Hindi Sex Stories By raj sharma - Page 16 - SexBaba
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उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.

कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.
 
आधी से अधिक रात्री बीत चुकी थी. ओरात की साँसे उखाड़'ने लगी थी. तब कोका ने बहुत ही शान्ती के साथ उस'की योनि मैं अप'ना लिंग प्रवेश किया. वह ताबाद तोड़ चुदाई के मूड मैं कतई न था. वह लंड को घूमा फिराकार उस'की चूत के अंदर की हर जगह को छ्छू रहा था, उस'की चूत की हर दीवार का घर्सन कर रहा था. जब भी ओरात अप'नी चूत से लंड को कस के निचोड़ना चाह'ती. कोका लंड बाहर निकाल लेता और आसान बदल लेता. उस रात कोका ने 64 बार आसान बद'ले जो काम सुत्र मैं वर्णित हैं. उस'ने हर आसान से उस'की शान्ती पूर्वक चुदाई की. जेसे ही भोर होने को हुआ वह ओरात पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी. अब उस मैं हिल'ने डुल'ने की भी ताक़त नहीं बची थी. बहुत ही धीमी आवाज़ मैं वह कह रही थी,
"हे पंडित मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया. और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए. पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण. फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई. अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ब्राह्मण का सब उप'हास उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा. इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान देते हुए कहा,
"इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया. पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध होगा."
तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के समक्ष आया.

एंड

दोस्तों आप सब की जान-कारी के लिए मैं यहाँ कुछ लिख रहा हूँ
प्राचीन साहित्य में संस्कृत साहित्य में एक भारी श्रृंखला उपलब्ध है जिसमें अनेक गूढ़ विषयों पर गहरा विचार किया गया है। अनेक रसिक विद्वानों ने उनका विश्लेषण कर जीवन को सुखमय बना दिया है। इस समय प्रमुख रूप से ये ग्रंथ ही मिल पाए हैं:
1. नंदिकेश्वर द्वारा रचित कामशास्त्र- यह अत्यन्त प्राचीन अनुपलब्ध ग्रंथ है। इसकी रचना उपनिषद् काल में हुई मानी जाती है।
2. औदालिक-श्वेतकेतु द्वारा रचित ‘‘कामशास्त्र’’ यह ग्रंथ भी उपनिषद कालीन है और अनुपलब्ध है।
3. पांचाल देश के महर्षि वाम्रव्य द्वारा रचित कामशास्त्र।
4. श्रीधारायण द्वारा रचित कामशास्त्र।
5. श्री स्वर्णनाथ नामक विद्वान का कामशास्त्र।
6. श्री नामक विद्वान का कामशास्त्र।
7. श्री गोर्दीय द्वारा रचित कामशास्त्र।
8. श्री गोणिकापुत्र द्वारा रचित कामशास्त्र।
9. श्री दत्तक द्वारा रचित कामशास्त्र।
10. श्री कुचुमार द्वारा रचित कामशास्त्र।
11. वात्स्यायन द्वारा रचित कामशास्त्र की विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है एवं यह प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।
12. कंदर्प चूड़ामणि नामक ग्रंथ में वात्स्यायन के कामसूत्र को आया छंद में संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
13. रति रहस्य।
14. नगर-सर्वस्व।
15. अनंग रंग-रतिशास्त्र।
16. श्रृंगार दीपिका- यह ग्रन्थ श्री हरिहर पंडित द्वारा लिखा गया है परन्तु यह ग्रन्थ अधूरा ही प्राप्त है।
17. रतिशास्त्र- यह ग्रन्थ भी श्री नागार्जुन द्वारा रचित है।
18. अनंग तिलक- इस ग्रंथ के रचनाकार का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। यग ग्रंथ भी अपूर्ण है। लंदन, बर्लिन में इसकी प्रतियाँ सुरक्षित हैं।
19. अनंग दीपिका- इस ग्रंथ की स्थिति भी अनंग तिलक के समान ही है। इसके लेखक का भी पता नहीं चलता। यह ग्रंथ भी अधूरा है।
20. अज्ञात रचनाकार का ग्रंथ- अनंग शेखर’’ भी अपूर्ण मिला है।
इनके अलावा अन्य ग्रन्थ हैं-
21. कुचिमार मंत्र
22. कामकलावाद तंत्र
23. काम प्रकाश
24. काम प्रदीप
25. काम कला विधि
26. काम प्रबोध
27. कामरत्न
28. कामसार
29. काम कौतुक
30. काम मंजरी
31. मदन संजीवनी
32. मदनार्णव
33. मनोदय
34. रति मंजरी
35. रति सर्वस्व
36. रतिसार
37. वाजीकरण तंत्र
38. वैश्यांगना कल्प
39. वैश्यांगना वृत्ति,
40. ऋंगार भेद प्रदीप
41. श्रृंगार पद्धति
42. श्रृंगार सारिणी
43. समर काम दीपिका
44. स्त्री विलास
45. सुरतोत्सव
46. स्तरतत्व प्रकाश
47. स्तर दीपिका
48. रतिरत्न प्रदीपिका
49. कामशतकम्
50. पच्चशायक।
उक्त सभी ग्रंथ बड़े ही विचित्र एवं काम संबंधी ज्ञान से ओतप्रोत हैं। उदाहरण के तौर पर हम प्रारम्भ में कुचिमार तंत्र नामक ग्रंथ की चर्चा करेंगे। यह ग्रंथ ‘‘कुचोपनिषद्’’ और ‘‘सुरतिकार तंत्र’’ के नाम से भी प्रकाशित हो चुका था। प्राचीन ग्रंथकार ने इन्हें ग्यारह प्रकरणों में विभाजित किया है। इन प्रकरणों में औषधियों का विशद वर्णन किया गया है। पहला प्रकरण है ध्वज वृद्धि। इनमें पुरुष की इन्द्रियों की कमजोरी दूर करने के लिए अनेक प्रयोग दिये गये हैं जिनसे इन्द्रियजन्य दोष दूर होते हैं तथा लिंगल पुष्ट होकर विकासरत होता है।
दूसरा प्रकरण लेप महिमा का है इसमें स्त्री-पुरुष में परस्पर आकर्षण हेतु विभिन्न प्रकार के औषधीय लेप बताए गए हैं।
तीसरे प्रकरण में स्त्री के स्वरूप व स्वभाव के अनुरूप रति समय का निर्धारण किया गया है।
चौथे प्रकरण में आयुष्य प्रयोगों का वर्णन है जिसमें अधिक आयु के जराग्रस्त पुरुष पुन: यौवन प्राप्त करके अपनी क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं।
पंचम संस्करण में ‘स्त्री द्रावण व स्तम्भन’ के अचूक उपाय बताए गए हैं।
छठे प्रकरण में प्रौढ़ महिलाओं के शिथिल यौनांगों के पूर्व स्थिति में लाने के प्रयोग बताए गए हैं।
सातवें प्रकरण में संतति नियमन के उपाय बताए गए हैं। यह उल्लेखनीय है कि प्राचीन युग के इस ग्रंथ में बर्थ कंट्रोल से सरल प्रयोग बताए गए हैं।
आठवाँ प्रकरण केश नाश से संबंधित है इसमें यौनागों के अवांछित केशो को स्थायी रूप से समाप्त करने के प्रयोग दिये गये हैं।
नवाँ प्रकरण गर्भाधान से संबंधित है। इसमें नि:संतान दम्पत्ति हेतु संतान प्राप्ति के सरल प्रयोग हैं।
दसमें प्रकरण में पुत्र प्राप्ति हेतु मंत्र व पूजा के प्रयोग दिये हैं जिनके प्रयोग से जो संतान हो वह पुत्र ही हो। जिन्हें बार-बार कन्याएँ उत्पन्न होती हों उनके लिये नाल परिवर्तन हेतु इस प्रकरण में अनेक प्रयोग दिये हैं।
अंतिम ग्यारहवें पूजन विधि नामक प्रकरण में स्त्री-पुरुष के गुप्त रोगों की चिकित्सा के उपाय बताए गये हैं।
इसी प्रकार हिन्दी में ‘‘कोकशास्त्र’’ नामक ग्रंथ भी प्रचलित है। इस ग्रंथ की रचना कामशास्त्र के एक विद्वान पंडित ‘कोका’ ने की थी।

प्राचीन काल में (समझा जाता है कि लगभग 7वीं सदी में) वैश्वदत्त नामक राजा के दरबार में पंडित तेजोक के पौत्र और गद्य विद्याधर पंडित पारभिद्र के सुपुत्र ‘कोक’ का बड़ा नाम था। कोक अपने पिता के समान ही सर्वशास्त्र निष्णात थे। ये कहाँ के निवासी थे इसके बारे में अनेक मत हैं। कुछ इन्हें उज्जयिनी का निवासी बताते हैं तो कुछ की मान्यता ये है कि पंडित ‘‘कोके’’ काश्मीर के थे किन्तु रति रहस्य नामक उसके ग्रंथ के तृतीय अध्याय के अंत में लिखे श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि वे पाटल के रहने वाले थे।

कोक के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से एक सर्वप्रमुख है। इस कथा का उल्लेख एक जर्मन प्रोफेसर रिमड ने भी अपनी पुस्तक में किया था। कथा इस प्रकार है-
‘पंडित ‘कोक’ राजा भैरव सेन के राज दरबार के रत्नों में से एक थे। भैरव सेन को अपने राज दरबार के रत्नों में शामिल किया था। एक दिन हस्तिनी जाति की कोई स्त्री उनके दरबार में नग्नावस्था में आ गई। इससे राजा बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने उस स्त्री को फटकारा कि उसे दरबार में नग्न होकर आने का साहस कैसे हुआ था ? इस पर उस स्त्री ने उत्तर दिया कि उसकी कामेच्छा को उस दिन तक कोई भी शांत नहीं कर पाया था। साथ ही उसने दरबार में उसकी कामपीड़ा को शांत करने हेतु किसी को भी आमंत्रित किया।

स्त्री की बात सुनकर राजा ने दरबारियों को उस स्त्री के दर्प को चूर करने और उसकी कामग्नि को शांत करने की आज्ञा दी। परन्तु कोई भी इसके लिए तैयार न हो सका। तब राजा ने सभा का अपमान होते देख उसे अपने घर ले गये और उन्होंने उसे इस प्रकार तृप्त किया कि वह उनकी दासी बनी गई। तब राजा के कहने से लोगों के उपकार के लिए अर्थात् लोक कल्याणार्थ कोका पंडित ने ‘रति रहस्य’ नामक एक ग्रंथ की रचना की।
 
ज़ोर का झटका धीरे से

मैं जब कॉलेज मे पढ़ती थी, तो हमारा सात लड़कियों का ग्रूप था. लेकिन उन सब मे पल्लवी मेरी खास सहेली थी. वो एक छ्होटे गाओं से आई थी. इस शहर मे पेयिंग गेस्ट बन के रहती थी. ऊम्र के हिसाब से हमको भी रोमॅन्स और सेक्स की बातें अच्च्ची लगती थी. हम लड़कों को देखते थे थे और उनके बारे मे बात किया करते थे. दिन मस्ती से गुज़र रहे थे. लेकिन हमेशा समय एक सा नही रहता.

जब हमारा कॉलेज का पहला साल पूरा हो रहा था, तो पल्लवी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया. वैसे भी वो लोग ग़रीब थे. अब तो कॉलेज की पढ़ाई करना तो दूर रहा, घर चलना मुश्किल हो गया. उसके छ्होटे भाई बहन भी थे. मैं भी सहेली होने के नाते चिंतित थी, पर उसे पैसों की मदद करनेकी स्थिति हमारी ही नही थी. मुझे लगा, हमारा साथ च्छुत जाएगा. वो पढ़ नही पाएगी. लेकिन भाग्या को कुछ और मंज़ूर था. उसकी परिस्थिति से वाकिफ़ किसी दलाल ने उसे संपर्क किया और वो कॉल गर्ल बन गयी. उसकी मा को पता था. पर वो भी क्या करती ?

वो दिन मे कॉलेज अटेंड करती और रात को अपना काम करती. फिर तो वो अपने तरह तरह के अनुभव हमे सुनती थी. शुरू मे उसके दिल मे ग़लत काम का डंख रहता था, पर बाद मे वो सब निकल गया. उल्टा उसे मज़ा आने लगा. वो इतने रोचक ढंग से अपने अनुभव मुझे सुनती की मुझे भी उसकी तरह कॉल गर्ल बनने का जी कर जाता था. पर मैं ऐसा ना कर पाई. मुझे लगता था मैं जीवन की उन खुशियों को मिस कर रही हूँ, जिसे पल्लवी पा रही है. इसी तरह हमने पढ़ाई पूरी कर दी. सब बिखर गये. पल्लवी मुंबई चली गयी. वहाँ ज़्यादा स्कोप था उसके लिए.

मेरी मँगनी हो गयी. वो दूसरे गाओं से थे. तो मँगनी के बाद मुलाकात कम हुई. हां, हम लव लेटर और मैल से संपर्क मे थे.

शादी तय हो जाती है तो लड़कियों को सहेलियाँ ज़्यादा याद आती है. मुझे भी पल्लवी याद आई. अब कॉलेज को ही एक अरसा हो गया था. मैने मुंबई आने का फ़ैसला किया और पिताजी से रज़ा ले कर निकल पड़ी.

लंबे समय के बाद मैं आज उसे मिल रही थी. दोनो ने बहोट बाते की. दिनभर हम बात करते थे. रात होते वो अपने धंधे पर चली जाती थी. उसके चार एजेंट थे, जो उसके लिए बुकिंग किया करते थे. अब तो वो अलग अपना फ्लॅट ले कर रहती थी.

एक शाम हम बातें कर रहे थे की एक फोन आया. फोन पर बात कर के वो चिंतित हो गयी.

मैने पुचछा ; “क्या हुआ ? कोई समस्या ?”

उसके चेहरे पर उलज़ान नज़र आई. फिर उसने कहा ; “हां, समस्या तो है. लेकिन तू कुछ नही कर सकती.”

मैने कहा ; “फिर भी, बता तो सही.”

वो बोली ; “मेरा आज रात का होटेल गौरव का बुकिंग था. उसका 5000 नक्की हुआ है. लेकिन अभी जो फोन आया, वो दूसरे एजेंट का था. वो फुल नाइट, तीन आदमी का ऑफर लाया है.”

मैने कहा ; “तू अगर तीन आदमी पूरी रात नही सह सकती तो ना कर दे उसे. इस मे क्या उलज़ान है ?”

वो मुझ पर बिगड़ी ; “अर्रे तू कुछ समज़ाती नही है. पैसे मिलते हो तो मैं तीन क्या पाँच को भी ज़ेल लूँ. और यहाँ तो 25000 मिल रहे है.”

अब मुझे उलझन हुई, मैने कहा ; “तो स्वीकार कर ले.”

वो मूह नाचते मेरी नकल करते बोली ; “वा वा, स्वीकार कर ले, अच्च्ची सलाह दी. फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?”

अब मैं बात समझी. इनके धंधे मे हां करनेके बाद ना नही कर सकते. नही तो वो एजेंट साथ छ्चोड़ देगा. पल्लवी को यह 25000 चाहिए थे, लेकिन 5000 वाला काम ले कर फाँसी थी.

पर उसके आखरी सवाल - “फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?” – से मैं चौंकी ? उसने तो गुस्से मे ही कह दिया था. मगर मुझे कॉलेज के वो दिन याद आ गये जब उसके रोचक अनुभव सुन के मेरा भी कॉल गर्ल बनाने का जी करता था. आज मौका पाते ही वो पुरानी इच्च्छा प्रबल हो उठी, और मैने कह दिया ; “ हां, मैं जौंगी वहाँ, बस?”

वो आश्चर्या से मेरी और देखती ही रह गयी. उसकी नज़र मे सवाल था. बिना कुछ कहे वो मेरी और प्रश्ना भारी निगाह से देखती रही. मैं क्या जवाब दूं ? खुद मैं भी हैरान थी. वो पुरानी इच्च्छा का बीज इस तरह बड़ा हो के मेरे सामने आएगा, मैने कभी सोचा भी ना था. लेकिन वो भी मेरी अंतरंग सहेली थी. मेरी राग राग से वाकिफ़ थी. मेरे चेहरे पर बदलते रंगो को देख कर बोली ; “ ठीक है, पर बाद मे पचहताएगी तो नही ?” मैने नकार मे सिर हिलाया.

फिर तो उसने मुझे सारी सलाह दी. समय होते उसने एजेंट से कन्फर्मेशन भिजवा दिया की हू समय से पहुँच रही है. मुझे पल्लवी बनकर ही जाना था. ग्राहक नया था, तो वो उसे पहचानता नही था. पल्लवी मुझे होटेल पर छ्चोड़ गयी.

मैं लिफ्ट से रूम पर पहुँची. गाभहारते हुए लॉबी पसार की. रूम खोजा और डोर बेल बजाने जा रही थी की देखा की दरवाज़ा खुला है. मैं हल्के से अंदर दाखिल हुई और दरवाज़ा बाँध कर लिया. अंदर गयी, तो कोई नज़र नही आया… फिर ख़याल आया, बातरूम से आवाज़ आ रहा है, कोई नहा रहा है. मैं सोफा पर बैठी, इंतेज़ार करने के लिए. समय पसार करने के लिए कोई मॅगज़ीन धहोँढने के लिए नज़र दौड़ाई तो सेंटर टेबल पर पड़ी चित्ति पर ध्यान गया, लिखा था , “पल्लवी, ई गॉट कन्फर्मेशन फ्रॉम एजेंट तट योउ अरे रीचिंग इन टाइम. अनड्रेस युवरसेल्फ आंड जाय्न मे इन बात. “ मैं स्तब्ध हो गयी. मैं पल्लवी की जगह आ तो गयी, लेकिन वास्तविकता अब मेरे सामने थी. ये जनाब तो अंदर मेरा इंतेज़ार कर रहे है. मैने हिम्मत बटोरी, और अपने सारे कपड़े निकल दिए. पूरी नंगी हो कर धीरे से मैं ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला.

वो नहा रहा था. शवर बाँध था, पर वो उसके नीचे खड़ा था. उसकी पीठ मेरी और थी. पूरे बदन पर साबुन लगा चक्का था. मूह पर भी साबुन था. वो मुझे देख नही पा रहा था. मैने राहत की साँस ली. मैं नज़दीक गयी और उसको पिच्चे से ही लिपट गयी. मेरे बूब्स उसकी पीठ पर टच हुए. दोनो को मानो करेंट लगा. मैने अपने हाथ उसकी च्चती पर फिराए, और उसकी पीठ पर अपने गाल घिसने लगी. (किस करने जैसी तो बिना साबुन की कोई जगह ही नही बची थी) उसने भी अपने हाथ पिच्चे फैलाए और मेरी जाँघो पर फिरने लगा. कोई कुछ बोल नही रहा था. मान-वुमन मॅजिक अपना कम कर रहा था. च्चती पार्स मैने हाथ नीचे सरकए. इन सारे वक्त मेरे बूब्स तो उसकी पीठ पर ही चिपके हुए थे. मेरे हाथ नीचे सरकते उसके कॉक तक पहुँच गये. मैं पहली बार, किसी मर्द के इस भाग को छ्छू रही थी. कॉक कड़क होने लगा. मैं उसे सहलाती रही, दबाती रही. वो “श, श” करने लगा. मैं अब तक जो पीठ पर बूब्स चिपका के गाल घिस रही थी, धीरे से नीचे की और सर्की. मैं बूब्स उसकी पीठ पर घिसते हुए नीचे जा रही थी. उसके हिप्स को अपने बूब्स से दबाती हुई मैं और नीचे उतार गयी. उसके हिप्स पर गाल घिसे. फिर मैं वहाँ से आयेज की और आई और उसका लंड मूह मे लिया. उसके हाथ मेरे सिर पर आ गये थे. मैं ने उसे पानी से साफ करके चूसना और चारों औरसे किस करना शुरू किया. साथ मे मैं उसके बॉल्स से भी खेल रही थी. दोनो के बादन मे आग लग चुकी थी. जब जी भरा तो मैं उपर उठी. अपने बूब्स उसके आयेज के बदन पर घिसती हुई मैं उपर उठी. मैने उसके होठ पर किस करना चाहा. पर वहाँ भी साबुन था. तो मैने शवर चालू किया. फुल फोर्स मे पानी बहना शुरू हुआ. मूह साफ हो गया, उसने आँखे खोली और हम दोनो चौंके……….दोनो के मूह से एक साथ एक ही शब्द निकला, “ तुम ???????? ” वो मेरा मंगेतर था !!!!!!!!!!!!!

दोनो के चेहरे पर एक साथ तरह तरह के भाव ज़लाक रहे थे ; शॉक, डिसबिलीफ, अंगेर, रिपेंटेन्स…..आंड वॉट नोट ?
 
छोटे लंड से गुज़ारा 

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी कुछ इस तरह है
यह कहानी उस समय की है जब मेरी नयी नयी शादी हुई थी. गाओं में पति पत्नी को मिलने के लिए मौका ढूँढना पड़ता है. रात में या तो पति चोरी से पत्नी की चारपाई पर आ जाता हे वारना कोई और जगह डूंड कर मिलन होता है. औरतों के लिए अलग वा मर्दों के लिए अलग सोने की जगह होती हे. इसी चोरी च्छूपे मिलने के कारण ही यह घटना घटी जो मेने अपनी आँखों से देखी कि कैसे छ्होटे भाई ने अपनी बड़ी बेहन को चोदा.मेरी बड़ी ननंद की शादी को चार साल हो चुके थे लेकिन उसका कोई बचा नहीं हुया था. हमारे गाओं के निकट एक मंदिर की बड़ी मान्यता थी के वॅन्हा जो भी मन्नत माँगता है पूरी होती है. मेरी ननंद भी इसीलिए हमारे यहाँ आई थी के वो भी मन्नत माँगे और मा बन सके. उस दिन मंदिर से हो कर लोटने के बाद वो और मैं एक कमरे मे बातें करते हुए सो गये थे लेकिन जिस चारपाई पर में सोती थी उस पर मेरी ननंद सो गयी और मैं उस के साथ वाली चारपाई पर सो गयी.रात को मेरा पति मेरे पास आया तो वो उस चारपाई पर जिस पर उसकी बेहन सोई थी चला गया, यह समझ कर के मैं उस पर सोई हूँ. मैं तो उस समय जाग रही थी लेकिन मेरी ननंद ( मेरे पति की बड़ी बेहन) सो चुकी थी. मैं चाहते हुए भी कुच्छ बोल ना पाई कि कही शोर मच जाए गा और यह बात खुल जाएगी के हम दोनो एक दिन भी मिले बिना नहीं रह सकते. मेरी चुप्पी से जो हो गया उस का मुझे अब भी पछतावा है लेकिन मेने यह बात अब तक ना तो अपने पति से कही है ना ही उस की बेहन से बताई है. भगवान की मर्ज़ी समझ कर चुप कर गयी और चुप ही हूँ और रहने की कोशिश कर रही हूँ.मैं चुप चाप देखती रही बड़ी बेहन को अपने छ्होटे भाई से चुदते हुए और कुच्छ ना कर सकी. मेरे पति ने भी मुझे समझ कर अपनी बड़ी बेहन को चोदा और उस की बड़ी बेहन ने अपना पति समझ कर अपने भाई से चूत मरवाई. जिस तरह हम पति पत्नी मज़ा लेते थे उसी तरह वो भाई बेहन चुदाई का मज़ा लेते रहे और में चुप चाप देखती रही.सुबह मेरी ननंद ने मुझे कहा' जानती है रात को सपने में तेरे नंदोई मेरे पास आए थे और आज रात को जितना मज़ा आया उतना पहले कभी नन्ही आया. आज तो उनका लंड भी काफ़ी लंबा और मोटा लग रहा था. लगता है यह सब बाबा ( मंदिर वाले) की कृपा है. मुझे लगता है के अब मेरे बच्चा ज़रूर हो जाएगा.'मेने कहा 'सब उपर वाले की कृपा है, मुझे भी लगता है के अब तेरे बच्चा जलदी ही हो जाए गा'वो बोली ' जलदी नही 9 महीने बाद'मैने कहा ' हाँ जल्दी से मेरा मतलब भी 9 महीने से ही है. यह तो में इसलिए कह रही हूँ के अब पक्का है के तू मा बन जाएगी'' मेरे बच्चा होने के बाद मैं मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आउन्गि 'मैं सोच रही थी के प्रसाद तो तू चढ़ाने आए गी मंदिर में लेकिन बच्चा किस की कृपा से हुया है यह तो तू जानती ही नही और जब तक में बताउन्गि नहीं ना तुझे पता लगे गा ना तेरे पति को ना तेरे भाई को.अगले दिन वो अपने ससुराल चली गयी. रात को मेरा पति मेरे पास आया और मेरे से प्यार करने लगा लेकिन मेरा बार बार ध्यान उस की बेहन की ओर चला जाता था जो अंजाने में अपने छ्होटे भाई से चुद कर भी बहुत खुश थी.मेरे पति ने कहा 'क्या बात है आज तू कहाँ खोई है प्यार में मज़ा नही आ रहा क्या.'मेने जवाब दिया ' मज़ा तो बहुत आ रहा है लेकिन में सोच रहीं हूँ के यह चोरी चोरी प्यार कब तक करते रहेंगे . कोई ऐसा रास्ता निकालो के हमे चोरी चोरी ना मिलना पड़े.'' क्या बात है आज तुझे चोरी चोरी मिलने में मज़ा नहीं आ रहा जब के पिच्छाले 6 महीने से हम ऐसे ही मिल रहें हैं.'मैं चुप हो गयी और उसका लंड पकड़ कर देखने लगी के रात यह दूसरी चूत में गया था कुछ फरक पड़ा है या वैसा ही है. मेरे पति ने मुझे लंड को मुँह में लेने के लिए कहा तो मैं सोचने लगी के दूसरी चूत मे गया हुया लंड अपने मुँह में लूँ या नही. मेरा पति बोला क्या बात है आज तू कही और खोई हुई है कोई बात नही अगर तेरा दिल मुँह में लेने को नही करता तो कोई बात नही आज तेरी चूत में डाल कर ही इस की तसल्ली कर देता हूँ और उसने अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और चुदाई का काम कर के अपने कमरे में चला गया और मैं बार बार सोचती जा रही थी के रात को जो हुया है इस में दोनो भाई बेहन जिन्हे पता भी नही उनका इस में क्या कसूर है. मुझे याद आने लगी अपनी एक सहेली की कहानी कैसे वो अपने छ्होटे भाई से चुदाई करवाती थी. लेकिन उसने तो जान कर अपने छ्होटे भाई का लंड लिया था के वो अभी बच्चा है और उस का पानी नहीं निकलता इसलिए बच्चा होने का डर नहीं था. यान्हा तो अंजाने में बड़ी बेहन अपने छ्होटे भाई से चुदति रही और यह सोचती रही के उसका पति उसे चोद रहा है.पूरे 9 महीने बाद मेरी ननंद को एक सुंदर सा लड़का हो गया. मैं अपने पति के साथ उसे मिलने गयी. बच्चा बिल्कुल मेरे पति की शकल का था. वो कहने लगी' देखा अपने मामा पर गया है. मैं सोचती थी के अपने बाप पर ना जाए'.मेने कहा' क्यो अपने बाप पर क्यो नहीं' वो बोली ' इस का बाप तो तुझे पता है इतना सुन्दर नही और हर मा अपने बच्चे को सुंदर देखना चाहती है. इसके अलावा तुझे एक राज़ की बात बताउ यह तो मंदिर वाले बाबा का आशीर्वाद है वारना मेरा पति तो शायद ज़िंदगी भर बच्चा पैदा नन्ही कर सकता'मेने पूछा ' क्यो'वो बोली ' उसका लंड बहुत छ्होटा है और उसका पानी भी बहुत जलदी छ्छूट जाता है. मुझे तो उस रात सपने में पहली बार मज़ा आया था, जिस के कारण मेरा बच्चा हुया है'मैं उसकी बात सुन कर सोचने लगी कही इसे इस बात का पता तो नही है के यह बच्चा उसके भाई का है और जानबूझकर कर मुझे बार बार यह कह रही है के भगवान का प्रसाद है.उसका लड़का 5 साल का हो गया था और मेरे भी दो बच्चे हो गये थे. उसका क्यो के दूसरा बचा नही हुया था इसलिए वो फिर बाबा का आशीर्वाद माँगने आई. मेने उसे कहा' बेहन भगवान ने तुझे एक बार आशीर्वाद दे दिया है उसी में तसल्ली कर. ज़यादा लालच करने से भगवान नाराज़ हो जातें हैं.'वो बोली ' भाबी भगवान से तो हम ज़िंदगी भर माँगते हैं भगवान कभी किसी से नाराज़ नहीं होता.'दूसरे दिन हम मंदिर गये और वापस आ कर फिर वो मेरे कमरे में ही सो गयी और कहने लगी ' भाबी तुझे पता है इसी कमरे में मुझे सपने में मेरे पति के चोदने से बच्चा हुया था इसलिए मैं इसी चारपाई पर सोउंगी.'मुझे अब शक और भी ज़यादा होने लगा के यह जानभूज कर मेरे से छुपा रही है लेकिन इसे सब पता है के इस का पति इसे बच्चा नही दे सकता और यह बच्चा इस के भाई का ही है. लेकिन क्यो के अब हमारी शादी को 5 साल हो गये थे और हमारे दो बच्चे भी हो गये थे इसलिए रात को मेरे पति का मेरे पास आना कम हो गया था उस पर मेने अपने पति को कह दिया के आज तुम रात को मत आना. कही तुम्हारी बेहन जाग गयी तो बड़े शरम की बात होगी. मेरे पति ने कहा ' इस में शरम की क्या बात है हम पति पत्नी हैं' फिर भी वो मेरा कहना मान कर रात को नही आया. सुबह मेने अपनी ननंद से पूछा ' रात को कैसा सपना आया तो'वो कहने लगी' लगता है तेरी बात सच है भगवान मुझे दूसरा बच्चा नहीं देना चाहते,. रात को सपना तो नही आया और आता भी कैसे मुझे रात भर नींद ही नही आई.मैने सोचा अच्छा हुया मेने अपने पति को आने से रोक दिया वारना भेद खुल जाता.
 
वो अगले दिन अपनी ससुराल नही गयी तो मुझे फिर शक होने लगा के यह चाहती है के इस का भाई इसे चोदे और यह मा बने, लेकिन में उन्हें मौका नही देना चाहती थी. रात को वो बातें करते करते सो गयी लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. रात को देखा के मेरा पति चुप चाप आया और उसी चारपाई पर लेट गया जिस पर उसके बेहन लेटी थी. मैं जान बूझ कर चुप रह कर तमाशा देखना चाहती थी के वो जाग कर चुदाई करवाए गी या सोते हुए उसका भाई अंजाने में उस की चुदाई करता है. मैने देखा के मेरे पति ने उस का ब्लाउस खोला और उसके मम्मे पहले हाथ में लेकर दबाने लगा फिर मुँह में लेकर चूसने लगा. वो चुप चाप लेटी हुई थी अभी पता नही लग रहा था के वो सोई हुई है या उसे पता ही नही. थोड़ी देर बाद उसके भाई ने उस का लहंगा उपर किया और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा तो उसने अंगड़ाई ली. मुझे लगा के वो मज़ा ले रही है और जानबूझ कर चुप है. फिर भी आज मुझे सच्चाई को जानना था इसलिए बड़े ध्यान से देख रही थी के कैसे छ्होटे भाई से बड़ी बेहन चुदाई करवा रही है. जब उसने चूत हिलानी शुरू की तो मेरे पति उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया. वो अपनी चूत को उपर उच्छालने लगी और उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और फिर ज़ोर ज़ोर से झटके मार कर चुदाई करने लगा. अब यह भगवान जाने या वो दोनो के वो अंजाने में एक दूसरे से चुदाई करवा रहे थे या जानते हुए मज़े ले रहे थे. चुदाई के मज़े लेते हुए उन्होने मुँह से मुँह मिला कर एक दूसरी के होंठों का रस पीना शुरू किया तो मैं सोचने लगी के क्या इतना कुच्छ हो जाए और औरत को पता भी ना लगे ऐसा संभव है. लेकिन मुझे चाहे अपने पति का लंड दूसरी चूत में जाते अच्छा नहीं लग रहा था वो भी उसकी अपनी बेहन की चूत में लेकिन मेने सोच लिया था के मैं आज सच्चाई जान कर ही रहूंगी.अच्चानक मेने सुना के वो कह रही है ' भाई तेरी बेहन बहुत दिनो की प्यासी थी और तुझे कुच्छ कह भी नही सकती थी, लेकिन पिच्छली बार तुमने अपनी बीवी समझ कर जब मेरी चुदाई की तो मुझे पहली बार चुदाई का मज़ा आया था और उसके बाद बच्चा होने से तो मैं तेरे लंड की दीवानी हो गयी थी. तुझे आज बताउ के तेरे जीजा का लंड बिल्कुल छ्होटा है और मेरी क्या किसी भी औरत की तसल्ली नही कर सकता. कल तू नही आया तो मुझे नींद ही नही आई और मुझे एक दिन सिर्फ़ तेरा लंड लेने के लिए रुकना पड़ा.'' बोल मत मेरी पत्नी ने सुन लिया तो गड़बड़ हो जाएगी. यह तो ठीक है के पिच्छली बार मैं अपनी पत्नी के पास ही आया था और मुझे नहीं पता था के उसकी चारपाई पर तू सोई हुई है. लेकिन जब हो ही गया तो भगवान की मर्ज़ी समझ कर चुप करने में ही भलाई समझी'.'यह तो ठीक है होता है वोही जो मंज़ुरे खुदा होता है, लेकिन ऐसे कब तक चोरी चोरी मिलते रहेंगे और कब तक यह भेद बना रहेगा. पहले की बात दूसरी थी, जब तक तेरे लंड का स्वाद नही लिया था में तेरे जीजा के छ्होटे से लंड से ही गुज़ारा चला रही थी लेकिन अब तेरे लंड का स्वाद चखने के बाद इसके बिना रहा नहीं सकती.'' ऐसा कर कुच्छ दिन के लिए तू यही रह जा, फिर आगे की सोचेंगे.'सुबह मैने अपनी ननंद से पूछा ' रात को कोई सपना आया या नही'' रात बड़ा हसीन सपना आया, मज़ा आ गया, तेरी चारपाई में तो कोई जादू है. मेरे पति का लंड जो घर में छ्होटा लगता है यहाँ पर पता नही कैसे इतना बड़ा हो जाता है.'मैं सोचने लगी के इसे अभी यह बताउ के नहीं के मेने इनकी रात की बातें सुन ली है. फिर मैं यह सोच कर के अगर इन्हे यह कह दिया के मेने इनकी बातें सुन ली हैं तो इनका आगे का नाटक देखने का मज़ा नही मिलेगा. सच यह था के अब मुझे इनके झूठ की कहानी सुनने में मज़ा आने लगा था. अभी तो मेने अपने पति से इस बारे में ज़यादा बात ही नही की थी और मैं उस से बात करने की बजाए उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी. रात को मेरे बहुत कहने के बावज़ूद मेरी ननंद उसी चारपाई पर सोई और मैं रात भर भाई बेहन की चुदाई के मज़े लेती रही. एक बार दिल में आया के उठ कर उन्हें उस समय पकड़ लूँ जब भाई का लंड बेहन की चूत में होगा, लेकिन ना जाने क्यो मेने उनके मज़े में खलल डालना पसंद नही किया और चुप चाप भाई बेहन की चुदाई देखती रही. वो इस बार काफ़ी दिन रुकी और दोनो हर रात मेरे सामने ही खूब मज़े लेते रहे. अब कई साल हो गये हैं उसका एक और बच्चा भी हो गया है और वो ज़्यादा अब यहीं रहती है. मैने भी उन दोनो का राज ना तो कभी खोला खोलने की कोशिश की

तो दोस्तो कैसी लगी ये कहानी आपको ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
 
गंगा स्नान
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मैं गंगा स्नान के लिए त्रिवेणी घाट ऋषिकेश गई थी. बहुत भीड़ थी. समझ
नही आरहा था कि अपना बॅग कहाँ रखूं और कैसे नहाऊ? सीढ़ियों पर एक
अधेड़ उमर का जोड़ा (हज़्बेंड वाइफ बैठे थे उनके साथ उनकी एक बेटी जिसकी एज
10-11 के लगभग होगी. मुझे वो लोग सारीफ़ से लगे और मैने उस औरत से रिक्वेस्ट
की कि प्लीज़ आप मेरे बॅग का ध्यान रखेंगे और उनके हां कहने के बाद मैने
सब लोगों की तरह अपनी साडी उतरी और पेटिकोट का नाडा खोलकर अपने चुचो के
उपर तक खींच कर फिर से गाँठ मार दी, फिर मैने सीधी पर बैठ कर
पेटिकोट के अंदर अपने हाथ घुसेड कर अपना ब्लाउस और ब्रा खोलने के बाद पॅंटी
भी उतारी और बॅग मे डाल दी. अब मेरे बदन पर मेरे चुचो के उपर से लेकर
घुटनों तक केवल मेरा पेटिकोट था.

उस औरत ने सलवार कमीज़ पहनी थी, उसने भी झट से पहले अपनी कमीज़ और फिर
ब्रा उतारकर मॅक्सी पहनी और फिर सलवार भी उतार दी. उसके हज़्बेंड ने शर्ट पॅंट
और बनियान उतारकर कछे मे नहाने के लिए तैयार हो गया.

सबसे पहले वो आदमी पानी मे घुसा उसके साथ साथ उसकी वाइफ भी उसके पास
गयी और सॅफ्टी चैन पकड़ कर पानी मे गर्दन तक डुबकी मारने लगी. मैं भी
उनसे 4-5 फीट उपर की साइड सॅफ्टी चैन पकड़ कर डुबकी मारने लगी, जैसे ही मैं
डुबकी मारती मेरा पेटिकोट उपर उठकर पानी के उपर तैरने लगता और मेरे हिप्स
नंगे हो जाते. एक दो बार मैने एक हाथ से ही अपने पेटिकोट को खींचकर अपनी
दोनो थैएस को चिपकाकर उनके बीच मे फासकार डुबकी मारती मगर पानी के तेज
बहाओ मे फिर से पेटिकोट छिटक जाता और पानी के उपर आ जाता. पता नही वहाँ
पर हज़ारो मर्दो के बीच मे कितने मर्दों ने मेरा अग्वाडा और पिच्छवाड़ा देखा
होगा.

एक बार पानी से बाहर सीढ़ी पर आकर मैं अपने हाथों और पैरों को रगड़
रही थी कि मेरी निगाह उसी आदमी पर पड़ी जिनके पास मैने अपने बॅग रखा था,
वो चोरी चोरी मेरे बदन को निहार रहा था, उसका ध्यान अपनी वाइफ की तरफ कम
और मेरी तरफ ज़्यादा था.

मैं फिर से पानी घुसी और एक हाथ से सॅफ्टी चैन पकड़ कर डुबकी मारने लगी.
अबकी बार मैने एक हाथ से अपनी नाक बंदकर जैसे ही पूरा सर पानी मे डुबोया,
अचानक मेरे मूह मे खूब सारा पानी घुसने के कारण मेरी साँस अटक गयी और
हड़बड़ाहट मे मेरा सॅफ्टी चैन वाला हाथ छूट गया और मैं बहते हुए ज़ोर से
बचाआआआओ चिल्ला पड़ी और बेहोसी जैसी हालत मे पानी के अंदर डूब कर बहने
लगी. अचानक मैने पानी के अंदर ही महसूस किया कि कुच्छ हाथों ने मेरी
गर्दन को पकड़ कर पानी से बाहर खींचा अभी मेरा सर पानी से बाहर आया ही
था कि किसी ने गच्छ एक उंगली मेरी चूत मे घुसेड कर मुझे पानी से बाहर
निकालने की कोसिस करने लगा और मैं अपनी जान बचाने की लिए अपने हाथ से उसकी
टाँगो को पकड़ने की कोसिस करने लगी कि पहले तो उसके कछे के बाहर से ही
उसका लॅंड मेरे हाथ मे आया पर मैने झट से हाथ हटाया और अबकी बार उसके
कछे का लस्टिक मेरे हाथ मे आया. मेरा कमर से उपर की हिस्सा पानी के बाहर
आ चुका था आँख खुलने पर मैने पाया कि मेरा पेटिकोट नीचे के बजाई पूरा
का पूरा उपर की तरफ उठ गया था और सर पेटिकोट से ढक था.

ये सब कुच्छ इतनी जल्दी घट गया कि पता ही नही चला. किसी की उंगली अभी भी
मेरी चूत के अंदर थी और जैसे ही मुझे बाहर निकालने की कोसिस करते-करते
झटके से और अंदर घुसेड देता. किसी तरह उनलोगों ने मुझे खींच कर सीढ़ी
पर बिठाया और पता नही किस ने मेरा पेटिकोट मेरे सर से नीचे किया तो मैने
देखा मेरे चारों तरफ भीड़ खड़ी थी, जिनमे ज़्यादातर मर्द थे. मेरा शरम
के मारे बुरा हाल था, गर्दन उपर नही उठा पा रही थी, कई आवाज़े आ
रही थी, कोई पूच्छ रहा था "मेडम ठीक हो" कोई कहता "बहन जी घबराओ मत
भगवान ने बचा लिया" और ना जाने क्या क्या. वो औरत मेरा बॅग लेकर मेरे पास
ही लेकर आई और बोली "दीदी भगवान का सूकर है कि आप बच गयी हैं", अब
कपड़े पहनलो और मंदिर मे सवा 5 रुपये का परसाद चढ़ा कर घर जाना. मैने
बदहवासी मे टॉवल से सर पोंच्छा और दूसरा पेटिकोट सर के उपर से डालकर चुचो
के उपर अटककार गीले पेटिकोट का नाडा खोलकर नीचे सरकया और फिर साडी का एक
कोना कंधों पर ओढकर बिना ब्रा के ब्लाउस पहना. मुझे वहाँ से जाने की जल्दी
थी इसलिए फटाफट कपड़े पहन कर त्रिवेणी घाट से निकलकर मार्केट मे पहुँच
कर साँस ली.

अब मेरे दिमाग़ मे उथलपुथल होने लगी कि उन 10-11 मर्दों, जो मुझे घेरे हुए
थे, मे से किस मर्द ने मेरी चूत मे उंगली घुसेदी होगी, अंजाने मे घुसी होगी या
उसने जान बुझ कर घुसेदी होगी. चूँकि मेरा पेटिकोट नीचे के बजाई मेरे सर
के उपर पलटा हुवा था तो क्या इतने सारे लोगों ने मेरी 2 महीने से बिना सेव
की हुई चूत को देखा होगा?. अजीब हालत हो रही थी एक तरफ घबराहट के मारे
बदन काँप रहा था और दूसरी तरफ दिमाग़ मे उंगली का ख़याल आते ही चूत के
अंदर गीलापन महसूस होने लगा.

आअप लोग क्या बोलते हैं कि उस आदमी ने मेरी चूत मे उंगली अंजाने मे घुसेदी
होगी या अंजाने मे.
 
हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मासूम--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी मासूम लेकर हाजिर हूँ
वो सर पर अपना पल्लू डाले घर से निकली. बाहर गर्मी बहुत ज़्यादा थी और
धूप काफ़ी तेज़ जबकि ये सिर्फ़ एप्रिल का महीना था. उसने टी.वी पर भी
सुना था के ये साल पिच्छले 50 सालों में सबसे गरम होगा.
दोपहर के वक़्त गाओं की सड़कें अक्सर सुनसान ही रहती थी. 1 बजने तक लोग
अपने अपने घर में घुस जाते
थे और शाम 4 या 5 बजे से पहले नही निकलते थे.
खाली सड़कों पर तेज़ कदम बढ़ाती वो गाओं से थोड़ा बाहर बने चर्च की तरफ बढ़ी.
पीछे से एक कार के आने की आवाज़ सुनकर वो सड़क के किनारे हो गयी. वो
जानती थी के कार किसकी है. रोज़ाना ये कार इसी वक़्त यहाँ से गुज़रती थी.
पर आज पीछे से आती कार तेज़ी के साथ गुज़री नही बल्कि उसके पास पहुँच कर
धीमी हो गयी.

"कैसी हो सिरिशा?" मेरसेडीज का शीशा नीचे हुआ

उसने रुक कर कार की तरफ देखा और दिल की धड़कन जैसे अपने आप तेज़ होने लगी.
विट्ठल पर गाओं की हर लड़की फिदा थी, उसकी अपनी दोनो बड़ी बहने भी. वो
देखने में था ही ऐसा. लंबा, चौड़ा ...... वो क्या कहते हैं अँग्रेज़ी में
.... हां, टॉल डार्क आंड हॅंडसम. वो हमेशा महेंगे कपड़े पेहेन्ता था,
महेंगी गाड़ियाँ चलाता था. उसने तो ये भी सुना था के विट्ठल के पापा का
इंडिया के हर
बड़े शहर में एक घर था.

"आपको मेरा नाम कैसे पता विट्ठल साहिब" वो खिड़की के थोड़ा करीब होते हुए बोली
"तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?" विट्ठल ने मुस्कुराते हुए सवाल के बदले सवाल किया
"कैसी बात करते हैं. आपको तो हर कोई जानता है" वो थोड़ा शरमाते हुए बोली
"ह्म्‍म्म्मम" विट्ठल मुस्कुराया "कहाँ जा रही हो?"
"चर्च तक"
"चर्च? सिरिशा पर तुम तो एक ब्रामिन हो........"
"मुझे वहाँ जाके अकेले बैठना अच्छा लगता है, इसलिए इस वक़्त जाती हूँ.
कोई नही होता चर्च में,
एकदम शांति, आराम से बैठ के भगवान को याद किया जा सकता है" सिरिशा एक
साँस में बोल गयी
"आअराम से, शांति से मंदिर में भी बैठा जा सकता है. या मंदिर के पुजारी
तुम्हें पसंद नही आते उस
गोरे फादर के सामने?"

फादर पीटर का नाम इस तरह सुनकर सिरिशा और भी शर्मा उठी. वो बाहर किसी देश
के थे, कौन सा पता नही पर यहाँ इंडिया में वो क्रिस्चियन धरम फेलाने के
लिए आए थे. वो अपने आपको एक मिशनरी कहते थे. जब वो चर्च में खड़े होकर
बोलते थे तो सिरिशा के दिल को एक अजीब सा सुकून मिलता था. कितना ठहराव था
उनकी बातों में, उनकी आवाज़ में.
जो भी बात कभी सिरिशा को परेशान करती, वो अक्सर कन्फेशन बॉक्स में बैठ कर
फादर पीटर से कह देती थी. यूँ चर्च में उनके सामने सब कुच्छ कन्फेस कर
लेना उसे बहुत पसंद था.

"तुम्हें पता है ये लोग यहाँ ग़रीब लोगों को पैसा देकर क्रिस्चियन बनाते
हैं?" वो अभी अपनी सोच में ही गुम थी के विट्ठल बोला

उसकी बात सुनकर एक अजीब तरह का गुस्सा सिरिशा के दिल में भर गया. उसने
विट्ठल की बात का जवाब देना ज़रूरी नही समझा और कार से हटकर आगे की तरफ
चल पड़ी.
"अर्रे इतनी गर्मी में कहाँ जा रही हो? आओ मैं छ्चोड़ देता हूँ" पीछे से
विट्ठल चिल्लाया उसकी बात सुनकर सिरिशा एक पल के लिए सोचने पर मजबूर हो
गयी.
चर्च अभी थोड़ा दूर था और आज
गर्मी कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो चर्च तक पहुँचते पहुँचते पसीना पसीना हो
जाएगी और इस हालत में
चर्च जाना उसे अच्छा नही लगता था.

"गाड़ी में ए.सी. चल रहा है. मैं छ्चोड़ दूँगा तुम्हें" कहते हुए विट्ठल
ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला.
सिरिशा ने पल्लू अपने सर से हटाया और गाड़ी में पिछे की सीट पर जाकर बैठ
गयी. पर उस वक़्त चर्च जाने का उस वक़्त विट्ठल का शायद कोई इरादा नही
था.

"कहाँ जा रहे हैं हम?" गाड़ी जब एक चर्च जाने के बजाय एक दूसरे ही रास्ते
पर मूडी तो सिरिशा ने पुछा
"कहीं नही. चिंता मत करो तुम्हें चर्च छ्चोड़ दूँगा मैं" विट्ठल पिछे देख
कर मुस्कुराया.
उसके बाद जो हुआ वो सिरिशा के लिए एक सपने जैसा ही था, एक ऐसा बुरा सपना
जिसे सोचकर ही उसके दिल घबरा जाता था और गुस्सा से वो लाल हो जाती थी.
विट्ठल ने गाड़ी रोकी और उसके साथ बॅक्सीट पर आ गया था.

"छ्चोड़ दो मुझे, जाने दो" वो ज़बरदस्ती करने लगा तो सिरिशा रोते हुए बोली.
"बस एक बार .... कुच्छ नही होगा .... मज़ा आएगा तुझे भी" विट्ठल ने उसकी
सारी कमर तक उठा दी थी
"ये पाप है, तुम ऐसा नही कर सकते मेरे साथ"
"अर्रे कोई पाप वाप नही है" उसने अपनी पेंट की ज़िप खोली और नीचे को खिसकाई.

उसके बाद सिरिशा जैसे एक ज़िंदा लाश बन गयी थी. वो कार की पिच्छली सीट पर
पड़ी बाहर चिड़ियों के चहचाहने की आवाज़ें सुनती रही. उसको मालूम था के
जहाँ वो लोग रुके हुए हैं, वहाँ इस वक़्त दूर दूर तक कोई नही होता इसलिए
रोने चिल्लाने का कोई फ़ायदा नही था.

"जितनी मस्त तू उपेर से दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा मस्त तू अंदर से है"
विट्ठल ने एक पल के लिए अपना सर उपेर उठाकर बोला और फिर से झुक कर उसकी
चूचियाँ चूसने लगा.

सिरिशा का ब्लाउस खुला था और ब्रा को विट्ठल ने खींच कर उपेर कर दिया था
ताकि उसकी दोनो चूचियो के साथ खेल सके. नीचे से उसने सारी को सिरिशा की
कमर तक चढ़ा दिया था और अपनी नंगी टाँगो के बीच विट्ठल को महसूस कर रही
थी.

"ये टाँग थोड़ी उपेर कर ना प्ल्स" विट्ठल अंदर दाखिल होने की कोशिश कर
रहा था पर अंदर जा नही पा रहा था.

सिरिशा ने बिना कुच्छ कहे उसकी बात मानती हुए अपनी एक टाँग को थोड़ा सा
हवा में उठा दिया. विट्ठल ने एक बार फिर उसके शरीर में दाखिल होने की
कोशिश की. सिरिशा पूरी तरह से बंद थी और ज़रा भी गीली नही हुई थी इसलिए
अंदर जाने की ये कोशिश विट्ठल के लिए काफ़ी तकलीफ़ से भरी महसूस हुई.

"एक काम कर ... थोड़ी देर मुँह में लेके चूस दे ना ... गीला हो जाएगा"
विट्ठल ने कहा तो सिरिशा ने गुस्से में उसकी तरफ देखा और बिना कुच्छ कहे
अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया.
"अर्रे नाराज़ क्यूँ होती है, मैं तो बस पुच्छ ही रहा था" विट्ठल ने नीचे
को झुक कर उसका गाल चूमा और फिर अपने हाथ पर थोड़ा सा थूक लिया और लगा कर
फिर से कोशिश की.
थोड़ी तकलीफ़ हुई पर इस बार लंड बिना रुके सिरिशा के अंदर तक दाखिल हो गया.
"आआअहह .... कितनी टाइट है तू .... आज तक चुदी नही क्या कभी?"
इस बार भी सिरिशा ने जवाब देना ज़रूरी नही समझा. दर्द के मारे उसकी चीख
निकलते निकलते रह गयी थी और आँखों में आँसू भर आए.
"मज़ा आ गया .... ओह्ह मेरी जान .... बहुत गरम है तू ... बहुत टाइट"

और भी जाने क्या क्या बकता हुआ विट्ठल अकेला ही मंज़िल की तरफ बढ़ चला.
सिरिशा की दोनो चूचियाँ उसके हाथों में थी और उसके गले को चूमता हुआ वो
धक्के पर धक्के लगा रहा था. उसके नीचे दबी सिरिशा बड़ी मुश्किल से अपने
आपको कार की सीट पर रोक पा रही थी. एक तो इतनी छ्होटी सी जगह और उसपर
विट्ठल के धीरे धीरे तेज़ होते धक्के, हर पल उसको लगता था के वो खिसक कर
नीचे गिर जाएगी.

"आआआहह" अचानक विट्ठल ने उसकी एक चूची पर अपने दाँत गढ़ाए तो उसकी चीख निकल गयी.
"सॉरी" वो दाँत दिखाता हुआ बोला "कंट्रोल नही, तेरी हैं ही ऐसी, इतनी
बड़ी और इतनी सॉफ्ट"
सिरिशा का दिल किया के मुक्का मार कर उसके दोनो दाँत तोड़ दे.
"जल्दी करो" वो पहली बार बोली
"जल्दी क्या है ... अच्छी तरह से मज़ा तो लेने दो" विट्ठल फिर धक्के लगाने लगा
"तुझे मज़ा नही आ रहा?"
सिरिशा कुच्छ नही बोली
"अर्रे बोल ना ... मज़ा नही आ रहा. कैसा लग रहा है मेरा तेरे अंदर?"
वो फिर भी कुच्छ नही बोली
"पूरी गीली हो चुकी है तू और कहती है के मज़ा नही आ रहा?"

विट्ठल ने कहा तो सिरिशा का ध्यान पहली बार इस तरफ गया. उसकी टाँगो के
बीच की जगह पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और अब विट्ठल बड़ी आसानी के साथ
उसके अंदर बाहर हो रहा था.
"मेरी कार की सीट तक गीली कर दी है तूने"
वो सही कह रहा था. खुद अपनी कमर और कूल्हो के नीचे सिरिशा को कार की गीली
सीट महसूस हो रही थी. खुद उसका अपना शरीर उसे छ्चोड़ कर विट्ठल के साथ हो
चला था और उसे पता भी नही चला था.

वो पूरी तरह से खुल चुकी थी और उसका शरीर जैसे विट्ठल के हर धक्के का
स्वागत कर रहा था.
"निकलने वाला है मेरा" विट्ठल ने कहा और किसी पागल कुत्ते की तरह हांफता
हुआ धक्के लगाने लगा.

थोड़ी देर बाद उसको चर्च के सामने छ्चोड़ कर विट्ठल चलता बना. सिरिशा ने
एक पल के लिए सामने चर्च के दरवाज़े पर नज़र डाली और फिर अंदर जाने के
बजाय पलट कर वापिस घर की तरफ चल पड़ी.
वो इस हालत में चर्च कैसे जा सकती थी?
क्रमशः.........................
 
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मासूम--2
गतान्क से आगे...................
विट्ठल ने जो भी उसके शरीर के अंदर छोड़ा था, अब वो बाहर निकल कर उसकी
टाँगो पर बहता महसूस हो
रहा था.
उस दिन जो हुआ था, उसका ज़िक्र सिरिशा ने कभी किसी से नही किया. फादर
पीटर से भी नही.
2 हफ्ते बाद ही उसे वो खबर सुनने को मिल गयी थी. गाओं में हर कोई इसी
बारे में बात कर रहा था.

विट्ठल की शादी राजलक्ष्मी से होने जा रही थी. विट्ठल की तरह ही
राजलक्ष्मी का परिवार भी आस पास के इलाक़े मे काफ़ी जाना माना था. पर
जहाँ विट्ठल के घरवाले सिर्फ़ व्यापारी थे और सिर्फ़ कपड़ो और जूतो का
धंधा करना जानते थे, वहीं राजलक्ष्मी के घरवाले पैसे के कारोबार में थे.
कर्ज़े पर पैसा देना और ब्याज़ कमाना, यही उनका काम था और पॉलिटीशियन और
बड़े बड़े लोगों के साथ उनका बहुत उठना बैठना था. ये कहना ग़लत नही होगा
के वो ताक़त और प्रतिष्ठा में विट्ठल के परिवार से 100 गुना ज़्यादा थे.

दो रईस और बड़े परिवार के बीच हो रहा ये रिश्ता जैसे उस वक़्त हर किसी की
ज़ुबान पर था.

जब सिरिशा को विट्ठल की शादी के बारे में पता चला तो वो खुद जैसे नफ़रत
के एक अंधे कुएँ में गिर गयी. धीरे धीरे नफ़रत बदला लेने की एक भारी
इच्छा में तब्दील होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो विट्ठल से बदला
लेने के लिए, उसे तड़प्ता देखने के लिए कुच्छ भी करने को तैय्यार थी.

पर ऐसा कुच्छ ना तो वो कर पाई और ना ही उसे करने को मौका मिला. ज़िंदगी
यूँ ही धीरे धीरे आगे बढ़ती रही और वो अपने आप में कुढती रही, जलती रही.
कई बार दिल में ख्याल आया के सबको बता दे के विट्ठल ने उसके साथ क्या
किया था पर वो बखुबी जानती थी के ऐसा करना सिर्फ़ खुद उसे ही बदनाम करता.

उसकी ज़िंदगी अपनी स्कूल की किताबो और चर्च के बीच सिमट कर रह गयी थी.
"तू इतनी बड़ी भक्त कैसे बन गयी? अपनी उमर की लड़कियों को देखा है? सजने
सवरने से फ़ुर्सत नही मिलती उन्हें और तू है के बस पुजारन बनी बैठी है"
उसकी माँ ने एक दिन उसे कहा था.
"मुझे अच्छा लगता है चर्च जाना. वहाँ भगवान के सामने बैठती हूँ तो ऐसा
लगता है जैसे मेरा कुच्छ नही च्छूपा उनसे, सब देख रहे हैं वो" जवाब में
सिरिशा बस इतना ही कह पाई थी.

2 महीने गुज़र गये और उसने फिर कभी विट्ठल को नही देखा. फादर पीटर भी अब
अपने देश वापिस जा चुके थे. अब कन्फेशन बॉक्स में बैठकर उसने दिल का हाल
सुनने वाला और उसे समझने वाला कोई नही था.

और फिर बरसात का मौसम भी आ गया. पूरे अगस्त के महीने भी बारिश ने रुकने
का नाम नही लिया. बादल हर वक़्त आसमान में छाए रहते और कभी भी अचानक
बरसने लगते. गाओं की सड़कों पर हर तरफ कीचड़ जमा हो गया था और छत पर हर
वक़्त पड़ती बारिश की बूँदों की आवाज़ जैसे कभी कभी पागल
ही कर देती थी. और अगर बारिश रुकती भी थी तो हवा में इतनी नमी होती के
इंसान बैठे बैठे ही पसीने से नहा जाए और फिर बारिश की दुआ करने लगे.

और एक दिन, जबके उसका पूरा परिवार उसके छ्होटे भाई का बर्तडे मनाने के
लिए इकट्ठा हुआ था, कुच्छ ऐसा हुआ जिसका डर सिरिशा को हफ़्तो से सता रहा
था. वो अपने छ्होटे कज़िन के साथ बैठी बाल्कनी में खेल रही थी के अचानक
वो अंजान बच्चा सबके सामने बोल पड़ा.

"दीदी आप कितनी मोटी हो गयी हो. देखो आपका पेट कैसे बाहर को निकल आया है"

पूरे घर में हर किसी की नज़र सिरिशा के पेट की तरफ हो गयी थी. जैसे
सिरिशा के पेट का वो उठान देखा तो सबने था पर इंतेज़ार कर रहे थे के पहले
कौन बोलेगा.

उस दिन सिरिशा को ना स्कूल जाने दिया गया और ना चर्च.

"हमें यूँ शर्मिंदा करके तुझे क्या मिला?" उसकी माँ ने रोते हुए उससे
पुछा था "क्या कमी रह गयी थी हमारी तरफ से जो तूने हमें ये दिन दिखाया?
कौन करेगा अब तुझसे शादी? इस उमर में अपने बाप का नाम इस तरह उच्छालके
तुझे क्या हासिल हुआ? वो तो अच्छा हुआ के वो ये दिन देखने से पहले ही चल
बसे?
आज अगर वो ज़िंदा होते तो खड़े खड़े ही मर जाते"

सुबह शाम इस तरह की बातों का जैसे एक सिलसिला ही चल निकला. कभी उसकी माँ
तो कभी रिश्तेदार. हर कोई उसे यही बातें सुनाता रहता और हर किसी की
ज़ुबान पर एक ही सवाल था,
"बच्चे का बाप कौन है?"

और जब सिरिशा से और बर्दाश्त ना हुआ तो उसने हार कर उस दोपहर के बारे में
सबको बता दिया जब उसे राह चलते विट्ठल मिल गया था.
"अगर बदनाम होना ही था तो मेरी मासूम बच्ची अकेली बदनाम नही होगी. अपने
हिस्से की बदनामी विट्ठल भी उठाएगा" बात ख़तम होने पर उसकी माँ ने कहा था
और हर कोई हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा था.
"इसको दाई के पास ले चलें? वो जानती हैं के बच्चा कैसे गिराते हैं" उसकी
बड़ी बहेन इंद्रा बोली
"तेरा दिमाग़ खराब हुआ है? उस औरत को बच्चा जानना तो आता नही, गिराएगी
क्या खाक" सिरिशा की माँ ने कहा
अगले दिन ही सिरषा अपनी माँ के साथ शहर के एक हॉस्पिटल में गयी थी.
टेस्ट्स से साबित हो गया था के वो प्रेग्नेंट थी.

"कुच्छ किया जा सकता है?" उसकी माँ ने डॉक्टर से पुछा
"जितनी जल्दी हो सके, इसकी शादी करा दीजिए" डॉक्टर ने जवाब दिया. वो उसके
पिता के एक पुराने दोस्त थे और अक्सर उनके घर आते जाते थे
"अब आप ही बताइए के इस मनहूस से शादी कौन करेगा? इस बच्चे का कुच्छ नही
हो सकता क्या?"

बाहर अब भी बारिश का मौसम था. आसमान में बदल इस कदर फेले हुए थे के दिन
में भी रात का एहसास होता था. कमरे में जल रहे बल्ब के चारो तरह अजीब
अजीब तरह के कीट पतंगे उड़ रहे थे.
"बच्चे का इंटेज़ाम मैं कर तो सकता हूँ" डॉक्टर बहुत धीमी आवाज़ में बोला
"पर पैदा होने के बाद. बच्चा इस वक़्त गिराया नही जा सकता. आपकी बेटी
वैसे ही बहुत दुबली पतली है और उपेर से 3 महीने की प्रेग्नेंट है. अगर जो
डेट्स ये हमें बता रही है वो सही हैं तो और 3 महीने में ये फुल टर्म हो
जाएगी. इस वक़्त कुच्छ भी किया तो मामला बिगड़ सकता है. बच्चे के साथ साथ
इसकी जान को भी ख़तरा हो सकता है"

"और अगर बच्चा पैदा किया" उसकी माँ ने मुँह बनाते हुए कहा "अगर पैदा किया
तो उसके बाद क्या?"
"मैं बच्चा रखना चाहती हूँ माँ" सिरिशा अचानक बोल पड़ी
"बेवकूफ़ मत बन"
"ये बच्चा मेरा है. मैं इसे पैदा करना चाहती हूँ. अपने पास रखना चाहती हूँ"
"और खर्चे कौन उठाएगा? कौन देखभाल करेगा तुम दोनो की?"
"मेरा होने वाला पति" सिरिशा ने अपनी माँ की आँख से पहली बार आँख मिलाई
"और कौन करेगा तुझसे शादी?"
"विट्ठल. मुझसे शादी वही करेगा जो मेरी इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है"
"आपकी बेटी इतनी बेवकूफ़ है नही" डॉक्टर जो अब तक माँ बेटी की बातें सुन
रहा था बीच में बोल पड़ा.
"वैसे भी आपको इसकी शादी तो करनी है ही तो विट्ठल से ही एक बार बात चला
के देखिए. कोशिश करने में क्या हर्ज है?"

और फिर जैसा के सिरिशा चाहती थी, उसकी माँ उसे लेकर विट्ठल के घर जा
पहुँची. हैरानी सबको तब हुई जब विट्ठल ने बिना कोई ना नुकुर किए इस बात
की हामी भरी के उसने सिरिशा के साथ ज़बरदस्ती की थी. और उससे भी बड़ी
हैरानी तब हुई जब वो सिरिशा से शादी करने के लिए भी फ़ौरन तैय्यार हो
गया.

"शायद इतना बुरा ये है नही जितना मैं सोच रही थी" पहली बार सिरिशा के दिल
में विट्ठल के लिए एक नाज़ुक जगह बनी थी.

बात उड़ चुकी थी और साथ में उड़ चुका था विट्ठल के परिवार का नाम. हर तरफ
हो रही बदनामी से बचने का उनके पास अब एक ही रास्ता था और वो ये के जिस
ग़रीब लड़की का उनके बेटे ने फ़ायदा उठाया, वो उसे अपने घर की बहू बनाए.
और इसके लिए सबसे पहला कदम था राजलक्ष्मी के साथ तय हो चुकी विट्ठल की
शादी को तोड़ना.
किसी ने कहा के विट्ठल एक कायर था इसलिए शादी के लिए मान गया था.
किसी ने कहा के उसके घरवाले पोलीस के मामले में पड़ना नही चाहते थे इसलिए
शादी का ज़ोर डाला गया था.
किसी ने कहा था के सिरिशा ने विट्ठल पर रेप केस कर दिया था इसलिए शादी की
बात चला दी गयी थी.
किसी ने कहा, और जो कि खुद सिरिशा ने भी सोचा था, के विट्ठल उस बदसूरत
राजलक्ष्मी से शादी नही करना चाहता था इसलिए उसे फ़ौरन सिरिशा का हाथ थाम
लिया था. राजलक्ष्मी रईस और एक बड़े घराने से ज़रूर थी पर हर कोई जानता
था के वो देखने में सुंदर तो क्या, एक आम लड़की से भी गयी गुज़री थी,
और उपेर से कितनी मोटी भी तो थी वो. उसके मुक़ाबले मासूम सी दिखने वाली
सिरिशा तो जैसे आसमान से उतरी एक परी थी. विट्ठल ने ज़बरदस्ती राजलक्ष्मी
से हो रही अपनी शादी से बचने के लिए सिरिशा का सहारा लिया था.
मासूम--3
गतान्क से आगे...................
वजह जो भी थी, विट्ठल शादी के लिए मान गया था और उसने काफ़ी समझदार से
काम लिया था. और उससे कहीं ज़्यादा समझदारी दिखाई थी राजलक्ष्मी के
घरवालो ने. अंदर से भले ही उन्हें ही इस तरह रिश्ता तोड़ दिए जाने पर
बे-इज़्ज़ती महसूस हुई हो पर उपेर से उन्होने कुच्छ भी ज़ाहिर नही होने
दिया. और तो और, उन्होने तो विट्ठल के परिवार के साथ अपनी बोल-चाल भी
जारी रखी थी.

राजलक्ष्मी के तीनो भाइयों ने विट्ठल को अपने नये फार्म-हाउस पर आने का
नियोता तक भेज दिया ताकि दोनो परिवार के बीच जो कुच्छ भी हुआ था, वो
ख़ाता किया जा सके और वो लोग बिना दिल में कुच्छ रखे आगे बढ़ सकें.
विट्ठल भी यही चाहता था के इस सारे कांड में किसी को कोई नुकसान ना
पहुँचे इसलिए उसने फ़ौरन हां कर दी.

उसी दिन फार्म-हाउस की तरफ जाते हुए विट्ठल की कार का आक्सिडेंट हो गया
और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया था. ना तो उस ट्रक का पता चला जिससे
विट्ठल की कार की टक्कर हुई थी और ना ही उस ट्रक ड्राइवर का.
3 दिन बाद विट्ठल का क्रिया करम कर दिया गया. एक बार फिर बातों का बाज़ार
गरम हो चला था. कुच्छ को भरोसा था के विट्ठल के साथ जो कुच्छ हुआ उसमें
भगवान का हाथ था. एक मासूम लड़की के साथ किए गये उसके सलूक की सज़ा भगवान
ने उसे दी थी. भगवान नाराज़ थे और यही वजह थी के इस साल इस क़दर
बरसात हुई थी.
कुच्छ लोगों का मानना था के विट्ठल मरा नही बल्कि उसे मारा गया है.
राजलक्ष्मी के परिवार वाले इज़्ज़त और रोबदार लोग थे. अपनी बेटी की यूँ
शादी तोड़ दिए जाने से सरे-आम हुई बदनामी को वो कैसे बर्दाश्त कर सकते
थे. 3 भाइयों की वो अकेली बहेन थी. अपनी बहेन का बदला लिया था भाइयों ने.

"कुच्छ भी हो भाय्या" क्रिया करम में शामिल होने आए लोगों में से किसी ने
कहा था "हम कौन हैं बोलने वाले? पोलीस ने तो लड़के का शरीर ठंडा पड़ने से
पहले ही आक्सिडेंट बोलकर फाइल बंद कर दी थी. आक्सिडेंट कैसे हुआ, क्यूँ
हुआ ये जाने की कोशिश तक नही की गयी थी.

हैरत की बात थी के इतने दिन से लगातार हो रही बरसात उस दिन रुकी थी जिस
दिन विट्ठल की चिता को आग दी गयी.

सबको लगा था के विट्ठल की मौत का सिरिशा को बहुत सदमा होगा. आख़िर वो
उसके बच्चे का बाप था और उसका होने वाला पति. और शायद ऐसा हुआ भी. सिरिशा
पूरी तरह मातम में शामिल थी. लोगों की बात माने तो ये सदमा था या
कुच्छ और पर ड्यू डेट आई और निकल गयी पर सिरिशा को बच्चा नही हुआ.

और जब हुआ तब तक ड्यू डेट को एक पूरा महीना निकल चुका था. यानी तब सिरिशा
पूरे 10 महीने की प्रेग्नेंट थी.

हॉस्पिटल का पूरा खर्चा विट्ठल के परिवार ने उठाया. शहर के एक महेंगे
हॉस्पिटल में बच्चे को जनम दिया गया और पैदा होने से पहले ही विट्ठल के
पिता इस बात के एलान कर चुके थे के बच्चे को विट्ठल का नाम दिया जाएगा और
उसे पाल पोसने का पूरा खर्चा वो खुद उठाएँगे.

वो खुद अपने पैरवार के साथ बच्चा हो जाने के बाद सिरिशा से मिलने भी आए
थे और बच्चे का नाम-करण कर गये थे.

पूरा दिन सिरिशा को अकेले रहने का बिल्कुल मौका नही मिला. लोगों का आना
जाना लगा रहा. कोई ना कोई उससे मिलने आता रहता. तरह तरह के गिफ्ट्स कोई
नयी माँ के लिए लाता तो बच्चे के लिए.

कोई उसके घर का था तो कोई विट्ठल के घर का जिन्होने शायद तकदीर के आगे
हार मान ली थी और अपने बेटे की निशानी, उसके बच्चे को अपना लिया था.

आने वालो में कोई शकल सूरत से बच्चे को सिरिशा जैसा बताता तो कोई विट्ठल जैसा.

अगले दिन जब उसकी माँ घर से कुच्छ समान लाने के लिए गयी तो सिरिशा को
पहली बार बच्चे के साथ अकेले होने का मौका मिला. उसने प्यार से अपने
बच्चे को गोद में लिया और उसकी तरफ तूकटुकी लगाकर देखने लगी.

एक नज़र में ही उसे एहसास हो गया था के बच्चा ना तो उसके जैसा दिखता था
और ना ही विट्ठल के जैसा.
बच्चे की आँखें भूरे रंग की थी और ब्राउन आइज़ ना तो सिरिशा की थी और ना विट्ठल की.

उन दोनो की क्या, पूरे गाओं में भूरी आँखें किसी की नही थी. तो
क्या................सोचो दोस्तो सिरिशा क्या वास्तव मे मासूम थी क्या
बच्चा वास्तव विट्ठल का था या फिर....
दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त........
 
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
दा मैड
"क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?" रचना ने दरवाज़ा खोला तो मैं फूल आगे बढ़ता हुआ बोला
"बाहर मत खड़े रहो अंदर आओ, कोई देख लेगा" उसने मेरी शर्ट पकड़ कर मुझे
अंदर खींचा और दरवाज़ा बंद कर लिया.
"अर्रे देखने दो, यहाँ तुम लोगों को जानता ही कौन है" मैं अंदर आता हुआ बोला
"जानते फिलहाल नही हैं तो इसका मतलब ये नही के कभी नही जानेंगे. बाद में
मोम डॅड से लोग बातें करेंगे तो बताएँगे नही के आपके पिछे आपकी लड़की रात
को घर पर लड़के बुलाती है"

रचना अपने माँ बाप की एकलौती लड़की थी और पिच्छले हफ्ते ही उन्होने इस
नये घर में शिफ्ट किया था.
मैं पिच्छले 5 साल से उसे जानता था, उससे प्यार करता था और सही मौके की
तलाश में था के बात को घरवालो की मर्ज़ी से आगे बढ़ाया जाए. उस रात उसके
मोम डॅड किसी रिलेटिव के यहाँ रुके हुए थे तो उसने मुझे फोन करके बुला
लिया.

मैं अपना कोट उतारता हुआ ड्रॉयिंग रूम में दाखिल हुआ. रात के करीब 11.30
बज रहे थे. बाहर मौसम ठंडा था पर घर के अंदर हीटर ऑन होने की वजह से कमरे
का टेंपॅरेचर गरम था. ड्रॉयिंग रूम में ही उनके घर में काम करने वाली
लड़की ज़मीन पर बैठी टीवी देख रही थी.

"आइ थॉट यू सेड यू वर अलोन?" मैने रचना की तरफ देखते हुए कहा तो उसने
मुझे आँख मारी और पलट कर फ्रिड्ज से कुच्छ खाने को निकालने लगी.

मैं सोफे पर आकर बैठ गया और टीवी देखने लगा. उस लड़की ने एक बार मेरी तरफ
देखा. मैं जवाब में मुस्कुराया पर वो अजीब नज़रों से मुझे देखती वहाँ से
उठी और एक कमरे के अंदर चली गयी.

"यू वाना ईट हियर ओर यू वाना गो टू दा बेडरूम?" रचना ने मुझसे पुछा तो
मैने इशारे से कहा के बेडरूम में चलते हैं हाथ में खाने की प्लेट्स उठाए
हम उसके बेडरूम तक पहुँचे.

"घर तो बहुत मस्त है" मैने खाने की प्लेट्स टेबल पर रखते हुए कहा
"और काफ़ी सस्ते में मिला है डॅड कह रहे थे. ही सेड इट वाज़ आ प्रेटी गुड
डील" रचना झुकी हुई खाना टेबल पर लगा रही थी.

उसने उस वक़्त एक स्कर्ट और टॉप पहेन रखा था. स्कर्ट घुटनो तक था और आगे
को झुकी होने के कारण टॉप खींच कर उपेर हो गया था.
"आइ थिंक प्रेटी गुड डील तो ये है जो मुझे मिली है" मैने आगे बढ़कर उसकी
कमर को पकड़ते हुए अपना खड़ा लंड उसकी गांद पर टीका दिया.
"औचह" वो फ़ौरन ऐसे खड़ी हुई जैसे बिच्छू ने डॅंक मार दिया हो "क्या करते हो?"
"तुम्हें प्यार" मैने फ़ौरन उसको अपनी तरफ घुमाया और होंठ उसके होंठों पर रख दिए.
"खाना तो खा लो" वो किस के बीच में बोली
"पूरी रात पड़ी है"
"ठंडा हो जाएगा"
"गरम कर लेंगे. खाने के साथ साथ ज़रा हम दोनो भी ठंडे हो लें"

वो अच्छी तरह जानती थी के फिलहाल मुझसे बहस करने का कोई फायडा नही था
इसलिए बिना आगे कुच्छ बोले मेरा साथ देने लगी.

हम दोनो उसके बेड के पास खड़े हुए थे. वो अपने पंजो पर खड़ी मेरे होंठों
को चूस रही थी और मेरे हाथ उसके टॉप के अंदर उसकी नंगी कमर को सहला रहे
थे.
"क्या इरादा है?" अपने पेट पर कपड़ो के उपेर से ही मेरे खड़े लंड को
महसूस करते हुए वो बोली
"तुम्हें चोदने का" मैं आँख मारते हुए कहा और आगे को झुक कर उसके गले को
चूमने लगा. मेरे हाथ अब उसकी कमर से नीचे सरक कर उसकी गांद तक पहुँचे.
"ओह लव" उसने मुझसे लिपट-ते हुए एक ठंडी आह भरी. मैने धीरे धीरे उसके
स्कर्ट को उपेर की ओर उठाना शुरू कर दिया.

"वेट. उतार ही दो" वो बोली
हम दोनो एक पल के लिए अलग हुए और वो मुस्कुराती हुई बेड पर चढ़ कर खड़ी हो गयी.
"लेट्स स्ट्रीप टुगेदर"
उसने कहा तो हम दोनो ने एक दूसरे के देखते हुए एक साथ कपड़े उतारने शुरू
कर दिए. उसने टी-शर्ट और स्कर्ट के नीचे कुच्छ भी नही पहना हुआ था. अगले
ही पल वो नंगी हो चुकी थी.
"नो अंडरगार्मेंट्स?" मैने मुस्कुराते हुए पुच्छा और पूरी तरह नंगा होकर
बिस्तर पर चढ़ गया
"पता था के तुम आओगे तो वैसे ही उतारने पड़ेंगे तो सोचा के पेहेन्के फायडा ही क्या"
वो बिस्तर पर अपनी पीठ पर लेट गयी और दोनो टांगे खोल दी. मैं इशारा समझ
गया. पेट पर उल्टा लेट कर मैने उसकी टाँगो को अपने कंधो पर रखा. उसकी चूत
किसी फूल की तरह खुल चुकी थी और रस टपका रही थी.
"यू आर सोकिंग वेट" मैने कहा और आगे बढ़कर अपने होंठ उसकी जीभ पर टीका दिए.
"लिक्क मी" उसने ऊँची आवाज़ में सरगोशी की और टाँग उपेर हवा में उठा दी.
जैसे जैसे मेरी जीभ उसकी चूत की गहराइयों में उतरती रही, वैसे वैसे उसकी
मेरे बालों पर पकड़ और मज़बूत होती रही. नीचे से वो कभी बिस्तर पर अपनी
गांद को कभी रगड़ने लगती तो कभी एडीयन नीचे रख कर अपनी चूत मेरे मुँह पर
दबाने लगती.
"सक मी ... लिक्क इट .... जीभ घुसाओ अंदर .... अंगुली डालो"
जब वो इस तरह से बोलने लगती तो मैं समझ जाता था के वो गरम हो गयी थी.
"लंड चाहिए?" मैने चूत से मुँह हटा कर पुच्छा
"हां"
"चूत में या पहले मुँह में लोगि?"
"फक मी फर्स्ट .... आइ विल सक यू लेटर. पूरी रात पड़ी है" वो बेसब्री
होते हुए बोली और मुझे अपने उपेर खींचने लगी.
"कम ऑन ... हरी अप ... फक मी फास्ट"
मैं पूरा उसके उपेर आ गया तो उसने खुद ही हाथ हम दोनो के बीच ले जाकर
मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया.
"घुसाओ अंदर"
मैने हल्का सा धक्का मारा और लंड उसकी गीली चूत में ऐसे गया जैसे मक्खन
में गरम च्छुरी.
"ओह गॉश ..... " मैने धक्के मारने शुरू किए तो उसने फिर सरगोशी की "यू
अरे फक्किंग मी सो वेल ... सो डीप .... पूरा घुसाओ ना अंदर जान ...."
"मज़ा आ रहा है?" मैने उसकी आँखों में देखते हुए पुच्छा
"बहुत ..... यू आर फक्किंग माइ चूत सो वेल बेबी ...."
उसकी दोनो टांगे मेरी कमर पर लिपटी हुई थी और मेरे हर धक्के के साथ उसकी
बड़ी बड़ी चूचियाँ ऐसे हिल रही थी जैसे अंदर पानी भरा हो. मैने आगे झुक
कर उसका एक निपल अपने मुँह में लिया.
"सक देम माइ लव ... सक देम"
मैं बारी बारी उसकी दोनो चूचियाँ चूस्ता हुआ उसकी चूत पर धक्के मारता
रहा. कमरा वासना के एक तूफान से भर गया था और रचना की चीखने चिल्लाने की
आवाज़ से गूँज रहा था. वो ऐसी थी थी, जब एग्ज़ाइटेड होती तो ज़ोर ज़ोर से
चिल्लाने लगती थी.
 
"यू वाना चेंज पोज़?" मैने पुछा
"न्प ... डोंट टेक इट आउट. कीप फक्किंग. लंड अंदर ही रखो प्लस्ससस्स" वो फ़ौरन बोली
अब मेरे हर धक्के के साथ वो अपनी गांद बिस्तर पर पटक रही थी और कोशिश कर
रही थी के मेरा लंड जितना अंदर हो सके ले ले. एक बार फिर उसे चोद्ते हुए
मैं झुका और उसके सूजे हुए निपल्स को चूसने लगा, अपनी जीभ से उसकी
चूचियों को चाटने लगा.
"दाँत से काटो" उसने खुद कहा तो मैने एक निपल पर अपने दाँत गड़ाए.
"आ ... इतनी ज़ोर से नही ... धीरे"
मेरे हाथ उसके पुर जिस्म पर घूमते हुए नीचे उसकी गांद पर आ टीके. मैने
अपने दोनो हाथों से नीचे उसके कूल्हों को पड़का और उपेर की ओर उठाया ताकि
लंड और अंदर तक घुसा सकूँ. जवाब में उसने भी अपनी टाँगें मेरी कमर से
उपेर सरका कर मेरे कंधो पर रख दी और चूत और ज़्यादा हवा में उठा दी.

"चोदो मुझे" वो वासना से पागल होती जैसे रोने ही वाली थी "ज़ोर से चोदो
ना .... आइ आम अबौट टू कम"
मैने धक्को की तेज़ी और बढ़ा दी.
"लेट मी राइड युवर कॉक" कुच्छ देर बाद वो हान्फ्ते हुए बोली तो मैं उसके
उपेर से हटकर नीचे आकर लेट गया. वो एक पल के लिए अपनी साँस संभालती हुई
उठ कर बैठ गयी और फिर अपनी टाँगें मेरे दोनो तरफ रख कर बैठ गयी.

"इट्स ड्राइ ... घुसेगा नही" मैने कहा तो वो रुकी और नीचे झुक कर लंड
थोड़ा सा अपने मुँह में लिया, जीभ रगड़ कर थूक से गीला किया और फिर सीधी
होकर अपनी चूत पर लगाया.

"आआहह" लंड पकड़े वो नीचे को बैठी तो इस बार मेरे मुँह से भी आह छूट
पड़ी. अपने दोनो हाथ मेरी छाती पर रख कर वो अपनी गांद उपेर नीचे हिलाने
लगी. उसके शरीर के साथ उसकी चूचियाँ ऐसे हिल रही थी जैसे पपीते के पेड़
पर लटके दो पपीते हवा के झोंके से हिल रहे हों.

"आइ डोंट थिंक आइ कॅन होल्ड एनी लॉंगर" मैने कहा और उसके दोनो चूचियों को
अपने हाथ में जाकड़ लिया.
"थ्ट्स ओके ... मेरा भी होने वाला है" वो अपने गांद तेज़ी से हिलाते हुए बोली
"जब मैं कहूँ तो उठ जाना. निकलने वाला होगा तो बता दूँगा"
"नही ... चूत में ही निकालो ... मुझे वो एक पिल ला देना ....." उसने कहा
और अपनी कमर को और तेज़ी से हिलाने लगी.

"खाना ठंडा हो गया" जब वासना का तूफान उठा तो मैने खाने की तरफ देखता हुआ बोला
"हां हमारे साथ साथ खाने को भी ठंडा होना ही था" वो हँसते हुए बोली "रूको
मैं गरम करके लाती हूँ"
"नही" मैने उसका माथा चूमा और उठकर बैठ गया "आप आराम कीजिए. गुलाम है ना
सेवा करने के लिए"

मैं खाने की प्लेट्स उठाए नीचे किचन में आया तो वो काम करने वाली लड़की
अब भी वहीं बैठी टीवी देख रही थी और तब मुझे ध्यान आया के किस तरह मैं और
रचना दोनो ही पूरी तरह उसको भूल चुके थे.
जितनी ज़ोर ज़ोर से रचना थोड़ी देर पहले शोर मचा रही थी, मुझे पूरा यकीन
था के उसने नीचे सुना ज़रूर होगा. उपेर से मेरी हालत ऐसी थी के कोई एक
नज़र देख कर बता दे के मैं उपेर क्या करके आ रहा हूँ.

जब उसने नज़र भरके मुझे देखा तो जाने क्यूँ पर मैं शर्मिंदा हो गया. वो
उमर में कोई 14-15 साल की थी इसलिए मैं अंदाज़ा नही लगा पाया के वो सेक्स
के बारे में जानती है के नही. क्या उसे समझ आया के उपेर क्या हो रहा था
या नही. मेरी नज़र उससे मिली तो मैं खिसिया कर मुस्कुराया. जवाब में वो
मुझे वैसे ही घूर कर देखती रही और फिर उठ कर कमरे में चली गयी.

"शिट मॅन " मैने अपने आप से कहा और खाना गरम करने लगा. कुच्छ देर बाद ही
वो अपने हाथ में एक पिल्लो और चादर उठाए आई और बेसमेंट का दरवाज़ा खोल कर
सीढ़ियाँ उतर कर नीचे चली गयी.

"चलो अच्छा है के ये नीचे बेसमेंट में रहती है. अट लीस्ट रात भर हमारी
आवाज़ें तो नही सुनेगी" मैने दिल ही दिल में सोचा और खाना गरम करके फिर
रचना के रूम में पहुँचा.

"वी वर टू लाउड यार" मैने उसे कहा
"आइ नो ... बहुत चिल्लाने लगती हूँ ना मैं?" वो भी शर्मिंदा सी होती मेरी
तरफ देखने लगी
मैं उसे बताने ही वाला था के नीचे वो लड़की सब सुन रही थी के मुझसे पहले
रचना बोल पड़ी.
"यू डिड्न्ट गेट दा सपून्स?"
तब मैने देखा के मैं सपून्स नीचे ही छ्चोड़ आया था.
"होल्ड ऑन. मैं ले आती हूँ. हाथ भी धोने हैं मुझे" कहकर वो बिस्तर से उठी
और नीचे चली गयी.
मैं बैठा उसका इंतेज़ार ही कर रहा था के कोई 10 मिनिट बाद एक बर्तन गिरने
और फिर रचना के चिल्लाने की आवाज़ आई. मैं फ़ौरन बिस्तर से उतरा और नीचे
की तरफ भगा.

"यू ओके बेबी?" कहता हुआ मैं नीचे आया और ड्रॉयिंग रूम में जो देखा, वो
देख कर मेरी साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी.
रचना नीचे ज़मीन पर उल्टी पड़ी थी और वो काम करने वाली लड़की उसकी कमर पर
चढ़ि बैठी थी. एक हाथ से उसने रचना के बाल पकड़ रखे थे और दूसरे हाथ से
एक चाकू उसकी गर्दन पर चला रही थी, जैसे कोई बकरा हलाल कर रही हो.
मेरे मुँह से चीख निकल गयी.
मेरे चिल्लाने की आवाज़ सुनकर वो मेरी तरफ पलटी और अपने हाथ को एक झटका
दिया. अगले ही पल रचना की गर्दन कट कर धड़ से अलग हो उसके हाथ में आ गयी.
मेरे मुँह से फिर चीख निकल गयी.

"ही ही ही ही !!" इस बार मेरी चीख के जवाब में वो हस्ती हुई कटा हुआ सर
लिए फिर बेसमेंट का दरवाज़ा खोल कर नीचे भाग गयी.
मैं कुच्छ देर वहाँ खड़ा रचना की सर कटी लाश देखता रहा. तभी बेसमेंट का
दरवाज़ा फिर खुला और वो फिर चाकू लिए बाहर निकली. इस बार मैने भाग कर
अपने आपको बाथरूम में बंद कर लिया और तब तक वहीं रहा जब तक के पोलीस वालो
ने दरवाज़ा तोड़ नही दिया.

"क्या हुआ? वॉट हॅपंड हियर?" कुच्छ देर बाद एक पोलिसेवला मेरी आँखों में
टॉर्च मारता हुआ चिल्ला कर मुझसे पुच्छ रहा था. मेरे सामने ही रचना के
मोम डॅड बैठे रो रहे थे और मुझे देख रहे थे.
"यौर मैड किल्ड हर. उस लड़की ने मार डाला उसे"
वो दोनो हैरत से मेरी तरफ देखने लगे.
"व्हाट मैड? हमने इस घर में फिलहाल कोई मैड रखी ही नही है. ढूँढ रहे हैं
अब तक" उसके बाप का जवाब आया
"क्या बकते हो?" मैं लगभग चिल्ला पड़ा "तो वो कौन है जो नीचे बेसमेंट में रहती है?"
इस बार रचना के मोम डॅड के साथ पोलिसेवाले भी मुझे हैरत से देखने लगे.

"कौन सा बेसमेंट?" एक पोलिसेवला बोला "इस घर में तो कोई बेसमेंट है ही नही"
 
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