hotaks444
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चाची मुंडेर पर पूरी तरह से झुकी हुयी थी.......उनकी गांड इस कदर उभर कर बाहर आ गयी थी की मेरा मन सावन के मौसम में बावला हो गया.
मैं आगे बड़ा और मैंने अपने हाथ चाची के उभरे नितम्बो पर रख दिया. चाची एक दम से चुप हो गयी......नीचे से कोमल भाभी चिल्लाई...."क्या हुआ नीलू चाची...."
चाची क्या बोलती......मैंने धीरे धीरे से चाची के नितम्बो को सहलाना शुरू कर दिया........चाची एक दम कड़क हो गयी और उन्होंने पीछे पलट कर मुझे देखा. मैंने भी बेशरम जैसे उनकी आँखों में ऑंखें डाल कर उनकी मख्खन गांड को दबाना जारी रखा.
कोमल भाभी फिर से चिल्लाई...." अरे क्या हुआ नीलू चाची...."
चाची ने मुझे घूरते हुए कोमल भाभी से कहा "अरे कुछ नहीं......वो एक दो कपडे निचोड़ना भूल गयी........"
मेरा बाबुराव लपलपा कर अंडरवियर से बाहर आ गया था......सावन की ठंडी ठंडी हवा उसको सहला रही थी.......और वो भड़वा मस्ती में ठुनकी पे ठुनकी मारे जा रहा था.
चाची ने कोमल भाभी से पूछा, "वो जैन साहब की बहु......क्या नाम है उसका........हाँ सुषमा.......सच में उसका अपने देवर से चक्कर है क्या ?"
मैंने चाची की साड़ी धीरे धीरे ऊपर करना शुरू कर दी. भरे दिन में चाची की गदरायी टांगो से साड़ी ऐसे उठ रही थी मानो किसी नाटक के स्टेज से पर्दा उठता है. इंच इंच करकर उनकी चिकनी टंगे नंगी होती जा रही थी. चाची के हाथ मुंडेर पर टिके थे और वो कोमल भाभी की बातें सुनने की कोशिश कर रही थी. चाची ने मेरा हाथ अपनी गांड पर से हटाने के लिए अपनी गांड मटकाई......मगर मैंने उनकी साड़ी ऊपर उठाना जारी रखा.
शाम को ६ बजे पता ढूंढता हुआ मैं सरदार प्रताप सिंह के घर पहुंचा. घर तो क्या था.....हवेली थी .....आगे जो लॉन बना था वो ही मेरे घर से बड़ा था. सरदार प्रताप सिंह, दारू और govt का बहुत बड़ा ठेकेदार था. येही समझो की सफ़ेद कपड़ो में डोन.
पुलिस हो या नेता.....सब उसकी जेब में रहते थे. इसीलिए तो नवजोत इतनी माँ चुदाता था.
मैंने बेल बजाई.......दरवाजा खुला और उसके साथ मेरा मुंह ही खुल गया ....
जिसने दरवाजा खोला था......हाईट करीब 5 फुट 8 इंच. दूध में मिले गुलाब के जैसा रंग. काला सलवार सूट बदन पर ऐसा कसा हुआ था की एक एक उभार चीख चीख के बुला रहा था. मस्त गदराया हुआ बदन था यार..........
आँखों में गहरा काजल था.......और बिलकुल गुलाबी होंट........और गले पर चिपके दुप्पट्टे के नीचे एक खाई...जी हाँ....खाई....
दो पहाड़ों के बीच की घाटी......उसके मम्मे इतने बड़े थे की उनको मम्मे नहीं थन कहना चाहिए था........
एक दुधारू भैंस के थन. पर अजीब बात यह थी की इतने बड़े मम्मे भी उस पर फब रहे थे क्योकि वो लम्बी भी थी और चौड़ी भी. डनलप का गद्दा थी साली.....सेक्सी आँखों से वो भी मुझे ऊपर से नीचे तक नाप रही थी और मैं तो उसको कभी से नाप चूका था. बल्कि अब तो मेरा सेकंड रिविजन चालू हो गया था.
उसकी शक्ल नवजोत और पिया से मिलती थी, शायद उनकी बड़ी बहन थी. मैं बोला
मैं : न न नमस्ते जी......म म म शील हूँ....व व
वो मेरी बात बीच में ही काट कर बोली, " हाँ हाँ शील बेटा......आओ आओ, पिया भी अभी आई हैं"
बेटा ??? अबे ये है कोन ? तभी अन्दर से पिया की आवाज़ आई.
पिया : कौन हैं मम्मा ?
मम्मा ? ये पटाखा पिया की माँ ? तभी मुझे समझ में आ गया की जब खेत इतना उपजाऊ है तो फसल तो हरी हरी ही आनी हैं.
उन दोनों ने मुझे ले जा कर सोफे पर बिठा दिया. पिया की माँ मेरे सामने बैठी थी और पिया उसके पीछे सोफे का सहारा लेकर खड़ी थी. दोनों की आँखों में वो चमक थी जिसे मैं न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने रोम रोम पर महसूस भी कर रहा था. पिया की माँ खनकती हुयी आवाज़ में बोली, "कहाँ रहते हो शील ? ", मैं जैसे नींद से जगा मैंने कहा, " गुलमोहर में, आंटी".
वो मुंह बनाती हुयी बोली, "आंटी नहीं, पम्मी नाम हैं मेरा, आंटी वांटी मत कहा करो, यु नो अजीब लगता है".
एक मैंने चाची को आंटी बोल दिया था तो पूरा शरीर नापने को मिल गया था. इसको तो आंटी - आंटी बोल कर चोद ही दूंगा.
वो इधर उधर की बातें करती रही और मैं उसको थनों और बैठने से फैली हुयी गांड की साइज़ नापने में लग गया. उनकी बातों से साफ़ था की सरदार प्रताप सिंह के रुतबे और डर की वजह से दोनों माँ बेटी का कोई सामाजिक जीवन नहीं था. सरदार जी को अपने काले कामो से फुर्सत नहीं थी और यहाँ पर इस दुधारू भैंस को कोई पूछने वाला नहीं था. काफी देर बाद पिया बोली, "ओफ्फो मम्मा, वो मुझे पढ़ाने आया है की आप की गोसिप सुनने, आप को भी गोसिप के अलावा कोई काम नहीं. चलो शील स्टडी करना है." मैंने कहा "ठीक हैं तुम बुक्स ले आओ".
"बुक्स ले आओ मतलब", पिया ने माथे पर सल लाके कहा, " मिस्टर, मेरे रूम में स्टडी टेबल हैं"
यह हसीना मुझे, अपने रूम में ले जा रही थी. और इधर उसकी माँ मुझे ऐसा देख रही थी जैसे मैं कोई दिल्ली दरबार में लटका चिकन हूँ. कसम से, मुझे ऐसा लगने लगा था की मेरी ग्रह दशा में कोई बहुत ही बड़ा बदलाव हुआ है. इतना सब कुछ इतने कम समय में हो रहा था की कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रूम में जाते ही पिया ने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मुझे देखकर बोली, "अरे यार, सब लोग इतना डिसटर्ब करते की पूछो मत.
इसी लिए डोर बंद कर दिया. अब कोई नहीं आएगा क्योकि अगर मेरे रूम का डोर बंद है तो फिर पापा भी पहले नोक करते है."
मैंने मन ही मन सोचा मेडम ये ज्ञान हमे क्यों दे रही हो. फिर मैंने थोडा सिरियस होके उसे पढने के लिया कहा. उसकी टेबल पर मैगज़ीन का अम्बार लगा हुआ था. वो उन्हें हटाने लगी मैंने उसकी स्टडी टेबल की चेयर खिंची और बैठ गया. बैठते ही मुझे लगा की चेयर पर कुछ रखा था, मैं उठा और मैं उस कपडे को उठा कर उसे देने लगा, "ये लो" और तभी मेरी नज़र उस कपडे पर पड़ी और मेरे कान गरम हो गए. वो एक डिज़ाइनर लेस वाली ब्रा थी, जिसका मटेरियल नेट का था. मतलब पूरा पारदर्शी.
उसने लपक के मेरे हाथो से ब्रा छीन ली और ड्रावर में रख ली. वो शर्म से हौले हौले मुस्कुरा रही थी और मुझे उस से भी ज्यादा शर्म आ रही थी.
थोड़ी ही देर में मुझे समझ आ गया की पिया को पढाई में कोई इंटरेस्ट नहीं हैं. मैं जैसे ही कुछ भी एक्सप्लेन करता और वो इधर उधर का टोपिक निकाल लेती. वो बस बातें करना चाहती थी. मुझे समझ आ रहा था की इस के सांड भाई की वजह से ये कभी भी लौन्डों से दोस्ती नहीं कर पाई हैं और अपने माँ बाप को पढाई के नाम पर चुतिया बना कर इस को सिर्फ गप्पे मारनी है.
सिर्फ गप्पे मारनी है या.......
कीड़ा......कुलबुलाने लगा था.
kramashah.............
मैं आगे बड़ा और मैंने अपने हाथ चाची के उभरे नितम्बो पर रख दिया. चाची एक दम से चुप हो गयी......नीचे से कोमल भाभी चिल्लाई...."क्या हुआ नीलू चाची...."
चाची क्या बोलती......मैंने धीरे धीरे से चाची के नितम्बो को सहलाना शुरू कर दिया........चाची एक दम कड़क हो गयी और उन्होंने पीछे पलट कर मुझे देखा. मैंने भी बेशरम जैसे उनकी आँखों में ऑंखें डाल कर उनकी मख्खन गांड को दबाना जारी रखा.
कोमल भाभी फिर से चिल्लाई...." अरे क्या हुआ नीलू चाची...."
चाची ने मुझे घूरते हुए कोमल भाभी से कहा "अरे कुछ नहीं......वो एक दो कपडे निचोड़ना भूल गयी........"
मेरा बाबुराव लपलपा कर अंडरवियर से बाहर आ गया था......सावन की ठंडी ठंडी हवा उसको सहला रही थी.......और वो भड़वा मस्ती में ठुनकी पे ठुनकी मारे जा रहा था.
चाची ने कोमल भाभी से पूछा, "वो जैन साहब की बहु......क्या नाम है उसका........हाँ सुषमा.......सच में उसका अपने देवर से चक्कर है क्या ?"
मैंने चाची की साड़ी धीरे धीरे ऊपर करना शुरू कर दी. भरे दिन में चाची की गदरायी टांगो से साड़ी ऐसे उठ रही थी मानो किसी नाटक के स्टेज से पर्दा उठता है. इंच इंच करकर उनकी चिकनी टंगे नंगी होती जा रही थी. चाची के हाथ मुंडेर पर टिके थे और वो कोमल भाभी की बातें सुनने की कोशिश कर रही थी. चाची ने मेरा हाथ अपनी गांड पर से हटाने के लिए अपनी गांड मटकाई......मगर मैंने उनकी साड़ी ऊपर उठाना जारी रखा.
शाम को ६ बजे पता ढूंढता हुआ मैं सरदार प्रताप सिंह के घर पहुंचा. घर तो क्या था.....हवेली थी .....आगे जो लॉन बना था वो ही मेरे घर से बड़ा था. सरदार प्रताप सिंह, दारू और govt का बहुत बड़ा ठेकेदार था. येही समझो की सफ़ेद कपड़ो में डोन.
पुलिस हो या नेता.....सब उसकी जेब में रहते थे. इसीलिए तो नवजोत इतनी माँ चुदाता था.
मैंने बेल बजाई.......दरवाजा खुला और उसके साथ मेरा मुंह ही खुल गया ....
जिसने दरवाजा खोला था......हाईट करीब 5 फुट 8 इंच. दूध में मिले गुलाब के जैसा रंग. काला सलवार सूट बदन पर ऐसा कसा हुआ था की एक एक उभार चीख चीख के बुला रहा था. मस्त गदराया हुआ बदन था यार..........
आँखों में गहरा काजल था.......और बिलकुल गुलाबी होंट........और गले पर चिपके दुप्पट्टे के नीचे एक खाई...जी हाँ....खाई....
दो पहाड़ों के बीच की घाटी......उसके मम्मे इतने बड़े थे की उनको मम्मे नहीं थन कहना चाहिए था........
एक दुधारू भैंस के थन. पर अजीब बात यह थी की इतने बड़े मम्मे भी उस पर फब रहे थे क्योकि वो लम्बी भी थी और चौड़ी भी. डनलप का गद्दा थी साली.....सेक्सी आँखों से वो भी मुझे ऊपर से नीचे तक नाप रही थी और मैं तो उसको कभी से नाप चूका था. बल्कि अब तो मेरा सेकंड रिविजन चालू हो गया था.
उसकी शक्ल नवजोत और पिया से मिलती थी, शायद उनकी बड़ी बहन थी. मैं बोला
मैं : न न नमस्ते जी......म म म शील हूँ....व व
वो मेरी बात बीच में ही काट कर बोली, " हाँ हाँ शील बेटा......आओ आओ, पिया भी अभी आई हैं"
बेटा ??? अबे ये है कोन ? तभी अन्दर से पिया की आवाज़ आई.
पिया : कौन हैं मम्मा ?
मम्मा ? ये पटाखा पिया की माँ ? तभी मुझे समझ में आ गया की जब खेत इतना उपजाऊ है तो फसल तो हरी हरी ही आनी हैं.
उन दोनों ने मुझे ले जा कर सोफे पर बिठा दिया. पिया की माँ मेरे सामने बैठी थी और पिया उसके पीछे सोफे का सहारा लेकर खड़ी थी. दोनों की आँखों में वो चमक थी जिसे मैं न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने रोम रोम पर महसूस भी कर रहा था. पिया की माँ खनकती हुयी आवाज़ में बोली, "कहाँ रहते हो शील ? ", मैं जैसे नींद से जगा मैंने कहा, " गुलमोहर में, आंटी".
वो मुंह बनाती हुयी बोली, "आंटी नहीं, पम्मी नाम हैं मेरा, आंटी वांटी मत कहा करो, यु नो अजीब लगता है".
एक मैंने चाची को आंटी बोल दिया था तो पूरा शरीर नापने को मिल गया था. इसको तो आंटी - आंटी बोल कर चोद ही दूंगा.
वो इधर उधर की बातें करती रही और मैं उसको थनों और बैठने से फैली हुयी गांड की साइज़ नापने में लग गया. उनकी बातों से साफ़ था की सरदार प्रताप सिंह के रुतबे और डर की वजह से दोनों माँ बेटी का कोई सामाजिक जीवन नहीं था. सरदार जी को अपने काले कामो से फुर्सत नहीं थी और यहाँ पर इस दुधारू भैंस को कोई पूछने वाला नहीं था. काफी देर बाद पिया बोली, "ओफ्फो मम्मा, वो मुझे पढ़ाने आया है की आप की गोसिप सुनने, आप को भी गोसिप के अलावा कोई काम नहीं. चलो शील स्टडी करना है." मैंने कहा "ठीक हैं तुम बुक्स ले आओ".
"बुक्स ले आओ मतलब", पिया ने माथे पर सल लाके कहा, " मिस्टर, मेरे रूम में स्टडी टेबल हैं"
यह हसीना मुझे, अपने रूम में ले जा रही थी. और इधर उसकी माँ मुझे ऐसा देख रही थी जैसे मैं कोई दिल्ली दरबार में लटका चिकन हूँ. कसम से, मुझे ऐसा लगने लगा था की मेरी ग्रह दशा में कोई बहुत ही बड़ा बदलाव हुआ है. इतना सब कुछ इतने कम समय में हो रहा था की कुछ समझ नहीं आ रहा था.
रूम में जाते ही पिया ने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मुझे देखकर बोली, "अरे यार, सब लोग इतना डिसटर्ब करते की पूछो मत.
इसी लिए डोर बंद कर दिया. अब कोई नहीं आएगा क्योकि अगर मेरे रूम का डोर बंद है तो फिर पापा भी पहले नोक करते है."
मैंने मन ही मन सोचा मेडम ये ज्ञान हमे क्यों दे रही हो. फिर मैंने थोडा सिरियस होके उसे पढने के लिया कहा. उसकी टेबल पर मैगज़ीन का अम्बार लगा हुआ था. वो उन्हें हटाने लगी मैंने उसकी स्टडी टेबल की चेयर खिंची और बैठ गया. बैठते ही मुझे लगा की चेयर पर कुछ रखा था, मैं उठा और मैं उस कपडे को उठा कर उसे देने लगा, "ये लो" और तभी मेरी नज़र उस कपडे पर पड़ी और मेरे कान गरम हो गए. वो एक डिज़ाइनर लेस वाली ब्रा थी, जिसका मटेरियल नेट का था. मतलब पूरा पारदर्शी.
उसने लपक के मेरे हाथो से ब्रा छीन ली और ड्रावर में रख ली. वो शर्म से हौले हौले मुस्कुरा रही थी और मुझे उस से भी ज्यादा शर्म आ रही थी.
थोड़ी ही देर में मुझे समझ आ गया की पिया को पढाई में कोई इंटरेस्ट नहीं हैं. मैं जैसे ही कुछ भी एक्सप्लेन करता और वो इधर उधर का टोपिक निकाल लेती. वो बस बातें करना चाहती थी. मुझे समझ आ रहा था की इस के सांड भाई की वजह से ये कभी भी लौन्डों से दोस्ती नहीं कर पाई हैं और अपने माँ बाप को पढाई के नाम पर चुतिया बना कर इस को सिर्फ गप्पे मारनी है.
सिर्फ गप्पे मारनी है या.......
कीड़ा......कुलबुलाने लगा था.
kramashah.............