ती में भर दिया और अब वह अपने शरीर को थोड़ा ढीला छोड़ते हुए अपना भार, खुद को पीछे करते हुए शालिनी के जिस्म से टिका कर छोड़ दी ---

शालिनी ने भी कोई और मौका गंवाए बिना, फट से आशा के बगलों से होते हुए उसके बड़े बूब्स को पकड़ ली ;

और पकड़ते ही उसके विशाल चूचियों की नरमी का एक सुखद अहसास हुआ ---

और यह अहसास ऐसा था कि पकड़ने के साथ ही आधे से अधिक दुश्चिन्ताओं को शालिनी खड़े खड़े ही भूल गई ---- टेंशन फ्री ---- और अपने भीतर एक हल्कापन फ़ील होते ही शालिनी ने मस्ती में नर्म चूचियों को दो-तीन बार लगातार ज़ोर से दबा दी ---

आशा एक मृदु ‘आह:’ कर उठी ;

पर शालिनी तीन बार चूची दबाने के बाद ही अचानक से रुक गई ---

आश्चर्य से उसकी आँखें बड़ी होती चली गई ---

कारण,

उसके हाथों ने कुछ महसूस किया किया अभी अभी ---

और वो यह कि आशा ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी है, और उसके खड़े निप्पल जैसे शालिनी की ऊँगलियों को एक मौन उत्तेजक आमन्त्रण दे रहे हों --- कि,

‘आओ, और प्लीज खेलो हमसे--- ’

ना जाने इसी तरह पकड़े, चूचियों से कितनी ही देर खेलती रही वह--- बीच बीच में खुद की चूचियों को भी आगे तान कर आशा की पीठ से लगा देती ----

और आशा भी शालिनी की कोमल वक्षों के नर्म स्पर्श पाते ही अपनी पीठ और अधिक पीछे की ओर ले जाती जिससे की शालिनी की चूचियाँ उसके पीठ से टकरा टकरा कर दबतीं और शालिनी के साथ साथ --;

आशा के मज़े को दोगुना कर देती ---

एक प्रतिष्ठित स्कूल के बंद वाशरूम में दो मादाओं का एक अलग ही खेल चल रहा था --- जोकि निःसंदेह उन दोनों को अपने अपने गदराए जिस्म का परम आनंद देने वाला एक 'अलग एहसास' करा रहा था ----- !!

शालिनी को हैरानी तो बहुत जबरदस्त हुई; क्यूंकि आम तौर पर कोई भी बड़े और भरे स्तनों वाली महिला बिना ब्रा के ब्लाउज पहनती नहीं है,

और आशा के तो काफ़ी अच्छे साइज़ के स्तन हैं, तो फिर इसके ब्रा न पहनने का कारण??!!

शालिनी सोचती रही ---- पर नर्म चूचियों के स्पर्श का आनंद अपने मन से निकाल न सकी--- और सोचते हुए ही दबाते रही --- ब्लाउज कप के पतले कपड़े के ऊपर से ही दोनों निप्पल्स को पकड़ ली और बड़े प्यार से उमेठने लगी ---- निप्पल अब तक सख्त हो कर खड़े भी हो चुके थे --- अतः ब्लाउज के ऊपर से पकड़ने में कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी शालिनी को |

आशा सिवाय एक मीठी ‘आह्ह... उम्म्म...’ के और कुछ न कह सकी ----- आँखें अब भी बंद हैं उसकी --- |

एक और बड़ी हैरानी वाली बात ये घटी शालिनी के साथ की चूचियों और निप्पल को दबाते दबाते उसके हाथ, उँगलियाँ कुछ भीगी भीगी, चिपचिपी सी हो गई थी---

शालिनी कन्फर्म थी की इतनी भी पसीने से न आशा नहाई थी और न ही शालिनी ख़ुद --- तो फ़िर ऐसा क्यों लग रहा है ??

इतने में ही अचानक से घंटी की आवाज़ सुनाई दी ----

इस आवाज़ के साथ ही दोनों हडबडा उठी ---

शालिनी जल्दी से पीछे हटी और अब तक आशा भी आंखें खोल, ख़ुद को ऐसी स्थिति में देख शर्म से दोहरी हो जल्दी जल्दी कपड़े ठीक कर बैग उठा कर वहाँ से निकल गई ---- बिना शालिनी की ओर देखे ----

(आशा पल्लू ठीक करती हुई--)

और,

यहीं काश कि वह एक बार पलट कर शालिनी की ओर एक बार अच्छे से देख लेती--- या कपड़े ठीक करते वक़्त ही --- |

इस पूरे घटनाक्रम के यूँ घटने से शालिनी भी ख़ुद को संभाल नहीं पाई थी और अब आशा के वाशरूम से निकल जाने के बाद ख़ुद को इत्मीनान से व्यवस्थित करने में लग गई --- करीब दस मिनट लगे उसे अपने उखड़ती साँसों पर काबू पाने में --- ‘जागुआर’ टैप खोल कर गिरते पानी के जोर के छींटे लिए उसने अपने चेहरे पर --- कम से कम दस बार --- फ़िर सीधे, आईने में अपने को देखने लगी --- कुछ देर पहले घटी घटना उसे फ़िर धीरे धीरे याद आने लगी ---

सिर झटकते हुए नजर दूसरी ओर करना चाहती ही थी कि तभी उसे टैप के पीछे, दीवार से सटे, थोड़ा हट कर थोड़ी तिरछी हो कर खड़ी रखी उसकी मोबाइल दिखी---

वीडियो रिकॉर्डिंग चालू था !!

हाथ पोंछ कर सावधानी से मोबाइल उठाई ---

रिकॉर्डिंग बंद की ---

गैलरी में गई ----

पहला वीडियो ऑप्शन पर टैप की ---

वीडियो खुला,

फ़िर टैप;

वीडियो प्ले होना शुरू हुआ ----

ज्यों ज्यों वीडियो प्ले होता गया, त्यों त्यों शालिनी के चेहरे में एक चमक और होंठों पर एक बड़ी ही कमीनी सी मुस्कान आती गई -------

(क्रमशः)
 
भाग ६: जो न सोचा था....!





लगातार बजती डोर बेल की आवाज़ से आशा की तन्द्रा टूटी ---

विचारों के भँवर से बाहर निकली ---

खिड़की से आती सुबह की ठंडी हवा के झोंकों ने आशा को कुछ पुराने यादों के गोद में सुला दिया था ---

बिस्तर पर चादर के नीचे पैर फैलाए सफ़ेद नाईट गाउन में, अधलेटी आशा कॉफ़ी पीते पीते ही लगभग सो सी गई थी --- गनीमत थी कि आजकल फ्लास्क नुमा कॉफ़ी जार / मग उपलब्ध है बाज़ार में --- जिसके एक छोटे से छिद्र से ‘सुड़क सुड़क’ कर कॉफ़ी या चाय के घूँट बड़े आराम और प्रेम से लिए जा सकते हैं --- अगर ये आज नहीं होता तो शायद कॉफ़ी बिस्तर पर ही लुढ़क जानी थी --- |

नाईट गाउन जोकि सफ़ेद और कंधे पर पतले ब्रा स्ट्रेप सा है; थोड़ा डीप नेक है जिससे एक सुंदर सा क्लीवेज निकला हुआ है और गाउन के ऊपर से मैचिंग कलर का उसी के साथ वाला एक पतले कपड़े का ओवरकोट पहनी आशा रणधीर बाबू और शालिनी के साथ वाले पुराने यादों को सिर हिला कर झकझोरते हुए आलस मन से बिस्तर से उतरी --- और कॉफ़ी मग को पास वाले एक छोटे से टेबल पर रख वो दरवाज़ा खोलने लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ी ---

रात भर मोबाइल में पोर्न देख देख कर बहुत उत्तेजित हुई थी और जितनी बार भी उत्तेजना के चरम को छूई ---

उतनी ही बार अपनी चूत को ऊँगलियों की सहायता से शांत की --- !

इतनी बार शांत कर चुकी थी कि अब चलने में कठिनाई बोध हो रही है उसे ---

ख़ुद को आगे की ओर खींचती हुई सी आगे बढ़ी और दरवाज़े के पास जा कर की-होल से आँख लगा कर बाहर देखी --- कोई नज़र न आया --- शायद डोर बेल बजाने वाला दरवाज़ा ना खुलता देख, पलट कर जा चुका है; ऐसा सोच कर आशा पलट कर जाने को हुई ही थी कि फ़िर से बेल बजी --- आशा फ़ौरन की-होल से बाहर देखी ---

कोई नहीं है!

‘कौन हो सकता है? सुबह सुबह किसको शरारत करने की सूझी ? --- कहीं रणधीर बाबू तो ----- ; --- नहीं नहीं --- वो नही हो सकते --- पर -----’ अभी और कुछ सोचती आशा के तभी फ़िर बेल बजी ---

आशा ने ख़ुद को संयमित करते हुए थोड़ा कठोर लहजे में पूछी,

“कौन है??”

आवाज़ अब कोई नहीं आई बाहर से --- |

सुबह सुबह इस तरह की गुस्ताखी आशा को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया --- उल्टे गुस्सा तो इतना आया कि अगर उस समय कोई वहां होता तो वो उसका मुँह ही तोड़ देती --- या शायद सर फोड़ देती --- |

की-होल से झाँकती रही आशा --- और जैसे ही इस बार एक हाथ डोर बेल को प्रेस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा, आशा ने तपाक से दरवाज़ा खोल दी --- और जो देखी, उससे हैरान रह गई -- सामने शार्ट हाइट का वही लड़का खड़ा था जो कुछ दिन पहले जब आशा नई नई इस घर में आई थी और ऊपर बालकनी में खड़ी हो ठंडी हवा का आनद ले रही थी , तो ये कुछ दूर से चुपचाप इस सौन्दर्य की देवी को एकटक मुग्ध हो कर लगातार देख रहा था | और खास बात ये थी कि उसके देखने के अंदाज़ में एक अलग ही बात थी जिससे आशा खुद को बहुत अनकम्फ़र्टेबल फ़ील की थी |

उस दिन इस लड़के ने जो पहना था, आज भी लगभग वैसा ही कुछ पहना है --- नेवी ब्लू रंग की सेंडो गंजी और लालिमा लिए गहरे कत्थे रंग का आधी जांघ तक आती हाफ पैंट और कमर पर बंधी लाल गमछी --- और सिर के बिगड़े बाल --- सब मिलकर उस लड़के को एक ठेठ देहाती लुक दे रहे थे --- |

कुछ क्षणों तक उस लड़के को आश्चर्य से देखने के बाद आशा खुद पर नियंत्रण पाते हुई थोड़ा रूखे रुष्ट स्वर में बोली,

“कौन हो? क्या चाहिए?”

लड़का एकदम से जवाब न दे सका --- वह आशा की ओर अपलक भाव से टकटकी बांधे खड़ा रहा --- उसके आँखों में भी आश्चर्य के भाव थे --- वो आशा को कुछ ऐसे देख रहा था मानो उसने आशा को उस दिन के बाद कभी न देख पाने का सोच लिया हो और आज अचानक एकदम से सामने यूँ आ जाने से उसकी वह बाल बुद्धि भी चकरा गई हो जैसे --- |

आशा के प्यारे गोल से मुखरे को देखते हुए उसकी सुराहीदार नुमा गले पर नज़र फ़िसली और फ़िर वहाँ से नज़र फिसलते हुए नीचे उसके वक्षस्थल पर आ कर रूक गए ---

‘ओह्ह:!!’

लड़के के मन में बस इतनी सी बात कौंधी --- ज़्यादा सोचने के लिए समय न मिला उसे --- समय मिल जाता तो शायद उसे आशा की लो नेक गाउन से नज़र आती उस मनभावन मनोहर क्लीवेज को देखने और दिल ही दिल में उसमें डूब जाने का अवसर न मिल पता --- शायद---!!

कम से कम डेढ़ ऊँगली के जितना वो दूधिया चमकदार क्लीवेज सामने दृश्यमान था ---

एकदम स्पष्ट ---

बेदाग़ ---

पुष्टकर, बड़े-बड़े चूचियों के ऊपरी हिस्से को थोड़े गोलाई के रूप में ऊपर उठाए वह मैक्सी आशा के जिस्म के पूरे ऊपरी हिस्से को भरपूर मादकता से भर कर बड़ा खतरनाक बना रही थी -- |

इतनी रमणीय, सुन्दर, गोरी मैम को अपने सामने पाकर वो लड़का हक्काबक्का तो था ही, साथ ही साथ;
मैक्सी के ऊपर से आशा की चूचियों के समझ आते आकार , और एक अच्छी खासी नज़र आती क्लीवेज को इतने सामने देख उस बेचारे लड़के का मुँह अपनेआप थोड़ा खुल गया और एकबार जो खुला फिर वह बंद ही न हुआ ---|

आशा उसकी हालत देख कर ताड़ गई की यह क्या देख रहा है और इसकी ये हालत क्यूँ हो रही है ---?

पहले तो जी में आया की अपने वक्षों को ढक ले; पर --- पर न जाने क्यूँ उसका मन उस लड़के को अपना नुमाइश कराने को जी मचल गया ! मन में ऐसी गुदगुदी सी हुई कि अगर इस वक़्त वह लड़का वहाँ न होता तो पक्का वह खिलखिलाकर ;---- ठहाके मार कर हँस रही होती अभी ---

“ए लड़के... क्या है?? कौन हो तुम... क्यूँ लगातार बेल बजा रहे थे .... और इस तरह क्या देखे जा रहे हो?? ”

ओवरकोट के दोनों पल्लो को सामने की ओर खींचती हुई एक के ऊपर दूसरा रख ; वक्षों को ढकने का नाटक करते हुए बोली |

आशा के स्वर में इस बार झिड़क देने वाला स्वभाव था --- लड़का हडबडा गया ---

खुद को सम्भालते हुए बात को सँभालने का प्रयास किया,

“ओह --- म --- म --- मैडम जी --- मैं --- मैं --- ये बताने आया था कि --- कि --- ”

लड़का अपनी बात पूरी करने ही वाला था कि उसे फ़िर ओवरकोट के पल्लो के फाँकों से सुपुष्ट चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों चूचियों के आपस में अच्छे से सटे होने के कारण बनने वाली एक अच्छी गहराई वाली लम्बी क्लीवेज के दर्शन हो गए --- और दर्शन होते ही उसकी जीभ जैसे उसकी तालू से चिपक गए --- |

“क--- क---- कि ---- आम्म--- म---- वो---- म ---- ”

“अरे क्या क क म म लगा रखा है --- जल्दी बोलो जो बोलना है --- नहीं तो दफा हो जाओ यहाँ से ---”

इस बार वाकई झुँझलाकर डांटते हुए बोली आशा |

डांट का असर तुरंत हुआ भी ---

लड़के ने अपनी नज़र तुरंत फेर ली और दूसरी तरफ़ देखते हुए एक लंबी गहरी सांस ली और आशा की ओर पलट कर देखते हुए बोला,

“व—वो --- वो मम्मी ने कहला कर भेजा है कि आज उनकी तबियत ख़राब है; सो वो आज नहीं आ सकेंगी----”

“मम्मी?? कौन मम्मी??”

“मेरी मम्मी”

“तुम्हारी मम्म--- ओहो --- कहीं तुम बिंदु की बात तो नहीं कर रहे? तुम उसके बेटे हो?”

“जी---” लड़का झेंपते हुए बोला |

“क्या हुआ उसे?”

आशा चिंतित स्वर में पूछी ---

“ज--- जी, कल रात से उन्हें काफ़ी तेज़ बुखार है --- पिताजी डॉक्टर बुलाने गए हैं --- इस बीच मम्मी ने कहा कि उनकी तबियत ख़राब होने की बात मैं गोरी मैम तक पहुँचा दूँ --- ”

“गोरी मैम ??”

आशा बीच में बोली;

“ज --- जी--- मतलब --- आप---”

लड़के ने शरमाते हुए जवाब दिया ---

आशा ‘हाहाहा’ कर के ठहाके मार कर हँस पड़ी ; अब तक थोड़ी लापरवाह सी भी हो गई थी वो --- ओवरकोट के पल्लों को अब तक ढीला छोड़ दिया था उसने और इससे उसके वक्ष और उनके बीच की घाटी भी उन्मुक्त होकर नाचने से लगे थे ---

“तो तुम्हारी मम्मी मुझे गोरी मैम बोलती हैं ?”

“ज --- जी --- ”

“ह्म्म्म--- और तुम भी मुझे गोरी मैम ही कहते हो क्या?”

“ज --- जी--- गोरी तो आप हैं ही --- और ---और ---”

“और??”

“अ--- और --- अच्छी भी --!”

- लड़के ने चोर नज़र से आशा के नाईट गाउन के अंदर उन्मुक्त से नाचते वक्षों की ओर देख कर कहा,

--- लड़के ने सोचा होगा की चोर नज़र से देखने पर शायद उसकी वह गोरी मैम कदाचित उसे पकड़ नहीं पाएगी --- |

पर बेचारा वो यह नहीं जानता था कि जिस गोरी मैम के बारे में ऐसा सोच रहा है ; वो काफ़ी खेली – खिलाई औरत है और चाहे मर्द हो , औरत या कोई कम उम्र का लड़का ही क्यों न हो--- सबकी नज़रों को पकड़ना और ताड़ जाना उससे बेहतर और कोई नहीं जानता --- और बहुत कुछ तो रणधीर बाबू के संगत का भी असर है ऐसे मामलों में --- |

‘अच्छा, अंदर आओ --- मैं देखती हूँ कोई ऐसा काम जो तुम कर सको ---”

“जी”

उसे अंदर बुला कर, वहीं खड़ा रख कर वो अंदर इधर उधर उसके लायक कोई काम देखने लगी --- पर अधिकतर काम किसी महिला वाले काम थे --- और जो दो-तीन काम थे; वह उस लडके से करवाना अच्छा नहीं लगा आशा को |

यही कोई दस मिनट तक एक रूम से दूसरे रूम तक करते करते उसकी नज़र अचानक बाहर ड्राइंग रूम में खड़े लड़के पर गया --- (हालाँकि उस रूम को ड्राइंग रूम न कह कर हॉल कहना ज़्यादा मुनासिब होगा |) ---- लड़का ड्राइंग रूम में ही एक छोटे टेबल पर रखे मध्यम आकार के फ़ोटो फ्रेम को बड़े ध्यान से देख रहा था --- वह आशा की फ़ोटो थी जिसमें वह छोटे नीर को गोद में लिए खड़ी थी --- नीर को गोद में संभालने के उपक्रम में साड़ी एक तरफ़ से हट गई थी जिससे की उसकी गोरी, चिकनी, बेदाग़ पेट और नाभि बहुत हद तक दृश्यमान हो रहा था और साथ ही पल्लू भी इतना हटा हुआ था कि आशा की बायीं चूची अपने पूरे आकार के साथ ब्लाउज के अंदर से ही काफ़ी ज़बरदस्त तरीके से पल्लू के नीचे से झाँक रही थी ---

सही मायनों में झाँकना भी नहीं कहेंगे उसे क्योंकि वह बड़ी चूची ब्लाउज समेत ही लगभग निकल ही आई थी पल्लू के नीचे से ---

लड़के को फ़ोटो फ्रेम की ओर एकटक दृष्टि से देखते देख आशा उत्सुक हो उस फ़ोटो की ओर देखी और देखते ही अपना सिर पीट ली --

वह इसलिए कि;

उस फ़ोटो को बेख्याली में आशा ने उस दिन उस टेबल पर रखी थी जिस दिन वो नई नई शिफ्ट हुई थी इस घर में ---

बाद में ध्यान गया भी था उसका इस तरफ़ पर ये सोच कर कि बाद में हटा लेगी, वो टालती रही; ---

और आज,

उसकी इसी बेख्याली और टालमटोल ; एक कम उम्र के लड़के के सामने उसकी इज्ज़त की बखिया उधेड़ने वाली है – या यूँ कहें कि उधेड़ चुकी है --- |

और हो भी क्यों न?

वह फ़ोटो है ही ऐसी ---

कि दूसरे की बात तो दूर, जिसकी वह फ़ोटो है वो ख़ुद भी शर्मा के दोहरी हो जाए --- कोई संदेह नहीं की वह फ़ोटो एक मासूम से छोटे बेटे और उसकी माँ के मीठी आतंरिकता ही एक साक्षी है पर जो स्थिति बन गई है आशा के कपड़ों के साथ उस फ़ोटो में; देखने वाला कोई भी हो --- वह घंटों सिर्फ़ और सिर्फ़ आशा पर नज़रें गड़ाए बिना रह ही नहीं सकता --- |

आशा एक खंभे नुमा दीवार के पीछे से छुप कर उस लड़के को देखने लगी --- कहीं न कहीं आशा के मन में यह अंदेशा घर कर चुकी है कि अगर यह लड़का इतनी देर से उसके उस फ़ोटो को इतने गौर से देख रहा है तो जल्द ही कुछ तो करेगा ही --- पर क्या --- यही तो दिलचस्प बात होगी !

आशा का मन किशोरावस्था को पार कर युवावस्था में अभी अभी कदम रखने वाली किसी लड़की जैसी हो गई थी जिसके लिए सेक्स या विपरीत लिंग की ओर आकर्षण बहुत ही नई बात थी और इन दोनों बातों को जानने का फिलहाल सामने एक ऐसा मौका था जो शायद ही कोई नई नवेली किशोर लड़की या नवयौवना छोड़े |

बहुत धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए टेबल के और नज़दीक पहुँचा वो --- थोड़ा झुका ---

थोड़ा और झुका ---

और,

फ़ोटो को अच्छे से देखते हुए अपने पैंट में बनते टेंट को हाथों से छू कर थोड़ा सहलाया;

फ़िर एकाएक,

ज़ोर – ज़ोर से पैंट के ऊपर से ही मसलने लगा |

आशा के लिए यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी, पर न जाने क्यों उसका मन किसी नवयौवना की तरह खिलखिला उठा ---
वो और भी कुछ देखने के लिए लालायित हो उठी --

कुछेक बार जोर से – अच्छे से मसल लेने के बाद – लड़के को जैसे अचानक से होश आया --- उसने पलट कर इधर उधर देखा --- फ़िर ऊपर नीचे देखा--- शायद आशा को ढूँढ रहा हो --- शायद इस बात से आश्वस्त हो जाना चाहता हो कि कोई उसे देख नहीं रहा या रही है --- |

हर तरफ़ अच्छे से मुआयना कर लेने के बाद लड़का फिर फ़ोटो की ओर मुड़ा --- और अब धीरे धीरे, सावधानी से; तन कर खड़े लंड को पकड़ कर नीचे की झुकाने लगा --- और अच्छे से सेट कर दिया ---

लंड अब भी तना हुआ है ---

पर अब सामने की ओर नहीं;

वरन,

अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई के साथ पैंट में अब वह नीचे की ओर सेट किया हुआ है --- |

तेज़ रक्तप्रवाह और अति उत्तेजना के कारण लंड अद्भुत ढंग से गर्म हुआ जा रहा है और ऐसी स्थिति में लड़के का हालत बहुत ख़राब हो गया था ---

उसकी आँखें जैसे वासना और तृष्णा से तप्त हो गयी हो ---

पूरा शरीर कांपने सा लगा ---

कंठ सूखने लगा ---

लंड को पैंट के ऊपर से जोर से दबाए रखा था उसने ---

शायद अति उत्तेजना के वशीभूत हो, उसने अपने हथियार को कुछ अधिक ही ज़ोर से दबा दिया होगा--- क्योंकि लड़के के चेहरे पर वेदना के कुछ रेखाएं सी नज़र आई थी पल दो पल के लिए ---

होंठ कंपकंपाए ---

कुछ बोलने के लिए शायद मुँह खोलना चाहा होगा उसने ---

पर बोल निकले नहीं ---

दाएँ हाथ के अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से, लंड के जड़ वाले स्थान से पकड़ता हुआ --- धीरे धीरे कुछ यूँ नीचे की ओर ले गया जैसे खुद के हथियार की मोटाई माप रहा हो --- पैंट के ऊपर से ही लंड के अग्र भाग तक पहुँचने पर थोड़ा सा रुक कर, फ़िर धीरे धीरे उसी तरह से उँगलियों को लंड के दोनों तरफ़ से पकड़े हुए, बड़ी सावधानी से ऊपर की ओर आया ---- इसी तरह वह लगातार कई मिनट तक कई - कई बार करता रहा ---

 
इधर आशा की भी हालत ख़राब हो गई थी ---

अपने हथियार के साथ लड़के को यूँ खेलते देख न जाने आशा भी कब अपने गाउन के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने और खुजलाने लगी थी --- लगभग भूल ही चुकी थी कि वह अभी कहाँ और क्या कर रही है--- भीतर किसी एक कमरे में नीर सो रहा है; यह भी उसके दिमाग से कब का निकल चूका था --- वह तो बस उस लड़के के शारीरिक प्रतिक्रियाओं और उसके लंबे, मोटे लंड को देख कर अपनी सुधबुध खोने में थी --- कामाग्नि उसके अंदर ऐसी भड़की थी कि जिसका कोई पार बता पाना संभव नहीं था उस समय |

धीरे धीरे अपने बाएँ हाथ को अपने कमर से ऊपर उठाते हुए, कमर से लेकर अपनी बायीं चूची के नीचे तक के पूरे हिस्से को लगभग सहलाते हुए वह ऊपर उठी और हौले हौले से अपनी बाई चुची को दबाने लगी ---

आज अपने जिस्म के हरेक अंग का छुअन पता नहीं क्यों उसे एक अजीब सी अहसास दिए जा रही है और बेचारी आशा भी लाख चाह कर अपने दिमाग को इस हद तक काबू में नहीं रख पा रही है कि वह ज़रा सा इस बात पर भी गौर करे की वह क्या चाहती है और क्या कर रही है ?

बाई चूची को दबाते दबाते उसने अब क्लीवेज में एक ऊँगली डाल दी और बड़े प्रेम से अपनी क्लीवेज वाली चमड़ी और उसके रोम रोम को एक गुदगुदी सा अहसास देते हुए एक ऊँगली को दिल के पास गोल गोल घूमा कर दिल को आराम देने की एक मीठी कोशिश करने लगी |

अभी ये चल ही रहा था की अचानक कुछ गिरने की आवाज़ आई ---

आशा हडबडा कर अपने कपड़ों को ठीक कर दीवार से झाँक कर नीचे देखी ---

लड़का फ़ोटो फ्रेम को उठा कर टेबल पर रखने की कोशिश करता हुआ दिखा --- शायद उत्तेजना में धक्का मार कर गिरा दिया होगा --- फ़ोटो को टेबल पर संभाल कर रखते हुए काफ़ी घबराया हुआ लग रहा था वह --- डरा हुआ सूरत ले वह इधर उधर देख रहा है -- शायद आशा के वहाँ आ जाने के आशंका को लेकर चिंतित हो उठा है ---

तभी आशा को एक शरारत सूझी ---

अपने कपड़ों और खुद को व्यवस्थित करते हुए वह चेहरे पर दिखावटी गुस्सा लेकिन होंठों के कोनों पर एक शरारती मुस्कान लिए उस लड़के के सामने जा खड़ी हुई -- लड़के की तो जैसे घिग्घी बंध गई --- वह किसी तरह पैंट को आरी तिरछी कर अपने खड़े लंड को छुपाने की कोशिश किया |

आशा ने अनजान बनते हुए इधर उधर देखते हुए पूछा ,

“क्या हुआ --- एक आवाज़ आई थी न??”

लड़का हडबडाया सा जवाब दिया,

“नहीं मैडम, मैंने तो नहीं सुना --- शायद बाहर कहीं से आवाज़ आई होगी -- |”

“हम्म” कह कर आशा पलटने को हुई ही की रुक गई --- उस टेबल की ओर देखी --- फिर लड़के की ओर --- लड़के का दिल तनिक ज़ोर से धड़का --- आशा ने भौंहे सिकुड़कर टेबल की ओर गौर से देखा ----

फ़िर धीरे कदमों से चलते हुए टेबल के पास पहुँची ---

ठिठक कर नज़रें झुका कर अच्छे से देखी ---

फ़िर सिर को ऐसे हिलाते हुए, जैसे की मानो कोई अनचाही सी गलती हो गई --- वह उस लड़के की ओर पीठ कर के खड़ी हो गई और फ़िर बड़े सलीके --- बड़े खूबसूरत तरीके से अपने पिछवाड़े को बाहर की ओर निकालते हुए सामने की ओर झुक गई ---
और झुकी भी कुछ ऐसे जिससे की उसकी गांड बाहर की ओर एकदम गोल हो ऊपर की ओर उठ गई थी |

और उसी पोजीशन में --- झुके झुके ही आशा टेबल के गोल बॉर्डर लाइन को और फ़ोटो फ्रेम के किनारों को साफ़ करने लगी ---
लड़के की हालत तो बस अब जैसे काटो तो खून नहीं ---

वह ये तो जान ही गया था कि उसकी गोरी मैम ने उसके सख्त तने लंड के कारण उसके पैंट पर अंदर से बनने वाले उभार को देख चुकी है और शायद कुछ कहने भी वाली रही होगी पर ; इस तरह से उसके सामने आकर उसकी ओर पीठ कर के सामने की ओर यूँ झुक जाना जिससे की उसकी गोल बड़ी गांड उभर कर उसके लंड से कुछ दूरी पर प्रकट हो जाए -- ये तो अपने किसी बदतर पोर्न वाले सपने में भी नहीं सोचा होगा |

टेबल और फ़ोटो फ्रेम को पोछने के क्रम में आशा के हाथ की हरेक हरकत के साथ उसकी गांड के दोनों तबले भी ताल से ताल मिलाकर थिरकन करने लगे ---

लडके का लंड अंदर ही अंदर और ऐठन लेने लगा ---

कुछ क्षणों के लिए मानो वह बिल्कुल ही यह समझ नही पाया कि अब करे तो क्या करे --- क्योंकि उसका लंड जिस तरह से ऐँठ कर पैंट के अंदर तना हुआ था और अभी भी और तनने को व्याकुल दिख रहा है ; --- उससे तो ये बिल्कुल स्पष्ट है कि न तो उसका लंड चैन से साँस लेने वाला है और न ही उसे साँस लेने देगा ---

आशा अभी भी टेबल और फ्रेम को धीरे धीरे, आराम से पोंछ रही थी कि अचानक से उसकी नज़र सामने शोकेस पे लगे शीशे पर गई और कुछ देखते ही वह बुरी तरह से चौंक उठी ---

शकल से मासूम सा दिखने वाला यह लड़का असल में इतना दिलेर और बदमाश होगा, इस बात की कल्पना भी नहीं की थी आशा ने ---

दरअसल,

पैंट के अंदर तनतनाए हुए लंड के ज़ोर के ऐँठन से बेचारा लड़का इतना परेशान और बेबस सा हो गया था कि बिना लंड को बाहर निकाले और कोई उपाए न था ---

अतएव,

बिना लाज, भय और चिंता के,---

उसने चैन खोला,

हाथ अंदर डाला

और

सख्त हुए फनफनाते लंड अच्छे से पकड़ कर सावधानी से बाहर निकाला ---

और लगा खुद को सुकून पहुंचाने हेतु एक ज़ोरदार हस्तमैथुन करने !!

आशा कुछ देर तक अपलक उसके इस दिलेरी वाले कारनामे को देखती रही --- जितना आश्चर्य उसे उस लड़के की यूँ उसके पीछे खड़े हो कर लंड बाहर निकाल कर खुलेआम मुठ मारने की दिलेरी पर हो रहा था ---- उससे भी कहीं अधिक वह मुग्ध हुए जा रही थी उस लड़के के मोटे लंड की लम्बाई और चौड़ाई देख कर --- |

जिस तरह से उसके प्रत्येक मुठ पर उसके सुपारे पर की चमड़ी पीछे जाती और इससे उसका टमाटर सा लाल सुपारा सामने प्रकट होता ; उससे हर बार आशा का दिल ज़ोर से एक बार धड़क कर जी ललचा जाता -- |

वह एकबार --

बस एक बार उस लंड को अपने मुट्ठी की गिरफ्त में लेना चाहती थी ---

बस एकबार उसके सुपारे के चीरे हुए स्थान पर अपना नाक बिल्कुल समीप ले जाकर उसके नमकीन से गंध को सूंघना चाहती थी ---

बस एक बार उसके लंड को अच्छे से अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ कर मुठ मार देना चाहती थी ---

बस एक बार लंड के चीरे वाले स्थान के बिल्कुल अग्र भाग पर; अपने जीभ के नुकीले अग्र सिरे से छू कर उस लाल टमाटर से सुपाड़े के छुअन का आनंदमूर्त अहसास लेना चाहती थी ---

और,

अगर हो सके,

मतलब की अगर वाकई में,

हो सके तो,

बस एक बार वह उस ग्रहणयोग्य सुपाड़े को अपने मुँह में भर कर लोलीपोप जैसा चूस कर अपने अतृप्त, लंड-क्षुधा पीड़ित मुँह को कुछ दिनों के लिए शाँत कर लेना चाहती थी --- |

तभी,

हाथ में पकड़ा हुआ फ्रेम, टेबल के बॉर्डर से टकराते हुए नीचे गिरा --- !

टकराने से हुई आवाज़ के कारण आशा की तन्द्रा भंग हुई --- जिस वासना स्वप्न में वह स्वछन्द रूप से सैर कर रही थी --- वहीँ से मानो धडाम से गिरी --- |

होश आया उसे,

और लड़के को भी ---

जल्दी से लंड को अंदर डाल कर चेन लगा लिया और सीधा खड़ा हो गया |

आशा खुद को सम्भालती हुई खड़ी हुई और लड़के की ओर पलटी ---

नज़र सीधे लड़के के पैंट पर गई ----

उभार अब भी बना हुआ है ---

पर साथ ही,

पैंट के सामने, चेन वाला हिस्सा थोड़ा भीगा भीगा सा लगा आशा को --- ज़रा और गौर से देखी, --- ह्म्म्म ---- वाकई में भीगा हुआ है ---- शायद झड़ने वाला होगा --- या फिर शायद झड़ने से पहले लंड का अगला हिस्सा जिस तरह तरलता से भीग जाता है --- वही हुआ होगा ---

‘ओह्ह:! मुझ महिला को ले कर इतनी दीवानगी, इस लड़के में--- हाहाहा |’

मन ही मन खिलखिलाकर हँस दी आशा ---

‘तुम्हारा नाम क्या है?’

‘भोला ....’

‘ह्म्म्म --- तो भोला --- बगीचे का काम करना जानते हो??’

‘जी मैडम’

‘ओके--- तो एक काम करो --- अभी पीछे गार्डन -- आई मीन --- बगीचे में चले जाओ --- और पौधों को सलीके से काट कर थोड़ा सजाओ और सभी में पानी भी दे देना --- ठीक है?’

‘जी मैडम ---’

आशा, उस लड़के को ले पीछे के गेट से बगीचे में ले गई और काम को थोड़ा और अच्छे से समझा दी --- लड़का हर बात को जल्दी और बखूबी समझ गया और तुरंत काम में लग गया --- लड़का काम का है, देख कर आशा को भी ख़ुशी हुई और अंदर चली गई ---- |

पर अंदर जा कर भी उसे चैन नहीं मिला --- भोला का लंड--- उसकी तस्वीर आशा के दिल-ओ-दिमाग में छा सा गया था --- वह जितना अधिक हो सके उसके लंड का दीदार करना चाहती थी --- और इसलिए एक खिड़की की ओट लेकर खड़ी हो गई और भोला को देखने लगी ---

अनायास ही आशा की उंगलियाँ एक बार फिर गाउन के ऊपर से उसकी चूत को खुजलाने लगी ---- पहले ऐसी कभी नहीं थी आशा ---- रणधीर बाबू के साथ न जाने कितने दिन और रातें बिताईं --- पर कभी भी इस तरह वेश्यानुमा ख्याल नहीं आए --- पर आज क्यों ---?

‘उफ्फ्फ़’

एकाएक कुछ बोध हुआ आशा को ---

चूत पनिया गई है --- शायद ज़्यादा देर खुद को रोक ना सके आशा --- लज्जा और घबराहट के संयुक्त भाव खेलने लगे आशा के मन मस्तिष्क में --- वह दौड़ कर गई और बाथरूम में घुस गई ---- शावर खोला और झरने के गिरते पानी के नीचे खड़ी हो गई --- गाउन पहने ही --- कोई सोच विचार नहीं ---- पहले तन में लगी आग बुझे --- फ़िर और कोई बात ----
ठीक पता नहीं --- पर काफ़ी देर तक यूँ ही खड़ी रही शावर के नीचे ---

किन्ही ख्यालों में खोई हुई ---

और ना जाने कितनी देर किन किन ख्यालों में खोई ; खड़ी रहती ---

अगर एक झटके से अपने ख्यालों से बाहर न निकलती तो ---

और झटका लगने का कारण था ---

नहीं,---

कारण था नहीं --- कारण थे --

वह दो हाथ जो आशा के बगलों के नीचे से आ कर; पीछे से आशा के; पानी में सराबोर गाउन से चिपक कर सामने की ओर और बड़े हो कर उभर आए दोनों चूचियों को थाम लिया था ---- |

क्रमशः

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भाग ७: नया कदम .. (अंतिम भाग) (भाग - १)

दो सख्त से हाथों के अपने सुकोमल वक्षों पर पड़ते दबाव से निःसंदेह कसमसा गई वह --- शावर के ठीक नीचे खड़े होने के कारण उससे गिरते पानी सीधे उसके बंद आँखों और चेहरे पर पड़ रहे थे --- और उन कठोर हाथों का मालिक चाहे जो कोई भी हो, पीछे से अडिग रूप से खड़ा था जिस कारण आशा दिल में लाख़ चाहते हुए भी पीछे हट नहीं पा रही थी --- इन्हीं दो कारणों से आशा न आँखें खोल पाई और न ही पीछे हट कर उसके स्तनों के साथ छेड़खानी करने की गुस्ताख़ी करने वाले उन हाथों के स्वामी को देख पाने की स्थिति में रही --- |

पर इतना तो तय है,

कि आशा के सुपुष्ट स्तनों के साथ खिलवाड़ करने वाले वो हाथ किसी अनारी के नहीं हो सकते ---

क्योंकि जिस अनुपम कलात्मक ढंग से वे हाथ और ऊँगलियाँ पूरे स्तनों के क्षेत्रफल पर गोल गोल घूमते हुए उसके निप्पल को छेड़ रहे हैं --- वह किसी खेले – खेलाए ; एक मंझा हुआ खिलाड़ी ही हो सकता है -- |

कोशिश काफ़ी की आशा ने खुद को और खुद के स्तनों को उन हाथों की गिरफ़्त से छुड़ाने की ---

पर छुड़ा न पाई ---

क्योंकि नाकाफ़ी साबित हुए उसके वे कोशिश ---

तर्कों ने लाख़ तर्क दिए ; पर पहले से ही उसपे हावी उसकी काम-क्षुधा ने आशा को उसे, उसके दिल के साथ रज़ामंद होने में देर न होने दी ---

और इसी का प्रतिफल यह रहा कि आशा ने ख़ुद को छुड़ाने की बस इतनी ही कोशिश की कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद को सान्तवना और दूसरों को सबूत दे सके की उसने तो कोशिश की थी ख़ुद को छुड़ाने की, पर बेचारी अबला अकेली नारी ख़ुद को एक मज़बूत हवसी से बचा न सकी --- |

दिल ने गवाही देने के साथ साथ ये माँग करनी भी शुरू कर दी थी कि उसके चूचियों और शरीर के साथ और ज़्यादा से ज़्यादा खेला जाए --- छेड़खानी की गुस्ताख़ी और बढ़े --- सीमाओं के बाँध और टूटे --- अरमानों के बाढ़ और बहे --- शावर से गिरते पानी, सावन की बारिश सी उसकी कामाग्नि को बुझाने में उसकी भरसक मदद करे ----

पर ये सब उसके होंठों से न निकल सके ---

ये बातें दिल में उठ कर दिल में ही दब कर रह गए ---

किसी अनजाने अंदेशों ने इन बातों को उसके होंठों के कैद से बाहर न निकलने दिए ---

सबकुछ जान - समझ रही आशा बस चुपचाप खड़ी रह कर कसमसाते रहने और बीच बीच में ख़ुद को छुड़ाने की एक दिखावटी कोशिश में लगी रही --- |

पर नर्म, सुकोमल, सुपुष्ट चूचियों पर सख्त हाथों के पड़ते दबाव और निरंतर हो रही उनसे छेड़खानियों ने आशा के शरीर को उसके तर्क, लाज, दुविधा और अन्य बातों से बगावत करने को मज़बूर कर ही दिया ---

धीरे धीरे उसके अंदर समर्पण का भाव जन्म लेने लगा ---

गुदगुदी सी हुई पूरे शरीर में --- साथ ही चूत में चीटियाँ सी रेंगने वाली फीलिंग आने लगी ---

कुछ कुछ होने लगा था उसके तन बदन में ----

काम पीड़ा से तो पहले से ही पीड़ित थी वह --- और अब यह पूरा उपक्रम --- ‘उफ्फ्फ़..!’...

वो दोनों हाथ कभी उसके चूचियों को नीचे से ऊपर की ओर उठा कर अच्छे से मसलते, तो कभी मसलते मसलते नीचे बढ़ते हुए कमर तक पहुँचते और थोड़ी देर वहां गोल गोल घूमने के बाद थोड़ा तिरछा हो कर कुछ नीचे और बढ़ते --- चूत के ठीक बिल्कुल ऊपर तक पहुँचते और दो ऊँगलियों से हल्का प्रेशर दे कर एक ऊँगली को दबाए ; दूसरी ऊँगली को उसी तरह दबाए रख कर धीरे धीरे उस हिस्से को गोल गोल घूमाते हुए --- ऊँगलियों के प्रेशर को यथावत बनाए रखते हुए एक सीध में ऊपर उठते हुए कमर तक पहुँचते और फ़िर उसी तरह नीचे चूत तक जाते ----

ठीक उसी तरह प्रेशर को बनाए रखते हुए चूत के ऊपरी हिस्से से खिलवाड़ करते और फ़िर धीरे धीरे उँगलियों से प्रेशर बनाते हुए ऊपर की ओर उठ आते ---

हर दो बार ऐसा करने के बाद तीसरी बार वे हाथ कमर पर पहुँचते ---

गाउन के ऊपर से ही नाभि को टटोलकर पूरे पेट पर घूमते ----

और फ़िर धीरे धीरे चूचियों के ठीक निचले हिस्से पर पहुँच कर गाउन के ऊपर से ब्रैस्ट अंडरलाइन को ढूँढ कर, दोनों अंगूठों से दबाते हुए दोनों चूचियों के नीचे दाएँ बाएँ घूमते ----

और फ़िर दोनों हथेली एकदम से फ़ैल कर उन विशाल मस्त चूचियों को अपने गिरफ़्त में भली प्रकार लेते हुए बड़े प्रेम से मसलने लगते ---- |

आशा तो बस अपनी सारी सुध-बुध खो चुकी थी ---

दिन रात, सर्दी गर्मी ठण्ड, बारिश ---- सब कुछ अभी गौण हो चुके हैं फ़िलहाल उसके लिए ---- |

उसके लिए तो केवल ‘काम’, ‘काम’ , ‘काम’, ‘काम’ और बस..... ‘काम’..... -----

साँसें तेज़ होने लगी उसकी,

धड़कनें तो धीरे धीरे न जाने कब की बढ़ चुकी हैं ---

होंठ काँपने लगे हैं ---

शावर के ठन्डे पानी और तन की गर्मी के मिश्रण से शरीर अजीब सा अकड़ गया है ---

वो हिलना चाहे भी तो नहीं हिल पा रही है ---

पीछे जो भी है,

लगता है बड़ी चूचियों का बहुत दीवाना है ---

तभी तो इतने देर से मसलने के बाद भी अब भी पहले वाले जोश और तरम्यता के साथ मसले जा रहा है ---

गाउन के अंदर ही खड़ी हो चुकी दोनों निप्पल को तर्जनी ऊँगलियों के सहायता से हल्के से छूते हुए ऊपर नीचे और दाएँ बाएँ करके खेलना शायद बहुत पसंद होगा इस शख्स को ---- तभी तो शुरुआत से लेकर अभी तक इस खेल में रत्ती भर का कोई अंतर या परिवर्तन नहीं आया था ---- |

अभी अपने वक्षों पर हो रहे यौन शोषण का आनंद ले ही रही थी कि अचानक से चिहुंक पड़ी आशा ---

कारण,---

कारण था अपने पिछवाड़े पर कुछ सुई सा चुभने का अहसास --- जोकि अभी अभी हुआ उसे --- आशा को ---

कुछ और होगा सोच कर दुबारा मीठे दर्द के अहसास में खोने के लिए तैयार होने जा रही आशा फ़िर से चिहुंक उठी ---
और इस बार चुभने का अहसास कुछ ऐसा था कि वह अपने पैर के अँगुलियों पर ही लगभग खड़ी हो गई --- पर ज़्यादा देर खड़ी न रही आशा ---- क्योंकि वो बलिष्ठ हाथ उसके चूचियों को अच्छे से मुट्ठी में ले अपने ओर --- पीछे की ओर खिंच लिए ---
 
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