desiaks
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“बस साहब बहादुर पहुँचने ही वाले हैं... शमशान के पास आ गये है। नदी का शोर नहीं सुनाई देता क्या ?”
“सुनाई पड़ा था, इसलिए पूछा है। क्यों शंभू उस रात वाली बात याद है ?”
“किस रात की साहब बहादुर...?”
अरे जिस रात हम पिछली बार इस रास्ते से आये थे।”
“याद है साहब बहादुर।”
“उस रात हमने शमशान घाट पर कुछ अजीब आग देखी थी।”
“हां साहब बहादुर... अगिया बेताल।”
“क्या वह फिर कभी भी दिखाई दी ?”
“साहब बहादुर... आप तो उन बातों को मजाक समझते है न...।”
“मैं अदृश्य शक्तियों पर विश्वास नहीं करता।”
“साहब बहादुर...।” अचानक शम्भू का कम्पित स्वर सुनाई दिया और घोडा रुक गया।
“क्या बात है शम्भू – घोडा क्यों रोक दिया ?”
“वह इधर ही आ रहा है...।”
“कौन ?”
“ब... बेताल...”
“क्या बक रहा है ?”
“आज भी वैसा ही हो रहा है साहब बहादुर... हे भगवान्.... वह हवा में तैरता हमारी तरफ आ रहा है...।” शम्भू की आवाज़ घर्रा गई – “साहब बहादुर... आप जरा...।”
अचानक सूं... सां... जैसी तेज़ ध्वनि गूंजी। शम्भू ने कुछ कहा था पर उसकी आवाज़ उस ध्वनि में डूबकर रह गई और मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा कि उसने क्या कहा था।
उसी क्षण घोडा हिनहिनाया और फिर भूचाल की तरह दौड़ पड़ा।
“साहब ब...ब...हा...दु..र.......।” शम्भू की चीत्कार दूर होती चली गई।
अगर मैं तुरंत संभलकर घोड़े की पीठ से चिपक न गया होता तो न जाने किस खड्डे में जा गिरता। मैंने उसकी गर्दन के बाल बड़ी मजबूती के साथ पकड़ लिए थे। वह पागलों के सामान भड़ककर भाग रहा था।
मेरे लिए यह दौड़ अंधे कुएं जैसी थी और भय मुझ पर छाया हुआ था।
अचानक वह जोर से उछला और मेरा संतुलन बिगड़ गया और फिर मैं जमीन पर लुढ़कता चला गया। शरीर के कई अंग रगड़ खाते चले गये।
आँखों में कीचड़ धंस गई और नाक मुँह का बुरा हाल था। हांथों में मिटटी आ गई, जो गीली होने के कारण दलदली मिटटी का रूप धारण कर चुकी थी।
तेज फुहार और हवा की सांय-सांय के बीच मुझे अपना दम घुटता हुआ प्रतीत हुआ। घुटने और कोहनियाँ छिल गई थी।
कुछ देर के लिए मस्तिष्क सुन्न पड़ा रहा। शरीर में चीटियां सी रेंगती प्रतीत हो रही थी। फिर कुछ मिनट तक मैं उसी स्थिति में पड़ा रहा। उसके बाद उठने का प्रयास किया।
“सुनाई पड़ा था, इसलिए पूछा है। क्यों शंभू उस रात वाली बात याद है ?”
“किस रात की साहब बहादुर...?”
अरे जिस रात हम पिछली बार इस रास्ते से आये थे।”
“याद है साहब बहादुर।”
“उस रात हमने शमशान घाट पर कुछ अजीब आग देखी थी।”
“हां साहब बहादुर... अगिया बेताल।”
“क्या वह फिर कभी भी दिखाई दी ?”
“साहब बहादुर... आप तो उन बातों को मजाक समझते है न...।”
“मैं अदृश्य शक्तियों पर विश्वास नहीं करता।”
“साहब बहादुर...।” अचानक शम्भू का कम्पित स्वर सुनाई दिया और घोडा रुक गया।
“क्या बात है शम्भू – घोडा क्यों रोक दिया ?”
“वह इधर ही आ रहा है...।”
“कौन ?”
“ब... बेताल...”
“क्या बक रहा है ?”
“आज भी वैसा ही हो रहा है साहब बहादुर... हे भगवान्.... वह हवा में तैरता हमारी तरफ आ रहा है...।” शम्भू की आवाज़ घर्रा गई – “साहब बहादुर... आप जरा...।”
अचानक सूं... सां... जैसी तेज़ ध्वनि गूंजी। शम्भू ने कुछ कहा था पर उसकी आवाज़ उस ध्वनि में डूबकर रह गई और मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा कि उसने क्या कहा था।
उसी क्षण घोडा हिनहिनाया और फिर भूचाल की तरह दौड़ पड़ा।
“साहब ब...ब...हा...दु..र.......।” शम्भू की चीत्कार दूर होती चली गई।
अगर मैं तुरंत संभलकर घोड़े की पीठ से चिपक न गया होता तो न जाने किस खड्डे में जा गिरता। मैंने उसकी गर्दन के बाल बड़ी मजबूती के साथ पकड़ लिए थे। वह पागलों के सामान भड़ककर भाग रहा था।
मेरे लिए यह दौड़ अंधे कुएं जैसी थी और भय मुझ पर छाया हुआ था।
अचानक वह जोर से उछला और मेरा संतुलन बिगड़ गया और फिर मैं जमीन पर लुढ़कता चला गया। शरीर के कई अंग रगड़ खाते चले गये।
आँखों में कीचड़ धंस गई और नाक मुँह का बुरा हाल था। हांथों में मिटटी आ गई, जो गीली होने के कारण दलदली मिटटी का रूप धारण कर चुकी थी।
तेज फुहार और हवा की सांय-सांय के बीच मुझे अपना दम घुटता हुआ प्रतीत हुआ। घुटने और कोहनियाँ छिल गई थी।
कुछ देर के लिए मस्तिष्क सुन्न पड़ा रहा। शरीर में चीटियां सी रेंगती प्रतीत हो रही थी। फिर कुछ मिनट तक मैं उसी स्थिति में पड़ा रहा। उसके बाद उठने का प्रयास किया।