Hawas ki Kahani हवस की रंगीन दुनियाँ - Page 9 - SexBaba
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Hawas ki Kahani हवस की रंगीन दुनियाँ

मैं अब बहुत मस्त हो गया था. सर से चिपट कर बैठने में अब अटपटा नहीं लग रहा था. मेरा ध्यान बार बार उनके तंबू की ओर जा रहा था. अनजाने में मैं धीरे धीरे अपने चूतड़ ऊपर नीचे करके सर की हथेली में मेरे लंड को पेलने लगा था. अपने लंड को ऊपर करते हुए मैं बोला "आप बहुत हैंडसम हैं सर, सच में, हमें बहुत अच्छे लगते हैं. रचना अभी शरमा रही है पर मुझसे कितनी बार बोली है कि भैया ,पाल सर कितने हैंडसम हैं..

"तेरी रचना भी बड़ी प्यारी है." सर ने दो तीन मिनिट और रचना की पैंटी में हाथ डालकर उंगली की और फ़िर हाथ निकालकर देखा. उंगली गीली हो गयी थी. सर ने उसे चाट लिया. "अच्छा स्वाद है रचना , शहद जैसा" रचना आंखें बड़ी करके देख रही थी, शर्म से उसने सिर झुका लिया. "अरे शरमा क्यों रही है, सच कह रहा हूं. एकदम मीठी छुरी है तू रचना , रस से भरी गुड़िया है"

पाल सर उठ कर खड़े हो गये. और कहने लगे की तुम्हारी कॉपी में देखू .... पर उसके पहले ... रचना ... तुम अपनी पैंटी उतारो और सोफ़े पर टिक कर बैठो"

रचना घबराकर शर्माती हुई बोली "पर सर ... आप क्या करेंगे?"

"डरो नहीं, जरा ठीक से चाटूंगा तुम्हारी बुर. और फ़िर तेरी चूत का स्वाद इतना रसीला है कि चाटे बिना मन नहीं मानेगा मेरा. अब गलती की है तुमने तो भुगतना तो पड़ेगा ही. चलो, जल्दी करो नहीं तो कहीं फ़िर मेरा इरादा बदल गया तो भारी पड़ेगा तुम लोगों को ...." टेबल पर पड़े बेंत को हाथ लगाकर वे थोड़े कड़ाई से बोले.

"नहीं सर, अभी निकालती हूं. भैया आप उधर देख ना! मुझे शर्म आती है" मेरी ओर देखकर रचना बोली, उसके गाल गुलाबी हो गये थे.

"अरे उससे अब क्या शरमाती हो. इतना नाटक सब रोज करती हो उसके साथ, .... और अब शरमा रही हो! चलो जल्दी करो"

रचना ने धीरे से अपनी पैंटी उतार दी. उसकी गोरी चिकनी बुर एकदम लाजवाब लग रही थी. बस थोड़े से जरा जरा से रेशमी बाल थे. मेरी भी सांस चलने लगी.

"अब टांगें फ़ैलाओ और ऊपर सोफ़े पर रखो. ऐसे ... शाब्बास" पाल सर उसके सामने बैठते हुए बोले. रचना टांगें उठाकर ऐसे सोफ़े पर बैठी हुई बड़ी चुदैल सी लग रही थी, उसकी बुर अब पूरी खुली हुई थी और लकीर में से अंदर का गुलाबी हिस्सा दिख रहा था. पाल सर ने उसकी गोरी दुबली पतली जांघों को पहले चूमा और फ़िर जीभ से रचना की बुर चाटने लगे.

"ओह ... ओह ... ओह ... सर ... प्लीज़" रचना शरमा कर चिल्लाई. "ये क्या कर रहै हैं?"

"क्या हुआ? दर्द होता है?" सर ने पूछा?

"नहीं सर ... अजीब सा ... कैसा तो भी होता है" हिलडुलकर अपनी बुर को सर की जीभ से दूर करने की कोशिश करते हुए रचना बोली "ऐसे कोई ... वहां ... याने जीभ ... मुंह लगाने से ... ओह ... ओह"

"रचना , बस एक बार कहूंगा, बार बार नहीं कहूंगा. मुझे अपने तरीके से ये करने दो" सर ने कड़े लहजे में कहा और एक दो बार और चाटा. फ़िर दो उंगलियों से बुर के पपोटे अलग कर के वहां चूमा और जीभ की नोक लगाकर रगड़ने लगे. रचना ’अं’ ’अं’ अं’ करने लगी.

"अब भी कैसा तो भी हो रहा है? या मजा आ रहा है रचना ?" सर ने मुस्कराकर पूछा.

"बहुत अच्छा लग रहा है सर .... ऐसा कभी नहीं .... उई ऽ ... मां ....नहीं रहा जाता सर .... ऐसा मत कीजिये ना ...अं ...अं.." कहकर रचना फ़िर पीछे सरकने की कोशिश करने लगी, फ़िर अचानक पाल सर के बाल पकड़ लिये और उनके चेहरे को अपनी बुर पर दबा कर सीत्कारने लगी. सर अब कस के चाट रहै थे, बीच में बुर का लाल लाल छेद चूम लेते या उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मुंह में लेकर चूसने लगते.
 
"बहुत अच्छा लग रहा है सर .... ऐसा कभी नहीं .... उई ऽ ... मां ....नहीं रहा जाता सर .... ऐसा मत कीजिये ना ...अं ...अं.." कहकर रचना फ़िर पीछे सरकने की कोशिश करने लगी, फ़िर अचानक पाल सर के बाल पकड़ लिये और उनके चेहरे को अपनी बुर पर दबा कर सीत्कारने लगी. सर अब कस के चाट रहै थे, बीच में बुर का लाल लाल छेद चूम लेते या उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मुंह में लेकर चूसने लगते.

रचना अब आंखें बंद करके हांफ़ते हुए अपनी कमर हिलाकर सर के मूंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. फ़िर एक दो मिनिट में ’उई... मां ... मर गयी ऽ ...’ कहते हुए ढेर हो गयी, उसका बदन ढीला पड़ गया और वो सोफ़े में पीछे लुढ़क गयी.
सर अब फ़िर से जीभ से ऊपर से नीचे तक रचना की बुर चाटने लगे, जैसे कुत्ते चाटते हैं. एक दो मिनिट चाटने के बाद वे उठ कर खड़े हो गये. उनके पैंट का तंबू अब बहुत बड़ा हो गया था.

"अच्छा लगा रचना ? मजा आया?" सर ने पूछा. रचना कुछ बोली नहीं, बस शरमा कर अपना चेहरा हाथों से छुपा लिया और मुंडी हिलाकर हां बोली.

"अच्छी है रचना तेरी बुर, बहुत मीठी है।पाल सर थोड़ी देर तक रचना के बूब्स को सहलाते रहै,


मैंने देखा तो अब पाल सर ने रचना को एक कुरसी में बिठा दिया था और सामने बैठ कर उसकी चूत चाट रहै थे. बड़े प्यार से उसपर नीचे से ऊपर तक जीभ रगड़ रहै थे जैसे कैंडी चाट रहै हों. रचना मेरी और तरफ़ देख रही थी, उसका चेहरा लाल हो गया था पर एकदम खुश नजर आ रही थी. सर ने अब उसकी बुर की लकीर में एक उंगली डाली और घिसने लगे. रचना ’सी’ ’सी’ करने लगी. थोड़ी देर से सर ने उंगली मोड़ी और धीरे से रचना की बुर में घुसेड़ दी. ली"क्या हुआ रचना ? दुख रहा है क्या, दुखना नहीं चाहिये, सिर्फ़ उंगली ही तो डाली है, तू तो मोमबत्ती डालती है ना" कहकर सर उसकी चूत को उंगली से चोदते हुए चूसने लगे. फ़िर उंगली निकालकर चाटी और रचना की बुर उंगलियों से फ़ैलायी और मुंह लगा दिया जैसे आम चूस रहै हों. "हा ऽ य ... आ ऽ ह ... सर ... बहुत अच्छा लगता है सर ... प्लीज़ सर ऽ ... उई ऽ मां ऽ ..." कहकर रचना अपनी कमर हिलाने लगी. उसने सर का सिर पकड़ लिया था और उनके मुंह पर अपनी चूत रगड़ रही थीना थोड़ी कसमसा सी गयी.

. देखा तो रचना सर के सामने नीचे बैठ कर उनका लंड मुंह में लेने की कोशिश कर रही थी. बस सुपाड़ा ही ले पायी थी, उसके गाल फ़ूल गये थे. सर अपना लंड उसके मुंह में पेलने की कोशिश कर रहै थे और कह रहै थे "रचना , ऐसे तो तूने अभी भी चूसा था, अब नया कुछ सीखना है कि नहीं? और मुंह में ले, जाने दे गले में, रोक नहीं, पूरा ले आज ..."

रचना गों गों करने लगी. सर ने लंड उसके मुंह से खींचा और उठ खड़े हुए "कोई बात नहीं, तेरे लिये ये नया है, नयी नयी जवानी जो है. घबरा मत, आज तेरा ये लेसन मैं पूरा कर ही दूंगा. रुक, मैं अभी आया"

वे कमरे के बाहर गये और एक मिनिट में एक मोटा लंबा केला ले कर वापस आये. केला छीलते हुए बोले "इससे प्रैक्टिस करवाता हूं, देख रचना , पहली बात यह ध्यान में रख कि गले को ढीला छोड़, एकदम ढीला. दूसरे यह कि ऐसे समझ कि तू जो निगल रही है उसमें से तुझे बहुत सी मलाई मिलने वाली है, ठीक है ना? अब मुंह खोल"

रचना ने मुंडी हिलाई और पूरा मुंह बा दिया. पाल सर ने उसके मुंह में केला डाला और धीरे धीरे अंदर घुसेड़ने लगे. चार पांच इंच के बाद रचना कसमसाई तो वे रुक गये "तू गला नहीं ढीला कर रही है रचना , बिलकुल ढीला कर" रचना ने पलकें झपकाईं और सर फ़िर से केला अंदर डालने लगे. इस बार रचना पूरा निगल गयी.

"शाबास रचना , ये हुई ना बात! ये केला बड़ा वाला मद्रासी केला है, दस इंच का, मेरे लंड से दो इंच बड़ा, अब तो तू आराम से ले लेगी, बस अंदर बाहर करने की प्रैक्टिस कर. लंड चूसते समय जितना जरूरी पूरा मुंह में लेना है, उतना ही बार बार अंदर बाहर करना है, इससे जो मजा मिलता है उससे कोई भी मर्द तेरा गुलाम हो जायेगा. और देख, दांत नहीं लगाना, इस केले पर देख ये निशान बन गये हैं, अब बिना दांत लगाये अंदर बाहर कर, दांतों को अपने होंठों से ढक ले"

सर केले को रचना के मुंह से पूरा खींच कर फ़िर अंदर पेलने लगे. रचना अब आसानी से कर रही थी. उसे मजा भी आ रहा था, वह सर का लंड अब हाथ में पकड़ कर बैठी थी.
 
सर ने केला एक प्लेट पर रख दिया था और रचना को सामने फ़र्श पर बिठाकर उसके मुंह में लंड पेल रहै थे. आधा तो रचना ने ले भी लिया था. सर प्यार से रचना के बाल सहला रहै थे "देख गया ना गले के नीचे? बस हो गया, अब पूरा ले ले" रचना ने सिर नीचे किया और सर की झांटें उसके होंठों पर आ टिकीं. रचना के गाल ऐसे फ़ूल गये थे जैसे बड़ा सेब मुंह में ले लिया हो.

"ये तो कमाल हो गया रचना . अब मजा ले लकर चूस. मुंह में अंदर बाहर कर ... और सुन .. जीभ से लंड के नीचे रगड़, प्यार से ... आह ऽ आह ? बहुत अच्छी बच्ची है रचना तू .... बहुत प्यारी है ... बस ऐसे ही कर ... आराम से ... मजा ले ... कोई जल्दी नहीं है" और उन्होंने रचना का सर पकड़ लिया और कमर हिला हिला कर लंड हौले हौले रचना के मुंह में पेलने लगे.

रचना अब बार बार सर का लंड पूरा मुंह से निकालती और फ़िर निगल लेती. उसे मजा आ रहा था जैसे बच्चों को आता है कोई नया काम सीख कर.

सर रचना से लंड चुसवाते हुए वो वाला केला खा रहै थे, जो रचना के मुंह में अंदर बाहर हुआ था.

"तेरे मुंह के स्वाद का जवाब नहीं रचना , अमरित है अमरित, अब जब किस करूं तो मेरे को ढेर सी चासनी पिलाना अपने मुंह की. ठीक है ना!" सर केला खतम करके बोले. रचना ने पलक झपकाकर कहा कि समझ गयी.

सर अब आराम से पीछे टिक कर बैठ गये और रचना का सिर पकड़कर उसके बालों में उंगलियां चलाते हुए रचना के सिर को आगे पीछे गाइड करने लगे. "हां रचना ... बस ऐसे ही ... हां ... हां मेरी रानी .... मेरी लाड़ली बच्ची ... चूस रानी चूस .... अपने सर का लौड़ा चूस ... उनका प्रसाद पा ले .... चल चूस"

थोड़ी ही देर में सर ने रचना के सर को कस कर अपने पेट पर भींच लिया और झड़ गये "ओह .... हां .... रचना .... तू तो कमाल करती है री ... आह .... मजा आ गया"

तीन चार सांसों के बाद सर ने लंड करीब करीब पूरा रचना के मुंह के बाहर खींचा और सिर्फ़ सुपाड़ा उसके मुंह में दे कर बोले "रचना , अब जीभ पर ले और चख ... मजे ले लेकर खा ... ये है सच्ची मलाई ... इतनी मेहनत की है तो अब उसका इनाम ले" उनका वीर्य उबल उबल कर रचना की जीभ पर इकठ्ठा हो रहा था. जब लंड शांत हुआ तो रचना ने मुंह बंद किया और आंखें बंद करके उसका स्वाद लेने लगी.

वीर्य निगलने के बाद रचना ने फ़िर से लंड को मुंह में लेकर साफ़ किया और उठ कर खड़ी हो गयी. थोड़ा शरमा रही थी पर बड़े गर्व के साथ सर की ओर देख रही थी. सर ने उसे खींच कर वहां के सोफ़े पर लिटाया और उसका बदन जगह जगह चूमने लगे. "बहुत प्यारी है तू रचना अब जरा आराम कर, मुझे अपने इस खूबसूरत बदन का स्वाद लेने दे"
 
वे रचना को हर जगह चूम रहै थे, छाती, पेट, पीठ, कंधे, जांघें, पैर ... थोड़ी देर फ़िर से उन्होंने रचना की बुर चूसी और दीदी रचना जब गरमा कर सी सी करने लगी तो उसे पलट कर सोफ़े पर पेट के बल लिटा दिया और उसके चूतड़ों में मुंह गाड़ दिया. रचना शरमा कर "सर ... सर ... वहां क्यों चूस रहै हैं सर? .... ओह ... ओह ...उई ऽ.. छी सर ... वहां गंदा है ...मत डालिये ना जीभ .... ओह ... आह" करने लगी पर सर ने उसके चूतड़ों को नहीं छोड़ा.मेने सर से कहा की सर अब कीमत बहुत ज्यादा हो गयी है तो वे भड़क गए बोले तुम्हे पास होना है या नही।हमने सहमती में गर्दन हिलाई ,तो उन्होंने कहा अब में


चोदूंगा, इस फ़ूल सी नरम बुर में घुसने को के खयाल से ही देखो मेरा लंड कैसा फ़िर से मचलने लगा है. पर इसपर ज्यादती हो जायेगी. इसलिए पहले तुम इसे चोद दो और इसकी चूत खोल दो, फ़िर मेरा जाने में इसको तकलीफ़ नहीं होगी"

कहकर सर ने रचना को नीचे पलंग पर लिटा दिया. "रचना , ठीक से लेट और टांगें फ़ैला, अब जरा अपने भाई का लंड हाथ में लेकर देख, इसे लेगी ना अब अपनी चूत में?"

रचना तो अब मछली जैसी तड़प रही थी. उसने झट से टांगें फ़ैलायीं और मेरा लंड पकड़कर बोली "भैया , जल्दी कर ना ... हा ऽ य .. रहा नहीं जाता .... " उसकी नजर सर के फ़िर से खड़े लंड पर टिकी थी.

पाल सर बोले "अमित बेटे, पहले रचना की चूत की पूजा करो, आखिर तुम्हारी बहन है"

"कैसे सर? " मैं पूछ बैठा.

"अरे मूरख, चूत पूजा कैसे करते हैं? उसे प्यार करके, उसे चाट के, उसके रस को उसके प्रसाद को ग्रहण करके. सर मुझे डांट कर बोले.

मैं जुट गया. रचना की चूत में मुंह डाल दिया. वह मेरे सिर को भींच कर तड़पने लगी "सर .... सर ... रहा नहीं जाता सर ... बहुत अच्छा लगता है सर" मैं लपालप रचना की बुर चाटने में जुटा था.



मैंने झट से रचना की बुर पर लंड रखा और पेलने लगा "अरे धीरे बेटे, हौले हौले, रचना ने कभी लंड लिया नहीं है ना, ऐसे धसड़ पसड़ ना कर" सर ने समझाया.
"पर सर , रोज ये और में तो पर में कहते कहते रुक गया ..." मैंने कहा तो सर हंसने लगे " और तेरा ये लंड कितना मोटा है, कुछ तो खयाल कर"

मैंने धीरे से लंड पेला और वो सट से आधा रचना की चूत में घुस गया. रचना थोड़ी कसमसाई. सर बोले "रचना , घबरा मत, समझ बड़ी मोमबत्ती है. बहुत मजा आयेगा तुझे देखना. चल , आगे चल पर जरा प्यार से"

मैंने फ़िर लंड पेला और वो पूरा रचना की बुर में समा गया. रचना जरा सी चिहुकी और मुझे कस के पकड़ लिया. पाल सर खुश होकर बोले "बहुत अच्छे बेटे. ये अच्छा हुआ, बहन ने कैसे प्यार से भाई का ले लिया. भाई का हो तो दर्द भी कम होता है. अब चोद धीरे धीरे. जगह बना मेरे मूसल के लिये. प्यार से चोदना, और जरा मस्ती से दस मिनिट तक चोद, जल्दी मत कर"
 
मैंने धीरे से लंड पेला और वो सट से आधा रचना की चूत में घुस गया. रचना थोड़ी कसमसाई. सर बोले "रचना , घबरा मत, समझ बड़ी मोमबत्ती है. बहुत मजा आयेगा तुझे देखना. चल , आगे चल पर जरा प्यार से"

मैंने फ़िर लंड पेला और वो पूरा रचना की बुर में समा गया. रचना जरा सी चिहुकी और मुझे कस के पकड़ लिया. पाल सर खुश होकर बोले "बहुत अच्छे बेटे. ये अच्छा हुआ, बहन ने कैसे प्यार से भाई का ले लिया. भाई का हो तो दर्द भी कम होता है. अब चोद धीरे धीरे. जगह बना मेरे मूसल के लिये. प्यार से चोदना, और जरा मस्ती से दस मिनिट तक चोद, जल्दी मत कर"

मैं चोदने लगा. पहले धीरे चोदा कि रचना को दर्द न हो. पर रचना की चूत ऐसी गीली थी कि आराम से लंड अंदर बाहर होने लगा. रचना कमर उचकाने लगी और बोली "भैया ... बहुत अच्छा लग रहा है रे ...... बहुत मजा आ रहा है"

सर ने कहा "चलो चोद अपनी बहन को. कब से इसका मौका देख रहा था ना तू? चल अब रचना को दिखा दे कि कितना प्यार करता है"

रचना को मैं कस के चोदने लगा. फ़चाफ़च फ़चाफ़च की आवाज आने लगी. रचना की बुर से पानी बह रहा था
सर मेरे पास आकर बैठ गये और मेरी कमर और चूतड़ों पर हाथ फ़िराने लगे "बस ऐसे ही , कस कर चोदो हचक हचक कर, तेरी रचना की चूत अब खुल गयी है, मस्ती से चोदो, झड़ना नहीं बेटे" कहकर उन्होंने मेरे मुंह को चूमना शुरू कर दिया. अपने हाथ से वे अब मेरे चूतड़ ऐसे दबा रहै थे जैसे चूतड़ न होकर किसी औरत के मम्मे हों. इधर उनकी जीभ मेरी जीभ से लगी और उधर मुझे ऐसा मजा आया कि मैंने दो चार धक्के कस कर लगाये और झड़ गया.

मेरी हिचकी सर के मुंह में निकली तो वे चुम्मा तोड़ कर बोले "अरे बदमाश, झड़ गया अभी से " और एक हल्का सा घूंसा मेरी पीठ पर लगा दिया.

सर ने अपने लंड को मस्ती से मुठ्ठी में पकड़ा और बोले "अभी करता हूं. रचना तो बहुत प्यारी लड़की है, इसे पूरा मजा देता हूं अभी, चल बाजू में हो और खबरदार, आज माफ़ कर दिया पर फ़िर ऐसे जल्दी में झड़ा तो मार खायेगा"

मेरा लंड निकालकर मैं बाजू में बैठ गया. रचना को चोद कर बहुत अच्छा लग रहा था.

उधर सर भी झुक कर रचना की बुर चाट रहै थे. रचना ने उनका सिर पकड़ लिया और कमर हिलाने लगी.

उन्होंने रचना की बुर पूरी चाटी और फ़िर उसकी टांगों के बीच बैठ गये. "चल रचना , टांगें फ़ैला. इस लड़की की चूत ऐसी चिकनी और गीली कर दी है कि अब ये आराम से मेरा ले लेगी"


सर ने रचना की चूत के पपोटे फ़ैलाये और सुपाड़ा रखकर अंदर पेल दिया. रचना की चूत इतनी गीली थी कि वो आराम से फ़च्च से अंदर चला गया. रचना एकदम से तड़पी. सर ने तुरंत अपने मुंह से उसका मुंह बंद कर दिया. सर ने और लंड पेला और आधा अंदर कर दिया. रचना हाथ पैर मारने लगी. सर ने उसके हाथ पकड़ लिये. सर ने मेरी ओर देख कर कहा " अपनीरचना के पैर पकड़ लो, इसे दर्द हो रहा है पर मैं पूरा अंदर डाल देता हूं, फ़िर झंझट ही खतम हो जायेगी"
 
सर का मूसल रचना की चूत को चौड़ा कर रहा था, रचना की बुर का छेद ऐसे फैला था जैसे फट जायेग, तने रबर बैंड सा लग रहा था. देख कर मुझे भी मजा आ गया. मैंने रचना के पैर पकड़े और सर ने कस के सटाक से अपनी पूरा लंड रचना की बुर में डाल दिया.रचना का बदन एकदम कड़ा हो गया और वो कांपने लगी, अब वो पुरी तरह से तड़पती हुई हाथ पैर फ़टकारने की कोशिश कर रही थी पर मैंने उन्हें कस के पकड़े रखा, हिलने तक नहीं दिया. उधर रचना की आंखों में दर्द से आंसू आ गये थे और वो बड़ी कातर आंखों से हमारी ओर देख रही थी.

सर मस्ती में आकर बोले "ओह ... ओह ... क्या कसी चूत है इस लौंडी की ... , मजा आ गया, बहुत दिन हो गये ऐसी चूत मिली है"

सर रचना के संभलने का इंतजार करने लगे. साथ ही झुक कर होंठों से रचना की आंखें चूमने लगे. मेरा लंड अब सिर उठाने लगा था. सर ने उसे पकड़ा और दबाने लगे , मजा आ रहा है दीदी की चुदाई देखकर?"

"हां सर, रचना की चूत कितनी खुल गयी है, ये फ़ट तो नहीं जायेगी सर?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"अरे नहीं, तेरी बहन जैसी खूबसूरत मतवाली लड़कियों की चूत ऐसे नहीं फ़टती, ये तो बनी हैं हरदम चुदवाने को. बस दो मिनिट बाद ये कैसे मचलने लगेगी, तू ही देखना" सर मुझे पास खींच कर मेरा चुम्मा लेते हुए बोले.

धीरे धीरे रचना का कपकपाता बदन शांत हुआ. सर ने एक उंगली से रचना का दाना रगड़ना शुरू कर दिया. दो मिनिट में रचना कमर हिलाने लगी. सर ने मुस्कराकर . मुझे तो पता था कि ये बहादुर बच्ची ऐसे घबराने वाली नहीं है. अब देखिये मैं इसे कैसा मस्त करता हूं"

सर ने रचना का मुंह छोड़ा "रचना , ठीक है ना तू? अब तो नहीं दुखता?"

रचना सिसक कर बोली "सर ... अभी भी बहुत दुखता है ... पर अच्छा भी लग रहा है ... आप ने जब .... डाला तब ऐसा लग रहा था कि मैं ... मर जाऊंगी"

"तेरी गलती नहीं है, मेरा हथियार है ही ऐसा मूसल जैसा, पर अब देख,में तुझे ऐसा मजा दूंगा कि तू स्वर्ग का सुख लेगी"सर ने कहा

सर ने अब धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. साथ ही उनकी उंगली रचना के दाने पर चल रही थी.
 
रचना सिसक कर बोली "सर ... अभी भी बहुत दुखता है ... पर अच्छा भी लग रहा है ... आप ने जब .... डाला तब ऐसा लग रहा था कि मैं ... मर जाऊंगी"

"तेरी गलती नहीं है, मेरा हथियार है ही ऐसा मूसल जैसा, पर अब देख,में तुझे ऐसा मजा दूंगा कि तू स्वर्ग का सुख लेगी"सर ने कहा

सर ने अब धीरे धीरे अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था. साथ ही उनकी उंगली रचना के दाने पर चल रही थी.

मैंने देखा कि सर का लंड अब आराम से अंदर बाहर हो रहा था. जब बाहर होता तो थोड़ा पानी निकलता. रचना हौले हौले सांसें ले रही थी और सर की आंखों में आंखें डाले हुए थी. "सर ... मजा आ रहा है सर .... कीजिये ना और ..."

"दर्द तो नहीं हो रहा है रचना ? चोदूं तुझे अब कायदे जैसे तेरी जैसी छोकरी को चोदना चाहिये?" सर ने रचना का चुम्मा लेकर पूछा. रचना ने बस पलक झपका दी. सर उसे अब हौले हौले चोदने लगे. रचना ने एक सिसकारी भरी और सर से लिपट गयी "हा ऽ य सर .... उई ऽ मां ऽ .... सर .... दर्द होता है सर पर बहुत अच्छा लग रहा है सर ... और ... और ...कीजिये ना .... प्लीज़"

"और क्या रचना ? ठीक से बोल, और क्या करूं?" सर ने मुस्कराकर पूछा. वे बड़े सधे अंदाज में चोद रहै थे. बस तीन चार इंच लंड अंदर बाहर करते, बिना एक पल भी रुके हुए.

रचना ने शरमा कर कहा "सर ... चोदिये ना प्लीज़"

"ये हुई ना बात! अब लेसन सीखी है कि कैसे बोला जाता है. अब देख तुझे कैसे चोदता हूं" कहकर सर ने रफ़्तार बढ़ा दी. पूरा लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मुझे लगा कि रचना को दर्द होगा पर वो अब मजे से चुदवा रही थी. उसकी जरा सी बुर में सर का इतना बड़ा लंड अंदर बाहर होता देख कर मैं आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर यह नजारा देख रहा था. मेरा लंड फ़िर से कसके खड़ा हो गया था.



. वे रचना को कस के चोद रहै थे. सात आठ धक्के लगाने के बाद रुक जाते, फ़िर एक मिनिट रुक कर हौले हौले चोदते और फ़िर घचाघच लंड पेलने लगते.रचना सिसक सिसक कर कह रही थी "सर ... बहुत मजा .... आ रहा है सर ... रहा नहीं जाता ....आह ... ओह ... प्लीज़ .... प्लीज़ ... और जोर से कीजिये ... चोदिये ना .. ... देखिये ना ... प्लीज़ "

मेने सर से कहा "सर, झड़ा दीजिये बेचारी को, ऐसे न तड़पाइये उसे"

सर ने धक्के लगाते हुए कहा "अरे जरा मजा करने दो, बेचारी ने इतना दर्द सहा है मेरा लंड लेने में, रचना , तू क्यों बिचकती है, मजा ले, चुदने का पूरा मजा नहीं लेगी क्या?" फ़िर पाल सर रचना को बाहों में भर के पूरे उसपर लेट गये

मुझे रोमांच हो आया.



" सर ने रचना के होंठ अपने मुंह में लिये और उसका मुंह चूसते हुए हचक हचक कर चोदने लगे.

अब कमरे में बस ’फ़चा फ़च’ ’फ़चा फ़च’ ’पॉक पॉक पुक पुक’ ऐसी चुदाई की आवाजें आ रही थीं. दीदी ने अपनी टांगें और हाथ सर के बदन के इर्द गिर्द भींच लिये थे और कमररचना उछाल उछाल कर उनका मुंह चूसते हुए चुदवा रही थी.

सर ने रचना को बहुत देर चोदा. वे दो बार झड़ीं. वे सर को चूमती जातीं और शाबासी देती जातीं "बहुत अच्छे मेरे सर , .....बहुत प्यारे है आप .... बहुत मस्त चोदते है .... अब जरा और जोर से .... लगा ना कस कस के .... आज खाना नहीं खाया क्या? .... हाय सर देख कैसे कचूमर निकाल रहै हैं मेरी चूत का...."

बात सच थी. सर ने रचना को ऐसा चोदा था कि वो बस अपने सर के मुंह में दबे मुंह से ’अं ऽ अं ऽ अं ऽ’ कर रही थी. शायद अब वो झड़ गयी थी इसलिये छूटने की कोशिश कर रही थी. पर सर उसे छोड नहीं रहै थे. जब सर ने अपना मुंह अलग किया तो रचना सिसक कर बोली "आह ऽ ... बस सर ... प्लीज़ सर ... अब छोड़िये ना ... कैसा .. तो ... भी होता .... है ... सर .... प्लीज़ सर .."
 
सर मुझसे बोले "तेरी रचना झड़ .... गयी है इसलिये अब ..... हालत खराब है उसकी .....पर तेरे सर नहीं मानेंगे .... अब तो मुझे खास मजा आ रहा हें ..... आखिर बुर ....ऐसे ... रोज रोज ... थोड़े मिलती है चोदने को ...."
सर ने एक मिनिट के लिये चुदाई रोक दी. "इत्ते में खलास हो गयी तू रचना ? "रचना लंबी लंबी सांसें लेती हुई संभलने की कोशिश करने लगी. हंसते हुए सर उसके गाल चूमते रहै, फ़िर अचानक फ़िर से रचना के होंठों को अपने मुंह में पकड़ा और शुरू हो गये. अब वे पूरी ताकत से चोद रहै थे. उनका पूरा लंड रचना की बुर में अंदर बाहर हो रहा था.
रचना छटपटाने लगी. बहुत छूटने की कोशिश की पर सर के आगे उसकी क्या चलने वाली थी. सर अब कस के धक्के लगा रहै थे, बिना किसी परवाह के कि उनके नीचे कोई चुदैल रंडी नहीं बल्कि मेरी नाजुक बहना थी.
सर अब ऐसे कसके रचना की धुनाई कर रहै थे कि देख देख कर मुझे ही डर लग रहा था कि रचना को कुछ हो न जाये. अचानक रचना ने आंखें बंद कर लीं और लस्त हो गयी, छटपटाना भी बंद हो गया.

"बेहोश हो गयी शायद, बेचारी की पहली बार है, बुर ने जवाब दे ही दिया आखिर बेचारी की, आखिर ऐसे सोंटे के आगे उसकी क्या चलती, इसने तो बड़ों बड़ों को खलास कर दिया है, ये बच्ची किस खेत की मूली है" सर ने बड़े गर्व से कहा.

सर हांफ़ते हुए बोले "अभी नहीं ... अब .. आयेगा मजा .... लगता है कि किसी .... रबड़ की .... गुड़िया को .... चोद रहा हूं ... ... ऐसे किसी बेहोश बदन को .... कचरने में .... क्या आनंद .... आता .... है ... इसे भी मजा .... आ रहा होगा ....बेहोशी में भी .... नंबर एक की .... चुदैल कन्या .... है ये ..."

दो मिनिट बाद सर भी कस के चिल्लाये और झड़ गये. फ़िर रचना के बदन पर पड़े पड़े जोर जोर की सांसें भरते हुए लस्त पड़कर आराम करने लगे.

पांच मिनिट बाद मैं और सर दोनों उठ बैठे. सर ने उठकर मेरा लंड चाटा और फ़िर रचना की बुर में मुंह डाल दिया. लपालप उनकी बुर से बहते वीर्य और पानी का भोग लगाने लगे. बीच में मेरी ओर मुड़कर बोले "बैठा क्यों है रे मूरख? भोग नहीं लगाना है? अरे इस प्रसाद से स्वादिष्ट और कुछ नहीं है इस दुनिया में. चल, घुस जा अपनी बहन की टांगों में"

. मैंने सर का झड़ा लंड मुंह में लिया और चूस डाला. रचना की बुर के पानी और उनके वीर्य का मिला जुला स्वाद था. फ़िर रचना की बुर अपनी जीभ से साफ़ करने में लग गया.अब पाल सर ने मेरी और देखा

मुझे बिस्तर पर सुला कर मेरा झड़ा लंड सर ने प्यार से मुंह में लिया और चूसने लगे. एक हाथ बढ़ाकर उन्होंने थोड़ा नारियल तेल अपनी उंगली पर लिया और मेरे गुदा पर चुपड़ा. फ़िर मेरा लंड चूसते हुए धीरे से अपनी उंगली मेरी गांड में आधी डाल दी.

"ओह ... ओह .." मेरे मुंह से निकला.

"क्या हुआ, दुखता है?" सर ने पूछा.

"हां सर ... कैसा तो भी होता है"

"इसका मतलब है कि दुखने के साथ मजा भी आता है, है ना? यही तो मैं सिखाना चाहता हूं अब तुझे. गांड का मजा लेना हो तो थोड़ा दर्द भी सहना सीख ले" कहकर सर ने पूरी उंगली मेरी गांड में उतार दी और हौले हौले घुमाने लगे. पहले दर्द हुआ पर फ़िर मजा आने लगा. लंड को भी अजीब सा जोश आ गया और वो खड़ा हो गया. सर उसे फ़िर से बड़े प्यार से चूमने और चूसने लगे "देखा? तू कुछ भी कहै या नखरे करे, तेरे लंड ने तो कह दिया कि उसे क्या लुत्फ़ आ रहा है"

पांच मिनिट सर मेरी गांड में उंगली करते रहै और मैं मस्त होकर आखिर उनके सिर को अपने पेट पर दबा कर उनका मुंह चोदने की कोशिश करने लगा.
 
पांच मिनिट सर मेरी गांड में उंगली करते रहै और मैं मस्त होकर आखिर उनके सिर को अपने पेट पर दबा कर उनका मुंह चोदने की कोशिश करने लगा.

सर मेरे बाजू में लेट गये, उनकी उंगली बराबर मेरी गांड में चल रही थी. मेरे बाल चूम कर बोले "अब बता बेटे, जब औरत को प्यार करना हो तो उसकी चूत में लंड डालते हैं या उसे चूसते हैं. है ना? अब ये बता कि अगर एक पुरुष को दूसरे पुरुष से प्यार करना हो तो क्या करते हैं?"

"सर ... लंड चूसकर प्यार करते हैं?" मैंने कहा.

"और अगर और कस कर प्यार करना हो तो? याने चोदने वाला प्यार?" सर ने मेरे कान को दांत से पकड़कर पूछा. मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था.

"सर, गांड में उंगली डालते हैं, जैसा मैंने किया था और आप कर रहै हैं"

"अरे वो आधा प्यार हुआ, करवाने वाले को मजा आता है. पर लंड में होती गुदगुदी को कैसे शांत करेंगे?"

मैं समझ गया. हिचकता हुआ बोला "सर ... गांड में .... लंड डाल कर सर?"

"बहुत अच्छे मेरी जान. तू समझदार है. अब देख, तू मुझे इतना प्यारा लगता है कि मैं तुझे चोदना चाहता हूं. तू भी मुझे चोदने को लंड मुठिया रहा है. अब अपने पास चूत तो है नहीं, पर ये जो गांड है वो चूत से ज्यादा सुख देती है. और चोदने वाले को भी जो आनद आता है वो .... बयान करना मुश्किल है बेटे. अब बोल, अगला लेसन क्या है? तेरे सर अपने प्यारे स्टूडेंट को कैसे प्यार करेंगे?"

"सर ... मेरी गांड में अपना लंड डाल कर .... ओह सर ..." मेरा लंड मस्ती में उछला क्योंकि सर ने अपनी उंगली सहसा मेरी गांड में गहराई तक उतार दी.

"सर दर्द होगा सर .... प्लीज़ सर " मैं मिन्नत करते हुए बोला. मेरी आंखों में देख कर सर मेरे मन की बात समझ गये "तुझे करवाना भी है ऐसा प्यार और डर भी लगता है, है ना?"

"हां सर, आपका बहुत बड़ा है" मैंने झिझकते हुए कहा.

"अरे उसकी फ़िकर मत कर, ये तेल किस लिये है, आधी शीशी डाल दूंगा अंदर, फ़िर देखना ऐसे जायेगा जैसे मख्खन में छुरी. और तुझे मालूम नहीं है, ये गांड लचीली होती है, आराम से ले लेती है. और देख, मैंने पहले एक बार अपना झड़ा लिया था, नहीं तो और सख्त और बड़ा होता. अभी तो बस प्यार से खड़ा है, है ना? और चाहै तो तू भी पहले मेरी मार सकता है."
 
मेरा मन ललचा गया. सर हंस कर बोले "मारना है मेरी? वैसे मैं तो इसलिये पहले तेरी मारने की कह रहा था कि तेरा लंड इतना मस्त खड़ा है, इस समय तुझे असली मजा आयेगा इस लेसन का. गांड को प्यार करना हो तो अपने साथी को मस्त करना जरूरी होता है, वैसे ही जैसे चूत चोदने के पहले चूत को मस्त करते हैं. लंड खड़ा है तेरा तो मरवाने में बड़ा मजा आयेगा तेरे को"

"हां सर." सर मुझे इतने प्यार से देख रहै थि कि मेरा मन डोलने लगा " सर ... आप ... डाल दीजिये सर अंदर, मैं संभाल लूंगा"

"अभी ले मेरे राजा. वैसे तुम्हें कायदे से कहना चाहिये कि सर, मार लीजिये मेरी गांड!"

"हां सर .... मेरी गांड मारिये सर .... मुझे .... मुझे चोदिये सर जैसे आपने दीदी को चोदा था."

सर मुस्कराये "अब हुई ना बात. चल पलट जा, पहले तेल डाल दूं अंदर. तुझे मालूम है ना कि कार के एंजिन में तेल से पिस्टन सटासट चलता है? बस वैसे ही तेरे सिलिंडर में मेरा पिस्टन ठीक से चले इसलिये तेल जरूरी है. अच्छा पलटने के पहले मेरे पिस्टन में तो तेल लगा"

मैंने हथेली में नारियल का तेल लिया और सर के लंड को चुपड़ने लगा. उनका खड़ा लंड मेरे हाथ में नाग जैसा मचल रहा था. तेल चुपड़ कर मैं पलट कर सो गया. डर भी लग रहा था. तेल लगाते समय मुझे अंदाजा हो गया था कि सर का लंड फ़िर से कितना बड़ा हो गया है. सर ने भले ही दिलासा देने को यह कहा था कि एक बार झड़कर उनका जरा नरम खड़ा रहैगा पर असल में वो लोहै की सलाख जैसा ही टनटना गया था.

सर ने तेल में उंगली डुबो के मेरे गुदा को चिकना किया और एक उंगली अंदर बाहर की. फ़िर एक हाथ से मेरे चूतड फ़ैलाये और कुप्पी उठाकर उसकी नली धीरे से मेरी गांड में अंदर डाल दी. मैं सर की ओर देखने लगा.

वे मुस्कराकर बोले "बेटे, अंदर तक तेल जाना जरूरी है. मैं तो भर देता हूं आधी शीशी अंदर जिससे तुझे कम से कम तकलीफ़ हो." वे शीशी से तेल कुप्पी के अंदर डालने लगे.

मुझे गांड में तेल उतरता हुआ महसूस हुआ. बड़ा अजीब सा पर मजेदार अनुभव था. सर ने मेरी कमर पकड़कर मेरे बदन को हिलाया "बड़ी टाइट गांड है रे तेरी, तेल धीरे धीरे अंदर जा रहा है"

मेरी गांड से कुप्पी निकालकर सर ने फ़िर एक उंगली डाली और घुमा घुमाकर गहरे तक अंदर बाहर करने लगे. मैंने दांतों तले होंठ दबा लिये कि सिसकारी न निकल जाये. फ़िर सर ने दो उंगलियां डाली. इतना दर्द हुआ कि मैं चिहुक पड़ा.
"अब पलट कर लेट जा, आराम से. वैसे तो बहुत से आसन हैं और आज तुझे सब आसनों की प्रैक्टिस कराऊंगा. पर पहली बार डालने को ये सबसे अच्छा है" मेरे पीछे बैठते हुए सर बोले.

सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक तकिया दिया और अपने घुटने मेरे बदन के दोनों ओर टेक कर बैठ गये. "अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल, तुझे भी आसानी होगी और मुझे भी. और एक बात है बेटे, गुदा ढीला छोड़ना नहीं तो तुझे ही दर्द होगा. समझ ले कि तू लड़की है और अपने सैंया के लिये चूत खोल रही है, ठीक है ना?"

मैंने अपने हाथ से अपने चूतड़ पकड़कर फ़ैलाये. सर ने मेरे गुदा पर लंड जमाया और पेलने लगे "ढीला छोड़ अनिल, जल्दी!"
 
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