desiaks
Administrator
- Joined
- Aug 28, 2015
- Messages
- 24,893
“तू मुझे ठीक करेगा... मैं तेरा खून पी जाउंगी... मैं ब्रह्म राक्षस की बीवी हूँ... ही... ही... ही...।
“अरे इसे पकड़ो... यह तो पागल है।” मैं चिल्लाया।
बड़ी कठिनाई से उसे पुनः पकड़ा गया। वह अब बैठे-बैठे झूम रही थी।
मैं कपडे झाड़ कर खड़ा हुआ। अब मुझे उससे डर लग रहा था।
“यह कब से पागल है ?” मैंने अपनी झेंप मिटाने के लिए पूछा।
“पागल... चार रोज पहले तो ठीक थी... पागल नहीं साहब... ब्रह्म राक्षस है... यह रात को पीपल के पेड़ तक गई थी... शौच करने... बस वहीं राक्षस ने इसे पकड़ लिया। अब बताओ... इस हालत में मैं इसे ससुराल कैसे भेजूंगा... मेरी तो नाक कट जायेगी।”
“ससुराल जाना चाहती है ये।”
“अरे साहब ठीक हो जाये तो इसका बाप भी जाएगा।”
अचानक मेरे दिमाग में एक युक्ति आई। वह बीमार तो बिलकुल नहीं लगती थी, फिर भी मैंने एक बार देख लेना उचित समझा।
“अच्छा मैं अभी आता हूँ।” मैं भीतर चला गया। डाक्टरी का छोटा-मोटा सामान मैं हर वक़्त अपने साथ रखता था।
जब मैं अन्दर पहुंचा तो बुढ़िया ने पूछा – “भगा दिया राक्षस को।”
“अभी भाग जायेगा”
“मैं कहती हूँ उससे टक्कर न लेना।”
मैं बिना कुछ जवाब दिये अपना सामान लेकर बाहर पहुंचा, फिर मैंने उसे चेक करना शुरू कर दिया। वह सचमुच सामान्य थी। उसे कुछ नहीं हुआ था। वे लोग आश्चर्य से भूत-प्रेत उतारने की इस नई प्रणाली को देख रहे थे।
“हूँ तो ये बात है।” मैंने कहा।
“क्या बात है...?” बूढा चौंका।
“फिक्र न करो... इसका पति कहाँ है?”
“पति... पति क्या करेगा... अरे साहब – वह तो बड़ा खतरनाक आदमी है... मेरे तो गले आ रही है...।”
“कोई बात नहीं... अब मैं देखता हूँ इस राक्षस को।”
बस एक युक्ति दिमाग में आ गई और मुझे उसी की संभावना लग रही थी।
“इसे जरा अन्दर के कमरे में ले चलो।”
मेरी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। वह जाना नहीं चाहती थी पर अब मैं उसका भूत उतारने के लिए पूरी तरह तैयार हो गया था।
“अरे इसे पकड़ो... यह तो पागल है।” मैं चिल्लाया।
बड़ी कठिनाई से उसे पुनः पकड़ा गया। वह अब बैठे-बैठे झूम रही थी।
मैं कपडे झाड़ कर खड़ा हुआ। अब मुझे उससे डर लग रहा था।
“यह कब से पागल है ?” मैंने अपनी झेंप मिटाने के लिए पूछा।
“पागल... चार रोज पहले तो ठीक थी... पागल नहीं साहब... ब्रह्म राक्षस है... यह रात को पीपल के पेड़ तक गई थी... शौच करने... बस वहीं राक्षस ने इसे पकड़ लिया। अब बताओ... इस हालत में मैं इसे ससुराल कैसे भेजूंगा... मेरी तो नाक कट जायेगी।”
“ससुराल जाना चाहती है ये।”
“अरे साहब ठीक हो जाये तो इसका बाप भी जाएगा।”
अचानक मेरे दिमाग में एक युक्ति आई। वह बीमार तो बिलकुल नहीं लगती थी, फिर भी मैंने एक बार देख लेना उचित समझा।
“अच्छा मैं अभी आता हूँ।” मैं भीतर चला गया। डाक्टरी का छोटा-मोटा सामान मैं हर वक़्त अपने साथ रखता था।
जब मैं अन्दर पहुंचा तो बुढ़िया ने पूछा – “भगा दिया राक्षस को।”
“अभी भाग जायेगा”
“मैं कहती हूँ उससे टक्कर न लेना।”
मैं बिना कुछ जवाब दिये अपना सामान लेकर बाहर पहुंचा, फिर मैंने उसे चेक करना शुरू कर दिया। वह सचमुच सामान्य थी। उसे कुछ नहीं हुआ था। वे लोग आश्चर्य से भूत-प्रेत उतारने की इस नई प्रणाली को देख रहे थे।
“हूँ तो ये बात है।” मैंने कहा।
“क्या बात है...?” बूढा चौंका।
“फिक्र न करो... इसका पति कहाँ है?”
“पति... पति क्या करेगा... अरे साहब – वह तो बड़ा खतरनाक आदमी है... मेरे तो गले आ रही है...।”
“कोई बात नहीं... अब मैं देखता हूँ इस राक्षस को।”
बस एक युक्ति दिमाग में आ गई और मुझे उसी की संभावना लग रही थी।
“इसे जरा अन्दर के कमरे में ले चलो।”
मेरी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। वह जाना नहीं चाहती थी पर अब मैं उसका भूत उतारने के लिए पूरी तरह तैयार हो गया था।