hotaks444
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मेरे लब अब तक खामोश थे......मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ.......अगर बोलूं भी तो इसकी शुरुआत कहाँ से करूँ......मुझे ऐसे खामोश बैठा देखकर विशाल फिर से मेरे करीब आया और उसने अपना हाथ धीरे से सरकाते हुए मेरे बालों के बीच ले गया और मेरे लबों को बड़े प्यार से चूसने लगा......जवाब में मैं भी उसका साथ देने लगी......
विशाल- अब बोल भी दो अदिति.......आख़िर मुझसे कैसी शरम.......
अदिति- मगर.......विशाल.....
विशाल- अगर मगर कुछ नहीं......मेरे खातिर प्लीज़......
मैं कुछ देर तक यू ही खामोश रही फिर आख़िरकार बोल पड़ी- मैं तुम्हारा एल....आ.....उ...द...आ.... चूसुन्गि विशाल......मैं ही जानती थी कि ये शब्द मैने कैसे कहे थे.......मेरे चेरे पर शरम की लाली फिर से गहरी हो चुकी थी......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था......विशाल मेरी छातियों को उपर नीचे होता हुआ देख रहा था वही मैं शरम से और भी दोहरी होती जा रही थी.......
विशाल के चेहरे पर मुस्कान थी......उसने मुझे फिर से बिस्तेर पर सुला दिया और इस बार वो मेरे उपर आकर लेट गया......अब उसका लंड मेरी चूत पर दस्तक दे रहा था......एक बार फिर से मेरे अंदर की आग भड़क उठी थी........विशाल मेरी दोनो छातियों को बारी बारी से मसल रहा था और मेरे होंठो को चूस भी रहा था......कुछ देर बाद वो सरकते हुए नीचे की तरफ जाने लगा........मेरी चूत की तरफ......
जैसे जैसे विशाल अपना जीभ नीचे की ओर ले जा रहा था वैसे वैसे मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.......मेरे मूह से निकलती सिसकारी अब उस महॉल को और भी रंगीन बनाती जा रही थी........जैसे ही विशाल मेरी जांघों के बीच आया मैं एक बार फिर ज़ोरों से सिसक पड़ी........मगर इस बार उसने मेरी कोई परवाह नहीं की और मेरे दोनो घुटनों को अलग करके मेरी चूत पर अपनी जीभ हौले से रख दी........मैं ही जानती थी कि उस वक़्त मेरी क्या हालत हो रही थी.......
विशाल अपनी जीभ धीरे धीरे मेरी चूत के चारों तरफ फेरने लगा और मैं किसी जल बिन मछली की तरह वही बिस्तेर पर तड़पने लगी.......वो फिर अपना जीभ धीरे से सरकाते हुए मेरी चूत पर ले आया और उसने बहुत आहिस्ता से मेरी चूत पर अपनी दाँत गढ़ा दिए.......इस बार मैं बहुत ज़ोरों से चिल्ला पड़ी......
अदिति- आआआआआहह........मम्मी...........विशाल..........हां ऐसे ही......आआआआआहह...........
विशाल फिर अपना चेहरा मेरी तरफ करता हुआ बोला- क्या अदिति.......खुल कर कहो ना......देखो जितना तुम मुझसे खुल कर बातें करोगी उतना ही इस खेल में मज़ा आएगा.......क्या तुम मेरे खातिर थोड़ी बेशर्म नहीं बन सकती.......
अदिति- हां विशाल......मुझे आज तुम्हारे खातिर सब मंज़ूर है.......बोलो क्या सुनना चाहते हो तुम........
विशाल- अब क्या मुझे दुबारा फिर से बताना पड़ेगा........वही बोलो जो मैं सुनना चाहता हूँ........
मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी........जैसे तैसे मैने अपने आपको संभाला फिर मैं एक साँस में कहती चली गयी.......
अदिति- मेरी चूत पर तुम अपनी जीभ ऐसे ही फेरते रहो विशाल.......मेरे जिस्म के रोयें पूरी तरह से खड़े हो चुके थे......ऐसे गंदे वर्ड्स कहने में एक अलग सा एग्ज़ाइट्मेंट आ रहा था.......मैने फ़ौरन अपनी नज़रें नीचे झुका ली......
विशाल फिर फ़ौरन उठकर मेरे पास आया और फिर से मेरी चूत के तरफ अपना मूह करके अपनी जीभ को धीरे धीरे हरकत करने लगा.......मैं एक बार फिर से सिसक पड़ी थी......मेरा एक हाथ खुद ब खुद मेरी निपल्स पर चला गया थे.......मैं उन्हें अपनी उंगलियों से धीरे धीरे मसल रही थी.....वही विशाल मेरी चूत के दोनो फांकों को खोलकर अपनी जीभ पूरी अंदर तक उतारता जा रहा था........
विशाल- अब बोल भी दो अदिति.......आख़िर मुझसे कैसी शरम.......
अदिति- मगर.......विशाल.....
विशाल- अगर मगर कुछ नहीं......मेरे खातिर प्लीज़......
मैं कुछ देर तक यू ही खामोश रही फिर आख़िरकार बोल पड़ी- मैं तुम्हारा एल....आ.....उ...द...आ.... चूसुन्गि विशाल......मैं ही जानती थी कि ये शब्द मैने कैसे कहे थे.......मेरे चेरे पर शरम की लाली फिर से गहरी हो चुकी थी......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था......विशाल मेरी छातियों को उपर नीचे होता हुआ देख रहा था वही मैं शरम से और भी दोहरी होती जा रही थी.......
विशाल के चेहरे पर मुस्कान थी......उसने मुझे फिर से बिस्तेर पर सुला दिया और इस बार वो मेरे उपर आकर लेट गया......अब उसका लंड मेरी चूत पर दस्तक दे रहा था......एक बार फिर से मेरे अंदर की आग भड़क उठी थी........विशाल मेरी दोनो छातियों को बारी बारी से मसल रहा था और मेरे होंठो को चूस भी रहा था......कुछ देर बाद वो सरकते हुए नीचे की तरफ जाने लगा........मेरी चूत की तरफ......
जैसे जैसे विशाल अपना जीभ नीचे की ओर ले जा रहा था वैसे वैसे मेरी बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.......मेरे मूह से निकलती सिसकारी अब उस महॉल को और भी रंगीन बनाती जा रही थी........जैसे ही विशाल मेरी जांघों के बीच आया मैं एक बार फिर ज़ोरों से सिसक पड़ी........मगर इस बार उसने मेरी कोई परवाह नहीं की और मेरे दोनो घुटनों को अलग करके मेरी चूत पर अपनी जीभ हौले से रख दी........मैं ही जानती थी कि उस वक़्त मेरी क्या हालत हो रही थी.......
विशाल अपनी जीभ धीरे धीरे मेरी चूत के चारों तरफ फेरने लगा और मैं किसी जल बिन मछली की तरह वही बिस्तेर पर तड़पने लगी.......वो फिर अपना जीभ धीरे से सरकाते हुए मेरी चूत पर ले आया और उसने बहुत आहिस्ता से मेरी चूत पर अपनी दाँत गढ़ा दिए.......इस बार मैं बहुत ज़ोरों से चिल्ला पड़ी......
अदिति- आआआआआहह........मम्मी...........विशाल..........हां ऐसे ही......आआआआआहह...........
विशाल फिर अपना चेहरा मेरी तरफ करता हुआ बोला- क्या अदिति.......खुल कर कहो ना......देखो जितना तुम मुझसे खुल कर बातें करोगी उतना ही इस खेल में मज़ा आएगा.......क्या तुम मेरे खातिर थोड़ी बेशर्म नहीं बन सकती.......
अदिति- हां विशाल......मुझे आज तुम्हारे खातिर सब मंज़ूर है.......बोलो क्या सुनना चाहते हो तुम........
विशाल- अब क्या मुझे दुबारा फिर से बताना पड़ेगा........वही बोलो जो मैं सुनना चाहता हूँ........
मैं विशाल के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगी........जैसे तैसे मैने अपने आपको संभाला फिर मैं एक साँस में कहती चली गयी.......
अदिति- मेरी चूत पर तुम अपनी जीभ ऐसे ही फेरते रहो विशाल.......मेरे जिस्म के रोयें पूरी तरह से खड़े हो चुके थे......ऐसे गंदे वर्ड्स कहने में एक अलग सा एग्ज़ाइट्मेंट आ रहा था.......मैने फ़ौरन अपनी नज़रें नीचे झुका ली......
विशाल फिर फ़ौरन उठकर मेरे पास आया और फिर से मेरी चूत के तरफ अपना मूह करके अपनी जीभ को धीरे धीरे हरकत करने लगा.......मैं एक बार फिर से सिसक पड़ी थी......मेरा एक हाथ खुद ब खुद मेरी निपल्स पर चला गया थे.......मैं उन्हें अपनी उंगलियों से धीरे धीरे मसल रही थी.....वही विशाल मेरी चूत के दोनो फांकों को खोलकर अपनी जीभ पूरी अंदर तक उतारता जा रहा था........