Hindi Sex Stories याराना - SexBaba
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Hindi Sex Stories याराना

desiaks

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Aug 28, 2015
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याराना

जर, जोरू और जमीन- कहा जाता है कि झगड़े की यही सबसे बड़ी वजहें होते हैं और इनके कारण भाई-भाई भी दुश्मन हो जाते हैं। खास कर जोरू तो भाइयों तो क्या गहरे से गहरे दोस्तों में भी अलगाव करा देती है। लेकिन हमारे मामले में कुछ उल्टा ही हुआ था। 'जोरुओं' की वजह से हम दो दोस्तों की टूट चुकी दोस्ती फिर से जुड़ गई।

मैं राजवीर (26) और मेरे बचपन का दोस्त रणविजय। हमारा जन्म दो दिन के अंतर पर हुआ था, सो हमारे घर वालों ने हमारा नाम भी एक सा रखा था। गाँव में हमारे घर आमने-सामने हैं। हमारे परिवारों का बहुत बड़ा फॅमिली बिजनेस था और हम गाँव के अमीरों में से थे। दोनों परिवारों में पहले बहुत दोस्ती थी लेकिन बिजनेस की वजह से मनमुटाव हो गया था। अब हाल यह था कि उन्हें अपने बिजनेस के लिए पार्ट्स खरीदने पड़ते थे जो हम बनाते थे लेकिन वे दुश्मनी की वजह से हमसे पार्ट्स ना खरीदकर बाहर से इम्पोर्ट करते थे। इधर हमारे प्रॉडक्ट का नाम विश्वसनीय था। नुकसान दोनों पक्षों को था। बचपन से रणविजय और मैं अच्छे दोस्त थे। दोनों गाँव की क्रिकेट टीम में साथ खेलते बड़े हुए थे। अच्छे खिलाड़ियों के रूप में हमारी धाक थी। लेकिन जब हम बड़े हुए और अपना अपना बिजनेस सम्हाला तो आपस में बोलना बंद कर दिया।

रणविजय की शादी प्रिया से हुई और उसी साल मेरी भी शादी तृप्ति से हुई। दोनों ही सुंदरियाँ। प्रिया देखने में फिल्मी हीरोइन प्रेरणा जैसी थी और मेरी पत्नी तृप्ति टीवी सीरियल की हीरोइन संजना जैसी। इधर रणविजय और मैं भी देखने में स्मार्ट और हैंडसम। हमारी सेक्स लाइफ बहुत अच्छी थी। घर आमने-सामने होने के कारण रणविजय और मेरी रोज नजरें मिलती लेकिन हम बात नहीं करते थे। दोनों ही एक-दूसरे के ग्राहकों को भड़काते। इससे हमारे बिजनेस पर काफ़ी असर पड़ रहा था।

कहानी में मोड़ तब आया जब हमारे गाँव का एक मैच था और जीतने के लिए गाँव के लड़कों ने हमें खेलने को कहा। हमारी जोड़ी ने बल्ले और गेंद से टीम को जीत दिलाई। गाँव के लोग बहुत खुश हुए, बोले, तुम लोग हमेशा साथ ही खेलो। पुरानी दोस्ती थी और मैच में हमने साथ खेला था सो मैच के बाद एक दूसरे के खेल की टांग खींचने लगे। तुझसे अच्छा मैंने खेला, तू तो स्ट्रेट में गेंद डाल रहा था, वगैरह वगैरह! दोनों को बचपन का याराना याद आने लगा। थोड़ी देर में खेल के और साथी चले गये और मैदान में हम दोनों ही रह गए तो थोड़ी बिजनेस की भी बात होने लगीं। दोनों ने एक दूसरे के बहुत से ग्राहकों को भड़काया था और एक दूसरे का बहुत नुकसान किया था।

मैंने कहा- यार, बहुत नुकसान हो रहा है। चल एक-दूसरे से लड़ाई खत्म कर बिजनेस बढ़ाते हैं।
 
उसने कहा- ठीक है, लेकिन तुझसे पार्ट्स खरीदने के लिए मुझे अपने मौजूदा सप्लायर से करार तोड़ना पड़ेगा। उसके बाद अगर तूने मुझे पार्ट्स नहीं दिए तो मेरा लाखों का नुकसान हो जाएगा। और हम दोनों कमीने हैं सो मुझे इस बात का यकीन नहीं है कि तू बाद में मुकर नहीं जाएगा।

मैंने कहा- अपन स्टांप पर या खाली चेक लेकर ये डील कर लेते हैं।

तो उसने कहा- कुछ पैसों के चेक से न तुझे फर्क पड़ेगा न मुझे, लेकिन पुराना करार टूटा तो पूरे बिजनेस फ्यूचर की वॉट लग जाएगी। तो जैसा चल रहा है वैसा ही चलने देते हैं।

बात खत्म।

फिर हमने बात का विषय बदला, मैंने पूछा- तेरी मैरिड लाइफ कैसी चल रही है?

उसने कहा- मस्त है।

आगे उसने कहा- लाइफ तो तेरी भी मस्त होगी। चूमने के लिए इतने प्यारे चेहरे वाली वाइफ जो घर में है।

मैंने भी कहा- तेरी वाइफ जैसा शेप कहाँ है आगे पीछे का! (हम एक दूसरे की टांग खींचते हुए अश्लील होते जा रहे थे।)

मैंने कहा- प्रिया के बटक्स प्रेरणा जैसे हैं।

वो गुस्से में बोला- और तेरी तृप्ति के बूब्स तो किसी इंग्लिश लेडी के जैसे व्हाइट होंगे।

(बात बढ़ने लगी।)

उसने कहा- कमीने, मुझे पता था तू प्रिया को जरूर घूरता होगा!

मैंने भी कहा- मैं भी तुझे अच्छी तरह जानता हूँ।

घर जाते जाते रणविजय ने कहा- भाई एक आइडिया हैं बिजनेस डील करने का, अगर तू बुरा ना माने?

मैंने कहा- बता?

उसने कहा- देख, दोनों परिवारों की इज्जत सबसे बड़ी चीज़ है और दोनों इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। और हमारी पत्नियाँ भी अपने अपने परिवारों की इज्जत हैं।

मैंने कहा- तो?

उसने कहा- एक बार तृप्ति का मेरे साथ एम एम एस बनवा दे, फिर मैं पुराना करार तोड़ दूँगा। तुझसे करार करके एड्वान्स दे दूँगा। इससे यह टेंशन खत्म हो जाएगी कि तू मेरे को सप्लाई देगा या नहीं, क्योंकि तेरी इज्जत मेरे मोबाइल में होगी।
 
उसने कहा- देख, दोनों परिवारों की इज्जत सबसे बड़ी चीज़ है और दोनों इसके लिए कुछ भी कर सकते हैं। और हमारी पत्नियाँ भी अपने अपने परिवारों की इज्जत हैं।

मैंने कहा- तो?

उसने कहा- एक बार तृप्ति का मेरे साथ एम एम एस बनवा दे, फिर मैं पुराना करार तोड़ दूँगा। तुझसे करार करके एड्वान्स दे दूँगा। इससे यह टेंशन खत्म हो जाएगी कि तू मेरे को सप्लाई देगा या नहीं, क्योंकि तेरी इज्जत मेरे मोबाइल में होगी।

मुझे गुस्सा आ गया, मैंने कहा- कमीने, तू ही इस तरह की गंदी बात कर सकता है। तू बचपन का दोस्त हैं तो यह पहली और आखिरी बार बर्दाश्त किया है, ऐसा सोचना भी नहीं! आई लव तृप्ति।

-

हम अपने अपने रास्ते चल दिए, हमने एक-दूसरे से फिर बोलना बंद कर दिया। लेकिन दिमाग़ में दिन-रात उसकी बात घूमने लगी। मैं कल्पना करता कि वो तृप्ति के साथ संभोग कर रहा है और मैं उत्तेजित हो जाता। ऊपर से बात करोड़ों के भविष्य के बिजनेस की भी थी। अगर मेल हो जाता तो मेरा हर माह लाखों का प्रॉडक्ट बिकने का भविष्य था। मैं भी उसकी पत्नी प्रिया के बारे में सोचने लगा। उसका बेहतरीन आकार वाला पिछवाड़ा गजब का सेक्सी था। उसमें लिंग डालकर... सोच कर मेरा बुरा हाल हो जाता। आखिरकार मैंने रणविजय को एक शाम उसी खेल के मैदान में बात करने के लिए बुलाया। आते ही उसने पिछली बात के लिए सॉरी कहा।

मैंने कहा- इट्स ओके! बात तेरी सही थी। तुम्हें भी तो कोई बड़ी गारंटी चाहिए। लेकिन वह मेरी पत्नी है और उसकी कीमत करोड़ों से भी ज्यादा है मेरे लिए! (वह उत्सुकता से मेरे चेहरे को देखने लगा।)

मैंने कहा- लेकिन बिजनेस के फ्यूचर का सवाल है तो एक आइडिया मेरे पास भी है... तू तृप्ति के साथ सो सकता है लेकिन मैं भी प्रिया के साथ सेक्स करूंगा। (मैं डर रहा था कहीं फिर झगड़ा न हो जाए।)

उसने कहा- 'तो बात फिर वहीं आ गई। अगर तेरे गड़बड़ करने पर मैंने तेरी बीवी का एमएमएमस रिलीज किया तो तू भी ऐसा करेगा। तो बात तो बिगड़ जाएगी।'

मैंने कहा- मैं एमएमएस नहीं बनाऊंगा। तू अपनी सिक्योरिटी रखना एमएमएस बनाकर!

वह सोचने लगा, बोला- देख हम अपनी बीवियों को बहुत प्यार करते हैं लेकिन बिजनेस के अच्छे फ्यूचर के लिए हमें कुछ तो करना ही होगा। और वैसे भी तू प्रेरणा के साथ और मैं संजना के साथ सेक्स करना ही चाहते हैं। तो क्यों ना असली में...

'ठीक है, तो पक्का रहा?'

अब मन में सवाल था कि हमारी बीवियाँ इसके लिए मानेंगी कैसे? यह बहुत बड़ी चुनौती थी। मेरी जिंदगी में जैसे कोई नया उद्देश्य मिल गया था। दिन का समय तो व्यवसाय में व्यस्त गुजर जाता मगर रातें बेचैन करने लगीं। मैं तृप्ति को रणवीर के बाँहों में होने की कल्पना करता और खुद को उसकी सुंदर सेक्सी इल्याना डिक्रूज के साथ।

तृप्ति सेक्स के दौरान पूछती- क्या बात है, इधर कुछ दिन से ज्यादा जोश में नजर आ रहे हो?
 

उधर रणवीर का भी यही हाल था।

हमें अपनी बीवियों को लेकर कहीं बाहर निकलना था क्योंकि यह काम घर में नहीं हो सकता था, हम दोनों के ही संयुक्त परिवार थे। रणविजय और मैं रोज बात कर रहे थे, शाम को अपने वर्कशॉप बंद करने के बाद कहीं दूर बैठ जाते और योजना बनाते। मुश्किल यह थी हमारे कारोबार एक ही क्षेत्र से संबंधित थे इसलिए दोनों को एक साथ निकलना कठिन था। लेकिन एक बहुत बड़ी चीज के लिए कुछ तो कुर्बानी देनी ही पड़ती है। हमने कुछ दिन वर्कशॉप बंद करके शिमला घूमने का प्लान बनाया, लंबा पाँच दिन का। अपने घर वालों को नहीं बताया कि सामने वाला कपल भी उसी जगह घूमने जा रहा है।

बिजनेस वालों की बीवियों से पूछो वे बाहर जाने को कितना तरसती हैं। उनके पति हर समय बिजनेस में बंधे होते हैं। सो हमारी बीवियों की खुशी का ठिकाना नहीं था, वे उत्साह से तैयारी करने लगीं। लेकिन असली तैयारी तो हमको करनी थी (अपनी पत्नियों को बिगाड़ कर) बिगड़ने से ही वे बिगड़े हुए काम यानि स्वैपिंग के लिए राज़ी होतीं। दोनों पैसे वाले परिवारों से थीं मगर ससुराल में अच्छी बहुओं जैसी ही रहती थीं। रणविजय और मैं एक दूसरे को अपने बेडरूम में होने वाली घटनाएँ बताते थे। कैसे रात में वो सेक्सी ड्रेस पहनकर हमें उत्तेजित करती, कैसे हमने सेक्स किया, कैसे हमने अपनी पत्नी के साथ ब्लू फिल्म देखी, वगैरह, वगैरह।

तृप्ति ने एक दिन कहा- तुमने सपने तो दिखा दिए घूमने जाने के लेकिन तुम्हारा प्लान नहीं सेट हो पा रहा, या तो बताते ही नहीं?

मैं- कोई बात नहीं यार, जब भी चलेंगे इतना कुछ करेंगे कि सारे इंतज़ार को भूल जाओगी।

तृप्ति- अच्छा! ऐसा क्या करने वाले हो? नया तो रोज कर ही रहे हो। ब्लू फिल्म देख-देख के सारे प्रैक्टिकल कर लिए। अब क्या नया करोगे?

मैं- यार, मैंने कोई प्लान थोड़ी बनाया हुआ है। बस ख्वाहिश है कि इसे यादगार बनाऊँ क्योंकि समय तो मिलता नहीं खुद की लाइफ जीने का। बिजनेस ही ऐसा है।

तृप्ति- मुझको तो समझ नहीं आता कि इतना पैसा क्यों इकट्ठा कर रहे हो कि खत्म करने के लिए जिंदगी कम पड़ जाए?

मैं- हम्म्म्म लेकिन अपनी आउटिंग को यादगार बनाने के लिए तुमको भी साथ देना होगा।

तृप्ति- हाँ जी, आपको आपकी जरूरत से ज्यादा ही दूँगी, देख लेना।

तृप्ति अच्छे से नहाकर छोटी सी पारदर्शी नाईटी पहनकर आई थी, उसने मुझे बिस्तर पर ठेलकर गिरा दिया, बोली- कल तुमने थोड़ा सा मेरी चूत और उसके नीचे की छेद को जीभ से गुदगुदाया था तो बड़ा अच्छा लगा था। तो कल के ट्रेलर की आज पूरी फिल्म दिखाओ। वह उल्टी तरफ मुँह करके मेरे ऊपर चढ़ गई, पीछे खिसक कर उसने अपने गोरे नितम्बों के बीच की गहरी जगह को मेरे मुँह पर टिकाई और मेरे ऊपर लेट गई, अपना सारा बोझ स्तनों के सहारे मेरे पेट पर डालते हुए उसने अपने प्यारे प्यारे कोमल मुँह में मेरे खड़े लिंग को ले लिया।(मेरी पत्नी सेक्स में प्रयोग पसंद करती थी।)
 
रणवीर की बातों से लगता था कि उधर भी कुछ ऐसा ही था। हम दोनों ने अपनी पत्नियों को बता दिया था कि दोनों दोस्त अब बात करने लगे हैं लेकिन घर वालों को जाहिर नहीं होने देते। हमने बता दिया कि घूमने का प्लान भी चारों का है ताकि दोनों दोस्त खुलकर रह सकें और बातें कर सकें और तुम भी नई सहेली बना लो। पत्नियों को इन बातों से कोई दिक्कत नहीं हुई, वे भी मिलजुल कर रहना पसंद करती थीं, दोनों ने कहा- अच्छा है, कम्पनी मिल जाएगी घूमने को! आख़िर तीन महीने बाद वह दिन आ गया जिसका हमें इंतज़ार था। हम स्टेशन पर अपनी अपनी गाड़ियों से पहुँचे ड्राइवर के साथ! वहाँ स्टेशन के अंदर रणविजय और प्रिया हमारा इंतजार कर रहे थे, हमारे टिकट फर्स्ट एसी में बुक थे।

हम दोनों पास से एक दूसरे की बीवियों को देख रहे थे। प्रिया बिल्कुल प्रेरणा जैसी, उसका शरीर साँचे में ढला हुआ, पतली सी कमर, उसके नीचे साड़ी में छिपी (मेरी कल्पना में) मोटी जाँघें। क्या शेप था? कई हीरोइनें भी उसके सामने फीकी थीं। गोल नाभि के नीचे बँधी हुई साड़ी में वह बड़ी सेक्सी लग रही थी। और इधर गोरे रंग की तृप्ति को देखकर रणविजय का बुरा हाल था, मौका मिलते ही बोला- यार, क्या चीज़ अपने साथ लेकर घूम रहा है तू, इसको तो थोड़ा हाथ लगाओ तो लाल हो जाए।

हम अपने ट्रेन के केबिन में बैठ गए। एसी फर्स्ट के उस केबिन में केवल चार हमारी सीटें ही थीं। दोनों औरतें एक-दूसरे से बात करने लगीं। वे बेचारी हमारे शैतान दिमाग और आगे की योजनाओं से अनजान थीं, हम भी कोई जल्दी नहीं करना चाहते थे। आधे दिन और एक रात के सफर में हल्के-फुल्के हँसी-मजाक करते हुए हम अच्छे दोस्त बन गए। रास्ते में कालका स्टेशन से ट्रेन बदल कर हम सुबह मुँह अंधेरे शिमला पहुँच गए। वहाँ थ्री-स्टार होटल में हमारे अगल-बगल के कमरे बुक थे, पहुँच कर पहले नहाए, थोड़ा आराम किया और नीचे रेस्तराँ में नाश्ते की टेबल पर मिले। सफर के दौरान हमने एक-दूसरे की पत्नियों को भाभी नहीं कहकर उनके नाम से ही बुलाया था।

रणविजय- हाँ तो तृप्ति, कैसा रहा रात का सफर? ज्यादा थकान तो नहीं हुई?

तृप्ति- नहीं विजय, ऐसा कुछ नहीं हुआ l

मैं- तुम दोनों को रास्ते में ही थकान न हो जाए इसीलिए तो टिकट 1-एसी में कराया था क्योंकि थकान अच्छे कामों से होनी चाहिए।

प्रिया- हां जी, आपके अच्छे काम हमें खूब पता हैं। थोड़ा आराम देकर हमारी जान निकालने की साजिश करके लाए हैं आप हमें l

तृप्ति- हाँ वो तो है, रणवीर तो तीन महीने से बोल रहे हैं कि याद रखोगी यह टूर! देखते हैं कितना यादगार बनाते हैं ये टूर को?

दिन भर हम साथ में शिमला घूमे और शाम को होटल में आ गये। हमारी उत्सुकता घूमने से ज्यादा कुछ और में थी। घूमने के दौरान दोनों की पत्नियों के उत्तेजक कपड़ों ने हमारा ध्यान भटकाए रखा। हमारी नजर उनकी छातियों और कूल्हों पर ही रहती, लेकिन उनसे छिपा कर l शाम को हमने डिनर किया, चारों की आँखों और व्यवहार से लग रहा था कि अब सबको सेक्स की भूख है तो हम अपने अपने कमरों में चले गए। हमने हनीमून सुइट बुक कराया थाम उनमें कई साधन थे जिन पर शानदार तरीके से सेक्स किया जा सकता था। अलग अलग किस्म के सोफे और कुर्सियाँ, बड़ा सा सुंदर बाथटब जिसमें दो आदमी आराम से बैठ सकें। हमने बाथटब में नहाते हुए सेक्स किया, धो पौंछ कर बिस्तर पर लौटे तो फिर ब्लू फिल्म देख कर माहौल बनाया और जमकर सेक्स किया, चार बजे तक बिस्तर के कब्जे ढीले करते रहे।

तृप्ति- रियली यार, बहुत मजा आया, तुमने मेरी चीखें निकलवा दीं।

मैं- हाँ, बहुत मजा आया। और बताओ तुम्हारी नयी दोस्त प्रिया कैसी है। और विजय कैसा लगा तुम्हें?

तृप्ति- यार ये लोग तो बहुत अच्छे हैं। दोनों का व्यवहार बहुत अच्छा हैं न? कितने स्मार्ट भी हैं ये।

मैं- लेकिन अपन से अच्छा थोड़े ही हैं।

तृप्ति- हाँ ये बात तो है। पता है, प्रिया बता रही थी कि विजय की सिक्स पैक है। वह सुबह-सुबह दो घंटे जिम करता है।

मैं- हाँ, वो बचपन से करता है। लेकिन क्या बात है, तुम दोनों ने एक दूसरे की पतियों की बॉडी को भी डिस्कस कर लिया? क्या चल रहा है भाई? और कुछ तो डिस्कस नहीं किया ना?
 
तृप्ति- हाँ ये बात तो है। पता है, प्रिया बता रही थी कि विजय की सिक्स पैक है। वह सुबह-सुबह दो घंटे जिम करता है।

मैं- हाँ, वो बचपन से करता है। लेकिन क्या बात है, तुम दोनों ने एक दूसरे की पतियों की बॉडी को भी डिस्कस कर लिया? क्या चल रहा है भाई? और कुछ तो डिस्कस नहीं किया ना?

तृप्ति- यू डर्टी माइंड! ऐसा नहीं है। वो प्रिया उसके जिम की आदत से परेशान है। कह रही थी सुबह रोज इतना समय बर्बाद करते हैं। बिना जिम के भी तो लोग फिट रह सकते हैं। जैसे कि राजवीर l

मैं- ओह सचमुच प्रिया ने मेरे बारे मे ऐसा कहा?

तृप्ति- हाँ, लेकिन ज्यादा खुश न हो, क्योंकि मुझे अब तुम्हारे सिक्स पैक चाहिए, घर जाते ही फटाफट तैयारी शुरू कर देना।

मैं- अच्छा! मुझसे न होगी इतनी मेहनत। कोई सिक्स पैक वाला ढूंढ कर कर लो अपने मन की

तृप्ति- मर जाओगे इस गम से कि मैंने किसी और से अपने मन की कर ली। तो जाओ माफ किया।

ऐसे बातें करते हुए हमको नींद आ गई।

अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर चारों बैठे थे, हमारा प्लान शुरू करने का समय आ गया था।

मैंने पूछा- कैसी रही रात... होटल का रूम तो ठीक था ना?

विजय- हा यार, रियली, हमने तो रखे हुए सारे फर्नीचर का खूब उपयोग किया।

प्रिया शरमा गई, उसने विजय को धीरे से मारा- चुप रहो l

मैं- अरे यार प्रिया, क्यों मार रही हो उसे? इसी के लिए तो हम यहाँ आए हैं। सबको पता है। देखो, तृप्ति ने तो बाथटब से रात का पैसा वसूल करवा दिया मेरा।

चारों हँसने लगे।

रणविजय- भाई यहाँ का पॉर्न मूवी कलेक्शन भी जोरदार था। एक थ्रीसम वाली मूवी थी। मजा आ गया। उसमें यार बताऊँ क्या होता है?

प्रिया ने विजय को फिर मारा- यार हद कर रहे हो। उनके रूम में भी डीवीडी है, उनको तुम्हारी देखी सुनाना जरूरी है क्या?

रणविजय- चलो यार, आज साथ में कुछ मस्ती करते हैं।

मैं- कैसी मस्ती? मस्ती तो यार अपनी बीवियों के साथ ही अच्छी लगती है।

 
रणविजय- हाँ तो सब होंगे ना साथ में।

तृप्ति कभी मुझे कभी रणविजयको देख रही थी, कैसी मस्ती?

(हम रणविजय के कमरे में इकट्ठा हुए रात के 9 बजे थे l)

विजय- ताश खेलते हैं, चलो बताओ ताश खेलना किस किस को नहीं आता।

(हमें पता था कि ताश खेलना चारों को आता है।)

मैं- अरे विजय, तू कहीं पोकर खेलने के बारे में तो नहीं सोच रहा? जिसमें (मैं रुक गया।)

प्रिया- जिसमें क्या...??

रणविजय- जिसमें हारने वाला अपना एक कपड़ा उतारता है।

तृप्ति- सो फनी! हमें ऐसा कोई खेल नहीं खेलना! कोई सिंपल सा गेम खेलो।

रणविजय- यार कोई बच्चे थोड़े ही हैं जो नॉर्मल गेम खेलें। इट्स एक्साइटिंग एंड न्यू... तभी तो अपना टूर नया और यादगार बनेगा। वरना जो कल रात किया था वही रोज करने मे क्या मजा है।

मैं- हाँ यार, मैं भी तृप्ति से यही बोल रहा था कि कुछ यादगार करेंगे।

प्रिया- नहीं, मुझे ऐसा यादगार नहीं चाहिए।

तृप्ति- चलो स्ट्रेट का ट्राई करते हैं।

प्रिया- क्या तृप्ति, तुम भी इनके साथ?

तृप्ति- मैं समझती हूँ इनका तरीका... ये हमें नंगी करके मजे लेना चाहते हैं। लेकिन मेरा चैलेंज है कि इनकी बिल्ली इनको ही म्याऊँ बुलवा दूँगी।

प्रिया-लेकिन हार गये तो?

तृप्ति- तो अपने हज़्बेंड ही हैं यार, इनको मना लेंगे अपने तरीके से, कि हमें कपड़े न खोलने पड़ें।

रणविजय- अच्छा! ये कोई बात नहीं होती। रूल इज रूल।

मैं- अरे ठीक है। एक बार शुरू तो करते हैं।

(प्रिया कुनमुनाती रह गई।)
 
पत्ते बँट गए, रणविजय हार गया, उसने अपनी टीशर्ट उतारी, अंदर बनियान नहीं थी तो ऊपर से नंगा हो गया। सचमुच उसकी बॉडी सिक्स पैक वाली थी। मैंने तारीफ की, तृप्ति आँखें फाड़े उसके पैक देख रही थी।

दूसरी बार प्रिया हारी, उसने टॉप खोलने से मना कर दिया। काफ़ी समझाने के बाद बहुत शर्माते हुए उसने अपना टॉप खोला।

ओ माय गॉड!!!! उसको काली ब्रा में देखकर मेरे दिमाग़ ठिकाने नहीं रहा, क्या शेप था... शानदार उभार... बड़े बड़े तीखे समोसों के साइज के... नजरें नहीं हटा पा रहा था। (लेकिन दूसरों का ख्याल करके लगातार देखने से बच रहा था।)

उसके इस रूप से कमरे का माहौल बदलने लगा था।

इस बार तृप्ति हारी, पहले से प्रिया के ब्रा में होने से वह ज्यादा देर तक नखरे नहीं कर पाई। उसके कसे हुए गोल स्तन अपने भार से बस जरा से ही लटके पूरे घमंड से सीने पर विराजमान थे, देख कर विजय की आँखें नशीली हो गईं। (अब सबका ध्यान खेल पर कम, एक दूसरे के शरीर पर अधिक था।)

मैं लगातार दो बार हारा और मुझे अंडरवियर में आना पड़ा, दोनों स्त्रियाँ मेरे अंडरवियर में से तने हुए लिंग को देखकर हँसने लगीं। और फिर विजय हार गया, अब हम दोनों अंडरवियर में थे, दोनों बीवियाँ भी ब्रा पेंटी में आ चुकी थीं।

माहौल बदल चुका था, चारों अंदर ही अंदर उत्तेजित थे लेकिन एक-दूसरे की शर्म की वजह से भावनाएँ बाहर नहीं आ रही थीं। रणविजय और मैंने हँसी-मज़ाक करते हुए माहौल ऐसा बनाए रखा कि बीवियाँ खेलती रहें।

अगली बार प्रिया हारी!

इस अवसर का इंतजार मैं कब से कर रहा था।

उसे अपनी ब्रा उतारनी थी लेकिन उसने मना कर दिया, काफी मिन्नत के बावजूद नहीं मानी। फिर भी, मुझे इस बात की तसल्ली थी कि तृप्ति ने हमारी प्रिया की ब्रा उतरवाने की कोशिश का विरोध नहीं किया था, मैं डर रहा था इस मुद्दे पर दोनों औरतें एक न हो जाएँ। हमने खुशी खुशी खेल बंद कर दिया और अपने कमरे में आ गये।

बीवियाँ हालाँकि अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार थीं लेकिन खेल के माहौल में दूसरे मर्द के गुप्तांग का नजारा उनकी आँखों और दिमाग़ में चढ़ गया। यही हालत हमारी भी थी, उनकी ब्रा में ढकी छातियों और अंडरवियर पहनी चिकनी गोरी टाँगों का दृश्य दिमाग़ से हट नहीं पा रहा था। दोनों स्त्रियों की आज जोरदार कुटाई होने वाली थी। शायद उनके मन में भी ऐसा ही था। आज का सेक्स का माहौल अलग था। तृप्ति इतनी जल्दी जल्दी कभी स्खलित नहीं हुई थी, वह काफ़ी गर्म थी, हमने हर तरह से सेक्स किया। हमारी बेस्ट पोज़िशन 69 में उसने कभी मेरा वीर्य पिया नहीं था मगर आज उसने मुझे अपने मुँह में ही झड़ने दिया था और फिर वीर्य को गटक लिया था। आज मुझे पता चला था कि ओरल सेक्स का क्या मजा है, अभी तक यह मजा केवल तृप्ति मुझसे लेती रही थी।

##

 
इस आनंदमयी रात के बाद सुबह रणविजय कह रहा था- भाई, एक-दूसरे के पार्टनर को सिर्फ़ आधा नंगा देखा, उसी में ये हाल है कि मुझे कल सुहागरात से ज्यादा मजा आया। जब पूरा देखेंगे तो क्या होगा। प्रिया ने भी ऐसा ही कहा।

मैं- सच यार, कल की रात गजब थी। ये रूप की देवियाँ हमारे नसीबों में कहाँ से आ गईं। और अब हम इन दोनों का फायदा नहीं उठा पाए तो सबसे बड़े गधे हैं। जब इतना हो गया है तो आगे भी हो जाएगा। माना कि बहुत मुश्किल होगा दोनों को मनाना, पर होके रहेगा भाई, चाहे जबरदस्ती ही क्यों न करना पड़े।

रणविजय- मेरे तो कल तृप्ति के बूब्स के शेप और गोरी चमड़ी को देखकर हाल ही बिगड़ गए थे। मैंने तो ख्यालों में तृप्ति का ही चोदन किया। पूरी रात प्रिया बोलती रही कि इतने जंगली क्यों हो रहे हो?

ब्रेकफास्ट टेबल पर दोनों बीवियाँ आईं शर्माती हुईं... उनकी शर्मीली संजना देखकर दिल रीझ गया। मैंने और विजय ने इधर-उधर की बातें करके माहौल को नॉर्मल बनाए रखा कि कहाँ घूमेंगे, क्या करेंगे वगैरह। दिनभर साथ घूमने के दौरान भी हमने मजाक में कोई ऐसी बात नहीं कही कि वे संकुचित हो जाएँ। औरतें नाजुक जीव होती हैं ना! कल रात आधी नंगी देखने के बाद आज वे कपड़ों में कुछ और ही लग रही थीं, बहुत ही खूबसूरत और नई नई। हमें ऐसा महसूस हो रहा था कि आज की रात ही वह रात होगी जिसके लिए हम इतने दिनों से लगे हुए हैं। हम भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और ठाने भी हुए थे कि आज हमें जैसे भी हो, बीवियाँ बदलकर भोग ही लेना है।

रात को डिनर के बाद दोनों कपल अपने-अपने कमरे में आ गये। योजना के मुताबिक अपनी बीवियों से कहा- यार, कल कितना मजा आ रहा था, आज बोर हो रहे हैं। कल सेक्स में भी कितना मजा आया गेम खेलने के बाद... है ना?

तृप्ति- सीधे बोलो ना आज भी गेम खेलने हैं। खूब समझती हूँ मैं तुम्हारे शैतान दिमाग को। तुम्हें प्रिया को फिर से वैसे ही देखना है।

मैंने प्यार से तृप्ति को समझाया- डार्लिंग, तो क्या हो गया। अब टीवी चलाकर टीवी में बिकनी में गर्ल्स देखूँ, ब्लू फिल्म देखूँ तो कोई बात नहीं, लाइव देखा तो क्या हो गया?

तृप्ति- यार ये ग़लत है, मुझे विजय ऐसे देख रहा है और तुम प्रिया को और प्रिया तुम्हें... एकदम गलत बात!

मैं- हाँ, वो बात ठीक है लेकिन जरा इसको साइड में रखकर सोचो। मजा आया था या नहीं? सच बताओ। और यहाँ हम मजे करने ही तो आए हैं यार!

तृप्ति- आए हैं लेकिन ऐसे नहीं यार!
 
तृप्ति- तो अपने हज़्बेंड ही हैं यार, इनको मना लेंगे अपने तरीके से, कि हमें कपड़े न खोलने पड़ें।

रणविजय- अच्छा! ये कोई बात नहीं होती। रूल इज रूल।

मैं- अरे ठीक है। एक बार शुरू तो करते हैं।

(प्रिया कुनमुनाती रह गई।)

पत्ते बँट गए, रणविजय हार गया, उसने अपनी टीशर्ट उतारी, अंदर बनियान नहीं थी तो ऊपर से नंगा हो गया। सचमुच उसकी बॉडी सिक्स पैक वाली थी। मैंने तारीफ की, तृप्ति आँखें फाड़े उसके पैक देख रही थी।

दूसरी बार प्रिया हारी, उसने टॉप खोलने से मना कर दिया। काफ़ी समझाने के बाद बहुत शर्माते हुए उसने अपना टॉप खोला।

ओ माय गॉड!!!! उसको काली ब्रा में देखकर मेरे दिमाग़ ठिकाने नहीं रहा, क्या शेप था... शानदार उभार... बड़े बड़े तीखे समोसों के साइज के... नजरें नहीं हटा पा रहा था। (लेकिन दूसरों का ख्याल करके लगातार देखने से बच रहा था।)

उसके इस रूप से कमरे का माहौल बदलने लगा था।

इस बार तृप्ति हारी, पहले से प्रिया के ब्रा में होने से वह ज्यादा देर तक नखरे नहीं कर पाई। उसके कसे हुए गोल स्तन अपने भार से बस जरा से ही लटके पूरे घमंड से सीने पर विराजमान थे, देख कर विजय की आँखें नशीली हो गईं। (अब सबका ध्यान खेल पर कम, एक दूसरे के शरीर पर अधिक था।)

मैं लगातार दो बार हारा और मुझे अंडरवियर में आना पड़ा, दोनों स्त्रियाँ मेरे अंडरवियर में से तने हुए लिंग को देखकर हँसने लगीं। और फिर विजय हार गया, अब हम दोनों अंडरवियर में थे, दोनों बीवियाँ भी ब्रा पेंटी में आ चुकी थीं।

माहौल बदल चुका था, चारों अंदर ही अंदर उत्तेजित थे लेकिन एक-दूसरे की शर्म की वजह से भावनाएँ बाहर नहीं आ रही थीं। रणविजय और मैंने हँसी-मज़ाक करते हुए माहौल ऐसा बनाए रखा कि बीवियाँ खेलती रहें।

अगली बार प्रिया हारी!

इस अवसर का इंतजार मैं कब से कर रहा था।

उसे अपनी ब्रा उतारनी थी लेकिन उसने मना कर दिया, काफी मिन्नत के बावजूद नहीं मानी। फिर भी, मुझे इस बात की तसल्ली थी कि तृप्ति ने हमारी प्रिया की ब्रा उतरवाने की कोशिश का विरोध नहीं किया था, मैं डर रहा था इस मुद्दे पर दोनों औरतें एक न हो जाएँ। हमने खुशी खुशी खेल बंद कर दिया और अपने कमरे में आ गये।

बीवियाँ हालाँकि अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार थीं लेकिन खेल के माहौल में दूसरे मर्द के गुप्तांग का नजारा उनकी आँखों और दिमाग़ में चढ़ गया। यही हालत हमारी भी थी, उनकी ब्रा में ढकी छातियों और अंडरवियर पहनी चिकनी गोरी टाँगों का दृश्य दिमाग़ से हट नहीं पा रहा था। दोनों स्त्रियों की आज जोरदार कुटाई होने वाली थी। शायद उनके मन में भी ऐसा ही था। आज का सेक्स का माहौल अलग था। तृप्ति इतनी जल्दी जल्दी कभी स्खलित नहीं हुई थी, वह काफ़ी गर्म थी, हमने हर तरह से सेक्स किया। हमारी बेस्ट पोज़िशन 69 में उसने कभी मेरा वीर्य पिया नहीं था मगर आज उसने मुझे अपने मुँह में ही झड़ने दिया था और फिर वीर्य को गटक लिया था। आज मुझे पता चला था कि ओरल सेक्स का क्या मजा है, अभी तक यह मजा केवल तृप्ति मुझसे लेती रही थी।

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