desiaks
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दसवीं रात ऐसी कोई घटना नहीं घटी। शान्ति छाई रही... फिर मुझे दूर बहुत दूर धुन्ध में एक छाया दिखाई दी। वह काफी देर से मुझे निहार रही थी पर खाका अस्पष्ट था।
यह कम आश्चर्य की बात नहीं थी कि मैं वहां देख सकता था और वैसे अंधा था।ग्यारहवीं रात हवा में तीखापन था... धुंध सी फिर छा गई और इस बार भी वही छाया दिखाई पड़ी। उसका आकार कुछ बढ़ गया था और आज वह और निकट आ गई थी। लेकिन स्पष्ट कुछ न था।
इस प्रकार जैसे-जैसे दिन बीतते गए वह छाया और भी नजदीक आती गई। मैं अब उसे टकटकी बांधे देखता था। उसका आकार मुझसे कुछ अधिक लंबा हो गया था। बीसवीं रात छाया स्पष्ट नजर आई। वह लाल वस्त्र धारण किये किसी शहजादे जैसा था। उसका शारीर लगभग सात फिट लंबा था और शरीर कसरती नजर आता था। उसकी कलाई में चमकीली पत्तियां पड़ी थी। सीने पर भी वैसी ही चमकीली पट्टी थी।
उसका माथा काफी चौड़ा था और आँखें खौफ की प्रतीक थी। उसके लाल लबादे से कभी-कभी आग के शोले उठते थे।
इक्कीसवीं रात वह कुछ बोल पड़ा।
मैंने सुना वह कह रहा था – “क्यों पीछे पड़े हो... जाओ अभी भी वक़्त है।”
मैंने उसकी एक ना मानी। उसके स्वर में बाइसवीं रात गिड़गिड़ाहट थी। इक्कीसवीं रात तो वह धमकी भरे स्वर में बोल रहा था। वह बार-बार मुझे वापिस जाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा।
मुझे उसकी बातें सुन-सुनकर आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह इस बात की दुहाई देता रहा की उसका घर संसार तबाह हो जायेगा। उसने मुझे बहुत से लालच भी दिए पर मैंने कोई उत्तर नहीं दिया न उससे यह पूछा कि वह कौन है।
तेइसवीं रात साधना की आखिरी रात थी। उस रात वह जोरदार कड़कड़ाहट की ध्वनि के साथ प्रकट हुआ।
“मैं हाजिर हूँ मेरे आका।” वह घुटनों के बल झुकते हुए बोला – “अगिया बेताल आपकी सेवा में हाजिर है।”
“अगिया बेताल।” मेरे मुह से स्वर निकला – “आज से तुम मेरे गुलाम हो।”
“इससे पहले मेरी कुछ शर्तें है। जब आप उन शर्तों को पूरी कर देंगे तो मैं आपका गुलाम बना रहूंगा।”
“अपनी शर्तें बताओ।”
“तो सुनो।” वह सीधा खड़ा हो गया – “आपने मुझे तेईस रोज की साधना से प्राप्त किया है... इसलिए मेरी शक्ति तेईस दिन तक रहेगी। हर तेइसवें दिन मैं नरबलि लूँगा तभी मैं तुम्हारे साथ रहूंगा – बोलो मुझे तेइसवें रोज बलि दोगे।”
कुछ सोचकर मैंने कहा – “दूंगा।”
दूसरी बात – आप किसी धार्मिक स्थान में आज के बाद कदम नहीं रखोगे – मंजूर।”
“मंजूर...।”
“किसी धार्मिक आदमी पर मेरा प्रयोग नहीं करोगे।”
“मंजूर...।”
“मैं सिर्फ हानि पहुंचा सकता हूँ, मुझे सिर्फ विनाश का काम लेना होगा या व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिये।”
“मंजूर...।”
“और यदि आपने इन बातों का पालन न किया तो...।”
“तो तुम जो चाहो कर सकते हो।”
“ठीक है... अब अगिया बेताल आप का गुलाम है... बोलिए क्या हुक्म है मेरे लिए...।”
“तुम्हें अपने पास बुलाने का क्या तरीका है ?”
“जब भी आप मंत्र का उच्चारण करेंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा... चाहे आप जहाँ हो। मैं सिर्फ आपको नजर आऊंगा...मेरा दूसरा रूप आग का गोला है। वह बरगद मेरा घर है... मेरे अधीन सभी बेताल उस पर उलटे लटके रहते है। मैं उनका शहजादा हूँ।
“बेताल... मैं सबसे पहले अपनी आँखों की रौशनी चाहता हूँ।”
“मैं देख रहा हूँ। कालिया मसान आपकी आँखों में घुसा बैठा है और यह किसी तांत्रिक का करतब है। यह कालिया मसान अँधेरे का बादशाह है और मैं रौशनी का। इसे सिर्फ मैं ही परास्त कर सकता हूँ। अभी आप इसका नजारा देखेंगे।
कुछ क्षण बाद ही बेताल हाथ फैलाकर खड़ा हो गया। मुझे ऐसा लगा जैसे आँखों में सुइयां चुभ रही हो उसके बाद जोरदार धमाका हुआ और मैंने एक काले भुजंग शैतान को जमीन पर गिरते देखा।
बेताल उसके सीने पर सवार था।
वह बेताल से मुक्त होने की पुरजोर शक्ति लगा रहा था। पर उसका हर वार असफल हो रहा था।
“बोल मसान.... किसका दास है तू... तुझे मेरे आका की आँखों में किसने भेजा... बता।”
“ब...बताता हूँ।” वह मिमियाया।
अगिया बेताल ने उसके बाल मुट्ठी में जकड़ लिये। कालिया मसान कराहने लगा।
“मैं भैरव तांत्रिक का दास हूँ।” वह बोला।
“कहाँ रहता है तेरा गुरु ?”
“काले पहाड़ पर...।”
“हरामजादे अब इधर का रूख न करना...वरना जड़ से नाश कर दूंगा।”
“इस कमीने को मार डालो बेताल।” मैंने कहा – “इसने मुझे बहुत दुःख पहुँचाया है।”
यह कम आश्चर्य की बात नहीं थी कि मैं वहां देख सकता था और वैसे अंधा था।ग्यारहवीं रात हवा में तीखापन था... धुंध सी फिर छा गई और इस बार भी वही छाया दिखाई पड़ी। उसका आकार कुछ बढ़ गया था और आज वह और निकट आ गई थी। लेकिन स्पष्ट कुछ न था।
इस प्रकार जैसे-जैसे दिन बीतते गए वह छाया और भी नजदीक आती गई। मैं अब उसे टकटकी बांधे देखता था। उसका आकार मुझसे कुछ अधिक लंबा हो गया था। बीसवीं रात छाया स्पष्ट नजर आई। वह लाल वस्त्र धारण किये किसी शहजादे जैसा था। उसका शारीर लगभग सात फिट लंबा था और शरीर कसरती नजर आता था। उसकी कलाई में चमकीली पत्तियां पड़ी थी। सीने पर भी वैसी ही चमकीली पट्टी थी।
उसका माथा काफी चौड़ा था और आँखें खौफ की प्रतीक थी। उसके लाल लबादे से कभी-कभी आग के शोले उठते थे।
इक्कीसवीं रात वह कुछ बोल पड़ा।
मैंने सुना वह कह रहा था – “क्यों पीछे पड़े हो... जाओ अभी भी वक़्त है।”
मैंने उसकी एक ना मानी। उसके स्वर में बाइसवीं रात गिड़गिड़ाहट थी। इक्कीसवीं रात तो वह धमकी भरे स्वर में बोल रहा था। वह बार-बार मुझे वापिस जाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा।
मुझे उसकी बातें सुन-सुनकर आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह इस बात की दुहाई देता रहा की उसका घर संसार तबाह हो जायेगा। उसने मुझे बहुत से लालच भी दिए पर मैंने कोई उत्तर नहीं दिया न उससे यह पूछा कि वह कौन है।
तेइसवीं रात साधना की आखिरी रात थी। उस रात वह जोरदार कड़कड़ाहट की ध्वनि के साथ प्रकट हुआ।
“मैं हाजिर हूँ मेरे आका।” वह घुटनों के बल झुकते हुए बोला – “अगिया बेताल आपकी सेवा में हाजिर है।”
“अगिया बेताल।” मेरे मुह से स्वर निकला – “आज से तुम मेरे गुलाम हो।”
“इससे पहले मेरी कुछ शर्तें है। जब आप उन शर्तों को पूरी कर देंगे तो मैं आपका गुलाम बना रहूंगा।”
“अपनी शर्तें बताओ।”
“तो सुनो।” वह सीधा खड़ा हो गया – “आपने मुझे तेईस रोज की साधना से प्राप्त किया है... इसलिए मेरी शक्ति तेईस दिन तक रहेगी। हर तेइसवें दिन मैं नरबलि लूँगा तभी मैं तुम्हारे साथ रहूंगा – बोलो मुझे तेइसवें रोज बलि दोगे।”
कुछ सोचकर मैंने कहा – “दूंगा।”
दूसरी बात – आप किसी धार्मिक स्थान में आज के बाद कदम नहीं रखोगे – मंजूर।”
“मंजूर...।”
“किसी धार्मिक आदमी पर मेरा प्रयोग नहीं करोगे।”
“मंजूर...।”
“मैं सिर्फ हानि पहुंचा सकता हूँ, मुझे सिर्फ विनाश का काम लेना होगा या व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिये।”
“मंजूर...।”
“और यदि आपने इन बातों का पालन न किया तो...।”
“तो तुम जो चाहो कर सकते हो।”
“ठीक है... अब अगिया बेताल आप का गुलाम है... बोलिए क्या हुक्म है मेरे लिए...।”
“तुम्हें अपने पास बुलाने का क्या तरीका है ?”
“जब भी आप मंत्र का उच्चारण करेंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा... चाहे आप जहाँ हो। मैं सिर्फ आपको नजर आऊंगा...मेरा दूसरा रूप आग का गोला है। वह बरगद मेरा घर है... मेरे अधीन सभी बेताल उस पर उलटे लटके रहते है। मैं उनका शहजादा हूँ।
“बेताल... मैं सबसे पहले अपनी आँखों की रौशनी चाहता हूँ।”
“मैं देख रहा हूँ। कालिया मसान आपकी आँखों में घुसा बैठा है और यह किसी तांत्रिक का करतब है। यह कालिया मसान अँधेरे का बादशाह है और मैं रौशनी का। इसे सिर्फ मैं ही परास्त कर सकता हूँ। अभी आप इसका नजारा देखेंगे।
कुछ क्षण बाद ही बेताल हाथ फैलाकर खड़ा हो गया। मुझे ऐसा लगा जैसे आँखों में सुइयां चुभ रही हो उसके बाद जोरदार धमाका हुआ और मैंने एक काले भुजंग शैतान को जमीन पर गिरते देखा।
बेताल उसके सीने पर सवार था।
वह बेताल से मुक्त होने की पुरजोर शक्ति लगा रहा था। पर उसका हर वार असफल हो रहा था।
“बोल मसान.... किसका दास है तू... तुझे मेरे आका की आँखों में किसने भेजा... बता।”
“ब...बताता हूँ।” वह मिमियाया।
अगिया बेताल ने उसके बाल मुट्ठी में जकड़ लिये। कालिया मसान कराहने लगा।
“मैं भैरव तांत्रिक का दास हूँ।” वह बोला।
“कहाँ रहता है तेरा गुरु ?”
“काले पहाड़ पर...।”
“हरामजादे अब इधर का रूख न करना...वरना जड़ से नाश कर दूंगा।”
“इस कमीने को मार डालो बेताल।” मैंने कहा – “इसने मुझे बहुत दुःख पहुँचाया है।”