Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी - Page 8 - SexBaba
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Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी

चाची बोली, " अरे इनसेक्सशन........."

अब मैं समझा......मैंने कहा, "अरे चाची वो इनफेक्शन होता है ना की इनसेक्सशन...........इन"सेक्स"शन का मतलब तो कुछ और ही हो गया ......."

चाची अपनी ऑंखें गोल गोल करके बोली, " हैन........ इनसेक्सशन का क्या मतलब है.......?"

मैंने कुलबुलाते हुए कीड़े को कंट्रोल किया और कहा, " च च च चाची इसका मतलब है..........सेक्स करना........."

चाची गंवार थी पागल नहीं.........उन्होंने हाय बोलकर अपने मुंह पर हाथ रख लिया और खी खी हंसने लगी.........

मैंने भी चूतिये जैसे हंसने लगा मगर मेरी नज़रे अब भी उनकी साड़ी के बीच झांकी उनकी मुनिया पर थी..........चाची ने मेरी नज़रो का पीछा किया और जैसे से निचे देखा उई माँ बोल कर साड़ी से अपनी मुनिया को ढक लीया......

पर्दा गिर चूका था. 

किस्मत तो मेरी गधे के लंड से ही लिखी थी मगर उस मादरचोद गधे को जरुर शीघ्रपतन की बीमारी थी........लाइफ में जैसे ही मज़ा आने लगता माँ चुद जाती.

अच्छी खासी लौंडी पटी तो माँ चूदी...........

बस में पास में आकर मैडम बैठी तो माँ चूदी.......

अब चाची की मस्त चिकनी मुनिया दिखी तो फिर से .........माँ चूदी.

मैंने मन ही मन सोचा की बॉस.....अब किस्मत पर भरोसा नहीं......कुछ कोशिश खुद करनी पड़ेगी.

मैंने जोर से आह भरी. चाची घबरा कर बोली, "क्या हुआ लल्ला......? जोर से दुःख रहा है क्या.....हाय राम.....कहीं हड्डी तो नहीं टूट गयी......."

मैंने आह भरते भाते पूछा, "च च चाची.......माँ कहाँ है........"

चाची बोली, "राम.....भाभी जी तो दोपहर से ही मंदिर गए है...........शाम को ही आये शायद......कोई माता जी आई है दिल्ली से.........सत्संग है....."

मैंने फिर हाय कर दी.......चाची बोली, "अरे राम......कहाँ दुःख रहा है बताता क्यों नहीं..........."

मैंने ना में सर हिला दिया.........और उठ कर अपने रूम में जाने के कोशिश करने लगा......अब की बार तो भेन्चोद सच मुच गांड से लेकर पैर तक ऐसा दर्द हुआ की मैं लड़खड़ा गया. चाची ने झट उठ कर मुझे सहारा दिया.......मैंने भी बड़े आराम से उनके गले में हाथ डाल दिया. चाची धीरे धीरे से मुझे मेरे रूम में ले जाने लगी. मैं पूरी तरह अपने वज़न चाची पर डाल कर ही चल रहा था.......मेरा हाथ तो उनके कंधे पर था ही.....मैंने थोडा सा उसको निचे कर के उनके मम्मे के थोडा सा ऊपर टिका दिया. 

चाची धीरे से मुझे चला कर रूम में ले जा रही थी और मैं हर कदम के साथ अपने हाथ को निचे लेकर आ रहा था........कुछ ही कदम में मेरा हाथ जन्नत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था. मेरा हाथ उनके मम्मे पर लैंड कर चूका था. अगले कदम पर मैं लड़खड़ा गया और मैंने सहारे के लिए चाची पर झुकते हुए उनके मम्मे को दबोच लिया. चाची एक दम चिंहुक गयी और बोली, "हाय राम.......हाथ थोडा ऊपर कंधे पर रख ना......."

मैंने अनसुना करके चलते चलते फिर उनके मम्मो को धीरे से मसल डाला.......एक दम तने हुए गुब्बारे थे........भेन्चोद.....मेरा बल्लू चाचा पूरा चुतिया है.......
चाची जैसे मेरी बीवी होती तो दबा दबा कर अभी तक रुई के गोले जैसे नरम कर देता......मगर उस गंडमरे को तो दुकान पर गांड मराने से ही फुर्सत नहीं थी.
भोसड़ी का.....शादी के इतने साल बाद एक बच्चा पैदा नहीं कर पाया. 

चाची ने अपने कंधे को ऊँचा करके मेरा हाथ अपने मम्मे पर से हटाने की कोशिश की.......मगर मैं तो पूरा फार्म में था........जैसे चुम्बक लोहे कर चिपक जाता है....वैसे ही मेरा हाथ उनके मम्मे पर चिपक गया था......उन्होंने फिर से हटाने की कोशिश की तो मैंने उनके निप्पल जो इतनी सी देर में कड़क हो गए थे......को अणि हथेली से धीरे से रगड़ दिया......चाची के मुंह से तुरंत एक सिसकारी निकल गयी

मैंने भी अनजान बनकर पूछा, "क्या हुआ चाची......."

चाची बोली, " हैन.......कुछ नहीं......व.,....व.....वो.......पैर में बिछिया चुभ गयी...."

हाय रे.......बिछिया......

अब तो मेरा पूरा मुड सेट था......बाबुराव घंटाघर के घंटे जैसा टनटना रहा था.....घर में कोई नहीं था.......आज तो चाची की कह के लूँगा.

अफ़सोस की सफ़र छोटा सा था......रूम में आने के बाद चाची ने मुझे बेड पर बिठा दिया.....हालाँकि मैंने बैठते बैठते भी एक बार चाची के मम्मे को अच्छे से मसल लिया मगर अब मुझे मज़बूरी में बेड पर बैठना पड़ा. 

चाची मुझे बेड पर बिठा कर बोली, "ला.....बता कहाँ दर्द है......."

मैंने ना में सर हिलाया और फिर जोर से हाय हाय करने लगा.

चाची बोली, " राम राम.....दर्द से मारा जा रहा है......मगर बता नहीं रहा........बताता है की नहीं......बुलाऊ डाक्टर साहब को......."
 
अब मैं कोई दूध पीता बच्चा तो था नहीं की " बुलाऊ डाक्टर साहब को " सुनके दर जाता मगर हाँ मेरी इंजेक्शन से बहुत गांड फटती थी...........मैंने सोचा अगर चाची ने डॉक्टर को बुला लिया तो भेन्चोद सीन बिगड़ जायेगा.

मैंने कहा, " न न नहीं.....च...च....चाची.......वो.......मेरे घुटने पर और जांघ पर रगड़ लगी है ना....."

चाची बोली, "अरे तो मरे.......वोही तो कह रही हूँ.........घाव साफ़ करले......."


मैंने कहा, " चाची......मुझसे बैठते तो बन नहीं रहा......साफ़ क्या करूँगा........आप जाओ मैं लेट जाता हूँ........"

चाची झट से बोली, "अरे....राम......बगैर साफ़ करे लेटेगा तो इनसेक्सशन नहीं हो जायेगा........??"

मैंने हाय हाय करते हुए और आहे भरते हुए कहा, " चाची इनसेक्सशन नहीं......इन्फेक्शन, .......................... "

चाची बोली, "फालतू बात छोड़.......अपनी पेंट उतार......."

वाह रे भगवन कामदेव........चल पड़ी.

मैंने कुछ नहीं कहा और धीरे से अपनी जींस का बटन खोला..........और निचे के बटन खोलने लगा.......चाची आंखे फाड़े हुए देख रही थी...

" हाय राम.......तेरी पेंट में चेन नहीं है रे.......चेन की जगह पर भी बटन लगे है.......??????", चाची ने पूछा.

मैंने जींस नीचे करते हुए कहा, "चाची मैं चेन वाली जींस नहीं पहनता.......आपको याद है छोटी बुआ की शादी में मेरी.......चेन में फंस गयी थी."

चाची ने ऑंखें गोल करके हैरानी से पूछा, " क्या फंस गयी थी.......""

मैंने सकपका कर कहा, "अरे.....व.....वो......म....म.....म......मेरी.......नुन्नी........."

चाची जोर से ठहाका मारकर हंस पड़ी.........मैं अपनी अंडरवियर में बेड पर बैठा था और वो मेरे सामने खड़ी थी. उनको इतनी जोर से हंसी आ रही थी की वो आगे झुक गयी थी और उनका हाथ मेरी नंगी जांघों पर टिका था.........वो बेतहाशा हँसे जा रही थी.......उनका पल्लू मौका देखकर तुरंत गिर गया और उनके मम्मे ब्लाउस में से आखें फाड़ फाड़ के बाहर देखने लगे.

पता नहीं की आप लोगों को कभी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ की नहीं......मगर कोई औरत ऐसी हालत में आप से सिर्फ कुछ इंच की दुरी पर हो तो उस के जैसा नजारा तो कुतुबमीनार की छत से भी नहीं दीखता.

चाची ने हमेशा की तरह ब्रा पहनी ही नही थी.चाची के मम्मे........दो बेचारे बिना सहारे........इधर उधर डोल रहे थे और मेरी गर्दन भी उनके साथ साथ इधर उधर हो रही थी मानो मैं कोई टेनिस का मेच देख रहा हूँ. 

चाची ने अपनी हंसी को कंट्रोल किया और अपना पल्लू सही करने लगी मगर पल्लू भी कामदेव बाबा के कंट्रोल में था. बार बार सरक रहा था.....आखिर चाची ने उसको अपने हाल पर छोड़ दिया और धीरे धीरे से मेरी जींस को उतारने लगी. मैंने भी पूरी एक्टिंग कर रहा था......थोड़ी थोड़ी देर में.....उह....आह.....आउच.....
मगर मेरी नज़ारे चाची के मम्मो से नहीं हट पा रही थी. ठीक ऐसे मानो अकाल का भूखा जिसने रोटी नहीं देखी हो उसके सामने रस मलाई आ जाये. चाची ने मेरी जींस मेरे पैरो से निकल कर साइड में रख दी. और मेरे घावों का मुआयना करने लगी.....और मैं तो उनके मम्मो का मुआयना कर ही रहा था.......

चाची बोली, "लल्ला.......जा के बाथरूम में तेरे घुटने और बाकि चोट की जगह धो ले........"

मैंने चाची के मम्मो को टापते हुए कहा, "चाची......म..म..म..मुझसे तो उठा भी नहीं जायेगा.......मैंने बाद में कर लूँगा......"

चाची बोली, "अरे राम .......इतना दुःख रहा है क्या.....रुक.......मैं बाल्टी लाती हूँ......"

यह कहकर वो उठी और बाथरूम में जाने लगी..........
 
चाची का पल्लू.........उनके कंधे पर नहीं......ज़मीन पर उनके पीछे घिसटता हुआ जा रहा था. उनके गांड के गोले ऐसे ऊँचे नीचे हो रहे थे जैसे वर्ल्ड कप फायनल में धोनी की बीवी साक्षी बार बार कूद रही थी.

कामदेव भगवन.........आप को ग्यारह का नहीं एक सौ एक का प्रसाद चढ़ाउंगा .


चाची जैसे ही बाथरूम में घुसी...मैंने फटाफट अपनी जींस को निचे सरकाया........ठरक के मारे मेरे दिमाग को दर्द का ज़रा भी एहसास तक नहीं हुआ. जींस निकल कर मैं सिर्फ अपने अंडरवियर में ही बेड पर पीछे की तरफ हाथ टिका कर टाँगे फैला कर बेड के निकर पर बैठ गया........आगे क्या होगा यह सोच सोच कर मेरे रोम रोम में सनन सनन हो रही थी. 

चाची बाथरूम से बाल्टी और एक टोवल ले कर आई और मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गयी. चाची पालकी मार कर बैठी थी और उनका बेशरम पल्लू पूरी बेपरवाही से निचे ही पड़ा था और उनके गोल गोल मम्मे ब्लाउस में से टुकुर टुकुर मुझे ही देख रहे थे. चाची ने टोवल गीला किया और मेरे घुटने पर लगी चोट पर छुआया..........मेरे मुंह से आह निकल गयी....चाची को लगा की मुझे दर्द हुआ.....बेचारी ने अपने हाथ हटा कर पूछा...

"राम लल्ला......दुखा क्या.......मरी लगी भी तो ज्यादा है......मिटटी तो साफ़ करनी ही पड़ेगी......थोडा जी कट्ठा कर ले....."

अब चाची को क्या बोलता की जी कट्ठा होने की बजाये मेरा बाबुराव कट्ठा होने लगा है. चाची ने फिर से टोवल लगाया.........दर्द तो हुआ मगर एक अजीब से सनसनी भी मेरे बदन में दौड़ने लगी..........मेरी नज़रे बार बार चाची के मम्मो की तरफ जा रही थी. हालाँकि मैं चाची को दो बार ठोक चूका था....मगर वो ऐसे ही जताती थी मानो कुछ भी न हुआ हो.........उनके इस बर्ताव से मुझे थोडा डर भी लगता था......और उसके उपर में गांड फट तो था ही.

मैं चोर नजरो से चाची के बदन को निहार रहा था. और चाची बड़े प्यार धीरे धीरे सहला सहला कर मेरे घावो को साफ़ कर रही थी. 

कीड़ा कुलबुलाने लगा ......

मैंने अपनी टांगो को और फैला लिया और चाची से कहा....." च च चाची.....म.मम....मेरी.......जांघ पर भी लगी है........"

चाची ने अपना ध्यान मेरी जांघ पर फोकस किया और उनकी नज़र सीधी मेरे तने हुए तम्बू पर जा पड़ी. 

चुदाई की दुनिया का दस्तूर है की ढीले लंड और सूखी चूत का कोई ग्राहक नहीं होता........

मगर मेरा बाबुराव तो माशा अल्लाह पूरा तना हुआ था और मुझे यकीं था की बाबुराव को देखते ही चाची की मुनिया भी लार लपकने लगी होगी. 

चाची ने कुछ सेकण्ड तो मेरे खड़े बाबुराव को देखा जो अंडरवियर के अन्दर कसमसा रहा था.....फिर उन्होंने अपना ध्यान मेरी चोट की तरह लगा लिया.......

चाची आगे झुक कर मेरे घावो को साफ़ कर रही थी.......उनकी गरम गरम सांसें मेरी जांघों की संवेदनशील चमड़ी पर टकरा रही थी और उनके मम्मे सामने से दबने के कारण ब्लाउस के अन्दर से उफन उफन के बाहर आ रहे थे. मेरे दिमाग में येही कीड़ा कुलबुला रहा था की कैसे चाची की लूँ.....
 
चाची के मम्मे देख देख कर मेरी हालत टाईट पर टाईट होती जा रही थी............क्या करू और कैसे करू मेरी समझ में नहीं आ रहा था......इच्छा तो हो रही थी की चाची को पकड़ के बिस्तर पर पटक के चोद डालू मगर मेरी फटती हुयी गांड का क्या इलाज.....?

मेरी परेशानी बाबुराव ने दूर कर दी.......उसने अपने मुंह अंडरवियर से थोडा सा बाहर निकल लिया. और तभी चाची ने कुछ कहने के लिए अपने मुंह ऊपर किया और अपुन के सिपाही ने अंडरवियर के इलास्टिक में से अपने मुंह बाहर निकाले हुए चाची को सलाम ठोंक दिया. 

चाची की ऑंखें गोल की गोल ही रह गयी. अब मेरी गांड भी फट रही थी और मुझे हंसी भी आ रही थी. चाची का मुंह बाबुराव से मुश्किल से 6 -7 इंच की दुरी पर था.
चाची चाहती तो मेरी अंडरवियर को निचे कर के गप्प से बाबुराव को अपने मुंह में ले सकती थी
मगर इंसान जैसा सोचे अगर वैसा ही होने लगे तो बेचारी हर कोई अपनी पड़ोसन को ठोक ले
केटरीना की चुत का भोसड़ा सेकंडो में बन जाए, अंबानी दिवालिया हो जाये और अपना पप्पु पास हो जाये 


मैने भी सोचा की चलो देखते है की होता क्या है ?

चाची ने बाबूराव को तिरछी नज़र से देखा और पूछा, "क्यो रे लल्ला.......ये तो बता की तू बस से गिरा कैसे ?? हैं.....इधर उधर छोकरियों को टाप रहा था क्या रे.......? मारी आजकल को छोरिया भी तो बेहया बन के घूमती हैं......वो सामने वाले जैन साहब की छोरी का दुपट्टा देखो जरा......सुबह झाडू लगती हैं तो पूरा गिर जाता हैं........बेहया को कोई होश ही नही रहता......उसका पड़ोसी वो कपूर.......६० साल का होगा......अपनी बेटी की उमर की लड़की को ऐसे घूरता है जैसे की वहीं पर चो..... "

चाची एक दम से रुक गयी.......हाय चाची बोल ही देती.......

चाची ने अपना मुंह नीचे कर लिया.......

अपुन का बाबुराव तो फुल फार्म में था.....थोड़ी हिम्मत की...

"चाची......वो कपूर अंकल क्या.......कर देते.....", मैंने धीरे से पूछा.

चाची ने टोवल पटका और गुर्राई " अरे राम......बेहया......मेरी तो जबान फिसल गयी थी......बेशरम क्या सुनना है तुझे......तू भी भूखे कुत्ते की तरह उसको देखता हैं.....आने दे तेरी माँ को आज"

अपनी गांड की फटफटी चल निकली....

"म...म....म.....म......मेरा......म....म....मतलब.....व्...व्...वो नहीं था........म......मेरा......म.....मतलब था की.......वो........मैं...........", मैं हकलाया. मेरी फूल फट चुकी थी.

चाची बोली, " हाँ ... हाँ.....बोल.....हरामी.....फालतू बातों के अलावा कुछ सूझता नहीं क्या.....
मुझे तो लगता है....की बस से भी किसी छोकरी तो टापते टापते गिरा होगा......"

अब मैं क्या बोलता.....की चाची छोकरी नहीं.....कुदरत का नायब नमूना था.....शानदार मुजस्सिमा था.

मैंने बात संभाली, " न...न.....नहीं चाची......आप.....गुस्सा क्यों हो रही हो........म...म....मैं.....तो..."

चाची ने बात काटी, "ठीक है ठीक है......वैसे भी जैन साहब की लड़की में देखने लायक कुछ है भी नहीं......, मरी लकड़ी जैसी दुबली पतली तो है......जाने अपने पति को कैसे खुश रखेगी.....पता नहीं राम.....शायद आज कल के लड़के भी ऐसी दुबली पतली लडकियों को ही पसंद करते है"
 
चाची ने बोल्लिंग शुरू कर दी थी....अब मुझे भी क्रिस गेल के जैसा खेलना था.

मैंने प्लेट किया, "चाची.....ऐसी नहीं है......लड़के तो भरी पूरी......म...म....म....मेरा मतलब है की तंदुरुस्त लडकिय ही पसंद करते है......"

चाची ने गुगली डाली, "छोड़ रे लल्ला.......मुझे देख.......थोड़ी सी मोटी क्या हुई ...तेरे चाचा तो मुझे देखते तक नहीं....."

ये कहकर चाची ने मेरी जांघ के जोड़ पर.......जी हाँ जनाब.....मेरे गोटों पर टोवल रगड़ दिया.

दिल की धड़कन तुरंत 200 हो गयी.......मैंने बोलने की लिया मुंह खोला.....मगर ठरक से मेरा गला सुख गया था.....भेन्चोद आवाज़ ही नहीं निकली......मैंने थूक गटका....और बल्ला घुमाया.

"अरे....च....च....चाची......आप भी कैसी बात करती हो.......आप.....क....क....कहाँ मोटी हो....."

चाची ने ऑंखें नचाई और बोली, "चल अब रहने दे.....मुझे सब पता है......उस दिन तो हाथ लगा लगा कर बता रहा था.....की मेरे कुल्हे मोटे है......और जाने क्या क्या "

चाची ये कहते कहते आगे झुक गयी और उनके मम्मे अपना सर ब्लौस में से निकलने लगे......
अपुन का बाबुराव तो पहले से ही थोड़ी से मुंडी अंडरवियर में से निकल चूका था.

आज तो IPL 20 -20 होके रहेगा .

चाची की नज़ारे बाबुराव पर पड़ी. 

"हाय राम.....देखो तो बेशरम......अन्दर कर इसको...."

"च...च....च....चाची अन्दर ही तो है......", मैंने चाची को उकसाया.

चाची अपनी निगाहें बाबुराव पर जमाये हुए बोली, " हैं....कहाँ से अन्दर है......बेशरम....लल्ला......तू बहुत बदतमीज़ हो गया है.........अन्दर कर इसको"

अब तो जो होगा देखेंगे.....

"च...च...चाची......सची में और अन्दर नहीं होगा......जब यह.....ख.....ख....खड़ा होता है तो बाहर ही निकल आता है."

चाची बाबुराव को ऐसे देख रही थी जैसे बिल्ली मलाई को देखती है.

चाची ढिठाई से बोली, "राम.....अंदर कैसे नहीं होगा......ठहर......टांगे फैला तो"

चाची बाबुराव को खुद.....अपने हाथ से............... अंडरवियर में डालने वाली थी.
 
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चाची बाबुराव को ऐसे देख रही थी जैसे बिल्ली मलाई को देखती है.

चाची ढिठाई से बोली, "राम.....अंदर कैसे नहीं होगा......ठहर......टांगे फैला तो"

चाची बाबुराव को खुद.....अपने हाथ से............... अंडरवियर में डालने वाली थी.
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चाची ढिठाई से बोली, "राम.....अंदर कैसे नहीं होगा......ठहर......टांगे फैला तो"

यह सुनकर ही हरामी बाबुराव ने जो ठुनकी मारी है की क्या बताऊ ? चाची ने अपने दोनों हाथ मेरे घुटनों पर रखे और दरवाजे की तरह मेरी टांगे खोल दी. चाची का पल्लू तो गिर हुआ था ही.....उनके मम्मे छलक
छलक के बाहर आ रहे थे.....भेन्चोद इतना छोटा ब्लाउस पहनती है की ब्रा की तो जरुरत ही नहीं.

मेरी भूखी निगाहें चाची के मम्मो पर चिपकी हुयी थी......बस में बंगाली मैडम को देख कर पहले से ही माहोल बना हुआ था........चाची ने बाबुराव का अंडरवियर के ऊपर से मुआयना किया और बोली, 

"अरे....लल्ला.......ये मरे सफ़ेद कच्चे क्यों पहनता है रे........इतने छोटे छोटे से है......दाग धब्बे भी जल्दी दीखते है" 

मैं सकपकाया, " च...च....चाची यह तो जोकी की अंडरवियर है........."

चाची ने ऑंखें नचाई, " होगी मरी....जाकी फाकी.....सबसे बढ़िया तो तेरे चाचा की है......अमूल की लम्बी अंडरवियर.......भूरे नीले काले रंग की.....न दाग दिखे न धब्बे.......और उसमे से यह ऐसे दीखता भी नहीं", कहकर उन्होंने मेरे बाबुराव को सहला दिया. 

ऐसा लगा किसी ने मेरे बाबुराव पर बिजली का नंगा तार छु दिया हो. मैं उछल पड़ा .....चाची ने ऐसे जताया मानो कुछ न हुआ हो.....वो भोली भली बनकर मेरी आँखों में देख रही थी......मगर उस हरामन का हाथ मेरी जांघ पर धीरे धीरे से सहला रहा था. 

मेरे मन में तो आ रहा था की चाची को यही पटक के साड़ी उठाऊ और भेन्चोद गाँव के सांड की तरह अपना लंड पेल के फकाफक चोद दू. थोड़ी गांड तो फटती ही थी की चाची का भरोसा नहीं......२ बार ठुकने के बाद भी वो यूँही जताती मानो कुछ न हुआ हो......

मैंने कही पढ़ा था की बिल्ली अक्सर चूहे को पकड़ के उसके साथ खेलती है.....आखिर में तो खाना है मगर बार बार छोड़ देती है....चूहा यह सोचकर भागता है की चलो जान बची.....मगर बिल्ली फिर से पकड़ लेती है और आखिर में खेल से बोर होकर चूहे को खा लेती है.

चाची भी मेरे साथ खेल रही थी.....यह चाची भी जानती थी और मैं भी....की हमारे बिच क्या हुआ था....मगर चाची का अनजान बनना......बिल्ली के खेल जैसा था.......अगर मैं अभी चाची को पकड़ने की कोशिश करता तो यक़ीनन वो सती सावित्री बन जाती....मुझे डांटती या यु कहे मेरी गांड की फटफटी चलाती......और मुझ से ऐसे चूतिये जैसे बैठते बन नहीं रहा था.

यह चूहे बिल्ली का खेल बहुत चल गया.......खून का दौरा लंड से दिमाग में जाने लगा......चाची चुदेगी मगर अब खेल चाची का नहीं लल्ला का चलेगा.
 
अब मेरे दिल और दिमाग में जंग होने लगी, या यूँ कहे की बाबुराव और दिमाग में जंग होने लगी. बाबुराव ठुनकी मार मार के बोल रहा था की भाई पकड़ इस भेन की लोड़ी को और इसकी मुनिया की चुनिया बना दे और दिमाग बोल रहा था की चाची बगैर नाटक नौटंकी करे मानेगी नहीं. मैंने हिम्मत बटोरी और चाची से कहा, 

"च....च....चाची......आप जाओ.....म.....म.....म....मैं...चोट...साफ़ कर लूँगा.......वैसे भी मुझे नहाना है"

चाची का मुंह खुला का खुला ही रह गया. चाची मुझे तड़पा कर मजे करना चाहती थी मगर चाची के खेल में लोचा हो गया था. एक दो सेकण्ड तो चाची ने मुझे देखा और फिर बाबुराव को.....अपनी नज़रों से सहलाया.

मेरा मन फिर से डोलने लगा......हाय.....इसकी......तो...........ले.......ही.......लूँ...........मगर मैंने अपने आप को संभाला. चाची मेरे पैरों के पास से उठी.....उठने से उनके दोनों मम्मे फिर से झूल गए....मेरी नज़रे उन पर ही टिकी थी.......अचानक चाची ने मुझे देखा.......और मुझे मम्मो को टापते हुए पकड़ लिया.....चाची ने तिरछी मुस्कान मारी............हाय लौड़ा मेरा घायल हो गया.

चाची ने अपने पल्लू को ठीक किया और अपनी कमर लचकाते हुए मेरे रुम से बाहर चली गयी. 

अगर चाची को तडपाने का गेम खेलना था तो मैं अभी अब इस खेल के नियम समझ रहा था.

मेरे मोबाईल की घंटी बजी.....मैंने देखा तो माँ का फोन था.

"हल्लो......लल्लू........तेरी चाची को बोल देना......मैं गुप्ता आंटी के यहाँ जा रही हूँ.......शाम तक आ जाउंगी"

मैं हाँ हूँ कर के फोन रख दिया......अब मैं और चाची मैदान-ए-जंग में अकेले थे.

मैंने धीरे धीरे करते करते अपनी जींस पूरी उतारी.....भोसड़ी की रगड़ से घुटना पूरा छील गया था. 
कपडे उतारते हुए येही सोच रहा था की चाची के साथ ऐसा गेम खेलु की यह बार बार की चूहा बिल्ली वाली कहानी ख़तम हो. चुल तो चाची को बहुत थी मगर खुल के न वो सामने आ रही थी और न ही मैं.

सारे कपडे खोल के टोवल बांधा और बाथरूम में घुसा. टॉवल टांगा और कमोड का ढक्कन लगा कर उस पर बैठ गया, मैंने सोचा चोट का अच्छे से मुआयना कर लूँ......भेन्चोद.....ऐसा दर्द हो रहा था की बस.......

टांगो पर जगह जगह मिटटी और कीचड़ लगा था......मैंने सोचा नल के निचे करके धोना पड़ेगा.....
अंडरवियर उतरा तो बाबुराव बिना सहारे झूल गया......मुझे हंसी भी आई और गुस्सा भी....चाची के चूहा बिल्ली की खेल में बेचारे बाबुराव के साथ KLPD हो गयी थी. मैंने बाबुराव को मुठी में लिया...और मेरा वफादार सिपाही तुरंत सर उठाने लगा....अब चाची की मुनिया मिलने का तो ठिकाना था नहीं....मैंने धीरे धीरे अपने बाबुराव के सर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया......म्मम्मम.......मज़ा आने लगा था......आनंद की अधिकता से मेरी ऑंखें बंद होने लगी.......मुझे चाची के हिलते झूलते मम्मे और लचकती गांड ही दिख रही थी. मेरा हाथ तेज़ी से चलने लगा......मद्धम सिस्कारिया मेरे मुह से निकलने लगी.....आह्ह......सस......स्स्स्स

तभी भड़क से दरवाजा खुला और चाची बोली, "लल्ला.....वाशिंग मशीन में कपड़े डालने थे और साबुन......हाय राम......क्या कर रहा है रे निर्लज्ज........बेशरम...."

भेन्चोद....इंसान अपने बाथरूम की तन्हाई में चैन से मुठ भी नहीं मार सकता क्या ??? 

मैं तो मारे डर के उछल ही पड़ा.....गांड की फटफटी चल पड़ी 

गांड फट के गले में आ गयी.

मैंने तुरंत बाबुराव को दोनों हाथ से छुपाया और कमोड पर ही बैठ गया. मैं हडबडाया हुआ बोल. 

"भेन......म.....म....मेरा मतलब है की च...च...चाची......दरवाजा नॉक तो कर देते.....आपको बोल के तो नहाने आया.......था........."

चाची ऑंखें नाचते हुए बोली, " वाह वाह......बड़ा आया दरवाजा नॉक करने वाला......क्या कर रहा था रे बदमाश......."

मैंने नज़रे नीची कर ली......चाची फिर बोली, "बाहर बैठा बैठा तो बड़ा आह ऊह कर रहा था.....और यहाँ अन्दर क्या गुल खिला रहा है"

"च...च....च.....चाची.....मुझे यहाँ पर भी लगी है शायद.....वो ही देख रहा था.....", मैंने बात संभाली

"रहने दे रे.....बड़ा आया.....लगी....है......चल नहा ले...."

"अरे.... आ....आ....आप तो बाहर जाओ...."

"हाय राम......मैं बाहर चली गयी तो इन कपड़ो का क्या होगा ?.......रात भर से भीगे पड़े है.....बदबू मारने लगेंगे......तू तो एक घंटा नहाने में लगा देगा ........तुझे मुझसे क्या.......मैं मेरा काम करती हूँ....तू तेरा काम कर...."

इसकी माँ का.....साकी नाका....यह साली चाहती क्या है.......???

चाची निचे झुक कर बाल्टी में से कपडे निकाल रही थी....उनकी पीठ मेरी तरफ थी.....निचे झुकने से उनके गदरायी......गोल......फुटबाल जैसी गांड उभर कर आ गयी थी और मुझसे सिर्फ एक फुट की दुरी पर थी.

हे भगवान....क्यों मेरे सब्र का इम्तेहान ले रहा है.....
 
बाथरूम तो छोटा सा थी था.....एक कोने में कुर्सी जैसा अंग्रेजी कमोड था जिस पर मैं विराजमान था.....और दुसरे कोने में वाशिंग मशीन रखी थी... वाशिंग मशीन और कमोड के बीच बाल्टी थी जिसपर चाची झुकी थी........

मैं अभी तक बाबुराव को हाथों में दबाये बैठा था.....और चाची झुकी हुयी बाल्टी में कपडे निकाल रही थी, ऐसा करने से उनके विशाल चुतड जेली जैसे हिल रहे थे....और अपुन का बाबुराव भी सिग्नल केच कर रहा था.

ऐसा लग रहा था मानो चाची की गांड एक बीन है और मेरा बाबुराव सपोला....चाची की गांड हिलती और उसके साथ मेरा बाबुराव ठुनकी पे ठुनकी मारता....कभी कभी फुफकार भी देता.

मेरी नज़र चाची के कुलहो पर ही थी तभी अचानक चाची पीछे हुयी और उनके कुल्हे मेरे चेहरे से टकरा गए........म्मम्मम्म........क्या नरम और क्या गरम........बाबुराव में नेटवर्क के सारे टावर आ गए थे...

चाची ओहो ओहो करके शरमा के हंसने लगी........मेरा तो हाल बुरा हो गया था.

चाची बोली..." अरे लल्ला......नालायक नहाता क्यों नहीं रे........यहाँ बैठा बैठा क्या कर
रहा है......जल्दी कर.....तेरी माँ आने वाली होगी......"

"म...म....मम्मी तो......गुप्ता आंटी के यहाँ गयी है.......शाम को आएगी......"

चाची धीरे से मुड़ी और मुझे देखा......मानो कुछ सोच रही हो.......बिल्ली अपने शिकार को नाप तोल रही थी.

"चलो......फिर तो सारे कपडे भी धो ही लेती हूँ.....अब पूरा दिन करुँगी क्या.......ला.....तू भी हाथ बटा........"

मैंने धीरे से कहा, "च...च....च....चाची आप बाद में धो ले न.....म...म...मैं नहा लूँ.....??"

"अरे राम.....नहा लेना....क्या जल्दी पड़ी है.......ला....तेरी अंडरवियर दे....धो दू ....."

मेरी अंडरवियर तो नल के निचे पड़ी थी.....मगर मैं कमोड से उठ जाता तो.....चाची की मेरे टावर की लोकेशन मिल जाती......बाबुराव तो जैसे फनफना रहा था.....मैंने दोनों हाथों से अपने सामान को ढक रखा था, चड्डी उठाता तो .......पर्दा उठ जाता.......

"च...च....चाची.....आ...आ...आप ही उठा लो न....."

चाची ने मुझे तिरछी नजर से देखा.....ऊपर से निचे तक........उनकी नज़रे निचे जाकर कुछ पल रुकी फिर वो मेरी आँखों में देख कर धीरे से मुस्कुराई....

कसम उडान छल्ले की.......मेरा तो अंग अंग ठरक से कांप गया.

चाची मेरी अंडरवियर उठाने के लिए झुकी, सहारे के लिए उन्होंने नल पर हाथ रखा और जैसे अंडरवियर उठाया...उनके हाथ से नल घूम गया और शावर फुल स्पीड में शुरू हो गया.......

शावर की सीधी धार मुझ पर और उनके ऊपर पड़ी......पानी इतनी तेज़ी से आया की जब तक वो बंद करती तब तक चाची और मैं दोनों पुरे भीग चुके थे........
 
"हाय......राम.......उफ़........भीगा दिया.....रे.........हाय....हाय.......सब गीला हो गया......."

मैं तो अभी तक अपना बाबुराव हाथों से छुपाये कमोड पर बैठा था.

चाची वहां से हटी और मेरी अंडरवियर को भी बाल्टी में डाल दिया.....फिर बोली.....

"लल्ला........सारे कपडे भीग गए.....चल....कपडे धो कर साड़ी बदल लुंगी.....यूँभी....कपडे धोने में भी भीग ही जाती..........मरी ये साड़ी तो चिपक चिपक जा रही है "

भीगने के बाद साड़ी चाची से ऐसे ही चिपक गयी थी जैसे चाची पर साडी का लेमीनेशन कर दिया हो. उनकी साड़ी कुलहो से ऐसे चिपकी थी की पूरा का पूरा शेप दिख रहा था.......चाची घूमी तो मेरा दिमाग भी घूम गया.

चाची की गांड के सल में साड़ी फँसी थी, चाची ने आज भी पेंटी नहीं पहनी थी. चाची मुझसे बाते करती जा रही थी और इधर उधर भी देख रही थी.....

मैंने पूछा, "क..क...क....क्या हुआ चाची......"

"अरे मरा.....मेरा गाउन भी नहीं दिख रहा ....ऐसी पूरी गीली साडी में कैसे कपडे धोउ ?"

ये कहते कहते चाची ने अपनी गदराई गांड के सल में फँसी साड़ी को निकाला.........

सन्नी लिओनी के जिस्म की कसम मेरे कानो में से तो धुआं निकल गया....

मैंने कहा. "च...च...चाची....आप......बल्लू चाचा का शर्ट पहन लो....."

चाची ने एक पल के लिए सोचा फिर बोली, " हाँ रे.....धोना तो है ही.......उनकी शर्ट पहन के एक बार सारे कपडे मशीन में डाल देती हु फिर दूसरी साडी पहन लुंगी.....ये गीली साडी भी धो लुंगी....."

यह कहकर उन्होंने अपना पल्लू कंधे पर से उतारा और मेरे सर में एम्बुलेंस की लाइट लप झप करने लगी...मेरे कानो में सायरन बजने लगा.........चाची ने सफ़ेद ब्लाउस पहना था....मगर ब्रा नहीं पहनी थी.......भीगते ही ब्लाउस ने पर्दा उठा दिया था......भीगे हुए ब्लाउस में चाची के चुचुक......यानि निप्पल साफ़ दिख रहे थे.

चाची हाथ में अपने पल्लू लिए मानो पोस बना के खड़ी थी और मैं गंगुराम जैसे मुंह खोले उनका हुस्न अपनी आँखों से पी रहा था.

चाची बोली...."हाय राम....क्या देख रहा हे बेशरम....उधर मुंह कर........"

मैंने भी आज्ञाकारी बच्चे जैसे मुंह दूसरी ओर कर लिया मगर....कनखियों से देखना जारी रखा.

चाची ने अपनी साडी खोल दी......वो सफ़ेद पारदर्शी ब्लाउस और पेटीकोट में थी.....अब चाची ने शर्ट उठाया चाची ब्लाउस और पेटीकोट के ऊपर ही शर्ट पहन लेगी....और शो ख़तम.

मैंने भी सोचा...की चाची फिर से मेरे साथ चूहे बिल्ली का खेल खेलने लगी है....पहले तो मुझे गरम किया
और अब मुझे तड़पाते हुए अपने आप को पूरा ढक लेगी और मैं कुछ भी नहीं कर पाउँगा.

मुझे भी अपने आप पर कंट्रोल रखना है.....मैं भी कुछ नहीं करूँगा.

तभी चाची अपने ब्लाउस के हुक खोलने लगी.......मेरे बैठते हुए बाबुराव ने फिर हुँकार भरी......मैं तिरछी नजर करके सब देख रहा था.....एक पल में चाची का ब्लाउस निचे था.....और ये क्या....अगले ही पल में उनका पेटीकोट भी नीचे. 

माँ चुदाने गयी बिल्ली और गधे की गांड में गया चूहा.......

चाची ने बल्लू चाचा का शर्ट उठाया और इस से पहले की मैं कुछ देख पता अपने बदन पर डाल लिया.

माँ की चूत...ये फिल्म तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गयी,
 
भले ही मैं चाची को दो बार बजा चूका था फिर भी वो ऐसे नखरे और शर्म के कसीदे दिखा रही थी जैसे की कुछ हुआ ही न हो.....मेरे अरमान थे की मैं एक बार चाची का गदराया बदन मादरजात नंगा देखू.......इस के पहले बाबुराव के तो गांडफाड़ आनंद हो गए थे मगर नैनसुख नहीं मिला था. मगर साली इस हरामन ने बल्लू चाचा के शर्ट पहन के मेरे अरमानो का शीघ्रपतन करवा दिया.

मैं टॉयलेट के कमोड पर फिर से बैठ गया....और बाबुराव को अपने हाथों के निचे फिर से छुपा लिया. चाची शर्ट के बटन लगा चुकी थी. मगर बड़ी शान से ऊपर के २ बटन नहीं लगाये थे. मतलब चाची के मम्मे अपने पूरा कटाव दिखा रहे थे.

मैंने भी सोचा चलो ग़ालिब आज बालकनी के टिकेट पर फिल्म देखेंगे. चाची मेरे सामने सिर्फ बल्लू चाचा का काला शर्ट पहने खड़ी थी.शर्ट उनकी आधी जांघों तक था......पानी से भीगी उनकी जांघें बाथरूम की रौशनी में चिलचिला रही थी. 

गुरु एक बात तो है......भारतीय नारी की गदरायी गांड और भरी भरी जांघों का तोड़ पूरी दुनिया में नहीं है.

चाची अपनी जगह पर थोडा सा घूमी और मेरा कथन सत्य साबित हो गया. 

चाची की ५ फुट ४ इंच की फ्रेम में उनकी गांड ही गांड ही दिखती थी. ये हाल तो साड़ी में था.....शर्ट में कसी हुयी गांड तो कहर थी कहर. 

गांड के दोनों गोले मुस्तेदी से अपना अपना परिचय दे रहे थे. हाय.....चाची को तो बस पकड़ के.....

"हाय राम.......क्या देख रहा है रे........बेशर्म......नहा और निकल बहार यहाँ से.", चाची चिल्लाई.

"क...क....क.....क्या......म..म....म...मैं......म.मम.मेरा मतलब है की नहीं चाची.....म.मम.मैं तो "
,मैं हकलाया.

चाची ने ऑंखें नचाई, "हाँ राम.....तो और क्या फिर......नहा और बाहर जा......"

अब कोई इस फुलझड़ी को बताये की मेरा राकेट लांच मोड में है. मैं तो बैठा था मगर बाबुराव खड़ा था.

मैं फिर हकलाया, "आ...आ....आ....आप कपडे धो लो चाची......मैं फिर न...न....नहा लूँगा..."

"हाय राम.....तब तक क्या मेरे सर पे ही बैठा रहेगा क्या.....? चुप चाप नहा और निकल यहाँ से...."

भेन्चोद,,,,,किस्मत में लिखे हो लोडे तो कहाँ से मिलेंगे पकोड़े.....???

मैं गरीब.....नंगा......अपने बाबुराव को अपने हाथों से छुपाये खड़ा हुआ और शोवर के निचे खड़ा हो गया.

चाची ठीक मेरे पीछे ही थी......वो झट से स्टूल पर बैठ गयी और बाल्टी से गीले कपडे निकालने लगी.
मैंने मन ही मन सोचा चलो बेटा....मोका तो गया....नहा लो और चलो .

मेरी पीठ चाची की और थी......मैंने शोवर को चालू करने के लिए हाथ बढाया और तभी ठन्डे पानी के छींटे मेरी नंगी गांड पर पड़े. मैं एक दम चिंहुक पड़ा.

चाची खिलखिला कर हँसने लगी......वो स्टूल पर उकडू बैठी थी. शर्ट उनकी जांघों पर ऊपर तक चढ़ आया था.....शर्ट सिमट कर उनकी चिकनी जांघें के जोड़ पर इकठ्ठा हो गया था. मुझे याद आया की चाची ने पेंटी नहीं पहनी है. 

कीड़ा कुलबुलाने लगा.
 
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