FreeSexKahani - फागुन के दिन चार - Page 12 - SexBaba
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

[color=rgb(235,]मस्ती होली की

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दूबे भाभी ने मेरे ऊपर हमला किया।

रीत और सन्ध्या ने, चन्दा भाभी पे।

लेकिन अब मैं तैयार था। मैंने भी हाथों में रंग लगा लिया। थोड़ी देर में सभी ब्रा और साये में हो गये। सन्ध्या भाभी को तो मैंने कर दिया था और रीत को चन्दा और दूबे भाभी ने मिलकर। अब दूबे भाभी की साड़ी मेरे हाथ से उतर गयी और और चन्दा भाभी का साड़ी ब्लाउज़, रीत और सन्ध्या भाभी के हाथ।

दूबे भाभी के हाथ मेरे बर्मुडा में व्यस्त थे।

दूबे भाभी बुदबुदा रही थी- "क्या चीज है राज्जा। साल्ला। इत्ता बडा तो मैंने आज तक नहीं देखा। मस्त लम्बा मोटा भी कड़ा भी." फिर बिना बर्मुडा से हाथ निकाले मेरी ओर देखकर मुश्कुराते वो बोली-

"साले, हरामी के जने, ये गदहे जैसा कहीं गदहे या घोड़े का जना। तो नहीं है."

गुड्डी ने चन्दा भाभी के पास से ही आवाज लगाई-

"अरे इनका वो माल। इनकी ममेरी बहन जहां रहती है ना। उस गली के बाहर। वो गदहों वाली गली के नाम से ही मशहूर है."

सन्ध्या भाभी ने भी टुकड़ा लगाया- "अरे तो गदहा इसका मामा हुआ फिर तो."

"तो फिर इसके मामा का असर इसपर, मतलब साले तू खानदानी पैदायशी बहनचोद है, फिर अब तक क्यों छोड़ रखा था उस साली को?" दूबे भाभी अपने अन्दाज में मुझे मुठियाते बोल रही थी।

मेरा सुपाड़ा जैसे चन्दा भाभी ने कल रात सिखाया था, मैंने खोल रखा था मोटा पहाडी आलू जैसा। दूबे भाभी के हाथ तो लण्ड के बेस पे थे लेकिन अन्गूठा। सुपाड़े को रगड़ रहा था। मेरा एक हाथ उनके ब्लाउज़ में था, गोरे गुदाज, गदराये और भरे-भरे मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहे थे।

लेकिन उनका टच, एकदम मस्त।

इत्ते बड़े-बड़े होने के बाद भी एकदम कड़े-कड़े जरा भी ढिलाई नहीं और दोनों चूचियों के बीच की गहरायी भी, जैसे दो पहाड़ियों के बीच एक खूबसूरत खाईं हो। ऐसे जोबन ना सिर्फ देखने, छूने, दबाने और चूसने में मस्त होते हैं बल्की जो आज तक मैंने सिर्फ ब्लू-फिल्मों में देखा था और मेरा एक सपना था। चूची चुदाई का, दो गदराई मांसल चूचियों के बीच अपना लण्ड डालकर रगड़ने का। वो बस दूबे भाभी के उरोजों के साथ पूरा हो सकता था।

दूबे भाभी की पीठ भी अत्यन्त चिकनी थी और बीच में गहरी, केले के पत्ते कि तरह।

कामसूत्र में लिखा है कि ऐसी महिलायें अत्यन्त कामुक होती हैं। रात दिन सेक्स के बारे में ही सोचती हैं और दीर्घ लिंग के लिये कुछ भी कर सकती हैं। उन्हें सिर्फ अश्व जाति के पुरुष सन्तुष्ट कर सकते हैं, जैसा मैं था।

मेरा हाथ पीठ से सरककर नीचे चला गया, सीधे साये के अन्दर। ओह्ह. ओह्ह. क्या मस्त चूतड़ थे, खूब भरे-भरे एकदम कड़े और मांसल। उसे छूते ही मेरा जन्गबहादुर 90° डिग्री का हो गया।

दूबे भाभी समझ गई कि उनके नितम्बों ने मेरे ऊपर क्या असर किया है। सिर्फ देखकर मेरी ऐसी कि तैसी हो जाती थी उस 40+ चूतड़ को और स्पर्श से तो हालत खराब होनी ही थी।

दूबे भाभी ने एक-दो बार कसकर मेरे पूरे तन्नाये लण्ड को आगे-पीछे किया और जैसे उसी से बातें कर रही हों, बोली-

"क्यों मुन्ना, बहुत मन कर रहा है पिछवाड़े का? लगता है पिछवाड़े के बड़े रसिया हो कभी मजा लिया है गोल दरवाजे का कि नहीं?"

"तुम रंग पंचमी में तो आओगे ना?" वो फुसफुसाकर बोली।

"हाँ। अब तो आना ही पड़ेगा." मैंने जोश में कसकर उनके निपल को पिंच करते हुये कहा।

"अरे एक-दो दिन पहले आ जाना, असली होली तो तभी होगी। पूरा खजाना लुटा दूंगी। ऊपर-नीचे, आगे-पीछे सब कुछ."

खुश होकर मैंने इत्ते जोर से जोबन मर्दन किया की उनके ब्लाउज़ कि दो चुटपुटिया बटन चट-चट खुल गईं।

लेकिन दूबे भाभी को इसकी परवाह नहीं थी। वो मेरे खडे लण्ड के सुपाड़े को अपने अंगूठे से कसकर दबा रही थी और बोल रही थी-

"इस रसगुल्ले का तो मैं पूरा रस निचोड़ लूँगी। हाँ। लेकिन अपनी उस ममेरी बहन को साथ लाना मत भूलना."

"नहीं भाभी." मैं भी किसी और दुनियां में खोया हुआ था।

मेरी रंग लगी उंगली उनकी गाण्ड की दरार में थी और हल्के-हल्के आगे-पीछे हो रही थी। उनकी गाण्ड इस तरह उसे कसकर दबोचे थी कि बस अब बिना डलवाये छोड़ेगी नहीं। भाभी की भी रस सिद्ध उंगलियां, रस से भरी मेरे पी-होल पे तर्जनी के नाखून से छेड़ रही थी। मैं मारे जोश के इतना गिनगिनाया कि मैंने कचकचा के उनकी चूची और कसकर दबा दी और एक चुटपुटिया बटन और गई। भाभी इन सबसे बे-परवाह मेरे गोरे लिंग को अपने हाथ से कालिख मलकर काला भुजन्ग बनाने में लगी थी।
 
[color=rgb(243,]ब्लाउज हरण -दूबे भाभी का


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लेकिन तभी मैंने दो बातें नोटिस की।

एक- उनके ब्लाउज़ कि अब सिर्फ एक चुटपुटिया बटन बची है जो बडी मुश्किल से उनके भारी उरोजों को सम्हाले है।

दूसरी- रीत ने भी यही बात नोटिस की है और मुझे उनके ब्लाउज़ की ओर इशारा कर रही है।

मैं समझ गया की वो क्या चाहती है। खतरा तो बहुत था, लेकिन रीत के लिये मैं शेरनी की मांद में घुस सकता था। आखीरकार, मुझे उसकी मांद में जो घुसना था।

और फिर खाली रीत होती तो मैं रिस्क असेसमेंट करता भी, गुड्डी भी अब मैदान में आ गयी थी और सिर्फ एक बटन के सहारे टंगे दूबे भाभी के ब्लाउज पे उसकी भी निगाह पड़ी, और उसने भी इशारा किया, गुड्डी कहती नहीं थी, हुकुम करती थी,, और मेरा भी तो मन कर रहा था। बस मैंने भी मगज अस्त्र का, जिसका इस्तेमाल रीत करती थी, किया। मैंने मुश्कुराकर हामी भरी।

मेरा एक हाथ अब पिछवाड़े से निकलकर उनके चिकने गोरे पेट पे, और वहां से रंग लगाते सीधे नीचे से ब्लाउज़ की आखिरी चुटपुटिया बटन पे। मैंने भाभी के इअर-लोब्स पे अपने होंठ हल्के से लगाये और बोला-

"भाभी क्या जादू है आपके हाथ में। अगर हाथ में ये हाल है तो। ."

मेरी बात काटकर वो कस-कसकर दबाते मसलते बोली-

"अरे साले निचोड़ के रख दूँगी, आगे से भी, पीछे से भी। समझ जाओगे की जिन्दगी का मजा क्या है? हाँ बस उसको साथ ले आना मत भूलना, वरना तड़पाकर रख दूँगी। कुछ नहीं मिलेगा."

और इसी के साथ आखिरी बटन भी ब्लाउज़ का टूट गया, और पलक झपकते ब्लाउज़ मेरे हाथ में।

रूपा साफ्टलाइन क्वीन साइज में दो रंगे पंख वाले छटपटाते कबूतर।

"अरे साले बहनचोद अपनी बहन के भंड़ुये, गान्डू."

दूबे भाभी गालियां तो दे रही थी लेकिन जिस तरह से मुश्कुरा रही थी मैं समझ गया की उन्होंने ज्यादा बुरा नहीं माना है और उनका रंग पंचंमी का आफर स्टैन्ड कर रहा है। सबजेक्ट टू टर्म्स ऐंड कंडीशन्स।
दूबे भाभी मेरे हाथ से ब्लाउज़ छीनने के लिये झपटीं। लेकिन चतुर चालाक रीत पहले ही छत के दूसरे कोने पे खड़ी थी और बोल रही थी- "थ्रो। थ्रो."

उसकी बात टालने का सवाल ही नहीं था। फिर दूबे भाभी भी करीब आ गई थी।

मैंने जोर लगाकर फेंका। और रीत ने कैच कर लिया। वो कोई हमारी क्रिकेट टीम की खिलाड़ी तो थी नहीं। मैं अब दूर खड़ा होकर पकड़ा-पकड़ी देख रहा था।

रीत, वो हिरणी उसे पकड़ना आसान नहीं था। लम्बी-लम्बी टांगें, चपल फुर्तीली। लोग उसे झूठ में ही कैट नहीं कहते थे। लेकिन वो पकड़ी गई।

दूसरी ओर से चन्दा भाभी आ गईं।

लेकिन गुड्डी थी न। रीत ने उछाल के गुड्डी को फेंक दिया, और कैच करने में तो गुड्डी का मुकाबला नहीं। और त्वरित मति में भी। जबतक चंदा भाभी गुड्डी की ओर लपकतीं, ब्लाउज गुड्डी ने छज्जे पर फेंक दिया जहाँ थोड़ी देर पहले हमने दूबे भाभी की साडी फेंकी थी। आखिर साडी ब्लाउज तो साथ साथ मैचिंग मैचिंग ही अच्छे लगते हैं। और गुड्डी ने ब्लाउज हरण सफल होने की मिठाई जो मुझे फ्लाईंग किस दे के खिलाई, मैं लहालोट हो गया।

अब चन्दा भाभी और दूबे भाभी के बीच वो कातर हिरणी।

लेकिन मेरी ओर देखकर वो सारन्ग नयनी मुश्कुरायी। पहली बार होली में दूबे भाभी की साड़ी ब्लाउज़ जो उतर गई थी। ननद भाभी की होली चालू हो गई थी। ऐसी होली जिसके आगे लेस्बियन रेस्लिन्ग मात थी।

मैं दूर बैठा रस ले रहा था।
 
[color=rgb(0,]रीत -[/color][color=rgb(209,]चंदा भाभी-दूबे भाभी[/color] [color=rgb(51,]और बनारसी होली
[/color]


रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी के बीच सैंडविच बनी हुई थी।

पीछे से दूबे भाभी ने दबोच रखा था और आगे से चंदा भाभी नंबर लगाकर बैठी थी। और तीनों ब्रा और, बल्की रीत ब्रा और अपनी ट्रेड मार्क पाजामी में, और दूबे और चंदा भाभी ब्रा और साए में। दूबे भाभी के हाथ में अभी भी कालिख का स्टाक बचा हुआ था, जिसे उन्होंने सबसे पहले रीत की गोरी नमकीन पीठ पे मला और फिर आगे हाथ डालकर उसके गोरे उभार पे ब्रा में हाथ डालकर। पीठ पे रंग लगा रहा हाथ सरक के अचानक उसकी पाजामी में, क्या कोई मर्द नितम्बों को दबाएगा, जिस तरह दूबे भाभी रीत के मस्त गुदाज रसीले नितम्बों को दबोच रही थी, पूरी ताकत से।

दबा वो रही थी मजा मुझे आ रहा था।

और पीछे से ब्रा की स्ट्रिप भी रीत की, चन्दा भाभी के लाल गुलाबी रंगों से लाल हो गई थी।

शाम को कभी-कभी जैसे बादल दिखते हैं ना उसकी पीठ वैसे ही दिख रही थी। जो थोड़ी सी जगह रंगों से बच गई थी गोरी, सफेद रूई से बादलों की तरह। दूबे भाभी के हाथ जहां-जहां पहुँचे थे वो श्याम रतनारे बादल की तरह और ब्रा की स्ट्रिप और उसके आस पास चंदा भाभी की उंगलियां जहाँ छू गई थी, वहां लाल गुलाबी जैसे कुछ सफेद बादल भी जहां सूरज की किरणें पड़ती ही लाल छटा दिखाती हैं। रंग लगने से वो और रंगीन हो गई थी।

तभी वो हुआ जो मैं तब से चाहता था जब से मैंने उसे सबसे पहले देखा था।

धींगा मस्ती में दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर उसकी ब्रा नीचे खींच दी और रीत के दोनों उभार एक पल के लिए मुझे दिख गए। बस मैं बेहोश नहीं हुआ यही गनीमत थी।

जैसे कोई पूरी दुनियां की खूबसूरती, जवानी का नशा, जीवन का सारा रस अगर एक जगह लाकर रख दें ना कुछ ऐसा। जैसे गूंगे का गुड़ कहते हैं ना की वो खा तो ले ना लेकिन स्वाद ना बता सके, बस वही हालत मेरी हो रही थी। लेकिन मैं उस हालत से पल भर में उबर गया क्योंकी अगले ही पल दूबे भाभी के हाथों में दोनों कैद हो गए, और वो इस तरह से मसल रही थी की।

उधर दोनों गालों का रस चन्दा भाभी ले रही थी।

मुझे लगा की बिचारी मेरी मृग-नयनी कहाँ दो के साथ कित्ती परेशान होगी बिचारी। लेकिन अचानक वो पीछे मुड़ी जैसे कोई टेलीपैथी हो, और मुझे देखकर ना सिर्फ मुश्कुराई बल्की हल्की आँख भी मार दी।

मैं समझ गया की ये भी उतना ही रस ले रही है।

चंदा भाभी ने तभी एक बाल्टी रंग लेकर पीछे से उसकी पाजामी पे।

और दूबे भाभी भी क्यों पीछे रहती, उन्होंने तो पीछे से पाजामी फैलाकर उसके अन्दर।

मेरा फायदा हुआ की अब उसके सारे कटाव उभार एक साथ और रीत का ये फायदा हुआ की उसने एक झटके में अपनी ब्रा ठीक कर ली।

क्या कटाव थे।

दोनों भाभियों ने जो रंग की बाल्टियां छोड़ी थी, अन्दर और बाहर रीत की पाजामी पूरी तरह उसकी खूबसूरत जाँघों से चिपक गई। और बिलकुल 'सब दिखता है' वाली बात हो रही थी। पीछे का नजारा तो छोड़िये, एक पल के लिए वो आगे मुड़ी तो भरतपुर भी दिख गया। आलमोस्ट। सुधी पाठक सोच ही सकते हैं की मेरे जंगबहादुर की क्या हालत हुई होगी।लेकिन उसके आगे जो हुआ वो और खतरनाक था।

दूबे भाभी और चन्दा भाभी ने मिलकर रीत की पाजामी का नाड़ा खोल दिया लेकिन बहुत मुश्किल से।

एक तो उसने कसकर बाँध रखा था और फिर दोनों हाथों से कसकर। हार के चन्दा भाभी को उसे गुदगुदी लगानी पड़ी। वो खिलखिला के हँसी और नाड़ा दूबे भाभी के हाथ में।

मुझे लगा की अब रीत गुस्सा हो जायेगी।

लेकिन उसकी वो मुश्कुरा रही थी उसी तरह। जब पाजामी नीचे सरकी तो उस चतुर चपला ने ना जाने किस तरह पैरों को किया की वो उसके घुटने पे ही फँस गई लेकिन मुझे एक जबर्दस्त फायदा हुआ, मस्त नितम्बों के नजारे का। जो भीगे पाजामी से झलक मिल रही थी वो तो कुछ भी नहीं थी इसके आगे।

क्या नजारा था।

रीत की लेसी थांग दो इंच चौड़ी भी नहीं रही होगी और पीछे से तो बस एक मोटी रस्सी इतना दोनों नितम्बों के बीच फँसा हुआ।
प्लंप, प्रेटी, परफेक्ट, मस्त कसे कड़े,... पाजामी के ऊपर से उसे देखकर मन मचल जाता था तो अब तो वो कवच भी नहीं रहा। और उसके ऊपर लगे रंग।

दूबे भाभी की उंगलियों से लगा उनकी ट्रेड मार्क कालिख, चंदा भाभी के लाल गुलाबी चटखदार और मेरे हाथ के लगे सतरंगी रंग, मेरी उंगलियों से लगे पेंट के रंग तो दरार के अन्दर तक।

और फिर दूबे भाभी ने वो काम किया की जिसके बाद तो वो मेरी जान मांग लेती तो मैं सोने की थाली में रखकर हाजिर कर देता।

उन्होंने रीत की थांग को पीछे से हटा दिया और साथ-साथ दोनों नितम्बों को फैलाकर पिछवाड़े की वो गली दिखा दी, जिसके लिए सारा बनारस दीवाना था।

दोनों हाथ तो आगे चंदा भाभी ने पकड़ रखे थे।

मेरी ओर देखकर दूबे भाभी ने आँखों-आँखों में पूछा- "पसंद आया."

सीने पे हाथ रखकर मैंने इशारा किया- "जान चली गई."

फिर दूबे भाभी ने वो काम शुरू कर दिया, जिसके लिए उनकी सारी ननदें नजदीक की दूर की, रिश्ते की पड़ोस की डरती थी।

क्या कोई मर्द चोदेगा। रीत की कमर पकड़कर वो धक्के उन्होंने लगाए उस तरह से रगड़ा। रीत ने वो किया जिसके लिए मैं उसका दीवाना था, मस्ती और हिम्मत, हाजिर जवाबी और मजे लेने और देने की ताकत।

रीत बोली- "अरे भाभी, मेरी तो पाजामी आप ने सरका दी। लेकिन आप का पेटीकोट। क्या मजा आएगा."

"ठीक तो कह रही है लड़की." चंदा भाभी ने बोला और दूर बैठे मैंने भी सहमती में सिर हिलाया।

"अरे चूत मरानो, छिनार, तेरी तरह मैं पाजामी, जीन्स, पैंट नहीं पहनती जिसे उतारने में 10 झंझट हो। साड़ी पेटीकोट पहनो तो आम की बाग हो, अरहर और गन्ने का खेत हों बस लेटो टांग उठाओ, तैयार."

दूबे भाभी बोली और एक झटके में पेटीकोट उठाकर कमर पे खोंस लिया।

डबल धमाका।

एक किशोरी के बाद अब एक प्रौढ़ा, एक मस्त खेली खायी भाभी का पिछवाड़ा, वो भी 40+ वाली साइज का। पीछे से दूबे भाभी। आगे से चंदा भाभी। मैंने दूर बैठकर थ्री-सम का मजा देख रहा था।

[color=rgb(235,]रीत रानी छिनार, मेरी ननदी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार,

एक जाए आगे, दूसर पिछवाड़े, बचा नहीं कोऊ नौवा कहांर।[/color]

साथ में बनारसी गारी का भी मजा, दूबे भाभी और चंदा भाभी के समवेत स्वरों में।

गुड्डी और संध्या भाभी। दूर से देख रही थी। गुड्डी लगभग बची हुई थी, मेरे हाथ से निकालने के बाद से। एक तो उसके 'वो दिन' चल रहे थे और फिर जब मैं रीत के साथ मिलकर दूबे भाभी के चीरहरण में लगा था वो अन्दर थी, चंदा भाभी के साथ।

उसने संध्या भाभी से मिलकर कुछ बात की और राहत मिशन लान्च हुआ।

रीत को तो थोड़ी राहत मिली लेकिन अब गुड्डी फँस गई, वो भी दूबे भाभी के हाथों।
 
[color=rgb(65,]गुड्डी की रगड़ाई
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"बहुत बची हुई थी ना। अब बताती हूँ."

और दूबे भाभी ने एक हाथ उसकी फ्राक पे ऐसा डाला की सारी की सारी बटन टूटकर चटक के हवा में।

"नीचे की दुकान बंद है तो क्या हुआ ऊपर की तो खुली है? तुम आज बचा ले गई उसको। होली में भी अपने यार के साथ रहोगी, लेकिन याद रखना। रंगपंचमी में सूद समेत बदला लूंगी."

दूबे भाभी ने हड़काया उनके दोनों हाथ फ्राक के अन्दर कसकर यौवन मर्दन करते हुए और जो हाथ उन्होंने बाहर निकाला तो गुड्डी की ब्रा और उन्होंने फेंका तो सीधे मेरे ऊपर।

मैंने गुड्डी को दिखाकर उसे चूम लिया।

एक बार फिर दूबे भाभी के हाथ अन्दर।

जैसे कोई जादूगर डिब्बे से हाथ बार-बार निकालता है तो हर बार अलग-अलग चीजें, कभी खरगोश, कभी कबूतर।

अबकी कबूतर बाहर आये गोरे-गोरे सफेद हाँ मेरे और दूबे भाभी के हाथ के लाल काले रंग के निशान। गुड्डी के इन कबूतरों को मैं कई बार प्यार से छू चुका था, सहला चुका था, दबा चुका था। लेकिन इस तरह पहली बार पिंजड़े से बाहर खुलकर देखने का वो भी दिन में सबके सामने ये पहला मौका था।

दूबे भाभी ने पहले तो उसे प्यार से हल्के से दबाया और फिर खुलकर कसकर रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

मजा गुड्डी को भी आ रहा था भले ही वो कसकर उह्ह. आह्ह. कर रही थी। उसके कबूतरों की चोंच, मस्त निपल एकदम कड़े खड़े थे। दूबे भाभी ने कसकर उसकी चूची को दबाते हुए उभार के मुझे दिखाया और एक निपल को पिंच कर दिया। मानो कह रही हों- "लोगे क्या?"

जवाब में मैंने एक फ्लाईंग किस दिया, और गुड्डी ने मुश्कुराते हुए उछलकर कैच कर लिया। मेरा बस चलता तो दूबे भाभी की जगह मैं ही।

जगह बदल तो गई थी लेकिन चंदा भाभी के साथ, अब रीत और संध्या भाभी के बीच चंदा भाभी सैंडविच बनी हुई थी। रीत ने अपनी पाजामी फिर से बाँध ली थी।

रीत रीत थी।

लेकिन चंदा भाभी भी कम नहीं थी। वो अकेले दोनों पे भारी पड़ रही थी। उन्होंने एक हाथ से संध्या भाभी के और दूसरे से रीत के उभार दबा रखे थे। लेकिन रीत चतुर, चपल चालाक थी और ये कहावत पूरे शहर में मशहूर थी की रीत से कोई जीत नहीं सकता। उसने जैसे चन्दा भाभी से बचना चाहती हो ऐसे झुकी, और जब तक वो समझें उसने 'बिलो द बेल्ट' हमला कर दिया, सीधे भाभी के नाड़े पे।

बिचारी चंदा भाभी ने घबड़ाकर दोनों हाथ से अपना साया पकड़ा।

रीत इत्ती आसानी से छोड़ने वाली थोड़ी थी। उसने चन्दा भाभी के साए में हाथ डाल दिया।

अब एक हाथ से वो नाड़ा पकड़े थी और दूसरे हाथ से रीत को रोकने की कोशिश कर रही थी।

"क्यों कोई खास चीज छुपा रखी है क्या भाभी, जो इस तरह इसे बचा रही हैं?" हँसकर रीत बोली।

मेरी आँखें वहीं चिपकी थी।

चंदा भाभी भी नहीं समझ पायीं की ये मात्र डाइवर्सन की ट्रिक थी। वो निचले मंजिल पे उलझी थी और संध्या भाभी के हाथ उनकी ब्रा में घुस गए। फिर तो पेंट, रंग गुलाल सब कुछ।
"आप अकेले। अरे मेरी भी तो प्यारी-प्यारी भाभी हैं देखूं ना। चोली के पीछे क्या है? जो मेरे ही नहीं भाभी के भैया लोग भी बचपन से इसपे लट्टू थे." खिलखिलाती हुई रीत बोली।

"आ ना." संध्या भाभी बोली।

रीत ने पीछे से घात लगाई, वो चन्दा भाभी की पीठ से चिपकी हुई थी जिससे तमाम कोशिश करके भी। वो उसको पकड़ नहीं पा रही थी। रीत के एक हाथ भाभी की अधखुली ब्रा में घुसे रगड़ घिस कर रहे थे। उसने चिढ़ाया-

"क्यों भाभी सबसे पहले किससे दबवाया था जो इत्ते मस्त गदरा गए ये जोबन."

"अरी तू बता किससे रगड़वाती मसलवाती रहती है." चंदा भाभी ने जवाबी बाण छोड़ा।

"अब भाभी इत्ता कहाँ कौन हिसाब रखता है? हाँ, सबसे मस्त और सबसे आखिरी में दबाने वाला। वो है." रीत की उंगली मेरी ओर थी।

आगे से संध्या भाभी भी-

"माना भाभी की चूचियां मस्त हैं, लेकिन कब तक उसमें उलझी रहेगी? अरे जरा खजाने का भी तो मजा ले."

कहकर संध्या भाभी ने रीत को ललकारा। पीछे का हिस्सा रीत के कब्जे में और आगे का संध्या भाभी के कब्जे में।

चंदा भाभी भी आक्रमण के मूड में आ गई और उन्होंने संध्या के साए में हाथ डाल दिया और कस-कसकर उंगली करने लगी-

"क्यों ननद रानी कैसा लगा सैयां से चुदवाना? तेरे मैके के यार ज्यादा जबरदस्त थे या ससुराल के?"

"अरे भाभी मेरे मैके के यार तो आपके भी देवर लगते हैं। उनकी नाप जोख तो होली, बिना होली आपने भी खूब की है। रहा मेरे सैयां का सवाल तो वो तो आपके नन्दोई हैं आपका हक बनता है। होली में आयंगे ही आप स्वाद चख लीजिएगा, खुद पता लग जाएगा." संध्या भाभी हँसते हुए बोली और अचानक चीखी-

"उयी एक साथ तीन-तीन। लगता है भाभी."

"अरे ज्यादा छिनालपन ना कर। शादी के पहले सम्हालने की बात होती है। अब तो आने दे रंगपंचमी तेरी चूत में पूरी मुट्ठी ना किया तो कहना."

दूबे भाभी उनकी ओर देखती बोली।

"अरे सिर्फ इसकी क्यों? इसकी दोनों सहेलियों के भी तो."

चंदा भाभी ने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करते हुए कहा- "अब कहाँ कुँवारी बचने वाली ये दोनों." उनकी निगाह मेरी ओर मुश्कुराती हुई टिकी थी।

"कल का सूरज निकलने के पहले दोनों चुद जानी चाहिए." दूबे भाभी ने फरमान जारी किया, और वो भी मेरी ओर देख रही थी।

गुड्डी और रीत दोनों शैतान, एक साथ बोली- "मंजूर लेकिन करने वाले से पूछिए."

उसी जोश में मैं भी बोला- "एकदम मंजूर."
 
[color=rgb(184,]जोश दूबे भाभी का[/color]



तब तक दूबे भाभी ने बात पकड़ ली और गुड्डी और रीत दोनों को हड़काते हुए बोला-

"सालियों, हरामिनों, होलिका माई जर गईं बुर चोदाई कह गईं। होली खेलते समय सिर्फ लण्ड, चूत, गाण्ड, चुदाई ही बोलते हैं, वरना होलिका माई तरसा देंगी। सारी जिंदगी बैगन और मोमबत्ती से काम चलाओगी। अगर किसी ने कुछ और बोला ना तो अभी गाण्ड में हाथ पेल दूंगी कुहनी तक."

किसको गाण्ड तक हाथ डलवाना था, रीत और गुड्डी की जुबान भी दूबे भाभी वाली हो गई। रीत ने मेरी ओर आँख नचाते हुए पूछा-

"लेकिन जो इस बहनचोद की छिनार बहना आएगी। उसके साथ कौन करेगा ये काम?"

अबकी चंदा भाभी बोली- "अरे तुम दोनों क्या सिर्फ इसका लण्ड घोटने के लिए हो? तुम दोनों की तो ननद लगेगी वो, तो तुम लोग मुट्ठी करना। सालियों."

"और क्या चुदकर तो वो भी आएगी और चोदने वाला भी वही। आखीरकार, दूबे भाभी का हुकुम है मजाक नहीं." हँसकर गुड्डी बोली।

भंग और दारू के नशे का असर, या दूबे भाभी का हुकुम, या फिर होली की मस्ती, या सब की सब। बात अब सिर्फ बात में ही कमर के नीचे नहीं पहुँच गई थी बल्की सच में भी।

इसलिए गुड्डी कट ली।

उस बिचारी के 'वो दिन' चल रहे थे। वो मेरी ओर आई। मैंने उसे बगल में बैठने का इशारा किया लेकिन वो सीधे मेरी गोद में।

उधर बाजी पलट चुकी थी।

ननद भाभी के मैच में बाजी फिर भाभी के हाथ में। दूबे भाभी ने संध्या को नीचे गिरा दिया था और चंदा भाभी रीत के साथ।

"इत्ती देर से मेरी गाण्ड में उंगली करने की कोशिश कर रही थी ना अब बताती हूँ। देख क्या-क्या डालती हूँ आगे भी, पीछे भी."

चंदा भाभी ने रीत को चैलेन्ज किया।

उनके चंगुल से बचती हँसती खिलखिलाती रीत बोली-

"नहीं भाभी, अरे मैं कहाँ उंगली करूँगी? मुझे मालूम है इसमें एक से एक मोटे लण्ड जाकर मुँह लटका के लौट आते हैं, तो बिचारी मेरी उंगली की क्या बिसात."

लेकिन वो भी पकड़ी गई।

दूबे भाभी तो संध्या भाभी के ऊपर पूरी तरह से। कोई मर्द क्या इस तरह रगड़कर चोदेगा। दोनों टांगें उठाकर उन्होंने अपने कंधे पे इस तरह रख ली थी की वो बिचारी चाहकर भी हिल डुल नहीं सकती थी-

"ससुराल में तो बहुत मिजवाई होगी चूची ना अब जरा भाभी का भी मजा लो ना। तेरी ये चूचियां इत्ती मस्त है की नंदोई तो रोज। दीवाने होंगे इसके." वो बोली।

"लेकिन भाभी वो मुझसे ज्यादा आपकी चूची के दीवाने हैं." ब्रा के ऊपर से ही दूबे भाभी के जोबन का मजा लेते संध्या बोली।

"अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है। होली मैं तो वो आयेंगे ना अदला-बदली कर लो। मेरे सैयां तुम्हारे साथ और तेरे सैंयां मेरे साथ। होली में नीचे वाले मुँह का भी स्वाद बदल जाएगा."

और साथ ही दूबे भाभी ने अपनी चूत से इत्ती कसकर घिस्सा लगाया की संध्या भाभी की सिसकी निकल गई।

अब बिना रंगों की होली हो रही थी। लेकिन संध्या भाभी दूबे भाभी की बात का मतलब समझ गईं और नीचे से कमर उचकाते बोली-

"भाभी ये आपके मायके में होता होगा। मुझे मेरे ही भैया से चुदवाने का प्लान बना रही हैं। आपको मेरे सैयां भी मुबारक मेरे भैया भी मुबारक, एक आगे से एक पीछे से."

तब तक शायद दूबे भाभी ने उनके पिछवाड़े भी उंगली कर दी, जिससे वो चिहुँक कर बोली- "इधर नहीं भाभी इधर नहीं."

"अरे तो ननदोई जी ने पीछे का बाजा नहीं बजाया? इत्ते मस्त नगाड़े जैसे तेरे चूतड़ और गाण्ड नहीं मारी? बहुत नाइंसाफी है."

दूबे भाभी बिना उंगली निकाले बोली। और उसके बाद तो जो धमाचौकड़ी मची की न जाने कित्ते आसन दूबे भाभी ने ट्राई किये।

संध्या भाभी ने थोड़ा जवाब देने की कोशिश की लेकिन सब बेकार।

रीत का मुकाबला ज्यादा बराबरी का था। भले ही उसे उतना अनुभव ना हो लेकिन वो सीखती बहुत जल्दी थी। चंदा भाभी ने उसे दबोच लिया था लेकिन वो फिसल के मछली की तरह बाहर और उसके बाद वो जो ऊपर चढ़ी तो उसने अपने दोनों पैरों को आपस में फँसा लिया। फिर चंदा भाभी लाख ऊपर-नीचे हुई लेकिन उसकी पकड़ ढीली नहीं हुई।

गुड्डी मेरी गोद में थी, और जो होली वहां ननद भाभी खेल रही थी वही हम यहाँ खेल रहे थे। गुड्डी के जो उरोज खुले हुए थे, उसे उसने फिर से फ्राक के अन्दर बंद करने की कोशिश की। लेकिन मैंने मना कर दिया।

जिस तरह ननद भाभी एक दूसरे की चूचियां मसलती उसी तरह मैं गुड्डी की।

एक बार रीत ने देखा तो उसने वहीं से थम्स-अप की साइन दी और बोली- "लगे रहो। लेकिन इत्ते धीरे। अरे जरा कसकर."

उसके बाद तो मुझे उकसाने की जरूरत नहीं पड़ी।
 
[color=rgb(243,]होली -गुड्डी और रीत साथ साथ ,[/color][color=rgb(243,] बिना हाथ
[/color]


रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

"अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं.ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास "
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत

गुड्डी भी समझ गई।
शुरू हो गयी हैण्ड फ्री होली.
समझा मैं भी लेकिन थोड़ी देर से।

गुड्डी के उभार पे मैंने लाल गुलाबी रंग और दूबे भाभी ने जमकर कालिख रगड़ी थी, और रीत के जोबन का रस तो हम सबने मैंने, दूबे भाभी और चंदा भाभी ने सबने रंग लगाया था। बस उन दोनों हसीनाओं ने उन उभारों को ही हाथ बनाया।

और आगे से गुड्डी और पीछे से रीत ने कस-कसकर रंग लगाना, अपनी चूचियों से शुरू कर दिया, मेरे सीने और पीठ पे।

रंग लगाने का काम दोनों किशोरियों के रंगे पुते दोनों जोबना कर रहा थे थे और तंग करने का काम दोनों के नरम मुलायम हाथ।
गुड्डी की नरम हथेलियां तो मेरे लण्ड को वैसे ही तंग कर रही थी, अब रीत भी मैदान में आ गई।

उसका एक हाथ गुड्डी के साथ आगे और दूसरा मेरे नितम्बों की दरार पे पीछे।

अब मेरा चर्म दंड दोनों के हाथ में बीच में जैसे दो ग्वालिनें मिलकर मथानी मथें, बस बिलकुल उसी तरह। एक ही काफी थी, वहां दोनों, मेरी तो जान निकल रही थी। और साथ में अब रीत की दो उंगली मेरी गाण्ड की दरार में। ऊपर-नीचे रगड़-रगड़ कर। गुड्डी का एक हाथ भी वहां पहुँच गया था वो कस-कसकर मेरे नितम्बों को दबा रही थी।
मैं बोला- "अरी सालियों वहां नहीं। अगर मैं वहां डालूँगा ना तो बहुत चिल्लाओगी तुम."

मजा जब एक सीमा के बाहर हो जाता है तो मुश्किल हो जाती है मेरी वही हालत हो रही थी।

गुड्डी बोली- "तब की तब देखी जायेगी अभी तो हमारा मौका है। डलवाओ चुपचाप."

रीत बोली- "हाँ जैसे ये नहीं डालने वाले और हमारे रोकने से मान जायेंगे." और उसकी उंगली पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रही थी।

तभी दूबे भाभी की आवाज आई- "सालियों, छिनार तुम दोनों को भेजा क्या बोलकर था और किस काम में लग गई?"

और अबकी मेरे कुछ बोलने के पहले ही गुड्डी और रीत के हाथ मेरे टाप पे और टाप बाहर। जो उन दोनों ने फेंका तो सीधे संध्या भाभी के ऊपर, उनका दूबे भाभी और चंदा भाभी के साथ थ्री-सम खतम ही हुआ था।

"अब आयगा मजा। तुमने हम सबकी ब्रा में हाथ डालकर बहुत रगड़ा मसला था, और अब तुम पूरे टापलेश हो गए हो."गुड्डी और रीत साथ साथ बोली। और उसके बाद तो सब की सब मेरे ऊपर। जो हुआ वो न कहा जा सकता है न कहने लायक है।

[color=rgb(0,]उड़त गुलाल लाल भये बादर,
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मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।[/color]
 
[color=rgb(65,].[/color] [color=rgb(65,]होली -बनारसी[/color]-[color=rgb(184,]वो पांच
--
[/color]

[color=rgb(243,]मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।
ये पकड़ो ये, पकड़ो इसे न छोड़ो,

अरे अरे अरे बैंया न तोड़ो,

ओये ठहर जा भाभी, अरे अरे शराबी,

क्या हो रजा गली में आ जा

होली होली गाँव की गोरी ओ नखरेवाली,

दूंगी मैं ग ली अरे साली, होली रे होली।[/color]

वो पांच मैं अकेले। मैं समझ गया निहत्थे लड़ाई में तो मैं जीत नहीं सकूँगा। दूबे भाभी की पकड़ मैं देख चुका था। अब रीत और गुड्डी के हाथ बर्मुडा से बाहर थे। लेकिन दूबे भाभी और चंदा भाभी ने आगे और संध्या भाभी ने पीछे का मोर्चा सम्हाला।

"हे संध्या जरा पकड़कर देख। बोल तेरे वाले से बड़ा है की छोटा?" चंदा भाभी ने बोला। वो नाप जोख क्या पिछली रात तीन-तीन बार अन्दर ले चुकी थी।

"अरे भाभी ये अभी बच्चा है, वो मर्द हैं." संध्या भाभी टालते हुए बोली।

"चल पकड़ वरना तुझे लिटाकर अन्दर घुसेड़वा के पूछूंगी." ये दूबे भाभी थी।

अब संध्या भाभी के पास कोई चारा नहीं था। दूबे भाभी ने हाथ बाहर निकाला और संध्या भाभी ने डाला। थोड़ी देर तक वो इधर-उधर करती रही।

"बोल ना?" चंदा भाभी ने पूछा।

"जिसको मिलेगा ना वो बड़ी किश्मत वाली होगी." संध्या भाभी बुदबुदा रही थी।

मैंने गुड्डी की ओर देखा, वो मुश्कुरा रही थी और उसका चेहरा चमक रहा था। उसने मेरी आँखें चार होते ही थम्स-अप का साइन दिया।

"बोल ना कैसा लगा?" अब चंदा भाभी उनके पीछे पड़ गई थी।

संध्या भाभी ने पहले तो झिझकते-झिझकते पकड़ा था, लेकिन अब अच्छी तरह से और उनका अंगूठा भी सीधे सुपाड़े पे। मेरा लण्ड दूबे भाभी के एक्सपर्ट हाथों में मुठियाने से एकदम पागल हो गया था, खूब मोटा। और अब बिचारी संध्या भाभी लाख कोशिश कर रही थी लेकिन उनकी मुट्ठी में नहीं समां रहा था।

"बोल लेना है?" चंदा भाभी चिढ़ा रही थी- "गुड्डी से कहकर सोर्स लगवा दूँ?"

"ना बाबा ना." संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया- "आदमी का है या गधे घोड़े का?"

"अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का? अभी तो इसे बच्चा कह रही थी। हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द से हो सकता है मजा ना आये." दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थी।

लेकिन मैं समझ गया था की यही मौका है।

अभी किसी का हाथ अन्दर नहीं था। गुड्डी किसी काम से अन्दर गई थी और रीत भी कहीं।

मैंने देख रखा था की छत के किनारे की ओर चंदा भाभी ने कई बाल्टियों में रंग और एक-दो पीतल की बड़ी लम्बी पिचकारियां भी रखी थी। लेकिन हम लोग तो हाथ पे उतर आये थे, और वहां तीन ओर से दीवार थी इसलिए जो भी हमला होगा सामने से होगा।

बस मैं उधर मुड़ लिया।

मैं सिर्फ बरमुडे में था, वो भी इत्ता छोटा की कमर से एक बित्ता ही नीचे होगा। लेकिन चंदा, दूबे भाभी और संध्या भाभी भी खाली ब्रा और सायें में। वो भी रंग में भीगने से ट्रांसपरेंट हो चुके थे।

रीत भी लेसी जालीदार ब्रा और पाजामी में और वो भी देह से चिपकी।
 
[color=rgb(41,]काउंटर अटैक -आनंद बाबू का
[/color]


चंदा भाभी मेरी ओर बढी, तो मैंने उन्हें बढ़ने दिया। लेकिन जब वो एकदम पास आ गई तो मैंने बाल्टी का रंग उठाकर पूरी ताकत से, सीधे उनकी रंगों में डूबी ब्रा के ऊपर। इत्ती तेज लगी की लगा ब्रा फट ही गई। फ्रंट ओपेन ब्रा रंग के धक्के से खुल गई थी, और जब तक वो उसको ठीक करती बाकी बची बाल्टी का रंग मैंने उनके साए पे सीधे उनकी बुर पे सेंटर करके।

"निशाना बहुत सही है तम्हारा." संध्या भाभी हँस रही थी।

मैंने संध्या भाभी को दावत दी- "अरे आप पास आइये ना अपनी पर्सनल पिचकारी से सफेद रंग डालूँगा। 9 महीने तक असर रहेगा."

"अरे इसपे डाल। ये तुम्हारी बड़ी चाहने वाली है." कहकर उन्होंने रीत को आगे कर दिया।

मेरे तो हाथ पैर फूल गए।

उन रंग से डूबी वैसे भी लेसी जालीदार हाफ-कट ब्रा में उसके उभार छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे। वो झुकी तो उसके निपल तक और उठी तो उसके नयन बाण।

"मैं नहीं डरती हूँ। ना इनसे ना इनकी पिचकारी से। पिचका के रख दूंगी। अपनी बाल्टी में." हँसकर जोबन उभार के वो नटखट बोली।

वो जैसे ही पास आई मैंने पिचकारी में रंग भर लिया था, और वो जैसे ही पास आई लाल गुलाबी। छर्रर्रर। छर्रर्रर। पिचकारी की धार सीधे उसकी जालीदार ब्रा के ऊपर और अन्दर उसने हाथ से रोकने की कोशिश की तो पाजामी के सेंटर पे।

[color=rgb(0,]क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी। क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी।

देखो कुंवरजी दूँगी मैं गारी, दूँगी मैं गारी, भिगोई मेरी सारी

भाग सकूं मैं कैसे, भागा नहीं जात। भीगी मेरी सारी।
[/color]

रीत मेरे एकदम पास आ गई थी।
लग रहा था की जैसे वो किसी पेंटिंग से सीधे उतरकर आ गई हो। बस मुगले आजम में जिस तरह मधुबाला लग रही थी- "मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे." गाने में वैसे ही, एकदम संगमरमर की मूरत।

मुझे लग रहा था किसी ने मूठ मार दी हो, जादू कर दिया हो।

बस वैसे ही मैं खड़े का खड़ा रहा गया।

वो एकदम पास आ गई बस पिचकारी पकड़ ही लेती मेरी तो मैं जैसे सपने से जागा, और मैंने पूरी पिचकारी उसके उरोजों पे खाली कर दी। छर्रर्रर छर्रर्रर।

और उसके उरोज तो रंग से भर ही गए, पूरे खिले दो गुलाबी कमल जैसे और अब उसकी ब्रा भी उनका भार नहीं बर्दाश्त कर पायी।

हुक चटाक-चटाक करके टूट गए और जब तक वो झुक के हुक ठीक करती उसके निपल दिख गए और जब उसने सिर ऊपर किया तो पलकों के बाण चल गए। लेकिन अबकी मैंने बाकी की पिचकारी भी खाली कर दी।

उसने दोनों हाथों से रोकने की कोशिश की।

तब तक गुड्डी भी आ गई, हँसकर बोली- "अरे यार चलो ना अब सब मिलकर तुम्हारा बलात्कार नहीं करेंगे."

"बारी-बारी से करेंगे." संध्या भाभी को भी अब एक बार मेरा लण्ड पकड़ने के बाद स्वाद मिल गया था, वो भी बोली।
 
[color=rgb(235,]स्ट्रिप टीज
[/color]


मैं उन दोनों के साथ छत के बीच में आ गया जहाँ चंदा भाभी, संध्या और दूबे भाभी बैठी थी। गुड्डी और रीत मेरे दोनों ओर खड़ी थी मुझे शरारत से ताकती। दोनों के अंगूठे मेरे बर्मुडा में फँसे थे और मेरी पीठ चंदा और दूबे भाभी की ओर थी। थोड़ा सा मेरा बर्मुडा उन्होंने नीचे सरका दिया।

"अभी कुछ नहीं दिख रहा है." संध्या भाभी चिल्लायी।

"साले को पहले निहुराओ." दूबे भाभी ने हुकुम दिया।

मैं अपने आप झुक गया, और रीत और गुड्डी ने एक झटके में बर्मुडा एक बित्ते नीचे सीधे मेरे नितम्बों के नीचे। दूबे भाभी और चंदा भाभी की आँखें वहीं गड़ी थी। लेकिन दुष्ट रीत ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को ढक लिया और शरारत से बोली-

"ऐसे थोड़ी दिखाऊँगी, मुँह दिखाई लगेगी."

"दिखाओ ना." संध्या भाभी बोली- "अच्छा थोड़ा सा."

रीत ने हाथ हटा दिया लेकिन गाण्ड की दरार अभी भी हथेलियों के नीचे थी।

"चल दे दूंगी। माल तो तेरा मस्त लग रहा है." दूबे और चंदा भाभी एक साथ बोली।

रीत ने हाथ हटा दिया, और दूबे भाभी से बोली-

"चेक करके देख लीजिये एकदम कोरा है। अभी नथ भी नहीं उतरी है। सात शहर के लौंडे पीछे पड़े थे लेकिन मैं आपके लिए पटाकर ले आई।

दूबे भाभी भी। उन्होंने अपनी तर्जनी मुँह में डाली कुछ देर तक उसे थूक में लपेटा और फिर थोड़ी देर तक उसे मेरी पिछवाड़े की दरार पे रगड़ा।

मुझे कैसा-कैसा लग रहा था

चंदा भाभी ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे नितम्बों को कसकर फैलाया और दूबे भाभी ने कसकर उंगली घुसेड़ने की कोशिश की। फिर निकालकर वो बोली-

"बड़ी कसी है, इत्ती कसी तो मेरी ननदों की भी नहीं है."

लेकिन संध्या भाभी तो कुछ और देखना चाहती थी उन्हें अभी भी विश्वास नहीं था, कहा-

" रीत आगे का तो दिखाओ। उतारकर खोल दो ना क्या?"

मैं सीधा खड़ा हो गया। रीत और गुड्डी ने एक साथ मेरा बरमुडा खींच दिया।

वो नीचे तो आया लेकिन बस मेरे तने लण्ड पे अटक गया और रीत और गुड्डी ने फिर उसे अपनी हथेलियों में छिपा लिया, बेचारी भाभियां बेचैन हो रही थी। इस स्ट्रिप शो में।

"दिखाओ ना पूरा." सब एक साथ बोली।

और अगले झटके में बरमुडा दूर। मैं हाथ से छिपा भी नहीं सकता था। वो तो पहले ही संध्या भाभी की ब्रा में बंधा था। रीत अपने हाथ से उसे छिपा पाती, इसके पहले ही संध्या भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे स्प्रिंगदार चाकू निकलकर बाहर आ जाता है वो झट से स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर।

लम्बा खूब मोटा भुजंग। बीच-बीच में नीले स्पोट, धारियां।

ये उसका असली रंग नहीं था। लेकिन उसको सबसे ज्यादा रगड़ा पकड़ा था रंग लगाया था दूबे भाभी ने और ये उनके हाथ की चमकदार कालिख थी। जिसने उसे गोरे से काला बना दिया था। उसे आखिरी बार पकड़ने वाली संध्या भाभी थी इसलिए उनके हाथ का नीला रंग, उनकी उंगलियों की धारी और स्पोट के रूप में थी।

गुड्डी और रीत ने जो लाल गुलाबी रंग लगाये थे, वो दूबे भाभी की लगाई कालिख में दब गए थे। सब लोग ध्यान से देख रहे थे, खासतौर से संध्या भाभी। शायद वो अपने नए नवेले पति से कम्पेयर कर रही थी।

"अरे लाला ससुराल का रंग है वो भी बनारस का, जाकर अपनी छिनार बहना से चुसवाना तब जाकर रंग छूट पायेगा." दूबे भाभी बोली।

"कोई फायदा नहीं." ये चंदा भाभी थी- "अरे रंग पंचमी में तो आओगे ही फिर वही हालत हो जायेगी."
 
[color=rgb(243,]रीत
[/color]

रीत ने एक अंगड़ाई ली और जैसे बोर हो रही हो। बोली-

"भाभी चलो न शो खतम। देख लिया। होली भी हो ली। अब इन्हें जाने दो। ये कल से अपने मायके जाने की रट लगाकर बैठे थे। ये तो भला हो गुड्डी और चंदा भाभी का इन्हें रोक लिया की कहीं रात में ऊँच नीच हो जाय। तो इन्हें क्या? नाक तो हमीं लोगों की कटेगी ना। और सुबह से होली का था तो चलो होली भी हो ली। इन्होंने गुझिया और दहीबड़े भी खा लिए। हम लोग भी नहा धोकर कपड़े बदले वरना, चलो न।

गुड्डी तुम भी तैयार हो जाओ, वरना ये कहेंगे की तुम्हारे कारण देर हुई। जल्दी जाओ वरना देर होने पे फिर इनके मायके में डांट पड़े. मुर्गा बना दिया जाय."

"मैं आपके बाथरूम में नहा लूं भाभी? कपड़े मैंने पहले से ही निकालकर रख दिए हैं बस। वैसे मुझे आज थोड़ा टाइम भी लगेगा नहाने में सिर धोकर नहाना होगा."

गुड्डी ने चंदा भाभी से पूछा।

"तो नहा लो ना। इसके पहले कभी नहाई नहीं क्या? गुंजा के साथ कित्ती बार। उसी के कमरे वाले बाथरूम में नहा लेना." चंदा भाभी बोली।

मुझे बड़ी परेशानी हो रही थी। सब लोग ऐसे बातें कर रहे थे जैसे मैं वहां होऊं ही नहीं। मैंने पूछ ही लिया- "लेकिन मेरा क्या? मैं कैसे नहा, तैयार."

"तो कोई आपको नहलाएगा, तेल फुलेल लगाएगा, श्रृंगार कराएगा, सोलहों श्रृंगार." रीत तो जैसे खार खाए बैठी थी।

"अरे जहाँ सुबह नहाया था वहीं नहा लेना। ये भी कोई बात है। मेरे कमरे वाले बाथरूम में." चंदा भाभी बोली।

"अरे इसकी क्या जरूरत है भाभी। यहीं छत पे नहा लेंगे ये। कहाँ आपका बाथरूम गन्दा होगा रंग वंग से। फिर इनका आगा भी देख लिया पीछा भी देख लिया फिर किससे ये लौंडिया की तरह शर्मा रहे हैं?" कहकर रीत ने और आग लगाई।

"नहीं वो तो ठीक है नहाना वहाना। लेकिन कपड़े। कपड़े क्या मैं। कैसे मेरे तो." दबी आवाज में मैंने सवाल किया।

"ये कर लो बात कपड़े। किस मुँह से आप कपड़े मांग रहे हो जी? सुबह कितनी चिरौरी विनती करके गुंजा से उसकी टाप और बर्मुडा दिलवाया था, और आपने उसको भी,... आपको अपने कपड़े की पड़ी है और मैं सोच रही हूँ की किस मुँह से मैं जवाब दूंगी उस बिचारी को? कित्ता फेवरिट बर्मुडा था। क्या जरूरत थी उसे पहनकर होली खेलने की?"

गुड्डी किसी बात में रीत से पीछे रहने वाली नहीं थी।

"अरे ऐसे ही चले जाइए ना। बस आगे हाथ से थोड़ा ढक लीजियेगा। और किसी दुकान से गुड्डी से कहियेगा तो मेरी सहेली ऐसी नहीं है, चड्ढी बनयान दिलवा देगी." रीत बोली।

"सही आइडिया है सर जी." गुड्डी और संध्या भाभी साथ-साथ बोली।

"नहीं ये नहीं हो सकता." चंदा भाभी बोली-

"अरे तुम सब अभी बच्ची हो तुम्हें मालूम नहीं इसी गली के कोने पे सारे बनारस के एक से एक लौंडेबाज रहते हैं और ये इत्ते चिकने हैं। बिना गाण्ड मारे सब छोड़ेंगे नहीं, इसीलिए तो इन्हें रात में नहीं जाने दिया। और अगर दिन दहाड़े तो इनकी गाण्ड शर्तिया मारी जायेगी।

रीत बोली- "भाभी आप भी ना बिना बात की बात पे परेशान। गाण्ड मारी जायेगी तो मरवा लेंगे इसमें कौन सी परेशानी की बात है? कौन सा ये गाण्ड मरवाने से गाभिन हो जायेंगे? फिर कुछ पैसा वैसा मिलेगा तो अपनी माल कम बहना के लिए लालीपाप ले लेंगे। वो साली भी मन भर चाटेगी चूसेगी, गाण्ड मारने वाले को धन्यवाद देगी."

"नहीं ये सब नहीं हो सकता." अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।

मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।

"अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा."

अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?

जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमेंm जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।

रीत बोली-

"देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े,... लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के."
 
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