hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
विजय अपनी माँ से अलग होते ही मायूस होकर कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
"क्या हुआ बेटे नाराज़ हो गये क्या" रेखा ने काम करते हुए जैसे ही अपने बेटे को देखा उसका मुँह फूला हुआ देखकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"माँ मैं आपसे नाराज़ कैसे हो सकता हूँ । मगर मुझे इतना मज़ा आ रहा था की आप से अलग होने से कुछ अजीब लग रहा है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनते ही कहा।
"बेटे अब सच बताओ सुबह किसका सपना देख रहे थे" रेखा ने फिर से काम करते हुए कहा ।
"माँ सच कहूँ तो मुझे रात को सपने में आपकी यह बड़ी बड़ी चुचियां और आपके यह बड़े बड़े चूतड़ दिखाई देते हैं । जिन्हें देखकर मेरा लंड तन जाता है" विजय ने अपनी माँ की बात का जवाब बड़ी बेशरमी से देते हुए कहा।
"बेटे क्या मज़ाक कर रहे हो तुम भी मुझे बना रहे हो क्या" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनकर हँसते हुए कहा।
"क्यों माँ मैंने ऐसा क्या कह दिया" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे तुम्हें तो कोई कॉलेज की लड़की सपने में आती होगी मुझ में क्या है जो तुम्हें सपने में आती हू" रेखा ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।
"माँ मुझे तो आपकी बड़ी बड़ी चुचियां और यह बड़े चूतड पसंद है। कॉलेज की लड़कयों की तो चुचियां भी छोटी होती है और उनके चूतड भी आपके जैसे बड़े नहीं होते और मैं तो अपनी माँ का दीवाना हू" विजय ने अपनी माँ को घूरते हुए कहा।
"बेटे लगता है तुम्हारी शादी के लिए भी कोई ऐसी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी जिसकी चुचियां और चूतड बड़े हो" रेखा ने हँसते हुए कहा।
"नही माँ मैं शादी नहीं करूँगा मुझे तो बस अपनी माँ को खुश रखना है" विजय ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे ऐसा मत बोलो मैं तुम्हारी शादी तो ज़रूर कराऊँगी" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनते हुए कहा ।
"माँ जब होगी तब देखेंगे अभी तो मुझे बस आप ही अच्छी लगती हो" विजय ने अपनी माँ से कहा।
"बेटे नाश्ता तैयार हो गया है । अब तुम जाकर बाहर बैठ जाओ मैं नाश्ता लेकर आती हू" रेखा ने अपने बेटे से कहा।
विजय अपनी माँ की बात सुनकर बाहर चला गया और नाशते के टेबल पर जाकर बैठ गया जहाँ पर पहले से ही उसके पिता और बाकी लोग बैठे थे।
विजय अपने पिता की तरफ देखकर सोचने लगा क्या बात है । उसका बाप इतना बूढा भी नहीं है फिर उसका लंड क्यों उसकी माँ को शांत नहीं कर पाता, विजय यह सोच ही रहा था की उसकी माँ नाश्ता ले आई और सब मिलकर नाश्ता करने लगे।
"क्या हुआ बेटे नाराज़ हो गये क्या" रेखा ने काम करते हुए जैसे ही अपने बेटे को देखा उसका मुँह फूला हुआ देखकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"माँ मैं आपसे नाराज़ कैसे हो सकता हूँ । मगर मुझे इतना मज़ा आ रहा था की आप से अलग होने से कुछ अजीब लग रहा है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनते ही कहा।
"बेटे अब सच बताओ सुबह किसका सपना देख रहे थे" रेखा ने फिर से काम करते हुए कहा ।
"माँ सच कहूँ तो मुझे रात को सपने में आपकी यह बड़ी बड़ी चुचियां और आपके यह बड़े बड़े चूतड़ दिखाई देते हैं । जिन्हें देखकर मेरा लंड तन जाता है" विजय ने अपनी माँ की बात का जवाब बड़ी बेशरमी से देते हुए कहा।
"बेटे क्या मज़ाक कर रहे हो तुम भी मुझे बना रहे हो क्या" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनकर हँसते हुए कहा।
"क्यों माँ मैंने ऐसा क्या कह दिया" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे तुम्हें तो कोई कॉलेज की लड़की सपने में आती होगी मुझ में क्या है जो तुम्हें सपने में आती हू" रेखा ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।
"माँ मुझे तो आपकी बड़ी बड़ी चुचियां और यह बड़े चूतड पसंद है। कॉलेज की लड़कयों की तो चुचियां भी छोटी होती है और उनके चूतड भी आपके जैसे बड़े नहीं होते और मैं तो अपनी माँ का दीवाना हू" विजय ने अपनी माँ को घूरते हुए कहा।
"बेटे लगता है तुम्हारी शादी के लिए भी कोई ऐसी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी जिसकी चुचियां और चूतड बड़े हो" रेखा ने हँसते हुए कहा।
"नही माँ मैं शादी नहीं करूँगा मुझे तो बस अपनी माँ को खुश रखना है" विजय ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटे ऐसा मत बोलो मैं तुम्हारी शादी तो ज़रूर कराऊँगी" रेखा ने अपने बेटे की बात को सुनते हुए कहा ।
"माँ जब होगी तब देखेंगे अभी तो मुझे बस आप ही अच्छी लगती हो" विजय ने अपनी माँ से कहा।
"बेटे नाश्ता तैयार हो गया है । अब तुम जाकर बाहर बैठ जाओ मैं नाश्ता लेकर आती हू" रेखा ने अपने बेटे से कहा।
विजय अपनी माँ की बात सुनकर बाहर चला गया और नाशते के टेबल पर जाकर बैठ गया जहाँ पर पहले से ही उसके पिता और बाकी लोग बैठे थे।
विजय अपने पिता की तरफ देखकर सोचने लगा क्या बात है । उसका बाप इतना बूढा भी नहीं है फिर उसका लंड क्यों उसकी माँ को शांत नहीं कर पाता, विजय यह सोच ही रहा था की उसकी माँ नाश्ता ले आई और सब मिलकर नाश्ता करने लगे।