hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
विशाल फिर अपने दोनो हाथ मेरे हाथों पर रख देता है और उसे बहुत आहिस्ता से धीरे धीरे सरकाते हुए उपर की तरफ ले जाने लगता है.........मेरे अंदर ज़रा भी हिम्मत नहीं थी कि मैं विशाल को किसी भी बात के लिए मना करती.......सच तो ये था कि मुझे उसकी हरकतें अच्छी लग रही थी........
विशाल के दोनो हाथ तेज़ी से मेरे हाथों पर सरक रहें थे........धीरे धीरे अब उसका हाथ मेरे कंधों पर आ चुका था.........मैं अब ये देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करता है.....तभी विशाल अपने दाँतों के बीच मेरे सूट की पिच्छली डोरी (जो कंधों के बीच बँधी होती है) को धीरे से खीचना शुरू करता है......विशाल के इस हरकत पर मैं उछल सी पड़ी थी..........मेरा दिल एक बार फिर से ज़ोरों से धड़कने लगा था.........
मगर कमाल की बात तो ये थी कि आज मेरे अंदर इनकार की कहीं कोई भावना नहीं थी......मैं विशाल को पूरी मनमानी करने दे रही थी.......शायद विशाल ने भी मेरी इस खामोश को मेरा इकरार समझ लिया था......इस लिए अब वो बिना किसी झिझक के आगे बढ़ रहा था.......तभी मैने अपनी गर्देन पीछे की ओर की और एक नज़र मैं विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी.......विशाल भी मेरी तरफ देख रहा था........उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी........अब तक मेरी सूट की दोनो डोर अलग हो चुकी थी.......
विशाल- मुझे ऐसे क्या देख रही हो दीदी........मैं कुछ आपके साथ ग़लत तो नहीं कर रहा ना.........
अदिति- नहीं विशाल........आज मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी..........तुम्हारा जो जी में आए वो मेरे साथ करो.........
विशाल फिर धीरे से मुस्कुरा देता है और फ़ौरन अपनी जगह से उठकर कमरे से बाहर चला जाता है......मैं उसे कमरे से बाहर जाते हुए देख रही थी......मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे अचानक वो कहाँ चला गया.......थोड़ी देर बाद विशाल फिर वापस कमरे में आया और आते ही उसने कमरे की सभी खिड़की अच्छे से बंद कर दी......फिर उनपर परदा लगाया........अब कमरे में थोड़ा अंधेरा हो गया था.......
तभी उसने फॅन की स्विच भी ऑफ कर दी.........इस वक़्त इतनी गर्मी थी कि एक पल भी फॅन के बगैर बैठना बहुत मुश्किल था........फिर उसने एक ब्लू कलर की ज़ीरो वॉट की बल्ब का स्विच ऑन किया......इस वक़्त कमरे का माहौल काफ़ी रंगीन सा लग रहा था.......मुझे विशाल की ये सारी हरकतें बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी........तभी विशाल फिर से मेरे पीछे आकर बैठ गया और इस बार उसने मेरी हाथ फिर से अपने हाथों में थाम लिया........
उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी थी.........जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो मैं फिर से विशाल के चेहरे की ओर सवाल भरी नज़रो से देखने लगी........
अदिति- ये सब क्या है विशाल........तुम ये अंगूठी कहाँ से लाए.......
विशाल- ये आपके लिए है दीदी....... मुझे ग़लत मत समझना मैने कहीं कोई चोरी नहीं की........वो तो मैं काफ़ी दिनों से कुछ पैसे अपने लिए जमा कर रहा था तो सोचा कि हर बार मैं अपने लिए कुछ ना कुछ खरीद लेता हूँ.......सोचा इस बार आपके लिए कुछ ले लूँ......ये उसी पैसे की है.......सोचा आपको ये ज़रूर पसंद आएगा.........
विशाल के दोनो हाथ तेज़ी से मेरे हाथों पर सरक रहें थे........धीरे धीरे अब उसका हाथ मेरे कंधों पर आ चुका था.........मैं अब ये देखना चाहती थी कि वो आगे क्या करता है.....तभी विशाल अपने दाँतों के बीच मेरे सूट की पिच्छली डोरी (जो कंधों के बीच बँधी होती है) को धीरे से खीचना शुरू करता है......विशाल के इस हरकत पर मैं उछल सी पड़ी थी..........मेरा दिल एक बार फिर से ज़ोरों से धड़कने लगा था.........
मगर कमाल की बात तो ये थी कि आज मेरे अंदर इनकार की कहीं कोई भावना नहीं थी......मैं विशाल को पूरी मनमानी करने दे रही थी.......शायद विशाल ने भी मेरी इस खामोश को मेरा इकरार समझ लिया था......इस लिए अब वो बिना किसी झिझक के आगे बढ़ रहा था.......तभी मैने अपनी गर्देन पीछे की ओर की और एक नज़र मैं विशाल के चेहरे की तरफ देखने लगी.......विशाल भी मेरी तरफ देख रहा था........उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी........अब तक मेरी सूट की दोनो डोर अलग हो चुकी थी.......
विशाल- मुझे ऐसे क्या देख रही हो दीदी........मैं कुछ आपके साथ ग़लत तो नहीं कर रहा ना.........
अदिति- नहीं विशाल........आज मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी..........तुम्हारा जो जी में आए वो मेरे साथ करो.........
विशाल फिर धीरे से मुस्कुरा देता है और फ़ौरन अपनी जगह से उठकर कमरे से बाहर चला जाता है......मैं उसे कमरे से बाहर जाते हुए देख रही थी......मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे अचानक वो कहाँ चला गया.......थोड़ी देर बाद विशाल फिर वापस कमरे में आया और आते ही उसने कमरे की सभी खिड़की अच्छे से बंद कर दी......फिर उनपर परदा लगाया........अब कमरे में थोड़ा अंधेरा हो गया था.......
तभी उसने फॅन की स्विच भी ऑफ कर दी.........इस वक़्त इतनी गर्मी थी कि एक पल भी फॅन के बगैर बैठना बहुत मुश्किल था........फिर उसने एक ब्लू कलर की ज़ीरो वॉट की बल्ब का स्विच ऑन किया......इस वक़्त कमरे का माहौल काफ़ी रंगीन सा लग रहा था.......मुझे विशाल की ये सारी हरकतें बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी........तभी विशाल फिर से मेरे पीछे आकर बैठ गया और इस बार उसने मेरी हाथ फिर से अपने हाथों में थाम लिया........
उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी थी.........जब मेरी नज़र उसपर पड़ी तो मैं फिर से विशाल के चेहरे की ओर सवाल भरी नज़रो से देखने लगी........
अदिति- ये सब क्या है विशाल........तुम ये अंगूठी कहाँ से लाए.......
विशाल- ये आपके लिए है दीदी....... मुझे ग़लत मत समझना मैने कहीं कोई चोरी नहीं की........वो तो मैं काफ़ी दिनों से कुछ पैसे अपने लिए जमा कर रहा था तो सोचा कि हर बार मैं अपने लिए कुछ ना कुछ खरीद लेता हूँ.......सोचा इस बार आपके लिए कुछ ले लूँ......ये उसी पैसे की है.......सोचा आपको ये ज़रूर पसंद आएगा.........