hotaks444
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हिंदी सेक्सी कहानियाँ
चिराग
मिसेज़. शाँतिलाल को जब मैने देखा तो देखता ही रह गया. 35 साल की मिसेज़ शाँतिलाल कहीं से भी 25 से ज़्यादा की नहीं लग रही थी. गुलाबी रंगत लिए सफेद रंग, लंबा क़द बड़ी बड़ी आँखें. तराशे हुए होन्ट जैसे अभी उन मे से रस टपक पड़ेंगा.
सुरहिदार गर्दन के नीचे उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ कसी हुई ब्लाउस से साफ झलक रही थीं. पतली कमर और फिर पीछे काफ़ी उभार लिए नितंब.
"उहह...हुउऊउ..." जब मिसेज़. शाँतिलाल को लगा कि मैं जल्दी होश मे नहीं आने वाला तो उस ने अपने गला को साफ करते हुवे मेरा ध्यान भंग किया, तब मैं ह्ड्बाडा कर इधर उधर देखने लगा.
"म...म...मैं हरीश हूँ, आपकी फॅक्टरी का नया मुलाज़िम हूँ, मुझे सेठ जी ने आपके पास भेजा है."
" मैं तो प्रिया हूँ. ग्लॅड टू सी यू." उस ने अपना खूबसूरत हाथ आगे बढ़ाया और मुझे कुच्छ हरकत करता नही पाकर खुद मेरा हाथ खींच कर पकड़ लिया."ओके....पर क्या हम गेट पर ही बातें करें या अंदर चलें..." वह हँसी और मैं उसकी हँसी मे खो चुका था.
"बेटा हारीश आज तेरी खैर नहीं, तू सही सलामत निकल ले." यह सब
सोचते हुए मैं प्रिया के पिछे चल पड़ा. चलते हुए उसके नितंबों की थिरकन देख कर मेरा तो बुरा हाल था.
मेरा जूनियर मेरे अंडरवेर के अंदर उच्छल-कूद कर रहा था. उसे देख कर तो मुर्दों के भी खड़ा हो जाते, मैं तो एक तंदुरुस्त और हंडसॉम नौजवान था.
सेठ शाँतिलाल के ऑफीस मे आस आन अकाउंट क्लर्क मैं ने हफ्ते भर पहले जाय्न किया था. मेरे काम से सेठ काफ़ी खुश था. आज मैं जैसे ही ऑफीस पहुँचा सेठ जी ने अपने चेंबर मे बुला लिया. "हरीश, तुझे बुरा ना लगे तो क्या तुम मेरा एक घरेलू काम कर सकते हो."
सेठ जी की इंसानियत के तो मैं ने काफ़ी चर्चे सुने थे और आज सेठ की बात सुन कर मुझे यकीन हो गया.
"आप हुक्म कीजिए सर, मैं ज़रूर करूँगा."
"तुम कोठी चले जाओ. तुम्हारी मालकिन यानी मिसेज़ शाँतिलाल को कुच्छ शॉपिंग करनी है. शाम को वहीं से अपने घर चले जाना.
मैं सेठ शाँतिलाल के बेडरूम मे बैठा सॉफ्ट-ड्रिंक पीते हुए कमरे का जायेज़ा ले रहा था. सेठ जी की वाइफ प्रिया मुझे यहीं सोफे पर बिठा कर बाथरूम मे घुस चुकी थी.
"हारिस...थोड़ा टवल दे देना...सामने रखा है.''
मैं टवल लेकर बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा. गेट पर हल्का हाथ रखा ही था कि वह खुल गया. गाते खुलने से मैं लड़खराया और बॅलेन्स बनाने के लिए एक कदम बाथरूम के भीतर रखा.
मगर मेरा पैर वहाँ रखे सोप पर पड़ा और मैं फिसलता हुआ सीधा बाथरूम मे घुस गया, जहाँ प्रिया मात्र एक छ्होटी सी पॅंटी मे खड़ी थी. मैं उस से टकराया और उसे लेते हुए बाथरूम की फर्श पर गिरा.
मुझे तो कोई खास चोट नहीं आई पर प्रिया को शायद काफ़ी चोटें आई थी. वो लगातार कराहे जा रही थी. उसका नंगा बदन और उसे दर्द से कराहता देख कर समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करूँ.
"प्लीज़....मुझे उठाओ"मुझे कुच्छ करता ना देख वो कराहती हुई बोली. मैं झट से उसे उठा लिया. आ मैं उस चिकने और रेशम जैसे नर्म बदन को अपनी गोद मे उठाए हुआ था.
उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरे सीने से चिपकी हुई थीं. उसका भीगा हुआ चेहरा मेरे चेहरे से आधे इंच दूर था. उसकी साँसें मेरे नथुनो से टकरा रही थीं.
मुझे ना जाने क्या हुआ कि अपने होन्ट उसके गुलाबी होंटो पर रख दिए. मैं उसकी आँखों मे देख रहा था. उसकी आँखों मे मुझे हैरत भरी खुशी दिखाई पड़ी, जबकि चंद सेकेंड पहले उसकी आँखों मे केवल तकलीफ़ दिखाई दे रही थी.
"जब काफ़ी देर बाद मैं ने अपने होन्ट अलग किए तो वह हाँफ रही थी. उसके चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट थी. मैं तो अपने होश खो ही चुका था मगर उसकी नशीली मुस्कुराहट ने मुझे हौसला दिया.
मैं भूल गया था कि वह तकलीफ़ मे है. मेरे गुस्ताख
लब जैसे ही दुबारा आगे बढ़े अचानक उसने अपना हाथ आगे लाकर मुझे रोक दिया.
"बड़े जोशीले नौजवान हो तुम....लेकिन मैं तकलीफ़ मे हूँ.''उसी जानलेवा मुस्कुराहट के बीच वह बोली. मैं खुद को बुरा भला कहने लगा. उसे बेड पर ला कर धीरे से लिटा दिया.
वह अपने कूल्हे को पकड़ कर कराह रही थी.
"प्रिया जी मैं डॉक्टर को खबर करूँ?" उसके गोल गोल ठोस उभारो से बमुश्किल नज़रें हटाकर मैने पुछा.
"ओह्ह्ह.... नहीं...हारिस...तुम थोड़ी मालिश कर सकते हो?" मैं झट से तैयार हो गया. बेड के ड्रॉयर से मूव निकाल कर मैं मालिश करने पहुँच गया.
"मेरी पॅंटी गीली है....इसे प्लीज़ निकाल दो और पहले वह चादर मुझ पर डाल दो. ओह्ह्ह.."
मैने सामने हॅंगर पर रखा बारीक सा चादर उस पर डाल दिया, तब मुझे पता चला कि उसका हाहकारी जिस्म इस नाज़ुक सी चादर मे नहीं छुप सकता.
अब मुझे उस अप्सरा की पतली कमर के नीचे विशाल चूतदों से उसकी पॅंटी खिचना. मेरे होन्ट सुख रहे थे. चादर के भीतर उस का एक एक अंग पूरी आबो ताब के साथ चमक रहा था.
मैं ने धीरे से उसकी जाँघो के पास चादर मे अपने दोनों हाथ घुसाए. वो शांत पीठ के बल लेटी मेरे एक एक हरकत को देख रही थी. उसके चेहरे पर मंद मुस्कुराहट खेल रही थी. जब मेरी नज़र उसके मुस्कुराते लबों पर पड़ी तो मैं और भी नर्वस हो गया.
मेरी हाथों की लरज़िश साफ देखी जा सकती थी. आख़िर मेरी उंगली उसकी जाँघ च्छू गयी. क्या कहूँ उस रेशमी अहसास का. मेरी पूरी हथेली और उंगलियाँ उसकी जांघों से सॅट कर बहुत ही धीरे धीरे उपर की तरफ बढ़ रहे थे.
"उफफफफ्फ़....ओह्ह्ह" उसकी आवाज़ मे तकलीफ़ कम और मस्ती ज़्यादा थी. हथेलियों का सफ़र जारी था. इसी बीच मेरे दोनो अंगूठे जांघों की जोड़ पर रुक गये. जब मेरा उधर ध्यान गया तो मैं पसीने पसीने हो गया. गीली पॅंटी उसकी योनि से चिपक गयी यही. मेरे अंगूठे उसके
उभरी हुई योनि को ढके हुए थे. प्रिया की साँसें अचानक तेज़ चलने लगी थीं.
मैं अपने हाथो को और उपर सरकाते हुए पॅंटी की एलास्टिक तक पहुँच ही गया. "हारीश...जल्दी करो ना.." अपनी उठती गिरती साँसों के बीच कराहती आवाज़ मे बोली. मैं ने दोनो तरफ से एलएस्टिक मे उंगलियाँ डाल कर पॅंटी को नीचे खिचना शुरू किया.
"पता नहीं इतनी छ्होटी पॅंटी कैसे पहनती है." बड़ी मुश्किल से मैं उसे नीचे खींच रहा था. उसने अपनी चूतड़ उठा कर पॅंटी निकालने मे मेरी मदद की.
पारदर्शी चादर से उसके शरीर का एक एक कटाव सॉफ झलक रहा था. आज मैं ज़िंदगी मे पहली बार किसी जवान औरत को सर से पैर तक नंगा देख रहा था.
मेरे लिंग का तनाव बाहर से सॉफ पता चल रहा था जिसे च्छुपाने का कोई उपाए नहीं था.
मूव हाथ मे लेकर मैं बेड पर बैठ गया. टाइट जींस के कारण मुझे बैठने मे परेशानी को देख कर उसने मुझे पॅंट उतार कर बैठने को कहा. शरमाते, झिझकते मैं अपना पॅंट उतार कर बैठ गया. तभी वह पलट कर पेट के बल हो गयी साथ साथ
चादर सिमट कर एक साइड हो गयी और पीछे से उसका पूरा शरीर खुल गया.
उस ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने नितंब पर रखा और मालिश करने को कहा. काँपते हाथों से उसके पहाड़ से उभरे, चिकने और गोरे चूतदों पर मूव की मालिश करने लगा.
मेरा 8'' का लिंग अंडरवेर से बाहर निकलने को बेताब था. एक बार जब मेरी नज़र उस के चेहरे की तरफ गयी ती उसे मेरे लिंग के उभार की तरफ देखता पाकर शर्मा गया लेकिन कोई चारा नहीं था.
तभी उसी हालत मे लेटे लेटे एक हाथ मेरे लिंग के उभार पर रख दिया. मैं तो एकदम थर्रा गया.
"क्यों तकलीफ़ दे रहे हो ऐसे, बाहर निकाल दो." वह धीरे से वहाँ हाथ फेरते हुए बोली.
मुझे तो लग रहा था कि अब च्छुटा तब च्छुटा. बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाता हुआ
बोला
"ये...ये आप क्या कर रही हैं?"
चिराग
मिसेज़. शाँतिलाल को जब मैने देखा तो देखता ही रह गया. 35 साल की मिसेज़ शाँतिलाल कहीं से भी 25 से ज़्यादा की नहीं लग रही थी. गुलाबी रंगत लिए सफेद रंग, लंबा क़द बड़ी बड़ी आँखें. तराशे हुए होन्ट जैसे अभी उन मे से रस टपक पड़ेंगा.
सुरहिदार गर्दन के नीचे उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ कसी हुई ब्लाउस से साफ झलक रही थीं. पतली कमर और फिर पीछे काफ़ी उभार लिए नितंब.
"उहह...हुउऊउ..." जब मिसेज़. शाँतिलाल को लगा कि मैं जल्दी होश मे नहीं आने वाला तो उस ने अपने गला को साफ करते हुवे मेरा ध्यान भंग किया, तब मैं ह्ड्बाडा कर इधर उधर देखने लगा.
"म...म...मैं हरीश हूँ, आपकी फॅक्टरी का नया मुलाज़िम हूँ, मुझे सेठ जी ने आपके पास भेजा है."
" मैं तो प्रिया हूँ. ग्लॅड टू सी यू." उस ने अपना खूबसूरत हाथ आगे बढ़ाया और मुझे कुच्छ हरकत करता नही पाकर खुद मेरा हाथ खींच कर पकड़ लिया."ओके....पर क्या हम गेट पर ही बातें करें या अंदर चलें..." वह हँसी और मैं उसकी हँसी मे खो चुका था.
"बेटा हारीश आज तेरी खैर नहीं, तू सही सलामत निकल ले." यह सब
सोचते हुए मैं प्रिया के पिछे चल पड़ा. चलते हुए उसके नितंबों की थिरकन देख कर मेरा तो बुरा हाल था.
मेरा जूनियर मेरे अंडरवेर के अंदर उच्छल-कूद कर रहा था. उसे देख कर तो मुर्दों के भी खड़ा हो जाते, मैं तो एक तंदुरुस्त और हंडसॉम नौजवान था.
सेठ शाँतिलाल के ऑफीस मे आस आन अकाउंट क्लर्क मैं ने हफ्ते भर पहले जाय्न किया था. मेरे काम से सेठ काफ़ी खुश था. आज मैं जैसे ही ऑफीस पहुँचा सेठ जी ने अपने चेंबर मे बुला लिया. "हरीश, तुझे बुरा ना लगे तो क्या तुम मेरा एक घरेलू काम कर सकते हो."
सेठ जी की इंसानियत के तो मैं ने काफ़ी चर्चे सुने थे और आज सेठ की बात सुन कर मुझे यकीन हो गया.
"आप हुक्म कीजिए सर, मैं ज़रूर करूँगा."
"तुम कोठी चले जाओ. तुम्हारी मालकिन यानी मिसेज़ शाँतिलाल को कुच्छ शॉपिंग करनी है. शाम को वहीं से अपने घर चले जाना.
मैं सेठ शाँतिलाल के बेडरूम मे बैठा सॉफ्ट-ड्रिंक पीते हुए कमरे का जायेज़ा ले रहा था. सेठ जी की वाइफ प्रिया मुझे यहीं सोफे पर बिठा कर बाथरूम मे घुस चुकी थी.
"हारिस...थोड़ा टवल दे देना...सामने रखा है.''
मैं टवल लेकर बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा. गेट पर हल्का हाथ रखा ही था कि वह खुल गया. गाते खुलने से मैं लड़खराया और बॅलेन्स बनाने के लिए एक कदम बाथरूम के भीतर रखा.
मगर मेरा पैर वहाँ रखे सोप पर पड़ा और मैं फिसलता हुआ सीधा बाथरूम मे घुस गया, जहाँ प्रिया मात्र एक छ्होटी सी पॅंटी मे खड़ी थी. मैं उस से टकराया और उसे लेते हुए बाथरूम की फर्श पर गिरा.
मुझे तो कोई खास चोट नहीं आई पर प्रिया को शायद काफ़ी चोटें आई थी. वो लगातार कराहे जा रही थी. उसका नंगा बदन और उसे दर्द से कराहता देख कर समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करूँ.
"प्लीज़....मुझे उठाओ"मुझे कुच्छ करता ना देख वो कराहती हुई बोली. मैं झट से उसे उठा लिया. आ मैं उस चिकने और रेशम जैसे नर्म बदन को अपनी गोद मे उठाए हुआ था.
उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरे सीने से चिपकी हुई थीं. उसका भीगा हुआ चेहरा मेरे चेहरे से आधे इंच दूर था. उसकी साँसें मेरे नथुनो से टकरा रही थीं.
मुझे ना जाने क्या हुआ कि अपने होन्ट उसके गुलाबी होंटो पर रख दिए. मैं उसकी आँखों मे देख रहा था. उसकी आँखों मे मुझे हैरत भरी खुशी दिखाई पड़ी, जबकि चंद सेकेंड पहले उसकी आँखों मे केवल तकलीफ़ दिखाई दे रही थी.
"जब काफ़ी देर बाद मैं ने अपने होन्ट अलग किए तो वह हाँफ रही थी. उसके चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट थी. मैं तो अपने होश खो ही चुका था मगर उसकी नशीली मुस्कुराहट ने मुझे हौसला दिया.
मैं भूल गया था कि वह तकलीफ़ मे है. मेरे गुस्ताख
लब जैसे ही दुबारा आगे बढ़े अचानक उसने अपना हाथ आगे लाकर मुझे रोक दिया.
"बड़े जोशीले नौजवान हो तुम....लेकिन मैं तकलीफ़ मे हूँ.''उसी जानलेवा मुस्कुराहट के बीच वह बोली. मैं खुद को बुरा भला कहने लगा. उसे बेड पर ला कर धीरे से लिटा दिया.
वह अपने कूल्हे को पकड़ कर कराह रही थी.
"प्रिया जी मैं डॉक्टर को खबर करूँ?" उसके गोल गोल ठोस उभारो से बमुश्किल नज़रें हटाकर मैने पुछा.
"ओह्ह्ह.... नहीं...हारिस...तुम थोड़ी मालिश कर सकते हो?" मैं झट से तैयार हो गया. बेड के ड्रॉयर से मूव निकाल कर मैं मालिश करने पहुँच गया.
"मेरी पॅंटी गीली है....इसे प्लीज़ निकाल दो और पहले वह चादर मुझ पर डाल दो. ओह्ह्ह.."
मैने सामने हॅंगर पर रखा बारीक सा चादर उस पर डाल दिया, तब मुझे पता चला कि उसका हाहकारी जिस्म इस नाज़ुक सी चादर मे नहीं छुप सकता.
अब मुझे उस अप्सरा की पतली कमर के नीचे विशाल चूतदों से उसकी पॅंटी खिचना. मेरे होन्ट सुख रहे थे. चादर के भीतर उस का एक एक अंग पूरी आबो ताब के साथ चमक रहा था.
मैं ने धीरे से उसकी जाँघो के पास चादर मे अपने दोनों हाथ घुसाए. वो शांत पीठ के बल लेटी मेरे एक एक हरकत को देख रही थी. उसके चेहरे पर मंद मुस्कुराहट खेल रही थी. जब मेरी नज़र उसके मुस्कुराते लबों पर पड़ी तो मैं और भी नर्वस हो गया.
मेरी हाथों की लरज़िश साफ देखी जा सकती थी. आख़िर मेरी उंगली उसकी जाँघ च्छू गयी. क्या कहूँ उस रेशमी अहसास का. मेरी पूरी हथेली और उंगलियाँ उसकी जांघों से सॅट कर बहुत ही धीरे धीरे उपर की तरफ बढ़ रहे थे.
"उफफफफ्फ़....ओह्ह्ह" उसकी आवाज़ मे तकलीफ़ कम और मस्ती ज़्यादा थी. हथेलियों का सफ़र जारी था. इसी बीच मेरे दोनो अंगूठे जांघों की जोड़ पर रुक गये. जब मेरा उधर ध्यान गया तो मैं पसीने पसीने हो गया. गीली पॅंटी उसकी योनि से चिपक गयी यही. मेरे अंगूठे उसके
उभरी हुई योनि को ढके हुए थे. प्रिया की साँसें अचानक तेज़ चलने लगी थीं.
मैं अपने हाथो को और उपर सरकाते हुए पॅंटी की एलास्टिक तक पहुँच ही गया. "हारीश...जल्दी करो ना.." अपनी उठती गिरती साँसों के बीच कराहती आवाज़ मे बोली. मैं ने दोनो तरफ से एलएस्टिक मे उंगलियाँ डाल कर पॅंटी को नीचे खिचना शुरू किया.
"पता नहीं इतनी छ्होटी पॅंटी कैसे पहनती है." बड़ी मुश्किल से मैं उसे नीचे खींच रहा था. उसने अपनी चूतड़ उठा कर पॅंटी निकालने मे मेरी मदद की.
पारदर्शी चादर से उसके शरीर का एक एक कटाव सॉफ झलक रहा था. आज मैं ज़िंदगी मे पहली बार किसी जवान औरत को सर से पैर तक नंगा देख रहा था.
मेरे लिंग का तनाव बाहर से सॉफ पता चल रहा था जिसे च्छुपाने का कोई उपाए नहीं था.
मूव हाथ मे लेकर मैं बेड पर बैठ गया. टाइट जींस के कारण मुझे बैठने मे परेशानी को देख कर उसने मुझे पॅंट उतार कर बैठने को कहा. शरमाते, झिझकते मैं अपना पॅंट उतार कर बैठ गया. तभी वह पलट कर पेट के बल हो गयी साथ साथ
चादर सिमट कर एक साइड हो गयी और पीछे से उसका पूरा शरीर खुल गया.
उस ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने नितंब पर रखा और मालिश करने को कहा. काँपते हाथों से उसके पहाड़ से उभरे, चिकने और गोरे चूतदों पर मूव की मालिश करने लगा.
मेरा 8'' का लिंग अंडरवेर से बाहर निकलने को बेताब था. एक बार जब मेरी नज़र उस के चेहरे की तरफ गयी ती उसे मेरे लिंग के उभार की तरफ देखता पाकर शर्मा गया लेकिन कोई चारा नहीं था.
तभी उसी हालत मे लेटे लेटे एक हाथ मेरे लिंग के उभार पर रख दिया. मैं तो एकदम थर्रा गया.
"क्यों तकलीफ़ दे रहे हो ऐसे, बाहर निकाल दो." वह धीरे से वहाँ हाथ फेरते हुए बोली.
मुझे तो लग रहा था कि अब च्छुटा तब च्छुटा. बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाता हुआ
बोला
"ये...ये आप क्या कर रही हैं?"