desiaks
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मैं ऊपर पहुंचा तो वो तार से कपडे उतार कर एक तरफ रख रही थी, उसने जैसे ही अगला कपडा उतारने के लिए हाथ ऊपर किये मैंने पीछे से उसके गोल मुम्मे पकड़ कर मसल दिए..
"आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह क्या करते हो बाबु........खुले में कोई देख लेगा......छोड़ दो न....." वो जैसे जानती थी की मैं उसके पीछे आऊंगा.
वो मना नहीं कर रही थी, क्योंकि खाने से पहले जो मजे मैंने उसे दिए थे, वो भूली नहीं थी और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अब कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी,
मैंने उसकी गर्दन पर अपने होंठ टिका दिए और वहां से उसे चाटने लगा. मैंने पीछे से उसके गुब्बारे मसलने चालू रखे और नीचे से अपना खड़ा हुआ लंड उसकी गद्देदार गांड पर घिसने लगा. हमारी छत्त पर कोई दूर से तो देख ही सकता था, इसलिए मैंने वहां ज्यादा देर तक खड़ा होना उचित नहीं समझा,
हमारी छत्त के ऊपर एक छोटा सा स्टोर टाइप का कमरा है, जिसमे बेकार का सामान पड़ा रहता है, मैंने उसे वहीँ ले जाना उचित समझा और अन्दर ले जाकर मैंने जैसे ही उसे अपनी तरफ खींचा वो खींचती चली आई.
वो बोली "बाबु.....आज जो मजा मुझे तुमने नीचे दिया था...वैसा तो आज तक नहीं आया....क्या जादू कर दिया है तुमने पहले ही दिन... !!
ऐसा लग रहा है की मेरा बदन तप रहा है, पुरे शरीर में चींटियाँ सी रेंग रही है, और वहां नीचे गुदगुदी सी हो रही है दोपहर से....मन कर रहा है, वहां पर हाथ रखकर....घिस डालूं....जलन सी हो रही है...वहां..."
उसने अपने लरजते हुए होंठों से, अपनी शर्म को ताक़ पर रखकर, मेरी आँखों में आँखें डालकर, जब ये कहा तो वो बड़ी मासूम सी लगी,
मैंने आगे बढ़कर उसके मोटे होंठ चूस लिए, और कहा "तुम्हारे शरीर में जो आग लगी है, मैं उसे अपने प्यार से बुझा दूंगा, और जहाँ -२ तुम्हारे बदन पर चींटियाँ काट रही है, वहां पर मैं अपने होंठ रखकर तुम्हे ठंडक दूंगा, और जहाँ नीचे तुम्हे गुदगुदी हो रही है, उसे चूत कहते हैं, उसे भी चाटकर वहां की गुदगुदी ख़तम कर दूंगा, और तुम्हे ऐसा मजा दूंगा जो तुमने सोचा भी नहीं होगा, और फिर तुम्हे वो मजा, जो नीचे मिला था, जब तुम्हारी चूत में से पानी निकला था, वो भी कम लगेगा......"
मैं कहता जा रहा था और उसके बदन से कपड़े उतारे जा रहा था, मैंने उसका ब्लाउस खोला, और नीचे जैसा मैंने बताया था की उसने ब्रा नहीं पहनी थी, कोई पतले से कपडे की बनियान सी थी वहां,
और जैसे ही मैंने उसे उतारा, अपने सामने का नजारा देखकर मैं मंत्र्मुघ्ध सा हो गया, इतने सुन्दर कलश मैंने आज तक नहीं देखे थे, वो बिलकुल तने हुए थे, जरा भी झुकाव नहीं था उनमें, और उसपर मोती जैसे , काले रंग के निप्पल्स इतने लुभावने लगे की मैंने झट से अपना मुंह खोला और उनपर टूट पड़ा,
उसके मुंह से आनंदमयी आवाजें निकलने लगी, वो मदहोशी में पीछे की तरफ झुक गयी और बुदबुदाने लगी....
"हाआआन्न्न्न ...म्मम्मम्म ....हाऽऽऽऽऽययय.. क्या कर रहे हो बाबु......गुदगुदी हो रही है........काटो मत न.......चुसो.....हाआन्न्न मजा आ रहा है.....ये क्या आग लगा दी आपने बाबु.....अब ये कैसे बुझेगी...."!!
मैंने मन में सोचा...अब तो ये आग बुझेगी नहीं...और भड़केगी...अभी तो मेरा लंड जब तेरी चूत का बेंड बजाएगा तो तू और भी जोर से चुदने को बेकरार होगी, अभी तो ये शुरुआत है... और भी बहुत बैठे है मेरे घर में, तेरी चूत मारने के लिए.
मैंने अपना लंड बाहर निकाला , वहां चुदाई के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था, न ही वहां खड़े-२ चुदाई संभव थी, इसलिए मैंने सोचा की आज इसको अपना लंड ही चुसवा देता हूँ.
मैंने उसे नीचे बिठाया और अपना लंड निकाल कर उसके आगे किया, वो समझ गयी , की जब पिछली बार मैंने उसे वो फोटो दिखाई थी , जिसमे लंड चूसते हुए लड़कियां दिखाई दे रही थी,
मैं अब वही उससे चाहता हूँ, उसने अपना मुंह खोला और मेरा खौलता हुआ लंड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी.
वो तो जैसे इस काम में पारंगत थी, मुझे उसे ज्यादा कुछ सिखाने की जरुरत नहीं पड़ी, मेरे सामने वो आधी नंगी बेठी, मेरा लंड चूस रही थी, उसके तने हुए मुम्मे जब हिलते थे तो लगता था अभी उनमे से शहद टपकेगा...
मेरा तो लंड ये सोचकर फटा जा रहा था की जब मैं इसकी चूत मारूंगा तो क्या हाल होगा..
जल्दी ही मेरे लंड का आखिरी समय आ गया और उसने अपनी ख़ुशी की वर्षा करनी शुरू कर दी, जो सोनी के लिए बिलकुल नया था, उसने सोचा भी नहीं था की मेरे लंड से इतना पानी निकलेगा, उसने जब तक अपना मुंह हटाया, दो चार पिचकारियाँ तो छोड़ ही दी थी मेरे लंड ने उसके मुंह के अन्दर, और बाकी की उसके चेहरे पर जा गिरी, और जब उसके मुंह के अन्दर , मेरे रस का स्वाद उसे महसूस हुआ, तो उसने अपने मुंह से इकठ्ठा हुईं सारी मलाई चाटकर उसके भी मजे ले लिए.
मैं जानता था की उसकी चूत में से इस समय आग निकल रही होगी, पर मैं उसे थोडा और भड़काना चाहता था, इसलिए मैंने उससे कपडे पहनकर नीचे चलने को कहा..
वो मासूमियत से मेरी बात मानकर अपना ब्लाउस पहन कर खड़ी हुई और नीचे की और चल दी.
कल होली है, मैं कल अपने लंड की पिचकारी से इसकी चूत से होली खेलूँगा, और दूसरों को भी खिल्वाऊंगा. मैंने कल के लिए प्लान बनाने शुरू कर दिए..
उसके जाने के बाद मैं वहां पड़ी एक पुरानी सी कुर्सी पर बैठकर अगले दिन के सपने बुनने लगा तभी बाहर से किसी के आने की आहट आई, मैं बाहर निकला तो देखा की वहां छत्त पर सोनी की छोटी बहन अनीता खड़ी है,
मुझे देखकर वो मंद मंद मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और बोली "अरे बाबु...आप भी ऊपर ही हैं...मैं यही सोच रही थी की आप कहाँ पर हो..."
मैं : "बोलो...क्या काम है अनीता ..मुझे ढून्ढ रही थी क्या. "मैंने उसकी चंचल सी आँखों में झांकते हुए कहा...??
"बाबु...मुझे अन्नू बोला करो...अनीता बड़ा पुराना नाम लगता है...और मुझे पुरानी चीजे पसंद नहीं है...सिर्फ नयी पसंद आती हैं " ये कहते हुए वो मेरे लंड की तरफ देखने लगी.
मेरे मन में, उसकी हरकतों को देखकर, एक विचार कोंधा, कहीं इसकी चूत में भी तो आग नहीं लगी हुई, सोनिया की तरह...अगर ऐसा है तो मजा आ जाएगा...
मैं : "ठीक है अन्नू, पर तुमने बताया नहीं की तुम मुझे क्यों ढूंढ रही थी..."??
अन्नू : "वो मैं देख रही थी की आप सुबह से ही दीदी के साथ कुछ ख़ास तरह से पेश आ रहे हैं...
असल में...मैं...आपसे ...कुछ कहना चाहती थी...." वो कुछ कहना तो चाहती थी पर शायद घबरा रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहना चाहती है.
मैं : "डरो नहीं...बोलो...क्या कहना है.."
अन्नू : "दरअसल...बाबु...मुझे लगा...की आप मेरी दीदी में दिलचस्पी ले रहे हैं...और आप उसके साथ.....कुछ करना....चाहते ..हैं.." वो धीरे से बोली.
मैं कुछ समझ नहीं पाया की वो आखिर कहना क्या चाहती है ?
अन्नू : "बाबु....वो बड़ी सीधी है...उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है...वो हमेशा से काफी सीधी रही है...मेरी आपसे गुजारिश है की आप....इसके साथ...ऐसा कुछ मत करना.... ?
वो अभी नादान है इन सब बातों में....और अगर आप चाहे तो आप मेरे....साथ ...वो सब...कर सकते हो...जो आप दीदी के साथ करने की सोच रहे हो..."
"आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह क्या करते हो बाबु........खुले में कोई देख लेगा......छोड़ दो न....." वो जैसे जानती थी की मैं उसके पीछे आऊंगा.
वो मना नहीं कर रही थी, क्योंकि खाने से पहले जो मजे मैंने उसे दिए थे, वो भूली नहीं थी और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अब कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी,
मैंने उसकी गर्दन पर अपने होंठ टिका दिए और वहां से उसे चाटने लगा. मैंने पीछे से उसके गुब्बारे मसलने चालू रखे और नीचे से अपना खड़ा हुआ लंड उसकी गद्देदार गांड पर घिसने लगा. हमारी छत्त पर कोई दूर से तो देख ही सकता था, इसलिए मैंने वहां ज्यादा देर तक खड़ा होना उचित नहीं समझा,
हमारी छत्त के ऊपर एक छोटा सा स्टोर टाइप का कमरा है, जिसमे बेकार का सामान पड़ा रहता है, मैंने उसे वहीँ ले जाना उचित समझा और अन्दर ले जाकर मैंने जैसे ही उसे अपनी तरफ खींचा वो खींचती चली आई.
वो बोली "बाबु.....आज जो मजा मुझे तुमने नीचे दिया था...वैसा तो आज तक नहीं आया....क्या जादू कर दिया है तुमने पहले ही दिन... !!
ऐसा लग रहा है की मेरा बदन तप रहा है, पुरे शरीर में चींटियाँ सी रेंग रही है, और वहां नीचे गुदगुदी सी हो रही है दोपहर से....मन कर रहा है, वहां पर हाथ रखकर....घिस डालूं....जलन सी हो रही है...वहां..."
उसने अपने लरजते हुए होंठों से, अपनी शर्म को ताक़ पर रखकर, मेरी आँखों में आँखें डालकर, जब ये कहा तो वो बड़ी मासूम सी लगी,
मैंने आगे बढ़कर उसके मोटे होंठ चूस लिए, और कहा "तुम्हारे शरीर में जो आग लगी है, मैं उसे अपने प्यार से बुझा दूंगा, और जहाँ -२ तुम्हारे बदन पर चींटियाँ काट रही है, वहां पर मैं अपने होंठ रखकर तुम्हे ठंडक दूंगा, और जहाँ नीचे तुम्हे गुदगुदी हो रही है, उसे चूत कहते हैं, उसे भी चाटकर वहां की गुदगुदी ख़तम कर दूंगा, और तुम्हे ऐसा मजा दूंगा जो तुमने सोचा भी नहीं होगा, और फिर तुम्हे वो मजा, जो नीचे मिला था, जब तुम्हारी चूत में से पानी निकला था, वो भी कम लगेगा......"
मैं कहता जा रहा था और उसके बदन से कपड़े उतारे जा रहा था, मैंने उसका ब्लाउस खोला, और नीचे जैसा मैंने बताया था की उसने ब्रा नहीं पहनी थी, कोई पतले से कपडे की बनियान सी थी वहां,
और जैसे ही मैंने उसे उतारा, अपने सामने का नजारा देखकर मैं मंत्र्मुघ्ध सा हो गया, इतने सुन्दर कलश मैंने आज तक नहीं देखे थे, वो बिलकुल तने हुए थे, जरा भी झुकाव नहीं था उनमें, और उसपर मोती जैसे , काले रंग के निप्पल्स इतने लुभावने लगे की मैंने झट से अपना मुंह खोला और उनपर टूट पड़ा,
उसके मुंह से आनंदमयी आवाजें निकलने लगी, वो मदहोशी में पीछे की तरफ झुक गयी और बुदबुदाने लगी....
"हाआआन्न्न्न ...म्मम्मम्म ....हाऽऽऽऽऽययय.. क्या कर रहे हो बाबु......गुदगुदी हो रही है........काटो मत न.......चुसो.....हाआन्न्न मजा आ रहा है.....ये क्या आग लगा दी आपने बाबु.....अब ये कैसे बुझेगी...."!!
मैंने मन में सोचा...अब तो ये आग बुझेगी नहीं...और भड़केगी...अभी तो मेरा लंड जब तेरी चूत का बेंड बजाएगा तो तू और भी जोर से चुदने को बेकरार होगी, अभी तो ये शुरुआत है... और भी बहुत बैठे है मेरे घर में, तेरी चूत मारने के लिए.
मैंने अपना लंड बाहर निकाला , वहां चुदाई के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था, न ही वहां खड़े-२ चुदाई संभव थी, इसलिए मैंने सोचा की आज इसको अपना लंड ही चुसवा देता हूँ.
मैंने उसे नीचे बिठाया और अपना लंड निकाल कर उसके आगे किया, वो समझ गयी , की जब पिछली बार मैंने उसे वो फोटो दिखाई थी , जिसमे लंड चूसते हुए लड़कियां दिखाई दे रही थी,
मैं अब वही उससे चाहता हूँ, उसने अपना मुंह खोला और मेरा खौलता हुआ लंड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी.
वो तो जैसे इस काम में पारंगत थी, मुझे उसे ज्यादा कुछ सिखाने की जरुरत नहीं पड़ी, मेरे सामने वो आधी नंगी बेठी, मेरा लंड चूस रही थी, उसके तने हुए मुम्मे जब हिलते थे तो लगता था अभी उनमे से शहद टपकेगा...
मेरा तो लंड ये सोचकर फटा जा रहा था की जब मैं इसकी चूत मारूंगा तो क्या हाल होगा..
जल्दी ही मेरे लंड का आखिरी समय आ गया और उसने अपनी ख़ुशी की वर्षा करनी शुरू कर दी, जो सोनी के लिए बिलकुल नया था, उसने सोचा भी नहीं था की मेरे लंड से इतना पानी निकलेगा, उसने जब तक अपना मुंह हटाया, दो चार पिचकारियाँ तो छोड़ ही दी थी मेरे लंड ने उसके मुंह के अन्दर, और बाकी की उसके चेहरे पर जा गिरी, और जब उसके मुंह के अन्दर , मेरे रस का स्वाद उसे महसूस हुआ, तो उसने अपने मुंह से इकठ्ठा हुईं सारी मलाई चाटकर उसके भी मजे ले लिए.
मैं जानता था की उसकी चूत में से इस समय आग निकल रही होगी, पर मैं उसे थोडा और भड़काना चाहता था, इसलिए मैंने उससे कपडे पहनकर नीचे चलने को कहा..
वो मासूमियत से मेरी बात मानकर अपना ब्लाउस पहन कर खड़ी हुई और नीचे की और चल दी.
कल होली है, मैं कल अपने लंड की पिचकारी से इसकी चूत से होली खेलूँगा, और दूसरों को भी खिल्वाऊंगा. मैंने कल के लिए प्लान बनाने शुरू कर दिए..
उसके जाने के बाद मैं वहां पड़ी एक पुरानी सी कुर्सी पर बैठकर अगले दिन के सपने बुनने लगा तभी बाहर से किसी के आने की आहट आई, मैं बाहर निकला तो देखा की वहां छत्त पर सोनी की छोटी बहन अनीता खड़ी है,
मुझे देखकर वो मंद मंद मुस्कुराते हुए मेरे पास आई और बोली "अरे बाबु...आप भी ऊपर ही हैं...मैं यही सोच रही थी की आप कहाँ पर हो..."
मैं : "बोलो...क्या काम है अनीता ..मुझे ढून्ढ रही थी क्या. "मैंने उसकी चंचल सी आँखों में झांकते हुए कहा...??
"बाबु...मुझे अन्नू बोला करो...अनीता बड़ा पुराना नाम लगता है...और मुझे पुरानी चीजे पसंद नहीं है...सिर्फ नयी पसंद आती हैं " ये कहते हुए वो मेरे लंड की तरफ देखने लगी.
मेरे मन में, उसकी हरकतों को देखकर, एक विचार कोंधा, कहीं इसकी चूत में भी तो आग नहीं लगी हुई, सोनिया की तरह...अगर ऐसा है तो मजा आ जाएगा...
मैं : "ठीक है अन्नू, पर तुमने बताया नहीं की तुम मुझे क्यों ढूंढ रही थी..."??
अन्नू : "वो मैं देख रही थी की आप सुबह से ही दीदी के साथ कुछ ख़ास तरह से पेश आ रहे हैं...
असल में...मैं...आपसे ...कुछ कहना चाहती थी...." वो कुछ कहना तो चाहती थी पर शायद घबरा रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहना चाहती है.
मैं : "डरो नहीं...बोलो...क्या कहना है.."
अन्नू : "दरअसल...बाबु...मुझे लगा...की आप मेरी दीदी में दिलचस्पी ले रहे हैं...और आप उसके साथ.....कुछ करना....चाहते ..हैं.." वो धीरे से बोली.
मैं कुछ समझ नहीं पाया की वो आखिर कहना क्या चाहती है ?
अन्नू : "बाबु....वो बड़ी सीधी है...उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है...वो हमेशा से काफी सीधी रही है...मेरी आपसे गुजारिश है की आप....इसके साथ...ऐसा कुछ मत करना.... ?
वो अभी नादान है इन सब बातों में....और अगर आप चाहे तो आप मेरे....साथ ...वो सब...कर सकते हो...जो आप दीदी के साथ करने की सोच रहे हो..."