अब मेरा दिमाग इस बिज़्नेस को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने के लिए सोचने लगा.
एक दिन मैंने सब सोच समझ कर रात को करीब आठ बजे ऋतू का दरवाजा खटकाया.
मैं अन्दर जाने से पहले काफी नर्वस था, पर फिर भी मैंने हिम्मत करी और जाने से पहले छेद मैं से देख लिया की वो स्कूल होमेवोर्क कर रही है और बात करने के लिए यह समय उपयुक्त है, मैंने दरवाज़ा खड्काया, अन्दर से आवाज आई "कोंन है ?"
"मैं हूँ ऋतू" मैंने बोला.
"अरे आशु (घर मैं मुझे सब प्यार से आशु कहते है), तुम, आ जाओ.."
"आज अपनी बहन की कैसे याद आ गयी, काफी दिनों से तुम बिज़ी लग रहे हो, जब देखो अपने रूम मैं पड़ते रहते हो, अपने दोस्तों के साथ ग्रुप study करते हो, आई ऍम रेअल्ली इम्प्रेस .." ऋतू ने कहा.
"बस ऐसे ही..तुम बताओ लाइफ कैसी चल रही है."
"ठीक है"
" ऋतू आज मैं तुमसे कुछ ख़ास बात करने आया हूँ" मैंने झिझकते हुए कहा ..
"हाँ हाँ बोलो, किस बारे में"
"पैसो के बारे में" मैं बोला.
ऋतू बोली "देखो आशु , इस बारे मैं तो मैं तुम्हारी कोई हेल्प नहीं कर पाउंगी, मेरी जेब खर्ची तो तुमसे भी कम है "
"एक रास्ता है, जिससे हमें पैसो की कोई कमी नहीं होगी" मेरे कहते ही ऋतू मेरा मुंह देखने लगी और बोली "ये तुम किस बारे में बात कर रहे हो, ये कैसे मुमकिन है"
"मैं इस बारे में बात कर रहा हूँ" और मैंने उसके टेबल के अन्दर हाथ डाल के उसका ब्लैक डिल्डो निकाल दिया और बेड पर रख दिया.
"ओह माई गॉड "वो चिल्लाई और उसका चेहरा शर्म और गुस्से के मारे लाल सुर्क हो गया और उसने अपने हाथो से अपना चेहरा छुपा लिया, उसकी आँखों से आंसू बहने लगे.
"ये तुम्हे कैसे पता चला, तुम्हे इसके बारे में कैसे पता चल सकता है...इट्स नोट पोस्सीबल " वो रोती जा रही थी.
"प्लीज़ डोंट क्राई ऋतू " मैं उसको अपसेट देखकर घबरा गया.
"तुम मेरे साथ ये कैसे कर सकते हो, तुम मम्मी पापा को तो नहीं बताओगे न ? वो कभी ये सब समझ नहीं पांएगे .."ऋतू रोते रोते बोल रही थी, उसकी आवाज में एक याचना थी.
"अरे नहीं बाबा , मैं मम्मी पापा को कुछ नहीं बताऊंगा, मैं तुम्हे किसी परेशानी में नहीं डालना चाहता, बल्कि मैं तो तुम्हारी मदद करने आया हूँ, जिससे हम दोनों को कभी भी पैसो की कोई कमी नहीं होगी." मैं बोला.
ऋतू ने पूछा "लेकिन पैसो का इन सबसे क्या मतलब है" उसने डिल्डो की तरफ इशारा करके कहा.
मैंने डिल्डो को उठाया और हवा में उछालते हुए कहा "मैं जानता हूँ, तुम इससे क्या करती हो, मैंने तुम्हे देखा है"
"तुमने देखा है ???" वो लगभग चिल्ला उठी "ये कैसे मुमकिन है"
"यहाँ से.."मैंने उसकी अलमारी के पास गया और उसे वो छेद दिखाया और बोला, "मैं तुम्हे यहाँ से देखता हूँ."
"हे भगवान् ...ये क्या हो रहा है, ये सब मेरे साथ नहीं हो सकता.."और उसकी आँखों से फिर से अश्रु की धारा बह निकली.
"देखो ऋतू, मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है, मैं सिर्फ तुम्हे देखता हूँ, मेरे हिसाब से इसमें कोई बुराई नहीं है, और सच कहूं तो ये मुझे अच्छा भी लगता है:"
ऋतू थोड़ी देर के लिए रोना भूल गयी और बोली "अच्छा ! तो तुम अब क्या चाहते हो"
"तुम मेरे फ्रेंड्स को तो जानती ही हो, विशाल और सन्नी, मैं उनसे तुमको ये सब करते हुए देखने के १५०० रूपए चार्ज करता हूँ "
"ओह नो.."वो फिर से रोने लगी, "ये तुमने क्या किया, वो मेरे स्कूल में सब को बता देंगे, मेरी कितनी बदनामी होगी, तुमने ऐसा क्यों किया, अपनी बहन के साथ कोई ऐसा करता है क्या...मैं तो किसी को अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही "ऋतू रोती जा रही थी और बोलती जा रही थी.
"नहीं वो ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे, अगर करें तो उनका कोई विश्वास नहीं करेगा, मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता,"मैंने जोर देते हुए कहा, "और उन्हें मालुम है की अगर वो ऐसा करेंगे तो मैं उन्हें कभी भी तुमको ये सब करते हुए नहीं देखने दूंगा."
"और तुमने उनका विश्वास कर लिया" ऋतू रोती जा रही थी..."तुमने मुझे बर्बाद कर दिया"
"हाँ मैंने उनपर विश्वास कर लिया और नहीं मैंने तुम्हे बर्बाद नहीं किया, ये देखो "और मैंने पांच पांच सो के नोटों का बण्डल उसको दिखाया, "ये साठ हजार रूपए हैं, जो मैंने विशाल और सन्नी से चार्ज करें हैं तुम्हे छेद मैं से देखने के !.."
"और मैं उन दोनों से इससे भी ज्यादा चार्ज कर सकता हूँ अगर तुम मेरी मदद करो तो .." मैं अब लाइन पर आ रहा था.
"तुम्हे मेरी हेल्प चाहिए " वो गुर्राई .."तुम पागल हो गए हो क्या."
"नहीं मैं पागल नहीं हुआ हूँ, तुम मेरी बात ध्यान से सुनो और फिर ठन्डे दिमाग से सोचना., देखो मैं तुमसे सब पैसे बांटने के लिए तैयार हूँ, और इनमे से भी आधे तुम ले सकती हो, " ये कहते हुए मैंने बण्डल में से लगभग ३० हजार रूपए अलग करके उसके सामने रख दिए.
"लेकिन मेरे पास एक ऐसा आइडिया है जिससे हम दोनों काफी पैसे बना सकते हैं.,,"मैं दबे स्वर में बोला.
"अच्छा , मैं भी तो सुनु की सो क्या आइडिया है.."वो कटु स्वर में बोली.
फिर मैं बोला, "क्या तुम्हारी कोई फ्रेंड है जो ये सब जानती है, की तुम क्या करती हो..? तुम्हे मुझे उसका नाम बताने की कोई जरुरत नहीं है, सिर्फ हाँ या ना बोलो "
"हाँ , है., मेरी एक फ्रेंड जो ये सब जानती है, इन्फक्ट ये डिल्डो भी उसी ने दिया है मुझे."
"अगर तुम अपनी फ्रेंड को यहाँ पर बुला के, उससे ये सब करवा सकती हो, तो मैं अपने फ्रेंडस से ज्यादा पैसे चार्ज कर सकता हूँ, और तुम्हारी फ्रेंड को कुछ भी पता नहीं चलेगा..."मैंने उसे अपनी योजना बताई.
"लेकिन मुझे तो मालुम रहेगा ना..और वोही सिर्फ मेरी एक फ्रेंड है जिसके साथ मैं सब कुछ शेयर करती हं, अपने दिल की बात, अपनी अन्तरंग बांते सभी कुछ, मैं उसके साथ ऐसा नहीं कर सकती" ऋतू ने जवाब दिया.
"तुम्हे तो अब मालुम चल ही गया है, और हम दोनों इसके बारे में बातें भी कर रहे हैं..है ना.." मैं तो तुम्हे सिर्फ पैसे बनाने का तरीका बता रहा हूँ, जरा सोचो, छुट्टियाँ आने वाली है, मम्मी पापा तो चाचा - चाची के साथ हर साल की तरह पहाड़ों में कैंप लगाने चले जायेंगे,और पीछे हम दोनों घर पर बिना पैसो के रहेंगे, अगर ये पैसे होंगे तो हम भी मौज कर सकते हैं, लेट नाईट पार्टी, और अगर चाहो तो कही बाहर भी जा सकते हैं...छुट्टियों के बाद अपने दोस्तों से ये तो सुनना नहीं पड़ेगा की वो कहाँ कहाँ गए और मजे किये, हम भी ये सब कर सकते हैं ..हम भी अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं , जरा सोचो.."
"अगर मैं मना कर दूं तो" ऋतू बोली "तो तुम क्या करोगे"
"नहीं तुम ऐसा नहीं करोगी," मैंने कहा "ये एक अच्छा आईडिया है, और इससे किसी का कोई नुक्सान भी नहीं हो रहा है, विशाल और सन्नी तो तुम्हे देख देखकर पागल हो जाते हैं, वो ये सब बाहर बताकर अपना मजा खराब नहीं करेंगे, मेरे और उनके लिए ये सब देखने का ये पहला और नया अनुभव है."
"और अगर मैंने मना कर दिया तो मैं ये सब नहीं करूंगी, और ये छेद भी बंद कर दूँगी, और आगे से कभी भी अपने रूम में ये सब नहीं करूंगी, फिर देखते रहना मेरे सपने..."ऋतू बोली.
"प्लीज़ ऋतू.." मैं गिढ़गिराया "ये तो साबित हो ही गया है के तुम काफी उत्तेजना फील करती हो और अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए अपनी मुठ मारती हो और इस डिल्डो से मजे भी लेती हो, अगर तुम्हे और कोई ये सब करते देखकर उत्तेजना में अपनी मुठ मारता है तो इसमें बुरे ही क्या है, तुम भी तो ये सब करती हो और तुम्हे देखकर कोई और भी मुठ मारे तो इसमें तुम्हे क्या परेशानी है."
"मेरे कारण वो मुठ मारते हैं, मतलब विशाल और सन्नी ? वो आश्चर्य से बोली.
"मेरे सामने तो नहीं, पर मुझे विश्वास है घर पहुँचते ही वो सबसे पहले अपनी मुठ ही मारते होंगे " मैंने कुछ बात छिपा ली.
"और तुम ?..क्या तुम भी मुझे देखकर मुठ मारते हो.??"
"हाँ !! मैं भी मारता हूँ , मैंने धीरे से कहा, "मुझे लगता है की तुम इस दुनिया की सबसे खुबसूरत और आकर्षक जिस्म की मालिक हो."
"तुम क्या करते हो ?" उसकी उत्सुकता बदती जा रही थी.
"मैं तुम्हे नंगा मुठ मारते हुए देखता हूँ और अपने वाले..से खेलता हूँ." मैं बुदबुदाया ..
"और क्या तुम....मेरा मतलब है ..~!!
"क्या ?" मैंने पूछा.
"क्या तुम्हारा निकलता भी है जब तुम मुठ मारते हो..?:
"हाँ , हमेशा..मैं कोशिश करता हूँ की मेरा तब तक ना निकले जब तक तुम अपनी चरम सीमा तक नहीं पहुँच जाओ, पर ज्यादातर मैं तुम्हारी उत्तेजना देखकर पहले ही झड जाता हूँ"
"मुझे ये सब पर विश्वास नहीं हो रहा है" ऋतू ने अपना डिल्डो उठाया और उसको वापिस बेद के नीचे ड्राअर में रख दिया.
"देखो ऋतू, मैं तुम्हे इसमें से आधे पैसे दे सकता हूँ, बस जरा सोच कर देखो, वैसे भी मेरे हिसाब से ये रूपए तुमने ही कमाए है."
"हाँ ये काफी ज्यादा पैसे है, मैंने तो इतने कभी सपने में भी नहीं सोचे थे"
"तुम ये आधे रूपए रख लो और बस मुझे ये बोल दो की तुम इस बारे में सोचोगी" मैंने कहा.
"लेकिन सिर्फ एक शर्त पर"...ऋतू बोली.
"तुम कुछ भी बोलो...मैं ख़ुशी से उछल पड़ा "मैं तुम्हारी कोई भी शर्त मानने को तैयार हूँ"
"तुम मुझे देखते रहे हो, ठीक "
"हाँ तो ?"
"मैं भी तुम्हे हस्तमैथुन करते देखना चाहती हूँ." ऋतू बोली..
"क्या ..........!!!!???"
"तुम अभी हस्तमैथुन करो...मेरे सामने, .
"नहीं ये मैं नहीं कर सकता,,,मुझे शर्म आएगी .."मैंने कहा.
"तो फिर भूल जाओ, मैं इस बारे में सोचूंगी भी नहीं..
"अगर मैंने करा तो क्या तुम सोचोगी"
"हाँ ! बिलकुल".. ऋतू ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई.
"और कभी कुछ भी हो जाए, तुम ये अलमारी का छेद कभी बंद नहीं करोगी." मैंने एक और शर्त रखी.
"अगर तुम मुझे बिना बताये अपने दोस्तों को यहाँ लाये तो कभी नहीं.."
" वाउ , क्या सच में " मुझे तो अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हुआ.
"तो क्या तुम अभी मेरे सामने हस्तमैथुन करोगे.." उसने फिर से पूछा.
"हाँ"
"तो ठीक है "स्टार्ट नाउ ....."
मैंने शर्माते हुए अपनी जींस उतारी और अपना बाक्सर भी उतार कर साइड में रख दिया, और अपने लंड को अपने हाथ में लेकर मन ही मन में बोला , चल बेटा तेरे कारनामे दिखाने का टाइम हो गया..धीरे धीरे उसने विकराल रूप ले लिया और मैं उसे आगे पीछे करने लगा.
मैंने ऋतू की तरफ देखा तो वो आश्चर्य से मुझे मुठ मारते हुए देख रही थी, उसकी आँखों में एक ख़ास चमक आ रही थी.