Hindi Porn Kahani गीता चाची - Page 5 - SexBaba
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Hindi Porn Kahani गीता चाची

झड़ने के बाद हमने एक दूसरे के वीर्य का पान चाची के छेदों में से किया. मैंने उनकी चूत चूसी और चाचाजी ने गांड . फ़िर हमने चोदने के लिये छेद बदल लिये. इस बार मेरा लंड चाची की चूत में था और चाचाजी का लंड उसकी गांड में था. यह चुदाई आधी रात के बाद तक चलती रही और तभी खतम हुई जब आखिर चाची चुद चुद कर बेहोश हो गयी. मैं और चाचाजी झड़े नहीं थे और एक दूसरे के लंड के प्यासे थे. कस के खड़े लंड हमने खींच कर बाहर निकाले तो बेहोशी में चाची कराह दीं. वे तो अब निश्चल होकर लुढ़क गयीं.

"बेटे मेरी गांड मार दे प्लीज़." कहकर चाचाजी पट सो गये. उनपर चढ़ कर मैंने उनके चूतड़ों के बीच अपना लौड़ा उतार दिया और उन्हें भोगने लगा. मैंने चाचाजी की गांड आधे घंटे मारी और झड़ने के पहले ही लंड बाहर खींच लिया. फ़िर हमने सिक्सटी नाइन किया और एक दूसरे के शिश्न का रस पीकर ही हमारी वासना शांत हुई. हम भी अब थक चुके थे और सो गये.


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दो दिन बाद चाचाजी भी ब्रम्हचारी हो गये और दो दिन मेरी तरह आराम किया. हम अलग अलग सोते. लगता है। चाची ने भी मुट्ठ मारना तक छोड़ दिया. हमेशा उनकी आंखें वासना से गुलाबी रहतीं. मैंने और चाचाजी ने उनसे कहा कि उन्हें तड़पने की कोई जरूरत नहीं है, वे चाहे जितना हस्तमैथुन कर सकती हैं. पर उन्होंने मना कर दिया. बोलीं कि अपना रस व्यर्थ नहीं करना चाहतीं. मेरी और चाचाजी की सुहागरात खतम होने पर सुबह हमें अपनी चूत का कटोरी भर शहद पिलाना चाहती थीं.

आखिर वह शाम आयी जब चाची अपना मदभरा गुड्डे गुड़िया का खेल खेलने वाली थीं. शाम को उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया. कहा कि नहा कर आऊं. चाचाजी भी नहाधोकर फ्रेश होने को चले गये. चाची ने उनके लिये रेशम का कुरता पाजामा निकाल कर रखा था. "आखिर आज रात वे तेरे दूल्हे हैं, दूल्हे जैसे कपड़े पहनना जरूरी है."

जब मैं नहा कर चाचीके कमरे में पहुंचा तो धड़कते दिल से. उनकी यह बात याद थी कि वे मुझे दुल्हन जैसे सजाएंगी. पलंग पर पूरे कपड़े तैयार थे. देखकर मैं शरमा गया. अंदर ही अंदर एक मीठी वासना भी जगने लगी.

पलंग पर एक सफ़ेद ब्रेसियर, पैंटी, गुलाबी पेटीकोट, गुलाबी साड़ी और ब्लाउज़ रखे थे. पलंग के नीचे ही चाची के ऊँची ऐड़ी के सैंडल रखे थे. आइने के सामने मेकप का पूरा सामान था. गहने भी थे. और एक रेशमी काले बालों का विग था!

चाची ने मुझे नंगा किया. मेरे गोरे बदन को देखा और सहलाया और मुझे प्यार से चूमा. मुझे झुक कर खड़ा होने को कहा. पीछे से उन्होंने मेरे गुदा पर लिपस्टिक से दो होंठ बना दिये. "तेरे छेद को और मोहक बना रही हूं, देखते ही ये पागल हो जायेंगे." फ़िर लंड को हाथ में लेकर बोलीं. "इसका कुछ करना पड़ेगा." वह अभी से खड़ा होना शुरू हो गया था.
 
उसे ऊपर कर के मेरे पेट से सटाकर रेशम का पट्टा मेरी कमर के चारों ओर लपेट कर उससे उन्होंने बांध दिया. फ़िर ऊपर से पैंटी पहना दी. फ़िर ब्रेसियर उठायी और मुस्कराते हुए मेरे पास आयीं. मैंने देख कि ब्रेसियर के दोनों कपों में उन्होंने एक एक अर्धगोलाकार स्पंज की गेंद फंसा रखी थी. एक निकाल कर उन्होंने मुझे दिखायी भी. उसपर रबर की छोटी गोली भी निपल जैसी चिपका रखी थी.

"मैंने पिछले दो दिनों में बनाई यह नकली चूचियां. आखिर तेरे चाचाजी को लगना चाहिये कि असली स्तन हैं." फ़िर उन्होंने ब्रेसियर मुझे पहना दी और हुक पीछे मेरी पीठ पर लगा दिये. बड़ी कसी हुई छोटे साइज़ के ब्रा थी इसलिये इलास्टिक का स्टेप उन्हें कस कर खींचना पड़ा.

मैं थोड़ा कसमसया. ब्रेसियर के स्ट्रेप मेरे बदन में गड़ रहे थे. वे बोलीं. "अरे टाइट ब्रेसियर से स्तन उभरते हैं और बड़े सेक्सी लगते हैं. आइने में देख!" मैंने देखा तो चेहरा शर्म से लाल हो गया और एक अजीब से गुदगुदी हुई. वाकई में मेरे जवान गोरे बदन पर पैंटी और ब्रा बड़े फ़ब रहे थे. बड़े बड़े तन कर खड़े मम्मे नकली हैं ऐसा कोई कह नहीं सकता था. ब्रा के बारीक नाइलॉन मे से निपल का आकार भी फूल आया था.

फ़िर उन्होंने मुझे विग लगाया. शोल्डर लेंग्थ बालों का वह विग था जैसे आजकल लड़कियां रखती हैं. उन्हें लगाते ही मेरा रूप पलट गया. अब मैं सच में एक सुंदर कमसिन युवती जैसा लगने लगा था. मेरे रूप को देखकर मेरा ही लंड और खड़ा हो गया. मैंने मन ही मन सोचा कि मेरा ही यह हाल है तो चाचाजी तो आज मेरा क्या हाल करेंगे?

खैर फ़िर पेटीकोट, साड़ी मुझे पहनायी गयी. ऊँची ऐड़ी के सैंडल मैंने पहने और चलने की प्रेक्टिस की. ऊंची ऐड़ियों के कारण अपने आप मेरी कमर बल खाती थी. फ़िर मेरा मेकप किया गया. और लाल लिपस्टिक से होंठ रंगे गये.

आखिर में हाथों में कांच के चूड़ियां और गले, कान में गहने पहनाये गये. बालियां स्प्रिंग वाली थीं क्योंकि मेरे कानों में छेद नहीं थे.
 
मैंने अपने रूप को देखा तो खुद ही नहीं पहचान पाया. लगता था कि जवान कमसिन मादक शोख लड़की खड़ी है. चाची की भी आंखों में वासना उतर आयी थी. मुझे चूमते हुए और मेरे नकली स्तन दबाते हुए बोलीं. "हाय लल्ला, मेरा ही यह हाल है तो ये तो तुझ पर मर मिटेंगे आज, पर तेरा हाल भी बुरा करेंगे, तू तैयार है ना?"

मैंने सिर हिलाया. मुझे मालूम था कि आज मेरी गांड की क्या दुर्दशा होगी पर अब मैं सच में स्त्री रूप में एक फ़ीमेल की साइकलाजी में आ गया था. बस मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा होकर मेरे पेट से सटा मुझे मीठी अग्नि में जला रहा था.

मेरा हाल देखकर चाची बोलीं. "लल्ला, काफ़ी देर तक तो तुझे यह मीठा दर्द सहना ही पड़ेगा. तुझे पूरा भोगने के बाद देर रात फ़िर तुझे शायद अपनी वासना पूर्ति का मौका दें तेरे चाचाजी."
फ़िर वे मुझे खींच कर आंगन में ले गयीं. वहां चाचाजी को भी बुलाया. वे तो मुझे पहचन ही नहीं पाये. जब समझे कि यह तो उनका प्यारा भतीजा अनिल है, उनकी आज की दुल्हन तो मेरे देखते देखते ही उनके पाजामे में बड़ा तंबू बन गया.

चाची हंसते हुए बोलीं. "चलो, अब इसे सिंदूर लगाओ, मंगलसूत्र पहनाओ, फ़िर खाना खाकर अपने कमरे में ले जाओ और खूब सुहागरात मनाओ. आज तुमपर कोई बंधन नहीं है, जैसा चाहे भोग लेना अपनी दुल्हन को. हां अंदर मख्खन का डिब्बा रखा है, लंड डालने के पहले लगा लेना नहीं तो मार डालोगे मेरी नाजुक दुल्हनिया को"

चाचाजी ने अपने पत्नी को जोर से चूमकर उसका धन्यवाद किया. "तुमने तो मुझे अपना गुलाम बना लिया रानी. तुम नहीं देखोगी क्या यह सुहागरात? आ जाओ हमारे साथ ही."

चाची बोलीं. "देखेंगी मगर चुपचाप दूसरे कमरे में झरोखे से. तुम लोगों को पता भी नहीं चलेगा. तुम मेरी फ़िकर मत करो, मुट्ठ मारने के लिये केले गाजर मेरे पास बहुत हैं. सुबह तुम लोगों की ही खाने हैं. आज मन भर कर तुम लोगों का लाइव शो देखकर सड़का मारूगी. और कल से तो मेरे प्राणनाथ, तुमसे कैसी गुलामी करवाती हूँ, तुम ही देखना. इतने दिन अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्तव्य तुमने नहीं किया, कल से पल पल का हिसाब वसूल लूंगी."

चाचाजी ने मुझे सिंदूर लगाया और मंगलसूत्र पहनाया. खाने पर भी मुझे चाचाजी की गोद में बैठना पड़ा नई दुल्हन की तरह. अब इस खेल में मुझे भी मजा आ रहा था. मैं भी दुल्हन जैसी ही हरकतें कर रहा था जो काफ़ी नेचरल थीं क्योंकि मैं काफ़ी शरमा रहा था. एक दूसरे को निवाले दिये गये. चाची ने तो मुझे अपने मुंह में का चबाया हुआ निवाला चाचाजी को खिलाने को कहा. "अरे अपनी दुल्हन के मीठे मुंह में से खाओ."

खाने के बाद आधा घंटे गप्पें मारने के बाद चाची हमें चाचाजी के कमरे में ले गयीं और खिलखिलाते हुए हमें अंदर ढकेल कर बाहर से दरवाजा लगा दिया. दरवाजा लगाने के पहले मेरी ओर कुछ दया भरी निगाहों से देखते हुए उन्होंने चाचाजी के कान में कुछ कहा. मुझे इतना ही सुनाई दिया कि दुल्हन की प्यास बुझा देना. चाचाजी की आंखों में चाची की बात से एक अलग चमक आ गयी थी.
 
कमरे में फूलों से सजी सेज थी और पास के टेबल पर दो गिलास दूध और मख्खन का डिब्बा रखा था. चाचाजी ने मुझे झट से बाहों में दुल्हन जैसे उठा लिया और पलंग पर ले गये.

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मेरी यह बड़ी अलग सी और मादक सुहागरात शुरू हुई जिसमें मैं दुल्हन था और चाचाजी दूल्हा. पलंग पर बैठ कर चाचाजी ने मुझे बांहों में भर लिया और जोर जोर से चूमने लगे. मैं भी उनके चुंबन का प्रतिसाद आंखें बंद करके देने लगा. आखिर उन्होंने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा. "अनिल बेटे, अगर आज मैं तुझपर सचमुच जोर जबरदस्ती करता हुआ तुझे भोगूं तो तू नाराज तो नहीं होगा?" मैंने कहा, "नहीं चाचाजी, आप कुछ भी कर लें. पर जोर जबरदस्ती की क्या जरूरत है? मैं तो आपका हूं ही आज की रात?"


वे बोले. "असल में तू बड़ा सेक्सी लग रहा है. और बहुत दिनों से मेरी यह चाहत रही है कि किसी मादक हसीन जवान छोकरे को या छोकरी को खूब जोर से रफ़ सैडिस्टिक तरीके से भोगू. तुझे रेप कर डालें. जैसे पहले के दुष्ट पति किया करते थे. पहली रात में पत्नी की हालत खराब हो जाती थी. मैं वैसा करना चाहता हूं."


मैं भी अब समर्पण के मूड में था, किसी घबरायी नवेली दुल्हन की तरह. डर तो लग रहा था क्योंकि मुझे मालूम था कि मेरी क्या हालत होगी. पर लंड भी मस्त खड़ा होकर कह रहा था कि करवा ले अपनी दुर्गति, उसमें भी मजा है। जो तूने आज तक चखा नहीं है और फ़िर आखिर तेरे चाचाजी हैं, वे घर में अपनी सब इच्छाएं पूरी नहीं करेंगे तो कहां करेंगे? मैंने हां कर दी.
वे खुश हो गये. "ठीक है बेटे, अव से तुझे मैं अनू रानी कहूंगा, गंदी गंदी गालियां भी दूंगा, तू चुपचाप सहना और मुझे चाचाजी मत कहना, स्वामी कहना. और सुन, मार पीट भी कर सकता हूं तेरे साथ, सहते जाना सब कुछ."


मेरे गर्दन हिलाते ही वे मुझे पलंग पर पटक कर मुझ पर चढ़ बैठे. अगले दस मिनिट में मेरे बुरी तरह चुंबन लिये गये और मेरे बदन को मसला गया. वे चाहे जैसे मुझे चूम रहे थे, मेरे नितंबों और जांघों को मसल रहे थे और मेरे नकली स्तन दबा रहे थे. "क्या माल है मेरी जान तू, हाय क्या चूचियां हैं तेरी जानेमन" कहकर वे उन्हें कुचलने लगे. इतनी बेरहमी से वे मम्मे मसल रहे थे कि अगर वे सच के स्तन होते तो मैं जरूर रो देता. इसलिये मैने भी नाटक करते हुए कराह कर कहा. "धीरे दबाइये स्वामी, दुखता है."
 
सुनकर तैश में आकर वे और जोर से चूचियां मसलने लगे." आज तो इन्हें पिलपिला कर दूंगा, साली ऐसी खड़ी हैं। जैसे कभी किसी ने दवाई न हों." और फ़िर उन्होंने मेरे कपड़े उतारना शुरू कर दिये. साड़ी ब्लाउज़ और पेटीकोट खींच कर उतार फेंका. अब मैं अर्धनग्न था. उस अवस्था में सिर्फ ब्रा और पैंटी में लिपटा मैं बड़ा सेक्सी लग रहा हूँगा क्योंकि वे अब और गरमा गये और उठकर खुद नंगे हो गये. उनका लंड पाजामे से निकलते ही टन्न से लोहे के रॉड जैसा थरथारने लगा.

मैं अब थोड़ा डर गया. आज उनका लंड सच में बहुत बड़ा लग रहा था. आखिर दो दिन वे झड़े नहीं थे. "जा स्केल ले आ, नाप ले अनू रानी, जब तेरी गांड में ये उतरेगा और तू रोएगी चिल्लाएगी तो तुझे मालूम होना चाहिये कि कितने इंच का अंदर लिया तूने." मैं चुपचाप स्केल ले आया और नापने लगा. मेरे हाथ थरथराने लगे. "दस इंच है स्वामी!" मैंने कहा, "आज तो तेरी फ़ाड़ ही दूंगा मेरी दुल्हनिया, देखें कैसे बचती है तू मुझसे" कह कर वे मेरी पैंटी और ब्रा नोचने को आगे बढ़े पर फ़िर रुक गये.

"ऐसे ही अधनंगी मस्त लगती है तू रानी. ऐसे ही तेरी मारूगा, कैंची कहां है?." मैंने ढूंढ कर कैंची लाकर दी. उन्होंने पीछे से मेरी पैंटी काटना शुरू कर दी. जल्द ही पैंटी में एक बड़ा छेद था जिसमें से मेरे नितंब और गुदा का छेद खुल कर सामने आ गया थे. लाल लिपस्टिक से बने दो भगोष्ठ देख कर तो वे आपे से बाहर हो गये और लिपट कर उसे चूमने लगे. फ़िर मेरे गुदा में जीभ अंदर डालकर चूसने लगे. चूस कर वे मदहोश हुए जा रहे थे. बीच में ही मेरे नितंबों को भी काट खाते.


आखिर अपने आप को किसी तरह रोक कर उन्ह्मोने मुझे गोद में बिठा लिया. लंड मेरे नितंबों के बीच की लकीर में सटा उछल रहा था. मेरे चेहरे को अपनी छाती पर दबा कर बोले. "मेरे निपल चूस अनू रानी." उनके काले निपल सख्त होकर छोटे जामुनों से लग रहे थे. मैं उन्हें चूसने लगा. मुझे गाल पर जोर से चूंटी काटकर वे डांट कर बोले. "साली, धीरे क्या चूसती है, जोर से चूस हरामज़ादी." मैं पूरे जोर से निपल पर जीभ रगड़ता हुआ उसे चूसने लगा.

अब उनकी सहन शक्ति खतम हो गयी थी. टेबल पर से उन्होंने मख्खन का डिब्बा उठा कर मुझे दिया और मुझे गोद से उतार कर अपने सामने जमीन पर बिठा लिया. "चल रानी, अपने सैंया के लंड की पूजा कर पहले, चुम्मा ले, चूस और दस का ग्यारह इंच कर दे. फ़िर मख्खन लगा अच्छे से, जितना मख्खन लगायेगी उतना तेरे लिये अच्छा है यह समझ ले."

मैं हाथ में चाचाजी का लंड ले कर उनकी जांघों के बीच बैठ गया. घोड़े के लंड सा वह लंड देखकर मेरे मुंह में पानी भी आ रहा था और बहुत डर भी लग रहा था. मैंने सोचा अभी तो मजा ले ले, इसलिये उसे खुब चूमा और चाटा, पूरे डंडे पर और फ़िर सुपाड़े पर जीभ चलाई. चूसने की भी कोशिश की पर सिर्फ सुपाड़ा और तीन चार इंच डंडा ही मुंह में ले पाया. मेरे बाल खींच कर चाचाजी बोले "साली नौसिखिया चुदैल, लगता है पूरा लंड मुंह में लेना सिखाना पड़ेगा. चल अब छोड़, मख्खन लगा"

मैंने बड़े प्यारसे ढेर सा मख्खन उनके लंड पर लगाया. पांच मिनिट मालिश की. वह और सूज कर कुप्पा हो गया. आखिर चाचाजी ने मुझे उठाया और पलंग पर ओंधा पटक दिया. फ़िर उंगली पर मख्खन ले कर मेरे गुदा में चुपड़ने लगे. उंगली पर एक मख्खन का लौंदा लेकर अंदर तक डाली.

मुझे दर्द हुआ पर मैंने मुंह बंद रखा. जल्द ही उन्होंने दो उंगली डाल दीं और अंदर बाहर करते हुए गांड को अंदर से चिकना करने लगे. इतना दर्द हुआ कि मैं चुप न रह पाया और चिहुक पड़ा "साली दो उंगली में रोती है तो घूसे जैसा सुपाड़ा कैसे अंदर लेगी? अब पड़ी रह चुपचाप, गांड मरवाने को तैयार हो जा."

पलंग चरमराया और चाचाजी घुटने मेरे नितंबों के दोनों ओर टेककर बैठ गये. मेरे हाथ पकड़कर उन्होंने मेरे ही चूतड़ों पर रखे और सुपड़ा मेरे गुदा पर जमाते हुए बोले. "अपनी गांड खोल कर रख, मैं पेलूंगा तो आसानी होगी नहीं तो मर जायेगी दर्द से." मैंने पूरी शक्ति से अपने चूतड़ फैलाये और आंखें बंद करके सहमा हुआ अपनी कुंवारी गांड चुदने की प्रतीक्षा करने लगा. चाचीजी का सुपाड़ा मेरे गुदा में धंसने लगा. दर्द इतना हुआ कि सिसककर मैने अनचाहे में गांड सिकोड़ ली. तुरंत एक करारा तमाचा मेरे गाल पर पड़ा.

"मादरचोद, गांड खोल नहीं तो फ़ाड़ दूंगा, टट्टी करते समय कैसे खोलती है, वैसे खोल." वासना से हांफ़ते हुए चाचाजी ने कहा, मैंने सिसकते हुए कहा, "हां स्वामी" और किसी तरह गांड खोली. चाचाजी ने बेरहमी से लौड़ा पेला और पाक की आवाज के साथ वह गेंद सा सुपाड़ा मेरे गुदा में उतर गया. इतना दर्द हुआ कि जैसे मर जाऊंगा. "मर गई स्वामी!" मैं चीख कर बेहोश हो गया.

मुझे लगता है कि पांच दस मिनिट में बेहोश रहा. जब होश आया तो दर्द से गांड फ़टी जा रही थी. मैंने सोचा था कि मेरी बेहोशी में चाचाजी पूरा लंड अंदर डाल चुके होंगे और कम से कम उतना दर्द सहने से तो मैं बच जाऊंगा पर देखा कि वे वैसे ही सुपाड़ा फंसाये मेरे होश में आने का इंतजार कर रहे थे.
 
मुझे होश में आया जानकर प्यार से बोले. "हाय मजा आ गया मेरी जान, क्या मस्त कसी हुई जवान गांड है तेरी! ऐसी कभी नहीं मारी, आज तो जन्नत मिल गयी मुझे. चल, अब होश आ गया है तुझे तो फ़िर आगे डालता हूँ, तेरी बेहोशी में लंड घुसाता तो तू ही उलाहना देती कि गांड फ़टने का आनंद मैंने तुझे नहीं लेने दिया." और वे फ़िर लंड पेलने लगे.

इंच इंच करके लंड मेरे चूतड़ों के बीच धंसने लगा. मैं मारे दर्द के रोते बिलखते हुए छटपटाने लगा. लगता था कोई लोहे का राड अंदर डाल रहा है. मेरी सारी मस्ती हवा हो गयी थी. पर आश्चर्य की बात यह थी कि मेरा लंड अब भी खड़ा था. शायद उसे मजा आ रहा था. किसी तरह आधा लंड अंदर गया और फ़िर मेरी सहन शक्ति ने जवाब दे दिया. "छोड़ दीजिये स्वामी, मैं मर जाऊंगी, दया कीजिये, निकाल लीजिये बाहर, मैं चूस कर झड़ा देती हूं."


इस पर फ़िर एक तमाचा मुझे रसीद करके दो इंच लंड और उन्होंने अंदर पेल दिया और मैं फ़िर चीख उठा. अब उन्होंने अपने सशक्त हाथ से मेरा मुंह दबोच कर बंद कर दिया और कस के लंड अंदर उतारने लगे. मैं छटपटाने और गोंगियाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता था. मेरे आंसू अब मेरे गालों पर बह आये थे.

जब तीन इंच लंड बाहर बचा था तब चाचाजी ने आखिर कचकचा कर एक धक्का लगाया और लंड जड़ तक उतर गया. उनकी झांटें मैंने अपने तने दुखते गुदा के छल्ले पर महसूस कीं. मेरा शरीर ऐसा ऐंठने लगा जैसे मेरी जान जा रही हो और कसमसाकर मैं फ़िर बेहोश हो गया. इस बार शायद मैं आधा घंटा बेहोश रहा होऊंगा.

होश आया तो गांड में भयानक दर्द हो रहा था क्योंकि चाचाजी ने धीरे धीरे गांड मारना शुरू कर दी थी. दो तीन इंच लंड बाहर निकलते और फ़िर घुसेड़ देते. साथ में मेरे गालों को चूमते जा रहे थे और मेरे आंसू चाट रहे थे. "हाय, क्या माल है, क्या मुलायम गांड है, मैं तो मर जाऊ तुझ पर मेरी अनू रानी." मुझे होश में आया जानकर वे आगे बोले. "आ गयी होश में रानी, चल अब मारता हूं तेरी ठीक से नहीं तो कहेगी कि सुहागरात में साजन ने ठीक से चुदाई नहीं की."

उसके बाद मेरी यह दुर्दशा आधे घंटे और हुई. कस कर मेरी गांड मारी गयी. साथ में चाचाजी मेरे चेहरे को अपनी ओर घुमा कर चूमते जाते और कभी कभी मेरे होंठों और गालों को दांतों से काट खाते. मैं दर्द से ज्यादा चिल्लाता तो फ़िर मेरा मुंह अपने हाथ से बंद कर देते या दांतों में मेरे होंठ दबा कर चबाने और चूसने लगते. वे कस के मेरे नकली स्तन दबा रहा थे और निपल खींच रहे थे. ।
 
अगले आधे घंटे तक वे अपनी सशक्त जांघों में मेरी जांघे जकड़े हुए मेरी पीठ पर चढ़ कर पूरे जोर से पटक पटक कर मेरी गांड मारते रहे. अब उनका लंड करीब करीब पूरा मेरी गांड में अंदर बाहर हो रहा था. मख्खन से चिकनी गांड में लंड अंदर बाहर होने से पचाक पचाक की आवाज आ रही थी. मैं आधा बेहोश रोता बिलखता गांड मरवाता रहा. वे बीच में हांफ़ते हुए पूछते जाते. "तू चुद तो रही है ना ठीक से मेरी अनू रानी?"

अचानक उनकी गति दुगनी हो गयी. मेरी गर्दन पर दांत जमाकर काटते हुए वे ऐसे मेरी मारने लगे जैसे शेर हिरन के बच्चे का शिकार कर रहा हो. वे जब झड़े तो ऐसे चिल्लाये जैसे स्वर्ग का आनंद आया हो. उनका लंड मेरी गांड की गहरायी में गरमा गरम वीर्य उगलने लगा. इससे सिक कर मेरी थोड़ी यातना भी कम हुई. आखिर चाचाजी ठंडे होकर मेरी पीठ पर ही लस्त लुढ़क गये. उनका लंड मुरझा कर छोटा हो गया और मेरी दुखती गांड को कुछ राहत मिली.

वे जब लंड बाहर निकालने लगे तो मैंने रोते स्वर में याचना की. "रहने दीजिये स्वामी प्लीज़, अंदर ही रहने दीजिये." उन्होंने पूछा, "क्यों मेरी जान, लगता है पसंद आयी अपने गांड की ठुकाई, और मरवायेगी? चिंता न कर, आज रात भर मारूगा तेरी."

मैं थोड़ा हिचका और फ़िर बोला. "घुसा है तो घुसा ही रहने दीजिये ना. फ़िर डालेंगे तो फ़िर दर्द होगा, मैं मर जाऊंगी." हंसते हुए उन्होंने लंड मेरे गुदा से खींच लिया. "आधे से ज्यादा मजा तो लंड डालने में आता है रानी. लंड जाते समय जब तू छटपटाती है तो ऐसा मजा आता है कि क्या कहूं. फ़िर से रुला रुला कर डालूंगा और तेरी छटपटाहट का मजा लूंगा."

पलंग पर मेरे पास बैठकर उन्होंने एक सिगरेट सुलगा ली और कश लेने लगे. फ़िर मुझे उठाकर गोदी में बिठा लिया. "सिगरेट पी रानी, मजा आयेगा." मैं उन्हें नाराज करना नहीं चाहता था इसलिये हाथ बढ़ा दिया. "ऐसे नहीं, मुंह खोल अपना" वे एक बड़ा कश ले कर बोले.

मैंने मुंह खोला तो उसमें सिगरेट लगाने के बजाय उन्होंने अपने होंठ उसपर जमा दिये और फ़िर मेरी नाक उंगलियों में पकड़कर बंद कर दी. अब पूरा धुआं मेरे मुंह में छोड़ दिया. मैं खांस उठा. दम घुटने लगा. पर नाक बंद होने से सांस भी नहीं ले सकता था और न बाहर छोड़ सकता था. खांसता तो भी दबी आवाज में उनके मुंह में. मेरे आंसू बह निकले और खांसते खांसते मेरा बुरा हाल हो गया. मेरी खांसी से मेरा थूक उनके मुंह में उड़ रहा था जिसे वे बड़े प्यार से चूस रहे थे. साथ ही अपनी जीभ मेरे गले में डाल कर चाट रहे थे. ।


जब मैं अधमरा हो गया तब जाकर उन्होंने मुझे छोड़ा. मैं हांफ़ता हुआ दम लेने लगा. तभी उन्होंने फ़िर कश लिया और फ़िर मेरे मुंह पर अपना मुंह जमा दिया. पाच मिनिट में सिगरेट खतम होने तक मेरी हालत खराब हो गयी. आंखों से पानी बह निकला. मेरे गालों पर बहते आंसू वे बार बार चाट लेते. "आंसू पीने में भी मजा आता है मेरी जान, इसलिये तो आज तुझे खूब रुलाना चाहता हूं."

सिगरेट खतम होने पर वे उन्होंने दूध का गिलास उठाया और पूरा पी गये. मुझे भी प्यास लगी थी इसलिये मैं जरा उलाहने के निगाहों से उनकी ओर देखने लगा. मुझे लगा था कि दूध वे मुझे भी देंगे. मेरे मन की बात ताड़ कर वे बोले. "प्यास लगी है अनू रानी?" मैंने सिर हिलाया तो खड़े हो गये और मेरे सिर को अपनी कमर पर खींचते हुए बोले. "बस दो मिनिट में तेरी प्यास बुझाता हूं. पर चल पहले लंड चूस ले, जल्दी खड़ा कर, फ़िर तेरी मारना है."

इतनी बेरहम चुदाई के बाद भी मैं बहुत उत्तेजित था. बल्कि लगता है उसके कारण मेरा लंड और ज्यादा खड़ा हो ग्या था. पेट से बंधा होने से मैं उसे कुछ नहीं कर सकता था नहीं तो मन तो हो रहा था कि अभी सड़का लगा लें या चाचाजी पर चढ़ जाऊं और उनकी गांड मार लूं.

वे जानते थे कि जब तक मैं इस कामुक अवस्था में हूं, मैं कुछ भी सहन कर लूंगा. मुस्कराते हुए मेरे सिर को अपनी गांघों पर दबाते हुए बोले. "रानी, पेट पर हाथ मत फ़र, तुझे अब सुबह ही मुक्ति दूंगा, तब तक बस मेरे लंड की प्यास बुझा, एक दुल्हन की तरह अपनी पति की हवस तृप्त कर."

उनके लंड पर मख्खन के साथ साथ उनका वीर्य और मेरी गांड का रस लगा था. मैं मुंह में लंड लेकर चूसने लगा. मुरझाया लंड अब चार इंच का हो गया था इसलिये पूरा मुंह में लेने में भी कठिनाई नहीं हुई. चाचाजी धीरे से पलंग पर बैठ गये और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे बाजू में लेट कर मुझसे चुसवाने लगे. मेरे बाल प्यार से सहलाते हुए बोले. "तुझे मजा तो आया ना मेरी जान? तू चुदी या नहीं ठीक से? तेरी चूत खुली या नहीं? या मन में गाली दे रही है अपने सैंया को कि सुहागरात में साजन ने ठीक से चोदा भी नहीं."

मैं क्या कहता, पड़ा पड़ा लंड चूसता रहा. सच तो यह था कि वदन और गुदा में होती यातना के बावजूद मेरा लंड कस कर खड़ा था. उसमें बड़ी मादक मीठी अनुभूति हो रही थी. चाचाजी के प्रति मेरे मन में प्यार और वासना उमड़ रहे थे.

जब लंड का सब रस मैंने चाट लिया तो उसे मुंह से निकालने लगा तो उन्होंने कस कर मेरा मुंह पेट पर दबा लिया और बोले. "अभी नहीं रानी, और चूस, काफ़ी माल लगा होगा. और जल्द खड़ा कर, अब डालूंगा तो रात भर गांड मारूंगा तेरी. तब तक मैं तुझे गरमागरम शरबत पिलाता हूं."

मेरी समझ में कुछ आने के पहले ही अचानक गरम तपती खारी तेज धार मेरे गले में उतरने लगी. चाचाजी मेरे मुंह में मूत रहे थे. मैं सकपकाकर उनका लंड मुंह से निकालने की कोशिश करने लगा. पर वे तैयार थे. मुझे पलंग पर पटककर मेरे सिर को अपने पेट के नीचे दबाकर अपना पूरा वजन मुझपर देकर वे ओंधे सो गये.
 
मुझे पलंग पर पटककर मेरे सिर को अपने पेट के नीचे दबाकर अपना पूरा वजन मुझपर देकर वे ओंधे सो गये.
और जोर से मूतते हुए बोले "साली नखरे दिखाती है! तुझे तो खुश होना चाहिये कि अपने सैया का मूत पी रही है।"

कछ भी करने की गुंजाइश नहीं थी. हार मानकर मैं चपचाप उनका मूत निगलने लगा. पहले थोडी उबकाई आई पर फ़िर मुझे चाची के मुत की याद आई. यह भी मन में आया कि क्या फ़रक पड़ता है. जब मैं चाचीजी का मूत्रपान कर सकता हूं तो चाचाजी का क्यों नहीं. उनके मूत में वीर्य की भी भीनी भीनी खुशबू थी. मेरा लंड और तन्ना गया और मैं गटागट उनका मूत चाव से पीने लगा.

चाचाजी ने जब देखा कि मैं मन लगाकर खुद ही पी रहा हूं और जोर जबरदस्ती की जरूरत नहीं है तो वे फ़िर अपनी करवट लेट गये. मेरे सिर पर का दबाव भी उन्होंने कम कर दिया. पर अब मैं ऐसा तैश में था कि उनके कूल्हे बांहों में भर लिये और अपना सिर उनकी झांटों में दबा दिया. उनके चूतड़ सहलाता हुआ और उनके गुदा पर उंगली चलाता हुआ मैं उनके इस अनूठे उपहार को उनका प्रसाद समझ कर निगलता रहा.



चाचाजी ने पूरा गिलास भर मूत मुझे पिलाया. जब आखिर वे रुके तो मैं मचल मचल कर और शरबत मांगता हुआ लंड चूसता ही रहा. वे प्यार से बोले "अच्छा लगा जानेमन? फ़िकर मत कर, अब तो बार बार पिलाऊंगा. तेरी चाची ने भी कहा था कि दुल्हन को प्यासा मत रखना, अपना मूत पिला देना. वह तुझे नहीं पिला पाई पिछले दो दिन, उसकी कमी मैंने पूरी कर दी."
धीरे धीरे उनका लंड उठने लगा और मोटा भी होने लगा. मुझे भी मजा आ रहा था इसलिये मैं मन लगाकर चूस रहा था. आखिर लंड जब रेंगता हुआ मेरे गले में घुसने लगा तब मैं थोड़ा घबराया. मैं जानता था कि पूरा खड़ा दस इंची लंड निगलना मेरे लिये मुमकिन नहीं है इसलिये उसे मुंह से निकालने की कोशिश करने लगा. चाचाजी ने मेरी मंशा जानकर तुरंत मुझे पलंग पर पटक दिया और मेरे ऊपर लेट गये.

मेरा मुंह अब उनके पेट के नीचे दबा था और उनकी घनी झांटों ने मेरा चेहरा पूरी तरह से ढक लिया था. अपने लंड को मेरे मुंह में पेलते हुए चाचाजी बोले "साली चुदैल रंडी, पूरा लंड मुंह में नहीं लिया ना कभी? इतना भी नहीं सीखी आज तक! अब देखता हूँ कैसे नहीं निगलती मेरा दस इंच का लंड, तेरे पेट में न उतार दूं तो तेरा पति नहीं में."

लंड अब मेरे गले को चीरता हुआ मेरे हलक में उतर गया. सुपाड़ा मेरे गले में जाकर पिस्टन की तरह फंस गया. मेरी सांस रुक गयी और मैं तड़पने लगा. मेरे दम घुटने की परवाह न करते हुए अब चाचाजी मेरे मुंह को ही चोदने लगे. लंड दो तीन इंच अंदर बाहर करते हुए मेरे गले को ऐसे चोद रहे थे जैसे गला नहीं, चूत हो.

पांच मिनिट उन्होंने मेरे गले को खूब चोदा. मेरी जरा भी परवाह नहीं की. मेरे मुंह में लार भर आयी थी और उससे चिकना होकर उनका लौड़ा बहुत आसानी से मेरे मुंह में अंदर बाहर हो रहा था. उनके उस मतवाले नसों से भरे कड़े शिश्न को चूसने में भी बहुत आनंद आ रहा था पर मेरा गला दुख रहा था और सांस नहीं ली जा रही थी.

आखिर जब मैं बुरी तरह छटपटाने लगा तब उन्होंने लंड बाहर निकाला. "घबरा मत, आज छोड़ देता हूं पर अगली बार पूरा चोदूंगा और गले में ही झडूंगा. भले तू मर जाये मेरी बला से!" मैं खांसता हुआ अपने गले को सहलाता हुआ सिसक रहा था तभी उन्होंने मुझे बांहों में उठा लिया और चूमते हुए मेरे मुंह का रस पीते हुए मुझे दीवाल के पास ले जाकर उतार दिया. मुझे दीवार से मुंह के बल सटा कर खड़ा करके वे मेरे पीछे खड़े हुए और लंड को मेरे गुदा पर जमाकर पेलने लगे. "अब खड़े खड़े मारूगा रानी, बहुत मजा आता है."

इस बार लंड थोड़ी और आसानी से अंदर गया क्योंकि एक बार गांड चुद चुकी थी. लंड भी मेरे थूक से गीला था. पर दर्द अब भी बहुत हुआ. मेरे दर्द को बढ़ाने के लिये चाचाजी बार बार लंड थोड़ा अंदर डालते और फ़िर निकाल लेते. सुपाड़ा मेरे गुदा के छल्ले में फंसाकर अंदर बाहर करते.
 
इस बार लंड थोड़ी और आसानी से अंदर गया क्योंकि एक बार गांड चुद चुकी थी. लंड भी मेरे थूक से गीला था. पर दर्द अब भी बहुत हुआ. मेरे दर्द को बढ़ाने के लिये चाचाजी बार बार लंड थोड़ा अंदर डालते और फ़िर निकाल लेते. सुपाड़ा मेरे गुदा के छल्ले में फंसाकर अंदर बाहर करते.

कुछ देर मुझे इसी तरह तड़पाने के बाद आखिर एक धक्के में उन्होंने पूरा लंड जड़ तक मेरी गांड में गाड़ दिया. मैं सिसकने लगा क्योंकि गांड एक बार चुद कर संवेदनशील हो गयी थी और दर्द से फ़टी जा रही थी. कुछ देर मेरे रोने का मजा लेने के बाद वे खड़े खड़े मेरी गांड मारने लगे. उनके हर धक्के से मेरा शरीर दीवाल पर टकराता और मेरी सिसकी निकल जाती.

बीच में एक दो बार चाचाजीने मेरी ब्रा के कप कुचले और फ़िर हुक खोल कर ब्रा निकाल कर फेक दी. मुझे उस कसी ब्रा से छूटकर कुछ राहत मिली. पर जब वे मेरे निपल उंगलियों में लेकर मसलने और खींचने लगे तब मुझे समझ में आया कि ब्रा उन्होंने क्यों निकाली थी. मेरी वेदना पर खुश होकर और जोर से निपल कुचलते हुए वे बोले. "अब तो लड़कियों जैसे कर दूंगा तेरे निपल, दो महने में ही मूंगफ़ली से लंबे हो जायेंगे. फ़िर मजा आयेगा चूसने में."


दस मिनिट खड़े खड़े गांड मारने के बाद उन्होंने मुझे पकड़ा और धकेल कर कमरे के बीच ले गये. उन पांच छह कदमों में ही मेरी हालत खराब हो गयी क्योंकि जब मैं अपनी हाई हील की सैंडलों में चलता तो चूतड़ों के मटकने से लंड अंदर रगड़कर बुरी तरह से चुभता. उन्हें इसमें इतना मजा आया कि एक दो बार ऐसे ही मुझे धकेलते हुए पूरे कमरे का चक्कर उन्होंने लगाया. फ़िर फ़र्श पर पटक दिया और मुझ पर चढ़ कर मुझे हचक हचक कर चोदने लगे.


उनका पूरा वजन अब मेरे शरीर पर था. मेरे नीचे कड़ा फ़र्श था और मेरा शरीर उस पर दबने से मुझे दर्द हो रहा था. उन्हें तो मेरा शरीर गद्दी का काम दे रहा था. अब वे मुझे बांहों में भरके उंगलियों से मेरे निपल भी और जोर से मसल रहे थे. मैं जैसे जैसे दर्द से सिसकता जाता, वे और मस्त होते जाते. "अब आया मजा रानी, फ़र्श पर गांड मारने का मजा कुछ और ही है. तेरे जैसी गद्दी मिल जाये तो क्या कहने" कहकर वे कचाकच पूरे जोर से मेरे गुदा को चोदने लगे.

आखिर झड़ कर वे लस्त होकर मेरे शरीर पर लेटे लेटे मजा लेने लगे. मैं करीब करीब बेहोश हो गया था. कुछ देर बाद वे बोले. "गांड दुख रही है न मेरी जान? सेक देता हूं, ये ले गरम पानी, वह भी नमक मिला हुआ." और मेरी गांड में तपता खारा पानी भरने लगा. एक क्षण तो मैं समझा ही नहीं कि क्या बला है पर फ़िर पता चला कि वे मेरी गांड में मूत रहे हैं.
 
जलन से मेरा बुरा हाल था. नुची खसोटी गांड की म्यान उस मूत से ऐसे जलने लगी जैसे आग लगी हो. मैं रोया और तड़पने लगा पर वे मजा लेते रहे. "देख कितना ख्याल है अपनी रानी का मुझे." मूतना खतम होने पर उन्होंने लंड बाहर निकाला पर मुझे सख्त हिदायत दी कि एक बूंद भी बाहर न निकले. "गांड सिकोड़ के पड़ी रह जब तक मैं न कहूं, नहीं तो पीट पीट कर कचूमर निकाल दूंगा तेरा."

आधा घंटा मैं वह मूत गांड में लिये रहा. किसी तरह गुदा का छल्ला सिकोड़े रहा. उन्होंने मुझे और तकलीफ़ देने को कमरे में इधर उधर चलने को कहा जिससे मूत अंदर छलक कर और पूरे तरह मेरी गांड जलाये. आखिर आधे घंटे बाद मुझे बाथरूम जाकर गांड खाली करने को और धोने की इजाजत उन्होंने दी.
मैं जब वापस आया तो इतना थका हारा था कि लड़खड़ा कर वहीं जमीन पर गिर पड़ा. "अब हुई तेरी चुदाई पूरी. चल सो जा. वैसे सुबह एक बार और मारूंगा." कहकर मुझे उठाकर वे बिस्तर पर ले गये और मुझे बाहों में लेकर चूमते हुए मेरे ऊपर लेट गये. थका कुचला मैं कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला.

सुबह गांड में अचानक हुए दर्द से जब मैं उठा तो देखा कि चाचाजी मुझ पर चढ़े गांड मार रहे थे. तीन चार घंटों की नींद ने उन्हें फ़िर ताजा कर दिया था. मुझे जगा देखकर प्यार से मुझे चूमकर बोले. "सारी मेरी रानी, आंख लग गयी इसलिये तीन चार घंटे तेरी नहीं मार सका. जब कि मैंने वादा किया था कि रात भर मारूगा." आधे घंटे मेरी भरपूर चुदाई करके ही वे झड़े. मेरी गांड तो चुद चुद कर ऐसी कसमसा रही थी कि मुझे पक्का हो गया था कि फ़ट गयी होगी और सिलवाने के लिये डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा. मैं पड़ा पड़ा सिसकता हुआ मरवाता रहा.

पर जब चाची कुछ देर बाद दरवाजा खोल कर अंदर आईं तो उन्होंने मेरा ढाढस बंधाया. "अरे बिलकुल ठीक है, फ़टी नहीं है, बस खुल गई है. बहुत सुंदर दिख रही है, जैसे किसी लड़की की चूत. देख दो पपौटे भी बन गये हैं बिलकुल भगोष्ठों की तरह."

मेरे शरीर और गांड का मुआयना करके उन्होंने अपने पति को चुम कर उन्हें मुबारकबाद दी. "बहुत मस्त मारी है। तुमने दुल्हन की. उसके शरीर को भी खूब मसला है. बिलकुल जैसा मैं चाहती थी. और इसकी गांड में मूते यह अच्छा किया. जलन तो हुई पर नमक के पानी से सिक कर ठीक रहेगी. आज इसे भी पता चल गया होगा कि सुहागरात में कच्ची कलियों की क्या हालत होती है."

उन दोनों का ध्यान अब मेरे लंड पर गया. अब भी वह तन कर खड़ा था और उसका उभार मेरी पैंटी में से साफ़ दिख रहा था. चाचीने पैंटी खींच कर उतारी और फ़िर पट्टी खोल दी. रात भर बंधा लंड उछल कर थरथराने लगा. सूज कर लाल लाल हो गया था और खड़ा तो ऐसे था कि जैसे लोहे का राॉड हो. उसे देखकर चाचीने उसपर हाथ फेरते हुए कहा. "फ़ालतू रो रहा है तू अनिल, तेरा लंड तो सिर तान कर कह रहा है कि उसे बड़ा मजा आया."
 
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