hotaks444
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उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.
कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.
कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.